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Thriller "विश्वरूप"

Kala Nag

Mr. X
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Jaguaar

Prime
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👉एक सौ बाईसवां अपडेट
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राजगड़ में नर्म धूप खिल रही थी l पुरा गाँव अपने अपने तरीके से व्यस्त हो गया था l विश्व अपने घर के आँगन में दंड पेल रहा था l कुछ देर बाद टीलु हाथ में अखबार लेकर पहुँचता है l विश्व एक नजर टीलु की ओर देखता है और फिर वापस दंड पेलने लगता है l

टीलु - क्या कर रहे हो भाई...
विश्व - आँखे फुट गई हैं क्या... नहीं दिख रहा...
टीलु - क्या हुआ है भाई... थोड़े उखड़े हुए लग रहे हो...
विश्व - आदत... छूट ना जाए... इसलिये... पुरानी आदत डाल रहा हूँ...
टीलु - (मुस्कराते हुए) सुबह सुबह उखड़े हुए हो... ही ही ही.... लगता है भाभी ने फोन नहीं किया...
विश्व - (थोड़े गंभीर आवाज़ में) कोई खास खबर...
टीलु - आप बताओ... आज आपके साथ... क्या हो गया है...

विश्व अपना दंड बंद करता है, और एक टावल से अपना पसीना पोछने लगता है l हाथ बढ़ा कर इशारे से टीलु से अख़बार माँगता है l

टीलु - (अखबार देते हुए) क्या भाई... मुझसे नाराज हो...
विश्व - सॉरी... मेरे भाई... सॉरी... तुम पर तो कभी गुस्सा हो ही नहीं सकता...
टीलु - तो फिर...
विश्व - तुमने सच कहा... तुम्हारी भाभी ने आज मुझे जगाया नहीं है...
टीलु - भूली तो नहीं होंगी... पर हो सकता है... कोई बात ऐसी हो गई हो... के...

विश्व अखबार को सीधा कर झाड़ते हुए मुख्य पृष्ठा पर नजर डालते ही भवें तन जाती है l जिसे देख कर टीलु की बात आधी रह गई थी l

टीलु - क्या.. क्या ख़बर है... भाई...

विश्व टीलु को अखबार को टीलु की ओर बढ़ा देता है l मुख्य पृष्ठ पर देखता है l हेड लाइन थी l ओडिशा के सबसे बड़ी निजी सिक्युरिटी संस्था ESS के बड़े और संस्थापक प्रमुख अधिकारी श्री अशोक महांती जी की कल रात कर दुर्घटना में मृत्यु l

टीलु - ओ... यह तो उनके मुलाजिम होंगे... क्या इनकी मौत से...
विश्व - मैंने तुम्हें यह नहीं दिखाया.... यह पेपर तुमने खरीद कर लाए... या किसी की उठा कर लाए....
टीलु - क्या भाई मेरी इज़्ज़त दो कौड़ी की कर रहे हो.... वह भी इस पाँच रुपये के अखबार के लिए...
विश्व - तो फिर इसके कुछ एक पेज पर पेंसिल से कुछ नंबर क्यूँ लिखा हुआ है.... कल वाले पेपर में भी वही था...
टीलु - क्या... (चौंक कर) भाई... वह सुबह जैसे ही मुझे देखता है... अख़बार मेरे हाथों में थमा देता है.... और मैं बिना देखे तुम्हारे हवाले कर देता हूँ...
विश्व - (थोड़ा हैरान होता है) मतलब तुमने सीधे दुकान से ली....
टीलु - हाँ.....

विश्व टीलु की हाथ से दोबारा अख़बार लेता है और गौर से देखता है, पेंसिल में पहले पन्ने पर 16/5⬇️10➡️2 🔘लिखा हुआ था l वैसे ही दुसरे तीसरे पन्ने पर पेंसिल से नंबर अजीब तरह से लिखा हुआ था l विश्व घर के अंदर जाता है बीते दिन की अखबार को लाता है l वह देखता है उस अखबार के सारे पन्नों पर इसी तरह से अजीब नंबर लिखे हुए हैं l विश्व कुछ सोचता है फिर अंदर जा कर एक डायरी और पेन लाता है l कुछ देर तक दोनों अखबार के पन्ने पलट पलट कर पढ़ कर डायरी में लिखने लगता है l

विश्व - ओ तो बात यह है....
टीलु - (अब तक विश्व को पागलों की तरह देख रहा था) क्या क्या हुआ भाई... कुछ गड़बड़ है क्या....
विश्व - नहीं... अब समझ में आया... वह चौथा कौन है... जो हम पर नजर रखे हुए है...
टीलु - क्या... यह तो बहुत बड़ी गडबड़ी है... क... कौन है भाई...
विश्व - नहीं... गड़बड़ तो नहीं... पर कोई है... जो हमसे कॉन्टेक्ट करना चाहता है... हम से कम्युनिकेट करना चाहता है...
टीलु - तुमको कैसे पता चला....
विश्व - (उसे दिखाता है) यह देखो... 16/5⬇️10➡️2 🔘 इसका मतलब हुआ... सोलहवां पन्ना... पाँचवी कॉलम... दसवीं लाइन की दुसरी शब्द... जिसके ऊपर पेंसिल से गोल घुमाया गया है... और वह शब्द है हैलो.... और उसी पन्ने के ऊपर किसी और पन्ने का पता अनुरुप कॉलम और लाइन और शब्द... सब जोड़ दिया तो मुझे कल के अखवार में... यह मैसेज मिला...
"हैलो विश्व... क्या हम मिल सकते हैं... राजा के खिलाफ... मदत तुम्हें मिल सकता है..."
और आज... मुझे इस अखबार में यह मैसेज मिला...
" राजा से कैसे लड़ोगे... तुम्हारे काम आ सकते हैं... क्या मिलना हमारा हो पायेगा....

टीलु बेवक़ूफ़ों की तरह अपना मुहँ फाड़े कभी विश्व को और कभी विश्व के विश्लेषण देख रहा था l विश्व टीलु की ओर देखता है और उसके हाव भाव देख कर

विश्व - क्या हुआ.. ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
टीलु - भाई... माना के तुम्हारा दिमाग बहुत चलता है... पर यह कोई ट्रैप भी तो हो सकता है...
विश्व - हाँ हो तो सकता है...
टीलु - तो...
विश्व - पर आजमाना तो पड़ेगा....
टीलु - कैसे... तुम उससे मिलना चाहते हो... उसे कैसे पता चलेगा... अगर यह राजा का गेम हुआ तो...
विश्व - ना... यह राजा का गेम नहीं हो सकता... कोई ऐसा जो राजा से बदला भी लेना चाह रहा हो... और छुटकारा पाना चाह रहा हो...
टीलु - और तुम कह रहे हो कि चौथा... इसका आदमी है...
विश्व - हाँ...
टीलु - ठीक है... तुम्हारी हर बात में दम है.... पर सवाल यह है कि... तुम उससे मिलना चाहते हो... यह बात उस तक कैसे पहुँचाओगे.... और एक बात पेपर तो सुबह तड़के आता होगा... यह कब और किस वक़्त यह कांड कर रहा है..
विश्व - अभी मिलने का वक़्त आया नहीं है... मिलने का वक़्त वही मुकर्रर करेगा... वह जो भी है... उसने हमारे बारे में... कुछ कुछ जानता है.... फ़िलहाल... कुछ दिनों तक हमें... ऐसे ही मैसेज मिलते रहेंगे...
टीलु - ओ अच्छा...
विश्व - कल तुम्हें एक काम करना है...
टीलु - क्या...
विश्व - कल पेपर लाते वक़्त उससे पूछना जरूर...
टीलु - यही की कौन यह सब लिख रहा है...
विश्व - नहीं... उसमें पेंसिल से लिखा क्यूँ है...

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क्षेत्रपाल महल के अंदर मंदिर l सुषमा पुजा खतम कर मुड़ती है तो पिनाक को देखती है l

सुषमा - (हैरानी से) अरे... आप.. आप और यहाँ... इस वक़्त..
पिनाक - (वहाँ खड़े नौकरों से) एकांत... (सभी नौकर उन दोनों को वहीँ पर छोड़ कर चले जाते हैं) (सुषमा से) हम यहाँ आपकी पुजा देखने नहीं आए हैं... हम तुरंत भुवनेश्वर के लिए निकलना चाहते हैं.... अगर आपकी पुजा ख़तम हो गई हो... तो कुछ सवाल जवाब करना चाहते हैं...
सुषमा - ओ हाँ.... महांती की दुर्घटना से आप आहत हुए होंगे... आखिर उसकी अंतिम विदाई पर आपको वहाँ होना तो चाहिए... उसकी मृत्यु एक अपूरणीय क्षति जो है...
पिनाक - हमें उसकी मौत से कोई लेना देना नहीं है... वह उसकी मौत मरा है... उसकी जगह हम किसी और को... नौकरी पर रख देंगे....
सुषमा - आप इतने कठोर कैसे हो सकते हैं.... आखिर महांती ने हमारे परिवार को बहुत कुछ दिया है...
पिनाक - हमें आप ज्ञान ना दें तो बेहतर होगा... कोई मुफ्त में नहीं काम कर रहा था... उसकी हैसियत से ज्यादा मान दिया गया था... पार्टनर था वह... और उसके लिए... मोटी तनख्वाह लेता भी था... अपना हिस्सा लेता था.... और हाँ... हम उसके बारे में बात करने यहाँ नहीं आए हैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) तो किसी और विषय में सवाल जवाब करने आए थे...
पिनाक - हाँ...
सुषमा - तो पूछिए...
पिनाक - आप पिछली बार जब भुवनेश्वर गई थीं... तब माली साही बस्ती में क्यूँ गई थी...

सुषमा इस सवाल से झेंप जाती है l वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी l पिनाक से सुषमा की प्रतिक्रिया नहीं छुपती l सुषमा अपना सिर नीचे कर लेती है l

पिनाक - छोटी रानी जी... हमने आपसे कुछ पुछा है...
सुषमा - (खुद को संभाल कर मजबूत करते हुए) हम... हम अपने बेटे की ख्वाहिश को अंजाम देने गए थे... पुरा करने गए थे..
पिनाक - ख्वाहिश... कैसा ख्वाहिश...
सुषमा - अपने जीवन साथी की...
पिनाक - एक नीची जात की लकड़ी... जो एक बस्ती में रहती है...
सुषमा - ओ... तो आप तक यह खबर पहुँच गई है...
पिनाक - हाँ... पहुँच गई है... पर वह है कौन... हमें नहीं मालुम... लेकिन इस बार हम भुवनेश्वर जा कर... उसे उसकी औकात दिखा देंगे...
सुषमा - (उसकी हाथों से पुजा की थाली गिर जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं...
पिनाक - वही जो आप ने सुना...
सुषमा - अपने इकलौते बेटे वीर के लिए भी सोचिए... वह उस लड़की से प्यार करता है...
पिनाक - वह... (हैरानी से) करता है... यह कैसी भाषा है... मत भूलिए... आप छोटी रानी हैं... और वह राजकुमार... गवांरों की बोली क्यूँ बोल रहे हैं...
सुषमा - वह बेटा है हमारा...
पिनाक - राजकुमार हैं वह...
सुषमा - तो क्या हुआ... इससे वह हमारा बेटा है... यह सच छुप तो नहीं जाता... इस घर में पहली बार तो नहीं हो रहा है... प्यार करता है....
पिनाक - प्यार करता है.... या नाक कटवा रहा है... क्षेत्रपाल घर के मर्द किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... पर राजकुमार तो... उस नीच लड़की के आगे... नाक रगड़ने पर तूल गए हैं...
सुषमा - (टौंट मारते हुए) हूंह्ह... क्यूँ झूठ बोल रहे हैं.... किस अहंकार के बूते पर झूठ बोल रहे हैं...
पिनाक - (बिदक कर) क्या झूठ बोला है हमने...
सुषमा - यही की क्षेत्रपाल घर के मर्द... किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... हूंह्ह... औरत अगर पैर खोल दे... तो क्षेत्रपाल घर के मर्द.. घुटने रगड़ने पर तूल जाते हैं...

पिनाक का चेहरा सख्त हो जाता है l जबड़े भींच जाते हैं l गुस्से में बाईं आँख का भंवा तन जाता है और दाहिनी आँख के नीचे की पेशियां थर्राने लगती हैं l

पिनाक - क्या कहा गुस्ताख औरत...
सुषमा - एक सच बता दिया तो... आपके पुरुषार्थ के अहं घायल हो गया... जिस उम्र में... बेटे के लिए बहु ढूंढना चाहिए... उस उम्र में... किसी बेबस औरत को मजबूर कर उसकी मजबूरी की नाजायज फायदा उठाकर... छी...
पिनाक - ओ... तो आप... हम पर नजर रख रहे हैं...
सुषमा - जी नहीं... हम ऐसी ओछी काम नहीं कर सकते... जिस दिन आपको बड़े राजा की बुलावे की ख़बर दे रहे थे... आप उस दिन गलती से फोन बंद करना भूल गए थे...
पिनाक - ओ... तो... इसलिए... आपकी जुबान अपनी औकात भूल रही है...
सुषमा - जी नहीं... भूले नहीं हैं हम... जिस लड़की के लिए... हम इस हद तक आ पहुँचे... इससे कहीं आगे राजकुमार जा सकते हैं... बस यही बताने के लिए... आपको आगाह करने के लिए...
पिनाक - हाः... आप हमें आगाह कर रही हैं... आप जानते नहीं... अपनी मूँछों के लिए... हम किस हद तक जा सकते हैं...
सुषमा - जानते हैं... आखिर अपनी जीवन यहाँ तक जो गुजारा है आपके साथ.. आपकी जिद की हद को जानते हैं... पहचानते हैं... पर यह मत भूलिए... वह वीर सिंह क्षेत्रपाल है... उसकी जिद की हद... सिर्फ हम जानते हैं... आप नहीं जानते...

सुषमा जिस विश्वास के साथ यह बात कही थी थोड़ी देर के लिए पिनाक अंदर से हिल जाता है l वह कुछ समझने के अंदाज में अपना सिर हिलाता है l

पिनाक - हम यहाँ... बात की जानकारी लेने आए थे... शहरों की गालियों बाजारों में जो कानाफूसी हो रही है... दिल से चाहते थे... इस बात का आपसे कोई ताल्लुक ना हो... कोई सहमती ना हो... पर... पर कोई नहीं.... एक वादा जरूर करते हैं... वीर की शादी हम एक महीने के भीतर करवा देंगे... सिर्फ एक महीने के भीतर... वह भी हमारी और राजा साहब की मर्जी से.... वह लड़की जो इस वक़्त वीर के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है... उसे उसकी औकात भी दिखाएंगे...
सुषमा - आप भगवान के दर पर... इतनी गुरुर के साथ बात की है... मैं आपके आगे हाथ जोड़ कर आपको अपने भगवान से ऊपर नहीं रख सकती... अब जो होगा... मैं अपने भगवान की मर्जी पर छोड़ रही हूँ... पर इतना जरूर कहूँगी... इस बार क्षेत्रपाल घर की अहंकार आपस में टकराएगी... आपकी जिद अपनी औकात जरूर देखेगी...

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हस्पताल के केबिन के बाहर वीर अनु और दादी इंतजार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद एक स्टाफ नर्स केबिन के बाहर आकर वीर से कहता है

नर्स - पेशेंट को होश आ गया है...
वीर - थैंक्स... क्या हम पेशेंट से मिल सकते हैं...
नर्स - जी बेशक...

वीर अनु और दादी तीनों केबिन के अंदर आते हैं l मृत्युंजय के पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था l सिर पर पट्टी लगा हुआ था और बाएं हाथ में बैंडेज बंधा हुआ था l बाकी शरीर पर कहीं और चोट नहीं था l मृत्युंजय अपनी आँखे बंद किए हुआ था l जैसे ही उसके बेड के करीब तीनों पहुँचते हैं, वह अपनी आँखे खोलता है l

अनु - मट्टू भैया...
मृत्युंजय - आह... (कराहते हुए) महांती सर कैसे हैं... (अनु अपना सिर झुका लेती है)
वीर - तुम उनकी बात छोड़ो... यह बता ओ... तुम अब कैसे हो...
मृत्युंजय - मैं... आपके सामने ही हूँ... पर महांती सर...
वीर - वह... अब... (रुक जाता है)
मृत्युंजय - ओह... समझा... (रोते हुए) हम दोनों समझ ही नहीं पाए... हमारे साथ क्या हो गया...
वीर - मृत्युंजय... समझ नहीं पाए... क्या हो गया मतलब...
मृत्युंजय - अब मैं क्या समझाऊँ.. जब मैं खुद नहीं समझ पाया... जब तक होश में था... तब तक मुझे याद जो भी याद था... मैंने वह सब सारी जानकारी पुलिस को दे दिया है...
वीर - हाँ... जानता हूँ... पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ... क्यूंकि पुलिस कह रही है... तुम शायद कुछ छुपा रहे हो...
दादी - (सुबकते हुए) बेचारा... कुछ भी सही नहीं हो रहा है... इसके साथ...
अनु - दादी... मट्टू भैया दर्द में हैं... और तुम हो कि... दिलासा देने के बजाय... और बढ़ा रही हो...
मृत्युंजय - कोई नहीं बहन... कोई नहीं... (वीर से) हाँ... एक नहीं दो बातेँ... मैंने पुलिस से छुपाई है...

मृत्युंजय के इस बात पर तीनों चौंकते हैं l वीर की भवें सिकुड़ जाती है l

वीर - क्या... क्या छुपाया है तुमने..
मृत्युंजय - राजकुमार... मुझे महांती सर ने कॉल कर बुलाया और गाड़ी में बैठने के लिए कहा... मैंने वज़ह पूछा तो उन्होनें कहा... कोई भेदी है... जिसे उन्होंने ढूंढ लिया है... और राजकुमार जी के सामने उसे पेश करना है... मैं चुपचाप गाड़ी में बैठ गया... कुछ देर बार ट्रैफ़िक में गाड़ी कुछ देर के लिए रुक गई... तब मैंने महांती सर जी से सवाल किया... के उन्होंने मुझे ही क्यूँ चुना... उस घर के भेदी को पकड़ने के लिए... तब महांती सर ने कहा कि... घर की भेदी खुलासे के बाद वह मुझे लेकर तुरंत विशाखापट्टनम जाएंगे... मैं और भी हैरान हो गया... वह मुझे दिलासा देते हुए कहा... की मेरी बहन पुष्पा का पता चल गया है...
तीनों - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैं भी चौंक कर ऐसे ही प्रतिक्रिया दी... तो उन्होंने कहा कि पुष्पा और विनय... विशाखापट्टनम के पास आर्कु में किसी रिसॉर्ट में हैं... यह बात सुन कर मैं बहुत खुस हुआ... फिर गाड़ी इंफोसिस के एसइजेड की ओर चलने लगी... हम दोनों बहुत खुश थे... हँसने लगे... हमारी हँसी धीरे धीरे बढ़ने लगी... बढ़ती ही चली गई... हम हँसते हँसते बेकाबू होते चले गए... फिर क्या हुआ... मुझे याद नहीं... जब आँखें खुली... खुद को एम्बुलेंस के अंदर पाया...
वीर - तो तुमने पुलिस को पुरी बात क्यूँ नहीं बताई...
मृत्युंजय - मुझे लगा... घर का भेदी कोई है... जिसे आपने अभी तक जब पुलिस से छुपा कर रखा है... तो वगैर आपके जानकारी के मैं यह बात पुलिस वालों से नहीं कह सकता था....
अनु - पर पुष्पा और विनय की बात तो कह ही सकते थे...
मृत्युंजय - नहीं... राजकुमार जी ने मुझसे वादा किया था... वे खुद पुष्पा और विनय को ढूँढ कर... उनकी शादी के लिए... केके साहब को मना कर... मेरे हवाले करेंगे... इसलिये... मैं यह बात पुलिस से छुपाई... क्या... मैंने कुछ गलत किया...

वीर यह बात सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वह मृत्युंजय के कंधे पर हाथ रखकर अपना सिर हिलाते हुए अपने होंठों को अंदर भिंच लेता है l

वीर - नहीं... तुम वाकई बहुत अच्छे हो मट्टू... बहुत ही अच्छे हो... ना सिर्फ तुमने अपने मालिक की घर की इज़्ज़त बचाई... बल्कि अपनी घर की भी इज़्ज़त बचाई... मैं... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैं... वादा करता हूँ... कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन और बहनोई खड़े मिलेंगे... तुम्हारा सिर ना समाज के आगे... ना किसी और के आगे झुकेगा... वादा कर रहा हूँ...
मृत्युंजय - (रोनी आवाज में) थैंक्यू... राजकुमार जी... थैंक्यू... मैं आपका यह उपकार जीवन भर भुला नहीं पाऊँगा...
वीर - मट्टू... मैंने अभीतक कुछ किया नहीं है... पर अब दिल से कुछ करना चाहता हूँ...
मृत्युंजय - तो फिर एक अनुरोध है...
वीर - कहो... हक् से कहो...
मृत्युंजय - आपने इतनी बड़ी बात कह दी... यही काफी है... मैं चाहता हूँ... आप जब पुष्पा को लेने जाएं... अनु और दादी जी को भी साथ ले जाएं...
वीर - ठीक है... मना नहीं करूँगा... पर इतना तो पूछूँगा ही... क्या... तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है या....
मृत्युंजय - (वीर की हाथ को पकड़ लेता है) आप अपने को... अपमानित महसूस ना करें... बात भरोसे की नहीं है... (चुप हो जाता है)
अनु - हाँ राजकुमार जी... मट्टू भैया ठीक कह रहे हैं.... (वीर अनु की ओर सवालिया नजर से देखता है) राजकुमार जी... एक लड़की की मनःस्थिति को समझने की कोशिश कीजिए.... आप पुष्पा के लिए अनजान ही हैं... पर मैं या दादी नहीं... मैं उसकी दोस्त भी हूँ और बहन भी... और वह दादी को भी बहुत मानती है... आपसे शायद जोर जबरदस्ती हो जाए.... इसलिए मट्टू भैया ने हमारी बात कही...
वीर - ओह... सॉरी मट्टू... मैं तुम्हारे मन की बात को समझ नहीं पाया... ठीक है... मैं कल सुबह ही... अनु और दादी मां को साथ में लेकर... जाऊँगा... समझाऊँगा... जरूरत पड़ी तो हाथ पैर जोड़ुंगा... पर मैं पुष्पा और विनय को लेकर ही आऊंगा...

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कमिश्नर ऑफिस
कमिश्नर के सामने विक्रम बैठा हुआ है l एक सबइंस्पेक्टर आता है कमिश्नर को सैल्यूट मारने के बाद विक्रम को हैलो कहता है फिर उनके सामने टेबल पर एक फाइल रख कर दोबारा सैल्यूट मार कर वापस चला जाता है l कमिश्नर फाइल खोल कर देखता है फिर विक्रम की ओर देख कर कुछ सोचने लगता है l

विक्रम - क्या बात है कमिश्नर साहब.. क्या सोचने लगे... क्या लिखा है फाइल में...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... यह एक्सीडेंट नहीं है... जैसा कि अंदाजा था... यह मर्डर है...
विक्रम - आपको... किसी पर शक़ है...
कमिश्नर - युवराज जी... (एक गहरी साँस लेकर) हम आपके किसी भी मैटर में... अपना सिर नहीं खपाते... तो हम कैसे किस पर शक कर सकते हैं... या जता सकते हैं...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी छा जाती है l क्यूंकि कमिश्नर सच कहा था जिन मामलों में क्षेत्रपाल या ESS जुड़ा था उन केसेस से पुलिस हमेशा खुद को दूर ही रखती थी l

कमिश्नर - हम बस आपकी सहूलियत के लिए... मीडिया में इतना कहा कि यह एक्सीडेंट है... हाँ अगर आप चाहेंगे... तो हम इस केस को अपने हाथ में ले सकते हैं...
विक्रम - मीडिया में एक्सीडेंट कहने के लिए... थैंक्यू... पर क्या आप इस मर्डर को... डिफाइन कर सकते हैं...
कमिश्नर - हाँ कर सकता हूँ... बस एक सवाल का जवाब अगर मिल जाए... तो मैं बता दूँगा...
विक्रम - ठीक है पूछिये... क्या पूछना चाहते हैं...
कमिश्नर - ड्राइविंग के वक़्त... क्या महांती ग्लास उतार कर गाड़ी ड्राइव करते थे... या.. ग्लास उठा कर...
विक्रम - नहीं... ग्लास उतार कर... महांती को एसी में गाड़ी चलाना बिल्कुल पसंद नहीं था... इसलिए हमेशा विंडो ग्लास उतार कर ही गाड़ी चलाते थे... उन्हें नैचुरल हवा पसंद था...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... मतलब कातिल उनकी इस आदत से अच्छी तरह से वाकिफ था... शीट... यही एक बात मृत्युंजय के फेवर में जा रहा है...
विक्रम - (आँखे हैरानी के मारे फैल जाता है) क्या... मृत्युंजय...
कमिश्नर - हाँ... उसके स्टेटमेंट में हमें तब लगा तो था... के वह हमसे कुछ छुपा रहा है... अब महांती बाबु की यह आदत... मृत्युंजय के फेवर में... उसे बचा लेगा...
विक्रम - कमिशन साहब... क्या आप प्लीज... केस को ब्रीफ कर सकते हैं...
कमिश्नर - जी बिल्कुल... मृत्युंजय को गाड़ी में बिठा कर महांती इन्फोसिस की ओर जाने लगा... इस बात से अनजान के वह और उसकी गाड़ी की रेकी हो रही है... जाहिर सी बात है... उस दिन नहीं... कई दिनों से हो रही थी....
विक्रम - फिर...
कमिश्नर - उनकी गाड़ी ट्रैफ़िक पर रुकी नहीं थी... बल्कि सिग्नल के साथ छेड़ छाड़ कर रोकी गई थी... और आप हैरान हो जाओगे... गाड़ी सिग्नल पर सात मिनट तक रुकी थी... और स्वेरेज के गटर के ढक्कन के ऊपर... मतलब परफेक्ट लोकेशन.... वहां पर गाड़ी की ब्रेक... गियर के साथ छेड़ छाड़ करने वाला जब गटर का ढक्कन हटाया... तो उसकी बदबू के वज़ह से कार की ग्लास उठा कर एसी चलाए होंगे... गाड़ी में पहले से ही किसीने ऐसी वेंट पर फ्रैगनेस बॉटल की जगह... नाइट्रस आक्साइड यानी लाफिंग गैस की बॉटल प्लांट कर दिया... अब चूँकि एसी की वेंट चल रही थी... पुरे गाड़ी में गैस फैल गई... उसके बाद... महांती आउट ऑफ कंट्रोल हो गया... गाड़ी पलट गई... बाकी आगे आप जानते हैं...
विक्रम - हाँ लाफिंग गैस की बात छोड़ दें तो यही स्टेटमेंट... मृत्युंजय ने भी दी थी.... पर मृत्युंजय सीट बेल्ट पहने हुए था... पर महांती सीट बेल्ट में नहीं था... और बैलून भी प्रोटेक्शन नहीं दे पाए...
कमिश्नर - हाँ... हो सकता है कि... महांती जब हँसते हँसते आउट ऑफ कंट्रोल हुआ होगा तभी... उसका हाथ.. सीट बेल्ट की लॉक पर लगा होगा और... सीट बेल्ट खुल गई होगी... रही बैलून की बात... एक्सीडेंट बहुत ही जबरदस्त था... गाड़ी के पलटते ही महांती की गर्दन की हड्डी टुट गई...
(विक्रम चुप रहता है) वैसे आपको... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी वालों को... थैंक्स कहना चहिए... उनकी एक प्रोग्राम वहाँ पर चल रही थी... और उन्होंने ही एम्बुलेंस की अरेंजमेंट की थी... वर्ना... मृत्युंजय भी हमें जिंदा ना मिलता...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक बात पूछूं...
कमिश्नर - जी बेशक...
विक्रम - क्या आपको... मृत्युंजय पर शक है...
कमिश्नर - था... पर अब नहीं है...
विक्रम - कैसे...
कमिश्नर - (फाइल से एक मेडिकल रिपोर्ट निकाल कर दिखाता है) उसके ब्लड सैंपल में उतना ही... नाइट्रस आक्साइड मिला है... जितना... महांती के ब्लड सैंपल में मिला... और मृत्युंजय का एक पैर टूटा हुआ है... हाथ में हेयर लाइन फ्रैक्चर है... और उसका सिर भी घायल है... महांती से उसकी कोई निजी रंजिश लगता नहीं है... और अब तक जैसा सर्कुमस्टैंस है... उससे लगता भी नहीं है कि मृत्युंजय कोई सूइसाइडल मर्डर अटेंप्ट किया होगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... कमिश्नर साहब... तो मुझे क्रेमेशंन के लिए... महांती की डेड बॉडी कब तक मिल जाएगी...
कमिश्नर - हमने सारी फॉर्मलीटीस पुरी कर ली है... आप जब चाहें ले जा सकते हैं... हमने मेडिकल में इंफॉर्म भी कर दिया है...

विक्रम अपनी जगह से उठता है, तो कमिश्नर भी खड़े हो कर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर विक्रम हाथ मिलाए वगैर वहाँ से निकल जाता है l कमिश्नर का हाथ वैसे ही हवा में रह जाता है l विक्रम बाहर आ कर देखता है उसके कार के पास प्रधान और रोणा खड़े हुए थे l

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अपनी बेडरुम में रुप चहल कदम कर रही है l दो दिनों से ट्राय कर रही है पर तब्बसुम को फोन लगा रही है पर तब्बसुम का फोन उसे स्विच ऑफ ही मिल रही है l आज सुबह तब्बसुम से उसके घर पर मिलने का प्लान तो था पर चूंकि कल रात से ही घर पर मातम सा था और सुबह का माहौल ग़मगीन था, इसलिए वह ना आज कॉलेज जा सकी ना तब्बसुम के घर l आखिरी बार तब्बसुम को फोन मिलाती है पर इस बार भी उसे फोन स्विच ऑफ मिलती है l चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है और फिर आकर बेड पर बैठ जाती है l थोड़े उदास और खीजे मन से फोन निकाल कर कॉन्टेक्ट लिस्ट को स्क्रोल करती है l पहला नाम उसे बेवक़ूफ़ दिखती है l अपने आप उसका जीभ दांतों तले आ जाती है और बिना देरी किए विश्व को फोन लगाती है l

विश्व - हैलो...
रुप - नाराज हो..
विश्व - नहीं...
रुप - झूठ बोल रहे हो ना... मेरा मन रखने के लिए...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (चिढ़ जाती है और गुस्से से) हर सुबह की तरह आज तुम्हें जगाया नहीं... तुम मुझसे नाराज नहीं हो... क्या यही तुम्हारा प्यार है...
विश्व - सच कहूँ तो नाराज तो था...
रुप - (बिदक कर) तो तुमने मुझे झूठ क्यूँ बोला...
विश्व - ताकि मुझसे मेरी राजकुमारी नहीं... मेरी नकचढ़ी बात करे... इसलिए...
रुप - (गालों पर अचानक शर्म की लाली आ जाती है) मतलब... सच में नाराज थे...
विश्व - हाँ... था तो...
रुप - (गुस्से वाली लहजे में) तो तुमने मुझे फोन क्यूँ नहीं किया... गिला करते... शिकवा करते... (नरम पड़ते हुए) मैं... मनाती ना...
विश्व - सोचा तो मैंने ऐसा ही था... मगर क्या करूँ... सुबह सुबह हाथ में... न्यूज पेपर आ गया... और मुझे सारा माजरा समझ में आ गया...
रुप - ओ...
विश्व - जी... चलिए अब कहिये... फोन क्यूँ किया...
रुप - फोन क्यूँ किया मतलब... सोचा तुम रूठे होगे... तो थोड़ा मना लूँ...
विश्व - जी हम तो आपके मनाने से पहले ही मान चुके हैं... कहिये फोन क्यूँ किया... क्या बात है जो आपको खाए जा रही है...
रुप - (थोड़ी उदास हो कर) वह.. मेरी दोस्त है ना... तब्बसुम...
विश्व - हाँ... क्या हुआ उन्हें...
रुप - वह पता नहीं... मेरे राजगड़ जाने से पहले गायब है... अभी तक नहीं दिखी है... सोचा था आज उसके घर जाऊँगी... पर... कल देर रात को खबर मिली के...
विश्व - ह्म्म्म्म... आपको याद हम नहीं आ रहे थे...
रुप - तुम... तुम... मुझे चिढ़ा रहे हो... देखो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी... मुझे... मुझे भूल जाओ...
विश्व - ना ना.. यह सितम ना करो... तुम्हें दिल से कैसे जुदा हम करेंगे... के मर जायेंगे और क्या हम करेंगे...
रुप - (खुश होते हुए) आखिर तुम्हारे मुहँ से मेरे लिए तुम निकल ही गया...
विश्व - ओह शीट... मुहँ से निकल गया... वैसे इसे सीरियसली ना लीजिए गा... यह एक गाना था... जिसे मैंने आपके लिए गुनगुना दिया...
रुप - जो भी किया... तुमने मेरे दिल को खुश कर दिया... वैसे.. (फुसलाते हुए) कब आ रहे हो...
विश्व - जब आप चाहो... बस एक बार आवाज दीजिए... हम आपके सामने हाजिर हो जाएंगे...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अच्छा ठीक है... आप कब चाहतीं हैं... के मैं आपके सामने आऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म... कल...
विश्व - ठीक है... कल शाम को... मुलाकात होगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब तुम आज राजगड़ से निकल रहे हो...
विश्व - हाँ...
रुप - तो फिर... मुझे कल शाम का बेसब्री से इंतजार होगा... बाय...

कह कर फोन काट देती है l फोन के कट जाने पर विश्व मुस्कराते हुए फोन को देखता है फिर फोन को जेब में रखते वक़्त उसे सामने पानी की बोतल लिए सीलु खड़ा दिखता है l

विश्व - क्या हुआ... कब से सामने ऐसे खड़े हो...
सीलु - (पानी की बोतल को विश्व को देते हुए सामने वाली बेंच पर बैठ कर) कुछ ही देर हुए... तुम भाभी के साथ बातों में खोए हुए थे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो टोंट मार रहे हो...
सीलु - नहीं भाई... भाभी से बात करते हुए इस कदर खो गए थे कि... मेरे आने का एहसास तक नहीं हुआ...
विश्व - भाई मार लो... जितना चाहे टोंट मार लो...
सीलु - क्यूँ भाई... सिर्फ टीलु को ही हक है क्या...
विश्व - तो तुम टीलु से जल रहे हो...
सीलु - सिर्फ मैं ही नहीं... मिलु और जिलु भी..
विश्व - अच्छा पर क्यूँ...
सीलु - क्या... क्यूँ भाई... वह मजे से आपके पास... आपके साथ रह रहा है... जब कि...
विश्व - बस कुछ दिन और... ऐसे छोटी छोटी बातों को दिल से लगाओगे.. तो अब तक का सारा किए कराए पर पानी फिर जाएगा...
सीलु - पता नहीं वह दिन कब आएगा... पिछले एक साल से जमें हुए हैं... पर ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगा है...
विश्व - क्यूँ... मुझे तो लगता है... बहुत कुछ पता लगा लिया है तुमने... बस एक सिरा ढूंढना बाकी है... वह मिल गया... तो समझ लो... जिस पर्दे के आड़ में... उन लोगों के काले धंधे चल रहे हैं... वह पर्दा ही गिर जाएगा...
सीलु - हाँ... पर वह सिरा ही तो नहीं मिल रहा है... पिछली बार जो कांड हुआ था... सब मुर्दों के आधार कार्ड पर हुआ था... पर इस बार ऐसा नहीं है... पर पैसा खूब बेह रहा है... सब अपने अपने हिस्से का पैसा दोनों हाथों से बटोर रहे हैं... क्या हो रहा है.. कैसे हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - हर नया क्राइम.. पिछले बार से बेहतर ही होता है... तुम लोगों ने बहुत कुछ पता कर लिया है... इसलिए तो कह रहा हूँ.. बस कुछ दिन और...
सीलु - हाँ... जानता हूँ... करप्शन हो रहा है... बहुत ही ज़बरदस्त हो रहा है... पर हमें सिर्फ उपरी सतह के बारे में अंदाजा है... हम ज्यादा गहराई तक ना झाँक पा रहे हैं... ना ही छानबीन नहीं कर पा रहे हैं...
विश्व - हाँ.. वह इसलिए... क्यूंकि इस महा करप्शन में राजा का इंवॉल्वेंस है...
सीलु - चलो जब एक साल देख लिया... यह कुछ दिन भी देख लेंगे... वैसे भाई... तुम्हारा लाइसेंस कब तक आ जाएगा...
विश्व - माँ कह रही थी... और शायद दस से पंद्रह दिन के बाद...
सीलु - ह्म्म्म्म... बस...
विश्व - क्या...
सीलु - वह विश्वा भाई... बस आ गई...
विश्व - (उठते हुए) ओ अच्छा...
सीलु - (दोनों बस की ओर जाते हुए) अच्छा भाई.. उस पेपर वाले का क्या करें...
विश्व - नजर भी मत डालो उसपर... देखते हैं... और क्या क्या मैसेज कर रहा है... उसके मैसेज के पैटर्न देख रहा हूँ... टीलु को भी समझा दिया है... जब उस पर शक होगा... तब उसे ढूढेंगे...
Jabardasttt Updatee
 

Surya_021

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👉एक सौ बाईसवां अपडेट
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राजगड़ में नर्म धूप खिल रही थी l पुरा गाँव अपने अपने तरीके से व्यस्त हो गया था l विश्व अपने घर के आँगन में दंड पेल रहा था l कुछ देर बाद टीलु हाथ में अखबार लेकर पहुँचता है l विश्व एक नजर टीलु की ओर देखता है और फिर वापस दंड पेलने लगता है l

टीलु - क्या कर रहे हो भाई...
विश्व - आँखे फुट गई हैं क्या... नहीं दिख रहा...
टीलु - क्या हुआ है भाई... थोड़े उखड़े हुए लग रहे हो...
विश्व - आदत... छूट ना जाए... इसलिये... पुरानी आदत डाल रहा हूँ...
टीलु - (मुस्कराते हुए) सुबह सुबह उखड़े हुए हो... ही ही ही.... लगता है भाभी ने फोन नहीं किया...
विश्व - (थोड़े गंभीर आवाज़ में) कोई खास खबर...
टीलु - आप बताओ... आज आपके साथ... क्या हो गया है...

विश्व अपना दंड बंद करता है, और एक टावल से अपना पसीना पोछने लगता है l हाथ बढ़ा कर इशारे से टीलु से अख़बार माँगता है l

टीलु - (अखबार देते हुए) क्या भाई... मुझसे नाराज हो...
विश्व - सॉरी... मेरे भाई... सॉरी... तुम पर तो कभी गुस्सा हो ही नहीं सकता...
टीलु - तो फिर...
विश्व - तुमने सच कहा... तुम्हारी भाभी ने आज मुझे जगाया नहीं है...
टीलु - भूली तो नहीं होंगी... पर हो सकता है... कोई बात ऐसी हो गई हो... के...

विश्व अखबार को सीधा कर झाड़ते हुए मुख्य पृष्ठा पर नजर डालते ही भवें तन जाती है l जिसे देख कर टीलु की बात आधी रह गई थी l

टीलु - क्या.. क्या ख़बर है... भाई...

विश्व टीलु को अखबार को टीलु की ओर बढ़ा देता है l मुख्य पृष्ठ पर देखता है l हेड लाइन थी l ओडिशा के सबसे बड़ी निजी सिक्युरिटी संस्था ESS के बड़े और संस्थापक प्रमुख अधिकारी श्री अशोक महांती जी की कल रात कर दुर्घटना में मृत्यु l

टीलु - ओ... यह तो उनके मुलाजिम होंगे... क्या इनकी मौत से...
विश्व - मैंने तुम्हें यह नहीं दिखाया.... यह पेपर तुमने खरीद कर लाए... या किसी की उठा कर लाए....
टीलु - क्या भाई मेरी इज़्ज़त दो कौड़ी की कर रहे हो.... वह भी इस पाँच रुपये के अखबार के लिए...
विश्व - तो फिर इसके कुछ एक पेज पर पेंसिल से कुछ नंबर क्यूँ लिखा हुआ है.... कल वाले पेपर में भी वही था...
टीलु - क्या... (चौंक कर) भाई... वह सुबह जैसे ही मुझे देखता है... अख़बार मेरे हाथों में थमा देता है.... और मैं बिना देखे तुम्हारे हवाले कर देता हूँ...
विश्व - (थोड़ा हैरान होता है) मतलब तुमने सीधे दुकान से ली....
टीलु - हाँ.....

विश्व टीलु की हाथ से दोबारा अख़बार लेता है और गौर से देखता है, पेंसिल में पहले पन्ने पर 16/5⬇️10➡️2 🔘लिखा हुआ था l वैसे ही दुसरे तीसरे पन्ने पर पेंसिल से नंबर अजीब तरह से लिखा हुआ था l विश्व घर के अंदर जाता है बीते दिन की अखबार को लाता है l वह देखता है उस अखबार के सारे पन्नों पर इसी तरह से अजीब नंबर लिखे हुए हैं l विश्व कुछ सोचता है फिर अंदर जा कर एक डायरी और पेन लाता है l कुछ देर तक दोनों अखबार के पन्ने पलट पलट कर पढ़ कर डायरी में लिखने लगता है l

विश्व - ओ तो बात यह है....
टीलु - (अब तक विश्व को पागलों की तरह देख रहा था) क्या क्या हुआ भाई... कुछ गड़बड़ है क्या....
विश्व - नहीं... अब समझ में आया... वह चौथा कौन है... जो हम पर नजर रखे हुए है...
टीलु - क्या... यह तो बहुत बड़ी गडबड़ी है... क... कौन है भाई...
विश्व - नहीं... गड़बड़ तो नहीं... पर कोई है... जो हमसे कॉन्टेक्ट करना चाहता है... हम से कम्युनिकेट करना चाहता है...
टीलु - तुमको कैसे पता चला....
विश्व - (उसे दिखाता है) यह देखो... 16/5⬇️10➡️2 🔘 इसका मतलब हुआ... सोलहवां पन्ना... पाँचवी कॉलम... दसवीं लाइन की दुसरी शब्द... जिसके ऊपर पेंसिल से गोल घुमाया गया है... और वह शब्द है हैलो.... और उसी पन्ने के ऊपर किसी और पन्ने का पता अनुरुप कॉलम और लाइन और शब्द... सब जोड़ दिया तो मुझे कल के अखवार में... यह मैसेज मिला...
"हैलो विश्व... क्या हम मिल सकते हैं... राजा के खिलाफ... मदत तुम्हें मिल सकता है..."
और आज... मुझे इस अखबार में यह मैसेज मिला...
" राजा से कैसे लड़ोगे... तुम्हारे काम आ सकते हैं... क्या मिलना हमारा हो पायेगा....

टीलु बेवक़ूफ़ों की तरह अपना मुहँ फाड़े कभी विश्व को और कभी विश्व के विश्लेषण देख रहा था l विश्व टीलु की ओर देखता है और उसके हाव भाव देख कर

विश्व - क्या हुआ.. ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
टीलु - भाई... माना के तुम्हारा दिमाग बहुत चलता है... पर यह कोई ट्रैप भी तो हो सकता है...
विश्व - हाँ हो तो सकता है...
टीलु - तो...
विश्व - पर आजमाना तो पड़ेगा....
टीलु - कैसे... तुम उससे मिलना चाहते हो... उसे कैसे पता चलेगा... अगर यह राजा का गेम हुआ तो...
विश्व - ना... यह राजा का गेम नहीं हो सकता... कोई ऐसा जो राजा से बदला भी लेना चाह रहा हो... और छुटकारा पाना चाह रहा हो...
टीलु - और तुम कह रहे हो कि चौथा... इसका आदमी है...
विश्व - हाँ...
टीलु - ठीक है... तुम्हारी हर बात में दम है.... पर सवाल यह है कि... तुम उससे मिलना चाहते हो... यह बात उस तक कैसे पहुँचाओगे.... और एक बात पेपर तो सुबह तड़के आता होगा... यह कब और किस वक़्त यह कांड कर रहा है..
विश्व - अभी मिलने का वक़्त आया नहीं है... मिलने का वक़्त वही मुकर्रर करेगा... वह जो भी है... उसने हमारे बारे में... कुछ कुछ जानता है.... फ़िलहाल... कुछ दिनों तक हमें... ऐसे ही मैसेज मिलते रहेंगे...
टीलु - ओ अच्छा...
विश्व - कल तुम्हें एक काम करना है...
टीलु - क्या...
विश्व - कल पेपर लाते वक़्त उससे पूछना जरूर...
टीलु - यही की कौन यह सब लिख रहा है...
विश्व - नहीं... उसमें पेंसिल से लिखा क्यूँ है...

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क्षेत्रपाल महल के अंदर मंदिर l सुषमा पुजा खतम कर मुड़ती है तो पिनाक को देखती है l

सुषमा - (हैरानी से) अरे... आप.. आप और यहाँ... इस वक़्त..
पिनाक - (वहाँ खड़े नौकरों से) एकांत... (सभी नौकर उन दोनों को वहीँ पर छोड़ कर चले जाते हैं) (सुषमा से) हम यहाँ आपकी पुजा देखने नहीं आए हैं... हम तुरंत भुवनेश्वर के लिए निकलना चाहते हैं.... अगर आपकी पुजा ख़तम हो गई हो... तो कुछ सवाल जवाब करना चाहते हैं...
सुषमा - ओ हाँ.... महांती की दुर्घटना से आप आहत हुए होंगे... आखिर उसकी अंतिम विदाई पर आपको वहाँ होना तो चाहिए... उसकी मृत्यु एक अपूरणीय क्षति जो है...
पिनाक - हमें उसकी मौत से कोई लेना देना नहीं है... वह उसकी मौत मरा है... उसकी जगह हम किसी और को... नौकरी पर रख देंगे....
सुषमा - आप इतने कठोर कैसे हो सकते हैं.... आखिर महांती ने हमारे परिवार को बहुत कुछ दिया है...
पिनाक - हमें आप ज्ञान ना दें तो बेहतर होगा... कोई मुफ्त में नहीं काम कर रहा था... उसकी हैसियत से ज्यादा मान दिया गया था... पार्टनर था वह... और उसके लिए... मोटी तनख्वाह लेता भी था... अपना हिस्सा लेता था.... और हाँ... हम उसके बारे में बात करने यहाँ नहीं आए हैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) तो किसी और विषय में सवाल जवाब करने आए थे...
पिनाक - हाँ...
सुषमा - तो पूछिए...
पिनाक - आप पिछली बार जब भुवनेश्वर गई थीं... तब माली साही बस्ती में क्यूँ गई थी...

सुषमा इस सवाल से झेंप जाती है l वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी l पिनाक से सुषमा की प्रतिक्रिया नहीं छुपती l सुषमा अपना सिर नीचे कर लेती है l

पिनाक - छोटी रानी जी... हमने आपसे कुछ पुछा है...
सुषमा - (खुद को संभाल कर मजबूत करते हुए) हम... हम अपने बेटे की ख्वाहिश को अंजाम देने गए थे... पुरा करने गए थे..
पिनाक - ख्वाहिश... कैसा ख्वाहिश...
सुषमा - अपने जीवन साथी की...
पिनाक - एक नीची जात की लकड़ी... जो एक बस्ती में रहती है...
सुषमा - ओ... तो आप तक यह खबर पहुँच गई है...
पिनाक - हाँ... पहुँच गई है... पर वह है कौन... हमें नहीं मालुम... लेकिन इस बार हम भुवनेश्वर जा कर... उसे उसकी औकात दिखा देंगे...
सुषमा - (उसकी हाथों से पुजा की थाली गिर जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं...
पिनाक - वही जो आप ने सुना...
सुषमा - अपने इकलौते बेटे वीर के लिए भी सोचिए... वह उस लड़की से प्यार करता है...
पिनाक - वह... (हैरानी से) करता है... यह कैसी भाषा है... मत भूलिए... आप छोटी रानी हैं... और वह राजकुमार... गवांरों की बोली क्यूँ बोल रहे हैं...
सुषमा - वह बेटा है हमारा...
पिनाक - राजकुमार हैं वह...
सुषमा - तो क्या हुआ... इससे वह हमारा बेटा है... यह सच छुप तो नहीं जाता... इस घर में पहली बार तो नहीं हो रहा है... प्यार करता है....
पिनाक - प्यार करता है.... या नाक कटवा रहा है... क्षेत्रपाल घर के मर्द किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... पर राजकुमार तो... उस नीच लड़की के आगे... नाक रगड़ने पर तूल गए हैं...
सुषमा - (टौंट मारते हुए) हूंह्ह... क्यूँ झूठ बोल रहे हैं.... किस अहंकार के बूते पर झूठ बोल रहे हैं...
पिनाक - (बिदक कर) क्या झूठ बोला है हमने...
सुषमा - यही की क्षेत्रपाल घर के मर्द... किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... हूंह्ह... औरत अगर पैर खोल दे... तो क्षेत्रपाल घर के मर्द.. घुटने रगड़ने पर तूल जाते हैं...

पिनाक का चेहरा सख्त हो जाता है l जबड़े भींच जाते हैं l गुस्से में बाईं आँख का भंवा तन जाता है और दाहिनी आँख के नीचे की पेशियां थर्राने लगती हैं l

पिनाक - क्या कहा गुस्ताख औरत...
सुषमा - एक सच बता दिया तो... आपके पुरुषार्थ के अहं घायल हो गया... जिस उम्र में... बेटे के लिए बहु ढूंढना चाहिए... उस उम्र में... किसी बेबस औरत को मजबूर कर उसकी मजबूरी की नाजायज फायदा उठाकर... छी...
पिनाक - ओ... तो आप... हम पर नजर रख रहे हैं...
सुषमा - जी नहीं... हम ऐसी ओछी काम नहीं कर सकते... जिस दिन आपको बड़े राजा की बुलावे की ख़बर दे रहे थे... आप उस दिन गलती से फोन बंद करना भूल गए थे...
पिनाक - ओ... तो... इसलिए... आपकी जुबान अपनी औकात भूल रही है...
सुषमा - जी नहीं... भूले नहीं हैं हम... जिस लड़की के लिए... हम इस हद तक आ पहुँचे... इससे कहीं आगे राजकुमार जा सकते हैं... बस यही बताने के लिए... आपको आगाह करने के लिए...
पिनाक - हाः... आप हमें आगाह कर रही हैं... आप जानते नहीं... अपनी मूँछों के लिए... हम किस हद तक जा सकते हैं...
सुषमा - जानते हैं... आखिर अपनी जीवन यहाँ तक जो गुजारा है आपके साथ.. आपकी जिद की हद को जानते हैं... पहचानते हैं... पर यह मत भूलिए... वह वीर सिंह क्षेत्रपाल है... उसकी जिद की हद... सिर्फ हम जानते हैं... आप नहीं जानते...

सुषमा जिस विश्वास के साथ यह बात कही थी थोड़ी देर के लिए पिनाक अंदर से हिल जाता है l वह कुछ समझने के अंदाज में अपना सिर हिलाता है l

पिनाक - हम यहाँ... बात की जानकारी लेने आए थे... शहरों की गालियों बाजारों में जो कानाफूसी हो रही है... दिल से चाहते थे... इस बात का आपसे कोई ताल्लुक ना हो... कोई सहमती ना हो... पर... पर कोई नहीं.... एक वादा जरूर करते हैं... वीर की शादी हम एक महीने के भीतर करवा देंगे... सिर्फ एक महीने के भीतर... वह भी हमारी और राजा साहब की मर्जी से.... वह लड़की जो इस वक़्त वीर के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है... उसे उसकी औकात भी दिखाएंगे...
सुषमा - आप भगवान के दर पर... इतनी गुरुर के साथ बात की है... मैं आपके आगे हाथ जोड़ कर आपको अपने भगवान से ऊपर नहीं रख सकती... अब जो होगा... मैं अपने भगवान की मर्जी पर छोड़ रही हूँ... पर इतना जरूर कहूँगी... इस बार क्षेत्रपाल घर की अहंकार आपस में टकराएगी... आपकी जिद अपनी औकात जरूर देखेगी...

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हस्पताल के केबिन के बाहर वीर अनु और दादी इंतजार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद एक स्टाफ नर्स केबिन के बाहर आकर वीर से कहता है

नर्स - पेशेंट को होश आ गया है...
वीर - थैंक्स... क्या हम पेशेंट से मिल सकते हैं...
नर्स - जी बेशक...

वीर अनु और दादी तीनों केबिन के अंदर आते हैं l मृत्युंजय के पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था l सिर पर पट्टी लगा हुआ था और बाएं हाथ में बैंडेज बंधा हुआ था l बाकी शरीर पर कहीं और चोट नहीं था l मृत्युंजय अपनी आँखे बंद किए हुआ था l जैसे ही उसके बेड के करीब तीनों पहुँचते हैं, वह अपनी आँखे खोलता है l

अनु - मट्टू भैया...
मृत्युंजय - आह... (कराहते हुए) महांती सर कैसे हैं... (अनु अपना सिर झुका लेती है)
वीर - तुम उनकी बात छोड़ो... यह बता ओ... तुम अब कैसे हो...
मृत्युंजय - मैं... आपके सामने ही हूँ... पर महांती सर...
वीर - वह... अब... (रुक जाता है)
मृत्युंजय - ओह... समझा... (रोते हुए) हम दोनों समझ ही नहीं पाए... हमारे साथ क्या हो गया...
वीर - मृत्युंजय... समझ नहीं पाए... क्या हो गया मतलब...
मृत्युंजय - अब मैं क्या समझाऊँ.. जब मैं खुद नहीं समझ पाया... जब तक होश में था... तब तक मुझे याद जो भी याद था... मैंने वह सब सारी जानकारी पुलिस को दे दिया है...
वीर - हाँ... जानता हूँ... पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ... क्यूंकि पुलिस कह रही है... तुम शायद कुछ छुपा रहे हो...
दादी - (सुबकते हुए) बेचारा... कुछ भी सही नहीं हो रहा है... इसके साथ...
अनु - दादी... मट्टू भैया दर्द में हैं... और तुम हो कि... दिलासा देने के बजाय... और बढ़ा रही हो...
मृत्युंजय - कोई नहीं बहन... कोई नहीं... (वीर से) हाँ... एक नहीं दो बातेँ... मैंने पुलिस से छुपाई है...

मृत्युंजय के इस बात पर तीनों चौंकते हैं l वीर की भवें सिकुड़ जाती है l

वीर - क्या... क्या छुपाया है तुमने..
मृत्युंजय - राजकुमार... मुझे महांती सर ने कॉल कर बुलाया और गाड़ी में बैठने के लिए कहा... मैंने वज़ह पूछा तो उन्होनें कहा... कोई भेदी है... जिसे उन्होंने ढूंढ लिया है... और राजकुमार जी के सामने उसे पेश करना है... मैं चुपचाप गाड़ी में बैठ गया... कुछ देर बार ट्रैफ़िक में गाड़ी कुछ देर के लिए रुक गई... तब मैंने महांती सर जी से सवाल किया... के उन्होंने मुझे ही क्यूँ चुना... उस घर के भेदी को पकड़ने के लिए... तब महांती सर ने कहा कि... घर की भेदी खुलासे के बाद वह मुझे लेकर तुरंत विशाखापट्टनम जाएंगे... मैं और भी हैरान हो गया... वह मुझे दिलासा देते हुए कहा... की मेरी बहन पुष्पा का पता चल गया है...
तीनों - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैं भी चौंक कर ऐसे ही प्रतिक्रिया दी... तो उन्होंने कहा कि पुष्पा और विनय... विशाखापट्टनम के पास आर्कु में किसी रिसॉर्ट में हैं... यह बात सुन कर मैं बहुत खुस हुआ... फिर गाड़ी इंफोसिस के एसइजेड की ओर चलने लगी... हम दोनों बहुत खुश थे... हँसने लगे... हमारी हँसी धीरे धीरे बढ़ने लगी... बढ़ती ही चली गई... हम हँसते हँसते बेकाबू होते चले गए... फिर क्या हुआ... मुझे याद नहीं... जब आँखें खुली... खुद को एम्बुलेंस के अंदर पाया...
वीर - तो तुमने पुलिस को पुरी बात क्यूँ नहीं बताई...
मृत्युंजय - मुझे लगा... घर का भेदी कोई है... जिसे आपने अभी तक जब पुलिस से छुपा कर रखा है... तो वगैर आपके जानकारी के मैं यह बात पुलिस वालों से नहीं कह सकता था....
अनु - पर पुष्पा और विनय की बात तो कह ही सकते थे...
मृत्युंजय - नहीं... राजकुमार जी ने मुझसे वादा किया था... वे खुद पुष्पा और विनय को ढूँढ कर... उनकी शादी के लिए... केके साहब को मना कर... मेरे हवाले करेंगे... इसलिये... मैं यह बात पुलिस से छुपाई... क्या... मैंने कुछ गलत किया...

वीर यह बात सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वह मृत्युंजय के कंधे पर हाथ रखकर अपना सिर हिलाते हुए अपने होंठों को अंदर भिंच लेता है l

वीर - नहीं... तुम वाकई बहुत अच्छे हो मट्टू... बहुत ही अच्छे हो... ना सिर्फ तुमने अपने मालिक की घर की इज़्ज़त बचाई... बल्कि अपनी घर की भी इज़्ज़त बचाई... मैं... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैं... वादा करता हूँ... कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन और बहनोई खड़े मिलेंगे... तुम्हारा सिर ना समाज के आगे... ना किसी और के आगे झुकेगा... वादा कर रहा हूँ...
मृत्युंजय - (रोनी आवाज में) थैंक्यू... राजकुमार जी... थैंक्यू... मैं आपका यह उपकार जीवन भर भुला नहीं पाऊँगा...
वीर - मट्टू... मैंने अभीतक कुछ किया नहीं है... पर अब दिल से कुछ करना चाहता हूँ...
मृत्युंजय - तो फिर एक अनुरोध है...
वीर - कहो... हक् से कहो...
मृत्युंजय - आपने इतनी बड़ी बात कह दी... यही काफी है... मैं चाहता हूँ... आप जब पुष्पा को लेने जाएं... अनु और दादी जी को भी साथ ले जाएं...
वीर - ठीक है... मना नहीं करूँगा... पर इतना तो पूछूँगा ही... क्या... तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है या....
मृत्युंजय - (वीर की हाथ को पकड़ लेता है) आप अपने को... अपमानित महसूस ना करें... बात भरोसे की नहीं है... (चुप हो जाता है)
अनु - हाँ राजकुमार जी... मट्टू भैया ठीक कह रहे हैं.... (वीर अनु की ओर सवालिया नजर से देखता है) राजकुमार जी... एक लड़की की मनःस्थिति को समझने की कोशिश कीजिए.... आप पुष्पा के लिए अनजान ही हैं... पर मैं या दादी नहीं... मैं उसकी दोस्त भी हूँ और बहन भी... और वह दादी को भी बहुत मानती है... आपसे शायद जोर जबरदस्ती हो जाए.... इसलिए मट्टू भैया ने हमारी बात कही...
वीर - ओह... सॉरी मट्टू... मैं तुम्हारे मन की बात को समझ नहीं पाया... ठीक है... मैं कल सुबह ही... अनु और दादी मां को साथ में लेकर... जाऊँगा... समझाऊँगा... जरूरत पड़ी तो हाथ पैर जोड़ुंगा... पर मैं पुष्पा और विनय को लेकर ही आऊंगा...

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कमिश्नर ऑफिस
कमिश्नर के सामने विक्रम बैठा हुआ है l एक सबइंस्पेक्टर आता है कमिश्नर को सैल्यूट मारने के बाद विक्रम को हैलो कहता है फिर उनके सामने टेबल पर एक फाइल रख कर दोबारा सैल्यूट मार कर वापस चला जाता है l कमिश्नर फाइल खोल कर देखता है फिर विक्रम की ओर देख कर कुछ सोचने लगता है l

विक्रम - क्या बात है कमिश्नर साहब.. क्या सोचने लगे... क्या लिखा है फाइल में...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... यह एक्सीडेंट नहीं है... जैसा कि अंदाजा था... यह मर्डर है...
विक्रम - आपको... किसी पर शक़ है...
कमिश्नर - युवराज जी... (एक गहरी साँस लेकर) हम आपके किसी भी मैटर में... अपना सिर नहीं खपाते... तो हम कैसे किस पर शक कर सकते हैं... या जता सकते हैं...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी छा जाती है l क्यूंकि कमिश्नर सच कहा था जिन मामलों में क्षेत्रपाल या ESS जुड़ा था उन केसेस से पुलिस हमेशा खुद को दूर ही रखती थी l

कमिश्नर - हम बस आपकी सहूलियत के लिए... मीडिया में इतना कहा कि यह एक्सीडेंट है... हाँ अगर आप चाहेंगे... तो हम इस केस को अपने हाथ में ले सकते हैं...
विक्रम - मीडिया में एक्सीडेंट कहने के लिए... थैंक्यू... पर क्या आप इस मर्डर को... डिफाइन कर सकते हैं...
कमिश्नर - हाँ कर सकता हूँ... बस एक सवाल का जवाब अगर मिल जाए... तो मैं बता दूँगा...
विक्रम - ठीक है पूछिये... क्या पूछना चाहते हैं...
कमिश्नर - ड्राइविंग के वक़्त... क्या महांती ग्लास उतार कर गाड़ी ड्राइव करते थे... या.. ग्लास उठा कर...
विक्रम - नहीं... ग्लास उतार कर... महांती को एसी में गाड़ी चलाना बिल्कुल पसंद नहीं था... इसलिए हमेशा विंडो ग्लास उतार कर ही गाड़ी चलाते थे... उन्हें नैचुरल हवा पसंद था...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... मतलब कातिल उनकी इस आदत से अच्छी तरह से वाकिफ था... शीट... यही एक बात मृत्युंजय के फेवर में जा रहा है...
विक्रम - (आँखे हैरानी के मारे फैल जाता है) क्या... मृत्युंजय...
कमिश्नर - हाँ... उसके स्टेटमेंट में हमें तब लगा तो था... के वह हमसे कुछ छुपा रहा है... अब महांती बाबु की यह आदत... मृत्युंजय के फेवर में... उसे बचा लेगा...
विक्रम - कमिशन साहब... क्या आप प्लीज... केस को ब्रीफ कर सकते हैं...
कमिश्नर - जी बिल्कुल... मृत्युंजय को गाड़ी में बिठा कर महांती इन्फोसिस की ओर जाने लगा... इस बात से अनजान के वह और उसकी गाड़ी की रेकी हो रही है... जाहिर सी बात है... उस दिन नहीं... कई दिनों से हो रही थी....
विक्रम - फिर...
कमिश्नर - उनकी गाड़ी ट्रैफ़िक पर रुकी नहीं थी... बल्कि सिग्नल के साथ छेड़ छाड़ कर रोकी गई थी... और आप हैरान हो जाओगे... गाड़ी सिग्नल पर सात मिनट तक रुकी थी... और स्वेरेज के गटर के ढक्कन के ऊपर... मतलब परफेक्ट लोकेशन.... वहां पर गाड़ी की ब्रेक... गियर के साथ छेड़ छाड़ करने वाला जब गटर का ढक्कन हटाया... तो उसकी बदबू के वज़ह से कार की ग्लास उठा कर एसी चलाए होंगे... गाड़ी में पहले से ही किसीने ऐसी वेंट पर फ्रैगनेस बॉटल की जगह... नाइट्रस आक्साइड यानी लाफिंग गैस की बॉटल प्लांट कर दिया... अब चूँकि एसी की वेंट चल रही थी... पुरे गाड़ी में गैस फैल गई... उसके बाद... महांती आउट ऑफ कंट्रोल हो गया... गाड़ी पलट गई... बाकी आगे आप जानते हैं...
विक्रम - हाँ लाफिंग गैस की बात छोड़ दें तो यही स्टेटमेंट... मृत्युंजय ने भी दी थी.... पर मृत्युंजय सीट बेल्ट पहने हुए था... पर महांती सीट बेल्ट में नहीं था... और बैलून भी प्रोटेक्शन नहीं दे पाए...
कमिश्नर - हाँ... हो सकता है कि... महांती जब हँसते हँसते आउट ऑफ कंट्रोल हुआ होगा तभी... उसका हाथ.. सीट बेल्ट की लॉक पर लगा होगा और... सीट बेल्ट खुल गई होगी... रही बैलून की बात... एक्सीडेंट बहुत ही जबरदस्त था... गाड़ी के पलटते ही महांती की गर्दन की हड्डी टुट गई...
(विक्रम चुप रहता है) वैसे आपको... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी वालों को... थैंक्स कहना चहिए... उनकी एक प्रोग्राम वहाँ पर चल रही थी... और उन्होंने ही एम्बुलेंस की अरेंजमेंट की थी... वर्ना... मृत्युंजय भी हमें जिंदा ना मिलता...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक बात पूछूं...
कमिश्नर - जी बेशक...
विक्रम - क्या आपको... मृत्युंजय पर शक है...
कमिश्नर - था... पर अब नहीं है...
विक्रम - कैसे...
कमिश्नर - (फाइल से एक मेडिकल रिपोर्ट निकाल कर दिखाता है) उसके ब्लड सैंपल में उतना ही... नाइट्रस आक्साइड मिला है... जितना... महांती के ब्लड सैंपल में मिला... और मृत्युंजय का एक पैर टूटा हुआ है... हाथ में हेयर लाइन फ्रैक्चर है... और उसका सिर भी घायल है... महांती से उसकी कोई निजी रंजिश लगता नहीं है... और अब तक जैसा सर्कुमस्टैंस है... उससे लगता भी नहीं है कि मृत्युंजय कोई सूइसाइडल मर्डर अटेंप्ट किया होगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... कमिश्नर साहब... तो मुझे क्रेमेशंन के लिए... महांती की डेड बॉडी कब तक मिल जाएगी...
कमिश्नर - हमने सारी फॉर्मलीटीस पुरी कर ली है... आप जब चाहें ले जा सकते हैं... हमने मेडिकल में इंफॉर्म भी कर दिया है...

विक्रम अपनी जगह से उठता है, तो कमिश्नर भी खड़े हो कर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर विक्रम हाथ मिलाए वगैर वहाँ से निकल जाता है l कमिश्नर का हाथ वैसे ही हवा में रह जाता है l विक्रम बाहर आ कर देखता है उसके कार के पास प्रधान और रोणा खड़े हुए थे l

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अपनी बेडरुम में रुप चहल कदम कर रही है l दो दिनों से ट्राय कर रही है पर तब्बसुम को फोन लगा रही है पर तब्बसुम का फोन उसे स्विच ऑफ ही मिल रही है l आज सुबह तब्बसुम से उसके घर पर मिलने का प्लान तो था पर चूंकि कल रात से ही घर पर मातम सा था और सुबह का माहौल ग़मगीन था, इसलिए वह ना आज कॉलेज जा सकी ना तब्बसुम के घर l आखिरी बार तब्बसुम को फोन मिलाती है पर इस बार भी उसे फोन स्विच ऑफ मिलती है l चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है और फिर आकर बेड पर बैठ जाती है l थोड़े उदास और खीजे मन से फोन निकाल कर कॉन्टेक्ट लिस्ट को स्क्रोल करती है l पहला नाम उसे बेवक़ूफ़ दिखती है l अपने आप उसका जीभ दांतों तले आ जाती है और बिना देरी किए विश्व को फोन लगाती है l

विश्व - हैलो...
रुप - नाराज हो..
विश्व - नहीं...
रुप - झूठ बोल रहे हो ना... मेरा मन रखने के लिए...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (चिढ़ जाती है और गुस्से से) हर सुबह की तरह आज तुम्हें जगाया नहीं... तुम मुझसे नाराज नहीं हो... क्या यही तुम्हारा प्यार है...
विश्व - सच कहूँ तो नाराज तो था...
रुप - (बिदक कर) तो तुमने मुझे झूठ क्यूँ बोला...
विश्व - ताकि मुझसे मेरी राजकुमारी नहीं... मेरी नकचढ़ी बात करे... इसलिए...
रुप - (गालों पर अचानक शर्म की लाली आ जाती है) मतलब... सच में नाराज थे...
विश्व - हाँ... था तो...
रुप - (गुस्से वाली लहजे में) तो तुमने मुझे फोन क्यूँ नहीं किया... गिला करते... शिकवा करते... (नरम पड़ते हुए) मैं... मनाती ना...
विश्व - सोचा तो मैंने ऐसा ही था... मगर क्या करूँ... सुबह सुबह हाथ में... न्यूज पेपर आ गया... और मुझे सारा माजरा समझ में आ गया...
रुप - ओ...
विश्व - जी... चलिए अब कहिये... फोन क्यूँ किया...
रुप - फोन क्यूँ किया मतलब... सोचा तुम रूठे होगे... तो थोड़ा मना लूँ...
विश्व - जी हम तो आपके मनाने से पहले ही मान चुके हैं... कहिये फोन क्यूँ किया... क्या बात है जो आपको खाए जा रही है...
रुप - (थोड़ी उदास हो कर) वह.. मेरी दोस्त है ना... तब्बसुम...
विश्व - हाँ... क्या हुआ उन्हें...
रुप - वह पता नहीं... मेरे राजगड़ जाने से पहले गायब है... अभी तक नहीं दिखी है... सोचा था आज उसके घर जाऊँगी... पर... कल देर रात को खबर मिली के...
विश्व - ह्म्म्म्म... आपको याद हम नहीं आ रहे थे...
रुप - तुम... तुम... मुझे चिढ़ा रहे हो... देखो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी... मुझे... मुझे भूल जाओ...
विश्व - ना ना.. यह सितम ना करो... तुम्हें दिल से कैसे जुदा हम करेंगे... के मर जायेंगे और क्या हम करेंगे...
रुप - (खुश होते हुए) आखिर तुम्हारे मुहँ से मेरे लिए तुम निकल ही गया...
विश्व - ओह शीट... मुहँ से निकल गया... वैसे इसे सीरियसली ना लीजिए गा... यह एक गाना था... जिसे मैंने आपके लिए गुनगुना दिया...
रुप - जो भी किया... तुमने मेरे दिल को खुश कर दिया... वैसे.. (फुसलाते हुए) कब आ रहे हो...
विश्व - जब आप चाहो... बस एक बार आवाज दीजिए... हम आपके सामने हाजिर हो जाएंगे...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अच्छा ठीक है... आप कब चाहतीं हैं... के मैं आपके सामने आऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म... कल...
विश्व - ठीक है... कल शाम को... मुलाकात होगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब तुम आज राजगड़ से निकल रहे हो...
विश्व - हाँ...
रुप - तो फिर... मुझे कल शाम का बेसब्री से इंतजार होगा... बाय...

कह कर फोन काट देती है l फोन के कट जाने पर विश्व मुस्कराते हुए फोन को देखता है फिर फोन को जेब में रखते वक़्त उसे सामने पानी की बोतल लिए सीलु खड़ा दिखता है l

विश्व - क्या हुआ... कब से सामने ऐसे खड़े हो...
सीलु - (पानी की बोतल को विश्व को देते हुए सामने वाली बेंच पर बैठ कर) कुछ ही देर हुए... तुम भाभी के साथ बातों में खोए हुए थे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो टोंट मार रहे हो...
सीलु - नहीं भाई... भाभी से बात करते हुए इस कदर खो गए थे कि... मेरे आने का एहसास तक नहीं हुआ...
विश्व - भाई मार लो... जितना चाहे टोंट मार लो...
सीलु - क्यूँ भाई... सिर्फ टीलु को ही हक है क्या...
विश्व - तो तुम टीलु से जल रहे हो...
सीलु - सिर्फ मैं ही नहीं... मिलु और जिलु भी..
विश्व - अच्छा पर क्यूँ...
सीलु - क्या... क्यूँ भाई... वह मजे से आपके पास... आपके साथ रह रहा है... जब कि...
विश्व - बस कुछ दिन और... ऐसे छोटी छोटी बातों को दिल से लगाओगे.. तो अब तक का सारा किए कराए पर पानी फिर जाएगा...
सीलु - पता नहीं वह दिन कब आएगा... पिछले एक साल से जमें हुए हैं... पर ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगा है...
विश्व - क्यूँ... मुझे तो लगता है... बहुत कुछ पता लगा लिया है तुमने... बस एक सिरा ढूंढना बाकी है... वह मिल गया... तो समझ लो... जिस पर्दे के आड़ में... उन लोगों के काले धंधे चल रहे हैं... वह पर्दा ही गिर जाएगा...
सीलु - हाँ... पर वह सिरा ही तो नहीं मिल रहा है... पिछली बार जो कांड हुआ था... सब मुर्दों के आधार कार्ड पर हुआ था... पर इस बार ऐसा नहीं है... पर पैसा खूब बेह रहा है... सब अपने अपने हिस्से का पैसा दोनों हाथों से बटोर रहे हैं... क्या हो रहा है.. कैसे हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - हर नया क्राइम.. पिछले बार से बेहतर ही होता है... तुम लोगों ने बहुत कुछ पता कर लिया है... इसलिए तो कह रहा हूँ.. बस कुछ दिन और...
सीलु - हाँ... जानता हूँ... करप्शन हो रहा है... बहुत ही ज़बरदस्त हो रहा है... पर हमें सिर्फ उपरी सतह के बारे में अंदाजा है... हम ज्यादा गहराई तक ना झाँक पा रहे हैं... ना ही छानबीन नहीं कर पा रहे हैं...
विश्व - हाँ.. वह इसलिए... क्यूंकि इस महा करप्शन में राजा का इंवॉल्वेंस है...
सीलु - चलो जब एक साल देख लिया... यह कुछ दिन भी देख लेंगे... वैसे भाई... तुम्हारा लाइसेंस कब तक आ जाएगा...
विश्व - माँ कह रही थी... और शायद दस से पंद्रह दिन के बाद...
सीलु - ह्म्म्म्म... बस...
विश्व - क्या...
सीलु - वह विश्वा भाई... बस आ गई...
विश्व - (उठते हुए) ओ अच्छा...
सीलु - (दोनों बस की ओर जाते हुए) अच्छा भाई.. उस पेपर वाले का क्या करें...
विश्व - नजर भी मत डालो उसपर... देखते हैं... और क्या क्या मैसेज कर रहा है... उसके मैसेज के पैटर्न देख रहा हूँ... टीलु को भी समझा दिया है... जब उस पर शक होगा... तब उसे ढूढेंगे...
Bahut hi shaandar update 😍😍
 

Vk248517

I love Fantasy and Sci-fiction story.
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👉एक सौ बाईसवां अपडेट
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राजगड़ में नर्म धूप खिल रही थी l पुरा गाँव अपने अपने तरीके से व्यस्त हो गया था l विश्व अपने घर के आँगन में दंड पेल रहा था l कुछ देर बाद टीलु हाथ में अखबार लेकर पहुँचता है l विश्व एक नजर टीलु की ओर देखता है और फिर वापस दंड पेलने लगता है l

टीलु - क्या कर रहे हो भाई...
विश्व - आँखे फुट गई हैं क्या... नहीं दिख रहा...
टीलु - क्या हुआ है भाई... थोड़े उखड़े हुए लग रहे हो...
विश्व - आदत... छूट ना जाए... इसलिये... पुरानी आदत डाल रहा हूँ...
टीलु - (मुस्कराते हुए) सुबह सुबह उखड़े हुए हो... ही ही ही.... लगता है भाभी ने फोन नहीं किया...
विश्व - (थोड़े गंभीर आवाज़ में) कोई खास खबर...
टीलु - आप बताओ... आज आपके साथ... क्या हो गया है...

विश्व अपना दंड बंद करता है, और एक टावल से अपना पसीना पोछने लगता है l हाथ बढ़ा कर इशारे से टीलु से अख़बार माँगता है l

टीलु - (अखबार देते हुए) क्या भाई... मुझसे नाराज हो...
विश्व - सॉरी... मेरे भाई... सॉरी... तुम पर तो कभी गुस्सा हो ही नहीं सकता...
टीलु - तो फिर...
विश्व - तुमने सच कहा... तुम्हारी भाभी ने आज मुझे जगाया नहीं है...
टीलु - भूली तो नहीं होंगी... पर हो सकता है... कोई बात ऐसी हो गई हो... के...

विश्व अखबार को सीधा कर झाड़ते हुए मुख्य पृष्ठा पर नजर डालते ही भवें तन जाती है l जिसे देख कर टीलु की बात आधी रह गई थी l

टीलु - क्या.. क्या ख़बर है... भाई...

विश्व टीलु को अखबार को टीलु की ओर बढ़ा देता है l मुख्य पृष्ठ पर देखता है l हेड लाइन थी l ओडिशा के सबसे बड़ी निजी सिक्युरिटी संस्था ESS के बड़े और संस्थापक प्रमुख अधिकारी श्री अशोक महांती जी की कल रात कर दुर्घटना में मृत्यु l

टीलु - ओ... यह तो उनके मुलाजिम होंगे... क्या इनकी मौत से...
विश्व - मैंने तुम्हें यह नहीं दिखाया.... यह पेपर तुमने खरीद कर लाए... या किसी की उठा कर लाए....
टीलु - क्या भाई मेरी इज़्ज़त दो कौड़ी की कर रहे हो.... वह भी इस पाँच रुपये के अखबार के लिए...
विश्व - तो फिर इसके कुछ एक पेज पर पेंसिल से कुछ नंबर क्यूँ लिखा हुआ है.... कल वाले पेपर में भी वही था...
टीलु - क्या... (चौंक कर) भाई... वह सुबह जैसे ही मुझे देखता है... अख़बार मेरे हाथों में थमा देता है.... और मैं बिना देखे तुम्हारे हवाले कर देता हूँ...
विश्व - (थोड़ा हैरान होता है) मतलब तुमने सीधे दुकान से ली....
टीलु - हाँ.....

विश्व टीलु की हाथ से दोबारा अख़बार लेता है और गौर से देखता है, पेंसिल में पहले पन्ने पर 16/5⬇️10➡️2 🔘लिखा हुआ था l वैसे ही दुसरे तीसरे पन्ने पर पेंसिल से नंबर अजीब तरह से लिखा हुआ था l विश्व घर के अंदर जाता है बीते दिन की अखबार को लाता है l वह देखता है उस अखबार के सारे पन्नों पर इसी तरह से अजीब नंबर लिखे हुए हैं l विश्व कुछ सोचता है फिर अंदर जा कर एक डायरी और पेन लाता है l कुछ देर तक दोनों अखबार के पन्ने पलट पलट कर पढ़ कर डायरी में लिखने लगता है l

विश्व - ओ तो बात यह है....
टीलु - (अब तक विश्व को पागलों की तरह देख रहा था) क्या क्या हुआ भाई... कुछ गड़बड़ है क्या....
विश्व - नहीं... अब समझ में आया... वह चौथा कौन है... जो हम पर नजर रखे हुए है...
टीलु - क्या... यह तो बहुत बड़ी गडबड़ी है... क... कौन है भाई...
विश्व - नहीं... गड़बड़ तो नहीं... पर कोई है... जो हमसे कॉन्टेक्ट करना चाहता है... हम से कम्युनिकेट करना चाहता है...
टीलु - तुमको कैसे पता चला....
विश्व - (उसे दिखाता है) यह देखो... 16/5⬇️10➡️2 🔘 इसका मतलब हुआ... सोलहवां पन्ना... पाँचवी कॉलम... दसवीं लाइन की दुसरी शब्द... जिसके ऊपर पेंसिल से गोल घुमाया गया है... और वह शब्द है हैलो.... और उसी पन्ने के ऊपर किसी और पन्ने का पता अनुरुप कॉलम और लाइन और शब्द... सब जोड़ दिया तो मुझे कल के अखवार में... यह मैसेज मिला...
"हैलो विश्व... क्या हम मिल सकते हैं... राजा के खिलाफ... मदत तुम्हें मिल सकता है..."
और आज... मुझे इस अखबार में यह मैसेज मिला...
" राजा से कैसे लड़ोगे... तुम्हारे काम आ सकते हैं... क्या मिलना हमारा हो पायेगा....

टीलु बेवक़ूफ़ों की तरह अपना मुहँ फाड़े कभी विश्व को और कभी विश्व के विश्लेषण देख रहा था l विश्व टीलु की ओर देखता है और उसके हाव भाव देख कर

विश्व - क्या हुआ.. ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
टीलु - भाई... माना के तुम्हारा दिमाग बहुत चलता है... पर यह कोई ट्रैप भी तो हो सकता है...
विश्व - हाँ हो तो सकता है...
टीलु - तो...
विश्व - पर आजमाना तो पड़ेगा....
टीलु - कैसे... तुम उससे मिलना चाहते हो... उसे कैसे पता चलेगा... अगर यह राजा का गेम हुआ तो...
विश्व - ना... यह राजा का गेम नहीं हो सकता... कोई ऐसा जो राजा से बदला भी लेना चाह रहा हो... और छुटकारा पाना चाह रहा हो...
टीलु - और तुम कह रहे हो कि चौथा... इसका आदमी है...
विश्व - हाँ...
टीलु - ठीक है... तुम्हारी हर बात में दम है.... पर सवाल यह है कि... तुम उससे मिलना चाहते हो... यह बात उस तक कैसे पहुँचाओगे.... और एक बात पेपर तो सुबह तड़के आता होगा... यह कब और किस वक़्त यह कांड कर रहा है..
विश्व - अभी मिलने का वक़्त आया नहीं है... मिलने का वक़्त वही मुकर्रर करेगा... वह जो भी है... उसने हमारे बारे में... कुछ कुछ जानता है.... फ़िलहाल... कुछ दिनों तक हमें... ऐसे ही मैसेज मिलते रहेंगे...
टीलु - ओ अच्छा...
विश्व - कल तुम्हें एक काम करना है...
टीलु - क्या...
विश्व - कल पेपर लाते वक़्त उससे पूछना जरूर...
टीलु - यही की कौन यह सब लिख रहा है...
विश्व - नहीं... उसमें पेंसिल से लिखा क्यूँ है...

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क्षेत्रपाल महल के अंदर मंदिर l सुषमा पुजा खतम कर मुड़ती है तो पिनाक को देखती है l

सुषमा - (हैरानी से) अरे... आप.. आप और यहाँ... इस वक़्त..
पिनाक - (वहाँ खड़े नौकरों से) एकांत... (सभी नौकर उन दोनों को वहीँ पर छोड़ कर चले जाते हैं) (सुषमा से) हम यहाँ आपकी पुजा देखने नहीं आए हैं... हम तुरंत भुवनेश्वर के लिए निकलना चाहते हैं.... अगर आपकी पुजा ख़तम हो गई हो... तो कुछ सवाल जवाब करना चाहते हैं...
सुषमा - ओ हाँ.... महांती की दुर्घटना से आप आहत हुए होंगे... आखिर उसकी अंतिम विदाई पर आपको वहाँ होना तो चाहिए... उसकी मृत्यु एक अपूरणीय क्षति जो है...
पिनाक - हमें उसकी मौत से कोई लेना देना नहीं है... वह उसकी मौत मरा है... उसकी जगह हम किसी और को... नौकरी पर रख देंगे....
सुषमा - आप इतने कठोर कैसे हो सकते हैं.... आखिर महांती ने हमारे परिवार को बहुत कुछ दिया है...
पिनाक - हमें आप ज्ञान ना दें तो बेहतर होगा... कोई मुफ्त में नहीं काम कर रहा था... उसकी हैसियत से ज्यादा मान दिया गया था... पार्टनर था वह... और उसके लिए... मोटी तनख्वाह लेता भी था... अपना हिस्सा लेता था.... और हाँ... हम उसके बारे में बात करने यहाँ नहीं आए हैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) तो किसी और विषय में सवाल जवाब करने आए थे...
पिनाक - हाँ...
सुषमा - तो पूछिए...
पिनाक - आप पिछली बार जब भुवनेश्वर गई थीं... तब माली साही बस्ती में क्यूँ गई थी...

सुषमा इस सवाल से झेंप जाती है l वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी l पिनाक से सुषमा की प्रतिक्रिया नहीं छुपती l सुषमा अपना सिर नीचे कर लेती है l

पिनाक - छोटी रानी जी... हमने आपसे कुछ पुछा है...
सुषमा - (खुद को संभाल कर मजबूत करते हुए) हम... हम अपने बेटे की ख्वाहिश को अंजाम देने गए थे... पुरा करने गए थे..
पिनाक - ख्वाहिश... कैसा ख्वाहिश...
सुषमा - अपने जीवन साथी की...
पिनाक - एक नीची जात की लकड़ी... जो एक बस्ती में रहती है...
सुषमा - ओ... तो आप तक यह खबर पहुँच गई है...
पिनाक - हाँ... पहुँच गई है... पर वह है कौन... हमें नहीं मालुम... लेकिन इस बार हम भुवनेश्वर जा कर... उसे उसकी औकात दिखा देंगे...
सुषमा - (उसकी हाथों से पुजा की थाली गिर जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं...
पिनाक - वही जो आप ने सुना...
सुषमा - अपने इकलौते बेटे वीर के लिए भी सोचिए... वह उस लड़की से प्यार करता है...
पिनाक - वह... (हैरानी से) करता है... यह कैसी भाषा है... मत भूलिए... आप छोटी रानी हैं... और वह राजकुमार... गवांरों की बोली क्यूँ बोल रहे हैं...
सुषमा - वह बेटा है हमारा...
पिनाक - राजकुमार हैं वह...
सुषमा - तो क्या हुआ... इससे वह हमारा बेटा है... यह सच छुप तो नहीं जाता... इस घर में पहली बार तो नहीं हो रहा है... प्यार करता है....
पिनाक - प्यार करता है.... या नाक कटवा रहा है... क्षेत्रपाल घर के मर्द किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... पर राजकुमार तो... उस नीच लड़की के आगे... नाक रगड़ने पर तूल गए हैं...
सुषमा - (टौंट मारते हुए) हूंह्ह... क्यूँ झूठ बोल रहे हैं.... किस अहंकार के बूते पर झूठ बोल रहे हैं...
पिनाक - (बिदक कर) क्या झूठ बोला है हमने...
सुषमा - यही की क्षेत्रपाल घर के मर्द... किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... हूंह्ह... औरत अगर पैर खोल दे... तो क्षेत्रपाल घर के मर्द.. घुटने रगड़ने पर तूल जाते हैं...

पिनाक का चेहरा सख्त हो जाता है l जबड़े भींच जाते हैं l गुस्से में बाईं आँख का भंवा तन जाता है और दाहिनी आँख के नीचे की पेशियां थर्राने लगती हैं l

पिनाक - क्या कहा गुस्ताख औरत...
सुषमा - एक सच बता दिया तो... आपके पुरुषार्थ के अहं घायल हो गया... जिस उम्र में... बेटे के लिए बहु ढूंढना चाहिए... उस उम्र में... किसी बेबस औरत को मजबूर कर उसकी मजबूरी की नाजायज फायदा उठाकर... छी...
पिनाक - ओ... तो आप... हम पर नजर रख रहे हैं...
सुषमा - जी नहीं... हम ऐसी ओछी काम नहीं कर सकते... जिस दिन आपको बड़े राजा की बुलावे की ख़बर दे रहे थे... आप उस दिन गलती से फोन बंद करना भूल गए थे...
पिनाक - ओ... तो... इसलिए... आपकी जुबान अपनी औकात भूल रही है...
सुषमा - जी नहीं... भूले नहीं हैं हम... जिस लड़की के लिए... हम इस हद तक आ पहुँचे... इससे कहीं आगे राजकुमार जा सकते हैं... बस यही बताने के लिए... आपको आगाह करने के लिए...
पिनाक - हाः... आप हमें आगाह कर रही हैं... आप जानते नहीं... अपनी मूँछों के लिए... हम किस हद तक जा सकते हैं...
सुषमा - जानते हैं... आखिर अपनी जीवन यहाँ तक जो गुजारा है आपके साथ.. आपकी जिद की हद को जानते हैं... पहचानते हैं... पर यह मत भूलिए... वह वीर सिंह क्षेत्रपाल है... उसकी जिद की हद... सिर्फ हम जानते हैं... आप नहीं जानते...

सुषमा जिस विश्वास के साथ यह बात कही थी थोड़ी देर के लिए पिनाक अंदर से हिल जाता है l वह कुछ समझने के अंदाज में अपना सिर हिलाता है l

पिनाक - हम यहाँ... बात की जानकारी लेने आए थे... शहरों की गालियों बाजारों में जो कानाफूसी हो रही है... दिल से चाहते थे... इस बात का आपसे कोई ताल्लुक ना हो... कोई सहमती ना हो... पर... पर कोई नहीं.... एक वादा जरूर करते हैं... वीर की शादी हम एक महीने के भीतर करवा देंगे... सिर्फ एक महीने के भीतर... वह भी हमारी और राजा साहब की मर्जी से.... वह लड़की जो इस वक़्त वीर के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है... उसे उसकी औकात भी दिखाएंगे...
सुषमा - आप भगवान के दर पर... इतनी गुरुर के साथ बात की है... मैं आपके आगे हाथ जोड़ कर आपको अपने भगवान से ऊपर नहीं रख सकती... अब जो होगा... मैं अपने भगवान की मर्जी पर छोड़ रही हूँ... पर इतना जरूर कहूँगी... इस बार क्षेत्रपाल घर की अहंकार आपस में टकराएगी... आपकी जिद अपनी औकात जरूर देखेगी...

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हस्पताल के केबिन के बाहर वीर अनु और दादी इंतजार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद एक स्टाफ नर्स केबिन के बाहर आकर वीर से कहता है

नर्स - पेशेंट को होश आ गया है...
वीर - थैंक्स... क्या हम पेशेंट से मिल सकते हैं...
नर्स - जी बेशक...

वीर अनु और दादी तीनों केबिन के अंदर आते हैं l मृत्युंजय के पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था l सिर पर पट्टी लगा हुआ था और बाएं हाथ में बैंडेज बंधा हुआ था l बाकी शरीर पर कहीं और चोट नहीं था l मृत्युंजय अपनी आँखे बंद किए हुआ था l जैसे ही उसके बेड के करीब तीनों पहुँचते हैं, वह अपनी आँखे खोलता है l

अनु - मट्टू भैया...
मृत्युंजय - आह... (कराहते हुए) महांती सर कैसे हैं... (अनु अपना सिर झुका लेती है)
वीर - तुम उनकी बात छोड़ो... यह बता ओ... तुम अब कैसे हो...
मृत्युंजय - मैं... आपके सामने ही हूँ... पर महांती सर...
वीर - वह... अब... (रुक जाता है)
मृत्युंजय - ओह... समझा... (रोते हुए) हम दोनों समझ ही नहीं पाए... हमारे साथ क्या हो गया...
वीर - मृत्युंजय... समझ नहीं पाए... क्या हो गया मतलब...
मृत्युंजय - अब मैं क्या समझाऊँ.. जब मैं खुद नहीं समझ पाया... जब तक होश में था... तब तक मुझे याद जो भी याद था... मैंने वह सब सारी जानकारी पुलिस को दे दिया है...
वीर - हाँ... जानता हूँ... पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ... क्यूंकि पुलिस कह रही है... तुम शायद कुछ छुपा रहे हो...
दादी - (सुबकते हुए) बेचारा... कुछ भी सही नहीं हो रहा है... इसके साथ...
अनु - दादी... मट्टू भैया दर्द में हैं... और तुम हो कि... दिलासा देने के बजाय... और बढ़ा रही हो...
मृत्युंजय - कोई नहीं बहन... कोई नहीं... (वीर से) हाँ... एक नहीं दो बातेँ... मैंने पुलिस से छुपाई है...

मृत्युंजय के इस बात पर तीनों चौंकते हैं l वीर की भवें सिकुड़ जाती है l

वीर - क्या... क्या छुपाया है तुमने..
मृत्युंजय - राजकुमार... मुझे महांती सर ने कॉल कर बुलाया और गाड़ी में बैठने के लिए कहा... मैंने वज़ह पूछा तो उन्होनें कहा... कोई भेदी है... जिसे उन्होंने ढूंढ लिया है... और राजकुमार जी के सामने उसे पेश करना है... मैं चुपचाप गाड़ी में बैठ गया... कुछ देर बार ट्रैफ़िक में गाड़ी कुछ देर के लिए रुक गई... तब मैंने महांती सर जी से सवाल किया... के उन्होंने मुझे ही क्यूँ चुना... उस घर के भेदी को पकड़ने के लिए... तब महांती सर ने कहा कि... घर की भेदी खुलासे के बाद वह मुझे लेकर तुरंत विशाखापट्टनम जाएंगे... मैं और भी हैरान हो गया... वह मुझे दिलासा देते हुए कहा... की मेरी बहन पुष्पा का पता चल गया है...
तीनों - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैं भी चौंक कर ऐसे ही प्रतिक्रिया दी... तो उन्होंने कहा कि पुष्पा और विनय... विशाखापट्टनम के पास आर्कु में किसी रिसॉर्ट में हैं... यह बात सुन कर मैं बहुत खुस हुआ... फिर गाड़ी इंफोसिस के एसइजेड की ओर चलने लगी... हम दोनों बहुत खुश थे... हँसने लगे... हमारी हँसी धीरे धीरे बढ़ने लगी... बढ़ती ही चली गई... हम हँसते हँसते बेकाबू होते चले गए... फिर क्या हुआ... मुझे याद नहीं... जब आँखें खुली... खुद को एम्बुलेंस के अंदर पाया...
वीर - तो तुमने पुलिस को पुरी बात क्यूँ नहीं बताई...
मृत्युंजय - मुझे लगा... घर का भेदी कोई है... जिसे आपने अभी तक जब पुलिस से छुपा कर रखा है... तो वगैर आपके जानकारी के मैं यह बात पुलिस वालों से नहीं कह सकता था....
अनु - पर पुष्पा और विनय की बात तो कह ही सकते थे...
मृत्युंजय - नहीं... राजकुमार जी ने मुझसे वादा किया था... वे खुद पुष्पा और विनय को ढूँढ कर... उनकी शादी के लिए... केके साहब को मना कर... मेरे हवाले करेंगे... इसलिये... मैं यह बात पुलिस से छुपाई... क्या... मैंने कुछ गलत किया...

वीर यह बात सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वह मृत्युंजय के कंधे पर हाथ रखकर अपना सिर हिलाते हुए अपने होंठों को अंदर भिंच लेता है l

वीर - नहीं... तुम वाकई बहुत अच्छे हो मट्टू... बहुत ही अच्छे हो... ना सिर्फ तुमने अपने मालिक की घर की इज़्ज़त बचाई... बल्कि अपनी घर की भी इज़्ज़त बचाई... मैं... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैं... वादा करता हूँ... कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन और बहनोई खड़े मिलेंगे... तुम्हारा सिर ना समाज के आगे... ना किसी और के आगे झुकेगा... वादा कर रहा हूँ...
मृत्युंजय - (रोनी आवाज में) थैंक्यू... राजकुमार जी... थैंक्यू... मैं आपका यह उपकार जीवन भर भुला नहीं पाऊँगा...
वीर - मट्टू... मैंने अभीतक कुछ किया नहीं है... पर अब दिल से कुछ करना चाहता हूँ...
मृत्युंजय - तो फिर एक अनुरोध है...
वीर - कहो... हक् से कहो...
मृत्युंजय - आपने इतनी बड़ी बात कह दी... यही काफी है... मैं चाहता हूँ... आप जब पुष्पा को लेने जाएं... अनु और दादी जी को भी साथ ले जाएं...
वीर - ठीक है... मना नहीं करूँगा... पर इतना तो पूछूँगा ही... क्या... तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है या....
मृत्युंजय - (वीर की हाथ को पकड़ लेता है) आप अपने को... अपमानित महसूस ना करें... बात भरोसे की नहीं है... (चुप हो जाता है)
अनु - हाँ राजकुमार जी... मट्टू भैया ठीक कह रहे हैं.... (वीर अनु की ओर सवालिया नजर से देखता है) राजकुमार जी... एक लड़की की मनःस्थिति को समझने की कोशिश कीजिए.... आप पुष्पा के लिए अनजान ही हैं... पर मैं या दादी नहीं... मैं उसकी दोस्त भी हूँ और बहन भी... और वह दादी को भी बहुत मानती है... आपसे शायद जोर जबरदस्ती हो जाए.... इसलिए मट्टू भैया ने हमारी बात कही...
वीर - ओह... सॉरी मट्टू... मैं तुम्हारे मन की बात को समझ नहीं पाया... ठीक है... मैं कल सुबह ही... अनु और दादी मां को साथ में लेकर... जाऊँगा... समझाऊँगा... जरूरत पड़ी तो हाथ पैर जोड़ुंगा... पर मैं पुष्पा और विनय को लेकर ही आऊंगा...

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कमिश्नर ऑफिस
कमिश्नर के सामने विक्रम बैठा हुआ है l एक सबइंस्पेक्टर आता है कमिश्नर को सैल्यूट मारने के बाद विक्रम को हैलो कहता है फिर उनके सामने टेबल पर एक फाइल रख कर दोबारा सैल्यूट मार कर वापस चला जाता है l कमिश्नर फाइल खोल कर देखता है फिर विक्रम की ओर देख कर कुछ सोचने लगता है l

विक्रम - क्या बात है कमिश्नर साहब.. क्या सोचने लगे... क्या लिखा है फाइल में...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... यह एक्सीडेंट नहीं है... जैसा कि अंदाजा था... यह मर्डर है...
विक्रम - आपको... किसी पर शक़ है...
कमिश्नर - युवराज जी... (एक गहरी साँस लेकर) हम आपके किसी भी मैटर में... अपना सिर नहीं खपाते... तो हम कैसे किस पर शक कर सकते हैं... या जता सकते हैं...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी छा जाती है l क्यूंकि कमिश्नर सच कहा था जिन मामलों में क्षेत्रपाल या ESS जुड़ा था उन केसेस से पुलिस हमेशा खुद को दूर ही रखती थी l

कमिश्नर - हम बस आपकी सहूलियत के लिए... मीडिया में इतना कहा कि यह एक्सीडेंट है... हाँ अगर आप चाहेंगे... तो हम इस केस को अपने हाथ में ले सकते हैं...
विक्रम - मीडिया में एक्सीडेंट कहने के लिए... थैंक्यू... पर क्या आप इस मर्डर को... डिफाइन कर सकते हैं...
कमिश्नर - हाँ कर सकता हूँ... बस एक सवाल का जवाब अगर मिल जाए... तो मैं बता दूँगा...
विक्रम - ठीक है पूछिये... क्या पूछना चाहते हैं...
कमिश्नर - ड्राइविंग के वक़्त... क्या महांती ग्लास उतार कर गाड़ी ड्राइव करते थे... या.. ग्लास उठा कर...
विक्रम - नहीं... ग्लास उतार कर... महांती को एसी में गाड़ी चलाना बिल्कुल पसंद नहीं था... इसलिए हमेशा विंडो ग्लास उतार कर ही गाड़ी चलाते थे... उन्हें नैचुरल हवा पसंद था...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... मतलब कातिल उनकी इस आदत से अच्छी तरह से वाकिफ था... शीट... यही एक बात मृत्युंजय के फेवर में जा रहा है...
विक्रम - (आँखे हैरानी के मारे फैल जाता है) क्या... मृत्युंजय...
कमिश्नर - हाँ... उसके स्टेटमेंट में हमें तब लगा तो था... के वह हमसे कुछ छुपा रहा है... अब महांती बाबु की यह आदत... मृत्युंजय के फेवर में... उसे बचा लेगा...
विक्रम - कमिशन साहब... क्या आप प्लीज... केस को ब्रीफ कर सकते हैं...
कमिश्नर - जी बिल्कुल... मृत्युंजय को गाड़ी में बिठा कर महांती इन्फोसिस की ओर जाने लगा... इस बात से अनजान के वह और उसकी गाड़ी की रेकी हो रही है... जाहिर सी बात है... उस दिन नहीं... कई दिनों से हो रही थी....
विक्रम - फिर...
कमिश्नर - उनकी गाड़ी ट्रैफ़िक पर रुकी नहीं थी... बल्कि सिग्नल के साथ छेड़ छाड़ कर रोकी गई थी... और आप हैरान हो जाओगे... गाड़ी सिग्नल पर सात मिनट तक रुकी थी... और स्वेरेज के गटर के ढक्कन के ऊपर... मतलब परफेक्ट लोकेशन.... वहां पर गाड़ी की ब्रेक... गियर के साथ छेड़ छाड़ करने वाला जब गटर का ढक्कन हटाया... तो उसकी बदबू के वज़ह से कार की ग्लास उठा कर एसी चलाए होंगे... गाड़ी में पहले से ही किसीने ऐसी वेंट पर फ्रैगनेस बॉटल की जगह... नाइट्रस आक्साइड यानी लाफिंग गैस की बॉटल प्लांट कर दिया... अब चूँकि एसी की वेंट चल रही थी... पुरे गाड़ी में गैस फैल गई... उसके बाद... महांती आउट ऑफ कंट्रोल हो गया... गाड़ी पलट गई... बाकी आगे आप जानते हैं...
विक्रम - हाँ लाफिंग गैस की बात छोड़ दें तो यही स्टेटमेंट... मृत्युंजय ने भी दी थी.... पर मृत्युंजय सीट बेल्ट पहने हुए था... पर महांती सीट बेल्ट में नहीं था... और बैलून भी प्रोटेक्शन नहीं दे पाए...
कमिश्नर - हाँ... हो सकता है कि... महांती जब हँसते हँसते आउट ऑफ कंट्रोल हुआ होगा तभी... उसका हाथ.. सीट बेल्ट की लॉक पर लगा होगा और... सीट बेल्ट खुल गई होगी... रही बैलून की बात... एक्सीडेंट बहुत ही जबरदस्त था... गाड़ी के पलटते ही महांती की गर्दन की हड्डी टुट गई...
(विक्रम चुप रहता है) वैसे आपको... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी वालों को... थैंक्स कहना चहिए... उनकी एक प्रोग्राम वहाँ पर चल रही थी... और उन्होंने ही एम्बुलेंस की अरेंजमेंट की थी... वर्ना... मृत्युंजय भी हमें जिंदा ना मिलता...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक बात पूछूं...
कमिश्नर - जी बेशक...
विक्रम - क्या आपको... मृत्युंजय पर शक है...
कमिश्नर - था... पर अब नहीं है...
विक्रम - कैसे...
कमिश्नर - (फाइल से एक मेडिकल रिपोर्ट निकाल कर दिखाता है) उसके ब्लड सैंपल में उतना ही... नाइट्रस आक्साइड मिला है... जितना... महांती के ब्लड सैंपल में मिला... और मृत्युंजय का एक पैर टूटा हुआ है... हाथ में हेयर लाइन फ्रैक्चर है... और उसका सिर भी घायल है... महांती से उसकी कोई निजी रंजिश लगता नहीं है... और अब तक जैसा सर्कुमस्टैंस है... उससे लगता भी नहीं है कि मृत्युंजय कोई सूइसाइडल मर्डर अटेंप्ट किया होगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... कमिश्नर साहब... तो मुझे क्रेमेशंन के लिए... महांती की डेड बॉडी कब तक मिल जाएगी...
कमिश्नर - हमने सारी फॉर्मलीटीस पुरी कर ली है... आप जब चाहें ले जा सकते हैं... हमने मेडिकल में इंफॉर्म भी कर दिया है...

विक्रम अपनी जगह से उठता है, तो कमिश्नर भी खड़े हो कर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर विक्रम हाथ मिलाए वगैर वहाँ से निकल जाता है l कमिश्नर का हाथ वैसे ही हवा में रह जाता है l विक्रम बाहर आ कर देखता है उसके कार के पास प्रधान और रोणा खड़े हुए थे l

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अपनी बेडरुम में रुप चहल कदम कर रही है l दो दिनों से ट्राय कर रही है पर तब्बसुम को फोन लगा रही है पर तब्बसुम का फोन उसे स्विच ऑफ ही मिल रही है l आज सुबह तब्बसुम से उसके घर पर मिलने का प्लान तो था पर चूंकि कल रात से ही घर पर मातम सा था और सुबह का माहौल ग़मगीन था, इसलिए वह ना आज कॉलेज जा सकी ना तब्बसुम के घर l आखिरी बार तब्बसुम को फोन मिलाती है पर इस बार भी उसे फोन स्विच ऑफ मिलती है l चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है और फिर आकर बेड पर बैठ जाती है l थोड़े उदास और खीजे मन से फोन निकाल कर कॉन्टेक्ट लिस्ट को स्क्रोल करती है l पहला नाम उसे बेवक़ूफ़ दिखती है l अपने आप उसका जीभ दांतों तले आ जाती है और बिना देरी किए विश्व को फोन लगाती है l

विश्व - हैलो...
रुप - नाराज हो..
विश्व - नहीं...
रुप - झूठ बोल रहे हो ना... मेरा मन रखने के लिए...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (चिढ़ जाती है और गुस्से से) हर सुबह की तरह आज तुम्हें जगाया नहीं... तुम मुझसे नाराज नहीं हो... क्या यही तुम्हारा प्यार है...
विश्व - सच कहूँ तो नाराज तो था...
रुप - (बिदक कर) तो तुमने मुझे झूठ क्यूँ बोला...
विश्व - ताकि मुझसे मेरी राजकुमारी नहीं... मेरी नकचढ़ी बात करे... इसलिए...
रुप - (गालों पर अचानक शर्म की लाली आ जाती है) मतलब... सच में नाराज थे...
विश्व - हाँ... था तो...
रुप - (गुस्से वाली लहजे में) तो तुमने मुझे फोन क्यूँ नहीं किया... गिला करते... शिकवा करते... (नरम पड़ते हुए) मैं... मनाती ना...
विश्व - सोचा तो मैंने ऐसा ही था... मगर क्या करूँ... सुबह सुबह हाथ में... न्यूज पेपर आ गया... और मुझे सारा माजरा समझ में आ गया...
रुप - ओ...
विश्व - जी... चलिए अब कहिये... फोन क्यूँ किया...
रुप - फोन क्यूँ किया मतलब... सोचा तुम रूठे होगे... तो थोड़ा मना लूँ...
विश्व - जी हम तो आपके मनाने से पहले ही मान चुके हैं... कहिये फोन क्यूँ किया... क्या बात है जो आपको खाए जा रही है...
रुप - (थोड़ी उदास हो कर) वह.. मेरी दोस्त है ना... तब्बसुम...
विश्व - हाँ... क्या हुआ उन्हें...
रुप - वह पता नहीं... मेरे राजगड़ जाने से पहले गायब है... अभी तक नहीं दिखी है... सोचा था आज उसके घर जाऊँगी... पर... कल देर रात को खबर मिली के...
विश्व - ह्म्म्म्म... आपको याद हम नहीं आ रहे थे...
रुप - तुम... तुम... मुझे चिढ़ा रहे हो... देखो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी... मुझे... मुझे भूल जाओ...
विश्व - ना ना.. यह सितम ना करो... तुम्हें दिल से कैसे जुदा हम करेंगे... के मर जायेंगे और क्या हम करेंगे...
रुप - (खुश होते हुए) आखिर तुम्हारे मुहँ से मेरे लिए तुम निकल ही गया...
विश्व - ओह शीट... मुहँ से निकल गया... वैसे इसे सीरियसली ना लीजिए गा... यह एक गाना था... जिसे मैंने आपके लिए गुनगुना दिया...
रुप - जो भी किया... तुमने मेरे दिल को खुश कर दिया... वैसे.. (फुसलाते हुए) कब आ रहे हो...
विश्व - जब आप चाहो... बस एक बार आवाज दीजिए... हम आपके सामने हाजिर हो जाएंगे...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अच्छा ठीक है... आप कब चाहतीं हैं... के मैं आपके सामने आऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म... कल...
विश्व - ठीक है... कल शाम को... मुलाकात होगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब तुम आज राजगड़ से निकल रहे हो...
विश्व - हाँ...
रुप - तो फिर... मुझे कल शाम का बेसब्री से इंतजार होगा... बाय...

कह कर फोन काट देती है l फोन के कट जाने पर विश्व मुस्कराते हुए फोन को देखता है फिर फोन को जेब में रखते वक़्त उसे सामने पानी की बोतल लिए सीलु खड़ा दिखता है l

विश्व - क्या हुआ... कब से सामने ऐसे खड़े हो...
सीलु - (पानी की बोतल को विश्व को देते हुए सामने वाली बेंच पर बैठ कर) कुछ ही देर हुए... तुम भाभी के साथ बातों में खोए हुए थे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो टोंट मार रहे हो...
सीलु - नहीं भाई... भाभी से बात करते हुए इस कदर खो गए थे कि... मेरे आने का एहसास तक नहीं हुआ...
विश्व - भाई मार लो... जितना चाहे टोंट मार लो...
सीलु - क्यूँ भाई... सिर्फ टीलु को ही हक है क्या...
विश्व - तो तुम टीलु से जल रहे हो...
सीलु - सिर्फ मैं ही नहीं... मिलु और जिलु भी..
विश्व - अच्छा पर क्यूँ...
सीलु - क्या... क्यूँ भाई... वह मजे से आपके पास... आपके साथ रह रहा है... जब कि...
विश्व - बस कुछ दिन और... ऐसे छोटी छोटी बातों को दिल से लगाओगे.. तो अब तक का सारा किए कराए पर पानी फिर जाएगा...
सीलु - पता नहीं वह दिन कब आएगा... पिछले एक साल से जमें हुए हैं... पर ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगा है...
विश्व - क्यूँ... मुझे तो लगता है... बहुत कुछ पता लगा लिया है तुमने... बस एक सिरा ढूंढना बाकी है... वह मिल गया... तो समझ लो... जिस पर्दे के आड़ में... उन लोगों के काले धंधे चल रहे हैं... वह पर्दा ही गिर जाएगा...
सीलु - हाँ... पर वह सिरा ही तो नहीं मिल रहा है... पिछली बार जो कांड हुआ था... सब मुर्दों के आधार कार्ड पर हुआ था... पर इस बार ऐसा नहीं है... पर पैसा खूब बेह रहा है... सब अपने अपने हिस्से का पैसा दोनों हाथों से बटोर रहे हैं... क्या हो रहा है.. कैसे हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - हर नया क्राइम.. पिछले बार से बेहतर ही होता है... तुम लोगों ने बहुत कुछ पता कर लिया है... इसलिए तो कह रहा हूँ.. बस कुछ दिन और...
सीलु - हाँ... जानता हूँ... करप्शन हो रहा है... बहुत ही ज़बरदस्त हो रहा है... पर हमें सिर्फ उपरी सतह के बारे में अंदाजा है... हम ज्यादा गहराई तक ना झाँक पा रहे हैं... ना ही छानबीन नहीं कर पा रहे हैं...
विश्व - हाँ.. वह इसलिए... क्यूंकि इस महा करप्शन में राजा का इंवॉल्वेंस है...
सीलु - चलो जब एक साल देख लिया... यह कुछ दिन भी देख लेंगे... वैसे भाई... तुम्हारा लाइसेंस कब तक आ जाएगा...
विश्व - माँ कह रही थी... और शायद दस से पंद्रह दिन के बाद...
सीलु - ह्म्म्म्म... बस...
विश्व - क्या...
सीलु - वह विश्वा भाई... बस आ गई...
विश्व - (उठते हुए) ओ अच्छा...
सीलु - (दोनों बस की ओर जाते हुए) अच्छा भाई.. उस पेपर वाले का क्या करें...
विश्व - नजर भी मत डालो उसपर... देखते हैं... और क्या क्या मैसेज कर रहा है... उसके मैसेज के पैटर्न देख रहा हूँ... टीलु को भी समझा दिया है... जब उस पर शक होगा... तब उसे ढूढेंगे...
Awesome updates🎉
 

ASR

I don't just read books, wanna to climb & live in
Supreme
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भाईयों दोस्तों मित्रों बंधुओं
क्षमा कर देना
मेरे ऑफिस में मेरे साथ छोटा सा एक्सीडेंट हो गया
लगता है आज कल मेरे ग्रह नक्षत्र कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं
दाएं हाथ में फ्रैक्चर है इसलिये बाएं हाथ में जितना हो सका टाइप कर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ
कोशीश करूंगा हर सात या आठवे दिन पर अपडेट लाने की l
जब हाथ पुरी तरह ठीक हो जाएगा तब मैं आपके सामने अपडेट निरंतर अन्तराल में प्रस्तुत करता रहूँगा
Kala Nag मित्र ये तो दुःखद समाचार हैं.. अपना ध्यान रखे, वैस आजकल तो गूगल हिन्दी मे वॉयस सपोर्ट पूरा देता है.. लेफ्ट हाथ से लिखने के लिए 🤔 😍 अभी से साधुवाद 🙏
आप शीघ्र स्वस्थ्य हो 😍 प्रभु जगन्नाथ ने कोई बहुत ही बड़ी दुर्घटना की टाला है व आप को उनकी कृपा बनी रहेगी.. हम सब पर भी.. 😍
ध्यान रखिए 🤗 🌹
 

Devilrudra

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👉एक सौ बाईसवां अपडेट
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राजगड़ में नर्म धूप खिल रही थी l पुरा गाँव अपने अपने तरीके से व्यस्त हो गया था l विश्व अपने घर के आँगन में दंड पेल रहा था l कुछ देर बाद टीलु हाथ में अखबार लेकर पहुँचता है l विश्व एक नजर टीलु की ओर देखता है और फिर वापस दंड पेलने लगता है l

टीलु - क्या कर रहे हो भाई...
विश्व - आँखे फुट गई हैं क्या... नहीं दिख रहा...
टीलु - क्या हुआ है भाई... थोड़े उखड़े हुए लग रहे हो...
विश्व - आदत... छूट ना जाए... इसलिये... पुरानी आदत डाल रहा हूँ...
टीलु - (मुस्कराते हुए) सुबह सुबह उखड़े हुए हो... ही ही ही.... लगता है भाभी ने फोन नहीं किया...
विश्व - (थोड़े गंभीर आवाज़ में) कोई खास खबर...
टीलु - आप बताओ... आज आपके साथ... क्या हो गया है...

विश्व अपना दंड बंद करता है, और एक टावल से अपना पसीना पोछने लगता है l हाथ बढ़ा कर इशारे से टीलु से अख़बार माँगता है l

टीलु - (अखबार देते हुए) क्या भाई... मुझसे नाराज हो...
विश्व - सॉरी... मेरे भाई... सॉरी... तुम पर तो कभी गुस्सा हो ही नहीं सकता...
टीलु - तो फिर...
विश्व - तुमने सच कहा... तुम्हारी भाभी ने आज मुझे जगाया नहीं है...
टीलु - भूली तो नहीं होंगी... पर हो सकता है... कोई बात ऐसी हो गई हो... के...

विश्व अखबार को सीधा कर झाड़ते हुए मुख्य पृष्ठा पर नजर डालते ही भवें तन जाती है l जिसे देख कर टीलु की बात आधी रह गई थी l

टीलु - क्या.. क्या ख़बर है... भाई...

विश्व टीलु को अखबार को टीलु की ओर बढ़ा देता है l मुख्य पृष्ठ पर देखता है l हेड लाइन थी l ओडिशा के सबसे बड़ी निजी सिक्युरिटी संस्था ESS के बड़े और संस्थापक प्रमुख अधिकारी श्री अशोक महांती जी की कल रात कर दुर्घटना में मृत्यु l

टीलु - ओ... यह तो उनके मुलाजिम होंगे... क्या इनकी मौत से...
विश्व - मैंने तुम्हें यह नहीं दिखाया.... यह पेपर तुमने खरीद कर लाए... या किसी की उठा कर लाए....
टीलु - क्या भाई मेरी इज़्ज़त दो कौड़ी की कर रहे हो.... वह भी इस पाँच रुपये के अखबार के लिए...
विश्व - तो फिर इसके कुछ एक पेज पर पेंसिल से कुछ नंबर क्यूँ लिखा हुआ है.... कल वाले पेपर में भी वही था...
टीलु - क्या... (चौंक कर) भाई... वह सुबह जैसे ही मुझे देखता है... अख़बार मेरे हाथों में थमा देता है.... और मैं बिना देखे तुम्हारे हवाले कर देता हूँ...
विश्व - (थोड़ा हैरान होता है) मतलब तुमने सीधे दुकान से ली....
टीलु - हाँ.....

विश्व टीलु की हाथ से दोबारा अख़बार लेता है और गौर से देखता है, पेंसिल में पहले पन्ने पर 16/5⬇️10➡️2 🔘लिखा हुआ था l वैसे ही दुसरे तीसरे पन्ने पर पेंसिल से नंबर अजीब तरह से लिखा हुआ था l विश्व घर के अंदर जाता है बीते दिन की अखबार को लाता है l वह देखता है उस अखबार के सारे पन्नों पर इसी तरह से अजीब नंबर लिखे हुए हैं l विश्व कुछ सोचता है फिर अंदर जा कर एक डायरी और पेन लाता है l कुछ देर तक दोनों अखबार के पन्ने पलट पलट कर पढ़ कर डायरी में लिखने लगता है l

विश्व - ओ तो बात यह है....
टीलु - (अब तक विश्व को पागलों की तरह देख रहा था) क्या क्या हुआ भाई... कुछ गड़बड़ है क्या....
विश्व - नहीं... अब समझ में आया... वह चौथा कौन है... जो हम पर नजर रखे हुए है...
टीलु - क्या... यह तो बहुत बड़ी गडबड़ी है... क... कौन है भाई...
विश्व - नहीं... गड़बड़ तो नहीं... पर कोई है... जो हमसे कॉन्टेक्ट करना चाहता है... हम से कम्युनिकेट करना चाहता है...
टीलु - तुमको कैसे पता चला....
विश्व - (उसे दिखाता है) यह देखो... 16/5⬇️10➡️2 🔘 इसका मतलब हुआ... सोलहवां पन्ना... पाँचवी कॉलम... दसवीं लाइन की दुसरी शब्द... जिसके ऊपर पेंसिल से गोल घुमाया गया है... और वह शब्द है हैलो.... और उसी पन्ने के ऊपर किसी और पन्ने का पता अनुरुप कॉलम और लाइन और शब्द... सब जोड़ दिया तो मुझे कल के अखवार में... यह मैसेज मिला...
"हैलो विश्व... क्या हम मिल सकते हैं... राजा के खिलाफ... मदत तुम्हें मिल सकता है..."
और आज... मुझे इस अखबार में यह मैसेज मिला...
" राजा से कैसे लड़ोगे... तुम्हारे काम आ सकते हैं... क्या मिलना हमारा हो पायेगा....

टीलु बेवक़ूफ़ों की तरह अपना मुहँ फाड़े कभी विश्व को और कभी विश्व के विश्लेषण देख रहा था l विश्व टीलु की ओर देखता है और उसके हाव भाव देख कर

विश्व - क्या हुआ.. ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
टीलु - भाई... माना के तुम्हारा दिमाग बहुत चलता है... पर यह कोई ट्रैप भी तो हो सकता है...
विश्व - हाँ हो तो सकता है...
टीलु - तो...
विश्व - पर आजमाना तो पड़ेगा....
टीलु - कैसे... तुम उससे मिलना चाहते हो... उसे कैसे पता चलेगा... अगर यह राजा का गेम हुआ तो...
विश्व - ना... यह राजा का गेम नहीं हो सकता... कोई ऐसा जो राजा से बदला भी लेना चाह रहा हो... और छुटकारा पाना चाह रहा हो...
टीलु - और तुम कह रहे हो कि चौथा... इसका आदमी है...
विश्व - हाँ...
टीलु - ठीक है... तुम्हारी हर बात में दम है.... पर सवाल यह है कि... तुम उससे मिलना चाहते हो... यह बात उस तक कैसे पहुँचाओगे.... और एक बात पेपर तो सुबह तड़के आता होगा... यह कब और किस वक़्त यह कांड कर रहा है..
विश्व - अभी मिलने का वक़्त आया नहीं है... मिलने का वक़्त वही मुकर्रर करेगा... वह जो भी है... उसने हमारे बारे में... कुछ कुछ जानता है.... फ़िलहाल... कुछ दिनों तक हमें... ऐसे ही मैसेज मिलते रहेंगे...
टीलु - ओ अच्छा...
विश्व - कल तुम्हें एक काम करना है...
टीलु - क्या...
विश्व - कल पेपर लाते वक़्त उससे पूछना जरूर...
टीलु - यही की कौन यह सब लिख रहा है...
विश्व - नहीं... उसमें पेंसिल से लिखा क्यूँ है...

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क्षेत्रपाल महल के अंदर मंदिर l सुषमा पुजा खतम कर मुड़ती है तो पिनाक को देखती है l

सुषमा - (हैरानी से) अरे... आप.. आप और यहाँ... इस वक़्त..
पिनाक - (वहाँ खड़े नौकरों से) एकांत... (सभी नौकर उन दोनों को वहीँ पर छोड़ कर चले जाते हैं) (सुषमा से) हम यहाँ आपकी पुजा देखने नहीं आए हैं... हम तुरंत भुवनेश्वर के लिए निकलना चाहते हैं.... अगर आपकी पुजा ख़तम हो गई हो... तो कुछ सवाल जवाब करना चाहते हैं...
सुषमा - ओ हाँ.... महांती की दुर्घटना से आप आहत हुए होंगे... आखिर उसकी अंतिम विदाई पर आपको वहाँ होना तो चाहिए... उसकी मृत्यु एक अपूरणीय क्षति जो है...
पिनाक - हमें उसकी मौत से कोई लेना देना नहीं है... वह उसकी मौत मरा है... उसकी जगह हम किसी और को... नौकरी पर रख देंगे....
सुषमा - आप इतने कठोर कैसे हो सकते हैं.... आखिर महांती ने हमारे परिवार को बहुत कुछ दिया है...
पिनाक - हमें आप ज्ञान ना दें तो बेहतर होगा... कोई मुफ्त में नहीं काम कर रहा था... उसकी हैसियत से ज्यादा मान दिया गया था... पार्टनर था वह... और उसके लिए... मोटी तनख्वाह लेता भी था... अपना हिस्सा लेता था.... और हाँ... हम उसके बारे में बात करने यहाँ नहीं आए हैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) तो किसी और विषय में सवाल जवाब करने आए थे...
पिनाक - हाँ...
सुषमा - तो पूछिए...
पिनाक - आप पिछली बार जब भुवनेश्वर गई थीं... तब माली साही बस्ती में क्यूँ गई थी...

सुषमा इस सवाल से झेंप जाती है l वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी l पिनाक से सुषमा की प्रतिक्रिया नहीं छुपती l सुषमा अपना सिर नीचे कर लेती है l

पिनाक - छोटी रानी जी... हमने आपसे कुछ पुछा है...
सुषमा - (खुद को संभाल कर मजबूत करते हुए) हम... हम अपने बेटे की ख्वाहिश को अंजाम देने गए थे... पुरा करने गए थे..
पिनाक - ख्वाहिश... कैसा ख्वाहिश...
सुषमा - अपने जीवन साथी की...
पिनाक - एक नीची जात की लकड़ी... जो एक बस्ती में रहती है...
सुषमा - ओ... तो आप तक यह खबर पहुँच गई है...
पिनाक - हाँ... पहुँच गई है... पर वह है कौन... हमें नहीं मालुम... लेकिन इस बार हम भुवनेश्वर जा कर... उसे उसकी औकात दिखा देंगे...
सुषमा - (उसकी हाथों से पुजा की थाली गिर जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं...
पिनाक - वही जो आप ने सुना...
सुषमा - अपने इकलौते बेटे वीर के लिए भी सोचिए... वह उस लड़की से प्यार करता है...
पिनाक - वह... (हैरानी से) करता है... यह कैसी भाषा है... मत भूलिए... आप छोटी रानी हैं... और वह राजकुमार... गवांरों की बोली क्यूँ बोल रहे हैं...
सुषमा - वह बेटा है हमारा...
पिनाक - राजकुमार हैं वह...
सुषमा - तो क्या हुआ... इससे वह हमारा बेटा है... यह सच छुप तो नहीं जाता... इस घर में पहली बार तो नहीं हो रहा है... प्यार करता है....
पिनाक - प्यार करता है.... या नाक कटवा रहा है... क्षेत्रपाल घर के मर्द किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... पर राजकुमार तो... उस नीच लड़की के आगे... नाक रगड़ने पर तूल गए हैं...
सुषमा - (टौंट मारते हुए) हूंह्ह... क्यूँ झूठ बोल रहे हैं.... किस अहंकार के बूते पर झूठ बोल रहे हैं...
पिनाक - (बिदक कर) क्या झूठ बोला है हमने...
सुषमा - यही की क्षेत्रपाल घर के मर्द... किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... हूंह्ह... औरत अगर पैर खोल दे... तो क्षेत्रपाल घर के मर्द.. घुटने रगड़ने पर तूल जाते हैं...

पिनाक का चेहरा सख्त हो जाता है l जबड़े भींच जाते हैं l गुस्से में बाईं आँख का भंवा तन जाता है और दाहिनी आँख के नीचे की पेशियां थर्राने लगती हैं l

पिनाक - क्या कहा गुस्ताख औरत...
सुषमा - एक सच बता दिया तो... आपके पुरुषार्थ के अहं घायल हो गया... जिस उम्र में... बेटे के लिए बहु ढूंढना चाहिए... उस उम्र में... किसी बेबस औरत को मजबूर कर उसकी मजबूरी की नाजायज फायदा उठाकर... छी...
पिनाक - ओ... तो आप... हम पर नजर रख रहे हैं...
सुषमा - जी नहीं... हम ऐसी ओछी काम नहीं कर सकते... जिस दिन आपको बड़े राजा की बुलावे की ख़बर दे रहे थे... आप उस दिन गलती से फोन बंद करना भूल गए थे...
पिनाक - ओ... तो... इसलिए... आपकी जुबान अपनी औकात भूल रही है...
सुषमा - जी नहीं... भूले नहीं हैं हम... जिस लड़की के लिए... हम इस हद तक आ पहुँचे... इससे कहीं आगे राजकुमार जा सकते हैं... बस यही बताने के लिए... आपको आगाह करने के लिए...
पिनाक - हाः... आप हमें आगाह कर रही हैं... आप जानते नहीं... अपनी मूँछों के लिए... हम किस हद तक जा सकते हैं...
सुषमा - जानते हैं... आखिर अपनी जीवन यहाँ तक जो गुजारा है आपके साथ.. आपकी जिद की हद को जानते हैं... पहचानते हैं... पर यह मत भूलिए... वह वीर सिंह क्षेत्रपाल है... उसकी जिद की हद... सिर्फ हम जानते हैं... आप नहीं जानते...

सुषमा जिस विश्वास के साथ यह बात कही थी थोड़ी देर के लिए पिनाक अंदर से हिल जाता है l वह कुछ समझने के अंदाज में अपना सिर हिलाता है l

पिनाक - हम यहाँ... बात की जानकारी लेने आए थे... शहरों की गालियों बाजारों में जो कानाफूसी हो रही है... दिल से चाहते थे... इस बात का आपसे कोई ताल्लुक ना हो... कोई सहमती ना हो... पर... पर कोई नहीं.... एक वादा जरूर करते हैं... वीर की शादी हम एक महीने के भीतर करवा देंगे... सिर्फ एक महीने के भीतर... वह भी हमारी और राजा साहब की मर्जी से.... वह लड़की जो इस वक़्त वीर के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है... उसे उसकी औकात भी दिखाएंगे...
सुषमा - आप भगवान के दर पर... इतनी गुरुर के साथ बात की है... मैं आपके आगे हाथ जोड़ कर आपको अपने भगवान से ऊपर नहीं रख सकती... अब जो होगा... मैं अपने भगवान की मर्जी पर छोड़ रही हूँ... पर इतना जरूर कहूँगी... इस बार क्षेत्रपाल घर की अहंकार आपस में टकराएगी... आपकी जिद अपनी औकात जरूर देखेगी...

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हस्पताल के केबिन के बाहर वीर अनु और दादी इंतजार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद एक स्टाफ नर्स केबिन के बाहर आकर वीर से कहता है

नर्स - पेशेंट को होश आ गया है...
वीर - थैंक्स... क्या हम पेशेंट से मिल सकते हैं...
नर्स - जी बेशक...

वीर अनु और दादी तीनों केबिन के अंदर आते हैं l मृत्युंजय के पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था l सिर पर पट्टी लगा हुआ था और बाएं हाथ में बैंडेज बंधा हुआ था l बाकी शरीर पर कहीं और चोट नहीं था l मृत्युंजय अपनी आँखे बंद किए हुआ था l जैसे ही उसके बेड के करीब तीनों पहुँचते हैं, वह अपनी आँखे खोलता है l

अनु - मट्टू भैया...
मृत्युंजय - आह... (कराहते हुए) महांती सर कैसे हैं... (अनु अपना सिर झुका लेती है)
वीर - तुम उनकी बात छोड़ो... यह बता ओ... तुम अब कैसे हो...
मृत्युंजय - मैं... आपके सामने ही हूँ... पर महांती सर...
वीर - वह... अब... (रुक जाता है)
मृत्युंजय - ओह... समझा... (रोते हुए) हम दोनों समझ ही नहीं पाए... हमारे साथ क्या हो गया...
वीर - मृत्युंजय... समझ नहीं पाए... क्या हो गया मतलब...
मृत्युंजय - अब मैं क्या समझाऊँ.. जब मैं खुद नहीं समझ पाया... जब तक होश में था... तब तक मुझे याद जो भी याद था... मैंने वह सब सारी जानकारी पुलिस को दे दिया है...
वीर - हाँ... जानता हूँ... पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ... क्यूंकि पुलिस कह रही है... तुम शायद कुछ छुपा रहे हो...
दादी - (सुबकते हुए) बेचारा... कुछ भी सही नहीं हो रहा है... इसके साथ...
अनु - दादी... मट्टू भैया दर्द में हैं... और तुम हो कि... दिलासा देने के बजाय... और बढ़ा रही हो...
मृत्युंजय - कोई नहीं बहन... कोई नहीं... (वीर से) हाँ... एक नहीं दो बातेँ... मैंने पुलिस से छुपाई है...

मृत्युंजय के इस बात पर तीनों चौंकते हैं l वीर की भवें सिकुड़ जाती है l

वीर - क्या... क्या छुपाया है तुमने..
मृत्युंजय - राजकुमार... मुझे महांती सर ने कॉल कर बुलाया और गाड़ी में बैठने के लिए कहा... मैंने वज़ह पूछा तो उन्होनें कहा... कोई भेदी है... जिसे उन्होंने ढूंढ लिया है... और राजकुमार जी के सामने उसे पेश करना है... मैं चुपचाप गाड़ी में बैठ गया... कुछ देर बार ट्रैफ़िक में गाड़ी कुछ देर के लिए रुक गई... तब मैंने महांती सर जी से सवाल किया... के उन्होंने मुझे ही क्यूँ चुना... उस घर के भेदी को पकड़ने के लिए... तब महांती सर ने कहा कि... घर की भेदी खुलासे के बाद वह मुझे लेकर तुरंत विशाखापट्टनम जाएंगे... मैं और भी हैरान हो गया... वह मुझे दिलासा देते हुए कहा... की मेरी बहन पुष्पा का पता चल गया है...
तीनों - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैं भी चौंक कर ऐसे ही प्रतिक्रिया दी... तो उन्होंने कहा कि पुष्पा और विनय... विशाखापट्टनम के पास आर्कु में किसी रिसॉर्ट में हैं... यह बात सुन कर मैं बहुत खुस हुआ... फिर गाड़ी इंफोसिस के एसइजेड की ओर चलने लगी... हम दोनों बहुत खुश थे... हँसने लगे... हमारी हँसी धीरे धीरे बढ़ने लगी... बढ़ती ही चली गई... हम हँसते हँसते बेकाबू होते चले गए... फिर क्या हुआ... मुझे याद नहीं... जब आँखें खुली... खुद को एम्बुलेंस के अंदर पाया...
वीर - तो तुमने पुलिस को पुरी बात क्यूँ नहीं बताई...
मृत्युंजय - मुझे लगा... घर का भेदी कोई है... जिसे आपने अभी तक जब पुलिस से छुपा कर रखा है... तो वगैर आपके जानकारी के मैं यह बात पुलिस वालों से नहीं कह सकता था....
अनु - पर पुष्पा और विनय की बात तो कह ही सकते थे...
मृत्युंजय - नहीं... राजकुमार जी ने मुझसे वादा किया था... वे खुद पुष्पा और विनय को ढूँढ कर... उनकी शादी के लिए... केके साहब को मना कर... मेरे हवाले करेंगे... इसलिये... मैं यह बात पुलिस से छुपाई... क्या... मैंने कुछ गलत किया...

वीर यह बात सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वह मृत्युंजय के कंधे पर हाथ रखकर अपना सिर हिलाते हुए अपने होंठों को अंदर भिंच लेता है l

वीर - नहीं... तुम वाकई बहुत अच्छे हो मट्टू... बहुत ही अच्छे हो... ना सिर्फ तुमने अपने मालिक की घर की इज़्ज़त बचाई... बल्कि अपनी घर की भी इज़्ज़त बचाई... मैं... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैं... वादा करता हूँ... कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन और बहनोई खड़े मिलेंगे... तुम्हारा सिर ना समाज के आगे... ना किसी और के आगे झुकेगा... वादा कर रहा हूँ...
मृत्युंजय - (रोनी आवाज में) थैंक्यू... राजकुमार जी... थैंक्यू... मैं आपका यह उपकार जीवन भर भुला नहीं पाऊँगा...
वीर - मट्टू... मैंने अभीतक कुछ किया नहीं है... पर अब दिल से कुछ करना चाहता हूँ...
मृत्युंजय - तो फिर एक अनुरोध है...
वीर - कहो... हक् से कहो...
मृत्युंजय - आपने इतनी बड़ी बात कह दी... यही काफी है... मैं चाहता हूँ... आप जब पुष्पा को लेने जाएं... अनु और दादी जी को भी साथ ले जाएं...
वीर - ठीक है... मना नहीं करूँगा... पर इतना तो पूछूँगा ही... क्या... तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है या....
मृत्युंजय - (वीर की हाथ को पकड़ लेता है) आप अपने को... अपमानित महसूस ना करें... बात भरोसे की नहीं है... (चुप हो जाता है)
अनु - हाँ राजकुमार जी... मट्टू भैया ठीक कह रहे हैं.... (वीर अनु की ओर सवालिया नजर से देखता है) राजकुमार जी... एक लड़की की मनःस्थिति को समझने की कोशिश कीजिए.... आप पुष्पा के लिए अनजान ही हैं... पर मैं या दादी नहीं... मैं उसकी दोस्त भी हूँ और बहन भी... और वह दादी को भी बहुत मानती है... आपसे शायद जोर जबरदस्ती हो जाए.... इसलिए मट्टू भैया ने हमारी बात कही...
वीर - ओह... सॉरी मट्टू... मैं तुम्हारे मन की बात को समझ नहीं पाया... ठीक है... मैं कल सुबह ही... अनु और दादी मां को साथ में लेकर... जाऊँगा... समझाऊँगा... जरूरत पड़ी तो हाथ पैर जोड़ुंगा... पर मैं पुष्पा और विनय को लेकर ही आऊंगा...

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कमिश्नर ऑफिस
कमिश्नर के सामने विक्रम बैठा हुआ है l एक सबइंस्पेक्टर आता है कमिश्नर को सैल्यूट मारने के बाद विक्रम को हैलो कहता है फिर उनके सामने टेबल पर एक फाइल रख कर दोबारा सैल्यूट मार कर वापस चला जाता है l कमिश्नर फाइल खोल कर देखता है फिर विक्रम की ओर देख कर कुछ सोचने लगता है l

विक्रम - क्या बात है कमिश्नर साहब.. क्या सोचने लगे... क्या लिखा है फाइल में...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... यह एक्सीडेंट नहीं है... जैसा कि अंदाजा था... यह मर्डर है...
विक्रम - आपको... किसी पर शक़ है...
कमिश्नर - युवराज जी... (एक गहरी साँस लेकर) हम आपके किसी भी मैटर में... अपना सिर नहीं खपाते... तो हम कैसे किस पर शक कर सकते हैं... या जता सकते हैं...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी छा जाती है l क्यूंकि कमिश्नर सच कहा था जिन मामलों में क्षेत्रपाल या ESS जुड़ा था उन केसेस से पुलिस हमेशा खुद को दूर ही रखती थी l

कमिश्नर - हम बस आपकी सहूलियत के लिए... मीडिया में इतना कहा कि यह एक्सीडेंट है... हाँ अगर आप चाहेंगे... तो हम इस केस को अपने हाथ में ले सकते हैं...
विक्रम - मीडिया में एक्सीडेंट कहने के लिए... थैंक्यू... पर क्या आप इस मर्डर को... डिफाइन कर सकते हैं...
कमिश्नर - हाँ कर सकता हूँ... बस एक सवाल का जवाब अगर मिल जाए... तो मैं बता दूँगा...
विक्रम - ठीक है पूछिये... क्या पूछना चाहते हैं...
कमिश्नर - ड्राइविंग के वक़्त... क्या महांती ग्लास उतार कर गाड़ी ड्राइव करते थे... या.. ग्लास उठा कर...
विक्रम - नहीं... ग्लास उतार कर... महांती को एसी में गाड़ी चलाना बिल्कुल पसंद नहीं था... इसलिए हमेशा विंडो ग्लास उतार कर ही गाड़ी चलाते थे... उन्हें नैचुरल हवा पसंद था...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... मतलब कातिल उनकी इस आदत से अच्छी तरह से वाकिफ था... शीट... यही एक बात मृत्युंजय के फेवर में जा रहा है...
विक्रम - (आँखे हैरानी के मारे फैल जाता है) क्या... मृत्युंजय...
कमिश्नर - हाँ... उसके स्टेटमेंट में हमें तब लगा तो था... के वह हमसे कुछ छुपा रहा है... अब महांती बाबु की यह आदत... मृत्युंजय के फेवर में... उसे बचा लेगा...
विक्रम - कमिशन साहब... क्या आप प्लीज... केस को ब्रीफ कर सकते हैं...
कमिश्नर - जी बिल्कुल... मृत्युंजय को गाड़ी में बिठा कर महांती इन्फोसिस की ओर जाने लगा... इस बात से अनजान के वह और उसकी गाड़ी की रेकी हो रही है... जाहिर सी बात है... उस दिन नहीं... कई दिनों से हो रही थी....
विक्रम - फिर...
कमिश्नर - उनकी गाड़ी ट्रैफ़िक पर रुकी नहीं थी... बल्कि सिग्नल के साथ छेड़ छाड़ कर रोकी गई थी... और आप हैरान हो जाओगे... गाड़ी सिग्नल पर सात मिनट तक रुकी थी... और स्वेरेज के गटर के ढक्कन के ऊपर... मतलब परफेक्ट लोकेशन.... वहां पर गाड़ी की ब्रेक... गियर के साथ छेड़ छाड़ करने वाला जब गटर का ढक्कन हटाया... तो उसकी बदबू के वज़ह से कार की ग्लास उठा कर एसी चलाए होंगे... गाड़ी में पहले से ही किसीने ऐसी वेंट पर फ्रैगनेस बॉटल की जगह... नाइट्रस आक्साइड यानी लाफिंग गैस की बॉटल प्लांट कर दिया... अब चूँकि एसी की वेंट चल रही थी... पुरे गाड़ी में गैस फैल गई... उसके बाद... महांती आउट ऑफ कंट्रोल हो गया... गाड़ी पलट गई... बाकी आगे आप जानते हैं...
विक्रम - हाँ लाफिंग गैस की बात छोड़ दें तो यही स्टेटमेंट... मृत्युंजय ने भी दी थी.... पर मृत्युंजय सीट बेल्ट पहने हुए था... पर महांती सीट बेल्ट में नहीं था... और बैलून भी प्रोटेक्शन नहीं दे पाए...
कमिश्नर - हाँ... हो सकता है कि... महांती जब हँसते हँसते आउट ऑफ कंट्रोल हुआ होगा तभी... उसका हाथ.. सीट बेल्ट की लॉक पर लगा होगा और... सीट बेल्ट खुल गई होगी... रही बैलून की बात... एक्सीडेंट बहुत ही जबरदस्त था... गाड़ी के पलटते ही महांती की गर्दन की हड्डी टुट गई...
(विक्रम चुप रहता है) वैसे आपको... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी वालों को... थैंक्स कहना चहिए... उनकी एक प्रोग्राम वहाँ पर चल रही थी... और उन्होंने ही एम्बुलेंस की अरेंजमेंट की थी... वर्ना... मृत्युंजय भी हमें जिंदा ना मिलता...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक बात पूछूं...
कमिश्नर - जी बेशक...
विक्रम - क्या आपको... मृत्युंजय पर शक है...
कमिश्नर - था... पर अब नहीं है...
विक्रम - कैसे...
कमिश्नर - (फाइल से एक मेडिकल रिपोर्ट निकाल कर दिखाता है) उसके ब्लड सैंपल में उतना ही... नाइट्रस आक्साइड मिला है... जितना... महांती के ब्लड सैंपल में मिला... और मृत्युंजय का एक पैर टूटा हुआ है... हाथ में हेयर लाइन फ्रैक्चर है... और उसका सिर भी घायल है... महांती से उसकी कोई निजी रंजिश लगता नहीं है... और अब तक जैसा सर्कुमस्टैंस है... उससे लगता भी नहीं है कि मृत्युंजय कोई सूइसाइडल मर्डर अटेंप्ट किया होगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... कमिश्नर साहब... तो मुझे क्रेमेशंन के लिए... महांती की डेड बॉडी कब तक मिल जाएगी...
कमिश्नर - हमने सारी फॉर्मलीटीस पुरी कर ली है... आप जब चाहें ले जा सकते हैं... हमने मेडिकल में इंफॉर्म भी कर दिया है...

विक्रम अपनी जगह से उठता है, तो कमिश्नर भी खड़े हो कर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर विक्रम हाथ मिलाए वगैर वहाँ से निकल जाता है l कमिश्नर का हाथ वैसे ही हवा में रह जाता है l विक्रम बाहर आ कर देखता है उसके कार के पास प्रधान और रोणा खड़े हुए थे l

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अपनी बेडरुम में रुप चहल कदम कर रही है l दो दिनों से ट्राय कर रही है पर तब्बसुम को फोन लगा रही है पर तब्बसुम का फोन उसे स्विच ऑफ ही मिल रही है l आज सुबह तब्बसुम से उसके घर पर मिलने का प्लान तो था पर चूंकि कल रात से ही घर पर मातम सा था और सुबह का माहौल ग़मगीन था, इसलिए वह ना आज कॉलेज जा सकी ना तब्बसुम के घर l आखिरी बार तब्बसुम को फोन मिलाती है पर इस बार भी उसे फोन स्विच ऑफ मिलती है l चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है और फिर आकर बेड पर बैठ जाती है l थोड़े उदास और खीजे मन से फोन निकाल कर कॉन्टेक्ट लिस्ट को स्क्रोल करती है l पहला नाम उसे बेवक़ूफ़ दिखती है l अपने आप उसका जीभ दांतों तले आ जाती है और बिना देरी किए विश्व को फोन लगाती है l

विश्व - हैलो...
रुप - नाराज हो..
विश्व - नहीं...
रुप - झूठ बोल रहे हो ना... मेरा मन रखने के लिए...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (चिढ़ जाती है और गुस्से से) हर सुबह की तरह आज तुम्हें जगाया नहीं... तुम मुझसे नाराज नहीं हो... क्या यही तुम्हारा प्यार है...
विश्व - सच कहूँ तो नाराज तो था...
रुप - (बिदक कर) तो तुमने मुझे झूठ क्यूँ बोला...
विश्व - ताकि मुझसे मेरी राजकुमारी नहीं... मेरी नकचढ़ी बात करे... इसलिए...
रुप - (गालों पर अचानक शर्म की लाली आ जाती है) मतलब... सच में नाराज थे...
विश्व - हाँ... था तो...
रुप - (गुस्से वाली लहजे में) तो तुमने मुझे फोन क्यूँ नहीं किया... गिला करते... शिकवा करते... (नरम पड़ते हुए) मैं... मनाती ना...
विश्व - सोचा तो मैंने ऐसा ही था... मगर क्या करूँ... सुबह सुबह हाथ में... न्यूज पेपर आ गया... और मुझे सारा माजरा समझ में आ गया...
रुप - ओ...
विश्व - जी... चलिए अब कहिये... फोन क्यूँ किया...
रुप - फोन क्यूँ किया मतलब... सोचा तुम रूठे होगे... तो थोड़ा मना लूँ...
विश्व - जी हम तो आपके मनाने से पहले ही मान चुके हैं... कहिये फोन क्यूँ किया... क्या बात है जो आपको खाए जा रही है...
रुप - (थोड़ी उदास हो कर) वह.. मेरी दोस्त है ना... तब्बसुम...
विश्व - हाँ... क्या हुआ उन्हें...
रुप - वह पता नहीं... मेरे राजगड़ जाने से पहले गायब है... अभी तक नहीं दिखी है... सोचा था आज उसके घर जाऊँगी... पर... कल देर रात को खबर मिली के...
विश्व - ह्म्म्म्म... आपको याद हम नहीं आ रहे थे...
रुप - तुम... तुम... मुझे चिढ़ा रहे हो... देखो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी... मुझे... मुझे भूल जाओ...
विश्व - ना ना.. यह सितम ना करो... तुम्हें दिल से कैसे जुदा हम करेंगे... के मर जायेंगे और क्या हम करेंगे...
रुप - (खुश होते हुए) आखिर तुम्हारे मुहँ से मेरे लिए तुम निकल ही गया...
विश्व - ओह शीट... मुहँ से निकल गया... वैसे इसे सीरियसली ना लीजिए गा... यह एक गाना था... जिसे मैंने आपके लिए गुनगुना दिया...
रुप - जो भी किया... तुमने मेरे दिल को खुश कर दिया... वैसे.. (फुसलाते हुए) कब आ रहे हो...
विश्व - जब आप चाहो... बस एक बार आवाज दीजिए... हम आपके सामने हाजिर हो जाएंगे...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अच्छा ठीक है... आप कब चाहतीं हैं... के मैं आपके सामने आऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म... कल...
विश्व - ठीक है... कल शाम को... मुलाकात होगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब तुम आज राजगड़ से निकल रहे हो...
विश्व - हाँ...
रुप - तो फिर... मुझे कल शाम का बेसब्री से इंतजार होगा... बाय...

कह कर फोन काट देती है l फोन के कट जाने पर विश्व मुस्कराते हुए फोन को देखता है फिर फोन को जेब में रखते वक़्त उसे सामने पानी की बोतल लिए सीलु खड़ा दिखता है l

विश्व - क्या हुआ... कब से सामने ऐसे खड़े हो...
सीलु - (पानी की बोतल को विश्व को देते हुए सामने वाली बेंच पर बैठ कर) कुछ ही देर हुए... तुम भाभी के साथ बातों में खोए हुए थे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो टोंट मार रहे हो...
सीलु - नहीं भाई... भाभी से बात करते हुए इस कदर खो गए थे कि... मेरे आने का एहसास तक नहीं हुआ...
विश्व - भाई मार लो... जितना चाहे टोंट मार लो...
सीलु - क्यूँ भाई... सिर्फ टीलु को ही हक है क्या...
विश्व - तो तुम टीलु से जल रहे हो...
सीलु - सिर्फ मैं ही नहीं... मिलु और जिलु भी..
विश्व - अच्छा पर क्यूँ...
सीलु - क्या... क्यूँ भाई... वह मजे से आपके पास... आपके साथ रह रहा है... जब कि...
विश्व - बस कुछ दिन और... ऐसे छोटी छोटी बातों को दिल से लगाओगे.. तो अब तक का सारा किए कराए पर पानी फिर जाएगा...
सीलु - पता नहीं वह दिन कब आएगा... पिछले एक साल से जमें हुए हैं... पर ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगा है...
विश्व - क्यूँ... मुझे तो लगता है... बहुत कुछ पता लगा लिया है तुमने... बस एक सिरा ढूंढना बाकी है... वह मिल गया... तो समझ लो... जिस पर्दे के आड़ में... उन लोगों के काले धंधे चल रहे हैं... वह पर्दा ही गिर जाएगा...
सीलु - हाँ... पर वह सिरा ही तो नहीं मिल रहा है... पिछली बार जो कांड हुआ था... सब मुर्दों के आधार कार्ड पर हुआ था... पर इस बार ऐसा नहीं है... पर पैसा खूब बेह रहा है... सब अपने अपने हिस्से का पैसा दोनों हाथों से बटोर रहे हैं... क्या हो रहा है.. कैसे हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - हर नया क्राइम.. पिछले बार से बेहतर ही होता है... तुम लोगों ने बहुत कुछ पता कर लिया है... इसलिए तो कह रहा हूँ.. बस कुछ दिन और...
सीलु - हाँ... जानता हूँ... करप्शन हो रहा है... बहुत ही ज़बरदस्त हो रहा है... पर हमें सिर्फ उपरी सतह के बारे में अंदाजा है... हम ज्यादा गहराई तक ना झाँक पा रहे हैं... ना ही छानबीन नहीं कर पा रहे हैं...
विश्व - हाँ.. वह इसलिए... क्यूंकि इस महा करप्शन में राजा का इंवॉल्वेंस है...
सीलु - चलो जब एक साल देख लिया... यह कुछ दिन भी देख लेंगे... वैसे भाई... तुम्हारा लाइसेंस कब तक आ जाएगा...
विश्व - माँ कह रही थी... और शायद दस से पंद्रह दिन के बाद...
सीलु - ह्म्म्म्म... बस...
विश्व - क्या...
सीलु - वह विश्वा भाई... बस आ गई...
विश्व - (उठते हुए) ओ अच्छा...
सीलु - (दोनों बस की ओर जाते हुए) अच्छा भाई.. उस पेपर वाले का क्या करें...
विश्व - नजर भी मत डालो उसपर... देखते हैं... और क्या क्या मैसेज कर रहा है... उसके मैसेज के पैटर्न देख रहा हूँ... टीलु को भी समझा दिया है... जब उस पर शक होगा... तब उसे ढूढेंगे...
Nice 👍👍👍
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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भाईयों दोस्तों मित्रों बंधुओं
क्षमा कर देना
मेरे ऑफिस में मेरे साथ छोटा सा एक्सीडेंट हो गया
लगता है आज कल मेरे ग्रह नक्षत्र कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं
दाएं हाथ में फ्रैक्चर है इसलिये बाएं हाथ में जितना हो सका टाइप कर आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ
कोशीश करूंगा हर सात या आठवे दिन पर अपडेट लाने की l
जब हाथ पुरी तरह ठीक हो जाएगा तब मैं आपके सामने अपडेट निरंतर अन्तराल में प्रस्तुत करता रहूँगा

Bhai, aap apna khyal rakho............

updates puri tarah thik ho jaao fir post karna.......

because health is wealth
 

Rajesh

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👉एक सौ बाईसवां अपडेट
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राजगड़ में नर्म धूप खिल रही थी l पुरा गाँव अपने अपने तरीके से व्यस्त हो गया था l विश्व अपने घर के आँगन में दंड पेल रहा था l कुछ देर बाद टीलु हाथ में अखबार लेकर पहुँचता है l विश्व एक नजर टीलु की ओर देखता है और फिर वापस दंड पेलने लगता है l

टीलु - क्या कर रहे हो भाई...
विश्व - आँखे फुट गई हैं क्या... नहीं दिख रहा...
टीलु - क्या हुआ है भाई... थोड़े उखड़े हुए लग रहे हो...
विश्व - आदत... छूट ना जाए... इसलिये... पुरानी आदत डाल रहा हूँ...
टीलु - (मुस्कराते हुए) सुबह सुबह उखड़े हुए हो... ही ही ही.... लगता है भाभी ने फोन नहीं किया...
विश्व - (थोड़े गंभीर आवाज़ में) कोई खास खबर...
टीलु - आप बताओ... आज आपके साथ... क्या हो गया है...

विश्व अपना दंड बंद करता है, और एक टावल से अपना पसीना पोछने लगता है l हाथ बढ़ा कर इशारे से टीलु से अख़बार माँगता है l

टीलु - (अखबार देते हुए) क्या भाई... मुझसे नाराज हो...
विश्व - सॉरी... मेरे भाई... सॉरी... तुम पर तो कभी गुस्सा हो ही नहीं सकता...
टीलु - तो फिर...
विश्व - तुमने सच कहा... तुम्हारी भाभी ने आज मुझे जगाया नहीं है...
टीलु - भूली तो नहीं होंगी... पर हो सकता है... कोई बात ऐसी हो गई हो... के...

विश्व अखबार को सीधा कर झाड़ते हुए मुख्य पृष्ठा पर नजर डालते ही भवें तन जाती है l जिसे देख कर टीलु की बात आधी रह गई थी l

टीलु - क्या.. क्या ख़बर है... भाई...

विश्व टीलु को अखबार को टीलु की ओर बढ़ा देता है l मुख्य पृष्ठ पर देखता है l हेड लाइन थी l ओडिशा के सबसे बड़ी निजी सिक्युरिटी संस्था ESS के बड़े और संस्थापक प्रमुख अधिकारी श्री अशोक महांती जी की कल रात कर दुर्घटना में मृत्यु l

टीलु - ओ... यह तो उनके मुलाजिम होंगे... क्या इनकी मौत से...
विश्व - मैंने तुम्हें यह नहीं दिखाया.... यह पेपर तुमने खरीद कर लाए... या किसी की उठा कर लाए....
टीलु - क्या भाई मेरी इज़्ज़त दो कौड़ी की कर रहे हो.... वह भी इस पाँच रुपये के अखबार के लिए...
विश्व - तो फिर इसके कुछ एक पेज पर पेंसिल से कुछ नंबर क्यूँ लिखा हुआ है.... कल वाले पेपर में भी वही था...
टीलु - क्या... (चौंक कर) भाई... वह सुबह जैसे ही मुझे देखता है... अख़बार मेरे हाथों में थमा देता है.... और मैं बिना देखे तुम्हारे हवाले कर देता हूँ...
विश्व - (थोड़ा हैरान होता है) मतलब तुमने सीधे दुकान से ली....
टीलु - हाँ.....

विश्व टीलु की हाथ से दोबारा अख़बार लेता है और गौर से देखता है, पेंसिल में पहले पन्ने पर 16/5⬇️10➡️2 🔘लिखा हुआ था l वैसे ही दुसरे तीसरे पन्ने पर पेंसिल से नंबर अजीब तरह से लिखा हुआ था l विश्व घर के अंदर जाता है बीते दिन की अखबार को लाता है l वह देखता है उस अखबार के सारे पन्नों पर इसी तरह से अजीब नंबर लिखे हुए हैं l विश्व कुछ सोचता है फिर अंदर जा कर एक डायरी और पेन लाता है l कुछ देर तक दोनों अखबार के पन्ने पलट पलट कर पढ़ कर डायरी में लिखने लगता है l

विश्व - ओ तो बात यह है....
टीलु - (अब तक विश्व को पागलों की तरह देख रहा था) क्या क्या हुआ भाई... कुछ गड़बड़ है क्या....
विश्व - नहीं... अब समझ में आया... वह चौथा कौन है... जो हम पर नजर रखे हुए है...
टीलु - क्या... यह तो बहुत बड़ी गडबड़ी है... क... कौन है भाई...
विश्व - नहीं... गड़बड़ तो नहीं... पर कोई है... जो हमसे कॉन्टेक्ट करना चाहता है... हम से कम्युनिकेट करना चाहता है...
टीलु - तुमको कैसे पता चला....
विश्व - (उसे दिखाता है) यह देखो... 16/5⬇️10➡️2 🔘 इसका मतलब हुआ... सोलहवां पन्ना... पाँचवी कॉलम... दसवीं लाइन की दुसरी शब्द... जिसके ऊपर पेंसिल से गोल घुमाया गया है... और वह शब्द है हैलो.... और उसी पन्ने के ऊपर किसी और पन्ने का पता अनुरुप कॉलम और लाइन और शब्द... सब जोड़ दिया तो मुझे कल के अखवार में... यह मैसेज मिला...
"हैलो विश्व... क्या हम मिल सकते हैं... राजा के खिलाफ... मदत तुम्हें मिल सकता है..."
और आज... मुझे इस अखबार में यह मैसेज मिला...
" राजा से कैसे लड़ोगे... तुम्हारे काम आ सकते हैं... क्या मिलना हमारा हो पायेगा....

टीलु बेवक़ूफ़ों की तरह अपना मुहँ फाड़े कभी विश्व को और कभी विश्व के विश्लेषण देख रहा था l विश्व टीलु की ओर देखता है और उसके हाव भाव देख कर

विश्व - क्या हुआ.. ऐसे क्यूँ देख रहे हो...
टीलु - भाई... माना के तुम्हारा दिमाग बहुत चलता है... पर यह कोई ट्रैप भी तो हो सकता है...
विश्व - हाँ हो तो सकता है...
टीलु - तो...
विश्व - पर आजमाना तो पड़ेगा....
टीलु - कैसे... तुम उससे मिलना चाहते हो... उसे कैसे पता चलेगा... अगर यह राजा का गेम हुआ तो...
विश्व - ना... यह राजा का गेम नहीं हो सकता... कोई ऐसा जो राजा से बदला भी लेना चाह रहा हो... और छुटकारा पाना चाह रहा हो...
टीलु - और तुम कह रहे हो कि चौथा... इसका आदमी है...
विश्व - हाँ...
टीलु - ठीक है... तुम्हारी हर बात में दम है.... पर सवाल यह है कि... तुम उससे मिलना चाहते हो... यह बात उस तक कैसे पहुँचाओगे.... और एक बात पेपर तो सुबह तड़के आता होगा... यह कब और किस वक़्त यह कांड कर रहा है..
विश्व - अभी मिलने का वक़्त आया नहीं है... मिलने का वक़्त वही मुकर्रर करेगा... वह जो भी है... उसने हमारे बारे में... कुछ कुछ जानता है.... फ़िलहाल... कुछ दिनों तक हमें... ऐसे ही मैसेज मिलते रहेंगे...
टीलु - ओ अच्छा...
विश्व - कल तुम्हें एक काम करना है...
टीलु - क्या...
विश्व - कल पेपर लाते वक़्त उससे पूछना जरूर...
टीलु - यही की कौन यह सब लिख रहा है...
विश्व - नहीं... उसमें पेंसिल से लिखा क्यूँ है...

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क्षेत्रपाल महल के अंदर मंदिर l सुषमा पुजा खतम कर मुड़ती है तो पिनाक को देखती है l

सुषमा - (हैरानी से) अरे... आप.. आप और यहाँ... इस वक़्त..
पिनाक - (वहाँ खड़े नौकरों से) एकांत... (सभी नौकर उन दोनों को वहीँ पर छोड़ कर चले जाते हैं) (सुषमा से) हम यहाँ आपकी पुजा देखने नहीं आए हैं... हम तुरंत भुवनेश्वर के लिए निकलना चाहते हैं.... अगर आपकी पुजा ख़तम हो गई हो... तो कुछ सवाल जवाब करना चाहते हैं...
सुषमा - ओ हाँ.... महांती की दुर्घटना से आप आहत हुए होंगे... आखिर उसकी अंतिम विदाई पर आपको वहाँ होना तो चाहिए... उसकी मृत्यु एक अपूरणीय क्षति जो है...
पिनाक - हमें उसकी मौत से कोई लेना देना नहीं है... वह उसकी मौत मरा है... उसकी जगह हम किसी और को... नौकरी पर रख देंगे....
सुषमा - आप इतने कठोर कैसे हो सकते हैं.... आखिर महांती ने हमारे परिवार को बहुत कुछ दिया है...
पिनाक - हमें आप ज्ञान ना दें तो बेहतर होगा... कोई मुफ्त में नहीं काम कर रहा था... उसकी हैसियत से ज्यादा मान दिया गया था... पार्टनर था वह... और उसके लिए... मोटी तनख्वाह लेता भी था... अपना हिस्सा लेता था.... और हाँ... हम उसके बारे में बात करने यहाँ नहीं आए हैं...
सुषमा - (हैरान हो कर) तो किसी और विषय में सवाल जवाब करने आए थे...
पिनाक - हाँ...
सुषमा - तो पूछिए...
पिनाक - आप पिछली बार जब भुवनेश्वर गई थीं... तब माली साही बस्ती में क्यूँ गई थी...

सुषमा इस सवाल से झेंप जाती है l वह इस सवाल के लिए तैयार नहीं थी l पिनाक से सुषमा की प्रतिक्रिया नहीं छुपती l सुषमा अपना सिर नीचे कर लेती है l

पिनाक - छोटी रानी जी... हमने आपसे कुछ पुछा है...
सुषमा - (खुद को संभाल कर मजबूत करते हुए) हम... हम अपने बेटे की ख्वाहिश को अंजाम देने गए थे... पुरा करने गए थे..
पिनाक - ख्वाहिश... कैसा ख्वाहिश...
सुषमा - अपने जीवन साथी की...
पिनाक - एक नीची जात की लकड़ी... जो एक बस्ती में रहती है...
सुषमा - ओ... तो आप तक यह खबर पहुँच गई है...
पिनाक - हाँ... पहुँच गई है... पर वह है कौन... हमें नहीं मालुम... लेकिन इस बार हम भुवनेश्वर जा कर... उसे उसकी औकात दिखा देंगे...
सुषमा - (उसकी हाथों से पुजा की थाली गिर जाती है) यह... यह आप क्या कह रहे हैं...
पिनाक - वही जो आप ने सुना...
सुषमा - अपने इकलौते बेटे वीर के लिए भी सोचिए... वह उस लड़की से प्यार करता है...
पिनाक - वह... (हैरानी से) करता है... यह कैसी भाषा है... मत भूलिए... आप छोटी रानी हैं... और वह राजकुमार... गवांरों की बोली क्यूँ बोल रहे हैं...
सुषमा - वह बेटा है हमारा...
पिनाक - राजकुमार हैं वह...
सुषमा - तो क्या हुआ... इससे वह हमारा बेटा है... यह सच छुप तो नहीं जाता... इस घर में पहली बार तो नहीं हो रहा है... प्यार करता है....
पिनाक - प्यार करता है.... या नाक कटवा रहा है... क्षेत्रपाल घर के मर्द किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... पर राजकुमार तो... उस नीच लड़की के आगे... नाक रगड़ने पर तूल गए हैं...
सुषमा - (टौंट मारते हुए) हूंह्ह... क्यूँ झूठ बोल रहे हैं.... किस अहंकार के बूते पर झूठ बोल रहे हैं...
पिनाक - (बिदक कर) क्या झूठ बोला है हमने...
सुषमा - यही की क्षेत्रपाल घर के मर्द... किसी औरत के आगे घुटने नहीं टेकते... हूंह्ह... औरत अगर पैर खोल दे... तो क्षेत्रपाल घर के मर्द.. घुटने रगड़ने पर तूल जाते हैं...

पिनाक का चेहरा सख्त हो जाता है l जबड़े भींच जाते हैं l गुस्से में बाईं आँख का भंवा तन जाता है और दाहिनी आँख के नीचे की पेशियां थर्राने लगती हैं l

पिनाक - क्या कहा गुस्ताख औरत...
सुषमा - एक सच बता दिया तो... आपके पुरुषार्थ के अहं घायल हो गया... जिस उम्र में... बेटे के लिए बहु ढूंढना चाहिए... उस उम्र में... किसी बेबस औरत को मजबूर कर उसकी मजबूरी की नाजायज फायदा उठाकर... छी...
पिनाक - ओ... तो आप... हम पर नजर रख रहे हैं...
सुषमा - जी नहीं... हम ऐसी ओछी काम नहीं कर सकते... जिस दिन आपको बड़े राजा की बुलावे की ख़बर दे रहे थे... आप उस दिन गलती से फोन बंद करना भूल गए थे...
पिनाक - ओ... तो... इसलिए... आपकी जुबान अपनी औकात भूल रही है...
सुषमा - जी नहीं... भूले नहीं हैं हम... जिस लड़की के लिए... हम इस हद तक आ पहुँचे... इससे कहीं आगे राजकुमार जा सकते हैं... बस यही बताने के लिए... आपको आगाह करने के लिए...
पिनाक - हाः... आप हमें आगाह कर रही हैं... आप जानते नहीं... अपनी मूँछों के लिए... हम किस हद तक जा सकते हैं...
सुषमा - जानते हैं... आखिर अपनी जीवन यहाँ तक जो गुजारा है आपके साथ.. आपकी जिद की हद को जानते हैं... पहचानते हैं... पर यह मत भूलिए... वह वीर सिंह क्षेत्रपाल है... उसकी जिद की हद... सिर्फ हम जानते हैं... आप नहीं जानते...

सुषमा जिस विश्वास के साथ यह बात कही थी थोड़ी देर के लिए पिनाक अंदर से हिल जाता है l वह कुछ समझने के अंदाज में अपना सिर हिलाता है l

पिनाक - हम यहाँ... बात की जानकारी लेने आए थे... शहरों की गालियों बाजारों में जो कानाफूसी हो रही है... दिल से चाहते थे... इस बात का आपसे कोई ताल्लुक ना हो... कोई सहमती ना हो... पर... पर कोई नहीं.... एक वादा जरूर करते हैं... वीर की शादी हम एक महीने के भीतर करवा देंगे... सिर्फ एक महीने के भीतर... वह भी हमारी और राजा साहब की मर्जी से.... वह लड़की जो इस वक़्त वीर के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है... उसे उसकी औकात भी दिखाएंगे...
सुषमा - आप भगवान के दर पर... इतनी गुरुर के साथ बात की है... मैं आपके आगे हाथ जोड़ कर आपको अपने भगवान से ऊपर नहीं रख सकती... अब जो होगा... मैं अपने भगवान की मर्जी पर छोड़ रही हूँ... पर इतना जरूर कहूँगी... इस बार क्षेत्रपाल घर की अहंकार आपस में टकराएगी... आपकी जिद अपनी औकात जरूर देखेगी...

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हस्पताल के केबिन के बाहर वीर अनु और दादी इंतजार कर रहे हैं l थोड़ी देर बाद एक स्टाफ नर्स केबिन के बाहर आकर वीर से कहता है

नर्स - पेशेंट को होश आ गया है...
वीर - थैंक्स... क्या हम पेशेंट से मिल सकते हैं...
नर्स - जी बेशक...

वीर अनु और दादी तीनों केबिन के अंदर आते हैं l मृत्युंजय के पैर पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था l सिर पर पट्टी लगा हुआ था और बाएं हाथ में बैंडेज बंधा हुआ था l बाकी शरीर पर कहीं और चोट नहीं था l मृत्युंजय अपनी आँखे बंद किए हुआ था l जैसे ही उसके बेड के करीब तीनों पहुँचते हैं, वह अपनी आँखे खोलता है l

अनु - मट्टू भैया...
मृत्युंजय - आह... (कराहते हुए) महांती सर कैसे हैं... (अनु अपना सिर झुका लेती है)
वीर - तुम उनकी बात छोड़ो... यह बता ओ... तुम अब कैसे हो...
मृत्युंजय - मैं... आपके सामने ही हूँ... पर महांती सर...
वीर - वह... अब... (रुक जाता है)
मृत्युंजय - ओह... समझा... (रोते हुए) हम दोनों समझ ही नहीं पाए... हमारे साथ क्या हो गया...
वीर - मृत्युंजय... समझ नहीं पाए... क्या हो गया मतलब...
मृत्युंजय - अब मैं क्या समझाऊँ.. जब मैं खुद नहीं समझ पाया... जब तक होश में था... तब तक मुझे याद जो भी याद था... मैंने वह सब सारी जानकारी पुलिस को दे दिया है...
वीर - हाँ... जानता हूँ... पर मैं तुमसे सुनना चाहता हूँ... क्यूंकि पुलिस कह रही है... तुम शायद कुछ छुपा रहे हो...
दादी - (सुबकते हुए) बेचारा... कुछ भी सही नहीं हो रहा है... इसके साथ...
अनु - दादी... मट्टू भैया दर्द में हैं... और तुम हो कि... दिलासा देने के बजाय... और बढ़ा रही हो...
मृत्युंजय - कोई नहीं बहन... कोई नहीं... (वीर से) हाँ... एक नहीं दो बातेँ... मैंने पुलिस से छुपाई है...

मृत्युंजय के इस बात पर तीनों चौंकते हैं l वीर की भवें सिकुड़ जाती है l

वीर - क्या... क्या छुपाया है तुमने..
मृत्युंजय - राजकुमार... मुझे महांती सर ने कॉल कर बुलाया और गाड़ी में बैठने के लिए कहा... मैंने वज़ह पूछा तो उन्होनें कहा... कोई भेदी है... जिसे उन्होंने ढूंढ लिया है... और राजकुमार जी के सामने उसे पेश करना है... मैं चुपचाप गाड़ी में बैठ गया... कुछ देर बार ट्रैफ़िक में गाड़ी कुछ देर के लिए रुक गई... तब मैंने महांती सर जी से सवाल किया... के उन्होंने मुझे ही क्यूँ चुना... उस घर के भेदी को पकड़ने के लिए... तब महांती सर ने कहा कि... घर की भेदी खुलासे के बाद वह मुझे लेकर तुरंत विशाखापट्टनम जाएंगे... मैं और भी हैरान हो गया... वह मुझे दिलासा देते हुए कहा... की मेरी बहन पुष्पा का पता चल गया है...
तीनों - क्या...
मृत्युंजय - हाँ... मैं भी चौंक कर ऐसे ही प्रतिक्रिया दी... तो उन्होंने कहा कि पुष्पा और विनय... विशाखापट्टनम के पास आर्कु में किसी रिसॉर्ट में हैं... यह बात सुन कर मैं बहुत खुस हुआ... फिर गाड़ी इंफोसिस के एसइजेड की ओर चलने लगी... हम दोनों बहुत खुश थे... हँसने लगे... हमारी हँसी धीरे धीरे बढ़ने लगी... बढ़ती ही चली गई... हम हँसते हँसते बेकाबू होते चले गए... फिर क्या हुआ... मुझे याद नहीं... जब आँखें खुली... खुद को एम्बुलेंस के अंदर पाया...
वीर - तो तुमने पुलिस को पुरी बात क्यूँ नहीं बताई...
मृत्युंजय - मुझे लगा... घर का भेदी कोई है... जिसे आपने अभी तक जब पुलिस से छुपा कर रखा है... तो वगैर आपके जानकारी के मैं यह बात पुलिस वालों से नहीं कह सकता था....
अनु - पर पुष्पा और विनय की बात तो कह ही सकते थे...
मृत्युंजय - नहीं... राजकुमार जी ने मुझसे वादा किया था... वे खुद पुष्पा और विनय को ढूँढ कर... उनकी शादी के लिए... केके साहब को मना कर... मेरे हवाले करेंगे... इसलिये... मैं यह बात पुलिस से छुपाई... क्या... मैंने कुछ गलत किया...

वीर यह बात सुन कर स्तब्ध हो जाता है l वह मृत्युंजय के कंधे पर हाथ रखकर अपना सिर हिलाते हुए अपने होंठों को अंदर भिंच लेता है l

वीर - नहीं... तुम वाकई बहुत अच्छे हो मट्टू... बहुत ही अच्छे हो... ना सिर्फ तुमने अपने मालिक की घर की इज़्ज़त बचाई... बल्कि अपनी घर की भी इज़्ज़त बचाई... मैं... (आवाज़ भर्रा जाती है) मैं... वादा करता हूँ... कल तुम्हारे सामने तुम्हारी बहन और बहनोई खड़े मिलेंगे... तुम्हारा सिर ना समाज के आगे... ना किसी और के आगे झुकेगा... वादा कर रहा हूँ...
मृत्युंजय - (रोनी आवाज में) थैंक्यू... राजकुमार जी... थैंक्यू... मैं आपका यह उपकार जीवन भर भुला नहीं पाऊँगा...
वीर - मट्टू... मैंने अभीतक कुछ किया नहीं है... पर अब दिल से कुछ करना चाहता हूँ...
मृत्युंजय - तो फिर एक अनुरोध है...
वीर - कहो... हक् से कहो...
मृत्युंजय - आपने इतनी बड़ी बात कह दी... यही काफी है... मैं चाहता हूँ... आप जब पुष्पा को लेने जाएं... अनु और दादी जी को भी साथ ले जाएं...
वीर - ठीक है... मना नहीं करूँगा... पर इतना तो पूछूँगा ही... क्या... तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है या....
मृत्युंजय - (वीर की हाथ को पकड़ लेता है) आप अपने को... अपमानित महसूस ना करें... बात भरोसे की नहीं है... (चुप हो जाता है)
अनु - हाँ राजकुमार जी... मट्टू भैया ठीक कह रहे हैं.... (वीर अनु की ओर सवालिया नजर से देखता है) राजकुमार जी... एक लड़की की मनःस्थिति को समझने की कोशिश कीजिए.... आप पुष्पा के लिए अनजान ही हैं... पर मैं या दादी नहीं... मैं उसकी दोस्त भी हूँ और बहन भी... और वह दादी को भी बहुत मानती है... आपसे शायद जोर जबरदस्ती हो जाए.... इसलिए मट्टू भैया ने हमारी बात कही...
वीर - ओह... सॉरी मट्टू... मैं तुम्हारे मन की बात को समझ नहीं पाया... ठीक है... मैं कल सुबह ही... अनु और दादी मां को साथ में लेकर... जाऊँगा... समझाऊँगा... जरूरत पड़ी तो हाथ पैर जोड़ुंगा... पर मैं पुष्पा और विनय को लेकर ही आऊंगा...

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कमिश्नर ऑफिस
कमिश्नर के सामने विक्रम बैठा हुआ है l एक सबइंस्पेक्टर आता है कमिश्नर को सैल्यूट मारने के बाद विक्रम को हैलो कहता है फिर उनके सामने टेबल पर एक फाइल रख कर दोबारा सैल्यूट मार कर वापस चला जाता है l कमिश्नर फाइल खोल कर देखता है फिर विक्रम की ओर देख कर कुछ सोचने लगता है l

विक्रम - क्या बात है कमिश्नर साहब.. क्या सोचने लगे... क्या लिखा है फाइल में...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... यह एक्सीडेंट नहीं है... जैसा कि अंदाजा था... यह मर्डर है...
विक्रम - आपको... किसी पर शक़ है...
कमिश्नर - युवराज जी... (एक गहरी साँस लेकर) हम आपके किसी भी मैटर में... अपना सिर नहीं खपाते... तो हम कैसे किस पर शक कर सकते हैं... या जता सकते हैं...

कुछ देर के लिए दोनों के बीच एक खामोशी छा जाती है l क्यूंकि कमिश्नर सच कहा था जिन मामलों में क्षेत्रपाल या ESS जुड़ा था उन केसेस से पुलिस हमेशा खुद को दूर ही रखती थी l

कमिश्नर - हम बस आपकी सहूलियत के लिए... मीडिया में इतना कहा कि यह एक्सीडेंट है... हाँ अगर आप चाहेंगे... तो हम इस केस को अपने हाथ में ले सकते हैं...
विक्रम - मीडिया में एक्सीडेंट कहने के लिए... थैंक्यू... पर क्या आप इस मर्डर को... डिफाइन कर सकते हैं...
कमिश्नर - हाँ कर सकता हूँ... बस एक सवाल का जवाब अगर मिल जाए... तो मैं बता दूँगा...
विक्रम - ठीक है पूछिये... क्या पूछना चाहते हैं...
कमिश्नर - ड्राइविंग के वक़्त... क्या महांती ग्लास उतार कर गाड़ी ड्राइव करते थे... या.. ग्लास उठा कर...
विक्रम - नहीं... ग्लास उतार कर... महांती को एसी में गाड़ी चलाना बिल्कुल पसंद नहीं था... इसलिए हमेशा विंडो ग्लास उतार कर ही गाड़ी चलाते थे... उन्हें नैचुरल हवा पसंद था...
कमिश्नर - ह्म्म्म्म... मतलब कातिल उनकी इस आदत से अच्छी तरह से वाकिफ था... शीट... यही एक बात मृत्युंजय के फेवर में जा रहा है...
विक्रम - (आँखे हैरानी के मारे फैल जाता है) क्या... मृत्युंजय...
कमिश्नर - हाँ... उसके स्टेटमेंट में हमें तब लगा तो था... के वह हमसे कुछ छुपा रहा है... अब महांती बाबु की यह आदत... मृत्युंजय के फेवर में... उसे बचा लेगा...
विक्रम - कमिशन साहब... क्या आप प्लीज... केस को ब्रीफ कर सकते हैं...
कमिश्नर - जी बिल्कुल... मृत्युंजय को गाड़ी में बिठा कर महांती इन्फोसिस की ओर जाने लगा... इस बात से अनजान के वह और उसकी गाड़ी की रेकी हो रही है... जाहिर सी बात है... उस दिन नहीं... कई दिनों से हो रही थी....
विक्रम - फिर...
कमिश्नर - उनकी गाड़ी ट्रैफ़िक पर रुकी नहीं थी... बल्कि सिग्नल के साथ छेड़ छाड़ कर रोकी गई थी... और आप हैरान हो जाओगे... गाड़ी सिग्नल पर सात मिनट तक रुकी थी... और स्वेरेज के गटर के ढक्कन के ऊपर... मतलब परफेक्ट लोकेशन.... वहां पर गाड़ी की ब्रेक... गियर के साथ छेड़ छाड़ करने वाला जब गटर का ढक्कन हटाया... तो उसकी बदबू के वज़ह से कार की ग्लास उठा कर एसी चलाए होंगे... गाड़ी में पहले से ही किसीने ऐसी वेंट पर फ्रैगनेस बॉटल की जगह... नाइट्रस आक्साइड यानी लाफिंग गैस की बॉटल प्लांट कर दिया... अब चूँकि एसी की वेंट चल रही थी... पुरे गाड़ी में गैस फैल गई... उसके बाद... महांती आउट ऑफ कंट्रोल हो गया... गाड़ी पलट गई... बाकी आगे आप जानते हैं...
विक्रम - हाँ लाफिंग गैस की बात छोड़ दें तो यही स्टेटमेंट... मृत्युंजय ने भी दी थी.... पर मृत्युंजय सीट बेल्ट पहने हुए था... पर महांती सीट बेल्ट में नहीं था... और बैलून भी प्रोटेक्शन नहीं दे पाए...
कमिश्नर - हाँ... हो सकता है कि... महांती जब हँसते हँसते आउट ऑफ कंट्रोल हुआ होगा तभी... उसका हाथ.. सीट बेल्ट की लॉक पर लगा होगा और... सीट बेल्ट खुल गई होगी... रही बैलून की बात... एक्सीडेंट बहुत ही जबरदस्त था... गाड़ी के पलटते ही महांती की गर्दन की हड्डी टुट गई...
(विक्रम चुप रहता है) वैसे आपको... रॉय ग्रुप सिक्युरिटी वालों को... थैंक्स कहना चहिए... उनकी एक प्रोग्राम वहाँ पर चल रही थी... और उन्होंने ही एम्बुलेंस की अरेंजमेंट की थी... वर्ना... मृत्युंजय भी हमें जिंदा ना मिलता...
विक्रम - ह्म्म्म्म... एक बात पूछूं...
कमिश्नर - जी बेशक...
विक्रम - क्या आपको... मृत्युंजय पर शक है...
कमिश्नर - था... पर अब नहीं है...
विक्रम - कैसे...
कमिश्नर - (फाइल से एक मेडिकल रिपोर्ट निकाल कर दिखाता है) उसके ब्लड सैंपल में उतना ही... नाइट्रस आक्साइड मिला है... जितना... महांती के ब्लड सैंपल में मिला... और मृत्युंजय का एक पैर टूटा हुआ है... हाथ में हेयर लाइन फ्रैक्चर है... और उसका सिर भी घायल है... महांती से उसकी कोई निजी रंजिश लगता नहीं है... और अब तक जैसा सर्कुमस्टैंस है... उससे लगता भी नहीं है कि मृत्युंजय कोई सूइसाइडल मर्डर अटेंप्ट किया होगा...
विक्रम - ह्म्म्म्म... ठीक है... कमिश्नर साहब... तो मुझे क्रेमेशंन के लिए... महांती की डेड बॉडी कब तक मिल जाएगी...
कमिश्नर - हमने सारी फॉर्मलीटीस पुरी कर ली है... आप जब चाहें ले जा सकते हैं... हमने मेडिकल में इंफॉर्म भी कर दिया है...

विक्रम अपनी जगह से उठता है, तो कमिश्नर भी खड़े हो कर हाथ मिलाने के लिए हाथ बढ़ाता है पर विक्रम हाथ मिलाए वगैर वहाँ से निकल जाता है l कमिश्नर का हाथ वैसे ही हवा में रह जाता है l विक्रम बाहर आ कर देखता है उसके कार के पास प्रधान और रोणा खड़े हुए थे l

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अपनी बेडरुम में रुप चहल कदम कर रही है l दो दिनों से ट्राय कर रही है पर तब्बसुम को फोन लगा रही है पर तब्बसुम का फोन उसे स्विच ऑफ ही मिल रही है l आज सुबह तब्बसुम से उसके घर पर मिलने का प्लान तो था पर चूंकि कल रात से ही घर पर मातम सा था और सुबह का माहौल ग़मगीन था, इसलिए वह ना आज कॉलेज जा सकी ना तब्बसुम के घर l आखिरी बार तब्बसुम को फोन मिलाती है पर इस बार भी उसे फोन स्विच ऑफ मिलती है l चिढ़ कर फोन को बेड पर पटक देती है और फिर आकर बेड पर बैठ जाती है l थोड़े उदास और खीजे मन से फोन निकाल कर कॉन्टेक्ट लिस्ट को स्क्रोल करती है l पहला नाम उसे बेवक़ूफ़ दिखती है l अपने आप उसका जीभ दांतों तले आ जाती है और बिना देरी किए विश्व को फोन लगाती है l

विश्व - हैलो...
रुप - नाराज हो..
विश्व - नहीं...
रुप - झूठ बोल रहे हो ना... मेरा मन रखने के लिए...
विश्व - नहीं... बिल्कुल नहीं...
रुप - (चिढ़ जाती है और गुस्से से) हर सुबह की तरह आज तुम्हें जगाया नहीं... तुम मुझसे नाराज नहीं हो... क्या यही तुम्हारा प्यार है...
विश्व - सच कहूँ तो नाराज तो था...
रुप - (बिदक कर) तो तुमने मुझे झूठ क्यूँ बोला...
विश्व - ताकि मुझसे मेरी राजकुमारी नहीं... मेरी नकचढ़ी बात करे... इसलिए...
रुप - (गालों पर अचानक शर्म की लाली आ जाती है) मतलब... सच में नाराज थे...
विश्व - हाँ... था तो...
रुप - (गुस्से वाली लहजे में) तो तुमने मुझे फोन क्यूँ नहीं किया... गिला करते... शिकवा करते... (नरम पड़ते हुए) मैं... मनाती ना...
विश्व - सोचा तो मैंने ऐसा ही था... मगर क्या करूँ... सुबह सुबह हाथ में... न्यूज पेपर आ गया... और मुझे सारा माजरा समझ में आ गया...
रुप - ओ...
विश्व - जी... चलिए अब कहिये... फोन क्यूँ किया...
रुप - फोन क्यूँ किया मतलब... सोचा तुम रूठे होगे... तो थोड़ा मना लूँ...
विश्व - जी हम तो आपके मनाने से पहले ही मान चुके हैं... कहिये फोन क्यूँ किया... क्या बात है जो आपको खाए जा रही है...
रुप - (थोड़ी उदास हो कर) वह.. मेरी दोस्त है ना... तब्बसुम...
विश्व - हाँ... क्या हुआ उन्हें...
रुप - वह पता नहीं... मेरे राजगड़ जाने से पहले गायब है... अभी तक नहीं दिखी है... सोचा था आज उसके घर जाऊँगी... पर... कल देर रात को खबर मिली के...
विश्व - ह्म्म्म्म... आपको याद हम नहीं आ रहे थे...
रुप - तुम... तुम... मुझे चिढ़ा रहे हो... देखो मैं तुमसे बात नहीं करूंगी... मुझे... मुझे भूल जाओ...
विश्व - ना ना.. यह सितम ना करो... तुम्हें दिल से कैसे जुदा हम करेंगे... के मर जायेंगे और क्या हम करेंगे...
रुप - (खुश होते हुए) आखिर तुम्हारे मुहँ से मेरे लिए तुम निकल ही गया...
विश्व - ओह शीट... मुहँ से निकल गया... वैसे इसे सीरियसली ना लीजिए गा... यह एक गाना था... जिसे मैंने आपके लिए गुनगुना दिया...
रुप - जो भी किया... तुमने मेरे दिल को खुश कर दिया... वैसे.. (फुसलाते हुए) कब आ रहे हो...
विश्व - जब आप चाहो... बस एक बार आवाज दीजिए... हम आपके सामने हाजिर हो जाएंगे...
रुप - देखो... तुम मुझे फिर से छेड़ने लगे...
विश्व - अच्छा ठीक है... आप कब चाहतीं हैं... के मैं आपके सामने आऊँ...
रुप - ह्म्म्म्म... कल...
विश्व - ठीक है... कल शाम को... मुलाकात होगी...
रुप - (चहकते हुए) क्या... मतलब तुम आज राजगड़ से निकल रहे हो...
विश्व - हाँ...
रुप - तो फिर... मुझे कल शाम का बेसब्री से इंतजार होगा... बाय...

कह कर फोन काट देती है l फोन के कट जाने पर विश्व मुस्कराते हुए फोन को देखता है फिर फोन को जेब में रखते वक़्त उसे सामने पानी की बोतल लिए सीलु खड़ा दिखता है l

विश्व - क्या हुआ... कब से सामने ऐसे खड़े हो...
सीलु - (पानी की बोतल को विश्व को देते हुए सामने वाली बेंच पर बैठ कर) कुछ ही देर हुए... तुम भाभी के साथ बातों में खोए हुए थे...
विश्व - ह्म्म्म्म... तो टोंट मार रहे हो...
सीलु - नहीं भाई... भाभी से बात करते हुए इस कदर खो गए थे कि... मेरे आने का एहसास तक नहीं हुआ...
विश्व - भाई मार लो... जितना चाहे टोंट मार लो...
सीलु - क्यूँ भाई... सिर्फ टीलु को ही हक है क्या...
विश्व - तो तुम टीलु से जल रहे हो...
सीलु - सिर्फ मैं ही नहीं... मिलु और जिलु भी..
विश्व - अच्छा पर क्यूँ...
सीलु - क्या... क्यूँ भाई... वह मजे से आपके पास... आपके साथ रह रहा है... जब कि...
विश्व - बस कुछ दिन और... ऐसे छोटी छोटी बातों को दिल से लगाओगे.. तो अब तक का सारा किए कराए पर पानी फिर जाएगा...
सीलु - पता नहीं वह दिन कब आएगा... पिछले एक साल से जमें हुए हैं... पर ज्यादा कुछ हाथ नहीं लगा है...
विश्व - क्यूँ... मुझे तो लगता है... बहुत कुछ पता लगा लिया है तुमने... बस एक सिरा ढूंढना बाकी है... वह मिल गया... तो समझ लो... जिस पर्दे के आड़ में... उन लोगों के काले धंधे चल रहे हैं... वह पर्दा ही गिर जाएगा...
सीलु - हाँ... पर वह सिरा ही तो नहीं मिल रहा है... पिछली बार जो कांड हुआ था... सब मुर्दों के आधार कार्ड पर हुआ था... पर इस बार ऐसा नहीं है... पर पैसा खूब बेह रहा है... सब अपने अपने हिस्से का पैसा दोनों हाथों से बटोर रहे हैं... क्या हो रहा है.. कैसे हो रहा है... कुछ भी समझ में नहीं आ रहा है...
विश्व - हर नया क्राइम.. पिछले बार से बेहतर ही होता है... तुम लोगों ने बहुत कुछ पता कर लिया है... इसलिए तो कह रहा हूँ.. बस कुछ दिन और...
सीलु - हाँ... जानता हूँ... करप्शन हो रहा है... बहुत ही ज़बरदस्त हो रहा है... पर हमें सिर्फ उपरी सतह के बारे में अंदाजा है... हम ज्यादा गहराई तक ना झाँक पा रहे हैं... ना ही छानबीन नहीं कर पा रहे हैं...
विश्व - हाँ.. वह इसलिए... क्यूंकि इस महा करप्शन में राजा का इंवॉल्वेंस है...
सीलु - चलो जब एक साल देख लिया... यह कुछ दिन भी देख लेंगे... वैसे भाई... तुम्हारा लाइसेंस कब तक आ जाएगा...
विश्व - माँ कह रही थी... और शायद दस से पंद्रह दिन के बाद...
सीलु - ह्म्म्म्म... बस...
विश्व - क्या...
सीलु - वह विश्वा भाई... बस आ गई...
विश्व - (उठते हुए) ओ अच्छा...
सीलु - (दोनों बस की ओर जाते हुए) अच्छा भाई.. उस पेपर वाले का क्या करें...
विश्व - नजर भी मत डालो उसपर... देखते हैं... और क्या क्या मैसेज कर रहा है... उसके मैसेज के पैटर्न देख रहा हूँ... टीलु को भी समझा दिया है... जब उस पर शक होगा... तब उसे ढूढेंगे...
Wah bhai shandaar update hai

Mritunjay to bada Khiladi nikla veer ko bhi apne baato me fasa liya aur police ke nazron me bhi nahi aaya acha khela hai mritunjay ne

Shusma ne pinak ko uski thodi si jhalak bhar dikha diya to pinak chidh gaya
Aur yah bhi keh diya ki veer ke mamle me na pade to behtar hai nahi to is baar kshetrapaal apas me takrayenge


Superb update bro
 
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बुज्जी भाई , आप के दाहिने हाथ मे फ्रेक्चर है और उस पर प्लास्टर चढ़ा हुआ है और अपने बांये हाथ का प्रयोग अपडेट देने मे कर रहे है। अब मुझे समझ नही आ रहा है कि इस के लिए आप की प्रशंसा करूं या आप को अपना छोटा भाई समझकर फटकार लगाऊं !
क्यों अपने हाथों पर प्रेशर डाल रहो हो आप। पहले आत्मा फिर परमात्मा। पहले स्वास्थ्य और फिर बाकी सब।
जब पुरी तरह से आप स्वस्थ हो जाए तब अपडेट देने की कोशिश करें।

इस अपडेट की बात करे तो एक तरह से क्षेत्रपाल परिवार के बिखरने का आगाज हो चुका है। सुषमा जी ने शायद पहली बार अपने हसबैंड के साथ आंखे से आंखे मिलाकर बातें की और शायद पहली बार क्षेत्रपाल के अहम को चुनौती दी।

कोड लेंग्वेज और गुप्त रूप से विश्व को मैसेज भेजने वाला शख्स भले ही कोई भी हो पर विश्व का दुश्मन नही हो सकता। वो शख्स क्षेत्रपाल की पहुंच और ताकत से अच्छी तरह वाकिफ है और अपनी औकात भी समझता है। वो परोक्ष रूप से क्षेत्रपाल का मुकाबला नही कर सकता। उसे विश्व के अद्भुत शक्तियों का भी ज्ञान है। उसका मकसद शायद एक और एक मिलाकर ग्यारह बनाने का है।

मृत्युंजय के लिए अभी से हम नही कह सकते कि वो विलेन के किरदार मे ही है। यह सभी जानते है कि उसके परिवार के साथ कितना गलत हुआ था। वो क्षेत्रपाल का दुश्मन है तो इस दुश्मनी का जेन्यून रीजन भी है। उसने महांती को मारकर एक तरह से क्षेत्रपाल का एक योग्य सिपहसलार ही कम कर दिया है।

बेहतरीन अपडेट भाई। अपने शरीर का ख्याल रखें। और अपडेट तो हमेशा की तरह वाह वाह था ही।
 
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