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Erotica वरदान

आप किस की पत्नी के साथ सैतानासुर का संभोग अगले अपडेट में देखना चाहते है?

  • किसी सामान्य मानव की।

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Naik

Well-Known Member
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75,349
258
यह कहानी एक ऐसे बच्चे की है जिसे, हमेशा लड़कियाँ चिढाया करतीं थीं। उसका नाम तरुण था।

काँलेज के बडे बच्चे उसे बहुत परेशान किया करते थे। वह एक अनाथ बच्चा था जिसे एक बीस साल की जवान लड़की ने आठ साल पहले गोद लिया हुआ था, तब वह एक दस साल का मासूम, और अनजान बच्चा था और अनाथ आश्रम से स्कूल आया करता था। उसकी क्लास में एक टिचर आया करती थी। वह एक कमसीन हसीना थी, तब उसका रंग गोरा,

कध 5 फूट 6 इंच उसका नाम तेजल था।

सीना 33, कमर 24, गांड 34 की थी, लेकिन वह बहुत सक्त लड़की थी वह हमेशा ऐसी साडी पहनती थी जो पूरी तरह उसके बदन को ढक सके, क्योंकि वह ये मानती थी की, बढ़ते रेप का कारण लड़कियों का बदलता पेहराव है। अब आठ साल बाद वह २८ साल की हो चुकी थी और वह लड़का १८ साल का बारवी में चला गया दसवीं में लड़के उसे बहुत चीढाया करते थे। और लड़कियां भी। वह जिस स्कूल में था वहाँ एक लिडर थी।

उसका नाम ज्वालामुखी चौटाला था। वह इनस्पेक्टर चंद्रमुखी चौटाला की बेटी थी, बिलकुल अपनी माँ पर गयी हूई थी। उसकी माँ भी हवलदार से छोटीसी गलती होने पर भी अच्छेसे पिटती थी। वैसे भी वह दिखने में भी माल थी। मगर सब उससे डरते थे।
चंद्रमूखी चौटाला

और एक दिन तरुण की ट्रीप गई। वह भी उसमें गया था,

सभी लड़कियों की एक गँग थी, वैसे कहने के लिये तो वह एक महिला संगठन था, मगर उनका काम सिर्फ, लड़कियों को ट्रेन करना था, वह भी कैसे लड़कों को, हुस्न के जाल में, फसाना और उनको कूछ दिये बिना उनसे अपना काम, निकलवाना और जानभुजकर परीक्षा के समय उन्हें, भटकाना ताकि लडकोंका निकाल कम आये। इस साल उस गँग की हेड ज्वालामुखी थी। वह हर बार लड़कों को चँलेंज करतीं धोकेसे जीतकर, लड़कों की रँगींग करती। अब सभी लड़कों कों एक रस्सी खेच का चँलेंज दिया गया था। अगर लड़के जिते तो, लड़के जिस लड़की को चुनेंगे वह नंगी होकर सबके सामने नाचेगी, और, अगर लड़कियाँ जीती तो वह एक लड़के को नंगा करके नचायगी। यह बात सब लड़कियों को पता थीं, क्योंकि उन्हें सिनीयर लड़कियों ने उन्हें सबकुछ सिखाया हुआ था। मगर हारने की वजह से सिनीयर लड़के लड़कों को नहीं बताते थे। फिर बच्चों के लिडर रोहित ने तरुण को बाहर भेज दिया ताकि वह कुछ फल ला सके, उन्होंने चँलेंज शूरू कर दिया।

वहाँ आगे किसी देवी का एक मंदिर था, आयना देवी उसका नाम। तरुण ने अंदर जाकर देखा तो, वहाँ एक औरत की मूर्ति थी। एकदम कमसीन साडे पांच फूट उचाई। ३६ २४ ३६ का बदन। तरुण ने सोचा की, अगर यह जिंदा होती तो। मै इसे ऐसेही चोद देता। फिर वह थोड़ा आगे गया।

तरुण रास्ता भटक गया। और वह एक पेड़ के पास पहुंच गया और वहाँ एक ब्रह्मराक्षस कहीं कल्पों से वहाँ बैठा इंतजार कर रहा था,


तरुण जैसे ही, वहाँ पहुंचा ब्रह्मराक्षस उसे बोला

ब्रह्मराक्षस:- मै तुम्हें आब तीन प्रश्न पुछुंगा तुम्हें उसके जवाब देने होंगे, अगर दो सही आयेंगे तो तुम यहाँ से सुरक्षित बाहर जा सकते हो। और अगर तीनों सही हुए तो मेरी सारी शक्तियां तुम्हारी। और अगर पहले दों में से अगर एक भी गलत हुआ तो मै तुम्हें खा जाऊंगा।

तरुण :-ठींक है, पूछो।

ब्रह्मराक्षस:-ऐसा कौन सा विकार है, जो एक पुरुषार्थ भी है?

तरुण :-काम।

ब्रह्मराक्षस:- दूसरा सवाल, ऐसा कौन सा पुरुषार्थ है, जो केवल व्यक्ति का अपना होता है। पत्नी या पती को उसका आधा नहीं मिलता?

तरुण :- मोक्ष।

ब्रह्मराक्षस:- सही, तीसरा सवाल देने के लिये तुम्हें एक कहानी सुननी पडेगी। ( फिर कहानी शुरू होती है।)

" बहुत साल पहले, एक राजा था,भानूप्रताप उसका नाम। वह बहुत पराक्रमी था, मगर बेऔलाद था। क्योंकि उसकी जवानी, युद्ध में गई थी। और साठ की उम्र में उसने अपने मित्र की जवान १६ साल की बेटी, श्यामली से विवाह किया था। वह एक सुंदर कन्या थी। मगर राजा के बुढे होने के कारण, वह बे औलाद थीं। वह अब २० साल की हो चुकी थी। उसकी आकृति ३६ २३ ३६ की थी सब कहते थें की, "बूढ़े बंदर के गलेमें मोतीयोंका हार।"

राजा जो की, बूढ़ा हो चला था और अपने राज्य के लिये चिंतित था, राज्य गुरु सदानंद के पास गया और अपनी समस्या रखी। सदानंद ने तब कहा,"महाराज सिर्फ पुत्र होने से कुछ नहीं होगा, राज्य की रक्षा के लिये आपको आपकी भांति एक तेजस्वी पुत्र चाहिए होगा। और किसी सामान्य मनुष्य के संभोग यह नहीं होगा, उसके लिये आपको किसी तपस्वी का संभोग चाहिए होगा।"

राजाने कहां "अब तपस्वी कहां से लायेंगे गुरुदेव"

तब आचार्य ने कहा ,"मेरे मित्र, कृतानंद जी आपके राज्य के बाहर काली पहाड़ियों में चालीस सालों से तपस्या कर रहे है। उन्होंने इतना तपोबल अर्जित कर लिया है, की आठ दस प्रहर तक लगातार स्त्री के साथ संभोग कर सके, मगर इस कार्य के लिये आप बस महारानी को तैयार कीजिए।"

रानी यह सब सुन लेती है, और कहती है,"हम तैयार है, महाराज, आप बस मुझे एक दिन का समय दीजिए, हम कर लेंगे।" तब राजा खुश होता है। फिर महारानी मंत्री को आज्ञा देकर सजावट और मेहेंदी निकालनेवाली लड़कियों को बुलाकर अपने पूरे शरीर पर मेहेंदी निकलवाती है। और दुसरे दिन स्नान करने के बाद वह सोलह श्रृंगार कर सबसे सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण करती है। और वहा जाने के लिये निकलती है, उनके जाने के लिये सेनापति ने पहलेसे ही तेज घोडोंके साथ रथ बनाया होता है। और सब पहले प्रहर के अंदर ही वहां पहुंच जाते है।वहां सुरक्षा के लिए सेनापति,सारथी,सैनिक और सदानंद जी होते है। फिर सदानंद जी सैनिक और सेनापति को वहीं ठहरा कर आगे निकल जाते है, और सदानंद जी उन्हें ऋषि कृतानंद तक पहुंचा देते है। वहां कृतानंद के तेज से, रानी अपने आप आकर्षित होती है, और आगे बढ़ती है और राजा आचार्य जी के साथ। वहाँ से दूर चले जाते है। और फिर रानी नृत्य करती है, मगर ऋषि पर उका कोई असर नहीं पड़ता। फिर वह उन्हें स्पर्श करने लगती है, मगर वह भी बेअसर होता है। फिर यह बात उसके अहं पर आ जाती है। और वह अपने सारे वस्त्र उतारकर नंगी होकर ऋषि की जंघा पर बैठ जाती है। इससे ऋषि की तपस्या भंग होती है। और वे आंखें खोल देते है, पर एक सुंदर नंगी स्त्री को देखकर क्रोध करने के बजाय उत्साहीत होकर रानी के स्तन दबाने लगे फिर, रानी के होटों को चुमते है। फिर उसकी जुबान पर जुबान घुमाकर फिर उसे नीचे चुमता हुआ उसकी गर्दन से होकर, उसके वक्ष को चुमते चुसते और दूसरे स्तन और स्तनाग्र को मसल रहे थे। अब रानी भी उत्तेजित हो रही थी, उसके मुंह से,"आह..मं..मं" जैसी सिसकारीया निकल रही थी। उससे ऋषि और ज्यादा उत्तेजित हो गये, और उन्होंने अपना डेड वित(8 इंच) का लिंग उसके योनी के अंदर पुरा डाल दिया । रानी चिल्लाती इसके पहले ऋषि ने उसके मूहपर होट कस दिये। और उनकी चिख दब गई। और ऋषि उन्हें जोर जोर से धक्के लगाते रहे। एक प्रहर बीत गई, इसके साथ रानी चार बार झड़ चुकी थी, मगर ऋषि एक बार भी नहीं झडे। उन्होंने रानी के पीछे आकर, उन्हें झुकाकर उनके स्तन पकड़कर जोर जोर से धक्के लगाने लगे। और जोर जोर से उनके स्तन मसलने लगे। ऐसा आठ प्रहर चलता रहा और आखिरकार ऋषि झड गये। और रानी की योनि वीर्य से भर गई और दोनों वहीं। नीढाल होकर वहीं सो गये। और सुबह उठ कर जब रानी ने ऋषि को कुछ मांगने को कहा, तो ऋषि ने रानी को दासी बनकर सदा उनके साथ रहने की मांग की, मगर रानी लालची थी उसने कहा, की वह कुछ भी मांग ले, मगर मगर राज्य छोड़ने को ना कहे, फिर ऋषि ने उसकी बेटी को मांग लिया, रानी बोली अगर बेटा हुआ तो मै राजमाता बनुंगी, बेटी आपकी हुई। औरा वह कपड़े पहनकर राजा के पास चली गई। और ऋषि ने इस बार एक पैर के अंगूठेपर खड़े होकर तपस्या शुरू कर दी। रानी को नौ महीने नौ दिन बाद एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई। बेटे का नाम रोहित और बेटी का नाम अयाना था।सदानंद जी के आश्रम में उनकी शिक्षा पूरी हुई। २० साल बीत गये। और ऋषि वापस आये उनकी तपस्या पूरी हो चुकी थी और विश्वकर्मा से उन्हें वह आयना प्राप्त हो चुका था। वह तब रानी ने अयाना का विवाह ऋषि से कराया, इससे अयाना ज्यादा खुश नहीं थी। क्योंकि ऋषि की उम्र ७० साल थी। ऋषि राजकुमारी को लेकर आश्रम चले गये और आश्रम का सारा कार्यभार अयाना पर डाल कर वरदान में मिला आयना सिद्ध करने चले गये।

यहा पांच साल बीत गये, वहाँ अयाना की हवस, दिन दिन बढ रहीं थी। एक बार राजा उग्रसेन वहां शिकार करने आये। वह बहुत पराक्रमी राजा थे तप करके उन्होंने ईश्वर से भी अनंत गुणा शक्ति,दिव्य, और जब चाहे उतने ब्रम्हांड बनाने और मिटाने की शक्ति थी, अस्र प्राप्त कर लिये थे। उन्होंने अंतरिक्ष में अपना खुद के तारे ग्रह बनाये थे, वहां उनका राज था। चलिए कहानी आगे बढाते है-

तब अयाना नदी पर पानी भरने गयी थी, और वह नदी के किनारे गई, उसने मटके में पानी भरा, और मटका किनारे रख कर अपनी साडी उतारी फिर अपने तरबूज जैसे स्तनों को उस पीले कपड़े से स्वतंत्र कीया, और एक कपडा लपेटकर पानी में स्नान करने उत गई, तभी अचानक पीछे से उसपर एक मगरमच्छ ने हमला कर दिया, वह अपने आप को बचाने के लिये बहार कुद पडी लेकिन उसका कपड़ा मगरमच्छ के मुंह में फंस गया और वह पूरी नग्न हो गई तभी एक बान तेजी से मगरमच्छ के मुंह मे लगा और वह वही ढेर हो गया। अयाना उसे देखती ही रह गयी, और तभी वहा राजा उग्रसेन आ गये। और अयाना का वह सुडौल शरीर, उनके सामने पूरी तरह से नग्न था, अयाना अभी भी झटके में थी। डर के मारे वह जोर जोर से हांफ रही थी, और उसकी सांसो के साथ उसके वह जवानी के साथ भरे हुये उरोज, बडे ही मादक लग रहे थे। उसकी वह नागिन की तरह पतली कमर और भरे हुये नितम्ब मादकता बढा रहे थे, राजा के मन में। उसका वह दूध जैसा गोरा रंग उस कागज़ की तरह था, जिसपर किसी ने दस्तखत नहीं की थी, अब राजा उसपर पूरा निबंध लिखने जा रहा था। राजा ने धीरे धीरे से अपना दायां हात उसके बायें कंधे पर रखा तब अयाना होश में आयी और खडी हो गयी, उसने राजा की आंखों में देखा और राजा ने उसका बायां हाथ अयाना के दायें कंधे पर रखा, तभी होश सम्भाल कर अयाना ने अपने स्तन ढक लिये मगर, अब देर हो चुकी थी, राजा ने अपने हात उसके कंधों से नीचे सरकाते हुये उसकी कोन्ही तक ले आये,और जोर से कोन्ही पर अंगूठा दबाया उससे अयाना उत्तेजित हो उठी और उसके हाथ अपनेआप उसके स्तनों से हट गये। अब राजा ने अयाना के उरोजों पर चूम्बन दिया, जिससे अयाना की उत्तेजना चरम पर पहुंच गयी और उसके यौन के मुख से कामवासना की नदी बहने लगी। वह भी विरोध रोककर राजा का साथ देने लगी थी। और वहाँ कृतानंद ऋषि की सिद्धि पूरी हो चुकी थी। जब देवता जाने लगे तब देवताओं ने कहां, "यही आयना तुम्हें सबसे ज्यादा दुख देगा" तब ऋषि ने आयने से कहा की मुझे मेरी पत्नी दिखाओ तब आयनेने उन्हें वहाँ का माहोल दिखाया। तब ऋषि क्रोधित हो उठे, उन्होंने आयने की मदत से सीधे वहाँ प्रस्थान किया और चिल्लाकर कहा ,"देवी!!! एक ऋषिपत्नी होकर भी आपमें जरा भी संयम नहीं है, मेरे जाते ही आप मार्ग डगमगाने लगी तो जाइए हम आप को श्राप देते है की आप अनंत काल तक पाषाण बनी रहेगी", और देखते ही देखते वह एक पाषाण में परिवर्तित हो गई। और फीर वह राजा से बोले,"राजन!! इस कार्य में आप भी बराबर के भागीदार है, इसीलिये हम आपको भी श्राप देते है की, आप सदा के लिये यही एक ब्रह्मराक्षस बन कर इसी वृक्ष पर निवास करेंगे, और जब भी कोई आप को आपके प्रश्नों का उचित उत्तर देगा उसे आप की सारी शक्तियां और वरदान प्राप्त होंगे और आपको मोक्ष और हर क्षण के साथ आप की शक्तियां जो उसे मिलने वाली है वह अनंत गुणा बढ़ती जायेंगी।"और उसके साथ राजा देखते ही देखते ब्रह्मराक्षस बनकर वृक्ष पर लटक गये। और कहीं कल्प बित गये मगर वह अभीभी इंतजार कर रहे है।"(और इस तरह ब्रह्मराक्षस की कथा समाप्त हुई)

ब्रह्मराक्षस:- क्या उत्तर देने के लिये तैयार हो?

तरुण:- हां।

ब्रह्मराक्षस:- तो बताओ वह राजा और ऋषिपत्नी कौन है।

तरुण:- वह राजा आप है। और ऋषि पत्नी है वह देवी जिसका मंदिर मैंने देखा था।

ब्रह्मराक्षस :- सही आज और इसी समय से मेरी सारी शक्तियां तुम्हारी हुई, अब तुम जो चाहे वह कर सकते हो, जिसे चाहे अपना दास बना सकते हो, जितने चाहे विश्व निर्माण और नष्ट कर सकते हो, अपनी शक्ति से किसी भी स्त्री के मन में वासना भर के उसे संभोग कर सकते हो, पर मेरा एक काम करो मेरी यह माला जिस देवी के मंदिर से तुम आ रहे हो उसे चढा दो।

इतना कहते ही वह राक्षस अदृश्य हो गया और उसके कहे मुताबिक तरुण सीधे मंदिर में चला गया और मूर्ति के गले में हार डाल दिया ऐसा करते ही, मूर्ति जी उठी और वह एक कमसीन औरत में बदल गयी, उसके बदन पर जरा भी जरुरत से ज्यादा मांस नहीं था मगर जहां होना चाहिए वहा भरपूर था, उसका कटिला बदन तरुण को आकर्षित कर रहा था। उसने सिर्फ एक हल्के पीले रंग की साडी पहन रखी थी, जो उसने कमर में कस रखी थी, उसने ब्लाउज नहीं पहना था।उसके तरबूज समान उरोज तरुण के मन मे वासना तब तरुण ने उसे कहा,"आपका बदन तो कामरस की नदी समान है, आज्ञा हो तो कुछ प्याले मै भी पी लू?" तरुण के ऐसा कहते ही ऋषिपत्नी पीछे मुड़कर जाने लगी तभी तरुण ने उसकी साडी का पल्लू पकड़ लिया और उसकी वजह से उसकी कंधे से साडी उतर गई और उसके गोरे दूध जैसे उरोज और उसके साथ उसके गुलाबी स्तनाग्र दिखने लगे, उसने अपने हाथों से उन्हें ढक लिया, पर तभी तरुण ने साडी जोर से खींच ली, जिससे वह गोल गोल घूमते हुये सिधे तरुण के बदन पर आ गिरी, तरुण और वह साथ में फर्श पर गीर पडे और तरुण के होठ उसके होठोंपर लग गये जिससे तरुण का लिंग खड़ा हो गया, उसने पँट उतार दी, वह उसकी योनी पर झटके मारने लगा इससे ऋषिपत्नी उत्तेजित हो उठी और उसने तरुण का लिंग अपनी योनि में डाल लिया और उसकी चीख निकल गई और वह उपर नीचे होकर उछलने लगी, मगर तरुण का लिंग वरदान की बजह से १० इंच का हो चुका था, और उस वजह से वह, "म्म्म् !आहा!" करके कामूक सिसकारीया निकाल रही थी। तब तरुण अपने हातोंसे उसके स्तन मसल रहा था, इसी तरह दोनो साल भर काम के समंदर में गोते लगाते रहे और वहां उन्हें आखिरकार वह चरम सुख का मोती मिल गया दोनों झड गये उनका रस उस दिव्य आयने पर गिरा और वह निले पदार्थ में बदल गया, और बहुत प्यास लगने की वजह से तरुण उसे पी गया इससे जैसे उसे कोई झटका लगा उसका बदन तनने लगा उसे अपने अंदर अजीब शक्ति का अहसास होने लगा उसका लिंग अब तनकर १५ इंच लंबा और ३ इंच मोटा हो चुका था, उसका बदन किसी पहलवान की तरह मस्क्युलर हो चुका था। और जब उसने इस बारे में अयाना से कहा तो उसने बताया की यह नीलनीर था जो अमृत बनाने के लिये उपयोग में लाया जा सकता है। उसकी एक बूंद से अमृत का पूरा सागर बन सकता है। और उस नीलनीर को तुमने नदी भरकर पी लिया। इससे तुम्हारी शक्तियां और दिव्य अस्त्र अनंत गुना शक्तिशाली हो गये है और तुम मृत्यु, शाप, कुदृष्टि, कुदशशा से सुरक्षित हो और इससे ऐसी महक आयेगी की तुम कीसी को, भी अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हो, और उसकी हवस को चरम पर पहुंचा कर संभोग के लिये विवश कर सकते हो। और इसके साथ तुम्हारा विर्यपात भी तुम्हारी इच्छा पर आधारित रहेगा।

ज्वालामुखी चौटाला
navbnp


तेजल
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इतना कहते ही अयाना एक नीली रोशनी में बदल कर आयने में चली गई।
फिर तरुण वहां से भागा मगर, समय सेतु की वजह से वह उसी समय में पहुंच गया जहां से वह आया था।
वहा लेडी गँग ने अपनी चाल शुरू कर दी थी, उन्होंने जो सिरा उनकी तरफ था वह पिछे वाले एक पेड़ को बांध दिया था। जो लड़कियों के बिच में होने के कारण लड़कों को नहीं दिखाई दे रहा था। सब थकने लगे थे लड़कियाँ सिर्फ खडी खड़ी लड़कों के थकने का इंतजार कर रहीं थी, जिसके कारण अब लड़के थकने लगे थे अब लड़कियों ने जोर लगाया और थकान के कारण लड़के हारने लगे की तभी तरुण आ गया और उसने एक हाथ से रस्सी के साथ लड़कियाँ तो खींच ली पर, पेड़ भी जड़ों से उखाड़ दिया जिस वजह से लड़कियाँ हार गई और उनके जितने का रहस्य भी उजागर हो गया। अब सब लड़कियों की पंचायत हो चुकी थी। अब सब लड़के तरुण को सुझाव देने लगे थें की किसे चुने, मगर त ने
Bahot badhiya shaandaar shuruwat
Dekte h tarun kisko chunta h
 

andyking302

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यह कहानी एक ऐसे बच्चे की है जिसे, हमेशा लड़कियाँ चिढाया करतीं थीं। उसका नाम तरुण था।

काँलेज के बडे बच्चे उसे बहुत परेशान किया करते थे। वह एक अनाथ बच्चा था जिसे एक बीस साल की जवान लड़की ने आठ साल पहले गोद लिया हुआ था, तब वह एक दस साल का मासूम, और अनजान बच्चा था और अनाथ आश्रम से स्कूल आया करता था। उसकी क्लास में एक टिचर आया करती थी। वह एक कमसीन हसीना थी, तब उसका रंग गोरा,

कध 5 फूट 6 इंच उसका नाम तेजल था।

सीना 33, कमर 24, गांड 34 की थी, लेकिन वह बहुत सक्त लड़की थी वह हमेशा ऐसी साडी पहनती थी जो पूरी तरह उसके बदन को ढक सके, क्योंकि वह ये मानती थी की, बढ़ते रेप का कारण लड़कियों का बदलता पेहराव है। अब आठ साल बाद वह २८ साल की हो चुकी थी और वह लड़का १८ साल का बारवी में चला गया दसवीं में लड़के उसे बहुत चीढाया करते थे। और लड़कियां भी। वह जिस स्कूल में था वहाँ एक लिडर थी।

उसका नाम ज्वालामुखी चौटाला था। वह इनस्पेक्टर चंद्रमुखी चौटाला की बेटी थी, बिलकुल अपनी माँ पर गयी हूई थी। उसकी माँ भी हवलदार से छोटीसी गलती होने पर भी अच्छेसे पिटती थी। वैसे भी वह दिखने में भी माल थी। मगर सब उससे डरते थे।
चंद्रमूखी चौटाला

और एक दिन तरुण की ट्रीप गई। वह भी उसमें गया था,

सभी लड़कियों की एक गँग थी, वैसे कहने के लिये तो वह एक महिला संगठन था, मगर उनका काम सिर्फ, लड़कियों को ट्रेन करना था, वह भी कैसे लड़कों को, हुस्न के जाल में, फसाना और उनको कूछ दिये बिना उनसे अपना काम, निकलवाना और जानभुजकर परीक्षा के समय उन्हें, भटकाना ताकि लडकोंका निकाल कम आये। इस साल उस गँग की हेड ज्वालामुखी थी। वह हर बार लड़कों को चँलेंज करतीं धोकेसे जीतकर, लड़कों की रँगींग करती। अब सभी लड़कों कों एक रस्सी खेच का चँलेंज दिया गया था। अगर लड़के जिते तो, लड़के जिस लड़की को चुनेंगे वह नंगी होकर सबके सामने नाचेगी, और, अगर लड़कियाँ जीती तो वह एक लड़के को नंगा करके नचायगी। यह बात सब लड़कियों को पता थीं, क्योंकि उन्हें सिनीयर लड़कियों ने उन्हें सबकुछ सिखाया हुआ था। मगर हारने की वजह से सिनीयर लड़के लड़कों को नहीं बताते थे। फिर बच्चों के लिडर रोहित ने तरुण को बाहर भेज दिया ताकि वह कुछ फल ला सके, उन्होंने चँलेंज शूरू कर दिया।

वहाँ आगे किसी देवी का एक मंदिर था, आयना देवी उसका नाम। तरुण ने अंदर जाकर देखा तो, वहाँ एक औरत की मूर्ति थी। एकदम कमसीन साडे पांच फूट उचाई। ३६ २४ ३६ का बदन। तरुण ने सोचा की, अगर यह जिंदा होती तो। मै इसे ऐसेही चोद देता। फिर वह थोड़ा आगे गया।

तरुण रास्ता भटक गया। और वह एक पेड़ के पास पहुंच गया और वहाँ एक ब्रह्मराक्षस कहीं कल्पों से वहाँ बैठा इंतजार कर रहा था,


तरुण जैसे ही, वहाँ पहुंचा ब्रह्मराक्षस उसे बोला

ब्रह्मराक्षस:- मै तुम्हें आब तीन प्रश्न पुछुंगा तुम्हें उसके जवाब देने होंगे, अगर दो सही आयेंगे तो तुम यहाँ से सुरक्षित बाहर जा सकते हो। और अगर तीनों सही हुए तो मेरी सारी शक्तियां तुम्हारी। और अगर पहले दों में से अगर एक भी गलत हुआ तो मै तुम्हें खा जाऊंगा।

तरुण :-ठींक है, पूछो।

ब्रह्मराक्षस:-ऐसा कौन सा विकार है, जो एक पुरुषार्थ भी है?

तरुण :-काम।

ब्रह्मराक्षस:- दूसरा सवाल, ऐसा कौन सा पुरुषार्थ है, जो केवल व्यक्ति का अपना होता है। पत्नी या पती को उसका आधा नहीं मिलता?

तरुण :- मोक्ष।

ब्रह्मराक्षस:- सही, तीसरा सवाल देने के लिये तुम्हें एक कहानी सुननी पडेगी। ( फिर कहानी शुरू होती है।)

" बहुत साल पहले, एक राजा था,भानूप्रताप उसका नाम। वह बहुत पराक्रमी था, मगर बेऔलाद था। क्योंकि उसकी जवानी, युद्ध में गई थी। और साठ की उम्र में उसने अपने मित्र की जवान १६ साल की बेटी, श्यामली से विवाह किया था। वह एक सुंदर कन्या थी। मगर राजा के बुढे होने के कारण, वह बे औलाद थीं। वह अब २० साल की हो चुकी थी। उसकी आकृति ३६ २३ ३६ की थी सब कहते थें की, "बूढ़े बंदर के गलेमें मोतीयोंका हार।"

राजा जो की, बूढ़ा हो चला था और अपने राज्य के लिये चिंतित था, राज्य गुरु सदानंद के पास गया और अपनी समस्या रखी। सदानंद ने तब कहा,"महाराज सिर्फ पुत्र होने से कुछ नहीं होगा, राज्य की रक्षा के लिये आपको आपकी भांति एक तेजस्वी पुत्र चाहिए होगा। और किसी सामान्य मनुष्य के संभोग यह नहीं होगा, उसके लिये आपको किसी तपस्वी का संभोग चाहिए होगा।"

राजाने कहां "अब तपस्वी कहां से लायेंगे गुरुदेव"

तब आचार्य ने कहा ,"मेरे मित्र, कृतानंद जी आपके राज्य के बाहर काली पहाड़ियों में चालीस सालों से तपस्या कर रहे है। उन्होंने इतना तपोबल अर्जित कर लिया है, की आठ दस प्रहर तक लगातार स्त्री के साथ संभोग कर सके, मगर इस कार्य के लिये आप बस महारानी को तैयार कीजिए।"

रानी यह सब सुन लेती है, और कहती है,"हम तैयार है, महाराज, आप बस मुझे एक दिन का समय दीजिए, हम कर लेंगे।" तब राजा खुश होता है। फिर महारानी मंत्री को आज्ञा देकर सजावट और मेहेंदी निकालनेवाली लड़कियों को बुलाकर अपने पूरे शरीर पर मेहेंदी निकलवाती है। और दुसरे दिन स्नान करने के बाद वह सोलह श्रृंगार कर सबसे सुंदर वस्त्र और आभूषण धारण करती है। और वहा जाने के लिये निकलती है, उनके जाने के लिये सेनापति ने पहलेसे ही तेज घोडोंके साथ रथ बनाया होता है। और सब पहले प्रहर के अंदर ही वहां पहुंच जाते है।वहां सुरक्षा के लिए सेनापति,सारथी,सैनिक और सदानंद जी होते है। फिर सदानंद जी सैनिक और सेनापति को वहीं ठहरा कर आगे निकल जाते है, और सदानंद जी उन्हें ऋषि कृतानंद तक पहुंचा देते है। वहां कृतानंद के तेज से, रानी अपने आप आकर्षित होती है, और आगे बढ़ती है और राजा आचार्य जी के साथ। वहाँ से दूर चले जाते है। और फिर रानी नृत्य करती है, मगर ऋषि पर उका कोई असर नहीं पड़ता। फिर वह उन्हें स्पर्श करने लगती है, मगर वह भी बेअसर होता है। फिर यह बात उसके अहं पर आ जाती है। और वह अपने सारे वस्त्र उतारकर नंगी होकर ऋषि की जंघा पर बैठ जाती है। इससे ऋषि की तपस्या भंग होती है। और वे आंखें खोल देते है, पर एक सुंदर नंगी स्त्री को देखकर क्रोध करने के बजाय उत्साहीत होकर रानी के स्तन दबाने लगे फिर, रानी के होटों को चुमते है। फिर उसकी जुबान पर जुबान घुमाकर फिर उसे नीचे चुमता हुआ उसकी गर्दन से होकर, उसके वक्ष को चुमते चुसते और दूसरे स्तन और स्तनाग्र को मसल रहे थे। अब रानी भी उत्तेजित हो रही थी, उसके मुंह से,"आह..मं..मं" जैसी सिसकारीया निकल रही थी। उससे ऋषि और ज्यादा उत्तेजित हो गये, और उन्होंने अपना डेड वित(8 इंच) का लिंग उसके योनी के अंदर पुरा डाल दिया । रानी चिल्लाती इसके पहले ऋषि ने उसके मूहपर होट कस दिये। और उनकी चिख दब गई। और ऋषि उन्हें जोर जोर से धक्के लगाते रहे। एक प्रहर बीत गई, इसके साथ रानी चार बार झड़ चुकी थी, मगर ऋषि एक बार भी नहीं झडे। उन्होंने रानी के पीछे आकर, उन्हें झुकाकर उनके स्तन पकड़कर जोर जोर से धक्के लगाने लगे। और जोर जोर से उनके स्तन मसलने लगे। ऐसा आठ प्रहर चलता रहा और आखिरकार ऋषि झड गये। और रानी की योनि वीर्य से भर गई और दोनों वहीं। नीढाल होकर वहीं सो गये। और सुबह उठ कर जब रानी ने ऋषि को कुछ मांगने को कहा, तो ऋषि ने रानी को दासी बनकर सदा उनके साथ रहने की मांग की, मगर रानी लालची थी उसने कहा, की वह कुछ भी मांग ले, मगर मगर राज्य छोड़ने को ना कहे, फिर ऋषि ने उसकी बेटी को मांग लिया, रानी बोली अगर बेटा हुआ तो मै राजमाता बनुंगी, बेटी आपकी हुई। औरा वह कपड़े पहनकर राजा के पास चली गई। और ऋषि ने इस बार एक पैर के अंगूठेपर खड़े होकर तपस्या शुरू कर दी। रानी को नौ महीने नौ दिन बाद एक बेटा और एक बेटी पैदा हुई। बेटे का नाम रोहित और बेटी का नाम अयाना था।सदानंद जी के आश्रम में उनकी शिक्षा पूरी हुई। २० साल बीत गये। और ऋषि वापस आये उनकी तपस्या पूरी हो चुकी थी और विश्वकर्मा से उन्हें वह आयना प्राप्त हो चुका था। वह तब रानी ने अयाना का विवाह ऋषि से कराया, इससे अयाना ज्यादा खुश नहीं थी। क्योंकि ऋषि की उम्र ७० साल थी। ऋषि राजकुमारी को लेकर आश्रम चले गये और आश्रम का सारा कार्यभार अयाना पर डाल कर वरदान में मिला आयना सिद्ध करने चले गये।

यहा पांच साल बीत गये, वहाँ अयाना की हवस, दिन दिन बढ रहीं थी। एक बार राजा उग्रसेन वहां शिकार करने आये। वह बहुत पराक्रमी राजा थे तप करके उन्होंने ईश्वर से भी अनंत गुणा शक्ति,दिव्य, और जब चाहे उतने ब्रम्हांड बनाने और मिटाने की शक्ति थी, अस्र प्राप्त कर लिये थे। उन्होंने अंतरिक्ष में अपना खुद के तारे ग्रह बनाये थे, वहां उनका राज था। चलिए कहानी आगे बढाते है-

तब अयाना नदी पर पानी भरने गयी थी, और वह नदी के किनारे गई, उसने मटके में पानी भरा, और मटका किनारे रख कर अपनी साडी उतारी फिर अपने तरबूज जैसे स्तनों को उस पीले कपड़े से स्वतंत्र कीया, और एक कपडा लपेटकर पानी में स्नान करने उत गई, तभी अचानक पीछे से उसपर एक मगरमच्छ ने हमला कर दिया, वह अपने आप को बचाने के लिये बहार कुद पडी लेकिन उसका कपड़ा मगरमच्छ के मुंह में फंस गया और वह पूरी नग्न हो गई तभी एक बान तेजी से मगरमच्छ के मुंह मे लगा और वह वही ढेर हो गया। अयाना उसे देखती ही रह गयी, और तभी वहा राजा उग्रसेन आ गये। और अयाना का वह सुडौल शरीर, उनके सामने पूरी तरह से नग्न था, अयाना अभी भी झटके में थी। डर के मारे वह जोर जोर से हांफ रही थी, और उसकी सांसो के साथ उसके वह जवानी के साथ भरे हुये उरोज, बडे ही मादक लग रहे थे। उसकी वह नागिन की तरह पतली कमर और भरे हुये नितम्ब मादकता बढा रहे थे, राजा के मन में। उसका वह दूध जैसा गोरा रंग उस कागज़ की तरह था, जिसपर किसी ने दस्तखत नहीं की थी, अब राजा उसपर पूरा निबंध लिखने जा रहा था। राजा ने धीरे धीरे से अपना दायां हात उसके बायें कंधे पर रखा तब अयाना होश में आयी और खडी हो गयी, उसने राजा की आंखों में देखा और राजा ने उसका बायां हाथ अयाना के दायें कंधे पर रखा, तभी होश सम्भाल कर अयाना ने अपने स्तन ढक लिये मगर, अब देर हो चुकी थी, राजा ने अपने हात उसके कंधों से नीचे सरकाते हुये उसकी कोन्ही तक ले आये,और जोर से कोन्ही पर अंगूठा दबाया उससे अयाना उत्तेजित हो उठी और उसके हाथ अपनेआप उसके स्तनों से हट गये। अब राजा ने अयाना के उरोजों पर चूम्बन दिया, जिससे अयाना की उत्तेजना चरम पर पहुंच गयी और उसके यौन के मुख से कामवासना की नदी बहने लगी। वह भी विरोध रोककर राजा का साथ देने लगी थी। और वहाँ कृतानंद ऋषि की सिद्धि पूरी हो चुकी थी। जब देवता जाने लगे तब देवताओं ने कहां, "यही आयना तुम्हें सबसे ज्यादा दुख देगा" तब ऋषि ने आयने से कहा की मुझे मेरी पत्नी दिखाओ तब आयनेने उन्हें वहाँ का माहोल दिखाया। तब ऋषि क्रोधित हो उठे, उन्होंने आयने की मदत से सीधे वहाँ प्रस्थान किया और चिल्लाकर कहा ,"देवी!!! एक ऋषिपत्नी होकर भी आपमें जरा भी संयम नहीं है, मेरे जाते ही आप मार्ग डगमगाने लगी तो जाइए हम आप को श्राप देते है की आप अनंत काल तक पाषाण बनी रहेगी", और देखते ही देखते वह एक पाषाण में परिवर्तित हो गई। और फीर वह राजा से बोले,"राजन!! इस कार्य में आप भी बराबर के भागीदार है, इसीलिये हम आपको भी श्राप देते है की, आप सदा के लिये यही एक ब्रह्मराक्षस बन कर इसी वृक्ष पर निवास करेंगे, और जब भी कोई आप को आपके प्रश्नों का उचित उत्तर देगा उसे आप की सारी शक्तियां और वरदान प्राप्त होंगे और आपको मोक्ष और हर क्षण के साथ आप की शक्तियां जो उसे मिलने वाली है वह अनंत गुणा बढ़ती जायेंगी।"और उसके साथ राजा देखते ही देखते ब्रह्मराक्षस बनकर वृक्ष पर लटक गये। और कहीं कल्प बित गये मगर वह अभीभी इंतजार कर रहे है।"(और इस तरह ब्रह्मराक्षस की कथा समाप्त हुई)

ब्रह्मराक्षस:- क्या उत्तर देने के लिये तैयार हो?

तरुण:- हां।

ब्रह्मराक्षस:- तो बताओ वह राजा और ऋषिपत्नी कौन है।

तरुण:- वह राजा आप है। और ऋषि पत्नी है वह देवी जिसका मंदिर मैंने देखा था।

ब्रह्मराक्षस :- सही आज और इसी समय से मेरी सारी शक्तियां तुम्हारी हुई, अब तुम जो चाहे वह कर सकते हो, जिसे चाहे अपना दास बना सकते हो, जितने चाहे विश्व निर्माण और नष्ट कर सकते हो, अपनी शक्ति से किसी भी स्त्री के मन में वासना भर के उसे संभोग कर सकते हो, पर मेरा एक काम करो मेरी यह माला जिस देवी के मंदिर से तुम आ रहे हो उसे चढा दो।

इतना कहते ही वह राक्षस अदृश्य हो गया और उसके कहे मुताबिक तरुण सीधे मंदिर में चला गया और मूर्ति के गले में हार डाल दिया ऐसा करते ही, मूर्ति जी उठी और वह एक कमसीन औरत में बदल गयी, उसके बदन पर जरा भी जरुरत से ज्यादा मांस नहीं था मगर जहां होना चाहिए वहा भरपूर था, उसका कटिला बदन तरुण को आकर्षित कर रहा था। उसने सिर्फ एक हल्के पीले रंग की साडी पहन रखी थी, जो उसने कमर में कस रखी थी, उसने ब्लाउज नहीं पहना था।उसके तरबूज समान उरोज तरुण के मन मे वासना तब तरुण ने उसे कहा,"आपका बदन तो कामरस की नदी समान है, आज्ञा हो तो कुछ प्याले मै भी पी लू?" तरुण के ऐसा कहते ही ऋषिपत्नी पीछे मुड़कर जाने लगी तभी तरुण ने उसकी साडी का पल्लू पकड़ लिया और उसकी वजह से उसकी कंधे से साडी उतर गई और उसके गोरे दूध जैसे उरोज और उसके साथ उसके गुलाबी स्तनाग्र दिखने लगे, उसने अपने हाथों से उन्हें ढक लिया, पर तभी तरुण ने साडी जोर से खींच ली, जिससे वह गोल गोल घूमते हुये सिधे तरुण के बदन पर आ गिरी, तरुण और वह साथ में फर्श पर गीर पडे और तरुण के होठ उसके होठोंपर लग गये जिससे तरुण का लिंग खड़ा हो गया, उसने पँट उतार दी, वह उसकी योनी पर झटके मारने लगा इससे ऋषिपत्नी उत्तेजित हो उठी और उसने तरुण का लिंग अपनी योनि में डाल लिया और उसकी चीख निकल गई और वह उपर नीचे होकर उछलने लगी, मगर तरुण का लिंग वरदान की बजह से १० इंच का हो चुका था, और उस वजह से वह, "म्म्म् !आहा!" करके कामूक सिसकारीया निकाल रही थी। तब तरुण अपने हातोंसे उसके स्तन मसल रहा था, इसी तरह दोनो साल भर काम के समंदर में गोते लगाते रहे और वहां उन्हें आखिरकार वह चरम सुख का मोती मिल गया दोनों झड गये उनका रस उस दिव्य आयने पर गिरा और वह निले पदार्थ में बदल गया, और बहुत प्यास लगने की वजह से तरुण उसे पी गया इससे जैसे उसे कोई झटका लगा उसका बदन तनने लगा उसे अपने अंदर अजीब शक्ति का अहसास होने लगा उसका लिंग अब तनकर १५ इंच लंबा और ३ इंच मोटा हो चुका था, उसका बदन किसी पहलवान की तरह मस्क्युलर हो चुका था। और जब उसने इस बारे में अयाना से कहा तो उसने बताया की यह नीलनीर था जो अमृत बनाने के लिये उपयोग में लाया जा सकता है। उसकी एक बूंद से अमृत का पूरा सागर बन सकता है। और उस नीलनीर को तुमने नदी भरकर पी लिया। इससे तुम्हारी शक्तियां और दिव्य अस्त्र अनंत गुना शक्तिशाली हो गये है और तुम मृत्यु, शाप, कुदृष्टि, कुदशशा से सुरक्षित हो और इससे ऐसी महक आयेगी की तुम कीसी को, भी अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हो, और उसकी हवस को चरम पर पहुंचा कर संभोग के लिये विवश कर सकते हो। और इसके साथ तुम्हारा विर्यपात भी तुम्हारी इच्छा पर आधारित रहेगा।

ज्वालामुखी चौटाला
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तेजल
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इतना कहते ही अयाना एक नीली रोशनी में बदल कर आयने में चली गई।
फिर तरुण वहां से भागा मगर, समय सेतु की वजह से वह उसी समय में पहुंच गया जहां से वह आया था।
वहा लेडी गँग ने अपनी चाल शुरू कर दी थी, उन्होंने जो सिरा उनकी तरफ था वह पिछे वाले एक पेड़ को बांध दिया था। जो लड़कियों के बिच में होने के कारण लड़कों को नहीं दिखाई दे रहा था। सब थकने लगे थे लड़कियाँ सिर्फ खडी खड़ी लड़कों के थकने का इंतजार कर रहीं थी, जिसके कारण अब लड़के थकने लगे थे अब लड़कियों ने जोर लगाया और थकान के कारण लड़के हारने लगे की तभी तरुण आ गया और उसने एक हाथ से रस्सी के साथ लड़कियाँ तो खींच ली पर, पेड़ भी जड़ों से उखाड़ दिया जिस वजह से लड़कियाँ हार गई और उनके जितने का रहस्य भी उजागर हो गया। अब सब लड़कियों की पंचायत हो चुकी थी। अब सब लड़के तरुण को सुझाव देने लगे थें की किसे चुने, मगर त ने
L शानदार भाई
 
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