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★☆★ Xforum | Ultimate Story Contest 2022 ~ Reviews Thread ★☆★

Sangeeta Maurya

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अभूतपूर्व biasedCEC Lucifer जी को सप्रेम भेंट

पढ़कर यादें ताजा हो गईं ... कैसे 10,000-15,000 शब्दों के अपडेट देने वाले लेखकों को 1 शब्द, सिर्फ और सिर्फ 1 शब्द की पोस्ट डालकर बकचोदी (chat) करने वालों ने ना सिर्फ हराया बल्कि फोरम छोड़कर भागने पर भी मजबूर कर दिया... इस सबका श्रेय हमारे अभूतपूर्व पक्षपाती सर को जाता है

संगीता जी ने विस्तारपूर्वक घटनाक्रम का विवरण लिखा है इसके लिये मैं उनकी स्मरण शक्ति और लेखन कला की प्रशंशा करता हूँ

अब आते हैं कमजोर पहलू पर....
सबसे पहले तो उन्होने अभूतपूर्व पक्षपाती सर के किरदार के साथ पूरा न्याय नहीं किया, पक्षपाती सर एक विशेष स्तर के षड़यन्त्र निर्माता, अवसरवादी और छल करने में निपुण व्यक्ति हैं इसके लिये इन्हें खलनायक नहीं महानायक के ऱूप में प्रस्तुत किया जाना था क्योंकि कपटी, कुटिल, खल, लम्पट व्यक्ति ही लोकतंत्र जैसी अव्यवस्था को फैलाकर एक्सफोरमपुर जैसे विशाल साम्राज्य को विनाश की ओर ले जा सकते हैं राणा, मानु या अहमद जैसे लोगों के लिये इसमें कोई स्थान नहीं ऐसे दकियानूसी सिद्धान्तवादी लोगों का यहाँ होना लोकतंत्र के लिये शर्मनाक है
दूसरी बात... इस कथा को परिशुद्ध हिन्दी में देवनागरी लिपि में लिखा गया है जो इस कथा से जुड़े अधिकांशत: पात्रों के पल्ले नहीं पड़ेगी....वैसे तो उनमें से ज्यादातर के पल्ले कोई भी कथा नहीं पड़ती, सिर्फ बकचोदी ही कर पाते हैं

मैं आपको अधिकतम अंक देता हूँ इस फोरम पर प्रथम प्रयास के लिये
मेरी पहली कहानी पर अपना पहला रिव्यु देने के लिए बहुत बहुत आभार भैया 🙏 ..........................कहानी के सारे फैक्ट्स मुझे लेखक जी ने बताये थे......................और साथ ही मेरी ग्रामर में की गई गलतियां तथा कहानी का शीर्षक चुनने में लेखक जी ने बहुत योगदान दिया.......................पक्षपाती शैतान सिंह खलनायक था और बहुत कम लोग इस बात को समझे.........................आप मेरे भाई समान हो इसलिए आपको मैंने राणा जी के नाम से नायक का रोल दिया था.....................मैं हमेशा शुद्ध हिंदी में लिखना पसंद करती हूँ इसलिए अगर किसी को समझ नहीं आता............ जैसे की दमहा को हिंदी पढ़नी नहीं आती...................लेकिन उसने भी हिंदी तो हिंगलिश ट्रांसलेटर से कहानी को पढ़ने की कोशिश की और अपना रिव्यु मुझे मैसेज पर दिया.....................अब जो लोग डरते हैं............या खुद ही जालसाझी में भागीदार हैं............वही ये कहानी नहीं पढ़ेंगे..................फिर भी मुझे क्या............मैंने अपना कर्म किया है..............हिम्मत दिखाई है...............और जैसा की लेखक जी कहते हैं सबसे अलग विषय पर कहानी लिखी है...........अगर है दम तो मेरी कहानी को जीता कर दिखाओ
 

Jaguaar

Prime
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माचिस की तीली
एक दिन मेरे एक दोस्त रजनीकान्त का फ़ोन आया और उसने किसी और दोस्त की बहन के बारे में बताया जो मॉडलिंग में अपना कॅरियर बनाना चाहती थी और मुझे उसकी कुछ मदद करने के लिए कहा। मुझे उसके बारे में अन्य जानकारी भी उसने दी -उम्र 20 थी और उसकी शादी नहीं हुई-लगभग 5 ' 6" लंबी-बजन 52 किलो-रंग गोरा, लंबे बाल-उसका चेहरा खूबसूरत और उसका खूबसूरत चेहरे की विशेषता ठीक चीनी मिट्टी के बरतन तरह दोष मुक्त त्वचा हैं-देखने में पतली लम्बी और आकर्षक दिखती है-स्तन बड़े और उसकी गांड दिल के आकार की थी ।

हमारे परिवार के अनेको व्यवसायों में एक व्यवसाय वस्त्रो और खासकर के हैदराबादी मोतियों और आभूषणों का भी है। और अपने एक्सपोर्ट और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए हमे हमेशा मॉडल बनने के लिए सुंदर महिलाओं की तलाश रहती है। उसने मुझसे बोला की भाई एक बार आलिया से मिल लो । तो मैंने कहा भी मुझे कुछ काम के लिए लखनऊ जाना है । उसके बाद मिल लेते हैं ।

मैंने उसे हमारी कम्पनी के अधिकारी का नंबर दे दिया और उसे कहा की वह लड़की उससे बात कर ले ।

जब मैं कॉलेज में था तो कॉलेज में दोस्तों के साथ सिगरेट पीनी शुरू कर दी थी। वैसे तो मैंने कॉलेज की सारी पढाई लंदन में की है लेकिन एक बार छुट्टियों में जब घर आया तो व्यापार के किसी काम से दिल्ली से लखनऊ शताब्दी ट्रैन से 2-3 दिनों के लिए जा रहा था । वैसे तो वहाँ प्लेन से भी जाया जा सकता था लेकिन मेरे पास काफी सामान था इसलिए ट्रैन से जाने का कार्यक्रम बना र्और वही होटल में रुकने का प्रोग्राम था।


ट्रैन में चाय पीने के बाद ज्यादातर लोग ऊँघने लगे। ट्रैन वैसे तो आधी ही भरी हुई थी पर मेरे साथ की सीट पर एक साहब थे और मैं कुछ देर बाहर के नज़ारे देखता रहा पर जल्दी ही बोर हो गया इस बीच मेरे पडोसी साहब सो रहे थे ।

चुकी मैं सिगरेट पीता था और ट्रैन में तो सिगरेट पीने की दिक्कत रहती है पर फिर भी एयरकंडीशन केबिन से बाहर निकल कर टॉयलेट के पास ट्रैन का गेट खोलकर खड़ा हो गया और सिगरेट पीनी में झिझक रहा था । वहाँ इतने में टीटी गुजरा तो उसने बोला अपना ध्यान रखियेगा! मैंने टीटी से पुछा क्या यहाँ सिगरेट पी सकते हैं उसने कुछ जवाब नहीं दिया । मैंने कहा साहब ट्रैन का सफर लम्बा होता है इसमें भी कोई स्मोकिंग केबिन होना चाहिए ।

तो वह मुस्कुरा कर बोलै आप सरकार को सुझाव भेज दीजिये तो मैंने कहा सर आप सुझाव शिकायत बुक दे दीजिये मैं लिख देता हूँ तो उसने मुझे किताब पकड़ा दी और मैंने लिख दिया । मैंने कहा सर इस पर तो अमल जब होगा तब होगा। वह मुस्कुरा दिया ।

मैंने पुछा क्या सर आप भी पीते हैं?

तो वह बोला कभी-कभी पीता तो हूँ पर अभी ड्यूटी पर हूँ किसी ने देखकर शिकायत कर दी तो बेकार की मुसीबत हो जायेगी ।

मैंने कहा सर कुछ करने को तो है नहीं ट्रैन में तो या तो सो जाओ अब नींद नहीं आ रही मेरा लखनऊ का शताब्दी से वह पहला सफर था इसीलिए उससे पुछा ट्रैन कहाँ रुकेगी तो उसने बताया एक ही स्टॉप है कानपुर में । मैंने कहा सर तलब लग रही है क्या किया जाए । सर आपको तलब लगती है कैसे करते हैं?




वह बोला वैसे तो ट्रैन में मना है फिर ही आप पैसेंजर हो दरवाजा खोलकर पी लो । मैं चलता हूँ तो मुझे जैसे हरी झंडी मिल गयी सो सिगरेट निकाली और एक दो सिगरेट उसको भी पकड़ा दी । वह सिगरेट लेकर चला गया और टीटी के जाने के बाद एक सिगरेट सुलगा कर कुछ कश मारे ही थे की कुछ देर में एक बहुत हॉट लड़की आयी , बिलकुल मॉडर्न कपडे एक टाइट घुटनो के ऊपर स्कर्ट और लाल रंग का टाइट टॉप पहना हुआ था । उसके बड़े-बड़े चुचे थे और वही मेरे पास ही खड़ी हो गयी ।

उसकी पोशाक उसके शरीर के चारों ओर कसकर लपेटी गई थी जिसमें उसके बदन के सारे वक्र और आकार सब कुछ दिख रहा था । पहले तो मैं उसे देखता रहा। मेरा लंड थोड़ा ताव ले रहा था फिर ये सोच कर रुक गया कही मेरी सिगरेट पीने पर ऐतराज न करने लगे और शिकायत करने लगे तो सिगरट खुले गेट से बाहर कर खड़ा हो गया और इंतज़ार करने लगा ये चली जाए तो पिऊंगा ।

बड़ी अजीब स्थिति थी उस समय मेरी कहाँ तो ऐसी हसीना को देख कर हर लड़का सोचता है ये मेरे पास ही खड़ी रहे पर मैं सोच रहा था कि ये यहाँ से जल्दी जाए । पर वह वही खड़ी रही तो मुझे लगा ये जाने वाली नहीं है तो एक कश मार कर पहली सिगरेट बाहर फेंकने लगा, तो वह मुस्कुरा कर बोली आप आराम से पी लीजिये मुझे पता है तलब लगने पर रुका नहीं जाता।

तो मैंने कहा जी मोहतरमा ट्रैन का सफर लम्बा होता है और इसमें कोई स्मोकिंग केबिन भी नहीं होता । इनको कुछ सोचना चाहिए स्मोकर्स के लिए । तो वह मुस्कुरा दी और वापिस केबिन में चली गयी ।

अपने सिगरेट ख़त्म कर मैं भी अपनी सीट पर वापिस आ गया और आकर अखबार वगैरा पढ़ने लगा उन दिनों ट्रैन में फ़ोन और नेट नहीं चला करते थे । तो मैं उसके बाद कुछ देर बोर होता रहा मेरे साथ वाली सीट पर बैठे हुए पैसेंजर भी दुसरी खाली सीट पर चले गए शायद उन्हें मेरे मुँह से आ रही सिगरट की गंध पसंद नहीं थी और मेरे पास की सीट खाली हो गयी । फिर कुछ देर बाद सोचा चलो कुछ करने को नहीं है तो एक सिगरेट ही और हो जाए ।

तो मैं उठकर टॉयलेट की तरफ चल दिया सिगरेट फूकने । रास्ते में वह लड़की भी कुछ सीट के बाद बैठी हुई थी उससे मेरी नज़रे मिली मैं उसे देख मुस्कुराया तो वह भी मुस्कुरा दी । मैं बाहर आया तो वहाँ अब कोई नहीं था मैंने दरवाजा खोला और सिगरेट जला ली और कुछ कश मारे । कुछ देर बाद तो वह लड़की मेरे पास दुबारा आकर खड़ी हो गयी .और मैंने उसको पुछा लगता है आप भी बोर हो रही हैं और नींद भी नहीं आ रही है । वह बोली हाँ मुझे ट्रैन में नींद कम ही आती है तो मैंने कहा मेरा भी यही हाल है तो मैंने कहा ये ट्रैन का सफर बहुत लम्बा है।

तो मैंने पुछा आप कहाँ तक जा रही है तो उसने बताया मैं लखनऊ तक जा रही हूँ

तो मैंने कहा आप लखनऊ रहती हैं तो वह बोली वह वैसे तो हिमाचल शिमला की है आजकल दिल्ली में रहकर पढ़ाई कर रही है । लखनऊ में उसका कुछ काम है और शायद दो तीन दिन रुकना होगा तो मैंने कहा मैं भी लखनऊ ही जा रहा हूँ और दो तीन दिन रुकूंगा और मैंने उसे अपना नाम बताया । उसने कहा मेरा नाम आलिया है और हम दोनों ने हाथ मिलाया, उसका मुलायम स्पर्श पाकर मेरा लंड कठोर हो गया और मैंने कहा आप से मिल कर अच्छा लगा ।

उसके बाद इधर उधर की बाते होती रही मैंने उसे बताया मैं अकेला ही लखनऊ जा रहा हूँ और इस बीच मैं सिगरेट के कश मारता रहा और धुआँ ट्रैन के बाहर फेंकता रहा जिससे उसे कोई तकलीफ न हो ।

वह बोली मेरी साथ वाली सीट खाली हो गयी है आप भी अकेले हो तो मेरे साथ वाली सीट पर आ जाओ, तो मैं अंदर उसके साथ ही बैठ गया और हम गप्पे मारते रहे।

कुछ देर बाद मैं उठा और बोला आलिआ मैं आता हूँ और बाहर चला गया और सिगरेट पीने लगा तो वह फिर कुछ देर बाद मेरे पास आकर बोली "एक माचिस की तीली मिलेगी ?

तो मैंने कहा तुम स्मोक करती हो! तो वह बोली हाँ!

तो मैंने कहा फिर पहले क्यों नहीं बताया तो वह बोली मैंने सोचा था तुम सिगरेट ऑफर करोगे तो ले लूंगी पर तुमने की ही नहीं ।

मैंने कहा सॉरी मुझे लगा तुम नहीं पीती हो,अगर पीती होती तो इतनी देर कैसे रूकती, तो वह बोली इतनी नहीं पीती कभी-कभी पी लेती हूँ पर तुम्हारे मुँह से आ रही सिगरेट की स्मेल ने तलब जगा दी है।

तो उसने अपनी जेबे टटोली और बोली मेरी सिगरेट लगता है बैग में है । मैं लेकर आती हूँ तो मैंने कहा आप कौन-सा ब्रांड लेती हो इससे पहले वह कुछ बोलती मैं फिर बोला गर ब्रांड की परवाह नहीं करती हो तो मेरी डिब्बी से ले लो और अपनी क्लासिक की डिब्बी खोल कर एक सिगरेट आगे निकाल कर उसके-उसके आगे कर दी। तो वह बोली मेरा भी यही ब्रांड है ।

उसके बाद उसने एक सिगरेट अपनों लाल रसभरे ओंठो से लगाई तो मैंने माचिस जलाकर उसकी सिगरेट जला दी उसने कहा थैंक यू और फिर दोनों जोर से हस दिए ।

मैंने कहा इतनी देर तक तलब कैसे बर्दाश्त कर ली तुमने1 मेरे सामने कोई पी रहा हो तो मुझसे तो रुका ही नहीं जाता।


वह बोली मैं कभी-कभी दोस्तों सहीलियो के साथ पी लेती हूँ तो मैंने कहा कभी-कभी पीती हो और डिब्बी रखती हो! तो वह मुस्कुरा कर बोली दिल्ली के बाहर कई बार ब्रांड नहीं मिलता इसलिए स्टॉक लेकर चलना पड़ता है।

अब आप से परिचय हो गया है इसलिए कोई दिक्कत नहीं है । । खैर इस तरह सफर कटा और हम दोनों दोपहर से पहले लखनऊ पहुँच गए।

लखनऊ में हम अलग हो गए और जब होटल पहुँचे तो वह भी उसी होटल में ठहरी जिसमे मैं ठहरा ।


हमारी कम्पनी ने कुछ विदेशी ग्राहकों को अपने नए प्रोडक्ट और वस्त्र पेश करने थे और हमारी टीम वहीँ पर थी और मैं कुछ कीमती समान खुद ले कर गया था। वहाँ पहुँच कर मुझे मेरे मैनेजर ने बताया की आपके दोस्त रजनी ने किसी मॉडल को मेरा नंबर दिया था और वह लड़की लखनऊ में है और मैंने उसे आपसे मिलने को बोलै है । चुकी उस समय हम एक छोटा-सा फैशन शो अपने ग्राहकों के लिए कर रहे थे तो काफी सामान मेरे साथ आया था । उस समय हम थोड़ा बिजी थे तो मैंने मैनजेर को बोला लड़की को शाम को आने को बोलो ।

शाम के समय में मेरे कमरे की बेल बजी और मैंने दरवाजा खोला तो आलिआ मेरे सामने थी। उसके गले में डबल मोती की माला थी, जो उसके हंस जैसी सुंदर गर्दन, और उंगलियों पर हीरे की अंगूठी उसकी सुंदरता की बढ़ा रही थी थी। मेरे लिए वह मिस वर्ल्ड और मिस यूनिवर्स दोनों का मिला जुला रूप लग रही थी और हम दोनों एक दुसरे को देख कर बहुत हैरान और खुश हुए और मैंने उसे खाने पर आमंत्रित किया और हमने मेरे कमरे में ही खाना खाया ।

उसके खूबसूरत चेहरे को देखकर मैं सोच रहा था कि उसकी चूत कितनी खूबसूरत होगी और मेरा लंड खड़ा हो गया। हमारी बातचीत के दौरान समय-समय पर मेरा लंड सख्त होता रहा। कुछ मौकों पर मुझे अपनी स्थिति को समायोजित करना पड़ा ताकि मैं अपने लंड की कठौता को छुपा सकूं।

तो आलिया ! आप फैशन मॉडल बनना चाहती हैं? मैंने उसके घुटने थपथपाते हुए कहा। हमने इसके बारे में थोड़ी देर बात की और मैं इतना केयरिंग और विचारशील लग रहा था कि उसने मेरे साथ खुल कर बात करना शुरू कर दिया। उसने यह भी स्वीकार किया कि वह यौन रूप से भी सक्रिय नहीं थी। बातचीत काफी सुकून भरी थी भले ही थोड़ी-सी सेक्स पर चर्चा की गई पर उसे यह अजीब नहीं लगा कि उसने अपने सबसे करीबी दोस्तों के साथ भी अपनी सेक्स लाइफ के बारे में कभी चर्चा नहीं की थी और फिर भी यहाँ वह मेरे साथ काफी खुल गयी थी। शायद हमारा परिचित होना उसके संकोच को कम कर रहा था।


मैं उसे बोला आलिया आप बहुत सुंदर हो और क्या आप वह सब पहनेगी जो फैशन मॉडल पहनती हैं तो वह बोली वह सब कुछ करेगी ।

मैंने पुछा क्या मैं तुम्हे किस कर सकता हूँ तो उसने पल के झुका अपनी सहमति दी।

मैंने उसके गालो पर किस किया तो उसने मुझे पकड़ कर वापिस मेरे होंठो को किस किया और मेरे सर को जकड़ के अपने मुंह से मेरा मुंह लगा दिया और वह मेरे ओंठ चूसने लगी और मैं उसके ओंठ चूसने लगा। थोड़ी देर बाद उसने अपना मुंह थोड़ा-सा खोला और मेरी जीभ आलिया के मुंह में चली गयी।

आलिया ने मेरी जीब चूसने लगी फिर मेरी झीब से खेलने लगी मैं उसकी जीभ से खेलने लगा और मुँह घुमा-घुमा कर उसे चूमा औरउसके मुँह पर उसकी सारी लिपस्टिक फ़ैल गयी कुछ देर सांस लेने के बाद वह मेरे-मेरे साथ लिपट गयी कम से कम 15 मिनट हम एक दुसरे के लबों को चूमते रहे ।

और मैंने मुँह आगे किया और उसे किश किया तो उसने भी किश का जवाब दिया और फिर मैं उसके पीछे हाथ ले गया और मैं उसकी गर्दन के चारों ओर एक हाथ लपेटा और दुसरे हाथ से उसके और उसके स्तनों की सहलाने लगा और उन्हें दबाया। उसने अपनी कमीज के बटन खोलने शुरू कर दिए और फिर उसने अपने आंशिक बटन वाले ब्लाउज को उसकी बाहों से और भी नीचे खिसका दिया। इससे पहले कि मैं कुछ बोल पाता उसका ब्लाउज उसके स्तनों से फिसल गया और उसकी बाँहों से बाहर निकाल दिया।

"वाह आलिया तुम सच में बहुत सुंदर हो" मैंने उसकी तनावपूर्ण प्रतिक्रिया को भांपते हुए कहा, " निश्चित रूप से अन्य लोगों ने आपको पहले भी ब्रा में देखा है! उसके बड़े स्तन उनके बीच की दरार, उसकी लंबी टांगें, उसकी चुभती बड़ी आँखें, उसके गोल, कूल्हे मुझे आमंत्रित कर रहे थे । आलिया बोली आज से पहले मैंने कभी किसी पुरुष के सामने इस तरह से बिकनी पहन कर नहीं गयी हूँ । मैंने उसके स्तनों को चूसा ।

बेशक! आलिया अब मैं तुम्हे पूरी नग्न देखना चाहता हूँ। मेरा लंड कड़ा और खड़ा हो गया था । मैं उसके पास गया और उसकी पीठ के पास गया तो वह बोली प्लीज मेरी ब्रा खोलने में मदद करो

मैंने आएगी बढ़ कर उसकी बिकनी खोल दी और उसके बड़े स्तन उछल कर बाहर आ गये और मैं उन्हें देखने लगा और उन्हें छुआ और हलके से दबा कर उसके चुचकों को सहलाया और बोल ये बहुत सुंदर हैं ।

फिर मैंने उसकी स्कर्ट की ज़िप जो की उसकी पीठ की तरफ थी उसे खोलने में उसकी मदद की और वह सरररर से जमीन पर गिर गयी ।

अब तुम्हारी सुंदर बैंगनी पैंटी के बारे में क्या विचार है। "मैं उसके कान में फुसफुसाया।" मुझे उसे उतारने के लिए कहो। "शब्दों को बाहर निकालने से पहले उसने कुछ गहरी कंपकंपी भरी साँसें ली।" कृपया उसे भी ले लो। उउउ। "" बिल्कुल सही आलिया। मैं इसे तुम्हारे लिए करूँगा। "

मैं अपने हाथों को उसकी पेंटी तक सरकाया और उन्हें नीचे उसकी टखनों तक खींच दिया। जैसा कि अपेक्षित था, उसका शरीर बहुत सुंदर और बिना किसी प्रकार के दोष या दाग के था। उसके सुडौल स्तन सख्त औरबिलकुल ढीले नहीं थे। उसके निप्पल उत्तेजना से सख्त थे और मेरी ओर इशारा कर रहे थे। उसकी सूजी हुई भगंदर उसके निचले होंठों के बीच से बाहर झाँक रही थी, उसकी बाल रहित योनि चिकनी लग रही थी

"अब देखते हैं कि हमारे पास यहाँ क्या है।" मैंने उसकी गांड के गालों को पकड़कर अलग किया तो मुझे उसकी सुंदर गुलाबी चूत और उसके गुदा का फीका पड़ा हुआ घेरा दिखाई दिया। "मम्म, अच्छा। देखते हैं आप कैसा महसूस करती हो।" मैंने अपने दाहिने हाथ से उसकी गांड को छोड़ा और उसके टांगो के बीच योनि क्षेत्र में सरका दिया। उसकी चूत गर्म थी।

मैंने पीछे से अपना हाथ उसके पेट तक पहुँचाया और पाया कि वह क्लीन शेव है। वह अब कांप रही थी उत्तेजना और डर के साथ। मैंने अपनी उँगलियों को उसकी चूत के साथ आगे-पीछे, आगे-पीछे, आगे-पीछे रगड़ना शुरू कर दिया। कभी-कभी मैं उसके भगशेफ पर रुक जाता और उसे एक छोटे से घेरे में रगड़ता। फिर आगे-पीछे। ऐसा होने में केवल एक या दो मिनट का समय लगा। वह जानती थी कि वह अब झड़ने वाली है। उसे लगता है जैसे किसी ने उसके अंदर एक अंगूर कुचल दिया हो। उसकी उत्तेजना का गर्म, चिपचिपा तरल बहने लगा।

उसे चूमते हुए और उसकी चूच को सहलाते हुए अपनी उँगलियों को दौड़ाते हुए, मैंने धीरे से उसे बिस्तर लेटा दिया मैंने अपने कपड़े उतार दिए और नंगा हो गया और मेरा लंड पूरी तरह से सीधा हो गया और मैं उसकी बगल में लेट गया।

वह मेरे खड़े हुए लंड को घूर रही थी। तुम्हारा लंड बहुत बड़ा है, " उसने कहा।

" मैंने उसकी खड़ी भगशेफ को अपने अंगूठे के बीच ले लिया और तर्जनी और उसे दबाया।

"ओउओ," उसने मेरे हाथ से अपने नितम्बो से थपथपाते हुए कहा।

मैंने उसकी भगशेफ रगड़ना जारी रखा और फिर, बहुत मुश्किल से उसके अंदर एक ऊँगली और गिर दूसरी उंगली खिसका दी उसकी योनि तंग थी, बहुत तंग थी, मुझे आश्चर्य हुआ कि क्या वह मेरे विशाल लंड को समायोजित कर पाएगी। मेरी उँगलियाँ उसके अंदर गहराई तक मालिश कर रही थी और जब मैंने उसका जी स्पॉट सहलाया। " मैं उसके क्लिट को दबाता रहा और धीरे-धीरे उसकी गीली चुत में अपनी उँगलियाँ घुमाता रहा और धीरे उसे उँगलियों से चोदने लगा। जब मैंने अपनी उंगली बाहर की ओर खींची तो उसने उंगली को पीछे हटने से रोकने के लिए अपनी नितम्ब ऊपर उठा दिए।

वह मजे से कराहती रही जबकि मैंने उसे उंगली से चोदा। थोड़ी देर बाद उसने मेरा लंड पकड़ लिया और मुझे अपने ऊपर खींचने की कोशिश की। मैंने उस पर चढ़ गया लेकिन उसकी चूत में लंड घुसाने की कोशिश नहीं की। इसके बजाय, मैंने उसके गीली चूत के ऊपर अपना लंड ऊपर-नीचे रगड़ा और उसके क्लीट से उसकी चूत तक लंड रगड़ा।

वह अपनी आँखें बंद करके बड़बड़ाती रही, "ओह आमिर," और उसके कूल्हे चुदाई की गति में ऊपर-नीचे हो रहे थे।

आह्ह्ह्ह! "वह हांफ गयी और उसने खुद को झटका दिया क्योंकि उसकी उत्तेजना की पहली लहर उसके ऊपर सवार थी और मैंने कहा।" अच्छा बहुत बढ़िया! अब आप तैयार हैं। "

मेरा लंड गर्व से खड़ा होकर तैयार था। मैंने सही पोजीशन बनायीं और चिकनाई देने के लिए कुछ बार अपने हाथ का उपयोग अपने लंड के सिर को उसके चूत के होठों के ऊपर आगे-पीछे करने के लिए किया फिर एक जोर से ढ़ाके के साथ, मैं अपने; ंद को पूरी तरह से उसके अंदर घुसने के लिए मजबूर कर दिया। "उन्घ्ह!" वह चिल्लायी है। मैंने लंड को धीरे-धीरे बाहर खींचा और फिर से, इस बार पहले से भी ज्यादा जोर से लंड अंदर धकेल दिया और लंड योनि के ह्यमन को चीरता हुआ उसकी चूत में जड़ तक चला गया। कुछ देर वह सबकी और फिर कुछ ही झटके में, मैंने अपनी लय पर चुदाई शुरू कर दी बार-बार मैं पूरा बाहर निकालता सिर्फ लंड मुंड चूत में रहने देता और फिर पूरा अंदर धकेल देता। उसकी चूत बहुत तंग थी और पूरी गीली थी। चूत के ओंठ लंड पर कस कर चिपके हुए थे और मेरे ओंठ उसके ओंठो से और मेरे हाथ उसे स्तनों से चिपके हुए थे।

जब मैं लंड बाहर निकालता और फिर अंदर धक्का मारता। प्रत्येक धक्के से उसके मुँह से इच्छा और भय और सुख और दर्द की एक और पशुवत ध्वनि युक्त कराह निकलती। फिर, कुछ ही मिनटों में, मुझे लगा कि उसकी योनि मेरे लंड के चारों ओर सिकुड़ रही है। वह कामोत्तेजना के चार्म पर थी और हांफती हुई सांस ले रही थी, रो रही थी, आधा कराह रही है और आधा सह रही है। फिर मैं भी चरम पर पहुँचा और मेरे धक्को की गति बढ़ गयी। मैं इसे अब और नियंत्रित करने में असमर्थ हो गया और मैंने उसे करीब खींच लिया और अपने वीर्य की उसमें पिचकारीया मार दी।

मैंने कुछ मिनटों के लिए उसे ऐसे ही पकड कर रखा । जब मेरी सांसें थम गईं मेरा स्खलन पूरा हो गया तो मैंने अपने लंड को उसके अंदर सिकुड़ता हुआ महसूसकिया। मैं पीछे हटा और उसकी योनी को देखा। खून से सना मेरा वीर्य उसकी चूत से बह कर चूत के द्वार पर जमा हो गया था। मैंने उसे किश करना शुरू किया और साथ-साथ उसके स्तनो को दबाने लगा मैं जल्द ही फिर से लंड को कठोर होता हुआ महसूस करने लगा। मैंने लंड को चूत के अंदर और बाहर तब तक किया जब तक कि उसकी चूत से निकलने वाला तरल पदार्थ कम होने लगा और उनका अंदर खिसकना कठिन और कठिन होता गया।

वह अपनी पीठ के बल लेट गयी और अपने पैरों को चौड़ा कर लिया। जैसे ही मैं उसके पैरों के बीच चढ़ा, उसकी आँखें बंद हो गईं, उसका शरीर मेरे राक्षसी लंड के हमले की आशंका से कांप रहा है। मेरे बड़े लंड का सिर उसकी चूत के होठों को अलग कर रहा था। "प्लीज आमिर।" उसने अपनी एड़ी को बिस्तर में खोदा, मैंने उसकी कलाइयों को पकड़ कर दबाया, उसका शरीर मेरे वजन से दब गया। , मैं उसके गले को चूमने लगा। एक जानवर की तरह मैंने उसके स्तनों को चूसा और कुतरा। उसने मेरी तरफ देखा, मेरा लंड उछल रहा था मैंने उसमें प्रवेश किया। उसकी चूत में मेरे बड़े लंड को फिर घुसा दिया उसके पैर की उंगलियाँ एक परमानंद के साथ मुड़ जाती हैं और एक कराह निकली। "अरे नहीं। आह्हः हाय।" उसने कहा और इंच दर इंच लंड उसकी चूत में समा गया और लंड का सर उसके गर्भशय ग्रीवा से टकराया और उसमें दब गया। मेरा मोटा लम्बा और बड़ा लंड उसकी योनि को धक्का दे रहा था ।

"आलिया," मैंने एक मुस्कान के साथ कहा, फिर मैं अपनी चूतड़ उठा-उठा कर धक्के मारने लगा। " ओह आलिया मैं खुद को उसके अंदर-बाहर करते हुए कहता रहा। उसकी तंग चूत ने मेरे लंड को ऐसे जकड़ा हुआ था जैसे वह चाहता था। उसने अपने शरीर को शाप दिया। उसकी लम्बी चिकनी टांगो के बीच की तंग गुलाबी दीवारों ने मुझे खुश करने की पूरी कोशिश की और अब मेरे हर धक्के के साथ कराह रही थी।

"नहीं, नहीं। आमिर आप नहीं जानते कि आप क्या कर रहे हैं।" "हाँ, आलिया।" मैंने अपनी बाँहों को उसकी पीठ के चारों ओर लपेटा और उसकी गहराई में लम्बे-लम्बे शॉट लगाते हुए उसे चोदना जारी रखा। मेरे होंठ उसकी ओंठो गर्दन और छाती और निपल्स पर घूम रहे थे और मैं उसे कह रहा था वाह! आलिया मजा आ गया ओह आलिआ "रुको आमिर," उसने साँस छोड़ते हुए कहा। उसके पैर चौड़े फैले हुए और हर धक्के के साथ जोर से हिल रहे थे। मेरी मर्दानगी उसके अंदर और बाहर जबरदस्ती और तेजी से फिसल रही थी और उसे बार-बार खोल रही थी, जहाँ तक जा सकता था वहाँ तक मेरा लंड हर बार जा रहा था और थप-थप का आवाज आ रही थी क्योंकि मेरी गेंदे भी उसकी चूत के ओंठो से टकरा रही थी । उसके शरीर ने जितना हो सके उतना चिकनाई दी लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। "ओह्ह्ह्ह, ओह, आमिर तुम मुझे दर्द हो रहा है। कृपया रुको। मत करो।" "हाँ, आह...आह, आलिया तुम बहुत टाइट हो।"

उसके हाथ मेरे कंधों को धकेल रहे हैं। फिर भी वह सावधान थी की कि वह मुझे पंजा या खरोंच न मार दे इसलिए उसने आधे-अधूरे मन से मुझसे लड़ाई की और पलट गयी और वह अपने पेट के बल लेट गई। मैंने अपना लंड उसकी चूत में पीछे से पूरा अंदर तक धकेल दिया। मैंने उसकी पीठ पर लेट गया, दोनों हाथों को उसके स्तनों के नीचे ले जाकर स्तनों के दबाने लगा और उसके निपल्स को निचोड़ दिया। मेरा सिर उसके उलझे काले बालों में दब गया है। उसमे से पसीने और सेक्स की गंध आ रही थी। जैसे ही मेरा लंड उसके अंदर और बाहर होने लगा कुछ हो देर में उसका शरीर काम्पा और अकड़ा और उसकी चूत से सफेद और चिपचिपा रस निकला। ओह आलिआ। " मैं कहता रहता हूँ कि मेरी जांघें उसके नितम्ब के गालों के खिलाफ तेजी से और तेज टकराने लगती हैं। वह तकियो को अपनी मुट्ठी में कस कर पकड़ लेती है। मैं उसकी टखनों को अलग करता हूँ, उसके कूल्हों को थोड़ा ऊपर उठाता हूँ और उसे घोड़ी बना कर फिर छोड़ने लगता हूँ।

"आमिर ओउ, ओउ, यह बहुत गहरा गया है।" "हाँ," मैं उसके कान में फुसफुसाया। "और वह अब पहली बार बोली चोदो जोर से चोदो आमिर और तेज करो-करो और तेज अहह! मैंने अपने स्पीड बढ़ा दी और बोलै आलिया मेरा होने वाला है।" "हाँ, जोर से करो रुको मत तेज और जोर से।" वह भीख माँगती है।

वह भीख माँगती है क्योंकि वह चाहती है कि यह खत्म हो जाए। वह यह भी नहीं जानती थी कि उसने क्यों कहा। उसे बस इसे खत्म करने की जरूरत थी । वह बोली रुको मत ! अंदर ही करो! उसने हिसाब लगाया वह सुरक्षित दिनों में थी अब मेरा वीर्य उसे गर्भवती नहीं करने वाला था। कराहते हुए मैंने तेज पम्पिंग जारी रखी ओह हाँ। "मेरा शरीर काँप उठा।" आप बहुत आकर्षक हैं। " उसके पैर कांप रहे थे उसकी चूत गर्म हो रही थी। वह मेरे वजन के साथ सांस नहीं ले सकती थी। उसके भीतर गहरे से ज्वालामुखी मैग्मा की तरह फूट पड़ा। मेरा वीर्य हिंसक फुहारों में निकला, मेरे कूल्हों के आगे के झटके के साथ, उसे पसीने से लथपथ, सेक्स से लथपथ सोफे में दबा दिया। मैं उससे उठ गया। रिहाई की सांस के साथ, मैं एक और शब्द के बिना अपनी कुर्सी पर बैठ गया। फिर हम दोनों बाथरूम में गए और खुद को साफ़ किया और धोया और फिर एक बार और मैंने उसे चौदा और उसके बाद उसकी टाइट चूत में ही लंड दाल कर उसके साथ रात में सो गया । मेरे पास उसके लिए और भी थे।

सुबह एक बार फिर मैंने उसे चौदा और अगले दिन के फैशन शो में वह शो स्टॉपर थी । हमे बहुत सारे एक्सपोर्ट आर्डर मिले और आलिया को हमारे ग्राहकों से मॉडलिंग का काम मिला और अगले तीन दिनों तक हम दोनों चुदाई करते रहे ।


(संवैधानिक चेतावनी: सिगरट पीना स्वाथ्य के लिए हानिकारक है)
Storyy achhi thii. Kahani mein har shabd ko achhe se istemaal kiya aapne. Par ekbaat samaj nhi aayi Aalia Lucknow kisliye gayi. Kyaa woh Aamir se milne hi gayi thi. Agar haa toh usse kaise pata ke woh kaise jayega aur exactly kaha jaayega.

Aur phir hotel mein dusri mulakat mein hi woh Aamir se itna jyaada khul gayi ke usne uske saath chudai karli. Yehh toh bahot hi ajeeb laga. Aamir ne koi force nhi kiya Aalia apni marzi se kisi anjaan insaan se dusri hi mulakat mein uska bistar garam kargayi kyo yeh mujhe samaj nhi aaya.

Aur hotel mein jab dono ne ekdusre ko dekha toh koi shock nhi laga unhe. Jaise unhe pehle se pata tha saamne wala kaun hoga.

Iske alawa story mein mujhe koi kami nhi dikhi. Story achhi lagi sivaay woh chiz chorke.
 

Kingfisher

💞 soft hearted person 💞
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Bahut hi behtrinn our khubsurat kahani likhi hai jaguar Bhai. Simple si love story thi Aman our Sheetal ki fir bhi kahani ke bahut se scane dil ko chhu gye. Outstanding brother 👍
 
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Yug Purush

सादा जीवन, तुच्छ विचार
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प्रत्‍युत्‍पन्‍नमतिस्‍व by Lews Therin Telamon

jitni mehnat lews saar ne title me kii... Utni yadi story ko aur detailed me likh kar thoda aur depth me le jaate to hariya kaku ke dono entries ke level ki story thi ye...

Dont know lews much par itna jaroor pata hai ki koyi purana chawal hai, jo apni pahchan chhipa kar xf me aaya hai :esc: aur writing ka yahi experience unki is story me saaf jhalakta hai.. Matlab kya hee kahna... Comic timing me... Padhte hue man ekdum prasanna, prafullit ho utha :shag: aur title se hee samajh gaya tha.. Ki ek tagda twist is story ke intejaar me hai...

Presence of
प्रत्‍युत्‍पन्‍नमतिस्‍व

title ke sath puri tarah connected story, jiska pata ending me chalta hai... Acha hua laundiya ka dimag kaam kar gaya, warna gand me chaku jaana tay tha dono ke... Bas aisa laga ki story bahut jaldi khatm ho gayi🤐🤐

7/10
 
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DREAMBOY40

सपनो का सौदागर
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ये कैसी बिदाई ।

दीवार पर टंगे मां की तस्वीर के सामने खड़ा मैं अपलक उन्हें अश्रु मिश्रित नजरों से निहार रहा था । उन्हें गुजरे हुए एक साल बीत चुके थे । आज उनकी पहली बरसी थी । लेकिन इन एक साल में ऐसा एक दिन भी नहीं था जब मैंने उन्हें याद न किया हो । ऐसा एक क्षण नहीं था जब मैंने उनके दुखों को महसूस न किया हो । मैंने बहुत बड़ी ग़लती की थी जिसकी कोई मुआफी नहीं हो सकती थी । पश्चाताप की आग में जल रहा था मैं पर पश्चाताप करने की स्थिति ही नहीं बची थी । कैसे करता पश्चाताप ! कैसे और किस से अपनी गलतियों की.. अपनी पापों की माफी मांगता ! मैं अपनी गलतियों को कैसे सुधारता ! जिसका मैं दोषी था वह तो कहीं दूर गगन की छांव में जा बसी थी । मेरा रोम रोम कराह रहा था और शायद ताउम्र यही मेरी नियति होने वाली थी ।

मुझे याद है वो दिन जब शाम से ही बादलों ने आसमान पर अपना डेरा जमाना शुरू कर दिया था । सात बजते बजते बारिश शुरू हो गई थी और भैया ने घर में कदम रखते ही अटैची उठाते हुए भाभी से कहा था - " चलो लक्ष्मी "
मैं उस वक्त बारह साल का ही था और मेरी बहन दस साल की । हम दोनों बरामदे में मां के आजू बाजू उनसे सटकर बैठे थे । मां गिड़गिड़ाती हुई अश्रुपूरित नेत्रों से भैया से बिनती करती हुई बोली थी -" ऐसा मत कर बेटा ! मत जा ! हम तेरे बिना क्या करेंगे ! हमारा क्या होगा ! "
भैया ने तीखे स्वर में कहा था -" मैं नहीं रूकने वाला । मैं जा रहा हूं और अभी जा रहा हूं । और अपनी औरत को भी साथ लिए जा रहा हूं ।"
" बेटा ! सिर्फ औरत ही तो परिवार नहीं होती । तेरी छोटी बहन है । छोटा भाई है । तेरी बेसहारा मां है "- मां ने याचना करते हुए कहा था ।
" बेसहारा तो मैं हूं "- भैया ने गुस्से से कहा -" बाप ने सारा धंधा चौपट करके बची खुची जमीन मरते वक्त तुम्हारे नाम कर दी । मुझे दिया ही क्या उन्होंने ! एक फुटी कौड़ी तक नहीं और वैसे भी मेरी कम्पनी वाले शहर में मुझे मकान दे रहे हैं । इस टुटी फुटी जर्जर घर में मैं अब एक सेकेंड भी नहीं रह सकता ।"
" एक दिन तो रूक जा बेटा ! कल बाप की बरसी है । तर्पण देना है । बाप की प्यासी आत्मा को पानी देना है "- मां ने रोते हुए उनसे विनय पूर्वक कहा था ।
" मैं नहीं मानता इन दकियानूसी और ढकोसले चीजों को । रोज रोज की ये किचकिच मुझे पसंद नही‌।‌ मेरी कमाई इतनी नहीं है कि सभी के खर्चे उठा सकूं "- भैया ने भाभी को देखते हुए कहा -" तुम वहां चुपचाप क्यों खड़ी हो ! बाहर तांगा वाला इन्तजार कर रहा है । एक घंटे में ट्रेन पकड़नी है ।"
भाभी एक कोने में खड़ी चुपचाप आंसू बहाये जा रही थी । उन्हें अपने पति का व्यवहार बिल्कुल ही अच्छा नहीं लग रहा था लेकिन उनके वश में भी तो कुछ नहीं था । वह हल्के कदमों से दरवाजे की ओर बढ़ती गई ।
राजेश भैया अपने पांच साल के बच्चे को गोद में लिए और एक हाथ से अटैची उठाए उनके पीछे पीछे चलते गए । अपनी एक अलग दुनिया बसाने ।
मां हम दोनों भाई बहन को अपने गोद से सटाये रोती बिलखती रही । वो उनके पीछे लगभग दौड़ते हुए दरवाजे के दहलीज तक पहुंची जहां से उनका बड़ा बेटा और बहू अपने बच्चे के साथ हमेशा के लिए उन्हें और इस घर को छोड़कर जा रहा था ।

छः साल बाद ....

मैं पढ़ाई में ठीक ठाक ही था । लेकिन हमारे गांव में कोई कालेज नहीं था जिससे कि मैं उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकूं । हमारे घर की आर्थिक स्थिति बद से भी बद्तर होती चली गई थी । जो थोड़े से जमीन थे , उसी में कुछ फसलें उगाकर दो वक्त के भोजन का जुगाड हो पाता था । बहन पैसे के अभाव में पढ़ाई छोड़ चुकी थी । वो मां के साथ ही खेतों में काम करती और घर के कामों में भी हाथ बंटाती । ऐसे हालात में मेरा आगे पढ़ना बहुत मुश्किल लग रहा था । घर की स्थिति देखकर मैं त्रस्त हो चुका था और यही लगता कि अगर अपनी माली हैसियत को बेहतर बनाना है तो मुझे पढ़ना ही होगा । बड़ा आदमी बनना ही होगा । एक दिन मैंने मां से कहा कि मैं शहर जाना चाहता हूं ताकि वहां उच्च शिक्षा हासिल कर सकूं । लेकिन मां तैयार नहीं थी । उन्होंने पैसों की तंगी बताई जो सच ही था । इसके अलावा बड़े भाई के जाने के बाद अब वो मेरी भी जुदाई बर्दाश्त नहीं कर सकती थी । कई दिनों तक मैंने उन्हें समझाया... मिन्नतें की तब जाकर वो राजी हुई थी । पैसों की तंगी की लिए मैंने उन्हें समझाया था कि मैं शहर जाकर कोई छोटी मोटी मजदूरी कर लूंगा या छोटे छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ा दिया करूंगा ।
जिस दिन मैं घर छोड़ रहा था उस दिन भी मां के आंखें डबडबाई हुई थी । उन्होंने मेरे हाथ में दो सौ रुपए थमा कर भर्राये स्वर में कहा था - " अपना ख्याल रखना । बीच बीच में आते रहना ।"
" इतना पैसा कहां से आया मां ?" - मैंने चौंकते हुए पूछा था ।
" लाला जी से कर्जा लिया है "- वो अपने आंसूओं को आंचल से पोंछते हुए कही ।
" लेकिन तु इसे वापस कैसे करेगी ?"
" तु चिंता मत कर । मैंने तीन महीने का समय उनसे ले लिया है । तब तक मैं कहीं न कहीं से जुगाड़ कर लूंगी "- वो जबरन मुस्कराते हुए बोली थी ।
मैं जबाव में कुछ कह नहीं पाया था । मैं जानता था कि हमारी स्थिति ऐसी नहीं है कि तीन महीने में भी पैसे का जुगाड़ हो पाए । मैं चुपचाप खड़ा कुछ देर तक अपलक उन्हें निहारता रहा । मेरी बहन...मेरी गुड़िया की आंखे भी डबडबाई हुई थी । वह मुझसे बहुत कुछ कहना चाहती थी पर उसकी जुबान उसका साथ नहीं दे रही थी ।
हम दोनों भाई बहन के उमर में ज्यादा का फर्क नहीं था । बचपन से ही एक साथ खेले थे हम । आपस में कभी कभार झगड़े भी किए । लेकिन जब भी हम झगड़ते थे तो बराबर वही मुझे मनाया करती थी । हम दोनों भाई बहन में प्रेम भी बहुत था । हर साल रक्षा बंधन में जब वो मुझे राखी बांधती थी तो मैं उससे यही कहता तेरा नेग मुझ पर उधार रहा । एक बार में ही तेरा यह उधार चुकता कर दूंगा ।

वो अचानक से आकर मुझसे लिपट गई थी । मैंने उसकी सिर की बालों को सहलाते हुए कहा था -" रोती क्यों है पगली ! मैं शहर जा रहा हूं । कोई परदेश थोड़ी जा रहा हूं । पढ़ लिखकर एक बार नोकरी लग जाए फिर धूमधाम से तेरी शादी करेंगे ।"

वो रोती हुई बोली थी -" बड़ा आया परदेश जाने वाला ! मुझे नहीं करनी कोई शादी वादी । बस तुम जल्दी से वापस आ जाओ ।"

मैं मां के पास गया और उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया । मां एक बार फिर अपने बेटे की बिदाई देखती रही । उन्हें नहीं पता था कि बड़े बेटे की तरह अपने छोटे बेटे को भी अंतिम बार देख रही है । और मैं भी कहां जानता था कि मैं मां को अंतिम बार देख रहा हूं ।
मैं घर से कुछ दूर निकलने के बाद पीछे मुड़कर देखा । मां और गुड़िया दरवाजे के चौखट पर खडी मुझे जाते हुए देख रही थी । दोनों के पुरे चेहरे आंसुओं से भीगी हुई थी । मैं भारी मन से स्टेशन की ओर निकल पड़ा था ।

अपना घर और अपना गांव छोड़ सैकड़ों मील दूर मैं शहर तो चला आया था पर जानता था कि आगे का सफर इतना आसान भी नहीं होने वाला था । हर पग पर कांटे बिछे हुए मिलेंगे । बड़ी मुश्किल से एक कालेज में अपना एडमिशन करवा पाया था पर कालेज की फीस और बुक्स खरीदने के पैसे जुगाड़ करना मेरे लिए टेढ़ी खीर था और उससे भी ज्यादा परेशानी था कि मैं रहूंगा कहां । महीनों बीत गए इन समस्याओं से जूझते हुए लेकिन मैंने भी ठान रखी थी कि चाहे जो हो जाए , मैं बिना कुछ बने वापस घर नहीं जाने वाला । और वैसे भी जाकर भी वहां मैं क्या कर लेता ! फिर से वही अभावों वाली जिंदगी जीनी होती । मां और बहन के पास कम से कम एक ठिकाना तो था । गुजर बसर भले किसी भी तरह हो , चल तो जाता ही था । और बहन की शादी तो बिना पैसों के इंतजाम के हो भी नहीं सकती । मुझे विश्वास था कि कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद कुछ न कुछ तो कमाने लायक हो ही जाउंगा । तब तक मेरी मां और बहन इन्तजार कर सकती है लेकिन कितना गलत था मैं ! पैसे कमाने के चक्कर में और अपनी भविष्य सुधारने के चक्कर में यह नहीं समझ सका कि मेरे पीछे उन दोनों की क्या हाल होगी !

पांच साल बीत चुके थे । कालेज की पढ़ाई करते करते प्रेम का पाठ भी पढ़ चुका था मैं । एक अमीर बाप की एकलौती पुत्री जो मेरे ही क्लास में थी , से दिल लगा बैठा था मैं ।
इन सालों के दरम्यान ऐसा भी नहीं था कि मां और बहन की यादों ने मुझे विचलित नहीं किया था पर मुझे इस चीज का भी आभास था कि यदि मैं वापस घर गया तो अपने लक्ष्य से भटक जाउंगा । इमोशन्स में आकर गलत फैसले कर बैठूंगा ।
पांच साल के बाद आखिरकार मैं सक्सेस आदमी बन ही गया था । मैं इंजीनियर बन चुका था । अंजलि से मेरी शादी भी हो चुकी थी । ससुर की बनी बनाई प्रोपर्टी का मालिक भी बन गया था क्योंकि अंजलि के सिवाय उनकी और कोई संतान नहीं थी । आलिशान बंगला , सुंदर पत्नी , कार , नोकर चाकर , धन दौलत सब कुछ हासिल कर चुका था ।
और फिर मैं अपनी पत्नी के साथ अपनी कार से अपने गांव... अपनी मां... अपनी बहन के पास जाने के लिए रवाना हुआ ।


मेरे शहर जाने के बाद मां और बहन की दुनिया और भी ज्यादा कठीन हो गई थी । खेतों में काम करना और किसी तरह दो वक्त के भोजन का जुगाड करना ही उनकी दिनचर्या हो गई थी । कभी कभी पड़ोस के हरिहर काका घर आ जाया करते थे जिससे उन दोनों की बातें हो जाया करती थी । हरिहर काका बहुत ही भले इंसान थे । उनका बेटा किसी शहर में एक बड़ी कंपनी में काम करता था । वह भी अपने पिता के समान ही नेक लड़का था । हर छः महीने में एक बार गांव आया करता था । वो लोग कास्ट में भले ही निचले जाति के थे पर हमारे गांव के ऊंची जाति वाले लोगों से ज्यादा व्यवहारिक थे ।
इन्हीं ऊंची जाति वाले रईसों के कुछ आवारा लड़कों के कारण मेरे परिवार पर भयंकर विपदा आन पड़ी । दो लड़कों ने मेरी बहन की इज्जत लूट ली । यह खबर आग की तरह पुरे गांव में फैलती चली गई । गुड़िया सदमे में थी । उसने खुद को कमरे में बंद कर लिया था । मां का रो रो कर बुरा हाल था । लेकिन गांव वालों ने उनके जख्मों पर मरहम लगाने की जगह नमक छिड़कना शुरू कर दिया था ।‌ उनका घर से बाहर निकलना दुश्वार हो गया था । इस जलालत भरी जिंदगी से तंग आकर गुड़िया ने घर के बाहर बने कुआं में छलांग लगाकर आत्महत्या करने की कोशिश की लेकिन हरिहर काका के लड़के के अचानक वहां आ जाने से उसकी कोशिश सफल नहीं हो पाई । वो छुट्टी में घर आया हुआ था । मां तो जैसे जड़ सी हो गई थी । वो अपनी सुध बुध खो बैठी थी । एक तो जवान होती हुई लड़की उसपर गरीबी और उसपर भी उसके दामन पर दाग... अगर उसके दोनों लड़के साथ होते तो फिर भी वह थोड़ी हिम्मत जुटा पाती ! लेकिन वो बुढ़ी भला कैसे अकेले इस विपदा का सामना करती ! हरिहर काका के बार बार झंझोड़ने पर वो धीरे से बुदबुदाई थी -" मर जाती तो अच्छा था "।
" ऐसा काहें बोल रही हो चाची.. बेटी है आपकी वो "- हरिहर काका का लड़का रामजी ने कहा था ।
" अब क्या होगा इस अभागीन का.. कौन करेगा इससे बियाह..."- वो बड़ी मुश्किल से कह सकी थी ।
" मैं करूंगा यदि आप को कोई आपत्ती नही है तो "- रामजी ने अपने पिता जी की तरफ देखते हुए कहा था । हरिहर काका ने अपनी गर्दन हिलाते हुए अपनी सहमति जताई ।
रामजी ने अपने पिता जी की सहमति पाकर फिर से कहा -" बोलो चाची ! कहीं ऐसा तो नहीं है कि हम छोटे जाति वाले लोग हैं इसलिए.."
" नहीं नहीं "- मां ने उसके बात पुरे होने से पहले ही कहा -" ऐसा नहीं है बेटा... ये तो गुड़िया की खुशनसीबी है जो ऐसे हालत में भी कोई उसके शादी करने के लिए तैयार है । लेकिन इस बुढ़िया के पास तुम्हें और गुड़िया को देने के लिए कुछ भी नहीं है...फुटी कौड़ी तक नहीं है "- मां ने रोते हुए कहा था ।
" मुझे कुछ नहीं चाहिए चाची । आप को कुछ भी करने की जरूरत नहीं है । लेकिन मेरी एक इल्तज़ा है कि शादी के बाद गुड़िया को मैं अपने साथ ले जाऊं ... हमेशा हमेशा के लिए । इस गांव में रहेगी तो लोग जब तब बातें बनाते रहेंगे । उसका जीना दुश्वार कर देंगे और वो भी यहां रहकर अपने साथ हुए हादसे को भुला नहीं पायेगी । आप को जब भी उससे मिलना होगा तो आप शहर चली आइएगा । "

उस घटना के कुछ दिन बाद ही गुड़िया की शादी रामजी से हो गई । और जिस दिन उसकी बिदाई हुई , उस पुरे दिन दोनों मां बेटी एक दूसरे से गले लगकर रोती रही । फिर वह क्षण भी आया जब गुड़िया अपने घर.. अपनी मां को छोड़कर अपने पति के साथ शहर चली गई ।
मां एक बार फिर दरवाजे के चौखट पर खडी अपने आंखों में आंसू लिए एक और " बिदाई " देख रही थी ।
इसी चौखटे पर खड़ी वो अपने बड़े बेटे को अपनी बीवी और बच्चे के साथ जाते हुए देखती रही थी ।‌ फिर छः साल बाद अपने छोटे बेटे को यहीं से खड़ी उसे जाते हुए निहारते रही थी और अब... उसके एक साल बाद अपनी लाडली बेटी को डोली पर बिदा होते देख रही थी ।

उसके बाद मां ने जो भोगा..जिन कष्टों का सामना किया... जिस मानसिक स्थिति से गुजरी , उससे कठोर से कठोर ह्रदय वालों का दिल भी पसीज उठे । अकेलापन उनकी तकदीर बन चुकी थी । हर दिन हर रात..हर क्षण..हर लम्हा अपने बच्चों को याद कर कर के आंसू बहाती । और कमरे में अपने पति के तस्वीर से बातें करती रहती ।‌भोजन बनाने का मन ही नहीं करता । कभी दो दो - तीन तीन दिन बिना खाये रह जाती । खेतों में जाना बंद कर दिया था। पड़ोस से हरिहर काका ही दो वक्त की रोटी दे जाते । नहाने धोने का काम कभी कभार ही हो पाता था । एक सफेद सूती की साड़ी में कई दिन गुजार देती । उनकी कमर झुक गई थी । चलने के लिए लाठी का सहारा लेना पड़ता था । कुछ दिनों के बाद वो गम्भीर बिमारी से पीड़ित हो गई । छूत का रोग हो गया था उन्हें । हरिहर काका के अलावा और कोई फटकता नहीं था उनके पास । लेकिन हरिहर काका भी हमेशा तो साथ नहीं रह सकते थे । वह बिल्कुल अकेली पड़ गई थी ।
वो रोज सुबह उठते ही घर के मुख्य दरवाजे के चौखट पर बैठ जाती और अपने घर के सामने सड़क को दूर तक निहारते रहती । कभी कभार कोई गाड़ी वहां से गुजरते हुए देखती तो आशा भरी नजरों से देखने लगती कि शायद इस गाड़ी से उनके बेटे लौट आए हों । लेकिन जब गाड़ी उनके बगल से गुजर जाती तब फिर से अपनी नजरें सड़क पर टिका देती । हर दिन का रूटिन बन गया था उनका ।
रोज सुबह होते ही दरवाजे के चौखट पर बैठ जाती और देर रात तक वहीं बैठे टकटकी लगाए रोड को निहारते रहती । साल बिता.. दूसरा साल बिता... तीसरा साल भी बिता... चौथा साल भी चला गया... लेकिन उनका इन्तजार करने का नियम नहीं टूटा । उनके मन में एक आस थी कि उनके बच्चे उनके पास वापस आयेंगे । वो आयेंगे और उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे । उन्हें अपने गले से लगा कर ढेर सारा प्यार करेगी वो । उनसे कहेगी कि वो मुझे भी अपने साथ ले चलें । उनके घर में किसी कोने पर पड़ी रहूंगी । कम से कम इसी बहाने उन्हें देख तो सकूंगी । मगर.. मगर उनका इन्तजार तो जैसे खतम होने का नाम ही लेने वाला था ।

उस दिन भी हल्की हल्की बारिश हो रही थी । साथ में ठंडी हवाएं भी चल रही थी । हर दिन की तरह उस दिन भी वो चौखटे पर बैठी खाली पड़े सड़क को निहार रही थी । वातावरण में सन्नाटा सा पसरा हुआ था । पानी की बूंदें उनके शरीर पर जहां तहां पड़ रही थी पर जैसे उन्हें इस का अहसास ही नहीं था । एक हफ्ते से बुखार से तप रही थी पर इसकी भी परवाह न थी । अपने बच्चों को देखने की चाह में उन्हें अपने शरीर की पीड़ा से जैसे कोई मतलब ही नहीं रह गया था ।
तभी..अचानक से उनकी सांसें उखड़ने लगी । नब्ज की गति धीमी होते जा रही थी । पलकें बोझिल होने लगी थी । उनका शरीर ठंडा होने लगा था । उन्हें लग गया था कि अब वो बस चंद सांसों की मेहमान है । वह चौखटे पर दरवाजे का टेक लिए बैठी अंतिम बार एक आस लिए सड़क को देखी । मरने से पहले काश एक बार भी आपने बच्चों को देख लेती !
तभी उन्हें आभास हुआ जैसे कुछ गाडियां सड़क पर आ खड़ी हुई है और उसमें से कुछ लोग दौड़ते हुए उनकी तरफ आ रहे हैं । वो सिर्फ महसूस कर पा रही थी मगर देख नहीं पा रही थी । आंखों से रोशनी खतम हो चुकी थी । सांसें उखड़ने लगी थी । शरीर शिथिल पड़ते जा रहा था और आखिर उनकी सांसें थम गई । उनकी आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई ।

मैंने मां को दरवाजे के ड्योढ़ी पर बैठे हुए देख लिया था और जैसे ही कार रूकी मैं दौड़ते हुए उनके पास पहुंचा । पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी ।‌ वो इस दुनिया से बिदा हो चुकी थी । मैं एक स्टैच्यू की तरह खड़ा उन्हें देखते रहा । मेरी आंखें बरसने लगी थी । मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मेरी आत्मा मेरा शरीर छोड़ रही हो । मैं देख रहा था कि भैया भी भाभी और अपने बच्चे के साथ वहां पहुंच चुके थे । बहन भी अपने पति के साथ वहां खड़ी थी । शायद कुदरत ने मां पर कुछ रहम कर दिया था कि उनकी अर्थी का कांधा उनके बच्चे दे सकें।
सभी विलाप कर रहे थे । सभी अपने को कोस रहे थे । सभी मां से लिपट कर उनसे अपनी आंखें खोलने की मिन्नतें कर रहे थे । और मैं चुपचाप खड़ा अपनी मां के मृत शरीर को अपलक निहारे जा रहा था । मेरा हृदय फटा जा रहा था । शरीर बेजान हो गया था । मैं ऊपर वाले से अपनी मौत की प्रार्थना कर रहा था लेकिन...पापी शरीर से आत्मा भी इतनी आसानी से कहां निकलती है !


मेरे कंधे पर किसी का हाथ पड़ा तो मेरी नजरें मां की तस्वीर से हटकर सामने पड़ी । मेरी पत्नी खड़ी थी । मेरे आंखों में आंसू देखकर वो बोली -" संजू ! आखिर कब तक खुद को सजा देते रहोगे ।‌ आप को दुखी देख क्या मां की आत्मा को शांति मिलेगी ?"
मैंने अपनी बाजू से आंसू पोंछते हुए कहा -" जिस मां के तीन जवान जवान बच्चे हों...दो बहुएं हों...नाती पोते हों... दामाद हो..... क्या उस मां की ऐसी दशा होनी चाहिए थी ? क्या उसकी ऐसी बुरी मौत होनी चाहिए थी ? क्या उनकी अंतिम बिदाई इस तरह से होनी चाहिए थी ? मैं अपनी मां का गुनहगार हूं । हम सभी अपने मां के के दोषी हैं । हम में किसी ने भी बेटे का फर्ज नहीं निभाया ।‌ हम सभी कपूत निकले " - मैंने एक नजर फिर से मां की तस्वीर पर डाला और कमरे से बाहर निकल गया जहां पुरे गांव के लोग उनकी पहली बरसी पर जमा हुए थे ।

" बेटा ,
मैंने दुखों के सागर में
रहकर सुख के दीप जलाएं
स्वयं जहर पीकर
तुझको अमृत के घूंट पिलाए ।
तेरे दुःख से दुःखी होकर
अब और न जी पाऊंगी , तुझे दुआएं देकर
इस दुनिया से दूर चली जाऊंगी । "

समाप्त ।
:rondu:
Meko rona bilkul bhi psnd nhi
Bahut hi emotional adami hu mai

Akhir samay tak dhakdhak bani rahi aur ant me aasu tpk gye :angrysad:
Etna drdnaak kahani .... judges plzz gibe this man all three awards

Koi kahani kitni bhi trill , comedy , well narrated aur achche dialog waali ho

Magar is story ka concept :love2:
 
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Jaguaar

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Ghar aur fuck screen



Toh aap ne ghar dekh liya na bhabhi ji. Ha bhaisab ghar thik laga mujhe. Raj tumhe kaise laga ghar. Haa... mummy mujhe bhi acha laga..( bat darasal ye hai ki main aaj apne mummy aur sisters ke sath ek ghar dekhane aya tha. Yahi discussion chal raha hai). Mummy main mera bedroom dekh ke ata hun.
Mummy: thik hai beta.
Main jab room main enter kiya ek thande hawa ka jhoka mere sharir ko chhu gaya...
" tum mujhe dekh sakte ho na" mere piche se awaj aa gaye aur is achanak ke awaj ki wajah se main darr gaya..maine piche mudake dekha toh ek bahot hi handsome ladaka khada tha achi khasi body thi. Lambe baal gora rang..
Main:- kon ho tum, aur dekh sakta hun mtlb tu insan hai koi bhi dekh sakata hai..
Ladka:- ha ha ha kya bat kar raha hai main insan nahi hun..MAIN EK BHOOT HUN.
"Bhaiya sara saman se ho gaya hai bus tumhara hi room baki hai" neha mujhe kuch bol rahi thi aur main dara hun khada tha Q ki neha ne jab room main pravesh kiya tab woh us ladke ke aar paar gujar chuki thi...
Haan ha ha dekh liya choti tu ja kar mummy ki help kar.
Jab neha chali gaye tab maine ladake se pucha tum sirf mujhe hi q dikh rahe ho. Kya tum sach main bhoot ho...
Ladka :- shayad mere purvajo ne tumhe chuna ye kam aage badane ke liye. Is liye main sirf tume dikhai de raha hun.
Mai:- konsa kam?
Us ladke ne mere sir pe hath rakha aur kuch budbudaya..
Mere andar kuch jyada hi tandrusti mehsus hone lagi.
Ladka: ab tumhe kisi bhi ladki ya aurat ko chuna hi sirf.
Mai :- ise kya hoga?
Ladka :- pahile tum chhu lo fir pata chalega.
Mai bahar nikala mere samane maa khadi thi uske hato main kuch saman tha... mai madat karne ke bahane maa ka hath chu liya.
Dinggg ke sath maa ke sar par ek screen open ho gaya.. uspe likha tha
FUCK SCREEN
Name :- kajal thakur
Sex interest:- B Interest in me :- A
Open sex desire:- B
Phrase to say:- maa main apaka pasina poch deta hun.
Reward:' two sex increasing pills

Husshhhh ye kya tha. Mere pao latlat karne lage.. main us ladke ki taraf dekh aur pucha ye kya hai bhai..
Ladka:- ab se tum ho night king....tum jab chaho jise chaho chod sakate ho tumhe sirf usko chuna hai aur jo phares diya hai usko bolna hai..
Mai:- ok thik hai par tum ne ye mujhe q diya? aur tume ye taqat kaha se aye? Aur tum kam kya karte the?
Ladka:- shayad mere papa se mujhe mili thi. Agar mera bacha ho jata toh ye takat mai use de deta. Par mera achanak se death hone ke wajah se ye taqat main tume de raha hun.
Mai:- tum mare kaise?
Ladka:- hahaha ha ha . Mujhe batane main sharam ayegi.
Mai: are bata na.
Ladka:- bathroom gaya tha toh sabun se pair fisal gaya. Aur khallas
Mai:- woh sab thik hai par tumne ye taqat mujhe q di.
Ladka:- mai aab sex toh nahi kar sakata toh tum mujhe dikha sakto ho... is liye ye tume di gaye hai..chalo aab kam pe lag jao. Jo diya hai woh phrase maa ko bol dena.
Mai:- pagal hai kya? Mai nahi bolunga bahar chalate hai kisi aur ko touch karke dekhate hai.
Ladka:- nahi nahi tum isi pe try karo.. agar nahi kiya toh main ye taqat wapas le lunga
Mai: per kaise yar maa hai woh meri?
Ladka:- toh kya hua jara dekh use kya gajab maal hai.. etna hot maal maine aaj tak nahi choda.
Mai:- par mai kaise?
Ladka:- karega kya taqat wapas lun
(Mai soch raha tha karu ya na karu. Q ki abji tak main kawara tha. Koi ladaki mujhe bat bhi nahi karati thi.. dikhane main avrage hi tha toh kon ghas dalega mujhe.)
Ok ok thik hai kahate hue mai bahar maa ke pass chala gaya...
Mai:- maa kitana kam karogi thoda aram karo..dekho kitana pasina aya hai lao main poch deta hun.
Jaise hi maine rumal se maa ke gal ke aas pas ka pasina puchane ke liye aage bada toh hum dono ekdam najdeek aa gaye.. iske chalate maa ka khubsurat gora sa chahera mere samne aa gaya.. maine jaise hi chehara pucha....

Dinggg
KISS HER ON HER CHEEKS
Main kyaa likhu samaj nhi aaraha hai. Story padhke kuch samah hi nhi aaya. Story toh incomplete hai jiska naa starting achhe se hua aur na end.

Kyaa hai kyu hai kuch samaj nhi aaya. Bas 700 words pure hue hai jaise bhi karke.
 

Sasha!

The Siren with her Lion
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Aagasthya

This story has a undeniable innocence, aesi kahaniyan ajkal koi sade man se likhta hi nahi. Obviously kahani me kayi jagahon par bohot better karne ka scope hai, like pata nahi kyun aese gap de de ke likha hai, paragraph me likhta na :idk1: but am glad beasty ne koshish ki.
 
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Yug Purush

सादा जीवन, तुच्छ विचार
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लोकल by avsji

Usc की एक और.. बेहतरीन तरीके से लिखी हुई बेहतरीन कहानी... मतलब कहना ही क्या इस स्टोरी के बारे मे.. जहाँ पढ़ते हुए किंचित मात्र भी उबासी ना आये या झांट बराबर भी त्रुटि ना हो...

वास्तविकता का चित्रण करते हुए ये कहानी.... जिसकी जितनी तारीफ की जाए उतना कम हैं.. स्टोरी के प्लाट या थीम से ज्यादा... असरदार avsji के लिखने की कला हैं... जिसे जो भी पढ़े तो उनकी लेखनी का कायल हुए बिना रह ना पाए... और यही एक धाँसू राइटर की सुपर पॉवर होती हैं कि.. वो कैसी भी साधारण स्टोरी को अपने अंदाज मे तोड़ -मरोड़ कर... एक बेहतरीन कहानी का रूप दे सकता हैं...

प्लाट एवरेज था.. लेकिन जिस अंदाज मे स्टोरी को पेश किया गया वो काबिले तारीफ़ हैं और यदि avsji ने अभी तक दूसरी एंट्री पोस्ट नही की हैं.. तो मैं रिक्वेस्ट करूँगा कि.. वो जल्द से जल्द दूसरी एंट्री भी पोस्ट करें...

7.5/10
 
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Sasha!

The Siren with her Lion
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ये कैसी बिदाई । SANJU ( V. R. )

I really really got emotional while reading this. Aesi kahani ko compitition ke point of view se nap tol kar dekhna sahi nahi, aesi kahaniyan bas feel ki jaa sakti hai. Mera hamesha se manna hai ke sachmuch kuch godly hota hi hai maa me (sabhi maa me) ke wo sacrifice karne se pehle ek pal nahi sochti, koi bhi baat ho apne bacche ke sath hamesha khadi rehti hai. Wahi kabhi kabhi uske apne hi bacche use akela chhod dete hai, aur us pyar ka aur uparwale ki kripa ka apman karte hai jo maa ke taur par unke pass hai.

Kahani bilkul apki tarah hai Sanju ji, pure and heartfelt :hug:
 
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