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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
Update 39

वैभव का रूप चाँद्र se दोस्ती करने की वज़ह मन मे है मेरे पर ये रूप पीठ मे छुरा ही मारेगा, ये जो लोक लुभावना नाटक चल रहा है इसकी गर्त मे षड्यंत्र है, कुसुम की क्या मजबूरी है ये जानने मे दिलचस्पी है मेरी, गुरुजी की भविष्यवाणी मुझे एक कमजोर कड़ी लगती है शुरू से ही, यदि लेखक की यही मंशा थी कि इस के जरिए वो भाभी देवर को करीब लाकर ट्विस्ट ला सकता है तो फिर भविष्यवाणी की जगह कोई और स्तिथि बढ़िया रहती
Fauji bhai apan ke man me aisi koi mansha nahi hai. Devar bhabhi ka kareeb aana mahaj situation ke hisaab se hai. Bhawishyawaani ka chapter alag hai :declare:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
अध्याय - 40
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अब तक....

मेनका चाची और कुसुम कुछ देर बाद चली गईं। वो बच्ची लड्डू खाने में ब्यस्त थी और मैं ये सोचने में कि विभोर और अजीत के पास कुसुम की आख़िर ऐसी कौन सी कमज़ोरी है जिसके बल पर वो लोग कुसुम को मेरे खिलाफ़ मोहरा बनाए हुए हैं? आख़िर ऐसी क्या बात हो सकती है जिसके चलते कुसुम उनकी बात मानने के लिए इस हद तक मजबूर है कि वो अपने उस भाई को भी कुछ नहीं बता रही जो उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है? मैंने फैसला किया कि सबसे पहला काम मुझे इसी सच का पता लगाना होगा।

अब आगे....

दिन ढलने लगा था।
भाभी मेरे कमरे में आईं और मुझे बताया कि गुड़िया को लेने के लिए उसकी दादी फूलवती अपने दूसरे बेटे सूर्यभान के साथ आई हैं। मैंने देखा भाभी का चेहरा अब थोड़ा सामान्य था। मैंने भाभी से उनके हाथ की बनी चाय पिलाने को कहा तो वो सिर हिला कर चली गईं। इधर उनके जाने के बाद मैं भी उस बच्ची को ले कर नीचे आ गया।

नीचे आया तो देखा मणि शंकर की बीवी फूलवती माँ और मेनका चाची से बातें कर रही थी। तीनों के चेहरों पर ख़ुशी के भाव थे। बच्ची को लिए जब मैं उनके पास पहुंचा तो फूलवती मुझे और अपनी पोती को देख कर मुस्कुरा उठी।

"ये अभी तक तुमसे ही चिपकी हुई है?" फूलवती ने मुस्कुराते हुए किन्तु हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लगता है तुमसे कुछ ज़्यादा ही घुल मिल गई है ये।"

"आप क्या इसे लेने आई हैं?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा____"पर अब तो ये मेरे पास ही हवेली में रहेगी। है न मेरी प्यारी गुड़िया?"
"हां ताता।" उस बच्ची ने मेरी तरफ देखते हुए मासूमियत से कहा____"मैं आपते पाथ ही लहूंगी।"

"हाय राम!" फूलवती उसकी बात सुन कर चकित भाव से कह उठी____"ये तो सच में तुमसे घुल मिल गई है बेटा। देखो तो एक ही दिन में अपनी उस दादी को भी भूल गई जिसके बिना ये रहती ही नहीं थी।"

मां और चाची उनकी बात सुन कर हंसने लगीं। जबकि फूलवती उस बच्ची से कहने लगी कि चल बेटा घर चल तेरी माँ तुझे बहुत याद कर रही है और तेरे बिना घर भी सूना सूना लगता है। फूलवती की ये बातें सुन कर भी वो बच्ची मेरी गोद से उतर कर उसके पास न गई। आख़िर मैंने जब उसे प्यार से समझाया और ये कहा कि मैं उसके लिए उसके घर लड्डू ले कर आऊंगा तो वो मान गई और फिर ख़ुशी ख़ुशी अपनी दादी के पास चली गई।

रागिनी भाभी सबके लिए चाय ले कर आईं। चाय पीने के बाद मैं बाहर बैठक में आ गया। बैठक में सूर्यभान जगताप चाचा के पास बैठा था और चाय पी रहा था। मैं भी उनके पास ही बैठ गया। कुछ देर हम तीनों के बीच इधर उधर की बातें होती रहीं उसके बाद फूलवती जब आई तो सूर्यभान उन्हें ले कर चला गया।

"तो कैसा चल रहा है हमारे भतीजे के मकान का निर्माण कार्य?" जगताप चाचा ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा____"ब्यस्तता के चलते उधर जा ही नहीं पाए हम।"

"आधे से ज़्यादा कार्य हो गया है चाचा जी।" मैंने कहा____"जल्द ही शेष कार्य भी पूरा हो जाएगा।"
"चलो अच्छी बात है फिर।" चाचा जी ने कहा____"अच्छा अब तुम बैठो, हमें एक ज़रूरी काम से जाना पड़ेगा।"

चाचा जी के जाने के बाद मैं भी उठा और पैदल ही हवेली से बाहर चल पड़ा। कुछ दूरी से ही सड़क के दोनों तरफ लोगों के कच्चे मकान शुरू हो जाते थे। दिन ढल रहा था इस लिए धुप में ज़्यादा तपिश नहीं रह गई थी। मैं सोचता जा रहा था कि मेरे सामने सबसे महत्वपूर्ण दो मामले थे और दोनों ही मामले गंभीर थे, ख़ास कर बड़े भैया वाला मामला। बड़े भैया का जब भी ख़याल आता था तब मेरे दिल में एक दर्द सा जाग उठता था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि भैया का जीवन काल इतना जल्दी ख़त्म हो जाएगा। मेरे लिए सबसे बड़ी हैरानी की बात ये थी कि भैया का बर्ताव एकदम से कैसे बदल जाता था? कभी वो बहुत अच्छे से बात करते थे और कभी ऐसे हो जाते थे कि वो गुस्से में आ कर मुझ पर हाथ ही उठा देते थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये क्या माजरा है? मैं ये सब सोचता चला ही जा रहा था कि सहसा मुझे ऐसा लगा जैसे कहीं से आवाज़ आई हो। मैं रुक कर इधर उधर देखने लगा और तभी मेरी नज़र दाएं तरफ जा रही एक संकरी गली पर पड़ी। गली के किनारे एक नीम का पेड़ था उसी पेड़ के पास एक आदमी खड़ा था। वो आदमी हमारे ही गांव का था। मैंने देखा वो मुझे अपनी तरफ बुला रहा था। मुझे उसका बर्ताव थोड़ा अजीब सा लगा लेकिन उत्सुकतावश मैं उसकी तरफ बढ़ ही गया।

"क्या बात है काका?" उस आदमी के पास पहुंचते ही मैंने उससे पूछा____"तुम मुझे इस तरह क्यों बुला रहे थे?"
"मेरी इस धृष्टता के लिए मुझे माफ़ कर देना छोटे ठाकुर।" उसने इधर उधर देखते हुए कहा_____"अच्छा हुआ कि आप मुझे मिल ग‌ए। मैं कई दिनों से हवेली में आना चाहता था लेकिन बड़ी कोशिश के बाद भी आ नहीं पाया अथवा ये समझ लीजिए कि हवेली में आने की मैं हिम्मत ही नहीं जुटा पाया।"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसकी बात सुन कर सोच में पड़ गया था, बोला_____"तुम किस लिए हवेली आना चाह रहे थे?"
"यहां नहीं छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने इधर उधर देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"आप मेरे साथ मेरे घर चलिए। मुझे आपको बहुत ज़रूरी बात बतानी है।"

उस आदमी की बात सुन कर मैं चौंका। एकाएक मेरे ज़हन में कई तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं फ़ौरन ही उस आदमी के साथ चल पड़ा। जिस गली में हम थे वो ज़्यादा चौड़ी नहीं थी। अगल बगल बने घरों के बगल की दीवार थी गली की तरफ। आगे जा कर वो गली बाएं तरफ मुड़ जाती थी जहां पर निम्न वर्ग के लोगों के घर बने हुए थे। कुछ ही देर में मैं उस आदमी के साथ एक घर में पहुंच गया। आदमी ने इधर उधर नज़र घुमाई और एक तरफ देख कर हाथ से एक इशारा किया। मैंने उस तरफ देखा तो एक और आदमी परली तरफ खड़ा था। मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन इतना ज़रूर सोचा कि कुछ तो बात ज़रूर है।

"वो मेरा छोटा भाई है छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने कहा____"मैंने उसे निगरानी में लगा रखा है। असल में कुछ दिनों से मुझे एक बड़े ख़तरे का आभास हो रहा है।"

"आख़िर बात क्या है काका?" मैं बेचैन भाव से बोल पड़ा____"तुम साफ़ साफ़ बताते क्यों नहीं मुझे?"
"अन्दर आ जाइए।" उसने कहा और घर के अंदर दाखिल हो गया। उसके पीछे मैं भी सोच में डूबा दाखिल हो गया। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे।

"अरे! ओ धनिया।" आदमी ने अंदर तरफ किसी को पुकारा____"जल्दी से जल पान ला, छोटे ठाकुर आए हैं।"
"काका इस सबकी कोई ज़रूरत नहीं है।" मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था, इस लिए उतावलेपन से बोल पड़ा_____"तुम मुझे बस वो बताओ जिसके लिए तुम हवेली आना चाहते थे या फिर मुझे यहाँ ले कर आए हो।"

"तीन दिन पहले की बात है छोटे ठाकुर।" मैं जब खटिया में बैठ गया तो वो मेरे पास ही ज़मीन पर बैठने के बाद गंभीर भाव से बोला_____"मेरी भैंस घर नहीं आई थी तो मैं उसे खोज रहा था। आख़िर बड़ी खोज के बाद वो शाम को मुझे नदी के पास मिली। मेरे साथ मेरा छोटा भाई कलुवा भी था। मैंने कलुवा को भैंस ले कर घर चले जाने को कहा और खुद दिशा मैदान के लिए वहीं रुक गया। आप तो जानते हैं कि नदी से कुछ दूरी पर ही गांव के साहूकारों का बगीचा शुरू होता है। मैं डर तो रहा था कि मुझे उस जगह पर दिशा मैदान करते हुए साहूकारों का कोई नौकर न देख ले लेकिन क्योंकि मेरा ज़ोरों से पेट चढ़ा हुआ था इस लिए मजबूरन मुझे वहीं बैठ जाना पड़ा। दिशा मैदान से फुर्सत होने के बाद मैं उनके बगीचे से ही घुस कर घर की तरफ चल दिया। मैंने सोचा था कि बगीचे से हो कर अगर जाऊंगा तो जल्दी ही गांव की मुख्य सड़क पर पहुंच जाऊंगा। अँधेरा घिर चुका था पर मैं अंदाज़न चलता ही जा रहा था। थोड़ी दूर ही आया था कि अँधेरे में मुझे थोड़ी देर के लिए हवा में आग जलती दिखी और फिर बूझ गई। मैं समझ गया कि किसी ने बीड़ी सुलगाया होगा लेकिन तभी ख़याल आया कि अँधेरे में उस वक़्त भला वहां पर कौन हो सकता है? जहां तक मुझे पता था दिन ढले ही बगीचा सुनसान हो जाता था। ख़ैर मैंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ चला। कुछ दूर ही आया था कि तभी किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुन कर मैं एकदम से उछल पड़ा। चिल्लाने की आवाज़ किसी लड़की या औरत की थी। मैंने सोचा अँधेरे में उस वक़्त कौन हो सकती थी जो इस तरह चिल्लाई थी? मन में एक उत्सुकता जाग उठी थी इस लिए दबे पाँव उस तरफ को मुड़ गया। डर तो बहुत लग रहा था छोटे ठाकुर क्योंकि साहूकारों का बगीचा था पर शायद नियति यही चाहती थी इस लिए मैं दबे पाँव उस तरफ बढ़ता ही चला गया।"

वो आदमी सांस लेने के लिए कुछ देर रुका। मैं गौर से उसकी बातें सुन रहा था। अभी वो फिर से बोलने ही वाला था कि अंदर से एक लड़की हाथ में एक थाली लिए आई। मैंने देखा लड़की जवान थी। सांवली रंगत वाले जिस्म पर घाघरा चोली था। चोली में कैद उसकी चूचियां साफ़ बता रहीं थी कि लड़की अब भरपूर जवान हो चुकी है। शायद इसी का नाम धनिया था और उस आदमी की बेटी थी। उसने झुक कर मेरी तरफ थाली बढ़ाई जिसमें एक गिलास पानी रखा हुआ था। वो झुकी हुई थी तो मेरी नज़र एकदम से उसके उभारों पर चली गई। चोली का गला झुकने से नीचे की तरफ फ़ैल सा गया था जिससे मुझे साफ़ साफ़ उसके उभार दिखने लगे थे। मेरे मन में एक हलचल सी हुई तो मैंने जल्दी से उसके उभारों से नज़र हटा कर ग्लास उठा लिया। मेरे ग्लास उठाते ही वो सीधा हुई और अंदर चली गई।

"आगे बताओ काका।" उसके जाते ही मैंने उस आदमी से कहा____"उसके बाद क्या हुआ?"
"बगीचे की ज़मीन पर सूखे पत्ते पड़े हुए थे इस लिए मेरे चलने से आवाज़ पैदा हो रही थी।" काका ने कहना शुरू किया____"और इस आवाज़ के चलते मैं ये सोच कर और भी डर रहा था कि कहीं मैं पकड़ा न जाऊं। उधर किसी लड़की या औरत के चिल्लाने की आवाज़ बीच बीच में आ रही थी। मैंने साफ़ सुना था कि वो खुद को छोड़ देने के लिए मिन्नतें कर रही थी, रो रही थी, गिड़गिड़ा रही थी। मैं किसी तरह उस तरफ पहुंचा। अचानक चिल्लाने की आवाज़ बंद हो गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने जादू किया हो और शोर गुल शांत हो गया हो। मैं एक पेड़ के पीछे छुप कर खड़ा हो गया था। मुझसे क़रीब दस या पंद्रह क़दम की दूरी पर अँधेरे में मुझे तीन लोग खड़े दिखाई दिए। अँधेरे की वजह से उनकी शकल नहीं दिख रही थी और ना ही उनके कपड़े ठीक से समझ में आ रहे थे। उनमें से एक आदमी थोड़ा झुका हुआ दिख रहा था। शायद वो उस लड़की या औरत को पकड़े हुए था जो कुछ देर पहले चिल्ला रही थी।"

"मैंने तो पहले ही कहा था कि इस रांड के बस का नहीं है हवेली से उन कागज़ातों को निकाल कर लाना।" सन्नाटे को चीरती उनमें से एक की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी थी____"लेकिन आप ही नहीं माने और इसे हवेली की नौकरानी बना कर वहां रखवा दिया।"

"ग़लती तो हो ही गई मुझसे।" दूसरे की आवाज़ आई____"मुझे क्या पता था कि ये अपनी खूबसूरती और अपने मादक जिस्म का सही उपयोग ही नहीं कर पाएगी। इससे ज़्यादा समझदार तो वो शीला निकली जिसने अपने काम को अच्छे तरीके से अंजाम देना शुरू कर दिया है।"

"मुझे लगता है इसे थोड़ा और वक़्त देना चाहिए।" तीसरे की आवाज़ थी ये____"मत भूलिए कि इसी की वजह से हमारा एक महत्वपूर्ण काम सफलता से हुआ है। हवेली में आज कल जिस तरह के हालात हैं उसमें इसके लिए ये काम करना फिलहाल आसान नहीं हो सकता। उस कम्बख्त दादा ठाकुर को अब यकीन हो चला है कि कोई तो है जो उसके खानदान को बर्बाद करने के लिए शातिर खेल खेल रहा है। ज़ाहिर है ऐसे में वो पूरी तरह सतर्क हो गया होगा।"

"ये सही कह रहा है।" पहले वाले की आवाज़____"मामला थोड़ा पेंचीदा है इस लिए इसे थोड़ा वक़्त देना चाहिए हमें।"
"मुझ पर यकीन कीजिए।" सहसा वो लड़की या औरत की आवाज़ आई जो पहले चिल्ला रही थी____"मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही हूं लेकिन क्या करूं वहीं की दोनों ठकुराईनें हर वक़्त वहीं जमी रहती हैं। इस वजह से मुझे दादा ठाकुर के कमरे में जाने का मौका ही नहीं मिलता।"

"क्या एक बार भी उसके कमरे में जाने का तुझे मौका नहीं मिला?" दूसरे वाले की आवाज़ आई तो उस औरत ने कहा____"ऐसे तो कई बार मिला है और मैं गई भी हूं लेकिन ज़्यादा समय तक कमरे में रह ही नहीं पाई वरना उस कमरे में उन कागज़ातों को ज़रूर तलाश करती।"

"उसके कमरे को देख कर क्या समझ आया था तुझे?" दूसरे वाले ने उससे पूछा।
"समझ आया मतलब? मैं कुछ समझी नहीं?" उस औरत की उलझी हुई आवाज़।
"अरे! मतलब ये कि उस दादा ठाकुर के कमरे को देख कर।" दूसरे वाले की आवाज़ में इस बार थोड़ा गुस्सा था____"क्या तुझे ऐसा लगा कि उसी कमरे में वो कागज़ात रखे हो सकते हैं?"

"उनके कमरे में तो चारो तरफ बहुत कुछ है।" उस औरत की आवाज़____"लेकिन ठीक से देखने का मौका ही नहीं मिल पाया मुझे।"
"देख मैं इन दोनों के कहने पर तुझे आख़िरी मौका दे रहा हूं।" दूसरे वाले कठोरता से कहा____"अगर तूने वहां से कागज़ात निकाल कर हमें नहीं दिया तो सोच लेना कि तू और तेरा परिवार इस दुनिया में नहीं रहेगा।"

"वो तीनों लोग कौन थे काका?" वो आदमी जब सब कुछ बता कर चुप हुआ तो मैंने गहरी सांस लेते हुए उससे पूछा____"क्या उन तीनों की आवाज़ों से तुम उन्हें पहचान पाए?"

"यही तो नहीं हो पाया छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने बेबस भाव से कहा____"अँधेरे की वजह से उनकी शकल तो वैसे भी नहीं दिख रही थी लेकिन बातें भी वो धीमें स्वर में ही कर रहे थे इस लिए साफ़ साफ़ उनकी आवाज़ मेरे कानों में नहीं पहुंच पा रही थी, अगर वो खुल कर बातें करते तो शायद उनकी आवाज़ से मैं कुछ अंदाज़ा लगा पाता।"

"और वो औरत कौन थी?" मैंने कहा___"क्या उसे भी नहीं पहचान पाए?"
"मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे ठाकुर।" वो आदमी बेबसी बोल पड़ा____"औरत को पहचानना तो वैसे भी मेरे लिए मुश्किल था क्योंकि मैंने इस गांव की ज़्यादातर औरतों की आवाज़ें सुनी ही नहीं हैं।"

"ख़ैर उसके बाद क्या हुआ?" मैंने काका की तरफ देखते हुए पूछा____"क्या वो लोग वहीं रहे या फिर उनके जाने के बाद तुमने उनका पीछा भी किया था?"

"पीछा करने की नौबत ही नहीं आई छोटे ठाकुर।" काका ने कहा____"उनको पता चल गया कि वहां पर उनके अलावा भी कोई है जो उनकी बातें सुन रहा है।"

"अरे! पर उन्हें पता कैसे चल गया?" मैंने काका की बात सुन कर हैरानी से पूछा।
"मेरे दुर्भाग्य की वजह से छोटे ठाकुर।" काका ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मैं पेड़ के पीछे खड़ा उनकी बातें सुन रहा था कि तभी मेरे पैर में से कोई चीज़ एकदम सर्र से निकल गई जिसके चलते मैं डर के मारे उछल ही पड़ा था और मेरे मुख से आवाज़ भी निकल गई थी। बस उसके बाद तो जैसे मुझ पर क़यामत ही टूट पड़ी थी। मैं भी अपनी जान बचा कर इस तरह वहां से भाग खड़ा हुआ था जैसे सैकड़ों भूत मेरे पीछे पड़ गए हों। पीछे मुड़ कर एक बार भी नहीं देखा था मैंने। सीधा घर पर ही आ कर रुका था।"

"तो इस बात को बताने के लिए तुम हवेली आना चाहते थे?" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा___"और अपने छोटे भाई को निगरानी में लगा रखे हो?"
"हां छोटे ठाकुर।" काका ने गंभीरता से कहा____"मैं यही सोच कर डर गया था कि क्या उन लोगों ने मुझे पहचान लिया होगा? आज तीसरा दिन है और अब यही लगने लगा है कि उस दिन उन लोगों ने मुझे पहचाना नहीं था। अगर पहचान गए होते तो संभव है कि आज मैं आपके सामने जीवित न बैठा होता। मैंने कई बार ये सब दादा ठाकुर से बताने के लिए हवेली जाने का मन बनाया लेकिन हिम्मत न हुई। क्योंकि मुझे कहीं न कहीं यही लगता है कि वो हवेली की तरफ जाने वाले हर ब्यक्ति को जांच परख रहे होंगे और जब मुझ जैसा नीच जाति का आदमी हवेली की तरफ जाता हुआ उन्हें दिखेगा तो वो फ़ौरन समझ जाएंगे कि उस रात उनकी बातें सुनने वाला शायद मैं ही था।"

"शायद तुम सही कह रहे हो काका।" मैंने काका की बुद्धि की मन ही मन सराहना की, फिर बोला____"तुम्हारी इस बुद्धिमानी ने ही तुम्हें अब तक सही सलामत रखा है और मेरा तुमसे यही कहना है कि तुम अब हवेली की तरफ देखना भी नहीं। अच्छा हुआ कि इत्तेफ़ाक से आज पैदल चलते हुए मैं इधर से गुज़र रहा था और तुमने मुझे देख लिया। सही कहते हैं बूढ़े बुजुर्ग लोग कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद काका ये सब बताने के लिए। आज तुमने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। तुम्हारे इस खूबसूरत उपकार को मैं कभी नहीं भूलूंगा। तुमने हमारे प्रति जो वफ़ादारी दिखाई है उसका मोल एक दिन ज़रूर मिलेगा तुम्हें। ख़ैर, अब चलता हूं काका, अपना ख़याल रखना।"

"रूकिए छोटे ठाकुर।" मेरे उठते ही काका ने झट से कहा____"एक और बात उनके मुख से सुनी थी मैंने। मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा कि कोई ऐसा भी कर सकता है।"
"ऐसी कौन सी बात सुनी थी तुमने?" मैंने उत्सुकतावश पूछा।

और काका ने मुझे जो बात बताई उसे सुन कर मैं बुरी तरह अचम्भे में पड़ गया था किन्तु अगले ही पल मेरे चेहरे पर पत्थर जैसी शख़्ती उभर आई। गुस्से के मारे मेरी आँखें लाल सुर्ख पड़ने लगीं थी। काका ने मुझे किसी तरह समझा बुझा कर शांत किया।

सूरज डूब चुका था और अँधेरे की चादर चारो तरफ फैलने लगी थी। मैं गहरी सोच में डूबा हवेली की तरफ चला जा रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि कोई इतना बड़ा षड़यंत्र या इतना बड़ा खेल भी रच सकता है। दिलो दिमाग़ में जो तूफ़ान मचल रहा था उसे मैं बड़ी मुश्किल से दबाए हुए हवेली पहुंचा। आज बहुत कुछ पता चल गया था मुझे। मैं मन ही मन भगवान से उस काका के लिए दुआएं मांग रहा था जिसने मुझे इतने बड़े रहस्य के बारे में बताया था।

[][][][]

रात का वक़्त था।
गांव से थोड़ा दूर जंगल के बीचों बीच चार इंसानी साए दो दो फिट के अंतराल में खड़े थे। यूं तो आसमान में आधे से थोड़ा कम ही चाँद मौजूद था जिसकी हल्की रौशनी हर तरफ फैली हुई थी लेकिन जंगल के बीच चाँद की वो हल्की रौशनी नहीं पहुंच पा रही थी। इस वजह से सब कुछ धुंधला सा दिख रहा था। रात के सन्नाटे में हवा के चलने से पेड़ों के पत्तों की सरसराने की ही आवाज़ें गूंज रहीं थी।

"अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारे सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा।" उन चारों में से एक साए की धीमी आवाज़ गूंजी_____"शुरु से ले कर अब तक हमने जो कुछ भी किया है उसका कोई भी फ़ायदा नहीं हुआ। उस कम्बख्त दादा ठाकुर ने अपनी पहुंच का फ़ायदा उठा कर सारा मामला ही रफा दफा कर दिया है।"

"बकरे की अम्मा कब तक ख़ैर मनाएगी?" एक दूसरे साए की कर्कश आवाज़ गूंजी____"एक दिन तो वो हमारे लपेटे में आएगा ही। फिलहाल एक अच्छी बात ये है कि एक चिड़िया पूरी तरह हमारे बस में है। जल्द ही हवेली में एक ऐसा मातम छाने वाला है जिसकी भरपाई हवेली का कोई भी सदस्य नहीं कर पाएगा।"

"मुझे तो डर है कि कहीं वक़्त से पहले दादा ठाकुर को ऐसे किसी काम का शक न हो जाए।" तीसरे साए की सोचपूर्ण आवाज़ गूंजी____"अगर ऐसा हुआ तो समझो ये खेल भी बिगड़ जाएगा।"

"चिंता मत करो।" दूसरे वाले ने कहा____"दादा ठाकुर ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता कि ऐसा कुछ हो सकता है। हमने शतरंज की बिसात ही ऐसी बिछाई है कि वो इस तरीके से सोच ही नहीं सकता। इस लिए इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है बल्कि फ़िक्र तो अब इस बात की है कि उसका दूसरा बेटा कुछ ज़्यादा ही अच्छा बन गया है। आज कल वो बुद्धि से कुछ ज़्यादा ही काम लेने लगा है। समझ में नहीं आ रहा कि वो आश्चर्यजनक रूप से इतना कैसे बदल सकता है?"

"उसके इस तरह बदल जाने से ही तो हमारे लिए मुश्किलें पैदा हो गई हैं।" चौथे ने कहा____"मुझे तो रातों में ये सोच सोच कर नींद नहीं आ रही कि उसका गरम खून इतना जल्दी ठंडा कैसे पड़ गया? अपने बाप से भी भिड़ जाने वाला वो छोकरा आख़िर कैसे यूं अचानक अपने बाप की जी हुज़ूरी करने लगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके बाप ने उसे कोई सम्मोहन करने वाली दवा खिला दी है?"

"यकीनन ऐसा हो सकता है।" दूसरे साए ने कहा_____"क्योंकि इतने कम समय में किसी का इस तरह से कायाकल्प हो जाना लगभग असंभव बात है। जो छोकरा हमेशा अय्याशियां करने में ही मगन रहता था और अपने परिवार वालों की एक नहीं सुनता था उसका इस तरह पलक झपकते ही बदल जाना बिलकुल भी हजम नहीं होता। तुम सच कहते हो, ज़रूर दादा ठाकुर ने उसको कोई ऐसी ही दवा खिला दी है वरना किसी इंसान की फितरत इतना जल्दी बदल जाए ये असंभव है।"

"ये सब छोड़िए।" पहले वाले साए की आवाज़ गूंजी____"और ये सोचिए कि अब आगे हमें क्या करना चाहिए? एक बात और, मेरे एक ख़ास आदमी से मुझे पता चला है कि दादा ठाकुर ने दरोगा को गुप्त रूप से मुरारी के हत्यारे का पता लगाने का काम सौंपा है।"

"हां पता है मुझे।" दूसरे वाले साए ने कहा____"एक दिन तो उस साले दरोगा ने पकड़ ही लिया था मुझे। वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी कि वो किसी पत्थर से टकरा कर गिर गया और मुझे उसके होने का पता चल गया था। उसके बाद मैंने बड़ी सफाई से अपने उस आदमी का काम तमाम किया और फिर उड़न छू हो गया था।"

"ऐसा नहीं होना चाहिए था।" तीसरे वाले साए ने कहा____"क्योंकि अब उस दरोगा के अलावा दादा ठाकुर को भी यकीन हो गया है कि मुरारी की हत्या करने के पीछे किसी का यही मकसद था कि उस हत्या में दादा ठाकुर के उस छोकरे को फंसा दिया जाए।"

"सही कहा तुमने।" दूसरे साए ने कहा____"लेकिन अच्छी बात यही है कि ये पता लगने के बाद भी वो दरोगा और दादा ठाकुर ये नहीं जान सकते कि ऐसा किसने किया होगा? हाँ ये ज़रूर है कि अब हमें पूरी तरह से सावधान रहना होगा और अपने किसी भी काम को पूरी सतर्कता से ही करना होगा।"

"क्या ये पता चल सका कि वो नक़ाबपोश कौन था जो उस दिन बगीचे में उस छोकरे का बचाव कर रहा था?" चौथे साए की आवाज़____"मुझे पूरा यकीन है कि वो नक़ाबपोश दादा ठाकुर का ही कोई आदमी है लेकिन हमारे लिए ये पता करना ज़रूरी है कि वो आख़िर है कौन? वो हमारे लिए बहुत ही बड़ा ख़तरा है।"

"मेरे आदमी उसका पता लगाने में लगे हुए है।" दूसरे साए ने कहा____"अभी तक उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली है। ऐसा लगता है वो नक़ाबपोश बहुत ही शातिर है।"

"कितना भी शातिर क्यों न हो।" चौथे साए की आवाज़____"उसका पता करना ज़रूरी है हमारे लिए।"
"एक बात समझ में नहीं आ रही।" दूसरे वाले साए ने कहा____"वो छोकरा उस बंज़र ज़मीन पर मकान क्यों बनवा रहा है? क्या अपनी अय्याशियों के लिए या फिर उसके ज़हन में कुछ और चल रहा है?"

"सुना तो यही है कि वो उस जगह पर महज शान्ति और सुकून के लिए मकान बनवाना चाहता है।" पहले वाले साए ने कहा____"बाकि असल बात क्या है ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।"

"जो भी हो।" दूसरे साए ने कहा____"लेकिन एक बात निश्चित है कि जिस तरह से वो बदल गया है और बुद्धि से काम लेने लगा है उससे हमारा बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा। इस लिए कुछ ऐसा करो कि उसका खेल ही ख़त्म हो जाए। मैं उसे अब और बरदास्त नहीं कर सकता। मुझे उस हवेली में ऐसा मातम छाया हुआ देखना है जो कभी खुशियों में तब्दील ही न हो सके।"

"ये इतना आसान नहीं है।" पहले वाले साए ने कहा____"पहले की बात और थी क्योंकि पहले वो पूरी तरह लापरवाह रहता था लेकिन अब वो सम्हल गया है या यूं कहें कि उसे सम्हल कर चलने के लिए प्रेरित किया गया है। दूसरी बात दादा ठाकुर भी ये समझ चुका है कि कोई तो ऐसा ज़रूर है जो उसके बेटे को मोहरा बनाए हुए है और उसके साथ साथ पूरे ठाकुर खानदान को भी। ऐसे में वो पूरी तरह सम्हल गया है और ये भी यकीन करो कि वो गुप्त रूप से इस सबका पता भी लगा रहा होगा। अब तुम लोग समझ सकते हो कि ऐसी परिस्थिति में हवेली के किसी भी ब्यक्ति का शिकार करना आसान नहीं होगा।"

"ये सब जान कर हम हार नहीं मान सकते।" दूसरे वाले साए ने शख़्त भाव से कहा____"और ना ही अपने प्रतिशोध को भूल सकते हैं।"
"मैं भी कहां अपने प्रतिशोध को भूला हूं?" पहले वाले ने कहा____"प्रतिशोध तो मैं ले कर ही रहूंगा फिर चाहे आख़िर में मुझे सब कुछ खुल कर ही क्यों न करना पड़े।"

"शांत हो जाओ।" तीसरे साए ने कहा_____"किसी को भी अपना संयम खोने की ज़रूरत नहीं है। हमारे लिए अभी यही ज़रूरी है कि परिस्थितियों को देख कर हमें पूरे होशो हवास में काम लेना है। हमारी थोड़ी सी चूक हमारे लिए बहुत बड़ी मुसीबत का सबब बन सकती है। इस लिए माहौल को देख कर काम करो। फिलहाल यही सोच कर तसल्ली रखो कि एक तो बहुत जल्द विदा होने ही वाला है। उसके बाद मौका देख कर दूसरे को भी वैसे ही विदा करवा देंगे।"

"अगर उसको भी उसी तरह विदा करवाना होता तो ये काम पहले ही कर दिया गया होता।" दूसरे साए ने कठोर भाव से कहा____"मगर किया इसी लिए नहीं कि उसे मैं अपने हाथों से तड़पा तड़पा कर इस दुनिया से विदा करना चाहता हूं और ये हो कर ही रहेगा चाहे इसके लिए मुझे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।"

"वैसे मेरा ख़याल है कि ऐसा खूबसूरत वक़्त जल्द ही आ सकता है।" चौथे साए ने कहा_____"अब तो दोनों परिवारों के बीच अच्छे सम्बन्ध बन चुके हैं और वो छोकरा भी अपने दुश्मनों को दोस्त बना कर उनसे ख़ुशी ख़ुशी घुल मिल रहा है। हमारे लिए ऐसी परिस्थिति में कोई ऐसा सुनहरा मौका ज़रूर मिल सकता है कि हम उस छोकरे को अपने लपेटे में बड़ी आसानी से ले सकें।"

"बेवक़ूफ़ी भरी बात मत करो तुम।" तीसरे साए ने कहा____"तुम्हें क्या लगता है ये सब दाल चावल खाने जैसा आसान है? इस बात को सबसे पहले याद रखो कि दादा ठाकुर को ऐसे ही किसी ख़तरे का आभास हो चुका है इस लिए ये भी यकीन ही करो कि वो इस सबके लिए पूरी तरह से सतर्क हो गया होगा और गुप्त रूप से इस सबका पता भी लगा ही रहा होगा। मुझे तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उस छोकरे की फितरत को बदलने के पीछे उसके बाप दादा ठाकुर का ही महत्वपूर्ण हाथ है और मुझे ऐसा भी महसूस हो रहा है कि उसने किसी ख़ास योजना के तहत ही अपने छोकरे को मणि शंकर के यहाँ भेजा होगा।"

"तुम्हारी बातों में यकीनन भारी वजन है।" दूसरे वाले साए ने कहा____"मुझे भी यही आशंका है। ख़ैर तो इन सब बातों का निचोड़ यही है कि फिलहाल हमें कुछ नहीं करना है बल्कि अच्छे वक़्त का इंतज़ार करना है।"

"बिल्कुल।" तीसरे वाले साए ने कहा____"एक और बात, अपने उस दूसरे आदमी को भी कुछ समय के लिए छुपा दो। अगर वो दरोगा के हाथ लग गया तो समझ ही सकते हो कि उस सूरत में हम लोगों की गर्दनें पलक झपकते ही तलवार की धार पर धरी नज़र आएंगी।"

दूसरे साए ने हाँ में सिर हिलाया। उसके बाद चारो के चारो अलग अलग दिशा की तरफ पलट कर चल दिए। कुछ ही देर में वो चारों पेड़ों के बीच कहीं खो ग‌ए। जंगल में अब हवा की वजह से सिर्फ पत्तों के सरसराने की ही आवाज़ें सुनाई दे रहीं थी।

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Mastmalang

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अध्याय - 40
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अब तक....

मेनका चाची और कुसुम कुछ देर बाद चली गईं। वो बच्ची लड्डू खाने में ब्यस्त थी और मैं ये सोचने में कि विभोर और अजीत के पास कुसुम की आख़िर ऐसी कौन सी कमज़ोरी है जिसके बल पर वो लोग कुसुम को मेरे खिलाफ़ मोहरा बनाए हुए हैं? आख़िर ऐसी क्या बात हो सकती है जिसके चलते कुसुम उनकी बात मानने के लिए इस हद तक मजबूर है कि वो अपने उस भाई को भी कुछ नहीं बता रही जो उसे दुनिया में सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह देता है? मैंने फैसला किया कि सबसे पहला काम मुझे इसी सच का पता लगाना होगा।

अब आगे....

दिन ढलने लगा था।
भाभी मेरे कमरे में आईं और मुझे बताया कि गुड़िया को लेने के लिए उसकी दादी फूलवती अपने दूसरे बेटे सूर्यभान के साथ आई हैं। मैंने देखा भाभी का चेहरा अब थोड़ा सामान्य था। मैंने भाभी से उनके हाथ की बनी चाय पिलाने को कहा तो वो सिर हिला कर चली गईं। इधर उनके जाने के बाद मैं भी उस बच्ची को ले कर नीचे आ गया।

नीचे आया तो देखा मणि शंकर की बीवी फूलवती माँ और मेनका चाची से बातें कर रही थी। तीनों के चेहरों पर ख़ुशी के भाव थे। बच्ची को लिए जब मैं उनके पास पहुंचा तो फूलवती मुझे और अपनी पोती को देख कर मुस्कुरा उठी।

"ये अभी तक तुमसे ही चिपकी हुई है?" फूलवती ने मुस्कुराते हुए किन्तु हैरानी ज़ाहिर करते हुए कहा____"लगता है तुमसे कुछ ज़्यादा ही घुल मिल गई है ये।"

"आप क्या इसे लेने आई हैं?" मैंने मुस्कुराते हुए पूछा____"पर अब तो ये मेरे पास ही हवेली में रहेगी। है न मेरी प्यारी गुड़िया?"
"हां ताता।" उस बच्ची ने मेरी तरफ देखते हुए मासूमियत से कहा____"मैं आपते पाथ ही लहूंगी।"

"हाय राम!" फूलवती उसकी बात सुन कर चकित भाव से कह उठी____"ये तो सच में तुमसे घुल मिल गई है बेटा। देखो तो एक ही दिन में अपनी उस दादी को भी भूल गई जिसके बिना ये रहती ही नहीं थी।"

मां और चाची उनकी बात सुन कर हंसने लगीं। जबकि फूलवती उस बच्ची से कहने लगी कि चल बेटा घर चल तेरी माँ तुझे बहुत याद कर रही है और तेरे बिना घर भी सूना सूना लगता है। फूलवती की ये बातें सुन कर भी वो बच्ची मेरी गोद से उतर कर उसके पास न गई। आख़िर मैंने जब उसे प्यार से समझाया और ये कहा कि मैं उसके लिए उसके घर लड्डू ले कर आऊंगा तो वो मान गई और फिर ख़ुशी ख़ुशी अपनी दादी के पास चली गई।

रागिनी भाभी सबके लिए चाय ले कर आईं। चाय पीने के बाद मैं बाहर बैठक में आ गया। बैठक में सूर्यभान जगताप चाचा के पास बैठा था और चाय पी रहा था। मैं भी उनके पास ही बैठ गया। कुछ देर हम तीनों के बीच इधर उधर की बातें होती रहीं उसके बाद फूलवती जब आई तो सूर्यभान उन्हें ले कर चला गया।

"तो कैसा चल रहा है हमारे भतीजे के मकान का निर्माण कार्य?" जगताप चाचा ने मुस्कुराते हुए मुझसे पूछा____"ब्यस्तता के चलते उधर जा ही नहीं पाए हम।"

"आधे से ज़्यादा कार्य हो गया है चाचा जी।" मैंने कहा____"जल्द ही शेष कार्य भी पूरा हो जाएगा।"
"चलो अच्छी बात है फिर।" चाचा जी ने कहा____"अच्छा अब तुम बैठो, हमें एक ज़रूरी काम से जाना पड़ेगा।"

चाचा जी के जाने के बाद मैं भी उठा और पैदल ही हवेली से बाहर चल पड़ा। कुछ दूरी से ही सड़क के दोनों तरफ लोगों के कच्चे मकान शुरू हो जाते थे। दिन ढल रहा था इस लिए धुप में ज़्यादा तपिश नहीं रह गई थी। मैं सोचता जा रहा था कि मेरे सामने सबसे महत्वपूर्ण दो मामले थे और दोनों ही मामले गंभीर थे, ख़ास कर बड़े भैया वाला मामला। बड़े भैया का जब भी ख़याल आता था तब मेरे दिल में एक दर्द सा जाग उठता था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि भैया का जीवन काल इतना जल्दी ख़त्म हो जाएगा। मेरे लिए सबसे बड़ी हैरानी की बात ये थी कि भैया का बर्ताव एकदम से कैसे बदल जाता था? कभी वो बहुत अच्छे से बात करते थे और कभी ऐसे हो जाते थे कि वो गुस्से में आ कर मुझ पर हाथ ही उठा देते थे। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये क्या माजरा है? मैं ये सब सोचता चला ही जा रहा था कि सहसा मुझे ऐसा लगा जैसे कहीं से आवाज़ आई हो। मैं रुक कर इधर उधर देखने लगा और तभी मेरी नज़र दाएं तरफ जा रही एक संकरी गली पर पड़ी। गली के किनारे एक नीम का पेड़ था उसी पेड़ के पास एक आदमी खड़ा था। वो आदमी हमारे ही गांव का था। मैंने देखा वो मुझे अपनी तरफ बुला रहा था। मुझे उसका बर्ताव थोड़ा अजीब सा लगा लेकिन उत्सुकतावश मैं उसकी तरफ बढ़ ही गया।

"क्या बात है काका?" उस आदमी के पास पहुंचते ही मैंने उससे पूछा____"तुम मुझे इस तरह क्यों बुला रहे थे?"
"मेरी इस धृष्टता के लिए मुझे माफ़ कर देना छोटे ठाकुर।" उसने इधर उधर देखते हुए कहा_____"अच्छा हुआ कि आप मुझे मिल ग‌ए। मैं कई दिनों से हवेली में आना चाहता था लेकिन बड़ी कोशिश के बाद भी आ नहीं पाया अथवा ये समझ लीजिए कि हवेली में आने की मैं हिम्मत ही नहीं जुटा पाया।"

"आख़िर बात क्या है?" मैं उसकी बात सुन कर सोच में पड़ गया था, बोला_____"तुम किस लिए हवेली आना चाह रहे थे?"
"यहां नहीं छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने इधर उधर देखते हुए धीमें स्वर में कहा____"आप मेरे साथ मेरे घर चलिए। मुझे आपको बहुत ज़रूरी बात बतानी है।"

उस आदमी की बात सुन कर मैं चौंका। एकाएक मेरे ज़हन में कई तरह के ख़याल उभरने लगे। मैं फ़ौरन ही उस आदमी के साथ चल पड़ा। जिस गली में हम थे वो ज़्यादा चौड़ी नहीं थी। अगल बगल बने घरों के बगल की दीवार थी गली की तरफ। आगे जा कर वो गली बाएं तरफ मुड़ जाती थी जहां पर निम्न वर्ग के लोगों के घर बने हुए थे। कुछ ही देर में मैं उस आदमी के साथ एक घर में पहुंच गया। आदमी ने इधर उधर नज़र घुमाई और एक तरफ देख कर हाथ से एक इशारा किया। मैंने उस तरफ देखा तो एक और आदमी परली तरफ खड़ा था। मुझे कुछ समझ नहीं आया लेकिन इतना ज़रूर सोचा कि कुछ तो बात ज़रूर है।

"वो मेरा छोटा भाई है छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने कहा____"मैंने उसे निगरानी में लगा रखा है। असल में कुछ दिनों से मुझे एक बड़े ख़तरे का आभास हो रहा है।"

"आख़िर बात क्या है काका?" मैं बेचैन भाव से बोल पड़ा____"तुम साफ़ साफ़ बताते क्यों नहीं मुझे?"
"अन्दर आ जाइए।" उसने कहा और घर के अंदर दाखिल हो गया। उसके पीछे मैं भी सोच में डूबा दाखिल हो गया। मन में तरह तरह के ख़याल उभर रहे थे।

"अरे! ओ धनिया।" आदमी ने अंदर तरफ किसी को पुकारा____"जल्दी से जल पान ला, छोटे ठाकुर आए हैं।"
"काका इस सबकी कोई ज़रूरत नहीं है।" मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था, इस लिए उतावलेपन से बोल पड़ा_____"तुम मुझे बस वो बताओ जिसके लिए तुम हवेली आना चाहते थे या फिर मुझे यहाँ ले कर आए हो।"

"तीन दिन पहले की बात है छोटे ठाकुर।" मैं जब खटिया में बैठ गया तो वो मेरे पास ही ज़मीन पर बैठने के बाद गंभीर भाव से बोला_____"मेरी भैंस घर नहीं आई थी तो मैं उसे खोज रहा था। आख़िर बड़ी खोज के बाद वो शाम को मुझे नदी के पास मिली। मेरे साथ मेरा छोटा भाई कलुवा भी था। मैंने कलुवा को भैंस ले कर घर चले जाने को कहा और खुद दिशा मैदान के लिए वहीं रुक गया। आप तो जानते हैं कि नदी से कुछ दूरी पर ही गांव के साहूकारों का बगीचा शुरू होता है। मैं डर तो रहा था कि मुझे उस जगह पर दिशा मैदान करते हुए साहूकारों का कोई नौकर न देख ले लेकिन क्योंकि मेरा ज़ोरों से पेट चढ़ा हुआ था इस लिए मजबूरन मुझे वहीं बैठ जाना पड़ा। दिशा मैदान से फुर्सत होने के बाद मैं उनके बगीचे से ही घुस कर घर की तरफ चल दिया। मैंने सोचा था कि बगीचे से हो कर अगर जाऊंगा तो जल्दी ही गांव की मुख्य सड़क पर पहुंच जाऊंगा। अँधेरा घिर चुका था पर मैं अंदाज़न चलता ही जा रहा था। थोड़ी दूर ही आया था कि अँधेरे में मुझे थोड़ी देर के लिए हवा में आग जलती दिखी और फिर बूझ गई। मैं समझ गया कि किसी ने बीड़ी सुलगाया होगा लेकिन तभी ख़याल आया कि अँधेरे में उस वक़्त भला वहां पर कौन हो सकता है? जहां तक मुझे पता था दिन ढले ही बगीचा सुनसान हो जाता था। ख़ैर मैंने इस पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और आगे बढ़ चला। कुछ दूर ही आया था कि तभी किसी के चिल्लाने की आवाज़ सुन कर मैं एकदम से उछल पड़ा। चिल्लाने की आवाज़ किसी लड़की या औरत की थी। मैंने सोचा अँधेरे में उस वक़्त कौन हो सकती थी जो इस तरह चिल्लाई थी? मन में एक उत्सुकता जाग उठी थी इस लिए दबे पाँव उस तरफ को मुड़ गया। डर तो बहुत लग रहा था छोटे ठाकुर क्योंकि साहूकारों का बगीचा था पर शायद नियति यही चाहती थी इस लिए मैं दबे पाँव उस तरफ बढ़ता ही चला गया।"

वो आदमी सांस लेने के लिए कुछ देर रुका। मैं गौर से उसकी बातें सुन रहा था। अभी वो फिर से बोलने ही वाला था कि अंदर से एक लड़की हाथ में एक थाली लिए आई। मैंने देखा लड़की जवान थी। सांवली रंगत वाले जिस्म पर घाघरा चोली था। चोली में कैद उसकी चूचियां साफ़ बता रहीं थी कि लड़की अब भरपूर जवान हो चुकी है। शायद इसी का नाम धनिया था और उस आदमी की बेटी थी। उसने झुक कर मेरी तरफ थाली बढ़ाई जिसमें एक गिलास पानी रखा हुआ था। वो झुकी हुई थी तो मेरी नज़र एकदम से उसके उभारों पर चली गई। चोली का गला झुकने से नीचे की तरफ फ़ैल सा गया था जिससे मुझे साफ़ साफ़ उसके उभार दिखने लगे थे। मेरे मन में एक हलचल सी हुई तो मैंने जल्दी से उसके उभारों से नज़र हटा कर ग्लास उठा लिया। मेरे ग्लास उठाते ही वो सीधा हुई और अंदर चली गई।

"आगे बताओ काका।" उसके जाते ही मैंने उस आदमी से कहा____"उसके बाद क्या हुआ?"
"बगीचे की ज़मीन पर सूखे पत्ते पड़े हुए थे इस लिए मेरे चलने से आवाज़ पैदा हो रही थी।" काका ने कहना शुरू किया____"और इस आवाज़ के चलते मैं ये सोच कर और भी डर रहा था कि कहीं मैं पकड़ा न जाऊं। उधर किसी लड़की या औरत के चिल्लाने की आवाज़ बीच बीच में आ रही थी। मैंने साफ़ सुना था कि वो खुद को छोड़ देने के लिए मिन्नतें कर रही थी, रो रही थी, गिड़गिड़ा रही थी। मैं किसी तरह उस तरफ पहुंचा। अचानक चिल्लाने की आवाज़ बंद हो गई। ऐसा लगा जैसे किसी ने जादू किया हो और शोर गुल शांत हो गया हो। मैं एक पेड़ के पीछे छुप कर खड़ा हो गया था। मुझसे क़रीब दस या पंद्रह क़दम की दूरी पर अँधेरे में मुझे तीन लोग खड़े दिखाई दिए। अँधेरे की वजह से उनकी शकल नहीं दिख रही थी और ना ही उनके कपड़े ठीक से समझ में आ रहे थे। उनमें से एक आदमी थोड़ा झुका हुआ दिख रहा था। शायद वो उस लड़की या औरत को पकड़े हुए था जो कुछ देर पहले चिल्ला रही थी।"

"मैंने तो पहले ही कहा था कि इस रांड के बस का नहीं है हवेली से उन कागज़ातों को निकाल कर लाना।" सन्नाटे को चीरती उनमें से एक की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी थी____"लेकिन आप ही नहीं माने और इसे हवेली की नौकरानी बना कर वहां रखवा दिया।"

"ग़लती तो हो ही गई मुझसे।" दूसरे की आवाज़ आई____"मुझे क्या पता था कि ये अपनी खूबसूरती और अपने मादक जिस्म का सही उपयोग ही नहीं कर पाएगी। इससे ज़्यादा समझदार तो वो शीला निकली जिसने अपने काम को अच्छे तरीके से अंजाम देना शुरू कर दिया है।"

"मुझे लगता है इसे थोड़ा और वक़्त देना चाहिए।" तीसरे की आवाज़ थी ये____"मत भूलिए कि इसी की वजह से हमारा एक महत्वपूर्ण काम सफलता से हुआ है। हवेली में आज कल जिस तरह के हालात हैं उसमें इसके लिए ये काम करना फिलहाल आसान नहीं हो सकता। उस कम्बख्त दादा ठाकुर को अब यकीन हो चला है कि कोई तो है जो उसके खानदान को बर्बाद करने के लिए शातिर खेल खेल रहा है। ज़ाहिर है ऐसे में वो पूरी तरह सतर्क हो गया होगा।"

"ये सही कह रहा है।" पहले वाले की आवाज़____"मामला थोड़ा पेंचीदा है इस लिए इसे थोड़ा वक़्त देना चाहिए हमें।"
"मुझ पर यकीन कीजिए।" सहसा वो लड़की या औरत की आवाज़ आई जो पहले चिल्ला रही थी____"मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रही हूं लेकिन क्या करूं वहीं की दोनों ठकुराईनें हर वक़्त वहीं जमी रहती हैं। इस वजह से मुझे दादा ठाकुर के कमरे में जाने का मौका ही नहीं मिलता।"

"क्या एक बार भी उसके कमरे में जाने का तुझे मौका नहीं मिला?" दूसरे वाले की आवाज़ आई तो उस औरत ने कहा____"ऐसे तो कई बार मिला है और मैं गई भी हूं लेकिन ज़्यादा समय तक कमरे में रह ही नहीं पाई वरना उस कमरे में उन कागज़ातों को ज़रूर तलाश करती।"

"उसके कमरे को देख कर क्या समझ आया था तुझे?" दूसरे वाले ने उससे पूछा।
"समझ आया मतलब? मैं कुछ समझी नहीं?" उस औरत की उलझी हुई आवाज़।
"अरे! मतलब ये कि उस दादा ठाकुर के कमरे को देख कर।" दूसरे वाले की आवाज़ में इस बार थोड़ा गुस्सा था____"क्या तुझे ऐसा लगा कि उसी कमरे में वो कागज़ात रखे हो सकते हैं?"

"उनके कमरे में तो चारो तरफ बहुत कुछ है।" उस औरत की आवाज़____"लेकिन ठीक से देखने का मौका ही नहीं मिल पाया मुझे।"
"देख मैं इन दोनों के कहने पर तुझे आख़िरी मौका दे रहा हूं।" दूसरे वाले कठोरता से कहा____"अगर तूने वहां से कागज़ात निकाल कर हमें नहीं दिया तो सोच लेना कि तू और तेरा परिवार इस दुनिया में नहीं रहेगा।"

"वो तीनों लोग कौन थे काका?" वो आदमी जब सब कुछ बता कर चुप हुआ तो मैंने गहरी सांस लेते हुए उससे पूछा____"क्या उन तीनों की आवाज़ों से तुम उन्हें पहचान पाए?"

"यही तो नहीं हो पाया छोटे ठाकुर।" उस आदमी ने बेबस भाव से कहा____"अँधेरे की वजह से उनकी शकल तो वैसे भी नहीं दिख रही थी लेकिन बातें भी वो धीमें स्वर में ही कर रहे थे इस लिए साफ़ साफ़ उनकी आवाज़ मेरे कानों में नहीं पहुंच पा रही थी, अगर वो खुल कर बातें करते तो शायद उनकी आवाज़ से मैं कुछ अंदाज़ा लगा पाता।"

"और वो औरत कौन थी?" मैंने कहा___"क्या उसे भी नहीं पहचान पाए?"
"मुझे माफ़ कर दीजिए छोटे ठाकुर।" वो आदमी बेबसी बोल पड़ा____"औरत को पहचानना तो वैसे भी मेरे लिए मुश्किल था क्योंकि मैंने इस गांव की ज़्यादातर औरतों की आवाज़ें सुनी ही नहीं हैं।"

"ख़ैर उसके बाद क्या हुआ?" मैंने काका की तरफ देखते हुए पूछा____"क्या वो लोग वहीं रहे या फिर उनके जाने के बाद तुमने उनका पीछा भी किया था?"

"पीछा करने की नौबत ही नहीं आई छोटे ठाकुर।" काका ने कहा____"उनको पता चल गया कि वहां पर उनके अलावा भी कोई है जो उनकी बातें सुन रहा है।"

"अरे! पर उन्हें पता कैसे चल गया?" मैंने काका की बात सुन कर हैरानी से पूछा।
"मेरे दुर्भाग्य की वजह से छोटे ठाकुर।" काका ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"मैं पेड़ के पीछे खड़ा उनकी बातें सुन रहा था कि तभी मेरे पैर में से कोई चीज़ एकदम सर्र से निकल गई जिसके चलते मैं डर के मारे उछल ही पड़ा था और मेरे मुख से आवाज़ भी निकल गई थी। बस उसके बाद तो जैसे मुझ पर क़यामत ही टूट पड़ी थी। मैं भी अपनी जान बचा कर इस तरह वहां से भाग खड़ा हुआ था जैसे सैकड़ों भूत मेरे पीछे पड़ गए हों। पीछे मुड़ कर एक बार भी नहीं देखा था मैंने। सीधा घर पर ही आ कर रुका था।"

"तो इस बात को बताने के लिए तुम हवेली आना चाहते थे?" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा___"और अपने छोटे भाई को निगरानी में लगा रखे हो?"
"हां छोटे ठाकुर।" काका ने गंभीरता से कहा____"मैं यही सोच कर डर गया था कि क्या उन लोगों ने मुझे पहचान लिया होगा? आज तीसरा दिन है और अब यही लगने लगा है कि उस दिन उन लोगों ने मुझे पहचाना नहीं था। अगर पहचान गए होते तो संभव है कि आज मैं आपके सामने जीवित न बैठा होता। मैंने कई बार ये सब दादा ठाकुर से बताने के लिए हवेली जाने का मन बनाया लेकिन हिम्मत न हुई। क्योंकि मुझे कहीं न कहीं यही लगता है कि वो हवेली की तरफ जाने वाले हर ब्यक्ति को जांच परख रहे होंगे और जब मुझ जैसा नीच जाति का आदमी हवेली की तरफ जाता हुआ उन्हें दिखेगा तो वो फ़ौरन समझ जाएंगे कि उस रात उनकी बातें सुनने वाला शायद मैं ही था।"

"शायद तुम सही कह रहे हो काका।" मैंने काका की बुद्धि की मन ही मन सराहना की, फिर बोला____"तुम्हारी इस बुद्धिमानी ने ही तुम्हें अब तक सही सलामत रखा है और मेरा तुमसे यही कहना है कि तुम अब हवेली की तरफ देखना भी नहीं। अच्छा हुआ कि इत्तेफ़ाक से आज पैदल चलते हुए मैं इधर से गुज़र रहा था और तुमने मुझे देख लिया। सही कहते हैं बूढ़े बुजुर्ग लोग कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद काका ये सब बताने के लिए। आज तुमने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। तुम्हारे इस खूबसूरत उपकार को मैं कभी नहीं भूलूंगा। तुमने हमारे प्रति जो वफ़ादारी दिखाई है उसका मोल एक दिन ज़रूर मिलेगा तुम्हें। ख़ैर, अब चलता हूं काका, अपना ख़याल रखना।"

"रूकिए छोटे ठाकुर।" मेरे उठते ही काका ने झट से कहा____"एक और बात उनके मुख से सुनी थी मैंने। मुझे अब भी यकीन नहीं हो रहा कि कोई ऐसा भी कर सकता है।"
"ऐसी कौन सी बात सुनी थी तुमने?" मैंने उत्सुकतावश पूछा।

और काका ने मुझे जो बात बताई उसे सुन कर मैं बुरी तरह अचम्भे में पड़ गया था किन्तु अगले ही पल मेरे चेहरे पर पत्थर जैसी शख़्ती उभर आई। गुस्से के मारे मेरी आँखें लाल सुर्ख पड़ने लगीं थी। काका ने मुझे किसी तरह समझा बुझा कर शांत किया।

सूरज डूब चुका था और अँधेरे की चादर चारो तरफ फैलने लगी थी। मैं गहरी सोच में डूबा हवेली की तरफ चला जा रहा था। मैं सोच भी नहीं सकता था कि कोई इतना बड़ा षड़यंत्र या इतना बड़ा खेल भी रच सकता है। दिलो दिमाग़ में जो तूफ़ान मचल रहा था उसे मैं बड़ी मुश्किल से दबाए हुए हवेली पहुंचा। आज बहुत कुछ पता चल गया था मुझे। मैं मन ही मन भगवान से उस काका के लिए दुआएं मांग रहा था जिसने मुझे इतने बड़े रहस्य के बारे में बताया था।

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रात का वक़्त था।
गांव से थोड़ा दूर जंगल के बीचों बीच चार इंसानी साए दो दो फिट के अंतराल में खड़े थे। यूं तो आसमान में आधे से थोड़ा कम ही चाँद मौजूद था जिसकी हल्की रौशनी हर तरफ फैली हुई थी लेकिन जंगल के बीच चाँद की वो हल्की रौशनी नहीं पहुंच पा रही थी। इस वजह से सब कुछ धुंधला सा दिख रहा था। रात के सन्नाटे में हवा के चलने से पेड़ों के पत्तों की सरसराने की ही आवाज़ें गूंज रहीं थी।

"अगर ऐसा ही चलता रहा तो हमारे सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा।" उन चारों में से एक साए की धीमी आवाज़ गूंजी_____"शुरु से ले कर अब तक हमने जो कुछ भी किया है उसका कोई भी फ़ायदा नहीं हुआ। उस कम्बख्त दादा ठाकुर ने अपनी पहुंच का फ़ायदा उठा कर सारा मामला ही रफा दफा कर दिया है।"

"बकरे की अम्मा कब तक ख़ैर मनाएगी?" एक दूसरे साए की कर्कश आवाज़ गूंजी____"एक दिन तो वो हमारे लपेटे में आएगा ही। फिलहाल एक अच्छी बात ये है कि एक चिड़िया पूरी तरह हमारे बस में है। जल्द ही हवेली में एक ऐसा मातम छाने वाला है जिसकी भरपाई हवेली का कोई भी सदस्य नहीं कर पाएगा।"

"मुझे तो डर है कि कहीं वक़्त से पहले दादा ठाकुर को ऐसे किसी काम का शक न हो जाए।" तीसरे साए की सोचपूर्ण आवाज़ गूंजी____"अगर ऐसा हुआ तो समझो ये खेल भी बिगड़ जाएगा।"

"चिंता मत करो।" दूसरे वाले ने कहा____"दादा ठाकुर ख़्वाब में भी नहीं सोच सकता कि ऐसा कुछ हो सकता है। हमने शतरंज की बिसात ही ऐसी बिछाई है कि वो इस तरीके से सोच ही नहीं सकता। इस लिए इस बारे में फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं है बल्कि फ़िक्र तो अब इस बात की है कि उसका दूसरा बेटा कुछ ज़्यादा ही अच्छा बन गया है। आज कल वो बुद्धि से कुछ ज़्यादा ही काम लेने लगा है। समझ में नहीं आ रहा कि वो आश्चर्यजनक रूप से इतना कैसे बदल सकता है?"

"उसके इस तरह बदल जाने से ही तो हमारे लिए मुश्किलें पैदा हो गई हैं।" चौथे ने कहा____"मुझे तो रातों में ये सोच सोच कर नींद नहीं आ रही कि उसका गरम खून इतना जल्दी ठंडा कैसे पड़ गया? अपने बाप से भी भिड़ जाने वाला वो छोकरा आख़िर कैसे यूं अचानक अपने बाप की जी हुज़ूरी करने लगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि उसके बाप ने उसे कोई सम्मोहन करने वाली दवा खिला दी है?"

"यकीनन ऐसा हो सकता है।" दूसरे साए ने कहा_____"क्योंकि इतने कम समय में किसी का इस तरह से कायाकल्प हो जाना लगभग असंभव बात है। जो छोकरा हमेशा अय्याशियां करने में ही मगन रहता था और अपने परिवार वालों की एक नहीं सुनता था उसका इस तरह पलक झपकते ही बदल जाना बिलकुल भी हजम नहीं होता। तुम सच कहते हो, ज़रूर दादा ठाकुर ने उसको कोई ऐसी ही दवा खिला दी है वरना किसी इंसान की फितरत इतना जल्दी बदल जाए ये असंभव है।"

"ये सब छोड़िए।" पहले वाले साए की आवाज़ गूंजी____"और ये सोचिए कि अब आगे हमें क्या करना चाहिए? एक बात और, मेरे एक ख़ास आदमी से मुझे पता चला है कि दादा ठाकुर ने दरोगा को गुप्त रूप से मुरारी के हत्यारे का पता लगाने का काम सौंपा है।"

"हां पता है मुझे।" दूसरे वाले साए ने कहा____"एक दिन तो उस साले दरोगा ने पकड़ ही लिया था मुझे। वो तो मेरी किस्मत अच्छी थी कि वो किसी पत्थर से टकरा कर गिर गया और मुझे उसके होने का पता चल गया था। उसके बाद मैंने बड़ी सफाई से अपने उस आदमी का काम तमाम किया और फिर उड़न छू हो गया था।"

"ऐसा नहीं होना चाहिए था।" तीसरे वाले साए ने कहा____"क्योंकि अब उस दरोगा के अलावा दादा ठाकुर को भी यकीन हो गया है कि मुरारी की हत्या करने के पीछे किसी का यही मकसद था कि उस हत्या में दादा ठाकुर के उस छोकरे को फंसा दिया जाए।"

"सही कहा तुमने।" दूसरे साए ने कहा____"लेकिन अच्छी बात यही है कि ये पता लगने के बाद भी वो दरोगा और दादा ठाकुर ये नहीं जान सकते कि ऐसा किसने किया होगा? हाँ ये ज़रूर है कि अब हमें पूरी तरह से सावधान रहना होगा और अपने किसी भी काम को पूरी सतर्कता से ही करना होगा।"

"क्या ये पता चल सका कि वो नक़ाबपोश कौन था जो उस दिन बगीचे में उस छोकरे का बचाव कर रहा था?" चौथे साए की आवाज़____"मुझे पूरा यकीन है कि वो नक़ाबपोश दादा ठाकुर का ही कोई आदमी है लेकिन हमारे लिए ये पता करना ज़रूरी है कि वो आख़िर है कौन? वो हमारे लिए बहुत ही बड़ा ख़तरा है।"

"मेरे आदमी उसका पता लगाने में लगे हुए है।" दूसरे साए ने कहा____"अभी तक उन्हें कोई कामयाबी नहीं मिली है। ऐसा लगता है वो नक़ाबपोश बहुत ही शातिर है।"

"कितना भी शातिर क्यों न हो।" चौथे साए की आवाज़____"उसका पता करना ज़रूरी है हमारे लिए।"
"एक बात समझ में नहीं आ रही।" दूसरे वाले साए ने कहा____"वो छोकरा उस बंज़र ज़मीन पर मकान क्यों बनवा रहा है? क्या अपनी अय्याशियों के लिए या फिर उसके ज़हन में कुछ और चल रहा है?"

"सुना तो यही है कि वो उस जगह पर महज शान्ति और सुकून के लिए मकान बनवाना चाहता है।" पहले वाले साए ने कहा____"बाकि असल बात क्या है ये तो आने वाले समय में ही पता चलेगा।"

"जो भी हो।" दूसरे साए ने कहा____"लेकिन एक बात निश्चित है कि जिस तरह से वो बदल गया है और बुद्धि से काम लेने लगा है उससे हमारा बना बनाया खेल बिगड़ जाएगा। इस लिए कुछ ऐसा करो कि उसका खेल ही ख़त्म हो जाए। मैं उसे अब और बरदास्त नहीं कर सकता। मुझे उस हवेली में ऐसा मातम छाया हुआ देखना है जो कभी खुशियों में तब्दील ही न हो सके।"

"ये इतना आसान नहीं है।" पहले वाले साए ने कहा____"पहले की बात और थी क्योंकि पहले वो पूरी तरह लापरवाह रहता था लेकिन अब वो सम्हल गया है या यूं कहें कि उसे सम्हल कर चलने के लिए प्रेरित किया गया है। दूसरी बात दादा ठाकुर भी ये समझ चुका है कि कोई तो ऐसा ज़रूर है जो उसके बेटे को मोहरा बनाए हुए है और उसके साथ साथ पूरे ठाकुर खानदान को भी। ऐसे में वो पूरी तरह सम्हल गया है और ये भी यकीन करो कि वो गुप्त रूप से इस सबका पता भी लगा रहा होगा। अब तुम लोग समझ सकते हो कि ऐसी परिस्थिति में हवेली के किसी भी ब्यक्ति का शिकार करना आसान नहीं होगा।"

"ये सब जान कर हम हार नहीं मान सकते।" दूसरे वाले साए ने शख़्त भाव से कहा____"और ना ही अपने प्रतिशोध को भूल सकते हैं।"
"मैं भी कहां अपने प्रतिशोध को भूला हूं?" पहले वाले ने कहा____"प्रतिशोध तो मैं ले कर ही रहूंगा फिर चाहे आख़िर में मुझे सब कुछ खुल कर ही क्यों न करना पड़े।"

"शांत हो जाओ।" तीसरे साए ने कहा_____"किसी को भी अपना संयम खोने की ज़रूरत नहीं है। हमारे लिए अभी यही ज़रूरी है कि परिस्थितियों को देख कर हमें पूरे होशो हवास में काम लेना है। हमारी थोड़ी सी चूक हमारे लिए बहुत बड़ी मुसीबत का सबब बन सकती है। इस लिए माहौल को देख कर काम करो। फिलहाल यही सोच कर तसल्ली रखो कि एक तो बहुत जल्द विदा होने ही वाला है। उसके बाद मौका देख कर दूसरे को भी वैसे ही विदा करवा देंगे।"

"अगर उसको भी उसी तरह विदा करवाना होता तो ये काम पहले ही कर दिया गया होता।" दूसरे साए ने कठोर भाव से कहा____"मगर किया इसी लिए नहीं कि उसे मैं अपने हाथों से तड़पा तड़पा कर इस दुनिया से विदा करना चाहता हूं और ये हो कर ही रहेगा चाहे इसके लिए मुझे कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।"

"वैसे मेरा ख़याल है कि ऐसा खूबसूरत वक़्त जल्द ही आ सकता है।" चौथे साए ने कहा_____"अब तो दोनों परिवारों के बीच अच्छे सम्बन्ध बन चुके हैं और वो छोकरा भी अपने दुश्मनों को दोस्त बना कर उनसे ख़ुशी ख़ुशी घुल मिल रहा है। हमारे लिए ऐसी परिस्थिति में कोई ऐसा सुनहरा मौका ज़रूर मिल सकता है कि हम उस छोकरे को अपने लपेटे में बड़ी आसानी से ले सकें।"

"बेवक़ूफ़ी भरी बात मत करो तुम।" तीसरे साए ने कहा____"तुम्हें क्या लगता है ये सब दाल चावल खाने जैसा आसान है? इस बात को सबसे पहले याद रखो कि दादा ठाकुर को ऐसे ही किसी ख़तरे का आभास हो चुका है इस लिए ये भी यकीन ही करो कि वो इस सबके लिए पूरी तरह से सतर्क हो गया होगा और गुप्त रूप से इस सबका पता भी लगा ही रहा होगा। मुझे तो अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उस छोकरे की फितरत को बदलने के पीछे उसके बाप दादा ठाकुर का ही महत्वपूर्ण हाथ है और मुझे ऐसा भी महसूस हो रहा है कि उसने किसी ख़ास योजना के तहत ही अपने छोकरे को मणि शंकर के यहाँ भेजा होगा।"

"तुम्हारी बातों में यकीनन भारी वजन है।" दूसरे वाले साए ने कहा____"मुझे भी यही आशंका है। ख़ैर तो इन सब बातों का निचोड़ यही है कि फिलहाल हमें कुछ नहीं करना है बल्कि अच्छे वक़्त का इंतज़ार करना है।"

"बिल्कुल।" तीसरे वाले साए ने कहा____"एक और बात, अपने उस दूसरे आदमी को भी कुछ समय के लिए छुपा दो। अगर वो दरोगा के हाथ लग गया तो समझ ही सकते हो कि उस सूरत में हम लोगों की गर्दनें पलक झपकते ही तलवार की धार पर धरी नज़र आएंगी।"

दूसरे साए ने हाँ में सिर हिलाया। उसके बाद चारो के चारो अलग अलग दिशा की तरफ पलट कर चल दिए। कुछ ही देर में वो चारों पेड़ों के बीच कहीं खो ग‌ए। जंगल में अब हवा की वजह से सिर्फ पत्तों के सरसराने की ही आवाज़ें सुनाई दे रहीं थी।


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सस्पेंस बड़ा रहे हो मित्र ।
कम से कम थोड़ा सा तो हिंट दो
 

Naik

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अध्याय - 38
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अब तक....

मैंने अनुराधा से कहा कि मैं कल का खाना यही खाऊंगा, वो भी उसके हाथ का बना हुआ। मेरी बात सुन कर अनुराधा ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया। उसके बाद मैं ख़ुशी ख़ुशी घर से बाहर निकल गया। अनुराधा मेरे पीछे पीछे दरवाज़े तक आई। मैंने जब बुलेट में बैठ कर उसकी तरफ देखा तो हमारी नज़रें आपस में मिल ग‌ईं। मैं उसे देख कर मुस्कुराया तो उसके होठों पर भी शर्म मिश्रित हल्की मुस्कान उभर आई। उसके बाद मैंने बुलेट को आगे बढ़ा दिया। तेज़ आवाज़ करती हुई बुलेट कच्ची पगडण्डी पर दौड़ी चली जा रही थी। सारे रास्ते मैं अनुराधा के बारे में ही सोचता रहा। उसके साथ हुई हमारी बातों के बारे में सोचता रहा। आज उससे बातें कर के एक अलग ही तरह का एहसास हो रहा था मुझे।

अब आगे....

मैं जब मुंशी चंद्रकांत के घर के पास पहुंचा तो मुझे अचानक रजनी का ख़याल आया। उसे तो मैं जैसे भूल ही गया था। मुझे याद आया कि कैसे उस दिन वो रूपचंद्र से चुदवा रही थी। साली रांड मेरे पीठ पीछे उसका लंड भी गपक रही थी। मैंने बुलेट को मुंशी के घर की तरफ मोड़ा और खाली जगह पर खड़ी कर दिया। बुलेट की तेज़ आवाज़ शायद घर के अंदर तक गई थी इस लिए जैसे ही मैं दरवाज़े की कुण्डी को पकड़ कर खटखटाना चाहा वैसे ही दरवाज़ा खुल गया। मेरी नज़र दरवाज़ा खोलने वाली रजनी पर पड़ी। उसे देखते ही मेरे अंदर गुस्सा और नफरत दोनों ही उभर आई, लेकिन मैंने ज़ाहिर नहीं होने दिया।

"छो..छोटे ठाकुर आप?" उसने धीमे स्वर में हकला कर मुझसे कहा तो मैंने सपाट लहजे में कहा____"क्यों क्या मैं यहाँ नहीं आ सकता?"
"न...नहीं ऐसा तो मैंने नहीं कहा आपसे।" वो एकदम से बौखला गई थी_____"आइए अंदर आइए।"

वो दरवाज़े से हटी तो मैं अंदर दाखिल हो गया। सहसा मेरी नज़र उसके चेहरे पर फिर से पड़ी तो मैंने देखा वो कुछ परेशान सी नज़र आ रही थी और साथ ही चेहरे का रंग भी उड़ा हुआ दिखा। मुझे उसकी ये हालत देख कर उस पर शंका हुई। ज़हन में एक ही ख़याल उभरा कि कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है?

"मुंशी जी कहां हैं?" मैंने उसकी तरफ ही गौर से देखते हुए पुछा।
"ससुर जी हवेली गए हैं।" रजनी ने खुद को सम्हालते हुए संतुलित लहजे में कहा____"और माँ की तबियत ख़राब थी तो ये (उसका पति रघु) उन्हें ले कर वैद जी के पास गए हैं।"

रजनी आज मुझे अलग ही तरह से नज़र आ रही थी। उसके चेहरे पर परेशानी के भाव अभी भी कायम थे। माथे पर पसीना झिलमिला रहा था। वो बार बार बेचैनी से अपने हाथों की उंगलियों को आपस में उमेठ रही थी। मैं समझ चुका था कि भारी गड़बड़ है। वो इस वक़्त घर में अकेली है और निश्चय की अंदर उसके साथ कोई ऐसा है जिसके साथ वो अपनी गांड मरवाने वाली थी लेकिन मेरे आ जाने से उसका काम ख़राब हो गया था।

"क्या हुआ तू इतनी परेशान क्यों दिख रही है?" मैंने उसको देखते हुए उससे पूछा____"सब ठीक तो है न?"
"जी...जी हाँ छोटे ठाकुर।" वो एकदम से चौंकी थी और फिर हकलाते हुए बोली____"स..सब कुछ ठीक है।"

"पर मुझे तो कुछ और ही लग रहा है।" मैंने उसकी हालत ख़राब करने के इरादे से कहा____"लगता है अपनी सास को अपने मरद के साथ भेज कर इधर तेरी भी तबियत ख़राब हो गई है। चल अंदर आ, तेरा इलाज़ करता हूं मैं।"

मेरी बात सुनते ही रजनी की मानो अम्मा मर गई। चेहरे पर जो पहले से ही परेशानी और बेचैनी थी उसमें पलक झपकते ही इज़ाफ़ा हो गया। वो मेरी तरफ ऐसे देखने लगी थी जैसे मैं अचानक ही किसी जिन्न में बदल गया होऊं।

"य...ये क्या कह रहे हैं छोटे ठाकुर?" फिर वो खुद को किसी तरह सम्हालते हुए बोल पड़ी____"मुझे भला क्या हुआ है? मैं तो एकदम ठीक हूं, हाँ थोड़ा सिर ज़रूर दुःख रहा है।"

मैं समझ चुका था कि उसके साथ कुछ तो भारी गड़बड़ ज़रूर है लेकिन क्या, ये देखना चाहता था मैं। इस लिए उसकी बात सुन कर मैं उसको बिना कोई जवाब दिए अंदर की तरफ चल पड़ा। मुझे अंदर की तरफ जाते देख वो और भी बुरी तरह बौखला गई। डर और घबराहट के मारे उसका बुरा हाल हो गया लेकिन उसकी बिवसता ये थी कि वो मुझे अंदर जाने से रोक भी नहीं सकती थी। ख़ैर जल्दी ही मैं अंदर आँगन में पहुंच गया।

आंगन में एक तरफ एक खटिया बिछी हुई थी लेकिन वो खाली थी। मैंने आस पास नज़र घुमाई पर कोई न दिखा। तभी मेरे पीछे पीछे रजनी भी आ गई। उसके चेहरे पर अभी भी डर और घबराहट के भाव तांडव सा करते दिख रहे थे। रजनी की जो हालत थी उससे मुझे यकीन हो चुका था कि वो मुझसे कोई बड़ी बात छुपाना चाहती थी। मेरी नज़रें हर तरफ घूम रहीं थी कि तभी सहसा मुझे कुछ दिखा। कुछ दूरी पर बने दो कमरों में से एक का दरवाज़ा हल्का सा खुला हुआ था और वो कुछ पल मुझे हिलता सा प्रतीत हुआ था। मेरी नज़रें उसी जगह पर जम ग‌ईं। मुझे उस तरफ देखते देख रजनी और भी घबरा गई।

"अरे! खड़ी क्या है?" मैंने पलट कर रजनी से शख़्त लहजे में कहा____"घर आए इंसान से जल पान का भी नहीं पूछेगी क्या?"
"जी...जी माफ़ करना छोटे ठाकुर।" रजनी बुरी तरह हड़बड़ा कर बोली____"आप खटिया पर बैठिए मैं अभी आपके लिए पानी लाती हूं।"

रजनी दूसरी तरफ रखे मटके की तरफ तेज़ी से बढ़ी और इधर मैं उस कमरे की तरफ जिस कमरे का दरवाज़ा हल्का सा खुला हुआ था और थोड़ा सा हिलता प्रतीत हुआ था मुझे। रजनी को कुछ महसूस हुआ तो उसने पलट कर मेरी तरफ देखा। मुझे उस कमरे की तरफ जाता देख वो बुरी तरह घबरा गई। मारे दहशत के उसके माथे पर पसीना उभर आया। पलक झपकते ही उसकी हालत ऐसी हो गई मानो काटो तो खून नहीं। उसके होठ कुछ कहने के लिए खुले तो ज़रूर मगर आवाज़ न निकल सकी। मटके से पानी निकालना भूल गई थी वो।

मैं दरवाज़े के पास पहुंचा और एक झटके से उसे खोल कर अंदर दाखिल हो गया। अंदर दरवाज़े के अगल बगल मैंने निगाह घुमाई तो दाएं तरफ मुझे रूपचन्द्र छुपा खड़ा नज़र आया। मुझ पर नज़र पड़ते ही वो बेजान सा खड़ा रह गया था। मारे डर के उसका चेहरा पीला ज़र्द पड़ गया था। उसकी हालत देख कर मैं मन ही मन मुस्कुराया लेकिन क्योंकि अब उससे और उसके पूरे परिवार वालों से मैंने अपने अच्छे सम्बन्ध बना लिए इस लिए ऐसे वक़्त में उससे कुछ उल्टा सीधा कहना मैंने ठीक नहीं समझा।

"रुपचंद्र तुम, यहाँ??" उसे देख कर मैंने बुरी तरह चौकने का नाटक किया और फिर हल्के से मुस्कुराते हुए कहा____"क्या बात है, लगता है रजनी को पेलने आए थे यहाँ लेकिन मैंने तुम्हारा काम ख़राब कर दिया, है ना?"

"ये...ये क्या कह रहे हो वैभव?" रूपचंद्र बुरी तरह हकलाते हुए बोला____"मैं तो यहाँ ब....।"
"अरे! यार मुझसे डरने की कोई ज़रूरत नहीं है तुम्हें।" मैंने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा____"अब तो तुम मेरे छोटे भाई भी हो और दोस्त भी। वैसे मुझे पहले से ही पता है कि तुम्हारा और रजनी का जिस्मानी सम्बन्ध है। ख़ैर मुझे तुम्हारे इस सम्बन्ध से कोई ऐतराज़ नहीं है और ना ही मैं किसी को बताऊंगा कि तुम्हारा मुंशी की बहू से ऐसा रिश्ता है।"

"क्...क्या तुम सच कह रहे हो वैभव?" रूपचंद्र के चेहरे पर राहत के साथ साथ आश्चर्य के भाव उभरे____"क्या सच में तुम्हें इससे कोई आपत्ति नहीं है?"

"अब कितनी बार तुमसे कहूं भाई?" मैंने मुस्कुरा कर कहा____"ये सब तुम दोनों की रज़ामंदी से हो रहा है तो किसी को इससे क्या समस्या होगी भला? वैसे, तुम्हें पता है मैं भी उस रजनी को दबा के पेलता हूं। साली बड़ी चुदक्कड़ है। हुमच हुमच के चुदवाती है। एक काम करते हैं, चलो हम दोनों मिल के आज उसकी मस्त पेलाई करते है।"

मेरी बात सुन कर रूपचंद्र मुझे इस तरह देखने लगा था जैसे मेरे चेहरे पर अचानक ही उसे आगरे का ताजमहल नज़र आने लगा हो। मैं समझ सकता था कि मौजूदा परिस्थिति में उसका मुझ पर यकीन कर पाना संभव नहीं था लेकिन सच तो उसकी आँखें खुद ही देख रहीं थी और कान सुन रहे थे।

मैं रूपचंद्र को कंधे से पकड़ कर कमरे से बाहर ले आया। मुझे रूपचन्द्र को इस तरह साथ लिए आते देख रजनी एकदम से बुत बन गई थी। भाड़ की तरह मुँह खुला रह गया था। जिस तरह कुछ देर पहले रूपचंद्र का चेहरा मारे डर के पीला पड़ गया था उसी तरह अब रजनी का पीला पड़ गया था।

"इतना लम्बा मुँह क्यों फाड़ लिया अभी से?" मैंने रजनी को होश में लाने की गरज़ से कहा____"पहले हम दोनों के कपड़े तो उतार। उसके बाद हम दोनों तेरे हर छेंद में अपना लंड डालेंगे, क्यों रूपचंद्र?"

मैंने आख़िरी वाक्य रूपचंद्र को देख कर कहा तो वो एकदम से हड़बड़ा गया और फिर खुद को सम्हालते हुए ज़बरदस्ती मुस्कुरा कर बोला____"हां हाँ क्यों नहीं भाई।"

उधर रजनी को काटो तो खून नहीं। उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि उसकी आँखें क्या देख रहीं थी और कान क्या सुन रहे थे। उसे तो शायद ये लगा था कि आज मैं उसकी और रूपचंद्र की मस्त गांड तोड़ाई करुंगा लेकिन अब जो होने जा रहा था उसकी तो उसे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी। बड़ी मुश्किल से उसे होश आया और उसके ज्ञान चच्छू जागे।

मैं जानता था कि हमारे पास समय नहीं है क्योंकि कोई भी यहाँ आ सकता था। मेरी बुलेट भी बाहर ही खड़ी थी और उसे देख कर किसी के भी मन में मुंशी के घर में आने का विचार आ सकता था इस लिए मैंने इस काम को फटाफट करने का सोचा। रजनी को शख़्त लहजे में बोला कि वो पूरी तरह नंगी हो जाए। मेरे कहने पर वो पहले तो झिझकी क्योंकि रूपचंद्र सामने था लेकिन मेरे आगे भला कहां उसकी चलने वाली थी। इस लिए जल्दी ही उसने अपना साड़ी ब्लाउज उतार दिया। रांड ने अंदर ना तो कच्छी पहन रखी थी और ना ही ब्रा। उसकी बड़ी बड़ी छातियां आँगन में आ रही धूप में चमक रहीं थी। जांघों के बीच उसकी चूत घने बालों में छुपी हुई थी। मेरी वजह से जहां रूपचंद्र को ये आलम थोड़ा असहज महसूस करा था वहीं रजनी का भी यही हाल था। वो अपनी छातियों और चूत को छुपाने का प्रयास कर रही थी।

"देखा रूपचंद्र।" मैंने रूपचंद्र को रजनी की तरफ इशारा करते हुए कहा____"ये रांड कितना करारा माल लग रही है। क्या लगता है तुझे, इसकी ये बड़ी बड़ी छातियां कितने लोगों की मेहनत का नतीजा होंगी?"

"म..मैं भला क्या बताऊं वैभव?" रूपचंद्र झिझकते हुए धीमी आवाज़ में बोला तो मैंने उससे कहा____"लगता है तू अभी भी मुझसे डर रहा है यार, जबकि अब हमारे बीच ऐसी कोई बात नहीं होनी चाहिए। अब से हम दोनों पक्के वाले यार हैं और जो कुछ करेंगे साथ ही करेंगे, क्या बोलता है?"

रूपचंद्र मेरी तरफ अपलक देखने लगा। शायद वो मेरे चेहरे के भावों को पढ़ कर ये समझने की कोशिश कर रहा था कि इस वक़्त मैं उससे जो कुछ कह रहा हूं उसके पीछे कितना सच है?

"हद है यार।" मैंने खीझने का नाटक किया____"तुझे अब भी मुझ पर यकीन नहीं हुआ है?"
"नहीं ऐसी बात नहीं है वैभव।" फिर उसने गहरी सांस लेते हुए कहा____"बात ये है कि हमारे बीच इतना जल्दी सब कुछ बदल गया है तो उसे मैं इतना जल्दी हजम नहीं कर पा रहा हूं।"

"अरे! तो पगले इसी लिए तो मैं कह रहा हूं कि हम दोनों मिल के इस रांड को पेलेंगे।" मैंने उसके दोनों कन्धों पर हाथ रख कर समझाते हुए कहा____"जब हम दोनों साथ मिल कर इसके साथ पेलम पिलाई करेंगे तो हमारे बीच सब कुछ खुल्लम खुल्ला वाली बात हो जाएगी। फिर न तुझे मुझसे झिझकने की ज़रूरत होगी और ना इस रांड को।"

रूपचंद्र को देर से ही सही लेकिन मैंने आस्वस्त कर दिया था। उसके बाद मेरे कहने पर रजनी ने फ़ौरन ही हम दोनों के कपड़े उतारे। रूपचंद्र नंगा हो जाने के बाद मेरे सामने थोड़ा शरमा रहा था। अपना मुरझाया हुआ लंड वो अपने ही हाथ से छुपाने की कोशिश कर रहा था जबकि मैं आराम से खड़ा था।

"चल अब पहले रूपचंद्र का लंड मुँह में ले कर चूस।" मैंने रजनी से कहा____"और हाँ थोड़ा जल्दी करना क्योंकि मैं नहीं चाहता कि किसी के आ जाने से हमारा ये खेल ख़राब हो जाए।"

रजनी मरती क्या न करती वाली हालत में थी। उसे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि ये सब आज हो क्या रहा है। उसने घुटनों के बल बैठ कर रूपचंद्र के मुरझाए हुए लंड को पकड़ा तो रूपचंद्र की सिसकी निकल गई। रजनी उसके लंड को पकड़ कर सहलाने लगी जिससे रूपचंद्र को धीरे धीरे आनंद आने लगा और उसने अपनी आँखें बंद कर ली। इधर मैं खुद ही अपने हाथ से अपने लंड को सहला रहा था। कुछ ही देर में रूपचन्द्र का लंड अपने अकार में आ गया। मैंने पहली बार उसके लंड पर नज़र डाली तो ये देख कर मन ही मन हँसा कि इसका तो मेरे लंड का आधा भी नहीं है।

रजनी रूपचंद्र के लंड को मुँह में ले कर चूस रही थी और रूपचंद्र मज़े में उसके सिर को थामे अपनी कमर हिलाए जा रहा था। रजनी अपने सिर को आगे पीछे कर के उसका लंड चूस रही थी। हिलने से उसकी बड़ी बड़ी चूंचियां भी हिल रहीं थी।

"चल अब क्या उसे ऐसे ही झड़ा देगी रांड?" मैंने रजनी से कहा तो दोनों को होश आया। रजनी ने उसका लंड अपने मुख से निकाल कर मेरी तरफ देखा।
"अब इसे भी अपने मुँह में ले कर चूस।" मैंने कहा_____"उसके बाद तेरी पेलाई शुरू करते हैं हम दोनों।"

रजनी चुप चाप मेरी तरफ सरकी और मेरे लंड को पकड़ कर सहलाने लगी। मैंने रूपचंद्र की तरफ देखा। वो आँखें फाड़े मेरे लंड को देख रहा था। मैं मन ही मन मुस्कुराया लेकिन लंड के बारे में उससे कुछ कहना ठीक नहीं समझा क्योंकि ऐसे में वो अपनी कमी महसूस करता। रजनी कुछ पलों तक मेरा लंड सहलाती रही उसके बाद उसने मेरे लंड को मुँह में भर लिया। उसका गरम मुख जैसे ही मेरे लंड के टोपे पर लगा तो मैंने उसकी तरफ देखा। मेरा लंड अभी अपने पूरे अकार में नहीं आया था इस लिए उसे अभी कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। मैंने रजनी के सिर को दोनों हाथों से पकड़ा और उसे अपने लंड की तरफ खींचने लगा। मेरा आधे से ज़्यादा लंड रजनी के मुँह में समां गया जिससे रजनी को झटका लगा और वो मेरी जाँघों को पकड़ कर ज़ोर लगाने लगी। एक तो रजनी के ऊपर पहले से ही मुझे गुस्सा था ऊपर से आज वो फिर से रूपचंद्र से चुदवाने जा रही थी इस लिए मेरे मन में अब उसे ऐसे ही सज़ा देने का ख़याल उभर आया था।

कुछ ही देर में रजनी की हालत ख़राब हो गई। मेरा लंड अपने पूरे आकार में आ चुका था और मैं मजबूती से उसके सिर को पकड़े उसके मुँह में अपने लंड को पेले जा रहा था। आँगन में रजनी के मुँह से निकलने वाली गूं गूं की आवाज़ें गूंजने लगीं थी। रूपचंद्र आश्चर्य से आँखें फाड़े कभी रजनी की हालत को देखता तो कभी मुझे। इधर मुझे रजनी को इस तरह पेलने में बड़ा मज़ा आ रहा था। जब मैंने देखा कि रजनी की आँखों से आंसू निकलने लगे हैं तो मैंने उसे छोड़ दिया। मुँह से लंड निकलते ही रजनी बुरी तरह खांसने लगी। उसके साँसें बुरी तरह उखड़ ग‌ईं थी। उसके थूक और लार से सना हुआ मेरा लंड धूप में अलग ही चमक रहा था। रूपचंद्र मेरे मोटे और लम्बे लंड को देख कर मानो सकते में आ गया था।

"छो...छोटे ठाकुर...खौं खौं...छोटे ठाकुर।" रजनी अपनी उखड़ी साँसों को सम्हालते हुए और खांसते हुए बोली____"आपने तो मेरी जान ही ले ली थी।"
"चिंता मत कर।" मैंने कहा_____"लंड लेने से कोई नहीं मरता, ख़ास कर तेरे जैसी रांड तो बिल्कुल भी नहीं।"

मैंने रूपचंद्र को आँगन में लेटने के लिए कहा तो उसने न समझने वाले भाव से मेरी तरफ देखा। मैंने उसे समझाया कि वो ज़मीन पर सीधा लेट जाए ताकि रजनी उसकी तरफ अपनी पीठ कर के उसके ऊपर लेट जाए। नीचे से वो रजनी की गांड में अपना लंड डाले और उसके बाद मैं ऊपर से रजनी की चूत में अपना लंड डाल कर उसकी चुदाई करुंगा। सारी बात समझ में आते ही रूपचंद्र झट से ज़मीन पर लेट गया। मैंने रजनी को इशारा किया तो वो रूपचंद्र के ऊपर अपनी पीठ कर के लेट गई। घुटनों को उसने ज़मीन पर टिका लिया था और दोनों हाथों को पीछे रूपचंद्र के सीने में। उसके लेटते ही रूपचंद्र ने नीचे से अपने लंड को रजनी की गांड में डाल दिया और फिर अपनी कमर को हिलाने लगा।

खिली धूप में वो दोनों इस आसान में अलग ही नज़ारा पेश कर रहे थे। रजनी की गोरी गोरी लेकिन भारी छातियां रूपचंद्र के धक्के लगाने से हिल रहीं थी। रजनी मुझे ही देख रही थी। मैं वक़्त को बर्बाद न करते हुए आगे बढ़ा और रजनी के ऊपर आसान ज़माने लगा। एक हाथ से अपने लंड को पकड़ कर मैंने रजनी की बालों से भरी चूत पर टिकाया और ज़ोर का झटका दिया जिससे रजनी उछल गई और नीचे उसकी गांड से रूपचंद्र का लंड निकल गया। रूपचंद्र ने जल्दी से अपने लंड को पकड़ कर उसकी गांड में डाला और धीरे धीरे धक्के लगाने लगा। इधर मैं अपने दोनों हाथ ज़मीन पर टिकाए तेज़ तेज़ कमर हिलाने लगा था। रजनी की पानी बहाती चूत पर मेरा लंड सटासट अंदर बाहर हो रहा था जिससे अब रजनी की सिसकियां और दर्द में डूबी आहें निकलने लगीं थी।

रजनी के लिए शायद ये पहली बार था जब वो दो दो लंड एक ही बार में अपनी चूत और गांड में ले रही थी। जल्दी ही वो मस्ती में आ गई और ज़ोर ज़ोर आहें भरने लगी। नीचे से रूपचंद्र अपना पिछवाड़ा उठा उठा कर रजनी की गांड में अपना लंड डाल रहा था और ऊपर से मैं रजनी की चूत को पेले जा रहा था। कुछ देर तक तो गज़ब का रिदम बना रहा लेकिन फिर रूपचंद्र हिच्च बोल गया। वो कहने लगा कि नीचे से कमर उठा उठा कर रजनी की गांड मारने से उसकी कमर दुखने लगी है इस लिए अब वो ऊपर आना चाहता है। मैंने भी सोचा चलो उसकी ही इच्छा पूरी कर देते हैं। जल्दी ही हमने अपना अपना आसन बदला। अब रूपचंद्र की जगह मैं रजनी के नीचे था और रूपचंद्र मेरी जगह पर। एक बार फिर से चुदाई का खेल शुरू हो गया। बीच में फंसी रजनी आँखें बंद किए अलग ही दुनिया में खो गई थी। वो ज़ोर से चिल्ला उठती थी जिससे मुझे उसको कहना पड़ता था कि साली रांड पूरे गांव को घर बुला लेगी क्या।

क़रीब दस मिनट भी न हुआ था कि रूपचंद्र बुरी तरह आहें भरते हुए रजनी की चूत में झड़ गया और उसके ऊपर पसर कर बुरी तरह हांफने लगा।

"क्या हुआ रूपचंद्र जी?" रजनी ने हांफते हुए किन्तु हल्की मुस्कान में कहा____"इतने में ही दम निकल गया तुम्हारा?"
"साली कुतिया।" रूपचंद्र उसके ऊपर से उठते हुए बोला____"मेरा दम निकल गया तो क्या हुआ, मेरा दोस्त तो लगा हुआ है न?"

"छोटे ठाकुर तो अपने दम पर लगे हुए हैं।" रजनी ने आहें भरते हुए कहा____"मैं तुम्हारी बात कर रही हूं। क्या तुम में भी छोटे ठाकुर जितना दम है?"

"साली रांड ये क्या बकवास कर रही है?" मैंने उसे अपने ऊपर से हटाते हुए कहा____"रुक अभी बताता हूं तुझे।"
"इस बुरचोदी की गांड फाड़ दो वैभव।" रूपचंद्र ने इस बार आवेश में आ कर कहा_____"इसके अंदर बहुत गर्मी भरी हुई है।"

मैंने रजनी को खटिया की बाट पर हाथ रख कर झुकने को कहा तो वो झुक गई। पीछे उसकी गांड उभर कर आ गई थी। मैंने जल्दी जल्दी चार पांच थप्पड़ उसकी गांड पर मारे जिससे वो दर्द से सिहर उठी। उसके बाद मैंने उसकी गांड को फैला कर अपने लंड को उसकी गांड के छेंद पर टिकाया और एक ही झटके में पूरा डाल दिया।

"आह्ह्ह्ह मररर गईईईई मां।" रजनी की दर्द भरी चीख फ़िज़ा में गूँज गई____"धीरे से डालिए...आह्ह्ह्ह मेरी गांड फट गई छोटे ठाकुर?"
"क्या हुआ रांड?" मैंने उसकी गांड पर ज़ोर का थप्पड़ लगाते हुए कहा____"दम निकल गया क्या तेरा?"

"आह्ह्ह्ह आपके ही करने से तो दम निकल जाता है मेरा।" रजनी आहें भरते हुए बोली____"आपका लंड किसी घोड़े के लंड से कम नहीं है। चूत और गांड में जब जाता है....आह्ह्ह्ह तो ऐसा लगता है जैसे किसी ने गरमा गरम सरिया डाल दिया हो।"

"रुपचंद्र खटिया पर चढ़ो तुम।" मैंने रूपचंद्र से कहा____"और इसके मुँह में अपना लंड डालो। साली बहुत बोलती है।"
"अभी डालता हूं इस साली के मुँह में।" रूपचंद्र अपने लंड को सहलाते हुए फ़ौरन ही खटिया में चढ़ गया और रजनी के सिर को बालों से पकड़ कर उठाया। रजनी मेरी बात सुन चुकी थी इस लिए उसने अपना मुँह खोल दिया जिससे रूपचंद्र ने अपना लंड गप्प से उसके मुँह में डाल दिया।

एक तरफ से रूपचंद्र रजनी के सिर को पकड़े उसके मुँह की पेलाई कर रहा था और दूसरी तरफ से मैं रजनी की गांड फाड़ रहा था। सहसा मैंने अपना लंड उसकी गांड से निकाला और पलक झपकते ही नीचे उसकी चूत में एक झटके से डाल दिया। रजनी दर्द से कराही लेकिन मुँह में रूपचन्द्र का लंड होने की वजह से उसकी आवाज़ दब कर रह गई। मैं भीषण गति से उसकी चूत को चोदे जा रहा था। जल्दी ही रजनी का जिस्म थरथराता महसूस हुआ और फिर वो झटके खाते हुए झड़ने लगी। झड़ते वक्त वो बुरी तरह चिल्लाने लगी थी लेकिन रूपचंद्र ने जल्दी से उसके मुंह में अपना लंड घुसा दिया था। उसकी चूत का गरम पानी मेरे लंड को भिगोता चला गया मगर मैं रुका नहीं बल्कि तेज़ तेज़ लगा ही रहा। रूपचंद्र हैरानी से मुझे देख रहा था। कभी कभी मेरी नज़र उससे मिलती तो वो अपनी नज़रें हटा लेता था। शायद खुद को मुझसे कमज़ोर समझने लगा था जिससे वो नज़रें नहीं मिला पा रहा था।

"आह्ह्ह छोटे ठाकुर रुक जाइए थोड़ी देर।" रजनी रूपचंद्र का लंड मुँह से निकाल कर बोल पड़ी थी____"मुझे बहुत तेज़ जलन हो रही है...आह्ह्ह रुक जाइए कुछ देर के लिए।"

"चिंता मत कर बुरचोदी।" मैंने उसकी गांड में ज़ोर का थप्पड़ लगाते हुए कहा____"तेरी जलन को मैं अपने लंड के पानी से बुझा दूंगा।"
"आह्ह्ह छोटे ठाकुर।" रजनी दर्द से बोली____"झुके झुके मेरी कमर दुखने लगी है। आह्ह्ह भगवान के लिए थोड़ी देर रुक जाइए। मैं विनती करती हूं आपसे।"

"क्या बोलता है रूपचंद्र?" मैंने खटिया में खड़े रूपचंद्र से कहा____"छोड़ दूं उसे?"
"छोड़ ही दो यार।" रूपचंद्र ने रजनी की तरफ देखते हुए कहा____"इसके चेहरे से लग रहा है कि ये तकलीफ़ में है।"

मैंने एक झटके से अपना लंड रजनी की चूत से निकाल लिया। रजनी फ़ौरन ही सीधा खड़ी हो गई लेकिन अगले ही पल वो लड़खड़ा कर वापस खटिया पर झुक गई। शायद इतनी देर में उसके खून का दौड़ान रुक गया था या फिर उसकी कमर अकड़ गई थी। कुछ देर वो खटिया की बाट को पकड़े झुकी हुई गहरी गहरी साँसें लेती रही उसके बाद वो खड़ी हो कर खटिया में ही बैठ गई और मेरी तरफ देखते हुए गहरी गहरी साँसें लेती रही।

"अब इसको क्या तेरी अम्मा आ के शांत करेगी रांड?" मैंने शख़्त भाव से कहा तो रजनी ने जल्दी से मेरे लंड को पकड़ लिया और सिर को आगे कर के उसे मुँह में भर लिया।

उसके बाद रजनी की ना चूत में लंड डलवाने की हिम्मत हुई और ना ही गांड में। उसने मेरे लंड को चूस चूस कर ही मुझे शांत किया। इस बीच रूपचंद्र मेरी क्षमता देख कर बुरी तरह हैरान था। रजनी को पेलने के बाद हम दोनों ने अपने अपने कपड़े पहने और घर से बाहर आ गए। रजनी खटिया पर ही बैठी रह गई थी। उसमें उठ कर बाहर दरवाज़ा बंद करने के लिए आने की शक्ति नहीं थी।

बाहर आ कर मैं बुलेट में बैठ गया और रूपचंद्र से पूछा कि मेरे साथ घर चलेगा या उसका कहीं और जाने का इरादा है? मेरी बात सुन कर रूपचंद्र मुस्कुराते हुए बोला दोस्त अब तो घर ही जाऊंगा। उसके बाद मैं और रूपचन्द्र बुलेट से चल पड़े। थोड़ी ही दूरी पर उसका घर था इस लिए वो उतर गया और बाद में मिलने का बोल कर ख़ुशी ख़ुशी चला गया। मैं रास्ते में सोच रहा था कि अब रूपचंद्र मुझसे खुल गया है तो यकीनन अब वो ज़्यादातर मेरे साथ ही रहना पसंद करेगा। अगर ऐसा हुआ तो एक तरह से वो मेरी निगरानी में ही रहेगा। धीरे धीरे मैं इन सभी भाइयों से इसी तरह घुल मिल जाना चाहता था ताकि इनके मन से मेरे प्रति हर तरह का ख़याल निकल जाए। ये सब करने के बाद मैं अपने उस कार्य को आगे बढ़ाना चाहता था जिसके बारे में मैंने काफी पहले सोच लिया था।



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Bahot khoob shaandaar update bhai
 
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