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मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था।
और जब देखा तो आँखों पर यक़ीं आता न था।।
बाम-ओ-दर से सख़्त बारिश में भी उट्ठेगा धुआँ,
यूँ भी होता है मोहब्बत में कभी सोचा न था।।
आँधियों को रौज़न-ए-ज़िंदाँ से हम देखा किए,
दूर तक फैला हुआ सहरा था नक़्श-ए-पा न था।।
लोग लाए हैं कहाँ से शब को मरमर के चराग़,
उन चटानों में तो दिन को रास्ता पैदा न था।।
शहर की हंगामा-आराई में खो कर रह गया,
मैं कि अपने घर में भी मुझ को सुकूँ मिलता न था।।
बर्फ़ अपने-आप घुल जाती है सूरज हो न हो,
शाम से पहले ये जाना था मगर समझा न था।।
और जब देखा तो आँखों पर यक़ीं आता न था।।
बाम-ओ-दर से सख़्त बारिश में भी उट्ठेगा धुआँ,
यूँ भी होता है मोहब्बत में कभी सोचा न था।।
आँधियों को रौज़न-ए-ज़िंदाँ से हम देखा किए,
दूर तक फैला हुआ सहरा था नक़्श-ए-पा न था।।
लोग लाए हैं कहाँ से शब को मरमर के चराग़,
उन चटानों में तो दिन को रास्ता पैदा न था।।
शहर की हंगामा-आराई में खो कर रह गया,
मैं कि अपने घर में भी मुझ को सुकूँ मिलता न था।।
बर्फ़ अपने-आप घुल जाती है सूरज हो न हो,
शाम से पहले ये जाना था मगर समझा न था।।