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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,531
34,458
219
Lagta hai kaafi secret maamla hai :D
Btw chhupana hi tha to aisa kahne ki kya zarurat thi :roll:
:hehe: टेंशन देने मेँ मजा आता है मुझे
Ghar walo ne charo taraf se gher liya hai apan ko. Ladki wadki dekh ke baat pakki kar li hai unhone. November/December me ya fir next year gale me ghanti baandh di jaayegi. Freedom ke din khatam hone wale hain...zindagi barbaad hone wali hai :verysad:
बर्बाद :shocked: ............... शादी के बाद तो ज़िंदगी शुरू ही होती है............ शादी से पहले ज़िंदगी नहीं टाइमपास करना होता है ..............
क्योंकि इस बंधन के अलावा बाकी सब बंधन समय के साथ छूट जाते हैं......... ये उम्र का बंधन है जीवन भर चलता है ......... ज़िंदगी के साथ भी और ज़िंदगी के बाद भी
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं...
🪔🪔🪔

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Last edited:

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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अध्याय - 61
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अब तक....

मैंने वीरेंद्र और वीर को उस आदमी के इलाज़ की जिम्मेदारी सौंपी। वो दोनों ये सब सुन कर बुरी तरह हैरान तो थे लेकिन ये देख कर खुश भी हो गए थे कि मैंने उस आदमी के साथ आगे कुछ भी बुरा नहीं किया। ख़ैर मेरे कहने पर वीर ने अभी उस आदमी को सहारा दे कर उठाया ही था कि तभी मेरे साथ आए मेरे आदमी भी आ गए। उन्होंने बताया कि वो दूर दूर तक देख आए हैं लेकिन इनके अलावा और कोई भी नज़र नहीं आया। मैंने अपने दो आदमियों को वीर भैया के साथ भेजा और ये भी कहा कि अब से उस आदमी के साथ ही रहें और उस पर नज़र रखे रहें।

अब आगे....


पिछली रात दादा ठाकुर के लिए ऐसी थी जो बड़ी मुश्किल से गुज़री थी। पिछली रात कई बातें ऐसी हुई थीं जिसके चलते वो सो नहीं सके थे। एक तो साहूकार हरि शंकर की बेटी रूपा का रात में अपनी भौजाई के साथ उनसे मिलने के लिए हवेली आना दूसरे उसके द्वारा ये बताया जाना कि उनके बेटे वैभव की जान को ख़तरा है। इसके अलावा शेरा का उस काले नकाबपोश को पकड़ लाना। शेरा ने काले नकाबपोश का हाथ तोड़ दिया था जिसकी वजह से वो दर्द से तड़प रहा था। दादा ठाकुर ने सुबह उसे दवा देने का काम जान बूझ कर जगताप को सौंपा था। अपने शक को यकीन में बदलने का उनके पास फिलहाल यही एक उपाय था और इसी लिए वो देर रात तक जागते भी रहे थे किंतु जगताप द्वारा ऐसा कुछ भी होता हुआ उन्हें नहीं दिखा जिससे उनका शक यकीन में बदल जाए। सुबह नकाबपोश उन्हें सही सलामत ही मिला था। जगताप ने उनके हुकुम के अनुसार काले नकाबपोश को दर्द की दवा ला कर दी थी। उसके बाद जगताप की तरफ से किसी भी तरह की कोई कार्यवाही नहीं हुई और इस बात ने दादा ठाकुर के मन में कई सारे सवाल खड़े कर दिए थे।

दूसरी तरफ अपने बेटे वैभव की सुरक्षा का जिम्मा शेरा को दे कर भी दादा ठाकुर सुकून से सो न सके थे। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा वो कौन था जो उनके बेटों के साथ साथ उनके पूरे खानदान को ख़त्म कर देने पर अमादा था? उन्हें गांव के साहूकारों पर शक तो था लेकिन सिर्फ शक के आधार पर वो कुछ नहीं कर सकते थे। ख़ैर, वो इस बात के लिए ऊपर वाले का बार बार धन्यवाद कर रहे थे कि समय रहते उन्हें साहूकार की बेटी रूपा द्वारा ऐसी ख़बर मिल गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गए थे कि साहूकार की लड़की ने इतनी बड़ी बात बताने के लिए वक्त और हालात को भी नहीं देखा था बल्कि अपने घर वालों को बिना बताए सीधा हवेली आ गई थी। रूपा के बारे में ये सब सोच सोच कर दादा ठाकुर के मन में जहां बड़े सुखद ख़्याल उभर आते थे वहीं वो ये भी सोच रहे थे कि हरि शंकर की लड़की ने उनके ऊपर कितना बड़ा उपकार किया है।

बड़ी मुश्किल से उन्हें नींद आई थी किंतु जल्दी ही सुबह हो जाने से उन्हें बिस्तर छोड़ देना पड़ा था। हालाकि सुबह होने का तो उन्हें बड़ी शिद्दत से इंतज़ार था और साथ ही इस बात का भी कि चंदनपुर में उनके बेटे के साथ क्या होगा? क्या शेरा उनके बेटे को सुरक्षित रखने में कामयाब हो पाएगा? क्या शेरा उन लोगों को पकड़ पाएगा जो उनके बेटे को जान से मारने के इरादे से वहां पहुंचेंगे? दादा ठाकुर के अंदर हर गुज़रते पल के साथ एक बेचैनी सी बढ़ती जा रही थी। उनका जी कर रहा था कि वो खुद ही उड़ कर चंदनपुर पहुंच जाएं और वहां जो कुछ भी होने वाला हो उसका वो खुद ही सामना करें।

सुबह सबने नाश्ता किया। नाश्ते के बाद दादा ठाकुर अपने छोटे भाई जगताप और बड़े बेटे अभिनव के साथ हवेली के बाहर बने उस कमरे में एक बार फिर पहुंचे जहां पर काला नकाबपोश बंद था। कमरे का दरवाज़ा खुला तो बाहर की रोशनी में काला नकाबपोश अजीब ही हालत में नज़र आया। तीनों ये देख कर बुरी तरह चौंके कि काला नकाबपोश कमरे के एक कोने में बेजान सा पड़ा हुआ है। उसके जिस्म से निकलने वाला खून कमरे के फर्श पर फैला हुआ था। फर्श पर वो एक तरफ को करवट लिए हुए था किंतु अवस्था उकडू बैठने जैसी थी। दोनों घुटने जुड़े हुए थे और उसके पेट की तरफ खिंचे से लग रहे थे। उसके दोनों हाथ जो बंधे हुए थे वो उसके पेट की तरफ सख़्ती से भिंचे हुए प्रतीत हो रहे थे। उसकी ये हालत देख पहले तो वो तीनों बुरी तरह चौंके ही थे किंतु जल्दी ही दादा ठाकुर को होश आया।

"ये सब क्या है जगताप?" दादा ठाकुर ने व्याकुल भाव से किंतु ज़रा ऊंची आवाज़ में पूछा____"इसकी हालत और कमरे में फैला ये ढेर सारा खून देख कर ऐसा लग रहा है जैसे अब ये ज़िंदा नहीं है।"

"य...ये कैसे हो सकता है पिता जी?" अभिनव ने हैरत से आंखें फाड़ कर दादा ठाकुर की तरफ देखा____"अभी सुबह तो ये अच्छा भला था, फिर थोड़ी ही देर में ये सब कैसे हो गया?"

"बड़े आश्चर्य की बात है भैया।" जगताप ने काले नकाबपोश की तरफ देखते हुए चकित भाव से कहा____"आपके हुकुम पर मैंने इसे दर्द दूर करने की दवा दी थी। इसने मेरी आंखो के सामने दवा को खाया था। उसके बाद मैं यहां से चला गया था। समझ में नहीं आ रहा कि ये सब कैसे हो गया?"

कहने के साथ ही जगताप आगे बढ़ा और काले नकाबपोश के जिस्म को अपने हाथ के ज़ोर पर अपनी तरफ घुमाया तो काला नकाबपोश सीधा हो गया। उसके सीधा होते ही तीनों की नज़र उसके पेट वाले हिस्से पर पड़ी। किसी चीज़ को उसने दोनों हाथों से बड़ी सख़्ती से पकड़ रखा था और उसे अपने पेट पर पूरी ताक़त से दबा रखा था। उसके पेट के उसी हिस्से से इतना सारा खून निकला था जोकि अब भी गीला था और ज़ख्म से हल्का हल्का रिस रहा था।

दादा ठाकुर और अभिनव उसके क़रीब पहुंचे और ध्यान से देखना शुरू किया। काले नकाबपोश के हाथों में जो चीज़ थी वो लोहे का कोई चपटा सा टुकड़ा था। जगताप ने उसकी मुट्ठियों को ज़ोर दे कर खोला तो लोहे का वो चपटा सा टुकड़ा स्पष्ट दिखने लगा। वो लोहे का टुकड़ा कुछ और नहीं बल्कि खुरपी थी जिसकी मूठ नहीं थी। उसे देख कर दादा ठाकुर को समझने में ज़रा भी देर ना लगी कि काले नकाबपोश ने सुबह उन सबके जाने के बाद अपनी जान ले ली है।

काला नकाबपोश इस तरह अपनी जान ले लेगा इसकी तीनों में से किसी को भी उम्मीद नहीं थी। खुरपी में मौजूद उस लोहे के टुकड़े से काले नकाबपोश ने अपनी जान ले ली थी। उन लोगों ने इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया था कि खुरपी में लगने वाला लोहे का कोई टुकड़ा इस कमरे में कहीं पड़ा हुआ हो सकता है। ख़ैर अब जो होना था वो तो हो ही चुका था। दादा ठाकुर के हुकुम पर फ़ौरन ही कुछ आदमियों ने काले नकाबपोश की लाश को कमरे से निकाला और उसे ठिकाने लगाने चले गए।

"हमने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि ऐसा कुछ हो जाएगा।" बैठक में अपने सिंहासन पर बैठे दादा ठाकुर ने गंभीरता से कहा____"हमें इस कमबख़्त पर भरोसा ही नहीं करना चाहिए था बल्कि सुबह ही उसके हलक में हाथ डाल कर सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान लेना चाहिए था।"

"इस सबके लिए आप खुद को दोष क्यों दे रहे हैं भैया?" जगताप ने कहा____"सुबह जिस तरह उसने हमारा साथ देने के लिए कहा था उससे हम पूरी तरह यही समझ गए थे कि वो हमें उस सफ़ेदपोश के बारे में कुछ न कुछ ऐसा ज़रूर बताइएगा जिससे हम उस तक पहुंच सकेंगे। हम में से कोई भला ये कैसे सोच सकता था कि उसका वो सब कहना महज हमें मूर्ख बनाना हो सकता है?"

"बड़ी हैरत की बात है जगताप कि सफ़ेदपोश के इशारे पर काम करने वाला खुद की जान लेने के लिए एक पल का भी वक्त लगा कर ये नहीं सोचता कि जान कितनी कीमती होती है।" दादा ठाकुर ने कहा____"और उस जान को इस तरह अपने ही हाथों नहीं ले लेना चाहिए।"

"मजबूरी इंसान से बहुत कुछ करा देती है भैया।" जगताप ने गहरी सांस ले कर कहा____"ख़ैर जो भी हुआ ठीक नहीं हुआ है। काले नकाबपोश के रूप में हमारे हाथ एक ऐसा शख़्स लग गया था जिसके द्वारा हम बड़ी आसानी से उस सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते थे। उसके बाद ज़ाहिर है उसका ये खेल भी यहीं पर समाप्त हो जाता लेकिन काले नकाबपोश की इस तरह से हो गई मौत के बाद एक बार फिर से हम निहत्थे से हो गए हैं।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"किन्तु ये भी सच है कि नकाबपोश से हमें कोई लाभ नहीं मिल सकता था। कहने का मतलब ये कि उसे सफ़ेदपोश के बारे में जितना पता था उतना उसने हमें बता दिया था। यकीनन इसके अलावा उसे उस सफ़ेदपोश के बारे में कुछ नहीं पता था लेकिन हैरत की बात ये है कि उसने खुद की जान ले ली जबकि उसे ऐसा नहीं करना चाहिए था। खुद की इस तरह से जान ले लेना बिल्कुल भी समझ नहीं आया।"

दादा ठाकुर की इस बात पर दोनों कुछ न बोले, बल्कि किसी सोच में डूबे नज़र आए। कुछ पलों की ख़ामोशी के बाद दादा ठाकुर ने ही कहा_____"ख़ैर, अब हालात ऐसे हो गए हैं कि किसी भी पल कुछ भी हो सकता है। हम मानते हैं कि काले नकाबपोश की मौत हो जाने से फिलहाल उस सफ़ेदपोश तक पहुंचना हमारे लिए आसान नहीं रहा किंतु हमारे दुश्मन ने कुछ ऐसा किया है जिसके चलते हम बहुत जल्द उस तक पहुंचेंगे।"

"य...ये क्या कह रहे हैं आप?" जगताप के साथ साथ अभिनव के भी चेहरे पर हैरानी के भाव उभरे, उधर जगताप ने कहा_____"ऐसा क्या कर दिया है हमारे दुश्मन ने?"

"पिछली रात तुम दोनों के जाने के बाद हम भी सोने के लिए अपने कक्ष में चले गए थे।" दादा ठोकर ने अपनी प्रभावशाली आवाज़ में कहा____"कुछ समय बाद हमें एक दरबान ने बताया कि हमसे कोई मिलने आया है। हम जब बाहर आए तो देखा हमारा एक गुप्तचर अंधेरे में खड़ा था। उसने हमें कुछ ऐसा बताया जिसे सुन कर हम एकदम से सन्न रह गए थे।"

"उसने ऐसा क्या बताया आपको।" जगताप ने हैरत से पूछा।
"यही कि पिछली शाम कुछ लोगों ने वैभव को जान से मारने के लिए एक रणनीति बनाई है।" दादा ठाकुर ने कहा_____"उन लोगों की नीति के अनुसार उनके कुछ महारथी आज सुबह सूर्य के उगने से पहले ही चंदनपुर के लिए रवाना हो जाएंगे और फिर वहां पर वैभव को जान से मारने के काम पर लग जाएंगे।"

"क....क्या???" अभिनव और जगताप बुरी तरह उछल पड़े थे_____"ये आप क्या कह रहे हैं पिता जी? मेरे छोटे भाई की जान लेने के लिए दुश्मन चंदनपुर जा रहे हैं और मैं यहां आराम से बैठा हूं। लानत है मुझ जैसे भाई पर। आपने मुझे पहले क्यों नहीं बताया इस बारे में?"

"शांत हो जाओ।" दादा ठाकुर ने बड़े धैर्य के साथ कहा____"फ़िक्र करने की कोई बता नहीं है। वैभव अगर तुम्हारा छोटा भाई है तो वो हमारा बेटा भी है। तुमसे कहीं ज़्यादा हमें उसकी फ़िक्र है। हमें जब इस बारे में हमारे उस गुप्तचर से पता चला तो हमने उसी वक्त अपने कुछ खास आदमियों को चंदनपुर भेज दिया था ताकि वो लोग वहां पर वैभव की रक्षा कर सकें। हमारा ख़्याल है कि अब तक वहां पर बहुत कुछ हो चुका होगा।"

"इतनी बड़ी बात हो गई और रात आपने मुझे इस बारे में बताया भी नहीं भैया?" जगताप ने शिकायती लहजे में कहा____"क्या आप मुझे मेरे बेटों की करतूतों की वजह से बेगाना समझने लगे हैं?"

"ऐसी कोई बात नहीं है जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"रात ज़्यादा हो गई थी इस लिए हमने इस सबके लिए तुम में से किसी को भी तकलीफ़ देना उचित नहीं समझा था।"

"इसमें तकलीफ़ जैसी कौन सी बात थी भैया?" जगताप ने कहा____"आप अच्छी तरह जानते हैं कि वैभव को मैं अपने बेटे की तरह स्नेह और प्यार करता हूं। उसकी जान को दुश्मनों से ख़तरा हो और मुझे इसका पता न हो तो लानत है मुझ पर। मैं अभी चंदनपुर जा रहा हूं और अपने भतीजे पर बुरी नजर डालने वालों को मिट्टी में मिलाता हूं।"

"इस सबकी ज़रूरत नहीं है जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा_____"हमें यकीन है कि शेरा ने वहां पर सब कुछ सम्हाल लिया होगा। हमने उसे हुकुम दिया था कि वो उन लोगों को ज़िंदा पकड़ने की ही कोशिश करें ताकि उनके द्वारा हमें पता चल सके कि हमारे बेटे को जान से मारने के लिए उन्हें चंदनपुर किसने भेजा था?"

"हम ख़ामोशी से शेरा के वापस आने का इंतज़ार नहीं कर सकते पिता जी।" अभिनव ने कहा____"और ना ही इस यकीन के साथ चुप बैठे रह सकते हैं कि शेरा ने सब कुछ सम्हाल लिया होगा। आप भी जानते हैं कि हमारा दुश्मन कितना शातिर और कितना ख़तरनाक है। सिर्फ शेरा के भरोसे में हमें यहां पर ख़ामोशी से नहीं बैठे रहना चाहिए।"

"अभिनव बिलकुल ठीक कह रहा है भैया।" जगताप ने कहा_____"वैभव हमारा बेटा है। दुश्मन उसे ख़त्म करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है इस लिए हम सिर्फ शेरा के भरोसे नहीं रह सकते। उसकी सुरक्षा के लिए और दुश्मन से मुकाबला करने के लिए हमें खुद वहां जाना होगा।"

"वैसे तो हमें ऐसा ज़रूरी नहीं लगता।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन अगर तुम दोनों को शेरा की काबिलियत पर भरोस नहीं है तो बेशक अपने मन की कर सकते हो।"

दादा ठाकुर की बात सुनते ही जगताप और अभिनव अपनी अपनी कुर्सी से उठ कर खड़े हो गए। जगताप ने अभिनव से कहा कि वो अंदर से रायफल ले कर आए तब तक वो कुछ खास आदमियों को साथ चलने के लिए कहता है। कुछ ही देर में अभिनव हाथों में बंदूक और रायफल लिए हवेली से बाहर आया। बाहर दादा ठाकुर और जगताप जीप के पास ही खड़े थे। दादा ठाकुर का हुकुम मिलते ही जगताप और अभिनव जीप में बैठ गए। जीप में चार हट्टे कट्टे आदमी भी हाथों में बंदूकें लिए बैठ गए। उसके बाद जीप हाथी दरवाज़े की तरफ तेज़ी से बढ़ती चली गई।

✮✮✮✮

अनुराधा घर पर अकेली थी। उसकी मां सरोज और भाई अनूप घर के पीछे कुएं में नहाने गए हुए थे। पिछली रात अनुराधा को तेज़ बुखार आ गया था जिसकी वजह से उसका चेहरा इस वक्त एकदम से मुरझाया हुआ दिख रहा था। रात सरोज ने उसे बुखार की दवा दी थी जिसके चलते उसे थोड़ा आराम मिला था। इस वक्त वो चारपाई पर पड़ी हुई थी। उसका पूरा बदन पके हुए फोड़े की तरह दुख रहा था। सरोज ने उसे कहा था कि वो फिलहाल आराम करे, घर के काम धाम वो खुद कर लेगी।

चारपाई पर लेटी वो वैभव के ही बारे में सोच रही थी। जब से वैभव वो सब बोल कर उसके घर से गया था तब से उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। यूं तो ये अभी कुछ ही दिनों की बात हुई थी लेकिन उसे ऐसा प्रतीत होता था जैसे जाने कितनी सदियां गुज़र गईं हैं वैभव को देखे हुए। उसे वैभव की बहुत याद आ रही थी। वैभव का उसको छेड़ना याद आ रहा था। उसे याद आ रहा था कि कैसे वो वैभव के आने से खुश हो जाती थी और जब वो उसे ठकुराईन कहता था तो कैसे वो शर्म से सिमट जाती थी। ये सब उसे पहले भी अकेले में याद आता था लेकिन तब इस सबके याद आने से उसे तकलीफ़ नहीं होती थी बल्कि अकेले में ही वो इस सबको याद कर के शर्म से मुस्कुराने लगती थी और फिर खुद से ही कहती_____'मैं ठकुराईन नहीं हूं समझ गए ना आप?'

पिछले कुछ दिनों से उसके लिए मानों सब कुछ बदल गया था। अपनी छोटी सी दुनिया में खुश रहने वाली लड़की को अब दुनिया के किसी भी हिस्से में किसी खुशी का आभास नहीं हो रहा था। ऐसा लगता था जैसे ये दुनिया संसार महज एक कब्रिस्तान है जहां पर गहरी ख़ामोशी के सिवा अब कुछ नहीं है। दूर दूर तक कोई जीव नहीं है और अगर कोई है तो सिर्फ वो...एकदम अकेली। अनुराधा लाख कोशिश करती थी कि उसके ज़हन में ऐसे ख़्याल न आएं लेकिन ना चाहते हुए भी उसके मन में ऐसे बेरहम ख़्याल आ ही जाते थे और फिर वो उसे रफ़्ता रफ़्ता दुख देते हुए रुलाने लगते थे। इस वक्त भी उसकी आंखें इन्हीं ख़्यालों के चलते नम थीं।

खाली पड़े घर में गहरी ख़ामोशी विद्यमान थी। उससे जब किसी भी तरह से न रहा गया तो वो किसी तरह उठी और फिर चारपाई से उतर कर आंगन की तरफ बढ़ी। सुबह की मंद मंद चलती ठंडी हवा ने उसके चेहरे को स्पर्श किया तो उसे अजीब सा एहसास हुआ। उसके मन में आज कल चौबीसों घंटे द्वंद सा चलता रहता था। हर तरफ उसकी निगाहें वैभव को ही खोजती रहती थीं। हर जगह पर उसे वैभव के होने की उम्मीद होती थी और जब वो उसे नज़र न आता तो एकदम से उसके दिल में एक ऐसी टीस उठती जो उसकी आत्मा तक को दर्द से थर्रा देती थी।

आंगन में खड़े हो कर उसने चारो तरफ निगाह घुमाई। कमज़ोरी की वजह से उससे ज्यादा देर तक खड़े नहीं रहा जा रहा था। सहसा उसके मन में कुछ आया तो वो पलटी। आंगन में जहां पर नर्दा था वहीं पर स्टील का एक लोटा रखा हुआ था। उसने आगे बढ़ कर उस लोटे को उठाया और बाल्टी से लोटे में पानी लिया। अपने सरक गए दुपट्टे को सही करते हुए वो उस दरवाज़े की तरफ बढ़ी जो घर के पीछे की तरफ जाने के लिए था। दरवाज़े को पार करके उसने अपनी मां को आवाज़ दे कर कहा कि वो दिशा मैदान के लिए जा रही है। जवाब में उसकी मां ने कहा ठीक है बेटी सम्हल के जाना।

वापस आंगन में आ कर वो बाहर जाने वाले दरवाज़े की तरफ धीरे धीरे बढ़ चली। कुछ ही देर में वो घर से बाहर आ गई। आस पास नज़र घुमाने के बाद उसकी नज़र उस रास्ते में जम गई जो वैभव के नए बन रहे मकान की तरफ जाता था। उसने धड़कते दिल से एक बार फिर से आस पास देखा और फिर आगे बढ़ चली। वो नहीं जानती थी कि वो इस रास्ते पर क्यों आगे बढ़ी जा रही है? ऐसा लगता था जैसे किसी के वशीभूत हो कर उसके क़दम अपने आप ही उस रास्ते पर पड़ते चले जा रहे थे।

पूरे रास्ते उसके मन में वैभव के ही ख़्याल मानों तरह तरह के ताने बाने बुन रहे थे। वो वैभव के ख़यालों में इतना खो गई थी कि उसे ना तो कमज़ोरी का एहसास हो रहा था और ना ही किसी और बात का। कुछ ही समय में वो वैभव के नए बन रहे मकान के क़रीब पहुंच गई। वहां पर हो रहे हल्के शोर शराबे से उसकी तंद्रा टूटी तो वो एकदम से चौंकी। चकित भाव से उसने चारो तरफ देखा।

"अरे! अनुराधा बहन तुम यहां?" अनुराधा पर नज़र पड़ते ही भुवन जल्दी से उसके पास आ कर बोला____"क्या बात है बहन? कोई काम था क्या?"
"न..न...नहीं...वो म...मैं।" अनुराधा को हड़बड़ाहट में कुछ समझ में ही न आया कि वो क्या कहे____"वो मैं तो....बस ऐसे ही देखने आई थी....यहां।"

"देखने??" भुवन को कुछ समझ न आया____"यहां भला क्या देखने आई हो बहन? यहां देखने लायक अभी कुछ नहीं है लेकिन हां कुछ समय बाद ज़रूर हो जाएगा क्योंकि छोटे ठाकुर का ये मकान पूरी तरह से बन कर तैयार हो जाएगा। उसके बाद इस बंज़र जगह पर भी सब कुछ बहुत अच्छा लगने लगेगा। "

"छ...छोटे...ठाकुर?? अनुराधा की धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं____"क..क्या व...वो यहीं हैं?"
"नहीं बहन।" भुवन ने कहा____"वो तो यहां नहीं हैं? किसी काम से वो अपनी भाभी जी के साथ चंदनपुर गए हुए हैं।"

"क..कब तक अ..आएंगे...वो?" अनुराधा को भुवन से ये सब पूछने पर बहुत शर्म आ रही थी। उसे ये सोच कर भी शर्म आ रही थी कि उसके ऐसे सवाल करने पर भुवन उसके बारे में क्या सोचेगा।

"कुछ बता कर तो नहीं गए बहन।" भुवन ने बड़ी शालीनता से कहा____"लेकिन मेरा ख़्याल है कि उन्हें वापस आने में शायद कुछ समय तो लग ही जाएगा। अगर ऐसा न होता तो वो मुझे तुम्हारे घर की जिम्मेदारी न देते। ख़ैर ये बताओ, घर में सब ठीक तो है न?"

"ह...हां सब ठीक ही है भैया।" अनुराधा ने अनमने भाव से कहा____"हम ग़रीब लोग हैं, जिस हालत में होते हैं उसी में खुश रहने की कोशिश करते रहते हैं।"

"हां ये तो है बहन।" भुवन ने सिर हिलाते हुए कहा____"वैसे तुम्हारा चेहरा देख कर लगता है कि तुम इस वक्त ठीक नहीं हो। क्या तुम्हारी तबियत सही नहीं है बहन? देखो अगर ऐसा है तो फ़िक्र मत करो। मैं अभी वैद जी को तुम्हारे घर पर ले कर आता हूं।"

"न...नहीं नहीं भैया।" अनुराधा एकदम से हड़बड़ा गई, बोली_____"इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। मैं बिल्कुल ठीक हूं।"
"छोटे ठाकुर ने मुझे तुम्हारी और तुम्हारे घर की जिम्मेदारी सौंपी है बहन।" भुवन ने गंभीर भाव से कहा____"इस लिए मैं अपनी जान दे कर भी तुम लोगों का ध्यान रखूंगा। वैसे भी मैंने तुम्हें बहन कहा है तो भाई होने के नाते ये मेरा फर्ज़ भी है कि मैं अपनी बहन का हर तरह से ख़्याल रखूं। तुम्हारा चेहरा देख कर साफ पता चल रहा है कि तुम्हारी तबियत ठीक नहीं है। इस लिए तुम घर जाओ, मैं जल्द से जल्द वैद जी को ले कर तुम्हारे घर आता हूं।"

"मैंने कहा न भैया कि मैं एकदम ठीक हूं।" अनुराधा ने चिंतित और परेशान भाव से कहा____"फिर क्यों ज़िद कर रहे हैं?"
"अगर तुम भी मुझे अपना बड़ा भाई मानती हो तो मेरी बात मान जाओ अनुराधा।" भुवन ने उसी गंभीरता से कहा____"मुझे मेरा फर्ज़ निभाने दो। अगर छोटे ठाकुर को पता चला कि मैंने तुम लोगों की जिम्मेदारी ठीक से नही निभाई है तो बहुत बुरा हो जाएगा।"

अनुराधा को पहली बार एहसास हुआ कि उसने यहां आ कर कितनी बड़ी ग़लती कर दी है। उसे इस बात से परेशानी नहीं थी कि भुवन वैद को ले कर उसके घर आएगा और उसका इलाज़ करवाएगा बल्कि ये सोच कर वो परेशान हो गई थी कि मां को पता चला तो वो क्या सोचेगी उसके बारे में? उसकी मां उससे पूछेगी कि घर में वैद कहां से आया और भुवन नाम का ये आदमी क्यों उसका इलाज़ करवा रहा है? सवाल जब शुरू होंगे तो इस संबंध में और भी सवाल उठ खड़े हों जाएंगे जिनका जवाब दे पाना उसके लिए मुश्किल हो जाएगा। यही सब सोच कर अनुराधा एकदम से चिंतित हो उठी थी। भुवन से वो खुल कर कह भी नहीं सकती थी कि वो ये सब क्यों नहीं चाहती?

भुवन कोई मंदबुद्धि नहीं था जो ये भी न समझता कि अनुराधा यहां आ कर वैभव के बारे में क्यों पूछ रही थी और खुद वैभव ने क्यों उसके घर वालों की उसे जिम्मेदारी सौंपी थी। वो अच्छी तरह इन सब बातों को समझता था लेकिन वो इस सबके लिए कुछ नहीं कर सकता था। ख़ैर उसने ज़ोर दे कर अनुराधा को वापस घर भेजा और खुद मोटर साईकिल में बैठ कर वैद को लेने चला गया।

क़रीब पंद्रह मिनट के अंदर ही भुवन वैद को ले कर अनुराधा के घर पहुंच गया। अनुराधा जो कि पहले से ही परेशान और घबराई हुई थी वो भुवन और वैद को आया देख और भी घबरा गई। उसे ऐसा लगा जैसे अभी ज़मीन फटे और वो उसमें समा जाए लेकिन फूटी किस्मत ऐसा भी न हुआ। सरोज नहा कर आने के बाद खाना बनाने में लग गई थी लेकिन आंगन में अचानक से मर्दों की आवाज़ सुन कर वो फ़ौरन ही रसोई से बाहर आ गई थी। बाहर दो अजनबियों को देख उसे कुछ समझ ना आया।

"काकी ये वैद जी हैं।" सरोज को देख भुवन ने बड़े सम्मान से कहा_____"और मैं भुवन हूं। असल में छोटे ठाकुर किसी काम से बाहर गए हुए हैं इस लिए उन्होंने मुझे इस घर की और इस घर में रहने वालों की ज़िम्मेदारी सौंपी है। मैं आप लोगों का हाल चाल देखने के लिए यहां आता रहता हूं। अभी कुछ देर पहले ही मैं यहां आया था। अनुराधा बहन को देख कर मैं समझ गया कि इसकी तबियत ठीक नहीं है इस लिए मैं वैद को ले कर आया हूं।"

"अच्छा अच्छा।" सरोज को जैसे सब कुछ समझ आ गया इस लिए फिर सामान्य भाव से बोली____"कल रात अनु को बुखार आ गया था बेटा। मेरे पास दवा रखी हुई थी तो रात में इसे दे दिया था। ख़ैर अच्छा किया तुमने जो वैद जी को ले आए।"

भुवन ने जिस तरह से बातें की थी उससे अनुराधा के अंदर की घबराहट दूर हो गई थी। हालाकि वो ये सोच कर चकित भी थी कि भुवन ने उसकी मां को ये क्यों नहीं बताया कि वो वैभव के मकान के पास गई थी। ख़ैर सब कुछ ठीक ठाक देख उसे बड़ी राहत महसूस हुई। उसके बाद वैद ने उसका इलाज़ शुरू किया। कुछ देर वो उसके हाथ की नब्ज़ देखता रहा उसके बाद अपने थैले से कुछ दवाएं निकाल कर सरोज को पकड़ा दिया। दवा के बारे में निर्देश देने के बाद वैद भुवन के साथ बाहर चला गया। सरोज ये सोच कर खुश थी कि वैभव ने अपने न रहने पर भी उनका ख़्याल रखने के लिए कितना इंतजाम किया हुआ है। ये सब सोचते हुए वो खुशी खुशी रसोई में खाना बनाने चली गई।

अनुराधा एक बार फिर से न चाहते हुए भी वैभव के ख़्यालों में खोती चली गई। एक बार फिर से उसके ज़हन में अपनी वो बातें गूंजने लगीं जो उसने वैभव से कहीं थी। वो सोचने लगी कि क्या सच में उसकी बातें इतनी कड़वी थीं कि वैभव को चोट पहुंचा गईं और वो उससे वो सब कह कर चला गया था? क्या सच में उसने बिना सोचे समझे ऐसा कुछ कह दिया है जिसके चलते अब वैभव कभी उसके घर नहीं आएगा? अनुराधा इस बारे में जितना सोचती उतना ही उसे अपने किए पर पछतावा हो रहा था। वो ये सोच कर दुखी हो रही थी कि अब वैभव उसके घर नहीं आएगा और ना ही वो कभी उसकी शक्ल देख सकेगी। अनुराधा के अंदर एक हूक सी उठी और उसकी आंखों से आंसू बह चले। आंखें बंद कर के उसने वैभव को याद किया और उससे माफ़ी मांगने लगी।


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