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मद्धम हुई तो और निखरती चली गई।
ज़िंदा है एक याद जो मरती चली गई।।
थी ज़िंदगी की मिस्ल शब-ए-हिज्र दोस्तो,
और ज़िंदगी की मिस्ल गुज़रती चली गई।।
हम से यहाँ तो कुछ भी समेटा न जा सका,
हम से हर एक चीज़ बिखरती चली गई।।
आए थे चंद ज़ख़्म गुज़र-गाह-ए-वक़्त पर,
गुज़री हवा-ए-वक़्त तो भरती चली गई।।
इक अश्क क़हक़हों से गुज़रता चला गया,
इक चीख़ ख़ामुशी में उतरती चली गई।।
हर रंग एक रंग से हम-रंग हो गया,
तस्वीर ज़िंदगी की उभरती चली गई।।
_______अमीर इमाम
ज़िंदा है एक याद जो मरती चली गई।।
थी ज़िंदगी की मिस्ल शब-ए-हिज्र दोस्तो,
और ज़िंदगी की मिस्ल गुज़रती चली गई।।
हम से यहाँ तो कुछ भी समेटा न जा सका,
हम से हर एक चीज़ बिखरती चली गई।।
आए थे चंद ज़ख़्म गुज़र-गाह-ए-वक़्त पर,
गुज़री हवा-ए-वक़्त तो भरती चली गई।।
इक अश्क क़हक़हों से गुज़रता चला गया,
इक चीख़ ख़ामुशी में उतरती चली गई।।
हर रंग एक रंग से हम-रंग हो गया,
तस्वीर ज़िंदगी की उभरती चली गई।।
_______अमीर इमाम