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Erotica होली के रंग

komaalrani

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फागुन के दिन चार - भाग ५

चंदा भाभी की पाठशाला

अपडेट पोस्टेड, कृपया पढ़ें, आनंद लें , लाइक करें

और कमेंट जरूर करें



 
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Milind

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प्यारी कोमल बौजी.. तनिक इ स्टोरी भी आगे बढावा हो..
 

komaalrani

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ऐसा लग रहा है जैसे कहानी को.. अप्राकृतिक रूप से एन्ड किया गया हो... किसी ने जैसे गला घोटा है.. और आहत पढने वाला हुवा.है... बहुत सारी संभावना थी... और बहोत सारे प्रेरक प्रसंग भी आने को बाकी थे...
प्यारी कोमल रानी क्यो ना समय मिलने पर.. आगे भी लिखा जाये?..
साये की तरह साथ चलने वाला मूक पाठक


मैं सिर्फ ये विनम्र अनुरोध करुँगी की कुछ भी लिखने, समझने के पहले,... के पहले पाठकों के कितने कमेंट्स आये ये भी कृपया देख लें , ...

कहानी , लेखक, लेखिका के तन मन से उपजी उसकी अपनी कृति होती है , वो क्यों उसका गला घोंटना चाहेगी। मातृहंता पुत्रो के उदाहरण मिल जाएंगे , लेकिन पुत्र हन्ता माता नहीं नहीं मिलेगी , पर अगर लगे की सन्नाटे में आप अकेले अकेले अरण्य राग गए रहे हैं तो कितनी देर तक,...

और कई ने बार बार गुजारिश कर के ताने दे दे के , ये कहानी आधे रास्ते से शुरू करवाई , और इसमें नए प्रसंग भी जुड़े ,
पर क्योंकि यह कहानी पी डी ऍफ़ पर भी इस फोरम में थी , बरसों पहले एक बार होली के मौके पर कहीं और पोस्ट भी हो चुकी थी , शायद इसलिए ,


मैं पाठकों को भी दोष नहीं देती, उनकी अपनी पसंद , इन्सेस्ट का इसमें लेश मात्र भी अंश नहीं था, देवनागरी में लिखी,... और कहानी खुद लिखने और खुद पढ़ने का मजा तो होता है पर कुछ देर बाद वो हताशा में बदल जाता है

इसलिए कहानी वहीँ रुकी , जहाँ पहले रुकी थी ,

हाँ ये आगे बढ़ सकती थी लेकिन तब जब इसको चाहने , सराहने , वाले मिलते
 

Real@Reyansh

हसीनो का फेवरेट
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Didi Please remove my restrictions. I am your big fan and even your cute young brother please didi
Charan sparsh ❤️🙄🙄 🙏🙏
 

Real@Reyansh

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Didi please remove my restrictions please didi ❤️
 

Milind

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मैं सिर्फ ये विनम्र अनुरोध करुँगी की कुछ भी लिखने, समझने के पहले,... के पहले पाठकों के कितने कमेंट्स आये ये भी कृपया देख लें , ...

कहानी , लेखक, लेखिका के तन मन से उपजी उसकी अपनी कृति होती है , वो क्यों उसका गला घोंटना चाहेगी। मातृहंता पुत्रो के उदाहरण मिल जाएंगे , लेकिन पुत्र हन्ता माता नहीं नहीं मिलेगी , पर अगर लगे की सन्नाटे में आप अकेले अकेले अरण्य राग गए रहे हैं तो कितनी देर तक,...

और कई ने बार बार गुजारिश कर के ताने दे दे के , ये कहानी आधे रास्ते से शुरू करवाई , और इसमें नए प्रसंग भी जुड़े ,
पर क्योंकि यह कहानी पी डी ऍफ़ पर भी इस फोरम में थी , बरसों पहले एक बार होली के मौके पर कहीं और पोस्ट भी हो चुकी थी , शायद इसलिए ,


मैं पाठकों को भी दोष नहीं देती, उनकी अपनी पसंद , इन्सेस्ट का इसमें लेश मात्र भी अंश नहीं था, देवनागरी में लिखी,... और कहानी खुद लिखने और खुद पढ़ने का मजा तो होता है पर कुछ देर बाद वो हताशा में बदल जाता है

इसलिए कहानी वहीँ रुकी , जहाँ पहले रुकी थी ,

हाँ ये आगे बढ़ सकती थी लेकिन तब जब इसको चाहने , सराहने , वाले मिलते
कोई साथ हो ना हो..... हम हमेशा आप के और आपकी लेखनी के शुभ चिंतक रहेंगे 🌹.... साये की तरह साथ चलने वाला.. शुभ चिंतक 😍
 

komaalrani

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Luckyloda

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और फिर,...तरंग





पीछे मुड़कर मैंने तरंग से पूछा- “बोल चाहिये?”

वो हँसकर कस के मेरी गाण्ड पे लण्ड रगड़कर बोला- “हाँ एकदम…”

मैं समझ गई। लेकिन उसे अपनी ओर खींचती हुई हँसकर बोली- “अरे वो, नहीं ये?”

“मुझे तो दोनों चाहिये…” हँसकर वो बोला।



“अच्छा चल…” और मैंने अनुजा की ओर इशारा किया।



चुपके से वो आकर उसकी गोरी-गोरी जांघों के बीच बैठ गया और लण्ड सीधे बुर के मुहाने पे… जब तक अनुजा कुछ समझे-समझे उसका सुपाड़ा चूत के अंदर पैबस्त था।

“ओह्ह… क्या कर रहे हो हटो ना… भाभी…” अनुजा ने आँख खोलकर कहा- “फिर से?”



“अरे क्या कर रहा है, चोद रहा है तुमको और क्या? एक यार से चुदवा लिया तो इस बेचारे में क्या खराबी है?” हँसकर उसकी बात काटते मैं बोली।

अनुजा की बुर में अभी भी मनोज के लण्ड का माल भरा था… और उससे अच्छा लुब्रीकेंट कुछ नहीं हो सकता। और तरंग मनोज की तरह सम्हल-सम्हल के नहीं बल्की… और अब तो उसकी चुद भी चुकी थी। तरंग ने उसकी दोनों चूचियां पकड़कर एक करारा धक्का मारा और अब उसका आधा लण्ड अंदर घुस गया।



अब आराम से मैं मनोज के पास जा बैठी। अब वो लाख चूतड़ पटके, लण्ड बुर से बाहर नहीं निकलने वाला था और ना तरंग उसे बिना चोदे छोड़ने वाला था।

ठसके से मैं मनोज की गोद में बैठी अनुजा की चुदाई देख रही थी और मेरी गदराई गाण्ड के दबाव से थोड़ी देर में ही मनोज का लण्ड फिर से फनफनाने लगा। उसका मोटा लण्ड मेरी गाण्ड की दरार में ठोकरें मार रहा था। पहले तरंग और अब ये… मैं जानती थी की ये दोनों मेरी गाण्ड के आशिक हैं… लेकिन ये असर होगा लण्ड के ऊपर मैं नहीं जानती थी।



बनावटी गुस्से से मैं बोली- “हे, इसको जरा कंट्रोल में रखो और मुझे अपने ननद रानी की…”

मेरी बात काटकर वो बोला- “अरे भाभी, थैंक यू… मैं तो भूल ही गया था…”

जानकर भी अनजान बनते मैं बोली- “अरे देवर जी, किस बात की थैंक…”

“अरे भाभी, आपने अनुजा की दिला दी… साल भर से हम दोनों पीछे पड़े थे। हर चीज के लिये मान जाती थी, बस असली मौके पे पीछे हट जाती थी… बस वही एक बहाना… लेकिन आपने वो चाल चली की साली खुद टांग फैलाकर आ गई… मान गये भाभी… थैंक्स…”
“अरे ऐसे खाली सूखे थैंक्स से काम थोड़ी ही चलेगा? बंद बोरी खुलवाई है अपनी कुँवारी ननद की…” और अदा से मैंने गाण्ड अब उसके तन्नाये लौड़े पे रगड़ दी।
मनोज- “तो क्या चाहिये भाभी आपको? जान हाजिर है…”



“अरे इतनी मस्त चीज रखकर पूछते हो क्या चाहिये?” अब मैं खुलकर आ गई।

“अरे भाभी, अभी लीजिये… ननद के बगल में भाभी… चलिये…” और वो तो तुरंत लिटाने के चक्कर में पड़ गया।



लेकिन मैं ही टालकर बोली- “अरे, अभी मुझे जरा अपनी ननद की पहली चुदाई देखने दो। फिर मैं कहां भागी जा रही हूं और कल तो होली भी है। देख पहले इतने नखड़े करती थी, अब कैसे चूतड़ उछाल-उछाल के चुदवा रही है…” और वास्तव में खूब हचक के तरंग चोद रहा था।

मुझे मनोज को तो उकसाना पड़ा था, लेकिन यहां तरंग ने अनुजा को मोड़कर दुहरा कर दिया था। हर धक्के में लण्ड सुपाड़े तक बाहर खींचकर, फिर वो हलब्बी धक्का लगाता की मुझे पक्का विश्वास था की सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी से टकरा रहा होगा। हर धक्के के साथ उसकी चीख निकल पड़ती थी, लेकिन तरंग बिना परवाह किये अगला धक्का उससे भी जोर से लगाता। साथ में लण्ड का बेस कस के उसकी क्लिट से रगड़ता… वो कचकचा के उसके निपल काट लेता।


लेकिन थोड़ी ही देर में अनुजा भी उसी के रंग में रंग गई।



मैं खुश थी की मेरी ट्रेनिंग काम आई।

अनुजा अपने नाखूनों से उसे खरोंच लेती, कभी दांत से कंधों पे काट लेती और साथ में गालियां भी- “हाँ डाल… डाल साले… चोद और जोर से… ओह्ह… उफ्फ… दिखा दे अपने लण्ड का जोर…”

सारी रात इसी तरह मस्ती में बीती। सुबह होली के लिये वो दोनों चलने के लिये तैयार होने के लिये नखड़े कर रहे थे। उनका मन था कि हम चारों घर में ही मस्ती करें। लेकिन जब मैंने और अनुजा ने कालोनी में होली के बारे में बात करनी शुरू की तो झट से दोनों तैयार हो गये।
Kya jabardast shuruwat karayi hai anuja ki......



Bhut hi shandaar 👌👌👌👌👌👌👌👌👌🥰🥰🥰🥰🥰🥰
 

Luckyloda

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होली हो ली



और होली में मैं भाभियों से बची लेकिन ज्यादा नहीं अंदर ऊँगली डाल डाल के सबने चेक की , मेरे दोनों दोस्तों की खूब मस्ती हुयी और जो उनकी चाहत थी मिसेज खान की टीनेज ननद हुमा, वो भी मिली , दोनों ने फाड़ी एक ने आगे एक ने पीछे,...

और ये सब हुआ छन्दा भाभी और खान भाभी के सौजन्य से , खान अंकल तो छन्दा भाभी के दीवाने थे तो आज एक बार जब तरंग ने उनकी ले ली , फिर तो ,... पूरे डेढ़ घंटे खान अंकल के साथ भाभी ने ' होली खेली; और मैं और मनुज तरंग , हुमा के यहाँ , घर खुलवाया , खान भाभी ने,... उसके बाद तो वो चूतड़ पटकती रही हम तीनो ने मिल के , बाहर की पहरेदारी उसकी भाभी, खान भाभी के जिम्मे , शाम को कम्पनी के काम से खान अंकल को जाना था तो उन दोनों लड़कों की तो चांदी हो गयी , मिसेज खान के यहाँ ' पार्टी' सुलभा भाभी , खान भाभी और वो नयी छोरी , ... और ये दोनों ,

मेरी रात भी , मुझे बिना बताये भाभी ने क्लब की होली में देवेश , दिया और बंटू को भी बुला लिया था , होली में दिल मिल जाते हैं और हम सब ने खूब मस्ती की , रात में छन्दा भाभी ने घर पर पार्टी रखी , मनुज तरंग तो खान भाभी के यहाँ ,... और मेरे पिछवाड़े का भी ताला बंटू ने खोल दिया , रात भर मस्ती , गिले शिकवे भुला के

डिटेल क्या बताऊँ , इत्ती तो होली की कहानियां आप सब पढ़ चुके है तो बस,... मैं एक बार फिर से दिया की बेस्टी हूँ , मनुज तरंग दोनों के चक्कर एक साथ हुमा के साथ , और दोनों हमारे पेइंग गेस्ट है तो मैं और छन्दा भाभी उन्हें बिल दे देते है,... महीने का नहीं हफ्ते हफ्ते या कई बार ,.. रोज रोज भी,...

तो बस आप सब का हर दिन होली और रात दीवाली हो मैं छन्दा भाभी के साथ विदा लेती हूँ।



समाप्त
अंत में आपने बंटू और देवेश को बुलाकर बहुत अच्छा किया सही बात है देवेश् को तो वैसे
होली हो ली



और होली में मैं भाभियों से बची लेकिन ज्यादा नहीं अंदर ऊँगली डाल डाल के सबने चेक की , मेरे दोनों दोस्तों की खूब मस्ती हुयी और जो उनकी चाहत थी मिसेज खान की टीनेज ननद हुमा, वो भी मिली , दोनों ने फाड़ी एक ने आगे एक ने पीछे,...

और ये सब हुआ छन्दा भाभी और खान भाभी के सौजन्य से , खान अंकल तो छन्दा भाभी के दीवाने थे तो आज एक बार जब तरंग ने उनकी ले ली , फिर तो ,... पूरे डेढ़ घंटे खान अंकल के साथ भाभी ने ' होली खेली; और मैं और मनुज तरंग , हुमा के यहाँ , घर खुलवाया , खान भाभी ने,... उसके बाद तो वो चूतड़ पटकती रही हम तीनो ने मिल के , बाहर की पहरेदारी उसकी भाभी, खान भाभी के जिम्मे , शाम को कम्पनी के काम से खान अंकल को जाना था तो उन दोनों लड़कों की तो चांदी हो गयी , मिसेज खान के यहाँ ' पार्टी' सुलभा भाभी , खान भाभी और वो नयी छोरी , ... और ये दोनों ,

मेरी रात भी , मुझे बिना बताये भाभी ने क्लब की होली में देवेश , दिया और बंटू को भी बुला लिया था , होली में दिल मिल जाते हैं और हम सब ने खूब मस्ती की , रात में छन्दा भाभी ने घर पर पार्टी रखी , मनुज तरंग तो खान भाभी के यहाँ ,... और मेरे पिछवाड़े का भी ताला बंटू ने खोल दिया , रात भर मस्ती , गिले शिकवे भुला के

डिटेल क्या बताऊँ , इत्ती तो होली की कहानियां आप सब पढ़ चुके है तो बस,... मैं एक बार फिर से दिया की बेस्टी हूँ , मनुज तरंग दोनों के चक्कर एक साथ हुमा के साथ , और दोनों हमारे पेइंग गेस्ट है तो मैं और छन्दा भाभी उन्हें बिल दे देते है,... महीने का नहीं हफ्ते हफ्ते या कई बार ,.. रोज रोज भी,...

तो बस आप सब का हर दिन होली और रात दीवाली हो मैं छन्दा भाभी के साथ विदा लेती हूँ।



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