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Incest वो तो है अलबेला (incest + adultery)

क्या संध्या की गलती माफी लायक है??


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The angry man

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आज संध्या अपने आप में टूट सी गई थी, वो कुछ भी नही समझ पा रही थी की, वो क्या करे ? और क्या न करे?उसकी से आंखो से बह रहे आंसुओ की धारा को समझने वाला कोई नहीं था। कोई था भी, तो वो था सिर्फ उसका दिल। वैसे देखा जाए तो सही भी था। क्युकी इसकी जिम्मेदार वो खुद थी।

सोफे पर बैठी मन लगा कर रो रही संध्या, बार बार गुस्से में अपने हाथ को सोफे पर मारती। शायद उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी? रोती हुई संध्या अपने कमरे में उठ कर जा ही रही थी की, वो कॉन्ट्रैक्टर वहा पहुंच गया...


"नमस्ते ठाकुराइन..."

संध्या एक पल के लिए रुकी पर पलटी नही, वो अपनी साड़ी से बह रहे अपनी आंखो से अंसुओ को पहले पोछती है , फिर पलटी...

संध्या --"अरे सुजीत जी, आप यहां, क्या हुआ काम नहीं चल रहा है क्या कॉलेज का?"

तो उस कॉन्ट्रैक्टर का नाम सुजीत था,

सुजीत --"अरे ठाकुराइन जी, हम तो अपना काम ही कर रहे थे। पर न जाने कहा से एक छोकरा आ गया। और मजदूरों को काम करने से रोक दिया।"

संध्या --"क्या बात कर रहे हो सुजीत जी, एक छोकरा मजाक आकर आप लोगो से मजाक क्या कर दिया, आप लोग दर गए?"

सुजीत --"मैने भी उस छोकरे से यही कहा था ठाकुराइन, की क्या मजाक कर रहा है छोकरे? तो कहता है, अक्सर मुझे जानने वालों को लगता है की मेरा मजाक सच होता है। फिर क्या था मजदूरों के हाथ से फावड़ा ही छूट गया, क्यूंकि उसने कहा था की अगर अब एक भी फावड़ा इस खेत में पड़ा तो दूसरा फावड़ा तुम लोगो के सर पर पड़ेगा।"

उस कॉन्ट्रैक्टर की मजाक वाली बात पर संध्या का जैसे ही ध्यान गया, वो चौंक गई, क्युकी यही मजाक वाली बात का ठीक वैसा ही जवाब अभय ने भी संध्या को दिया था। संध्या के होश उड़ चुके थे, और वो झट से बोल पड़ी...

सांध्य --"ठीक है, आ...आपने कुछ किया तो नही ना उसे?

सुजीत --"अरे मैं क्या करता ठाकुराइन? वो नही माना तो, मैने उसको बोला की तू रुक अभि ठाकुर साहब को बुला कर लाता हूं।"

संध्या --"फिर, उसने क्या कहा?"

सुजीत --"अरे बहुत ही तेज मालूम पड़ता है वो ठाकुराइन, बोला की रानी को बुला कर ला, ये प्यादे मेरा कुछ नही बिगाड़ पाएंगे।"

ये सुनकर, संध्या के चेहरे पर ना जाने क्यूं हल्की सी मुस्कान फैल गई, जिसे उस कॉन्ट्रैक्टर ने ठाकुराइन का चेहरा देखते हुए बोला...

सुजीत --"कमाल है ठाकुराइन, कल का छोकरा आपका काम रुकवा दिया, और आप है की मुस्कुरा रही है।"

कॉन्ट्रैक्टर की बात सुनकर, संध्या अपने चेहरे की मुस्कुराहट को सामान्य करती हुई कुछ बोलने ही वाली थी की...

"अरे, सुजीत जी आप यहां। क्या हुआ काम शुरू नही किया क्या अभि तक?"

ये आवाज सुनते ही, कॉन्ट्रैक्टर और संध्या दोनो की नजरे us आवाज़ का पीछा की तो पाए की ये रमन सिंह था।

सुजीत --"काम तो शुरू ही किया था ठाकुर साहब, की तभी न जाने कहा से एक छोकरा आ गया, और काम ही रुकवा दिया।"

ये सुनकर रमन के चेहरे पर गुस्से की छवि उभरने लगी...

रमन --"क्या!! एक छोकरा?"

सुजीत --"हां, ठाकुर साहब,, इसी लिए तो मैं ठाकुराइन के पास आया था।"

रमन --"ऐसे लिए, भाभी के पास आने की क्या जरूरत थी? मुझे फोन कर देते, मैं मेरे लट्ठहेर भेज देता। जहा दो लाठी पड़ती , सब होश ठिकाने आ जाता उसका जा..."

"जबान संभाल के रमन..."

संध्या थोड़ा गुस्से में रमन की बात बीच में ही काटते हुए बोली। जिसे सुनकर रमन के चेहरे के रंग बेरंग हो गए। और असमंजस के भाव में बोला।

रमन --"भाभी, ये क्या कह रही हो तुम?"

संध्या --"मैं क्या कह रही हूं उस पर नही, तुम क्या कह रहे हो उस पर ध्यान दो। तुम एक लड़के को बिना वजह लट्ठहेरो से पिटवावोगे। यही काम बचा है अब।"

रमन तो चौकाने के सिवा और कुछ नही कर पाया, और झट से बोल पड़ा...

रमन --"बिना वजह, अरे वो छोकरा काम रुकवा दिया, और तुम कह रही हो की बिना वजह।"

संध्या --"हां, पहले चल कर पता तो करते है, की उसने आखिर ऐसा क्यूं किया। समझाएंगे, मान जायेगा। और तुम सीधा लाठी डंडे की बात करने लगे। ये अच्छी बात नहीं है ना। चलो सुजीत जी मै चलती हूं।"

और फिर संध्या कॉन्ट्रैक्टर के साथ, हवेली से बाहर जाने लगती है। एक पल के लिए तो रमन अश्र्याचकित अवस्था में वही खड़ा रहा, लेकिन जल्द ही वो भी उन लोगो के पीछे पीछे चल पड़ा...

गांव की भरी भरकम भीड़ उस खेत की तरफ आगे बढ़ रही थी। और एक तरफ से ठाकुराइन भी अपनी कार में बैठ कर निकल चुकी थीं। जल्द दोनो पलटन एक साथ ही उस खेत पर पहुंची। संध्या कार से उतरते हुए गांव वालो की इतनी संख्या में भीड़ देख कर रमन से बोली...

संध्या --"ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है?"

संध्या की बात सुनकर और गांव वालो की भीड़ को देख कर रमन को पसीने आने लगे। रमन अपने माथे पर से पसीने को पोछत्ते हुए बोला...

रमन --"प...पता नही भाभी, व...वही तो देख कर मैं भी हैरान हूं।"

संध्या अब आगे बढ़ी और उसके साथ साथ कॉन्ट्रैक्टर और रमन भी। नजदीक पहुंचने पर संध्या को, अभय दिखा। जो अपने कानो में इयरफोन लगाए गाना सुन रहा था। और अपनी धुन में मस्त था। अभय को पता ही नही था की, पूरी गांव के साथ साथ ठाकुराइन और ठाकुर भी आ गए थे।

गांव वालो ने अभय को देखते ही रह गए। वही अजय की भी नजरे अभय के ऊपर ही थी। पर अभय अपनी मस्ती में मस्त गाने सुन रहा था।

रमन --"वो छोकरे, कौन है तू? और काम क्यूं बंद करा दिया?"

अभय अभि भी अपनी मस्ती में मस्त गाने सुनने में व्यस्त था। उसे रमन की बात सुनाई ही नही पड़ी। ये देख कर रमन फिर से बोला...

रमन --"वो छोरे.....सुनाई नही दे रहा है क्या?"

ये सुनकर अजय हंसते हुए बोला...

अजय --"अरे क्या ठाकुर साहब आप भी? आप देख नही रहे हो की उसने अपने कान में इयरफोन लगाया है। कैसे सुनेगा?"

ये सुनकर सब गांव वाले हंसने लगे, ठाकुराइन भी थोड़ा हस पड़ी। ये देख कर रमन गुस्से में आगे बढ़ा और अभय के नजदीक पहुंच कर उसके कान से इयरफोन निकालते हुए बोला...

रमन --"यहां नाटक चल रहा है क्या? कौन है तू? और काम रुकवाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?"

रमन की तेज तर्रार बाते संध्या के दिल में चुभ सी गई... और वो भी गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली...

संध्या --"रमन!! पागल हो गए हो क्या, आराम से बात नहीं कर सकते हो क्या। तुम चुप रहो, मैं बात करती हूं।"

रमन को शॉक पे शॉक लग रहे थे। वो हैरान था, और समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या इस लड़के के लिए इतनी हमदर्दी क्यूं दिखा रही है। ये सोचते हुए रमन वापस संध्या के पास आ गया।

और इधर संध्या भी अपने आप से बाते करने लगी थी...

"ही भगवान, ना जाने क्यूं मेरा दिल कह रहा है की, यही मेरा अभय है। मेरी धड़कने मुझे ये अहसास करा रही है की यही मेरा अभि है। पर मेरा दिमाग क्यूं नही मान रहा है? वो लाश, इस दिन फिर वो लाश किसकी थी। मैं तो उस लाश को भी नही देख पाई थी, हिम्मत ही नहीं हुई। फिर आज ये सामने खड़ा लड़का कौन है? क्यूं मैं इसके सामने पिघल सी जा रही हूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आवरा है भगवान, तू ही कोई रास्ता दिखा, क्या मेरा दिल जो कह रहा है वही ठीक है? क्या ये मेरा अभय ही है? क्या ये अपनी मां की तड़पते दिल की आवाज सुन कर आया है। अगर ऐसा है तो...."

"अरे मैडम, थोड़ा जल्दी बोलो, रात भर सोया नही हूं नींद आ रही है मुझे।"

संध्या अभि खुद से ही बाते कर रही थी की ये आवाज उसके कानो के पड़ी...वो सोच की दुनिया से बाहर निकलते हुए असलियत में आ चुकी थी, और अभय की बात सुनते हुए हिचकिचाते हुए बोली...

संध्या --"म... म..में कह रही थी की, ये काम तुमने क्यूं रुकवा दिया?"

ठाकुराइन की हिचकिचाती आवाज किसी को रास नहीं आई, गांव वाले भी हैरान थे , की आखिर ठाकुराइन इतनी सहमी सी क्यूं बात कर रही है?

और सब से ज्यादा चकित था रमन सिंह, वो तो अपनी भाभी का नया रूप देख रहा था। मानो वो एक प्रकार से सदमे में था। अभय बात तो कर रहा था ठाकुराइन से, मगर उसकी नजरे गांव वालोंकी तरफ था। उसकी नजरे किसी को देख ढूंढ रही थी शायद, गांव के बुजुर्ग और अधेड़ को तो उसके सब को पहेचान लिया था। पर अभी भी उसके नजरो की प्यास बुझी नही थी, शायद उसकी नजरों की प्यास बुझाने वाला उस भीड़ में नही था। अभय मान करते हुए अपनी मां से बोला...

अभय --"भला, मेरी इतनी औकात कहां की, मैं ये काम रुकवा सकूं मैडम। मैं तो बस इन मजदूरों को ये हरे भरे पेड़ो को कटने से मना किया था बस। और वैसे भी, आप ही समझिए ना मैडम, अच्छी खासी उपजाऊ जमीन पर कॉलेज बनवा कर, इन बेचारी किसानों के पेट पर लात क्यूं मार रही हो?"

अभय की प्यार भरी मीठी सी आवाज सुन कर, संध्या का दिल खुशी से अंदर ही अंदर झूम उठा। और इधर गांव वाले भी अभय को उनके हक में बात करता देख इसे मन ही मन दुवाएं देने लगे थे। पर एक सख्श था। जिसके मन में अधियां और तूफ़ान चल रहा था। और वो था रमन, उसकी जुबान तो कुछ नही बोल रही थी, पर उसका चेहरा सब कुछ बयां कर रहा था। की वो कितने गुस्से में है।

संध्या --"मैं भला, किसानों के पेट पर लात क्यूं मारने लगी। ये गांव वालो ने ही खुशी खुशी अपनी जमीनें दी है, कॉलेज बनवाने के लिए।"

ठाकुराइन का इतना बोलना था की, वहा खड़ा मंगलू अपने हाथ जोड़ते हुए झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"कैसी बात कर रही हो मालकिन, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने का यही तो एक मात्र सहारा है। हां माना की हम गांव वालो ने आपसे जो कर्जा लिया था, वोभिम चुका नही पाए। पर इसके लिए आपने हमारी जमीनों पर कॉलेज बनवाने लगी, ये तो अच्छी बात नहीं है ना मालकिन, थोड़ा सा और समय दे दीजिए मालकिन, हम अपना पूरा अनाज बेच कर के आपके करके चुका देंगे।"

ये कहें था मंगलू का की, सब गांव वाले हाथ जोड़ते हुए अपने घुटने पर बैठ कर ठाकुराइन से विनती करने लगे...

ये देख कर ठाकुराइन हड़बड़ा गई, इस बात पर नही की ये गांव वाले क्या कर रहे है? बल्कि इस बात पर , की गांव वाले जो भी कर रहे है, उससे अभय उसके बारे में कुछ गलत न सोच ले। एक बात तो तय थी, की अब संध्या अभय को अपने बेटे के रूप में देखने लगी थी। भले उसे अभी यकीन हुआ हो या नहीं। वो झट से घबराहट में बोली...

संध्या --"ये कैसी बाते कर रहे हो तुम मंगलू? मैने कभी तुम सब से पैसे वापस करने की बात नहीं की। और पैसों के बदले ज़मीन की बात तो मै कभी सोच भी नही सकती...

ये सब वहा खड़ा अभय ध्यान से सुन रहा था। और जिस तरह गांव वाले बेबस होकर हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठे थे , ये देख कर तो अभय का माथा ठनक गया। उसे अपनी मां पर इतना गुस्सा आया की वो अपने मन में ही हजारों बाते करने लगा।"

"जरूर इसी ने किया है ये सब, और अब सब गांव वालो के सामने इसकी बेइज्जती न हो इस लिए पलटी खा रही है, वैसे इस औरत से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? ये है ही एक कपटी औरत।"

ये सब बाते खुद से करते हुए अभय बोला...

अभि --"कमाल है मैडम, क्या दिमाग लगाया है, हजार रुपए का कर्जा और लाखो की वसूली, ये सही है।"

इतना कह कर अभि वहा से चल पड़ता है..., संध्या को जिस बात का डर था वही हुआ। अभय ने संध्या को ही इसका जिम्मेदार ठहराया। और ये बात संध्या के अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करने लगी...और वहा से जाते हुए अभी के सामने आकर खड़ी हो गई। संध्या को इस तरह अपने सामने आकर इतने पास खड़ी देख अभय का खून सुलग गया,।

संध्या --"मैं... मैं सच कह रही हूं, ये सब मैने नही किया है।"

कहते हुए संध्या ने अभि का हाथ पकड़ लिया। अपने हाथ को संध्या की हथेली में देख कर, अभि को न जाने क्या हुआ और गुस्से में संध्या का हाथ झटकते हुए बोला...

अभि --"आपने क्या किया है, क्या नही? उससे मुझे कोई लेना देना है, समझी आप। मैं तो यह आया था इन हरे भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बस। आप लोगो का नाटक देखने नही।"

कहते हुए अभि वहा से चला जाता है। संध्या का दिल एक बार फिर रोने लगा। वो अभी वही खड़ी अभय को जाते हुए देख रही थी। लेकिन जल्द ही अभि गांव वालो और संध्या की नजरों से ओझल हो चुका था।

संध्या भी वहा से जाते हुए, रमन से बोली...

संध्या --"रमन, ये काम रोक दो। अब यहां कोई कॉलेज नही बनेगा। और हां तुम हवेली आकार मुझसे मिलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

इतना कह कर संध्या वहा से चली गई...

रमन के होश तो छोड़ो, ये बात सुन कर उसकी दुनियां ही उजड़ गई हो मानो, ऐसा उसके चेहरे पर भाव था।



छोटा अपडेट देने के लिए सॉरी दोस्तो, पर ये वीक में थोड़ा busy hun, to please try to understand

Par update deta rahunga , Chhota hi sahi, story nahi rukegi...
Superb mindblowing update
 

brego4

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main story is developing between the son abhay and mother sandhya along with other family members of abhay so its going to be dramatic n emotionally taxing as well

other characters too like payal, ajay and villagers will provide other colors to the story

engrossing story in making
 

Studxyz

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Just joking stud Bhai, hogi hogi chudai hogi, thoda sa sabra

भाई लेखक जी उस हरामी रमन सिंह की संध्या के साथ चुदाई तो फ़्लैश बैक में भी ना दिखवा देना बहुत से पाठक भड़क और सुलग जायेंगे बस कहानी अपने हिसाब से छापते जाओ
 
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brego4

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भाई लेखक जी उस हरामी रमन सिंह की संध्या के साथ चुदाई तो फ़्लैश बैक में भी ना दिखवा देना बहुत से पाठक भड़क और सुलग जायेंगे बस कहानी अपने हिसाब से छापते जाओ

abhay sab se badley lete rahenga aur uski emotionally drained maa use indirectly aise hi support karti rahegi kyon ki ab bhi be wo sure nahi hai ki abhi hai to kon hai ?
 
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Thunderstorm

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ग्राउंड खचाखच भरा था, आस पड़ोस के गांव भी क्रिकेट का वो शानदार खेल देखने आए थे।ये कोई ऐसा वैसा खेल नही था। ये खेल ठाकुरों और गांव के आम लोगो के बीच का खेल था।

खेल में 15 से 17 साल के युवा लडको ने भाग लिया था। कहा एक तरफ ठाकुर अमन सिंह अपने टीम का कप्तान था। तो वही दूसरी तरफ भी अमन के हमउम्र का ही एक लड़का कप्तान था, नाम था अजय। खेल शुरू हुई, दोनो कप्तान ग्राउंड पर आए और निर्धारक द्वारा सिक्का उछाला गया और निर्दय का फैसला अमन के खाते में गया।

अमन ने पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया। अजय की ने अपनी टीम का क्षेत्र रक्षण अच्छी तरह से लगाया। मैच स्टार्ट हुए, बल्लेबाजी के लिए पहले अमन और सरपंच का लड़का सुनील आया। शोरगुल के साथ मैच आरंभ हुआ ।

अमन की टीम बल्लेबाजी में मजबूत साबित हो रही थी, अमन एकतरफ से काफी अच्छी बल्लेबाजी करते हुए अच्छे रन बटोर रही थी। वही अमन किंशनदार बल्लेबाजी पर लोगो की तालिया बरस रही थी, और सबसे ज्यादा taliyo की गूंज संध्या सिंह की तरफ से पद रहे थे, देख कर ऐसा लग रहा था मानो संध्या के हाथ ही नही रुक रहे थे। चेहरे पर की खुशी साफ दिख रही थी। तालिया को पिटती हुई जोर जोर से चिल्ला कर वो अमन का हौसला अफजाई भी कर रही थीं। गांव के औरतों की नज़रे तो एक पल के लिए मैच से हटकर संध्या पर ही अटक गई।

मैच देख रही गांव की औरतों के झुंड में से एक औरत बोली।

"जरा देखो तो ठाकुराइन को, देखवकर लगता नही की बेटे के मौत का गम है। कितनी खिलखिला कर हंसते हुए तालिया बजा रही है।"

पहेली औरत की बात सुनकर , दूसरी औरत बोली...

"अरे शांति, जैसे तुझे कुछ पता ही न हो, अभय बाबा तो नाम के बेटे थे ठाकुराइन के, पूरा प्यार तो ठाकुराइन इस अमन पर ही लुटती थी, अच्छा हुआ अभय बाबा को भगवान का दरबार मिल गया। इस हवेली में तो तब तक ही सब कुछ सही था जब तक बड़े मालिक जिंदा थे।"

शांति --"सही कह रही है तू निम्मो,, अच्छे और भले इंसान को भगवान जल्दी ही बुला लेता है। अब देखो ना , अभय बाबा ये जाति पति की दीवार तोड़ कर हमारे बच्चो के साथ खेलने आया करते थे। और एक ये अमन है, इतनी कम उम्र में ही जाति पति का कांटा दिल और दिमाग में बो कर बैठा है।"

गांव की औरते यूं ही आपस में बाते कर रही थी, और इधर अमन 100 रन के करीब था। सिर्फ एक रन से दूर था। अगला ओवर अजय का था, तो इस समय बॉल उसके हाथ में था। अजय ने अपने सभी साथी खिलाड़ियों को एकत्रित किया था और उनसे कुछ तो बाते कर रहा था, या ये भी कह सकते हो की कप्तान होने के नाते अपने खिलाड़ी को कुछ समझा रहा था। तभी अमन अपने अहंकार में चूर अजय के गोल से होते हुए, बैटिंग छोर की तरफ जा रहा था , तभी वो अजय को देखते हुए बोला...

अमन --"बेटा अभी जा जाकर सिख, ये क्रिकेट का मैच है। तुम्हारे बस का खेल नही है।"

अमन की बात सुनकर अजय ने बाउल उछलते और कैच करते हुए उसकी तरफ बढ़ा और अमन के नजदीक आकर बोला...

अजय --"क्यूं? मुझसे दर लग रहा है क्या तुझे?"

अजय की तू तड़क वाली बात सुनकर, अमन को गुस्सा आ गया, और क्रिकेट पिच पर ही अजय का कूलर पकड़ लिया। में का ये रवैया देख कर सब के सब असमंजस में पड़ गए , गांव के बैठे हुए लोग भी अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, संध्या के साथ साथ बाकी बैठे उच्च जाति के लोग भी हक्का बक्का गए की ये अमन क्या कर रहा , झगड़ा क्यूं कर रहा है?

लेकिन तब तक मैच के निर्धारक वहा पहुंच कर अमन को अजय से दूर ले जाते है। अजय को गुस्सा नही आया बल्कि वो अभी भी अपने बॉल को उछलते और कैच करते अमन की तरफ देखकर मुस्कुरा रहा था।

मैच शुरू हुई, पहेली परी का अंतिम ओवर था जो अजय फेंक रहा था। अजय ने पहला बॉल डाला और अमन ने बल्ला घुमाते हुए एक शानदार शॉट मारा और गेंद ग्राउंड के बाहर, और इसी के साथ अमन का 100 रन पूरा हुआ। अमन अपनी मेहनत का काम पर अहंकार का कुछ ज्यादा ही प्रदर्शन कर रहा था। और एक तरफ अमन के 100 रन पूरा करने की खुशी संध्या से मानो पच ही नही रही थी। खड़ी होकर इस तरह तालिया पीट रही थी , मानो हथेली ही न टूट जाए। गांव वाले भी अमन के अच्छे खेल पर उसके लिए तालिया से सम्मान जाता रहे थे।

पहेली परी का अंत हो चुका था 15 ओवर के मैच में 170 रन का लक्ष्य मिला था अजय की टीम को।

परी की शुरुआत में अजय और उसका एक साथी खिलाड़ी आए। पर नसीब ने धोखा दिया और पहले ओवर की पहली गेंद पर ही अमन ने अजय की खिल्ली उड़ा दी। गांव वालो का चेहरा उदास हो गया। क्युकी अजय ही 3k matra Aisa खिलाड़ी था जो इतने विशाल लक्ष्य को हासिल कर सकता था। अजय के जाते ही अजय के टीम के अन्य खिलाड़ी में आत्मविश्वास की कमी ने अपना पैर पसार दिया। और देखते ही देखते एक एक करके उनके विकेट गिरते चले गए।

मात्र 8 ओवर के मैच में ही अजय की टीम ऑल आउट हो गई और बेहद ही बुरी तरह से मैच से पराजित हुए। अजय के चेहरे पर पराजय की वो लकीरें साफ उमड़ी हुई दिख रही थी। वो काफी हताश था, जो गांव वाले उसके चेहरे को देख कर ही पता लगा चुके थे। अजय गुमसुम सा अपने चेहरे को अपनी हथेलियों में छुपाए नीचे मुंह कर कर बैठा था। अजय की ऐसी स्थिति देख कर गांव वालो का भी दिल भर आया। क्योंकि अजय ने मैच को जीतने के लिए काफी अभ्यास किया था। पर नतीजन वो एक ओवर भी क्रीच पर खड़ा ना हो सका जिसका सामना उसे मैच की पराजय से करना पड़ा।

कोई कुछ नही बोल रहा था। अजय का तकलीफ हर कोई समझ सकता था। मैच का समापन हो चुका था। अमन को उसकी अच्छे प्रदर्शन के लिए पुरस्कृत किया गया। वो भी गांव की ठाकुराइन संध्या के हाथों। एक चमचमाती बाइक की चाभी संध्या के खूबसूरत हाथो से अमन को पुरस्कृत किया गया। में को पुरस्कृत करते हुए संध्या के मुख से निकला...

संध्या --"शाबाश...

अमन ने खुशी खुशी बाइक चाभी को लेते हुए अपने हाथ को ऊपर उठाते हुए अपने पुरस्कार की घोड़ा की ।


_______________________

शाम के 6 बाज रहे थे। अभि घर के कमरे के अंदर से बाहर निकलते हुए हॉल में आकर बैठ गया और tv देखने लगा। तभी वह रेखा भी आ जाति है। रेखा भी अभि के बगल के बैठते हुऐ बोली...

रेखा --" क्या बात है अभि? आज तुम कुछ ज्यादा ही खुश लग रहे हो।"

रेखा की बात सुनकर अभि उसकी तरफ मुस्कुराते हुए देख कर बोला...

अभि --"हा आंटी, आपको पता है, आज मेरे स्कूल यह के एम एल ए आए थे और उन्होंने ये घोड़ा की है की जो भी स्टूडेंट इस वर्ष अच्छे मार्क्स से पास होगा वो उस स्टूडेंट की आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा सम्हालेंगे।"

रेखा --"अरे वाह! ये तो सच में बहुत अच्छी खबर है, और मुझे पता है की मेरा अभि ही इस साल अच्छे नंबर से पास होगा।"

अभि --"अच्छे मार्क्स के बारे में किसको पता आंटी, पर गुरु जी कहते थे , की आज के ऊपर ध्यान दोगे तो तुम्हारा कल बेहतर होगा। और कल के बारे में सोचो कर बैठोगे तो तुम्हारा कुछ नही होगा। तो मुझे नही पता की मैं कितने मार्क्स लाऊंगा , बस पता हैब्तो इतना की अगर आज मैंने जमकर पढ़ाई की तो कल मेरा बेहतर होगा। और तो और अब तो मुझे काम भी मील गया है। बस ऊपर walanisintarah मेहनत करने का मौका देते रहे बस।"

रेखा --"तू सच में सबसे अलग है अभि, तू अलबेला है अलबेला।"

रेखा की बात सुनकर अभि मुस्कुराते हुए बोला...

अभि --"जो जिंदगी से खेला है वही तो अलबेला है। ऐसा मेरे पापा कहते थे। अच्छा आंटी मैं बाजार की तरफ जा रहा ही कुछ लाना है तो बोल दी, आते वक्त लेते आऊंगा।"

रेखा ने अभि को एक गहरी नज़र से देखते हुए बोली...

रेखा --"चाहिए तो था पर तू la nahi पाएगा!"


अभि --"क्यूं? ज्यादा भरी है क्या?"

ये सुनकर रेखा मुस्कुराते हुए.....

रेखा --"उम्म्म, भारी तो नही है, पर तेरी उम्र के हिसाब से भरी ही है समझ ले।"

ये सुन कर अभि भी थोड़ा मुस्कुरा पड़ा, शायद उसके दिमाग ने भी कुछ समझा ।

रेखा --" क्या हुआ ? तू मुस्कुरा क्यूं रहा है?"

अभि कुछ नही बोलता बस मुस्कुराते हुए घर से बाहर नकल जाता है। रेखा के भी चेहरे पर इस वक्त मुस्कान की लकीरें उमड़ी पड़ी थी, और जैसे ही अभि उसकी आंखो से ओझल हुआ।

रेखा --" बदमाश कही का, सब समझता है बस भोला बना बैठा है। मेरा लल्ला।"

कहते है ना , जब किस्मत मेहरबान होती है तो लोगो के हाथो से अच्छे काम ही होते है, वो उस समय सिर्फ अच्छी बाते सोचता है और उसके साथ अच्छा ही होता है। वही हुआ हमारे अभि के साथ भी। पूरी लगन के साथ पढ़ाई और काम दोनो किया उसने , 10 वि का एग्जाम्स दे कर काफी अच्छे मार्क्स से पास हुआ । और इधर एम एल ए के घोड़ा अनुसार, अभय को पुरस्कृत करते हुए आगे की पढ़ाई का पूरा खर्चा देने का वादा भी निभाया। सरस्वती ध्यान सागर के ट्रस्ट द्वारा अभि को आगे की पढ़ाई के लिए एक अच्छे कॉलेज में एडमिशन मिल गया।

______&&_________&&_____

इधर गांव में रमन ने जोर शोरो से कॉलेज की नीव खड़ी कर दी थी। देख कर ही लग रहा था की काफी भव्य कॉलेज का निर्माण हो होने वाला था। वैसे भी रमन ने डिग्री कॉलेज की मान्यता लेने की सोची थी तो कॉलेज भी उसी के अनुसार भी तो होगी।

जहा एक तरफ संध्या का प्यार अमन के लिए दिन दुगनी रात चुगनी हो रही थी तो, वही अमन एक तरफ अहंकार की आंधी में उड़ रहा था। अब अमन भी 11 वि में प्रवेश कर चुका था।

संध्या अब अमन को ही अपना बेटा मां कर जीने लगी थी। अब तो मालती के ताने भी उसे सिर्फ हवा ही लगते थे। जिसकी वजह से मालती भी अपने आज में जीने लगी थी। और वो भी अभय की यादों से दूर होती जा रही थी। अभय अब उस हवेली के लिए बस एक नाम बनकर रह गया था। जो कभी कभी ही यादों में आता था। शायद संध्या को लग चुका था की अब रोने गाने से कुछ फर्क पड़ने वाला तो है नही, अभय अब तो वापस आने से रहा । इसीलिए वो भी उसकी यादों से तौबा कर चुकी थी।

और होता भी यही है, कब तक कोई किसी को याद करता रहेगा, कब तक कोई किसी के लिए आसूं बहायेगा? समय के साथ तो लस्सी भी पत्थर को काट देती है, तो संध्या का तो सिर्फ जख्मी दिल था, जिस मरहम बना अमन का प्यार, और बस अभय की यादें किसी गुमनामी के अंधेरे में भटक कर रह गया।

अभय की यादें गुमनामी में भटक रहा था, मगर अभय नही। शायद इन बहन के लौड़ों को नही पता था। खैर वो तो वक्त ही बताएगा की गुमनामी में कौन जीने वाला है , अभय या हवेली के चमकते सितारे। क्योंकि अभय को तो रात के अंधेरे में चमकता सितारा नही, दिन में चमक रहे सूर्य की भाटी जीने में मजा आता है।


दोस्तो इस पार्ट में इतना ही, i know ki update thoda slow aur Chhota hai, but samay ke saath saath vo bhi thik ho jayega , tab tak pls understadnd....
Maja aa gya bhai ,last paragraph padh ke BKL wala 🙂
 

King78

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अपडेट 14


आज संध्या अपने आप में टूट सी गई थी, वो कुछ भी नही समझ पा रही थी की, वो क्या करे ? और क्या न करे?उसकी से आंखो से बह रहे आंसुओ की धारा को समझने वाला कोई नहीं था। कोई था भी, तो वो था सिर्फ उसका दिल। वैसे देखा जाए तो सही भी था। क्युकी इसकी जिम्मेदार वो खुद थी।

सोफे पर बैठी मन लगा कर रो रही संध्या, बार बार गुस्से में अपने हाथ को सोफे पर मारती। शायद उसे खुद पर गुस्सा आ रहा था। पर वो बेचारी कर भी क्या सकती थी? रोती हुई संध्या अपने कमरे में उठ कर जा ही रही थी की, वो कॉन्ट्रैक्टर वहा पहुंच गया...


"नमस्ते ठाकुराइन..."

संध्या एक पल के लिए रुकी पर पलटी नही, वो अपनी साड़ी से बह रहे अपनी आंखो से अंसुओ को पहले पोछती है , फिर पलटी...

संध्या --"अरे सुजीत जी, आप यहां, क्या हुआ काम नहीं चल रहा है क्या कॉलेज का?"

तो उस कॉन्ट्रैक्टर का नाम सुजीत था,

सुजीत --"अरे ठाकुराइन जी, हम तो अपना काम ही कर रहे थे। पर न जाने कहा से एक छोकरा आ गया। और मजदूरों को काम करने से रोक दिया।"

संध्या --"क्या बात कर रहे हो सुजीत जी, एक छोकरा मजाक आकर आप लोगो से मजाक क्या कर दिया, आप लोग दर गए?"

सुजीत --"मैने भी उस छोकरे से यही कहा था ठाकुराइन, की क्या मजाक कर रहा है छोकरे? तो कहता है, अक्सर मुझे जानने वालों को लगता है की मेरा मजाक सच होता है। फिर क्या था मजदूरों के हाथ से फावड़ा ही छूट गया, क्यूंकि उसने कहा था की अगर अब एक भी फावड़ा इस खेत में पड़ा तो दूसरा फावड़ा तुम लोगो के सर पर पड़ेगा।"

उस कॉन्ट्रैक्टर की मजाक वाली बात पर संध्या का जैसे ही ध्यान गया, वो चौंक गई, क्युकी यही मजाक वाली बात का ठीक वैसा ही जवाब अभय ने भी संध्या को दिया था। संध्या के होश उड़ चुके थे, और वो झट से बोल पड़ी...

सांध्य --"ठीक है, आ...आपने कुछ किया तो नही ना उसे?

सुजीत --"अरे मैं क्या करता ठाकुराइन? वो नही माना तो, मैने उसको बोला की तू रुक अभि ठाकुर साहब को बुला कर लाता हूं।"

संध्या --"फिर, उसने क्या कहा?"

सुजीत --"अरे बहुत ही तेज मालूम पड़ता है वो ठाकुराइन, बोला की रानी को बुला कर ला, ये प्यादे मेरा कुछ नही बिगाड़ पाएंगे।"

ये सुनकर, संध्या के चेहरे पर ना जाने क्यूं हल्की सी मुस्कान फैल गई, जिसे उस कॉन्ट्रैक्टर ने ठाकुराइन का चेहरा देखते हुए बोला...

सुजीत --"कमाल है ठाकुराइन, कल का छोकरा आपका काम रुकवा दिया, और आप है की मुस्कुरा रही है।"

कॉन्ट्रैक्टर की बात सुनकर, संध्या अपने चेहरे की मुस्कुराहट को सामान्य करती हुई कुछ बोलने ही वाली थी की...

"अरे, सुजीत जी आप यहां। क्या हुआ काम शुरू नही किया क्या अभि तक?"

ये आवाज सुनते ही, कॉन्ट्रैक्टर और संध्या दोनो की नजरे us आवाज़ का पीछा की तो पाए की ये रमन सिंह था।

सुजीत --"काम तो शुरू ही किया था ठाकुर साहब, की तभी न जाने कहा से एक छोकरा आ गया, और काम ही रुकवा दिया।"

ये सुनकर रमन के चेहरे पर गुस्से की छवि उभरने लगी...

रमन --"क्या!! एक छोकरा?"

सुजीत --"हां, ठाकुर साहब,, इसी लिए तो मैं ठाकुराइन के पास आया था।"

रमन --"ऐसे लिए, भाभी के पास आने की क्या जरूरत थी? मुझे फोन कर देते, मैं मेरे लट्ठहेर भेज देता। जहा दो लाठी पड़ती , सब होश ठिकाने आ जाता उसका जा..."

"जबान संभाल के रमन..."

संध्या थोड़ा गुस्से में रमन की बात बीच में ही काटते हुए बोली। जिसे सुनकर रमन के चेहरे के रंग बेरंग हो गए। और असमंजस के भाव में बोला।

रमन --"भाभी, ये क्या कह रही हो तुम?"

संध्या --"मैं क्या कह रही हूं उस पर नही, तुम क्या कह रहे हो उस पर ध्यान दो। तुम एक लड़के को बिना वजह लट्ठहेरो से पिटवावोगे। यही काम बचा है अब।"

रमन तो चौकाने के सिवा और कुछ नही कर पाया, और झट से बोल पड़ा...

रमन --"बिना वजह, अरे वो छोकरा काम रुकवा दिया, और तुम कह रही हो की बिना वजह।"

संध्या --"हां, पहले चल कर पता तो करते है, की उसने आखिर ऐसा क्यूं किया। समझाएंगे, मान जायेगा। और तुम सीधा लाठी डंडे की बात करने लगे। ये अच्छी बात नहीं है ना। चलो सुजीत जी मै चलती हूं।"

और फिर संध्या कॉन्ट्रैक्टर के साथ, हवेली से बाहर जाने लगती है। एक पल के लिए तो रमन अश्र्याचकित अवस्था में वही खड़ा रहा, लेकिन जल्द ही वो भी उन लोगो के पीछे पीछे चल पड़ा...

गांव की भरी भरकम भीड़ उस खेत की तरफ आगे बढ़ रही थी। और एक तरफ से ठाकुराइन भी अपनी कार में बैठ कर निकल चुकी थीं। जल्द दोनो पलटन एक साथ ही उस खेत पर पहुंची। संध्या कार से उतरते हुए गांव वालो की इतनी संख्या में भीड़ देख कर रमन से बोली...

संध्या --"ये गांव वाले यहां क्या कर रहे है?"

संध्या की बात सुनकर और गांव वालो की भीड़ को देख कर रमन को पसीने आने लगे। रमन अपने माथे पर से पसीने को पोछत्ते हुए बोला...

रमन --"प...पता नही भाभी, व...वही तो देख कर मैं भी हैरान हूं।"

संध्या अब आगे बढ़ी और उसके साथ साथ कॉन्ट्रैक्टर और रमन भी। नजदीक पहुंचने पर संध्या को, अभय दिखा। जो अपने कानो में इयरफोन लगाए गाना सुन रहा था। और अपनी धुन में मस्त था। अभय को पता ही नही था की, पूरी गांव के साथ साथ ठाकुराइन और ठाकुर भी आ गए थे।

गांव वालो ने अभय को देखते ही रह गए। वही अजय की भी नजरे अभय के ऊपर ही थी। पर अभय अपनी मस्ती में मस्त गाने सुन रहा था।

रमन --"वो छोकरे, कौन है तू? और काम क्यूं बंद करा दिया?"

अभय अभि भी अपनी मस्ती में मस्त गाने सुनने में व्यस्त था। उसे रमन की बात सुनाई ही नही पड़ी। ये देख कर रमन फिर से बोला...

रमन --"वो छोरे.....सुनाई नही दे रहा है क्या?"

ये सुनकर अजय हंसते हुए बोला...

अजय --"अरे क्या ठाकुर साहब आप भी? आप देख नही रहे हो की उसने अपने कान में इयरफोन लगाया है। कैसे सुनेगा?"

ये सुनकर सब गांव वाले हंसने लगे, ठाकुराइन भी थोड़ा हस पड़ी। ये देख कर रमन गुस्से में आगे बढ़ा और अभय के नजदीक पहुंच कर उसके कान से इयरफोन निकालते हुए बोला...

रमन --"यहां नाटक चल रहा है क्या? कौन है तू? और काम रुकवाने की तेरी हिम्मत कैसे हुई?"

रमन की तेज तर्रार बाते संध्या के दिल में चुभ सी गई... और वो भी गुस्से में बड़बड़ाते हुए बोली...

संध्या --"रमन!! पागल हो गए हो क्या, आराम से बात नहीं कर सकते हो क्या। तुम चुप रहो, मैं बात करती हूं।"

रमन को शॉक पे शॉक लग रहे थे। वो हैरान था, और समझ नही पा रहा था की आखिर संध्या इस लड़के के लिए इतनी हमदर्दी क्यूं दिखा रही है। ये सोचते हुए रमन वापस संध्या के पास आ गया।

और इधर संध्या भी अपने आप से बाते करने लगी थी...

"ही भगवान, ना जाने क्यूं मेरा दिल कह रहा है की, यही मेरा अभय है। मेरी धड़कने मुझे ये अहसास करा रही है की यही मेरा अभि है। पर मेरा दिमाग क्यूं नही मान रहा है? वो लाश, इस दिन फिर वो लाश किसकी थी। मैं तो उस लाश को भी नही देख पाई थी, हिम्मत ही नहीं हुई। फिर आज ये सामने खड़ा लड़का कौन है? क्यूं मैं इसके सामने पिघल सी जा रही हूं? मुझे तो कुछ भी समझ में नहीं आवरा है भगवान, तू ही कोई रास्ता दिखा, क्या मेरा दिल जो कह रहा है वही ठीक है? क्या ये मेरा अभय ही है? क्या ये अपनी मां की तड़पते दिल की आवाज सुन कर आया है। अगर ऐसा है तो...."

"अरे मैडम, थोड़ा जल्दी बोलो, रात भर सोया नही हूं नींद आ रही है मुझे।"

संध्या अभि खुद से ही बाते कर रही थी की ये आवाज उसके कानो के पड़ी...वो सोच की दुनिया से बाहर निकलते हुए असलियत में आ चुकी थी, और अभय की बात सुनते हुए हिचकिचाते हुए बोली...

संध्या --"म... म..में कह रही थी की, ये काम तुमने क्यूं रुकवा दिया?"

ठाकुराइन की हिचकिचाती आवाज किसी को रास नहीं आई, गांव वाले भी हैरान थे , की आखिर ठाकुराइन इतनी सहमी सी क्यूं बात कर रही है?

और सब से ज्यादा चकित था रमन सिंह, वो तो अपनी भाभी का नया रूप देख रहा था। मानो वो एक प्रकार से सदमे में था। अभय बात तो कर रहा था ठाकुराइन से, मगर उसकी नजरे गांव वालोंकी तरफ था। उसकी नजरे किसी को देख ढूंढ रही थी शायद, गांव के बुजुर्ग और अधेड़ को तो उसके सब को पहेचान लिया था। पर अभी भी उसके नजरो की प्यास बुझी नही थी, शायद उसकी नजरों की प्यास बुझाने वाला उस भीड़ में नही था। अभय मान करते हुए अपनी मां से बोला...

अभय --"भला, मेरी इतनी औकात कहां की, मैं ये काम रुकवा सकूं मैडम। मैं तो बस इन मजदूरों को ये हरे भरे पेड़ो को कटने से मना किया था बस। और वैसे भी, आप ही समझिए ना मैडम, अच्छी खासी उपजाऊ जमीन पर कॉलेज बनवा कर, इन बेचारी किसानों के पेट पर लात क्यूं मार रही हो?"

अभय की प्यार भरी मीठी सी आवाज सुन कर, संध्या का दिल खुशी से अंदर ही अंदर झूम उठा। और इधर गांव वाले भी अभय को उनके हक में बात करता देख इसे मन ही मन दुवाएं देने लगे थे। पर एक सख्श था। जिसके मन में अधियां और तूफ़ान चल रहा था। और वो था रमन, उसकी जुबान तो कुछ नही बोल रही थी, पर उसका चेहरा सब कुछ बयां कर रहा था। की वो कितने गुस्से में है।

संध्या --"मैं भला, किसानों के पेट पर लात क्यूं मारने लगी। ये गांव वालो ने ही खुशी खुशी अपनी जमीनें दी है, कॉलेज बनवाने के लिए।"

ठाकुराइन का इतना बोलना था की, वहा खड़ा मंगलू अपने हाथ जोड़ते हुए झट से बोल पड़ा...

मंगलू --"कैसी बात कर रही हो मालकिन, हमारा और हमारे परिवार का पेट भरने का यही तो एक मात्र सहारा है। हां माना की हम गांव वालो ने आपसे जो कर्जा लिया था, वोभिम चुका नही पाए। पर इसके लिए आपने हमारी जमीनों पर कॉलेज बनवाने लगी, ये तो अच्छी बात नहीं है ना मालकिन, थोड़ा सा और समय दे दीजिए मालकिन, हम अपना पूरा अनाज बेच कर के आपके करके चुका देंगे।"

ये कहें था मंगलू का की, सब गांव वाले हाथ जोड़ते हुए अपने घुटने पर बैठ कर ठाकुराइन से विनती करने लगे...

ये देख कर ठाकुराइन हड़बड़ा गई, इस बात पर नही की ये गांव वाले क्या कर रहे है? बल्कि इस बात पर , की गांव वाले जो भी कर रहे है, उससे अभय उसके बारे में कुछ गलत न सोच ले। एक बात तो तय थी, की अब संध्या अभय को अपने बेटे के रूप में देखने लगी थी। भले उसे अभी यकीन हुआ हो या नहीं। वो झट से घबराहट में बोली...

संध्या --"ये कैसी बाते कर रहे हो तुम मंगलू? मैने कभी तुम सब से पैसे वापस करने की बात नहीं की। और पैसों के बदले ज़मीन की बात तो मै कभी सोच भी नही सकती...

ये सब वहा खड़ा अभय ध्यान से सुन रहा था। और जिस तरह गांव वाले बेबस होकर हाथ जोड़े अपने घुटनों पर बैठे थे , ये देख कर तो अभय का माथा ठनक गया। उसे अपनी मां पर इतना गुस्सा आया की वो अपने मन में ही हजारों बाते करने लगा।"

"जरूर इसी ने किया है ये सब, और अब सब गांव वालो के सामने इसकी बेइज्जती न हो इस लिए पलटी खा रही है, वैसे इस औरत से उम्मीद भी क्या की जा सकती है? ये है ही एक कपटी औरत।"

ये सब बाते खुद से करते हुए अभय बोला...

अभि --"कमाल है मैडम, क्या दिमाग लगाया है, हजार रुपए का कर्जा और लाखो की वसूली, ये सही है।"

इतना कह कर अभि वहा से चल पड़ता है..., संध्या को जिस बात का डर था वही हुआ। अभय ने संध्या को ही इसका जिम्मेदार ठहराया। और ये बात संध्या के अंदर चिड़चिड़ापन पैदा करने लगी...और वहा से जाते हुए अभी के सामने आकर खड़ी हो गई। संध्या को इस तरह अपने सामने आकर इतने पास खड़ी देख अभय का खून सुलग गया,।

संध्या --"मैं... मैं सच कह रही हूं, ये सब मैने नही किया है।"

कहते हुए संध्या ने अभि का हाथ पकड़ लिया। अपने हाथ को संध्या की हथेली में देख कर, अभि को न जाने क्या हुआ और गुस्से में संध्या का हाथ झटकते हुए बोला...

अभि --"आपने क्या किया है, क्या नही? उससे मुझे कोई लेना देना है, समझी आप। मैं तो यह आया था इन हरे भरे पेड़ों को कटने से बचाने के लिए बस। आप लोगो का नाटक देखने नही।"

कहते हुए अभि वहा से चला जाता है। संध्या का दिल एक बार फिर रोने लगा। वो अभी वही खड़ी अभय को जाते हुए देख रही थी। लेकिन जल्द ही अभि गांव वालो और संध्या की नजरों से ओझल हो चुका था।

संध्या भी वहा से जाते हुए, रमन से बोली...

संध्या --"रमन, ये काम रोक दो। अब यहां कोई कॉलेज नही बनेगा। और हां तुम हवेली आकार मुझसे मिलो मुझे तुमसे कुछ बात करनी है।"

इतना कह कर संध्या वहा से चली गई...

रमन के होश तो छोड़ो, ये बात सुन कर उसकी दुनियां ही उजड़ गई हो मानो, ऐसा उसके चेहरे पर भाव था।



छोटा अपडेट देने के लिए सॉरी दोस्तो, पर ये वीक में थोड़ा busy hun, to please try to understand

Par update deta rahunga , Chhota hi sahi, story nahi rukegi...
Super👍
 

Hemantstar111

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भाई लेखक जी उस हरामी रमन सिंह की संध्या के साथ चुदाई तो फ़्लैश बैक में भी ना दिखवा देना बहुत से पाठक भड़क और सुलग जायेंगे बस कहानी अपने हिसाब से छापते जाओ

Incest lover wale ma ko baap ke saath bhi bardasht nahi kar pate to chacha mama aa jaye to tufaan uthane lag jayega
 

Studxyz

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Incest lover wale ma ko baap ke saath bhi bardasht nahi kar pate to chacha mama aa jaye to tufaan uthane lag jayega

पर इस कहानी का शीर्षक अडल्ट्री प्लस इन्सेस्ट है तो लेखक के लिए यहाँ काफ़ी अज़ादी रहेगी वो जैसे चाहे कहानी लिख सकता है
 

Hemantstar111

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पर इस कहानी का शीर्षक अडल्ट्री प्लस इन्सेस्ट है तो लेखक के लिए यहाँ काफ़ी अज़ादी रहेगी वो जैसे चाहे कहानी लिख सकता है

Ha vo to hai, par Sandhya par mujhe bhi gussa aa raha hai, jo bhi usne abhay ke saath kiya, dekhte hai kahani me kaun kiski leta hai, Sandhya ka kuchh pata nahi uski ab gili bhi hogi ya nahi, kyunki jyadatar ab uski aankhe hi gili rahne wali hai, niche ka usne to Raman ke saath bhar bhar ke gili ki hai
 
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