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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.8%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.9%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 41 22.4%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 30 16.4%

  • Total voters
    183

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,718
354
ये षड्यंत्र तो उलझता ही जा रहा है, मतलब हर वो शख्स जिसका हवेली और उसमे रहने वाले से कोई भी संबंध है उसको इस नकाबपोश ने फंसा रक्खा है। मगर ये सुनील और चेतन के पेचवाड़े क्या खुजली हुई जो दोनो वैभव से दुश्मनी निकल रहे है। कहीं ये दोनो भी तो अजीत और विभोर की तरह वैभव से जलने तो नही लगे है। जगताप के हाथ भी कुछ नही लगा मगर अब लग रहा है की जगन भी दुनिया से जाने वाला है क्योंकि नकाबपोश को भी ये अंदाजा हो गया होगा की हवेली वालो को जगन पर शक हो गया होगा। लगता है दादा ठाकुर के दिमाग में कोई तो प्लान आया है देखते है क्या प्लान है। धांसू अपडेट।
Koi to vajah rahi hi hogi dost jiski vajah se Chetan aur Sunil us safedposh ke sath hain. Jagan ka kya hoga ye jald hi pata chalega. Dada thakur ke man me kya hai ye to aane wala samay hi batayega. Well shukriya dost :hug:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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Bored Cabin Fever GIF
Still Waiting Office Tv GIF by The Office
Moone Boy Waiting GIF by HULU
Still Waiting Reaction GIF by MOODMAN
Over It Reaction GIF
Jald hi :declare:
 

TheBlackBlood

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अध्याय - 53
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


अब तक....

"किसी भी इंसान के सितारे हमेशा गर्दिश में नहीं रहते जगताप।" पिता जी ने हल्की मुस्कान में कहा____एक दिन हर इंसान का बुरा वक्त आता है। हमें यकीन है कि उस सफ़ेदपोश का भी बुरा वक्त जल्द ही आएगा।"


कुछ देर और इस संबंध में भी बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम पर चले गए। दादा ठाकुर अकेले ही बैठक में बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर कई तरह के विचारों का आवा गमन चालू था। सहसा जाने क्या सोच कर वो मुस्कुराए और फिर उठ कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गए।

अब आगे....


"इधर क्यों मोड़ दिया जीप को?" मैंने अपने नए बन रहे मकान के रास्ते की तरफ जीप को मोड़ा तो भाभी ने चौंक कर मुझसे पूछा____"क्या चंदनपुर जाने का इस तरफ से भी रास्ता है?"

"नहीं भाभी।" मैंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"इस तरफ से आपके मायके जाने का रास्ता नहीं है लेकिन इधर इस लिए जीप को मोड़ा है क्योंकि मुझे कुछ काम है यहां पर किसी से।"

मेरी बात सुन कर भाभी मेरी तरफ देखने लगीं। ऐसा लगा जैसे कुछ सोचने लगीं हो। मैंने उनकी तरफ एक नज़र डाली और फिर ख़ामोशी से जीप चलाते हुए कुछ ही देर में मैं उस जगह पर पहुंच गया जहां पर मेरा नया मकान बन रहा था। मेरी उम्मीद के अनुसार भुवन वहीं मौजूद था। मुझे आया देख वो जल्दी से मेरे पास आया और पहले मुझे सलाम किया फिर भाभी को। मैंने भाभी को जीप में ही बैठे रहने को कहा और खुद जीप से उतर कर भुवन को लिए थोड़ा दूर चला आया।

"मैं कुछ दिनों के लिए भाभी के साथ उनके मायके जा रहा हूं भुवन।" मैंने भुवन से कहा_____"पिता जी के हुकुम से मुझे उनके मायके में कुछ दिन रुकना भी पड़ेगा। इस लिए मैं तुम्हें कुछ ज़िम्मेदारियां दे कर जा रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम उन ज़िम्मेदारियों को हर कीमत पर निभाओगे।"

"आप बस हुकुम कीजिए छोटे ठाकुर।" भुवन ने एकदम सतर्क हो कर कहा_____"आपकी हर आज्ञा का पालन मैं अपनी जान दे कर करूंगा। बताइए, आपके यहां ना रहने कर मुझे क्या करना होगा?"

"तुम्हें मुरारी काका के घर वालों की सुरक्षा का हर कीमत पर ख़्याल रखना है।" मैंने कहा____"तुम्हें इस बात पर ख़ास ध्यान देना है कि उस घर में बाहर का कौन व्यक्ति आता है और क्या करता है? तुम्हें तो पता ही है कि आज कल हालात बहुत ही ख़राब हैं इस लिए उनकी सुरक्षा का भार अब तुम्हारे कंधो पर रहेगा। एक बात और, जगन भले ही मुरारी का भाई है लेकिन तुम्हें उसकी गतिविधियों पर भी नज़र रखनी है।"

"मैं समझ गया छोटे ठाकुर।" भुवन ने कहा____"आप बिलकुल बेफ़िक्र हो कर जाइए। मुरारी के घर वालों पर मेरे रहते कोई आंच नहीं आएगी।"

"बहुत बढ़िया।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा_____"इस सबके लिए तुम्हारे पास आदमियों की कोई कमी नहीं है इस लिए सिर्फ़ अपने आदमियों के ही भरोसे मत रहना बल्कि इस मकान से ज़्यादा मुरारी के घर वालों की सुरक्षा का ज़िम्मा तुम खुद अपने हाथ में लिए रहोगे। रही बात यहां की तो इस बारे में तुम्हें सब पता ही है।"

"आप निश्चिंत रहिए छोटे ठाकुर।" भुवन ने पूरी गर्मजोशी से कहा____"भुवन आपको वचन देता है कि मेरे रहते मुरारी के घर वालों पर कोई आंच नहीं आएगी। इसके अलावा बाकी जो काम आपने मुझे सौंपे हैं वो भी बेहतर तरीके से होते रहेंगे।"

भुवन से मैंने विदा ली और जीप में आ कर बैठ गया। अब मैं निश्चिंत हो चुका था इस लिए खुशी मन से जीप को स्टार्ट किया और मोड़ कर वापस मुख्य सड़क की तरफ चल पड़ा। मेरे पीछे एक दूसरी जीप में मेरे कुछ आदमी भी पूरी सतर्कता से आ रहे थे।

"यहां कोई ज़रूरी काम था क्या तुम्हारा?" रास्ते में भाभी ने मुझसे पूछा____"वैसे इस जगह पर मकान बनवाने का विचार क्यों आया था तुम्हारे मन में?"

"बस ये समझ लीजिए भाभी कि यहां पर मकान बनवा कर मैं ऐसा कोई काम नहीं करुंगा जिसकी शायद आप सब मुझसे उम्मीद कर रहे हैं।" मैंने एक नज़र भाभी के चेहरे पर डालने के बाद कहा____"ख़ैर ये सब छोड़िए, और ये बताइए कि मायके जाने की ख़ुशी तो है न आपको?"

"ख़ुशी क्यों नहीं होगी भला?" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"मेरे भैया को दस सालों बाद बड़ी मन्नतों से पहली संतान हुई है। सच कहूं तो मैं बहुत खुश हूं और मुझे यकीन है कि भैया तो इस खुशी में आज कल फूले न समा रहे होंगे। जी करता है एक पल में वहां पहुंच जाऊं और उन सबके खुशी से जगमगाते चेहरे देखूं।"

"ज़रूर देखेंगी भाभी।" मैंने कहा____"बहुत जल्द मैं आपको उन सबके पास पहुंचा दूंगा। वैसे वहां पहुंच कर आप तो अपनों के साथ ही ब्यस्त हो जाएंगी लेकिन सोच रहा हूं कि मुझ मासूम का क्या होगा? वहां कोई मेरी तरफ ध्यान भी देगा या नहीं?"

"सब ध्यान देंगे।" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और हां, मेरे सामने तुम ज़्यादा मासूम और भोला बनने का ये नाटक मत करो। सब जानती हूं तुम्हारे कारनामे।"

"मेरे कारनामे??" मैं एकदम से चौंका____"ये क्या कह रही हैं आप?"
"मैंने कहा न कि मेरे सामने नाटक मत करो।" भाभी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"तुम अगर ये सोचते हो कि मुझे कुछ पता नहीं है तो ये तुम्हारी भूल है। तुमने मेरे मायके में अपने नाम का जो डंका बजा रखा है न उसके बारे में सब पता है मुझे।"

"पता नहीं ये क्या कह रही हैं आप?" मैं अंदर ही अंदर उनकी इस जानकारी पर हैरान था किंतु प्रत्यक्ष में अंजान बनते हुए बोला_____"भला मैं भोला भाला आदमी कैसे कहीं अपने नाम का डंका बजा सकता हूं?"

"कुछ तो शर्म करो वैभव, कुछ तो भगवान से डरो।" भाभी ने मेरे बाजू पर ज़ोर से मारते हुए कहा____"मैंने मां जी से सुना है कि बड़े दादा ठाकुर के भी हर जगह ऐसे ही डंके बजते थे और अब तुम्हारे बजने लगे हैं। आख़िर कब सुधरोगे तुम?"

"क्या आपको नहीं लगता कि मैं पहले से थोड़ा सा ही सही लेकिन सुधर गया हूं?" मैंने इस बार थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"क्या आपको नहीं लगता भाभी कि मैं आपकी बातों को मान कर वो सब करने लगा हूं जो मुझे करना चाहिए?"

"बिल्कुल लगता है वैभव।" भाभी ने इस बार मुझे प्रशंशा की दृष्टि से देखते हुए कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे इस बदले हुए रूप को देख कर मैं बेहद खुश हूं। तुमने तो वो काम किया है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। तुमने मेरी बेरंग और उजाड़ दुनिया में जो खुशी के रंग भर दिए हैं उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारी ऋणी रहूंगी। अब तो बस एक ही इच्छा है कि तुम पूरी तरह से सुधर जाओ और पूरी ईमानदारी से हर ज़िम्मेदारी को निभाओ।"

"मुझसे जो हो सकता है उसे मैं पूरी ईमानदारी से कर रहा हूं भाभी।" मैंने संजीदगी से कहा____"और आगे भी यही कोशिश करता रहूंगा कि आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूं। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि अब भैया का बर्ताव कैसा है आपके साथ?"

"उनका तो जैसे कायाकल्प हो गया है वैभव।" भाभी ने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"साढ़े तीन साल पहले जैसे वो थे उससे कहीं ज़्यादा अब उनका बर्ताव बेहतर हो गया है। आज कल तो मैं उनके हर क्रिया कलाप से हैरान होती रहती हूं। कभी कभी तो ऐसा आभास होता है जैसे वो मेरे पति हैं ही नहीं बल्कि उनकी शक्ल में कोई और ही बेहतर इंसान आ गया है।"

"हाहाहा ऐसा क्या करने लगे हैं वो।" मैंने हंसते हुए कहा____"जिससे आप इतना ज़्यादा हैरान होती रहती हैं?"
"अब तुमसे क्या बताऊं वैभव।" भाभी के चेहरे पर सहसा शर्म की लाली उभर आई____"बस यूं समझो कि अब उनके हर कार्य से मैं खुश हूं।"

"फिर तो ये अच्छी बात है।" मैंने सहसा मायूस हो कर कहा_____"बस एक हम ही हैं जिस पर इतने कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। कुछ लोगों को शायद हमारा ख़ुश रहना अच्छा नहीं लगता।"

"चिंता मत करो।" भाभी ने हल्के से हंसते हुए कहा_____"तुम्हारी ख़ुशी का भी जल्द इंतजाम किया जाएगा। इस बार मां जी से कहूंगी कि वो तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी लड़की खोजें और फिर जल्दी ही तुम्हारा ब्याह कर दें ताकि ख़ुश होने का तुम्हें भी एक बेहतरीन साधन मिल जाए।"

"ये तो ग़लत बात है भाभी।" मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"अभी तो मेरी खेलने कूदने की उमर है और आप मेरे गले में किसी लड़की से ब्याह करवा के घंटी बांध देने की बात कर रही हैं? सरासर नाइंसाफी है ये मेरे साथ।"

"कोई नाइंसाफी नहीं है ये।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बल्कि ये तो ऐसी बात है जिसके बाद तुम्हारा हर जगह झंडे गाड़ना बंद हो जाएगा। ऐसी देवरानी लाऊंगी जो हर वक्त तुम्हारी अक्ल को ठिकाने लगाती रहे और तुम्हारा उछलना कूदना बंद कर दे।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने कहा____"मेरी अपनी ही प्यारी भाभी मेरी खुशियों को आग लगा देना चाहती हैं। हे ऊपर वाले! ये सब सुनने से पहले मैं बहरा क्यों नहीं हो गया?"

"ज़्यादा नाटक मत करो।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"और अब चुपचाप गाड़ी चलाओ। एक बात और, मेरे मायके में किसी के यहां झंडे गाड़ने का सोचना भी मत वरना इस बार मैं ख़ुद पिटाई करूंगी तुम्हारी।"

"देखिए ऐसा है भाभी कि मैं अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश करूंगा कि ऐसा न हो।" मैंने मज़ाकिया लहजे में कहा____"लेकिन अगर कोई मुझ पर मोहित हो कर ख़ुद ही मेरे पास प्रसाद लेने आएगी तो फिर मैं प्रसाद दिए बगैर मानूंगा भी नहीं।"

"हाय राम! बहुत ही निर्लज्ज हो तुम।" भाभी ने फिर से मेरी बाजू पर ज़ोर से मारा____"मैं समझ गई कि तुम कभी नहीं सुधर सकते। जाओ मुझे तुमसे अब कोई बात नहीं करना।"

"अच्छा ठीक है बात मत कीजिए।" मैंने उन्हें छेड़ने के इरादे से कहा____"लेकिन ये तो बताइए कि आपके मायके में वो शालिनी नाम की लड़की अभी भी है न? असल में पिछली बार जब उससे मुलाक़ात हुई थी तो बता रही कि अब उसका भी ब्याह हो जाएगा तो शायद ही अब उससे मेरी मुलाक़ात हो पाए।"

"हे भगवान! क्या तुमने उसे भी नहीं बक्शा?" भाभी ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर मेरी तरफ देखा____"कितने ख़राब हो तुम वैभव। यकीन नहीं होता कि तुमने मेरी सहेली को भी....। उफ्फ क्या कहूं तुम्हें?"

"अरे! आप ग़लत समझ रही हैं भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने उस लड़की के साथ कुछ भी ग़लत नहीं किया है लेकिन हां, उस पर दिल ज़रूर आ गया था। जितनी प्यारी वो दिखती थी उतनी ही प्यारी बातें भी करती थी। हमारे बीच मामला कुछ हद तक आगे बढ़ चुका था। पिछली बार जब मैं उसकी गोद में सिर रख के लेटा हुआ था तो उसने अपनी ज़ुल्फों से मेरे चेहरे को ढंक दिया था। क़सम से भाभी, वो दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। उसके बाद आपको पता है आगे क्या हुआ?"

"मुझे मत बताओ।" भाभी ने गुस्से से कहा____"मुझे तुम्हारी ये गंदी बातें हर्गिज़ नहीं सुनना। तुम बस ख़ामोशी से गाड़ी चलाओ।"
"ज़ालिम लोग।" मैंने हताश भाव से कहा____"किसी को हमारी खुशी की परवाह ही नहीं है। ख़ैर कोई बात नहीं, ठाकुर वैभव सिंह का नसीब ही खोटा है तो कोई क्या ही कर सकता है?"

मैं जानता था कि भाभी मेरी बातों से चिढ़ गई हैं इस लिए अब मैं और उन्हें गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था। उसके बाद का सारा सफ़र ख़ामोशी में ही गुज़रा। आख़िर हम भाभी के मायके चंदनपुर पहुंच ही गए। वहां सबने बड़ी गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। भाभी अपने माता पिता और भैया भाभी से मिल कर बेहद खुश हो गईं थी।

[][][][][]

अनुराधा रसोई में दोपहर का खाना बना रही थी लेकिन उसका ध्यान खाना बनाने में नहीं बल्कि कहीं और ही था। बार बार उसके ज़हन में वैभव की कही हुई बातें गूंज उठती थी और वो उन बातों के बारे में सोचने लगती थी। जब से वैभव उसके यहां से वो सब कह कर गया था तब से वो ज़्यादातर उसी के बारे में ही सोचती रही थी। पिछली रात तो उसे नींद ही नहीं आ रही थी। चारपाई पर देर रात तक वो करवटें बदलती रही थी। बड़ी मुश्किल से पता नहीं रात के कौन से पहर उसे नींद आई थी। उसके बाद सुबह हुई और फिर जैसे ही उसे पिछली रात नींद न आने की वजह याद आई तो वो फिर से वैभव के बारे में सोचने लगी थी।

अनुराधा की मां सरोज सुबह से अब तक कई बार उससे पूछ चुकी थी कि वो इतना खोई खोई सी क्यों है? अगर उसकी तबियत ठीक नहीं है तो वो उसे वैद्य के पास ले जाएगी मगर अनुराधा ने बस यही कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है। अब भला वो उसे क्या बताती कि वो क्यों सुबह से गुमसुम है अथवा किस वजह से खोई खोई सी है? वो घर के कामों में अपना मन लगा कर किसी तरह उस सबको भूलने की कोशिश करती रही लेकिन रसोई में बैठ कर जब वो खाना बनाने लगी तो एक बार फिर से उसके ज़हन में वही सब चलने लगा था।

अनुराधा कोई बच्ची नहीं थी, वो जानती थी कि दुनिया में क्या क्या होता है और लोग कैसी कैसी मानसिकता के होते हैं। उसने अपनी छोटी सी दुनिया में यूं तो और भी बहुत कुछ देखा सुना था लेकिन पिछले कुछ महीनों में जो कुछ उसने देखा सुना था वो उस सबसे अलग था। वो एक ऐसी लड़की थी जिसने कभी किसी मर्द जात को नज़र उठा कर नहीं देखा था, सिवाय अपने बापू और काका जगन के। गांव से थोड़ा दूर उसका घर अकेला ही बना हुआ था इस लिए गांव के लड़के इस तरफ नहीं आते थे। जगन काका के घर भी जब वो जाती थी तो कोई न कोई उसके साथ होता था इस लिए उसके साथ कभी ऐसा वैसा कुछ हुआ ही नहीं था। दूसरे उसका स्वभाव भी कुछ शांत और शर्मीला सा था जिसकी वजह से वो कभी किसी पराए मर्द की तरफ देखने की हिम्मत नहीं करती थी। अपने बापू की लाडली थी वो, अपने बापू का गुरूर थी वो। हालाकि उसकी मां हमेशा उसके इस गुप्पे स्वभाव के लिए डांटती थी।

जीवन बहुत खुशहाल भले ही नहीं था लेकिन जैसा भी था वो उससे खुश थी। उसकी एक छोटी सी दुनिया थी, जिसमें उसके मां बापू और एक छोटा सा लेकिन प्यारा सा भाई था। उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि आगे एक ऐसा वक्त आएगा जब उसके छोटे से संसार में बहुत कुछ बदल जाएगा। एक दिन उसे पता चला कि उसके बापू ने दूसरे गांव के एक ऐसे लड़के की मदद करने की ज़िम्मेदारी ले ली है जिसके बाप ने उसे गांव समाज से बेदखल कर दिया है।

वक्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता, वो पंख लगाए उड़ता ही रहता है। अनुराधा के कानों तक भी ये बात पहुंच चुकी थी कि दादा ठाकुर ने अपने जिस लड़के को गांव समाज से बेदखल किया है उस लड़के का नाम क्या है और उसका चरित्र कैसा है। अनुराधा ये सोच कर तो खुश हुई थी कि उसके बापू किसी बेसहारे की मदद कर रहे हैं लेकिन इस बात से वो थोड़ा असहज भी हो गई थी कि जिस लड़के का चरित्र ही ठीक नहीं है उसकी मदद करने का कोई बुरा असर न पड़ जाए। उसकी मां ने भी इस बात के लिए उसके बापू को समझाया था लेकिन होनी को तो जैसे यही मंजूर था। ख़ैर वक्त ऐसे ही गुज़रता रहा, और गुज़रते वक्त के साथ वैभव नाम के लड़के के प्रति जो ख़ौफ था वो भी दूर होता गया।

वैभव जब पहली बार उसके बापू के साथ उसके घर आया था तब उसने भी उसे चुपके से देखा था। उसके भोले भाले मन में ये जानने की उत्सुकता थी कि जिस लड़के के बारे में दूर दूर तक के गांव में भी बातें फैली हुई हैं वो दिखता कैसा है? जिस घर में वो बड़ी बेबाकी के साथ रहती आई थी उस दिन वैभव के आने से पता नहीं क्यों उसे असहज महसूस होने लगा था। ख़ैर जब उसकी नज़र उस करामाती लड़के पर पड़ी तो जैसे वो कुछ देर के लिए ख़ुद को ही भूल गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कामदेव की तरह सुंदर और हट्टे कट्टे जिस्म वाला ये लड़का ऐसे काम भी करता होगा। उस मासूम को भला कैसे ये ज्ञान हो सकता था कि आंखें जो देखती हैं हमेशा वही सच नहीं होता। दुनिया में ऐसे नेक इंसान भी भरे पड़े हैं जिनकी शक्लो सूरत अच्छी नहीं होती लेकिन लोग पहली नज़र में उन्हें एक बुरा इंसान ही समझ बैठते हैं।

वैभव शक्ल सूरत से भले ही एक सुंदर नवयुवक था लेकिन उसके कर्म उसकी तरह सुंदर नहीं थे। अनुराधा को उस वक्त झटका लगा था जब वैभव ने भी उसकी तरफ देखा था और उसकी नज़र उससे जा मिली थी। वो एकदम से हड़बड़ा गई थी, दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ कर उसकी कनपटियों पर बजने लगीं थी। वो घबरा कर जल्दी से अन्दर भाग गई थी। उसके बाद वो अक्सर यही कोशिश करती कि वैभव के घर आने पर वो उसके सामने कम ही जाए। हालाकि उसकी सूरत को एक बार देख लेने की चाह उसके मन में ज़रूर रहती थी और ऐसा क्यों था ये उसे ख़ुद नहीं पता था। शायद ये वैभव के सुंदर होने की वजह से था जिसके चलते न चाहते हुए भी एक लड़की उसे देखने पर मज़बूर हो जाती थी।

वैभव जब भी उसके घर आता तो वो चुपके से उसे देख लेती और फिर अपने सामने उसके बारे में तरह तरह की बातें सोचने लगती। उसे बार बार याद आता कि ये वही लड़का है जो न जाने कितनी लड़कियों और औरतों को अपने जाल में फांस कर उनके साथ ग़लत कर चुका है। इस ख़्याल के साथ ही अनुराधा के मन में वैभव के प्रति एक घृणा सी भर जाती लेकिन इसके लिए वो ख़ुद कुछ नहीं कर सकती थी। ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा और एक महीना गुज़र गया। इस एक महीने में काफी कुछ बदल गया था। वैभव के प्रति उसके मन में जो ख़्याल पहले पैदा हुए थे वो अब ये सोच कर ग़ायब से होने लगे थे कि अगर ये इतना ही गंदा लड़का होता तो अब तक वो मुझे भी अपने जाल में फांस लेता, ये अलग बात है कि मैं उसके जाल में कभी न फंसती। उसने ख़ुद महसूस किया था कि इस एक महीने में वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा और ना ही कभी उससे बात करने की कोशिश की है। अनुराधा को लगने लगा कि शायद उसने उसके बारे में ग़लत सुना था, लेकिन फिर वो ये भी सोचती कि हर कोई तो ग़लत नहीं कह सकता ना?

इस सृष्टि का नियम है कि देर से ही सही लेकिन हमारे लिए सब कुछ सामान्य हो जाता है और हम सब कुछ भूल कर एक नए सिरे से जीवन को जीना शुरू कर देते हैं। यही हाल अनुराधा का हुआ था। उसे पूरी तरह से भले ही यकीन नहीं हुआ था लेकिन क्योंकि वो देख और महसूस कर चुकी थी कि वैभव वैसा तो बिलकुल नहीं है जैसा कि उसके बारे में लोगों ने फैला रखा है, इस लिए अब वो काफी हद तक सहज हो गई थी।

अपने गांव के लड़कों को देखा था उसने लेकिन वैभव उन सबसे अलग ही दिखता था उसे। वो उन सबसे सुंदर दिखता था, उसका जिस्म हट्टा कट्टा था जो उसकी उमर के लड़कों में उसने किसी का भी नहीं देखा था। जब भी किसी दिन वो उसके घर आता था तो वो उसे छुप कर देखती थी। अकेले में वो बस यही सोचती थी कि उसकी बूढ़ी दादी अपनी कहानियों में जिन राजकुमारों का ज़िक्र करती थी वैभव बिलकुल वैसा ही लगता है। ये बात सोच कर वो एकदम से खुश हो जाती और फिर सहसा मायूस हो कर सोचती कि काश वो भी एक राजकुमारी की तरह सुंदर होती।

सहसा कुछ जलने की गंध महसूस हुई तो अनुराधा को होश आया। उसने हड़बड़ा कर देखा तो तवे में पड़ी रोटी धुआं देने लगी थी। चूल्हे के अंदर जो रोटी लकड़ी के अंगारों की आंच में पकने के लिए एक तरफ टिकी थी वो तो कब की ख़ाक हो चुकी थी। ये सब देख कर अनुराधा बुरी तरह घबरा गई। एक तो गर्मी और ऊपर से चूल्हे की आंच में वैसे भी उसका बुरा हाल था। जीवन में पहली बार उसे खाना बनाना इतना मुश्किल काम लग रहा था। वो हताश और परेशान सी हो कर कभी तवे के ऊपर पड़ी अधजली और धुआं दे रही रोटी को देखती तो कभी अपने हाथ में लिए उस लोई को जिसे दोनों हथेलियों द्वारा थाप लगाने से उसे रोटी का आकार देना बाकी था।

अनुराधा ने फौरन ही लोई को गुंथे हुए आटे पर रखा और चिमटे से तवे को चूल्हे से उतारा। तवे पर पड़ी रोटी तवे पर एकदम से चिपक गई थी और धुआं छोड़ रही थी। अनुराधा जल्दी जल्दी चिमटे से उसे कुरेद कुरेद कर निकालने लगी। पसीने से उसका बुरा हाल था, उसने महसूस किया जैसे आज कुछ ज़्यादा ही गर्मी है। कुछ ही देर के प्रयास में उसने तवे से उस अधजली रोटी को निकाल कर एक तरफ रख दिया। तवे में एक काली परत सी बन गई थी जिससे नई बनने वाली रोटियां यकीनन ख़राब हो सकतीं थी इस लिए अनुराधा चिमटे से तवे को पकड़ कर बाहर नरदे के पास ले आई। उसकी मां कपड़े वगैरा ले कर घर के पीछे कुएं में गई हुई थी। अनुराधा ने जल्दी जल्दी पानी डाल कर पहले गर्म तवे को ठंडा किया और फिर थोड़ी मिट्टी ले कर तवे को मांजने लगी। कुछ ही देर में उसने तवे को एकदम साफ़ कर दिया।

रसोई में आ कर अनुराधा ने तवे में सफ़ेद छुई से हल्का लेप लगाया और फिर उस तवे को मिट्टी के चूल्हे पर चढ़ा दिया। चूल्हे में मौजूद लकड़ी और कंडे को उसने सुव्यवस्थित किया और फिर गुंथे हुए आटे से लोई ले कर रोटी पोने लगी। उसने निश्चय कर लिया कि अब वो सिर्फ़ रोटी बनाने पर ही ध्यान देगी वरना अगर उसकी मां आ गई और उसे रोटियों के जलने की गंध महसूस हो गई तो बहुत डांटेगी।

अक्सर ऐसा होता है कि हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ और ही है। जिस चीज़ को हम भुलाने का प्रयास करते हैं वो भूलने के बहाने से याद आती ही रहती है। अनुराधा को सच में आज का खाना बनाना बेहद मुश्किल काम लगा था। ख़ैर किसी तरह खाना बना ही डाला उसने। उसकी मां भी नहा धो कर आ गई थी इस लिए सबने एक साथ ही बैठ कर खाना खाया। खाने के बाद अनुराधा ने जूठे बर्तनों को एक तरफ रखा और फिर वो अपने कमरे में चारपाई पर आराम करने के लिए लेट गई। आंखें बंद की तो एक बार फिर से वैभव का चेहरा उभर आया और साथ ही उसकी बातें उसके कानों में गूंजने लगीं।

अनुराधा ने झट से आंखें खोली और फिर बेचैनी से करवट बदल कर दूसरी तरफ घूम गई। वो बच्ची नहीं थी, उसे दुनियादारी वाली हर बातों की समझ थी। अच्छे बुरे का भली भांति ज्ञान था उसे। जो चीज़ उसे रात से परेशान कर रही थी उसका उसे अब शिद्दत से एहसास हो रहा था। उसे एहसास हो रहा था कि उसने वैभव को भावना में बह कर कुछ ज़्यादा ही बोल दिया था। पिछले पांच महीनों से वो वैभव को पहचानने की कोशिश कर रही थी और इन पांच महीनों में इतना तो उसे एहसास हो ही चुका था कि वैभव दूसरी लड़कियों के बारे में भले ही चाहे जैसा सोचता हो लेकिन कम से कम उसके बारे में वो ग़लत नहीं सोचता था।

अनुराधा को सहसा याद आया कि कैसे वो हर बार उसे ठकुराईन कह कर चिढ़ाता था और वो अपने लिए ठकुराईन सुन कर शर्म से सिमट जाती थी। आम तौर पर ठकुराईन शब्द किसी ब्याहता औरत के लिए प्रयोग किया जाता है किंतु वैभव का उसे ठकुराईन कहना अजीब तो लगता ही था लेकिन कहीं न कहीं अपने लिए उसे वैभव के मुख से ये सुन कर अच्छा भी लगता था। एक अलग ही तरह का एहसास होता था उसे जिसके बारे में उसे ख़ुद ही पता नहीं था। चारपाई पर दूसरी तरफ मुंह किए लेटी अनुराधा वैभव के साथ बिताए आख़िरी पलों में जैसे खो सी गई।

"आप क्यों बार बार मुझे ठकुराईन कहते हैं?" वैभव के ठकुराईन कहने पर वो शर्म से लाल हो गई थी, और फिर उसने उससे यही कहा था।

"क्यों न कहूं?" उसने मानों उसे छेड़ा____"आख़िर तुम हो तो ठकुराईन ही। अगर तुम्हें मेरे द्वारा ठकुराईन कहने पर ज़रा सा भी एतराज़ होता तो तुम्हारे होठों पर इस तरह मुस्कान न उभर आती।"

"तो क्या चाहते हैं आप कि मैं आपके द्वारा ठकुराईन कहने पर आप पर गुस्सा हुआ करूं?" उसने अपनी मुस्कान को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा था।

"क्यों नहीं।" वैभव ने उसकी गहरी आंखों में देखा था____"तुम्हें मुझ पर गुस्सा होने का पूरा हक़ है। तुम मेरी डंडे से पिटाई भी कर सकती हो।"

"धत्त! ये क्या कह रहे हैं आप?" वो वैभव की ये बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी, फिर शर्माते हुए बोली____"मैं भला कैसे आपकी पिटाई कर सकती हूं?"
"क्यों नहीं कर सकती?" वैभव ने मुस्कुराते हुए कहा था____"अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें पूरा हक़ है मेरी पिटाई करने का।"

"न जी न।" वो शरमा कर दरवाज़े से एक तरफ हट गई थी, फिर अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए बोली____"मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती।"

चारपाई पर लेटी अनुराधा की आंखों के सामने जैसे ही ये सारे दृश्य उजागर हुए और वैभव से उसकी ये बातें महसूस हुईं तो सहसा उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसके नन्हे से दिल में एक हलचल सी मच गई थी। तभी सहसा उसे कुछ ऐसा याद आया जिसने उसे कहीं और ही धकेल दिया।

"ओह! तो मेरी अनुराधा रूठ गई है मुझसे?" वैभव के मुख से जैसे ही उसने ये सुना तो उसे बड़ा ज़ोर का झटका लगा था। आंखें फाड़े वो उसकी तरफ देखने लगी थी, किंतु जल्दी ही सम्हली और फिर बोली____"ये क्या कह रहे हैं आप? मैं आपकी अनुराधा कैसे हो गई?"

"पता नहीं कैसे मेरे मुख से निकल गया?" उसने महसूस किया जैसे वैभव ने अपनी घबराहट को दबाने का प्रयास करते हुए कहा था____"वैसे क्या तुम्हें मेरी अनुराधा कह देने पर एतराज़ है?"

"हां बिलकुल एतराज़ है मुझे।" उसके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे____"मैं सिर्फ़ अपने माता पिता की अनुराधा हूं किसी और की नहीं। अगर आप ये समझते हैं कि आप बाकी लड़कियों की तरह मुझे भी अपने जाल में फंसा लेंगे तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है छोटे ठाकुर।"

अनुराधा को अपनी कही हुई बातें जब महसूस हुई तो सहसा उसके समूचे बदन में सिहरन सी दौड़ गई। ज़हन में ख़्याल उभरा कि उस वक्त कितना कठोर हो गई थी वो। उसने वैभव की उन बातों का बस वही एक मतलब समझा था, पर क्या ये ज़रूरी था कि उसके कहने का सिर्फ़ वही मतलब रहा हो? ये सब सोच कर उसके अंदर एक हूक सी उठी जिसके चलते उसे एक ऐसे दर्द की अनुभूति हुई जो अब तक मिले हर दर्द से अलग था। अचानक उसके कानों में वैभव के कहे शब्द गूंज उठे।

"अब जल्दी से कोई डंडा खोज कर लाओ।" उसकी तीखी बातें सुन कर वैभव ने कहा था____"और उस डंडे से मेरी पिटाई करना शुरू कर दो।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" वैभव की बात सुन कर जब वो उलझ गई थी तो उसने जैसे उसे समझाते हुए कहा था____"सही तो कह रहा हूं मैं। कुछ देर पहले मैंने तुमसे कहा था ना कि अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें मेरी पिटाई करने का पूरा हक़ है। अब क्योंकि मैंने ग़लती की है तो इसके लिए तुम्हें डंडे से मेरी पिटाई करनी चाहिए।"

"बातें मत बनाइए।" उसने कठोरता से कहा था____"सब समझती हूं मैं। अगर आपके मन में मेरे प्रति यही सब है तो चले जाइए यहां से। अनुराधा वो लड़की हर्गिज़ नहीं है जो आपके जाल में फंस जाएगी। हम ग़रीब ज़रूर हैं छोटे ठाकुर लेकिन अपनी जान से भी ज्यादा हमें अपनी इज्ज़त प्यारी है।"

"तो फिर ये भी जान लो अनुराधा कि तुम्हारी इज्ज़त मुझे भी खुद अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी है।" उसकी बातें सुन कर वैभव मानो हताश हो कर बोल पड़ा था____"मैं खुद मिट्टी में मिल जाना पसंद करूंगा लेकिन तुम्हारी इज्ज़त पर किसी भी कीमत पर दाग़ नहीं लगा सकता और ना ही किसी के द्वारा लगने दे सकता हूं। मैं जानता हूं कि मेरा चरित्र ही ऐसा है कि किसी को भी मेरी किसी सच्चाई पर यकीन नही हो सकता लेकिन एक बात तुम अच्छी तरह समझ लो अनुराधा कि मैं चाहे सारी दुनिया को दाग़दार कर दूं लेकिन तुम पर दाग़ लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैं तुम्हें कई बार बता चुका हूं कि तुम वो लड़की हो जिसने मेरे मुकम्मल वजूद को बदल दिया है और मुझे खुशी है कि तुमने मेरा कायाकल्प कर दिया है। तुमसे हसी मज़ाक करता हूं तो एक अलग ही तरह का एहसास होता है। मेरे मन में अगर ग़लती से भी तुम्हारे प्रति कोई ग़लत ख़्याल आ जाता है तो मैं अपने आपको कोसने लगता हूं। ख़ैर, मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं देना चाहता। अगर तुम्हें लगता है कि मेरे यहां आने का सिर्फ़ यही एक मकसद है कि मैं तुम्हें भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फंसाना चाहता हूं तो ठीक है। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि ठाकुर वैभव सिंह आज के बाद तुम्हारे इस घर की दहलीज़ पर अपने क़दम नहीं रखेगा। तुम्हारे साथ जो चंद खूबसूरत लम्हें मैंने बिताए हैं वो जीवन भर मेरे लिए एक अनमोल याद की तरह रहेंगे। ये भी वचन देता हूं कि इस घर के किसी भी सदस्य पर किसी के द्वारा कोई आंच नहीं आने दूंगा। चलता हूं अब, ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

कानों में गूंजते वैभव के ये एक एक शब्द मानो अनुराधा के हृदय को चीरते हुए उसकी अंतरात्मा तक को झकझोरते चले गए थे। उसे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे सब कुछ एक पल में शांत हो गया हो। अपने चारो तरफ उसे दूर दूर तक फैली एक सफेद धुंध सी दिखाई दी और उस धुंध के बीच उसने खुद को अकेला पाया___एकदम बेबस, लाचार और असहाय। अनुराधा घबरा कर चारपाई पर उठ कर बैठ गई। समूचे बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई उसके। दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से कोई तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ। नन्हे दिल में अभी अभी पैदा हुए जज़्बात बुरी तरह से मचल उठे। सहसा उसकी बाईं आंख से एक आंसू का कतरा निकला और उसके रुखसार पर टपक पड़ा। उसने चौंक कर इधर उधर देखा और फिर आंसू के उस कतरे को पोंछते हुए कमरे से बाहर निकल गई। उसे बहुत तेज़ रोने का मन करने लगा था।



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TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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अध्याय - 53
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अब तक....

"किसी भी इंसान के सितारे हमेशा गर्दिश में नहीं रहते जगताप।" पिता जी ने हल्की मुस्कान में कहा____एक दिन हर इंसान का बुरा वक्त आता है। हमें यकीन है कि उस सफ़ेदपोश का भी बुरा वक्त जल्द ही आएगा।"

कुछ देर और इस संबंध में भी बातें हुईं उसके बाद सब अपने अपने काम पर चले गए। दादा ठाकुर अकेले ही बैठक में बैठे हुए थे। उनके चेहरे पर कई तरह के विचारों का आवा गमन चालू था। सहसा जाने क्या सोच कर वो मुस्कुराए और फिर उठ कर हवेली के अंदर की तरफ बढ़ गए।

अब आगे....


"इधर क्यों मोड़ दिया जीप को?" मैंने अपने नए बन रहे मकान के रास्ते की तरफ जीप को मोड़ा तो भाभी ने चौंक कर मुझसे पूछा____"क्या चंदनपुर जाने का इस तरफ से भी रास्ता है?"

"नहीं भाभी।" मैंने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"इस तरफ से आपके मायके जाने का रास्ता नहीं है लेकिन इधर इस लिए जीप को मोड़ा है क्योंकि मुझे कुछ काम है यहां पर किसी से।"

मेरी बात सुन कर भाभी मेरी तरफ देखने लगीं। ऐसा लगा जैसे कुछ सोचने लगीं हो। मैंने उनकी तरफ एक नज़र डाली और फिर ख़ामोशी से जीप चलाते हुए कुछ ही देर में मैं उस जगह पर पहुंच गया जहां पर मेरा नया मकान बन रहा था। मेरी उम्मीद के अनुसार भुवन वहीं मौजूद था। मुझे आया देख वो जल्दी से मेरे पास आया और पहले मुझे सलाम किया फिर भाभी को। मैंने भाभी को जीप में ही बैठे रहने को कहा और खुद जीप से उतर कर भुवन को लिए थोड़ा दूर चला आया।

"मैं कुछ दिनों के लिए भाभी के साथ उनके मायके जा रहा हूं भुवन।" मैंने भुवन से कहा_____"पिता जी के हुकुम से मुझे उनके मायके में कुछ दिन रुकना भी पड़ेगा। इस लिए मैं तुम्हें कुछ ज़िम्मेदारियां दे कर जा रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम उन ज़िम्मेदारियों को हर कीमत पर निभाओगे।"

"आप बस हुकुम कीजिए छोटे ठाकुर।" भुवन ने एकदम सतर्क हो कर कहा_____"आपकी हर आज्ञा का पालन मैं अपनी जान दे कर करूंगा। बताइए, आपके यहां ना रहने कर मुझे क्या करना होगा?"

"तुम्हें मुरारी काका के घर वालों की सुरक्षा का हर कीमत पर ख़्याल रखना है।" मैंने कहा____"तुम्हें इस बात पर ख़ास ध्यान देना है कि उस घर में बाहर का कौन व्यक्ति आता है और क्या करता है? तुम्हें तो पता ही है कि आज कल हालात बहुत ही ख़राब हैं इस लिए उनकी सुरक्षा का भार अब तुम्हारे कंधो पर रहेगा। एक बात और, जगन भले ही मुरारी का भाई है लेकिन तुम्हें उसकी गतिविधियों पर भी नज़र रखनी है।"

"मैं समझ गया छोटे ठाकुर।" भुवन ने कहा____"आप बिलकुल बेफ़िक्र हो कर जाइए। मुरारी के घर वालों पर मेरे रहते कोई आंच नहीं आएगी।"

"बहुत बढ़िया।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रख कर कहा_____"इस सबके लिए तुम्हारे पास आदमियों की कोई कमी नहीं है इस लिए सिर्फ़ अपने आदमियों के ही भरोसे मत रहना बल्कि इस मकान से ज़्यादा मुरारी के घर वालों की सुरक्षा का ज़िम्मा तुम खुद अपने हाथ में लिए रहोगे। रही बात यहां की तो इस बारे में तुम्हें सब पता ही है।"

"आप निश्चिंत रहिए छोटे ठाकुर।" भुवन ने पूरी गर्मजोशी से कहा____"भुवन आपको वचन देता है कि मेरे रहते मुरारी के घर वालों पर कोई आंच नहीं आएगी। इसके अलावा बाकी जो काम आपने मुझे सौंपे हैं वो भी बेहतर तरीके से होते रहेंगे।"

भुवन से मैंने विदा ली और जीप में आ कर बैठ गया। अब मैं निश्चिंत हो चुका था इस लिए खुशी मन से जीप को स्टार्ट किया और मोड़ कर वापस मुख्य सड़क की तरफ चल पड़ा। मेरे पीछे एक दूसरी जीप में मेरे कुछ आदमी भी पूरी सतर्कता से आ रहे थे।

"यहां कोई ज़रूरी काम था क्या तुम्हारा?" रास्ते में भाभी ने मुझसे पूछा____"वैसे इस जगह पर मकान बनवाने का विचार क्यों आया था तुम्हारे मन में?"

"बस ये समझ लीजिए भाभी कि यहां पर मकान बनवा कर मैं ऐसा कोई काम नहीं करुंगा जिसकी शायद आप सब मुझसे उम्मीद कर रहे हैं।" मैंने एक नज़र भाभी के चेहरे पर डालने के बाद कहा____"ख़ैर ये सब छोड़िए, और ये बताइए कि मायके जाने की ख़ुशी तो है न आपको?"

"ख़ुशी क्यों नहीं होगी भला?" भाभी ने मुस्कुराते हुए कहा____"मेरे भैया को दस सालों बाद बड़ी मन्नतों से पहली संतान हुई है। सच कहूं तो मैं बहुत खुश हूं और मुझे यकीन है कि भैया तो इस खुशी में आज कल फूले न समा रहे होंगे। जी करता है एक पल में वहां पहुंच जाऊं और उन सबके खुशी से जगमगाते चेहरे देखूं।"

"ज़रूर देखेंगी भाभी।" मैंने कहा____"बहुत जल्द मैं आपको उन सबके पास पहुंचा दूंगा। वैसे वहां पहुंच कर आप तो अपनों के साथ ही ब्यस्त हो जाएंगी लेकिन सोच रहा हूं कि मुझ मासूम का क्या होगा? वहां कोई मेरी तरफ ध्यान भी देगा या नहीं?"

"सब ध्यान देंगे।" भाभी ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"और हां, मेरे सामने तुम ज़्यादा मासूम और भोला बनने का ये नाटक मत करो। सब जानती हूं तुम्हारे कारनामे।"

"मेरे कारनामे??" मैं एकदम से चौंका____"ये क्या कह रही हैं आप?"
"मैंने कहा न कि मेरे सामने नाटक मत करो।" भाभी ने हल्के से मुस्कुरा कर कहा____"तुम अगर ये सोचते हो कि मुझे कुछ पता नहीं है तो ये तुम्हारी भूल है। तुमने मेरे मायके में अपने नाम का जो डंका बजा रखा है न उसके बारे में सब पता है मुझे।"

"पता नहीं ये क्या कह रही हैं आप?" मैं अंदर ही अंदर उनकी इस जानकारी पर हैरान था किंतु प्रत्यक्ष में अंजान बनते हुए बोला_____"भला मैं भोला भाला आदमी कैसे कहीं अपने नाम का डंका बजा सकता हूं?"

"कुछ तो शर्म करो वैभव, कुछ तो भगवान से डरो।" भाभी ने मेरे बाजू पर ज़ोर से मारते हुए कहा____"मैंने मां जी से सुना है कि बड़े दादा ठाकुर के भी हर जगह ऐसे ही डंके बजते थे और अब तुम्हारे बजने लगे हैं। आख़िर कब सुधरोगे तुम?"

"क्या आपको नहीं लगता कि मैं पहले से थोड़ा सा ही सही लेकिन सुधर गया हूं?" मैंने इस बार थोड़ा गंभीर हो कर कहा____"क्या आपको नहीं लगता भाभी कि मैं आपकी बातों को मान कर वो सब करने लगा हूं जो मुझे करना चाहिए?"

"बिल्कुल लगता है वैभव।" भाभी ने इस बार मुझे प्रशंशा की दृष्टि से देखते हुए कहा____"और सच कहूं तो तुम्हारे इस बदले हुए रूप को देख कर मैं बेहद खुश हूं। तुमने तो वो काम किया है जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था। तुमने मेरी बेरंग और उजाड़ दुनिया में जो खुशी के रंग भर दिए हैं उसके लिए मैं हमेशा तुम्हारी ऋणी रहूंगी। अब तो बस एक ही इच्छा है कि तुम पूरी तरह से सुधर जाओ और पूरी ईमानदारी से हर ज़िम्मेदारी को निभाओ।"

"मुझसे जो हो सकता है उसे मैं पूरी ईमानदारी से कर रहा हूं भाभी।" मैंने संजीदगी से कहा____"और आगे भी यही कोशिश करता रहूंगा कि आपकी उम्मीदों पर खरा उतरूं। ख़ैर ये सब छोड़िए और ये बताइए कि अब भैया का बर्ताव कैसा है आपके साथ?"

"उनका तो जैसे कायाकल्प हो गया है वैभव।" भाभी ने ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा____"साढ़े तीन साल पहले जैसे वो थे उससे कहीं ज़्यादा अब उनका बर्ताव बेहतर हो गया है। आज कल तो मैं उनके हर क्रिया कलाप से हैरान होती रहती हूं। कभी कभी तो ऐसा आभास होता है जैसे वो मेरे पति हैं ही नहीं बल्कि उनकी शक्ल में कोई और ही बेहतर इंसान आ गया है।"

"हाहाहा ऐसा क्या करने लगे हैं वो।" मैंने हंसते हुए कहा____"जिससे आप इतना ज़्यादा हैरान होती रहती हैं?"
"अब तुमसे क्या बताऊं वैभव।" भाभी के चेहरे पर सहसा शर्म की लाली उभर आई____"बस यूं समझो कि अब उनके हर कार्य से मैं खुश हूं।"

"फिर तो ये अच्छी बात है।" मैंने सहसा मायूस हो कर कहा_____"बस एक हम ही हैं जिस पर इतने कड़े प्रतिबंध लगा दिए गए हैं। कुछ लोगों को शायद हमारा ख़ुश रहना अच्छा नहीं लगता।"

"चिंता मत करो।" भाभी ने हल्के से हंसते हुए कहा_____"तुम्हारी ख़ुशी का भी जल्द इंतजाम किया जाएगा। इस बार मां जी से कहूंगी कि वो तुम्हारे लिए कोई अच्छी सी लड़की खोजें और फिर जल्दी ही तुम्हारा ब्याह कर दें ताकि ख़ुश होने का तुम्हें भी एक बेहतरीन साधन मिल जाए।"

"ये तो ग़लत बात है भाभी।" मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा____"अभी तो मेरी खेलने कूदने की उमर है और आप मेरे गले में किसी लड़की से ब्याह करवा के घंटी बांध देने की बात कर रही हैं? सरासर नाइंसाफी है ये मेरे साथ।"

"कोई नाइंसाफी नहीं है ये।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"बल्कि ये तो ऐसी बात है जिसके बाद तुम्हारा हर जगह झंडे गाड़ना बंद हो जाएगा। ऐसी देवरानी लाऊंगी जो हर वक्त तुम्हारी अक्ल को ठिकाने लगाती रहे और तुम्हारा उछलना कूदना बंद कर दे।"

"वाह! क्या बात है।" मैंने कहा____"मेरी अपनी ही प्यारी भाभी मेरी खुशियों को आग लगा देना चाहती हैं। हे ऊपर वाले! ये सब सुनने से पहले मैं बहरा क्यों नहीं हो गया?"

"ज़्यादा नाटक मत करो।" भाभी ने हंसते हुए कहा____"और अब चुपचाप गाड़ी चलाओ। एक बात और, मेरे मायके में किसी के यहां झंडे गाड़ने का सोचना भी मत वरना इस बार मैं ख़ुद पिटाई करूंगी तुम्हारी।"

"देखिए ऐसा है भाभी कि मैं अपनी तरफ से तो पूरी कोशिश करूंगा कि ऐसा न हो।" मैंने मज़ाकिया लहजे में कहा____"लेकिन अगर कोई मुझ पर मोहित हो कर ख़ुद ही मेरे पास प्रसाद लेने आएगी तो फिर मैं प्रसाद दिए बगैर मानूंगा भी नहीं।"

"हाय राम! बहुत ही निर्लज्ज हो तुम।" भाभी ने फिर से मेरी बाजू पर ज़ोर से मारा____"मैं समझ गई कि तुम कभी नहीं सुधर सकते। जाओ मुझे तुमसे अब कोई बात नहीं करना।"

"अच्छा ठीक है बात मत कीजिए।" मैंने उन्हें छेड़ने के इरादे से कहा____"लेकिन ये तो बताइए कि आपके मायके में वो शालिनी नाम की लड़की अभी भी है न? असल में पिछली बार जब उससे मुलाक़ात हुई थी तो बता रही कि अब उसका भी ब्याह हो जाएगा तो शायद ही अब उससे मेरी मुलाक़ात हो पाए।"

"हे भगवान! क्या तुमने उसे भी नहीं बक्शा?" भाभी ने आश्चर्य से आंखें फाड़ कर मेरी तरफ देखा____"कितने ख़राब हो तुम वैभव। यकीन नहीं होता कि तुमने मेरी सहेली को भी....। उफ्फ क्या कहूं तुम्हें?"

"अरे! आप ग़लत समझ रही हैं भाभी।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"मैंने उस लड़की के साथ कुछ भी ग़लत नहीं किया है लेकिन हां, उस पर दिल ज़रूर आ गया था। जितनी प्यारी वो दिखती थी उतनी ही प्यारी बातें भी करती थी। हमारे बीच मामला कुछ हद तक आगे बढ़ चुका था। पिछली बार जब मैं उसकी गोद में सिर रख के लेटा हुआ था तो उसने अपनी ज़ुल्फों से मेरे चेहरे को ढंक दिया था। क़सम से भाभी, वो दृश्य बड़ा ही मनमोहक था। उसके बाद आपको पता है आगे क्या हुआ?"

"मुझे मत बताओ।" भाभी ने गुस्से से कहा____"मुझे तुम्हारी ये गंदी बातें हर्गिज़ नहीं सुनना। तुम बस ख़ामोशी से गाड़ी चलाओ।"
"ज़ालिम लोग।" मैंने हताश भाव से कहा____"किसी को हमारी खुशी की परवाह ही नहीं है। ख़ैर कोई बात नहीं, ठाकुर वैभव सिंह का नसीब ही खोटा है तो कोई क्या ही कर सकता है?"

मैं जानता था कि भाभी मेरी बातों से चिढ़ गई हैं इस लिए अब मैं और उन्हें गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था। उसके बाद का सारा सफ़र ख़ामोशी में ही गुज़रा। आख़िर हम भाभी के मायके चंदनपुर पहुंच ही गए। वहां सबने बड़ी गर्मजोशी से हमारा स्वागत किया। भाभी अपने माता पिता और भैया भाभी से मिल कर बेहद खुश हो गईं थी।

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अनुराधा रसोई में दोपहर का खाना बना रही थी लेकिन उसका ध्यान खाना बनाने में नहीं बल्कि कहीं और ही था। बार बार उसके ज़हन में वैभव की कही हुई बातें गूंज उठती थी और वो उन बातों के बारे में सोचने लगती थी। जब से वैभव उसके यहां से वो सब कह कर गया था तब से वो ज़्यादातर उसी के बारे में ही सोचती रही थी। पिछली रात तो उसे नींद ही नहीं आ रही थी। चारपाई पर देर रात तक वो करवटें बदलती रही थी। बड़ी मुश्किल से पता नहीं रात के कौन से पहर उसे नींद आई थी। उसके बाद सुबह हुई और फिर जैसे ही उसे पिछली रात नींद न आने की वजह याद आई तो वो फिर से वैभव के बारे में सोचने लगी थी।

अनुराधा की मां सरोज सुबह से अब तक कई बार उससे पूछ चुकी थी कि वो इतना खोई खोई सी क्यों है? अगर उसकी तबियत ठीक नहीं है तो वो उसे वैद्य के पास ले जाएगी मगर अनुराधा ने बस यही कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है। अब भला वो उसे क्या बताती कि वो क्यों सुबह से गुमसुम है अथवा किस वजह से खोई खोई सी है? वो घर के कामों में अपना मन लगा कर किसी तरह उस सबको भूलने की कोशिश करती रही लेकिन रसोई में बैठ कर जब वो खाना बनाने लगी तो एक बार फिर से उसके ज़हन में वही सब चलने लगा था।

अनुराधा कोई बच्ची नहीं थी, वो जानती थी कि दुनिया में क्या क्या होता है और लोग कैसी कैसी मानसिकता के होते हैं। उसने अपनी छोटी सी दुनिया में यूं तो और भी बहुत कुछ देखा सुना था लेकिन पिछले कुछ महीनों में जो कुछ उसने देखा सुना था वो उस सबसे अलग था। वो एक ऐसी लड़की थी जिसने कभी किसी मर्द जात को नज़र उठा कर नहीं देखा था, सिवाय अपने बापू और काका जगन के। गांव से थोड़ा दूर उसका घर अकेला ही बना हुआ था इस लिए गांव के लड़के इस तरफ नहीं आते थे। जगन काका के घर भी जब वो जाती थी तो कोई न कोई उसके साथ होता था इस लिए उसके साथ कभी ऐसा वैसा कुछ हुआ ही नहीं था। दूसरे उसका स्वभाव भी कुछ शांत और शर्मीला सा था जिसकी वजह से वो कभी किसी पराए मर्द की तरफ देखने की हिम्मत नहीं करती थी। अपने बापू की लाडली थी वो, अपने बापू का गुरूर थी वो। हालाकि उसकी मां हमेशा उसके इस गुप्पे स्वभाव के लिए डांटती थी।

जीवन बहुत खुशहाल भले ही नहीं था लेकिन जैसा भी था वो उससे खुश थी। उसकी एक छोटी सी दुनिया थी, जिसमें उसके मां बापू और एक छोटा सा लेकिन प्यारा सा भाई था। उसने ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि आगे एक ऐसा वक्त आएगा जब उसके छोटे से संसार में बहुत कुछ बदल जाएगा। एक दिन उसे पता चला कि उसके बापू ने दूसरे गांव के एक ऐसे लड़के की मदद करने की ज़िम्मेदारी ले ली है जिसके बाप ने उसे गांव समाज से बेदखल कर दिया है।

वक्त कभी किसी के लिए नहीं रुकता, वो पंख लगाए उड़ता ही रहता है। अनुराधा के कानों तक भी ये बात पहुंच चुकी थी कि दादा ठाकुर ने अपने जिस लड़के को गांव समाज से बेदखल किया है उस लड़के का नाम क्या है और उसका चरित्र कैसा है। अनुराधा ये सोच कर तो खुश हुई थी कि उसके बापू किसी बेसहारे की मदद कर रहे हैं लेकिन इस बात से वो थोड़ा असहज भी हो गई थी कि जिस लड़के का चरित्र ही ठीक नहीं है उसकी मदद करने का कोई बुरा असर न पड़ जाए। उसकी मां ने भी इस बात के लिए उसके बापू को समझाया था लेकिन होनी को तो जैसे यही मंजूर था। ख़ैर वक्त ऐसे ही गुज़रता रहा, और गुज़रते वक्त के साथ वैभव नाम के लड़के के प्रति जो ख़ौफ था वो भी दूर होता गया।

वैभव जब पहली बार उसके बापू के साथ उसके घर आया था तब उसने भी उसे चुपके से देखा था। उसके भोले भाले मन में ये जानने की उत्सुकता थी कि जिस लड़के के बारे में दूर दूर तक के गांव में भी बातें फैली हुई हैं वो दिखता कैसा है? जिस घर में वो बड़ी बेबाकी के साथ रहती आई थी उस दिन वैभव के आने से पता नहीं क्यों उसे असहज महसूस होने लगा था। ख़ैर जब उसकी नज़र उस करामाती लड़के पर पड़ी तो जैसे वो कुछ देर के लिए ख़ुद को ही भूल गई थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि कामदेव की तरह सुंदर और हट्टे कट्टे जिस्म वाला ये लड़का ऐसे काम भी करता होगा। उस मासूम को भला कैसे ये ज्ञान हो सकता था कि आंखें जो देखती हैं हमेशा वही सच नहीं होता। दुनिया में ऐसे नेक इंसान भी भरे पड़े हैं जिनकी शक्लो सूरत अच्छी नहीं होती लेकिन लोग पहली नज़र में उन्हें एक बुरा इंसान ही समझ बैठते हैं।

वैभव शक्ल सूरत से भले ही एक सुंदर नवयुवक था लेकिन उसके कर्म उसकी तरह सुंदर नहीं थे। अनुराधा को उस वक्त झटका लगा था जब वैभव ने भी उसकी तरफ देखा था और उसकी नज़र उससे जा मिली थी। वो एकदम से हड़बड़ा गई थी, दिल की धड़कनें धाड़ धाड़ कर उसकी कनपटियों पर बजने लगीं थी। वो घबरा कर जल्दी से अन्दर भाग गई थी। उसके बाद वो अक्सर यही कोशिश करती कि वैभव के घर आने पर वो उसके सामने कम ही जाए। हालाकि उसकी सूरत को एक बार देख लेने की चाह उसके मन में ज़रूर रहती थी और ऐसा क्यों था ये उसे ख़ुद नहीं पता था। शायद ये वैभव के सुंदर होने की वजह से था जिसके चलते न चाहते हुए भी एक लड़की उसे देखने पर मज़बूर हो जाती थी।

वैभव जब भी उसके घर आता तो वो चुपके से उसे देख लेती और फिर अपने सामने उसके बारे में तरह तरह की बातें सोचने लगती। उसे बार बार याद आता कि ये वही लड़का है जो न जाने कितनी लड़कियों और औरतों को अपने जाल में फांस कर उनके साथ ग़लत कर चुका है। इस ख़्याल के साथ ही अनुराधा के मन में वैभव के प्रति एक घृणा सी भर जाती लेकिन इसके लिए वो ख़ुद कुछ नहीं कर सकती थी। ऐसे ही वक्त गुज़रता रहा और एक महीना गुज़र गया। इस एक महीने में काफी कुछ बदल गया था। वैभव के प्रति उसके मन में जो ख़्याल पहले पैदा हुए थे वो अब ये सोच कर ग़ायब से होने लगे थे कि अगर ये इतना ही गंदा लड़का होता तो अब तक वो मुझे भी अपने जाल में फांस लेता, ये अलग बात है कि मैं उसके जाल में कभी न फंसती। उसने ख़ुद महसूस किया था कि इस एक महीने में वैभव ने कभी उसे ग़लत नज़र से नहीं देखा और ना ही कभी उससे बात करने की कोशिश की है। अनुराधा को लगने लगा कि शायद उसने उसके बारे में ग़लत सुना था, लेकिन फिर वो ये भी सोचती कि हर कोई तो ग़लत नहीं कह सकता ना?

इस सृष्टि का नियम है कि देर से ही सही लेकिन हमारे लिए सब कुछ सामान्य हो जाता है और हम सब कुछ भूल कर एक नए सिरे से जीवन को जीना शुरू कर देते हैं। यही हाल अनुराधा का हुआ था। उसे पूरी तरह से भले ही यकीन नहीं हुआ था लेकिन क्योंकि वो देख और महसूस कर चुकी थी कि वैभव वैसा तो बिलकुल नहीं है जैसा कि उसके बारे में लोगों ने फैला रखा है, इस लिए अब वो काफी हद तक सहज हो गई थी।

अपने गांव के लड़कों को देखा था उसने लेकिन वैभव उन सबसे अलग ही दिखता था उसे। वो उन सबसे सुंदर दिखता था, उसका जिस्म हट्टा कट्टा था जो उसकी उमर के लड़कों में उसने किसी का भी नहीं देखा था। जब भी किसी दिन वो उसके घर आता था तो वो उसे छुप कर देखती थी। अकेले में वो बस यही सोचती थी कि उसकी बूढ़ी दादी अपनी कहानियों में जिन राजकुमारों का ज़िक्र करती थी वैभव बिलकुल वैसा ही लगता है। ये बात सोच कर वो एकदम से खुश हो जाती और फिर सहसा मायूस हो कर सोचती कि काश वो भी एक राजकुमारी की तरह सुंदर होती।

सहसा कुछ जलने की गंध महसूस हुई तो अनुराधा को होश आया। उसने हड़बड़ा कर देखा तो तवे में पड़ी रोटी धुआं देने लगी थी। चूल्हे के अंदर जो रोटी लकड़ी के अंगारों की आंच में पकने के लिए एक तरफ टिकी थी वो तो कब की ख़ाक हो चुकी थी। ये सब देख कर अनुराधा बुरी तरह घबरा गई। एक तो गर्मी और ऊपर से चूल्हे की आंच में वैसे भी उसका बुरा हाल था। जीवन में पहली बार उसे खाना बनाना इतना मुश्किल काम लग रहा था। वो हताश और परेशान सी हो कर कभी तवे के ऊपर पड़ी अधजली और धुआं दे रही रोटी को देखती तो कभी अपने हाथ में लिए उस लोई को जिसे दोनों हथेलियों द्वारा थाप लगाने से उसे रोटी का आकार देना बाकी था।

अनुराधा ने फौरन ही लोई को गुंथे हुए आटे पर रखा और चिमटे से तवे को चूल्हे से उतारा। तवे पर पड़ी रोटी तवे पर एकदम से चिपक गई थी और धुआं छोड़ रही थी। अनुराधा जल्दी जल्दी चिमटे से उसे कुरेद कुरेद कर निकालने लगी। पसीने से उसका बुरा हाल था, उसने महसूस किया जैसे आज कुछ ज़्यादा ही गर्मी है। कुछ ही देर के प्रयास में उसने तवे से उस अधजली रोटी को निकाल कर एक तरफ रख दिया। तवे में एक काली परत सी बन गई थी जिससे नई बनने वाली रोटियां यकीनन ख़राब हो सकतीं थी इस लिए अनुराधा चिमटे से तवे को पकड़ कर बाहर नरदे के पास ले आई। उसकी मां कपड़े वगैरा ले कर घर के पीछे कुएं में गई हुई थी। अनुराधा ने जल्दी जल्दी पानी डाल कर पहले गर्म तवे को ठंडा किया और फिर थोड़ी मिट्टी ले कर तवे को मांजने लगी। कुछ ही देर में उसने तवे को एकदम साफ़ कर दिया।

रसोई में आ कर अनुराधा ने तवे में सफ़ेद छुई से हल्का लेप लगाया और फिर उस तवे को मिट्टी के चूल्हे पर चढ़ा दिया। चूल्हे में मौजूद लकड़ी और कंडे को उसने सुव्यवस्थित किया और फिर गुंथे हुए आटे से लोई ले कर रोटी पोने लगी। उसने निश्चय कर लिया कि अब वो सिर्फ़ रोटी बनाने पर ही ध्यान देगी वरना अगर उसकी मां आ गई और उसे रोटियों के जलने की गंध महसूस हो गई तो बहुत डांटेगी।

अक्सर ऐसा होता है कि हम सोचते कुछ हैं और होता कुछ और ही है। जिस चीज़ को हम भुलाने का प्रयास करते हैं वो भूलने के बहाने से याद आती ही रहती है। अनुराधा को सच में आज का खाना बनाना बेहद मुश्किल काम लगा था। ख़ैर किसी तरह खाना बना ही डाला उसने। उसकी मां भी नहा धो कर आ गई थी इस लिए सबने एक साथ ही बैठ कर खाना खाया। खाने के बाद अनुराधा ने जूठे बर्तनों को एक तरफ रखा और फिर वो अपने कमरे में चारपाई पर आराम करने के लिए लेट गई। आंखें बंद की तो एक बार फिर से वैभव का चेहरा उभर आया और साथ ही उसकी बातें उसके कानों में गूंजने लगीं।

अनुराधा ने झट से आंखें खोली और फिर बेचैनी से करवट बदल कर दूसरी तरफ घूम गई। वो बच्ची नहीं थी, उसे दुनियादारी वाली हर बातों की समझ थी। अच्छे बुरे का भली भांति ज्ञान था उसे। जो चीज़ उसे रात से परेशान कर रही थी उसका उसे अब शिद्दत से एहसास हो रहा था। उसे एहसास हो रहा था कि उसने वैभव को भावना में बह कर कुछ ज़्यादा ही बोल दिया था। पिछले पांच महीनों से वो वैभव को पहचानने की कोशिश कर रही थी और इन पांच महीनों में इतना तो उसे एहसास हो ही चुका था कि वैभव दूसरी लड़कियों के बारे में भले ही चाहे जैसा सोचता हो लेकिन कम से कम उसके बारे में वो ग़लत नहीं सोचता था।

अनुराधा को सहसा याद आया कि कैसे वो हर बार उसे ठकुराईन कह कर चिढ़ाता था और वो अपने लिए ठकुराईन सुन कर शर्म से सिमट जाती थी। आम तौर पर ठकुराईन शब्द किसी ब्याहता औरत के लिए प्रयोग किया जाता है किंतु वैभव का उसे ठकुराईन कहना अजीब तो लगता ही था लेकिन कहीं न कहीं अपने लिए उसे वैभव के मुख से ये सुन कर अच्छा भी लगता था। एक अलग ही तरह का एहसास होता था उसे जिसके बारे में उसे ख़ुद ही पता नहीं था। चारपाई पर दूसरी तरफ मुंह किए लेटी अनुराधा वैभव के साथ बिताए आख़िरी पलों में जैसे खो सी गई।

"आप क्यों बार बार मुझे ठकुराईन कहते हैं?" वैभव के ठकुराईन कहने पर वो शर्म से लाल हो गई थी, और फिर उसने उससे यही कहा था।

"क्यों न कहूं?" उसने मानों उसे छेड़ा____"आख़िर तुम हो तो ठकुराईन ही। अगर तुम्हें मेरे द्वारा ठकुराईन कहने पर ज़रा सा भी एतराज़ होता तो तुम्हारे होठों पर इस तरह मुस्कान न उभर आती।"

"तो क्या चाहते हैं आप कि मैं आपके द्वारा ठकुराईन कहने पर आप पर गुस्सा हुआ करूं?" उसने अपनी मुस्कान को छुपाने की नाकाम कोशिश करते हुए कहा था।

"क्यों नहीं।" वैभव ने उसकी गहरी आंखों में देखा था____"तुम्हें मुझ पर गुस्सा होने का पूरा हक़ है। तुम मेरी डंडे से पिटाई भी कर सकती हो।"

"धत्त! ये क्या कह रहे हैं आप?" वो वैभव की ये बात सुन कर बुरी तरह चौंकी थी, फिर शर्माते हुए बोली____"मैं भला कैसे आपकी पिटाई कर सकती हूं?"
"क्यों नहीं कर सकती?" वैभव ने मुस्कुराते हुए कहा था____"अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें पूरा हक़ है मेरी पिटाई करने का।"

"न जी न।" वो शरमा कर दरवाज़े से एक तरफ हट गई थी, फिर अपनी मुस्कुराहट को दबाते हुए बोली____"मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकती।"

चारपाई पर लेटी अनुराधा की आंखों के सामने जैसे ही ये सारे दृश्य उजागर हुए और वैभव से उसकी ये बातें महसूस हुईं तो सहसा उसके होठों पर मुस्कान उभर आई। उसके नन्हे से दिल में एक हलचल सी मच गई थी। तभी सहसा उसे कुछ ऐसा याद आया जिसने उसे कहीं और ही धकेल दिया।

"ओह! तो मेरी अनुराधा रूठ गई है मुझसे?" वैभव के मुख से जैसे ही उसने ये सुना तो उसे बड़ा ज़ोर का झटका लगा था। आंखें फाड़े वो उसकी तरफ देखने लगी थी, किंतु जल्दी ही सम्हली और फिर बोली____"ये क्या कह रहे हैं आप? मैं आपकी अनुराधा कैसे हो गई?"

"पता नहीं कैसे मेरे मुख से निकल गया?" उसने महसूस किया जैसे वैभव ने अपनी घबराहट को दबाने का प्रयास करते हुए कहा था____"वैसे क्या तुम्हें मेरी अनुराधा कह देने पर एतराज़ है?"

"हां बिलकुल एतराज़ है मुझे।" उसके चेहरे पर अजीब से भाव उभर आए थे____"मैं सिर्फ़ अपने माता पिता की अनुराधा हूं किसी और की नहीं। अगर आप ये समझते हैं कि आप बाकी लड़कियों की तरह मुझे भी अपने जाल में फंसा लेंगे तो ये आपकी सबसे बड़ी भूल है छोटे ठाकुर।"

अनुराधा को अपनी कही हुई बातें जब महसूस हुई तो सहसा उसके समूचे बदन में सिहरन सी दौड़ गई। ज़हन में ख़्याल उभरा कि उस वक्त कितना कठोर हो गई थी वो। उसने वैभव की उन बातों का बस वही एक मतलब समझा था, पर क्या ये ज़रूरी था कि उसके कहने का सिर्फ़ वही मतलब रहा हो? ये सब सोच कर उसके अंदर एक हूक सी उठी जिसके चलते उसे एक ऐसे दर्द की अनुभूति हुई जो अब तक मिले हर दर्द से अलग था। अचानक उसके कानों में वैभव के कहे शब्द गूंज उठे।

"अब जल्दी से कोई डंडा खोज कर लाओ।" उसकी तीखी बातें सुन कर वैभव ने कहा था____"और उस डंडे से मेरी पिटाई करना शुरू कर दो।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" वैभव की बात सुन कर जब वो उलझ गई थी तो उसने जैसे उसे समझाते हुए कहा था____"सही तो कह रहा हूं मैं। कुछ देर पहले मैंने तुमसे कहा था ना कि अगर मैं कोई ग़लती करता हूं तो तुम्हें मेरी पिटाई करने का पूरा हक़ है। अब क्योंकि मैंने ग़लती की है तो इसके लिए तुम्हें डंडे से मेरी पिटाई करनी चाहिए।"

"बातें मत बनाइए।" उसने कठोरता से कहा था____"सब समझती हूं मैं। अगर आपके मन में मेरे प्रति यही सब है तो चले जाइए यहां से। अनुराधा वो लड़की हर्गिज़ नहीं है जो आपके जाल में फंस जाएगी। हम ग़रीब ज़रूर हैं छोटे ठाकुर लेकिन अपनी जान से भी ज्यादा हमें अपनी इज्ज़त प्यारी है।"

"तो फिर ये भी जान लो अनुराधा कि तुम्हारी इज्ज़त मुझे भी खुद अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी है।" उसकी बातें सुन कर वैभव मानो हताश हो कर बोल पड़ा था____"मैं खुद मिट्टी में मिल जाना पसंद करूंगा लेकिन तुम्हारी इज्ज़त पर किसी भी कीमत पर दाग़ नहीं लगा सकता और ना ही किसी के द्वारा लगने दे सकता हूं। मैं जानता हूं कि मेरा चरित्र ही ऐसा है कि किसी को भी मेरी किसी सच्चाई पर यकीन नही हो सकता लेकिन एक बात तुम अच्छी तरह समझ लो अनुराधा कि मैं चाहे सारी दुनिया को दाग़दार कर दूं लेकिन तुम पर दाग़ लगाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। मैं तुम्हें कई बार बता चुका हूं कि तुम वो लड़की हो जिसने मेरे मुकम्मल वजूद को बदल दिया है और मुझे खुशी है कि तुमने मेरा कायाकल्प कर दिया है। तुमसे हसी मज़ाक करता हूं तो एक अलग ही तरह का एहसास होता है। मेरे मन में अगर ग़लती से भी तुम्हारे प्रति कोई ग़लत ख़्याल आ जाता है तो मैं अपने आपको कोसने लगता हूं। ख़ैर, मैं तुम्हें कोई सफाई नहीं देना चाहता। अगर तुम्हें लगता है कि मेरे यहां आने का सिर्फ़ यही एक मकसद है कि मैं तुम्हें भी बाकी लड़कियों की तरह अपने जाल में फंसाना चाहता हूं तो ठीक है। मैं तुम्हें वचन देता हूं कि ठाकुर वैभव सिंह आज के बाद तुम्हारे इस घर की दहलीज़ पर अपने क़दम नहीं रखेगा। तुम्हारे साथ जो चंद खूबसूरत लम्हें मैंने बिताए हैं वो जीवन भर मेरे लिए एक अनमोल याद की तरह रहेंगे। ये भी वचन देता हूं कि इस घर के किसी भी सदस्य पर किसी के द्वारा कोई आंच नहीं आने दूंगा। चलता हूं अब, ऊपर वाला तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

कानों में गूंजते वैभव के ये एक एक शब्द मानो अनुराधा के हृदय को चीरते हुए उसकी अंतरात्मा तक को झकझोरते चले गए थे। उसे एकदम से ऐसा महसूस हुआ जैसे सब कुछ एक पल में शांत हो गया हो। अपने चारो तरफ उसे दूर दूर तक फैली एक सफेद धुंध सी दिखाई दी और उस धुंध के बीच उसने खुद को अकेला पाया___एकदम बेबस, लाचार और असहाय। अनुराधा घबरा कर चारपाई पर उठ कर बैठ गई। समूचे बदन में एक अजीब सी सिहरन दौड़ गई उसके। दिलो दिमाग़ में बड़ी तेज़ी से कोई तूफ़ान सा उठ खड़ा हुआ। नन्हे दिल में अभी अभी पैदा हुए जज़्बात बुरी तरह से मचल उठे। सहसा उसकी बाईं आंख से एक आंसू का कतरा निकला और उसके रुखसार पर टपक पड़ा। उसने चौंक कर इधर उधर देखा और फिर आंसू के उस कतरे को पोंछते हुए कमरे से बाहर निकल गई। उसे बहुत तेज़ रोने का मन करने लगा था।



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Badiya update devar bhabhi ki ye pyaari baaten pehli baar padhne ko mili achi lagi ye jaankar aacharya nahi hua ki vo vaha pe bhi kai ladkiyon ko thok chuka hai jaha jata hai vaha apne jhande gada deta hai
Badiya bhuvan ko sahi jimmedari di hai jagan ke upar bhi najar rakhega to kuch na kuch to nayi baat pata padegi anuradha ke mann me bhi pyaar tha attraction vaibhav ke liye jo kuch bhi tha acha tha but jo Anuradha ne vaibhav ke sath kiya vo sahi nahi kiya tha ab use dukh ho raha hai usne aisa kyu kiya insaan josh josh me vo kar jata hai jise vo karna to nahi chahata but ho jata hai jiska abhas use baad me hota hai aur dukh manata hai

Kher bhabhi ke mayke me kya hota hai and Anuradha kaha jayengi rone kahi iss beech uske sath kuch ho na jaye ghar se bahar nikali to kuch gadbad na ho jaye good update waiting for next
 
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