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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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Is puri kahani me main khel Jaydat ka lagta hai, nahi to itne bade kaam Raman kar sakta hai to Sandhya ko marwa bhi sakta hai par twist yahan ye hoga ki Raman ko jaydat se bedakhal ya aisa hi kuch kar diya gaya hoga tabhi apne bhabhi se dabe huye rehta hai, flashbacks is kahani ka bahut romanchak hoga, abhi filhaal to is kahani me do hi villain lagte hai ek Raman aur aur uska beta shayad, ab dekhte hai project cancel hone ke gusse me Raman kya karta hai abhay ke saath….
 
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:)Bhai sabko hero ki maa hi kyu milti hai aise kamo ke liye
ek to mujhe aisa lag rha hai Sandhya buri nhi hai , lekin sandhya aur abhay ke bich communication gap bahot hai.
Sirf aur sirf Raman hai is story me villain !!
faltu me bichari sandhya jhel rhi hai sab


aur jab usko pata chalega ki raman ne kya kya kiya abhay ke saath tab to use kitni glani hogi , ki jisne mere bete ko itna kasht diya mai usi ke bistar pe soti rhi
💯
 

MAD. MAX

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उसे इसलिए विश्वास नहीं किया कि क्योंकि उसे अभय की लाश दिखाई गई थी और क्योंकि उसने जो अपने बारे में बताया था वो अभय से मेल खाते हैं लेकिन उसके व्यवहार से उसे शक है इसलिए उसने ऐसा किया
Bro Sandhya ko lash ke btaya gya tha bs
Lash dekhi ni thi Sandhya ne
Or ye bat kal ke update me bi hai
Or rhe bat use pakke yaken ki to use yakeen hone lga hai Q ki pehli mulaqat me Abhay ne Sandhya se esi batte boli jo ghr me to ky Gaoo walo ko bi ni pta hai
 

MAD. MAX

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bhai ab sandhya ki chut gili toh nahi hogi lekin uski aankhe hongi yeh baat sahi hai..lekin abhay usko bataye ki woh janta hai ki sandhya ne raman ke sath jo muh kala kiya tha..sandhya tab bahot royegi jab usse pata chalega ki uska beta uski kalli kartute ke bare me janta hai..iss baat ki bhi saja abhay usko taane markar de matlab badchalan, behaya ya kuchh aur kehkar..lekin har ek baat ka badla le..!!
Bro aapne ek bat notice shyad ni kia gao me Abhay ki entry ke time Sandhya se mulaqat hue thi to ABHAY ne us time Sandhya BADCHALAN bola tha


It maens use pta hai Sandhya ki kali kartoot
 

Dark_Knight

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अपडेट 14


आज संध्या अपने आप में टूट सी गई थी, वो कुछ भी नही समझ पा रही थी की, वो क्या करे ? और क्या न करे?उसकी से आंखो से बह रहे आंसुओ की धारा को समझने वाला कोई नहीं था। कोई था भी, तो वो था सिर्फ उसका दिल। वैसे देखा जाए तो सही भी था। क्युकी इसकी जिम्मेदार वो खुद थी।

सोफे पर बैठी मन लगा कर रो रही संध्या, बार बार गुस्से में अपने हाथ को सोफे पर मारती। शायद उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी? रोती हुई संध्या अपने कमरे में उठ कर जा ही रही थी की, वो कॉन्ट्रैक्टर वहा पहुंच गया...


"नमस्ते ठाकुराइन..."

संध्या एक पल के लिए रुकी पर पलटी नही, वो अपनी साड़ी से बह रहे अपनी आंखो से अंसुओ को पहले पोछती है , फिर पलटी...

संध्या --"अरे सुजीत जी, आप यहां, क्या हुआ काम नहीं चल रहा है क्या कॉलेज का?"

तो उस कॉन्ट्रैक्टर का नाम सुजीत था,

सुजीत --"अरे ठाकुराइन जी, हम तो अपना काम ही कर रहे थे। पर न जाने कहा से एक छोकरा आ गया। और मजदूरों को काम करने से रोक दिया।"

संध्या --"क्या बात कर रहे हो सुजीत जी, एक छोकरा मजाक आकर आप लोगो से मजाक क्या कर दिया, आप लोग दर गए?"

सुजीत --"मैने भी उस छोकरे से यही कहा था ठाकुराइन, की क्या मजाक कर रहा है छोकरे? तो कहता है, अक्सर मुझे जानने वालों को लगता है की मेरा मजाक सच होता है। फिर क्या था मजदूरों के हाथ से फावड़ा ही छूट गया, क्यूंकि उसने कहा था की अगर अब एक भी फावड़ा इस खेत में पड़ा तो दूसरा फावड़ा तुम लोगो के सर पर पड़ेगा।"

उस कॉन्ट्रैक्टर की मजाक वाली बात पर संध्या का जैसे ही ध्यान गया, वो चौंक गई, क्युकी यही मजाक वाली बात का ठीक वैसा ही जवाब अभय ने भी संध्या को दिया था। संध्या के होश उड़ चुके थे, और वो झट से बोल पड़ी...

सांध्य --"ठीक है, आ...आपने कुछ किया तो नही ना उसे?

सुजीत --"अरे मैं क्या करता ठाकुराइन? वो नही माना तो, मैने उसको बोला की तू रुक अभि ठाकुर साहब को बुला कर लाता हूं।"

संध्या --"फिर, उसने क्या कहा?"

सुजीत --"अरे बहुत ही तेज मालूम पड़ता है वो ठाकुराइन, बोला की रानी को बुला कर ला, ये प्यादे मेरा कुछ नही बिगाड़ पाएंगे।"

ये सुनकर, संध्या के चेहरे पर ना जाने क्यूं हल्की सी मुस्कान फैल गई, जिसे उस कॉन्ट्रैक्टर ने ठाकुराइन का चेहरा देखते हुए बोला...

सुजीत --"कमाल है ठाकुराइन, कल का छोकरा आपका काम रुकवा दिया, और आप है की मुस्कुरा रही है।"

कॉन्ट्रैक्टर की बात सुनकर, संध्या अपने चेहरे की मुस्कुराहट को सामान्य करती हुई कुछ बोलने ही वाली थी की...

"अरे, सुजीत जी आप यहां। क्या हुआ काम शुरू नही किया क्या अभि तक?"

ये आवाज सुनते ही, कॉन्ट्रैक्टर और संध्या दोनो की नजरे us आवाज़ का पीछा की तो पाए की ये रमन सिंह था।

सुजीत --"काम तो शुरू ही किया था ठाकुर साहब, की तभी न जाने कहा से एक छोकरा आ गया, और काम ही रुकवा दिया।"

ये सुनकर रमन के चेहरे पर गुस्से की छवि उभरने लगी...

रमन --"क्या!! एक छोकरा?"

सुजीत --"हां, ठाकुर साहब,, इसी लिए तो मैं ठाकुराइन के पास आया था।"

रमन --"ऐसे लिए, भाभी के पास आने की क्या जरूरत थी? मुझे फोन कर देते, मैं मेरे लट्ठहेर भेज देता। जहा दो लाठी पड़ती , सब होश ठिकाने आ जाता उसका जा..."

"जबान संभाल के रमन..."

संध्या थोड़ा गुस्से में रमन की बात बीच में ही काटते हुए बोली। जिसे सुनकर रमन के चेहरे के रंग बेरंग हो गए। और असमंजस के भाव में बोला।

रमन --"भाभी, ये क्या कह रही हो तुम?"

संध्या --"मैं क्या कह रही हूं उस पर नही, तुम क्या कह रहे हो उस पर ध्यान दो। तुम एक लड़के को बिना वजह लट्ठहेरो से पिटवावोगे। यही काम बचा है अब।"

रमन तो चौकाने के सिवा और कुछ नही कर पाया, और झट से बोल पड़ा...

रमन --"बिना वजह, अरे वो छोकरा काम रुकवा दिया, और तुम कह रही हो की बिना वजह।"

संध्या --"हां, पहले चल कर पता तो करते है, की उसने आखिर ऐसा क्यूं किया। समझाएंगे, मान जायेगा। और तुम सीधा लाठी डंडे की बात करने लगे। ये अच्छी बात नहीं है ना। चलो सुजीत जी मै चलती हूं।"

और फिर संध्या कॉन्ट्रैक्टर के साथ, हवेली से बाहर जाने लगती है। एक पल के लिए तो रमन अश्र्याचकित अवस्था में वही खड़ा रहा, लेकिन जल्द ही वो भी उन लोगो के पीछे पीछे चल पड़ा...

गांव की भरी भरकम भीड़ उस खेत की तरफ आगे बढ़ रही थी। और एक तरफ से ठाकुराइन भी अपनी कार में बैठ कर निकल चुकी थीं। जल्द दोनो पलटन एक साथ ही उस खेत पर पहुंची। संध्या कार से उतरते हुए गांव वालो की इतनी संख्या में भीड़ देख कर रमन से बोली...

संध्या --"ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है?"

संध्या की बात सुनकर और गांव वालो की भीड़ को देख कर रमन को पसीने आने लगे। रमन अपने माथे पर से पसीने को पोछत्ते हुए बोला...

रमन --"प...पता नही भाभी, व...वही तो देख कर मैं भी हैरान हूं।"

संध्या अब आगे बढ़ी और उसके साथ साथ कॉन्ट्रैक्टर और रमन भी। नजदीक पहुंचने पर संध्या को, अभय दिखा। जो अपने कानो में इयरफोन लगाए गाना सुन रहा था। और अपनी धुन में मस्त था। अभय को पता ही नही था की, पूरी गांव के साथ साथ ठाकुराइन और ठाकुर भी आ गए थे।

गांव वालो ने अभय को देखते ही रह गए। वही अजय की भी नजरे अभय के ऊपर ही थी। पर अभय अपनी मस्ती में मस्त गाने सुन रहा था।

रमन --"वो छोकरे, कौन है तू? और काम क्यूं बंद करा दिया?"

अभय अभि भी अपनी मस्ती में मस्त गाने सुनने में व्यस्त था। उसे रमन की बात सुनाई ही नही पड़ी। ये देख कर रमन फिर से बोला...

रमन --"वो छोरे.....सुनाई नही दे रहा है क्या?"

ये सुनकर अजय हंसते हुए बोला...

अजय --"अरे क्या ठाकुर साहब आप भी? आप देख नही रहे हो की उसने अपने कान में इयरफोन लगाया है। कैसे सुनेगा?"

ये सुनकर सब गांव वाले हंसने लगे, ठाकुराइन भी थोड़ा हस पड़ी। ये देख कर रमन गुस्से में आगे बढ़ा और अभय के नजदीक पहुंच कर उसके कान से इयरफोन निकालते हुए बोला...

रमन --"यहां नाटक चल रहा है क्या? कौन है तू? और काम रुकवाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?"

रमन की तेज तर्रार बाते संध्या के दिल में चुभ सी गई... और वो भी गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली...

संध्या --"रमन!! पागल हो गए हो क्या, आराम से बात नहीं कर सकते हो क्या। तुम चुप रहो, मैं बात करती हूं।"

रमन को शॉक पे शॉक लग रहे थे। वो हैरान था, और समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या इस लड़के के लिए इतनी हमदर्दी क्यूं दिखा रही है। ये सोचते हुए रमन वापस संध्या के पास आ गया।

और इधर संध्या भी अपने आप से बाते करने लगी थी...

"ही भगवान, ना जाने क्यूं मेरा दिल कह रहा है की, यही मेरा अभय है। मेरी धड़कने मुझे ये अहसास करा रही है की यही मेरा अभि है। पर मेरा दिमाग क्यूं नही मान रहा है? वो लाश, इस दिन फिर वो लाश किसकी थी। मैं तो उस लाश को भी नही देख पाई थी, हिम्मत ही नहीं हुई। फिर आज ये सामने खड़ा लड़का कौन है? क्यूं मैं इसके सामने पिघल सी जा रही हूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आवरा है भगवान, तू ही कोई रास्ता दिखा, क्या मेरा दिल जो कह रहा है वही ठीक है? क्या ये मेरा अभय ही है? क्या ये अपनी मां की तड़पते दिल की आवाज सुन कर आया है। अगर ऐसा है तो...."

"अरे मैडम, थोड़ा जल्दी बोलो, रात भर सोया नही हूं नींद आ रही है मुझे।"

संध्या अभि खुद से ही बाते कर रही थी की ये आवाज उसके कानो के पड़ी...वो सोच की दुनिया से बाहर निकलते हुए असलियत में आ चुकी थी, और अभय की बात सुनते हुए हिचकिचाते हुए बोली...

संध्या --"म... म..में कह रही थी की, ये काम तुमने क्यूं रुकवा दिया?"

ठाकुराइन की हिचकिचाती आवाज किसी को रास नहीं आई, गांव वाले भी हैरान थे , की आखिर ठाकुराइन इतनी सहमी सी क्यूं बात कर रही है?

और सब से ज्यादा चकित था रमन सिंह, वो तो अपनी भाभी का नया रूप देख रहा था। मानो वो एक प्रकार से सदमे में था। अभय बात तो कर रहा था ठाकुराइन से, मगर उसकी नजरे गांव वालोंकी तरफ था। उसकी नजरे किसी को देख ढूंढ रही थी शायद, गांव के बुजुर्ग और अधेड़ को तो उसके सब को पहेचान लिया था। पर अभी भी उसके नजरो की प्यास बुझी नही थी, शायद उसकी नजरों की प्यास बुझाने वाला उस भीड़ में नही था। अभय मान करते हुए अपनी मां से बोला...

अभय --"भला, मेरी इतनी औकात कहां की, मैं ये काम रुकवा सकूं मैडम। मैं तो बस इन मजदूरों को ये हरे भरे पेड़ो को कटने से मना किया था बस। और वैसे भी, आप ही समझिए ना मैडम, अच्छी खासी उपजाऊ जमीन पर कॉलेज बनवा कर, इन बेचारी किसानों के पेट पर लात क्यूं मार रही हो?"

अभय की प्यार भरी मीठी सी आवाज सुन कर, संध्या का दिल खुशी से अंदर ही अंदर झूम उठा। और इधर गांव वाले भी अभय को उनके हक में बात करता देख इसे मन ही मन दुवाएं देने लगे थे। पर एक सख्श था। जिसके मन में अधियां और तूफ़ान चल रहा था। और वो था रमन, उसकी जुबान तो कुछ नही बोल रही थी, पर उसका चेहरा सब कुछ बयां कर रहा था। की वो कितने गुस्से में है।

संध्या --"मैं भला, किसानों के पेट पर लात क्यूं मारने लगी। ये गांव वालो ने ही खुशी खुशी अपनी जमीनें दी है, कॉलेज बनवाने के लिए।"

ठाकुराइन का इतना बोलना था की, वहा खड़ा मंगलू अपने हाथ जोड़ते हुए झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"कैसी बात कर रही हो मालकिन, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने का यही तो एक मात्र सहारा है। हां माना की हम गांव वालो ने आपसे जो कर्जा लिया था, वोभिम चुका नही पाए। पर इसके लिए आपने हमारी जमीनों पर कॉलेज बनवाने लगी, ये तो अच्छी बात नहीं है ना मालकिन, थोड़ा सा और समय दे दीजिए मालकिन, हम अपना पूरा अनाज बेच कर के आपके करके चुका देंगे।"

ये कहें था मंगलू का की, सब गांव वाले हाथ जोड़ते हुए अपने घुटने पर बैठ कर ठाकुराइन से विनती करने लगे...

ये देख कर ठाकुराइन हड़बड़ा गई, इस बात पर नही की ये गांव वाले क्या कर रहे है? बल्कि इस बात पर , की गांव वाले जो भी कर रहे है, उससे अभय उसके बारे में कुछ गलत न सोच ले। एक बात तो तय थी, की अब संध्या अभय को अपने बेटे के रूप में देखने लगी थी। भले उसे अभी यकीन हुआ हो या नहीं। वो झट से घबराहट में बोली...

संध्या --"ये कैसी बाते कर रहे हो तुम मंगलू? मैने कभी तुम सब से पैसे वापस करने की बात नहीं की। और पैसों के बदले ज़मीन की बात तो मै कभी सोच भी नही सकती...

ये सब वहा खड़ा अभय ध्यान से सुन रहा था। और जिस तरह गांव वाले बेबस होकर हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठे थे , ये देख कर तो अभय का माथा ठनक गया। उसे अपनी मां पर इतना गुस्सा आया की वो अपने मन में ही हजारों बाते करने लगा।"

"जरूर इसी ने किया है ये सब, और अब सब गांव वालो के सामने इसकी बेइज्जती न हो इस लिए पलटी खा रही है, वैसे इस औरत से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? ये है ही एक कपटी औरत।"

ये सब बाते खुद से करते हुए अभय बोला...

अभि --"कमाल है मैडम, क्या दिमाग लगाया है, हजार रुपए का कर्जा और लाखो की वसूली, ये सही है।"

इतना कह कर अभि वहा से चल पड़ता है..., संध्या को जिस बात का डर था वही हुआ। अभय ने संध्या को ही इसका जिम्मेदार ठहराया। और ये बात संध्या के अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करने लगी...और वहा से जाते हुए अभी के सामने आकर खड़ी हो गई। संध्या को इस तरह अपने सामने आकर इतने पास खड़ी देख अभय का खून सुलग गया,।

संध्या --"मैं... मैं सच कह रही हूं, ये सब मैने नही किया है।"

कहते हुए संध्या ने अभि का हाथ पकड़ लिया। अपने हाथ को संध्या की हथेली में देख कर, अभि को न जाने क्या हुआ और गुस्से में संध्या का हाथ झटकते हुए बोला...

अभि --"आपने क्या किया है, क्या नही? उससे मुझे कोई लेना देना है, समझी आप। मैं तो यह आया था इन हरे भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बस। आप लोगो का नाटक देखने नही।"

कहते हुए अभि वहा से चला जाता है। संध्या का दिल एक बार फिर रोने लगा। वो अभी वही खड़ी अभय को जाते हुए देख रही थी। लेकिन जल्द ही अभि गांव वालो और संध्या की नजरों से ओझल हो चुका था।

संध्या भी वहा से जाते हुए, रमन से बोली...

संध्या --"रमन, ये काम रोक दो। अब यहां कोई कॉलेज नही बनेगा। और हां तुम हवेली आकार मुझसे मिलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

इतना कह कर संध्या वहा से चली गई...

रमन के होश तो छोड़ो, ये बात सुन कर उसकी दुनियां ही उजड़ गई हो मानो, ऐसा उसके चेहरे पर भाव था।



छोटा अपडेट देने के लिए सॉरी दोस्तो, पर ये वीक में थोड़ा busy hun, to please try to understand

Par update deta rahunga , Chhota hi sahi, story nahi rukegi...
Fantastic & outstanding story!!!...bhut tagda plot h story ka...pr writer mohoday se ek request hai shandhya ko thakurain ka role diya hai pr abhi tk kuch aisa lga ni kyuki ek to uski chut bhi chud gyi aur chutiya jo kaat rha alag bss yahi req hi ki uske role ko thoda majbot kriye aur usse khud pta chle ki uske pith piche kitna bda shadyantra chla jaa rha jisse usse aisi aatmglani ho ki maza hi aajye aur shandya aur raman ke bich jo tha wo phla aur akhri hi to jada acha rhe aur uusi waqt jo dekh kr abhi ne ghr chhoda uska glani sandhya ko jindagu bhar hona chahiye...aur aage plzz negative character ke sex scene na hi ho to acha h kyuki isse lgta h ki hero ka role kam ho gya hai...baki writer mohoday ki marzi pr apne fans ki request ke bare mai jarur sochna!!!...thanku😊
 

MAD. MAX

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nice update..!!
wah bhai maja aagaya..abhay ne gaon me entry marte hi dhamake karne chalu kar diye hai..bhai abhay ka jo main dialogue hai ki 'mera majak sach hojata hai' woh ekdum zabardast hai..sujit jab yeh dialogue bola tab sandhya samajh gayi ki abhay ne hi rukwaya hai kaam..yeh raman ne jab marne ki baat ki tab bhi raman pe bhadak gayi..yeh ab raman pe gussa dikhane ka natak kar rahi hai lekin yahi pyaar aur apnapan uss waqt deti abhay ko toh usko bhagna na padta..uss waqt apne bete ki baat sunti aur aman ki jagah khud ke bete ko pyaar deti toh aaj usko abhay ki najar me khud ko nafrat nahi dikhti..wause sandhya ko badi galatfehmi horahi hai ki abhay uski maa ka dard mehsoos kar aaya hai..lekin jald hi usko ehsas hoga ki abhay apne baap ke liye aaya hai na ki uske liye kyunki ab sandhya uske liye maa nahi rahi..aur abhay usko kabhi maaf nahi kar sakta..!! mana ki raman ne sandhya ke kaan bhare honge jab abhay chhota tha tab..lekin koi aurat kisi aur ki baat me aakar bete pe julm kaise kar sakti hai aur dusre ke bete ko jyada pyaar dekar khud ke bete ke sath nainsafi kaise kar sakti hai..uss waqt toh iss sandhya par raman ki hawas ka bhott chadha huva tha jo dil se nahi chut se sochti thi..aur ab iski chut ki kahani matlab raman aur iske affair ko bhi abhay bolega aur iski insult karega behaya aurat bolkar..tab maja aayega..!! waise abhay ne madam madam bolkar achhese leli sandhya ki aur raman ka toh sapna tod diya..ab raman babu tumhari ulti ginti suru hogayi hai..aur sandhya tumhari bhi..aur iss harami aman ki bhi kyunki yeh apni heroine payal pe gandi najar rakhe huye hai..!! mangalu kaka ki wajah se sandhya ki samne bhi sach aagaya ki iss raman ne kitna ghapla kiya huva hai..ab sandhya ko uss lash pe bhi doubt horaha hai..sandhya ko police ko bulakar uss lash ke bare me investigation karne ko bolna chahiye..ab sandhya ko raman par vishwas nahi karna chahiye..waise ab kisi par vishwas kare na kare lekin sandhya ab khun ke aansu royegi..!! waise gaonwalo ke liye ek achhi baat huyi ki kaam ruk gaya aur ab khet bhi mil jayenge..!! ajay bhi shayad abhay ko pehchan gaya hai..abhay ki najare payal ko dhundh rahi thi..lekin payal nahi thi..lekin jab bhi payal abhay ko dekhegi zat se pehchan legi kyunki abhay agar usko sachha pyaar karta hai toh woh bhi karti hai..aur abhay usko itne saal baad pehchan sakta hai toh woh bhi pehchan hi sakti hai..ab dekhte hai aage kya hota hai..!!
Hemantstar111 bro Waise ye dialogue bilkul suit krta hai ABHAY pe
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#MERA_MAJAK_SUCH_HO_JATA_HAI
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BRO ye just request hai aapse jb bi Sandhya ya Raman se related jo bi bat ABHAY bole unke samne to Ye dialogue aap jroor likhna
Taana marne ka alg he mja aayga story me
 
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MAD. MAX

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जबरदस्त अपडेट,
आखिर संध्या तक कालेज के काम रुकने की बात पहुच ही गयी।
और ये काम अभय ने किया है उससे उन्हें दुख नही बल्कि ये चिंता हुई की कही अभय के साथ कुछ गलत तो नही किया गया,
तभी रमन भी आ जाता है और कॉन्ट्रैक्टर तो धमकाता है कि भाभी को बताने की क्या जरूरत थी, मुझे कहता मैं लठैतों को भेज कर उस लड़के को सीधा कर देता,
संध्या ने इस बात पर रमन को ही डांट दिया,
संध्या खुद वहाँ सब मामले की जांच करने गयी और रमन भी साथ ही पहुचा
दूसरी तरफ पूरा गांव भी वहाँ पहुच गया, सब गांव वालों को साथ देख कर रमन की हवा टाइट हो गयी
थी।
रमन अभी से पूछता है लेकिन अभी मस्त मलंग की तरह बस गाने सुनने में व्यस्त था,
जब रमन ने फिर धमका कर पूछा तो संध्या ने फिर रमन को सब गांव वालों के सामने धमका कर रोक दिया, और खुद बात करने गयी,
फिर बातो में संध्या को सब मामले का पता चला,
अभी के कारण गांव वाले भी संध्या के सामने अपना पक्ष रखने में कामयाब हुए।
लेकिन इन सब के बीच मा बेटे में फिर एक गलत फहमी आ गयी।
संध्या अपने मन मे सोच चुकी है की ये अभय ही उसका बेटा है और अब उसको उस लाश की भी सोच होने लगी कि आखिर वो किसकी थी, अब शायद संध्या इन सब बातों की तह तक जाएगी।
अभी पूरे गांव की भीड़ में पायल को ढूंढ रहा था।
आज के प्रकरण से बीते समय मेंक्या हुआ होगा उसका मालूम चल रहा है, जब जवानी में ही संध्या ने अपने पति को खो दिया होगा तो रमन ने उसे अपने चंगुल में फसाया होगा और जैसा होता आ या है ओरत को अपने पति से ज्यादा दूसरे मर्द से ज्यादा खुशी मिलती है संध्या को भी रमन से मिली होगी लेकिन जैसे जैसे अभय बडा होता गया वो खतरा बनने लगा, तब रमन ने संध्या को अभय के लिए भड़काना शुरू कर दिया, संध्या को उस समय सिर्फ अपानी चुदायी की फिक्र थी उसने आंख बंद कर रमन पर विस्वास किया और अभय पर जुल्म किए।
जैसा होता आया है हम अपने दुश्मन को ही अपना हितेशी समझ लेते है लेकिन वही हमारी जड़े खोखली करता है वह काम रमन यहाँ कर रहा है सब बुरे काम का ठीकरा संध्या के नाम पर फूटता था।
जब अभय था तब संध्या को उसकी फिक्र नही थी लेकिन उसके चले जाने के बाद अभय की कीमत उसे मालूम चली,
कहते है हीरे की कीमत उसके खोने के बाद मालूम चलती है वही संध्या के साथ है।
अब रमन संध्या को फिर अपने काबू में करने के लिए क्या करता है , देखना होगा
Correct
 
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