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★☆★ Xforum | Ultimate Story Contest 2022 ~ Reviews Thread ★☆★

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Story : ये कैसी बिदाई । Written by SANJU ( V. R. )

Story kafi emotional hai jisme writer ne apni behtarin lekhni kaushal ka bharpoor pradarshan Kiya hai

story maa aur uske bachcho ke relation par based hai ... Ek maa apne bachcho ko na Jane kitne pyar aur naazo se paal posh Kar bada karti hai niswarth bhaw se jab wahi bachche bade ho jate Hain to eklauti maa ka bhi bhar uthana unke liye kathin ho jata hai


Story me writer ne ek bebas aur lachar maa ka chitran Kiya hai jiska bada beta usko sirf isliye chhod jata hai ki uske baap be matte samay usko apni jameen me hissa nahi Diya tha ... Wo apni maa aur chhote bahan aur Bhai ko chhod Kar biwi ke sath nikal jata hai

Chhote bete ko bhi jab padhayi ke liye Bahar Jane ki jarurat hoti hai to maa ne badi mushkil se usko 200 rs. Udhar lakar diye Taki uske bachche ko koi taklif na ho

Dono Beto ke Jane ke baad dono bebas maa beti par bhi duniya ne julm dhaye aur beti ki ijjat lut li jiske baad unki jindagi aur bhi kashtdayi ho gayi ... Khair ek bhalemanus me beti ko apna liya aur beti bhi doli vida ho gayi aur chhod gayi ek bebas aur lachar maa ko jisne jindagi me dikh ke siwaye aur kuch na dekha tha

Apne bachcho ki wapsi ka intjar karte karte wo budhi maa ki aankhein thak jati Hain aur wo duniya se Chali gayi ...

Wonderful story written by SANJU ( V. R. ) & All the best for the contest :superb: .. your story have everything in it which makes it one of the best story

My Rating : 9.5/10 :declare:
Thank you Tanmay20 bhai for your lovely review. Bahut badhiya review diya hai aap ne. Aap ka review dekh kar mujhe laga ke aap ko bhi writing field me utarna chahiye.
Sorry for delay response bhai.
Once again thank you. :hug:
 
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Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Prime
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कहानी- द शादी मार्केट
रचनाकार- Adirshi महोदय


बहुत ही बेहतरीन कहानी महोदय। पढ़कर मज़ा आ गया। ये कहानी नहीं लिखी है आपने, शादी व्याह के लिए घरवालों और खुद लड़के लड़की की व्यथा का वर्णन किया है आपने। हंसते हंसते पेट गुड़गुड़ करने लगा।।

अगर कोई रिश्तेदार या फिर घरवाले हमारी शादी की चर्चा करने लगते हैं या शादी के लिए जोर देने लगते हैं तो हमें ऐसा लगता है कि वो हमारी स्वतंत्रता छीन रहे हैं लेकिन हमारा सोचना गलत है, क्योंकि वो हमारी भलाई के लिए ऐसा करते हैं, हम सोचते हैं कि जिस दिन हम हां करेंगे शादी के लिए उसी दिन हमे लड़की या लड़का पसंद आ जाएगा या पसंद कर लेगा लेकिन ऐसा होता नहीं है, क्योंकि जोड़ियाँ ऊपर से बनकर आती हैं। यहां तो घरवाले माध्यम मात्र होते हैं।।

एक बात ये भी सही है कि कमाऊ लड़की के लिए पैसा ईगो का रूप जरूर ले लेता है। कहने का मतलब ये कि अगर लड़का कमाऊ है तो भी वो एक सामान्य लड़की या पढ़ने वाली लड़की से शादी कर लेता है। लेकिन वहीं अगर लड़की चार पैसा कमाती है तो वो एक बेरोजगार लड़के से कभी शादी नहीं करेगी। अगर वो चार पैसा कमाती है तो उसे छः पैसा कमाने वाला लड़का चाहिए तभी वो शादी करेगी। मतलब ये की अगर लड़की एलडीसी है तो वो कभी एमटीएस से शादी नहीं करेगी। लड़की भले ही सोचती है कि पैसे का ईगो लड़कों के अंदर आ जाता है लेकिन होता इसके उलट ही है।

आजकल तो ऑनलाइन शादियां जुड़ रही हैं लेकिन इसकी एक कमजोर कड़ी ये है कि ये जितनी जल्दी जुड़ती हैं उतनी जल्दी टूट भी जाती हैं क्योंकि ये तकनीक बहुत ज्यादा एडवांस है और हम अभी इतने एडवांस नहीं हुए है। कि इस तरह की शादी को निभा पाएं।।
 
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Scripted

Life is So Beautiful
Staff member
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Review :

Story Genre : Romance (college humour)

Story :
College romance ko leke ye kahani hai, do ladka ladki. isme bus ek tikhepan ka tadka hai Best friend wala :laughing: , halaka hasi majak aur drama tha. ye kahani aajkal chal rahe best friend bf gf wale trio ko dikhaati hai.

writing skills : dialogue skills kaafi acche the, jaha jaha emotion dikhne chahiye the dikhaye gye hai, kahani kuch kuch jagah thik chalti hai, kuch kuch jagah ek tippani ka roop le leti hai halaki uski wajah se kahani ka roop nahi badalta.

Reader's view: as a reader, Ye story kaafi humurous thi, ek ladka jiske man me ek ladki ke lie pyaar hota hai aur wo use aajaadi se khula chod deta hai ye soch kar ki apni hogi to wapis aa jaaegi. ek pyaar bhari umang jo ki college ke pyar me hoti hai wo dekhne ko milti hai, agar kisi ko aisi kahani pasand to ise wo zarur padhe
:claps: :applause:
Thanks Dude :love: for detailed review :thank_you:
 
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rakeshhbakshi

I respect you.
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नए रिश्ते

रात के 8:30 बजे का समय हुआ था और राज नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर ४ की तरफ दौड़ रहा था, वो दिल्ली अक्सर अपने कारोबार के सिलसिले में आता रहता था पर आज एक क्लाइंट के साथ काफी समय लग गया था और देहरादून की लास्ट ट्रैन ८:२० पर स्टेशन से रवाना हो चुकी थी। ३२ साल का थका हारा राज हाँफते हुए वंही बेंच पर बैठ गया और मन ही मन अपने क्लाइंट को कोसने लगा। तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी उसने जेब से फ़ोन निकला और स्क्रीन पर देखा तो सुमन का नाम था। राज के परिवार में सुमन उसकी पत्नी, माँ वसुधा और ३ साल का बेटा विशु ही थे जिनके इर्द गिर्द उसकी पूरी ज़िंदगी घूमती थी।

राज ने कॉल पिक किया और सुमन को बता दिया के उसकी ट्रैन मिस हो गयी है। सुमन ने चिंता भरे स्वर में पूछा "अब कैसे करोगे ?" राज ने उसे चिंता न करने को कहा और बोला के वो बस से आ जायेगा। पर दूसरी तरफ से फ़ोन को वसुधा ने ले लिया और उसे हिदायत दी के इतनी रात में सफर करने की कोई ज़रूरत नहीं है वो गुडगाँव में Richa के यंहा रुक जाए और सुबह वापस आ जाए। राज ने थोड़ी देर अपनी माँ का विरोध किया पर फिर सुमन ने भी उसे वंही रुकने का बोला तो उसे उनकी बात माननि पड़ी।

ऋचा राज की सगी बहन थी जो राज से उम्र में २ साल छोटी थी, ऋचा की शादी 3 साल पहले देहरादून में विनोद से हुई थी। विनोद गुडगाँव की एक रियल एस्टेट company में जॉब करता था और यही पर किराये के फ्लैट में रहता था। राज और विनोद की (ऋचा की शादी के दौरान) किसी बात को लेकर अनबन हो गयी थी इसीलिए राज विनोद और ऋचा दोनों से ही दुरी बनाये हुए था।

राज अभी इस उधेड़ बुन में था के वो ऋचा को कॉल करे या न करे, बड़े असमंजस की स्थिति में वो फ़ोन में ऋचा का नंबर सर्च करने लगा के तभी उसके फ़ोन की घंटी बजी, उसने देखा तो ऋचा का ही कॉल था। उसने कॉल रिसीव किया और फ़ोन को कान से लगाया "हेलो" उधर से ऋचा की आवाज़ आयी "हेलो, भैया कँहा हो अभी?", राज ने उत्तर दिया "अभी तो नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हूँ", ऋचा "ठीक है, मैं एड्रेस सेंड कर रही हूँ आप ऑटो या टैक्सी लेके यंहा आ जाओ", राज ने थोड़ा झिझकते हुए कहा "अरे मैं मैनेज कर लूंगा, तू परेशां मत हो", उधर से ऋचा ने डाँटते हुए कहा "ज़ादा होशियार मत बनो, चुप चाप इधर चले आओ" राज ने कुछ कहने को मुंह खोला ही था के उधर से फिर ऋचा की आवाज़ आयी "मुझे कुछ और नहीं सुन ना, आप यंहा आ रहे हो बस, नहीं तो मैं माँ को कॉल कर रही हूँ " राज़ ने उसकी बात सुनी और हँसते हुए जवाब दिया "ठीक है ठीक है, आता हु, माँ को कॉल मत करना " उधर से ऋचा बोली "ओके , जल्दी आओ, वेट कर रही हूँ " और फिर कॉल कट हो गयी। राज़ बेंच से खड़ा हुआ और उसने अपना बैग उठा कर कंधे पर डाला, तभी फ़ोन ने बीप किया उसने फ़ोन चेक किया तो ऋचा का व्हाट्सअप था उसने लोकेशन भेजी थी और नीचे पूरा पता भी लिखा था।

सुमन और वसुधा जानती थी के राज ऋचा को कॉल नहीं करेगा इसीलिए वसुधा ने ही ऋचा को कॉल कर दिया था। ऋचा की शादी के समय विनोद और उसके घरवालों से दहेज़ को लेकर हुई अनबन को राज अभी तक भुला नहीं था। ऐसा सुमन और वसुधा को लगता था पर राज और विनोद में कभी कभी फ़ोन पर फॉर्मल बातें होती रहती थी। जिसका उन्हें पता नहीं था।

रात के 9 बज चुके थे, ऑटो दिल्ली की सड़कों पर दौड़ रहा था. राज ऑटो में बैठा अपने और ऋचा के बारे में सोच रहा था। कितना खूबसूरत रिश्ता था उन दोनों भाई बहन का शादी से पहले, शायद ही कोई ऐसा समय गुज़रा हो जब वो घर गया हो और ऋचा क लिए गिफ्ट ना ले गया हो। कितनी फ़िक्र करती थी वो उसकी, कैसे उसने अपनी सारी सेविंग्स राज को दे दी थी जब वो जॉब के लिए स्ट्रगल कर रहा था। कितना प्यार करता था वो ऋचा से और कितनी घटिया हरकत कर बैठा था उसके साथ जिसने इस पवित्र रिश्ते को ख़त्म सा कर दिया था। आज तक राज इसी ग्लानि में जी रहा था, उसने कई बार प्रयास किया के ऋचा के पैर पकड़ कर माफ़ी मांगे पर कभी इतना साहस ना जुटा पाया।

7 साल पहले -

राज उस वक्त दिल्ली में एक mnc में जॉब कर रहा था और अच्छी खासी सैलरी ले रहा था, जिस से उसके तीन जन के परिवार का खर्च अच्छे से चल रहा था। ऋचा उस वक्त 23 की थी और अपनी पोस्ट ग्रेजुएशन पूरी कर चुकी थी, वो govt जॉब की तैयारी में लगी रहती थी। एक exam के सिलसिले में उसे दिल्ली आना पड़ा तो वो राज के पास उसके रूम पर रुकी हुई थी। राज उसके आने से बहुत खुश था। उस वक्त तक राज की कोई गर्लफ्रेंड नहीं थी, जो अब तक एक गर्लफ्रेंड बनी थी वो देहरादून में ही ऋचा की ही एक सहेली थी जिसे राज कई बार चोद चूका था। ऋचा को इस बारे में कुछ पता नहीं था। 25 साल का राज यूँ तो देखने में 6 feet का कसरती जिस्म का मालिक था और देखने में किसी मॉडल से कम नहीं लगता था, उसे अपने ऑफिस में एक लड़की पसंद आयी तो थी पर वो पहले से ही किसी और के साथ रिलेशन में थी। राज अपनी जिस्मानी संतुष्टि के लिए इंटरनेट पर पोर्न, एडल्ट स्टोरीज सर्च करके खुद को संतुष्ट कर लिया करता था।

आज ऋचा का पेपर था वो सुबह जल्दी उठ के तैयार हो गयी थी और उसने राज को भी जल्दी उठा दिया था। राज बाथरूम में नाहा कर अपने आप को टॉवल से पौंछ रहा था के तभी उसकी नज़र सामने हेंगर पर टंगी ऋचा की ब्रा पर गयी, ना चाहते हुए भी राज का हाथ उसे उठाने को आगे बड़ चला। क्रीम कलर की पैडेड ब्रा को राज़ अपने हाथ में लेकर देखने लगा। पीछे लगे टैग पर उसकी नज़र पड़ी, उसने उसे करीब लाके देखा उसपर ब्रा का साइज 34C लिखा था। राज का मुंह खुला का खुला रह गया और अनायास ही उसके मुंह से निकल गया "wow " , वो मन ही मन ऋचा के साइज और उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ करने लगा। वासना के वशीभूत होकर उसने उस ब्रा के कप को अपने गालों पर लगा लिया और उनकी खुशबू को सूंघने का प्रयास करने लगा। उस ब्रा से किसी टेलकम पाउडर की भीनी भीनी खुशबू आ रही थी। राज ने देखा उसका ६ इंच का लंड पूरी तरह से अकड़ के खड़ा हो चूका था और उसका आधा सुपाड़ा खाल से बहार झाँक रहा था। उसने बहुत सी कहानियां भाई बहन के सम्बन्धो पर पड़ी थी पर उसके जीवन में पहली बार ऐसा संयोग हो रहा था जंहा वो अपनी बहन की ब्रा को देख के ही इतना उतावला हो गया था।

उसने ऋचा की ब्रा को अपने लंड पर लपेटा और धीरे धीरे लंड की चमड़ी को आगे पीछे करने लगा, उसकी आँखे बंद होने लगी और उसकी कल्पनाओ में ऋचा की बड़ी बड़ी चूचियां उसे हिलती दिखाई देने लगी, थोड़ी देर के प्रयास से ही उसके लंड में ऐठन होने लगी और उसने एक जोरदार पिचकारी मार के सारा वीर्य उड़ेल दिया , फर्श के जिस कोने पर वीर्य की धार गिरी वंहा ऋचा की गीली panty पड़ी थी जिस पर जाकर उसका वीर्य गिरा और panty को सान गया। वीर्य की कुछ बूंदे ऋचा की ब्रा को भी गीला कर गयी थी, जब राज को होश आया तो उसे बहुत आत्मगिलानी हुई और वो खुद को कोसने लगा। तभी बहार से ऋचा की आवाज़ आयी "कितनी देर लगाओगे भैया, जल्दी आओ नाश्ता तैयार है", राज ने घबराहट में बोला "आ..आ..आ रहा हूँ"

राज ने जल्दी से ऋचा की ब्रा से अपने वीर्य को हाथ से साफ़ किया पर वीर्य के निशाँ अब भी वंहा मौजूद थे, थोड़ी देर में ये सूख जायेंगे सोचकर उसने ब्रा वापस से टांग दी , पर panty को उसने ऐसे ही छोड़ दिया और खुद को साफ़ कर के बहार आ गया।

राज कपडे पहन के तैयार हुआ तो ऋचा उसे नाश्ता देके बाथरूम में चली गयी। उधर राज भगवन से अपनी खैर मांग रहा था के इसे कुछ पता ना चले। थोड़ी देर में ऋचा वापस आयी तो उसके हाथ में धुले हुए ब्रा और panty थे उसने एक नज़र राज की तरफ देखा, दोनों की नज़र मिली और राज ने अपनी नज़रें नीचे कर ली, ऋचा बिना कुछ कहे बालकनी की तरफ बड़ गयी।

राज ये तो जान चूका था के ऋचा समझ चुकी है पर इग्नोर कर रही है, उसे अपने ऊपर गुस्सा और तरस दोनों आ रहा था।

दोपहर १२ बजे ऋचा का पेपर छूटा तो राज उसे बाइक पे लेकर वापस आ रहा था, ऋचा राज से चिपक के बैठी थी जबकि सुबह उसे सेण्टर छोडने जाते वक्त उसने थोड़ा गैप बना के रखा था। ऋचा की 34C की बड़ी बड़ी सुडोल चूचियां राज को अपनी कमर पे किसी स्पंज की तरह फील हो रही थी और वो उनका आनंद ले रहा था।

ऋचा ने राज को पीछे बैठे हुए कहा "भैया, भूख लगी है"

राज ने जवाब दिया "बता क्या खायेगी"

ऋचा "कुछ भी खिला दो"

राज "चल फिर मॉल में चलते है, जो मन करे खा लेना"

थोड़ी देर बाद दोनों ने पसिफ़िक मॉल के अंदर एक रेस्टोरेंट में खाना खाया और फॉर्मल सी बाते की , फिर बहार निकले तो ऋचा फिल्म देखने की ज़िद्द करने लगी, राज मना करने लगा के इधर सब इंग्लिश मूवीज लगी हैं तुझे समझ नहीं आएँगी, ऋचा राज से लड़ने लगी "मिस्टर MA किया है मैंने इंग्लिश से, तुमसे ज़ादा समझती हूँ " फिर राज उसे चिढ़ाने लगा "इन मूवीज में इंग्लिश डायलॉग्स बहुत फ़ास्ट होते हैं तेरी समझ नहीं आएंगे " ऋचा फिर रिक्वेस्ट करने लगी "भाई प्लीज़ दिखा दो ना, कल तो में वापस चली ही जाउंगी", राज को उसपे दया आयी और वो ऋचा को साथ लेके टिकट काउंटर की तरफ बड़ गया।

दोनों भाई बहन थिएटर में पास पास बैठ कर फिल्म देख रहे थे, ये एक इंग्लिश थ्रिलर फिल्म थी। कुछ समय बीतने के बाद फिल्म में एक बोल्ड सीन आया जिसमे लड़का अपने से उम्र में बड़ी एक महिला को स्मूच करने लगा और थोड़ी देर में उसके कपडे खोलने लगा , राज के लिए बड़ी विचित्र सी स्थिति थी , अगले ही सीन में उस लड़के ने महिला के बूब्स को दोनों हाथों में दबोच लिया और महिला का जिस्म अकड़ने लगा। राज अपने आपको थोड़ा असहज महसूस करने लगा, यही स्थिति शायद ऋचा की भी रही होगी। अभी वो बोल्ड सीन जारी था, लड़का और वो अधेड़ महिला बिस्तर में एक दूसरे को kiss कर रहे थे, तभी ऋचा ने अपना सर राज के कंधे पर रख दिया और अपने दोनों हाथों से उसकी बाजू को पकड़ लिया, राज ने उसके लिए जगह बनाते हुए अपना बांया हाथ उठा के ऋचा के बांये कंधे पर रख दिया। दोनों की आँखे स्क्रीन पर चल रहे दृश्य पर टिकी थी, दोनों भाई बहन थोड़ा असहज थे। कुछ बोलने की किसी में हिम्मत नहीं थी। अब स्क्रीन पर लड़का उस महिला के ऊपर छाया हुआ था और धीरे धीरे चादर के अंदर से अपनी कमर को हिला रहा था, महिला की बड़ी बड़ी सुडोल चूचियां पूर्णयता नग्न थी। न चाहते हुए भी राज के लंड में उफान आने लगा था। उसने धीरे से ऋचा के कंधे को दबा दिया, जिसपर ऋचा की कोई प्रितिक्रिया नहीं हुई। थोड़ी देर बाद वो सीन तो ख़त्म हो गया पर राज के मन को व्याकुल कर गया। ऋचा अभी भी राज के कंधे पर सर टिकाये फिल्म देख रही थी, राज का बांया हाथ अब ऋचा के कंधे से होता हुआ ठीक उसकी चूचियों के उभार से ठीक ऊपर झूल रहा था। थोड़ी देर बाद ही फिल्म में दूसरा सीन आया जिसमे उस लड़के ने उस महिला को कंही पर अकेले में पकड़ लिया और उसकी जीन्स के बटन खोल के उसकी panty के अंदर हाथ डाल दिया, राज ने धीरे से ऋचा के सीने पर अपनी उंगलिया फिरा दी, अब उस लड़के ने उस महिला को उल्टा किया और पीछे से धक्के मारने लगा , तभी ऋचा ने अपनी चूचियों के उभार से ठीक ऊपर सीने पर घूम रही राज की उँगलियों को अपने हाथ से पकड़ लिया और उसके हाथ को अपने हाथ में दबा के खींच कर पकड़ के बैठ गयी, अब राज की कलाई ठीक ऋचा की दायीं चूची के ऊपर से उसे दबा रही थी। राज को बड़ा अच्छा सा फील हो रहा था, उसके लंड में तनाव बढ़ने लगा था। ऋचा पूरी फिल्म में राज के हाथ को वैसे ही पकड़ कर बैठी रही, जब फिल्म ख़त्म होने को आयी तो ऋचा ने राज का हाथ छोड़ दिया पर राज ने हाथ हटाया नहीं। उस वक्त राज के मन में ऋचा को लेके सैकड़ों सवाल चल रहे थे , उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। पर जब दिमाग पर शैतान हावी हो तो इंसान की एक नहीं चलती। राज के साथ भी ऐसा ही हुआ, उसने अपना हाथ ऋचा के ऊपर से हटाते हुए ऋचा की दांयी चूची को धीरे से दबा दिया और हाथ हटा लिया। ये सब एक छड़ में हुआ, ऋचा ने एक नज़र राज की तरफ देखा पर राज स्क्रीन की तरफ ही देख रहा था उसने ऐसा शो किया जैसे कुछ हुआ ही न हो। पर मन ही मन राज को बहुत अच्छा लग रहा था ऋचा की चूची की कठोरता उसे अभी भी अपनी हथेली पर महसूस हो रही थी।

फिल्म ख़त्म हुई और वो दोनों वापस आ गए, फिल्म और थिएटर में हुए वाकये पर किसी ने कोई बात नहीं की थी।

रात के ११ बज चुके थे उसे अगले दिन ऋचा को घर छोड़ने भी जाना था, पर उसे अभी भी नींद नहीं आ रही थी। वो बस ऋचा और उसकी ख़ूबसूरती के बारे में ही सोच रहा था। उसने करवट बदली और अपने से थोड़ी दूर फर्श पर बिस्तर लगा के सो रही ऋचा को गौर से देखने लगा , कमरे में उस समय एक जीरो वाट का नीला बल्ब जल रहा था जिसकी पर्याप्त रौशनी में सब कुछ दिखाई दे रहा था। उस वक्त ऋचा राज की तरफ पीठ कर के सोई थी, उसने एक सफ़ेद सलवार और क्रीम कलर का टाइट फिटिंग का कुरता पहना हुआ था। राज की नज़रें ऋचा की सुडोल गांड के उभारों पर घूम रही थी, वो मन ही मन उसकी गांड के साइज के बारे में सोचने लगा, 36 नहीं 34 तो कम से कम होगा ही। फिर कुर्ते की बैक से झांकती ऋचा की गोरी नंगी पीठ पर नज़र पड़ते ही राज के लंड में तनाव आने लगा और धीरे धीरे वो अपने हाथ से अपने लंड को सहलाने लगा।

कहते हैं जब वासना अपने चरम पर हो तब सब मर्यादाएं,रिश्ते, सही गलत की परख सब धरे के धरे रह जाते हैं और वही होता है जो वासना के उठते ज्वर को मंज़ूर होता है।

उस रात भी कुछ ऐसा ही हुआ, जाने कब राज ऋचा के बिस्तर तक पहुँच गया और उसने ऋचा के एक एक कर कब सब कपडे नोच डाले उसे पता ही नहीं चला। उसे याद भी नहीं के ऋचा ने उसका विरोध किया या नहीं किया, उसे तो बस इतना याद है के वो पूर्णयता नग्न अवस्था में ऋचा की नंगी चूचियों को चूस रहा था और दूसरे हाथ से उसकी चूत को मसल रहा था फिर उसने ऋचा की टाँगे फैला दी और उनके बीच में आ गया। पसीने से लथपत राज अपने लंड को ऋचा की चूत पर रगड़ने लगा, उस वक्त ऋचा किसी ज़िंदा लाश की तरह से पड़ी थी जिसमे किसी प्रकार की कोई हल चल न थी। राज ने अपना लंड ऋचा की चूत के छेद पर टिकाया और एक नज़र ऋचा की तरफ देखा, ऋचा की आँखे खुली थी और आंसुओं की धार निरंतर उसके कानो की तरफ बह रही थी। और यही पर राज को अपराध बोध हुआ, वो उठ कर घुटनो पर बैठ गया। पाप पुण्य और वासना का अंतर्दवंद उसके दिमाग में चलने लगा। ऋचा के नंगे जिस्म को देखकर उस से अभी भी खुद पर काबू नहीं हो रहा था, वो बैठे बैठे ही अपने लंड को ज़ोर ज़ोर से मुठयाने लगा। कुछ सेकंड में ही उसके लंड ने वीर्य की बौछार सी कर दी जो ऋचा के सीने, पेट और उसकी चूत को भिगो गयी।

अब वो नंगा ही ऋचा की बगल में लेटा था और अपने इस कुकृत्य पर बहुत आत्मगिलानी महसूस कर रहा था। उसने अपने कपडे पहने और ऋचा को कंधे से पकड़ के झकझोरा। ऋचा अभी भी उसी नग्न अवस्था में लेटी हुई थी, एक दम बेजान सी।

राज का वीर्य अभी भी ऋचा के जिस्म पे जंहा तंहा बिखरा पड़ा था और उसके जिस्म से इधर उधर बह रहा था। राज ने अपनी टी शर्ट से वीर्य को साफ़ किया फिर उसकी चूत की तरफ साफ़ करने लगा तो ऋचा ने उसके हाथ से टी शर्ट छीन ली और नंगी ही उठ के बाथरूम में चली गयी।

राज वापस आके अपने बिस्तर में लेट गया, उसके दिमाग में आंधी सी चल रही थी, वो बार बार खुद को कोस रहा था। अपनी सफाई में कहने के लिए उसके पास कुछ नहीं था। बाथरूम से पानी के गिरने की आवाज़ आ रही थी, राज की आँखों से आंसू बह रहे थे, उसने जो कलंक रिश्तों पर लगाया था अब उसकी कोई भरपाई नहीं थी।

ऋचा बाथरूम से बहार आयी तो राज ने अपना मुंह दूसरी तरफ फेर लिया, अब उसके अंदर हिम्मत नहीं थी ऋचा का सामना करने की। काफी देर बीतने के बाद ऋचा ने राज का हाथ पकड़ के उठाया "मुझे पता है तुम जाग रहे हो" ऋचा ने कहा। राज उठ कर बिस्तर पर बैठ गया और सर नीचे झुका लिया, ऋचा ने खड़े खड़े ही पूछा "सिर्फ एक सवाल करना है ", राज ने "हम्म" में जवाब दिया पर सर नीचे ही झुकाये रहा। ऋचा ने अपने आंसू पोंछते हुए पूछा "आखिर क्यों? क्यों किया ऐसा मेरे साथ ", राज खामोश रहा थोड़ी देर, एक सन्नाटा सा पसरा रहा दोनों के बीच। ऋचा ने फिरसे पूछा "जवाब दो", अब राज को कुछ कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या कहे, उसने थोड़ी हिम्मत जुटा के एक सांस में बोल दिया "I love you ऋचा"। ऋचा ने फिरसे कुछ कहना चाहा पर राज ने उसे टोक ते हुए कहा "प्लीज, और कुछ मत कहना" "मेरे अंदर हिम्मत नहीं है और कुछ बोलने की " और राज फुट फुट कर रोने लगा।

ऋचा ने भी आगे कुछ नहीं पूछा और वापस अपने बिस्तर पे जाके लेट गयी।

उस रात के बाद से उनके सम्बन्ध फिर कभी पहले जैसे नहीं रहे, घर में माँ के सामने तो दोनों थोड़ा बहुत बात कर लिया करते पर अकेले में कभी कोई बात नहीं करते। हालाँकि राखी और भाई दूज के त्यौहार दोनों भाई बहन हमेशा की तरह मानते रहे पर पहले जैसी कोई बात न रही, न ऋचा कोई मन पसंद का गिफ्ट मांगती न राज उसके साथ कोई शैतेनी करता। फिर भी राज उसकी ज़रूरत के हिसाब से उसे गफ्ट देता रहता।

समय बिता और दोनों की शादी हो गयी दोनों ही अपनी अपनी लाइफ में मशगूल हो गए। ऋचा की शादी के बाद तो राज ने जैसे बिलकुल ही उस से सम्बन्ध ख़त्म कर लिए थे।

Present Day -

राज ने door bell बजायी, कुछ सेकंड बाद ऋचा ने दरवाज़ा खोला, राज ने ऋचा को देखा, ५'५" की ऋचा एक वाइट टीशर्ट और स्काई ब्लू कलर का पजामा पहने दरवाज़े पर खड़ी थी। ऋचा ने दरवाज़ा पूरा खोलते हुए राज को अनादर आने को कहा, राज ने एक स्माइल दी फिर ऋचा को छोटा सा एक हग किया। ऋचा ने राज का बैग लिया और एक रूम में जाके रख दिया। पीछे पीछे राज भी उसी रूम में चला गया और उसने ऋचा से पूछा "विनोद कँहा है?", ऋचा ने पलट ते हुए जवाब दिया "वो आने वाले होंगे ऑफिस से, आप फ्रेश हो जाओ में खाना लगाती हूँ ", राज़ ने हैरत से पूछा "इतनी लेट तक ऑफिस में रहता है?" ऋचा ने थोड़ा मायूस होते हुए जवाब दिया "हम्म, बता रहे थे ऑफिस में कोई पार्टी है आज" "वो तो खाना खा कर आएंगे, आप फ्रेश हो जाओ में कपडे लाती हूँ चेंज कर लेना"।

राज फ्रेश होकर बाथरूम से बहार निकला तो देखा bed पर एक टीशर्ट और शार्ट रखा है, ये शायद विनोद के कपडे थे जो ऋचा राज के लिए रख गयी थी क्यूंकि राज अपने साथ कोई और कपडे नहीं लाया था। राज ने कपडे पहने और रूम से बहार ड्राइंग रूम में आ गया जंहा पर एक तरफ dinning टेबल थी, जिसपर ऋचा खाना लगा रही थी। ऋचा ने राज की तरफ देखा और कहा "आ जाओ भैया, खाना लग गया है" ल

राज ने चेयर बहार खींचते हुए पूछा "तूने खा लिया ?" "नहीं, अभी नहीं, आप खा लो मैं खा लुंगी बाद में "।

राज ने दीवार पर टंगी घडी की तरफ देखा जो 10:55 का समय बता रही थी, "पागल है क्या, देख क्या टाइम हुआ है, कब तक भूखी रहेगी उस के लिए" राज ने डाँट ते हुए ऋचा से कहा। ऋचा ने स्माइल किया और फिर थोड़ा मायूसी भरे स्वर में बोली "मेरी तो आदत है भैया, आप खाओ में खा लुंगी बाद में" , राज ने फिर से डांटते हुए कहा "ज़ादा बन मत, चुप चाप बैठ और खाना खा, नहीं तो मैं भी नहीं खाऊंगा "। मजबूरन ऋचा को राज के साथ बैठ कर खाना पड़ा।

अभी वो लोग खाना खा ही रहे थे की door bell बजी, ऋचा उठ कर जाने को हुई पर राज ने रोक दिया "तू बैठ मैं खोलता हूँ "। राज ने जाके दरवाज़ा खोला तो सामने विनोद को सहारा दिए दो लोग और खड़े थे। उनमे से एक ने पूछा "भाभी जी कँहा हैं?" राज ने दरवाज़ा पूरा खोल दिया सामने बैठी ऋचा ने देखा तो वो भागती हुई आई और पूछा "क्या हुआ भैया?" "क्या हुआ इन्हे?", वो दोनों लड़के विनोद को अंदर लाने लगे, उनमे से एक ने कहा "कुछ नहीं हुआ है भाभी जी, बस आज विनोद सर कुछ ज़ादा पी गए, सुबह तक ठीक हो जायेंगे" कह कर उन्होंने वनोद को वंही सोफे पैर लेटा दिया। "अच्छा हम चलते हैं भाभी जी, नमस्ते " कह कर दोनों लड़के फ्लैट से बहार चले गए और राज ने दरवाज़ा बंद कर लिया।

राज ने अपना खाना ख़त्म किया फिर सोफे पर पड़े विनोद को उठाने की कोशिश की पर विनोद बेसुध सा पड़ा सोया हुआ था। ऋचा किचन में बर्तन धो रही थी, राज किचन में चला गया और ऋचा से पूछने लगा "कब से पी रहा है ये इतनी ?" ऋचा ने एक नज़र राज पर डाली फिर बर्तन धोते हुए बोली "ये तो आये दिन का काम है इनका, कभी कभी इतनी ज़ादा पी लेते हैं के कोई न कोई उठा के घर लता है "। राज वापस जाके अपने रूम में bed पर लेट गया, और लाइट ऑफ कर ली। रूम का गेट उसने खुला ही रखा था, बहार ड्राइंग रूम में सोफे पर सोया विनोद उसे वंहा से साफ़ दिखाई दे रहा था। थोड़ी देर में ऋचा आके विनोद को हिलाने डुलाने लगी पर विनोद ने कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं दी, ऋचा की पीठ उस वक्त राज के रूम की तरफ थी और विनोद को जगाने के क्रम में झुकने के कारण उसके पाजामे से उसकी गांड का उभार राज को अच्छे से दिख रहा था। ऋचा की गांड अब पहले से भी ज़ादा बड़ी लग रही थी उसे। राज फिर से ऋचा की खूबसूरती को ऊपर से नीचे तक निहारने लगा, उसके लंड में फिरसे तनाव आने लगा था। ऋचा अब नीचे बैठ कर विनोद के जूते खोल रही थी, बैठने के कारण उसकी गांड और भी ज़ादा फ़ैल गयी थी। राज ने एक बार शार्ट के ऊपर से अपने लंड को मसला फिर सारे ख़यालों को दिमाग से झटकते हुए अपने कमरे में बनी बालकनी में चला गया।

थोड़ी देर में ऋचा विनोद को सोफे पर सीधा सुला के राज के कमरे में आयी। राज को बालकनी में देख कर वो उसके पास आके खड़ी हो गयी और नीचे ज़मीन की गहराई नापने लगी। थोड़ी देर दोनों के बीच ख़ामोशी रही फिर राज ने ही ख़ामोशी को तोड़ते हुए पूछा "और सुना कैसा चल रहा है सब ?" ऋचा ने एक नज़र राज की तरफ देखा फिर नज़र सामने दूसरी बिल्डिंग की तरफ करते हुए बोली "देख तो रहे हो आप, ऐसे ही चल रहा है "

राज ने फिर से दूसरा सवाल किया "इसे समझती क्यों नहीं, इतना पीना ठीक नहीं "

ऋचा ने एक फीकी सी मुस्कान देते हुए कहा "समझती तो बहुत हूँ, पर मेरी मानता कौन है?"

फिर थोड़ी देर के लिए दोनों के बीच सन्नाटा सा पसर गया, राज बालकनी से कमरे के अंदर जाते हुए बोला "चल अब काफी टाइम हो गया, सो जा जाके"

ऋचा भी राज के पीछे पीछे कमरे में आ गयी, राज बिस्तर पर बैठ गया, ऋचा कमरे से बाहर जाते हुए धीमी आवाज़ में बोली "मुझे लगा था आप बात करोगे मुझसे"

राज को एक पल के लिए ऋचा पर तरस सा आया और उसने आवाज़ दी "ऋचा "

ऋचा दरवाज़े पर ठिठक गयी और राज की तरफ देखने लगी, राज ने इशारे से उसे अपने पास बिस्तर पर बैठने को कहा। ऋचा ने एक नज़र बाहर ड्राइंग रूम में सो रहे विनोद पर डाली फिर राज के पास जाके बिस्तर पर बैठ गयी।

राज ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसका हाथ अपने दोनों हाथों के बीच थाम लिया और बोला "अब कर क्या बात करनी है? "

राज को न तो अब किसी प्रकार का डर था, न कोई आत्मगिलानी थी, ऋचा ने राज की आँखों में देखा और फिर नज़रे नीचे कर के सवाल किया "वो सब क्यों किया था भैया ?" राज को उस से शायद इसी सवाल की उम्मीद थी, उसने एक गहरी सांस ली और कहा "मैंने तुझे बताया तो था "। ऋचा ने फिरसे राज की आँखों में झाँका "हाँ बताया तो था, पर ऐसे कौन करता है, अपनी सगी बहन के साथ? " राज उसके सवाल के जवाब खोजने लगा, ऋचा ने फिर से दूसरा सवाल दाग दिया "आप उस दिन मेरा रेप करने वाले थे? है न " राज को अब कुछ जवाब समझ नहीं आ रहा था, उसने अपनी गर्दन नीचे झुका ली और बस इतना ही उसके मुंह से निकला "हम्म"। फिर थोड़ी देर ख़ामोशी रही दोनों के बीच, और ख़ामोशी को फिर ऋचा ने ही तोडा "फिर रुक क्यों गए थे?" राज की आँखों से आंसू की एक धार बह निकली और उसने ऋचा की तरफ देखते हुए कहा "पता नहीं, कैसे रुक गया"। ऋचा ने अपना हाथ आगे बड़ा के राज के आंसू पोंछे, "मेरा मकसद आपको तकलीफ पहुँचाना नहीं था "

ऋचा ने कहा।

राज ने सहमति में गर्दन हिलायी , थोड़ी देर बाद ऋचा bed से उठकर खड़ी हुई और पूछा, "अच्छा, एक आखरी सवाल?" राज ने चौंकते हुए ऋचा की तरफ देखा, ऋचा का एक हाथ अब भी राज के हाथ में था , "क्या अब भी मुझसे वैसा ही प्यार करते हो?"

राज ने ऋचा की आँखों में देखा और थोड़ी देर देखने के बाद हाँ में अपनी गर्दन हिलायी।

ऋचा दोबारा से राज के पास बैठ गयी और उसकी आँखों में देखते हुए बोली "आपने इतनी दुरी क्यों बना के रखी मुझसे?" राज ने एक नज़र ऋचा को देखा फिर छत्त की तरफ मुंह कर के बोला "कभी इतनी हिम्मत ही नहीं जुटा पाया के तुझसे बात करूँ, बहुत शर्मसार था अपने ऊपर"। कुछ सेकंड फिरसे दोनों के बीच ख़ामोशी छा गयी। राज ने ख़ामोशी को तोड़ते हुए एक गहरी सांस छोड़ते हुए कहा "I am sorry ऋचा"। ऋचा ने राज की आँखों से बह रहे आंसुओं को पोंछा और कहा "it's o.k, भाई", थोड़ी देर दोनों भाई बहन ऐसे ही बैठे रहे।

ऋचा ने बिस्तर से उठ ते हुए कहा "मैंने तो आपको बहुत पहले ही माफ़ कर दिया था", राज हैरत से ऋचा की और देखने लगा। ऋचा ने राज से अपना हाथ छुड़ाया और "गुड नाईट" बोल के दरवाज़े के तरफ बढ़ने लगी, राज ने पीछे से पुकारा "ऋचा"।

ऋचा दरवाज़े तक पहुँच चुकी थी, राज की आवाज़ सुन के वंही रुक गयी, उसने पीछे मुड़ के देखा तो राज बिस्तर से उठ के उसके पास आ रहा था। राज ने ऋचा के करीब आके उसे अपने आलिंगन में ले लिया और धीमे से उसके कान में बोला "मैं आज भी तुझसे बहुत प्यार करता हूँ"।

ऋचा ने भी राज को कस के अपनी बांहो में भींच लिया। राज ने ऋचा की गर्दन को चूम लिया, ऋचा के मुंह से सिसकारी निकल गयी और उसने राज के बालों को अपनी उँगलियों में भींच लिया। अब राज का खुद के ऊपर काबू न रहा और वो ऋचा को बेतहाशा चूमने लगा, कभी गर्दन कभी उसके कंधे को, कभी उसके सीने के ऊपरी भाग को।

ऋचा ने कमरे का दरवाज़ा भिड़ा दिया और राज ऋचा को लेकर बिस्तर पर गिर गया, उसने एक ही झटके में ऋचा की टीशर्ट को ऊपर किया और उसके पेट पर चुम्बनों की झड़ी लगा दी, उस वक्त ऋचा का धड़ बेड पर था और टाँगे फर्श पर लटक रही थी और राज फर्श पर घुटनो के बल बैठा ऋचा के पेट को चुम रहा था और अपने दोनों हाथों से ऋचा की बड़ी बड़ी चूचियों को ब्रा के ऊपर से दबा के उनकी कठोरता का जायज़ा ले रहा था। ऋचा बस सिसकारियों पर सिसकारियां ले रही थी, आज वो सारी मर्यादाएं तोड़ के राज का साथ दे रही थी। राज ने एक झटके में ऋचा की ब्रा को पकड़ के ऊपर सरका दिया और ऋचा की बड़ी बड़ी चूचियां झूलती हुई बहार आ गयी। राज ने बिना देर किये उसकी दायीं चूची को मुंह में भर लिया और किसी छोटे बच्चे की तरह चूसने लगा, ऋचा को जब राज के मुंह की गर्माहट का एहसास अपनी चूची पर हुआ तो उसके मुंह से "आह " निकल गयी और उसने राज के सर को अपने हाथों से ज़ोर से अपनी चूची पर दबा लिया। राज दूसरे हाथ से अपनी बहन की बांयी चूची को ज़ोर ज़ोर से दबा रहा था और ऋचा बस "आह" "आह" कर रही थी। अब राज ने देर न करते हुए एक झटके में ऋचा का पजामा panty सहित घुटनो तक सरका दिया और अपना शार्ट भी आनन फानन में उतार फेंका। राज तुरंत ही वापस ऋचा के ऊपर छा गया, राज का लंड किसी लोहे की रोड की तरह सख्त हो चूका था और अब वो ऋचा की चूत पर घर्षण कर रहा था। राज और ऋचा की नज़रें मिली और राज ने धीरे से पूछा "डाल दूँ?" ऋचा ने आँखे बंद कर के अपनी सहमति दे दी, राज ने नीचे की तरफ हाथ ले जाके लंड को उसकी चूत पर सेट किया फिर ऋचा के होठों को अपनी होठों में भर लिया और कमर को एक झटका दिया, आधा लंड सरक के ऋचा की चूत में समां गया। ऋचा के मुंह से एक ज़ोरदार सिसकारी फूटी "आह" और उसने फिर से राज के होठों को अपनी होठों के बीच दबा लिया और उनका रसपान करने लगी। राज ऋचा के होठों को चूसते हुए अपनी कमर को आगे पीछे करने लगा, आज उसे बहुत मज़ा आ रहा था, जैसे कोई मुंह मांगी मुराद पूरी हो गयी हो। राज ने अब अपनी स्पीड बड़ाई और साथ ही ऋचा के होठों से आज़ाद होके उसकी बांयी चूची के निप्पल को अपनी मुंह में भर के चूसने लगा। ऋचा ने एक नज़र घुमा के दरवाज़े की तरफ देखा, दरवाज़े की थोड़ी सी ओट से सामने ड्राइंग रूम के सोफे पर विनोद अभी भी बेसुध सा पड़ा सो रहा था। राज ज़ोर ज़ोर से ऋचा की चूत में धक्के मार रहा था, ऋचा की चूत उसे सुमन की चूत से कंही ज़ादा टाइट लग रही थी। कुछ मिनट के बाद राज पागलों की तरह धक्के मारने लगा और ऋचा अपनी कमर को उठा उठा के उसका साथ देने लगी। ऋचा को अपनी अंदर कुछ टूटता सा महसूस हुआ, उसकी कमर अकड़ गयी और उसने राज की कमर को ज़ोर से भींच लिया, तभी राज के लंड से एक ज्वालामुखी सा फूटा और उसने वीर्य से ऋचा की चूत को भर दिया। दोनों भाई बहन एक दूसरे के ऊपर पड़े हांफ रहे थे। कुछ सेकंड बाद राज ऋचा के ऊपर से हट के उसकी बगल में लेट गया और अपनी साँसों को दुरुस्त करने की कोशिश करने लगा। ऋचा की चूत से राज का वीर्य बहार निकल के बेडशीट को भिगो रहा था। अचानक बहार कुछ आहट हुई, ऋचा और राज तुरंत बिस्तर छोड़ के खड़े हो गए, ऋचा ने जल्दी से अपने कपडे पहने और बहार चली गयी, राज अभी भी अपना अंडरवियर ढूंढ़ने में लगा था।

बहार जाके ऋचा ने देखा तो विनोद सोफे से नीचे लुढ़का पड़ा था, थोड़ी देर में राज ने पीछे से आके विनोद को सहारा दिया और उसे ऋचा के बैडरूम में ले जाके लेटा दिया। राज ने ऋचा को फिर से पकड़ के किस करना चाहा पर ऋचा ने विनोद के डर से उसे रोक दिया। राज वापस आके अपने कमरे में सो गया।

अगले दिन राज को बस स्टैंड तक छोड़ने विनोद खुद आया था, इसीलिए उसकी ऋचा से कोई ख़ास बात न हो पायी थी। बस में विंडो सीट पर बैठा राज बहार खेतो में खिले सरसों के फूलों को देख रहा था, उसके जीवन में भी जैसे कोई नयी बहार आयी थी, पतझड़ के बाद कुछ नए रिश्तों ने जन्म लिया था।

THE END
lovely story
 

Jaguaar

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दोस्त / राकेश बक्षी
गोपाल बहुत ही परेशान हालात में कार ड्राइव कर रहा था. रात के साढ़े बारह बज चुके थे. वो अस्पताल से लौट रहा था. अस्पताल में उसकी मां चंदा एडमिट थी. उसे शायद एक दो दिन में अस्पताल से छुट्टी मिल जाएगी. गोपाल की परेशानी की वजह उसकी मां चंदा थी. वो अपनी मां को समझ नहीं पा रहा था.

पिछले हफ्ते शाम को जब वो संयोग से घर जल्दी लौटा तो उसे एक आघात पूर्ण दृश्य देखने मिला. लेच की से दरवाजा खोल कर वो अंदर दाखिल हुआ तो रसोई के कमरे से मां की आंहे सुनाई दी. वो चिंतित होकर रसोई के कमरे की और दौड़ा तो देख कर सन्न रह गया. उसका दोस्त हरीश उसकी मां चंदा को चोद रहा था. खड़े खड़े. चंदा के साडी और पेटीकोट कमर पर चढ़े हुए थे और वो किचन प्लेटफॉर्म पर झुकी हुई थी. अपने दोनों पैर चौड़े करके. और हरीश पीछे से लगा हुआ था.

गोपाल का सर यह देखकर चकरा गया. उसने तैश में आ कर हरीश को सर के बाल पकड़ कर खिंचा और पागलो की तह उसे पेट और छाती पर मुक्के मारने लगा. चंदा और हरीश दोनों अचानक गोपाल को आया हुआ देख बौखला गए. हरीश चुपचाप अपने कपडे उठा के बाहर भागा. गोपाल ने अपनी मां को गुस्से से देखा. चंदा अपने साडी पेटीकोट ठीक कर चुकी थी. गुस्से में उसने अपनी मां को एक झापड़ लगा दी. झापड़ इतनी जोरदार थी की चंदा का सर किचन प्लेटफॉर्म पर जोर से टकराया. गोपाल उसे उसी हालत में छोड़ बाहर दौड़ा. हरीश घर के बाहर निकल रहा था. गोपाल ने उसको कॉलर से थाम लिया और आग बबूला हो कर कहा. ‘आज के बाद मुझे कभी मत दिखना वर्ना मैं तुम्हे जिंदा नहीं छोड़ूगा.’ हरीश बिना कोई जवाब दिये भाग निकला. वो फिर किचन में गया तो देखा मां के सिर से खून बह रहा है और वो बेहोश हो गई है. उसे टेंशन हो गया. मां के सिर से खून लगातार बह रहा था. उसने एक कपडा कस कर बांधा और खून को रोका. फिर बेहोश मां को उठा कर कार में सुलाया. तेजी से अस्पताल ले गया. एक पूरा दिन मां बेहोश रही. गोपाल को आपने गुस्से पर अफ़सोस हुआ. इस तरह कोई किसी को मारता है क्या? और फिर यह तो मां थी! पर मां क्यों ऐसी गंदी हरकत कर रही थी?

कभी उसे खुद पर गुस्सा आता, कभी अपने दोस्त हरीश पर और कभी अपनी मां पर.

अब तक मां गांव में अकेली रहती थी. मां ने उसे बड़ा करने बहुत दुख झेले थे. कुछ दिनों पहले जब गोपाल ने नया घर लिया तब गांव जा कर मां को ले आया. सोचा था साथ में आराम से मां-बेटा रहेंगे.

चंदा बहुत खुश हो गई और मुंबई के नए घर में ख़ुशी से रहने लगी. जैसा गोपाल ने सोचा था वैसा : रानी की तरह. घर के काम के लिए नौकर रखे गए. अब चंदा को सिर्फ अमीरी भुगतनी थी.

और एक दिन संयोग से गोपाल घर जल्दी आया तो देखा की वो उस के दोस्त हरीश के साथ लगी हुई थी!

फिर उसने मां को जख्मी किया, अस्पताल में दाखिल किया और डॉक्टर ने कहा था कि हप्ता भर मां को अस्पताल में रुकना होगा.

और अभी देर रात वो अपनी कार में घर लौट रहा था. अपनी सोसायटी का गेट उसने कार से उतर कर खोला फिर कार में बैठने जा रहा था की उसे किसी औरत की ‘बचाओ, कोई मदद करो’ ऐसी आवाज सुनाई दी. करीब की अंधेरी गली से आवाज आ रही थी. उसने अपने मोबाइल की टॉर्च ऑन की ओर उस गली में आवाज कहां से आ रही है यह जानने की कोशिश की. पता चला की म्युनिसिपल ने रोड की जहां तहां खुदाई की थी. उनमें से एक गड्ढे में एक औरत गिर गई थी. गोपाल ने उस औरत के दोनों हाथ पकड़ कर बाहर खींचने की कोशिश की पर पकड़ जम नहीं रही थी बार बार वो औरत के हाथ गोपाल के हाथो से फिसल जाते थे. गोपाल परेशान हो गया. वो औरत भी अब रोने लगी. न चाहते हुए गोपाल ने आखिर उस औरत की छाती पर हाथ रख कर उसके दोनों मम्मे पकडे और कहा. ‘इन्हे थाम कर शायद मैं आपको बाहर निकाल पाऊंगा, चलेगा आप को?’

‘बेटा , जो थामना है थामो पर मुझे इस गड्ढे से बाहर निकालो…’ वो औरत ने रोते हुए कहा.

गोपाल ने उस औरत के दोनों मम्मे पकड़ के उसे ऊपर खींचना शुरू किया. किसी तरह वो आधी बाहर आ गई. फिर उस की कमर में हाथ डाल कर गोपाल ने खिंचा. तब कहीं वो बाहर आई.

उस औरत ने रोते हुए उसका शुक्रिया अदा किया और बिनती की की उसे अपने घर तक छोड़ दे.

गोपाल ने पूछा की ‘आपका घर कहाँ है?’ पर उस औरत को अपना घर कहाँ है वो याद नहीं आया. वो फिर रोने लगी. गोपाल को उस पर दया आ गई. बेचारी को गिर जाने की वजह से बहुत जगह चोट लगी थी, साडी भी तीन चार जगह फट गई थी. उस की उम्र गोपाल की मां जितनी लग रही थी. गोपाल ने कहा. ‘आप मेरी मां समान है. प्लीज़ रोइए मत. मेरा घर यहीं पर है. अभी आप मेरे घर चलें. रात रुकिए क्योंकि बहुत देर हो गई है. इतनी रात को आपका घर हम ढूंढ नहीं पाएंगे. आप के घर में कौन कौन है?’

वो बोली -एक बेटा है पर वो दिल्ली गया हुआ है, कल सुबह वापस लौटेगा.और इस शहर में वो किसी को नहीं जानती.

गोपाल ने कहा. ‘आप को मुझ पर भरोसा हो तो मेरे घर चलो, सुबह दिन के उजाले में आपका घर ढूंढेंगे.’

‘दिन के उजाले में मुझे अपना घर मिल जाएगा पर इस अँधेरे में कुछ समझ में नहीं आ रहा.’

‘तो आप चलना चाहोगे मेरे घर?’ गोपाल ने पूछा.

‘तुम मेरे बेटे जैसे हो, बड़ा उपकार होगा अगर आज रात मुझे आसरा दे दो तो!’

इस तरह एक अनजान औरत को गोपाल अपने फ्लैट पर ले आया.

****

घर पर ढंग की रौशनी में गोपाल ने पहली बार उस औरत को ढंग से देखा. दिखने में सुंदर थी पर उसकी हालत खराब थी. कोहनी और घुटनों में चोट लगी थी. साड़ी ब्लाउज़ कीचड़ से गंदे हो गए थे और उसकी कमर में बहुत दर्द हो रहा था.

गोपाल ने कहा ‘सबसे पहले आप नहा लीजिए, फिर मैं आप को बदलने के लिए कपड़े देता हूँ.’ कह कर उसे बाथरूम दिखाया और अपनी मां के कपड़ो में से इस औरत के लिए वो कपडे ढूंढने लगा. एक गाउन ले कर वो बाथरूम की और गया, यह सोच कर की गाउन बाहर रख देगा, पर बाथरूम से कोई आवाज ही नहीं आई सो उसने बाथरूम के दरवाजे के पास खड़े हो कर पूछा ‘आप ठीक तो है?’

‘अंदर आ जाओ बेटा.’ उस औरत ने कहा.

गोपाल ने बाथरूम का दरवाजा खोला और देखा तो वो औरत थक कर अंदर रखे हुए प्लास्टिक के स्टूल पर बैठी थी. साडी ब्लाउज़ के साथ.

‘आप ने ये गंदे कपडे निकाले नहीं अब तक? नहा लीजिये फिर मैं आपकी चोट पर दवाई लगा देता हूँ.’

‘बेटा , इतना बदन दर्द कर रहा है कि मैं कुछ नहीं कर पा रही, तुम ही मुझे नहला दो न ? मेरे बदन से इतनी बू आ रही है कि सहन नहीं हो रही.’

‘पर आप एक औरत हो, मैं कैसे क्या…?’ गोपाल सकपका गया.

‘इतनी मदद की है तो थोड़ी और कर दो.’ उस औरत ने विनती की.

गोपाल बोला. ‘आप मेरी मां की उम्र की है. मैं आप को कैसे नहला सकता हूँ?’

उस औरत ने कहा. ‘अगर मुझे अपनी मां समान मानते हो तो क्या अपनी मां की यह हालत होती तो तुम नहीं नहलाते?’

गोपाल उलझ गया. फिर बोला. ‘आप की बात सही है पर किसी औरत को नंगे बदन देखने पर किसी भी मर्द का ईमान डोल सकता है. मैं कोई संत आदमी नहीं, आप मुझे ऐसी कसौटी में मत डालिये, प्लीज़ खुद नहाने की कोशिश कीजिये.’

कह कर वो बाहर जाने लगा तभी उस औरत ने उसका हाथ थाम कर कहा. ‘जब तुम मुझे मां बोल रहे हो फिर इतना संकोच क्यों बेटा ? कोई बेटा अपनी मां के साथ बुरा करता है क्या? कर सकता है क्या?’

आंखे मूंद कर गोपाल बोला. ‘आप जिद मत कीजिए, आप मेरी मां समान हो, पर काफी सुंदर हो…’

‘क्या मां सुंदर नहीं हो सकती?’

‘अब आप को कैसे समझाऊं?’

‘सुनो, बेटा मां को सिर्फ प्यार कर सकता है, बेटा मां को कभी दुखी नहीं कर सकता. तुम पर मुझे भरोसा है…’

‘पर मुझे मुझ पर भरोसा नहीं उसका क्या?’

‘क्या कर लोगे तुम मेरे साथ? मेरा नंगा बदन देख शायद ये हरकत में आ जाएगा यह डर है तुम्हारा?’ कहते हुए उस औरत ने गोपाल के पेंट में उभरे लिंग को सहलाया. गोपाल आश्चर्य से देखता रह गया. औरत ने हंस कर कहा. ‘डरो मत. बेटा, इस से भी आखिर तुम जो करोगे वो प्यार ही होगा.’

गोपाल यह सुन कर दंग रह गया. वो औरत बोली. ‘जो बेटा इतना लिहाज और इतना संकोच रखता हो वो कैसे कुछ गलत करेगा? जब गढ्ढे से बाहर निकालने तुमने मेरी छाती पकड़ ली थी तब बाहर आते ही एक भी पल गँवाए बिना तुमने मेरे मम्मे छोड़ दिए थे. तभी मैं समझ गई थी की तुम कितने साफ़ दिल इंसान हो. वरना मैं यहां कभी आती ही नहीं.’

गोपाल देखता रह गया.

‘अब ज्यादा सोचो मत और मेरे कपड़े निकालने में हेल्प करो, चलो.’

गोपाल ने चुपचाप उस औरत की साडी निकाली. ब्लाउज़ और पेटीकोट में वो सेक्सी लग रही थी. उसकी गांड का उभार देखते हुए वो उत्तेज्जित हुआ इतने में उस औरतने पेटीकोट का नाडा खोल दिया और बड़ी सी गांड पेंटी में कैद गोपाल के सामने लहराई. तब उस औरत ने कहा. ‘बेटा, ब्लाउज़ निकालो मेरा हाथ दर्द के मारे मूड नहीं रहा.’

गोपाल ने कांपते हाथो से ब्लाउज़ निकाला, फिर ब्रा. उसके बड़े मम्मे देख कर गोपाल का लिंग तन गया. तुरंत उसने शावर ऑन कर दिया. औरत ने भीगते हुए अपनी पेंटी निचे सरकाई. गोपाल ने लजा कर मुंह फेर लिया तब उस औरत ने उसका मुंह अपने और कर के कहा. ‘इतना मत शरमाओ मेरे भोले बच्चे, आओ मां के पास.’

कह कर उसने गोपाल को करीब खिंचा. अब गोपाल से रहा नहीं गया वो उस औरत को बांहो में ले कर चूमने लगा. एक मिनट लंबी किस के बाद उसने पूछा. ‘आप कमाल औरत हो, आपका नाम क्या है?’

‘मेरा नाम सुधा है पर तुम मुझे मां ही पुकारो.’ उसने हंस कर जवाब दिया और पूछा. ‘मां की चुम्मी अच्छी लगी?’

‘बहुत प्यारी.’

‘मां का और कुछ अच्छा नहीं लगा?’ आँख नचा कर उस सुधा ने पूछा.

गोपाल ने शर्मा कर कहा. ‘आपका पिछवाड़ा भी खूबसूरत है.’

सुधा ने गोपाल के दोनों हाथ पकड़ कर अपनी गांड पर रख कर पूछा. ‘इस की बात कर रहे हो?’

जवाब में गोपाल दोनों हाथों से उसकी गांड दबाते हुए उसे फिर चूमने लगा. गोपाल दो एक बार वेश्याओं के पास जरूर गया था पर इस तरह चालीस साल के करीब की औरत को पहली बार नंगा देख रहा था.

गांड दबाते दबाते अनजाने में उसने उस की चुत सहलानी शुरू की. तब सुधा ने हंस कर गोपाल के कान में कहा. ‘मां की चुत टटोल रहे हो?’

शर्मा कर गोपाल ने हाथ हटा लिया. और कहा. ‘चलो मैं आप को ठीक से नहला देता हूँ.’

‘अपने कपड़े भी निकाल दो, देखो कैसे भीग गए है.’

गोपाल फिर उलझ गया. सुधा ने कहा. ‘अब क्या खुद नंगे होने में लाज आ रही है? इतना डरते क्यों हो तुम?’

गोपाल ने बिना बहस अपने कपड़े निकल दिए. सुधा ने उसके तने लिंग को थाम कर कहा. ‘किसी भी तनाव में मत रहो. तुम एक प्यारे से अच्छे बच्चे हो. समझे?’ और लिंग छोड़ कर स्टूल पर बैठ कर बोली. ‘अब बिना किसी संकोच के नहलाओ मुझे.’

सुधा की पीठ साफ़ करते वक्त गोपाल का तना लिंग बार बार सुधा के चहेरे से टकरा रहा था. गोपाल को अजीब लग रहा था पर बाथरूम इतना छोटा था की और कोई चारा नहीं था. अचानक सुधा ने गोपाल का लिंग अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी. गोपाल को बहुत अच्छा लगा. खड़े खड़े वो लिंग चुसवाता रहा. पांच मिनिट चूस कर जब सुधा ने लिंग बाहर निकला तब गोपाल ने कहा. ‘थैंक्स.’

‘मां का तो बेटे पर हर पल प्यार होता है…इस में थैंक्स क्या ? कोई मां को थैंक्स नहीं बोलता बुद्धू !’

‘पर कोई मां अपने बेटे का इस तरह मुंह में भी नहीं लेती.’

‘तुम्हे क्या पता ? अपनी मां को पूछा है कभी की मुंह में लोगी क्या?’

ऐसे सवाल के लिए गोपाल तैयार नहीं था. उसकी मां चंदा उसका लिंग चूस रही है ऐसा दृश्य उसकी आँखों के सामने आया. उसने अपने सर को झटक कर कहा. ‘नहीं मेरी मां ऐसा नहीं कर सकती.’

‘अच्छा ?’ सुधा ने हंस कर पूछा. और तुरंत गोपाल को फलेश हुआ की उसकी मां कैसे उसके दोस्त से चुदवा रही थी…

‘छोडो यह सब बातें.’ सुधा ने कहा. ‘तुम्हें अच्छा लगा मैंने जो किया वो?’

‘आपने मुझे बहुत आनंद दिया इसमें कोई शक नहीं.’

‘बजाय थैंक्स कहने के तुम भी वैसा आनंद मुझे दे सकते हो.’ सुधाने कहा और अपने पैर चौड़े कर दिए. और कहा. ‘मां को भी तो आनंद लेने का हक होता है न ?’

गोपाल बैठ कर सुधा की चूत चाटने लगा.

सुधा ने सिसकारियां भरते हुए गोपाल के हाथ थाम कर अपने मम्मो पर रखते हुए कहा. ‘हर मां बेटे के प्यार को तरसती है पर तुम जैसे निर्दयी बेटे अपनी मां की और देखते ही नहीं…’

यह सुनकर गोपाल बहुत उत्तेजित हो गया. काफी देर उसने सुधा की चुत को चाटा, चूमा, चुत के रस को चूस चूस कर पीया.

फिर कहा. ‘सुधा…’

सुधा ने उस के होठों पर ऊँगली रख कर रोका : ‘शशश…. मैंने कहा न मुझे मां कहो?’

‘पर क्यों? मुझे आप को मां कह कर यह सब करना अजीब लगता है.’

‘प्लीज़ बेटा ? मेरे खातिर?’ सुधा ने विनती की आवाज में कहा. ‘मैं अपना खजाना अपने बेटे पर लुटाना चाहती हूँ. पर वो तो मेरी और देखता भी नहीं. जब तुम मुझे मां पुकारते हो तब मैं मन मनाती हूँ की मेरा अपना बेटा मुझे प्यार कर रहा है.’

सुधा की बात सुनकर गोपाल अचंभे में पड़ गया. क्या कोई औरत ऐसा भी सोच सकती है?

‘अच्छा मां, जैसी आपकी मर्जी.’ गोपाल ने कहा और सुधा के मम्मे को थाम कर दबाने लगा. गोपाल ने नोटिस किया कि उस को खुद को भी सुधा को मां कह कर यह सब करने में अलग ही उत्तेजना हो रही है. सुधा ने लाड भरे स्वर में पूछा. ‘मेरे बच्चे को क्या चाहिए? भूख लगी है मुन्ना? मां का दू दू चाहिए?’

यह सुन अत्यंत उत्तेजित हो कर गोपाल ने कहा. ‘हां मां तेरा दूदू पिऊंगा.’

‘लो न बेटा, मां का आंचल बेटे के लिए हर पल खुला ही होता है…’ गोपाल झुक कर सुधा के मम्मे चूसने लगा.

कुछ देर एक मम्मा चूस कर जब गोपाल ने मुंह से उसे निकाल कर दूसरा मम्मा लेना चाहा तब सुधा ने गोपाल के सर में हाथ घुमाते हुए प्यार से कहा. ‘ जी भर के पियो बेटा, मां का दू दू बेटा नहीं पियेगा तो क्या पडोसी पीएंगे?’

‘पडोसी!’ गोपाल ने आश्चर्य से पूछा. ‘वो भी तुम्हें ऐसी निगाहों से देखते है?’

‘मुवे सारे पड़ोसी मर्द लार टपकाते रहते है, लेकिन बेटे का माल मां पड़ोस में क्यों बांटेगी? मेरे पास तो इतना प्यार करने वाला बेटा है देखो कितने चाव से मां के नीपल को दांतो में जकड कर जुबान से रगड़ रहा है…. उफ़ हाय मेरे बच्चे ! ऐसा जादू तो तेरे बाप को भी नहीं आता रे…’

गोपाल सुधा की बातों से भयंकर उत्तेजित हो गया था. ‘मां, चलो बाहर पलंग पर चलते है…’

सुधा खड़ी हो गई और बोली. ‘पहले मेरा बदन तो पोंछ लो ?’

गोपाल ने सुधा के बदन को ठीक से पोंछ लिया और अपनी मां का गाउन पहना दिया और खुद की कमर पर एक तौलिया लपेट कर सुधा को सहारा देकर बाहर पलंग तक ले गया. फिर सुधा से पूछा. ‘थोड़ा बियर पीना चाहोगी?’

‘मैंने कभी पी नहीं… ‘

‘कुछ नहीं होगा मां , तुम्हारा दर्द थोड़ा कम होगा, नींद भी अच्छी आएगी.’

‘ठीक है, दे दो चख लेती हूँ.’

गोपाल ने पहले तो फर्स्ट-एइड के बक्से से सुधा की सारी चोट पर दवाई लगाईं. फिर दोनों के लिए बियर निकाली. थोड़ी बियर पी कर सुधा बहक गई. बोली. ‘अगर तुम मेरे बेटे होते तो मैं इसी तरह घर में बैठी तुम्हारी राह देखती.’

‘इसी तरह मतलब?’

‘यूँ केवल गाउन पहने- बिना ब्रा और पेंटी के.’

गोपाल को इस कल्पना से मजा आया. ‘फिर मेरे घर आ जाने पर क्या करती?’

सुधा पलंग से उठ कर खड़े होते हुए बोली. ‘ऐसे खड़ी होती और यूँ गाउन उठा कर…’ कहते हुए गाउन उठा कर अपनी चुत दिखाते हुए बोली. ‘पूछती, - आ गया मेरा राजा बेटा ?’

गोपाल ने तौलिये के छोर से तन कर बाहर आ चुके अपने लिंग को सहला कर आँखे मूंद कर कहा. ‘ओह मां !’ और मां बोलते ही उस की आँखों के सामने उसकी अपनी मां चंदा यूँ गाउन उठा कर चुत दिखा कर उसका स्वागत करती हुई दिखाई दी. वो उत्तेजना से कांपने लगा…

सुधा ने कहा. ‘हां बोलो मेरा बच्चा?’

गोपाल ने सुधा को करीब खिंचा और कहा. ‘तुम कितनी सुंदर हो मां!’

‘चल झूठे! मुझे पता है तू मां की जूठी तारीफ़ क्यों कर रहा है बदमाश बेटा.’

‘नहीं मैं झूठ नहीं बोल रहा…’

‘मुझे पता है तू कुछ गंदा गंदा सोच रहा है… है ना?’

‘नहीं मां , मैं तो तुम से प्यार करना चाहता हूँ.’

सुधा ने गोपाल के कान में कहा. ‘बेशर्म बेटे यह क्यों नहीं कहता कि तू अपनी मां चोदना चाहता है…’

गोपाल को सुझा नहीं की क्या बोले. सुध ने गोपाल का चेहरा थाम कर कहा. ‘ इतना हिचकिचा क्यों रहा है मेरे बच्चे? लड़की का तो फर्ज है घर के मर्दो को खुश करना. शादी के पहले मायके में सब को खुश करती है फिर ब्याह के पति को खुश करती है, ससुराल के सभी बड़े छोटो को प्यार करती है और जब जब बेटे बड़े हो जाए तो…’

‘तो?’ अत्यंत उत्तेजित हो कर गोपाल ने पूछा.

‘तो यूँ घाघरा उठा कर बेटे को खुश करती है.’ कहते हुए सुधाने फिर अपना गाउन उठा कर चुत दिखाई.

‘मां सब को खुश करती है?’ पूछते हुए गोपाल ने सुधा की चुत सहेलानी शुरू की.

‘सब को. पति को पति के दोस्तों को… बेटे को, बेटे के दोस्तों को…’

‘ऊफ्फ मां न हुई, रांड हुई.’ गोपाल ने कहते हुए अपने लिंग में तनाव महसूस किया.

‘हाँ, सही बोला. हर मां घरेलू रंडी ही होती है बेटा.’

यह सुन कर गोपाल आँखे मूंद कर सुधा की चुत में ऊँगली अंदर बाहर करते हुए मजे लेने लगा.

अचानक सुधाने गोपाल का हाथ अपनी चुत से हटा कर कहा. ‘बस करो. तुम बहुत ढोंगी हो.’

‘क्या हुआ?’ गोपाल ने बौखला कर पूछा.

‘कब से मां मां तो मुझे बोल रहे हो पर असल में आँखे मूंद कर अपनी मां को याद कर रहे हो है न ? इस मां की तो तुम्हे कुछ पड़ी नहीं जो अभी तुम्हारे सामने है.’

‘नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं मां.’ गोपाल को समझ में नहीं आया की क्या जवाब दे. यह सच था कि बार बार यूँ मां मां बोलने से उसके मन में उसकी मां चंदा के साथ वो यह सब कर रहा हो ऐसा महसूस हो रहा था.

‘सच सच बताओ अगर मेरी जगह तुम्हारी अपनी मां होती तो क्या तुम उसे यूँ आधा घंटा उसके मम्मे, निपल, चूत को बहला बहला कर अपने लोडे के लिए तड़पाते ? नहीं. क्योंकि तुम जानते हो की इस तरह मां को गरम भठ्ठी की तरह तपा कर फिर कुछ न करो तो तुम्हारी मां आपा खो कर, अपना घाघरा उठा कर महोल्ले में खड़ी हो कर चीखेगी की लो ये प्यासी चुत… चढ़ो मुझ पर महोल्ले वालो, मेरा बेटा तो मुझे गरम करके तड़पा रहा है… मेरी ले नहीं रहा… आप लोग फाड़ दो मेरी फुदी और मुझे सुकून दो… - बोलो क्या तुम अपनी मां पर ऐसा जुल्म करोगे? कभी नहीं. पर मुझ पर कर रहे हो- क्योंकि मैं तुम्हारी मां नहीं….’


यह बातें सुन कर गोपाल को लगा जैसे उसकी मां चंदा मोहल्ले के बिच अपनी चुत नंगी कर के सब को चोदने को मिन्नते कर रही है. इस कल्पना से गोपाल इतना जोश में आ गया की सुधा की चुत में अपना लिंग घुसा कर शुरू हो गया......

****

सुबह होने पर गोपाल सुधा को उसके घर छोड़ने गया. ‘आज सुबह मेरा बेटा दिल्ली से वापस आने वाला है, हो सकता है अब तक आ गया हो, मुझे न देख कहीं गभरा न जाए.. ‘

गोपाल ने कहा, ‘फ़िक्र मत करो, मैं समझाऊंगा की रात को आप कैसे गड्ढे में गिर गई थी..’

सुधाने कहा की ‘आज शाम की गाड़ी से मैं अपने गांव वापस जा रही हूँ, पता नहीं कब वापस आउंगी.’

गोपाल कुछ कहने वाला था इतने में जिस मोहल्ले में वो लोग पहुंचे वो देख गोपाल हैरान हुआ. क्योंकि हरीश भी इसी मोहल्ले में रहता था. गोपाल ने सोचा कमीना हरीश अगर टकरा जाएगा तो क्या करूँगा? अचानक सुधा के साथ रात को उसने जो किया वो याद आने पर वो शर्मिंदा हो गया. उसने सोचा हरीश ने जो मेरी मां के साथ किया वही तो आज मैंने किसी अनजान लड़के की मां के साथ किया! तो फिर हरीश की भी क्या गलती! हो सकता है इस सुधा की तरह मेरी मां ने भी हरीश को कहा हो की ‘मेरा बेटा तो मेरी लेता नहीं, तू तो ले ले !’

इस कल्पना से गोपाल हिल गया.

क्या मेरी मां चंदा भी मेरे लिंग के लिए तरसती होगी जिस तरह यह सुधा अपने बेटे से चुदवाने तड़पती है?

गोपाल की अपनी मां के बारे में सोच ही बदलने लगी.

पर गोपाल के तोते तब उड़ गए जब सुधा उसे हरीश के ही घर के दरवाजे पर ले आई.

गोपाल ने चौंक कर पूछा : क्या यही आप का घर है?

सुधा ने कहा, ‘हाँ, शायद मेरा बेटा दिल्ली से लौट आया है, क्योंकि दरवाजे पर ताला नहीं लगा, अंदर से बंद है.’ कहते हुए सुधा ने कमरे के दरवाजे के पास की खिड़की से अंदर झाँक कर देखा और गोपाल को बताया. ‘वो देखो मेरा बेटा सो गया है, शायद सफर में थक गया होगा.’

गोपाल ने देखा, अंदर हरीश सोया हुआ था.

गोपाल को अजीब टेंशन हो गया : तो यह हरीश की मां है!

सुधा ने कहा. ‘रुको जगाती हूँ.’

तुरंत गोपाल ने कहा. ‘सोने दो, तुम्हारे बेटे से मैं फिर कभी मिल लूंगा. अब मैं चलता हूँ.’

सुधा ने कहा. ‘कभी आना हमारे गांव, मैं तो अब वापस कब यहां आउंगी पता नहीं.’

‘जी जी… ‘ ऐसा बोल कर अपना सर हिलाते हुए गोपाल तेजी से निकल गया.

****


रास्ते में गोपाल किसी चाय की टपरी पर चाय पीने रुका. शांत हो कर सारी घटनाएं फिर एक बार सोची. उसे हुआ : हरीश ने जो मेरी मां के साथ किया वही मैंने उसकी मां के साथ किया. फर्क यह है की वो पकड़ा गया और मेरे बारे में हरीश को पता नहीं. पर हरीश को कसूरवार नहीं समझा जा सकता क्योंकि जैसे मैं बह गया हो सकता है वैसे ही हरीश भी बह गया होगा!

और जैसे सुधा अपने बेटे से चुदवाने की प्यास में मुझ से चुद गई हो सकता है उसी तरह शायद मेरी मां मुझ से चुदवाने की तड़प में हरीश से चुद गई हो?

उसने हरीश को व्हॉट्स एप मेसज भेजा : माफ़ करना दोस्त, उस दिन फ़ालतू में मैं तुझ पर इतना भड़क गया. शाम को हमेशा मिलते है उस बार में मिलेंगे…साथ में दारु पिएंगे… जो हो गया उस पर मिट्टी डालो यार…

यह मैसेज भेज कर गोपाल के दिल को तसल्ली मिली.

फिर गोपाल अपनी मां चंदा के बारे में सोचने लगा.

रात भर सुधा को चोदते हुए ‘मां…. मां… ‘ पुकार पुकार कर गोपाल के मन में उसकी खुद की मां चंदा की इमेज तहस नहस हो चुकी थी.

सुधा का घर ढूढ़ने वो लोग बाहर निकले उससे पहले घर पर चाय पीते हुए गोपाल ने सुधा से पूछा था : क्या मेरी मां भी चाहती होगी की मैं उससे यूँ ही फिजिकल प्यार करूं ?’

‘बिलकुल मुमकिन है.’ सुधा ने कहा था.

‘पर पता कैसे किया जा सकता है?’

एक तरीका है.’ सुधा ने कहा था : ‘ सुबह जब तुम्हारी मां तुम्हे नींद जगाने आये तब तुम नींद में खोये होने का नाटक करो और हाफ पेंट से अपना लिंग बाहर निकाल कर रखो. जब मां आएगी तब वो तुम्हारे लिंग को यूँ खुला देख कर क्या करती है वो देखो. अगर वो तुमसे चुदना चाहती ही तो वो तुम्हारे लिंग को होले से सहलाएगी, उसे प्यार करेगी. और अगर वो ऐसा कुछ नहीं सोचती तो तुम्हारे लिंग पर चादर ढांक कर चली जायेगी.’

गोपाल को यह आइडिया बहुत सेफ लगा था.

कब मां को अस्पताल से छुट्टी मिलेगी और कब वो मां के इरादे चेक कर पायेगा ?

गोपाल मां के घर लौटने का बेसब्री से इंतजार करने लगा.

***

दूसरी और हरीश के घर : हरीश गोपाल का व्हॉट्स एप मेसज पढ़ कर मुस्कुराया और सुधा को एक कवर देते हुए बोलै. ‘परफेक्ट एक्टिंग की है कल रात तुमने ! ये लो गिन लो, तुम्हारे रेट से दोगुना है.’

सुधा ने गिनते हुए कहा. ‘जाहिर है! रंडी के रेट से ठरकी मां का रेट दोगुना ही होना चाहिए.’

और जाते हुए बोली. ‘दोस्ती बचाने इतना बड़ा नाटक?’

हरीश ने कहा. ‘ जब दोस्त की मां पर दिल आ जाए तो बहुत नाटक करने पड़ते है.’

‘दिल दोस्त की मां पर आया है या मां की चुत पर ?’

सुधाने पूछा. जवाब में हरीश जोरो से हंस पड़ा. सुधा भी हसते हुए पैसे पर्स में रखते चलती बनी.


समाप्त

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Nice Story

Jab Harish bina kuch bole waha se chala gaya aur kuch din baad hi ek anjaan aurat Gopal ke palle padhi tabhi shakk hogya thaa.

Aur jab uss anjaan aurat ne kaha ke usse uska ghar yaad nhi aaraha tabhi shakk aur gehra hota gaya. Aur yeh Gopal kya bewakoof hai. Uss aurat ne bola ghar yaad nhi aaraha hai aur woh maan gaya. Agar uss aurat ke sir mein chott lagti woh behosh hojaati tab maan bhi lete par yaha toh aisa kuch hua nhi.

Aur phir jab Gopal ke ghar mein uss Sudha ne apna randi pana dikhaya tabhi shakk yakeen mein badal gaya tha aur jis tarah se woh Gopal ko uski Maa banke attract kar rahi thi woh toh alag hi thaa. Idher Gopal se badha bewakoof koi nhi. Sudha aur Harish ne milke usse aasani se bewakoof bana diya.
 
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Story - " pari "
Writer - Indian Princess .

दुखों से मेरा नाता है.. दुखों से मेरा रिश्ता है.. दुःख ही मेरी पहचान है ।
यह मैं आप की कहानी के लिए ही नहीं बल्कि अपनी सच्चाई भी व्यक्त कर रहा हूं । ख़ुशी के पल ढूंढने पड़ते हैं मुझे और अगर मिल गया तो वो दिन मैं स्वर्ग का सुख प्राप्त करने जैसा अनुभव करता हूं ।

आप की कहानी हमेशा मेरी हालत बयां करती है । शायद दुखों से आप का भी नाता है और मेरा भी ।
यह कहानी आप की " मीरा सिरीज" की यादें ताजा कराती है ।
एक लड़की जिसके मां बाप भाई सभी को मार दिया गया... एक लड़की जो मुश्किल से उस वक्त दस - बारह साल की होगी... एक लड़की जिसे भगवान ने शारीरिक रूप से विकलांग बना दिया हो.... एक ऐसी लड़की जिसके साथ सालों बलात्कार हुआ हो... एक ऐसी लड़की जो कुंवारी मां बनने वाली हो !
उस बच्ची के साथ ऐसी बर्बरता !
यह मुझे हमेशा दुःख पहुंचाता है । लेकिन ऐसे दुःख देखकर मुझे अपने गम भी कम लगने लगते है ।‌‌ प्रेरणा मिलती है और संघर्ष करने के लिए ।

इस धरती पर कलयुग का शासन है लेकिन कहीं न कहीं सतयुगी लोग भी मिल ही जाते हैं आप के जीवन में । अभिनव सतयुगी इंसान था लेकिन कलयुग में वो कर भी क्या सकता था ! एक अबला और दुखियारी लड़की को तिल तिल मरते हुए देखने के बावजूद भी वो क्या कर सका ! सब कुछ समझते हुए भी वो दर्शक मात्र बना रहा ।

प्रिंसेज मैडम ! मुझे बाकी लोगों के रिभ्यू से कोई मतलब नहीं। पर मुझे यह कहानी पसंद ही नहीं बल्कि बहुत ज्यादा पसंद आया । खास तौर पर लड़की की दर्दनाक मौत । और यही तो क्लाइमेक्स था स्टोरी का ।

एक बार फिर से आपने अपनी लेखनी का जलवा बिखेर दिया । बहुत ही बढ़िया लिखा आपने ।

आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग स्टोरी एंड
जगमग जगमग ।

Thank you Sanju ji. Aap jaise readers jo itne dil se detailed review dene hai, aap log hi mujhe likhte rehne ke liye prerit karte hai.

Asha hai aapka pyar aise hi bana rahega, aur main aapke saamne aur stories pesh karti rahungi :love:
 
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Category : thriller + romance :
This short story is awesome package of revolting emotions, ek choti si kahani me itna sab kuch daalana bahut hi muskil hota hai.
pari aur abhinav do kirdarro ke beech chote chote palo ko pyaar bhara banana aur kirdaaro ke wajan ko badhana, mujhe bahut badia laga. ek trah se dono ke beech ke emotion aaj ki society ko darshaata hai. abhinav ka kirdaar bahut hi saaf dil ka tha, aur to aur wo saaf dil ke rahte usne apne pyaar sheetal ki baato ko bhi khaarij kar dia, apne ussoolo par tika raha.

Writing skills ki baat kare to kahani ko ek sire to aakhri sire tak pahuchaane me lekhika Indian Princess ne bahut hi shaandar tarike se darshaaya hai, kahaani me pari ko lekar bahut saare turning points aaye uske baad bhi kahaani apni pakad majbooti se banayi hui thi, pari ka kirdaar main focus par rakhte hue kahaani ko apnin aakhri mod to badiya tarike se pahuchaya gya.

Reader's view: reader ke tor par story dil ko chuu lene waali thi, do logo ke pyaar, ek beshara ladki aur samaaj ki kaali chaaya ko unda roop se dikhaya gya hai. :claps: :claps:

Thanks so much for your awesome review Dengue :attack:
 
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Pari......ik alagh level ki story emotions se full.....pari jab abinav ko mili toh lga bechari mansik chot se peedit hai....abhinav ki care se usme badlav aae pyaar ke bhaav jagey........ abhinav ka relation v uski vajah se kharab hua ..esey hota hai....at end mental hospital mein jo jo b hua....apke shabdon ne mujhe emotional kr diya aapki lekhni ka kmaal hai ki mein isme doob gya...ending se dil dukha
..jese jese mein pad raha tha ..muje lag raha tha jese mein jo raha hai Issey rok du... realty wali feeling......jyada nhi mujhe revu aata...bass Kamaal dhamaal........ :applause:

Thanks so much for your review :thanks:
 
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