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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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354
अध्याय - 45
━━━━━━༻♥༺━━━━━━


अब तक....

"माफ़ कीजिएगा पिता जी।" मैंने इस बार थोड़ा शख़्त भाव से कहा____"इस वक्त इस बारे में मैं आपको कुछ भी नहीं बता सकता लेकिन फ़िक्र मत कीजिए, जल्दी ही इस बारे में आपको सारी बातों से अवगत करा दूंगा।"


पिता जी मेरी बात सुन कर मेरी तरफ एकटक देखने लगे थे। उनके इस तरह देखने से मेरी धड़कनें अनायास ही तेज़ हो गईं थी। ख़ैर, उन्होंने इस बारे में मुझसे कुछ नहीं कहा और फिर वो पलंग से उतर कर चल दिए। दरवाज़े तक मैं उन्हें छोड़ने आया। उनके जाने के बाद मैंने दरवाज़े को अंदर से बंद किया और पलंग पर आ कर लेट गया। मेरे दिलो दिमाग़ में कई सारी बातें चलने लगीं थी। उस दूसरी वाली नौकरानी के सारे चक्कर को मैं अपने तरीक़े से सम्हालना चाहता था। अब समय आ गया था कि अपने दोनों चचेरे भाईयों का हिसाब किताब ख़ास तरीके से किया जाए।

अब आगे.....

पिता जी के जाने के बाद रात बड़ी मुश्किल से गुज़री थी। अपनी बदली हुई ज़िंदगी और मौजूदा वक्त के बारे में सोचते सोचते ही जाने कब मेरी आंख लग गई थी। सुबह किसी ने दरवाज़ा खटखटाया तो मेरी आंख खुली। अलसाए मन से मैं उठा और जा कर दरवाज़ा खोला। बाहर मेरी लाडली और मासूम बहन कुसुम खड़ी थी। उसे देखते ही मेरे जहन में शीला के द्वारा बताई गई वो सब बातें उभरने लगीं जो उसने कुसुम के संबंध में बताई थी। पलक झपकते ही उन बातों के चलते मेरे मन में उसके प्रति अजीब से ख़्याल उभरे किंतु मैंने फ़ौरन ही उन ख़्यालों को शख़्ती से दबा दिया। उसके बाद मैंने अपने होठों पर हल्की सी मुस्कान सजा कर उसे देखा जिसे देख वो भी मुस्कुरा उठी।

"मेरे सबसे अच्छे वाले भैया के लिए गरमा गर्म चाय हाज़िर है।" उसने मेरी तरफ अपना एक हाथ बढ़ाया जिसमें उसने चाय का कप लिया हुआ था। मैंने मुस्कुराते हुए उसके हाथ से चाय का वो कप लिया तो उसने आगे कहा____"चाय पी कर जल्दी से नित्य क्रिया से फुर्सत हो जाइए। दादा ठाकुर जी का आदेश है कि जल्द से जल्द आप तैयार हो कर उनके सामने हाज़िर हो जाएं।"

"जो हुकुम मेरी बहना।" मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"वैसे देख रहा हूं कि आज तेरे चेहरे पर एक अलग ही तरह की खुशी झलक रही है। कुछ ख़ास बात है क्या?"

"अपने सबसे अच्छे वाले भैया को सुबह सुबह देख लिया।" कुसुम ने मेरी तरफ देखते हुए उसी मुस्कान में कहा_____"मेरे लिए यही खुशी की और ख़ास वाली बात होती है, पर लगता है मेरे सोचन देव भैया को अपनी इस मासूम सी बहन को खुश देखना अच्छा नहीं लगा।"

"क्या सच में तुझे ऐसा लगता है?" मैंने उसकी गहरी आंखों में झांकते हुए कहा____"अरे! पगली मेरा बस चले तो मैं अपने हिस्से की सारी खुशियां तुझे दे दूं और तेरे हिस्से के सारे दुख दर्द को अपनी किस्मत बना लूं।"

"ऐसा मत कहिए भैया।" कुसुम एकदम से मुझसे छुपक गई और फिर गंभीर भाव से बोली____"भगवान ऐसा कभी न करे कि मेरे सबसे अच्छे वाले भैया को कोई दुख दर्द मिले और जहां तक मेरी बात है तो आपका ये प्यार और स्नेह ही काफी है मुझे खुशियां देने के लिए।"

"अच्छा एक बात बता।" मैंने कुछ सोचते हुए कहा____"अगर कोई किसी को जान बूझ कर ऐसा दुख दे जिससे कि सामने वाले की आत्मा तक उसके द्वारा दिए गए दुख से छलनी हो जाए तो ऐसे इंसान को कैसी सज़ा मिलनी चाहिए?"

"ये...ये आप क्या कह रहे हैं भैया?" कुसुम ने मुझसे छुपके हुए ही कहा था। मैंने महसूस किया कि मेरी बात सुन कर उसका समूचा जिस्म कांप गया था। फिर जैसे अंजान बन कर बोली____"आख़िर किस बारे में बात कर रहे हैं आप?"

"महत्वपूर्ण ये नहीं है बहना कि मैं किस बारे में बात कर रहा हूं।" मैंने कहा____"महत्वपूर्ण ये है कि मेरे द्वारा पूछे गए सवाल पर तेरा जवाब क्या है? मैं तुझसे जानना चाहता हूं कि ऐसे इंसान की कैसी सज़ा होनी चाहिए?"

"मेरे हिसाब से तो।" कुसुम ने मुझसे अलग हो कर मासूम अंदाज़ से कहा____"ऐसे इंसान को कोई सज़ा नहीं मिलनी चाहिए भैया, बल्कि ऐसे इंसान के उस कर्म को उसकी पहली और आख़िरी ग़लती मान कर उसे माफ़ कर देना चाहिए।"

"और यदि उसका कर्म इतना संगीन हो जिसकी कोई माफ़ी ही ना हो तो?" मैंने कुसुम के चेहरे पर बदल रहे भावों को देखते हुए कहा____"क्या तब भी उसे माफ़ कर देना चाहिए?"

"ह्...हां तब भी।" कुसुम ने उसी मासूमियत से किन्तु लरज़ते स्वर में कहा___"कर्म भले ही संगीन से संगीन हो किंतु पहली दफा माफ़ कर के उसे आइंदा ऐसा कर्म न करने की हिदायत दे देनी चाहिए।"

कुसुम की इस बात से मैं तुरंत कुछ न बोला बल्कि उसके चेहरे पर गर्दिश कर रहे भावों को समझने की कोशिश करता रहा। इस वक्त जिस तरह के भाव उसके चेहरे पर तैर रहे थे उससे साफ़ ज़ाहिर था कि वो अंदर ही अंदर किसी बात से जद्दोजहद कर रही थी। मैं ये भी समझ गया था कि वो मेरे सवाल का असली मतलब समझ गई थी और मतलब समझ लेने के बाद ही उसने ऐसा जवाब दिया था। यानि वो चाहती थी कि मैं उसके दोनों भाईयों को माफ़ कर दूं। मुझे उसके जैसे पाक चरित्र वाली लड़की से यही उम्मीद थी। मैं ये सोचने लगा कि जिन भाईयों ने उसकी आत्मा तक को छलनी कर दिया था ये उन्हीं भाईयों को माफ़ कर देने की बात कह रही थी। ख़ैर मैंने इस वक्त उसको ज़्यादा परेशान या व्यथित करना ठीक नहीं समझा इस लिए उसे ये कह कर वापस भेज दिया कि मैं जल्दी ही तैयार हो कर आता हूं।

क़रीब एक घंटे बाद तैयार हो कर मैं अपने कमरे से निकला। यूं तो मैं कभी भी किसी देवी देवता की पूजा अर्चना नहीं करता था लेकिन आज मन ही मन मैं ईश्वर से फ़रियाद कर रहा था कि जिस काम से आज मैं बड़े भैया को ले कर जाने वाला था वो काम पूरी सफलता से पूर्ण हो जाए। अपने कमरे से निकल कर मैं लंबी राहदारी से चलते हुए सीढ़ियों की तरफ बढ़ चला। आगे चल कर एक ऐसा मोड़ आया जिस तरफ भैया भाभी का कमरा था। मैंने दो पल रुक कर भाभी के कमरे की तरफ नज़र डाली और फिर आगे बढ़ चला। अभी मैं सीढ़ियों पर उतरने ही वाला था कि नीचे से भाभी ऊपर की तरफ आती हुई दिखीं। उनके हाथ में पूजा की थाली थी। उन्हें ऊपर की तरफ आते देख मैं अपनी जगह पर रुक गया। रागिनी भाभी की नज़र भी मुझ पर पड़ चुकी थी।

"प्रणाम भाभी।" वो जैसे ही ऊपर मेरे पास पहुंचीं तो मैंने बड़े अदब से उन्हें प्रणाम किया जिस पर वो हल्की मुस्कान में बोलीं____"हमेशा खुश रहो और ईश्वर तुम्हें हर क़दम पर कामयाबी प्रदान करे।"

"बड़े भैया कहां हैं भाभी?" मैंने उनसे पूछा।
"वो अभी कुछ देर पहले ही तैयार हो कर नीचे गए हैं।" भाभी ने कहा____"पिता जी ने उन्हें तलब किया था। शायद वो उन्हें अपने साथ कहीं ले जाने वाले हैं।"

"हां भाभी।" मैंने कहा____"और पिता जी के साथ मैं भी जा रहा हूं। बहुत जल्द आपको एक खुश ख़बरी सुनने के मिलेगी।"

"ऐसा मेरा नसीब कहां।" भाभी ने सहसा उदास भाव से कहा_____"बल्कि मेरा भाग्य तो बहुत जल्द एक ऐसे दुख का दामन थाम लेने वाला है जो ताउम्र मुझे बस दुख ही देता रहेगा।"

"ऐसा कुछ भी नहीं होगा भाभी।" मैंने दृढ़ता से कहा____"और ऐसा मैं होने भी नहीं दूंगा। मेरे रहते ऐसा कुछ भी नहीं हो सकता जिसकी वजह से मेरी भाभी का चांद की मानिंद चमकता हुआ चेहरा मलिन पड़ जाए।"

"अपने नसीब पर किसी का ज़ोर नहीं होता वैभव।" भाभी ने गंभीरता से कहा____"तुम ये सब सिर्फ़ भावनाओं में बह कर कह रहे हो और मुझे अच्छा भी लगता है कि थोड़ी देर के लिए ही सही तुम अपनी इन बातों से मेरा मन बहला देते हो।"

"शायद आपको अपने इस देवर पर यकीन नहीं है भाभी।" मैंने उनके चेहरे को देखते हुए कहा____"पर बहुत जल्द आपको यकीन भी हो जाएगा। हमारी वापसी का इंतज़ार कीजिएगा। अच्छा अब चलता हूं, प्रणाम।"

भाभी से आशीर्वाद ले कर मैं तेज़ी से सीढ़ियां उतरता हुआ नीचे आया। उनकी बेयकीनी के चलते मेरे मन में एक अजीब तरह की दृढ़ता पैदा हो गई थी। मैंने निश्चय कर लिया था कि अब चाहे जो भी करना पड़े लेकिन भाभी को इस बात का यकीन दिला के रहूंगा कि जो कुछ मैंने उनसे कहा है वो सिर्फ़ उनका मन बहलाने के लिए नहीं कहा है बल्कि मेरे हर लफ्ज़ में कूट कूट कर सच्चाई भरी हुई थी।

नीचे पिता जी के साथ जगताप चाचा और बड़े भैया नास्ते के लिए बैठे हुए थे। मैं भी जा कर एक कुर्सी पर बैठ गया। जल्दी ही हम सबके सामने नास्ते की थाली आ गई और हम सबने नास्ता शुरू कर दिया। खाते वक्त हमेशा की तरह ख़ामोशी ही छाई रही। नाश्ता खत्म होने के बाद पिता जी ने मुझे जीप निकालने को कहा। मां और मेनका चाची को इस बारे में कुछ भी पता नहीं था कि हम लोग कहां और किस सिलसिले में जा रहे हैं और न ही उन्होंने पूछने की कोशिश की थी। पिता जी के किसी भी काम में या कहीं आने जाने के बारे में कोई कुछ भी नहीं पूछता था। जगताप चाचा को पिता जी ने शायद इस बारे में बता दिया था। ख़ैर जल्दी ही हवेली से हमारा काफ़िला निकल पड़ा। एक जीप में मैं पिता जी और बड़े भैया बैठे हुए थे जबकि दूसरी जीप में जगताप चाचा थे। उनके पीछे दो जीपों में हमारे वो आदमी थे जो हथियारों से लैस थे।

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उस दिन जब मैंने जगन को किसी तांत्रिक का पता लगाने का काम सौंपा था तब उसने मुझे दो तांत्रिकों के बारे में पता कर के बताया था। पिछले दिन जब हम लोग तांत्रिक के पास गए थे तो सबसे पहले उस तांत्रिक से मिले थे जिसका आशियाना थोड़ा पास में पड़ता था। उससे जब हमने पुछतांछ की थी तो यही पता चला था कि उसके यहां ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं आया था जिसने उससे किसी पर तंत्र मंत्र करने के लिए कहा हो। उसका कहना था कि वो तंत्र मंत्र और झाड़ फूंक वाला काम सिर्फ लोगों के हित के लिए करता है। आस पास के कुछ लोगों से भी इस बात की पुष्टि हुई थी। हमारे पूछने पर उसने बताया था कि नाहरपुर के जंगल में एक तांत्रिक ज़रूर ऐसा है जो धन के लालच में किसी के भी कहने पर तंत्र मंत्र या जादू टोना जैसी क्रिया करता है। जगन से मुझे पहले ही नाहरपुर वाले तांत्रिक के बारे में पता चल चुका था किंतु उसने ये नहीं बताया था कि वो तांत्रिक किसी के कहने पर ऐसा कुछ करता है। संभव है जगन को ये सब न पता रहा हो।

हमारे गांव से बीस या बाईस किलो मीटर की दूरी पर बजरंगपुर नाम का एक गांव था। बजरंगपुर गांव पहाड़ी इलाका था किंतु उन पहाड़ों पर पेड़ पौधे न के बराबर ही थे। उन पहाड़ों में ज्यादातर कंकड़ पत्थर या मुरुम जैसी कंक्रीट की भरमार थी। कई रंग के गेरु और सफेद छुई की छोटी बड़ी खदानें भी थीं उन पहाड़ों में। गांव के समीप ही एक टीलेनुमा छोटा सा पहाड़ था जिसमें हनुमान जी का एक बड़ा सा मंदिर बना हुआ था। लोगों का कहना था कि हनुमान जी के मंदिर में रहने वाला पुजारी ही झाड़ फूंक का काम करता था। कुछ लोग उसे तांत्रिक भी मानते थे। उसके द्वारा की गई झाड़ फूंक से लोगों पर छाया हुआ जादू टोना एकदम छू मंतर हो जाता था।

हम क्योंकि पिछले दिन भी यहां आ चुके थे इस लिए हमें यहां पहुंचने में कोई समस्या नहीं हुई थी। यद्यपि सारे रास्ते हमें इसी बात का अंदेशा था कि हमारा शातिर दुश्मन कहीं रास्ते में हम पर हमला न करे लेकिन ऐसा कुछ भी नही हुआ था और ये हमारे लिए हैरानी की बात भी थी। ख़ैर हमारा काफ़िला उस हनुमान जी के मंदिर के पास ही जा कर रुका था। गांव से हो कर जब हमारा काफ़िला गुज़रा था तो गांव के लोग चकित से हमें ही देखने लगे थे। ज्यादातर लोग पिता जी और जगताप चाचा के बारे में जानते थे और उन्हें पहचानते भी थे इस वजह से सब उन्हें सलाम भी कर रहे थे।

सारे रास्ते बड़े भैया शांत बैठे हुए थे जबकि मैं पिता जी से थोड़ी बहुत बातें करता रहा था। ख़ैर मंदिर में पहुंचने के बाद हम सब जीप से उतरे। हमारी सुरक्षा के लिए आए हमारे कुछ आदमियों को पिता जी ने जीपों के पास ही रुक कर कड़ी निगरानी रखने के लिए कह दिया था और कुछ आदमी हमारे साथ चल पड़े थे।

सुबह का समय था इस लिए मंदिर में गांव के लोग पूजा अर्चना के लिए आ जा रहे थे और कुछ लोग पुजारी से झाड़ फूंक करवाने के लिए थोड़ी दूरी पर बैठे थे। हम लोग जैसे ही वहां पहुंचे तो पुजारी ने हमें देख कर दूर से ही अभिनंदन किया और अपने बाएं तरफ खड़े एक आदमी से कुछ कहा जिस पर उस आदमी ने आ कर हमें एक जगह बैठाया। पुजारी एक औरत के साथ झाड़ फूंक कर रहा था। कुछ समय बाद जब वो फारिग़ हुआ तो खड़े हो कर हमें बुलाया। पिता जी ने जगताप चाचा से कुछ कहा जिस पर जगताप चाचा उठे और हम दोनों भाईयों को इशारे से अपने पीछे आने को कह कर पुजारी के पास चल दिए। कुछ ही देर में मैं और बड़े भैया जगताप चाचा के साथ उस पुजारी के पास पहुंच गए। जगताप चाचा ने पहले बड़े भैया को उस जगह पर बैठने को कहा जहां पर कुछ देर पहले वो औरत बैठी झाड़ फूंक करवा रही थी। चाचा जी के कहने पर बड़े भैया चुप चाप उस जगह पर बैठ गए। मैंने पलट कर देखा तो पिता जी भी अपनी जगह से उठ कर हमारे पीछे आ गए थे।

पुजारी के इशारे पर उसका एक आदमी मंदिर के अंदर गया और जब वापस आया तो उसके हाथ में एक पन्नी थी जिसमें कुछ चीज़ें डली हुई थीं। जिनमें नारियल अगरबत्ती और कुछ फूल थे। पुजारी ने उस पन्नी को जगताप चाचा को दिया और कहा कि वो मंदिर में जा कर बजरंगबली की पूजा करें। जगताप चाचा के जाने के बाद पुजारी ने बड़े भैया की दाहिनी कलाई अपने हाथ में ली और फिर अपनी आंखें बंद कर ली।

"क्या बात है पुजारी जी?" पुजारी ने बड़े भैया की कलाई छोड़ कर जैसे ही अपनी आंखें खोली तो पिता जी पूंछ बैठे____"क्या सच में हमारे बेटे पर उसी का असर है जिसके चलते हम यहां आए हैं?"

"जी बिलकुल ठाकुर साहब।" पुजारी ने गंभीर भाव से कहा____"इन पर काला जादू किया गया है। शुक्र है कि आप इन्हें समय पर यहां ले आए अन्यथा अनर्थ हो जाता। इन पर किए गए काले जादू का अब अंतिम चरण लगने वाला था और उस चरण में पहुंचने के बाद इनका बच पाना संभव नहीं होता।"

पुजारी की ये बातें सुन कर हम सब स्तब्ध रह गए थे। मुझे तो पक्का यकीन था कि बड़े भैया पर तंत्र मंत्र का ही प्रभाव था किन्तु पिता जी को शायद अभी भी संदेह था और यही वजह थी कि पुजारी की ऐसी बातें सुन कर वो अवाक से रह गए थे। उधर जगताप चाचा का भी कुछ उनके जैसा ही हाल था। बड़े भैया पर इस बारे में क्या प्रतिक्रिया हुई थी ये हम में से कोई नहीं देख सकता था क्योंकि उनका चेहरा पुजारी की तरफ था।

"फ़िक्र मत कीजिए ठाकुर साहब।" पिता जी को यूं अवाक देख पुजारी ने कहा____"जैसा कि मैंने कहा आप इन्हें समय पर ले आए हैं इस लिए अब कोई अनर्थ नहीं हो पाएगा।"

"आप हमारे बेटे को इस काले जादू से मुक्त कीजिए पुजारी जी।" पिता जी अधीरता से बोले____"और साथ ही ये भी बताने का कष्ट करें कि हमारे बेटे पर काले जादू का प्रयोग करने वाला वो दुष्ट कौंन है, ताकि हम उसे ऐसी भयावह मौत दे सकें जिसकी उसने कल्पना भी ना की हो।"

"धीरज से काम लीजिए ठाकुर साहब।" पुजारी ने नम्रता से कहा____"आपके बेटे को मैं पूरी तरह काले जादू से मुक्त कर दूंगा। रही बात इन पर काला जादू करने वाले के बारे में बताने की तो माफ़ कीजिए ये मैं नहीं बता सकता।"

"क्यों?" पिता जी से पहले जगताप चाचा थोड़े नाराज़ लहजे में बोल पड़े____"क्यों नहीं बता सकते आप? क्या कोई मजबूरी है आपकी जो आप उस दुष्ट व्यक्ति के बारे में बता नहीं सकते?"

"ऐसा ही समझ लीजिए ठाकुर साहब।" पुजारी ने कहा____"मैं अपने बजरंगबली की कृपा से सिर्फ़ लोगों के कष्ट दूर करता हूं। मुझे मेरे ईष्ट का ये आदेश नहीं है कि मैं कष्ट देने वाले का नाम पता बताऊं। वो कहते हैं कि बुरा कर्म करने वालों को सजा देने का अधिकार इंसानों को नहीं है। मैं आपसे इतना ज़रूर कह सकता हूं कि ये सब आपके दुश्मनों का ही किया हुआ है।"

पुजारी की इन बातों ने हम सबको मानों गहरी सोच में डाल दिया था। उसने जो कहा था वो अपनी जगह यकीनन सही था लेकिन हमारे लिए ये जानना बेहद ज़रूरी था कि बड़े भैया पर तंत्र मंत्र करवाने वाला कौन है? ये तो स्पष्ट हो चुका था कि उन पर काले जादू का प्रयोग नाहरपुर के जंगल में रहने वाले उस तांत्रिक ने ही किया था किंतु उसे ऐसा करने के लिए किसने कहा था ये जानना अति आवश्यक था।

पुजारी ने बड़े भैया पर किए गए काले जादू को दूर करने की क्रिया शुरू कर दी थी। हम लोगों के पास ख़ामोशी से वो सब देखने के सिवा कोई दूसरा चारा नहीं था। क़रीब आधे घंटे बाद पुजारी की क्रियाएं समाप्त हुई और उसने बड़े भैया को उठ जाने का इशारा किया।

"इसको आप हमेशा अपने गले पर ही पहने रहिएगा।" पुजारी ने बड़े भैया को एक विशेष तरह का धागा देते हुए कहा____"इसके प्रभाव से किसी भी तरह का जादू आप पर अपना प्रभाव नहीं डाल सकेगा।"

पुजारी के ऐसा कहने पर बड़े भैया ने उस विशेष धागे को सिर से डाल कर गले में धारण कर लिया और फिर हाथ जोड़ कर पुजारी को प्रणाम कर वो हमारे पास आ गए। मैंने देखा उनका चेहरा पहले से कुछ अलग ही नज़र आ रहा था।

"अब हमारे इस बेटे को भी देखिए।" पिता जी ने मेरी तरफ संकेत करते हुए पुजारी से कहा____"क्या इस पर भी ऐसा कोई जादू किया गया है?"

पिता जी के इशारे पर मैं आगे बढ़ा और उसी जगह पर जा कर बैठ गया जहां इसके पहले बड़े भैया बैठे हुए थे। पुजारी ने मुझे अपना दाहिना हाथ बढ़ाने को कहा तो मैंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ा दिया। पुजारी ने मेरी कलाई पकड़ अपनी आंखें बंद कर ली। मेरी धड़कनें ये सोच कर थोड़ा तेज़ हो गईं थी कि क्या सच में मुझ पर भी ऐसा कोई जादू किया गया होगा या फिर ये सिर्फ़ मेरा वहम था?

"ह्म्म्म।" पूजारी ने अपनी आंखें खोल कर हुंकार सी भरी____"उसका असर तो तुम भी डाला गया है लेकिन वैसा नहीं जैसा तुम्हारे बड़े भाई पर डाला गया था।"
"हम कुछ समझे नहीं पुजारी जी।" पिता जी ने उलझनपूर्ण भाव से पूछा।

"आपके बड़े बेटे पर काले जादू का प्रभाव डाला गया था जिससे एक निश्चित समय आने पर उनकी मौत होनी तय थी।" पुजारी ने मानों समझाते हुए कहा____"लेकिन आपके दूसरे बेटे पर काले जादू का असर थोड़ा सा ही डाला गया था। काले जादू के उस थोड़े प्रभाव से इन्हें बस थोड़ा बहुत ही प्रभाव पड़ता रहा होगा। ख़ैर चिंता करने की कोई बात नहीं है ठाकुर साहब, मैं इन्हें भी एक ताबीज बना के दे देता हूं।"

पुजारी की बात सुन कर पिता जी ने सहमति में सिर हिलाया। उधर पुजारी अपने पास रखी कुछ अजीब सी चीज़ों को ले कर कुछ करने लगा। जल्दी ही उसने एक छोटी सी ताबीज बना दी और मेरी तरफ बढ़ाया जिसे मैंने उसके हाथ से उठा लिया।

"ये क्या है?" पुजारी ने अचानक मेरी उंगली में फंसी अंगूठी को देखते हुए कहा____"ज़रा इसे उतार कर दिखाइए मुझे।"

"क्या बात है पुजारी जी?" पुजारी के ऐसा कहने पर पिता जी एकदम से बोल पड़े थे जबकि पुजारी कुछ देर तक मेरी अंगूठी को देखता रहा उसके बाद सिर उठा कर पिता जी से बोला____"ज़्यादा गंभीर बात नहीं है ठाकुर साहब लेकिन थोड़ी बहुत तो है ही। आपके बेटे ने जो अंगूठी पहनी हुई है वो मामूली अंगूठी नहीं है। इस अंगूठी पर जड़ा हुआ ये पत्थर बहुत ही खास है। इसकी खासियत ये है कि अगर इसे सही मात्रा में कोई धारण करता है तो उसके बहुत से लाभ होते हैं किंतु अगर इसकी मात्रा उचित न हो तो इसको धारण करने से हानि भी होती है।"

"ये क्या कह रहे हैं आप?" जगताप चाचा चौंकते हुए बोल पड़े____"भला किसी अंगूठी से ऐसा कैसे हो सकता है?"
"आप बड़े लोग हैं ठाकुर साहब।" पुजारी ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"संभव है कि आप इन सब बातों को नहीं मानते होंगे लेकिन कुछ चीज़ें ऐसी भी होती हैं जो अप्रतक्ष रूप से अपना असर दिखाती हैं। ये अलग बात है कि लोगों का ध्यान उस तरफ नहीं जाता या लोग उस पर यकीन नहीं करते।"

"आख़िर आप कहना क्या चाहते हैं पुजारी जी?" पिता जी ने कहा____"आखिर इस अंगूठी में ऐसा क्या है जिसके बारे में आप ऐसा कह रहे हैं?"

"इस अंगूठी में लगे पत्थर में खास बात है ठाकुर साहब।" पुजारी ने अंगूठी को पिता जी की तरफ उठा कर दिखाते हुए कहा____"इस पत्थर को सुलेमानी हकीक पत्थर कहा जाता है। यूं तो ये जिसके भी पास होता है वो बेहद ही भाग्यशाली होता है लेकिन इस पत्थर को अंगूठी के साथ पहनने के भी कुछ धार्मिक नियम होते हैं। बिना किसी ज्योतिषी की सलाह लिए इसे नहीं पहनना चाहिए। अगर कोई इंसान इस पत्थर को अंगूठी के रूप में धारण करने का इच्छुक है तो सबसे पहले किसी अच्छे ज्योतिषी के पास जा कर उसे अपनी कुंडली दिखानी चाहिए, उसके बाद ज्योतिषी की सलाह और उसके निर्देश पर ही इस पत्थर को धारण करना चाहिए।"

"बड़ी अजीब और हैरत की बात है।" पिता जी ने हैरानी भरे भाव से कहा____"तो क्या इसकी वजह से भी हमारे बेटे के साथ कुछ बुरा होता रहा होगा?"

"आप मानें या न मानें किंतु मुझे पूरा यकीन है ठाकुर साहब।" पुजारी ने दृढ़ता से कहा____"जैसा कि मैंने पहले बताया कि सुलेमानी हकीक जिसके पास भी होगा वो बहुत ही भाग्यशाली होगा किंतु ऐसा तभी होगा जब उस पत्थर को धारण करने वाले इंसान ने उसे ज्योतिषी के परामर्श से उचित माप में पहना हो, अन्यथा इसके दुष्प्रभाव भी होते हैं।"

"शायद आप सही कह रहे हैं।" पिता जी ने ठंडी सांस लेते हुए कहा____"संभव है इस पत्थर का ही प्रभाव हो कि इसके साथ अब तक जो कुछ भी हुआ है वो बुरा ही हुआ है। हालाकि ऐसा हमेशा से नहीं था, इसका क्या मतलब हो सकता है?"

"हो सकता है कि इन्होंने सुलेमान हकीक पत्थर वाली ये अंगूठी अभी कुछ समय पहले ही अपनी उंगली पर पहनी हो।" पुजारी ने मानों अपनी संभावना ज़ाहिर की थी और उसकी ये बात सुन कर मैं चौंकते हुए एकदम से बोल पड़ा था____"आपने बिलकुल सही कहा। ये अंगूठी मैंने आज से क़रीब छह महीने पहले पहनी थी। असल में मेरा एक पूराना मित्र था जो मुझे शहर में मिला था। ये अंगूठी उसी की है, मुझे पसंद आ गई थी तो उसने खुशी से मुझे दे दिया था।"

"इसका मतलब मेरा अंदेशा सही था।" पुजारी ने मुस्कुराते हुए कहा____"ये अंगूठी आपके मित्र की है और निश्चित तौर पर उसने किसी ज्योतिषी की सलाह से ये पत्थर एक निश्चित और उचित माप पर अंगूठी में डलवाया रहा होगा।"

"अब ये तो मुझे नहीं पता।" मैंने कहा___"लेकिन इतना ज़रूर कहूंगा कि वो काफी खुश था और उसका काम धंधा भी ठीक ठाक चल रहा है।"

"ख़ैर जो भी हो।" सहसा पीछे से पिता जी ने कहा____"लेकिन अब से तुम इस अंगूठी को नहीं पहनोगे।"
"ठाकुर साहब, आज के युग में इंसान ऐसी बातों को नहीं मानता।" पुजारी ने कहा____"जबकि इस बात को सच मनाइए कि इंसान जिन्हें छोटी और मामूली चीज़ें समझता है और उन पर ध्यान नहीं देता असल में वही मामूली चीज़ें हमारा बहुत कुछ नुकसान कर रही होती हैं।"

कुछ देर और पुजारी से बात चीत हुई उसके बाद हम सब ने मंदिर में पूजा अर्चना की। इस सबसे फुर्सत होने के बाद हमारा काफ़िला वापस हमारे गांव की तरफ चल पड़ा। यहां आने का सिर्फ यही एक फ़ायदा हुआ था कि बड़े भैया पर छाया हुआ मौत का संकट अब पूरी तरह से टल गया था किंतु इस बात से हमें निराशा ही हुई थी कि हमारे साथ ये सब करने या करवाने वाला आख़िर कौन था?


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बहुत सुंदर लेखनी। लेकिन मित्र मैं पूरा उलझ गया। आखिर कौन है वो शातिर षरयंत्रकारी जो एक के बाद एक छल दिये जा रहा है। अभी तो कुसुम के बारे मे जैसे सोच रहे थे वो तो ऐसी नहीं लग रही है। उसको समझ मे आ गया की उसकी भैया उसे क्या पूछ रहे है और उसका जवाब थोड़ा संदेह पैदा करती है। चलिये आगे देखते है की क्या हो रहा है। नमस्कार।
 
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