- 78,222
- 113,744
- 354
Abhi time hai..can't wait to see how the story unfolds
Abhi time hai..can't wait to see how the story unfolds
Eagerly waiting for next update bro
Aaj sham ko ya fir next morning tak aa jayega updateWaiting
koi dosti dushmani nahi thi 4 logo se ..
bas naya naya writer bana tha to apne pehchan ke logo ka naam likh daala ..
shayad hurt ho gayi thi vampire q baaki koi bhi hurt hua ho aisa nahi laga .
kahani thi jisme koi sex nahi ...
maine bhi likhne ka socha tha ek do kahaniya par waqt nahi mil raha ..
naa hi kahaniya padhne ka waqt raha apne paas ..
Konsa story likha he bhai tanne dikh to na ri kahiIs baar aisi kahani likho jisme Moon Light ke sath ju ka bhayankar romance ho. Villain do rakhna, ek Sanju bhaiya aur dusre kamdev bhaiya ko...in dono ko dikha dikha ke romance karna moon light se
Specially moonlight ke liye likha tha leon bru neKonsa story likha he bhai tanne dikh to na ri kahi
Bargaining power updateअध्याय - 80"हमें इस रिश्ते से कोई समस्या नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"बल्कि अगर ऐसा हो जाए तो ये बहुत ही अच्छी बात होगी।"
━━━━━━༻♥༺━━━━━━
दादा ठाकुर की ये बात सुन कर सभी हैरत से उन्हें देखने लगे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर ऐसा भी बोल सकते हैं। उधर रूपचंद्र का चेहरा अचानक ही खुशी से चमकने लगा था। उसे भी यकीन नहीं हो रहा था कि दादा ठाकुर खुद उसके साथ कुसुम का ब्याह करने को राज़ी हो सकते हैं।
अब आगे....
मुंशी चंद्रकांत का बेटा रघुवीर भागता हुआ अपने घर के अंदर आया और बरामदे में बैठे अपने पिता से बोला____"बापू, मैंने अभी अभी साहूकारों के घर में दादा ठाकुर को जाते देखा है।"
"क...क्या???" चंद्रकांत बुरी तरह चौंका____"ये क्या कह रहे हो तुम?"
"मैं सच कह रहा हूं बापू।" रघुवीर ने कहा____"दादा ठाकुर अपनी बग्घी से आया है। मैंने देखा कि रूपचंद्र ने दरवाज़ा खोला और फिर कुछ देर बाद गौरी शंकर भी आया। दादा ठाकुर ने उससे कुछ कहा और फिर वो लोग अंदर चले गए।"
"बड़े हैरत की बात है ये।" चंद्रकांत चकित भाव से सोचते हुए बोला____"इतना कुछ हो जाने के बाद दादा ठाकुर आख़िर किस लिए आया होगा साहूकारों के यहां?"
"कोई तो बात ज़रूर होगी बापू।" रघुवीर ने कहा____"मैंने देखा था कि गौरी शंकर ने उसे अंदर बुलाया तो वो चला गया। अभी भी वो लोग अंदर ही हैं।"
"हो सकता है दादा ठाकुर अपने किए की माफ़ी मांगने आया होगा उन लोगों से।" चंद्रकांत ने कहा____"पर मुझे पूरा यकीन है कि गौरी शंकर उसे कभी माफ़ नहीं करेगा।"
"क्यों नहीं करेगा भला?" रघुवीर ने मानों तर्क़ देते हुए कहा____"इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा चारा भी तो नहीं है। मर्द के नाम पर सिर्फ दो लोग ही बचे हैं उनके घर में। ऐसे में अगर वो दादा ठाकुर से अब भी किसी तरह का बैर भाव रखेंगे तो नुकसान उन्हीं का होगा। मुझे तो पूरा भरोसा है बापू कि अगर दादा ठाकुर खुद चल कर माफ़ी मांगने ही आया है तो वो लोग ज़रूर माफ़ कर देंगे उसे। आख़िर उन्हें इसी गांव में रहना है तो भला कैसे वो दादा ठाकुर जैसे ताकतवर आदमी के खिलाफ़ जा सकेंगे?"
"शायद तुम सही कह रहे हो।" चंद्रकांत को एकदम से ही मानों वास्तविकता का एहसास हुआ____"अब वो किसी भी हाल में दादा ठाकुर के खिलाफ़ जाने का नहीं सोच सकते। उन्हें भी पता है कि मर्द के नाम पर अब सिर्फ वो ही दो लोग हैं। ऐसे में अगर उन्हें कुछ हो गया तो उनके घर की औरतों और बहू बेटियों का क्या होगा?"
"ये सब छोड़ो बापू।" रघुवीर ने कुछ सोचते हुए कहा____"अब ये सोचो कि हमारा क्या होगा? मेरा मतलब है कि अगर दादा ठाकुर ने किसी तरह साहूकारों को मना कर अपने से जोड़ लिया तो हमारे लिए समस्या हो जाएगी। हमने तो उस दिन पंचायत में भी ये कह दिया था कि हमें अपने किए का कोई अफ़सोस नहीं है इस लिए मुमकिन है कि इस बात के चलते दादा ठाकुर किसी दिन हमारे साथ कुछ बुरा कर दे।"
"तुम बेवजह ही दादा ठाकुर से इतना ख़ौफ खा रहे हो बेटा।" चंद्रकांत ने कहा____"मैं दादा ठाकुर को उसके बचपन से जानता हूं। वो कभी पंचायत के निर्णय के ख़िलाफ़ जा कर कोई क़दम नहीं उठाएगा। इस लिए तुम इस सबके लिए भयभीत मत हो।"
"और उसके उस बेटे का क्या जिसका नाम वैभव सिंह है?" रघुवीर ने सहसा चिंतित भाव से कहा____"क्या उसके बारे में भी तुम यही कह सकते हो कि वो भी अपने पिता की तरह पंचायत के फ़ैसले के खिलाफ़ जा कर कोई ग़लत क़दम नहीं उठाएगा?"
रघुवीर की बात सुन कर चंद्रकांत फ़ौरन कुछ बोल ना सका। कदाचित उसे भी एहसास था कि वैभव के बारे में उसके बेटे का ऐसा कहना ग़लत नहीं है। वो वैभव की नस नस से परिचित था इस लिए उसे वैभव पर भरोसा नहीं था। वैभव में हमेशा ही उसे बड़े दादा ठाकुर का अक्श नज़र आता था। कहने को तो वो अभी बीस साल का था लेकिन उसके तेवर और उसके काम करने का हर तरीका बड़े दादा ठाकुर जैसा ही था।
"तुम्हारी ख़ामोशी बता रही है बापू कि वैभव पर तुम्हें भी भरोसा नहीं है।" चंद्रकांत को चुप देख रघुवीर ने कहा____"यानि तुम भी समझते हो कि वैभव के लिए पंचायत का कोई भी फ़ैसला मायने नहीं रखता, है ना?"
"लगता तो मुझे भी यही है बेटा।" चंद्रकांत ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मगर मुझे इस बात का भी यकीन है कि वो अपने पिता के खिलाफ़ भी नहीं जा सकता। ये सब होने के बाद यकीनन उसके पिता ने उसे अच्छे से समझाया होगा कि अब उसे अपना हर तरीका या तो बदलना होगा या फिर छोड़ना होगा। वैभव भी अब पहले जैसा नहीं रहा जो किसी बात की परवाह किए बिना पल में वही कर जाए जो सिर्फ वो चाहता था। मुझे यकीन है कि वो भी अब कुछ भी उल्टा सीधा करने का नहीं सोचेगा।"
"मान लेता हूं कि नहीं सोचेगा।" रघुवीर ने कहा____"मगर कब तक बापू? वैभव जैसा लड़का भला कब तक अपनी फितरत के ख़िलाफ रहेगा? किसी दिन तो वो अपने पहले वाले रंग में आएगा ही, तब क्या होगा?"
"तो क्या चाहते हो तुम?" चंद्रकांत ने जैसे एकाएक परेशान हो कर कहा।
"इससे पहले कि पंचायत के खिलाफ़ जा कर वो हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा करे।" रघुवीर ने एकदम से मुट्ठियां कसते हुए कहा___"हम खुद ही कुछ ऐसा कर डालें जिससे वैभव नाम का ख़तरा हमेशा हमेशा के लिए हमारे सिर से हट जाए।"
"नहीं।" चंद्रकांत अपने बेटे के मंसूबे को सुन कर अंदर ही अंदर कांप गया, बोला____"तुम ऐसा कुछ भी नहीं करोगे। ऐसा सोचना भी मत बेटे वरना अनर्थ हो जाएगा। मत भूलो कि अब हमारे साथ साहूकारों की फ़ौज नहीं है बल्कि इस समय हम अकेले ही हैं। इसके पहले तो किसी को हमसे ये उम्मीद ही नहीं थी कि हम ऐसा कर सकते हैं किंतु अब सबको हमारे बारे में पता चल चुका है। पंचायत के फ़ैसले के बाद अगर हमने कुछ भी उल्टा सीधा करने का सोचा तो यकीन मानो हमारे साथ ठीक नहीं होगा।"
"तुम तो बेवजह ही इतना घबरा रहे हो बापू।" रघुवीर ने कहा____"जबकि तुम्हें तो ये सोचना चाहिए कि जिस लड़के ने हमारे घर की औरतों के साथ हवस का खेल खेला है उसे कुछ भी कर के ख़त्म कर देना चाहिए। वैसे भी हम कौन सा ढिंढोरा पीट कर उसके साथ कुछ करेंगे?"
"मेरे अंदर की आग ठंडी नहीं हुई है बेटे।" चंद्रकांत ने सख़्त भाव से कहा____"उस हरामजादे के लिए मेरे अंदर अभी भी वैसी ही नफ़रत और गुस्सा मौजूद है। मैं भी उसे ख़त्म करना चाहता हूं लेकिन अभी ऐसा नहीं कर सकता। मामले को थोड़ा ठंडा पड़ने दो। लोगों के मन में इस बात का यकीन हो जाने दो कि अब हम कुछ नहीं कर सकते। उसके बाद ही हम उसे ख़त्म करने का सोचेंगे।"
"अगर ऐसी बात है तो फिर ठीक है।" रघुवीर ने कहा____"मैं मामले के ठंडा होने का इंतज़ार करूंगा।"
"यही अच्छा होगा बेटा।" चंद्रकांत ने कहा____"वैसे भी दादा ठाकुर ने हमारी निगरानी में अपने आदमी भी लगा रखे होंगे। ज़ाहिर है हम कुछ भी करेंगे तो उसका पता दादा ठाकुर को फ़ौरन चल जाएगा। इस लिए हमें तब तक शांत ही रहना होगा जब तक कि ये मामला ठंडा नहीं हो जाता अथवा हमें ये न लगने लगे कि अब हम पर निगरानी नहीं रखी जा रही है।"
रघुवीर को सारी बात समझ में आ गई इस लिए उसने ख़ामोशी से सिर हिलाया और फिर उठ कर अंदर चला गया। उसके जाने के बाद चंद्रकांत गहरी सोच में डूब गया। दादा ठाकुर की साहूकारों के घर में मौजूदगी उसके लिए मानों चिंता का सबब बन गई थी।
✮✮✮✮
"अगर आप वाकई में अपनी बेटी का ब्याह हमारे बेटे के साथ करने को तैयार हैं।" फूलवती ने कहा____"तो हमें भी ये मंजूर है कि आप हमारे घर की बेटियों का ब्याह अपने हिसाब से करें। ख़ैर अभी तो साल भर हमारे घरों में ब्याह जैसे शुभ काम नहीं हो सकते इस लिए अगले साल आपकी बेटी के ब्याह के साथ ही हमारे नए संबंधों का तथा नई शुरुआत का शुभारंभ हो जाएगा।"
"बिल्कुल।" दादा ठाकुर ने सहसा कुछ सोचते हुए कहा____"हमें इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन एक बार हमें इस रिश्ते के बारे में अपने छोटे भाई जगताप की धर्म पत्नी से भी पूछना पड़ेगा।"
"उनसे पूछने की भला क्या ज़रूरत है ठाकुर साहब?" फूलवती ने कहा____"हवेली के मुखिया आप हैं। भला कोई आपके फ़ैसले के खिलाफ़ कैसे जा सकता है? हमें यकीन है कि मझली ठकुराईन को भी इस रिश्ते से कोई आपत्ति नहीं होगी।"
"अगर हमारा भाई जीवित होता तो बात अलग थी भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने सहसा संजीदा हो कर कहा____"क्योंकि तब हमारा अपने भाई पर ज़्यादा हक़ और ज़्यादा ज़ोर होता किंतु अब वो नहीं रहा। इस लिए उसके बीवी बच्चों के ऊपर हम कोई भी फ़ैसला ज़बरदस्ती नहीं थोप सकते। हम ये हर्गिज़ नहीं चाहते कि उन्हें अपने लिए हमारे द्वारा किए गए किसी फ़ैसले से तनिक भी ठेस पहुंचे अथवा वो उनके मन के मुताबिक न हो। इसी लिए कह रहे हैं कि हमें एक बार उससे इस बारे में पूछना पड़ेगा।"
"चलिए ठीक है।" फूलवती ने कहा____"लेकिन मान लीजिए कि यदि मझली ठकुराईन ने इस रिश्ते के लिए मना कर दिया तब आप क्या करेंगे?"
"ज़ाहिर है तब ये रिश्ता हो पाना संभव ही नहीं हो सकेगा।" दादा ठाकुर ने जैसे स्पष्ट भाव से कहा____"जैसा कि हम बता ही चुके हैं कि पहले में और अब में बहुत फ़र्क हो गया है। हम अपने और अपने बच्चों के लिए हज़ारों दुख सह सकते हैं या उनके लिए कोई भी निर्णय ले सकते हैं मगर अपने दिवंगत भाई के बीवी बच्चों के लिए किसी भी तरह का निर्णय नहीं ले सकते और ना ही उन पर किसी तरह की आंच आने दे सकते हैं।"
"अगर मझली ठकुराईन ने इस रिश्ते को करने से इंकार कर दिया।" फूलवती ने दो टूक लहजे में कहा____"तो फिर बहुत मुश्किल होगा ठाकुर साहब हमारे और आपके बीच नई शुरुआत होना।"
"रिश्तों में किसी शर्त का होना अच्छी बात नहीं है भाभी श्री।" दादा ठाकुर ने कहा____"वैसे भी शादी ब्याह जैसे पवित्र रिश्ते तो ऊपर वाले की कृपा और आशीर्वाद से ही बनते हैं। ख़ैर हम इस बारे में बात करेंगे किंतु अगर कुसुम की मां ने इस रिश्ते के लिए इंकार किया तो हम उस पर ज़ोर भी नहीं डालेंगे। रिश्ते तो वही बेहतर होते हैं जिनमें दोनों पक्षों की सहमति और खुशी शामिल हो। ज़बरदस्ती बनाए गए रिश्ते कभी खुशियां नहीं देते।"
रूपचंद्र जो अब तक खुशी से फूला नहीं समा रहा था दादा ठाकुर की ऐसी बातें सुनने से उसकी वो खुशी पलक झपकते ही छू मंतर हो गई। फूलवती ने कुछ कहना तो चाहा लेकिन फिर जाने क्या सोच कर वो कुछ न बोली। दादा ठाकुर उठे और फिर बाहर की तरफ चल दिए। उनके पीछे गौरी शंकर और रूपचंद्र भी चल पड़े। बाहर आ कर दादा ठाकुर ने गौरी शंकर से इतना ही कहा कि उन सबके लिए हवेली के दरवाज़े खुले हैं। वो लोग जब चाहे आ सकते हैं। उसके बाद दादा ठाकुर बग्घी में आ कर बैठे गए। शेरा ने घोड़ों की लगाम को झटका दिया तो वो बग्घी को लिए चल पड़े।
"आपने तो कमाल ही कर दिया भौजी।" दादा ठाकुर के जाने के बाद गौरी शंकर अंदर आते ही फूलवती से बोल पड़ा____"दादा ठाकुर से शादी जैसे रिश्ते की बात कहने की तो मुझमें भी हिम्मत नहीं थी लेकिन आपने तो बड़ी सहजता से उनसे ये बात कह दी।"
"आप सही कह रहे हैं काका।" रूपचंद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"बड़ी मां को दादा ठाकुर से ऐसी बात कहते हुए ज़रा भी डर नहीं लगा।"
"दादा ठाकुर भी इंसान ही है बेटा।" फूलवती ने सपाट लहजे में कहा____"और इंसान से भला क्या डरना? वैसे भी उसने जो किया है उसकी वजह से वो हमारे सामने सिर उठाने की हिम्मत नहीं कर पा रहा है। फिर जब उसने रिश्ते सुधार कर फिर से नई शुरुआत करने की बात कही तो मैंने भी यही देखने के लिए उससे ऐसा कह दिया ताकि देख सकूं कि वो इस बारे में क्या कहता है?"
"उसने आपकी बात मान तो ली ना भौजी।" गौरी शंकर ने कहा____"उसने तो इस रिश्ते से इंकार ही नहीं किया जबकि मैं तो यही सोच के डर रहा था जाने वो आपकी इन बातों पर क्या कहने लगे?"
"ये उसकी मजबूरी थी जो उसने इस रिश्ते के लिए हां कहा।" फूलवती ने कहा____"क्योंकि वो अपराध बोझ से दबा हुआ है और हर हाल में चाहता है कि हमारे साथ उसके रिश्ते बेहतर हो जाएं। ख़ैर उसने इस रिश्ते के लिए मजबूरी में हां तो कहा लेकिन फिर एक तरह से इंकार भी कर दिया।"
"वो कैसे बड़ी मां?" रूपचंद्र को जैसे समझ न आया।
"अपने छोटे भाई की पत्नी से इस रिश्ते के बारे में पूछने की बात कह कर।" फूलवती ने कहा____"हालाकि एक तरह से उसका ये सोचना जायज़ भी है किन्तु उसे भी पता है कि उसके भाई की पत्नी अपनी बेटी का ब्याह हमारे घर में कभी नहीं करेगी। ज़ाहिर है ये एक तरह से इंकार ही हुआ।"
"हां हो सकता है।" गौरी शंकर ने कहा____"फिर भी देखते हैं क्या होता है? अगर वो सच में हमारे रूपचंद्र से अपने छोटे भाई की बेटी का ब्याह कर के नया रिश्ता बनाना चाहता है तो यकीनन वो हवेली में बात करेगा।"
"अब यही तो देखना है कि आने वाले समय में उसकी तरफ से हमें क्या जवाब मिलता है?" फूलवती ने कहा।
"और अगर सच में ये रिश्ता न हुआ तो?" गौरी शंकर ने कहा____"तब क्या आप उसे यही कहेंगी कि हम उससे अपने रिश्ते नहीं सुधारेंगे?"
"जिस व्यक्ति ने हमारे घर के लोगों की हत्या कर के हमारा सब कुछ बर्बाद कर दिया हो।" फूलवती ने सहसा तीखे भाव से कहा____"ऐसे व्यक्ति से हम कैसे भला कोई ताल्लुक रख सकते हैं? कहीं तुम उससे रिश्ते सुधार लेने का तो नहीं सोच रहे?"
"बड़े भैया के बाद आप ही हमारे परिवार की मालकिन अथवा मुखिया हैं भौजी।" गौरी शंकर ने गंभीरता से कहा____"हम भला कैसे आपके खिलाफ़ कुछ करने का सोच सकते हैं?"
"वाह! बहुत खूब।" फूलवती के पीछे खड़ी उसकी बीवी सुनैना एकदम से बोल पड़ी____"क्या कहने हैं आपके। इसके पहले भी आप सबने इनसे पूछ कर ही हर काम किया था और अब आगे भी करेंगे, है ना?"
गौरी शंकर अपनी बीवी की ताने के रूप में कही गई ये बात सुन कर चुप रह गया। उससे कुछ कहते ना बना था। कहता भी क्या? सच ही तो कहा था उसकी बीवी ने। फूलवती ने सुनैना और बाकी सबको अंदर जाने को कहा तो वो सब चली गईं।
✮✮✮✮
कपड़े बदल कर मैं अपने कमरे में आराम ही कर रहा था कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई। मैंने जा कर दरवाज़ा खोला तो देखा बाहर भाभी अपने हाथ में चाय का प्याला लिए खड़ीं थी। विधवा के लिबास में उन्हें देखते ही मेरे अंदर एक टीस सी उभरी।
"मां जी ने बताया कि तुम भींग गए थे।" भाभी ने कमरे में दाखिल होते हुए कहा____"इस लिए तुम्हारे लिए अदरक वाली गरमा गरम चाय बना कर लाई हूं।"
"आपको ये तकल्लुफ करने की क्या ज़रूरत थी भाभी?" मैंने उनके पीछे आते हुए कहा____"हवेली में इतनी सारी नौकरानियां हैं। किसी को भी बोल देतीं आप।"
"शायद तुम भूल गए हो कि हवेली की किसी भी नौकरानी को तुम्हारे कमरे में आने की इजाज़त नहीं है।" मैं जैसे ही पलंग पर बैठा तो भाभी ने मेरी तरफ चाय का प्याला बढ़ाते हुए कहा____"ऐसे में भला कोई नौकरानी तुम्हें चाय देने कैसे आ सकती थी? मां जी को सीढियां चढ़ने में परेशानी होती है इस लिए मुझे ही आना पड़ा।"
"और आपकी चाय कहां है?" मैंने विषय बदलते हुए कहा____"क्या आप नहीं पियेंगी?"
"अब जाऊंगी तो मां जी के साथ बैठ कर पियूंगी।" भाभी ने कहा____"वैसे कहां गए थे जो बारिश में भीग कर आए थे?"
"मन बहलाने के लिए बाहर गया था।" मैंने चाय का एक घूंट लेने के बाद कहा____"और कुछ ज़रूरी काम भी था। पिता जी ने कहा है कि अब से मुझे वो सारे काम करने होंगे जो इसके पहले जगताप चाचा करते थे। मतलब कि खेती बाड़ी के सारे काम।"
"अच्छा ऐसी बात है क्या?" भाभी ने हैरानी से मेरी तरफ देखा____"मतलब कि अब ठाकुर वैभव सिंह खेती बाड़ी के काम करेंगे?"
"क्या आप मेरी टांग खींच रही हैं?" मैंने भाभी की तरफ ध्यान से देखा____"क्या आपको यकीन नहीं है कि मैं ये काम भी कर सकता हूं?"
"अरे! मैं कहां तुम्हारी टांग खींच रही हूं?" भाभी ने कहा____"मुझे तो बस हैरानी हुई है तुम्हारे मुख से ये सुन कर। रही बात तुम्हारे द्वारा ये काम कर लेने की तो मुझे पूरा यकीन है कि मेरे देवर के लिए कोई भी काम कर लेना मुश्किल नहीं है।"
जाने क्यों मुझे अभी भी लग रहा था जैसे वो मेरी टांग ही खींच रही हैं किंतु उनके चेहरे पर ऐसे कोई भाव नहीं थे इस लिए मैं थोड़ा दुविधा में पड़ गया था। मुझे समझ ही न आया कि मैं उनसे क्या कहूं।
"चाची और कुसुम लोगों के जाने के बाद आपको अकेलापन तो नहीं महसूस हो रहा भाभी?" मैंने फिर से विषय बदलते हुए पूछा।
"मेरा अकेलापन तो अब कभी भी दूर नहीं हो सकता वैभव।" भाभी ने सहसा गंभीर हो कर कहा____"इस दुनिया में एक औरत के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है। जब तक वो उसके पास होता है तब तक वो हर हाल में खुशी से रह लेती है किंतु जब वही पति उसे छोड़ कर चला जाता है तो फिर उस औरत का अकेलापन कोई भी दूर नहीं कर सकता।"
"हां मैं समझता हूं भाभी।" मैंने सिर हिलाते हुए कहा____"सच कहूं तो आपको इस लिबास में देख कर मुझे बहुत तकलीफ़ होती है। काश! मेरे बस में होता तो मैं भैया को वापस ला कर फिर से आपको पहले की तरह सुहागन बना देता और आप फिर से हमेशा की तरह खुश हो जातीं।"
"छोड़ो इस बात को।" भाभी ने मुझसे चाय का खाली कप लेते हुए कहा____"अब तुम आराम करो। मैं भी जाती हूं, मां जी अकेली होंगी।"
"अच्छा एक बात कहूं आपसे?" मैंने कुछ सोचते हुए उनसे पूछा।
"हां कहो।" उन्होंने मेरी तरफ देखा।
"मेनका चाची की तरह क्या आपका भी मन है अपनी मां के पास जाने का?" मैंने उनके चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा____"अगर मन है तो आप बेझिझक मुझे बता दीजिए। मैं आपको चंदनपुर ले चलूंगा।"
"मैं मां जी को यहां अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहती।" भाभी ने कहा____"वैसे भी वो भी तो मेरी मां ही हैं। उन्होंने सगी मां की ही तरह प्यार और स्नेह दिया है मुझे।"
"फिर भी मन तो करता ही होगा आपका।" मैंने कहा____"अच्छा एक काम करता हूं। जब मेनका चाची यहां वापस आ जाएंगी तब मैं आपको ले चलूंगा। तब तो आप जाना चाहेंगी न?"
"हां तब तो जा सकती हूं।" भाभी ने कुछ सोचते हुए कहा____"मगर सोचती हूं कि अगर इस हाल में जाऊंगी तो मां मुझे देख कर कैसे खुद को सम्हाल पाएगी?"
"हां ये भी है।" मैंने गंभीरता से सिर हिलाया____"आपके भैया को भी इतने सालों बाद पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई थी। इस खुशी में वो बेचारे बड़ा भारी उत्सव भी मनाने जा रहे थे किंतु विधाता ने सब कुछ तबाह कर दिया।"
भाभी मेरी बात सुन कर एकदम से सिसक उठीं। उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े। ये देख एकदम से मुझे अपनी ग़लती का एहसास हुआ। कहां मैं उन्हें खुश करने के लिए कोई न कोई कोशिश कर रहा था और कहां मेरी इस बात से उन्हें तकलीफ़ हो गई।
मैं जल्दी से उठ कर उनके पास गया और उनके दोनों कन्धों को पकड़ कर बोला____"मुझे माफ़ कर दीजिए भाभी। मेरा इरादा आपको इस तरह रुला देने का हर्गिज़ नहीं था। कृपया मत रोइए। आपके आंसू देख कर मुझे भी बहुत तकलीफ़ होने लगती है।"
मेरी बात सुन कर भाभी ने खुद को सम्हाला और अपने आंसू पोंछ कर बिना कुछ कहे ही कमरे से बाहर निकल गईं। इधर मुझे अपने आप पर बेहद गुस्सा आ रहा था कि मैंने उनसे ऐसी बात ही क्यों कही जिसके चलते उन्हें रोना आ गया? ख़ैर अब क्या हो सकता था। मैं वापस पलंग पर जा कर लेट गया और मन ही मन सोचने लगा कि अब से मैं सिर्फ वही काम करूंगा जिससे भाभी को न तो तकलीफ़ हो और ना ही उनकी आंखों से आंसू निकलें।
━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━