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Incest हवेली by The_Vampire (Completed)

kamdev99008

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मित्रो! आप सब ने वेम्पायर भाई की इस प्रसिद्ध कहानी का नाम तो जरूर सुना होगा........ लेकिन शायद कुछ ही लोगों ने इसे पढ़ा होगा
क्योंकि ये कहानी एक पीढ़ी (generation) पहले लिखी गयी थी और वो फोरम भी बंद हो चुकी हैं

मैं इस कहानी को यहाँ आप सब के सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ..... हालांकि कहानी पूरी है लेकिन अपडेट एक-एक करके ही पोस्ट करूंगा....
आप सब भी इसे एक नयी कहानी की तरह पढ़ें और हर अपडेट के बाद अपनी प्रतिक्रियाा भी दें :D

haveli
picture sharing
 
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kamdev99008

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हवेली ..1



वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिछले 10 साल से थी. आसमान में चाँद पुरे नूर पे था और हर तरफ चाँदनी फैली हुई थी. उसके बावजूद हवेली के गलियारे अंधेरे में डूबे हुए थे. दूर से कोई देखे तो इस बात का अंदाज़ा तक नही हो सकता था के इसमें कोई ज़िंदा इंसान भी रहता है. आँगन में सूखी घास, बबूल की झाड़ियाँ, खुला हुआ बड़ा दरवाज़ा, डाल पे बोलता हुआ उल्लू, हर तरफ मनहूसियत पुर जोश पर ही.

पूरी हवेली में 25 कमरे में जिसमें से 23 अंधेरे में डूबे हुए. सिर्फ़ 2 कमरो में हल्की सी रोशनी थी. एक कमरा था ठाकुर शौर्य सिंह का और दूसरा उनकी बहू रूपाली का. हवेली में फेले हुए सन्नाटे की एक वजह 2 दिन पहले हुई मौत भी थी. मौत हवेली की मालकिन और ठाकुर शौर्य सिंह की बीवी सरिता देवी की जो एक लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी. उस रात हवेली में मौत का ख़ौफ हर तरफ देखा जा सकता था. मरने से पहले बीमारी में दर्द की वजह से उठी सरिता देवी की चीखें जैसी आज भी हर तरफ गूँज रही थी.

मगर हमेशा यही आलम ना था. इस हवेली ने खूबसूरत दिन भी देखे थे. हवेली को शौर्य सिंह के परदादा महाराजा इंद्रजीत सिंह ने बनवाया था. ना तो आसपास के किसी रजवाड़े में ऐसी हवेली थी और ना ही किसी का इतना सम्मान था जितना इंद्रजीत सिंह का था. परंपरा अगली कई पीढ़ियों तक बनी रही. हर तरफ इंद्रजीत सिंह के कुल पर लोक गीत गाए जाते थे. जो भी हवेली तक आया कभी खाली हाथ नही गया. जो भी गुज़रता, हवेली के दरवाज़े पे सर झुकाके जाता जैसे वो कोई मंदिर हो और यहाँ भगवान बसते हों.

आज़ादी के बाद महाराजा की उपाधि तो चली गयी मगर रुतबा और सम्मान वही रहा. लोग आज भी हवेली में रहने वालो को महाराज के नाम से ही पुकारते थे. और यही सम्मान शौर्य सिंह ने भी पाया जब उनका राजतिलक किया गया. और फिर एक दिन पड़ोस के रजवाड़े की बेटी सरिता देवी को बहू बनाकर इस हवेली में लाया गया.

शौर्य सिंह को सरिता देवी से 4 औलाद हुई. 3 बेटे और एक बेटी. सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम की शादी रूपाली से हुई और वही अपने पिता की ज़मीन जायदाद की देखभाल भी करता था. दूसरा बेटा तेजवीर सिंह अपने बड़े भाई का हाथ साध देता था पर ज़्यादा वक़्त अययाशी में गुज़रता था. तीसरा बेटा कुलदीप सिंह अब भी विदेश में पढ़ रहा था. और सबसे छोटी थी सबकी लड़ली कामिनी. 3 भाइयों की दुलारी और घर में सबकी प्यारी शौर्य सिंह की इकलौती बेटी.

हवेली में हर तरफ हसी गूँजती रहती थी. आनेवाले अपनी झोलिया भरके जाते और दुआ देते कि कुल का सम्मान सदा ऐसे ही बना रहे और शायद होता भी यही मगर एक घटना ने जैसे सब बर्बाद कर दिया. वो एक दिन ऐसा आया के शौर्य सिंह से उसका सब छीनके ले गया. उनका सम्मान, खुशियाँ, दौलत और उनका सबसे बड़ा बेटा पुरुषोत्तम सिंह.

एक शाम पुरुषोत्तम सिंह घर से गाड़ी लेके निकला तो रात भी लौटके नही आया. ये कोई नयी बात नही थी. वो अक्सर काम की वजह से रात बाहर ही रुक जाता था इसलिए किसी ने इस बात पर कोई ध्यान नही दिया. मुसीबत सुबह हुई जब खबर ये आई के पुरुषोत्तम की गाड़ी हवेली से थोड़ी दूर सड़क के किनारे खड़ी मिली और पुरुषोत्तम का कहीं कोई पता नही था. गाड़ी में खून के धब्बे सॉफ देखे जा सकता थे. तलाश की गयी तो थोड़ी ही दूर पुरुषोत्तम सिंह की लाश भी मिल गयी. उसके जिस्म में दो गोलियाँ मारी गयी थी.
हवेली में तो जैसी आफ़त ही आ गयी. परिवार के लोग तो पागल से हो गये. किसी को कोई अंदेशा नही था के ये किसने किया. पहले तो किसी की इतनी हिम्मत ही नही सकती थी के शौर्य सिंह की बेटे पे हाथ उठा देते और दूसरा पुरुषोत्तम सिंह इतना सीधा आदमी था का सबसे हाथ जोड़के बात करता था. उसकी किसी से दुश्मनी हो ही नही सकती थी.

उसके बाद जो हुआ वो बदतर था. शौर्य सिंह ने बेटे के क़ातिल की तलाश में हर तरफ खून की नदियाँ बहा दी. जिस किसी पे भी हल्का सा शक होता उसकी लाश अगले दिन नदी में मिलती. सबको पता था के कौन कर रहा था पर किसी ने डर के कारण कुछ ना कहा. यही सिलसिला अगले 10 साल तक चलता रहा. शौर्य सिंह और उनके दूसरे बेटे तेजवीर सिंह ने जाने कितनी लाशें गिराई पर पुरुषोत्तम सिंग के हत्यारे को ना ढूँढ सके.
हत्यारा तो ना मिला लेकिन कुल पर कलंक ज़रूर लग गया. जो लोग शौर्य सिंह को भगवान समझते थे आज उनके नाम पे थूकने लगे. जिसे महाराज कहते थे आज उसे हत्यारा कहने लगे. और हवेली को तो जैसे नज़र ही लग गयी. जो कारोबार पुरुषोत्तम सिंह के देखरेख में फल फूल रहा था डूबता चला गया. शौर्य सिंह ने भी बेटे के गम में शराब का सहारा लिया. यही हाल तेजवीर सिंह का भी था जिसे पहले से ही नशे की लत थी. कर्ज़ा बढ़ता चला गया और ज़मीन बिकती रही.

हवेली का 150 साल का सम्मान 10 सालों में ख़तम होता चला गया .

रूपाली अपने कमेरे में अकेली लेटी हुई थी. नींद तो जैसे आँखो से कोसो दूर थी. बस आँखें बंद किए गुज़रे हुए वक़्त को याद कर रही थी. वो 20 साल की थी जब पुरुषोत्तम सिंह की बीवी बन कर उसने इस हवेली में पहली बार कदम रखा था. पिछले 13 सालों में कितना कुच्छ बदल गया था. गुज़रे सालों में ये हवेली एक हवेली ना रहकर एक वीराना बन गयी थी.

रूपाली पास के ही एक ज़मींदार की बेटी थी. वो ज़्यादा पढ़ी लिखी नही थी और हमेशा गाओं में ही पली बढ़ी थी. भगवान में उसकी श्रद्धा कुछ ज़्यादा ही थी. हमेशा पूजा पाठ में मगन रहती. ना कभी बन सवारने की कोशिश की और ना ही कभी अपने आप पर ध्यान दिया. उसकी ज़िंदगी में बस 2 ही काम थे. अपने परिवार का ख्याल रखना और पूजा पाठ करना.


______________________________
 
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kamdev99008

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..............सभी पाठकों से अनुरोध .....................

इन अपडेट मेँ बहुत सारी गलतियाँ हो सकती हैं क्योंकि ये मैंने टाइप नहीं किए हैं.... सिर्फ कॉपी पेस्ट करके सेव कर लिए थे
अगर कहीं भी कोई गलती सुधार की जानी हो तो मुझे कमेंट मेँ कोट करके बता दें ..............
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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देवनागरी मे लिखने के लिए आपका आभार मित्र :love:
रूपाली के हुस्न की गर्मी मे मैं पिघल ना जाऊँ कहीं
 

kamdev99008

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देवनागरी मे लिखने के लिए आपका आभार मित्र :love:
रूपाली के हुस्न की गर्मी मे मैं पिघल ना जाऊँ कहीं
vampire भाई ने इसी कहानी का एक दूसरा version भी लिखा था..........वो भी मेरे पास देवनागरी में उपलब्ध है
वो भी आज रात को नयी थ्रेड बनाकर पोस्ट करना शुरू कर दूंगा

और.........
मेंने कुछ नहीं लिखा ......... सिर्फ कॉपी पेस्ट करके सेव किया है
बस...... इन सब को एडिट करके गलतियाँ सही करने का प्रयास करूंगा..........
ये अपडेट पढ़ा तो बहुत सारी गलतियाँ नज़र आयीं मुझे
 

Ajju Landwalia

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हवेली ..1



वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिछले 10 साल से थी. आसमान में चाँद पुरे नूर पे था और हर तरफ चाँदनी फैली हुई थी. उसके बावजूद हवेली के गलियारे अंधेरे में डूबे हुए थे. दूर से कोई देखे तो इस बात का अंदाज़ा तक नही हो सकता था के इसमें कोई ज़िंदा इंसान भी रहता है. आँगन में सूखी घास, बबूल की झाड़ियाँ, खुला हुआ बड़ा दरवाज़ा, डाल पे बोलता हुआ उल्लू, हर तरफ मनहूसियत पुर जोश पर ही.

पूरी हवेली में 25 कमरे में जिसमें से 23 अंधेरे में डूबे हुए. सिर्फ़ 2 कमरो में हल्की सी रोशनी थी. एक कमरा था ठाकुर शौर्य सिंह का और दूसरा उनकी बहू रूपाली का. हवेली में फेले हुए सन्नाटे की एक वजह 2 दिन पहले हुई मौत भी थी. मौत हवेली की मालकिन और ठाकुर शौर्य सिंह की बीवी सरिता देवी की जो एक लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी. उस रात हवेली में मौत का ख़ौफ हर तरफ देखा जा सकता था. मरने से पहले बीमारी में दर्द की वजह से उठी सरिता देवी की चीखें जैसी आज भी हर तरफ गूँज रही थी.

मगर हमेशा यही आलम ना था. इस हवेली ने खूबसूरत दिन भी देखे थे. हवेली को शौर्य सिंह के परदादा महाराजा इंद्रजीत सिंह ने बनवाया था. ना तो आसपास के किसी रजवाड़े में ऐसी हवेली थी और ना ही किसी का इतना सम्मान था जितना इंद्रजीत सिंह का था. परंपरा अगली कई पीढ़ियों तक बनी रही. हर तरफ इंद्रजीत सिंह के कुल पर लोक गीत गाए जाते थे. जो भी हवेली तक आया कभी खाली हाथ नही गया. जो भी गुज़रता, हवेली के दरवाज़े पे सर झुकाके जाता जैसे वो कोई मंदिर हो और यहाँ भगवान बसते हों.

आज़ादी के बाद महाराजा की उपाधि तो चली गयी मगर रुतबा और सम्मान वही रहा. लोग आज भी हवेली में रहने वालो को महाराज के नाम से ही पुकारते थे. और यही सम्मान शौर्य सिंह ने भी पाया जब उनका राजतिलक किया गया. और फिर एक दिन पड़ोस के रजवाड़े की बेटी सरिता देवी को बहू बनाकर इस हवेली में लाया गया.

शौर्य सिंह को सरिता देवी से 4 औलाद हुई. 3 बेटे और एक बेटी. सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम की शादी रूपाली से हुई और वही अपने पिता की ज़मीन जायदाद की देखभाल भी करता था. दूसरा बेटा तेजवीर सिंह अपने बड़े भाई का हाथ साध देता था पर ज़्यादा वक़्त अययाशी में गुज़रता था. तीसरा बेटा कुलदीप सिंह अब भी विदेश में पढ़ रहा था. और सबसे छोटी थी सबकी लड़ली कामिनी. 3 भाइयों की दुलारी और घर में सबकी प्यारी शौर्य सिंह की इकलौती बेटी.

हवेली में हर तरफ हसी गूँजती रहती थी. आनेवाले अपनी झोलिया भरके जाते और दुआ देते कि कुल का सम्मान सदा ऐसे ही बना रहे और शायद होता भी यही मगर एक घटना ने जैसे सब बर्बाद कर दिया. वो एक दिन ऐसा आया के शौर्य सिंह से उसका सब छीनके ले गया. उनका सम्मान, खुशियाँ, दौलत और उनका सबसे बड़ा बेटा पुरुषोत्तम सिंह.

एक शाम पुरुषोत्तम सिंह घर से गाड़ी लेके निकला तो रात भी लौटके नही आया. ये कोई नयी बात नही थी. वो अक्सर काम की वजह से रात बाहर ही रुक जाता था इसलिए किसी ने इस बात पर कोई ध्यान नही दिया. मुसीबत सुबह हुई जब खबर ये आई के पुरुषोत्तम की गाड़ी हवेली से थोड़ी दूर सड़क के किनारे खड़ी मिली और पुरुषोत्तम का कहीं कोई पता नही था. गाड़ी में खून के धब्बे सॉफ देखे जा सकता थे. तलाश की गयी तो थोड़ी ही दूर पुरुषोत्तम सिंह की लाश भी मिल गयी. उसके जिस्म में दो गोलियाँ मारी गयी थी.
हवेली में तो जैसी आफ़त ही आ गयी. परिवार के लोग तो पागल से हो गये. किसी को कोई अंदेशा नही था के ये किसने किया. पहले तो किसी की इतनी हिम्मत ही नही सकती थी के शौर्य सिंह की बेटे पे हाथ उठा देते और दूसरा पुरुषोत्तम सिंह इतना सीधा आदमी था का सबसे हाथ जोड़के बात करता था. उसकी किसी से दुश्मनी हो ही नही सकती थी.

उसके बाद जो हुआ वो बदतर था. शौर्य सिंह ने बेटे के क़ातिल की तलाश में हर तरफ खून की नदियाँ बहा दी. जिस किसी पे भी हल्का सा शक होता उसकी लाश अगले दिन नदी में मिलती. सबको पता था के कौन कर रहा था पर किसी ने डर के कारण कुछ ना कहा. यही सिलसिला अगले 10 साल तक चलता रहा. शौर्य सिंह और उनके दूसरे बेटे तेजवीर सिंह ने जाने कितनी लाशें गिराई पर पुरुषोत्तम सिंग के हत्यारे को ना ढूँढ सके.
हत्यारा तो ना मिला लेकिन कुल पर कलंक ज़रूर लग गया. जो लोग शौर्य सिंह को भगवान समझते थे आज उनके नाम पे थूकने लगे. जिसे महाराज कहते थे आज उसे हत्यारा कहने लगे. और हवेली को तो जैसे नज़र ही लग गयी. जो कारोबार पुरुषोत्तम सिंह के देखरेख में फल फूल रहा था डूबता चला गया. शौर्य सिंह ने भी बेटे के गम में शराब का सहारा लिया. यही हाल तेजवीर सिंह का भी था जिसे पहले से ही नशे की लत थी. कर्ज़ा बढ़ता चला गया और ज़मीन बिकती रही.

हवेली का 150 साल का सम्मान 10 सालों में ख़तम होता चला गया .

रूपाली अपने कमेरे में अकेली लेटी हुई थी. नींद तो जैसे आँखो से कोसो दूर थी. बस आँखें बंद किए गुज़रे हुए वक़्त को याद कर रही थी. वो 20 साल की थी जब पुरुषोत्तम सिंह की बीवी बन कर उसने इस हवेली में पहली बार कदम रखा था. पिछले 13 सालों में कितना कुच्छ बदल गया था. गुज़रे सालों में ये हवेली एक हवेली ना रहकर एक वीराना बन गयी थी.

रूपाली पास के ही एक ज़मींदार की बेटी थी. वो ज़्यादा पढ़ी लिखी नही थी और हमेशा गाओं में ही पली बढ़ी थी. भगवान में उसकी श्रद्धा कुछ ज़्यादा ही थी. हमेशा पूजा पाठ में मगन रहती. ना कभी बन सवारने की कोशिश की और ना ही कभी अपने आप पर ध्यान दिया. उसकी ज़िंदगी में बस 2 ही काम थे. अपने परिवार का ख्याल रखना और पूजा पाठ करना.


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Bahut bahut aabhar aur shukriya kamdev99008 Bade Bhai aapka,

Is mahagatha ko fir se punarjivit karne ke liye..........Hindi fonts me to padhne ka maja doguna ho jata he..........

Keep posting Bhai
 

kamdev99008

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हवेली ..2



पर जब शौर्य सिंह ने उसे पहली बार देखा तो देखते ही रह गये. वो सादगी में भी बला की खूबसूरत लग रही थी. ऐसी ही तो बहू वो ढूँढ भी रहे थे अपने बेटे के लिए. जो उनके बेटे की तरह सीधी साधी हो, पूजा पाठ करती हो और उनके परिवार का ध्यान रख सके. बस फिर क्या था, बात आगे बढ़ी और 2 महीनो में रूपाली हवेली की सबसे बड़ी बहू बनकर आ गयी.

उसके जीवन में पुरुष का संपर्क पहली बार सुहागरात को उसके पति के साथ ही था. वो कुँवारी थी और अपनी टाँगें ज़िंदगी में पहली बार पुरुषोत्तम के लिए ही खोली. पर उस रात एक और सच उस पर खुल गया. सीधा साधा दिखनेवाला पुरुषोत्तम बिस्तर पर बिल्कुल उल्टा था. उसने रात भर रूपाली को सोने ना दिया. दर्द से रूपाली का बुरा हाल था पर पुरुषोत्तम था कि रुकने का नाम ही नही ले रहा था. वो बहुत खुश था के उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली और रूपाली हैरत में अपने पति को देखती रह गयी.

यही समस्या अगले 3 साल तक उनकी शादी में आती रही. पुरुषोत्तम हर रात उसे चोदना चाहता था और रूपाली की रतिक्रिया में रूचि बस नाम भर की थी. वो बस नंगी होकर टांगे खोल देती और पुरुषोत्तम उसपर चढ़कर धक्के लगा लेता. यही हर रात होता रहा और धीरे धीरे पुरूषोत्तम उससे दूर होता चला गया.

रूपाली को इस बात का पूरा ज्ञान था कि उसका पति उससे दूर जा रहा है पर वो चाहकर भी कुछ ना कर सकी. पुरुषोत्तम बिस्तर पे जैसे एक शैतान का रूप ले लेता और वो उसके आक्रामक अंदाज़ का सामना ना कर पाती. उसके लिए इन सब कामों की ज़रूरत बस बच्चे पैदा करने के लिए थी, ना की ज़िंदगी का मज़ा लेने के लिए. धीरे धीरे बात यहाँ तक आ पहुँची के दोनो बिस्तर पे नंगे होते पर बात नही करते थे. और फिर एक दिन जब पुरुषोत्तम की हत्या का पता चला तो रूपाली की दुनिया ही लूट गयी. वो इतनी बड़ी हवेली में जैसे अकेली रही गयी और पहली बार उसे अपने पति की कमी का एहसास हुआ.

उसके बाद जो हुआ वो उसने बस एक मूक दर्शक बनके देखा. खून में सनी तलवार जैसे हवेली में आम बात हो गयी थी. कोई किसी से बात नही करता था. अगले दस साल तक यही सन्नाटा हवेली में छाया रहा और इन सबका सबसे बुरा असर उसकी सास सरिता देवी पर हुआ जो बिस्तर से जा लगी. हर तरह की दवा की गयी पर उनकी बीमारी का इलाज ना हो सका. और 10 साल बाद उन्होने दम तोड़ दिया.

उस रात रूपाली अपनी सास के पास ही थी. घर में और कोई भी ना था. ठाकुर शौर्य सिंह शराब के नशे में कहीं बाहर निकल गये थे. दूसरा बेटा तो कई दिन तक घर ना आता था और बेटी कामिनी अपने भाई कुलदीप के पास विदेश में थी. नौकर तो कबके हवेली छोड़के भाग चुके थे. बस एक वही थी जो अपनी सास को मरते हुए देख रही थी, वहीं उनके पास बैठे हुए. सरिता देवी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था जब उन्होने आखरी साँस ली, पर उससे पहले उन्होने जो कहा उसने रूपाली को हैरत में डाल दिया. मरने से ठीक पहले सरिता देवी ने उसकी आँखों में देखा और उससे एक वादा लिया के वो इस हवेली की खुशियाँ वापस लाएगी. रूपाली की समझ में नही आया के कैसे पर एक मारती हुई औरत का दिल रखने के लिए उसने वादा कर दिया. फिर सरिता देवी ने जो कहा वो रूपाली की समझ में बिल्कुल नही आया. उनके आखरी शब्द अब भी उसके दिमाग़ में गूँज रहे थे “ बेटी, औरत का जिस्म दुनिया में हर फ़साद की सबसे बड़ी जड़ है और ऐसा हमेशा से होता आया है. महाभारत और रामायण तक इसी औरत के जिस्म की वजह से हुई. पर इस जिस्म के सहारे फ़साद ख़तम भी किया जा सकता है” और इसके बाद सरिता देवी कुछ ना कह सकी.


उसकी सास की कही बात का मतलब अब उसे समझ आ रहा था. मरती हुई उस औरत ने उससे एक वादा लिया और ये भी बता गयी के उस वादे को पूरा कैसे करना है. कैसे इस पूरे परिवार को एक साथ फिर इस हवेली की छत के नीचे लाना है. ये बात अगर आज से दस साल पहले रूपाली ने सुनी होती तो शायद वो अपनी सास को ही थप्पड़ मार देती पर इन 10 सालों में जो उसने देखा था उसके कारण भगवान से उसकी श्रद्धा जैसे ख़तम ही हो गयी थी.

रूपाली अपने बिस्तर से उठी और कुछ सोचती हुई खिड़की तक गयी. खिड़की से बाहर का नज़ारा देखकर उसका रोना छूट पड़ा. आज जो आँगन शमशान जैसा लग रहा है कभी इसी आँगन में देर रात तक महफ़िल जमा होती थी. नाच गाना होता था. हसी गूंजा करती थी. उसने अपने आँसू पोंछते हुए खिड़की पर पर्दे डाल दिए और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. फिर उसने पलटके कमरे में लगे बड़े शीशे में अपने आप को देखा.
वो 33 साल की हो चुकी थी. पिछले 10 साल में उसने सिर्फ़ और सिर्फ़ दुख देखे थे पर इन सबके बावजूद जो एक चीज़ नही बदली थी वो था उसका हुश्न. वो आज भी वैसे ही खूबसूरत थी जैसे आज से 13 साल पहले जब दुल्हन बनकर इस कमरे में पहली बार आई थी. हन उस वक़्त थोड़ी दुबली पतली थी और अब उसका पूरा जिस्म गदरा गया था. तब वो एक लड़की थी और आज एक औरत. कमरे में ट्यूबलाइट की सफेद रोशनी फेली हुई थी और नीले रंग की साड़ी में उसका रूप ऐसा खिल रहा था जैसे चाँदनी में किसी झील का पानी.
रूपाली ने अपना हाथ अपने कंधे पे रखा और साड़ी का पल्लू सरका दिया. दूसरे ही पल शरम से खुद उसकी अपनी आँखें झुक गयी. पहली बार आज उसने अपने आपको इस नज़र से देखा था. ये नज़र तो उसने अपने आप पर तब भी नही डाली थी जब वो शादी के जोड़े में तैय्यार हो रही थी. उसने धीरे से अपनी नज़र उठाई और फिर अपने आप को देखा. नीले रंग का ब्लाउस और उसमें क़ैद उसके 36 साइज़ की छातियाँ और नीचे उसकी गोरी नाभि. उसके होंठो पे एक हल्की सी मुस्कुराहट आई और उसने टेढ़ी होकर अपनी छातियों को निहारा. जैसे दो पर्वत सर उठाए खड़े हों. गौरव के साथ और नीचे उसकी नाभि जैसे धूप में सॉफ सफेद चमकता कोई रेगिस्तान. उसने अपना एक हाथ अपने पेट पे फेरते हुए अपने दाई तरफ के स्तन पे रखा और जैसे अपने आप ही उसके हाथ ने उसकी छाति को दबा दिया. दूसरे ही पल उसके शरीर में एक ल़हेर से दौड़ गयी और उसके घुटने कमज़ोर से होने लगे. पहली बार उसने अपने आप को इस अंदाज़ में छुआ था और आज जो महसूस कर रही थी वो तो तब भी महसूस ना किया था जब यही छातियाँ उसके पति के हाथों में होती थी, जब वो इनको अपने मुँह में लेके चूसा करता था.

रूपाली ने जैसे एक नशे की सी हालत में अपने ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए. उसे 10 साल से किसी मर्द ने नही छुआ था और 10 साल में ना ही कभी उसके जिस्म ने कोई ख्वाहिश की पर आज उसकी सास की कही बात ने सब कुछ बदल दिया. एक एक करके ब्लाउस के सारे बटन खुल गये और अगले ही पर वो सरक कर नीचे ज़मीन पे जा गिरा. ब्रा में अपनी छातियों को देखकर रूपाली एक बार फिर शर्मा सी गयी पर अगले ही पल नज़र उठाकर अपने आपको देखने लगी. सफेद रंग की ब्रा में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ जैसे खुद उसपर ही क़यामत ढा रही थी. ब्रा उसकी छातियों पे कसा हुआ था और आधे स्तन ब्रा से उभरकर बाहर आ रहे थे. जैसे किसी ग्लास में शराब ज़रूरत से ज़्यादा डाल दी गयी हो और अब छलक कर बाहर गिर रही हो. रूपाली अपना एक हाथ कमर तक ले गयी और ब्रा के हुक को खोलने की कोशिश करने लगी. जैसे ही खुद उसके हाथ का स्पर्श उसकी नंगी कमर पे हुआ, उसे फिर अपने घुटने कमज़ोर होते से महसूस हुए.

धीरे से ब्रा का हुक खुला और अगले ही पल उसके दोनो स्तन आज़ाद थे. दो पर्वत जो 33 साल की उमर होने के बाद भी ज़रा नही झुके थे. आज भी उसी अकड़ से अपना सर उठाए मज़बूत खड़े थे. रूपाली को खुद अपने अप्पर ही गर्व महसूस होने लगा. उसके दोनो हाथों ने उसकी छातियों को थाम लिया और धीरे धीरे सहलाने लगे. उसके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी और पहली बार उसे अपनी टाँगो के बीच नमी का एहसास हुआ और उसका ध्यान अपने शरीर के निचले हिस्से की तरफ गया. उसकी टांगे मज़बूती से एक दूसरे से चिपक गयी जैसे बीच में उठती ख्वाहिश को पकड़ना चाह रही हो और छातियों पर उसकी पकड़ और सख़्त हो गयी, जैसे दबके बरसो से दबी आग को बाहर निकलना चाह रही हो.उसने फ़ौरन अपनी साड़ी को पेटिकोट से निकाला और बिस्तर की तरफ उछाल दिया. फिर उसके हाथ पेटिकोट को ऐसे उतरने लगे जैसे उसमें आग लग गयी हो. थोड़ी ही देर बाद उसका पेटिकोट भी बिस्तर पर पड़ा था और और वो सिर्फ़ एक पॅंटी पहने अपने आप को निहार रही थी. और तब उसे एहसास हुआ के उसने पिच्छले 10 साल में अपने उपेर ज़रा भी ध्यान नही दिया. पॅंटी ने उसकी चूत को तो ढक लिया था पर दोनो तरफ से बॉल बाहर निकल रहे थे. वजह ये थी के 10 साल में उसने एक बार भी नीचे शेव नही किया था. पति के मरने के बाद कभी ज़रूरत ही महसूस नही हुई. जब वो अपनी आर्म्स के नीचे के बॉल सॉफ करती तो बस वही रुक जाती . कभी चूत की तरफ ध्यान ही ना जाता. यही सोचते हुए उसने अपनी पॅंटी उतारी और पहली बार अपने आपको पूरी तरह से नंगी देखा.

शीशे में नज़ारा देखकर रूपाली के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसे अपनी पूरी जवानी कभी एहसास ना हुआ के वो इतनी खूबसूरत है. कभी पूजा पाठ से ध्यान ही ना हटा. जैसे आज उसने अपने आपको पहली बार पूरी तरह नंगी देखा हो. उसका लंबा कद,36 साइज़ के बड़े बड़े भारी स्तन, पतली कमर और भारी उठी हुई गांद. दो लंभी लंबी सफेद टाँगें और उनकी बीच बालों में छिपि उसकी चूत. वो पलटी और अपनी कमर से लेके अपनी गांड तक को निहारा. वो जो देख रही थी वो किसी भी मर्द को पागल कर देने के लिए काफ़ी थी. ये सोचते हुए वो मुस्कुराइ. बस एक चीज़ से छूट कारा पाना है और वो थे उसकी चूत को छिपा रहे लंबे बाल. उसने अपना एक हाथ उठे हुए बालों पे फिराया और चौंक पड़ी. बॉल गीले थे. उसका हाथ टाँगो के बीच आया तो एहसास हुए के खुद अपने आपको देख कर उसकी चूत गीली हो चुकी थी. जैसे ही उसने अपनी चूत को थोड़ा सहलाया उसके घुटने जवाब दे गये और वो ज़मीन पे गिर पड़ी. आज पहली बार उसने जाना के चूत गीला होना किसे कहते हैं और क्यूँ उसका पति उसे चोदने से पहले लंड पे तेल लगता था. क्यूंकी कभी भी उसकी चूत गीली नही होती थी और इसलिए उसे लंड लेने में तकलीफ़ होती थी.

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