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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
भाई दिवाली का तोहफ़ा तो शानदार दिया है ...

बेहतरीन..!

शेरा तो सचमें शेर निकला!

ज़रूर रूपा ने अपने घर के किसी सदस्य की आवाज़ पहचान ली है

पर वो ये खबर वैभव तक कैसे पहुँचायेगी?

बहुत इंतज़ार कराया भाई अपने...
पर हमने भी आस नहीं छोड़ी थी !
Shera, dada thakur ka gulam hai aur unke aadmiyo me se sabse khaas hai. Nakabposh ban kar vaibhav ki suraksha kar raha tha ab tak. Well dekho kya karta hai wo...

Thanks bhai
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
लाजवाब धमाकेदार वापसी किए है मित्र। बहुत इंतज़ार था इस कहानी का शुरू होने का। इतना लंबा अंतराल के बाद आकार इतना धमाकेदार अनुच्छेद देना आपने आप मे बहुत बड़ा बात है। अगला अनुच्छेद के प्रतीक्षा मे रहेंगे। धन्यबाद।
Thanks bhai
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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अध्याय - 58
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

अब आगे....

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी गहरी सोच में डूबी हुई थी। बार बार उसके कानों में बाग़ में मौजूद उस पहले साए की बातें गूंज उठती थीं जिसकी वजह से वो गहन सोच के साथ साथ गहन चिंता में भी पड़ गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि जिस आवाज़ को उसने सुना था वो उसका कोई अपना था। वो अच्छी तरह जान गई थी कि वो आवाज़ किसकी थी लेकिन उसने जो कुछ कहा था उस पर उसे यकीन नहीं हो रहा था। उसे तो अब यही लगता था कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते अच्छे हो गए हैं और इस वजह से वो वैभव के सपने फिर से देखने लगी थी। वो वैभव से बेहद प्रेम करती थी और इसका सबूत यही था कि उसने अपना सब कुछ वैभव को सौंप दिया था।

रूपा को पता चल गया था कि उसके प्रियतम वैभव की जान को ख़तरा है। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो अपने प्रियतम की जान को कैसे महफूज़ करे? उसका बस चलता तो वो इसी वक्त चंदनपुर जा कर वैभव को इस बारे में सब कुछ बता देती और उससे कहती कि वो अपनी सुरक्षा का हर तरह से ख़्याल करे। सहसा उसे वैभव की वो बातें याद आईं जो उसने पिछली मुलाक़ात में उससे मंदिर में कही थीं। उस वक्त रूपा को उसकी बातों पर ज़रा भी यकीन नहीं हुआ था और यही वजह थी कि उसने कभी ये जानने और समझने की कोशिश नहीं की थी कि उसके घर वाले संबंध सुधार लेने के बाद भी दादा ठाकुर और उनके परिवार के बारे में कैसे ख़्याल रखते हैं? आज जब उसने बाग़ में वो सब सुना तो जैसे उसके पैरों तले से ज़मीन ही खिसक गई थी। वो सोचने पर मजबूर हो गई कि क्या सच में उसके घर वाले कुत्ते की दुम ही हैं जो कभी सीधे नहीं हो सकते?

जब से दोनों खानदान के बीच संबंधों में सुधार हुआ था तब से वो वैभव के साथ अपने जीवन के हसीन सपने देखने लगी थी। वो जानती थी कि उसकी तरह वैभव के दिल में उसके प्रति प्रेम के जज़्बात नहीं हैं लेकिन वो ये भी जानती थी कि बाकी लड़कियों की तरह वैभव उसके बारे में नहीं सोचता। अगर वो उसे प्रेम नहीं करता है तो उसे बाकी लड़कियों की तरह अपनी हवस मिटाने का साधन भी नहीं समझता है। कहने का मतलब ये कि कहीं न कहीं वैभव के दिल में उसके प्रति एक सम्मान की भावना ज़रूर है।

अभी रूपा ये सब सोच ही रही थी कि सहसा उसे किसी के आने का आभास हुआ। वो फ़ौरन ही पलंग पर सीधा लेट गई और अपने चेहरे के भावों को छुपाने का प्रयास करने लगी। कुछ ही पलों में उसके कमरे में उसकी एकमात्र भाभी कुमुद दाखिल हुई। कुमुद उसके ताऊ मणि शंकर की बहू और चंद्रभान की बीवी थी।

"अब कैसी तबियत है मेरी प्यारी ननदरानी की?" कुमुद ने पलंग के किनारे बैठ कर उससे मुस्कुरा कर पूछा____"चूर्ण का कोई फ़ायदा हुआ कि नहीं?"
"अभी तो एक बार दिशा मैदान हो के आई हूं भौजी।" रूपा ने कहा____"देखती हूं अब क्या समझ में आता है।"

"फ़िक्र मत करो।" कुमुद ने रूपा के हाथ को अपने हाथ में ले कर कहा____"चूर्ण का ज़रूर फ़ायदा होगा और मुझे यकीन है अब तुम्हें शौच के लिए नहीं जाना पड़ेगा।"

"यही बेहतर होगा भौजी।" रूपा ने कहा____"वरना रात में आपको भी मेरे साथ तकलीफ़ उठानी पड़ जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो आपका मज़ा भी ख़राब हो जाएगा।"
"कोई बात नहीं।" रूपा के कहने का मतलब समझते ही कुमुद ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अपनी प्यारी ननदरानी के लिए आज के मज़े की कुर्बानी दे दूंगी मैं। तुम्हारे भैया कहीं भागे थोड़े न जा रहे हैं।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा के होठों पर मुस्कान उभर आई। इस घर में कुमुद का सबसे ज़्यादा रूपा से ही गहरा दोस्ताना था। दोनों ननद भाभी कम और सहेलियां ज़्यादा थीं। अपनी हर बात एक दूसरे से साझा करतीं थीं दोनों। कुमुद को रूपा और वैभव के संबंधों का पहले शक हुआ था और फिर जब उसने ज़ोर दे कर रूपा से इस बारे में पूछा तो रूपा ने कबूल कर लिया था कि हां वो वैभव से प्रेम करती है और वो अपना सब कुछ वैभव को सौंप चुकी है। कुमुद को ये जान कर बेहद आश्चर्य हुआ था लेकिन वो उसके प्रेम भाव को भी बखूबी समझती थी। एक अच्छी सहेली की तरह वो उसे सलाह भी देती थी कि वैभव जैसे लड़के से प्रेम करना तो ठीक है लेकिन वो उस लड़के के सपने न देखे क्योंकि उसके घर वाले कभी भी उसका रिश्ता उस लड़के से नहीं करना चाहेंगे। दूर दूर तक के लोग जानते हैं कि दादा ठाकुर का छोटा बेटा कैसे चरित्र का लड़का है। कुमुद के समझाने पर रूपा को अक्सर थोड़ा तकलीफ़ होती थी। वो जानती थी कि कुमुद ग़लत नहीं कहती थी, वो खुद भी वैभव के चरित्र से परिचित थी लेकिन अब इसका क्या किया जाए कि इसके बावजूद वो वैभव से प्रेम करती थी और उसी के सपने देखने पर मजबूर थी।

"क्या हुआ?" रूपा को कहीं खोया हुआ देख कुमुद ने कहा____"क्या फिर से उस लड़के के ख़्यालों में खो गई?"
"मुझे आपसे एक सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने सहसा गंभीर भाव से कहा____"कृपया मना मत कीजिएगा।"

"बात क्या है रूपा?" कुमुद ने उसकी गंभीरता को भांपते हुए पूछा____"कोई परेशानी है क्या?"
"हां भौजी।" रूपा एकदम से उठ कर बैठ गई, फिर गंभीर भाव से बोली____"बहुत बड़ी परेशानी और चिंता की बात हो गई है। इसी लिए तो कह रही हूं कि मुझे आपसे एक सहायता चाहिए।"

"आख़िर बात क्या है?" कुमुद के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं____"ऐसी क्या बात हो गई है जिसकी वजह से तुम मुझसे सहायता मांग रही हो? मुझे सब कुछ बताओ रूपा। आख़िर ऐसा क्या हो गया है जिसके चलते अचानक से तुम इतना चिंतित हो गई हो?"

"पहले मेरी क़सम खाइए भौजी।" रूपा ने झट से कुमुद का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रख लिया, फिर बोली____"पहले मेरी क़सम खाइए कि मैं आपको जो कुछ भी बताऊंगी उसके बारे में आप इस घर में किसी को कुछ भी नहीं बताएंगी।"

"तुम मेरी ननद ही नहीं बल्कि सहेली भी हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"तुम अच्छी तरह जानती हो कि हम कभी भी एक दूसरे के राज़ किसी से नहीं बताते। फिर क़सम देने की क्या ज़रूरत है तुम्हें? क्या तुम्हें अपनी भौजी पर यकीन नहीं है?"

"खुद से भी ज़्यादा यकीन है भौजी।" रूपा ने बेचैन भाव से कहा____"लेकिन फिर भी आप एक बार मेरी क़सम खा लीजिए। मेरी बात को अन्यथा मत लीजिए भौजी।"

"अच्छा ठीक है।" कुमुद ने कहा____"मैं अपनी सबसे प्यारी ननद और सबसे प्यारी सहेली की क़सम खा कर कहती हूं कि तुम मुझे जो कुछ भी बताओगी उसके बारे में मैं कभी भी किसी से ज़िक्र नहीं करूंगी। तुम्हारा हर राज़ मेरे सीने में मरते दम तक दफ़न रहेगा। अब बताओ कि आख़िर बात क्या है?"

"वैभव की जान को ख़तरा है भौजी।" रूपा ने दुखी भाव से कहा____"अभी कुछ देर पहले जब मैं दिशा मैदान के लिए गई थी तब मैंने बाग़ में कुछ लोगों से इस बारे में सुना था।"

"य...ये क्या कह रही हो तुम?" कुमुद ने हैरत से आंखें फैला कर कहा____"भला बाग़ में ऐसे वो कौन लोग थे जो वैभव के बारे में ऐसी बातें कर रहे थे?"
"आप सुनेंगी तो आपको यकीन नहीं होगा भौजी।" रूपा ने आहत भाव से कहा____"मुझे ख़ुद अभी तक यकीन नहीं हो रहा है।"

"पर वो लोग थे कौन रूपा?" कुमुद ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा____"जिन्होंने वैभव के बारे में ऐसा कुछ कहा जिसे सुन कर तुम ये सब कह रही हो। मुझे पूरी बात बताओ।"

रूपा ने कुमुद को सब कुछ बता दिया। जिसे सुन कर कुमुद भी गहरे ख़्यालों में खोई हुई नज़र आने लगी। उधर सब कुछ बताने के बाद रूपा ने कहा_____"आपको पता है वैभव को ख़त्म करने के लिए कहने वाला कौन था? वो व्यक्ति कोई और नहीं आपके ही ससुर थे यानि मेरे ताऊ जी। मैंने अच्छी तरह उनकी आवाज़ को सुना था भौजी। वो ताऊ जी ही थे।"

कुमुद को रूपा के मुख से अपने ससुर के बारे में ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा। एकदम से उससे कुछ कहते न बन पड़ा था। चेहरे पर ऐसे भाव उभर आए थे जैसे वो इस बात को यकीन करने की कोशिश कर रही हो।

"बाकी दो लोग कौन थे मैं नहीं जानती भौजी।" कुमुद को गहरी सोच में डूबा देख रूपा ने कहा____"उन दोनों की आवाज़ मेरे लिए बिल्कुल ही अंजानी थी लेकिन ताऊ जी की आवाज़ को पहचानने में मुझसे कोई ग़लती नहीं हुई है।"

"ऐसा कैसे हो सकता है रूपा?" कुमुद ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"अब तो हवेली वालों से हमारे संबंध अच्छे हो गए हैं ना? ससुर जी ने तो खुद ही अच्छे संबंध बनाने की पहल की थी तो फिर वो खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हैं?"

"यही तो समझ में नहीं आ रहा भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"अगर ताऊ जी ने खुद पहल कर के हवेली वालों से अपने संबंध सुधारे थे तो अब वो ऐसा क्यों कर रहे हैं? इसका तो यही मतलब हो सकता है ना कि संबंध सुधारने का उन्होंने सिर्फ़ दिखावा किया था जबकि आज भी वो हवेली वालों को अपना दुश्मन समझते हैं। यही बात कुछ समय पहले वैभव ने भी मुझसे कही थी भौजी।"

"क्या मतलब?" कुमुद ने चौंकते हुए पूछा____"क्या कहा था वैभव ने?"
"उसे भी यही लगता है कि हमारे घर वालों ने उससे संबंध सुधार लेने का सिर्फ़ दिखावा किया है जबकि ऐसा करने के पीछे यकीनन हमारी कोई चाल है।" रूपा ने कहा____"वैभव ने मुझसे कहा भी था कि अगर वो ग़लत कह रहा है तो मैं खुद इस बारे में पता कर सकती हूं। उस दिन मुझे उसकी बातों पर यकीन नहीं हुआ था इस लिए मैंने कभी इसके बारे में पता लगाने का नहीं सोचा था लेकिन अभी शाम को जो कुछ मैंने सुना उससे मैं सोचने पर मजबूर हो गई हूं।"

"अगर सच यही है।" कुमुद ने गंभीरता से कहा____"तो यकीनन ये बहुत ही गंभीर बात है रूपा। मुझे समझ नहीं आ रहा कि ससुर जी ऐसा क्यों कर रहे हैं? आख़िर हवेली वालों से उनकी क्या दुश्मनी है जिसकी वजह से वो ऐसा कर रहे हैं? इस घर में मुझे आए हुए डेढ़ दो साल हो गए हैं लेकिन मैंने कभी किसी के मुख से दोनों खानदानों के बीच की दुश्मनी का असल कारण नहीं सुना। ये ज़रूर सुनती आई हूं कि तुम्हारे भाई लोगों का उस लड़के से कभी न कभी लड़ाई झगड़ा होता ही रहता है। जब संबंध अच्छे बने तो ससुर जी खुद ही उस लड़के को हमारे घर ले कर आए थे। मैंने सुना था कि वो घर बुला कर उस लड़के का सम्मान करना चाहते थे। उस दिन जब वैभव आया था तो मैंने देखा था कि वो सबसे कितने अच्छे तरीके से मिल रहा था और अपने से बड़ों के पैर छू कर आशीर्वाद ले रहा था। मेरी गुड़िया को तो वो अपने साथ हवेली ही ले गया था। अब सोचने वाली बात है कि अगर ससुर जी खुद उस लड़के को सम्मान देने के लिए यहां ले कर आए थे तो अब उसी लड़के को ख़त्म करने का कैसे सोच सकते हैं?"

"ज़ाहिर है वैभव को अपने घर ला कर उसे सम्मान देना महज दिखावा ही था।" रूपा ने कहा____"जबकि उनके मन में तो वैभव के प्रति नफ़रत की ही भावना थी। ये भी निश्चित ही समझिए कि अगर ताऊजी ऐसी मानसिकता रखते हैं तो ऐसी ही मानसिकता उनके सभी भाई भी रखते ही होंगे। भला वो अपने बड़े भाई साहब के खिलाफ़ कैसे जा सकते हैं? कहने का मतलब ये कि वो सब हवेली वालों से नफ़रत करते हैं और उन सबका एक ही मकसद होगा____'हवेली के हर सदस्य का खात्मा कर देना।"

रूपा की बातें सुन कर कुमुद हैरत से देखती रह गई उसे। उसके ज़हन में विचारों की आंधियां सी चलने लगीं थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके घर वालों का सच ऐसा भी हो सकता है।

"मुझे आपकी सहायता चाहिए भौजी।" रूपा ने चिंतित भाव से कहा____"मुझे किसी भी तरह वैभव को इस संकट से बचाना है।"
"पर तुम कर भी क्या सकोगी रूपा?" कुमुद ने बेचैन भाव से कहा____"तुमने बताया कि वैभव अपनी भाभी को ले कर चंदनपुर गया हुआ है तो तुम भला कैसे उसे इस संकट से बचाओगी? क्या तुम रातों रात चंदनपुर जाने का सोच रही हो?"

"नहीं भौजी।" रूपा ने कहा____"चंदनपुर तो मैं किसी भी कीमत पर नहीं जा सकती क्योंकि ये मेरे लिए संभव ही नहीं हो सकेगा लेकिन हवेली तो जा ही सकती हूं।"

"ह...हवेली??" कुमुद ने हैरानी से रूपा को देखा।
"हां भौजी।" रूपा ने कहा____"आपकी सहायता से मैं हवेली ज़रूर जा सकती हूं और वहां पर दादा ठाकुर को इस बारे में सब कुछ बता सकती हूं। वो ज़रूर वैभव को इस संकट से बचाने के लिए कुछ न कुछ कर लेंगे।"

"बात तो तुम्हारी ठीक है।" कुमुद ने सोचने वाले भाव से कहा____"लेकिन तुम हवेली कैसे जा पाओगी? सबसे पहले तो तुम्हारा इस घर से बाहर निकलना ही मुश्किल है और अगर मान लो किसी तरह हवेली पहुंच भी गई तो वहां रात के इस वक्त कैसे हवेली में प्रवेश कर पाओगी?"

"मेरे पास एक उपाय है भौजी।" रूपा के चेहरे पर सहसा चमक उभर आई थी, बोली____"घर में सबको पता है कि मेरा पेट ख़राब है जिसके चलते मुझे बार बार दिशा मैदान के लिए जाना पड़ता है। तो उपाय ये है कि मैं आपके साथ दिशा मैदान जाने के लिए घर से बाहर जाऊंगी। उसके बाद बाहर से सीधा हवेली चली जाऊंगी। वैसे भी घर में कोई ये कल्पना ही नहीं कर सकता कि मैं ऐसे किसी काम के लिए सबकी चोरी से हवेली जा सकती हूं।"

"वाह! रूपा क्या मस्त उपाय खोजा है तुमने।" कुमुद के चेहरे पर खुशी की चमक उभर आई, अतः मुस्कुराते हुए बोली____"आज मैं पूरी तरह से मान गई कि तुम सच में वैभव से बेहद प्रेम करती हो वरना अपने ही परिवार के खिलाफ़ जा कर ऐसी बात हवेली में जा कर बताने का कभी न सोचती।"

"मुझे इस बात को बताने की कोई खुशी नहीं है भौजी।" रूपा ने उदास भाव से कहा____"क्योंकि हवेली में दादा ठाकुर को जब मेरे द्वारा इस बात का पता चलेगा तो ज़ाहिर है कि उसके बाद मेरे अपने घर वाले भी संकट में घिर जाएंगे। वैभव की जान बचाने के चक्कर में मैं अपनों को ही संकट में डाल दूंगी और ये बात सोच कर ही मुझे अपने आपसे घृणा हो रही है।"

"मैं मानती हूं कि ऐसा करने से तुम अपने ही घर वालों को संकट में डाल दोगी।" कुमुद ने कहा____"लेकिन इसका भी एक सटीक उपाय है मेरी प्यारी ननदरानी।"
"क्या सच में?" रूपा के मुरझाए चेहरे पर सहसा खुशी की चमक फिर से उभर आई____"क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मेरे ऐसा करने के बाद भी मेरे घर वालों पर कोई संकट न आए?"

"हां रूपा।" कुमुद ने कहा____"उपाय ये है कि तुम दादा ठाकुर से इस बारे में बताने से पहले ये आश्वासन ले लो कि वो हमारे घर वालों पर किसी भी तरह का कोई संकट नहीं आने देंगे। अगर वो आश्वासन दे देते हैं तो ज़ाहिर है कि तुम्हारे द्वारा ये सब बताने पर भी वो हमारे घर वालों के लिए ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"और अगर वो न माने तो?" रूपा ने संदिग्ध भाव से पूछा____"अगर वो गुस्से में आ कर सच में हमारे घर वालों के लिए ख़तरा बन गए तो?"

"नहीं, ऐसा नहीं होगा।" कुमुद ने मानों पूरे विश्वास के साथ कहा____"डेढ़ दो सालों में इतना तो मैं भी जान गई हूं कि दादा ठाकुर किस तरह के इंसान हैं। मुझे यकीन है कि जब तुम सब कुछ बताने के बाद हमारे परिवार पर संकट न आने के लिए उनसे कहोगी तो वो तुम्हें निराश नहीं करेंगे। आख़िर वो ये कैसे भूल जाएंगे कि तुमने अपने परिवार के खिलाफ़ जा कर उनके बेटे के जीवन को बचाने का प्रयास किया है? मुझे पूरा यकीन है रूपा कि वो हमारे लिए कोई भी ख़तरा नहीं बनेंगे।"

"अगर आपको उन पर यकीन है।" रूपा ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"तो फिर हम दोनों दिशा मैदान के लिए चलते हैं। अब एक पल का भी देर करना ठीक नहीं है।"

"रुको, एक उपाय और है रूपा।" कुमुद ने कुछ सोचते हुए कहा____"एक ऐसा उपाय जिससे किसी बात की चिंता करने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी।"
"क्या मतलब??" रूपा के माथे पर उलझन के भाव उभर____"भला इस तरह का क्या उपाय हो सकता है भौजी?"

"बड़ा सीधा सा उपाय है मेरी प्यारी लाडो।" कुमुद ने मुस्कुराते हुए कहा____"और वो ये कि हम दादा ठाकुर को ये नहीं बताएंगे कि वैभव को ख़त्म करने के लिए किसने कहा है। कहने का मतलब ये कि तुम उनसे सिर्फ यही बताना कि तुमने हमारे बाग में कुछ लोगों को ऐसी बातें करते सुना था जिसमें वो लोग चंदनपुर जा कर वैभव को जान से मारने को कह रहे थे। दादा ठाकुर अगर ये पूछेंगे कि तुम उस वक्त बाग में क्या कर रही थी तो बोल देना कि तुम्हारा पेट ख़राब था इस लिए तुम वहां पर दिशा मैदान के लिए गई थी और उसी समय तुमने ये सब सुना था।"

"ये उपाय तो सच में कमाल का है भौजी।" रूपा के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आए____"यानि मुझे ताऊ जी के बारे में दादा ठाकुर से बताने की ज़रूरत ही नहीं है और जब ताऊ जी का ज़िक्र ही नहीं होगा तो दादा ठाकुर से हमारे परिवार को कोई ख़तरा भी नहीं होगा। वाह! भौजी क्या उपाय बताया है आपने।"

"ऐसा करने से एक तरह से हम अपने परिवार वालों के साथ गद्दारी भी नहीं करेंगे रूपा।" कुमुद ने कहा____"और उन्हें दादा ठाकुर के क़हर से भी बचा लेंगे। वैभव से तुम प्रेम करती हो तो उसके लिए ऐसा कर के तुम उसके प्रति अपनी वफ़ा भी साबित कर लोगी। इससे कम से कम तुम्हारे दिलो दिमाग़ में कोई अपराध बोझ तो नहीं रहेगा।"

"सही कहा भौजी।" रूपा एकदम कुमुद के लिपट कर बोली____"आप ने सच में मुझे एक बड़े धर्म संकट से बचा लिया है। आप मेरी सबसे अच्छी भौजी हैं।"
"सिर्फ़ भौजी नहीं मेरी प्यारी ननदरानी।" कुमुद ने प्यार से रूपा की पीठ को सहलाते हुए कहा___"बल्कि तुम्हारी सहेली भी। तुम्हें मैं ननद से ज़्यादा अपनी सहेली मानती हूं।"

"हां मेरी प्यारी सहेली।" रूपा ने हल्के से हंसते हुए कहा____"अब चलिए, हमें जल्द से जल्द ये काम करना है। देर करना ठीक नहीं है।"

रूपा की बात सुन कर कुमुद मुस्कुराई और फिर रूपा के दाएं गाल को प्यार से सहला कर पलंग से उठ गई। उसके बाद उसने रूपा को चलने का इशारा किया और खुद कमरे से बाहर निकल गई। रूपा को ऐसा महसूस हुआ जैसे उसके दिलो दिमाग़ में जो अब तक भारी बोझ पड़ा हुआ था वो पलक झपकते ही गायब हो गया है। हवेली जाने के ख़्याल ने उसे एकदम से रोमांचित सा कर दिया था। आज पहली बार वो हवेली जाने वाली थी और पहली बार वो कोई ऐसा काम करने वाली थी जिसके बारे में उसके घर वाले कल्पना भी नहीं कर सकते थे।

✮✮✮✮

"क्या बात है?" बैठक में बैठे दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से अभिनव को देखते हुए कहा____"उनसे कुछ पता चला है क्या?"

"अभी तो कुछ पता नहीं चला है पिता जी।" अभिनव ने कहा____"हमारे आदमी वैभव के दोनों दोस्तों और जगन पर बराबर नज़र रखे हुए हैं। अभी मैं उनसे ही मिल कर आ रहा हूं। हमारे आदमियों के अनुसार वो तीनों सामान्य दिनों की तरह ही अपने अपने काम में लगे हुए थे। सुबह से अब तक वो लोग अपने अपने घरों से बाहर तो गए थे लेकिन किसी ऐसे आदमी से नहीं मिले जिसे सफ़ेदपोश अथवा काला नकाबपोश कहा जा सके। वैसे भी सफ़ेदपोश और काला नकाबपोश उन लोगों से रात के अंधेरे में ही मिलता है। दिन में शायद इस लिए नहीं मिलता होगा क्योंकि इससे उनका भेद खुल जाने का ख़तरा रहता होगा।"

"मेरा खयाल तो ये है भैया कि हम सीधे उन तीनों को पकड़ लेते हैं।" जगताप ने कहा____"माना कि वो लोग सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश के बारे में कुछ न बता पाएंगे लेकिन इतना तो ज़रूर बता सकते हैं कि उन लोगों ने आख़िर किस वजह से हमारे खिलाफ़ जा कर सफ़ेदपोश से मिल गए और उसके इशारे पर चलने लगे?"

"जगन का तो समझ में आता है चाचा जी कि उसने अपने बड़े भाई की ज़मीन हड़पने के लिए ये सब किया होगा।" अभिनव ने कहा____"लेकिन सुनील और चेतन किस वजह से उस सफेदपोश के सुर में चलने लगे ये सोचने वाली बात है। संभव है कि इसके पीछे उनकी कोई मजबूरी रही होगी लेकिन ये पता करना ज़रूरी है कि दोनों ने सफ़ेदपोश के कहने पर क्या किया है? रही बात उन लोगों को सीधे पकड़ लेने की तो ऐसा करना ख़तरनाक भी हो सकता है क्योंकि अगर वो लोग किसी मजबूरी में सफ़ेदपोश का साथ दे रहे हैं तो ज़ाहिर है कि हमारे द्वारा उन्हें पकड़ लेने से उनकी या उनके परिवार वालों की जान को ख़तरा हो जाएगा।"

"हम अभिनव की बातों से सहमत हैं जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम किसी भी मामले को जानने के लिए किसी निर्दोष की जान को ख़तरे में नहीं डाल सकते। बेशक हमारा उनसे बहुत कुछ जानना ज़रूरी है लेकिन इस तरीके से नहीं कि हमारी किसी ग़लती की वजह से उन पर या उनके परिवार पर संकट आ जाए। जहां अब तक हमने इंतज़ार किया है वहीं थोड़ा इंतज़ार और सही।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर जगताप अभी कुछ बोलने ही वाला था कि तभी एक दरबान अंदर आया और उसने दादा ठाकुर से कहा कि एक आदमी आया है और उनसे शीघ्र मिलना चाहता है। दरबान की बात सुन कर दादा ठाकुर ने कुछ पल सोचा और फिर दरबान से कहा ठीक है उसे अंदर भेज दो। दरबान के जाने के कुछ ही देर बाद जो शख़्स बैठक में आया। उसे देख दादा ठाकुर हल्के से चौंके। आने वाला शख़्स कोई और नहीं बल्कि शेरा था। दादा ठाकुर को समझते देर न लगी कि शेरा को उन्होंने जो काम दिया था उसमें वो कामयाब हो कर ही लौटा है। अगर वो कामयाब न हुआ होता तो वो अपनी शक्ल न दिखाता। दादा ठाकुर इस बात से अंदर ही अंदर खुश हो गए और साथ ही उनकी धड़कनें भी थोड़ा तेज़ हो गईं।

"प्रणाम मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया और फिर जगताप को भी।
"क्या बात है?" दादा ठाकुर ने शेरा की तरफ देखते हुए कहा____"इस वक्त तुम यहां? सब ठीक तो है न?"

"जी मालिक सब ठीक है।" शेरा ने अदब से कहा____"आपको एक ख़बर देने आया हूं। अगर आप मुनासिब समझें तो अर्ज़ करूं?"
"ज़रूरत नहीं है।" दादा ठाकुर कहने के साथ ही एक झटके में अपने सिंहासन से उठे, फिर बोले____"हम जानते हैं तुम क्या कहना चाहते हो। बस ये बताओ कहां हैं वो?"

शेरा ने जवाब देने से पहले बैठक में बैठे अभिनव और जगताप को देखा और फिर कहा____"माफ़ कीजिए मालिक लेकिन एक ही हाथ लगा है। मैं उसे अपने साथ ही ले कर आया हूं।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मन ही मन थोड़ा चौंके और फिर पलट कर बारी बारी से अपने बेटे अभिनव और छोटे भाई जगताप को देखा। उसके बाद कुछ सोचते हुए उन्होंने जगताप से कहा____"एक अच्छी ख़बर है जगताप।"

"कैसी ख़बर भैया?" जगताप ने उलझन भरे भाव से कहा____"और ये शेरा किसके हाथ लगने की बात कर रहा है?"
"हमने शेरा को एक बेहद ही महत्वपूर्ण काम सौंपा था" दादा ठाकुर ने कहा____"हमें ये तो उम्मीद थी कि ये हमारे द्वारा दिए गए काम को यकीनन सफलतापूर्वक अंजाम देगा लेकिन ये उम्मीद नहीं थी कि ये इतना जल्दी अपना काम कर लेगा। ख़ैर बात ये है कि शेरा के हाथ सफ़ेदपोश अथवा काले नकाबपोश में से कोई एक लग गया है और ये उसे अपने साथ ही ले कर आया है।"

"क...क्या??" जगताप से पहले अभिनव आश्चर्य से बोल पड़ा____"मेरा मतलब है कि क्या आप सच कह रहे हैं पिता जी?"
"बिलकुल।" दादा ठाकुर ने ख़ास भाव से कहा____"शेरा ने उनमें से किसी एक को पकड़ लिया है और उसे अपने साथ यहां ले आया है।" कहने के साथ ही दादा ठाकुर शेरा से मुखातिब हुए____"तुमने बहुत अच्छा काम किया है शेरा। तुम हमारी उम्मीद पर बिलकुल खरे उतरे। ख़ैर ये बताओ कि उनमें से कौन तुम्हारे हाथ लगा है?"

"मैं तो सफ़ेदपोश को ही पकड़ने के लिए उसके पीछे गया था मालिक।" शेरा ने कहा___"लेकिन बाग़ में अचानक से वो गायब हो गया। मैंने उसे बहुत खोजा लेकिन उसका कहीं पता नहीं चल सका। उसके बाद मैं काले नकाबपोश को खोजने लगा और आख़िर वो मुझे मिल ही गया। उसको अपने कब्जे में लेने के लिए मुझे उसके साथ काफी ज़ोरदार मुकाबला करना पड़ा जिसका नतीजा ये निकला कि आख़िर में मैंने उसे अपने कब्जे में ले ही लिया।"

"ये तो सच में बड़े आश्चर्य और कमाल की बात हुई भैया।" जगताप ने खुशी से कहा____"शेरा के हाथ उस सफ़ेदपोश का खास आदमी लग गया है। अब हम उसके द्वारा पलक झपकते ही सफ़ेदपोश तक पहुंच सकते हैं। उसके बाद हमें ये जानने में देर नहीं लगेगी कि हमारे साथ इस तरह का खेल खेलने वाला वो सफ़ेदपोश कौन है? बस एक बार वो मेरे हाथ लग जाए उसके बाद तो मैं उसकी वो हालत करूंगा कि दुबारा जन्म लेने से भी इंकार करेगा।"

"बेशक ऐसा ही होगा जगताप।" दादा ठाकुर ने कहा____"लेकिन तब तक हमें पूरे होशो हवास में रहना होगा। ख़ैर तुम शेरा के साथ जाओ और उस काले नकाबपोश को हवेली के किसी कमरे में बंद कर दो। हम सुबह उससे पूछताछ करेंगे।"

"सुबह क्यों भैया?" जगताप ने कहा____"हमें तो अभी उससे पूछताछ करनी चाहिए। उससे सफ़ेदपोश के बारे में सब कुछ जान कर जल्द से जल्द उस सफ़ेदपोश को खोजना चाहिए।"

"इतना बेसब्र मत हो जगताप।" दादा ठाकुर ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"धीरज से काम लो। हम जानते हैं कि तुम जल्द से जल्द हमारे दुश्मन को खोज कर उसको नेस्तनाबूत कर देना चाहते हो लेकिन इतना बेसब्र होना ठीक नहीं है। अब तो वो काला नकाबपोश हमारे हाथ लग ही गया है इस लिए सुबह हम सब उससे तसल्ली से पूछताछ करेंगे।"

"ठीक है भैया।" जगताप ने कहा____"जैसा आपको ठीक लगे।"
"हम तुम्हारे इस काम से बेहद खुश हैं शेरा।" दादा ठाकुर ने शेरा से कहा____"इसका इनाम ज़रूर मिलेगा तुम्हें?"
"माफ़ कीजिए मालिक।" शेरा ने हाथ जोड़ कर कहा____"आपके द्वारा इनाम लेने में मुझे तभी खुशी होगी जब उस सफ़ेदपोश को भी पकड़ कर आपके सामने ले आऊंगा।"

शेरा की बात सुन कर दादा ठाकुर मुस्कुराए और आगे बढ़ कर शेरा के बाएं कंधे पर अपना हाथ रख कर हल्के से दबाया। उसके बाद उन्होंने जगताप को शेरा के साथ जाने को कहा। जगताप और शेरा बैठक से बाहर आए। हवेली के एक तरफ दीवार के सहारे और दो दरबानों की निगरानी में काला नकाबपोश बेहोश पड़ा हुआ था। जगताप के कहने पर शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लाद लिया और फिर वो जगताप के पीछे पीछे हवेली के उत्तर दिशा की तरफ बढ़ता चला गया। जल्दी ही वो हवेली के एक तरफ बने एक सीलनयुक्त कमरे में पहुंच गया।

जगताप के कहने पर शेरा ने उस काले नकाबपोश को उस खाली कमरे में एक तरफ डाल दिया। काले नकाबपोश के चेहरे पर अभी भी काला नक़ाब था जिसे जगताप ने एक झटके से उतार दिया। कमरे में एक तरफ लालटेन का प्रकाश था इस लिए उस प्रकाश में जगताप ने उस आदमी को देखा। काला नकाबपोश उसे इस गांव का नहीं लग रहा था। जगताप की नज़र उसके एक हाथ पर पड़ी जो टूटा हुआ था। उसने पलट कर शेरा की तरफ देखा तो शेरा ने बताया कि मुकाबले में उसी ने उसका हाथ तोड़ा है, तभी तो वो उसके हाथ लगा था। ख़ैर, जगताप और शेरा कमरे से बाहर आ गए। जगताप के कहने पर एक दरबान ने उस कमरे के दरवाज़े की कुंडी बंद कर उसमें ताला लगा दिया।

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TheBlackBlood

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Rekha rani

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Awesome update, rupa vaibhav ke payar ke liye apni bhabhi kumud ke sath dada thakur se milne aane wali hai, apne ghr walo ke khilaf jakr,
Abhi rupa sirf aawaj ke aadhar pr use apni tau ki aawaj samjh rhi hai ye chal bhi ho sakti hai phir se dusmani badkane ki dono priwar me,
Udhr shiva haweli pahuch gya kale nakab posh ko lekr, jaise usne batay abhinav ka choukna kuchh shak ke ghere me aaya ki kala nakab posh pakda gya,
Dada thakur ne use subah tak kamre me band krne ko kha, kahi ye dada thakur ki koi chal to nhi ki wo dekhna chahta ho koi unka dusman haweli me ho wo rat ko kala nakab posh ko bachane ya marne ki kosis krega sur pakada jaye.
Wait for next update
 
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