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Erotica होली के रंग

komaalrani

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फागुन के दिन चार - भाग ५

चंदा भाभी की पाठशाला

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होली के रंग


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इस कहानी के पात्र है अनुजा , एक किशोरी , जब घटनाएं शुरू हुयी तो इंटर में पढ़ती थी अभी बी ए में है ,



उसकी भाभी छन्दा , पति संदीप लेकिन दुबई में रहते हैं , पांच छह महीने में आते हैं





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उसके दोस्त



इस कहानी में हर पात्र अपने ढंग से घटी घटनाओं को बताता है , ... तो शुरू करते हैं


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होली के रंग
 

komaalrani

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होली के रंग
अनुज़ा

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ये कहानी मेरी है, मेरी चन्दा भाभी की है,

और है मेरे दो दोस्तों की, मनोज़ और तरंग की।

लेकिन वो सब अपने-अपने बारे में बतायेंगे ही, पहले मैं अपने बारे में बता दूं।

ए॰स॰ल॰ चैट में कहते हैं ना… एज, सेक्स, लोकेशन (उम्र, लिंग, स्थान)।

एज… उंह्ह… लड़कियों से उमर नहीं पूछते।

हाँ, चलिये मैं बता देती हूं की मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं, पहला साल है, पिछले साल ही मैंने डी॰पी॰एस॰ से 12वीं पास की है। स्कूल से कालेज आने में एकदम से फर्क पड़ जाता है, है ना? ना युनिफार्म का चक्कर…


ओके ओके पहले अपने बारे में और सब बता दूं।

लगती कैसी हूं? अच्छी लगती हूं और क्या?

हाँ करीना कपूर नहीं हूं, लम्बाई 5’6”, गोरी, नहीं बहुत स्लिम नहीं, लेकिन जहां पे मोटी हूं…

मेरे दोस्त कहते हैं कि अच्छा लगता है, और सहेलियां कहती हैं… कहती क्या जलती हैं सब, एनोरेक्सिक।

एक-दो तो वहां पिंच भी कर देती हैं। इस होली में दुष्टों ने मुझे ‘बिग बी’ की टाइटिल दी थी।

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हाँ हाँ , जो आप जानना चाहते हैं न , सब समझती हूँ मैं , ... पिक्स से तो अंदाज लग ही गया होगा आपको ,... मेरी फिगर मेरी क्लास की लड़कियों से २० नहीं २२ है , ... इसलिए भौंरे भी कुछ ज्यादा ही



लेकिन मुझे अच्छा लगता है, जब सब लड़कों की निगाहें वहीं पे आकर टंग जाती हैं।

शुरू-शुरू में जब मैं हाई-स्कूल में पढ़ती थी, तभी से कालोनी के लड़के छेड़ते थे-

“रेशमा जवान हो गई…”

मैं स्कूल की किताबें और बैग से सीना दबा लेती तो कोई बोलता-

“अरे दबवाना है तो हम हैं ना…”

मैं और भाभी अकेले रहते हैं।

भैया दुबई में काम करते हैं और साल में दो बार आते हैं, 10-15 दिनों के लिये और उन दिनों तो भाभी तो बस पागल हो जाती हैं, दिन रात बस एक ही काम।

और उन दिनों मैं बहुत सम्हल के अपने कमरे से बाहर निकलती हूं, कहीं वो दोनों डिस्टर्ब ना हो जायं?

कई बार तो लाबी में ही… ड्राइंग रूम में… यहां तक की किचेन में भी…

कई बार जब मैं खाना बनाने में भाभी की हेल्प करती तो वो शर्माकर कहतीं-


“हे, तूने कुछ देखा तो नहीं?”

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और मैं हँसकर कहती-

“नहीं भाभी कुछ नहीं… लेकिन जब आप किचेन में चाय बनाने आईं थीं तो इस तरह झुकी क्यों थीं?

और नाइटी भी आपकी कमर तक ऊपर, और भैया पीछे से… और हाँ लाबी में…”

वो बनावटी गुस्से से कहतीं-

“ये बेलन डाल दूंगी तेरे में…”

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तो मैं हँसकर हल्के से कान में कहती-

“डालने वाला आ गया है…”


क्योंकी हर रोज 8:00 बजते-बजते भैया को खाने की जल्दी रहती थी।

भाभी मुझसे 5-6 साल बड़ी होंगी लेकिन मेरी पक्की दोस्त, गोरी, थोड़ा गदराया शरीर और एकदम खुली।

मुझे याद है उनकी शादी में… मैं हाई-स्कूल में थी, लेकिन मेरा नाम ले-लेकर एक से एक गंदी गालियां दी गईं।

उस समय तो मुझे बुरा लगा, लेकिन बाद में मजा आने लगा। हम दो ही लोग तो थे घर में।

भाभी मुझे चिढ़ातीं-

“अनुज़ा तेरी भो… अनुज़ा तेरी भो… …”

और जब मैं चिढ़ जाती तो गातीं-


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“अनुज़ा तेरी भोली सुरतिया…”

कमरा तो मेरा अलग था लेकिन जब भैया बाहर होते थे तो मैं सोती भाभी के साथ ही थी, और सोते समय हर तरह की बातें…

भाभी मुझे इतना छेड़ती थीं, बार-बार पूछतीं है तेरा कोई ब्वायफ्रेंड है की नहीं?

और जब से मैं कालेज में पहुँच गई तो और ज्यादा।

कई बार तो मेरी चड्ढी के ऊपर से हाथ दबाकर कहतीं-

“हे, कब तक बेचारी को भूखी रखेगी? इंटर पास कर लिया, और इंटर-कोर्स नहीं किया। अब चौदहवें में पहुँचने वाली है अब तो चु… …”

और मैं उनका मुँह बंद कर देती।

हाथ छुड़ाकर वो बोलतीं-

“अरे आजकल तो लड़कियां हाई-स्कूल में पहुँचती हैं तो एक दो यार पाल लेती हैं और तू तो अब कालेज में पहुँच गई है… मैं मान नहीं सकती की तेरे यार नहीं हैं, और फिर तेरा ये गदराया जोबन…”


बात बदलने के लिये मैं कहती-

“भाभी, आपका मन नहीं करता?”



तो वो साफ-साफ बोलतीं-

“यार, सच बोलूं तो मन तो बहुत करता है… इसीलिये तो जब तेरे भैया आते हैं तो न दिन देखते हैं न रात… न वो न मैं…”

“और ये भी नहीं की एक जवान ननद घर में है…”

मैंने चिढ़ाया।

तो वो बोलीं- “अरे उसके लिये तो खास तौर पे… उसकी तो ट्रेनिंग हो जाती है। क्या कहते हैं आजकल सेक्स एजुकेशन…”

बात काटकर मैं फिर मुद्दे पे लाती-


“भाभी, मुझे आप बोलती रहती हैं ब्वायफ्रेंड… ब्वायफ्रेंड, तो आप क्यों नहीं पटा लेतीं?

आप ही तो कहती हैं की तुम्हारे भैया को वहां कोई कमी नहीं…”

“चल छोड़…”

और धौल मारतीं बोलतीं-

“हाँ, तू ब्वायफ्रेंड पटा ले तो मैं भी हिस्सा बंटा लूंगी। ननद के यार में तो भाभी का पूरा हिस्सा रहता है…”


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अनुज़ा

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ये कहानी मेरी है, मेरी चन्दा भाभी की है,

और है मेरे दो दोस्तों की, मनोज़ और तरंग की।

लेकिन वो सब अपने-अपने बारे में बतायेंगे ही, पहले मैं अपने बारे में बता दूं।

ए॰स॰ल॰ चैट में कहते हैं ना… एज, सेक्स, लोकेशन (उम्र, लिंग, स्थान)।

एज… उंह्ह… लड़कियों से उमर नहीं पूछते।

हाँ, चलिये मैं बता देती हूं की मैं ग्रेजुएशन कर रही हूं, पहला साल है, पिछले साल ही मैंने डी॰पी॰एस॰ से 12वीं पास की है। स्कूल से कालेज आने में एकदम से फर्क पड़ जाता है, है ना? ना युनिफार्म का चक्कर…


ओके ओके पहले अपने बारे में और सब बता दूं।

लगती कैसी हूं? अच्छी लगती हूं और क्या?

हाँ करीना कपूर नहीं हूं, लम्बाई 5’6”, गोरी, नहीं बहुत स्लिम नहीं, लेकिन जहां पे मोटी हूं…

मेरे दोस्त कहते हैं कि अच्छा लगता है, और सहेलियां कहती हैं… कहती क्या जलती हैं सब, एनोरेक्सिक।

एक-दो तो वहां पिंच भी कर देती हैं। इस होली में दुष्टों ने मुझे ‘बिग बी’ की टाइटिल दी थी।

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हाँ हाँ , जो आप जानना चाहते हैं न , सब समझती हूँ मैं , ... पिक्स से तो अंदाज लग ही गया होगा आपको ,... मेरी फिगर मेरी क्लास की लड़कियों से २० नहीं २२ है , ... इसलिए भौंरे भी कुछ ज्यादा ही



लेकिन मुझे अच्छा लगता है, जब सब लड़कों की निगाहें वहीं पे आकर टंग जाती हैं।

शुरू-शुरू में जब मैं हाई-स्कूल में पढ़ती थी, तभी से कालोनी के लड़के छेड़ते थे-

“रेशमा जवान हो गई…”

मैं स्कूल की किताबें और बैग से सीना दबा लेती तो कोई बोलता-

“अरे दबवाना है तो हम हैं ना…”

मैं और भाभी अकेले रहते हैं।

भैया दुबई में काम करते हैं और साल में दो बार आते हैं, 10-15 दिनों के लिये और उन दिनों तो भाभी तो बस पागल हो जाती हैं, दिन रात बस एक ही काम।

और उन दिनों मैं बहुत सम्हल के अपने कमरे से बाहर निकलती हूं, कहीं वो दोनों डिस्टर्ब ना हो जायं?

कई बार तो लाबी में ही… ड्राइंग रूम में… यहां तक की किचेन में भी…

कई बार जब मैं खाना बनाने में भाभी की हेल्प करती तो वो शर्माकर कहतीं-


“हे, तूने कुछ देखा तो नहीं?”

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और मैं हँसकर कहती-

“नहीं भाभी कुछ नहीं… लेकिन जब आप किचेन में चाय बनाने आईं थीं तो इस तरह झुकी क्यों थीं?

और नाइटी भी आपकी कमर तक ऊपर, और भैया पीछे से… और हाँ लाबी में…”

वो बनावटी गुस्से से कहतीं-

“ये बेलन डाल दूंगी तेरे में…”

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तो मैं हँसकर हल्के से कान में कहती-

“डालने वाला आ गया है…”


क्योंकी हर रोज 8:00 बजते-बजते भैया को खाने की जल्दी रहती थी।

भाभी मुझसे 5-6 साल बड़ी होंगी लेकिन मेरी पक्की दोस्त, गोरी, थोड़ा गदराया शरीर और एकदम खुली।

मुझे याद है उनकी शादी में… मैं हाई-स्कूल में थी, लेकिन मेरा नाम ले-लेकर एक से एक गंदी गालियां दी गईं।

उस समय तो मुझे बुरा लगा, लेकिन बाद में मजा आने लगा। हम दो ही लोग तो थे घर में।

भाभी मुझे चिढ़ातीं-

“अनुज़ा तेरी भो… अनुज़ा तेरी भो… …”

और जब मैं चिढ़ जाती तो गातीं-


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“अनुज़ा तेरी भोली सुरतिया…”

कमरा तो मेरा अलग था लेकिन जब भैया बाहर होते थे तो मैं सोती भाभी के साथ ही थी, और सोते समय हर तरह की बातें…

भाभी मुझे इतना छेड़ती थीं, बार-बार पूछतीं है तेरा कोई ब्वायफ्रेंड है की नहीं?

और जब से मैं कालेज में पहुँच गई तो और ज्यादा।

कई बार तो मेरी चड्ढी के ऊपर से हाथ दबाकर कहतीं-

“हे, कब तक बेचारी को भूखी रखेगी? इंटर पास कर लिया, और इंटर-कोर्स नहीं किया। अब चौदहवें में पहुँचने वाली है अब तो चु… …”

और मैं उनका मुँह बंद कर देती।

हाथ छुड़ाकर वो बोलतीं-

“अरे आजकल तो लड़कियां हाई-स्कूल में पहुँचती हैं तो एक दो यार पाल लेती हैं और तू तो अब कालेज में पहुँच गई है… मैं मान नहीं सकती की तेरे यार नहीं हैं, और फिर तेरा ये गदराया जोबन…”


बात बदलने के लिये मैं कहती-

“भाभी, आपका मन नहीं करता?”



तो वो साफ-साफ बोलतीं-

“यार, सच बोलूं तो मन तो बहुत करता है… इसीलिये तो जब तेरे भैया आते हैं तो न दिन देखते हैं न रात… न वो न मैं…”

“और ये भी नहीं की एक जवान ननद घर में है…”

मैंने चिढ़ाया।

तो वो बोलीं- “अरे उसके लिये तो खास तौर पे… उसकी तो ट्रेनिंग हो जाती है। क्या कहते हैं आजकल सेक्स एजुकेशन…”

बात काटकर मैं फिर मुद्दे पे लाती-


“भाभी, मुझे आप बोलती रहती हैं ब्वायफ्रेंड… ब्वायफ्रेंड, तो आप क्यों नहीं पटा लेतीं?

आप ही तो कहती हैं की तुम्हारे भैया को वहां कोई कमी नहीं…”

“चल छोड़…”

और धौल मारतीं बोलतीं-

“हाँ, तू ब्वायफ्रेंड पटा ले तो मैं भी हिस्सा बंटा लूंगी। ननद के यार में तो भाभी का पूरा हिस्सा रहता है…”


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komaalrani

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अनुजा की जुबानी

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देवेश


भाभी की बात सही थी। लाइन मारने वाले तो जैसा मैंने बताया हाई-स्कूल से ही लग गये थे।

इंटर में दो-चार लड़कों से मेरी दोस्ती थी, लेकिन मैं ज्यादा दूर तक नहीं गई थी।

हाँ दिया मेरी सहेली।

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बाद में पता चला की उसने जानबूझ के ऐसा किया था। उसके साथ मैं शाहरुख की नई मूवी देखने जाने वाली थी।

मैं बोली भी की पहला हफ्ता है टिकट कहां मिलेगा?

तो वो अपने कजिन देवेश की ओर इशारा करके बोली-

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“ये किस मर्ज की दवा है? इसका जलवा है…”

और जाने के लिये भी हमने ट्रिपलिंग की।

किसी लड़के के साथ बाइक पे बैठने का पहला मौका था मेरा, और वो भी मुझे बीच में बैठा दिया की मैं जींस पहने हूं और खुद पीछे बैठ गई।


वो इत्ती जोर से चला रहा था की मैंने उसे धीरे चलाने को कहा।

तो दिया बोली-

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“अरे देवेश, चला… मजा आ रहा है। धीमे चलेगी तो इंटरवल में पहुंचेगें। अरे, डर लग रहा है तो पकड़ ले ना कमर इसकी…”

देवेश से इसके पहले भी मैं मिल चुकी थी कई बार… हैंडसम, लम्बा, जिम जाता था।

और अगली बार जब सड़क पे स्प्लेंडर उछली तो मैंने अपने आप उसकी कमर पकड़ ली।

पीछे से दिया बोली-

“क्यों कैसे लग रहा है पकड़ना? अब देख मेरी जान तुझे ये क्या-क्या पकड़ाता है?”

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मुड़कर मैं भी हँसकर बोली-

“जलती है क्या? और सब तेरे जैसे नहीं होते…”


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दिया के तो जब वो 11वीं में ही थी तभी से ब्वायफ्रेंड थे… और वो ‘सब कुछ करवा’ चुकी थी, खुद ही गाती थी।


हाल में पहुंचे तो दिया का एक नम्बर का ब्वायफ्रेंड रोमी भी था।


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हाल में देवेश ने सबसे पीछे वालो लाईन की कोने की टिकटें ली।

दिया ने बैठने में भी… हम दोनों बीच में बैठे, मेरी ओर देवेश और उसकी ओर रोमी।

वो मेरे कान में बोली- “हे, चल तू अपने वाले से चालू रह और मैं अपने वाले से…”

और खुद रोमी के कंधे पे हाथ रखकर बैठ गई।

मैं बोलना चाहती थी- “हे, मेरा ये कोई नहीं है…” पर चुप रह गई।

अंधेरा होते ही वो और रोमी… हद कर दी दोनों ने।

रोमी ने दिया को अपनी ओर खींच लिया, और सीधे होंठों पे चुम्मी ले ली। और दिया भी तो दोनों हाथों से उसे कस के पकड़ी थी।

मैं सामने देखना चाहती थी, लेकिन बगल में चुम्मा चाटी की आवाज सुनकर, मैं कनखियों से देख रही थी।

रोमी ने अपना एक हाथ सीधे दिया के ‘वहां’ कुर्ते के ऊपर से हल्के-हल्के दबा रहा था।

मैंने सुना था की डेटिंग में किसिंग, नेकिंग तो चलती है पर ये सब?

अचानक मेरे हाथ पे देवेश का हाथ महसूस करके मेरा हाथ अपने आप हट गया। थोड़ी देर में फिर जब मैंने हाथ वापस हत्थे पे रखा तो फिर वही। अबकी मैंने हाथ नहीं हटाया।

सोचा देखें आगे क्या करता है? ज्यादा आगे बढ़ा तो डांट दूंगी।

और मेरी निगाहें वैसे भी रोमी और दिया पे चिपकी हुई थीं। वहां तो किसी एडल्ट फिल्म से भी हाट सीन चल रही थी।

दिया के कुर्ते के बटन खुल चुके थे, रोमी का एक हाथ अंदर और दूसरा बाहर से अब खुलकर दिया की चूचियों पे।

उधर देवेश की उंगलियां मेरी खुली बांहों पे टैप कर रहीं थीं।

मैंने नोटिस ना करने का बहाना किया, लेकिन मेरा दिल धक-धक कर रहा था। मेरे सारे बदन में चींटियां काट रहीं थीं।

और जब मैंने दिया की ओर देखा तो… माई गोड, उसका हाथ सीधे रोमी के जींस के ऊपर हल्के-हल्के रगड़ते हुये।

तभी साइड से देवेश की एक उंगली मेरी चूचियों के उभार पे… टाप भी मेरा टाईट था।

मुझे क्या मालूम था की दिया इन सबों को भी साथ ले आयेगी।

देवेश की उंगली के खाली छुअन से मेरी सारी देह झनझना गई। मुझे लगा की मैं कुछ बोलूं पर… फिर लगा शायद गलती से लग गया हो। डी॰टी॰सी॰ की बस पे चढ़ते उतरते, कितनी बार इससे कितना ज्यादा होता था।

मेरी निगाहें अभी भी दिया से चिपकी थीं।
 
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komaalrani

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Komal ji aap ki story thi xp par fagun ke din char ho sake to use yha bhi post kare plz


Komal ji aap ki kahaniya holi ki bahut mast hoti he plz start story

Thanks so much , main bhi yahi soach rahi hun Phagun ke din chaar ekdm alag kism ki kahani hai , kahanai kya novel hai ,... ho skaa to jald hi karungi , tab taak ise padhe aur Mohe Range de...apani opinion bhi share kare

Happy Holi

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sunoanuj

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होली की सभी को बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
 
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Milind

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मेरी प्यारी कोमल भौजी को सादर प्रणाम.. होलि का मजा सासुराल मैं का सिक्वेल कब आयेगा ...
आप से प्यार करणे वाला देवर..
 
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