पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की
बेंगलोर के निवासस्थान पर, मौसम और विशाल के बीच कहासुनी हो जाती है.. दरअसल मौसम इस बात को लेकर भड़क जाती है की विशाल अब भी अपनी पुरानी दोस्त फोरम से मेसेज का आदान-प्रदान करता है और इस बात का उसने कभी जिक्र तक नहीं किया.. इस बात को लेकर मौसम विशाल को काफी खरी-खोटी सुनाती है और विशाल गुस्से में ऑफिस के लिए निकल जाता है
ऑफिस में मौसम को पिंटू मिलता है जो काम के सिलसिले में बेंगलोर आया हुआ था.. बातों बातों में पिंटू उसे अपने शहर आने का न्योता देता है और मौसम मान जाती है..
दूसरी और, जिस्मानी प्यास से झुँझ रही कविता, अपनी माँ के नौकर का सहारा लेने का फैसला करती है.. उसकी माँ शहर से बाहर थी उस बात का फायदा उठाते हुए वह उनके घर पहुँच गई.. उस नौकर लड़के को दबोचकर वह भोगने की तैयारी में ही थी तब अचानक कविता की माँ आ जाती है और कविता चुपके से, पीछे के रास्ते, भाग जाती है..
अब आगे..
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एक सप्ताह का समय बीत गया.. पीयूष अमरीकन ऑर्डर की तैयारियों में गले तक डूबा हुआ था.. सप्लाइअर से मटीरीअल आ चुका था.. अब उसे जल्द से जल्द प्रोडक्शन लाइन पर पहुंचाने की दरकार थी.. कर्णाटक के एस.ई.ज़ेड में, जहां उनकी उत्पादन सुविधा थी, वहाँ तक सारा माल पहुंचा दिया गया था.. अब आगे का काम देखने की जिम्मेदारी विशाल की थी, जो बेंगलोर ऑफिस से, यह सारा काम देख रहा था.. पता नहीं क्यों पर पीयूष को बार बार ऐसा लगता रहता था की विशाल अपनी पूरी काबिलियत से काम नहीं कर रहा था.. उसका व्यवहार काफी बेफिक्र सा.. लापरवाह सा लगता था..!! रिश्तेदार होने के नाते, पीयूष उसे ज्यादा कुछ कह भी नहीं पाता था.. गनीमत थी की वहाँ मौसम की मौजूदगी के कारण, काफी कुछ संभल जाता था
पीयूष अपने लेपटॉप के स्क्रीन में ऐसा खोया हुआ था की उसे पता ही नहीं चला की कब वैशाली उसके सामने आकर बैठ गई.. वैशाली बड़े ध्यान से पीयूष की ओर देख रही थी... पीयूष का चेहरा तनावग्रस्त और चिंतित नजर आ रहा था.. पता नहीं क्यों, पीयूष को देखकर आज वैशाली को पुराने दिनों की बहोत याद आ रही थी.. काफी देर तक बैठे रहने के बाद, जब पीयूष का ध्यान उसकी ओर नहीं गया तब वैशाली ने सोचा की उसे ही कुछ पहल करनी होगी..
शरारती मुस्कान के साथ वैशाली ने कहा "मेरी जगह अभी कविता यहाँ होती तो देखकर कहती की.. काश वो यह लेपटॉप होती..!!"
अब पीयूष का ध्यान एकदम से वैशाली की ओर गया और वो झेंप गया..
पीयूष: "तुम कब आई वैशाली?"
हँसकर वैशाली ने कहा "इस दुनिया में आए हुए तो काफी साल हो गए.. हाँ, तुम्हारी केबिन में आए हुए सिर्फ बीस मिनट ही हुए है अभी"
यह सुनकर पीयूष हंस पड़ा और बोला "तेरी मज़ाक करने की पुरानी आदत गई नहीं अभी.. बचपन से तू वैसी ही है"
वैशाली ने फ़ीरकी लेते हुए कहा "मैं तो वैसे ही हूँ.. बस तुम बदल गए हो..पूरा दिन बस काम में डूबे रहते हो.. घर पर जाकर भी कविता के सामने लेपटॉप खोलकर ही बैठा रहता है क्या..!!"
कविता का जिक्र होते ही पीयूष के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई.. उसे एकदम से एहसास हुआ की अब वह फिर से उसे वक्त नहीं दे पा रहा है.. और उसकी बेरुखी की वजह से कविता भी उससे दूरी बनाए रखने लगी है.. बुरा लग रहा था पीयूष को पर उसे इस बात की भी शिकायत रहती थी की कविता उसके काम के बोझ के बहाने का स्वीकार नहीं करती थी.. कभी कभी पीयूष का मन रोमेन्टीक हो जाता तो कविता उसे नकार देती.. यह कहते हुए की उसका मूड नहीं है.. जब की पीयूष अच्छी तरह जानता था की बात मूड की नहीं थी, पर जब कविता का मन हो तब वो सहयोग नहीं दे पाता था, उस बात का बदला ले रही थी..
वैशाली ने पीयूष के चेहरे के सामने चुटकी बजाते हुए कहा "कहाँ खो गए एकदम से?"
अपने सिर को झटकाकर कविता के विचारों को दूर करते हुए पीयूष ने फिर से चेहरे पर मुस्कुराहट धारण कर ली..
पीयूष: "अरे कुछ नहीं यार.. ऐसे ही बस.. काम का थोड़ा ज्यादा ही टेंशन रहता है आजकल"
वैशाली: "टेंशन लो या न लो.. काम अपने हिसाब से चलता ही रहता है.. ज्यादा लोड लेने पर अगर दिल पर असर हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे"
पीयूष: "मेरे दिल को कहाँ कुछ होने वाला है..!! तुम जो खयाल रख रही हो उसका"
सुनकर वैशाली के चेहरे से मुस्कान गायब हो गई.. उसने नजरें झुका ली.. शायद उसके मज़ाक का गलत अर्थ निकाल लिया पीयूष ने
वह कुछ बोली नहीं और आँखें चुराकर बैठी रही..
अचानक पीयूष उठा.. और चलकर वैशाली की कुर्सी के पीछे खड़ा हो गया.. और दोनों हाथों को वैशाली की गर्दन के इर्दगिर्द लपेटकर उसके माथे को चूम लिया..
इस हमले से वैशाली सहम गई.. उसने तुरंत ही अपने आप को पीयूष की गिरफ्त से छुड़ाया.. और कुर्सी से खड़ी हो गई
वैशाली ने थोड़े तीखे स्वर में कहा "यह क्या कर रहे हो पीयूष?"
पीयूष: "भड़कती क्यों है यार..!! हम दोनों के बीच ऐसी दूरी कब से होने लगी? याद है वो पुराने दिन..!!"
वैशाली ने थोड़े गुस्से से कहा "तब की बात ओर थी.. अब मेरी शादी हो चुकी है..!!"
पिंटू: "और जब हम वो सब कर रहे थे तब मेरी भी तो शादी हो रखी थी कविता से..!! उस बात से तो तुम्हें कभी कोई दिक्कत नहीं हुई..!!"
वैशाली चुप हो गई.. उसके पास कोई जवाब नहीं था पीयूष के इस तर्क का..!! क्योंकि वह जानती थी की पीयूष सही कह रहा था..
कुछ पलों तक वैशाली की ओर से कोई प्रतिक्रिया न आने पर, पीयूष ने उसे उसकी मर्जी समझते हुए, फिर से उसकी कमर में हाथ डालकर उसे करीब खींचना चाहा.. वैशाली का जिस्म पीयूष की छाती से जा टकराया.. यू-डी-कलोन की मादक खुशबू ने एक पल के लिए वैशाली के ईमान को डगमगा दिया.. उसकी आँखें बंद हो गई..!! पीयूष उसके कानों के नीचे गर्दन पर चूमने लगा..
पीयूष के होंठों का गर्दन पर स्पर्श होते ही सिहर उठी वैशाली..!! कई हफ्तों से.. बल्कि कुछ महीनों से.. उसके अंदर धधक रहा हवस का शैतान जैसे अंगड़ाई लेकर जाग उठा था.. पिंटू की कमजोरी को लेकर वह मन ही मन तड़प रही थी.. बिना सेक्स के उसका जीवन वैसे ही था जैसे जल बिन मछली का..!! फिर भी वह अब तक अपने आप पर संयम रखे हुए थी क्योंकि वह अब किसी भी सूरत में पिंटू की नज़रों से गिरना नहीं चाहती थी..!! शादी के कुछ दिन पहले राजेश सर की केबिन में रंगेहाथों पकड़े जाने के बाद जो खेल हुआ था, उसके बाद वह इतना तो समझ ही चुकी थी..!!
लेकिन जैसे शेर बिना शिकार और मधुमक्खी बिना पुष्परस, वैसे ही वैशाली भी बिना शारीरिक सुख के, लंबे समय तक रहने की आदि नहीं थी..शादी के बाद वैसे तो पिंटू के साथ सब ठीक ही चल रहा था लेकिन जब से वह दोनों इस शहर में शिफ्ट हुए थे, पिंटू ने पीयूष की कंपनी जॉइन की थी और काम का बोझ बढ़ता चला गया था.. उसके बाद ही समस्या आ खड़ी हुई थी.. हो सकता है की काम के तनाव के चलते ऐसा हो रहा हो..!! पर वैशाली को दुख इस बात से था की पिंटू इसे एक समस्या मानने को तैयार ही नहीं था..!! ऊपर से जिस तरह वह उस रात वह बेरुखी और गुस्से से पेश आया था इससे वैशाली के दिल को बहोत चोट पहुंची थी..!!
पीयूष का हाथ, वैशाली के बड़े बड़े उरोजों को सहला रहा था.. उसकी गर्म सांसें वैशाली को अपने चेहरे पर महसूस हो रही थी..!! ऐसी कश्मकश में थी वैशाली.. दिमाग उसे वहाँ से चले जाने के लिए कह रहा था लेकिन उसका शरीर नियंत्रण में नहीं था.. उसका जिस्म भोग मांग रहा था जो वह पिछले की हफ्तों से उसे दे नहीं पाई थी..!!
तभी केबिन के दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. और दोनों एकदम सहम गए..!! पीयूष एकदम से वैशाली से दूर हो गया और अपने कपड़े ठीक करने लगा.. वैशाली ने टेबल से अपनी फ़ाइल उठाई तभी चपरासी ने दरवाजा खोला और अंदर आकर कहा
"साहब, आप से कोई मिलने आया है"
इससे पहले की पीयूष कोई प्रतिक्रिया देता, वैशाली उल्टे पाँव वहाँ से भाग गई..!! पीयूष ने अपनी टाई का नॉट ठीक किया और अपनी कुर्सी पर धम्म से बैठ गया...!!
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शाम ढल रही थी.. हाइवे पर गाड़ी सरपट भाग रही थी.. कार के काले शीशों के पीछे क्या चल रहा था वह किसी को नजर नहीं आ रहा था..
अंदर एसी के ठंडी हवा ने माहोल को जमा रखा था.. म्यूजिक सिस्टम पर रोमेन्टीक संगीत मध्यम आवाज पर गूंज रहा था.. उस गाने के बोल पर अपने होंठ हिलाते हुए मदन स्टियरिंग पर पकड़ बनाए गाड़ी को तेजी से भगा रहा था.. और पीछे वाली सीट पर..!!
राजेश अपनी शॉर्ट्स को घुटनों तक उतारे हुए बैठा था.. सलवार कमीज पहने साथ बैठी शीला झुककर राजेश के लंड को मुंह में लेकर.. ऊपर नीचे होते हुए चूस रही थी.. और राजेश अपनी आँखें बंद कर इस अनोखे माहोल का आनंद ले रहा था..!!
जब से रेणुका प्रेग्नन्ट हुई थी तब से इन चारों के बीच चल रहा अदला बदली का खेल बंद हो गया था..!! पिंटू और वैशाली के शिफ्ट हो जाने के बाद, राजेश अब अक्सर मदन-शीला के घर रातें बिताता था.. उनकी रातें तो रंगीन हो जाती थी पर मदन बिना साथी के.. उन दोनों की चुदाई देखते हुए तड़पता रहता था.. हालांकि राजेश ने उसे फाल्गुनी के बारे में बताया था और कहा भी था की वह जल्द ही मदन का उसके साथ कोई जुगाड़ सेट कर देगा.. पर उस बात को भी काफी अरसा बीत गया और मदन अपनी धीरज गंवा रहा था.. शीला तो पहले ही दोनों से वचन ले चुकी थी, की जब भी वह दोनों रंगेलियाँ मनाने जाएँ तब वह भी साथ चलेगी..!! इतनी जबरदस्त संभोग-लीला से शीला अछूती कैसे रह जाती..!!
आखिर वह दिन आ गया.. फाल्गुनी ने फार्महाउस पर सब इंतेजाम कर दिया था.. राजेश की गाड़ी में वह तीनों वहीं जा रहे थे.. इस ढाई घंटे के सफर के दौरान भी शीला के नशीले जिस्म का मज़ा उठाने से राजेश चुका नहीं.. गाड़ी उनके शहर से बाहर निकलते ही, वह शीला के साथ पिछली सीट पर चला गया और दोनों के गुलछर्रे शुरू हो गए..!!
राजेश के लंड का सुपाड़ा, शीला की लार से सनकर चमक रहा था..चूस चूसकर शीला का जबड़ा दर्द कर रहा था और वह सीट पर अपनी पीठ टीकाकर आराम कर रही थी.. कमीज में उभरते हुए उसके गदराए बबलों को राजेश ने कपड़ों के ऊपर से ही मसलकर रख दिया.. रियर व्यू मिरर से दोनों के बीच हो रही इस मस्ती को देखकर मदन मुस्कुरा रहा था.. उसे यह देखकर कोई फरक नहीं पड़ रहा था.. वह तो केवल फाल्गुनी के नरम जवान गोश्त के सपने देखते हुए तेजी से गाड़ी चला रहा था.. उसका दिल कर रहा था की वह जल्द से जल्द वहाँ पहुँच जाएँ और फाल्गुनी की जवानी लुत्फ उठायें..
शीला के विशाल मम्मों को कपड़ों के ऊपर से ही अपने दांतों से काटते हुए, कमीज के अंदर हाथ डालने लगा राजेश.. उसकी इस बेकरारी को देखकर शीला मुस्कुराने लगी.. उसने हल्के से राजेश को अपनी छातियों से दूर किया.. और दोनों हाथों से अपनी कमीज ऊपर उठाते हुए उतारने लगी..
शीशे में से शीला को कमीज उतारते हुए देख मदन ने कहा "यार, बिना कपड़े उतारे तुम दोनों का नहीं हो सकता क्या..!! ऐसे खुले रोड पर ही तुम दोनों शुरू हो गए..!!"
आँख मारते हुए शीला ने कहा "कभी पन्नी के अंदर रखे रसगुल्ले को बाहर से चूसकर देखा है क्या?? ऐसे थोड़े ही मज़ा आता है..!!"
मदन ने परेशान होते हुए कहा "अरे वो सब समझता हूँ मैं.. पर कहीं किसी ने देख लिया तो..!!"
तब तक शीला अपनी कमीज उतार चुकी थी.. उसकी बड़ी से ब्रा भी उन मदमस्त बबलों को पूरी तरह सहारा दे नहीं पा रहे थे.. ब्रा को फाड़ने की धमकी देते हुए स्तनों की चर्बी इर्दगिर्द नजर आ रही थी.. शीला अपना हाथ पीछे ले जाकर ब्रा का हुक खोलने लगी तब राजेश ने कहा "कुछ नहीं होगा यार मदन.. तू बेकार टेंशन ले रहा है.. इतना अंधेरा हो चला है.. गाड़ी १०० की स्पीड पर भाग रही है.. और तो और शीशे पर काली परत भी चढ़ी हुई है.. किसी को घंटा कुछ नजर नहीं आएगा..!!"
मदन: "तुम दोनों की जो मर्जी में आए वो करो.. !!" कहते हुए उसने वापिस ड्राइविंग पर अपना ध्यान केंद्रित किया
ब्रा खुलते ही शीला के दोनों स्तन ऐसे मुक्त होकर झूलने लगे जैसे पिंजरे से दो खरगोश छूटकर बाहर गश्त लगा रहे हो..!! गोरे गोरे चरबीदार स्तन.. करीब तीन से चार किलो एक स्तन का वज़न होगा..!! दोनों स्तनों को खुला देख राजेश उनपर टूट ही पड़ा.. दबाते और चूसते हुए उसने अपना सिर शीला की गोदी में रख दिया.. और छोटे शिशु की तरह, शीला की निप्पलों को मुंह में लेकर चूसने लगा..!!
कार की बंद केबिन में शीला की सिसकियाँ गूंज रही थी..!! एक निप्पल राजेश के मुंह में देकर, दूसरी निप्पल को अपनी उंगलियों से दबाते हुए शीला आह्ह आह्ह कर रही थी.. उसकी गोदी में लेटे राजेश को अपनी गर्दन पर शीला के भोसड़े की गर्मी महसूस हो रही थी.. वह जानता था की इन हरकतों से शीला गरम हो जाएगी और उसकी आखिरी संतुष्टि सिर्फ संभोग से ही हो पाएगी.. जो की गाड़ी की संकरी जगह में करना मुश्किल था.. पर उसका अंदाजा यह था की तब तक तो वह सब फार्महाउस पर पहुँच जाएंगे.. फिर तो सब अपनी मर्जी के मालिक थे..!! जितनी चाहे.. जिससे चाहे.. चुदाई कर सकते थे..!!
अपने दोनों स्तनों को बारी बारी राजेश के मुंह में ठूँसते हुए शीला ने उसका लंड पकड़ लिया.. और हौले हौले ऊपर नीचे करते हुए हिलाने लगी..
मुंह से निप्पल निकालकर राजेश ने कहा "यार शीला.. जरा धीरे धीरे.. वरना मेरा यहीं छूट जाएगा.. अभी दो दिन पहले ही नए सीटकवर लगवाए है.. खराब हो जाएंगे"
शीला ने हँसकर कहा "तो फिर रोक के रख अपनी पिचकारी को"
राजेश: "तेरे हाथ में आने के बाद अच्छे अच्छों की पिचकारी छूट जाती है.. ऐसे ही हिलाते रहेगी तो मेरे ढक्कन को भी खुलने में देर नहीं लगेगी.. इसलिए कह रहा हूँ.. और मुझे अभी खाली कर देगी.. तो वहाँ फार्महाउस पर जाकर हम दोनों क्या गुल्ली-डंडा खेलेंगे?"
शीला हंस पड़ी और बोली "हाँ क्यों नहीं.. तेरी गुल्ली अगर डंडा बनी रही तो उससे खेल लूँगी..!! नहीं तो मुझे नया डंडा ढूँढने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा"
मदन ने गुस्से से कहा "अब तुम दोनों चुपचाप अपना काम खत्म करोगे?? मुझे डिस्टर्ब हो रहा है.. और वैसे भी अगली दस मिनट में हम शहर में प्रवेश करेंगे.. उससे पहले अपनी सारी लीला समेट लो दोनों..!!"
मदन की बात सुनते ही राजेश ने दोनों हथेलियों से शीला के बड़े बड़े वक्षों को दबा दिया.. और उन दोनों के बीच अपना चेहरा छुपा दिया.. शीला ने उसके लंड पर हाथों से आखिरी ठुमका मारा और राजेश उसकी गोदी से खड़ा हो गया..!!

राजेश ने तुरंत अपनी शॉर्ट्स ऊपर चढ़ा ली पर शीला अब भी टॉपलेस अवस्था में बैठी रही..!!
राजेश ने आँख मारते हुए कहा "ऐसे ही बैठे रहने का इरादा है क्या??"
शीला: "अब मैं सोच रही थी की वहाँ पहुंचकर भी कपड़े तो उतारने ही है.. अब फिर से इन दोनों को दबाकर ब्रा पहनूँ.. कमीज चढ़ाऊँ.. उससे अच्छा ऐसे ही चली आती हूँ"
मदन चिल्ला उठा "बकवास बंद कर और कपड़े पहन ले.. शहर का ट्राफिक शुरू हो गया है"
शीला ने मुस्कुराकर कहा "मज़ाक कर रही थी यार.. भड़कता क्यों है?? और वैसे भी मेरा यह खजाना इतनी आसानी से पब्लिक को दिखा थोड़ी ना दूँगी..!!"
जब तक शीला ने ब्रा और कमीज पहनी तब तक गूगल मेप्स के दिखाए हुए रास्ते मदन ने गाड़ी एक बड़े से फार्महाउस के गेट पर रोक दी...
अंगड़ाई लेकर अपनी कमर को सीधी करते हुए मदन गाड़ी से बाहर निकला और उसके पीछे पीछे राजेश और शीला भी बाहर आए.. उस शानदार फार्महाउस को देखकर मदन और शीला की आँखें चकाचौंध हो गई
मदन ने राजेश से कहा "कुछ भी कहो राजेश.. इस सुबोधकांत ने बहोत माल बनाया होगा"
राजेश ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा "उसका असली माल जो अंदर बैठा है, उसके मुकाबले तो ये कुछ भी नहीं है..!!"
शीला ने राजेश के कूल्हें पर हल्की सी चपत लगाते हुए कहा "अब तुम दोनों ऐसे ही फार्महाउस को देखकर अपनी गांड जलाते रहोगे या अंदर जाने का प्रबंध भी करोगे?? दरवाजा तो बंद है, कैसे जाएंगे? फाल्गुनी अंदर हो तो जल्दी फोन कर उसे बुला.. मुझे बाथरूम जाना है"
राजेश ने तुरंत फोन निकाला और फाल्गुनी का नंबर डायल किया.. कुछ ही क्षणों में, टाइट टीशर्ट और छोटी सी शॉर्ट्स पहने हुए अपनी गांड मटकाते जब फाल्गुनी दरवाजा खोलने आई तब मदन की आँखें उसके चूतड़ों पर चिपक ही गई..!! ऐसा नहीं था की उसने फाल्गुनी को पहले देखा नहीं था.. पर इस नजर से पहली बार देख रहा था.. उसे इस बात से ताज्जुब हो रहा था की इतनी नशीली जवानी पर उसकी नजर आज से पहले पड़ी कैसे नहीं??
"आ गए आप लोग..!! कैसा रहा सफर?" लोहे के बड़े दरवाजे का ताला खोलते हुए फाल्गुनी ने प्यारी सी मुस्कान देते हुए कहा
"वो सब छोड़, बाथरूम कहाँ है, ये बता" शीला से उसके मूत्रपिंड का दबाव बर्दाश्त नहीं हो रहा था..
"ड्रॉइंग रूम की दाईं तरफ" कविता का वाक्य खतम भी नहीं हुआ और शीला अपनी दोनों जांघों के बीच हाथ दबाते हुए अंदर की तरफ भागी
शीला का यह हाल देखकर तीनों हंस पड़े..!!
कंपाउंड के बड़े से दरवाजे को बंद करते हुए तीनों अंदर आए..!! विस्मित नज़रों से मदन चारों ओर देख रहा था.. हर कोने से समृद्धि की झलक नजर आ रही थी.. बाहर बना गार्डन.. बीच में संगेमर्मर का फव्वारा जिसके बीचोंबीच एक सुंदर नग्न सुवक्र स्त्री की मूर्ति थी.. जिसकी निप्पलों से पानी बहते हुए नीचे गिर रहा था..!! घटादार आम के पेड़ों से घिरा हुआ एक एकर का विस्तार.. और थोड़े ही दूर बना एक छोटा वैभवशाली बंगला..
राजेश फाल्गुनी के साथ उस घर के तरफ जाने लगा और मदन भी यंत्रवत उनके पीछे पीछे चल रहा था.. उसने देखा की राजेश अपनी हथेली से फाल्गुनी के चूतड़ों को सहला रहा था.. गोरी गोरी.. वेक्स की हुई चमकती टांगें.. मटकते नितंब.. पतली कमर.. सुराहीदार गर्दन और ब्राउन हाइलाइट्स वाले बाल जो फाल्गुनी के कंधों तक पहुँच रहे थे.. मदन बस उसे पीछे से देखता ही रह गया..!!