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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.8%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.9%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 41 22.4%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 30 16.4%

  • Total voters
    183

Thakur

Alag intro chahiye kya ?
Prime
3,231
6,756
159
Thanks bhai,

Yaha par thriller story padhne wale log gine chune hi milenge bhai.... :dazed:
Milenge bhai thode he sahi shuruaat me par milenge zarur, logo ka taste badal Raha he aur log bhi he idhsr jo romance thriller ko prefer kar rahe he adultery ke sath. Bina sir pair ki stories maane 4 din ki chandani he jo kuchh der baad fiki ho jati hai.
Thriller me Waah life ho to aisi ka 3rd part sabse aage chal raha hai jo dedicated viewers ke sath he . Romance me bhi naye log try kar rahe he par kami he apriciation ki bas.
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,718
354
अध्याय - 62
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

अनुराधा एक बार फिर से न चाहते हुए भी वैभव के ख़्यालों में खोती चली गई। एक बार फिर से उसके ज़हन में अपनी वो बातें गूंजने लगीं जो उसने वैभव से कहीं थी। वो सोचने लगी कि क्या सच में उसकी बातें इतनी कड़वी थीं कि वैभव को चोट पहुंचा गईं और वो उससे वो सब कह कर चला गया था? क्या सच में उसने बिना सोचे समझे ऐसा कुछ कह दिया है जिसके चलते अब वैभव कभी उसके घर नहीं आएगा? अनुराधा इस बारे में जितना सोचती उतना ही उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। वो ये सोच कर दुखी हो रही थी कि अब वैभव उसके घर नहीं आएगा और ना ही वो कभी उसकी शक्ल देख सकेगी। अनुराधा के अंदर एक हूक सी उठी और उसकी आंखों से आंसू बह चले। आंखें बंद कर के उसने वैभव को याद किया और उससे माफ़ी मांगने लगी।

अब आगे....


दादा ठाकुर अपने कमरे में लकड़ी की आलमारी खोले उसमें कुछ कर रहे थे। उन्हें शेरा के वापस आने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था। आलमारी के पल्ले बंद करने के बाद वो पलटे ही थे कि कमरे के दरवाज़े पर किसी की दस्तक से चौंके। निगाह दरवाज़े पर गई तो देखा उनकी धर्म पत्नी देवी और हवेली की ठकुराईन यानी कि श्रीमती सुगंधा देवी चेहरे पर अजीब से भाव लिए खड़ी थीं।

"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने उनके चेहरे पर मौजूद भावों को समझने की कोशिश करते हुए पूछा____"सब ठीक तो है न?"
"दरबान ने बताया कि बैठक में शेरा आपका इंतज़ार कर रहा है।" ठकुराईन सुगंधा देवी ने भावहीन लहजे में कहा____"क्या मैं ठाकुर साहब से पूछ सकती हूं कि माजरा क्या है?"

"कोई ख़ास बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने बात को टालने की गरज से कहा____"आपको बेवजह चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।"
"हम हवेली की ऊंची ऊंची चार दीवारी के अंदर रहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि हमें बाहरी दुनियां का कुछ पता ही नहीं है।" ठकुराईन ने तल्खी से कहा____"आप भले ही हमसे कुछ भी नहीं बताते हैं लेकिन इतना तो हम भी समझते हैं कि आज कल किस तरह के हालातों में हमारा पूरा परिवार घिरा हुआ है।"

"फ़िक्र मत कीजिए।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए कहा____"शेरा से मिलने के बाद हम आपको सब कुछ बता देंगे, तब शायद आपको हमसे शिकायत न रहे।"

ठकुराईन ने दरवाजे से हट कर उन्हें रास्ता दिया तो वो दरवाज़े से निकल कर बाहर बैठक की तरफ बढ़ गए। कुछ ही पलों में वो बैठक में पहुंच गए जहां शेरा पहले से ही सिर झुकाए मौजूद था। अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठने के बाद दादा ठाकुर ने जैसे ही शेरा को देखा तो वो बुरी तरह चौंक पड़े। शेरा के चेहरे पर कई जगह चोटों के निशान थे और इतना ही नहीं दाएं तरफ माथे पर खून भी लगा हुआ था।

"तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई शेरा?" दादा ठाकुर ने संदेह पूर्ण भाव से पूछा____"और...और जो काम हमने तुम्हें सौंपा था उसका क्या हुआ?"
"माफ़ करना मालिक।" शेरा ने सिर झुकाए हुए ही कहा____"लेकिन बहुत बुरा हो गया है।"

शेरा का इतना कहना था कि दादा ठाकुर को ऐसा लगा जैसे उनकी धड़कनें ही थम गईं हों। कुछ कहते ना बन पड़ा था उनसे। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और फिर थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए शेरा से कहा____"ये क्या कह रहे हो तुम? आख़िर क्या बुरा हो गया है? हमें सब कुछ साफ साफ बताओ।"

"म...मालिक।" शेरा ने सहसा दुखी हो कर कहा_____"आपके हुकुम के अनुसार मैं चंदनपुर गया था। वहां पर सच में कुछ लोग छोटे कुंवर को जान से मारने के लिए गए थे लेकिन मेरे और मेरे आदमियों के रहते वो छोटे कुंवर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके। कुछ लोगों को पकड़ कर मैं वहां से आपके पास आ ही रहा था कि रास्ते में अचानक से कुछ ऐसा हो गया कि हमारे लाख सम्हालने पर भी हालात बिगड़ गए और फिर सब कुछ तबाह हो गया।"

"आख़िर हुआ क्या है शेरा?" दादा ठाकुर का मन बुरी तरह आशंकित हो उठा, बोले_____"पहेलियां बुझाने की बजाय सब कुछ साफ शब्दों में क्यों नहीं बता रहे तुम?"

"म..मालिक।" शेरा की आवाज़ बुरी तरह लड़खड़ाने लगी____"जब मैं और मेरे आदमी चंदनपुर से वापस आ रहे थे तब रास्ते में मैंने देखा कि काफी सारे लोग मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पर हमला कर रहे थे। मैं और मेरे आदमियों ने बहुत कोशिश की कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पर कोई खरोंच तक न आए लेकिन हम अपनी कोशिशों में नाकाम रहे मालिक।"

शेरा से आगे कुछ बोला ही न गया और वो वहीं घुटनों के बल फर्श पर गिर कर तथा अपने दोनों हाथ जोड़ कर रोने लगा। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर ने अपने उस मुलाजिम को किसी बच्चे की तरह रोते देखा था जिसके चेहरे पर हमेशा पत्थर जैसी कठोरता विद्यमान रहती थी। किसी भारी अनिष्ट की आशंका ने दादा ठाकुर को सिंहासन से फौरन ही उठ जाने पर मजबूर कर दिया। दो ही क़दमों में वो शेरा के पास पहुंचे और झुक कर उसे कंधों से पकड़ कर उठाया।

"क्या हुआ है हमारे भाई और हमारे बेटे को?" फिर उन्होंने शेरा के चेहरे पर दृष्टि जमाते हुए भारी गले से पूछा_____"वो दोनों सकुशल तो हैं न?"
"मुझे माफ़ कर दीजिए मालिक।" शेरा रोते हुए एकदम से दादा ठाकुर के पैरों में ही गिर पड़ा_____"मैं उन दोनों की रक्षा नहीं कर सका। दुश्मनों ने उन दोनों को.....।"

"शेरा.....।" दादा ठाकुर इतना जोर से दहाड़े कि बैठक की दीवारें तक हिल गईं_____"य...ये क्या कह रहे हो तुम? नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता। कह दो कि ये सब झूठ है वरना, कसम भवानी की हम तुम्हारी खाल में भूसा भर देंगे।"

"मुझे मृत्यु दण्ड दे दीजिए मालिक।" शेरा उनके पैरों में मानों लोट ही गया_____"ऐसे गुलाम को जीने का कोई अधिकार नहीं है जो अपने मालिकों की रक्षा न कर सके।"

दादा ठाकुर को पहली बार ऐसा लगा जैसे उनके सिर पर एकाएक पूरा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा है। दोनों टांगों में खड़े रहने की ताकत न रही। उनका भारी भरकम और हट्टा कट्टा शरीर किसी कटे हुए पेड़ की तरह लहराया और अभी वो गिरने ही वाले थे कि शेरा ने फौरन ही उठ कर उन्हें सम्हाल लिया। शेरा की हालत खुद भी बहुत ख़राब थी। दुख और संताप उसके चेहरे पर मानो कुंडली मार कर बैठ गए थे। चेहरा आंसुओं से तर था।

"हमें उनके पास ले चलो।" शेरा के कानों में दादा ठाकुर की बदहवास सी आवाज़ पड़ी____"जल्दी ले चलो शेरा। हम भी उन्हीं के साथ मर जाना चाहते हैं। हमारे दुश्मन अभी भी वहां मौजूद होंगे न? बिल्कुल होंगे, शायद हमारे आने की राह देख रहे होंगे। हम उन्हें ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराना चाहते शेरा। जल्दी ले चलो हमें।"

दादा ठाकुर की हालत पागलों जैसी नज़र आने लगी थी। शेरा ने आज से पहले कभी उन्हें इस तरह विचलित होते नहीं देखा था। रौबदार चेहरे पर हमेशा एक अलग ही तरह का तेज़ देखा था उसने लेकिन इस वक्त उनके चेहरे पर न तेज़ था और ना ही कोई रौब था। अगर कुछ था तो सिर्फ संताप और पागलपन। उनकी ऐसी दशा देख कर शेरा का हृदय मानो हाहाकार कर उठा। आंखों से बहने वाले आंसू मानों पूरे वेग में बहने लगे थे। अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से भागते हुए ठकुराईन सुगंधा देवी और साथ ही जगताप की पत्नी मेनका और कुसुम भी आ गईं। दादा ठाकुर को ऐसी हालत में देख वो एकदम से बुत सी बन गईं। फिर जैसे एकाएक उनमें जान आई तो ठकुराईन लपक कर दादा ठाकुर के पास आईं।

"क्या हुआ है इन्हें?" ठकुराईन ने बुरी तरह घबरा कर शेरा से पूछा_____"ये इतना ज़ोर से क्यों चिल्लाए थे अभी? आख़िर ऐसा क्या हुआ है शेरा जिसके चलते इनकी ये हालत हो गई है?"

बेचारा शेरा, उसे समझ में ही न आया कि वो हवेली की ठकुराईन को क्या जवाब दे। वो दादा ठाकुर को सम्हाले बस रोए जा रहा था। उसके रोने से ठकुराइन के साथ साथ बाकी सब भी घबरा ग‌ईं। मन में तरह तरह के खयाल उभरने लगे।

"कुछ नहीं हुआ है हमें।" दादा ठाकुर ने शेरा से अलग हो कर सामान्य भाव से कहा____"आप सब अंदर जाएं। हम आते हैं कुछ देर में, चलो शेरा।"

इससे पहले कि ठकुराईन उनसे कुछ पूछतीं दादा ठाकुर तेज़ कदमों से बाहर निकल गए। उनके पीछे ठकुराईन, मेनका और कुसुम भौचक्की सी हालत में खड़ी रह गईं थी। बाहर आते ही दादा ठाकुर ने वहां मौजूद दरबानों को शख़्त आदेश दिया कि ना तो कोई हवेली से बाहर जाने पाए और ना ही कोई बाहरी हवेली में आने पाए।

इसके पहले जहां दादा ठाकुर के चेहरे पर विक्षिप्तता और पागलपन के भाव थे वहीं अब वो फिर से भाव हीन नज़र आने लगे थे। जीप में शेरा के बगल से बैठने के बाद उन्होंने आगे बढ़ने का हुकुम दिया तो शेरा ने जीप को आगे बढ़ा दिया। शेरा के इशारे पर जीप में दो चार आदमी भी बैठ गए थे जिनके हाथों में बंदूखें थीं।

अभी वो जीप में बैठे हाथी दरवाज़े के पास ही पहुंचे थे कि सामने से मुंशी चंद्रकांत अपने बेटे रघुवीर के साथ तेज़ क़दमों से आता नज़र आया। उन दोनों के पीछे गांव के कुछ लोग भी थे।

"मालिक, ये क्या गज़ब हो गया?" मुंशी दादा ठाकुर को देखते ही मानो हाहाकार कर उठा____"दुश्मनों ने मझले ठाकुर और हमारे होने वाले युवराज को.....।"
"जीप में बैठिए मुंशी जी।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में कहा_____"और रघुवीर तुम इसी वक्त भिवाड़ी जाओ और वहां पर ठाकुर अर्जुन सिंह को हमारा संदेशा दो कि जितना जल्दी हो सके वो अपने आदमियों के साथ हमारे पास आएं।"

"जो हुकुम दादा ठाकुर।" रघुवीर ने अदब से हाथ जोड़ कर कहा और पलट कर चला गया। उसके जाते ही जीप आगे बढ़ चली।

पूरे गांव में ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैलती चली गई कि हवेली के ठाकुरों के साथ किसी ने बहुत बुरा किया है। हवेली और दादा ठाकुर के चाहने वाले भागते हुए हवेली की तरफ ही आ रहे जिन्हें रास्ते में ही दादा ठाकुर ने रोक लिया। दादा ठाकुर को देख कर गांव के आए हुए लोग बुरी तरह बिलख बिलख कर रोने लगे थे। दादा ठाकुर ने उन्हें किसी तरह शांत किया और कहा कि सब अपने अपने घर जाएं। जिस किसी ने भी ये सब किया है उसे मौत से कम सज़ा हर्गिज़ नहीं दी जाएगी। दादा ठाकुर ने गांव के कुछ भरोसेमंद लोगों को हवेली जा कर वहां पर सुरक्षा करने के लिए कहा और बाकियों को घर जाने को कहा मगर वो लोग वापस घर जाने को तैयार ना हुए। सबका कहना था कि वो उनके साथ ही रहेंगे। असल में उन्हें डर था कि दुश्मन कहीं दादा ठाकुर पर हमला न करे इस लिए वो अपने देवता की रक्षा करना चाहते थे।

✮✮✮✮

चंदनपुर जाने वाले रास्ते के एक तरफ जंगल था तो दूसरी तरफ पथरीली ज़मीन। कच्ची सड़क के किनारे किनारे लगभग दो किलो मीटर तक नदी चल रही थी। ये नदी आस पास के कई गावों से हो कर गुज़रती थी और इसी नदी के द्वारा किसान लोग खेतों में सिंचाई भी करते थे। हालाकि गांव के जो थोड़ा बहुत संपन्न थे उन लोगों ने अपने खेतों पर ट्यूब बेल लगवा रखा था, ये अलग बात है कि बिजली के ज़्यादा न रहने पर उन्हें ट्यूब बेल से सिंचाई करने का ज़्यादा अवसर नहीं मिल पाता था।

दादा ठाकुर का काफ़िला इसी जगह पर आ कर रुका। एक तरफ जंगल और दूसरी तरफ नदी और नदी के उस पार पथरीली बंज़र ज़मीन। दूर दूर तक कोई गांव नज़र नहीं आता था। हालाकि नदी के उस पार की ज़मीन कुछ सरकार की थी और कुछ दूसरे गांव के ठाकुरों की किंतु ज़मीन से कोई उपज न होने के चलते इस तरफ आना जाना कम ही होता था। दुश्मनों ने अपने शिकार का शिकार करने के लिए बिल्कुल सही जगह का चुनाव किया था।

जीप के रुकते ही दादा ठाकुर नीचे उतरे। मन में आंधियां सी चल रहीं थी और दिल में अथाह पीड़ा भी हो रही थी किंतु किसी तरह खुद को सम्हाले वो उस तरफ चल पड़े जहां पर लाशें पड़ी हुईं थी। सड़क के किनारे जंगल की तरफ क़रीब दस लाशें पड़ी थीं। कुछ लाशें सड़क के दूसरी तरफ नदी के किनारे पर भी पड़ीं थी। कुछ दूरी पर सड़क पर ही दो जीपें खड़ी थीं। जीप के आस पास तीन लोग मरे पड़े थे जबकि जीप के पीछे तरफ जो दो लोग लहू लुहान हालत में अचेत से पड़े थे उन पर नज़र पड़ते ही दादा ठाकुर के क़दम लड़खड़ा गए। न चाहते हुए भी उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।

दादा ठाकुर ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उन्हें एक दिन इतना बुरा और इतना भयानक दिन भी देखना पड़ जाएगा। बोझिल क़दमों के साथ वो उन दोनों लोगों के पास पहुंचे। जीप के दाहिने पहिए के पास जगताप लहू लुहान पड़ा था जबकि बाएं पहिए से क़रीब दो क़दम की दूरी पर अभिनव पड़ा था। अपने छोटे भाई और अपने बड़े बेटे को इस हालत में देख कर दादा ठाकुर चाह कर भी खुद को सम्हाला न सके। यूं लगा जैसे घुटनें टूट गए हों और वो ज़मीन पर घुटनों के बल जा गिरे। जी किया कि दोनों के लहू लुहान जिस्मों को अपने कलेजे से लगा कर इतना ज़ोर से रोएं कि उनके रुदन से आसमान का कलेजा भी दहल जाए।

"इसके लिए तो इजाज़त नहीं दी थी हमने।" जगताप के सिर को थाम कर दादा ठाकुर ने भारी गले से कहा_____"फिर क्यों हमारी इजाज़त के बिना हमें अकेला छोड़ गए तुम?"

दादा ठाकुर की आंखों से आंसू बह रहे थे और उन्हें ये सब कहते हुए रोता देख बाकी सब भी रोने लगे थे। पास ही खड़ा मुंशी चंद्रकांत भी रो रहा था। उससे जब न रहा गया तो उसने पीछे से दादा ठाकुर को सम्हाल लिया।

"खुद को सम्हालिए मालिक।" मुंशी दुखी भाव से बिलखते हुए बोला____"आप ही हिम्मत हार जाएंगे तो बाकी सबका क्या होगा?"

"सही कह रहे हो तुम।" दादा ठाकुर ने अजीब भाव से कहा____"हमें हिम्मत नहीं हारना चाहिए। हमें तो अपने दिल पर पत्थर रख कर आगे बढ़ना चाहिए। जिस किसी ने भी ये किया है उसे ऐसी मौत देनी चाहिए कि ऊपर बैठे फरिश्तों का भी कलेजा दहल जाए।"

वातावरण में कुछ लोगों की आवाज़ों का शोर हुआ तो सबका ध्यान शोर की तरफ गया। गांव के लोग भागते हुए इस तरफ ही आ रहे थे। कुछ जीपें और कुछ मोटर साईकिल भी आती हुई दिख रहीं थी। दादा ठाकुर ने खुद को किसी तरह सम्हाला और फिर जगताप को छोड़ अपने बेटे की तरफ बढ़े।

अभिनव के जिस्म के दो हिस्सों में गोली लगी थी। एक गोली सीने में तो दूसरी पेट के बाएं तरफ। ज़ाहिर था बचना मुश्किल था। जिस्म एकदम से ठंडा पड़ गया था उसका। अपने बेटे को बेजान पड़ा देख दादा ठाकुर की आंखों से एक बार फिर आंसू बह चले। आंखों के सामने अभिनव का हंसता मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया और साथ ही वो सब भी जो अब तक हुआ था।

"ये कैसा दिन दिखा दिया बेटे?" फिर वो अभिनव के चेहरे पर हाथ फेरते हुए करुण भाव से बोल पड़े____"अच्छा होता कि तुम्हें इस हालत में देखने से पहले ऊपर वाला हमें मौत दे देता। अपने कंधे में अब तुम्हारा बोझ कैसे उठा सकेंगे हम? हवेली में तुम्हारी मां को क्या जवाब देंगे हम और......और उसे क्या जवाब देंगे जो हर बात से बेख़बर चंदनपुर में है? नहीं नहीं, हम में किसी को भी जवाब देने की हिम्मत नही है।"

दादा ठाकुर जाने क्या क्या कहते हुए रो पड़े। माहौल इतना भयावह और गमगीन हो गया था कि किसी में भी दादा ठाकुर को सम्हाले की कूवत नहीं रही। कुछ ही देर में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। वातावरण में चीखों पुकार मच गया। गांव से सिर्फ मर्द लोग ही नहीं आए थे बल्कि उनमें औरतें भी थीं जो ये सब देख कर बुरी तरह रो रहीं थी। दूसरे गांव से जीपों में दादा ठाकुर के चाहने वाले आए थे जो खुद भी ठाकुर थे और दादा ठाकुर की ही तरह संपन्न थे। उन लोगों ने दादा ठाकुर को सम्हाला और इस हादसे के लिए उनसे जो हो सकेगा करने का वादा किया।

"य....ये ज़िंदा हैं मालिक।" अचानक ही फिज़ा में कोई चिल्लाया तो सबके सब तेज़ी से पलटे। सबकी नज़रें मुंशी चंद्रकांत पर जा कर ठहर गईं जो जगताप के पास बैठा था। दादा ठाकुर के बेजान से जिस्म में मानों एकदम से नई शक्ति का संचार हुआ और वो भागते हुए उसके पास पहुंचे।

"क्या सच कह रहे हैं मुंशी जी?" दादा ठाकुर ने व्याकुल भाव से किंतु खुशी ज़ाहिर करते हुए पूछा।
"हां मालिक।" मुंशी ने बड़े जोशीले भाव से कहा_____"मझले ठोकर का शरीर वैसा ठंडा नहीं है जैसे बेजान जिस्म ठंडा पड़ जाता है। इनकी धड़कनें भी चल रही हैं।"

मुंशी की बात ने मानों सबके बीच एक अलग ही माहौल पैदा कर दिया। दादा ठाकुर ने झपट कर जगताप के दाहिने हाथ की नब्ज़ पकड़ ली और साथ ही अपना दूसरा हाथ उसके सीने पर रख दिया। कुछ देर वो चुप रहे और फिर एकदम से उनके चेहरे पर चमक आ गई।

"मुंशी जी ने सही कहा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने पास ही खड़े एक व्यक्ति की तरफ देख कर खुशी से कहा_____"हमारा भाई जगताप ज़िंदा है। इसे गोली ज़रूर लगी हैं लेकिन हमारा जगताप जिंदा है।" कहने के साथ ही वो शेरा की तरफ पलटे_____"फ़ौरन जीप ले कर आओ शेरा। इसे फ़ौरन शहर ले जाना होगा।"

शेरा में भी जैसे नई जान आ गई थी। वो भाग कर गया और जीप को पास ले आया। दादा ठाकुर ने खुद जगताप को दोनों हाथों से उठाया और उसे जीप में बैठा दिया। जगताप को दो गोलियां लगीं थी। एक जांघ में तो दूसरी पेट के दाईं तरफ। खून काफी बह गया था लेकिन सांसें अभी भी बाकी थी उसमें जोकि किसी चमत्कार से कम नहीं था। ज़ख्मों से खून अभी भी बह रहा था इस लिए दादा ठाकुर ने अपना गमछा लगा दिया था ज़ख्म पर।

"ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह नाम के आदमी ने कहा_____"हम भी आपके साथ शहर चलेंगे। दुश्मन का कोई भरोसा नहीं है इस लिए हम आपको अकेले कहीं जाने नहीं दे सकते।"

दादा ठाकुर ने उसकी बात पर सहमति जताई। जैसे ही जीप आगे बढ़ी तभी वहां पर पुलिस की लाल बत्ती लगी हुई दो जीपें आ कर रुकीं। फ़ौरन ही जीपों से पुलिस के अधिकारी बाहर निकले। समय क्योंकि ज़्यादा नही था इस लिए दादा ठाकुर उन्हें मामले के बारे में थोड़ा बहुत बता कर शहर की तरफ निकल लिए। इधर बाकी की कार्यवाही पुलिस की निगरानी में होने लगी।

✮✮✮✮

दादा ठाकुर की जीप पूरे वेग से शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी। जीप की कमान शेरा के हाथ में थी, जबकि अर्जुन सिंह उसके बगल में बंदूक लिए बैठा था। जीप की पिछली सीट पर दादा ठाकुर बैठे थे। अपने भाई जगताप को उन्होंने अपनी गोंद में ले रखा था और बार बार पुकार कर उसे होश में लाने का प्रयास कर रहे थे। एक तरफ जहां उन्हें अपने बेटे को खो देने का असहनीय दुख था तो वहीं दूसरी तरफ अपने भाई के ज़िंदा होने की खुशी भी थी। ये अलग बात है कि ये खुशी जगताप के होश में न आने से प्रतिपल फीकी पड़ती जा रही थी। वो बार बार शेरा को और तेज़ जीप चलाने को भी कहते जा रहे थे, जबकि उन्हें भी ये एहसास था कि कच्ची सड़क पर जीप पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ चल रही थी।

अर्जुन सिंह बार बार पलट कर दादा ठाकुर को धीरज दे रहा था। अचानक दादा ठाकुर पूरी शक्ति से चीख पड़े। ये उनकी चीख का ही असर था कि शेरा ने ज़ोर से जीप के ब्रेक पैडल पर अपना पांव जमा दिया जिससे जीप तेज़ आवाज़ करते हुए रुकती चली गई। दादा ठाकुर की इस भयानक चीख से अर्जुन सिंह भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। जीप के रुकते ही उसने और शेरा ने एकसाथ पलट कर पीछे देखा। दादा ठाकुर अपने छोटे भाई जगताप को अपने सीने से लगाए रोए जा रहे थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" अर्जुन सिंह समझ तो गया लेकिन फिर भी पूछे बगैर न रह सका।
"हमारे बेटे की तरह ये भी हमें छोड़ कर चला गया अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने करुण भाव से आंसू बहाते हुए कहा____"इसे भी हमारे बेटे की तरह हम पर तरस नहीं आया कि अब हम कैसे इन दोनों के बिना जी पाएंगे?"

"धीरज से काम लीजिए ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने अधीर भाव से कहा_____"आप जैसे इंसान को इस तरह विलाप करना शोभा नहीं देता।"
"क्यों? क्यों शोभा नहीं देता अर्जुन सिंह?" दादा ठाकुर जैसे चीख ही पड़े_____"क्या हम इंसान नहीं हैं या फिर हमारे सीने में धड़कता हुआ दिल नहीं है? क्या तुम्हें एहसास नहीं है कि इस वक्त हम किस हालत में हैं?"

"मुझे हर बात का बखूबी एहसास है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं अच्छी तरह समझता हूं कि इस वक्त आप बहुत ही ज़्यादा दुखी हैं और यकीन मानिए आपकी तरह मैं भी इस सबसे दुखी हूं लेकिन इसके बावजूद हमें इस असहनीय दुख को जज़्ब कर के बड़े धैर्य के साथ आगे के बारे में सोचना होगा। जो हो गया वो किसी के दुखी होने से या विलाप करने से ठीक नहीं हो जाएगा। इस लिए आपको धीरज से काम लेना होगा और बहुत ही समझदारी से इसके आगे क्या करना है सोचना होगा।"

"कहना आसान है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने दुखी और हताश भाव से कहा____"लेकिन अमल करना बहुत मुश्किल है। एक झटके में हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खो दिया है। आख़िर कैसे हम इस दुख को हजम कर जाएं? अब तो ये सोच कर ही हमारी रूह कांपी जा रही है कि हवेली में सबसे क्या कहेंगे और जब इस बारे में उन्हें पता चलेगा तो क्या होगा? नहीं नहीं अर्जुन सिंह, हम उस सबको ना तो देख सकेंगे और ना ही सह पाएंगे। जी करता है अभी इसी वक्त ये ज़मीन फट जाए और हम उसमें समा जाएं।"

"मैं आपकी मनोदशा को बखूबी समझता हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन किसी न किसी तरह हर चीज़ का सामना तो करना ही पड़ेगा और सबको सम्हालना भी पड़ेगा। दूसरी सबसे ज़रूरी बात ये भी सोचनी होगी कि जिसने भी ये सब किया है उसके साथ क्या करना है।"

"अब तो नर संघार होगा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर के हलक से एकाएक गुर्राहट निकली____"अभी तक हम चुप थे लेकिन अब हमारे दुश्मन हमारा वो रूप देखेंगे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी। एक एक को अपनी जान दे कर इस सबकी कीमत चुकानी होगी।"

कहने के साथ ही दादा ठाकुर ने शेरा को वापस चलने का हुकुम दिया। इस वक्त उनके चेहरे पर बड़े ही खूंखार भाव नज़र आ रहे थे। दादा ठाकुर को अपने जलाल पर आया देख अर्जुन सिंह पहले तो सहम सा गया लेकिन फिर राहत की सांस ली। जीप वापस हवेली की तरफ चल पड़ी थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी जैसे माहौल का आभास होने लगा था। ऊपर वाला ही जाने कि आने वाले समय में अब क्या होने वाला था?

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TheBlackBlood

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Milenge bhai thode he sahi shuruaat me par milenge zarur, logo ka taste badal Raha he aur log bhi he idhsr jo romance thriller ko prefer kar rahe he adultery ke sath. Bina sir pair ki stories maane 4 din ki chandani he jo kuchh der baad fiki ho jati hai.
Thriller me Waah life ho to aisi ka 3rd part sabse aage chal raha hai jo dedicated viewers ke sath he . Romance me bhi naye log try kar rahe he par kami he apriciation ki bas.
Kuch gini chuni thriller story me zarur hain bhai lekin 95% aisa hai ki thriller story me readers nahi hain. Meri thriller story The Revenge me ginti ke do teen reader hain jabki usme main ab tak 42 update post kar chuka hu.... :D
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
2,132
6,696
144
अध्याय - 62
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अब तक....

अनुराधा एक बार फिर से न चाहते हुए भी वैभव के ख़्यालों में खोती चली गई। एक बार फिर से उसके ज़हन में अपनी वो बातें गूंजने लगीं जो उसने वैभव से कहीं थी। वो सोचने लगी कि क्या सच में उसकी बातें इतनी कड़वी थीं कि वैभव को चोट पहुंचा गईं और वो उससे वो सब कह कर चला गया था? क्या सच में उसने बिना सोचे समझे ऐसा कुछ कह दिया है जिसके चलते अब वैभव कभी उसके घर नहीं आएगा? अनुराधा इस बारे में जितना सोचती उतना ही उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। वो ये सोच कर दुखी हो रही थी कि अब वैभव उसके घर नहीं आएगा और ना ही वो कभी उसकी शक्ल देख सकेगी। अनुराधा के अंदर एक हूक सी उठी और उसकी आंखों से आंसू बह चले। आंखें बंद कर के उसने वैभव को याद किया और उससे माफ़ी मांगने लगी।

अब आगे....


दादा ठाकुर अपने कमरे में लकड़ी की आलमारी खोले उसमें कुछ कर रहे थे। उन्हें शेरा के वापस आने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था। आलमारी के पल्ले बंद करने के बाद वो पलटे ही थे कि कमरे के दरवाज़े पर किसी की दस्तक से चौंके। निगाह दरवाज़े पर गई तो देखा उनकी धर्म पत्नी देवी और हवेली की ठकुराईन यानी कि श्रीमती सुगंधा देवी चेहरे पर अजीब से भाव लिए खड़ी थीं।

"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने उनके चेहरे पर मौजूद भावों को समझने की कोशिश करते हुए पूछा____"सब ठीक तो है न?"
"दरबान ने बताया कि बैठक में शेरा आपका इंतज़ार कर रहा है।" ठकुराईन सुगंधा देवी ने भावहीन लहजे में कहा____"क्या मैं ठाकुर साहब से पूछ सकती हूं कि माजरा क्या है?"

"कोई ख़ास बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने बात को टालने की गरज से कहा____"आपको बेवजह चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।"
"हम हवेली की ऊंची ऊंची चार दीवारी के अंदर रहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि हमें बाहरी दुनियां का कुछ पता ही नहीं है।" ठकुराईन ने तल्खी से कहा____"आप भले ही हमसे कुछ भी नहीं बताते हैं लेकिन इतना तो हम भी समझते हैं कि आज कल किस तरह के हालातों में हमारा पूरा परिवार घिरा हुआ है।"

"फ़िक्र मत कीजिए।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए कहा____"शेरा से मिलने के बाद हम आपको सब कुछ बता देंगे, तब शायद आपको हमसे शिकायत न रहे।"

ठकुराईन ने दरवाजे से हट कर उन्हें रास्ता दिया तो वो दरवाज़े से निकल कर बाहर बैठक की तरफ बढ़ गए। कुछ ही पलों में वो बैठक में पहुंच गए जहां शेरा पहले से ही सिर झुकाए मौजूद था। अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठने के बाद दादा ठाकुर ने जैसे ही शेरा को देखा तो वो बुरी तरह चौंक पड़े। शेरा के चेहरे पर कई जगह चोटों के निशान थे और इतना ही नहीं दाएं तरफ माथे पर खून भी लगा हुआ था।

"तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई शेरा?" दादा ठाकुर ने संदेह पूर्ण भाव से पूछा____"और...और जो काम हमने तुम्हें सौंपा था उसका क्या हुआ?"
"माफ़ करना मालिक।" शेरा ने सिर झुकाए हुए ही कहा____"लेकिन बहुत बुरा हो गया है।"

शेरा का इतना कहना था कि दादा ठाकुर को ऐसा लगा जैसे उनकी धड़कनें ही थम गईं हों। कुछ कहते ना बन पड़ा था उनसे। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और फिर थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए शेरा से कहा____"ये क्या कह रहे हो तुम? आख़िर क्या बुरा हो गया है? हमें सब कुछ साफ साफ बताओ।"

"म...मालिक।" शेरा ने सहसा दुखी हो कर कहा_____"आपके हुकुम के अनुसार मैं चंदनपुर गया था। वहां पर सच में कुछ लोग छोटे कुंवर को जान से मारने के लिए गए थे लेकिन मेरे और मेरे आदमियों के रहते वो छोटे कुंवर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके। कुछ लोगों को पकड़ कर मैं वहां से आपके पास आ ही रहा था कि रास्ते में अचानक से कुछ ऐसा हो गया कि हमारे लाख सम्हालने पर भी हालात बिगड़ गए और फिर सब कुछ तबाह हो गया।"

"आख़िर हुआ क्या है शेरा?" दादा ठाकुर का मन बुरी तरह आशंकित हो उठा, बोले_____"पहेलियां बुझाने की बजाय सब कुछ साफ शब्दों में क्यों नहीं बता रहे तुम?"

"म..मालिक।" शेरा की आवाज़ बुरी तरह लड़खड़ाने लगी____"जब मैं और मेरे आदमी चंदनपुर से वापस आ रहे थे तब रास्ते में मैंने देखा कि काफी सारे लोग मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पर हमला कर रहे थे। मैं और मेरे आदमियों ने बहुत कोशिश की कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पर कोई खरोंच तक न आए लेकिन हम अपनी कोशिशों में नाकाम रहे मालिक।"

शेरा से आगे कुछ बोला ही न गया और वो वहीं घुटनों के बल फर्श पर गिर कर तथा अपने दोनों हाथ जोड़ कर रोने लगा। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर ने अपने उस मुलाजिम को किसी बच्चे की तरह रोते देखा था जिसके चेहरे पर हमेशा पत्थर जैसी कठोरता विद्यमान रहती थी। किसी भारी अनिष्ट की आशंका ने दादा ठाकुर को सिंहासन से फौरन ही उठ जाने पर मजबूर कर दिया। दो ही क़दमों में वो शेरा के पास पहुंचे और झुक कर उसे कंधों से पकड़ कर उठाया।

"क्या हुआ है हमारे भाई और हमारे बेटे को?" फिर उन्होंने शेरा के चेहरे पर दृष्टि जमाते हुए भारी गले से पूछा_____"वो दोनों सकुशल तो हैं न?"
"मुझे माफ़ कर दीजिए मालिक।" शेरा रोते हुए एकदम से दादा ठाकुर के पैरों में ही गिर पड़ा_____"मैं उन दोनों की रक्षा नहीं कर सका। दुश्मनों ने उन दोनों को.....।"

"शेरा.....।" दादा ठाकुर इतना जोर से दहाड़े कि बैठक की दीवारें तक हिल गईं_____"य...ये क्या कह रहे हो तुम? नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता। कह दो कि ये सब झूठ है वरना, कसम भवानी की हम तुम्हारी खाल में भूसा भर देंगे।"

"मुझे मृत्यु दण्ड दे दीजिए मालिक।" शेरा उनके पैरों में मानों लोट ही गया_____"ऐसे गुलाम को जीने का कोई अधिकार नहीं है जो अपने मालिकों की रक्षा न कर सके।"

दादा ठाकुर को पहली बार ऐसा लगा जैसे उनके सिर पर एकाएक पूरा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा है। दोनों टांगों में खड़े रहने की ताकत न रही। उनका भारी भरकम और हट्टा कट्टा शरीर किसी कटे हुए पेड़ की तरह लहराया और अभी वो गिरने ही वाले थे कि शेरा ने फौरन ही उठ कर उन्हें सम्हाल लिया। शेरा की हालत खुद भी बहुत ख़राब थी। दुख और संताप उसके चेहरे पर मानो कुंडली मार कर बैठ गए थे। चेहरा आंसुओं से तर था।

"हमें उनके पास ले चलो।" शेरा के कानों में दादा ठाकुर की बदहवास सी आवाज़ पड़ी____"जल्दी ले चलो शेरा। हम भी उन्हीं के साथ मर जाना चाहते हैं। हमारे दुश्मन अभी भी वहां मौजूद होंगे न? बिल्कुल होंगे, शायद हमारे आने की राह देख रहे होंगे। हम उन्हें ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराना चाहते शेरा। जल्दी ले चलो हमें।"

दादा ठाकुर की हालत पागलों जैसी नज़र आने लगी थी। शेरा ने आज से पहले कभी उन्हें इस तरह विचलित होते नहीं देखा था। रौबदार चेहरे पर हमेशा एक अलग ही तरह का तेज़ देखा था उसने लेकिन इस वक्त उनके चेहरे पर न तेज़ था और ना ही कोई रौब था। अगर कुछ था तो सिर्फ संताप और पागलपन। उनकी ऐसी दशा देख कर शेरा का हृदय मानो हाहाकार कर उठा। आंखों से बहने वाले आंसू मानों पूरे वेग में बहने लगे थे। अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से भागते हुए ठकुराईन सुगंधा देवी और साथ ही जगताप की पत्नी मेनका और कुसुम भी आ गईं। दादा ठाकुर को ऐसी हालत में देख वो एकदम से बुत सी बन गईं। फिर जैसे एकाएक उनमें जान आई तो ठकुराईन लपक कर दादा ठाकुर के पास आईं।

"क्या हुआ है इन्हें?" ठकुराईन ने बुरी तरह घबरा कर शेरा से पूछा_____"ये इतना ज़ोर से क्यों चिल्लाए थे अभी? आख़िर ऐसा क्या हुआ है शेरा जिसके चलते इनकी ये हालत हो गई है?"

बेचारा शेरा, उसे समझ में ही न आया कि वो हवेली की ठकुराईन को क्या जवाब दे। वो दादा ठाकुर को सम्हाले बस रोए जा रहा था। उसके रोने से ठकुराइन के साथ साथ बाकी सब भी घबरा ग‌ईं। मन में तरह तरह के खयाल उभरने लगे।

"कुछ नहीं हुआ है हमें।" दादा ठाकुर ने शेरा से अलग हो कर सामान्य भाव से कहा____"आप सब अंदर जाएं। हम आते हैं कुछ देर में, चलो शेरा।"

इससे पहले कि ठकुराईन उनसे कुछ पूछतीं दादा ठाकुर तेज़ कदमों से बाहर निकल गए। उनके पीछे ठकुराईन, मेनका और कुसुम भौचक्की सी हालत में खड़ी रह गईं थी। बाहर आते ही दादा ठाकुर ने वहां मौजूद दरबानों को शख़्त आदेश दिया कि ना तो कोई हवेली से बाहर जाने पाए और ना ही कोई बाहरी हवेली में आने पाए।

इसके पहले जहां दादा ठाकुर के चेहरे पर विक्षिप्तता और पागलपन के भाव थे वहीं अब वो फिर से भाव हीन नज़र आने लगे थे। जीप में शेरा के बगल से बैठने के बाद उन्होंने आगे बढ़ने का हुकुम दिया तो शेरा ने जीप को आगे बढ़ा दिया। शेरा के इशारे पर जीप में दो चार आदमी भी बैठ गए थे जिनके हाथों में बंदूखें थीं।

अभी वो जीप में बैठे हाथी दरवाज़े के पास ही पहुंचे थे कि सामने से मुंशी चंद्रकांत अपने बेटे रघुवीर के साथ तेज़ क़दमों से आता नज़र आया। उन दोनों के पीछे गांव के कुछ लोग भी थे।

"मालिक, ये क्या गज़ब हो गया?" मुंशी दादा ठाकुर को देखते ही मानो हाहाकार कर उठा____"दुश्मनों ने मझले ठाकुर और हमारे होने वाले युवराज को.....।"
"जीप में बैठिए मुंशी जी।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में कहा_____"और रघुवीर तुम इसी वक्त भिवाड़ी जाओ और वहां पर ठाकुर अर्जुन सिंह को हमारा संदेशा दो कि जितना जल्दी हो सके वो अपने आदमियों के साथ हमारे पास आएं।"

"जो हुकुम दादा ठाकुर।" रघुवीर ने अदब से हाथ जोड़ कर कहा और पलट कर चला गया। उसके जाते ही जीप आगे बढ़ चली।

पूरे गांव में ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैलती चली गई कि हवेली के ठाकुरों के साथ किसी ने बहुत बुरा किया है। हवेली और दादा ठाकुर के चाहने वाले भागते हुए हवेली की तरफ ही आ रहे जिन्हें रास्ते में ही दादा ठाकुर ने रोक लिया। दादा ठाकुर को देख कर गांव के आए हुए लोग बुरी तरह बिलख बिलख कर रोने लगे थे। दादा ठाकुर ने उन्हें किसी तरह शांत किया और कहा कि सब अपने अपने घर जाएं। जिस किसी ने भी ये सब किया है उसे मौत से कम सज़ा हर्गिज़ नहीं दी जाएगी। दादा ठाकुर ने गांव के कुछ भरोसेमंद लोगों को हवेली जा कर वहां पर सुरक्षा करने के लिए कहा और बाकियों को घर जाने को कहा मगर वो लोग वापस घर जाने को तैयार ना हुए। सबका कहना था कि वो उनके साथ ही रहेंगे। असल में उन्हें डर था कि दुश्मन कहीं दादा ठाकुर पर हमला न करे इस लिए वो अपने देवता की रक्षा करना चाहते थे।


✮✮✮✮

चंदनपुर जाने वाले रास्ते के एक तरफ जंगल था तो दूसरी तरफ पथरीली ज़मीन। कच्ची सड़क के किनारे किनारे लगभग दो किलो मीटर तक नदी चल रही थी। ये नदी आस पास के कई गावों से हो कर गुज़रती थी और इसी नदी के द्वारा किसान लोग खेतों में सिंचाई भी करते थे। हालाकि गांव के जो थोड़ा बहुत संपन्न थे उन लोगों ने अपने खेतों पर ट्यूब बेल लगवा रखा था, ये अलग बात है कि बिजली के ज़्यादा न रहने पर उन्हें ट्यूब बेल से सिंचाई करने का ज़्यादा अवसर नहीं मिल पाता था।

दादा ठाकुर का काफ़िला इसी जगह पर आ कर रुका। एक तरफ जंगल और दूसरी तरफ नदी और नदी के उस पार पथरीली बंज़र ज़मीन। दूर दूर तक कोई गांव नज़र नहीं आता था। हालाकि नदी के उस पार की ज़मीन कुछ सरकार की थी और कुछ दूसरे गांव के ठाकुरों की किंतु ज़मीन से कोई उपज न होने के चलते इस तरफ आना जाना कम ही होता था। दुश्मनों ने अपने शिकार का शिकार करने के लिए बिल्कुल सही जगह का चुनाव किया था।

जीप के रुकते ही दादा ठाकुर नीचे उतरे। मन में आंधियां सी चल रहीं थी और दिल में अथाह पीड़ा भी हो रही थी किंतु किसी तरह खुद को सम्हाले वो उस तरफ चल पड़े जहां पर लाशें पड़ी हुईं थी। सड़क के किनारे जंगल की तरफ क़रीब दस लाशें पड़ी थीं। कुछ लाशें सड़क के दूसरी तरफ नदी के किनारे पर भी पड़ीं थी। कुछ दूरी पर सड़क पर ही दो जीपें खड़ी थीं। जीप के आस पास तीन लोग मरे पड़े थे जबकि जीप के पीछे तरफ जो दो लोग लहू लुहान हालत में अचेत से पड़े थे उन पर नज़र पड़ते ही दादा ठाकुर के क़दम लड़खड़ा गए। न चाहते हुए भी उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।

दादा ठाकुर ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उन्हें एक दिन इतना बुरा और इतना भयानक दिन भी देखना पड़ जाएगा। बोझिल क़दमों के साथ वो उन दोनों लोगों के पास पहुंचे। जीप के दाहिने पहिए के पास जगताप लहू लुहान पड़ा था जबकि बाएं पहिए से क़रीब दो क़दम की दूरी पर अभिनव पड़ा था। अपने छोटे भाई और अपने बड़े बेटे को इस हालत में देख कर दादा ठाकुर चाह कर भी खुद को सम्हाला न सके। यूं लगा जैसे घुटनें टूट गए हों और वो ज़मीन पर घुटनों के बल जा गिरे। जी किया कि दोनों के लहू लुहान जिस्मों को अपने कलेजे से लगा कर इतना ज़ोर से रोएं कि उनके रुदन से आसमान का कलेजा भी दहल जाए।

"इसके लिए तो इजाज़त नहीं दी थी हमने।" जगताप के सिर को थाम कर दादा ठाकुर ने भारी गले से कहा_____"फिर क्यों हमारी इजाज़त के बिना हमें अकेला छोड़ गए तुम?"

दादा ठाकुर की आंखों से आंसू बह रहे थे और उन्हें ये सब कहते हुए रोता देख बाकी सब भी रोने लगे थे। पास ही खड़ा मुंशी चंद्रकांत भी रो रहा था। उससे जब न रहा गया तो उसने पीछे से दादा ठाकुर को सम्हाल लिया।

"खुद को सम्हालिए मालिक।" मुंशी दुखी भाव से बिलखते हुए बोला____"आप ही हिम्मत हार जाएंगे तो बाकी सबका क्या होगा?"

"सही कह रहे हो तुम।" दादा ठाकुर ने अजीब भाव से कहा____"हमें हिम्मत नहीं हारना चाहिए। हमें तो अपने दिल पर पत्थर रख कर आगे बढ़ना चाहिए। जिस किसी ने भी ये किया है उसे ऐसी मौत देनी चाहिए कि ऊपर बैठे फरिश्तों का भी कलेजा दहल जाए।"

वातावरण में कुछ लोगों की आवाज़ों का शोर हुआ तो सबका ध्यान शोर की तरफ गया। गांव के लोग भागते हुए इस तरफ ही आ रहे थे। कुछ जीपें और कुछ मोटर साईकिल भी आती हुई दिख रहीं थी। दादा ठाकुर ने खुद को किसी तरह सम्हाला और फिर जगताप को छोड़ अपने बेटे की तरफ बढ़े।

अभिनव के जिस्म के दो हिस्सों में गोली लगी थी। एक गोली सीने में तो दूसरी पेट के बाएं तरफ। ज़ाहिर था बचना मुश्किल था। जिस्म एकदम से ठंडा पड़ गया था उसका। अपने बेटे को बेजान पड़ा देख दादा ठाकुर की आंखों से एक बार फिर आंसू बह चले। आंखों के सामने अभिनव का हंसता मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया और साथ ही वो सब भी जो अब तक हुआ था।

"ये कैसा दिन दिखा दिया बेटे?" फिर वो अभिनव के चेहरे पर हाथ फेरते हुए करुण भाव से बोल पड़े____"अच्छा होता कि तुम्हें इस हालत में देखने से पहले ऊपर वाला हमें मौत दे देता। अपने कंधे में अब तुम्हारा बोझ कैसे उठा सकेंगे हम? हवेली में तुम्हारी मां को क्या जवाब देंगे हम और......और उसे क्या जवाब देंगे जो हर बात से बेख़बर चंदनपुर में है? नहीं नहीं, हम में किसी को भी जवाब देने की हिम्मत नही है।"

दादा ठाकुर जाने क्या क्या कहते हुए रो पड़े। माहौल इतना भयावह और गमगीन हो गया था कि किसी में भी दादा ठाकुर को सम्हाले की कूवत नहीं रही। कुछ ही देर में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। वातावरण में चीखों पुकार मच गया। गांव से सिर्फ मर्द लोग ही नहीं आए थे बल्कि उनमें औरतें भी थीं जो ये सब देख कर बुरी तरह रो रहीं थी। दूसरे गांव से जीपों में दादा ठाकुर के चाहने वाले आए थे जो खुद भी ठाकुर थे और दादा ठाकुर की ही तरह संपन्न थे। उन लोगों ने दादा ठाकुर को सम्हाला और इस हादसे के लिए उनसे जो हो सकेगा करने का वादा किया।

"य....ये ज़िंदा हैं मालिक।" अचानक ही फिज़ा में कोई चिल्लाया तो सबके सब तेज़ी से पलटे। सबकी नज़रें मुंशी चंद्रकांत पर जा कर ठहर गईं जो जगताप के पास बैठा था। दादा ठाकुर के बेजान से जिस्म में मानों एकदम से नई शक्ति का संचार हुआ और वो भागते हुए उसके पास पहुंचे।

"क्या सच कह रहे हैं मुंशी जी?" दादा ठाकुर ने व्याकुल भाव से किंतु खुशी ज़ाहिर करते हुए पूछा।
"हां मालिक।" मुंशी ने बड़े जोशीले भाव से कहा_____"मझले ठोकर का शरीर वैसा ठंडा नहीं है जैसे बेजान जिस्म ठंडा पड़ जाता है। इनकी धड़कनें भी चल रही हैं।"

मुंशी की बात ने मानों सबके बीच एक अलग ही माहौल पैदा कर दिया। दादा ठाकुर ने झपट कर जगताप के दाहिने हाथ की नब्ज़ पकड़ ली और साथ ही अपना दूसरा हाथ उसके सीने पर रख दिया। कुछ देर वो चुप रहे और फिर एकदम से उनके चेहरे पर चमक आ गई।

"मुंशी जी ने सही कहा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने पास ही खड़े एक व्यक्ति की तरफ देख कर खुशी से कहा_____"हमारा भाई जगताप ज़िंदा है। इसे गोली ज़रूर लगी हैं लेकिन हमारा जगताप जिंदा है।" कहने के साथ ही वो शेरा की तरफ पलटे_____"फ़ौरन जीप ले कर आओ शेरा। इसे फ़ौरन शहर ले जाना होगा।"

शेरा में भी जैसे नई जान आ गई थी। वो भाग कर गया और जीप को पास ले आया। दादा ठाकुर ने खुद जगताप को दोनों हाथों से उठाया और उसे जीप में बैठा दिया। जगताप को दो गोलियां लगीं थी। एक जांघ में तो दूसरी पेट के दाईं तरफ। खून काफी बह गया था लेकिन सांसें अभी भी बाकी थी उसमें जोकि किसी चमत्कार से कम नहीं था। ज़ख्मों से खून अभी भी बह रहा था इस लिए दादा ठाकुर ने अपना गमछा लगा दिया था ज़ख्म पर।

"ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह नाम के आदमी ने कहा_____"हम भी आपके साथ शहर चलेंगे। दुश्मन का कोई भरोसा नहीं है इस लिए हम आपको अकेले कहीं जाने नहीं दे सकते।"

दादा ठाकुर ने उसकी बात पर सहमति जताई। जैसे ही जीप आगे बढ़ी तभी वहां पर पुलिस की लाल बत्ती लगी हुई दो जीपें आ कर रुकीं। फ़ौरन ही जीपों से पुलिस के अधिकारी बाहर निकले। समय क्योंकि ज़्यादा नही था इस लिए दादा ठाकुर उन्हें मामले के बारे में थोड़ा बहुत बता कर शहर की तरफ निकल लिए। इधर बाकी की कार्यवाही पुलिस की निगरानी में होने लगी।


✮✮✮✮

दादा ठाकुर की जीप पूरे वेग से शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी। जीप की कमान शेरा के हाथ में थी, जबकि अर्जुन सिंह उसके बगल में बंदूक लिए बैठा था। जीप की पिछली सीट पर दादा ठाकुर बैठे थे। अपने भाई जगताप को उन्होंने अपनी गोंद में ले रखा था और बार बार पुकार कर उसे होश में लाने का प्रयास कर रहे थे। एक तरफ जहां उन्हें अपने बेटे को खो देने का असहनीय दुख था तो वहीं दूसरी तरफ अपने भाई के ज़िंदा होने की खुशी भी थी। ये अलग बात है कि ये खुशी जगताप के होश में न आने से प्रतिपल फीकी पड़ती जा रही थी। वो बार बार शेरा को और तेज़ जीप चलाने को भी कहते जा रहे थे, जबकि उन्हें भी ये एहसास था कि कच्ची सड़क पर जीप पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ चल रही थी।

अर्जुन सिंह बार बार पलट कर दादा ठाकुर को धीरज दे रहा था। अचानक दादा ठाकुर पूरी शक्ति से चीख पड़े। ये उनकी चीख का ही असर था कि शेरा ने ज़ोर से जीप के ब्रेक पैडल पर अपना पांव जमा दिया जिससे जीप तेज़ आवाज़ करते हुए रुकती चली गई। दादा ठाकुर की इस भयानक चीख से अर्जुन सिंह भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। जीप के रुकते ही उसने और शेरा ने एकसाथ पलट कर पीछे देखा। दादा ठाकुर अपने छोटे भाई जगताप को अपने सीने से लगाए रोए जा रहे थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" अर्जुन सिंह समझ तो गया लेकिन फिर भी पूछे बगैर न रह सका।
"हमारे बेटे की तरह ये भी हमें छोड़ कर चला गया अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने करुण भाव से आंसू बहाते हुए कहा____"इसे भी हमारे बेटे की तरह हम पर तरस नहीं आया कि अब हम कैसे इन दोनों के बिना जी पाएंगे?"

"धीरज से काम लीजिए ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने अधीर भाव से कहा_____"आप जैसे इंसान को इस तरह विलाप करना शोभा नहीं देता।"
"क्यों? क्यों शोभा नहीं देता अर्जुन सिंह?" दादा ठाकुर जैसे चीख ही पड़े_____"क्या हम इंसान नहीं हैं या फिर हमारे सीने में धड़कता हुआ दिल नहीं है? क्या तुम्हें एहसास नहीं है कि इस वक्त हम किस हालत में हैं?"

"मुझे हर बात का बखूबी एहसास है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं अच्छी तरह समझता हूं कि इस वक्त आप बहुत ही ज़्यादा दुखी हैं और यकीन मानिए आपकी तरह मैं भी इस सबसे दुखी हूं लेकिन इसके बावजूद हमें इस असहनीय दुख को जज़्ब कर के बड़े धैर्य के साथ आगे के बारे में सोचना होगा। जो हो गया वो किसी के दुखी होने से या विलाप करने से ठीक नहीं हो जाएगा। इस लिए आपको धीरज से काम लेना होगा और बहुत ही समझदारी से इसके आगे क्या करना है सोचना होगा।"

"कहना आसान है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने दुखी और हताश भाव से कहा____"लेकिन अमल करना बहुत मुश्किल है। एक झटके में हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खो दिया है। आख़िर कैसे हम इस दुख को हजम कर जाएं? अब तो ये सोच कर ही हमारी रूह कांपी जा रही है कि हवेली में सबसे क्या कहेंगे और जब इस बारे में उन्हें पता चलेगा तो क्या होगा? नहीं नहीं अर्जुन सिंह, हम उस सबको ना तो देख सकेंगे और ना ही सह पाएंगे। जी करता है अभी इसी वक्त ये ज़मीन फट जाए और हम उसमें समा जाएं।"

"मैं आपकी मनोदशा को बखूबी समझता हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन किसी न किसी तरह हर चीज़ का सामना तो करना ही पड़ेगा और सबको सम्हालना भी पड़ेगा। दूसरी सबसे ज़रूरी बात ये भी सोचनी होगी कि जिसने भी ये सब किया है उसके साथ क्या करना है।"

"अब तो नर संघार होगा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर के हलक से एकाएक गुर्राहट निकली____"अभी तक हम चुप थे लेकिन अब हमारे दुश्मन हमारा वो रूप देखेंगे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी। एक एक को अपनी जान दे कर इस सबकी कीमत चुकानी होगी।"

कहने के साथ ही दादा ठाकुर ने शेरा को वापस चलने का हुकुम दिया। इस वक्त उनके चेहरे पर बड़े ही खूंखार भाव नज़र आ रहे थे। दादा ठाकुर को अपने जलाल पर आया देख अर्जुन सिंह पहले तो सहम सा गया लेकिन फिर राहत की सांस ली। जीप वापस हवेली की तरफ चल पड़ी थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी जैसे माहौल का आभास होने लगा था। ऊपर वाला ही जाने कि आने वाले समय में अब क्या होने वाला था?


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Ab to is update se yahi lagta h jaise story ka last update najdeek hi h......
.dushman ne achha khasa nuksan kar diya thakur sahab .....
 

Yamraaj

Put your Attitude on my Dick......
2,132
6,696
144
अध्याय - 62
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अब तक....

अनुराधा एक बार फिर से न चाहते हुए भी वैभव के ख़्यालों में खोती चली गई। एक बार फिर से उसके ज़हन में अपनी वो बातें गूंजने लगीं जो उसने वैभव से कहीं थी। वो सोचने लगी कि क्या सच में उसकी बातें इतनी कड़वी थीं कि वैभव को चोट पहुंचा गईं और वो उससे वो सब कह कर चला गया था? क्या सच में उसने बिना सोचे समझे ऐसा कुछ कह दिया है जिसके चलते अब वैभव कभी उसके घर नहीं आएगा? अनुराधा इस बारे में जितना सोचती उतना ही उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। वो ये सोच कर दुखी हो रही थी कि अब वैभव उसके घर नहीं आएगा और ना ही वो कभी उसकी शक्ल देख सकेगी। अनुराधा के अंदर एक हूक सी उठी और उसकी आंखों से आंसू बह चले। आंखें बंद कर के उसने वैभव को याद किया और उससे माफ़ी मांगने लगी।

अब आगे....


दादा ठाकुर अपने कमरे में लकड़ी की आलमारी खोले उसमें कुछ कर रहे थे। उन्हें शेरा के वापस आने का बड़ी बेसब्री से इंतज़ार था। आलमारी के पल्ले बंद करने के बाद वो पलटे ही थे कि कमरे के दरवाज़े पर किसी की दस्तक से चौंके। निगाह दरवाज़े पर गई तो देखा उनकी धर्म पत्नी देवी और हवेली की ठकुराईन यानी कि श्रीमती सुगंधा देवी चेहरे पर अजीब से भाव लिए खड़ी थीं।

"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने उनके चेहरे पर मौजूद भावों को समझने की कोशिश करते हुए पूछा____"सब ठीक तो है न?"
"दरबान ने बताया कि बैठक में शेरा आपका इंतज़ार कर रहा है।" ठकुराईन सुगंधा देवी ने भावहीन लहजे में कहा____"क्या मैं ठाकुर साहब से पूछ सकती हूं कि माजरा क्या है?"

"कोई ख़ास बात नहीं है।" दादा ठाकुर ने बात को टालने की गरज से कहा____"आपको बेवजह चिंता करने की ज़रूरत नहीं है।"
"हम हवेली की ऊंची ऊंची चार दीवारी के अंदर रहते हैं तो इसका मतलब ये नहीं है कि हमें बाहरी दुनियां का कुछ पता ही नहीं है।" ठकुराईन ने तल्खी से कहा____"आप भले ही हमसे कुछ भी नहीं बताते हैं लेकिन इतना तो हम भी समझते हैं कि आज कल किस तरह के हालातों में हमारा पूरा परिवार घिरा हुआ है।"

"फ़िक्र मत कीजिए।" दादा ठाकुर ने दरवाज़े की तरफ बढ़ते हुए कहा____"शेरा से मिलने के बाद हम आपको सब कुछ बता देंगे, तब शायद आपको हमसे शिकायत न रहे।"

ठकुराईन ने दरवाजे से हट कर उन्हें रास्ता दिया तो वो दरवाज़े से निकल कर बाहर बैठक की तरफ बढ़ गए। कुछ ही पलों में वो बैठक में पहुंच गए जहां शेरा पहले से ही सिर झुकाए मौजूद था। अपने ऊंचे सिंहासन पर बैठने के बाद दादा ठाकुर ने जैसे ही शेरा को देखा तो वो बुरी तरह चौंक पड़े। शेरा के चेहरे पर कई जगह चोटों के निशान थे और इतना ही नहीं दाएं तरफ माथे पर खून भी लगा हुआ था।

"तुम्हारी ऐसी हालत कैसे हो गई शेरा?" दादा ठाकुर ने संदेह पूर्ण भाव से पूछा____"और...और जो काम हमने तुम्हें सौंपा था उसका क्या हुआ?"
"माफ़ करना मालिक।" शेरा ने सिर झुकाए हुए ही कहा____"लेकिन बहुत बुरा हो गया है।"

शेरा का इतना कहना था कि दादा ठाकुर को ऐसा लगा जैसे उनकी धड़कनें ही थम गईं हों। कुछ कहते ना बन पड़ा था उनसे। बड़ी मुश्किल से उन्होंने खुद को सम्हाला और फिर थोड़ा सख़्त भाव अख़्तियार करते हुए शेरा से कहा____"ये क्या कह रहे हो तुम? आख़िर क्या बुरा हो गया है? हमें सब कुछ साफ साफ बताओ।"

"म...मालिक।" शेरा ने सहसा दुखी हो कर कहा_____"आपके हुकुम के अनुसार मैं चंदनपुर गया था। वहां पर सच में कुछ लोग छोटे कुंवर को जान से मारने के लिए गए थे लेकिन मेरे और मेरे आदमियों के रहते वो छोटे कुंवर को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सके। कुछ लोगों को पकड़ कर मैं वहां से आपके पास आ ही रहा था कि रास्ते में अचानक से कुछ ऐसा हो गया कि हमारे लाख सम्हालने पर भी हालात बिगड़ गए और फिर सब कुछ तबाह हो गया।"

"आख़िर हुआ क्या है शेरा?" दादा ठाकुर का मन बुरी तरह आशंकित हो उठा, बोले_____"पहेलियां बुझाने की बजाय सब कुछ साफ शब्दों में क्यों नहीं बता रहे तुम?"

"म..मालिक।" शेरा की आवाज़ बुरी तरह लड़खड़ाने लगी____"जब मैं और मेरे आदमी चंदनपुर से वापस आ रहे थे तब रास्ते में मैंने देखा कि काफी सारे लोग मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पर हमला कर रहे थे। मैं और मेरे आदमियों ने बहुत कोशिश की कि मझले ठाकुर और बड़े कुंवर पर कोई खरोंच तक न आए लेकिन हम अपनी कोशिशों में नाकाम रहे मालिक।"

शेरा से आगे कुछ बोला ही न गया और वो वहीं घुटनों के बल फर्श पर गिर कर तथा अपने दोनों हाथ जोड़ कर रोने लगा। ये पहला अवसर था जब दादा ठाकुर ने अपने उस मुलाजिम को किसी बच्चे की तरह रोते देखा था जिसके चेहरे पर हमेशा पत्थर जैसी कठोरता विद्यमान रहती थी। किसी भारी अनिष्ट की आशंका ने दादा ठाकुर को सिंहासन से फौरन ही उठ जाने पर मजबूर कर दिया। दो ही क़दमों में वो शेरा के पास पहुंचे और झुक कर उसे कंधों से पकड़ कर उठाया।

"क्या हुआ है हमारे भाई और हमारे बेटे को?" फिर उन्होंने शेरा के चेहरे पर दृष्टि जमाते हुए भारी गले से पूछा_____"वो दोनों सकुशल तो हैं न?"
"मुझे माफ़ कर दीजिए मालिक।" शेरा रोते हुए एकदम से दादा ठाकुर के पैरों में ही गिर पड़ा_____"मैं उन दोनों की रक्षा नहीं कर सका। दुश्मनों ने उन दोनों को.....।"

"शेरा.....।" दादा ठाकुर इतना जोर से दहाड़े कि बैठक की दीवारें तक हिल गईं_____"य...ये क्या कह रहे हो तुम? नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता। कह दो कि ये सब झूठ है वरना, कसम भवानी की हम तुम्हारी खाल में भूसा भर देंगे।"

"मुझे मृत्यु दण्ड दे दीजिए मालिक।" शेरा उनके पैरों में मानों लोट ही गया_____"ऐसे गुलाम को जीने का कोई अधिकार नहीं है जो अपने मालिकों की रक्षा न कर सके।"

दादा ठाकुर को पहली बार ऐसा लगा जैसे उनके सिर पर एकाएक पूरा आसमान भरभरा कर गिर पड़ा है। दोनों टांगों में खड़े रहने की ताकत न रही। उनका भारी भरकम और हट्टा कट्टा शरीर किसी कटे हुए पेड़ की तरह लहराया और अभी वो गिरने ही वाले थे कि शेरा ने फौरन ही उठ कर उन्हें सम्हाल लिया। शेरा की हालत खुद भी बहुत ख़राब थी। दुख और संताप उसके चेहरे पर मानो कुंडली मार कर बैठ गए थे। चेहरा आंसुओं से तर था।

"हमें उनके पास ले चलो।" शेरा के कानों में दादा ठाकुर की बदहवास सी आवाज़ पड़ी____"जल्दी ले चलो शेरा। हम भी उन्हीं के साथ मर जाना चाहते हैं। हमारे दुश्मन अभी भी वहां मौजूद होंगे न? बिल्कुल होंगे, शायद हमारे आने की राह देख रहे होंगे। हम उन्हें ज़्यादा इंतज़ार नहीं कराना चाहते शेरा। जल्दी ले चलो हमें।"

दादा ठाकुर की हालत पागलों जैसी नज़र आने लगी थी। शेरा ने आज से पहले कभी उन्हें इस तरह विचलित होते नहीं देखा था। रौबदार चेहरे पर हमेशा एक अलग ही तरह का तेज़ देखा था उसने लेकिन इस वक्त उनके चेहरे पर न तेज़ था और ना ही कोई रौब था। अगर कुछ था तो सिर्फ संताप और पागलपन। उनकी ऐसी दशा देख कर शेरा का हृदय मानो हाहाकार कर उठा। आंखों से बहने वाले आंसू मानों पूरे वेग में बहने लगे थे। अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि तभी अंदर से भागते हुए ठकुराईन सुगंधा देवी और साथ ही जगताप की पत्नी मेनका और कुसुम भी आ गईं। दादा ठाकुर को ऐसी हालत में देख वो एकदम से बुत सी बन गईं। फिर जैसे एकाएक उनमें जान आई तो ठकुराईन लपक कर दादा ठाकुर के पास आईं।

"क्या हुआ है इन्हें?" ठकुराईन ने बुरी तरह घबरा कर शेरा से पूछा_____"ये इतना ज़ोर से क्यों चिल्लाए थे अभी? आख़िर ऐसा क्या हुआ है शेरा जिसके चलते इनकी ये हालत हो गई है?"

बेचारा शेरा, उसे समझ में ही न आया कि वो हवेली की ठकुराईन को क्या जवाब दे। वो दादा ठाकुर को सम्हाले बस रोए जा रहा था। उसके रोने से ठकुराइन के साथ साथ बाकी सब भी घबरा ग‌ईं। मन में तरह तरह के खयाल उभरने लगे।

"कुछ नहीं हुआ है हमें।" दादा ठाकुर ने शेरा से अलग हो कर सामान्य भाव से कहा____"आप सब अंदर जाएं। हम आते हैं कुछ देर में, चलो शेरा।"

इससे पहले कि ठकुराईन उनसे कुछ पूछतीं दादा ठाकुर तेज़ कदमों से बाहर निकल गए। उनके पीछे ठकुराईन, मेनका और कुसुम भौचक्की सी हालत में खड़ी रह गईं थी। बाहर आते ही दादा ठाकुर ने वहां मौजूद दरबानों को शख़्त आदेश दिया कि ना तो कोई हवेली से बाहर जाने पाए और ना ही कोई बाहरी हवेली में आने पाए।

इसके पहले जहां दादा ठाकुर के चेहरे पर विक्षिप्तता और पागलपन के भाव थे वहीं अब वो फिर से भाव हीन नज़र आने लगे थे। जीप में शेरा के बगल से बैठने के बाद उन्होंने आगे बढ़ने का हुकुम दिया तो शेरा ने जीप को आगे बढ़ा दिया। शेरा के इशारे पर जीप में दो चार आदमी भी बैठ गए थे जिनके हाथों में बंदूखें थीं।

अभी वो जीप में बैठे हाथी दरवाज़े के पास ही पहुंचे थे कि सामने से मुंशी चंद्रकांत अपने बेटे रघुवीर के साथ तेज़ क़दमों से आता नज़र आया। उन दोनों के पीछे गांव के कुछ लोग भी थे।

"मालिक, ये क्या गज़ब हो गया?" मुंशी दादा ठाकुर को देखते ही मानो हाहाकार कर उठा____"दुश्मनों ने मझले ठाकुर और हमारे होने वाले युवराज को.....।"
"जीप में बैठिए मुंशी जी।" दादा ठाकुर ने सपाट लहजे में कहा_____"और रघुवीर तुम इसी वक्त भिवाड़ी जाओ और वहां पर ठाकुर अर्जुन सिंह को हमारा संदेशा दो कि जितना जल्दी हो सके वो अपने आदमियों के साथ हमारे पास आएं।"

"जो हुकुम दादा ठाकुर।" रघुवीर ने अदब से हाथ जोड़ कर कहा और पलट कर चला गया। उसके जाते ही जीप आगे बढ़ चली।

पूरे गांव में ये ख़बर जंगल की आग की तरह फैलती चली गई कि हवेली के ठाकुरों के साथ किसी ने बहुत बुरा किया है। हवेली और दादा ठाकुर के चाहने वाले भागते हुए हवेली की तरफ ही आ रहे जिन्हें रास्ते में ही दादा ठाकुर ने रोक लिया। दादा ठाकुर को देख कर गांव के आए हुए लोग बुरी तरह बिलख बिलख कर रोने लगे थे। दादा ठाकुर ने उन्हें किसी तरह शांत किया और कहा कि सब अपने अपने घर जाएं। जिस किसी ने भी ये सब किया है उसे मौत से कम सज़ा हर्गिज़ नहीं दी जाएगी। दादा ठाकुर ने गांव के कुछ भरोसेमंद लोगों को हवेली जा कर वहां पर सुरक्षा करने के लिए कहा और बाकियों को घर जाने को कहा मगर वो लोग वापस घर जाने को तैयार ना हुए। सबका कहना था कि वो उनके साथ ही रहेंगे। असल में उन्हें डर था कि दुश्मन कहीं दादा ठाकुर पर हमला न करे इस लिए वो अपने देवता की रक्षा करना चाहते थे।


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चंदनपुर जाने वाले रास्ते के एक तरफ जंगल था तो दूसरी तरफ पथरीली ज़मीन। कच्ची सड़क के किनारे किनारे लगभग दो किलो मीटर तक नदी चल रही थी। ये नदी आस पास के कई गावों से हो कर गुज़रती थी और इसी नदी के द्वारा किसान लोग खेतों में सिंचाई भी करते थे। हालाकि गांव के जो थोड़ा बहुत संपन्न थे उन लोगों ने अपने खेतों पर ट्यूब बेल लगवा रखा था, ये अलग बात है कि बिजली के ज़्यादा न रहने पर उन्हें ट्यूब बेल से सिंचाई करने का ज़्यादा अवसर नहीं मिल पाता था।

दादा ठाकुर का काफ़िला इसी जगह पर आ कर रुका। एक तरफ जंगल और दूसरी तरफ नदी और नदी के उस पार पथरीली बंज़र ज़मीन। दूर दूर तक कोई गांव नज़र नहीं आता था। हालाकि नदी के उस पार की ज़मीन कुछ सरकार की थी और कुछ दूसरे गांव के ठाकुरों की किंतु ज़मीन से कोई उपज न होने के चलते इस तरफ आना जाना कम ही होता था। दुश्मनों ने अपने शिकार का शिकार करने के लिए बिल्कुल सही जगह का चुनाव किया था।

जीप के रुकते ही दादा ठाकुर नीचे उतरे। मन में आंधियां सी चल रहीं थी और दिल में अथाह पीड़ा भी हो रही थी किंतु किसी तरह खुद को सम्हाले वो उस तरफ चल पड़े जहां पर लाशें पड़ी हुईं थी। सड़क के किनारे जंगल की तरफ क़रीब दस लाशें पड़ी थीं। कुछ लाशें सड़क के दूसरी तरफ नदी के किनारे पर भी पड़ीं थी। कुछ दूरी पर सड़क पर ही दो जीपें खड़ी थीं। जीप के आस पास तीन लोग मरे पड़े थे जबकि जीप के पीछे तरफ जो दो लोग लहू लुहान हालत में अचेत से पड़े थे उन पर नज़र पड़ते ही दादा ठाकुर के क़दम लड़खड़ा गए। न चाहते हुए भी उनकी आंखों से आंसू छलक पड़े।

दादा ठाकुर ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि उन्हें एक दिन इतना बुरा और इतना भयानक दिन भी देखना पड़ जाएगा। बोझिल क़दमों के साथ वो उन दोनों लोगों के पास पहुंचे। जीप के दाहिने पहिए के पास जगताप लहू लुहान पड़ा था जबकि बाएं पहिए से क़रीब दो क़दम की दूरी पर अभिनव पड़ा था। अपने छोटे भाई और अपने बड़े बेटे को इस हालत में देख कर दादा ठाकुर चाह कर भी खुद को सम्हाला न सके। यूं लगा जैसे घुटनें टूट गए हों और वो ज़मीन पर घुटनों के बल जा गिरे। जी किया कि दोनों के लहू लुहान जिस्मों को अपने कलेजे से लगा कर इतना ज़ोर से रोएं कि उनके रुदन से आसमान का कलेजा भी दहल जाए।

"इसके लिए तो इजाज़त नहीं दी थी हमने।" जगताप के सिर को थाम कर दादा ठाकुर ने भारी गले से कहा_____"फिर क्यों हमारी इजाज़त के बिना हमें अकेला छोड़ गए तुम?"

दादा ठाकुर की आंखों से आंसू बह रहे थे और उन्हें ये सब कहते हुए रोता देख बाकी सब भी रोने लगे थे। पास ही खड़ा मुंशी चंद्रकांत भी रो रहा था। उससे जब न रहा गया तो उसने पीछे से दादा ठाकुर को सम्हाल लिया।

"खुद को सम्हालिए मालिक।" मुंशी दुखी भाव से बिलखते हुए बोला____"आप ही हिम्मत हार जाएंगे तो बाकी सबका क्या होगा?"

"सही कह रहे हो तुम।" दादा ठाकुर ने अजीब भाव से कहा____"हमें हिम्मत नहीं हारना चाहिए। हमें तो अपने दिल पर पत्थर रख कर आगे बढ़ना चाहिए। जिस किसी ने भी ये किया है उसे ऐसी मौत देनी चाहिए कि ऊपर बैठे फरिश्तों का भी कलेजा दहल जाए।"

वातावरण में कुछ लोगों की आवाज़ों का शोर हुआ तो सबका ध्यान शोर की तरफ गया। गांव के लोग भागते हुए इस तरफ ही आ रहे थे। कुछ जीपें और कुछ मोटर साईकिल भी आती हुई दिख रहीं थी। दादा ठाकुर ने खुद को किसी तरह सम्हाला और फिर जगताप को छोड़ अपने बेटे की तरफ बढ़े।

अभिनव के जिस्म के दो हिस्सों में गोली लगी थी। एक गोली सीने में तो दूसरी पेट के बाएं तरफ। ज़ाहिर था बचना मुश्किल था। जिस्म एकदम से ठंडा पड़ गया था उसका। अपने बेटे को बेजान पड़ा देख दादा ठाकुर की आंखों से एक बार फिर आंसू बह चले। आंखों के सामने अभिनव का हंसता मुस्कुराता हुआ चेहरा घूम गया और साथ ही वो सब भी जो अब तक हुआ था।

"ये कैसा दिन दिखा दिया बेटे?" फिर वो अभिनव के चेहरे पर हाथ फेरते हुए करुण भाव से बोल पड़े____"अच्छा होता कि तुम्हें इस हालत में देखने से पहले ऊपर वाला हमें मौत दे देता। अपने कंधे में अब तुम्हारा बोझ कैसे उठा सकेंगे हम? हवेली में तुम्हारी मां को क्या जवाब देंगे हम और......और उसे क्या जवाब देंगे जो हर बात से बेख़बर चंदनपुर में है? नहीं नहीं, हम में किसी को भी जवाब देने की हिम्मत नही है।"

दादा ठाकुर जाने क्या क्या कहते हुए रो पड़े। माहौल इतना भयावह और गमगीन हो गया था कि किसी में भी दादा ठाकुर को सम्हाले की कूवत नहीं रही। कुछ ही देर में लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा। वातावरण में चीखों पुकार मच गया। गांव से सिर्फ मर्द लोग ही नहीं आए थे बल्कि उनमें औरतें भी थीं जो ये सब देख कर बुरी तरह रो रहीं थी। दूसरे गांव से जीपों में दादा ठाकुर के चाहने वाले आए थे जो खुद भी ठाकुर थे और दादा ठाकुर की ही तरह संपन्न थे। उन लोगों ने दादा ठाकुर को सम्हाला और इस हादसे के लिए उनसे जो हो सकेगा करने का वादा किया।

"य....ये ज़िंदा हैं मालिक।" अचानक ही फिज़ा में कोई चिल्लाया तो सबके सब तेज़ी से पलटे। सबकी नज़रें मुंशी चंद्रकांत पर जा कर ठहर गईं जो जगताप के पास बैठा था। दादा ठाकुर के बेजान से जिस्म में मानों एकदम से नई शक्ति का संचार हुआ और वो भागते हुए उसके पास पहुंचे।

"क्या सच कह रहे हैं मुंशी जी?" दादा ठाकुर ने व्याकुल भाव से किंतु खुशी ज़ाहिर करते हुए पूछा।
"हां मालिक।" मुंशी ने बड़े जोशीले भाव से कहा_____"मझले ठोकर का शरीर वैसा ठंडा नहीं है जैसे बेजान जिस्म ठंडा पड़ जाता है। इनकी धड़कनें भी चल रही हैं।"

मुंशी की बात ने मानों सबके बीच एक अलग ही माहौल पैदा कर दिया। दादा ठाकुर ने झपट कर जगताप के दाहिने हाथ की नब्ज़ पकड़ ली और साथ ही अपना दूसरा हाथ उसके सीने पर रख दिया। कुछ देर वो चुप रहे और फिर एकदम से उनके चेहरे पर चमक आ गई।

"मुंशी जी ने सही कहा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने पास ही खड़े एक व्यक्ति की तरफ देख कर खुशी से कहा_____"हमारा भाई जगताप ज़िंदा है। इसे गोली ज़रूर लगी हैं लेकिन हमारा जगताप जिंदा है।" कहने के साथ ही वो शेरा की तरफ पलटे_____"फ़ौरन जीप ले कर आओ शेरा। इसे फ़ौरन शहर ले जाना होगा।"

शेरा में भी जैसे नई जान आ गई थी। वो भाग कर गया और जीप को पास ले आया। दादा ठाकुर ने खुद जगताप को दोनों हाथों से उठाया और उसे जीप में बैठा दिया। जगताप को दो गोलियां लगीं थी। एक जांघ में तो दूसरी पेट के दाईं तरफ। खून काफी बह गया था लेकिन सांसें अभी भी बाकी थी उसमें जोकि किसी चमत्कार से कम नहीं था। ज़ख्मों से खून अभी भी बह रहा था इस लिए दादा ठाकुर ने अपना गमछा लगा दिया था ज़ख्म पर।

"ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह नाम के आदमी ने कहा_____"हम भी आपके साथ शहर चलेंगे। दुश्मन का कोई भरोसा नहीं है इस लिए हम आपको अकेले कहीं जाने नहीं दे सकते।"

दादा ठाकुर ने उसकी बात पर सहमति जताई। जैसे ही जीप आगे बढ़ी तभी वहां पर पुलिस की लाल बत्ती लगी हुई दो जीपें आ कर रुकीं। फ़ौरन ही जीपों से पुलिस के अधिकारी बाहर निकले। समय क्योंकि ज़्यादा नही था इस लिए दादा ठाकुर उन्हें मामले के बारे में थोड़ा बहुत बता कर शहर की तरफ निकल लिए। इधर बाकी की कार्यवाही पुलिस की निगरानी में होने लगी।


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दादा ठाकुर की जीप पूरे वेग से शहर की तरफ दौड़ी जा रही थी। जीप की कमान शेरा के हाथ में थी, जबकि अर्जुन सिंह उसके बगल में बंदूक लिए बैठा था। जीप की पिछली सीट पर दादा ठाकुर बैठे थे। अपने भाई जगताप को उन्होंने अपनी गोंद में ले रखा था और बार बार पुकार कर उसे होश में लाने का प्रयास कर रहे थे। एक तरफ जहां उन्हें अपने बेटे को खो देने का असहनीय दुख था तो वहीं दूसरी तरफ अपने भाई के ज़िंदा होने की खुशी भी थी। ये अलग बात है कि ये खुशी जगताप के होश में न आने से प्रतिपल फीकी पड़ती जा रही थी। वो बार बार शेरा को और तेज़ जीप चलाने को भी कहते जा रहे थे, जबकि उन्हें भी ये एहसास था कि कच्ची सड़क पर जीप पहले से ही ज़रूरत से ज़्यादा तेज़ चल रही थी।

अर्जुन सिंह बार बार पलट कर दादा ठाकुर को धीरज दे रहा था। अचानक दादा ठाकुर पूरी शक्ति से चीख पड़े। ये उनकी चीख का ही असर था कि शेरा ने ज़ोर से जीप के ब्रेक पैडल पर अपना पांव जमा दिया जिससे जीप तेज़ आवाज़ करते हुए रुकती चली गई। दादा ठाकुर की इस भयानक चीख से अर्जुन सिंह भी बुरी तरह चौंक पड़ा था। जीप के रुकते ही उसने और शेरा ने एकसाथ पलट कर पीछे देखा। दादा ठाकुर अपने छोटे भाई जगताप को अपने सीने से लगाए रोए जा रहे थे।

"क्या हुआ ठाकुर साहब?" अर्जुन सिंह समझ तो गया लेकिन फिर भी पूछे बगैर न रह सका।
"हमारे बेटे की तरह ये भी हमें छोड़ कर चला गया अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने करुण भाव से आंसू बहाते हुए कहा____"इसे भी हमारे बेटे की तरह हम पर तरस नहीं आया कि अब हम कैसे इन दोनों के बिना जी पाएंगे?"

"धीरज से काम लीजिए ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने अधीर भाव से कहा_____"आप जैसे इंसान को इस तरह विलाप करना शोभा नहीं देता।"
"क्यों? क्यों शोभा नहीं देता अर्जुन सिंह?" दादा ठाकुर जैसे चीख ही पड़े_____"क्या हम इंसान नहीं हैं या फिर हमारे सीने में धड़कता हुआ दिल नहीं है? क्या तुम्हें एहसास नहीं है कि इस वक्त हम किस हालत में हैं?"

"मुझे हर बात का बखूबी एहसास है ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"मैं अच्छी तरह समझता हूं कि इस वक्त आप बहुत ही ज़्यादा दुखी हैं और यकीन मानिए आपकी तरह मैं भी इस सबसे दुखी हूं लेकिन इसके बावजूद हमें इस असहनीय दुख को जज़्ब कर के बड़े धैर्य के साथ आगे के बारे में सोचना होगा। जो हो गया वो किसी के दुखी होने से या विलाप करने से ठीक नहीं हो जाएगा। इस लिए आपको धीरज से काम लेना होगा और बहुत ही समझदारी से इसके आगे क्या करना है सोचना होगा।"

"कहना आसान है अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर ने दुखी और हताश भाव से कहा____"लेकिन अमल करना बहुत मुश्किल है। एक झटके में हमने अपने जिगर के टुकड़ों को खो दिया है। आख़िर कैसे हम इस दुख को हजम कर जाएं? अब तो ये सोच कर ही हमारी रूह कांपी जा रही है कि हवेली में सबसे क्या कहेंगे और जब इस बारे में उन्हें पता चलेगा तो क्या होगा? नहीं नहीं अर्जुन सिंह, हम उस सबको ना तो देख सकेंगे और ना ही सह पाएंगे। जी करता है अभी इसी वक्त ये ज़मीन फट जाए और हम उसमें समा जाएं।"

"मैं आपकी मनोदशा को बखूबी समझता हूं ठाकुर साहब।" अर्जुन सिंह ने कहा____"लेकिन किसी न किसी तरह हर चीज़ का सामना तो करना ही पड़ेगा और सबको सम्हालना भी पड़ेगा। दूसरी सबसे ज़रूरी बात ये भी सोचनी होगी कि जिसने भी ये सब किया है उसके साथ क्या करना है।"

"अब तो नर संघार होगा अर्जुन सिंह।" दादा ठाकुर के हलक से एकाएक गुर्राहट निकली____"अभी तक हम चुप थे लेकिन अब हमारे दुश्मन हमारा वो रूप देखेंगे जिसकी उन्होंने कभी कल्पना भी न की होगी। एक एक को अपनी जान दे कर इस सबकी कीमत चुकानी होगी।"

कहने के साथ ही दादा ठाकुर ने शेरा को वापस चलने का हुकुम दिया। इस वक्त उनके चेहरे पर बड़े ही खूंखार भाव नज़र आ रहे थे। दादा ठाकुर को अपने जलाल पर आया देख अर्जुन सिंह पहले तो सहम सा गया लेकिन फिर राहत की सांस ली। जीप वापस हवेली की तरफ चल पड़ी थी। वातावरण में एक अजीब सी सनसनी जैसे माहौल का आभास होने लगा था। ऊपर वाला ही जाने कि आने वाले समय में अब क्या होने वाला था?


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Ab to bs dekhana ye h jab vaibhav ko pata chalta h to wo kya karega.....
 

Game888

Hum hai rahi pyar ke
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दोस्तो, कहानी का अगला अध्याय - 62 पोस्ट कर दिया है। आशा है आप सभी को पसंद आएगा। आप सबकी समीक्षा अथवा विचारों का इंतज़ार रहेगा... :love:
Zabardast update bro
 
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