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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

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Shandar update he Shubham Bhai,

Inspector ne bhi ek naya bomb fod diya he. uski maa ab Safed Nakabposh ke kabze me he......

Anuradha ka man abhi do rasto par khada he...... ek taraf use Vaibhav apne sapno ka Rajkumar lagta he...... vahi dusri taraf use Vaibhav ek havash se bhara hua ganda insaan lagata he....... Bhuvan ke aane ke baad uske man me Vaibhav ke chhavi me kuch sudhar to hua he.......

Vaibhav ki kismat aurto aur ladkiyo ke mamle me top class he, pehle Sushma ko dekh liya, ab Kanchan ke liye darwaje ke peeche chhup gaya he.....

Keep Posting Bhai
Daroga ke laude lagne wale hain dost,
Anuradha ke dilo dimaag m abhi manthan chal raha hai, dekho use is bare me kya feel hota aur fir wo kya karti hai...
Sahi kaha, vaibhav ki kismat ki tarah apan logo ki bhi kismat honi chahiye... :protest: :D
Shukriya mitra...
 

TheBlackBlood

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अध्याय - 56
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....


सुषमा मेरी कोई बात सुने बिना ही चली गई। शायद वो समझ गई थी कि जितना वो मुझसे इस बारे में बातें करेगी उतना वो खुद ही फंसती जाएगी। या फिर ये भी संभव था कि दिशा मैदान के लिए जाना उसके लिए ज़रूरी हो गया था। ख़ैर, मैं उसकी हालत को सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और फिर बाहर की तरफ चल पड़ा। अभी दरवाज़े पर ही पहुंचा था कि सामने से मुझे सुषमा की ननद कंचन इधर ही आती हुई दिखी। उसे आता देख मेरे होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई और मैं पलट कर इस बार दरवाज़े के बगल से दीवार की ओट में छिप गया।

अब आगे....



मैं दीवार के ओट में छुपा देख रहा था कि कंचन तेज़ कदमों से चली आ रही थी। शाम का अंधेरा घिरने लगा था इस लिए उसका क़यामत ढाता हुस्न ज़्यादा साफ़ नहीं दिख रहा था। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके घर में इस वक्त मेरे अलावा कोई नहीं है। ख़ैर जल्दी ही वो अंदर दाखिल हुई। बिना इधर उधर देखे वो सीधा अंदर ही बढ़ती चली गई। कुछ ही पलों में उसकी आवाज़ मुझे सुनाई दी। वो सुषमा को भौजी कह कर पुकार रही थी। दो तीन बार पुकारने के बाद उसका पुकारना बंद हो गया। मेरे मन में ये जानने की उत्सुकता बढ़ गई कि अंदर वो क्या करने लगी होगी अकेले घर में?

मैं दबे पांव अंदर की तरफ बढ़ चला। बाहर बैठक में और अंदर आंगन में लालटेन जल रही थी, बाकी बाहर बरोठ में अंधेरा था। अंदर वाले बरोठ में जब मैं पहुंचा तो आंगन में जल रही लालटेन का हल्का प्रकाश महसूस हुआ। मैंने दीवार की ओट से छुप कर अंदर आंगन की तरफ देखा, कंचन कहीं नज़र ना आई। मेरे दिल की धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी लेकिन फिर भी मैं दबे पांव आगे बढ़ा और जल्दी ही आंगन वाली दीवार के पास आ गया। मैंने आंगन के पूरे हिस्से में निगाह घुमाई और अगले ही पल मेरी नज़र आंगन के एक कोने में ठहर गई।

अपनी भाभी सुषमा की तरह कंचन भी अपने कपड़े उतारे पूरी नंगी खड़ी दूसरे कपड़े पहनने की तैयारी कर रही थी। लालटेन की रोशनी में उसका जिस्म ऊपर से नीचे तक एकदम साफ़ नज़र आ रहा था। उसे इस हालत में देख कर मेरे अंदर ज़बरदस्त हलचल मच गई। पहले सुषमा और अब उसकी ननद कंचन। मैं समझ गया कि वो भी दिशा मैदान जाने के लिए कपड़े बदल रही है। ये औरतों का रोज सुबह शाम का नियम था। दिशा मैदान जाने के लिए दूसरे कपड़े पहनते थे सब।

कंचन के सीने पर मध्यम आकार के उभार एकदम ठोस और तने हुए दिख रहे थे। उन उभारों के बीच भूरे रंग के चूचक बहुत ही सुंदर नज़र आ रहे थे। मेरा मन किया कि अभी जाऊं और उन चूचकों को मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दूं लेकिन फिर किसी तरह मैंने खुद को रोका। ऐसा करना यकीनन ख़तरनाक हो सकता था, क्योंकि ये उसके साथ ज़बरदस्ती कहलाता। कंचन का पेट तक का हिस्सा मुझे साफ़ दिख रहा था किंतु उसके नीचे का हिस्सा उसके उस दूसरे कपड़े की वजह से छिपा हुआ था जिसे वो पहनने वाली थी। उसे इस हालत में देख कर मेरे अंदर का खून उबाल मारने लगा और मेरी टांगों के बीच कच्छे में छुपा मेरा लंड आधे से ज़्यादा सिर उठा चुका था। दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ बजती महसूस हो रहीं थी।

मैं जानता था कि कंचन को फंसाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था लेकिन मैं ये भी जानता था कि अगर मैंने कुछ भी उल्टी सीधी हरकत की तो भारी गड़बड़ हो जाएगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? उधर कंचन अपने दूसरे कुर्ते को सीधा करने में लगी हुई थी। जल्द ही वो कपड़े पहन कर दिशा मैदान के लिए निकल जाने वाली थी। मेरा ज़हन बड़ी तेज़ी से कोई उपाय सोचने में लगा हुआ था लेकिन हड़बड़ी में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। अचानक मैंने एक फ़ैसला किया, मैंने सोच लिया कि अब जो होगा देखा जाएगा। मैं ऐसा सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहता था।

आंखें बंद कर के मैंने दो तीन गहरी गहरी सांसें ली और पलट कर चार पांच क़दम पीछे आया। उसके बाद सामान्य अंदाज़ में भाभी भाभी पुकारते हुए मैं एकदम से आंगन में आ गया। उधर मेरे द्वारा भाभी भाभी पुकारने पर कंचन बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही घबरा भी गई। वो मादरजाद नंगी खड़ी थी। हम दोनों की नज़रें जैसे ही एक दूसरे से मिलीं तो मानो वक्त ठहर गया। मैंने तो ख़ैर बुरी तरह चकित हो जाने का नाटक किया लेकिन कंचन भौचक्की सी खड़ी रह गई। अचानक उसे अपनी हालत का एहसास हुआ। उसने बुरी तरह हड़बड़ा कर उसी कुर्ते को अपने सीने पर छुपा लिया जिसे वो सीधा कर के पहनने वाली थी।

"ह....हाय राम।" फिर वो बुरी तरह से शरमाते हुए बड़ी मुश्किल से बोली_____"आप यहां क्या कर रहे हैं जीजा जी? जाइए यहां से।"
"म...मैं तो यहां भाभी से मिलने आया था।" मैंने बुरी तरह हकलाने का नाटक किया____"मुझे क्या पता था कि यहां ग़ज़ब का सौंदर्य दर्शन हो जाएगा।"

"हे भगवान! कितने ख़राब हैं आप?" कंचन झल्लाहट में दबी आवाज़ से मानों चीखी____"जाइए आप यहां से। आपको शर्म नहीं आती किसी लड़की को इस तरह देखते हुए?"

"लो कर लो बात।" मैंने पूरी ढिठाई से कहा____"मैं थोड़ी ना नंगा खड़ा हूं जो मुझे शर्म आएगी? शर्म तो आपको आनी चाहिए सरकार जो मुझ जैसे भोले भाले लड़के के सामने अपना ये ख़ूबसूरत बदन दिखा रही हैं।"

"भगवान के लिए चले जाइए यहां से।" कंचन ने इस बार मिन्नतें की____"मुझे आपके सामने इस हालत में बहुत शर्म आ रही है।"
"ठीक है आप कहती हैं तो चला जाता हूं।" मैंने उसको ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"वैसे अब मुझसे कुछ छुपाने लायक तो रहा नहीं।"

"हे भगवान! क्या आपने सब देख लिया?" कंचन ने इस तरह कहा जैसे उसके प्राण ही निकल गए हों।
"मैं क्या करता भला?" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"आप सब कुछ खोले खड़ी थीं तो नज़र पड़ ही गई। अगर मुझे पहले से पता होता तो यहां आंगन में आता ही नहीं बल्कि छुप कर आपके ख़ूबसूरत बदन का जी भर के दीदार करता।"

"हाय राम!" कंचन आश्चर्य से आंखें फाड़ कर बोली____"कितने बेशर्म हैं आप? जा कर दीदी से शिकायत करूंगी आपकी।"
"ज़रूर कीजिएगा सरकार।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"इतना ख़ूबसूरत नज़ारा देखने के बाद तो अब मैं सूली पर भी चढ़ जाऊंगा।"

कंचन का चेहरा शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था। वो कुर्ते को अपने सीने पर ऐसे कस के चिपकाए हुए थी मानो उसे डर हो कि कहीं वो उसके चिकने बदन से फिसल न जाए। अपनी समझ में उसने खुद को उस कुर्ते से पूरा छुपा लिया था जबकि सच तो ये था कि कुर्ते से अपने उभारों को छुपाने के चक्कर में उसकी नाभि से नीचे तक का पूरा हिस्सा बेपर्दा हो गया था। वो क्योंकि मेरी तरफ ही मुड़ कर खड़ी थी इस लिए लालटेन की रोशनी में मुझे मस्त गुदाज़ जांघों के बीच हल्के बालों से घिरी उसकी योनि साफ़ झलकती दिख रही थी। उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रह गया था कि उसकी सबसे ज़्यादा अनमोल चीज़ तो मेरे सामने ही बेपर्दा है।

"मुझे और शर्मिंदा मत कीजिए?" कंचन ने बेबस भाव से कहा____"कृपया चले जाइए न यहां से। अगर कोई आ गया तो भारी मुसीबत हो जाएगी।"

"ठीक है जा रहा हूं।" मैंने इस बार थोड़ा संजीदा भाव से कहा____"और हां, आपको शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है। जो कुछ हुआ वो बस इत्तेफ़ाक़ से हुआ है। वैसे एक बात कहूं, आप बिना कपड़ों में बहुत ही ख़ूबसूरत दिखती हैं। ख़ास कर आपकी राजकुमारी।"

इतना कह कर मैं पलटा और तेज़ी से बाहर निकल गया। मैं जानता था कि मेरी आख़िरी बात ने कंचन को बुरी तरह चौंका दिया होगा। वो जब अपने बदन के निचले हिस्से को बेपर्दा देखेगी तो उसका और भी शर्म से बुरा हाल हो जाएगा। अब इस घर में रुकना ठीक नहीं था इस लिए मैं घर से बाहर ही आ गया।

हर तरफ अंधेरा फ़ैल गया था। रागिनी भाभी के घर जाने का मेरा कोई इरादा नहीं था इस लिए मैं उस तरफ चल पड़ा जहां कुछ मिलने की उम्मीद थी। एक मोड़ से मुड़ कर मैं कुछ ही देर में एक घर के पास पहुंच गया। घर के सामने जो खाली जगह थी वहां एक तरफ मवेशी बंधे हुए थे जिनको एक आदमी भूसा डाल रहा था। घर के बाहर दीवार से सट कर ही चबूतरा बना हुआ था जिसमें लालटेन रखी हुई थी। द्वार के सामने कुछ ही दूरी पर एक चारपाई रखी हुई थी। मैं आगे बढ़ा और जा कर उस चारपाई पर बैठ गया।

"कैसे हैं राघव भैया?" मैंने भूसा डाल रहे आदमी को आवाज़ लगाते हुए कहा तो उसने फ़ौरन ही पलट कर मेरी तरफ देखा और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर चमक उभर आई।

"अरे! वैभव महाराज आप यहां?" वो फ़ौरन ही भूसे की झाल को वहीं छोड़ कर भागता हुआ आया और मेरे पैर छूते हुए बोला____"धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन हो गए।"

"आज दोपहर ही आया हूं।" मैंने कहा____"साले साहब ने संदेशा भेजा था तो भाभी को ले कर आना पड़ा।"
"ये तो बहुत ही अच्छा हुआ जो आप यहां आ गए।" राघव भारी खुश हो गया था, बोला____"क़सम से आंखें तरस गईं थी आपको देखने के लिए।"

राघव सिंह इसी गांव का था और मेरी उससे काफ़ी अच्छी बनती थी। मुझसे उमर में दो तीन साल बड़ा था लेकिन मेरी ही तरह औरतबाज था वो। उससे मेरी इतनी गहरी दोस्ती हो गई थी कि कई बार हमने एक साथ ही एक दो औरतों को पेला था। ख़ैर मेरे कहने पर राघव ने पहले मवेशियों को भूसा डाला उसके बाद वो हाथ पैर धो कर अंदर चला गया। कुछ ही देर में मैंने देखा अंदर से एक लड़की उसके साथ बाहर आई। लड़की के हाथ में एक थाली थी। वो लड़की राघव की बहन जमुना थी। पिछली बार जब मैने उसे देखा था तो वो थोड़ा दुबली पतली थी किंतु अब उसका जिस्म भरा भरा दिख रहा था और उसके सीने के उभार भी अच्छे खासे दिख रहे थे। मुझ पर नज़र पड़ते ही उसने मुस्कुराते हुए नमस्ते किया।

जमुना ने घागरा चोली पहन रखा था इस लिए झुक कर जैसे ही उसने थाली मेरी तरफ बढ़ाई तो चोली के बड़े गले से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखने लगीं। मेरी नज़र मानों उसके गोलों पर ही चिपक गई। जमुना भी समझ गई कि मैं उसकी चूचियों को देख रहा हूं इस लिए उसने मुस्कुराते हुए धीमें से कहा____"पहले थाली का प्रसाद खा लीजिए जीजा जी, उसके बाद अंदर का प्रसाद खाने का सोचिएगा।"

जमुना की बात सुन कर मैं पहले तो हल्के से हड़बड़ाया और फिर मुस्कुराते हुए थाली में रखी कटोरी को उठा लिया। राघव उसके पीछे कुछ ही दूरी पर खड़ा था। मैंने कटोरी लिया तो जमुना सीधी खड़ी हो गई और फिर मुस्कुराते हुए अंदर जाने लगी तो राघव ने उसे लोटा गिलास में पानी लाने को कहा।

जमुना के जाने के बाद राघव चबूतरे में बैठ गया। हम दोनों इधर उधर की बातें करने लगे। कुछ देर में जमुना लोटा गिलास में पानी ले कर आई और राघव से कहा कि भौजी बुला रही हैं। जमुना की बात सुन कर राघव मुझसे अभी आया महाराज बोल कर अंदर चला गया।

"क्या बात है सरकार, आप तो गज़ब का माल लगने लगी हैं।" मैंने जमुना के सीने के उभारों को देखते हुए कहा____"कभी हमें भी चखने का मौका दीजिए।"
"धत्त।" जमुना बड़ी अदा से बोली____"हम ऐसे वैसे नहीं हैं जीजा जी इस लिए होश में रह कर बात कीजिए।"

"आपको देखने के बाद अब हम होश में रहे कहां सरकार?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आपके इस हुस्न ने तो हमारे अंदर के हर पुर्जे को हिला दिया है।"
"अच्छा जी ऐसा है क्या?" जमुना ने मुस्कुराते हुए कहा____"फिर तो आपके पुर्जों को जल्दी ही ठीक करना पड़ेगा हमें, है ना?"

"ये भी कोई पूछने की बात है क्या?" मैं जमुना की बेबाकी पर मन ही मन हैरान था मगर उसकी मंशा समझते हुए बोला____"अगर आप हमारे पुर्जों को ठीक करेंगी तो ये हमारा सौभाग्य होगा।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है।" जमुना ने एक बार अंदर की तरफ निगाह डालते हुए कहा____"हम दिशा मैदान के लिए जा रहे हैं। आप भी कुछ देर में नदी तरफ आ जाइएगा। हम वहीं आपके पुर्जों को ठीक करेंगे।"

जमुना अपना निचला होठ दांतों से दबा कर मुस्कुराई और फिर अपनी गोल गोल गांड को मटकाते हुए अंदर चली गई। सच कहूं तो मुझे उससे ऐसी बातों की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। मुझे समझते देर न लगी कि राघव की ये बहन खेली खाई लौंडिया है। काफी समय हो गया था किसी लड़की को पेले हुए तो सोचा चलो यही सही। ज़हन में कंचन और सुषमा का ख़्याल तो आया लेकिन उनकी तरफ से कुछ मिलने की उम्मीद अगर थी भी तो अभी उसमें समय लगना था।

राघव आया तो हम दोनों फिर से बातों में लग गए। कुछ ही देर में जमुना हाथ में एक लोटा लिए बाहर आई और अपने भाई राघव से नज़र बचा कर मुझे आंखों से इशारा करते हुए चली गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा तेज़ हो गईं कि ये तो साली सच में ही चुदने को तैयार है। कुछ देर तक मैं राघव से बातें करता रहा और फिर उससे कल मिलने का कह कर मैं उठ कर चल दिया। सड़क पर आ कर मैं रुका और पलट कर राघव की तरफ देखा। वो मेरे जाते ही चारपाई पर लेट गया था। शायद दिन भर की मेहनत से थका हुआ था वो। उसे लेटा देख मैं फ़ौरन ही उस तरफ बढ़ चला जिधर जमुना गई थी।

गांव के उत्तर में एक नदी थी इस लिए मैं तेज़ी से उसी तरफ बढ़ता चला जा रहा था। अंधेरा हो चुका था इस लिए दूर का साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था। शुक्र था कि गगन में आधे से थोड़ा कम चांद था जिसकी वजह से कुछ कुछ दिख रहा था। मन में कई तरह के ख़्याल बुनते हुए मैं जल्दी ही नदी के पास पहुंच गया। आम तौर पर गांव के लोग नदी की तरफ दिन में ही दिशा मैदान के लिए आते थे। आज कल तो वैसे भी खेत खलिहान खाली पड़े थे इस लिए जिसका जहां मन करता था रात के अंधेरे में वहीं हगने बैठ जाते थे। नदी के पास पेड़ पौधे और झाड़ियां थी इस लिए अंधेरे में कोई इस तरफ नहीं आता था।

नदी के पास आ कर मैं जमुना को इधर उधर देखने लगा। सहसा दाएं तरफ से हल्की आवाज़ आई तो मैं उस तरफ बढ़ चला। कुछ ही पलों में एक पेड़ के पीछे खड़ी जमुना मुझे मिल गई। मुझे देख कर वो मुस्कुराई और फिर जाने क्या सोच कर शर्माने लगी। अब क्योंकि हम दोनों ही जानते थे कि हम यहां किस लिए आए थे तो देर करने का सवाल ही नहीं था। मैं तो वैसे भी देर नहीं करना चाहता था।

"तो शुरू करें सरकार?" मैंने उसके कंधों को पकड़ कर उससे कहा तो उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर कहा____"आप हमें ऐसी वैसी समझ रहे होंगे न?"
"उससे क्या फ़र्क पड़ता है?" मैंने उसकी आंखों में देखा।

"नहीं, फ़र्क पड़ता है जीजा जी।" जमुना ने धीमी आवाज़ में कहा____"हम सच में ऐसी वैसी नहीं हैं। पिछली बार जब आपको देखा था तो आप हमें बहुत अच्छे लगे थे। फिर जब आपके बारे में हमें पता चला तो सोचने लगे कि क्या सच में आप ऐसे होंगे? मन में आपको परखने की ख़्वाइश पैदा हो गई थी लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम बर्बाद ही हो गए।"

"क्या मतलब?" मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर चौंका।
"कुछ महीने पहले हमारी बड़ी दीदी के घर वाले आए थे।" जमुना ने सिर झुकाते हुए कहा____"उन्होंने हमें अपने जाल में फांस लिया और फिर हमारे साथ वो सब कर डाला जो शादी के बाद मिया बीवी करते हैं। हम नादान और नासमझ थे। जीजा जी हमारे लिए नए नए कपड़े लाए थे जिससे हम बहुत खुश थे और उसी खुशी की वजह से हम समझ न पाए कि वो हमारे साथ क्या क्या करते जा रहे थे। उनके छूने से उस वक्त हमें अच्छा लग रहा था और फिर धीरे धीरे बात आगे तक बढ़ती चली गई। उन्होंने हमें एक लड़की से औरत बना दिया। दर्द में हम बहुत रोए थे मगर किसी से कह नहीं सकते थे क्योंकि उन्होंने हमें अच्छी तरह समझाया कि ऐसा करने से हमारी बदनामी तो होगी ही साथ ही कोई हमसे ब्याह भी नहीं करेगा। उसके बाद कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन एक दिन जीजा जी के यहां से हमारा बुलावा आ गया। असल में दीदी को बच्चा होना था तो वो घर के कामों के लिए हमें भेज देने को बोले थे। राघव भैया हमें उनके यहां भेज आए। वहां जाने के बाद दूसरी रात ही वो हमारे पास आ गए और हमारे साथ वो सब करने लगे तो हमने उन्हें रोका मगर वो कहने लगे कि अगर हमने उन्हें वो सब नहीं करने दिया तो वो सबको बता देंगे। बस अपनी बदनामी के डर से हम भी मजबूर हो गए और उन्होंने उस रात हमारे साथ कई बार वो सब किया। उसके बाद तो जब तक हम दीदी के यहां रहे तब तक वो हमारे साथ वही सब करते रहे। दीदी के यहां से जब हम यहां अपने घर आए तो हमें जल्दी ही महसूस हुआ कि हमें उसकी ज़रूरत है। शायद हम इसके आदि हो गए थे। हमें समझ ना आया कि हम क्या करें? किसी तरह समय गुज़रा। फिर भैया का ब्याह हुआ और भौजी आ गई। हम जानते थे कि बंद कमरे में भैया और भौजी क्या करते हैं। उन्हें चुपके से देखते तो हमारे अंदर और भी वो सब करने की इच्छा बढ़ गई। एक दिन हमने देखा कि गांव का एक लड़का हमें ग़लत इशारे कर रहा था। हम समझ गए कि वो हमसे क्या चाहता है। हमें भी उसी की ज़रूरत थी इस लिए हमने भी उसे मुस्कुरा कर देखा। उसी शाम को यहीं पर उस लड़के से हम मिले और फिर हमारे बीच वो सब हुआ। अब तो आदत पड़ गई है जीजा जी लेकिन यकीन मानिए उस लड़के के अलावा हमने और किसी के साथ ऐसा नहीं किया।"

"छोड़ो इस बात को।" मैंने उसके चेहरे को हथेलियों में ले कर कहा____"जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं थी लेकिन हां ये ग़लती ज़रूर है कि तुम गांव के किसी लड़के के साथ ये सब करती हो। मान लो किसी दिन उस लड़के ने गांव में किसी और को ये सब बता दिया तो क्या होगा? गांव समाज के बीच तुम्हारी और तुम्हारे घर परिवार की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। इस लिए बेहतर ये है कि फ़ौरन ही ब्याह कर लो। मैं कल ही तुम्हारे भाई राघव से इस बारे में बात करूंगा।"

जमुना मेरी आंखों में देख रही थी। मैंने झुक कर उसके होठों को चूमा और फिर उसके होठों को मुंह में भर कर मज़े से चूसने लगा। जमुना पूरा साथ दे रही थी। मैं चोली के ऊपर से ही उसके ठोस उभारों को मुट्ठी में ले कर मसलने लगा था जिससे उसके मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं थी।

मैंने चोली के अंदर हाथ डाला और उसकी एक चूची को पकड़ कर थोड़ा ज़ोर से दबाया तो जमुना सिसकी लेते हुए मचल उठी। वो पूरे जोश में आ चुकी थी और मेरी पीठ पर अपने हाथ चला रही थी। कुछ देर उसके होठों को चूमने चूसने के बाद मैंने उसे घुमा दिया जिससे उसकी पीठ मेरी तरफ आ गई। मैंने जल्दी जल्दी उसकी चोली की डोरी को छोरा और फिर उसे उसके जिस्म से उतार दिया। जमुना अब ऊपर से पूरी तरह नंगी हो गई थी। मैंने पीछे से दोनों हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी चूचियों को मुट्ठी में भर कर मसलना शुरू कर दिया। जमुना सिसकियां भरते हुए अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर घिसने लगी जिससे मेरा शख़्त लंड और भी बुरी तरह से अकड़ गया।

मैंने जमुना को अपनी तरफ घुमाया और उसकी एक चूची को मुंह में भर लिया। जमुना के मुंह से आनन्द में डूबी सिसकी निकल गई। वो मेरे सिर को अपनी चूची पर दबाने लगी। मैंने अच्छी तरह बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों को मुंह में ले कर चूसा और फिर एक हाथ सरका कर घाघरे में डाल दिया। जमुना ने कच्छी पहन रखी थी। उसकी योनि वाला हिस्सा बुरी तरह धधक रहा था। मैंने कच्छी के अंदर हाथ डाल कर उसकी योनि को छुआ तो मेरी उंगली में उसका कामरस लग गया। जमुना पूरी तरह गरम हो गई थी। मैंने बीच वाली उंगली को उसकी योनि के अंदर डाला तो जमुना ने अपनी टांगों को भींच लिया और साथ ही उसके मुख से सिसकी निकल गई। उसने झटके से अपना एक हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख लिया और उसे दबाने लगी।

मेरे पास ज़्यादा समय नहीं था इस लिए मैंने फ़ौरन ही अपना पैंट खोला और कच्छे से अपने लंड को निकाल कर जमुना के हाथ में पकड़ा दिया। जमुना को जैसे ही मेरे लंड की लंबाई और मोटाई का अंदाज़ा हुआ तो उसे झटका लगा।

"य...ये तो बहुत बड़ा और मोटा है जीजा जी।" जमुना ने हकलाते हुए कहा____"आह! कितना गरम है ये। मेरी योनि को तो फाड़ ही देगा ये।"

मैं उसकी बात पर मुस्कुराया, उधर जमुना बड़े प्यार से मेरे लंड को सहलाने लगी थी। उसके कोमल हाथों के स्पर्श से मेरा लंड और भी झटके खाने लगा था। जमुना एकदम से नीचे उकड़ू हो कर बैठ गई और मेरे लंड को पकड़ कर अपने चेहरे को आगे कर उसे चूम लिया। मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसा भी कर सकती है लेकिन फिर याद आया कि शायद उसके जीजा ने उससे ये सब करवाया होगा इस लिए उसे ये सब भी पता था। ख़ैर एक दो बार चूमने के बाद जमुना ने अपना मुंह खोला और मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गर्म मुख में मेरा लंड गया तो मेरे समूचे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई। वो मेरे लंड के सुपाड़े को बड़े अच्छे तरीके से चूस रही थी। पलक झपकते ही मैं मज़े के सातवें आसमान में पहुंच गया।

मैंने जमुना को अपनी कच्छी उतारने को कहा तो उसने खड़े हो कर अपनी कच्छी उतारी। मैंने उसे घुमा दिया जिससे उसकी गांड मेरी तरफ हो गई। उसके बाद मैंने उसे पेड़ का सहारा ले कर झुक जाने को कहा तो वो झुक गई। मैंने उसके घाघरे को उसकी कमर तक चढ़ा कर एक हाथ से अपने लंड को उसकी कामरस बहा रही योनि में टिकाया और अपनी कमर को आगे की तरफ धकेल दिया।

"आह! जीजा जी।" लंड जैसे ही उसकी योनि में घुसा तो उसने आह भरी। मेरा लंड एक तिहाई ही उसकी योनि में घुसा था और फिर अगले ही पल मैंने ज़ोर का धक्का लगा दिया जिससे जमुना के मुख से हल्की दर्द भरी आह निकल गई। उसने पेड़ को दोनों हाथों से थाम लिया था।

जमुना की योनि पहले से ही चुदी हुई थी लेकिन इसके बावजूद मुझे थोड़ा कम खुली हुई महसूस हुई। मैंने जमुना की कमर को दोनों हाथों से पकड़ा और ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। जमुना मेरे धक्के लगाने से जल्दी ही गनगना गई। शान्त वातावरण में उसकी मादक सिसकारियां गूंजने लगीं थी। मुझे जमुना को इस तरह झुका कर चोदने में बहुत मज़ा आ रहा था।

"आह! जीजा जी और ज़ोर से चोदिए मुझे।" जमुना आहें भरते हुए बोली____"मैं झड़ने वाली हूं। हाय! कितना मज़ा आ रहा है मुझे। मैं आसमान में उड़ी जा रही हूं जीजा जी। कृपया सम्हालिए मुझे....आह...।"

जमुना झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। उसका समूचा बदन कांपने लगा था। उसका गरम गरम कामरस जैसे ही मेरे लंड को भिगोया तो मेरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई। आनंद की लहर ने फ़ौरन ही मुझे चरम पर पहुंचा दिया और इससे पहले कि मैं जमुना की योनि में झड़ जाता मैंने फ़ौरन ही अपने लंड को उसकी योनि से निकाल लिया। उधर जमुना जल्दी से पलटी और बैठ कर मेरे लंड को पकड़ लिया। मेरा लंड उसके कामरस में नहाया हुआ था जिसे जल्दी ही उसने अपने मुंह में भर कर चूसना चाटना शुरू कर दिया। मैंने जमुना के सिर को पकड़ा और उसके मुंह को ही योनि समझ कर धक्के लगाते हुए चोदने लगा। जमुना मेरे इस कार्य से थोड़ा हड़बड़ाई मगर उसने लंड को अपने मुंह से नहीं निकाला। जल्दी ही उसकी चुसाई से मेरा जिस्म झटके खाने लगा और मेरे लंड से वीर्य की धार उसके मुंह में ही छूटने लगी। वीर्य की अंतिम बूंद निकल जाने के बाद ही मैंने जमुना के सिर को छोड़ा और फिर शांत सा पड़ गया। उधर जमुना मेरे वीर्य को मजबूरी में पी जाने के बाद खांसने लगी थी।

"आपने तो जान ही निकाल दी मेरी।" जमुना ने अपनी उखड़ी हुई सांसों को काबू करते हुए कहा____"एक पल को ऐसा लगा जैसे अब तो मर ही गई मैं।"
"क्या करें सरकार?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आपने चुसाई ही इस तरीके से की कि मैं होश खो बैठा था।"

"सही सुना था आपके बारे में।" जमुना ने कहा____"आप तो सच में कमाल के हैं जीजा जी। मन करता है एक बार और आपसे चुदवा लूं लेकिन घर जाना भी ज़रूरी है। अगर देर हो गई तो आफ़त हो जाएगी।"

हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपने बचे हुए कपड़े पहने। जमुना को एक बार और चोदने का मन था मेरा लेकिन उसका घर जाना ज़रूरी था इस लिए उसकी चूचियों को जी भर के मसलने के बाद मैंने उसे जाने दिया। उसके जाने के कुछ देर बाद मैं भी घर की तरफ चल पड़ा। आज काफ़ी समय बाद किसी लड़की को पेलने का मौका मिला था। जमुना को चोदने के बाद मैं काफी खुश था।

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अब तक....


सुषमा मेरी कोई बात सुने बिना ही चली गई। शायद वो समझ गई थी कि जितना वो मुझसे इस बारे में बातें करेगी उतना वो खुद ही फंसती जाएगी। या फिर ये भी संभव था कि दिशा मैदान के लिए जाना उसके लिए ज़रूरी हो गया था। ख़ैर, मैं उसकी हालत को सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और फिर बाहर की तरफ चल पड़ा। अभी दरवाज़े पर ही पहुंचा था कि सामने से मुझे सुषमा की ननद कंचन इधर ही आती हुई दिखी। उसे आता देख मेरे होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई और मैं पलट कर इस बार दरवाज़े के बगल से दीवार की ओट में छिप गया।

अब आगे....



मैं दीवार के ओट में छुपा देख रहा था कि कंचन तेज़ कदमों से चली आ रही थी। शाम का अंधेरा घिरने लगा था इस लिए उसका क़यामत ढाता हुस्न ज़्यादा साफ़ नहीं दिख रहा था। उसे ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि उसके घर में इस वक्त मेरे अलावा कोई नहीं है। ख़ैर जल्दी ही वो अंदर दाखिल हुई। बिना इधर उधर देखे वो सीधा अंदर ही बढ़ती चली गई। कुछ ही पलों में उसकी आवाज़ मुझे सुनाई दी। वो सुषमा को भौजी कह कर पुकार रही थी। दो तीन बार पुकारने के बाद उसका पुकारना बंद हो गया। मेरे मन में ये जानने की उत्सुकता बढ़ गई कि अंदर वो क्या करने लगी होगी अकेले घर में?

मैं दबे पांव अंदर की तरफ बढ़ चला। बाहर बैठक में और अंदर आंगन में लालटेन जल रही थी, बाकी बाहर बरोठ में अंधेरा था। अंदर वाले बरोठ में जब मैं पहुंचा तो आंगन में जल रही लालटेन का हल्का प्रकाश महसूस हुआ। मैंने दीवार की ओट से छुप कर अंदर आंगन की तरफ देखा, कंचन कहीं नज़र ना आई। मेरे दिल की धड़कनें थोड़ा तेज़ हो गईं थी लेकिन फिर भी मैं दबे पांव आगे बढ़ा और जल्दी ही आंगन वाली दीवार के पास आ गया। मैंने आंगन के पूरे हिस्से में निगाह घुमाई और अगले ही पल मेरी नज़र आंगन के एक कोने में ठहर गई।

अपनी भाभी सुषमा की तरह कंचन भी अपने कपड़े उतारे पूरी नंगी खड़ी दूसरे कपड़े पहनने की तैयारी कर रही थी। लालटेन की रोशनी में उसका जिस्म ऊपर से नीचे तक एकदम साफ़ नज़र आ रहा था। उसे इस हालत में देख कर मेरे अंदर ज़बरदस्त हलचल मच गई। पहले सुषमा और अब उसकी ननद कंचन। मैं समझ गया कि वो भी दिशा मैदान जाने के लिए कपड़े बदल रही है। ये औरतों का रोज सुबह शाम का नियम था। दिशा मैदान जाने के लिए दूसरे कपड़े पहनते थे सब।

कंचन के सीने पर मध्यम आकार के उभार एकदम ठोस और तने हुए दिख रहे थे। उन उभारों के बीच भूरे रंग के चूचक बहुत ही सुंदर नज़र आ रहे थे। मेरा मन किया कि अभी जाऊं और उन चूचकों को मुंह में भर कर चूसना शुरू कर दूं लेकिन फिर किसी तरह मैंने खुद को रोका। ऐसा करना यकीनन ख़तरनाक हो सकता था, क्योंकि ये उसके साथ ज़बरदस्ती कहलाता। कंचन का पेट तक का हिस्सा मुझे साफ़ दिख रहा था किंतु उसके नीचे का हिस्सा उसके उस दूसरे कपड़े की वजह से छिपा हुआ था जिसे वो पहनने वाली थी। उसे इस हालत में देख कर मेरे अंदर का खून उबाल मारने लगा और मेरी टांगों के बीच कच्छे में छुपा मेरा लंड आधे से ज़्यादा सिर उठा चुका था। दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ बजती महसूस हो रहीं थी।

मैं जानता था कि कंचन को फंसाने का इससे अच्छा मौका नहीं मिलने वाला था लेकिन मैं ये भी जानता था कि अगर मैंने कुछ भी उल्टी सीधी हरकत की तो भारी गड़बड़ हो जाएगी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं? उधर कंचन अपने दूसरे कुर्ते को सीधा करने में लगी हुई थी। जल्द ही वो कपड़े पहन कर दिशा मैदान के लिए निकल जाने वाली थी। मेरा ज़हन बड़ी तेज़ी से कोई उपाय सोचने में लगा हुआ था लेकिन हड़बड़ी में कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था। अचानक मैंने एक फ़ैसला किया, मैंने सोच लिया कि अब जो होगा देखा जाएगा। मैं ऐसा सुनहरा मौका गंवाना नहीं चाहता था।

आंखें बंद कर के मैंने दो तीन गहरी गहरी सांसें ली और पलट कर चार पांच क़दम पीछे आया। उसके बाद सामान्य अंदाज़ में भाभी भाभी पुकारते हुए मैं एकदम से आंगन में आ गया। उधर मेरे द्वारा भाभी भाभी पुकारने पर कंचन बुरी तरह हड़बड़ा गई और साथ ही घबरा भी गई। वो मादरजाद नंगी खड़ी थी। हम दोनों की नज़रें जैसे ही एक दूसरे से मिलीं तो मानो वक्त ठहर गया। मैंने तो ख़ैर बुरी तरह चकित हो जाने का नाटक किया लेकिन कंचन भौचक्की सी खड़ी रह गई। अचानक उसे अपनी हालत का एहसास हुआ। उसने बुरी तरह हड़बड़ा कर उसी कुर्ते को अपने सीने पर छुपा लिया जिसे वो सीधा कर के पहनने वाली थी।

"ह....हाय राम।" फिर वो बुरी तरह से शरमाते हुए बड़ी मुश्किल से बोली_____"आप यहां क्या कर रहे हैं जीजा जी? जाइए यहां से।"
"म...मैं तो यहां भाभी से मिलने आया था।" मैंने बुरी तरह हकलाने का नाटक किया____"मुझे क्या पता था कि यहां ग़ज़ब का सौंदर्य दर्शन हो जाएगा।"

"हे भगवान! कितने ख़राब हैं आप?" कंचन झल्लाहट में दबी आवाज़ से मानों चीखी____"जाइए आप यहां से। आपको शर्म नहीं आती किसी लड़की को इस तरह देखते हुए?"

"लो कर लो बात।" मैंने पूरी ढिठाई से कहा____"मैं थोड़ी ना नंगा खड़ा हूं जो मुझे शर्म आएगी? शर्म तो आपको आनी चाहिए सरकार जो मुझ जैसे भोले भाले लड़के के सामने अपना ये ख़ूबसूरत बदन दिखा रही हैं।"

"भगवान के लिए चले जाइए यहां से।" कंचन ने इस बार मिन्नतें की____"मुझे आपके सामने इस हालत में बहुत शर्म आ रही है।"
"ठीक है आप कहती हैं तो चला जाता हूं।" मैंने उसको ऊपर से नीचे तक देखते हुए कहा____"वैसे अब मुझसे कुछ छुपाने लायक तो रहा नहीं।"

"हे भगवान! क्या आपने सब देख लिया?" कंचन ने इस तरह कहा जैसे उसके प्राण ही निकल गए हों।
"मैं क्या करता भला?" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"आप सब कुछ खोले खड़ी थीं तो नज़र पड़ ही गई। अगर मुझे पहले से पता होता तो यहां आंगन में आता ही नहीं बल्कि छुप कर आपके ख़ूबसूरत बदन का जी भर के दीदार करता।"

"हाय राम!" कंचन आश्चर्य से आंखें फाड़ कर बोली____"कितने बेशर्म हैं आप? जा कर दीदी से शिकायत करूंगी आपकी।"
"ज़रूर कीजिएगा सरकार।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा_____"इतना ख़ूबसूरत नज़ारा देखने के बाद तो अब मैं सूली पर भी चढ़ जाऊंगा।"

कंचन का चेहरा शर्म से पानी पानी हुआ जा रहा था। वो कुर्ते को अपने सीने पर ऐसे कस के चिपकाए हुए थी मानो उसे डर हो कि कहीं वो उसके चिकने बदन से फिसल न जाए। अपनी समझ में उसने खुद को उस कुर्ते से पूरा छुपा लिया था जबकि सच तो ये था कि कुर्ते से अपने उभारों को छुपाने के चक्कर में उसकी नाभि से नीचे तक का पूरा हिस्सा बेपर्दा हो गया था। वो क्योंकि मेरी तरफ ही मुड़ कर खड़ी थी इस लिए लालटेन की रोशनी में मुझे मस्त गुदाज़ जांघों के बीच हल्के बालों से घिरी उसकी योनि साफ़ झलकती दिख रही थी। उसे इस बात का ध्यान ही नहीं रह गया था कि उसकी सबसे ज़्यादा अनमोल चीज़ तो मेरे सामने ही बेपर्दा है।

"मुझे और शर्मिंदा मत कीजिए?" कंचन ने बेबस भाव से कहा____"कृपया चले जाइए न यहां से। अगर कोई आ गया तो भारी मुसीबत हो जाएगी।"

"ठीक है जा रहा हूं।" मैंने इस बार थोड़ा संजीदा भाव से कहा____"और हां, आपको शर्मिंदा होने की कोई ज़रूरत नहीं है। इसमें आपकी कोई ग़लती नहीं है। जो कुछ हुआ वो बस इत्तेफ़ाक़ से हुआ है। वैसे एक बात कहूं, आप बिना कपड़ों में बहुत ही ख़ूबसूरत दिखती हैं। ख़ास कर आपकी राजकुमारी।"

इतना कह कर मैं पलटा और तेज़ी से बाहर निकल गया। मैं जानता था कि मेरी आख़िरी बात ने कंचन को बुरी तरह चौंका दिया होगा। वो जब अपने बदन के निचले हिस्से को बेपर्दा देखेगी तो उसका और भी शर्म से बुरा हाल हो जाएगा। अब इस घर में रुकना ठीक नहीं था इस लिए मैं घर से बाहर ही आ गया।

हर तरफ अंधेरा फ़ैल गया था। रागिनी भाभी के घर जाने का मेरा कोई इरादा नहीं था इस लिए मैं उस तरफ चल पड़ा जहां कुछ मिलने की उम्मीद थी। एक मोड़ से मुड़ कर मैं कुछ ही देर में एक घर के पास पहुंच गया। घर के सामने जो खाली जगह थी वहां एक तरफ मवेशी बंधे हुए थे जिनको एक आदमी भूसा डाल रहा था। घर के बाहर दीवार से सट कर ही चबूतरा बना हुआ था जिसमें लालटेन रखी हुई थी। द्वार के सामने कुछ ही दूरी पर एक चारपाई रखी हुई थी। मैं आगे बढ़ा और जा कर उस चारपाई पर बैठ गया।

"कैसे हैं राघव भैया?" मैंने भूसा डाल रहे आदमी को आवाज़ लगाते हुए कहा तो उसने फ़ौरन ही पलट कर मेरी तरफ देखा और मुझ पर नज़र पड़ते ही उसके चेहरे पर चमक उभर आई।

"अरे! वैभव महाराज आप यहां?" वो फ़ौरन ही भूसे की झाल को वहीं छोड़ कर भागता हुआ आया और मेरे पैर छूते हुए बोला____"धन्य भाग हमारे जो आपके दर्शन हो गए।"

"आज दोपहर ही आया हूं।" मैंने कहा____"साले साहब ने संदेशा भेजा था तो भाभी को ले कर आना पड़ा।"
"ये तो बहुत ही अच्छा हुआ जो आप यहां आ गए।" राघव भारी खुश हो गया था, बोला____"क़सम से आंखें तरस गईं थी आपको देखने के लिए।"

राघव सिंह इसी गांव का था और मेरी उससे काफ़ी अच्छी बनती थी। मुझसे उमर में दो तीन साल बड़ा था लेकिन मेरी ही तरह औरतबाज था वो। उससे मेरी इतनी गहरी दोस्ती हो गई थी कि कई बार हमने एक साथ ही एक दो औरतों को पेला था। ख़ैर मेरे कहने पर राघव ने पहले मवेशियों को भूसा डाला उसके बाद वो हाथ पैर धो कर अंदर चला गया। कुछ ही देर में मैंने देखा अंदर से एक लड़की उसके साथ बाहर आई। लड़की के हाथ में एक थाली थी। वो लड़की राघव की बहन जमुना थी। पिछली बार जब मैने उसे देखा था तो वो थोड़ा दुबली पतली थी किंतु अब उसका जिस्म भरा भरा दिख रहा था और उसके सीने के उभार भी अच्छे खासे दिख रहे थे। मुझ पर नज़र पड़ते ही उसने मुस्कुराते हुए नमस्ते किया।

जमुना ने घागरा चोली पहन रखा था इस लिए झुक कर जैसे ही उसने थाली मेरी तरफ बढ़ाई तो चोली के बड़े गले से उसकी आधे से ज़्यादा चूचियां दिखने लगीं। मेरी नज़र मानों उसके गोलों पर ही चिपक गई। जमुना भी समझ गई कि मैं उसकी चूचियों को देख रहा हूं इस लिए उसने मुस्कुराते हुए धीमें से कहा____"पहले थाली का प्रसाद खा लीजिए जीजा जी, उसके बाद अंदर का प्रसाद खाने का सोचिएगा।"

जमुना की बात सुन कर मैं पहले तो हल्के से हड़बड़ाया और फिर मुस्कुराते हुए थाली में रखी कटोरी को उठा लिया। राघव उसके पीछे कुछ ही दूरी पर खड़ा था। मैंने कटोरी लिया तो जमुना सीधी खड़ी हो गई और फिर मुस्कुराते हुए अंदर जाने लगी तो राघव ने उसे लोटा गिलास में पानी लाने को कहा।

जमुना के जाने के बाद राघव चबूतरे में बैठ गया। हम दोनों इधर उधर की बातें करने लगे। कुछ देर में जमुना लोटा गिलास में पानी ले कर आई और राघव से कहा कि भौजी बुला रही हैं। जमुना की बात सुन कर राघव मुझसे अभी आया महाराज बोल कर अंदर चला गया।

"क्या बात है सरकार, आप तो गज़ब का माल लगने लगी हैं।" मैंने जमुना के सीने के उभारों को देखते हुए कहा____"कभी हमें भी चखने का मौका दीजिए।"
"धत्त।" जमुना बड़ी अदा से बोली____"हम ऐसे वैसे नहीं हैं जीजा जी इस लिए होश में रह कर बात कीजिए।"

"आपको देखने के बाद अब हम होश में रहे कहां सरकार?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आपके इस हुस्न ने तो हमारे अंदर के हर पुर्जे को हिला दिया है।"
"अच्छा जी ऐसा है क्या?" जमुना ने मुस्कुराते हुए कहा____"फिर तो आपके पुर्जों को जल्दी ही ठीक करना पड़ेगा हमें, है ना?"

"ये भी कोई पूछने की बात है क्या?" मैं जमुना की बेबाकी पर मन ही मन हैरान था मगर उसकी मंशा समझते हुए बोला____"अगर आप हमारे पुर्जों को ठीक करेंगी तो ये हमारा सौभाग्य होगा।"

"अगर ऐसी बात है तो ठीक है।" जमुना ने एक बार अंदर की तरफ निगाह डालते हुए कहा____"हम दिशा मैदान के लिए जा रहे हैं। आप भी कुछ देर में नदी तरफ आ जाइएगा। हम वहीं आपके पुर्जों को ठीक करेंगे।"

जमुना अपना निचला होठ दांतों से दबा कर मुस्कुराई और फिर अपनी गोल गोल गांड को मटकाते हुए अंदर चली गई। सच कहूं तो मुझे उससे ऐसी बातों की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी। मुझे समझते देर न लगी कि राघव की ये बहन खेली खाई लौंडिया है। काफी समय हो गया था किसी लड़की को पेले हुए तो सोचा चलो यही सही। ज़हन में कंचन और सुषमा का ख़्याल तो आया लेकिन उनकी तरफ से कुछ मिलने की उम्मीद अगर थी भी तो अभी उसमें समय लगना था।

राघव आया तो हम दोनों फिर से बातों में लग गए। कुछ ही देर में जमुना हाथ में एक लोटा लिए बाहर आई और अपने भाई राघव से नज़र बचा कर मुझे आंखों से इशारा करते हुए चली गई। मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा तेज़ हो गईं कि ये तो साली सच में ही चुदने को तैयार है। कुछ देर तक मैं राघव से बातें करता रहा और फिर उससे कल मिलने का कह कर मैं उठ कर चल दिया। सड़क पर आ कर मैं रुका और पलट कर राघव की तरफ देखा। वो मेरे जाते ही चारपाई पर लेट गया था। शायद दिन भर की मेहनत से थका हुआ था वो। उसे लेटा देख मैं फ़ौरन ही उस तरफ बढ़ चला जिधर जमुना गई थी।

गांव के उत्तर में एक नदी थी इस लिए मैं तेज़ी से उसी तरफ बढ़ता चला जा रहा था। अंधेरा हो चुका था इस लिए दूर का साफ़ साफ़ दिख नहीं रहा था। शुक्र था कि गगन में आधे से थोड़ा कम चांद था जिसकी वजह से कुछ कुछ दिख रहा था। मन में कई तरह के ख़्याल बुनते हुए मैं जल्दी ही नदी के पास पहुंच गया। आम तौर पर गांव के लोग नदी की तरफ दिन में ही दिशा मैदान के लिए आते थे। आज कल तो वैसे भी खेत खलिहान खाली पड़े थे इस लिए जिसका जहां मन करता था रात के अंधेरे में वहीं हगने बैठ जाते थे। नदी के पास पेड़ पौधे और झाड़ियां थी इस लिए अंधेरे में कोई इस तरफ नहीं आता था।

नदी के पास आ कर मैं जमुना को इधर उधर देखने लगा। सहसा दाएं तरफ से हल्की आवाज़ आई तो मैं उस तरफ बढ़ चला। कुछ ही पलों में एक पेड़ के पीछे खड़ी जमुना मुझे मिल गई। मुझे देख कर वो मुस्कुराई और फिर जाने क्या सोच कर शर्माने लगी। अब क्योंकि हम दोनों ही जानते थे कि हम यहां किस लिए आए थे तो देर करने का सवाल ही नहीं था। मैं तो वैसे भी देर नहीं करना चाहता था।

"तो शुरू करें सरकार?" मैंने उसके कंधों को पकड़ कर उससे कहा तो उसने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देखा और फिर कहा____"आप हमें ऐसी वैसी समझ रहे होंगे न?"
"उससे क्या फ़र्क पड़ता है?" मैंने उसकी आंखों में देखा।

"नहीं, फ़र्क पड़ता है जीजा जी।" जमुना ने धीमी आवाज़ में कहा____"हम सच में ऐसी वैसी नहीं हैं। पिछली बार जब आपको देखा था तो आप हमें बहुत अच्छे लगे थे। फिर जब आपके बारे में हमें पता चला तो सोचने लगे कि क्या सच में आप ऐसे होंगे? मन में आपको परखने की ख़्वाइश पैदा हो गई थी लेकिन फिर कुछ ऐसा हुआ कि हम बर्बाद ही हो गए।"

"क्या मतलब?" मैं उसकी आख़िरी बात सुन कर चौंका।
"कुछ महीने पहले हमारी बड़ी दीदी के घर वाले आए थे।" जमुना ने सिर झुकाते हुए कहा____"उन्होंने हमें अपने जाल में फांस लिया और फिर हमारे साथ वो सब कर डाला जो शादी के बाद मिया बीवी करते हैं। हम नादान और नासमझ थे। जीजा जी हमारे लिए नए नए कपड़े लाए थे जिससे हम बहुत खुश थे और उसी खुशी की वजह से हम समझ न पाए कि वो हमारे साथ क्या क्या करते जा रहे थे। उनके छूने से उस वक्त हमें अच्छा लग रहा था और फिर धीरे धीरे बात आगे तक बढ़ती चली गई। उन्होंने हमें एक लड़की से औरत बना दिया। दर्द में हम बहुत रोए थे मगर किसी से कह नहीं सकते थे क्योंकि उन्होंने हमें अच्छी तरह समझाया कि ऐसा करने से हमारी बदनामी तो होगी ही साथ ही कोई हमसे ब्याह भी नहीं करेगा। उसके बाद कुछ समय तक सब ठीक रहा लेकिन एक दिन जीजा जी के यहां से हमारा बुलावा आ गया। असल में दीदी को बच्चा होना था तो वो घर के कामों के लिए हमें भेज देने को बोले थे। राघव भैया हमें उनके यहां भेज आए। वहां जाने के बाद दूसरी रात ही वो हमारे पास आ गए और हमारे साथ वो सब करने लगे तो हमने उन्हें रोका मगर वो कहने लगे कि अगर हमने उन्हें वो सब नहीं करने दिया तो वो सबको बता देंगे। बस अपनी बदनामी के डर से हम भी मजबूर हो गए और उन्होंने उस रात हमारे साथ कई बार वो सब किया। उसके बाद तो जब तक हम दीदी के यहां रहे तब तक वो हमारे साथ वही सब करते रहे। दीदी के यहां से जब हम यहां अपने घर आए तो हमें जल्दी ही महसूस हुआ कि हमें उसकी ज़रूरत है। शायद हम इसके आदि हो गए थे। हमें समझ ना आया कि हम क्या करें? किसी तरह समय गुज़रा। फिर भैया का ब्याह हुआ और भौजी आ गई। हम जानते थे कि बंद कमरे में भैया और भौजी क्या करते हैं। उन्हें चुपके से देखते तो हमारे अंदर और भी वो सब करने की इच्छा बढ़ गई। एक दिन हमने देखा कि गांव का एक लड़का हमें ग़लत इशारे कर रहा था। हम समझ गए कि वो हमसे क्या चाहता है। हमें भी उसी की ज़रूरत थी इस लिए हमने भी उसे मुस्कुरा कर देखा। उसी शाम को यहीं पर उस लड़के से हम मिले और फिर हमारे बीच वो सब हुआ। अब तो आदत पड़ गई है जीजा जी लेकिन यकीन मानिए उस लड़के के अलावा हमने और किसी के साथ ऐसा नहीं किया।"

"छोड़ो इस बात को।" मैंने उसके चेहरे को हथेलियों में ले कर कहा____"जो कुछ तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं थी लेकिन हां ये ग़लती ज़रूर है कि तुम गांव के किसी लड़के के साथ ये सब करती हो। मान लो किसी दिन उस लड़के ने गांव में किसी और को ये सब बता दिया तो क्या होगा? गांव समाज के बीच तुम्हारी और तुम्हारे घर परिवार की इज्ज़त मिट्टी में मिल जाएगी। इस लिए बेहतर ये है कि फ़ौरन ही ब्याह कर लो। मैं कल ही तुम्हारे भाई राघव से इस बारे में बात करूंगा।"

जमुना मेरी आंखों में देख रही थी। मैंने झुक कर उसके होठों को चूमा और फिर उसके होठों को मुंह में भर कर मज़े से चूसने लगा। जमुना पूरा साथ दे रही थी। मैं चोली के ऊपर से ही उसके ठोस उभारों को मुट्ठी में ले कर मसलने लगा था जिससे उसके मुंह से सिसकारियां निकलने लगीं थी।

मैंने चोली के अंदर हाथ डाला और उसकी एक चूची को पकड़ कर थोड़ा ज़ोर से दबाया तो जमुना सिसकी लेते हुए मचल उठी। वो पूरे जोश में आ चुकी थी और मेरी पीठ पर अपने हाथ चला रही थी। कुछ देर उसके होठों को चूमने चूसने के बाद मैंने उसे घुमा दिया जिससे उसकी पीठ मेरी तरफ आ गई। मैंने जल्दी जल्दी उसकी चोली की डोरी को छोरा और फिर उसे उसके जिस्म से उतार दिया। जमुना अब ऊपर से पूरी तरह नंगी हो गई थी। मैंने पीछे से दोनों हाथ बढ़ा कर उसकी नंगी चूचियों को मुट्ठी में भर कर मसलना शुरू कर दिया। जमुना सिसकियां भरते हुए अपने चूतड़ों को मेरे लंड पर घिसने लगी जिससे मेरा शख़्त लंड और भी बुरी तरह से अकड़ गया।

मैंने जमुना को अपनी तरफ घुमाया और उसकी एक चूची को मुंह में भर लिया। जमुना के मुंह से आनन्द में डूबी सिसकी निकल गई। वो मेरे सिर को अपनी चूची पर दबाने लगी। मैंने अच्छी तरह बारी बारी से उसकी दोनों चूचियों को मुंह में ले कर चूसा और फिर एक हाथ सरका कर घाघरे में डाल दिया। जमुना ने कच्छी पहन रखी थी। उसकी योनि वाला हिस्सा बुरी तरह धधक रहा था। मैंने कच्छी के अंदर हाथ डाल कर उसकी योनि को छुआ तो मेरी उंगली में उसका कामरस लग गया। जमुना पूरी तरह गरम हो गई थी। मैंने बीच वाली उंगली को उसकी योनि के अंदर डाला तो जमुना ने अपनी टांगों को भींच लिया और साथ ही उसके मुख से सिसकी निकल गई। उसने झटके से अपना एक हाथ मेरे हाथ के ऊपर रख लिया और उसे दबाने लगी।

मेरे पास ज़्यादा समय नहीं था इस लिए मैंने फ़ौरन ही अपना पैंट खोला और कच्छे से अपने लंड को निकाल कर जमुना के हाथ में पकड़ा दिया। जमुना को जैसे ही मेरे लंड की लंबाई और मोटाई का अंदाज़ा हुआ तो उसे झटका लगा।

"य...ये तो बहुत बड़ा और मोटा है जीजा जी।" जमुना ने हकलाते हुए कहा____"आह! कितना गरम है ये। मेरी योनि को तो फाड़ ही देगा ये।"

मैं उसकी बात पर मुस्कुराया, उधर जमुना बड़े प्यार से मेरे लंड को सहलाने लगी थी। उसके कोमल हाथों के स्पर्श से मेरा लंड और भी झटके खाने लगा था। जमुना एकदम से नीचे उकड़ू हो कर बैठ गई और मेरे लंड को पकड़ कर अपने चेहरे को आगे कर उसे चूम लिया। मैंने आश्चर्य से उसकी तरफ देखा। मुझे उम्मीद नहीं थी कि वो ऐसा भी कर सकती है लेकिन फिर याद आया कि शायद उसके जीजा ने उससे ये सब करवाया होगा इस लिए उसे ये सब भी पता था। ख़ैर एक दो बार चूमने के बाद जमुना ने अपना मुंह खोला और मेरे लंड को मुंह में भर लिया। उसके गर्म मुख में मेरा लंड गया तो मेरे समूचे जिस्म में मज़े की लहर दौड़ गई। वो मेरे लंड के सुपाड़े को बड़े अच्छे तरीके से चूस रही थी। पलक झपकते ही मैं मज़े के सातवें आसमान में पहुंच गया।

मैंने जमुना को अपनी कच्छी उतारने को कहा तो उसने खड़े हो कर अपनी कच्छी उतारी। मैंने उसे घुमा दिया जिससे उसकी गांड मेरी तरफ हो गई। उसके बाद मैंने उसे पेड़ का सहारा ले कर झुक जाने को कहा तो वो झुक गई। मैंने उसके घाघरे को उसकी कमर तक चढ़ा कर एक हाथ से अपने लंड को उसकी कामरस बहा रही योनि में टिकाया और अपनी कमर को आगे की तरफ धकेल दिया।

"आह! जीजा जी।" लंड जैसे ही उसकी योनि में घुसा तो उसने आह भरी। मेरा लंड एक तिहाई ही उसकी योनि में घुसा था और फिर अगले ही पल मैंने ज़ोर का धक्का लगा दिया जिससे जमुना के मुख से हल्की दर्द भरी आह निकल गई। उसने पेड़ को दोनों हाथों से थाम लिया था।

जमुना की योनि पहले से ही चुदी हुई थी लेकिन इसके बावजूद मुझे थोड़ा कम खुली हुई महसूस हुई। मैंने जमुना की कमर को दोनों हाथों से पकड़ा और ज़ोर ज़ोर से धक्के लगाने लगा। जमुना मेरे धक्के लगाने से जल्दी ही गनगना गई। शान्त वातावरण में उसकी मादक सिसकारियां गूंजने लगीं थी। मुझे जमुना को इस तरह झुका कर चोदने में बहुत मज़ा आ रहा था।

"आह! जीजा जी और ज़ोर से चोदिए मुझे।" जमुना आहें भरते हुए बोली____"मैं झड़ने वाली हूं। हाय! कितना मज़ा आ रहा है मुझे। मैं आसमान में उड़ी जा रही हूं जीजा जी। कृपया सम्हालिए मुझे....आह...।"

जमुना झटके खाते हुए झड़ने लगी थी। उसका समूचा बदन कांपने लगा था। उसका गरम गरम कामरस जैसे ही मेरे लंड को भिगोया तो मेरे जिस्म में सनसनी फ़ैल गई। आनंद की लहर ने फ़ौरन ही मुझे चरम पर पहुंचा दिया और इससे पहले कि मैं जमुना की योनि में झड़ जाता मैंने फ़ौरन ही अपने लंड को उसकी योनि से निकाल लिया। उधर जमुना जल्दी से पलटी और बैठ कर मेरे लंड को पकड़ लिया। मेरा लंड उसके कामरस में नहाया हुआ था जिसे जल्दी ही उसने अपने मुंह में भर कर चूसना चाटना शुरू कर दिया। मैंने जमुना के सिर को पकड़ा और उसके मुंह को ही योनि समझ कर धक्के लगाते हुए चोदने लगा। जमुना मेरे इस कार्य से थोड़ा हड़बड़ाई मगर उसने लंड को अपने मुंह से नहीं निकाला। जल्दी ही उसकी चुसाई से मेरा जिस्म झटके खाने लगा और मेरे लंड से वीर्य की धार उसके मुंह में ही छूटने लगी। वीर्य की अंतिम बूंद निकल जाने के बाद ही मैंने जमुना के सिर को छोड़ा और फिर शांत सा पड़ गया। उधर जमुना मेरे वीर्य को मजबूरी में पी जाने के बाद खांसने लगी थी।

"आपने तो जान ही निकाल दी मेरी।" जमुना ने अपनी उखड़ी हुई सांसों को काबू करते हुए कहा____"एक पल को ऐसा लगा जैसे अब तो मर ही गई मैं।"
"क्या करें सरकार?" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"आपने चुसाई ही इस तरीके से की कि मैं होश खो बैठा था।"

"सही सुना था आपके बारे में।" जमुना ने कहा____"आप तो सच में कमाल के हैं जीजा जी। मन करता है एक बार और आपसे चुदवा लूं लेकिन घर जाना भी ज़रूरी है। अगर देर हो गई तो आफ़त हो जाएगी।"

हम दोनों ने जल्दी जल्दी अपने बचे हुए कपड़े पहने। जमुना को एक बार और चोदने का मन था मेरा लेकिन उसका घर जाना ज़रूरी था इस लिए उसकी चूचियों को जी भर के मसलने के बाद मैंने उसे जाने दिया। उसके जाने के कुछ देर बाद मैं भी घर की तरफ चल पड़ा। आज काफ़ी समय बाद किसी लड़की को पेलने का मौका मिला था। जमुना को चोदने के बाद मैं काफी खुश था।


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Wahh mst shandar update hai vaibhav to dono nanad bhaujaiyeo ke peechhe hi pad gya dono ke ang darshan kar liye aur dono ke sath bharpur chedkhani bhi kar liya aur kanchan ke kuch jyda hi mze le liya aur uske baad wha se nikal gya
Aur ek jugad itna fast wo bhi jamuna to kheli khai ladki thi turant tayar ho gyi aur usne bataya bhi use iski kyu lat lag gyi uske jija to bade chodu nikle naye kapde de ke purane ko apne hath se hi utar diye awhh uske baad ghar jane pe bhi roj ragdte rhe
Aur ant me Vaibhav bhi bahut dino baad apne chote vaibhav ko shanti diya aur uske baad ghar aa gya hai wapas ab dekhte hai ye raat kaisi beetati hai kyuki 2 pahar me hi ek jugad kar liya hai
 

Rekha rani

Well-Known Member
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Mast update, vaibhav apne pure rang me dikhe is update me, sushma aur kanchan ke shikar ki jagah jamuna ka number phle lag gya, jamuna ne bhi apni puri story suna di, aur apne pure kand bta diye, phir ek mast chudayi kravayi apni, next kiska number hoga dekhte hai
 
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