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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 18 9.7%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 21 11.4%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 73 39.5%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 42 22.7%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 31 16.8%

  • Total voters
    185

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,533
34,463
219

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,744
354
☆ प्यार का सबूत ☆
अध्याय - 06
----------☆☆☆---------

अब तक,,,,,

कहने के साथ ही काकी हिचकियां ले कर रोने लगी थी। उसके साथ अनुराधा भी रोने लगी थी। इधर मैं ये सोच रहा था कि रात के उस वक़्त नशे की हालत में मुरारी काका घर के पीछे कैसे आएंगे होंगे? क्या वो खुद चल कर आये थे या फिर नशे ही हालत में उन्हें कोई और उठा कर घर के पीछे ले गया था? लेकिन सवाल ये है कि अगर कोई और ले गया था तो काकी या अनुराधा को इसका पता कैसे नहीं चला? सबसे बड़ी बात ये कि क्या उस वक़्त घर का दरवाज़ा अंदर से बंद नहीं था? मुरारी काका की हालत ऐसी नहीं थी कि वो खुद चल कर घर के पीछे तक जा सकें।

अब आगे,,,,,

मेरा सिर चकराने लगा था मगर कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मुझे याद आया कि कल रात जब मैं यहाँ से अपने झोपड़े के लिए निकला था तो रास्ते में मैं किसी आवाज़ को सुन कर रुक गया था और फिर कुछ देर में मुझे किसी ने ज़ोर का धक्का मारा था। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या उस अंजान ब्यक्ति का मुरारी काका की हत्या से सम्बन्ध हो सकता है? आख़िर कौन था वो और उस वक़्त वो वहां पर क्या करने गया था? इसके पहले तो कभी ऐसा कुछ नहीं घटित हुआ था फिर कल रात ही ऐसा क्यों हुआ था?

मुरारी काका की हत्या उसी अंजान ब्यक्ति ने की थी ऐसा मेरा अनुमान था बांकी कोई और मेरे ज़हन में नहीं आ रहा था किन्तु सबसे बड़ा सवाल यही था कि वो अंजान और रहस्यमय ब्यक्ति था कौन?

"क्या किसी ने पुलिस में इसकी रिपोर्ट की?" फिर मैंने दिमाग़ से सारी बातों को झटकते हुए काकी से पूछा____"अब तक तो पुलिस को यहाँ पर आ जाना चाहिए था और इस मामले को उसे अपने हाथ में ले लेना चाहिए था।"

"जगन कुछ लोगों को ले कर रपट लिखवाने तो गया था।" सरोज काकी ने कहा____"पर एक घंटा हो गया और अभी तक पुलिस का दरोगा नहीं आया । क्या हम इनकी अर्थी को यहाँ पर ऐसे ही रखे रहेंगे?"

"अगर जगन काका ने थाने में रिपोर्ट की होगी तो दरोगा ज़रूर आएगा काकी।" मैंने कहा____"थोडी देर इंतज़ार करो।"
"और कितना इंतज़ार करें बेटा?" सरोज काकी ने दुखी भाव से कहा____"इतनी देर तो हो गई मगर अभी तक कोई पुलिस वाला नहीं आया। मैं सब समझती हूं। हम गरीबों की कोई सुनने वाला नहीं है। जिसने मेरे मरद की हत्या की है उसने दरोगा को रूपिया खिला दिया होगा। तभी तो दरोगा अभी तक नहीं आया। मेरे मरद के हत्यारे का कोई पता नहीं लगाएगा और ना ही उसे कोई सज़ा देगा।"

"ऐसा नहीं होगा काकी।" मैंने शख़्त भाव से कहा____"अगर पुलिस मुरारी काका के हत्यारे का पता नहीं लगाएगी तो मैं खुद उनके हत्यारे का पता लगाऊंगा।"

"नहीं बेटा।" सरोज काकी ने झट से कहा____"तुम इस झमेले में मत पड़ो। मैं नहीं चाहती कि इस लफड़े की वजह से तुम पर कोई मुसीबत आ जाए। वैसे भी मेरा मरद तो अब मुझे वापस मिलेगा नहीं। धीरे धीरे सब भुला देंगे कि मेरे मरद के साथ क्या हुआ था।"

"मैं किसी लफड़े से नहीं डरता काकी।" मैंने गर्मजोशी से कहा____"मैं मुरारी काका के हत्यारे का पता लगा के रहूंगा, क्योंकि उनकी हत्या के लिए मुझ पर भी इल्ज़ाम लगाया गया है। इस लिए मैं हर कीमत पर ये पता कर के रहूंगा कि मुरारी काका की इस तरह से हत्या किसने की है और उनकी हत्या में मुझे किसने फंसाया है?"

सरोज काकी और अनुराधा मेरी बातें सुन कर मेरी तरफ देखती रह गईं थी। उसके बाद सरोज काकी ने मुझसे इस बात के लिए माफ़ी मांगी कि मुरारी काका की हत्या की वजह से उसके देवर जगन ने मुझे उल्टा सीधा बोला था।

मैं सरोज काकी के घर में करीब एक घंटे तक रहा मगर कोई पुलिस वाला नहीं आया। ये देख कर मैं सोच में पड़ गया था कि कहीं सरोज काकी की बातें सच तो नहीं हैं? क्या सच में हत्यारे ने पुलिस को रूपिया खिला दिया होगा और मुरारी काका की हत्या के इस मामले को दबा दिया होगा? मेरे मन में सवाल उभरा कि ऐसा कौन कर सकता है? हत्या जैसा संगीन अपराध करने के बाद ऐसा कौन है जो पुलिस को इस हत्या की जांच करने से ही रोक दे? अगर सच में ऐसा ही था तो ऐसा काम कोई साधारण आदमी नहीं कर सकता था। ज़रूर कोई ऐसा ब्यक्ति होगा जिसका दबदबा पुलिस और कानून पर है। जहां तक मैं जानता था ऐसा इंसान आस पास के गांव में कोई नहीं था तो फिर कौन हो सकता है?

मैं ये सोच ही रहा था कि एकदम से मेरे दिमाग़ की बत्ती जल उठी और मेरे ज़हन में जो नाम उभर कर आया वो नाम खुद मेरे बाप का था___ठाकुर प्रताप सिंह। आस पास के गांवों में एक मेरा बाप ही ऐसा था जिसका दबदबा पुलिस पर ही नहीं बल्कि शहर के बड़े बड़े लोगों पर भी था। मेरे मन में सवाल उभरा कि क्या ऐसा करने वाला शख़्स मेरा बाप ही हो सकता है? वो बड़ी आसानी से मुरारी की हत्या के मामले को पुलिस के द्वारा दबा सकते थे। अब सवाल ये था कि उन्होंने मुरारी की हत्या क्यों करवाई होगी? अगर उन्हें मुरारी से कोई समस्या थी तो वो मुरारी काका को पहले अपने तरीके से समझा बुझा सकते थे जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ था। अगर हुआ होता तो मुरारी काका मुझसे इस बात का ज़िक्र ज़रूर करते।

मैं बुरी तरह उलझ कर रह गया था और किसी भी नतीजे पर नहीं पहुंच पा रहा था। अभी मैं इन सब बातों को सोच ही रहा था कि तभी बाहर से जगन कुछ लोगों के साथ अंदर आया और मेरे सामने आ कर खड़ा हो गया।

"देख लिया छोटे ठाकुर?" जगन ने अजीब भाव से कहा____"सुबह मैं अपने भाई की रपट लिखाने के लिए थाने गया था और दरोगा को सब कुछ बताया भी था, किन्तु देख लो सुबह से दोपहर हो गई और दरोगा अभी तक नहीं आया। इसका मतलब तो तुम भी खूब समझते होगे छोटे ठाकुर।"

"कहना क्या चाहते हो तुम?" मैंने कठोर भाव से उसकी तरफ देखते हुए कहा।
"मैं कहना कुछ नहीं चाहता छोटे ठाकुर।" जगन ने अपना एक हाथ झटकते हुए कहा____"मगर समझ में सबके आ रहा है कि इसका मतलब क्या है। तुम मेरे भाई की तरह मेरी भी हत्या कर दो मगर मैं ये चीख चीख कर कहूंगा कि तुमने ही मेरे भाई की हत्या की है और तुम्हारे पिता ठाकुर प्रताप सिंह ने तुम्हें मेरे भाई की हत्या के जुर्म से बचाने के लिए थाने में दरोगा को रूपिया खिला दिया है। अगर ऐसा न होता तो दरोगा यहाँ बहुत पहले ही आ चुका होता।"

"तुम्हें जो सोचना है सोचते रहो।" मैंने जगन से कहा___"मैं और मेरा भगवान जानता है कि मैंने मुरारी काका की हत्या नहीं की है। इसके बावजूद अगर तुम और तुम्हारे गांव वाले इस हत्या का दोषी मुझे मानते हैं तो मैं वादा करता हूं तुमसे कि मुरारी काका के असल हत्यारे का पता मैं खुद लगाऊंगा।"

कहने के साथ ही मैं दरवाज़े की तरफ बढ़ा तो पीछे से जगन ने कहा___"मैं अब और अपने भाई की लाश को इस तरह यहाँ नहीं रख सकता। दरोगा को आना होता तो कब का आ जाता। इस लिए मैं अपने भाई का अब अंतिम संस्कार करने जा रहा हूं। बाद में अगर दरोगा आया और उसने कोई लफड़ा किया तो उसके जिम्मेदार भी तुम ही होगे।"

मैं जगन से बिना मतलब की बहस नहीं करना चाहता था इस लिए बिना कुछ बोले ही मैं मुरारी काका के घर से निकल कर अपने खेत की तरफ चला गया। रास्ते में मैं यही सोच रहा था कि अगर सच में थाने के दरोगा को हत्यारे ने रूपिया खिला कर इस मामले को दबा दिया होगा तो क्या मैं खुद इतनी आसानी से मुरारी के हत्यारे का पता लगा पाऊंगा? क्योंकि उस सूरत में संभव था कि मेरे लिए खुद कोई बड़ी मुसीबत हो जाए। हत्यारा किसी भी हाल में नहीं चाहेगा कि मैं उसका पता लगाऊं और उसे सबके सामने लाऊं। इसके लिए वो कुछ भी कर सकता था मेरे साथ। इसका मतलब ये हुआ कि अगर मैं मुरारी के हत्यारे का पता लगाता हूं तो मुझे खुद बहुत ही ज़्यादा सतर्क और सावधान रहना होगा।

मैं यही सब सोचते हुए अपने झोपड़े के करीब पंहुचा ही था कि मेरी नज़र आसमान की तरफ जाते हुए भीषण धुएं पर पड़ी। सामने कुछ पेड़ थे इस लिए ठीक से कुछ दिख नहीं रहा था मगर इतने भयंकर धुएं को देख कर मेरे मन में बुरे बुरे ख़याल आने लगे और फिर एकदम से मेरे मस्तिष्क में बिजली की तरह ख़याल आया कि ये धुआँ कहीं मेरी गेहू की फसल जलने का तो नहीं? ये ख़याल दिमाग़ में आते ही मैं तेज़ी से खेत की तरफ दौड़ पड़ा और जैसे ही मेरी नज़र मेरे खेत के उस भाग पर पड़ी जिस भाग पर मैंने गेहू की पुल्लियों का गड्ड जमा किया था मेरे होश उड़ गए।

चार महीने में अपनी जी जान लगा कर जिस फसल को मैंने उगाया था वो भयानक आग की लपटों में घिरी धू धू कर के जल रही थी और मैं सिर्फ देखने और तड़पने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। अपनी इतनी मेहनत से उगाई गई फसल को मैं पत्थर की मूरत बना बस देखे जा रहा था। एक तरफ मेरी फसल जल रही थी और दूसरी तरफ मेरा दिल मेरा जिस्म जलने लगा था। इस भयानक मंज़र को देख कर जैसे मेरे अंदर से मेरे प्राण ही निकल गए थे। वो फसल मेरा प्राण ही तो थी जिसे मैंने पिछले चार महीनों में अपना खून पसीना बहा कर उगाया था और वही फसल मेरी आँखों के सामने जल कर ख़ाक होती जा रही थी। मेरा जी चाहा कि मैं दहाड़ें मार कर रोना शुरू कर दूं और जिसने भी ये किया था उसे भी इसी आग में डाल कर ख़ाक में मिला दूं।

सूखी हुई गेहू की फसल को जल कर ख़ाक होने में ज़रा भी वक़्त नहीं लगा। आसमान तक उठता हुआ आग और धुआँ धीरे धीरे शांत पड़ता चला गया मगर अब मेरे अंदर उससे भी ज़्यादा आग जलने लगी थी। मैं किसी भी कीमत पर उस इंसान को खोज लेना चाहता था जिसने मुझसे अपनी दुश्मनी मेरी फसल को जला कर निकाली थी किन्तु सबसे पहला सवाल तो यही था कि किसने किया था ये सब? आख़िर मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था जो किसी ने मेरे साथ ऐसा किया था? अगर किसी की मुझसे कोई दुश्मनी ही थी तो सामने आ कर मुझसे मुकाबला करता। यूं कायरों की तरह फसल जला कर कौन सी मर्दानगी दिखाई थी उसने?

किसी हारे हुए जुवांरी की तरह बेबस और लाचार सा मैं खेत के किनारे पर ही बैठ गया। अपनी मेहनत को इस तरह जल कर ख़ाक में मिलते देख मेरी आँखों से आँसू छलक पड़े। ऊपर बैठे भगवान से मैंने मन ही मन पूछा कि इस फसल ने किसी का क्या बिगाड़ा था प्रभू? अगर किसी का कुछ बिगड़ा था तो मुझसे बोलता। फिर ऐसा क्यों करवाया तुमने?

जाने कितनी ही देर तक मैं बेजान सा वहीं पर बैठा रहा। इन चार महीनों से मैं अपनी उस फसल के सहारे ही तो यहाँ रह रहा था मगर अब ना तो कोई सहारा बचा था और ना ही कोई मकसद। दिलो दिमाग़ तो जैसे कुंद सा पड़ गया था। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि मुझे इस तरह से बर्बाद करने वाला कौन था और उसने ऐसा क्यों किया था?

अपनी आंखों में दहकते हुए अंगारे और अंदर गुस्से का जवालामुखी भड़काये मैं उठा और पलट कर झोपड़े की तरफ बढ़ चला। अभी कुछ क़दम ही आगे बढ़ा था कि मेरी नज़र दूर से आते हुई एक बग्घी पर पड़ी। बग्घी में बैठे हुए दो इंसानों को मैंने अच्छी तरह पहचान लिया। चार महीने बाद अब ये क्यों हो रहा था? मेरे घर परिवार का कोई सदस्य क्यों मेरी तरफ बढ़ा चला आ रहा था। सच कहूं तो अपने घर परिवार के लोगों से इतनी नफ़रत हो गई थी मुझे कि अब मैं उनमे से किसी की भी शक्ल नहीं देखना चाहता था। इस वक़्त मैं नहीं चाहता था कि मेरे घर का कोई सदस्य मेरे गुस्से का शिकार हो जाये पर कदाचित होनी को कौन टाल सकता था? थोड़ी ही देर में वो बग्घी मेरे झोपड़े के पास आ कर रुकी और बग्घी में बैठे मेरे घर के दोनों सदस्य बग्घी से उतर कर मेरे सामने आ ग‌ए। उन दोनों सदस्यों में एक मेरी माँ थी और दूसरा मेरा बड़ा भाई ठाकुर अभिनव सिंह।

"ये क्या हालत बना रखी है तुमने मेरे बेटे?" माँ ने तड़प कर मुझसे कहा____"चल घर चल। मैं तुझे लेने आई हूं।"
"माफ़ करना मैं ठाकुर खानदान के किसी भी सदस्य को नहीं जानता।" मैंने अपने गुस्से को किसी तरह काबू करते हुए शख़्त भाव से कहा____"और ना ही अब कभी जानना चाहता हूं। इस लिए बेहतर होगा कि आप लोग यहाँ से चले जाएं।"

"ये तू किस लहजे में बात कर रहा है वैभव?" मेरे भाई ने शख़्त भाव से कहा____"अपने से बड़ों का आदर करना आज भी नहीं आया तुझे।"
"और आगे भी मुझसे किसी आदर की उम्मीद मत रखना।" मैंने भाई की आँखों में आँखें डाल कर कहा____"अगर अपने इज्ज़त सम्मान की इतनी ही परवाह है तो यहाँ नहीं आना चाहिए आपको।"

"तुझे मैंने मना किया था ना कि तू इससे कोई बात नहीं करेगा?" माँ ने भाई को डांटते हुए कहा____"तू भी अपने बाप की तरह इज्ज़त और सम्मान का झूठा टोकरा लिए फिरता है। किसी दिन सोचा है कि अपने छोटे भाई को एक बार देख आंऊ कि वो किस हाल में है?" कहने के साथ ही माँ ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"तू इसकी बातों पर ध्यान मत दे बेटा। तू मेरे साथ घर चल। तू नहीं जानता कि जब से तू यहाँ आया है तब से मेरी क्या हालत थी? ठाकुरों के गुरूर के आगे किसी का बस नहीं चलता। वो ये नहीं समझ सकते कि उनके द्वारा ऐसा करने से एक माँ पर क्या गुज़रती है? तू अब घर चल बेटा। मैं अब और तुझे यहाँ नहीं रहने दूंगी।"

"सुना है औलाद पर अपने माता पिता का कर्ज़ होता है।" मैंने सपाट लहजे में कहा____"जिसे औलाद को चुकाना पड़ता है। बाप ने तो औलाद को कर्ज़ चुकाने का अवसर ही नहीं दिया बल्कि घर गांव से निष्कासित कर के खुद ही अपना कर्ज़ वसूल कर लिया है। अब रह गया माता का कर्ज़ तो तुम मेरी जान मांग लो माता श्री, मैं ख़ुशी से अपनी जान दे दूंगा मगर ये वैभव सिंह उस हवेली की दहलीज़ पर अब कभी अपने क़दम नहीं रखेगा....इस जनम में तो हरगिज़ भी नहीं।"

"ये तू क्या कह रहा है मेरे लाल?" माँ की आँखों से आँसू बह चले____"इतना कठोर कैसे हो सकता है मेरा खून? नहीं नहीं तू ऐसा नहीं कर सकता। तू अभी और इसी वक़्त मेरे साथ घर चलेगा।"

"मैंने तो ये सोच लिया था माता श्री।" मैंने सपाट लहजे से ही कहा____"कि अपने बाप की इज्ज़त और खोखले गुरूर को एक दिन मिट्टी में मिला दूँगा मगर अब ऐसा नहीं करुंगा। जानती हैं क्यों? क्योंकि ऐसा ना कर के अब मैं अपनी माता का क़र्ज़ भी चुकाऊंगा। अब हमारे बीच कुछ नहीं रह गया। इस लिए जाइये माता श्री। आपके खानदान का वंश चलाने के लिए आपका एक बेटा तो है ही।"

मैने ये कहा ही था कि माँ ने आगे बढ़ कर मेरे गाल पर खींच के एक थप्पड़ रसीद कर दिया, फिर रोते हुए बोलीं____"बेशरम, ऐसी बातें सोच भी कैसे सकता है तू?

माँ ने मुझे थप्पड़ मार दिया था और थप्पड़ मार कर खुद सिसकने लगीं थी। उनके थप्पड़ मार देने से मेरे अंदर जो आग जल रही थी वो और भी ज़्यादा भड़क उठी थी जिसे मैंने बड़ी ही मुश्किल से सम्हाला। मेरा बड़ा भाई मुझे इस तरह देख रहा था जैसे वो मुझे कच्चा चबा जाएगा। हालांकि मुझे उसके इस तरह देखने से घंटा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला था किन्तु माँ के थप्पड़ पर और उनकी बात पर मैं बोला कुछ नहीं। उधर कुछ देर सिसकने के बाद माँ ने मेरी तरफ करुण भाव से देखा।

"एक मैं ही नहीं बल्कि सारा गांव ये समझता है कि तुम्हारे पिता ने तुम्हे इस तरह गांव से निष्कासित कर के ठीक नहीं किया था।" माँ ने कहा____"और ये बात खुद ठाकुर साहब भी कबूल करते हैं कि उन्होंने ऐसा कर के ग़लत किया था मगर अपने फैसले को तुरंत ही बदल देना उनके बस में नहीं था। उस दिन के बाद से उनके चेहरे का तेज़ जैसे बुझ ही गया है। वो अपने फैसले के लिए दुखी हो गए थे और जिस इंसान को मैंने हमेशा गर्व से अपना सर उठाए ही देखा था उस इंसान को अपने उस फैसले के बाद से बेहद थका हुआ और बेबस सा देखा है मैंने। तू ये समझता है कि इतने महीनों में कोई तुझे देखने नहीं आया तो तू ग़लत समझता है बेटे। मुझे उनसे कुछ कहने की ज़रूरत ही नहीं पड़ी थी और उन्होंने तेरी सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर दिया था जिससे कि यहाँ अकेले रहते हुए तुझ पर कोई मुसीबत न आए। जब तू यहाँ रात में अपने इस झोपड़े पर सो जाता था तो तेरी सुरक्षा के लिए तेरे पिता जी गुप्त रूप से अपने आदमियों को यहाँ पहरे पर लगा देते थे।"

मां की बातें सुन कर मैं मन ही मन बुरी तरह चौंका। मेरे अंदर जल रही आग मुझे ठंडी पड़ती महसूस हुई और मैं सोचने पर मजबूर हो गया था कि क्या सच में ऐसा ही था या माँ मुझे घर ले जाने के लिए मुझसे ये सब झूठी बातें कह रहीं थी?

"मां बाप कभी भी अपनी औलाद का बुरा नहीं सोचते बेटा।" मुझे ख़ामोश देख कर माँ ने बड़े प्यार से कहा____"औलाद चाहे जैसी भी हो वो अपने माँ बाप के लिए अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी होती है। माँ बाप अगर औलाद पर किसी तरह की शख़्ती करते हैं तो उसके पीछे अपनी औलाद के लिए भलाई की भावना ही छिपी होती है। मैं तुझसे किसी बात के लिए शिकायत नहीं कर रही बेटा, बल्कि तुझे वो दिखाने का प्रयास कर रही हूं जो तुझे कभी दिखा ही नहीं।" कहने के साथ ही माँ आगे बढ़ी और मेरे चेहरे को अपने हाथों से सहलाते हुए कहा____"मैं चाहती हूं कि मेरा बेटा सब कुछ भुला कर अपनी माँ के साथ घर चले। तू नहीं जानता कि तेरे बिना वो घर वो हवेली कितनी वीरान लगती है। तूने उस दिन अपनी भाभी को गुस्से में दुत्कार दिया था जिससे वो घर आ कर बहुत रोई थी और दो दिनों तक खाना नहीं खाया था उसने। किसी को सज़ा देना बहुत आसान होता है बेटा मगर किसी को प्यार दे कर उसे खुश रखना बहुत ही मुश्किल होता है।"

मां की बातें बिजली बन कर मेरे दिल को चीरती जा रही थी और मेरे दिलो दिमाग़ को जैसे झकझोरती भी जा रहीं थी। मेरे अंदर विचारों की आँधियां सी चलने लगीं थी जिसे रोक पाना मेरे बस में नहीं था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये एकदम से मुझे क्या होने लगा था। मेरे दिल में तो अपने घर परिवार के सदस्यों की शक्ल तक देखने की हसरत बाकी नहीं रही थी और उनके लिए गुस्सा और नफ़रत ही भरा हुआ था किन्तु अब मेरे अंदर से वो गुस्सा और वो नफ़रत बड़ी तेज़ी से गायब होती जा रही थी। मेरे दिलो दिमाग़ में जैसे एक द्वन्द सा चलने लगा था और मैं पूरी कोशिश कर रहा था कि इस द्वन्द से खुद को आज़ाद कर लूं मगर मैं अपनी इस कोशिश में कामयाब नहीं हो पा रहा था।

"मैं जानती हूं मेरे बेटे कि जो कुछ हुआ है उससे तेरे दिल में हम सभी के लिए गुस्सा और नफ़रत भर गई है।" मेरी ख़ामोशी को देख माँ ने जैसे मुझे समझाते हुए कहा____"यही वजह थी कि तूने उस दिन अपनी भाभी से गुस्से में बात की और उसे दुत्कार दिया था। उसके बाद जब तेरे पिता जी आये तो तूने उनसे भी ऐसी बातें की जो शायद ही आज तक किसी बेटे ने अपने पिता से की हों। तेरा गुस्सा और तेरी नाराज़गी जायज़ थी बेटा लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि हम गुस्से में बहुत कुछ ऐसा बोल जाते हैं जिसके लिए बाद में हमें बेहद पछतावा होता है। इसी लिए बड़े बुजुर्ग कहते हैं कि बिना सोचे समझे और बिना सच को जाने कभी भी ऐसी बातें नहीं बोलनी चाहिए क्योंकि जब बाद में हमें असलियत का पता चलता है तो हम खुद की ही नज़रों से गिर जाते हैं। मैं नहीं चाहती कि मेरे बेटे को ऐसा दिन देखना पड़े। ख़ैर छोड़ ये सब बातें और चल मेरे साथ। मैं तुझसे वादा करती हूं कि अब से वही होगा जो तू कहेगा।"

"आप जाइये मां।" मैंने गहरी सांस लेते हुए कहा। इस वक़्त मेरा ज़हन एकदम से शांत सा हो गया था। ये अलग बात थी कि कोई चीज़ बड़ी शिद्दत से मेरे दिलो दिमाग़ को हिलाये दे रही थी। इस लिए कुछ सोच कर मैंने कहा_____"मैं शाम को आ जाऊंगा।"

"शाम को नहीं बेटे।" माँ ने ब्याकुल भाव से कहा____"तू अभी मेरे साथ ही घर चलेगा। मैं तुझे लिए बिना यहाँ से नहीं जाऊंगी।"
"ज़िद मत कीजिये मां।" मैंने बेचैन लहजे में कहा____"मैंने कह दिया ना कि शाम को आ जाऊंगा तो आ जाऊंगा। अभी आप जाइये।"

मेरे ऐसा कहने पर माँ मेरी तरफ बड़े ग़ौर से देखने लगीं। जैसे परख रही हों कि मेरी बातों में कोई सच्चाई है या मैं यूं ही उन्हें जाने को कह रहा था? मैं उन्हीं को देख रहा था। ख़ैर कुछ देर मेरे चेहरे के भावों को पढ़ने के बाद माँ ने कहा____"ठीक है मैं जा रही हूं लेकिन अगर तू शाम को घर नहीं आया तो सोच लेना। अपनी इस माँ का मरा हुआ मुँह देखेगा तू।"

ये कहते हुए माँ की आँखें एक बार फिर से भर आईं थी जिन्हें उन्होंने अपनी साड़ी के पल्लू से पोंछा और फिर पलट कर बग्घी की तरफ बढ़ ग‌ईं। उनके पीछे पीछे मेरा बड़ा भाई भी चल पड़ा था। उसने दूसरी बार मुझसे कुछ भी कहने की ज़रूरत नहीं समझी थी।

मां और भाई के जाने के बाद मैं वहीं अपने झोपड़े के बाहर बने माटी के चबूतरे पर बैठ गया था। मैंने सपने में भी नहीं सोचा था कि ऐसा भी वक़्त आ जायेगा जब मेरे अंदर का गुस्सा और नफ़रत इस तरह से छू मंतर हो जाएगी। मैं समझ नहीं पा रहा था कि ये कोई ईश्वर का चमत्कार था या मेरी माँ की बातों का गहरा असर पड़ा था मुझ में?

मैंने माँ को इस लिए वापस भेज दिया था ताकि मैं अकेले में बैठ कर उनकी बातों के बारे सोच सकूं और फिर उस सब के बारे में भी सोच सकूं जिसके बारे में सोचने की कभी ज़रूरत ही नहीं समझी थी मैंने।

किसी ने सच ही कहा है कि वैसा कभी नहीं होता जैसा हम चाहते हैं बल्कि अक्सर वही होता है जैसा ईश्वर चाहता है और ईश्वर जो चाहता है उसका हम इंसान कभी तसव्वुर भी नहीं कर सकते। ईश्वर के खेल बड़े निराले हैं। सब कुछ उसके हाथ में है। सब कुछ उसके बस में है। वो असंभव को संभव और संभव को असंभव बना देने की क्षमता रखता है। भला मैं ये कल्पना कहां कर सकता था कि जिस परिवार से मैं नफ़रत करता था और जिस घर की दहलीज़ पर इस जनम में न जाने की मैं सोच के बैठ गया था आज उन्हीं लोगों के लिए मेरे अंदर मौजूद गुस्सा और नफ़रत को पलक झपकते ही इस तरह से काफूर हो जाना था।

देर से ही सही किन्तु इंसान इस बात को समझ ही जाता है कि परिवर्तन इस दुनिया का नियम है। एक जैसा वक़्त कभी नहीं रहता। आज अगर बुरा वक़्त है तो कल अच्छा वक़्त भी आ जाएगा। ख़ैर माँ की बातों का गहरा असर हुआ था मुझ पर। सच ही तो कहा था उन्होंने कि इंसान गुस्से में अक्सर ऐसी बातें बोल जाता है जिसके लिए बाद में उसे पछताना पड़ता है। मेरे ज़हन में एक एक कर के वो सब बातें उभरने लगीं जो मैंने सबसे पहले भाभी से कही थीं और फिर पिता जी से।

पिता जी से मैंने जिस तरीके से बातें की थी वैसी बातें संसार का कोई भी बेटा अपने पिता से नहीं कर सकता था। इंसान के दिल को तो ज़रा सी बातें भी चोट पहुंचा देती हैं जबकि मैंने तो पिता जी से ऐसी बातें की थी जो यकीनन उनके दिल को ही नहीं बल्कि उनकी आत्मा तक को घायल कर गईं होंगी। सारी ज़िन्दगी मैंने गलतियां की थी और यही सोचता था कि मैं जो कुछ भी कर रहा हूं वो सब अच्छा ही है किन्तु जब एक ग़लती मेरे पिता जी से हुई तो मैंने क्या किया?? उनकी एक ग़लती के लिए मैंने घर के हर सदस्य से नाता तोड़ लिया और उनके प्रति अपने दिल में गुस्सा और नफ़रत भर कर यही सोचता रहा कि एक दिन मैं उन सबकी इज्ज़त को मिट्टी में मिला दूंगा। भला ये कैसा न्याय था? मैं खुद जो कुछ करूं वो सब सही माना जाए और कोई दूसरा अगर कुछ करे तो वो दुनिया का सबसे ग़लत मान लिया जाए?

जाने कितनी ही देर तक मैं इस तरह के विचारों के चक्रव्यूह में फंसा रहा उसके बाद गहरी सांस ले कर उठा और मुरारी काका के घर की तरफ चल दिया। मुझे याद आया कि जगन ने उस वक़्त अपने भाई का अं‌तिम संस्कार करने की बात कही थी। मुरारी काका जैसे इंसान के अंतिम संस्कार पर मुझे भी जाना चाहिए था। आख़िर बड़े़ उपकार थे उनके मुझ पर।

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