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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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अपडेट 15


अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।

संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"

मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...

संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."

कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...

ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"

संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....

संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"

संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...

ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"

संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"

ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...

संध्या --"क्या मतलब??"

"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"

रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"

ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...

रमन --"अभय...!!!"

ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"

ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...

रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."

"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"

संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"

रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...

संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"

रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"

पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...

__________________&______&_

शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"

अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"

"मेरा नाम रमिया है।"

अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"

रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"

अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"

रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...

अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"

रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"

अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"

रमिया --"जी बाबू जी।"

अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"

रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"

अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"

अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"

रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"

अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"

"क्या....."

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।

अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"

रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"

रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"

रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..
Nice and beautiful update...
 

Alex Xender

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अभय के जाते ही, संध्या भी अपनी कार में बैठती है और हवेली के लिए निकल पड़ती है।

संध्या कार को ड्राइव तो कर रही थी, मगर उसका पूरा ध्यान अभय पर था। उसके दिल में को दर्द था वो शायद वही समझ सकती थी। वो अभय को अपना बेटा मनाने लगी थी। उसका दिल अभय के पास बैठ कर बाते करने को करता। वो अपनी की हुई गलती की माफ़ी मांगना चाहती थी, मगर आज एक बार फिर वो अभय की नजरों में गीर गाय थी। उस चीज का उसके उपर इल्जाम लगा था, जो उसने की ही नहीं थी। और यही बात उसके दिमाग में बार बार आती रहती।

संध्या की कार जल्द ही हवेली में दाखिल हुई, और वो कार से उतरी ही थी की, उसे सामने मुनीम खड़ा दिखा।

संध्या के कर से उतरते ही, मुनीम उसके पैरो में गिड़गिड़ाते हुए गिर पड़ा...

मुनीम --"मुझे माफ कर दो ठाकुराइन, आखिर उसमे मेरी क्या गलती थी? जो आपने बोला वो ही तो मैने किया था? आपने कहा था की अगर अभय बाबा स्कूल नही जाते है तो, 4 से 5 घंटे धूप में पेड़ से बांध कर रखना। मैने तो आपकी आज्ञा का पालन हो किया था ना मालकिन, नही तो मेरी इतनी औकात कहा की मैं अभय बाबा के साथ ऐसा कर सकता।"

मुनीम की बात सुनकर, संध्या का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। उसने मुनीम को चिल्लाते हुए बोली...

संध्या --"मुनीम, तुम जाओ यह से। और मुझे फिर दुबारा इस हवेली में मत दिखाई देना। मैं सच बता रही हूं, मेरा दिमाग पागल हो चुका है, और इस पागलपन में मेंबर बैठूंगी ये मुझे भी नही पता है। जाओ यह से..."

कहते हुए संध्या हवेली के अंदर चली जाति है। संध्या हाल में सोफे पर बैठी बड़ी गहरी सोच में थी। तभी वहा ललिता आ जाति है, और संध्या को देख कर उसके पास आ कर बोली...

ललिता --"क्या हुआ दीदी? आप बहुत परेशान लग रही है?"

संध्या ने नजर उठा कर देखा तो सामने ललिता खड़ी थी। ललिता को देख कर संध्या बोली.....

संध्या --"ठीक कह रही है तू। और मेरी इस परेशानी का कारण तेरा ही मरद है।"

संध्या की बात सुनकर ललिता ने जवाब में कहा...

ललिता --"मुझे तो ऐसा नहीं लगता दीदी।"

संध्या --"क्या मतलब? गांव वालो की ज़मीन को जबरन हथिया कर मुझसे उसने बोला की गांव वालो ने मर्जी से अपनी जमीनें दी है। और आज यही बात जब सब गांव वालो के सामने उठी , तो मेरा नाम आया की मैने पैसे के बदले गांव वालो की ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। तुझे पता भी है, की मुझे उस समय कैसा महसूस हो रहा था सब गांव वालो के सामने, खुद को जलील महेसुस कर रही थी।"

संध्या की बात सुनकर, ललिता भी थापक से बोल पड़ी...

ललिता --"गांव वालो के सामने, या उस लड़के के सामने?"

ये सुनकर संध्या थोड़ा चकमका गई...

संध्या --"क्या मतलब??"

"मतलब ये की भाभी, उस लड़के के लिए तुम कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थी।"

इस अनजानी आवाज़ को सुनकर ललिता और संध्या दोनो की नजरे घूमी, तो पाई सामने से रमन आ रहा था।

संध्या --"ओह...तो आ गए तुम? बहुत अच्छा काम किया है तुमने मुझे गांव वालो के सामने जलील करके।"

रमन --"मैने किसी को भी जलील नही किया है भाभी, मैं तो बस पिता जी का सपना पूरा कर रहा था। अगर तुम्हारी नज़र में इससे जलील करना कहते हैं, तो उसके लिए मैं माफी मागता हूं। पर आज जो तुमने मेरे साथ किया , उसके लिए मैं क्या बोलूं? एक अजनबी लड़के लिए मेरे साथ इस तरह का व्यवहार? कमाल है भाभी.... आखिर क्यों??"

ललिता --"अरे वो कोई अजनबी लड़का थोड़ी है? वो अपना अभय है?"

ललिता की बात सुन कर , रमन के होश ही उड़ गए चेहरे पर से उड़ चुके रंग उसकी अश्चर्यता का प्रमाण था। और चौंकते हुए बोला...

रमन --"अभय...!!!"

ललिता --"हा अभय, ऐसा दीदी को लगता है। अभि उस लड़के को आए 5 घंटे भी नही हुए है, दो चार बाते क्या बोल दी उसने दीदी को उकसाने के लिए। दीदी तो उसे अपना बेटा ही मान बैठी।"

ये सुनकर रमन अभि भी आश्चर्यता से बोला...

रमन --"ओह, तो ये बात है। तुम पगला गई हो क्या भाभी? अपना अभय अब इस दुनिया में नही है...."

"वो है, कही नही गया है वो, आज आया है वो मेरे पास। और मैं अब कोई भी गलती नही करना चाहती जिसकी वजह से वो मुझे फिर से छोड़ कर जाए। मैं तो उसके नजदीक जाने की कोशिश में लगी थी। लेकिन तुम्हारी घटिया हरकत का का सबक मुझे मिला। एक बार फिर से मैं उसकी नजरों में गीर गई।"

संध्या चिल्लाते हुए बोली, रमन भी एकदम चकित हुए संध्या को ही देख रहा था। फिर संध्या की बात सुनकर रमन ने कहा...

रमन --"ठीक है भाभी, अगर तुम्हे लगता है की मेरी गलती है, तो मै आज ही पूरे गांव वालो के सामने इसकी माफी मांगूंगा। सब गांव वालो को ये बताऊंगा की, ये जमीन की बात तुम्हे नही पता थी। फिर शायद तुम्हारे दिल को तसल्ली मिल जाए। शायद वो अजनबी लड़के दिल में तुम्हारी इज्जत बन जाए।"

रमन की बात सुनकर, संध्या अपनी सुर्ख हो चली आवाज़ में बोली...

संध्या --"नही, अब कोई जरूरत नहीं है। जो हो गया सो हो गया।"

रमन --"रमन जरूरत है भाभी, क्यूं जरूरत नहीं है? एक अंजान लड़का आकार तुम्हारे सामने न जाने क्या दो शब्द बोल देता है, और तुम्हे समय नहीं लगा ये यकीन करने में की वो तुम्हारा बेटा है। और वही मैने, मैं ही क्या ? बल्कि पूरा गांव वाले अभय की लाश को अपनी आंखो से देखा उसका यकीन नही है तुम्हे, जब तुमने फैसला कर ही लिया है तो जाओ बुलाओ उसको हवेली में और बना दो उसे इस हवेली का वारिस।"

पूरा दांव उल्टा पड़ गया था। वो रमन को उल्टा आज जलील करना चाहती थी। पर वो तो खुद ही रमन के सवालों में उलझ कर रह गई, उसका सर भरी होने लगा था। उसके पास बोलने को कुछ नही था। पर उसका दिल इस बात से इंकार करने की इजाजत नहीं दे रहा था की अभय उसका बेटा नहीं है, जो अभी रमन बोल रहा था। संध्या ने उस समय एक शब्द भी नहीं बोला, और चुपचाप शांति से अपने कमरे में चली गई...

__________________&______&_

शाम के 6 बज रहे थे, अभि सो कर उठा था। नींद पूरी हुई तो दिमाग भी शांत था। उसे ऐसा लग रहा था मानो जैसे सर से बहुत बड़ा बोझ उतार गया हो। वो उठ कर अपने बेड पर बैठा था, और कुछ सोच रहा था की तभी...

"लीजिए, ये चाय पी लीजिए..."

अभय ने अपनी नजर उठा कर उस औरत की तरफ देखा, सावले रंग की करीब 35 साल की वो औरत अभय को देख कर मुस्कुरा रही थी। अभय ने हाथ बढ़ा कर चाय लेते हुए बोला...

अभि --"तो तुम इस हॉस्टल में खाने पीने की देखभाल करती हो?"

कहते हुए अभय ने चाय की चुस्कियां लेने लगा...

"जी हां, वैसे भी इस हॉस्टल में तो कोई रहता नही है। तुम अकेले ही हो। तो मुझे ज्यादा काम नहीं पड़ेगा।"

अभि --"hmmm... वैसे तुम्हारा नाम क्या है"

"मेरा नाम रमिया है।"

अभि उस औरत को पहचानने की कोशिश कर रहा था। लेकिन पहचान नही पाया इसलिए उसने रमिया से पूछा...

अभि --"तो तुम इसी गांव की हो?"

रमिया --"नही, मैं इस गांव की तो नही। पर हां अब इसी गांव में रहती हूं।"

अभि --"कुछ समझा नही मैं? इस गांव की नही हो पर इसी गांव में रहती हो...क्या मतलब इसका?"

अभय की बात सुनकर रमिया जवाब में बोली...

रमिया --"इस गांव की मेरी दीदी है। मेरा ब्याह हुआ था, पर ब्याह के एक दिन बाद ही मेरे पति की एक सड़क दुर्घटना में मौत हो गई। ससुराल वालो ने इसका जिम्मेदार मुझे ठहराया, और मुझे कुल्टा, कुलक्षणी और न जाने क्या क्या बोल कर वहा से निकाल दिया। घर पे सिर्फ एक बूढ़ी मां थी उसके साथ कुछ 4 साल रही फिर मेरी मां का भी देहांत हो गया, तो दीदी ने मुझे अपने पास बुला लिया। अभि दो साल से यहां इस गांव में रह रही हूं। और इस हवेली में काम करती हूं।"

रमिया की बाते अभि गौर से सुनते हुए बोला...

अभि --"मतलब जिंदगी ने तुम्हारे साथ भी खेला है?"

ये सुनकर रमिया बोली...

रमिया --"अब क्या करे बाबू जी, नसीब पर किसका जोर है? जो नसीब में लिखा है वो तो होकर ही रहता है। और शायद मेरी नसीब में यही लिखा था।"

रमिया की बात सुनकर, अभि कुछ सोच में पड़ गया ...

रमिया --"क्या सोचने लगे बाबू जी, कहीं तुमको हमारे ऊपर तरस तो नही आ रहा है?"

अभि --"नही बस सोच रहा था कुछ, खैर छोड़ो वो सब नसीब की बातें। तो आज से तुम ही मेरे लिए खाना पीना बना कर लगी?"

रमिया --"जी बाबू जी।"

अभि --"और ये सब करने के लिए जरूर तुम्हे इस गांव की ठाकुराइन ने कहा होगा?"

रमिया --"हां...लेकिन ये आपको कैसे पता?"

ये सुनकर अभि थोड़ा मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"वो क्या है ना, मैं भी तुम्हारी ही तरह नसीब का मारा हूं, तो मुझे लगा शायद ठाकुराइन को मुझ बेचारे पर तरस आ गया हो और उन्होंने मेरी अच्छी तरह से खातिरदारी के लिए तुम्हे भेज दिया हो, चलो अब जब आ ही गई हो तो, ये लो।"

अभि ने अपने जेब से कुछ निकलते हुए उस औरत के हाथ में थमा दिया, जब औरत ने ध्यान दिया तो, उसके हाथो में एक नोटो की गड्डी थी। जिसे देख कर वो औरत बोली...

रमिया --"ये ...ये पैसे क्यों बाबू जी?"

अभि एक बार फिर मुस्कुराया और बोला...

अभि --"ये तुम्हारी तनख्वाह है, तुम जब आ ही गई हो तो, मेरे लिए खाना वीना बना दिया करो। मगर ठाकुराइन के पंचभोग मुझसे नही पचेँगे। और हां ये बात जा कर ठाकुराइन से जरूर बताना।"

रमिया तो अभय को देखते रह गई, कुछ पल यूं ही देखने के बाद वो बोली...

रमिया --"तुम्हारा नाम क्या है बाबू जी?"

अभि --"मेरा नाम, मेरा नाम अभय है।"

"क्या....."

रमिया जोर से चौंकी....!! और रमिया को इस तरह चौंकते देख अभि बोला।

अभि --"अरे!! क्या हुआ ? नाम में कुछ गडबड है क्या?"

रमिया --"अरे नही बाबू जी। वो क्या है ना, इस गांव में एक लड़की है पायल नाम की, कहते है अभय नाम का हिबेक ठाकुराइन का बेटा भी था। जो शायद बरसो पहले इसी गांव के पीछे वाले जंगल में उसकी लाश मिली थी। और ये पायल us लड़के की पक्की दोस्त थी, लेकिन बेचारी जब से उसने अभय की मौत की खबर सुनी है तब से आज तक हंसी नहीं है। दिन भर खोई खोई सी रहती है।"

अभय रमिया की बात सुनकर खुद हैरान था, पायल की बात तो बाद की बात थी पर अपनी मौत की बात पर उसे सदमा बैठ गया था। लेकिन उस बारे में ज्यादा न सोचते हुए जब उसका ध्यान रमिया के द्वारा कहे हुए पायल की हालत पर पड़ा , तो उसका दिल तड़प कर रह गया... और उससे रहा नही गया और झट से बोल पड़ा।

अभय --"तो...तो उस अभय की मौत हो गई है, ये जानते हुए भी वो आ...आज भी उसके बारे में सोचती है।"

रमिया --"सोचती है, अरे ये कहो बाबू जी की, जब देखो तब अभय के बारे में ही बात करती रहती है।"

ये सुनकर अभय खुद को किताबो में व्यस्त करते हुए बोला...

अभि --"अच्छा, तो...तो क्या कहती वो अभय के बारे में?"

रमिया --"अरे पूछो मत बाबू जी, उसकी तो बाते ही खत्म नहीं होती। मेरा अभय ऐसा है, मेरा अभय वैसा है, देखना जब आएगा वो तो मेरे लिए ढेर सारी चूड़ियां लेकर आएगा। चूड़ियां लेने ही तो गया है वो, पर शायद उसे मेरी पसंद की चूड़ियां नही मिल रही होगी इस लिए वो दर के मारे नही आ रहा है सोच रहा होगा की मुझे अगर पसंद नहीं आएगी तो मै नाराज हो जाऊंगी उससे। ये सब कहते हुए बेचारी का मुंह लटक जाता है और फिर न जाने कौन से रस में डूबा कर अपने शब्द छोड़ते हुए बोलती है की, कोई बोलो ना उससे, की आ जाए वो, नही चाहिए मुझे चूड़ियां मुझे तो वो ही चाहिए उसके बिना कुछ अच्छा नहीं लगता। क्या बताऊं बाबू जी दीवानी है वो, मगर अब उसे कौन समझाए की जिसका वो इंतजार कर रही है, अब वो कभी लौट कर नहीं आने वाला।"

रमिया की बाते सुन कर अभय की आंखे भर आई , उसका गला भारी हो गया था। दिल में तूफान उठाने लगे थे, उसका दिल इस कदर बेताबी धड़कने लगा था की, उसका दिल कर रहा था की अभि वो पायल के पास जाए और उसे अपनी बाहों में भर कर बोल दे की मैं ही हूं तेरा अभय। मगर तभी रमिया के दूसरे शब्द उसके कान में पड़ते ही..... उसके दिमाग का पारा ही बढ़ता चला गया......

गुस्से में आंखे लाल होने लगी, और अपनी हाथ के पंजों को मुठ्ठी में तब्दील करते हुए, अपनी दातों को पिस्ता ही रह गया..
Sad Oh No GIF by MLB
 

Raj_sharma

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Great update with awesome writing skills bro,
These all nonsense is happening because of raman.
Sandhy is faulty but raman's family and himself is much faulty. Abhay should punish them. And fuck sandhy properly as punishment😂😂
 

Studxyz

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लेखक साहब उर्फ अलबेला से ये दरखास्त है की दिवाली की छुटियाँ चालू हैं इसलिए 2 अपडेट प्र्तेक दिन दिए जाएं ताकि पिछले छोटे अपडेट या अपडेट ना दे पाने की भरपाई पूरी की जा सके
 

MAD. MAX

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Sandhya Ki Galti Hai Ki Usne Bina Kuch Soche Samjhe Abhay Ke Sath Itna Kuch Hone Diya But Ab Raman ka Real Face Saamne Aa rha hai To Dekhte hai Kya hota Hai
Sb se Badla Abhay He lega ye to Haqiqat Hai
But Sadhya ko Uski Galti Ka Ahsaas Hona Chahiye Ki Usne Kya galti Ki Hai
Sandhya bs Ab Abhay Ki Ho Aur kisi ki Nhi Jaisa apka Title hai Us hisab Se adultry To Ho Gya but Ab Inchest ka Wait Hai But Itni Asaani se Maafi Nhi Milne Chahiye Sandhya Ko
Aur ek Last Baat Sandhya Ko 100% Sure Kro Ki Vo he Uska Beta hai Isme Koi Confusion Nhi Honi Chahiye
Baki Jaise apki Marziii
I agree you bro shi kha aapne
.
Hemantstar111 bro esa hona chahey Q ki abi to poori trh confirm ni hai Sandhya but use confirmed kraoo use ki Abhay be uska sga beta hai tb to or jada mja asli aayga bete hote hue bi use na poche khud hostel me rhe kr hisaab kitab braabr kre Sandhya or Raman se
Or
Sbse most important bat Sandhya ko pta chle ki Abhay ko uske or Raman ke sambandh ke bare me sb pta hai tb to kaise face kregi Sandhya dekhne layak scene hoga wo
.
Baki jaise aapko shi lga Hemantstar111 bro
 
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