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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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nice update. shalaka ne vedant rahasyam padhna shuru kar diya ..bahut soch samajhkar banaya gaya hai us kitab ko ,jab kisi panne ko chhuwo to us yaad me pahuch sakte hai .
shalaka ne bachpan ki yaad ko taaza kiya aaryan ke us waqt me jakar jaha wo prakriti ko mehsus karna sikhata hai shalaka ko .
chidiya ke saath khelnewala scene ekdam zabardast tha .
aryan ne amrit ki 2 bunde hasil ki hai jisse dono amar ho sakte hai par dusre din par taal diya peena ,shayad isise koi durghatna ho gayi ho jisse aryan ne apne aap ko maar diya ho .
Aakruti ka chehra Shalaka se milta hai, isi ka faayda utha kar dhokhe se ek sheeshi Amrit ki aakriti ne pee liya, aur Aryan ne use apni Shalaka samajh kar uske sath one two ka four kar liya raat ke andhere me, jab Aryan ko sach pata laga to use bardasht nahi hua, yahi main kaaran tha :dazed: Chidiya wala scene ek park me baith kar likhne ke karan hua tha 😁
Thank you very much for your wonderful review and superb support bhai :hug:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhut hi badhiya update Bhai
Sabhi ne milkar dusre dvar ke pahle padav ko par kar liya
Dhekte hai us auctopus vale dusre padav me kya hota hai
Bilkul bhai, wo Update bas aane hi wala hai , sath bane rahiye, thank you very much for your valuable review and support bhai :thanx:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bhut hi shandar update bhai
TO aaryan ne jise shalaka samaj kar amart diya tha vah sayad aakriti thi
Sayad nahi, 100% Aakriti hi thi bhai,
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thanx:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Ye aakriti to bohot pahuchi hui nikli dost 😱 saali ne kis kis ko quid kar rakha hai batao, melite, suvarya, aur Roger 3-3 log uski qaid me the, mujhe lagta hai ki bohot jald hi iska bad time start hone wala hai 😑 udhar suyash and co. Bhi udne wali jhopdi me pahuch chuke hain, kya gajab dimaak lagaya hai aapne, aur ye khopdi ki maala me bhi avasya hi koi pech niklega 😁 bohot badhiya likh rahe ho aap 👌🏻👌🏻
Aakriti ka time bhi jald hi aane wala hai mitra, 😊 lekin pahle wo kahte hain na diya bhujne se pahle lau fadfadaati hai :D
thank
you very much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Bohot badhiya Update guruji, chhaa gaye, kya se kya socha hai aapne 👌🏻👌🏻 khopdi ki maala hi wah kunji nikli jis se wah jhopdi udd payi, aur ant me bhi us maala ki sahayta se hi suyash waha se nikal paaya, per jab jhopdi waha se chali gai, to wah fool, machli, and all items posidon ke moorti ke pair me kyu ghus gaye? Saayad wo tilisma me kaam aaye? Anyway superb writing ✍️ again, bohot badhiya Update bhai 👌🏻
Thank you very much for your wonderful review and support bhai :hug: Sayad wo samaanaaage kaam aane wala ho:D
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Oh! Lag raha hai bechare Aryan ne Aakriti ke sath prem kreeda kar liya tha shayad isliye usne apni maut ko chuna, let's see baki kya sahi hai!
Wonderful update brother.
Sahi disha me soch rahe ho dost 👍 thank you very much for your valuable review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#153.

“शलाका-शलाका, तुम अभी तक तैयार नहीं हुई क्या? जल्दी से बाहर मंदिर के पास वापस आ जाओ। पूजा का समय निकला जा रहा है।” आर्यन ने शलाका को आवाज देते हुए कहा।

तभी शलाका कमरे से निकलकर मंदिर के पास पहुंच गई। इस समय वह बहुत खूबसूरत लग रही थी, पर उसके चेहरे पर उदासी सी छाई थी।

“क्या हुआ शलाका, आज तो इतनी खुशी का दिन है, तुम फिर भी क्यों उदास हो?” आर्यन ने शलाका से पूछा।

“नहीं...नहीं ऐसी कोई बात नहीं...मैं बिल्कुल ठीक हूं और खुश भी हूं.... और आज भी खुश नहीं होऊंगी, तो कब होऊंगी, आज तो मुझे वो मिला, जिसकी मैं हमेशा से हकदार थी।” शलाका ने कहा- “लाओ कहां है अमृत...?” यह कहकर शलाका ने सामने रखी एक शीशी को उठा कर बिना आर्यन से पूछे पी लिया।

आर्यन हक्का-बक्का सा शलाका को देख रहा था।

अचानक आर्यन का चेहरा गुस्से से धधकने लगा- “कौन हो तुम? तुम शलाका नहीं हो सकती।”

अचानक से आर्यन का बदला रुप देख शलाका डर गई- “यह तुम एकदम से क्या कहने लगे आर्यन? मैं शलाका हूं, तुम्हारी शलाका। तुम मुझ पर ऐसे अविश्वास क्यों प्रकट कर रहे हो?”

“क्यों कि मेरे और शलाका के बीच एक बार इस बात पर काफी विवाद हुआ था कि अगर अमृत मिले, तो उसे पहले कौन पीयेगा? वो चाहती थी कि पहले मैं पीयूं और मैं चाहता था कि पहले वो पिये? और इस
विवाद में वह जीत गई थी, जिसकी वजह से यह तय हो चुका था कि पहले अमृत मैं पीयूंगा।...पर तुम्हारे इस व्यवहार ने यह साबित कर दिया कि तुम शलाका हो ही नहीं सकती, वो इतनी महत्वाकांक्षी नहीं थी अब तुम सीधी तरह से बता दो कि कौन हो तुम? नहीं तो तुम मेरी शक्तियों के बारे में तो जानती ही होगी।”

इतना कहते ही आर्यन की दोनों मुठ्ठियां सूर्य सी रोशनी बिखेरने लगीं।

आर्यन अपने शब्दों को चबा-चबा कर कह रहा था। गुस्से की अधिकता से उसके होंठ फूल-पिचक रहे थे।

आर्यन का यह रुप देख, शलाका बनी आकृति बहुत ज्यादा घबरा गई।
“मैं...मैं आकृति हूं....मैं शलाका बनकर यहां बस कुछ ढूंढने आयी थी....मैं...मैं तुम्हारे साथ वो सब भी नहीं करना चाहती थी....पर तुमने मुझे कुछ बोलने और समझाने का समय ही नहीं दिया....मैं क्या करती? और आर्यन तुम तो जानते हो कि मैं तुम्हें पागलों के समान प्यार करती थी...करती हूं...और अमरत्व पीने के बाद सदियों तक करती रहूंगी। चाहे तुम मुझे प्यार करो या ना करो....मुझे जो चाहिये था, मुझे मिल गया....अब मैं कभी तुम्हारी जिंदगी में नहीं आऊंगी।”

“अब तुम मेरी जिंदगी में तब आओगी ना, जब तुम यहां से जिंदा वापस जाओगी।” यह कहकर आर्यन गुर्राते हुए आकृति पर झपटा, परंतु तभी एक रोशनी का गोला चमका और आकृति अपनी जगह से गायब हो गई।

आर्यन अब अपने सिर पर हाथ रखकर जोर-जोर से रो रहा था। उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि एक रात में उसकी पूरी जिंदगी बदल गई।

“मैं अब शलाका को क्या जवाब दूंगा?....वो पूछेगी कि अमृत की 1 बूंद क्यों लाये, तो मैं उससे क्या कहूंगा और कहीं...........और कहीं शलाका को इस रात का पता चल गया तो वो मेरे बारे में क्या सोचेगी? कि प्रकृति को महसूस करने वाला आर्यन...अपनी पत्नि को ही महसूस नहीं कर पाया।....अब मैं क्या करुं? .....नहीं-नहीं....अब सब कुछ खत्म हो गया है...अब मैं और शलाका एक साथ नहीं रह सकते...और वैसे
भी अमृत की एक बूंद से कोई एक ही सदियों तक जिंदा रह पायेगा और ब्रह्मदेव के अनुसार एक व्यक्ति दोबारा कभी जिंदगी में अमृत प्राप्त नहीं कर सकता....मैं....मैं शलाका के आने के पहले ही यहां से भाग जाता हूं.....वो जान ही नहीं पायेगी कि मैं वापस भी आया था।...हां... हां यही ठीक रहेगा।”

तभी आर्यन के पीछे से आवाज उभरी- “अरे वाह आर्यन, तुम वापस आ गये। कितनी खुशी की बात है।”
यह आवाज असली शलाका की थी। शलाका पीछे से आकर आर्यन से लिपट गई।

उसे ऐसा करते देख आर्यन ने धीरे से दूसरी अमृत की शीशी चुपचाप छिपा कर अपनी जेब में डाल ली।

“आर्यन क्या तुमने अमृत प्राप्त कर लिया?” शलाका ने आर्यन के बालों को सहलाते हुए पूछा।

“नही, मैं उसे नहीं ला पाया।” आर्यन ने जवाब दिया।

“चलो अच्छा ही हुआ। अरे जो मजा साधारण इंसान की तरह से जिंदगी जीने में है, वह मजा अमरत्व में कहां।” शलाका ने खुश होते हुए कहा- “और वैसे भी अमरत्व ढूंढने में अगर तुम अपनी आधी जिंदगी लगा
देते और अमरत्व भी ना मिलता, तो हम साधारण इंसान की जिंदगी भी नहीं जी पाते। इसलिये तुमने लौटकर बहुत अच्छा किया।”

आर्यन, आकृति और शलाका के बीच का अंतर बहुत स्पष्ट महसूस कर रहा था।

आर्यन ने धीरे से शलाका को स्वयं से अलग कर दिया और बेड पर जाकर बैठ गया।

शलाका ने आर्यन के इस बदलाव को तुरंत महसूस कर लिया।

“क्या हुआ आर्यन, तुम मुझसे दूर क्यों भाग रहे हो?” शलाका ने ध्यान से आर्यन को देखते हुए कहा- “सब कुछ ठीक तो है ना आर्यन? पता नहीं क्यों अचानक मुझे बहुत घबराहट होने लगी है।”

“सबकुछ ठीक है शलाका। तुम परेशान मत हो, वो दरअसल अमृत प्राप्त करने के लिये 1 वर्ष तक, मुझे ब्रह्मदेव को खुश करने के लिये, ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना पड़ेगा। इसीलिये मैंने तुम्हें हटाया और कोई खास बात नहीं है।” आर्यन ने साफ झूठ बोलते हुए कहा।

“चलो, फिर तो कोई परेशानी की बात नहीं है...पर ये बताओ कि 1 वर्ष के बाद तो मुझे प्यार करोगे ना?” शलाका ने आर्यन की आँखों में झांकते हुए कहा।

पर आर्यन ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया और वहां से उठकर अंदर वाले कमरे की ओर बढ़ गया।

इसके बाद शलाका वापस वेदांत रहस्यम् किताब के पास लौट आयी, पर रोते-रोते उसकी आँखें अब सूज गईं थीं।

इस समय शलाका को ऐसा महसूस हो रहा था कि जैसे उसकी किसी ने जान ही निकाल ली हो।

शलाका ने जल्दी-जल्दी कुछ पन्ने पलटे और फिर एक पन्ने पर जा कर उसकी आँखें टिक गईं।

उस पन्ने पर आर्यन के हाथों में एक बालक था, यह देख शलाका ने तुरंत उस पन्ने पर मौजूद चित्र को छूकर, उस काल में चली गई।

“रुक जाओ आर्यन, मुझे मेरा बालक वापस कर दो, मैंने कहा था कि मैं तुम्हारे सामने अब कभी नहीं आऊंगी। मुझे बस मेरा बालक दे दो....मैंने तुम्हारे साथ कुछ भी गलत नहीं किया...सबकुछ अंजाने में हुआ है। मुझे बस एक बार प्रायश्चित का मौका दो...मैं फिर से सब कुछ सहीं कर दूंगी।” शलाका बनी आकृति आर्यन के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी।

पर आर्यन उस बालक को अपने हाथ में लिये आकृति को अपने पास नहीं आने दे रहा था।

बालक की आँखों में बहुत तेज विद्यमान था।

“अब तुम कुछ भी ठीक नहीं कर सकती आकृति।” आर्यन ने गुर्राते हुए कहा- “तुमने मेरी शलाका को मुझसे दूर किया है, अब मैं तुम्हारे बच्चे को तुमसे दूर कर दूंगा। मैं इस बालक को ऐसी जगह छिपाऊंगा, जहां तुम कभी भी नहीं पहुंच सकती। यही तुम्हारी करनी का उचित दंड होगा।”

“नहीं-नहीं आर्यन, मुझे क्षमा कर दो...मैंने जो कुछ भी किया, तुम्हारे प्रेम की खातिर किया, अब जब अंजाने में ही मुझे मेरे जीने का मकसद मिल गया है, तो तुम मुझे उससे ऐसे अलग मत करो। तुम जो कहोगे, मैं वह करने को तैयार हूं, बस मुझे मेरा बालक दे दो।”

आकृति की आँखों से आँसू झर-झर बहते जा रहे थे, पर आर्यन के सिर पर तो जैसे को ई भूत सवार हो , वह आकृति की बात सुन ही नहीं रहा था।

शलाका ने भी आर्यन का यह रुप कभी नहीं देखा था, जो आर्यन एक तितली के दर्द को भी महसूस कर लेता था, वह आज इतना निष्ठुर कैसे बन गया कि उसे एक माँ की गिड़गिड़ाहट भी नजर नहीं आ रही थी।

“आकृति तुम मुझसे प्रेम करती हो ना....इसी के लिये तुमने अमृत का भी पान किया था, पर जाओ आज से यही अमृत और यही जिंदगी तुम्हारे लिये अभि शाप बन जायेगी, तुम मरने की इच्छा तो करोगी, पर मर नहीं पाओगी और ये जान लो कि मैं इस बालक को मारुंगा नहीं, पर मैं इसे ऐसी जगह छिपाऊंगा कि तुम सदियों तक उस जगह को ढूंढ नहीं पाओगी।”

यह कहकर आर्यन आकृति को रोता छोड़कर उस बालक को ले बाहर निकल गया।

यह देख शलाका ने तुरंत वेदांत रहस्यम् का अगला पृष्ठ खोल दिया, उस पृष्ठ में आर्यन उसी नन्हें बालक को एक अष्टकोण में रखकर एक स्थान पर छिपा रहा था, यह देख शलाका तुरंत उस चित्र को छूकर उस समयकाल में पहुंच गई।

उस स्थान पर आर्यन एक लकड़ी के छोटे से मकान में था। आर्यन ने उस मकान की जमीन के नीचे एक बड़ा सा गड्ढा खोद रखा था।

वह नन्हा बालक जिसके मुख पर सूर्य के समान तेज था, वह तो बेचारा जानता तक नहीं था कि उसके साथ क्या हो रहा है? वह एक अष्टकोण में बंद, अपनी भोली सी मुस्कान बिखेर रहा था।

उसके अष्टकोण में अमरत्व की दूसरी शीशी भी रखी थी।

उसे देख पता नहीं क्यों अचानक शलाका का मातृत्व प्रेम उमड़ आया।

एक पल को शलाका भूल गई कि वह आकृति का बेटा है, उसे तो वह बालक बस आर्यन की नन्हीं छवि सा नजर आ रहा था।

तभी आर्यन ने उस नन्हें बालक को अष्टकोण सहित उस गड्ढे में डाल दिया।

“मुझे क्षमा कर देना नन्हें बालक, मैं तुम्हें मार नहीं रहा, लेकिन मैं तुम्हें इस अष्टकोण में बंद कर इस गडढे में सदियों के लिये बंद कर रहा हूं। मेरे गड्ढे को बंद करते ही तुम सदियों के लिये इसमें सो जाओगे। इसके
बाद जब भी कोई तुम्हें इस गड्ढे से निकालेगा, तो तुम आज की ही भांति, सूर्य के समान चमकते इस गड्ढे से बाहर आओगे।

“इन बीते वर्षों में इस अष्टकोण के कारण तुम पर आयु या समय का कोई प्रभाव नहीं होगा, मैं तुम्हारे साथ यह अमरत्व की शीशी भी रख रहा हूं, जब तुम बड़े हो जाना, तो इसे अपने पिता का आशीर्वाद मान पी लेना और सदा के लिये अमर हो जाना।” यह कहकर आर्यन ने उस गड्ढे को मिट्टी से भरना शुरु कर दिया।

शलाका का मन कर रहा था कि वह उस गड्ढे को खोल, उस बालक को निकाल ले, पर वह वेदांत रहस्यम् के समय में कोई बदलाव नहीं कर सकती थी, इसलिये मन मसोस कर रह गई।

जैसे ही आर्यन ने उस गड्ढे को पूरा मिट्टी से भरा, शलाका वेदांत रहस्यम् के पन्ने से निकलकर वापस अपने कमरे में आ गई।

पर शलाका का मन अचानक से बहुत बेचैन होने लगा।

“यह मैंने क्या किया, कम से कम मुझे उस स्थान के बारे में पता तो लगाना चाहिये, हो सकता है कि 5000 वर्ष के बाद भी वह बालक अभी भी वहीं हो?”

मन में यह विचार आते ही शलाका ने उस चित्र को दोबारा से छुआ और उस समयकाल में वापस चली गई, पर इस बार शलाका उस कमरे में नहीं रुकी, जहां आर्यन उस बालक को गड्ढे में दबा रहा था, वह तुरंत उस घर से बाहर आ गई।

शलाका अब तेजी से आसपास के क्षेत्र में लिखे किसी भी बोर्ड को पढ़ने की कोशिश कर रही थी।

तभी शलाका को मंदिर के घंटे की ध्वनि सुनाई दी। शलाका तुरंत भागकर उस दिशा में पहुंच गई।

वह मंदिर उस लकड़ी के घर से मात्र 100 कदम ही दूर था। वह मंदिर काफी भव्य दिख रहा था।

शलाका ने मंदिर के सामने जाकर देखा, वह एक विशाल शि….व मंदिर था, जिसके बाहर संस्कृत भाषा में एक बोर्ड लगा था- “महा…लेश्वर मंडपम्, उज्जैनी, अवन्ती राज्य।”

यह देख शलाका ने बाहर से देव को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और वापस उस लकड़ी के घर की ओर भागी।

शलाका ने अब घर से मंदिर के कोण और दूरी को ध्यान से देखा, तभी उसका शरीर वापस वेदांत रहस्यम् से निकलकर बाहर आ गया।

पर शलाका के चेहरे पर इस बार संतोष के चिंह साफ नजर आ रहे थे।

“यहां तक की कहानी तो समझ में आ गयी। पर अब ये देखना बाकी रह गया है कि आर्यन ने मृत्यु का वरण क्यों और कैसे किया?”

यह सोचकर शलाका ने वेदांत रहस्यम् का अगला पन्ना पलट दिया।

अगले पन्ने पर आर्यन वेदांत-रहस्यम् को हाथ में पकड़े अराका द्वीप पर स्थित शलाका मंदिर में खड़ा था।

यह देख शलाका ने उस चित्र को भी छू लिया।

अब वह उस समय में आ गयी। इस समय आर्यन के हाथ में वेदांत- रहस्यम् थी और वह शलाका मंदिर के एक प्रांगण में बैठा हुआ था।

“आज 3 महीने बीत गये, पर शलाका का कहीं पता नहीं चला, शायद वह भी मुझे छोड़कर कहीं चली गई है....अब मेरे जीने का कोई मतलब और मकसद बचा नहीं है, इसलिये मुझे अपने प्राण अब त्यागने ही होंगे, पर महानदेव के वरदान स्वरुप मुझे एक बार पूरी जिंदगी में भविष्य देखने की अनुमति है, तो हे देव, मुझे भविष्य को देखने की दिव्य दृष्टि प्रदान करें, मैं जानना चाहता हूं कि क्या किसी भी जन्म में मैं शलाका से मिल पाऊंगा या नहीं।”

आर्यन के इतना कहते ही आसमान से एक तीव्र रोशनी आकर आर्यन पर गिरी।

वह रोशनी मात्र 5 सेकेण्ड तक ही आर्यन पर रही। उस रोशनी के हटते ही आर्यन के चेहरे पर अब संतुष्टि के भाव दिख रहे थे।

अचानक वह ऊर्जा रुप में खड़ी शलाका के पास आकर खड़ा हो गया और बोला- “मुझे पता था कि तुम एक दिन यह किताब अवश्य ढूंढकर मेरे पास आओगी। अब तक तुमने सब कुछ जान लिया होगा अतः मैं उम्मीद करता हूं कि तुम अपने आर्यन को अब क्षमा कर दोगी। मैंने…देव के वरदान स्वरुप इन 5 सेकेण्ड में पूरी दुनिया के 5,000 वर्षों का भविष्य देख लिया है। मैं तुमसे फिर मिलूंगा शलाका ....आर्यन के नाम से ना सही, पर मेरी पहचान वही होगी।

“हम फिर से एक नयी दुनिया शुरु करेंगे और इस बार मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर पायेगा। अब मैं अपनी सूर्य शक्ति को इस मंदिर में स्थित तुम्हारी मूर्ति में स्थानांतरित करता हूं। अगर मैं किसी भी जन्म में इस स्थान पर वापस आया, तो तुम मुझे अपने इस जन्म के अहसास के साथ, मेरी सूर्य शक्ति को मुझे वापस कर देना। अब मैं अपनी इच्छा से मृत्यु का वरण करने जा रहा हूं।

“मेरी लिखी यह पुस्तक वेदांत रहस्यम् मेरे साथ है, यह जब तक मेरे सीने से चिपकी रहेगी, मैं नया जन्म नहीं लूंगा, जिस दिन कोई इस किताब को मेरे शरीर से अलग करेगा, उसी दिन इस पृथ्वी पर कहीं ना कहीं मैं फिर से जन्म लूंगा।.. अलविदा शलाका..तुम मरते दम तक मेरी यादों में थी और रहोगी..।”

यह कहकर आर्यन ने वहीं शलाका की मूर्ति के सामने अपने प्राण त्याग दिये।

आर्यन के शरीर से सूर्य शक्ति निकलकर, शलाका की मूर्ति में प्रवेश कर गई।

वेदांत रहस्यम् को अभी भी आर्यन ने किसी रहस्य की भांति अपने सीने से चिपका रखा था।

इसी के साथ शलाका एक बार फिर वेदांत रहस्यम् के पास वापस आ गई।

शलाका की नजर अब उस पुस्तक के आखिरी पेज पर गई, जिस पर आकृति की आँखें बनी थीं, जो शलाका के भेष में एक धोके की कहानी कह रहीं थीं।

शलाका ने अब वेदांत रहस्यम् को बंद कर दिया। आज उसके सामने लगभग सभी राज खुल गये थे।

अब वह घंटों बैठकर रोती रही।

इस समय शलाका को यही नहीं समझ में आ रहा था कि वह गलती किसकी माने, आकृति की जिसने आर्यन को धोखा दिया, आर्यन की ....जिसने एक माँ को उसके बालक से जुदा कर दिया या फिर स्वयं की ....जो उस समय आर्यन को बिना बताए, अपनी माँ का पार्थिव शरीर ले, अपने भाइयों के साथ एरियन आकाशगंगा चली गई थी, जिसकी वजह से आर्यन ने मृत्यु का वरण किया।

शलाका अपने ही ख्यालों के झंझावात में उलझी नजर आ रही थी....कभी उसे सब गलत दिख रहे थे, तो कभी सब सही।

काफी देर तक सोचने के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंची, कि किसी का नहीं बस समय का दोष था, पर इस समय ने एक ऐसे बालक को भी दंड दिया था, जिसे उस समय दुनिया की किसी चीज का मतलब ही नहीं पता था।

अतः अब शलाका ने सोच लिया था कि यदि वह बालक जिंदा है, तो वह उसे प्राप्त करके ही रहेगी, चाहे इसके लिये उसे ब्रह्मांड का कोना-कोना ही क्यों ना छानना पड़े।


जारी रहेगा_______✍️
 
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