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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
bahut hi emotional update bhai
sahi jab aap kisi par jaan tak ka bharosa kar le aur aapko pata chale ki usne dhoka dene ki kosis ki
to dil tut jata hai atma ke tukde ho jaate hai
par ye bhi sach hai ki uss dukh se bhar bhi jaldi nahi nikal paate hum khud ko
ab dekhte kaise is parivar me uss se bahar aane ka rasta nikalta hai
kya sabhi ek dusre apna payenge fir se

keep writing
Insaan ki hamesha yahi chahat hoti hai ki uske apne hamesha khush rahe...kabhi kisi ko koi dukh na ho lekin aisa hota nahi hai. Upar wale ka khel insaano ki kalpana se pare hota hai...well yaha ki situation filhal serious hai. Wakt lagega....baaki dekhiye kya hota hai..
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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Ab pachhtaye hot ka jab chidiya chug gyi khet
Khair menka chachi aaj is baat ki gahnta smjh pa rhi hain ki unke bhai ki baaton ne aakr jagtap aur unhone kya anarth kar dala hai
Jis ghr me unhe chhoti bahu aur maa saman darja diya jata tha ab uski kalpna karna bhi namumkin sa hai
Aur sath hi sath apne bacho ke liye bhi jeevan bhar ke dukh ka intejaam bhi lagbhag kar hi diya tha
Agr dada thakur ka vyaktitva itna mahaan na hota to
Bilkul sahi kaha bro...
Agar dada thakur itne mahana nahi hote to zaahir hai wo apne pita bade dada thakur jaise hi hote aur tab kisi me itni himmat hi na hoti ye sab karne ki....iska matlab ye bhi hua ki tab ye kahani bhi aisi na hoti...
Kusum ki sthiti ko smjh pana syd kathin hi hoga q ki use apni maa ko bhi smbhalna h ki kahi pashchatap me wo kch kr na len
Or khud ko bhi saahas dena h dada thakur, badi maa aur apne sabse ache wale bhaiya ke samne jane ke liye.....chahe wo log kusum ko abhi bhi utna hi pyar aur dular den lekin anarth to ho hi gya rha aur swayam uske mata pita ke dwara....
Kusum ne jo kiya usne apni maa ko bachane ke liye kiya...ise uski moorkhata kahe ya nadaani lekin iske liye use koi dosh nahi de sakta. Baaki dekhiye kya hota hai...
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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Dada thakur ki sthiti ab sudharna bda mushkil lg rha h
Pehle bete aur bhai ke jane ka dukh,
Fir narsanhar ka dukh,
Aur ab ghr me vishwasghat ka dukh
Sahi kaha...
Maa aur chachi ka rishta samanya hone me kafi waqt lgega
Beshak....Rishta bhale hi samanya ho jaye lekin rishte me ab pahle jaisi baat hone me time lagega...
Bhai kusum aur vaibhav ka bhi samvaad hota agr to dono ke man ke ghav ki peeda aur kam hoti
Kusum, vaibhav ke kahne par hi apni maa ko zyada se zyada time de rahi hai. Vaibhav se uske sanvaad bhi aage dikhenge...
Ragini bhabhi ka 2 mahine se apne mayke me rehna kch ajeeb to lag rha hai
Sath hi maa ka vaibhav ko rokna bhi sandehaspad hai

Aakhir q wo itne samay se wahan hain aur q unhe koi lane ki baat ni kr rha hai?
Is bare me jald hi sab kuch pata chal jayega...
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
हवेली की ठकुराईन सुगंधादेवी ने मेनका को आखिर माफ कर दिया
गाँव मे अस्पताल और विद्यालय बनने से सभी खुश है
रागिणी भाभी के मायके जाने के बाद वैभव को क्या कुछ पता चलता हैं या सब कुछ खैरीयत हैं खैर देखते हैं आगे क्या होता है
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Thanks bro
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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छोटा मुंह और बड़ी बात, पर अगर ध्यान दिया जाए तो रामायण और महाभारत दोनो ही संतान मोह में ही हुई है। लोग लाख बोलें की दोनो स्त्रियों ( कैकेयी और द्रौपदी) की वजह से हुई, किंतु मेरा मानना रहा है की कैकेयी ने अपने नही बल्कि अपने पुत्र के लिए राजपाठ की कामना की, वैसे ही धृतराष्ट्र/गांधारी ने अपने अपने पुत्रों के लिए। और इसी लिए रामायण और महाभारत हुई।
Absolutely right bro....
चाचा जगताप पर मुझे पहले भी संदेह था, किंतु उनकी मृत्यु के पश्चात मेनका चाची पर नहीं। निःसंदेह ये बहुत की चौकाने वाले रहस्योद्घाटन हुए हैं। यद्यपि कुसुम की हरकत और अंतर्द्वंद्व बेमाना सा लगता है। पर जो लड़की अपने भाइयों के डराने पर अपने सबसे प्यारे भाई को नपुंसक बनाने को तैयार हो गई थी (भले ही बेमन से), वो अपनी मां के लिए इतनी बड़ी बात छुपाने को और जान देकर उसे बचाने को तत्पर हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं।
Asal me starting me hi maine is story ka main villain jagtap ko hi banaya tha aur usi ke base par puri story aage badhaya. Main starting se hi jaanta tha ki story read karne wale mere dost bhai...jagtap par bhi shak karenge lekin kyoki jagtap ko bich me hi mar jana tha is liye mujhe pata tha ki aise me aap sab ka shak jagtap se hat jaayega aur aap log kisi dusre par safedposh hone ka shak karne lagenge. Maine kabhi kisi ko ghumaya nahi aur na hi gumraah kiya hai...kyoki Mera concept pahle se hi clear tha. Aap log ghoom Gaye ya gumraah ho gaye ye aap logo ki soch thi...I know situation ko vajah se hi aisa hua but hua to yahi. Main bhi man hi man muskurata raha ki aap log kaha kaha pahuche ja rahe hain... :D

Haan, sahi kaha...Kusum us situation me wahi karti
अब जब सफेदपोश का अध्याय समाप्त हो ही गया है, तो सारा ध्यान केंद्रित होता है रूपा - वैभव - रागिनी के (प्रेम) त्रिकोण पर। हालांकि सच कहूं तो कभी कभी मुझे रागिनी के भी सफेदपोश से मिले होने के संदेह होता था, पर अब उसपर पूर्णविराम लगने के उपरांत न्यायसंगत लगता है की उसका वैभव के साथ मिलन हो ही जाना चाहिए। परंतु यह ना तो रागिनी, और ना ही वैभव के लिए आसान होगा।
Ragini par sabse pahle shayad hamare SANJU ( V. R. ) Bhaiya ne shak kiya tha aur maine reply me unhen ragini ke bare me clean chit de di thi. Is liye ragini ke bare me aisa sochne ki zarurat hi nahi thi kisi ko....Haan agar maine usko clean chit nahi diya hota to beshak aap log soch sakte the aur main bhi use villain ka mohra banane ki sochta...but aisa nahi tha,


Baaki dekhiye kya hota hai...
देखते हैं लेखक महोदय कैसे इन दोनों पात्रों का हृदयपरिवर्तन करतें हैं।
रागिनी चूंकि बहुत दिनों से मायके में है तो संभवतः उसे इसी उद्देश्य से वहां बुलाया गया होगा की इस बारे में उदारचित्त होकर और विस्तारपूर्वक चर्चा उसके परिवार वाले उससे कर सकें, और उसे इस संबंध (समायोजन) के लिए मना सकें। यह देखना रोचक होगा की वैभव इस बात पर क्या और कैसे प्रतिक्रिया देगा। उसके मन में भी अपनी भाभी के प्रति आकर्षण तो था, परंतु अब जो आदर और सम्मान (और थोड़ा अपराधबोध) भी है वह कैसे और कितना उसके अंतर्मन को उलझाएगा।
Dono ka hriday pariwartan main yu hi nahi karunga dost...Jo bhi hoga natural hoga. Waise ye story complete ho chuki mere mobile ke notepad me to zaahir hai kuch na kuch ho hi chuka hai. Ab kya hua hai ye end me hi pata chalega...
जिस प्रकार से रूपचंद्र के व्यक्तित्व को एक सकारात्मक आकार दिया जा रहा है, बहुत संभव है की उसको कुसुम के लिया एक यथेष्ठ वर की संभावना बनाने की ही कोशिश की जा रही है। और आश्चर्य ना होगा की वैभव खुद इस बात की पैरवी करे। समय और रचनाकार की लेखनी के गर्भ में जो भी छुपा होगा, जल्दी ही सामने आएगा।
Aisa sochna tark sangat hai bhai....baaki dekhiye kya milta hai aage...
लेखक महोदय तो पुनः बहुत बहुत धन्यवाद कहानी को आगे बढ़ा कर अपने अंतिम पड़ाव की ओर अग्रसर करने के लिए, और आगे की तभी रचनाओं के लिए अग्रिम शुभकामनाएं एवं बधाइयां🙏
Thanks mitra....

Aage yaha par koi kahani likhuga ya nahi ye to aane wala samay hi batayega. Filhal is forum par meri ye last story hai....
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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अध्याय - 139
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


एकाएक ही मन में उथल पुथल सी मच गई थी। भाभी के लिए पहले भी फ़िक्र थी लेकिन अब और भी ज़्यादा होने लगी थी। एक बेचैनी सी थी जो बढ़ती ही जा रही थी। मैंने फ़ैसला कर लिया कि कल सुबह मैं चंदनपुर जाऊंगा और भाभी को वापस ले आऊंगा।


अब आगे....


अगली सुबह।
नहा धो कर और नए कपड़े पहन कर मैं चाय नाश्ता करने नीचे आया। मुझे नए कपड़ों में देख मां और बाकी लोग मुझे अलग ही तरह से देखने लगे। मुझे अजीब तो लगा लेकिन मैं किसी से बिना कुछ बोले कुर्सी पर बैठ गया। थोड़ी ही देर में कुसुम मेरे लिए नाश्ता ले आई।

"क्या बात है, आज मेरा बेटा राज कुमारों की तरह सजा हुआ है।" मां ने मेरी तरफ देखते हुए पूछा_____"कहीं बाहर जा रहा है क्या तू?"

"हां मां।" मैंने सामान्य भाव से कहा____"मैं चंदनपुर जा रहा हूं, भाभी को लेने।"

"क..क्या??" मां जैसे उछल ही पड़ीं____"ये क्या कह रहा है तू?"

"सच कह रहा हूं मां।" मैंने कहा____"लेकिन आप इतना हैरान क्यों हो रही हैं? क्या आप नहीं चाहतीं कि भाभी वापस हवेली आएं?"

"ह....हां चाहती हूं।" मां ने खुद को सम्हालते हुए कहा____"लेकिन तू इस तरह अचानक से तैयार हो कर आ गया इस लिए हैरानी हुई मुझे। तूने बताया भी नहीं कि तू रागिनी बहू को लेने जाने वाला है?"

"हां जैसे मैं आपको बता देता तो आप मुझे खुशी से जाने देतीं।" मैंने हौले से मुंह बनाते हुए कहा_____"आपसे पहले भी कई बार कह चुका हूं कि भाभी को वापस लाना चाहता हूं लेकिन हर बार आपने मना कर दिया। ये भी नहीं बताया कि आख़िर क्यों? इस लिए मैंने फ़ैसला कर लिया है कि आज चंदनपुर जाऊंगा ही जाऊंगा और शाम तक भाभी को ले कर वापस आ जाऊंगा।"

"क्या तूने इस बारे में पिता जी से पूछा है?" मां ने मुझे घूरते हुए कहा____"अगर नहीं पूछा है तो पूछ लेना उनसे। अगर वो जाने की इजाज़त दें तभी जाना वरना नहीं।"

"मुझे समझ नहीं आ रहा कि आख़िर आप भाभी को वापस लाने से मना क्यों करती हैं?" मैंने झल्लाते हुए कहा_____"क्या आपको अपनी बहू की ज़रा भी फ़िक्र नहीं है? क्या आप नहीं चाहतीं कि वो हमारे साथ इस हवेली में रहें?"

"फ़िज़ूल की बातें मत कर।" मां ने नाराज़गी से कहा____"शांति से नाश्ता कर और फिर पिता जी से इस बारे में पूछ कर ही जाना।"

मैंने बहस करना उचित नहीं समझा इस लिए ख़ामोशी से नाश्ता किया और फिर हाथ मुंह धो कर सीधा बैठक में पहुंच गया। बैठक में पिता जी, गौरी शंकर और किशोरी लाल बैठे हुए थे।

"अच्छा हुआ तुम यहीं आ गए।" पिता जी ने मुझे देखते ही कहा_____"हम तुम्हें बुलवाने ही वाले थे। बात ये है कि आज तुम्हें शहर जाना है। वहां पर जिनसे हम सामान लाते हैं उनका पिछला हिसाब किताब चुकता करना है। हम नहीं चाहते कि देनदारी ज़्यादा हो जाए जिसके चलते वो लोग सामान देने में आना कानी करने लगें। इस लिए तुम रुपए ले कर जाओ और आज तक का सारा हिसाब किताब चुकता कर देना। हमें गौरी शंकर के साथ एक ज़रूरी काम से कहीं और जाना है, इस लिए ये काम तुम्हें ही करना होगा।"

"मुझे भी कहीं जाना है पिता जी।" मैंने झिझकते हुए कहा____"लेकिन आप कहते हैं तो मैं शहर में सबका हिसाब किताब कर दूंगा उसके बाद वहीं से निकल जाऊंगा।"

"कहां जाना है तुम्हें?" पिता जी के चेहरे पर शिकन उभर आई थी।

"चंदनपुर।" मैंने धड़कते दिल से कहा____"भाभी को लेने जा रहा हूं।"

मेरी बात सुन कर गौरी शंकर ने फ़ौरन ही मेरी तरफ देखा और फिर पलट कर पिता जी की तरफ देखने लगा। पिता जी पहले से ही मेरी तरफ देख रहे थे। मेरी बात सुन कर वो कुछ बोले नहीं, किंतु चेहरे पर सोचो के भाव उभर आए थे।

"ठीक है।" फिर उन्होंने गहरी सांस ले कर कहा____"अगर तुम चंदनपुर जाना चाहते हो तो ज़रूर चले जाना लेकिन इस बात का विशेष ध्यान रखना कि अगर समधी साहब बहू को भेजने से मना करें तो तुम उन पर दबाव नहीं डालोगे।"

"जी ठीक है।" मैंने सिर हिला दिया।

पिता जी ने मुंशी किशोरी लाल को इशारा किया तो वो उठ कर पैसा लेने चला गया। कुछ देर बाद जब वो आया तो उसके हाथ में एक किताब थी और पैसा भी। किताब को उसने पिता जी की तरफ बढ़ा दिया। पिता जी ने किताब खोल कर हिसाब किताब देखा और फिर एक दूसरे कागज में लिख कर मुझे कागज़ पकड़ा दिया। इधर एक छोटे से थैले में पैसा रख कर मुंशी जी ने मुझे थैला पकड़ा दिया।

मैं खुशी मन से अंदर आया और मां को बताया कि पिता जी ने जाने की इजाज़त दे दी है। मां मेरी बात सुन कर हैरान सी नज़र आईं किंतु बोली कुछ नहीं। जब मैं जीप की चाभी ले कर जाने लगा तो उन्होंने बस इतना ही कहा कि भीमा को साथ ले जाना। ख़ैर कुछ ही देर में मैं भीमा को साथ ले कर जीप से शहर की तरफ जा निकला।

आज काफी दिनों बाद मुझे कुछ अच्छा सा महसूस हो रहा था। ये सोच कर खुशी हो रही थी कि दो महीने बाद भाभी से मिलूंगा। मुझे यकीन था कि जैसे मैं उन्हें बहुत याद कर रहा था वैसे ही उन्हें भी मेरी याद आती होगी। जैसे मुझे उनकी फ़िक्र थी वैसे ही उन्हें भी मेरी फ़िक्र होगी। एकाएक ही मेरा मन करने लगा कि काश ये जीप किसी पंक्षी की तरह आसमान में उड़ने लगे और एक ही पल में मैं अपनी प्यारी सी भाभी के पास पहुंच जाऊं।

✮✮✮✮

चंदनपुर गांव।
चारो तरफ खेतों में हरियाली छाई हुई थी। यदा कदा सरसो के खेत भी थे जिनमें लगे फूलों की वजह से बड़ा ही मनमोहक नज़ारा दिख रहा था। पेड़ पौधों और ऊंचे ऊंचे पहाड़ों से घिरा हुआ गांव बड़ा ही सुन्दर लगता था। मैं इस सुंदर नज़ारे देखते हुए जीप चला रहा था। मन में तरह तरह के ख़याल बुनते हुए कुछ ही समय में मैं भाभी के घर पहुंच गया।

घर के बाहर बड़ी सी चौगान में जीप खड़ी हुई तो जल्दी ही घर के अंदर से कुछ लोग निकल कर बाहर आए। भाभी के चाचा की लड़की कंचन और मोहिनी नज़र आईं मुझे। उनके पीछे उनका बड़ा भाई वीर सिंह और चाची का भाई वीरेंद्र सिंह भी नज़र आया। मुझ पर नज़र पड़ते ही सबके चेहरे खिल से गए। उधर कंचन की जैसे ही मुझसे नज़रें चार हुईं तो वो एकदम से शर्मा गई। पहले तो मुझे उसका यूं शर्मा जाना समझ न आया किंतु जल्दी ही याद आया कि पिछली बार जब मैं आया था तो उसको और उसकी छोटी भाभी को मैंने नंगा देख लिया था। कंचन इसी वजह से शर्मा गई थी। मैं इस बात से मन ही मन मुस्कुरा उठा।

"अरे! वैभव महाराज आप?" वीर सिंह उत्साहित सा हो कर बड़ी तेज़ी से मेरी तरफ बढ़ा। मेरे पैर छू कर वो सीधा खड़ा हुआ फिर बोला____"धन्य भाग्य हमारे जो आपके दर्शन हो गए। यकीन मानिए आज सुबह ही हम लोग आपके बारे में चर्चा कर रहे थे।"

"कैसे हैं महाराज?" वीरेंद्र सिंह ने भी मेरे पांव छुए, फिर बोला____"आपने अचानक यहां आ कर हमें चौंका ही दिया। ख़ैर आइए, अंदर चलते हैं।"

मैं वीरेंद्र के साथ अंदर की तरफ बढ़ चला। उधर वीर सिंह मेरे साथ आए भीमा को भी अंदर ही बुला लिया। कुछ ही पलों में मैं अंदर बैठके में आ गया जहां बड़ी सी चौपार में कई सारे पलंग बिछे हुए थे। वीर सिंह ने झट से पलंग पर गद्दा बिछा दिया और फिर उसके ऊपर चादर डाल कर मुझे बैठाया।

कंचन और मोहिनी पहले ही घर के अंदर भाग गईं थी और सबको बता दिया था कि मैं आया हूं। एकाएक ही जैसे पूरे घर में हलचल सी मच गई थी। कुछ ही समय में घर के बड़े बुजुर्ग भी आ गए। सबने मेरे पांव छुए, वीरेंद्र सिंह फ़ौरन ही पीतल की एक परांत ले आया जिसमें मेरे पैरों को रखवा कर उसने मेरे पांव धोए। ये सब मुझे बड़ा अजीब लगा करता था लेकिन क्या कर सकता था? ये उनका स्वागत करने का तरीका था। आख़िर मेरे बड़े भैया की ससुराल थी ये, उनका छोटा भाई होने के नाते मैं भी उनका दामाद ही था। बहरहाल, पांव वगैरह धोने के बाद घर की बाकी औरतों ने मेरे पांव छुए। उसके बाद जल्दी ही मेरे लिए जल पान की व्यवस्था हुई।

भैया के ससुर और चाचा ससुर दोनों दूसरे पलंग पर बैठे थे और मुझसे हवेली में सभी का हाल चाल पूछ रहे थे। इसी बीच जल पान भी आ गया। भीमा चौपार की दूसरी तरफ एक चारपाई पर बैठा था। उसके लिए भी जल पान आ गया था जिसे वो ख़ामोशी से खाने पीने में लग गया था। काफी देर तक सब मुझे घेरे बैठे रहे और मुझसे दुनिया जहान की बातें करते रहे। सच कहूं तो मैं इन सारी बातों से अब ऊब सा गया था। मेरा मन तो बस भाभी को देखने का कर रहा था। दो महीने से मैंने उनकी सूरत नहीं देखी थी।

बातों का दौर चला तो दोपहर के खाने का समय हो गया। खाना खाने की इच्छा तो नहीं थी लेकिन सबके ज़ोर देने पर मुझे सबके साथ बैठना ही पड़ा। घर के अंदर एक बड़े से हाल में हम सब बैठे खाने लगे। घर की औरतें खाना परोसने लगीं। मैं बार बार नज़र घुमा कर भाभी को देखने की कोशिश करता लेकिन वो मुझे कहीं नज़र ना आतीं। ऐसे ही खाना पीना ख़त्म हुआ और मैं फिर से बाहर बैठके में आ गया। कुछ देर आराम करने के बाद मर्द लोग खेतों की तरफ जाने लगे। भैया के ससुर किसी काम से गांव तरफ निकल गए।

"महाराज, आप यहीं आराम करें।" वीरेंद्र ने कहा____"हम लोग खेतों की तरफ जा रहे हैं। अगर आप बेहतर समझें तो हमारे साथ खेतों की तरफ चलें। आपका समय भी कट जाएगा। हम लोग तो अब शाम को ही वापस आएंगे।"

"लेकिन शाम होने से पहले ही मुझे वापस जाना है वीरेंद्र भैया।" मैंने स्पष्ट भाव से कहा____"आप भी जानते हैं कि काम के चलते कहां किसी के पास कहीं आने जाने का समय होता है। वैसे भी गांव में अस्पताल और विद्यालय का निर्माण कार्य चालू है जो मेरी ही देख रेख में हो रहा है। इस लिए मुझे वापस जाना होगा। मैं तो बस भाभी को लेने आया था यहां। आप कृपया सबको बता दें कि मैं भाभी को लेने आया हूं।"

मेरी बात सुनते ही वीरेंद्र सिंह के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। थोड़ी दुविधा और चिंता में नज़र आया वो मुझे। कुछ देर तक जाने क्या सोचता रहा फिर बोला____"ये आप क्या कह रहे हैं महाराज? आप रागिनी को लेने आए हैं? क्या दादा ठाकुर ने इसके लिए आपको भेजा है?"

"उनकी इजाज़त से ही आया हूं मैं।" मुझे उसकी बात थोड़ी अजीब लगी____"लेकिन आप ऐसा क्यों कह रहे हैं?"

"देखिए इस बारे में मैं आपसे ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता।" वीरेंद्र सिंह ने कहा____"कुछ देर में पिता जी आ जाएंगे तो आप उनसे ही बात कीजिएगा। ख़ैर मुझे जाने की इजाज़त दीजिए।"

वीरेंद्र सिंह इतना कह कर चला गया और इधर मैं मन में अजीब से ख़यालात लिए बैठा रह गया। मेरे लिए ये थोड़ी हैरानी की बात थी कि वीरेंद्र ऐसा क्यों बोल गया था? इसके पहले तो ऐसा कभी नहीं हुआ था कि मैं भाभी को लेने आऊं और ये लोग ऐसा बर्ताव करते हुए इस तरह की बातें करें। मुझे समझ न आया कि आख़िर ये माजरा क्या है? ख़ैर क्या कर सकता था? वीरेंद्र के अनुसार अब मुझे भाभी के पिता जी से ही इस बारे में बात करनी थी इस लिए उनके आने की प्रतिक्षा करने लगा।

अभी मैं प्रतीक्षा ही कर रहा था कि तभी अंदर से कुछ लोगों के आने का आभास हुआ मुझे तो मैं संभल कर बैठ गया। कुछ ही पलों में अंदर से वीरेंद्र सिंह की पत्नी वंदना और वीर सिंह की पत्नी गौरी मेरे सामने आ गईं। उनके पीछे मोहिनी और भाभी की छोटी बहन कामिनी भी आ गई।

"लगता है हमारे वैभव महाराज को सब अकेला छोड़ कर चले गए हैं।" वंदना ने मुस्कुराते हुए कहा____"इसी लिए यहां अकेले बैठे मक्खियां मार रहे हैं।"

"क्या करें भाभी मक्खियां ही मारेंगे अब।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"यहां मक्खियां भी तो बहुत ज़्यादा हैं। ख़ैर आप अपनी सुनाएं और हां आपका बेटा कैसा है? हमें भी तो दिखाइए उस नन्हें राज कुमार को।"

मेरी बात सुन कर सब मुस्कुरा उठीं। वंदना भाभी ने मोहिनी को अंदर भेजा बेटे को लाने के लिए। सहसा मेरी नज़र कामिनी पर पड़ी। वो अपलक मुझे ही देखे जा रही थी। जैसे ही मेरी नज़रें उससे टकराईं तो उसने झट से अपनी नज़र हटा ली। मुझे उसका ये बर्ताव अजीब लगा। आम तौर पर वो हमेशा मुझसे कोषों दूर रहती थी। मुझसे कभी ढंग से बात नहीं करती थी। मुझे भी पता था कि वो थोड़ी सनकी है और गुस्से वाली भी इस लिए मैं भी उससे ज़्यादा उलझता नहीं था। किंतु आज वो खुद मेरे सामने आई थी और जिस तरह से अपलक मुझे देखे जा रही थी वो हैरानी वाली बात थी।

बहरहाल, थोड़ी ही देर में मोहिनी नन्हें राज कुमार को ले के आई और उसे मेरी तरफ बढ़ा दिया। मैंने उस नाज़ुक से बच्चे को अपनी गोद में ले लिया और उसे देखने लगा। बड़ा ही प्यारा और मासूम नज़र आ रहा था वो। मैंने महसूस किया कि वो रंगत में अपनी मां पर गया था। एकदम गोरा चिट्ठा। फूले फूले गाल, बड़ी बड़ी आंखें, छोटी सी नाक और गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ। मैंने झुक कर उसके माथे पर और उसके गालों को चूम लिया। मुझे बच्चों को खिलाने का अथवा दुलार करने का कोई अनुभव नहीं था इस लिए मुझसे जैसे बन रहा था मैं उसे पुचकारते हुए दुलार कर रहा था। सहसा मुझे कुछ याद आया तो मैंने अपने गले से सोने की चैन उतार कर उसे पहना दिया।

"ये छोटा सा उपहार तुम्हारे छोटे फूफा जी की तरफ से।" फिर मैंने उसके गालों को एक उंगली से सहलाते हुए कहा____"हम चाहते हैं कि तुम बड़े हो कर अपने अच्छे कर्मों से अपने माता पिता का और अपने खानदान का नाम रोशन करो। ऊपर वाला तुम्हें हमेशा स्वस्थ रखे और एक ऊंची शख्सियत बनाए।"

कहने के साथ ही मैंने उसे फिर से चूमा और फिर वापस मोहिनी को पकड़ा दिया। उधर गौरी और वंदना भाभी ये सब देख मुस्कुरा रही थीं।

"वैसे क्या नाम रखा है आपने अपने इस बेटे का?" मैंने पूछा तो वंदना भाभी ने कहा____"शैलेंद्र....शैलेंद्र सिंह।"

"वाह! बहुत अच्छा नाम है।" मैंने कहा____"मुझे बहुत खुशी हुई इसे देख कर।"

"वैसे आप बहुत नसीब वाले हैं महाराज।" गौरी भाभी ने कहा____"और वो इस लिए क्योंकि इसने आपको नहलाया नहीं वरना ये जिसकी भी गोद में जाता है उसे नहलाता ज़रूर है।"

"हा हा हा।" मैं ठहाका लगा कर हंसा____"अच्छा ऐसा है क्या?"

"हां जी।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये शैतान किसी को भी नहीं छोड़ता। जाने कैसे आपको बचा दिया इसने?"

"अरे! भई मैंने इसके लिए रिश्वत में उपहार जो दिया है इसे।" मैंने कहा____"उपहार से खुश हो कर ही इसने मुझे नहीं नहलाया।"

"हां शायद यही बात हो सकती है।" दोनों भाभियां मेरी बात से हंस पड़ीं।

"अच्छा हुआ आप आ गए महाराज।" वंदना भाभी ने खुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"हमें भी आपके दर्शन हो गए।"

"आपके आने से एक और बात अच्छी हुई है महाराज।" गौरी भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"इतने दिनों में हमने पहली बार अपनी ननद रानी के चेहरे पर एक खुशी की झलक देखी है। वरना हम तो चाह कर भी उनके चेहरे पर खुशी नहीं ला पाए थे।"

"क्या आप मेरी भाभी के बारे में बात कर रही हैं?" मैं उत्साहित सा पूछ बैठा।

"और नहीं तो क्या।" गौरी भाभी ने पहले की ही तरह मुस्कराते हुए कहा____"और भला हम किसके बारे में बात करेंगे आपसे? हम आपकी भाभी के बारे में ही आपको बता रहे हैं।"

"कैसी हैं वो?" मैं एकदम से व्याकुल सा हो उठा_____"और....और ये आप क्या कह रही हैं कि आप लोग उन्हें खुश नहीं रख पाए? मतलब आपने भाभी को दुखी रखा यहां?"

"हाय राम! आप ये कैसे कह सकते हैं महाराज?" गौरी भाभी ने हैरानी ज़ाहिर की_____"हम भला अपनी ननद को दुखी रखने का सोच भी कैसे सकते हैं?"

"तो फिर वो खुश क्यों नहीं थीं यहां?" मैंने सहसा फिक्रमंद होते हुए पूछा_____"अपनों के बीच रह कर भी वो खुश नहीं थीं, ऐसा कैसे हो सकता है? वैसे कहां हैं वो? मुझे अपनी भाभी से मिलना है। उनका हाल चाल पूछना है। कृपया आप या तो मुझे उनके पास ले चलें या फिर उन्हें यहां ले आएं।"

मेरी बात सुन कर गौरी और वंदना भाभी ने एक दूसरे की तरफ देखा। आंखों ही आंखों में जाने क्या बात हुई उनकी। उधर मोहिनी और कामिनी चुपचाप खड़ी मुझे ही देखे जा रहीं थी। ख़ास कर कामिनी, पता नहीं आज उसे क्या हो गया था?

"क्या हुआ?" उन दोनों को कुछ बोलता न देख मैंने पूछा____"आप दोनों कुछ बोल क्यों नहीं रहीं हैं? मुझे अपनी भाभी से अभी मिलना है। एक बात और, मैं यहां उन्हें लेने आया हूं इस लिए उनके जाने की तैयारी भी कीजिए आप लोग। अगर मेरी भाभी यहां खुश नहीं हैं तो मैं उन्हें एक पल भी यहां नहीं रहने दूंगा।"

"अरे! आप तो खामखां परेशान हो गए वैभव महाराज।" वंदना भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"हम दोनों तो बस आपसे मज़ाक में ऐसा कह रहे थे। सच तो ये है कि आपकी भाभी यहां खुश हैं। उन्हें किसी बात का कोई दुख नहीं है।"

"भाभी के बारे में इस तरह का मज़ाक कैसे कर सकती हैं आप?" मैं एकदम से आवेश में आ गया____"क्या आपको ज़रा भी एहसास नहीं है कि उनकी क्या हालत है और वो कैसी दशा में हैं?"

मेरी आवेश में कही गई बात सुनते ही दोनों भाभियों का हंसना मुस्कुराना फ़ौरन ही ग़ायब हो गया। उन्हें भी पता था कि मैं किस तरह का इंसान था। दोनों ने फ़ौरन ही मुझसे माफ़ी मांगी और फिर कहा कि वो मेरी भाभी को भेजती हैं मेरे पास। वैसे तो बात बहुत छोटी थी किंतु मेरी नज़र में शायद वो बड़ी हो गई थी और इसी वजह से मुझे गुस्सा आ गया था। ख़ैर दोनों भाभियां अंदर चली गईं और उनके पीछे मोहिनी तथा कामिनी भी चली गई।

चौपार के दूसरी तरफ चारपाई पर भीमा बैठा हुआ था जिसने हमारी बातें भी सुनी थी। मैंने उसे बाहर जाने को कहा तो वो उठ कर चला गया। वैसे भी उसके सामने भाभी यहां मुझसे नहीं मिल सकतीं थीं। ख़ैर थोड़ी ही देर में वंदना भाभी उन्हें ले कर आ गईं। भाभी को देखते ही मैं चौंक पड़ा।

भाभी को सलवार कुर्ते में देख मैं अवाक् सा रह गया था। दुपट्टे को उन्होंने अपने सिर पर ले रखा था और बाकी का हिस्सा उनके सीने के उभारों पर था। उधर भाभी को मेरे पास छोड़ कर वंदना भाभी वापस अंदर चली गईं। अब बैठके में सिर्फ मैं और भाभी ही थे।

मुझे उम्मीद नहीं थी कि मैं भाभी को यहां सलवार कुर्ते में देखूंगा। मेरे मन में तो यही था कि वो अपने उसी लिबास में होंगी, यानि विधवा के सफेद लिबास में। ख़ैर ये कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि अक्सर शादी शुदा बेटियां अपने मायके में सलवार कुर्ता भी पहना करती हैं।

मैंने देखा भाभी सिर झुकाए खड़ीं थी। चेहरे पर वैसा तेज़ नहीं दिख रहा था जैसा इसके पहले देखा करता था मैं। लेकिन मैंने महसूस किया कि उनके चेहरे पर थोड़े शर्म के भाव ज़रूर थे। ऐसा शायद इस लिए क्योंकि वो अपने देवर के सामने अपने मायके में सलवार कुर्ते में थीं।

"प्रणाम भाभी।" एकाएक ही मुझे होश आया तो मैंने उठ कर उनके पैर छुए।

शायद वो किसी सोच में गुम थीं इस लिए जैसे ही उनके पांव छू कर मैंने प्रणाम भाभी कहा तो वो एकदम से चौंक पड़ी और साथ ही दो क़दम पीछे हट गईं। उनके इस बर्ताव से मुझे तनिक हैरानी हुई किंतु मैंने ज़्यादा ध्यान नहीं दिया।

"क्या हुआ भाभी?" उन्हें चुप देख मैंने पूछा____"आपने मेरे प्रणाम का जवाब नहीं दिया? क्या मेरे यहां आने से आपको ख़ुशी नहीं हुई?"

"न...नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है।" उन्होंने झट से मेरी तरफ देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"मुझे अच्छा लगा कि तुम यहां आए। हवेली में सब कैसे हैं? मां जी और पिता जी कैसे हैं?"

"सब ठीक हैं भाभी।" मैंने गहरी सांस ली____"लेकिन वहां आप नहीं हैं तो कुछ भी अच्छा नहीं लगता। आपको पता है, मैं पिछले एक महीने से आपको वापस लाने के लिए मां से आग्रह कर रहा था लेकिन हर बार वो मुझे यहां आने से मना कर देती थीं। मेरे पूछने पर यही कहती थीं कि आपको कुछ समय तक अपने माता पिता के पास रहने देना ही बेहतर है। मजबूरन मुझे भी उनकी बात माननी पड़ती थी लेकिन अब और नहीं मान सका मैं। दो महीने हो गए भाभी, किसी और को आपकी कमी महसूस होती हो या नहीं लेकिन मुझे होती है। मुझे अपनी प्यारी सी भाभी की हर पल कमी महसूस होती है। मुझे इस बात की कमी महसूस होती है कि मेरे काम के बारे में सच्चे दिल से समीक्षा करने वाली वहां आप नहीं हैं। मुझे ये बताने वाला कोई नहीं है कि मैं आपकी उम्मीदों पर खरा उतर पा रहा हूं या नहीं। बस, अब और मुझसे बर्दास्त नहीं हुआ इस लिए कल रात ही मैंने फ़ैसला कर लिया था कि सुबह यहां आऊंगा और आपको ले कर वापस हवेली लौट आऊंगा। आप चलने की तैयारी कर लीजिए भाभी, हम शाम होने से पहले ही यहां से चलेंगे।"

"ज़ल्दबाज़ी में कोई फ़ैसला मत लो।" भाभी ने पहले की भांति ही धीमें स्वर में कहा____"और वैसे भी मेरी अभी इच्छा नहीं है वापस हवेली जाने की। मैं अभी कुछ समय और यहां अपने माता पिता और भैया भाभी के पास रहना चाहती हूं। मुझे खेद है कि तुम्हें अकेले ही वापस जाना होगा।"

"य...ये आप क्या कह रही हैं भाभी?" मैंने चकित भाव से उन्हें देखा____"सच सच बताइए क्या आप सच में मेरे साथ नहीं जाना चाहती हैं? क्या सच में आप अपने देवर को इस तरह वापस अकेले भेज देंगी?"

"तुम्हारी खुशी के लिए मैं ज़रूर तुम्हारे साथ चल दूंगी वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"किंतु क्या तुम सच में नहीं चाहते कि तुम्हारी ये अभागन भाभी कुछ समय और अपने माता पिता के पास रह कर अपने सारे दुख दर्द भूली रहे?"

"ऐसा मत कहिए भाभी।" मैंने संजीदा हो कर कहा____"अगर वाकई में यहां रहने से आप अपने दुख दर्द भूल जाती हैं तो मैं बिल्कुल भी आपको चलने के लिए मजबूर नहीं करूंगा। मैं तो यही चाहता हूं कि मेरी भाभी अपने सारे दुख दर्द भूल जाएं और हमेशा खुश रहें। अगर मेरे बस में होता तो आपकी तरफ किसी दुख दर्द को आने भी नहीं देता लेकिन क्या करूं....ये मेरे बस में ही नहीं है।"

"खुद को किसी बात के लिए हलकान मत करो।" भाभी ने कहा____"मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुमसे जो हो सकता है वो तुम करते हो। ख़ैर छोड़ो ये सब, तुम बताओ अब कैसा महसूस करते हो? मेरा मतलब है कि क्या अब तुम ठीक हो? सरोज मां कैसी हैं और....और रूपा कैसी है? उसे ज़्यादा परेशान तो नहीं करते हो ना तुम?"

"उससे तो एक महीने से मुलाक़ात ही नहीं हुई भाभी।" मैंने कहा____"असल में समय ही नहीं मिला। एक तो खेतों के काम, ऊपर से अब गांव में अस्पताल और विद्यालय भी बन रहा है तो उसी में व्यस्त रहता हूं। बहुत दिनों से आपकी बहुत याद आ रही थी। मां की वजह से यहां आ नहीं पाता था। मैं देखना चाहता था कि आप कैसी हैं और क्यों आप वापस नहीं आ रही हैं? क्या मुझसे कोई ख़ता हो गई है जिसके चलते....।"

"ऐसी कोई बात नहीं है।" भाभी ने मेरी तरफ अपलक देखते हुए कहा____"तुमसे कोई ख़ता नहीं हुई है और अगर हो भी जाएगी तो मैं उसके लिए तुम्हें खुशी से माफ़ कर दूंगी।"

"क्या सच में आप मेरे साथ नहीं चलेंगी?" मैंने जैसे आख़िरी कोशिश की____"यकीन मानिए आपके बिना हवेली में बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता।"

"जब अच्छा न लगे तो रूपा के पास चले जाया करो।" भाभी ने कहा____"तुमसे ज़्यादा दूर भी नहीं है वो।"

"सबकी अपनी अपनी अहमियत होती है भाभी।" मैंने कहा____"जहां आप हैं वहां वो नहीं हो सकती।"

"क्यों भला?" भाभी ने नज़र उठा कर देखा।

"आप अच्छी तरह जानती हैं।" मैंने उनकी आंखों में देखा।

इस बार भाभी कुछ न बोलीं। बस मेरी तरफ अपलक देखती रहीं। तभी बाहर से किसी के आने का आभास हुआ तो वो जल्दी से पलटीं और अंदर चली गईं। मैं असहाय सा बैठा रह गया। कुछ ही पलों में बाहर से एक औरत अंदर आई। मुझे देखते ही उसने झट से अपना चेहरा घूंघट कर के छुपा लिया और अंदर की तरफ चली गई।



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