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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354

TheBlackBlood

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Readers ka aisa thanda response dekh kar bilkul bhi man nahi karta likhne ka....sorry dosto...bekaar me mehnat karne ka koi faayda nahi. Apna yahi keemti wakt agar main apne job par lagaau to shayad meri personal problems solve ho jayengi...

Main ye story yahi par close kar raha hu aur story thread ko close kar ke private kar raha hu. Kabhi time mila to saare update likh kar ek sath post kar duga...Good bye... :ciao:
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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10,527
159
Readers ka aisa thanda response dekh kar bilkul bhi man nahi karta likhne ka....sorry dosto...bekaar me mehnat karne ka koi faayda nahi. Apna yahi keemti wakt agar main apne job par lagaau to shayad meri personal problems solve ho jayengi...

Main ye story yahi par close kar raha hu aur story thread ko close kar ke private kar raha hu. Kabhi time mila to saare update likh kar ek sath post kar duga...Good bye... :ciao:



Shubham Bhai, kuch logo ke liye aap ham regular readers ke sath aisa anyay na karo aap....

Jise kuch nahi bolna wo to waise bhi silent reader hi rahega.......... please re-consider your decision
 

TheBlackBlood

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अध्याय - 57
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

"सही सुना था आपके बारे में।" जमुना ने कहा____"आप तो सच में कमाल के हैं जीजा जी। मन करता है एक बार और आपसे चुदवा लूं लेकिन घर जाना भी ज़रूरी है। अगर देर हो गई तो आफ़त हो जाएगी।"


हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपने बचे हुए कपड़े पहने। जमुना को एक बार और चोदने का मन था मेरा लेकिन उसका घर जाना ज़रूरी था इस लिए उसकी चूचियों को जी भर के मसलने के बाद मैंने उसे जाने दिया। उसके जाने के कुछ देर बाद मैं भी घर की तरफ चल पड़ा। आज काफ़ी समय बाद किसी लड़की को पेलने का मौका मिला था। जमुना को चोदने के बाद मैं काफी खुश था।

अब आगे....


शाम का अंधेरा फ़ैल चुका था। मणि शंकर की बेटी रूपा अपने पुराने आमों के बाग़ में नित्य क्रिया करने के लिए आई हुई थी। बाग़ से क़रीब दो सौ मीटर की दूरी पर ही उसका घर था। बाग़ के किनारे ही वो बैठ गई थी क्योंकि अंदर घने पेड़ों की वजह से अंधेरा ज़्यादा था और उसे अंदर जाने में डर भी लग रहा था। आम तौर पर वो अपनी बाकी बहनों के साथ ही आती थी लेकिन आज उसे कई बार यहां आना पड़ा था और इसकी वजह ये थी कि उसका पेट ख़राब था। उसके एक तरफ खाली खेत थे जिसके पार उसका घर चांद की हल्की रोशनी में नज़र आ रहा था। वो बैठी ही हुई थी कि सहसा उसे कुछ आवाज़ें सुनाई देने लगीं जिससे रूपा की धड़कनें तेज़ हो गईं। उसके अंदर ये सोच कर घबराहट भर गई कि कौन हो सकता है? आवाज़ें लगातार आने लगीं थी। ऐसा लगता था जैसे एक से ज़्यादा लोग ज़मीन पर चल रहे हों। बाग़ की ज़मीन पर क्योंकि पेड़ों के सूखे पत्ते पड़े हुए थे इस लिए चलने से आवाज़ हो रही थी। रूपा ने महसूस किया कि चलने की आवाज़ें उससे थोड़ी ही दूरी पर अचानक से बंद हो गईं हैं।

रूपा जो नित्य क्रिया करने के लिए बैठी हुई थी उसका डर के मारे सब कुछ अपनी जगह पर रुक गया। आवाज़ों से साफ़ था कि कई लोग थे इस लिए रूपा को समझ ना आया कि इस वक्त कौन आया होगा यहां? उसने बड़ी सावधानी से पानी के द्वारा शौच किया और अपनी कच्छी को ऊपर सरका कर कुर्ते को नीचे कर लिया। सलवार उसने पहना ही नहीं था, कदाचित इस लिए कि अंधेरे में कौन देखेगा और वैसे भी उसे हगने के लिए अपने बाग़ में ही तो आना था।

खाली हो गए लोटे को उसने उठाया और दबे पांव उस तरफ़ बढ़ी जिस तरफ से आवाज़ें आनी बंद हो गईं थी। उसे डर भी लग रहा था लेकिन उत्सुकतावश वो बड़ी सावधानी से उस तरफ़ बढ़ती ही चली गई। इस बात का उसने ख़ास ख़्याल रखा कि सूखे पत्तों पर पांव रखने से ज़्यादा तेज़ आवाज़ न होने पाए। अभी वो क़रीब पांच सात क़दम ही आगे गई थी कि सहसा उसके कानों में किसी की आवाज़ सुनाई दी। रूपा एक दो क़दम और आगे बढ़ी और एक पेड़ के पीछे छिप गई। पेड़ की ओट से उसने देखा कि उससे क़रीब आठ दस क़दम की दूरी पर अंधेरे में तीन इंसानी साए खड़े थे। तीनों एक दूसरे से दूरी बना कर खड़े हुए थे किंतु तीनों का ही मुंह एक दूसरे की तरफ था। रूपा को समझ ना आया कि वो तीनों कौन हैं और उसके आमों के बाग़ में क्या करने आए हैं?

"मामला हद से ज़्यादा बिगड़ गया है।" उन तीनों में से एक की आवाज़ रूपा के कानों तक पहुंची____"जो सोचा था वो नहीं हुआ बल्कि सब कुछ उल्टा पुल्टा हो गया है।"

पेड़ के पीछे छुपी रूपा एकदम से चौंकी। उसके दिल की धड़कनें एकदम ज़ोरों से चलने लगीं थी। उसे अपने कानों पर यकीन नहीं हुआ, इस लिए उसने फिर से अपने कान खड़े कर आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगी।

"अगर यही हाल रहा तो वो दिन दूर नहीं जब हम सबका भेद खुल जाएगा।" एक दूसरे साए की आवाज़ रूपा के कानों में पड़ी____"और हमारी गर्दनें दादा ठाकुर की मुट्ठी में क़ैद हो जाएंगी।"

"मेरा ख़्याल ये है कि अब हमें खुल कर अपने काम को अंजाम देना चाहिए।" तीसरे साए की आवाज़____"और कुछ ऐसा करना चाहिए जिससे हवेली में रहने वालों का कलेजा दहल जाए।"

"मेरे एक आदमी ने बताया कि दादा ठाकुर ने अपने बेटे वैभव को अपनी बहू के साथ उसके मायके भेज दिया है।" पहले साए की आवाज़____"ये हमारे लिए एक सुनहरा अवसर है दादा ठाकुर के उस सपूत को अपने रास्ते से हटाने का और दादा ठाकुर की कमर को तोड़ देने का भी।"

"ये तो एकदम सही कहा आपने।" तीसरे साए की आवाज़ में खुशी झलक रही थी, बोला____"चंदनपुर में जा कर बड़ी आसानी से उस पर प्राण घातक हमला किया जा सकता है। अगर हमने सच में उस हरामजादे को ख़त्म कर दिया तो समझो दादा ठाकुर गहरे सदमे में चला जाएगा और ये भी सच ही जानिए कि अपने बेटे के मौत के ग़म में वो बुरी तरह से टूट जाएगा। उस सूरत में उसको बर्बाद करना और हवेली को नेस्तनाबूत करना बेहद आसान हो जाएगा।"

"बात तो ठीक है तुम्हारी।" पहले साए की भारी आवाज़____"लेकिन ये मत भूलो कि उस हवेली में जगताप भी है जो दादा ठाकुर से कहीं ज़्यादा ख़तरनाक है। उसके दोनों बेटे तो नकारा और निकम्मे ही हैं लेकिन सुना है कि वैभव का बड़ा भाई भी आज कल अपने छोटे भाई के नक्शे क़दम पर चलने लगा है। कमबख़्त तंत्र मंत्र के प्रभाव से जल्दी मर जाता तो आज कहानी ही अलग होती।"

"जो नहीं हो पाया उसके बारे में हम क्या ही कर सकते हैं।" दूसरे साए ने कहा____"दादा ठाकुर के मन में जगताप के लिए जो शक के बीज हमने डाले थे उसका भी कुछ ख़ास असर नहीं हुआ। लगता है दादा ठाकुर को कुछ ज़्यादा ही अपने भाई पर भरोसा है।"

"किसी पर अगर एक बार शक हो जाए।" पहले वाले साए ने कहा____"तो वो धीरे धीरे भरोसे की जड़ों को खोखला करना शुरू कर देता है। दादा ठाकुर को भले ही अपने भाई पर लाख भरोसा होगा लेकिन मौजूदा समय में जो हालात हैं उससे कहीं न कहीं उसके मन में अपने भाई के बारे में शक तो हो ही गया होगा। अब देखना ये है कि इसका कब और क्या असर दिखता है?"

"हमारे पास इंतज़ार करने का ही तो समय नहीं है।" दूसरे साए ने कहा____"अब तक की अपनी नाकामियों के बाद अब हमें कोई ऐसा क़दम उठाना होगा जिससे हमारे दुश्मन का कलेजा दहल जाए। मैं उसके उस सपोले को अब और ज़्यादा दिनों तक ज़िंदा नहीं देखना चाहता।"

"फ़िक्र मत करो।" पहले साए ने कहा____"अगर हम यहां कामयाब नहीं हुए तो चंदनपुर में उसके उस सपोले को ख़त्म करने में ज़रूर कामयाब होंगे। कल ही मैं अपने कुछ आदमियों को उसका खात्मा करने के लिए चंदनपुर भेजूंगा।"

"मैं भी आपके आदमियों के साथ जाऊंगा।" तीसरे साए ने कहा____"मैं उस हरामजादे को अपने हाथों बद से बदतर मौत देना चाहता हूं। तभी मेरे कलेजे को ठंडक मिलेगी।"

"नहीं, तुम वहां नहीं जाओगे।" पहले साए ने सख़्ती से कहा____"वो बहुत ख़तरनाक लड़का है। अगर ज़रा भी बात बिगड़ गई तो अंजाम अच्छा नहीं हो सकता। इस लिए तुम यहीं रहोगे और उसके बदले दादा ठाकुर के बड़े लड़के का शिकार करोगे। मुझे पूरी उम्मीद है कि उसे तुम बड़ी आसानी से काबू में कर लोगे और उसका राम नाम भी सत्य कर दोगे।"

"ये इतना आसान नहीं है।" दूसरे साए ने कहा____"दादा ठाकुर ने आज कल अपने परिवार के हर सदस्य पर शख़्त निगरानी और पहरा लगा दिया है। जिस दिन गांव वाले रेखा और शीला की मौत का इंसाफ़ मांगने हवेली गए थे और जो कुछ दादा ठाकुर से कहा था उससे दादा ठाकुर तो शान्त है लेकिन उसका भाई जगताप बुरी तरह खार खाया हुआ है। इस लिए मेरी सलाह यही है कि यहां पर अभी किसी पर भी हाथ डालना सही नहीं होगा लेकिन हां चंदनपुर जा कर वैभव को ख़त्म करने का विचार ज़्यादा बेहतर है।"

वैभव को ख़त्म करने वाली बातें सुन कर रूपा का दिमाग़ मानों सुन्न सा पड़ गया था। दिलो दिमाग़ में आंधियां सी चलने लगीं थी। उसके बाद उसे कुछ भी सुनने का होश नहीं रह गया था। उसे पता ही नहीं चला कि कब वो तीनों साए वहां से चले गए। किसी पक्षी की आवाज़ से उसे होश आया तो वो चौंकी और हड़बड़ा कर उसने उस तरफ देखा जहां वो तीनों साए खड़े थे किंतु अब वहां किसी को न देख वो एकदम से घबरा गई। चारो तरफ अंधेरे में उसने निगाह घुमाई मगर कहीं कोई नज़र न आया। बाग़ में हर तरफ सन्नाटा फ़ैला हुआ था।

रूपा पलट कर वहां से दबे पांव चल पड़ी। खेतों में बनी पगडंडी पर आ कर वो तेज़ क़दमों से अपने घर की तरफ बढ़ चली थी। पहले वाले साए की आवाज़ अभी भी उसके कानों में गूंज रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है। उसके दिल में जहां एक तरफ हल्का दर्द सा जाग उठा था वहीं दूसरी तरफ ज़हन में एक द्वंद सा भी छिड़ गया था।

✮✮✮✮

धनंजय नाम का दरोगा अपने कमरे में रखी चारपाई पर बैठा गहरी सोच में डूबा हुआ था। उसे ये सोच कर पछतावा हो रहा था कि उसने दादा ठाकुर को अपनी मां के अपहरण हो जाने की बात बता दी थी जोकि उसे किसी भी कीमत पर नहीं बताना चाहिए था। ऐसे में अगर उस सफ़ेदपोश ने गुस्से में आ कर उसकी मां के साथ बुरा कर दिया तो वो खुद को कभी माफ़ नहीं कर पाएगा। धनंजय को समझ नहीं आ रहा था कि अब वो क्या करे? अभी वो ये सब सोच ही रहा था कि तभी बाहर हुई अजीब सी आवाज़ और आहट से वो चौंका। ज़हन में बिजली की तरह ख़्याल उभरा कि क्या सफ़ेदपोश आया होगा? ये सोच कर वो फ़ौरन ही चारपाई से उठा और तेज़ी से दरवाज़े की तरफ बढ़ा।

दरवाज़ा खोल कर उसने बाहर देखा। बाहर अंधेरा था किंतु चांद की हल्की रोशनी भी थी जिससे धुंधला धुंधला दिख रहा था। धनंजय ने इधर उधर नज़र घुमाई और फिर एकदम से उसकी निगाह एक जगह पर ठहर गई। बाएं तरफ कुछ ही दूरी पर उसे कुछ पड़ा हुआ नज़र आया। एक अंजानी आशंका से धनंजय की धड़कनें तेज़ हो गईं। वो फ़ौरन ही उस तरफ बढ़ा। कुछ पलों में जब वो उस पड़ी हुई चीज़ के पास पहुंचा तो देखा कोई औरत औंधे मुंह ज़मीन पर पड़ी हुई थी।

धनंजय के आशंकित ज़हन में बिजली की तरह सवाल उभरा कहीं ये उसकी मां तो नहीं? उसने झट से उस औरत को पलटा और जैसे ही नज़र औरत के चेहरे पर पड़ी तो उसके सिर पर एक झटके में आसमान गिर पड़ा। वो उसकी मां ही थी। धनंजय एकदम पागलों की तरह अपनी मां को हिलाते डुलाते हुए आवाज़ लगाने लगा लेकिन उसकी मां के द्वारा उसे कोई प्रतिक्रिया होती महसूस नहीं हुई। उसने जल्दी से नब्ज़ टटोली और अगले कुछ ही पलों में उसे ये जान कर ज़बरदस्त झटका लगा कि उसकी मां की नब्ज़ का कहीं पता नहीं है। दरोगा एकदम से बौखला गया, वो कभी अपनी मां की नब्ज़ को टटोलता तो कभी उसकी धड़कनें सुनने की कोशिश करता। जल्द ही उसे पता चल गया कि उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं है। धनंजय का जी चाहा कि वो पूरी शक्ति से दहाड़ें मार कर रोना शुरू कर दे। आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। अपनी मां के बेजान जिस्म से लिपट कर वो फूट फूट कर रो पड़ा।

जाने कितनी ही देर तक धनंजय अपनी मां को सीने से लगाए रोता रहा और उससे कहता रहा कि वो उसे छोड़ कर न जाए लेकिन दुनिया से जाने वाला भला कहां उसे कोई जवाब देता? दिलो दिमाग़ में आंधियां चल रहीं थी। तभी एक तरफ उसे किसी चीज़ की आहट सुनाई दी तो उसने गर्दन घुमा कर उस तरफ देखा। उसके मकान के पास ही अंधेरे में सफ़ेदपोश खड़ा था। धनंजय उसे देख कर पहले तो हड़बड़ाया किंतु अगले ही पल गुस्से से आग बबूला हो गया। अपनी मां को ज़मीन पर लेटा कर वो एक झटके से खड़ा हुआ और फिर किसी आंधी तूफ़ान की तरह उस सफ़ेदपोश की तरफ लपका। सफ़ेदपोश को शायद उससे ऐसे किसी कृत्य की उम्मीद नहीं थी इस लिए इससे पहले कि वो सम्हल पाता धनंजय उस पर जंप लगा कर उसे लिए ज़मीन पर गिरा। सफ़ेदपोश के सीने में सवार हो कर उसने दोनों हाथों से उसकी गर्दन को दबोच लिया।

"हरामजादे तूने मेरी मां को जान से ही मार डाला।" धनंजय गुस्से में मानों चीखते हुए बोला____"अब मैं तुझे भी जान से मार दूंगा।"

सफ़ेदपोश बुरी तरह छटपटाते हुए उससे अपनी गर्दन छुड़ाने का प्रयास कर रहा था लेकिन धनंजय की पकड़ इतनी मजबूत थी कि वो उसके हाथों को हिला भी नहीं पा रहा था। प्रतिपल उसकी सांसें लुप्त होती जा रहीं थी। सफ़ेद नक़ाब में छुपा उसका चेहरा पसीने से तरबतर हो गया था। नक़ाब से झांकती उसकी आंखें बाहर को निकली आ रहीं थी।

"आज मैं तुझे ज़िंदा नहीं छोडूंगा कमीने।" धनंजय गुस्से में पगलाया हुआ गुर्राया____"तूने मेरी मां की जान ले कर अच्छा नहीं किया है। तुझे इसका हिसाब अपनी जान दे कर ही चुकाना होगा। बहुत खेल खेल रहा था न तू, अब तेरा किस्सा ही ख़त्म कर दूंगा मैं।"

दरोगा प्रतिपल अपना दबाव उसकी गर्दन पर बढ़ाता जा रहा था और उधर सफ़ेदपोश को सांस लेने में मुश्किल होने लगी थी। उसका दम घुटने लगा था, जिसकी वजह से वो बुरी तरह अपने हाथ पांव पटक रहा था। तभी सहसा चमत्कार हुआ। वातावरण में दरोगा की घुटी घुटी सी चीख गूंजी और उसका जिस्म हवा में लहराते हुए दूर जा कर गिरा। वो जल्दी ही सम्हल कर उठा तो देखा नीम अंधेरे में उसे काला नकाबपोश नज़र आया। वो समझ गया कि उसी ने अपने पांव की ठोकर से उसे दूर उछाला था। सफ़ेदपोश अब तक खड़ा हो चुका था और बुरी तरह खांस रहा था।

काले नकाबपोश को देख कर धनंजय का गुस्सा और भी बढ़ गया। वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा किंतु जल्दी ही उसे ठिठक जाना पड़ा क्योंकि काले नकाबपोश के हाथ में एकदम से उसे लट्ठ नज़र आ गया था। लट्ठ को देख कर धनंजय कुछ पलों के लिए ही रुका था लेकिन अगले ही पल वो फिर से उसकी तरफ तेज़ क़दमों से बढ़ चला।

"अगर अपनी बहन को भी अपनी मां की तरह बेजान लाश के रूप में देखना चाहता है तो बेशक आ कर मुझसे मुकाबला कर।" काले नकाबपोश ने शख़्त भाव से कहा तो दरोगा एकदम से अपनी जगह पर रुक गया।

"अगर मेरी बहन को तुम दोनों ने हाथ भी लगाया तो ये तुम दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।" धनंजय ने गुस्से से गुर्राते हुए कहा____"अगर असली मर्द की औलाद है तो मर्द की तरह अपने दम पर मुझसे मुकाबला कर।"

"अच्छा ऐसा है क्या?" काले नकाबपोश ने इस बार अजीब भाव से कहा____"लगता है दो दो हाथ करने के लिए कुछ ज़्यादा ही मरे जा रहे हो तुम।" काले नकाबपोश ने कहने के साथ ही सहसा सफेदपोश की तरफ देखा____"आपका हुकुम हो तो इसकी ख़्वाइश पूरी कर दूं?"

सफ़ेदपोश ने उसे सिर हिला कर इजाज़त दे दी। इजाज़त मिलते ही काले नकाबपोश ने लट्ठ को एक तरफ रखा और फिर दरोगा को मुकाबला करने का इशारा किया। दरोगा उसका इशारा पा कर गुस्से में तिलमिला उठा। वो तेज़ी से उसकी तरफ बढ़ा। इससे पहले कि वो उस नकाबपोश पर कोई प्रहार कर पाता काले नकाबपोश ने झुक कर उसे दोनों हाथों से सिर से ऊपर तक उठा लिया और कच्ची ज़मीन पर पूरी ताक़त से पटक दिया। वातावरण में दरोगा की दर्द में डूबी चीख गूंज उठी। ज़मीन पर शायद छोटे छोटे कुछ पत्थर पड़े हुए थे जो उसके गिरते ही उसकी पीठ पर गड़ गए थे और उसे भारी दर्द हुआ था। वो दर्द को बर्दास्त करते हुए जल्दी ही उठा लेकिन तभी उसकी पीठ पर काले नकाबपोश की लात का ज़ोरदार प्रहार हुआ जिसके चलते वो एक बार फिर से ज़मीन की धूल को चाटता नज़र आया।

उसके बाद तो दरोगा को सम्हलने तक का मौका न मिला। काला नकाबपोश लात घूंसों से उसको मारता ही चला गया और फिज़ा में दरोगा की दर्द में डूबी चीखें ही गूंजती रही। उसकी नाक और मुंह से खून निकलने लगा था। पूरा जिस्म पके हुए फोड़े की तरह दर्द करने लगा था। उसमें अब कुछ भी करने की हिम्मत न रह गई थी।

"रुक जाओ।" सहसा सफ़ेदपोश की अजीब सी आवाज़ गूंजी____"इतना काफ़ी है इसे ये समझने के लिए कि तुम असली मर्द ही हो जो अपने दम पर इससे बखूबी मुकाबला कर सकता है।"

सफ़ेदपोश के कहने पर काला नकाबपोश रुक गया। सफ़ेदपोश चल कर दरोगा के पास आया। दरोगा ज़मीन में पड़ा हुआ था इस लिए वो उसके समीप ही ज़मीन पर उकडू हो कर बैठा और फिर अपनी अजीब सी आवाज़ में बोला____"अपनी मां की मौत के तुम खुद ज़िम्मेदार हो दरोगा। हमने तुम्हें दादा ठाकुर से सच बताने से मना किया था लेकिन फिर भी तुमने उसे सब कुछ बता दिया। इसका अंजाम तो तुम्हें अपनी मां की मौत के रूप में भुगतना ही था। ख़ैर, अब अगर तुम चाहते हो कि तुम्हारी बहन सही सलामत रहे तो यहां से गधे के सींग की तरह गायब हो जाओ।"

सफ़ेदपोश की ये बात सुन कर दरोगा कुछ न बोला। दर्द को सहते हुए वो बस गहरी गहरी सांसें ले रहा था। इधर सफ़ेदपोश कुछ पलों तक उसे देखता रहा और फिर बोला_____"अगर दादा ठाकुर दुबारा तुमसे मिलने आए तो उससे यही कहना कि तुम्हारी मां तुम्हें सही सलामत मिल गई है और अब तुम यहां से इस मामले से खुद को अलग कर के जा रहे हो। अपनी मां की लाश को या तो कहीं दफना दो या फिर रातों रात इसे ले कर शहर चले जाओ और वहीं उसका अंतिम संस्कार कर देना। अगर हमें पता चला कि इसके बावजूद तुम इस मामले में दिलचस्पी ले रहे हो तो इसके अंजाम में जो होगा उसके ज़िम्मेदार तुम खुद ही होगे।"

सफ़ेदपोश इतना कहने बाद उठा और काले नकाबपोश को कुछ इशारा कर एक तरफ को बढ़ गया। जल्दी ही वो दोनों नीम अंधेरे में कहीं गायब हो गए। ज़मीन पर पड़ा दरोगा कुछ देर तक इस सबके बारे में सोचता रहा और फिर किसी तरह उठ कर अपनी मां की लाश के पास आया। मां की बेजान लाश को देख कर सहसा उसकी आंखें फिर से छलक पड़ीं। उसने फिर से मां को अपने सीने से लगा लिया और फूट फूट कर रोने लगा।

✮✮✮✮

शेरा काफी देर से सफ़ेदपोश और काले नकाबपोश का पीछा कर रह था। इस वक्त वो सादे कपड़ों में तो था लेकिन उसके कपड़े ऐसे बिलकुल भी नहीं थे कि रात के हल्के अंधेरे में आसानी से किसी की नज़र उस पर पड़ जाए। हथियार के नाम पर उसके हाथ में एक बड़ा सा लट्ठ था। धनंजय दरोगा के मकान के बाहर जो कुछ हुआ था उसे उसने अपनी आंखों से देखा था। उसके बाद जब दोनों नकाबपोश वहां से चल दिए तो वो भी उनके पीछे लग गया था। पीछा करते हुए वो दादा ठाकुर के बाग़ में आ गया था। बाग में घने पेड़ पौधे थे जिसकी वजह से वहां पर अंधेरा ज़्यादा था। फिर भी वो एक निश्चित फांसला बना कर उन दोनों के पीछे लगा हुआ था। सहसा उसने देखा दोनों नकाबपोश अलग अलग दिशा में मुड़ कर चल दिए।

शेरा को समझ ना आया कि सबसे पहले वो किसके पीछे जाए। वो जानता था कि सफ़ेदपोश इसके पहले भी एक बार उसकी आंखों के सामने से गायब हो चुका था और यही हाल काले नकाबपोश का भी हुआ था। नकाबपोश का उसने दो तीन बार पीछा किया था लेकिन पता नहीं कैसे वो उसे चकमा दे जाता था या फिर उसकी आंखों से ओझल हो जाता था?

शेरा ने फ़ौरन ही फ़ैसला किया और सफ़ेदपोश के पीछे लग गया। आज वो हर हाल में उसे पकड़ लेना चाहता था। उसने देखा था कि दरोगा ने बड़ी आसानी से उसे दबोच लिया था। ज़ाहिर था कि सफ़ेदपोश कोई ऐसा आदमी था जो काले नकाबपोश से कम ताक़तवर और लड़ने के दांव पेंच जानता था। शेरा ने देखा सफ़ेदपोश बाग़ के अंदर की तरफ तेज़ी से बढ़ा चला जा रहा था। कभी कभी वो किसी न किसी पेड़ की ओट में हो जाता था जिसकी वजह से वो उसे दिखाई देना बंद हो जाता था। सहसा वो शेरा की आंखों से ओझल हो गया।

शेरा ने साफ़ देखा था कि वो एक पेड़ की ओट में हुआ था और फिर उसके बाद वो उसे दुबारा नज़र नहीं आया। शेरा एकदम से बौखला गया और तेज़ी से आगे बढ़ते हुए उस पेड़ के पास पहुंचा लेकिन सफ़ेदपोश उसे दूर दूर तक कहीं नज़र न आया। शेरा को बड़ी हैरानी हुई कि आख़िर वो अचानक से गायब कैसे हो गया? क्या वो कोई जादू जानता था या फिर वो कोई भूत था जो एकदम से गायब हो गया? शेरा ने काफी देर तक आस पास का मुआयना किया लेकिन सफ़ेदपोश की कहीं झलक तक न मिली उसे। हताश हो कर वो वापस उस दिशा की तरफ तेज़ी से बढ़ चला जिधर काला नकाबपोश गया था।

कुछ ही देर में शेरा बाग़ से निकल कर उस जगह पर आ गया जहां दादा ठाकुर का बाग़ वाला मकान बना हुआ था। शेरा के ज़हन में ख़्याल उभरा कि क्या काला नकाबपोश इस मकान में आया होगा? क्या वो रात के अंधेरे में इस मकान में ही छुपता होगा? उसे याद आया कि पिछली बार उससे यहीं पर उसका सामना हुआ था और फिर अचानक से वो बाग़ की तरफ भाग गया था। उसके बाद कुछ ही देर में उसे बाग़ के अंदर किसी नारी की चीख सुनाई दी थी। जब उसने वहां जा कर देखा था तो वैभव किसी औरत के पास बैठा था। शीला नाम की औरत को उस काले नकाबपोश ने गला रेत कर मार डाला था।

शेरा ने ये सब सोच कर पूरी सतर्कता से मकान की छानबीन करने का सोचा। पहले उसने मकान के चारो तरफ का अच्छे से मुआयना किया, उसके बाद वो मकान के मुख्य दरवाज़े पर आया तो देखा दरवाज़े की कुंडी खुली हुई थी। शेरा समझ गया कि काला नकाबपोश अंदर ही गया होगा। उसने बड़ी सावधानी से दरवाज़े को अंदर की तरफ धकेला। दरवाज़ा आधा खोल कर उसने अंदर देखा, अंदर सियाह अंधेरा था।

शेरा अंदर दाखिल हुआ और ख़ामोशी से बारीक से बारीक आहट या आवाज़ को सुनने की कोशिश करने लगा मगर काफी देर की कोशिश में भी उसे कोई आहट अथवा आवाज़ सुनाई नहीं दी। उसने पलट कर दरवाज़ा बंद किया और फिर अपने काले कुर्ते की जेब से माचिस निकाल कर उसे जलाया। माचिस की तीली जैसे ही जली तो हर तरफ रोशनी फेल गई। उस रोशनी में उसे आस पास कोई नज़र ना आया। हाथ में जलती तीली लिए वो आगे बढ़ा और एक कमरे के पास पहुंचा। तीली जल कर बुझने लगी तो उसने फ़ौरन ही उसे फेंक कर दूसरी तीली जलाई और कमरे का दरवाज़ा खोल कर अंदर देखा। कमरे में कुछ समान के अलावा कुछ न दिखा उसे। उसने कई तीलियां जला जला कर सभी कमरों में देखा मगर उसे काला नकाबपोश कहीं नज़र ना आया। उसे समझ ना आया कि अगर नकाबपोश यहां नहीं आया तो गया कहां?

शेरा मकान से बाहर आ कर सोचने लगा कि अब वो उस काले नकाबपोश को कहां खोजे? सहसा उसे कुछ याद आया तो वो मकान के पीछे की तरफ बढ़ चला। जल्दी ही वो मकान के पिछले हिस्से में पहुंच गया। मकान के पिछले हिस्से में ट्रैक्टर की एक पुरानी और टूटी हुई ट्रॉली खड़ी हुई थी जिसके दोनों पहिए ज़मीन पर क़रीब आधा फुट धंसे हुए थे। ट्राली खस्ता हालत में थी और उसका उपयोग कई सालों से नहीं हुआ था। उसकी ऊपर की दीवारें जंग लगने से कुछ टूटी हुई भी थीं। शेरा ने धड़कते दिल से ट्राली में देखने का सोच कर अपने हाथ को ट्राली की दीवार पर रखा और अपना एक पैर ट्राली के पहिए पर रख कर उस पर चढ़ कर खड़ा हो गया।

अभी वो ट्राली के अंदर देखने ही वाला था कि अचानक उसके जबड़े पर किसी का ज़बरदस्त घूंसा पड़ा जिससे दर्द से चीखते हुए वो नीचे कच्ची ज़मीन पर जा गिरा। पीठ के बल गिरने से उसे दर्द तो हुआ लेकिन वो फ़ौरन ही उठा। तभी ट्राली से उसके पास ही कोई कूद कर आया। उसने फ़ौरन ही पास पड़े अपने लट्ठ को उठाया और नज़र उठा कर देखा। उससे क़रीब चार क़दम की दूरी पर काला नकाबपोश हाथ में लट्ठ लिए खड़ा था।

"कौन हो तुम?" काला नकाबपोश गुर्राया____"और यहां मरने के लिए क्यों आए हो?"
"कमाल है दोस्त।" शेरा ने मुस्कुरा कर कहा____"अपनी बिरादरी वाले को ही नहीं पहचान पाए तुम?"

"क्या मतलब??" काला नकाबपोश उसकी बात सुन कर चौंका।
"तुम्हारी तरह इस वक्त अगर मैं भी काले नक़ाब में होता।" शेरा ने कहा____"तो शायद तुम्हें मुझको पहचानने में देर न लगती।"

"अच्छा तो तुम वही हो?" काला नकाबपोश हैरानी भरे भाव से बोला____"जिससे मेरा पहले कई बार आमना सामना हो चुका है।"
"हां, और हर बार तुम मुझे अपनी पीठ दिखा कर भाग खड़े हुए हो।" शेरा ने मुस्कुराते हुए कहा____"ऐसा शायद इस लिए कि तुम मेरा सामना कर पाने में खुद को कमज़ोर समझते हो।"

"बहुत बड़ी ग़लतफहमी के शिकार हो तुम।" काले नकाबपोश ने शख़्त भाव से उसे घूरते हुए कहा____"जो ये समझते हो कि मैं तुम्हारा सामना करने से कतराता हूं और तुम्हें पीठ दिखा कर भाग जाता हूं।"

"तो फिर देर किस बात की दोस्त?" शेरा ने गहरी मुस्कान के साथ कहा____"अगर सच में तुम मेरा सामना करने की कूवत रखते हो तो इस बार तरीके से मुकाबला हो ही जाए। शायद मुझे भी पता चल जाए कि तुम्हारे बारे में मेरे ख़्याल सही हैं या फिर मेरा ऐसा सोचना महज एक भ्रम है।"

नीम अंधेरे में काले नकाबपोश के होठों पर मुस्कान उभर आई, बोला____"अगर तुम्हें मरने का कुछ ज़्यादा ही शौक चढ़ गया है तो आज तुम्हें विधाता भी मुझसे नहीं बचा सकेगा। अभी तक तो मैं तुम्हें इस लिए छोड़ कर चला जाता था क्योंकि मेरा मकसद तुम्हें मारना नहीं बल्कि कुछ और ही होता था।"

कहने के साथ ही काला नकाबपोश हमला करने के लिए तैयार होता नज़र आया। शेरा उससे कई बार मुकाबला कर चुका था इस लिए उसे अच्छी तरह पता था कि वो किसी भी मामले में उससे कमज़ोर नहीं है। जल्दी ही दोनों आमने सामने लट्ठ लिए भिड़ने को तैयार हो गए।

काले नकाबपोश ने लट्ठ को तेज़ी से घुमा कर शेरा पर वार किया किंतु शेरा पहले से ही उसके किसी भी हमले के लिए तैयार था इस लिए फौरन ही लट्ठ से उसके वार को रोका और उसी पल उसने अपनी दाहिनी लात चला दी। लात का ज़बरदस्त प्रहार काले नकाबपोश के पेट में लगा जिससे उसके हलक से हिचकी सी निकली और वो दर्द से झुक गया। उधर वो जैसे ही झुका शेरा ने लट्ठ का वार उसकी पीठ पर किया। प्रहार तेज़ था जिसके चलते काला नकाबपोश चीखते हुए भरभरा कर मुंह के बल ज़मीन पर गिरा। इससे पहले कि वो संभल पाता शेरा ने उसकी पीठ पर पूरी ताक़त से लात जमा दी। वातावरण में काले नकाबपोश की घुटी घुटी चीख गूंज उठी। शेरा ने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया और लात घूंसों की बरसात कर दी उस पर।

काले नकाबपोश के हाथ में सहसा शेरा की टांग आ गई जिसे पकड़ कर उसने पूरी ताक़त से उछाल दिया। शेरा उछलते हुए दूर ज़मीन पर गिरा। इधर काला नकाबपोश फ़ौरन लट्ठ ले कर उठा। इससे पहले कि शेरा सम्हल पाता उसने अपनी टांग चला दी जो शेरा के पेट के बगल से लगी। शेरा बुरी तरह दर्द से बिलबिला उठा। बात अगर सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद वो सम्हल भी जाता लेकिन काला नकाबपोश रुका ही नहीं बल्कि एक के बाद एक लातों का वार शेरा के पेट और छाती पर करता ही चला गया। कुछ देर पहले यही हाल शेरा कर रहा था और काला नकाबपोश दर्द से बिलबिला रहा था। शेरा ने सहसा काले नकाबपोश का पांव पकड़ लिया और उसके जैसे ही उसे उछाल कर दूर गिरा दिया। पेट और छाती में उसे बड़ा तेज़ दर्द हो रहा था जिसे सहते हुए वो तेज़ी से उठा। पास ही पड़े लट्ठ को ले कर वो तेज़ी से काले नकाबपोश के पास पहुंचा।

काला नकाबपोश सम्हल कर खड़ा हो चुका था। शेरा ने जैसे ही लट्ठ का वॉर किया उसने अपने लट्ठ से उसके वार को रोका। उसके बाद वातावरण में लट्ठ के टकराने की आवाज़ें गूंजनें लगीं। दोनों बड़ी दक्षता से एक दूसरे पर वार करते जा रहे थे और उसी दक्षता से एक दूसरे का वार रोकते भी जा रहे थे। अचानक शेरा की लट्ठ बीच से टूट गई और साथ ही काले नकाबपोश का अगला वार उसके बाजू में लगा। शेरा दर्द से बिलबिलाया किंतु जल्द ही सम्हला। काले नकाबपोश ने घुमा कर लट्ठ कर वार शेरा के सिर पर किया। शुक्र था शेरा ने ऐन वक्त पर देख लिया था वर्ना उसकी खोपड़ी लट्ठ लगने से निश्चित ही फूट जाती। शेरा ने झुक कर उसके वार को रोका और साथ ही एक लात काले नकाबपोश की कमर पर लगा दी जिससे नकाबपोश लहरा कर ज़मीन पर गिर गया। उसके हाथ से लट्ठ निकल गया था। शेरा ने उछल कर अपनी कोहनी का वार नकाबपोश की छाती पर किया जिससे नकाबपोश की चीख निकल गई। एकदम से उसकी आंखों के सामने अंधेरा सा छा गया। शेरा ने उसे सम्हलने का मौका नहीं दिया। उसने काले नकाबपोश का दाहिना हाथ पकड़ा और पूरी ताक़त से उल्टा कर के अपनी तरफ खींच लिया। फिज़ा में कड़कड़ की आवाज़ हुई और साथ ही नकाबपोश की दर्दनाक चीख भी गूंज उठी। शेरा ने उसका दाहिना हाथ तोड़ दिया था।

काला नकाबपोश ज़मीन पर पड़ा दर्द से छटपटा रहा था। अपने टूटे हाथ को दूसरे हाथ से पकड़े वो तड़प रहा था। ये देख शेरा ने उसका कालर पकड़ा और गुर्राते हुए कहा____"मैं चाहूं तो इसी वक्त तेरी जीवन लीला समाप्त कर दूं लेकिन तुझे ज़िंदा रहना होगा और फिर बताना होगा कि जिस सफ़ेदपोश के इशारे पर तू ये सब कर रहा है वो असल में है कौन?"

"मुझसे कुछ नहीं जान पाओगे तुम।" काले नकाबपोश ने दर्द से कराहते हुए कहा____"क्योंकि मुझे उसके बारे में कुछ भी पता नहीं है। मैंने उसका चेहरा कभी नहीं देखा।"

"इसके बावजूद तुझे उसके बारे में बहुत कुछ पता है।" शेरा ने कहा____"तेरे द्वारा ही उसे पकडूंगा मैं।"
"मेरा मुकाबला तो कर लिया तुमने।" काले नकाबपोश ने दर्द में भी मुस्कुरा कर कहा____"लेकिन उसका मुकाबला नहीं कर पाओगे। वो तुम जैसों को एक पल में धूल में मिला देने की क्षमता रखता है।"

"हां देखा है मैंने।" शेरा ने कहा____"कुछ देर पहले अपनी आंखों से देखा था कि कैसे उस दरोगा ने उसे दबोच रखा था और वो उससे खुद को छुड़ाने के लिए छटपटा रहा था। अगर तूने दरोगा को ठोकर नहीं मारी होती तो जल्द ही तेरे उस सफ़ेदपोश का काम तमाम हो जाना था।"

"अच्छा तो तुमने वो सब देखा है?" काला नकाबपोश बुरी तरह चौंका था फिर बोला____"ख़ैर उस वक्त तो मैं भी उसको उस हालत में देख कर आश्चर्य चकित हुआ था लेकिन फिर मुझे याद आया कि वो वही था जिसने पहली मुलाक़ात में मुझे बड़ी आसानी से हरा दिया था। उसके बाद ही मैंने उसके लिए काम करना मंजूर किया था।"

शेरा को लगा काला नकाबपोश बेवजह ही सफ़ेदपोश का गुणगान कर रहा है इस लिए समय को बर्बाद न करते हुए उसने उसकी कनपटी के ख़ास हिस्से पर वार किया जिसका नतीजा ये हुआ कि काला नकाबपोश जल्द ही बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया। उसके बाद शेरा ने उसे उठा कर कंधे पर लादा और एक तरफ को बढ़ता चला गया।

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TheBlackBlood

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Shubham Bhai, kuch logo ke liye aap ham regular readers ke sath aisa anyay na karo aap....

Jise kuch nahi bolna wo to waise bhi silent reader hi rahega.......... please re-consider your decision
Dear writer sahab aise bich majdhar me to na chhod kr jaye, jitna achha aap likh rhe hai utna response nhi aa rha hoga lekin kuchh readers to hai jo sadaiv sath rhe hai unke liye likh lijiye
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