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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
बहुत ही शानदार अपडेट है वैभव ने रागिनी भाभी के गांव में काफी झंडे गाड़े हुए हैं क्युकी उनके कारनामों की चर्चा काफी फैली हुई है वैभव कंचन को पटाने में लग गया है
ठाकुर ने अपनी पत्नी को थोड़ी बहुत बाते बता दी है लगता है कही ये बाते किसी और को पता न चल जाए हवेली में
इंस्पेक्टर ने मुरारी की हत्या के बारे में एक नया बॉम्ब फोड़ दिया है ये बात तो सही है की वैभव के मुरारी की बीवी से नाजायज संबंध थे लेकिन सच्चाई इंस्पेक्टर को अभी पता नही चली है वो हथियार अगर वैभव खून करता तो वहा क्यो रखता और उसपे कोई निशान भी नही है लगता है ये काम जगन ने ही किया है
Shukriya bhai
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
अध्याय - 55
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

धनंजय को समझ न आया कि वो उन्हें क्या जवाब दे। हालाकि, उसे जो सबूत मिले थे और जो कुछ उसने देखा सुना था उसके आधार पर वो इसी नतीजे पर पहुंचा था कि मुरारी की हत्या दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह ने ही की है। दादा ठाकुर जवाब पाने की उम्मीद में उसी की तरफ देख रहे थे और धनंजय मन ही मन इस दुविधा में पड़ गया था कि उसने जो कुछ दादा ठाकुर को मुरारी की हत्या के संबंध में विस्तार से बताया है क्या वास्तव में वही सच है या अभी भी कुछ ऐसा शेष है जिसे समझना उसके लिए बाकी है?

अब आगे....


क्षितिज में चमक रहा सूरज तेज़ी से पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ते हुए शाम ढलने का संकेत दे रहा था। हालाकि सूरज के डूबने में अभी क़रीब एक से डेढ़ घंटे का समय लगना था किन्तु सूरज की तपिश अब कम हो गई थी। सरोज किसी काम से अपने देवर जगन के घर गई हुई थी जबकि अनुराधा अपने छोटे भाई अनूप के साथ घर पर ही थी। बाहर घर के बगल से ही एक ऊंचा तथा लंबा पेड़ था जिसकी छाया आंगन में आ रही थी। अनुराधा ने बरामदे से चारपाई ला कर आंगन में ही बिछा लिया था और अपने भाई अनूप के साथ लेटी हुई थी। खुले आंगन में पेड़ से छन कर ठंडी हवा आ रही थी जिसके चलते गर्मी से काफ़ी राहत थी।

चारपाई में एक तरफ लेटा अनूप अपने एक खिलौने के साथ खेल रहा था जबकि अनुराधा बिना पलकें झपकाए किसी गहरे ख़्यालों में गुम नज़र आ रही थी। आज सारा दिन वो गुमसुम ही रही थी और अभी भी उसका यही हाल था। मां के सामने उसने किसी तरह खुद को सम्हाले रखा था किंतु मां के जाते ही वो फिर से कहीं खो गई थी। सुबह से किसी भी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। उसे ऐसा महसूस होता था जैसे उसके लिए दुनिया में अब ऐसी कोई चीज़ नहीं रही जिसमें कोई ख़ास बात हो और जिसे देख कर उसे कोई खुशी हो। आज से पहले अपना जीवन उसे कभी भी इतना नीरस और मायूसी भरा नहीं लगा था। वो अपने छोटे से घर में अपनी मां और छोटे भाई के साथ खुश थी मगर एक ही दिन में जैसे सब कुछ बदल गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्यों उसका मन बार बार वैभव की तरफ चला जाता था? वो ये मानती थी कि उसने वैभव के साथ कठोरता से बात कर के ठीक नहीं किया था और इसका उसे पछतावा भी था लेकिन इसके बावजूद क्यों उसका मन इतना विचलित था? आख़िर क्यों वो अपने ज़हन से वैभव और उससे संबंधित सभी बातों को निकाल नहीं पा रही थी?

सरोज ने उसे दुनियादारी की बातें तो बताई थी और अच्छे बुरे का भेद भी बताया था लेकिन ये नहीं बताया था कि अगर कोई किसी भी तरह से हमारे ज़हन से न जाए तो उसका क्या मतलब होता है? प्रेम के किस्से तो उसने कहानियों में सुने थे जो उसकी बूढ़ी दादी तब सुनाया करती थी जब वो ज़िंदा थीं लेकिन उन कहानियों में भी ज़्यादातर ज़िक्र किसी राज कुमार और राज कुमारी के प्रेम संबंधों का ही होता था। उस समय अनुराधा का ज़हन इतना विकसित नहीं था। उस समय तो कहानियां उसे बस अच्छी लगती थीं। उनके मर्म का अथवा उन कहानियों के भावों का उसे एहसास नहीं होता था। ये अलग बात है कि जहां पर उसके पसंदीदा किरदारों के बिछड़ जाने का प्रसंग आता तो उसे भी इस बात से बुरा लगता था। असल ज़िंदगी में प्रेम के मायने कभी उसने किसी के द्वारा समझे ही नहीं थे और ना ही कभी ऐसा उसके जीवन में हुआ था जिसके चलते उसे प्रेम के इस गहरे एहसास का पता चला होता।

वैभव को जब उसने पहली बार देखा था तो उसकी सुंदरता को देख कर उसे अपनी बूढ़ी दादी की कहानियों वाले राज कुमार की ही याद आई थी। अक्सर सोचती थी कि काश वो भी कहानियों की राज कुमारी की तरह सुंदर होती मगर जल्द ही उसे एक ऐसी हकीक़त का एहसास हुआ जिसने उसे विचलित कर दिया। उसने भी सुना था कि वैभव का चरित्र कैसा है। उसके चरित्र के बारे में सोचते ही उसे कहानियों वाला राज कुमार समझ लेने की अपनी ग़लती का एहसास हो गया था। हालाकि गुज़रते वक्त के साथ उसे एहसास हो चुका था कि वैभव उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता है। वैभव का उससे बातें करना, उसका छेड़ना, और उसके बनाए खाने की तारीफ़ करना उसे एकदम से पुलकित कर देता था लेकिन वो इस सबको ये नहीं सोचती थी कि ये किस तरह का एहसास है अथवा ये किस तरह की खुशी है? वैभव को एक बार फिर से उसने कहानियों वाला राज कुमार मान लिया था मगर अचानक एक दिन उसे एक ऐसे सच का पता चला जिसकी वजह से उसे सदमा सा लग गया था।

रूपचंद्र नाम का एक लड़का एक दिन जाने कहां से आ टपका था और उसने वैभव के बारे में जो कुछ उसे बताया और फिर जो कुछ उसे करने के लिए कहा था वो उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उसके लिए इस हकीक़त को हजम करना बेहद मुश्किल हो गया था कि जिस वैभव को वो कहानियों वाला राज कुमार समझ कर खुश होती है उसी वैभव के उसके मां के साथ नाजायज़ संबंध हैं। पलक झपकते ही उसे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे वो आसमान से गिर कर धरती पर आ गई हो। रूपचंद्र की बातों का उसे बिलकुल भी यकीन नहीं हुआ था मगर जब रूपचंद्र ने ये कहा कि इस सच को खुद वैभव उसके सामने कुबूल करेगा तो उसके ज़हन ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था। ख़ैर जल्दी ही वैभव से उसका सामना हुआ और जब उसने उस संबंध में बात करते हुए वैभव को लताड़ा तो वैभव ने उस कड़वे सच को कबूल कर ही लिया। उस वक्त अनुराधा को बहुत तकलीफ़ हुई थी। वैभव के बारे में फैली हुई बातें जो उसने सुन रखी थीं उसका उसे बेहद ही कड़वा प्रमाण मिल गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने उसकी ही मां के साथ ऐसा पाप कर्म किया था। उसे अपनी मां पर भी बेहद गुस्सा आया था लेकिन वो इस बारे में भला कर ही क्या सकती थी? जब उसकी अपनी मां ही ऐसी निकली थी तो दूसरे को क्या कहती?

बाद में भले ही वैभव ने दुबारा वैसा न किया हो और हर तरह से उसके परिवार की रक्षा की हो लेकिन उसके मन में उसके प्रति ये बात बैठ चुकी थी कि जो इंसान उसकी मां को अपने जाल में फांस कर उसके साथ ग़लत कर सकता है वो किसी दिन उसके साथ भी यही सब करने की कोशिश करेगा। अनुराधा ने सोच लिया था कि वो वैभव के जाल में किसी भी कीमत पर नहीं फंसेगी और अगर कभी ऐसा उसने महसूस किया तो वो उसी दिन वैभव को खरी खोटी सुना कर उसे अपने घर से चले जाने को कह देगी।

इंसान की सोच और उसके संकल्प महज परिस्थियों के तहत जन्म लेते हैं और फिर ऐसी ही दूसरी परिस्थितियों में वो या तो कमज़ोर पड़ जाते हैं या फिर एक अलग ही रूप अख़्तियार कर लेते हैं। अनुराधा ने भले ही ये सब सोच लिया था लेकिन हालात ऐसे बने कि वैभव के प्रति उसके विचार फिर से पहले जैसे बनते चले गए थे। इसकी वजह शायद ये थी कि हर मुलाक़ात में वैभव ने जिस तरह से अपने चरित्र को दर्शाया था और जिस तरह से उसके परिवार की जिम्मेदारी ली थी उससे उसके कोमल हृदय में उसके लिए नरमी आ गई थी। हर मुलाक़ात में वैभव ने उसे ये समझाने की कोशिश की थी कि वो एक ऐसी लड़की है जिसने उसके मुकम्मल वजूद को बदल दिया है और इसके लिए वो बेहद खुश है। वो उसके बारे में कभी ग़लत नही सोच सकता और अगर ग़लती से भी उसके मन में उसके प्रति कोई ग़लत ख़्याल आ जाता है तो वो खुद को कोसने लगता है। वक्त और हालात बड़े से बड़े ज़ख्म और बड़ी से बड़ी बात को इंसान के ज़हन से निकाल देते हैं।

अनुराधा चारपाई पर लेटी वैभव के ख़्यालों में खोई ही हुई थी कि तभी बाहर के दरवाज़े की शांकल बजी जिससे उसका ध्यान भंग हो गया। वो हड़बड़ा कर उठी तो उसके बगल से लेटा अनूप भी उठ बैठा। अनुराधा ने जा कर दरवाज़ा खोला तो बाहर किसी अंजान आदमी पर उसकी नज़र पड़ी। बाहर किसी अंजान आदमी को यूं खड़ा देख अनुराधा अंदर ही अंदर घबरा गई। बिजली की तरह उसके ज़हन में वैभव की बातें गूंज उठीं कि हालात ठीक नहीं हैं इस लिए किसी अंजान व्यक्ति के लिए दरवाज़ा मत खोलना।

"घबराओ मत।" अनुराधा के चेहरे पर उभर आई घबराहट को देख कर उस आदमी ने बड़ी शालीनता से कहा____"मैं कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जिससे तुम्हें घबराने की अथवा डरने की ज़रूरत हो। मैं बस ये देखने आया हूं कि यहां सब ठीक है कि नहीं?"

"अ..आप कौन हैं?" अनुराधा ने बड़ी मुश्किल से हिम्मत कर के पूछा।
"मैं भुवन हूं।" बाहर खड़े आदमी ने कहा____"और यहां पर मैं छोटे ठाकुर के हुकुम पर ही हाल चाल पूछने आया हूं।"

भुवन नाम सुनते ही अनुराधा को झटका लगा। मस्तिष्क में बिजली की तरह वैभव द्वारा कही गई उस दिन की बात गूंज उठी जब उसने उससे कहा था कि जहां पर उसका नया मकान बन रहा है वहां एक भुवन नाम का आदमी मिलेगा उसे। अगर उसे कोई परेशानी हो तो वो फ़ौरन उसके पास जा कर अपनी परेशानी बता सकती है। इस बात के याद आते ही अनुराधा के अंदर एक हूक सी उठी जिसके चलते उसका समूचा वजूद एक अजीब एहसास से आंदोलित हो उठा।

"घर में सब ठीक है ना बहन?" अनुराधा को ख़ामोशी से कुछ सोचता देख भुवन ने उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हुए पूछा____"तुम मुझे अपना बड़ा भाई समझ सकती हो। छोटे ठाकुर ने मुझे तुम्हारे घर की जिम्मेदारी सौंपी है और ये भी कहा है कि इस घर के किसी भी सदस्य को किसी भी तरह से कोई समस्या न होने पाए। इस लिए बहन तुम मुझे बताओ, यहां सब ठीक है ना?"

"ह..हां भैया सब...ठीक है।" अनुराधा के दिलो दिमाग़ में एकदम से तूफान उठ खड़ा हुआ था जिसे वो बड़ी मुश्किल से दबाते हुए कापती आवाज़ में बोली____"यहां हमें कोई समस्या नहीं है।"

"अच्छी बात है बहन।" भुवन ने नम्रता से कहा____"बाकी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो अपने इस भाई के पास आ जाना। मैं अपनी जान दे कर भी तुम्हारी ज़रूरत को पूरा करूंगा। ख़ैर, मैं यहीं पास में ही हूं इस लिए दिन में भी और रात में भी यहां का हाल चाल देखने आता रहूंगा।"

अनुराधा को समझ में न आया कि वो भुवन को अब क्या जवाब दे इस लिए ख़ामोशी से उसने सिर हिला दिया। भुवन के जाने के बाद अनुराधा ने दरवाज़ा बंद किया और चारपाई पर आ कर बैठ गई। अनूप चारपाई में ही अपना खिलौना लिए बैठा था। भुवन की बातें सुन कर अनुराधा को अब एक अलग ही तरह का एहसास हो रहा था। एक बार फिर से उसके ज़हन में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंजने लगीं थी।

"अगर तुम्हें लगता है कि मेरे यहां आने का सिर्फ़ यही एक मकसद है कि मैं तुम्हें भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फंसाना चाहता हूं तो ठीक है। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि ठाकुर वैभव सिंह आज के बाद तुम्हारे इस घर की दहलीज़ पर अपने क़दम नहीं रखेगा। तुम्हारे साथ जो चंद खूबसूरत लम्हें मैंने बिताए हैं वो जीवन भर मेरे लिए एक अनमोल याद की तरह रहेंगे। ये भी वचन देता हूं कि इस घर के किसी भी सदस्य पर किसी के द्वारा कोई आंच नहीं आने दूंगा। चलता हूं अब, ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

वैभव द्वारा कही गई ये बातें बार बार उसके जहन में गूंजने लगीं थी जिसके असर से अनुराधा के कोमल हृदय में दर्द का आभास होने लगा था। वो अपनी आंखें बंद कर के इस सबको अपने मन से निकालने का प्रयास करने लगी मगर कामयाब न हुई। बेबस और लाचारी का एहसास होते ही उसकी आंखें भर आईं और न चाहते हुए भी उसकी आंखों से आंसू के कुछ कतरे छलक ही पड़े। सहसा किसी आहट से वो चौंकी और फिर घबरा कर जल्दी जल्दी अपने आंसू पोछने लगी।

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"क्या सोचने लगे धनंजय?" दादा ठाकुर ने दारोगा को सोचो में गुम हुआ देखा तो बोले____"तुम्हारी चुप्पी और तुम्हारा अचानक से इस तरह से सोच में पड़ जाना इस बात को ज़ाहिर करता है कि तुमने जो कुछ मुरारी और उसके हत्यारे के संबंध में हमें बताया है उसे तुम खुद ही कबूल नहीं कर पा रहे हो।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर दरोगा ने सिर उठा कर उनकी तरफ देखा किंतु जल्दी ही उनसे नज़रें हटा कर बगले झांकने लगा। चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे। दादा ठाकुर उसी को देख रहे थे।

"प्रतीत होता है जैसे तुम हमसे कुछ छुपा रहे हो।" दादा ठाकुर ने उसके चेहरे पर तेज़ी से बदलते भावों को देखते हुए कहा____"हम अच्छी तरह जानते हैं कि तुम्हारे जैसा पढ़ा लिखा दारोगा इस मामले में ऐसे निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता। तुम भी अच्छी तरह समझते हो कि अगर वैभव ही मुरारी का हत्यारा होता तो खुद उस पर नकाबपोशों का हमला नहीं होता और ना ही वो हमें मुरारी के हत्यारे का पता लगाने के लिए ज़ोर देता।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" धनंजय ने नज़रें चुराते हुए कहा____"मैं इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकता।"
"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?" दादा ठाकुर के माथे पर सिलवटें उभर आईं____"आख़िर बात क्या है धनंजय? ऐसा क्या है जो तुम हमें बता नहीं रहे?"

"मैं जानता हूं कि आपके बहुत उपकार हैं मुझ पर।" दरोगा ने भारी गले से कहा____"आपने मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत कुछ किया है। आपके उपकारों का बदला मैं अपनी जान दे कर भी चुका नहीं सकता।"
"तुम्हें ऐसा कुछ करने की ज़रूरत भी नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सिर्फ़ ये जानना चाहते हैं कि असल बात क्या है?"

"अपनी मां की तबियत के बारे में मैंने आपको जो कुछ बताया वो झूठ था ठाकुर साहब।" धनंजय ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"जबकि सच ये है कि मेरी मां का कुछ समय पहले अपहरण कर लिया गया है।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"कैसे हुआ ये और किसने किया ऐसा?"

"एक ऐसे रहस्यमई आदमी ने जो खुद को सफ़ेद कपड़े और नक़ाब में छुपा के रखता है।" धनंजय ने कहा____"एक हफ़्ता पहले की बात है। मैं इस कमरे से आगे की तहक़ीकात के लिए निकल ही रहा था कि तभी बाहर से दरवाज़ा खटखटाया गया। मैंने सोचा शायद आप होंगे इस लिए जा कर दरवाज़ा खोला। जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला एकदम से क़यामत टूट पड़ी मुझ पर। एक काला नकाबपोश आदमी बिजली की सी तेज़ी से टूट पड़ा था मुझ पर। मुझे उस सबकी ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी इस लिए मैं उस सबसे बुरी तरह बौखला गया था किंतु जब तक सम्हला तब तक मैं काले नकाबपोश आदमी के कब्जे में आ चुका था। उसने पीछे से मेरे गले पर तेज़ धार वाला खंज़र लगा दिया था। अगर बात सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद मैं कुछ कर भी सकता था किंतु अगले ही पल दरवाज़े से उसके ही जैसा एक और नकाबपोश कमरे में आ गया। दूसरे नकाबपोश में सिर्फ़ इतना ही फ़र्क था कि उसके कपड़े सफ़ेद थे और चेहरे पर भी सफ़ेद रंग का ही नक़ाब था। उसे देख कर मेरी आंखों के सामने उस दिन का मंज़र घूम गया जब वो अपने ही एक नकाबपोश आदमी की जान ले रहा था। मैं सोच में पड़ गया था कि वो सफ़ेदपोश आदमी अपने काले नकाबपोश साथी के साथ मेरे पास क्यों आया है? क्या वो मेरी जान लेने आया था? अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी कमरे में उस सफ़ेदपोश की अजीब सी आवाज़ गूंजी। उसने मुझसे कहा कि अब से मैं वही करूंगा जो वो चाहेगा और अगर मैने ऐसा नहीं किया तो ये मेरे लिए ठीक नहीं होगा। उसके अनुसार मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाने में कोई जल्दबाजी नहीं करनी है और ना ही कोई ईमानदारी दिखाना है। अगर आप मेरे पास आ कर मुझसे इस मामले में कुछ पूछते हैं तो मुझे यही बताना है कि मुरारी का हत्यारा आपका बेटा वैभव सिंह ही है। इसको प्रमाणित करने के लिए उसने मुझे वही तरीका बताया जो मैं आपको बता चुका हूं कि आपके बेटे का मुरारी की बीवी सरोज के साथ नाजायज़ संबंध बन गया था और ये बात मुरारी को पता चल गई थी। ख़ैर ये सब कह कर उस सफ़ेदपोश ने मुझे फिर से चेताया कि अगर मैंने उसका कहा नहीं माना तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। उसके बाद उसके काले नकाबपोश साथी ने मेरे सिर पर वार किया जिससे मैं बेहोश हो गया। होश आया तो देखा वो दोनों कमरे से गायब थे। मैं सोचने लगा कि आख़िर वो सफ़ेदपोश मुझसे ये सब क्यों करवाना चाहता है? भला ऐसा करने से उसे क्या फ़ायदा हो सकता था जबकि वैभव को मुरारी का हत्यारा साबित करने से भी कुछ नहीं हो सकता था? ख़ैर उसकी धमकी को मैंने पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया था। मैं भला ऐसे किसी आदमी के कहने पर अपने फर्ज़ से कैसे मुंह मोड़ लेता लेकिन जल्दी ही मुझे समझ में आ गया कि मुझे उसका कहा मान लेना चाहिए था। चार दिन पहले मुझे पता चला कि मेरी मां घर से गायब है। मैंने उन्हें बहुत खोजा मगर उनका कहीं पता नहीं चला। मुझे समझते देर न लगी कि ये काम ज़रूर उस सफ़ेदपोश का ही होगा। इस दुनिया में मां के अलावा मेरा है ही कौन? मैं बुरी तरह घबरा गया था कि अगर मां को कुछ हो गया तो मैं कैसे खुद को माफ़ कर पाऊंगा? मन में ख़्याल आया कि इस बारे में आपको बताऊं लेकिन फिर ये सोच कर बताना सही नहीं समझा कि इससे कहीं बात और न बिगड़ जाए। मैं जानता था उस सफ़ेदपोश से यहीं मुलाक़ात हो सकती है इस लिए मैं यहीं आ गया। दो दिन पहले रात के अंधेरे में सच में ही वो सफ़ेदपोश मेरे सामने आ गया और फिर उसने खुद ही बताया कि मेरी मां उसके कब्जे में है। अगर अब भी मैं उसका कहा नहीं मानूंगा तो इस बार मैं अपनी मां से हाथ धो बैठूंगा। बेबस हो कर मुझे उसके अनुसार चलना ही पड़ा ठाकुर साहब।"

"तो क्या तुम्हारी मां अभी भी उसी के कब्जे में है?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"हां।" धनंजय ने हताश भाव से कहा____"उसका कहना है कि वो तभी मेरी मां को आज़ाद करेगा जब मैं आपको ये सब बता दूंगा कि मुरारी का हत्यारा आपका बेटा ही है।"

"बड़ी अजीब बात है।" दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से कहा____"भला उसे तुम्हारे द्वारा ऐसा करवाने से क्या लाभ हो सकता है? क्या उसे इतना भी ज्ञान नहीं है कि तुम्हारे द्वारा वैभव को मुरारी का हत्यारा साबित कर देने से भी हमें यकीन नहीं हो सकता या ये कहें कि हमारे बेटे पर कोई आंच नहीं आ सकती?"

"मैं खुद भी अभी तक यही बात सोच सोच कर परेशान हूं ठाकुर साहब।" धनंजय ने कहा____"मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा कि मेरे द्वारा ऐसा करवाने से उसे क्या लाभ हो सकता है। ख़ैर, मैं तो ये सोच कर डर रहा हूं कि आपको असलियत बता देने के बाद अब मेरी मां का क्या होगा? कहीं वो मेरी मां को जान से न मार दे, अगर ऐसा हुआ तो मैं अनाथ हो जाऊंगा ठाकुर साहब। मेरी वजह से मेरी मां की जान चली गई तो कैसे इस अपराध बोझ से जी पाऊंगा मैं?"

"कुछ नहीं होगा तुम्हारी मां को।" दादा ठाकुर ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा____"हमें यकीन है कि वो तुम्हारी मां के साथ कुछ भी बुरा नहीं करेगा।"
"पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी।" धनंजय ने हताश हो कर कहा____"जब मेरा तबादला इस शहर में हुआ था और फिर मैं इस मामले में फंस गया?"

"फ़िक्र मत करो धनंजय।" दादा ठाकुर ने खड़े हो कर उसके कंधे पर हाथ रखा____"तुम्हारी मां सही सलामत तुम्हें मिल जाएंगी। एक बात और, हम तुम्हें अब इस मामले से आज़ाद करते हैं। तुम्हारे आला अधिकारी से बात कर के हम तुम्हारा तबादला भी कहीं और करवा देंगे। हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से तुम दोनों मां बेटे पर कोई संकट आए। अच्छा अब हम चलते हैं, अपना ख़्याल रखना।"

धनंजय ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया तो दादा ठाकुर उसे आशीर्वाद दे कर कमरे से बाहर निकल गए। कुछ ही देर में वो जीप में अपने दोनों आदमियों के साथ बैठे हवेली की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। उनके चेहरे पर सोचो के गहरे बादल छाए हुए थे।

[][][][][]

शाम हो चुकी थी।
मैं सबके साथ बैठा चाय पी रहा था। गांव की कुछ औरतें आई हुईं थी और अंदर वो सब सोहर गीत गा रहीं थी। ये सुबह शाम रोज़ का ही काम बन गया था उनका। जब से बड़े भैया के साले वीरेंद्र को पुत्र हुआ था तभी से घर में खुशियों का माहौल छाया हुआ था। हम सब बाहर ही बैठे हुए थे इस लिए गाना बजाना साफ साफ सुनाई दे रहा था। मैं पहली बार रागिनी भाभी के द्वारा कोई गीत सुन रहा था। उनकी आवाज़ तो मधुर थी ही किंतु गाना भी वो बहुत ही सुंदर गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें और लड़कियां भी थीं जो उनका साथ दे रहीं थी।

चाय के दौरान ही मैंने वीरेंद्र से कहा कि मेरे लायक जो भी काम हो वो बेझिझक मुझे बताएं। मेरी ये बात सुन कर सब कहने लगे कि वो अपनी बेटी के देवर से कोई काम नहीं करवाएंगे। मैंने काफी कहा लेकिन वो न माने तब मैंने कहा कि ठीक है लेकिन मेरे साथ जो आदमी आए हैं वो यहां काम करने के लिए ही आए हैं इस लिए वो उन्हें काम पर लगा लें। मेरी इस बात से सब राजी हो गए। ख़ैर उसके बाद मैं गांव घूमने का बोल कर निकल गया।

चंदनपुर गांव में ज़्यादातर ठाकुर ही थे और बाकी अन्य जाति के लोग थे। यहां मुझे सब जानते थे और बड़े ही प्रेम भाव से मिलते थे। गांव में ज़्यादातर कच्चे मकान बने हुए थे। मैं बाहर आया और सोचा किस तरफ घूमने के लिए जाया जाए? घर में क्योंकि सब लोग गीत संगीत ने व्यस्त थे इस लिए किसी के पास मेरे लिए समय ही नहीं था। मैं चलते हुए अपने भैया के चाचा ससुर के घर की तरफ आ गया। शाम ढल चुकी थी इस लिए हर घर में लालटेन जला दी गई थी। हालाकि बिजली भी थी गांव में लेकिन उसके आने का कोई समय नहीं था। चौबीस घंटे में मुश्किल से चार पांच घंटे ही बिजली रहती थी, वो भी भगवान भरोसे।

घर का दरवाज़ा खुला हुआ था तो मैं अंदर दाखिल हो गया। चाचा ससुर यानि बलभद्र सिंह भाभी के घर में ही बैठे हुए थे और उनके साथ में उनका बड़ा बेटा भी था। मैं अंदर आया तो देखा बैठका खाली था तो मैं अंदर की तरफ बढ़ गया। थोड़ी ही देर में मैं अंदर आंगन में आ गया। आंगन में आ कर जैसे ही मैंने बाएं तरफ नज़र डाली तो एकदम से मेरी आंखें फट पड़ीं। अंदर की सांस अंदर और बाहर की बाहर ही रह गई। मैं अपनी जगह पर बुत बना खड़ा रह गया था।

आंगन के बाएं तरफ कोने में बलवीर की बीवी सुषमा पूरी तरह नंगी खड़ी थी। उसकी साड़ी नीचे ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसका पूरा जिस्म लालटेन के प्रकाश में नहाया हुआ था। उसकी नज़र मुझ पर नहीं पड़ी थी। मैंने देखा वो एक दूसरी साड़ी को हाथ में लिए उसे पहनने वाली थी। सहसा उसे किसी बात का आभास हुआ तो उसने नज़र उठा कर देखा और जैसे ही उसकी नज़र किसी पराए मर्द पर पड़ी तो वो बुरी तरह उछल पड़ी। डर और घबराहट के मारे उसके कंठ से चीख ही निकल गई। उसके बाद फ़ौरन ही वो अपनी नग्नता को छुपाने में लग गई थी। इधर उसकी चीख सुन कर मुझे होश आया था। उसको हैरत से अपनी तरफ देखता देख मैं एकदम से बौखला गया और फ़ौरन ही पलट कर बाहर की तरफ भागा।

बाहर बैठक में आ कर मैं एक तरफ रखे लकड़ी के तख्त पर बैठ गया। मेरी सांसें इतनी तेज़ चलने लगीं थी मानों मैं सैकड़ों मील भाग कर आया था। आंखों के सामने सुषमा का नंगा जिस्म बार बार घूमे जा रहा था। गोरे जिस्म का एक एक अंग साफ देखा था मैंने। सीने पर मध्यम आकार की ठोस और तनी हुई चूचियां, उसके नीचे सपाट पेट, पेट के बीच सुंदर सी नाभि और उसके नीचे चिकनी जांघों के बीच घने बालों में छुपी उसकी योनि। उफ्फ मैंने आंखें बंद कर के एक गहरी सांस ली। बंद आंखों में सुषमा का डरा सहमा और हैरत से सराबोर चेहरा उभर आया। यकीनन इस तरह उसे किसी के आ जाने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी और उसे ही बस क्यों मुझे खुद भी इसकी उम्मीद नहीं थी। मैं सोचने लगा कि साला ये कैसा चूतियापा हो गया? सहसा मेरे मन में ख़्याल उभरा कि वो आंगन में उस हालत में क्यों थी? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी अंदर से पायलों की छम छम करती आवाज़ बाहर आती सुनाई दी। मैं एकदम से सम्हल कर बैठ गया। मेरी धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं।

कुछ ही पलों में सुषमा बाहर आ गई। मैंने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा। हमारी नज़रें मिलीं तो उसने बुरी तरह शरमा कर अपना सिर झुका लिया। इस वक्त वो साड़ी पहने हुए थी। गोरा चेहरा लाज्जावश सुर्ख पड़ा हुआ था।

"माफ़ कीजिएगा, मुझे पता नहीं था कि अंदर आप उस हालत में होंगी।" मैंने झिझकते हुए धीमें स्वर में कहा____"मैं तो बस आपसे मिलने आया था। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि अंदर मुझे ऐसा ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिल जाएगा।"

"आप बहुत ख़राब हैं ननदोई जी।" सुषमा ने बुरी तरह शरमा कर किन्तु नाराज़गी जताते हुए कहा____"भला कोई किसी के घर के अंदर इस तरह दबे पांव जाता है क्या? कम से कम आवाज़ तो लगाना चाहिए था आपको।"

"देखिए अब जो हो गया उसके लिए क्या ही किया जा सकता है भाभी जी।" मैंने जब देखा कि सुषमा उस सबसे ज़्यादा नाराज़ नहीं हुई है तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"रही बात आवाज़ लगा कर अन्दर आने की तो अब मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अब से जब भी यहां आऊंगा तो ऐसे ही दबे पांव आऊंगा ताकि ऐसा ही ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिलें।"

"धत्त, सच में बहुत गंदे हैं आप?" सुषमा एक बार फिर बुरी तरह लजा गई फिर बोली____"अगर आइंदा इस तरह दबे पांव आएंगे तो कूटे जाएंगे आप।"
"कोई बात नहीं सरकार।" मैंने मुस्कुरा कर कहा___"ऐसे ख़ूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए तो हम खुशी से अपनी जान भी दे देंगे।"

"बस कीजिए अब।" सुषमा मानों शर्म से गड़ी जा रही थी____"वरना रागिनी दीदी से आपकी शिकायत कर देंगे हम।"
"ज़रूर कर दीजिए सरकार।" मैंने छेड़ा____"और ये भी बताइएगा कि कैसे आप मुझ मासूम को अपने हुस्न का दीदार करा रहीं थी।"

"हाय राम! हमने कब किया ऐसा?" सुषमा बुरी तरह हैरान हो कर बोल पड़ी थी।
"ख़ैर ये सब छोड़िए।" मैंने कहा____"और ये बताइए कि आप आंगन में उस हालत में क्यों थीं? भला आपको ये कैसा शौक चढ़ा हुआ था?"

"धत्त।" सुषमा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें ऐसा करने का कोई शौक नहीं चढ़ा हुआ था। हम तो दिशा मैदान जाने के लिए कपड़ा बदल रहे थे। घर में कोई था नहीं इस लिए सोचा आंगन में ही झट से कपड़ा बदल लेते हैं और फिर दिशा मैदान के लिए चले जाएंगे। अब हमें क्या पता था कि आप ऐसे दवे पांव आ जाएंगे।"

"शायद मेरी किस्मत बहुत अच्छी थी भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"इसी लिए तो इतना खूबसूरत नज़ारा देखने को मिल गया मुझे। उफ्फ! क्या लग रहीं थी आप?"

"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए।" सुषमा ने फिर से शर्मा कर कहा____"हमारा वैसे भी शर्म से बुरा हाल है। कृपया इस बात का ज़िक्र किसी से मत कीजिएगा वरना बहुत बदनामी होगी हमारी।"

"फ़िक्र मत कीजिए।" मैंने उसके शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखते हुए कहा____"मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन ये भी तो बताइए कि इससे मुझे क्या मिलेगा?"

"क...क्या मतलब है आपका?" सुषमा मानों उलझ गई।
"सीधी सी बात है भाभी।" मैंने समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"मैं आपके इतने बड़े राज़ को सबसे छुपा कर रखूंगा जिससे कोई आपके बारे में ग़लत नहीं सोचेगा? तो मेरे इतने बड़े काम के लिए मुझे भी तो आपसे कुछ मिलना चाहिए।"

"क..क्या चाहते हैं आप?" सुषमा ने संदेहपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा।
"ज़्यादा कुछ नहीं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सिर्फ़ यही कि एक बार फिर से वैसा ही ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिल जाए।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुषमा ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा_____"नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता?" मैंने तख्त से उतर कर कहा____"अभी थोड़ी देर पहले तो हुआ ही है तो एक बार फिर से क्यों नहीं हो सकता?"

"वो तो बस अंजाने में हुआ था।" सुषमा ने शर्म से नज़रें झुकाते हुए कहा____"अब वैसा कुछ भी हम जान बूझ कर नहीं करेंगे। कृपया आप हमें इसके लिए मजबूर न करें। अच्छा, अब हम चलते हैं। हमें दिशा मैदान के लिए जाना है।"

सुषमा मेरी कोई बात सुने बिना ही चली गई। शायद वो समझ गई थी कि जितना वो मुझसे इस बारे में बातें करेगी उतना वो खुद ही फंसती जाएगी। या फिर ये भी संभव था कि दिशा मैदान के लिए जाना उसके लिए ज़रूरी हो गया था। ख़ैर, मैं उसकी हालत को सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और फिर बाहर की तरफ चल पड़ा। अभी दरवाज़े पर ही पहुंचा था कि सामने से मुझे सुषमा की ननद कंचन इधर ही आती हुई दिखी। उसे आता देख मेरे होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई और मैं पलट कर इस बार दरवाज़े के बगल से दीवार की ओट में छिप गया।

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अब तक....

धनंजय को समझ न आया कि वो उन्हें क्या जवाब दे। हालाकि, उसे जो सबूत मिले थे और जो कुछ उसने देखा सुना था उसके आधार पर वो इसी नतीजे पर पहुंचा था कि मुरारी की हत्या दादा ठाकुर के बेटे वैभव सिंह ने ही की है। दादा ठाकुर जवाब पाने की उम्मीद में उसी की तरफ देख रहे थे और धनंजय मन ही मन इस दुविधा में पड़ गया था कि उसने जो कुछ दादा ठाकुर को मुरारी की हत्या के संबंध में विस्तार से बताया है क्या वास्तव में वही सच है या अभी भी कुछ ऐसा शेष है जिसे समझना उसके लिए बाकी है?

अब आगे....


क्षितिज में चमक रहा सूरज तेज़ी से पश्चिम दिशा की तरफ बढ़ते हुए शाम ढलने का संकेत दे रहा था। हालाकि सूरज के डूबने में अभी क़रीब एक से डेढ़ घंटे का समय लगना था किन्तु सूरज की तपिश अब कम हो गई थी। सरोज किसी काम से अपने देवर जगन के घर गई हुई थी जबकि अनुराधा अपने छोटे भाई अनूप के साथ घर पर ही थी। बाहर घर के बगल से ही एक ऊंचा तथा लंबा पेड़ था जिसकी छाया आंगन में आ रही थी। अनुराधा ने बरामदे से चारपाई ला कर आंगन में ही बिछा लिया था और अपने भाई अनूप के साथ लेटी हुई थी। खुले आंगन में पेड़ से छन कर ठंडी हवा आ रही थी जिसके चलते गर्मी से काफ़ी राहत थी।

चारपाई में एक तरफ लेटा अनूप अपने एक खिलौने के साथ खेल रहा था जबकि अनुराधा बिना पलकें झपकाए किसी गहरे ख़्यालों में गुम नज़र आ रही थी। आज सारा दिन वो गुमसुम ही रही थी और अभी भी उसका यही हाल था। मां के सामने उसने किसी तरह खुद को सम्हाले रखा था किंतु मां के जाते ही वो फिर से कहीं खो गई थी। सुबह से किसी भी काम में उसका मन नहीं लग रहा था। उसे ऐसा महसूस होता था जैसे उसके लिए दुनिया में अब ऐसी कोई चीज़ नहीं रही जिसमें कोई ख़ास बात हो और जिसे देख कर उसे कोई खुशी हो। आज से पहले अपना जीवन उसे कभी भी इतना नीरस और मायूसी भरा नहीं लगा था। वो अपने छोटे से घर में अपनी मां और छोटे भाई के साथ खुश थी मगर एक ही दिन में जैसे सब कुछ बदल गया था। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्यों उसका मन बार बार वैभव की तरफ चला जाता था? वो ये मानती थी कि उसने वैभव के साथ कठोरता से बात कर के ठीक नहीं किया था और इसका उसे पछतावा भी था लेकिन इसके बावजूद क्यों उसका मन इतना विचलित था? आख़िर क्यों वो अपने ज़हन से वैभव और उससे संबंधित सभी बातों को निकाल नहीं पा रही थी?

सरोज ने उसे दुनियादारी की बातें तो बताई थी और अच्छे बुरे का भेद भी बताया था लेकिन ये नहीं बताया था कि अगर कोई किसी भी तरह से हमारे ज़हन से न जाए तो उसका क्या मतलब होता है? प्रेम के किस्से तो उसने कहानियों में सुने थे जो उसकी बूढ़ी दादी तब सुनाया करती थी जब वो ज़िंदा थीं लेकिन उन कहानियों में भी ज़्यादातर ज़िक्र किसी राज कुमार और राज कुमारी के प्रेम संबंधों का ही होता था। उस समय अनुराधा का ज़हन इतना विकसित नहीं था। उस समय तो कहानियां उसे बस अच्छी लगती थीं। उनके मर्म का अथवा उन कहानियों के भावों का उसे एहसास नहीं होता था। ये अलग बात है कि जहां पर उसके पसंदीदा किरदारों के बिछड़ जाने का प्रसंग आता तो उसे भी इस बात से बुरा लगता था। असल ज़िंदगी में प्रेम के मायने कभी उसने किसी के द्वारा समझे ही नहीं थे और ना ही कभी ऐसा उसके जीवन में हुआ था जिसके चलते उसे प्रेम के इस गहरे एहसास का पता चला होता।

वैभव को जब उसने पहली बार देखा था तो उसकी सुंदरता को देख कर उसे अपनी बूढ़ी दादी की कहानियों वाले राज कुमार की ही याद आई थी। अक्सर सोचती थी कि काश वो भी कहानियों की राज कुमारी की तरह सुंदर होती मगर जल्द ही उसे एक ऐसी हकीक़त का एहसास हुआ जिसने उसे विचलित कर दिया। उसने भी सुना था कि वैभव का चरित्र कैसा है। उसके चरित्र के बारे में सोचते ही उसे कहानियों वाला राज कुमार समझ लेने की अपनी ग़लती का एहसास हो गया था। हालाकि गुज़रते वक्त के साथ उसे एहसास हो चुका था कि वैभव उसके बारे में कुछ भी ग़लत नहीं सोचता है। वैभव का उससे बातें करना, उसका छेड़ना, और उसके बनाए खाने की तारीफ़ करना उसे एकदम से पुलकित कर देता था लेकिन वो इस सबको ये नहीं सोचती थी कि ये किस तरह का एहसास है अथवा ये किस तरह की खुशी है? वैभव को एक बार फिर से उसने कहानियों वाला राज कुमार मान लिया था मगर अचानक एक दिन उसे एक ऐसे सच का पता चला जिसकी वजह से उसे सदमा सा लग गया था।

रूपचंद्र नाम का एक लड़का एक दिन जाने कहां से आ टपका था और उसने वैभव के बारे में जो कुछ उसे बताया और फिर जो कुछ उसे करने के लिए कहा था वो उसके लिए किसी सदमे से कम नहीं था। उसके लिए इस हकीक़त को हजम करना बेहद मुश्किल हो गया था कि जिस वैभव को वो कहानियों वाला राज कुमार समझ कर खुश होती है उसी वैभव के उसके मां के साथ नाजायज़ संबंध हैं। पलक झपकते ही उसे ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे वो आसमान से गिर कर धरती पर आ गई हो। रूपचंद्र की बातों का उसे बिलकुल भी यकीन नहीं हुआ था मगर जब रूपचंद्र ने ये कहा कि इस सच को खुद वैभव उसके सामने कुबूल करेगा तो उसके ज़हन ने जैसे काम करना ही बंद कर दिया था। ख़ैर जल्दी ही वैभव से उसका सामना हुआ और जब उसने उस संबंध में बात करते हुए वैभव को लताड़ा तो वैभव ने उस कड़वे सच को कबूल कर ही लिया। उस वक्त अनुराधा को बहुत तकलीफ़ हुई थी। वैभव के बारे में फैली हुई बातें जो उसने सुन रखी थीं उसका उसे बेहद ही कड़वा प्रमाण मिल गया था। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने उसकी ही मां के साथ ऐसा पाप कर्म किया था। उसे अपनी मां पर भी बेहद गुस्सा आया था लेकिन वो इस बारे में भला कर ही क्या सकती थी? जब उसकी अपनी मां ही ऐसी निकली थी तो दूसरे को क्या कहती?

बाद में भले ही वैभव ने दुबारा वैसा न किया हो और हर तरह से उसके परिवार की रक्षा की हो लेकिन उसके मन में उसके प्रति ये बात बैठ चुकी थी कि जो इंसान उसकी मां को अपने जाल में फांस कर उसके साथ ग़लत कर सकता है वो किसी दिन उसके साथ भी यही सब करने की कोशिश करेगा। अनुराधा ने सोच लिया था कि वो वैभव के जाल में किसी भी कीमत पर नहीं फंसेगी और अगर कभी ऐसा उसने महसूस किया तो वो उसी दिन वैभव को खरी खोटी सुना कर उसे अपने घर से चले जाने को कह देगी।

इंसान की सोच और उसके संकल्प महज परिस्थियों के तहत जन्म लेते हैं और फिर ऐसी ही दूसरी परिस्थितियों में वो या तो कमज़ोर पड़ जाते हैं या फिर एक अलग ही रूप अख़्तियार कर लेते हैं। अनुराधा ने भले ही ये सब सोच लिया था लेकिन हालात ऐसे बने कि वैभव के प्रति उसके विचार फिर से पहले जैसे बनते चले गए थे। इसकी वजह शायद ये थी कि हर मुलाक़ात में वैभव ने जिस तरह से अपने चरित्र को दर्शाया था और जिस तरह से उसके परिवार की जिम्मेदारी ली थी उससे उसके कोमल हृदय में उसके लिए नरमी आ गई थी। हर मुलाक़ात में वैभव ने उसे ये समझाने की कोशिश की थी कि वो एक ऐसी लड़की है जिसने उसके मुकम्मल वजूद को बदल दिया है और इसके लिए वो बेहद खुश है। वो उसके बारे में कभी ग़लत नही सोच सकता और अगर ग़लती से भी उसके मन में उसके प्रति कोई ग़लत ख़्याल आ जाता है तो वो खुद को कोसने लगता है। वक्त और हालात बड़े से बड़े ज़ख्म और बड़ी से बड़ी बात को इंसान के ज़हन से निकाल देते हैं।

अनुराधा चारपाई पर लेटी वैभव के ख़्यालों में खोई ही हुई थी कि तभी बाहर के दरवाज़े की शांकल बजी जिससे उसका ध्यान भंग हो गया। वो हड़बड़ा कर उठी तो उसके बगल से लेटा अनूप भी उठ बैठा। अनुराधा ने जा कर दरवाज़ा खोला तो बाहर किसी अंजान आदमी पर उसकी नज़र पड़ी। बाहर किसी अंजान आदमी को यूं खड़ा देख अनुराधा अंदर ही अंदर घबरा गई। बिजली की तरह उसके ज़हन में वैभव की बातें गूंज उठीं कि हालात ठीक नहीं हैं इस लिए किसी अंजान व्यक्ति के लिए दरवाज़ा मत खोलना।

"घबराओ मत।" अनुराधा के चेहरे पर उभर आई घबराहट को देख कर उस आदमी ने बड़ी शालीनता से कहा____"मैं कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हूं जिससे तुम्हें घबराने की अथवा डरने की ज़रूरत हो। मैं बस ये देखने आया हूं कि यहां सब ठीक है कि नहीं?"

"अ..आप कौन हैं?" अनुराधा ने बड़ी मुश्किल से हिम्मत कर के पूछा।
"मैं भुवन हूं।" बाहर खड़े आदमी ने कहा____"और यहां पर मैं छोटे ठाकुर के हुकुम पर ही हाल चाल पूछने आया हूं।"

भुवन नाम सुनते ही अनुराधा को झटका लगा। मस्तिष्क में बिजली की तरह वैभव द्वारा कही गई उस दिन की बात गूंज उठी जब उसने उससे कहा था कि जहां पर उसका नया मकान बन रहा है वहां एक भुवन नाम का आदमी मिलेगा उसे। अगर उसे कोई परेशानी हो तो वो फ़ौरन उसके पास जा कर अपनी परेशानी बता सकती है। इस बात के याद आते ही अनुराधा के अंदर एक हूक सी उठी जिसके चलते उसका समूचा वजूद एक अजीब एहसास से आंदोलित हो उठा।

"घर में सब ठीक है ना बहन?" अनुराधा को ख़ामोशी से कुछ सोचता देख भुवन ने उसका ध्यान अपनी तरफ आकर्षित करते हुए पूछा____"तुम मुझे अपना बड़ा भाई समझ सकती हो। छोटे ठाकुर ने मुझे तुम्हारे घर की जिम्मेदारी सौंपी है और ये भी कहा है कि इस घर के किसी भी सदस्य को किसी भी तरह से कोई समस्या न होने पाए। इस लिए बहन तुम मुझे बताओ, यहां सब ठीक है ना?"

"ह..हां भैया सब...ठीक है।" अनुराधा के दिलो दिमाग़ में एकदम से तूफान उठ खड़ा हुआ था जिसे वो बड़ी मुश्किल से दबाते हुए कापती आवाज़ में बोली____"यहां हमें कोई समस्या नहीं है।"

"अच्छी बात है बहन।" भुवन ने नम्रता से कहा____"बाकी किसी भी चीज़ की ज़रूरत हो तो अपने इस भाई के पास आ जाना। मैं अपनी जान दे कर भी तुम्हारी ज़रूरत को पूरा करूंगा। ख़ैर, मैं यहीं पास में ही हूं इस लिए दिन में भी और रात में भी यहां का हाल चाल देखने आता रहूंगा।"

अनुराधा को समझ में न आया कि वो भुवन को अब क्या जवाब दे इस लिए ख़ामोशी से उसने सिर हिला दिया। भुवन के जाने के बाद अनुराधा ने दरवाज़ा बंद किया और चारपाई पर आ कर बैठ गई। अनूप चारपाई में ही अपना खिलौना लिए बैठा था। भुवन की बातें सुन कर अनुराधा को अब एक अलग ही तरह का एहसास हो रहा था। एक बार फिर से उसके ज़हन में वैभव द्वारा कही गई बातें गूंजने लगीं थी।

"अगर तुम्हें लगता है कि मेरे यहां आने का सिर्फ़ यही एक मकसद है कि मैं तुम्हें भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फंसाना चाहता हूं तो ठीक है। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि ठाकुर वैभव सिंह आज के बाद तुम्हारे इस घर की दहलीज़ पर अपने क़दम नहीं रखेगा। तुम्हारे साथ जो चंद खूबसूरत लम्हें मैंने बिताए हैं वो जीवन भर मेरे लिए एक अनमोल याद की तरह रहेंगे। ये भी वचन देता हूं कि इस घर के किसी भी सदस्य पर किसी के द्वारा कोई आंच नहीं आने दूंगा। चलता हूं अब, ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

वैभव द्वारा कही गई ये बातें बार बार उसके जहन में गूंजने लगीं थी जिसके असर से अनुराधा के कोमल हृदय में दर्द का आभास होने लगा था। वो अपनी आंखें बंद कर के इस सबको अपने मन से निकालने का प्रयास करने लगी मगर कामयाब न हुई। बेबस और लाचारी का एहसास होते ही उसकी आंखें भर आईं और न चाहते हुए भी उसकी आंखों से आंसू के कुछ कतरे छलक ही पड़े। सहसा किसी आहट से वो चौंकी और फिर घबरा कर जल्दी जल्दी अपने आंसू पोछने लगी।


[][][][][]

"क्या सोचने लगे धनंजय?" दादा ठाकुर ने दारोगा को सोचो में गुम हुआ देखा तो बोले____"तुम्हारी चुप्पी और तुम्हारा अचानक से इस तरह से सोच में पड़ जाना इस बात को ज़ाहिर करता है कि तुमने जो कुछ मुरारी और उसके हत्यारे के संबंध में हमें बताया है उसे तुम खुद ही कबूल नहीं कर पा रहे हो।"

दादा ठाकुर की बात सुन कर दरोगा ने सिर उठा कर उनकी तरफ देखा किंतु जल्दी ही उनसे नज़रें हटा कर बगले झांकने लगा। चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे। दादा ठाकुर उसी को देख रहे थे।

"प्रतीत होता है जैसे तुम हमसे कुछ छुपा रहे हो।" दादा ठाकुर ने उसके चेहरे पर तेज़ी से बदलते भावों को देखते हुए कहा____"हम अच्छी तरह जानते हैं कि तुम्हारे जैसा पढ़ा लिखा दारोगा इस मामले में ऐसे निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकता। तुम भी अच्छी तरह समझते हो कि अगर वैभव ही मुरारी का हत्यारा होता तो खुद उस पर नकाबपोशों का हमला नहीं होता और ना ही वो हमें मुरारी के हत्यारे का पता लगाने के लिए ज़ोर देता।"

"मुझे माफ़ कर दीजिए ठाकुर साहब।" धनंजय ने नज़रें चुराते हुए कहा____"मैं इस मामले में कुछ भी नहीं कर सकता।"
"ऐसा क्यों कह रहे हो तुम?" दादा ठाकुर के माथे पर सिलवटें उभर आईं____"आख़िर बात क्या है धनंजय? ऐसा क्या है जो तुम हमें बता नहीं रहे?"

"मैं जानता हूं कि आपके बहुत उपकार हैं मुझ पर।" दरोगा ने भारी गले से कहा____"आपने मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत कुछ किया है। आपके उपकारों का बदला मैं अपनी जान दे कर भी चुका नहीं सकता।"
"तुम्हें ऐसा कुछ करने की ज़रूरत भी नहीं है।" दादा ठाकुर ने कहा____"हम सिर्फ़ ये जानना चाहते हैं कि असल बात क्या है?"

"अपनी मां की तबियत के बारे में मैंने आपको जो कुछ बताया वो झूठ था ठाकुर साहब।" धनंजय ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"जबकि सच ये है कि मेरी मां का कुछ समय पहले अपहरण कर लिया गया है।"
"ये क्या कह रहे हो तुम?" दादा ठाकुर बुरी तरह चौंके____"कैसे हुआ ये और किसने किया ऐसा?"

"एक ऐसे रहस्यमई आदमी ने जो खुद को सफ़ेद कपड़े और नक़ाब में छुपा के रखता है।" धनंजय ने कहा____"एक हफ़्ता पहले की बात है। मैं इस कमरे से आगे की तहक़ीकात के लिए निकल ही रहा था कि तभी बाहर से दरवाज़ा खटखटाया गया। मैंने सोचा शायद आप होंगे इस लिए जा कर दरवाज़ा खोला। जैसे ही मैंने दरवाज़ा खोला एकदम से क़यामत टूट पड़ी मुझ पर। एक काला नकाबपोश आदमी बिजली की सी तेज़ी से टूट पड़ा था मुझ पर। मुझे उस सबकी ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी इस लिए मैं उस सबसे बुरी तरह बौखला गया था किंतु जब तक सम्हला तब तक मैं काले नकाबपोश आदमी के कब्जे में आ चुका था। उसने पीछे से मेरे गले पर तेज़ धार वाला खंज़र लगा दिया था। अगर बात सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद मैं कुछ कर भी सकता था किंतु अगले ही पल दरवाज़े से उसके ही जैसा एक और नकाबपोश कमरे में आ गया। दूसरे नकाबपोश में सिर्फ़ इतना ही फ़र्क था कि उसके कपड़े सफ़ेद थे और चेहरे पर भी सफ़ेद रंग का ही नक़ाब था। उसे देख कर मेरी आंखों के सामने उस दिन का मंज़र घूम गया जब वो अपने ही एक नकाबपोश आदमी की जान ले रहा था। मैं सोच में पड़ गया था कि वो सफ़ेदपोश आदमी अपने काले नकाबपोश साथी के साथ मेरे पास क्यों आया है? क्या वो मेरी जान लेने आया था? अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी कमरे में उस सफ़ेदपोश की अजीब सी आवाज़ गूंजी। उसने मुझसे कहा कि अब से मैं वही करूंगा जो वो चाहेगा और अगर मैने ऐसा नहीं किया तो ये मेरे लिए ठीक नहीं होगा। उसके अनुसार मुझे मुरारी के हत्यारे का पता लगाने में कोई जल्दबाजी नहीं करनी है और ना ही कोई ईमानदारी दिखाना है। अगर आप मेरे पास आ कर मुझसे इस मामले में कुछ पूछते हैं तो मुझे यही बताना है कि मुरारी का हत्यारा आपका बेटा वैभव सिंह ही है। इसको प्रमाणित करने के लिए उसने मुझे वही तरीका बताया जो मैं आपको बता चुका हूं कि आपके बेटे का मुरारी की बीवी सरोज के साथ नाजायज़ संबंध बन गया था और ये बात मुरारी को पता चल गई थी। ख़ैर ये सब कह कर उस सफ़ेदपोश ने मुझे फिर से चेताया कि अगर मैंने उसका कहा नहीं माना तो अंजाम अच्छा नहीं होगा। उसके बाद उसके काले नकाबपोश साथी ने मेरे सिर पर वार किया जिससे मैं बेहोश हो गया। होश आया तो देखा वो दोनों कमरे से गायब थे। मैं सोचने लगा कि आख़िर वो सफ़ेदपोश मुझसे ये सब क्यों करवाना चाहता है? भला ऐसा करने से उसे क्या फ़ायदा हो सकता था जबकि वैभव को मुरारी का हत्यारा साबित करने से भी कुछ नहीं हो सकता था? ख़ैर उसकी धमकी को मैंने पूरी तरह नज़रंदाज़ कर दिया था। मैं भला ऐसे किसी आदमी के कहने पर अपने फर्ज़ से कैसे मुंह मोड़ लेता लेकिन जल्दी ही मुझे समझ में आ गया कि मुझे उसका कहा मान लेना चाहिए था। चार दिन पहले मुझे पता चला कि मेरी मां घर से गायब है। मैंने उन्हें बहुत खोजा मगर उनका कहीं पता नहीं चला। मुझे समझते देर न लगी कि ये काम ज़रूर उस सफ़ेदपोश का ही होगा। इस दुनिया में मां के अलावा मेरा है ही कौन? मैं बुरी तरह घबरा गया था कि अगर मां को कुछ हो गया तो मैं कैसे खुद को माफ़ कर पाऊंगा? मन में ख़्याल आया कि इस बारे में आपको बताऊं लेकिन फिर ये सोच कर बताना सही नहीं समझा कि इससे कहीं बात और न बिगड़ जाए। मैं जानता था उस सफ़ेदपोश से यहीं मुलाक़ात हो सकती है इस लिए मैं यहीं आ गया। दो दिन पहले रात के अंधेरे में सच में ही वो सफ़ेदपोश मेरे सामने आ गया और फिर उसने खुद ही बताया कि मेरी मां उसके कब्जे में है। अगर अब भी मैं उसका कहा नहीं मानूंगा तो इस बार मैं अपनी मां से हाथ धो बैठूंगा। बेबस हो कर मुझे उसके अनुसार चलना ही पड़ा ठाकुर साहब।"

"तो क्या तुम्हारी मां अभी भी उसी के कब्जे में है?" दादा ठाकुर ने पूछा।
"हां।" धनंजय ने हताश भाव से कहा____"उसका कहना है कि वो तभी मेरी मां को आज़ाद करेगा जब मैं आपको ये सब बता दूंगा कि मुरारी का हत्यारा आपका बेटा ही है।"

"बड़ी अजीब बात है।" दादा ठाकुर ने हैरानी भरे भाव से कहा____"भला उसे तुम्हारे द्वारा ऐसा करवाने से क्या लाभ हो सकता है? क्या उसे इतना भी ज्ञान नहीं है कि तुम्हारे द्वारा वैभव को मुरारी का हत्यारा साबित कर देने से भी हमें यकीन नहीं हो सकता या ये कहें कि हमारे बेटे पर कोई आंच नहीं आ सकती?"

"मैं खुद भी अभी तक यही बात सोच सोच कर परेशान हूं ठाकुर साहब।" धनंजय ने कहा____"मुझे खुद समझ में नहीं आ रहा कि मेरे द्वारा ऐसा करवाने से उसे क्या लाभ हो सकता है। ख़ैर, मैं तो ये सोच कर डर रहा हूं कि आपको असलियत बता देने के बाद अब मेरी मां का क्या होगा? कहीं वो मेरी मां को जान से न मार दे, अगर ऐसा हुआ तो मैं अनाथ हो जाऊंगा ठाकुर साहब। मेरी वजह से मेरी मां की जान चली गई तो कैसे इस अपराध बोझ से जी पाऊंगा मैं?"

"कुछ नहीं होगा तुम्हारी मां को।" दादा ठाकुर ने उसे धीरज बंधाते हुए कहा____"हमें यकीन है कि वो तुम्हारी मां के साथ कुछ भी बुरा नहीं करेगा।"
"पता नहीं वो कौन सी मनहूस घड़ी थी।" धनंजय ने हताश हो कर कहा____"जब मेरा तबादला इस शहर में हुआ था और फिर मैं इस मामले में फंस गया?"

"फ़िक्र मत करो धनंजय।" दादा ठाकुर ने खड़े हो कर उसके कंधे पर हाथ रखा____"तुम्हारी मां सही सलामत तुम्हें मिल जाएंगी। एक बात और, हम तुम्हें अब इस मामले से आज़ाद करते हैं। तुम्हारे आला अधिकारी से बात कर के हम तुम्हारा तबादला भी कहीं और करवा देंगे। हम नहीं चाहते कि हमारी वजह से तुम दोनों मां बेटे पर कोई संकट आए। अच्छा अब हम चलते हैं, अपना ख़्याल रखना।"

धनंजय ने हाथ जोड़ कर दादा ठाकुर को प्रणाम किया तो दादा ठाकुर उसे आशीर्वाद दे कर कमरे से बाहर निकल गए। कुछ ही देर में वो जीप में अपने दोनों आदमियों के साथ बैठे हवेली की तरफ बढ़े चले जा रहे थे। उनके चेहरे पर सोचो के गहरे बादल छाए हुए थे।


[][][][][]

शाम हो चुकी थी।
मैं सबके साथ बैठा चाय पी रहा था। गांव की कुछ औरतें आई हुईं थी और अंदर वो सब सोहर गीत गा रहीं थी। ये सुबह शाम रोज़ का ही काम बन गया था उनका। जब से बड़े भैया के साले वीरेंद्र को पुत्र हुआ था तभी से घर में खुशियों का माहौल छाया हुआ था। हम सब बाहर ही बैठे हुए थे इस लिए गाना बजाना साफ साफ सुनाई दे रहा था। मैं पहली बार रागिनी भाभी के द्वारा कोई गीत सुन रहा था। उनकी आवाज़ तो मधुर थी ही किंतु गाना भी वो बहुत ही सुंदर गा रहीं थी। कुछ गांव की औरतें और लड़कियां भी थीं जो उनका साथ दे रहीं थी।

चाय के दौरान ही मैंने वीरेंद्र से कहा कि मेरे लायक जो भी काम हो वो बेझिझक मुझे बताएं। मेरी ये बात सुन कर सब कहने लगे कि वो अपनी बेटी के देवर से कोई काम नहीं करवाएंगे। मैंने काफी कहा लेकिन वो न माने तब मैंने कहा कि ठीक है लेकिन मेरे साथ जो आदमी आए हैं वो यहां काम करने के लिए ही आए हैं इस लिए वो उन्हें काम पर लगा लें। मेरी इस बात से सब राजी हो गए। ख़ैर उसके बाद मैं गांव घूमने का बोल कर निकल गया।

चंदनपुर गांव में ज़्यादातर ठाकुर ही थे और बाकी अन्य जाति के लोग थे। यहां मुझे सब जानते थे और बड़े ही प्रेम भाव से मिलते थे। गांव में ज़्यादातर कच्चे मकान बने हुए थे। मैं बाहर आया और सोचा किस तरफ घूमने के लिए जाया जाए? घर में क्योंकि सब लोग गीत संगीत ने व्यस्त थे इस लिए किसी के पास मेरे लिए समय ही नहीं था। मैं चलते हुए अपने भैया के चाचा ससुर के घर की तरफ आ गया। शाम ढल चुकी थी इस लिए हर घर में लालटेन जला दी गई थी। हालाकि बिजली भी थी गांव में लेकिन उसके आने का कोई समय नहीं था। चौबीस घंटे में मुश्किल से चार पांच घंटे ही बिजली रहती थी, वो भी भगवान भरोसे।

घर का दरवाज़ा खुला हुआ था तो मैं अंदर दाखिल हो गया। चाचा ससुर यानि बलभद्र सिंह भाभी के घर में ही बैठे हुए थे और उनके साथ में उनका बड़ा बेटा भी था। मैं अंदर आया तो देखा बैठका खाली था तो मैं अंदर की तरफ बढ़ गया। थोड़ी ही देर में मैं अंदर आंगन में आ गया। आंगन में आ कर जैसे ही मैंने बाएं तरफ नज़र डाली तो एकदम से मेरी आंखें फट पड़ीं। अंदर की सांस अंदर और बाहर की बाहर ही रह गई। मैं अपनी जगह पर बुत बना खड़ा रह गया था।

आंगन के बाएं तरफ कोने में बलवीर की बीवी सुषमा पूरी तरह नंगी खड़ी थी। उसकी साड़ी नीचे ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसका पूरा जिस्म लालटेन के प्रकाश में नहाया हुआ था। उसकी नज़र मुझ पर नहीं पड़ी थी। मैंने देखा वो एक दूसरी साड़ी को हाथ में लिए उसे पहनने वाली थी। सहसा उसे किसी बात का आभास हुआ तो उसने नज़र उठा कर देखा और जैसे ही उसकी नज़र किसी पराए मर्द पर पड़ी तो वो बुरी तरह उछल पड़ी। डर और घबराहट के मारे उसके कंठ से चीख ही निकल गई। उसके बाद फ़ौरन ही वो अपनी नग्नता को छुपाने में लग गई थी। इधर उसकी चीख सुन कर मुझे होश आया था। उसको हैरत से अपनी तरफ देखता देख मैं एकदम से बौखला गया और फ़ौरन ही पलट कर बाहर की तरफ भागा।

बाहर बैठक में आ कर मैं एक तरफ रखे लकड़ी के तख्त पर बैठ गया। मेरी सांसें इतनी तेज़ चलने लगीं थी मानों मैं सैकड़ों मील भाग कर आया था। आंखों के सामने सुषमा का नंगा जिस्म बार बार घूमे जा रहा था। गोरे जिस्म का एक एक अंग साफ देखा था मैंने। सीने पर मध्यम आकार की ठोस और तनी हुई चूचियां, उसके नीचे सपाट पेट, पेट के बीच सुंदर सी नाभि और उसके नीचे चिकनी जांघों के बीच घने बालों में छुपी उसकी योनि। उफ्फ मैंने आंखें बंद कर के एक गहरी सांस ली। बंद आंखों में सुषमा का डरा सहमा और हैरत से सराबोर चेहरा उभर आया। यकीनन इस तरह उसे किसी के आ जाने की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी और उसे ही बस क्यों मुझे खुद भी इसकी उम्मीद नहीं थी। मैं सोचने लगा कि साला ये कैसा चूतियापा हो गया? सहसा मेरे मन में ख़्याल उभरा कि वो आंगन में उस हालत में क्यों थी? अभी मैं ये सोच ही रहा था कि तभी अंदर से पायलों की छम छम करती आवाज़ बाहर आती सुनाई दी। मैं एकदम से सम्हल कर बैठ गया। मेरी धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं।

कुछ ही पलों में सुषमा बाहर आ गई। मैंने नज़र उठा कर उसकी तरफ देखा। हमारी नज़रें मिलीं तो उसने बुरी तरह शरमा कर अपना सिर झुका लिया। इस वक्त वो साड़ी पहने हुए थी। गोरा चेहरा लाज्जावश सुर्ख पड़ा हुआ था।

"माफ़ कीजिएगा, मुझे पता नहीं था कि अंदर आप उस हालत में होंगी।" मैंने झिझकते हुए धीमें स्वर में कहा____"मैं तो बस आपसे मिलने आया था। मुझे बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि अंदर मुझे ऐसा ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिल जाएगा।"

"आप बहुत ख़राब हैं ननदोई जी।" सुषमा ने बुरी तरह शरमा कर किन्तु नाराज़गी जताते हुए कहा____"भला कोई किसी के घर के अंदर इस तरह दबे पांव जाता है क्या? कम से कम आवाज़ तो लगाना चाहिए था आपको।"

"देखिए अब जो हो गया उसके लिए क्या ही किया जा सकता है भाभी जी।" मैंने जब देखा कि सुषमा उस सबसे ज़्यादा नाराज़ नहीं हुई है तो मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"रही बात आवाज़ लगा कर अन्दर आने की तो अब मैंने फ़ैसला कर लिया है कि अब से जब भी यहां आऊंगा तो ऐसे ही दबे पांव आऊंगा ताकि ऐसा ही ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिलें।"

"धत्त, सच में बहुत गंदे हैं आप?" सुषमा एक बार फिर बुरी तरह लजा गई फिर बोली____"अगर आइंदा इस तरह दबे पांव आएंगे तो कूटे जाएंगे आप।"
"कोई बात नहीं सरकार।" मैंने मुस्कुरा कर कहा___"ऐसे ख़ूबसूरत नज़ारे को देखने के लिए तो हम खुशी से अपनी जान भी दे देंगे।"

"बस कीजिए अब।" सुषमा मानों शर्म से गड़ी जा रही थी____"वरना रागिनी दीदी से आपकी शिकायत कर देंगे हम।"
"ज़रूर कर दीजिए सरकार।" मैंने छेड़ा____"और ये भी बताइएगा कि कैसे आप मुझ मासूम को अपने हुस्न का दीदार करा रहीं थी।"

"हाय राम! हमने कब किया ऐसा?" सुषमा बुरी तरह हैरान हो कर बोल पड़ी थी।
"ख़ैर ये सब छोड़िए।" मैंने कहा____"और ये बताइए कि आप आंगन में उस हालत में क्यों थीं? भला आपको ये कैसा शौक चढ़ा हुआ था?"

"धत्त।" सुषमा ने शर्म से मुस्कुराते हुए कहा____"हमें ऐसा करने का कोई शौक नहीं चढ़ा हुआ था। हम तो दिशा मैदान जाने के लिए कपड़ा बदल रहे थे। घर में कोई था नहीं इस लिए सोचा आंगन में ही झट से कपड़ा बदल लेते हैं और फिर दिशा मैदान के लिए चले जाएंगे। अब हमें क्या पता था कि आप ऐसे दवे पांव आ जाएंगे।"

"शायद मेरी किस्मत बहुत अच्छी थी भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"इसी लिए तो इतना खूबसूरत नज़ारा देखने को मिल गया मुझे। उफ्फ! क्या लग रहीं थी आप?"

"भगवान के लिए ऐसी बातें मत कीजिए।" सुषमा ने फिर से शर्मा कर कहा____"हमारा वैसे भी शर्म से बुरा हाल है। कृपया इस बात का ज़िक्र किसी से मत कीजिएगा वरना बहुत बदनामी होगी हमारी।"

"फ़िक्र मत कीजिए।" मैंने उसके शर्म से लाल पड़े चेहरे को देखते हुए कहा____"मैं इस बारे में किसी से कुछ नहीं कहूंगा, लेकिन ये भी तो बताइए कि इससे मुझे क्या मिलेगा?"

"क...क्या मतलब है आपका?" सुषमा मानों उलझ गई।
"सीधी सी बात है भाभी।" मैंने समझाने वाले अंदाज़ से कहा____"मैं आपके इतने बड़े राज़ को सबसे छुपा कर रखूंगा जिससे कोई आपके बारे में ग़लत नहीं सोचेगा? तो मेरे इतने बड़े काम के लिए मुझे भी तो आपसे कुछ मिलना चाहिए।"

"क..क्या चाहते हैं आप?" सुषमा ने संदेहपूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा।
"ज़्यादा कुछ नहीं।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"सिर्फ़ यही कि एक बार फिर से वैसा ही ख़ूबसूरत नज़ारा देखने को मिल जाए।"

"हाय राम! ये क्या कह रहे हैं आप?" सुषमा ने बुरी तरह चौंकते हुए कहा_____"नहीं नहीं, ऐसा नहीं हो सकता।"
"क्यों नहीं हो सकता?" मैंने तख्त से उतर कर कहा____"अभी थोड़ी देर पहले तो हुआ ही है तो एक बार फिर से क्यों नहीं हो सकता?"

"वो तो बस अंजाने में हुआ था।" सुषमा ने शर्म से नज़रें झुकाते हुए कहा____"अब वैसा कुछ भी हम जान बूझ कर नहीं करेंगे। कृपया आप हमें इसके लिए मजबूर न करें। अच्छा, अब हम चलते हैं। हमें दिशा मैदान के लिए जाना है।"

सुषमा मेरी कोई बात सुने बिना ही चली गई। शायद वो समझ गई थी कि जितना वो मुझसे इस बारे में बातें करेगी उतना वो खुद ही फंसती जाएगी। या फिर ये भी संभव था कि दिशा मैदान के लिए जाना उसके लिए ज़रूरी हो गया था। ख़ैर, मैं उसकी हालत को सोच कर मन ही मन मुस्कुराया और फिर बाहर की तरफ चल पड़ा। अभी दरवाज़े पर ही पहुंचा था कि सामने से मुझे सुषमा की ननद कंचन इधर ही आती हुई दिखी। उसे आता देख मेरे होठों पर गहरी मुस्कान उभर आई और मैं पलट कर इस बार दरवाज़े के बगल से दीवार की ओट में छिप गया।


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बेचारी अनुराधा जितना अपने दिल को मनाना चाहती है उतना ही वो और वैभव की तरफ जाने लगता है। कभी उसकी बुराई और कभी उसकी अच्छी तड़पाने लगती है। मगर फिर भी अपने दिल के इस प्रेम को वो समझ नही पा रही है। कुछ इन पंक्तियों की तरह

किसका रस्ता देखे, ऐ दिल, ऐ सौदाई
मीलों है खामोशी, बरसों है तनहाई
भूली दुनिया, कभी की, तुझे भी, मुझे भी

फिर क्यों आँख भर आई

भुवन ने आ कर और अनुराधा की दिल पर चोट कर दी की वैभव सामने ना हो कर भी उसकी और उसके परिवार की कितनी चिंता करता है बिलकुल इन पंक्तियों की तरह

दूर रहकर भी तुम ही पर रहती हैं अपनी नजर
बाहों में हम थाम लेंगे, जब भी ठोकर खाओगे

बेचारा दरोगा, पुलिस वाला होके भी नकाबपोश के चक्कर में पड़ गया। अब देखना है कि ट्रांसफर होकर भी उसकी मां को छोड़ा जाता है या नही।

वैभव साहब तो भाई की ससुराल का पूरा मजा उठा रहे है जैसे वो खुद वहा के दामाद हो। सुषमा के साथ तो सीन भी जबरदस्त हो गया है, अब कुछ ना कुछ वैभव भाई साहब करके ही जायेंगे, बिल्कुल क्राइम मास्टर गोगो की तरह । बहुत ही शानदार अपडेट।
 
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