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Fantasy लुइ के पन्ने!

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चलिए एक और कहानी आपके सामने पेश करने जा रही हूँ। आशा है की अभी मेरी रनिंग कहानी "परम-सुंदरी" जैसा ही अवकार और सत्कार इस कहानी को भी मिले। https://xforum.live/threads/परम-सुंदरी.189875/
दोस्तों, यह कहानी के मूल लेखक rajuwalvan है और इस कहानी का पूरा श्रेय उन्ही को जाता है। वैसे यह कहानी इग्लिश में लिखी गई थी, और मुझे बहोत ही अच्छी लगी तो सोचा की इस कहानी को हिंदी भाषा में भी रूपांतरित करके उसे बड़े फलक पे ले जाया जाये। बस इस प्रयास के लिए मैंने लेखक का कोंटेक्ट कर के उनसे जरुरी परमिशन लिया। जिन्हों ने मुझे मूल कहानी में अपने विचारो को एड और एडिट करने की परमिशन के साथ आगे बढ़ने का समर्थन दे दिया। और उसके लिए मैं उनकी बहोत बहोत आभारी हु।

इस कहानी का मूल लेखक rajuwalvan है और कहानी का श्रेय उनको जाता है।

भाषांतर का श्रेय मैं यानी की फनलवर और मैत्रीपटेल को जाता है। सो कुछ भी ग्रामर की भूल चुक है, वह सब की जिम्मेदारी अनुवादिकाओ पर रहेगी। उसमे मूल लेखक का कोई रोल नहीं है।



यह कहानी इंग्लिश में लिखी गई थी और अलग-अलग भाग में लिखी गई थी जिनके शीर्षक भी अलग थे। मैंने यह कह्हानी को एक सीरिज के रूप में लिखने की कोशिश की है । आशा है की आपको पसंद आएगी। जैसा की आप जानते है मैं हर कहानी को कुछ जगह,पात्रो,प्रसंगों और संवादों में बदलाव कर के एक नई कहानी के स्वरुप में पेश करती हूँ। ठीक वैसा ही इस कहानी में भी किया गया है। यह कहानी में भी शीर्षक का बदलाव किया है। कुछ प्रसंग एडिट और एड्ड किये गए है जो सीरिज बनाने के लिए जरुरी थे।

आशा है की आपको यह कहानी पसंद आएगी।

मेरी एक और कहानी अभी चल रही है इसलिए मुझे खेद के साथ कहना पड रहा है की इसके अपडेट्स थोड़े समयांतर पे आयेंगे। और इसके लिए आप सभी रीडर्स से माफ़ी मांगती हूँ। पर कोशिश करुँगी की जल्द से जल्द यह सीरिज आपके सामने पेश करती रहू और ख़तम की जाए।



यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है और इस से वास्तविकता से कोई नाता नहीं है। अगर ऐसा कुछ भी होता या हुआ है तो एक संयोग या अक्समात ही है।



यह कहानी ब्रिस्टफीडिंग के फेंटसी पर आधारित कहानी है, और जिन को इस विषय से परहेज है वे मेहरबानी कर के यहाँ से आगे ना पढ़े।



Well, I am going to present another story to you. I hope that this story also gets the same recognition and respect as my current running story "Param-Sundari". https://xforum.live/threads/परम-सुंदरी.189875/

Friends, the original author of this story is
Rajuwalvan and the entire credit of this story goes to him. This story was written in English, and I liked it very much, so I thought of converting this story into Hindi language and taking it to a larger platform. Just for this effort, I contacted the author and took the necessary permission from him. He gave me the support to move forward with the permission to add and edit his ideas in the original story. And for that I am very grateful to him.

The original author of this story is Rajuwalvan and the credit of the story goes to him.

The credit of the translation goes to me, i.e. Funlover and Maitripatel. So if there is any grammatical mistake, the responsibility of all that will be on the translators. The original author has no role in it.

This story was written in English and was written in different parts which had different titles. I have tried to write this story in the form of a series. Hope you will like it. As you know, I present every story in the form of a new story by changing some places, characters, events and dialogues. The same has been done in this story as well. The title of this story has also been changed. Some events have been edited and added which were necessary to make a series.

Hope you will like this story.

Another story of mine is going on right now, so I have to say with regret that its updates will come at some interval. And for this I apologize to all the readers. But I will try to present this series to you as soon as possible and finish it.

This story is completely fictional and has no connection with reality. If anything like this happens or has happened then it is a coincidence or accidental.

This story is based on the fantasy of breast feeding, and those who avoid this subject please do not read further from here.



लुइ के पन्ने!
मिलते है, खोलेंगे "लुइ के पन्ने!" नेक्स्ट अपडेट में जहा से कहानी शुरू करुँगी|
 

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चलिए आगे बढ़ते है दोस्तो|

लुइ के पन्ने खोलते है, और देखते है उसमे से क्या क्या निकलता है ...............
 
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भाग 1

टिंग......टोंग.... और विमान के कोकपिट से कप्तान की आवाज़ आई “लेडीज़ और जेंटलमेन, हम अब कुछ न=ही मिनटों में अपने गंतव्य की ओर लेंडिंग करने जा रहे है। आप सभी से रिक्वेस्ट है की आप अपने सीटबेल्ट को बांध दीजिये....” उस विमान में 165 सभी उतारू ने अपने सीटबेल्ट की झंझट में पड गए। उसमे से एक व्यक्ति था जिस का नाम लुई डेसचैम्प्स था और उसने भी सभी उतारू की तरह अपना सीटबेल्ट बाँध कर अपनी आँखे बंद करके अपने यहाँ, भारत आने के उद्देश्य को रिपीट करते हुए सोचने लगा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

लुइ वैसे दुनिया के अजीब धर्मग्रन्थ और स्मारकों और उनके प्रति मान्यता और अंधविश्वास के प्रति अपनी खोज और विचारों को प्रस्थापित करके बुक्स लिखके प्रकाशित करने वाले एक संस्था से था।

“लुइ, क्या तुम को एक अत्यंत अजीब चीज़ के बारे में जानना या उस पर खोज करना चाहोगे? तो यह किताब के कुछ पन्ने पढो।“ कार्ल्स का एक कर्कश आवाज से वह अपनी किताब से मुंह को ऊपर उठाया। उसने किताब को देखा और एक पन्ना जो की कार्ल्स ने अपना अंगूठा बिच में दबाया हुआ था, वह पन्ना खोला और पढने लगा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

कुछ मिनट्स पढने के बाद लुइ ने तुरंत कार्ल्स की ओर देखा और उसी समय उसने कहा “मैं वहा जाना चाहुगा दोस्त। प्लीज़ मेरे वह जाने का बंदोबस्त करो, निर्जन है तो क्या! जैसा भी है मैं वहा जाना चाहूँगा और वही रुक के अपना संशोधन करूँगा। एक अच्छा टोपिक है यह।“

लुई डेसचैम्प्स भारत स्मारकों या धर्मग्रंथों के लिए नहीं, बल्कि फुसफुसाहटों के लिए आए थे - बुज़ुर्गों के बीच सुनाई देने वाली नाज़ुक कहानियाँ, ऐसी कहानियाँ जो विद्वानों की नज़र से बच गई थीं। ऐसी ही एक फुसफुसाहट ने उन्हें यहाँ तक पहुँचाया था: एक सुदूर गाँव जहाँ पोषण का प्रतीक, स्तन, माँ-बच्चे के बंधन से परे फैला हुआ था।

उसका प्लेन सुरक्षित लेंड हुआ और उसने अपना सामान लेके एअरपोर्ट के बाहर आके अपनी कार को पकड़ा और चल दिया अपने फाइनल डेस्टिनेशन (अंतिम पड़ाव या गंतव्य) की ओर, और जो कुछ भी उसने वह बुक से पढ़ा था, बस उसका मन और दिमांग उस जगह की कल्पनाए करता रहा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

स्तनापुर गाँव गर्मियों की शुरुआत की धुंध में शांत पड़ा था, उसकी लाल मिट्टी नंगे पैरों के नीचे गर्म थी और इमली के पेड़ कभी-कभार आँधी के झोंकों से झूम रहे थे। संकरी पगडंडी से धूल उड़ रही थी और एक बैलगाड़ी आगे बढ़ रही थी, जिसमें एक अकेला यात्री सवार था - एक युवा यूरोपीय छात्र जिसकी उँगलियाँ स्याही से सनी थीं और मन सवालों से भरा हुआ था।

स्तनापुर के किनारे, एक विशाल बरगद के पेड़ के पास, एक कुरकुरी सफेद धोती पहने एक युवक उनका इंतज़ार कर रहा था। दुबला-पतला, चमकदार आँखों वाला और शांत भाव वाला, उसमें किसी गहरे जड़ जमाए हुए व्यक्ति जैसा आत्मविश्वास था।

"आप ज़रूर लुई होंगे," उसने धीमी, सतर्क अंग्रेज़ी में कहा। "मैं रमेश हूँ।"

उसके बगल में उसकी पत्नी जानकी खड़ी थी—उम्र बाईस साल से ज़्यादा नहीं, चमकदार बादामी आँखों और धूप से झुलसी त्वचा के साथ, उसकी गेंदे के सुनहरे रंग की साड़ी नम हवा में उसके दुबले-पतले शरीर से चिपकी हुई थी। उसकी मुस्कान तुरंत और दीप्तिमान थी।

"स्वागत है, स्वागत है! आप सफ़र से थक गए होंगे," उसने अपनी गर्मजोशी और मधुर अंग्रेज़ी में कहा। "आप बिल्कुल रमेश के बताए अनुसार दिख रहे हैं! आइए—आपको भूख लगी होगी।" जानकी ने उसका स्वागत करते हुए कहा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

लुई ने उसकी धाराप्रवाह अंग्रेज़ी देखकर चौंककर पलकें झपकाईं। रमेश मुस्कुराया। "वह आपके आने के लिए अंग्रेज़ी का अभ्यास कर रही है।"

जानकी हँसी, उसकी आवाज़ मंदिर की घंटियों जैसी थी। "मैं चाहती थी कि आपको घर जैसा महसूस हो। स्तनापुर छोटा है, लेकिन हमारे दिल बड़े हैं। आपको कई सवाल पूछने होंगे, है ना? हम आपको सब कुछ दिखाएँगे।" उसने उसे अपनी छाती दबाकर अपनी क्लीवेज दिखाई।


बने रहिये मित्रो।


इस एपिसोड के बारे में अपनी राय जरुर दीजिये...........।
 

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भाग 1

टिंग......टोंग.... और विमान के कोकपिट से कप्तान की आवाज़ आई “लेडीज़ और जेंटलमेन, हम अब कुछ न=ही मिनटों में अपने गंतव्य की ओर लेंडिंग करने जा रहे है। आप सभी से रिक्वेस्ट है की आप अपने सीटबेल्ट को बांध दीजिये....” उस विमान में 165 सभी उतारू ने अपने सीटबेल्ट की झंझट में पड गए। उसमे से एक व्यक्ति था जिस का नाम लुई डेसचैम्प्स था और उसने भी सभी उतारू की तरह अपना सीटबेल्ट बाँध कर अपनी आँखे बंद करके अपने यहाँ, भारत आने के उद्देश्य को रिपीट करते हुए सोचने लगा। यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

लुइ वैसे दुनिया के अजीब धर्मग्रन्थ और स्मारकों और उनके प्रति मान्यता और अंधविश्वास के प्रति अपनी खोज और विचारों को प्रस्थापित करके बुक्स लिखके प्रकाशित करने वाले एक संस्था से था।

“लुइ, क्या तुम को एक अत्यंत अजीब चीज़ के बारे में जानना या उस पर खोज करना चाहोगे? तो यह किताब के कुछ पन्ने पढो।“ कार्ल्स का एक कर्कश आवाज से वह अपनी किताब से मुंह को ऊपर उठाया। उसने किताब को देखा और एक पन्ना जो की कार्ल्स ने अपना अंगूठा बिच में दबाया हुआ था, वह पन्ना खोला और पढने लगा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

कुछ मिनट्स पढने के बाद लुइ ने तुरंत कार्ल्स की ओर देखा और उसी समय उसने कहा “मैं वहा जाना चाहुगा दोस्त। प्लीज़ मेरे वह जाने का बंदोबस्त करो, निर्जन है तो क्या! जैसा भी है मैं वहा जाना चाहूँगा और वही रुक के अपना संशोधन करूँगा। एक अच्छा टोपिक है यह।“

लुई डेसचैम्प्स भारत स्मारकों या धर्मग्रंथों के लिए नहीं, बल्कि फुसफुसाहटों के लिए आए थे - बुज़ुर्गों के बीच सुनाई देने वाली नाज़ुक कहानियाँ, ऐसी कहानियाँ जो विद्वानों की नज़र से बच गई थीं। ऐसी ही एक फुसफुसाहट ने उन्हें यहाँ तक पहुँचाया था: एक सुदूर गाँव जहाँ पोषण का प्रतीक, स्तन, माँ-बच्चे के बंधन से परे फैला हुआ था।

उसका प्लेन सुरक्षित लेंड हुआ और उसने अपना सामान लेके एअरपोर्ट के बाहर आके अपनी कार को पकड़ा और चल दिया अपने फाइनल डेस्टिनेशन (अंतिम पड़ाव या गंतव्य) की ओर, और जो कुछ भी उसने वह बुक से पढ़ा था, बस उसका मन और दिमांग उस जगह की कल्पनाए करता रहा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

स्तनापुर गाँव गर्मियों की शुरुआत की धुंध में शांत पड़ा था, उसकी लाल मिट्टी नंगे पैरों के नीचे गर्म थी और इमली के पेड़ कभी-कभार आँधी के झोंकों से झूम रहे थे। संकरी पगडंडी से धूल उड़ रही थी और एक बैलगाड़ी आगे बढ़ रही थी, जिसमें एक अकेला यात्री सवार था - एक युवा यूरोपीय छात्र जिसकी उँगलियाँ स्याही से सनी थीं और मन सवालों से भरा हुआ था।

स्तनापुर के किनारे, एक विशाल बरगद के पेड़ के पास, एक कुरकुरी सफेद धोती पहने एक युवक उनका इंतज़ार कर रहा था। दुबला-पतला, चमकदार आँखों वाला और शांत भाव वाला, उसमें किसी गहरे जड़ जमाए हुए व्यक्ति जैसा आत्मविश्वास था।

"आप ज़रूर लुई होंगे," उसने धीमी, सतर्क अंग्रेज़ी में कहा। "मैं रमेश हूँ।"

उसके बगल में उसकी पत्नी जानकी खड़ी थी—उम्र बाईस साल से ज़्यादा नहीं, चमकदार बादामी आँखों और धूप से झुलसी त्वचा के साथ, उसकी गेंदे के सुनहरे रंग की साड़ी नम हवा में उसके दुबले-पतले शरीर से चिपकी हुई थी। उसकी मुस्कान तुरंत और दीप्तिमान थी।

"स्वागत है, स्वागत है! आप सफ़र से थक गए होंगे," उसने अपनी गर्मजोशी और मधुर अंग्रेज़ी में कहा। "आप बिल्कुल रमेश के बताए अनुसार दिख रहे हैं! आइए—आपको भूख लगी होगी।" जानकी ने उसका स्वागत करते हुए कहा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

लुई ने उसकी धाराप्रवाह अंग्रेज़ी देखकर चौंककर पलकें झपकाईं। रमेश मुस्कुराया। "वह आपके आने के लिए अंग्रेज़ी का अभ्यास कर रही है।"

जानकी हँसी, उसकी आवाज़ मंदिर की घंटियों जैसी थी। "मैं चाहती थी कि आपको घर जैसा महसूस हो। स्तनापुर छोटा है, लेकिन हमारे दिल बड़े हैं। आपको कई सवाल पूछने होंगे, है ना? हम आपको सब कुछ दिखाएँगे।" उसने उसे अपनी छाती दबाकर अपनी क्लीवेज दिखाई।


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लुइ वैसे दुनिया के अजीब धर्मग्रन्थ और स्मारकों और उनके प्रति मान्यता और अंधविश्वास के प्रति अपनी खोज और विचारों को प्रस्थापित करके बुक्स लिखके प्रकाशित करने वाले एक संस्था से था।

“लुइ, क्या तुम को एक अत्यंत अजीब चीज़ के बारे में जानना या उस पर खोज करना चाहोगे? तो यह किताब के कुछ पन्ने पढो।“ कार्ल्स का एक कर्कश आवाज से वह अपनी किताब से मुंह को ऊपर उठाया। उसने किताब को देखा और एक पन्ना जो की कार्ल्स ने अपना अंगूठा बिच में दबाया हुआ था, वह पन्ना खोला और पढने लगा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

कुछ मिनट्स पढने के बाद लुइ ने तुरंत कार्ल्स की ओर देखा और उसी समय उसने कहा “मैं वहा जाना चाहुगा दोस्त। प्लीज़ मेरे वह जाने का बंदोबस्त करो, निर्जन है तो क्या! जैसा भी है मैं वहा जाना चाहूँगा और वही रुक के अपना संशोधन करूँगा। एक अच्छा टोपिक है यह।“

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उसका प्लेन सुरक्षित लेंड हुआ और उसने अपना सामान लेके एअरपोर्ट के बाहर आके अपनी कार को पकड़ा और चल दिया अपने फाइनल डेस्टिनेशन (अंतिम पड़ाव या गंतव्य) की ओर, और जो कुछ भी उसने वह बुक से पढ़ा था, बस उसका मन और दिमांग उस जगह की कल्पनाए करता रहा।
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स्तनापुर गाँव गर्मियों की शुरुआत की धुंध में शांत पड़ा था, उसकी लाल मिट्टी नंगे पैरों के नीचे गर्म थी और इमली के पेड़ कभी-कभार आँधी के झोंकों से झूम रहे थे। संकरी पगडंडी से धूल उड़ रही थी और एक बैलगाड़ी आगे बढ़ रही थी, जिसमें एक अकेला यात्री सवार था - एक युवा यूरोपीय छात्र जिसकी उँगलियाँ स्याही से सनी थीं और मन सवालों से भरा हुआ था।

स्तनापुर के किनारे, एक विशाल बरगद के पेड़ के पास, एक कुरकुरी सफेद धोती पहने एक युवक उनका इंतज़ार कर रहा था। दुबला-पतला, चमकदार आँखों वाला और शांत भाव वाला, उसमें किसी गहरे जड़ जमाए हुए व्यक्ति जैसा आत्मविश्वास था।

"आप ज़रूर लुई होंगे," उसने धीमी, सतर्क अंग्रेज़ी में कहा। "मैं रमेश हूँ।"

उसके बगल में उसकी पत्नी जानकी खड़ी थी—उम्र बाईस साल से ज़्यादा नहीं, चमकदार बादामी आँखों और धूप से झुलसी त्वचा के साथ, उसकी गेंदे के सुनहरे रंग की साड़ी नम हवा में उसके दुबले-पतले शरीर से चिपकी हुई थी। उसकी मुस्कान तुरंत और दीप्तिमान थी।

"स्वागत है, स्वागत है! आप सफ़र से थक गए होंगे," उसने अपनी गर्मजोशी और मधुर अंग्रेज़ी में कहा। "आप बिल्कुल रमेश के बताए अनुसार दिख रहे हैं! आइए—आपको भूख लगी होगी।" जानकी ने उसका स्वागत करते हुए कहा।
यह मैत्री और फनलवर की अनुवादित रचना है

लुई ने उसकी धाराप्रवाह अंग्रेज़ी देखकर चौंककर पलकें झपकाईं। रमेश मुस्कुराया। "वह आपके आने के लिए अंग्रेज़ी का अभ्यास कर रही है।"

जानकी हँसी, उसकी आवाज़ मंदिर की घंटियों जैसी थी। "मैं चाहती थी कि आपको घर जैसा महसूस हो। स्तनापुर छोटा है, लेकिन हमारे दिल बड़े हैं। आपको कई सवाल पूछने होंगे, है ना? हम आपको सब कुछ दिखाएँगे।" उसने उसे अपनी छाती दबाकर अपनी क्लीवेज दिखाई।


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इस एपिसोड के बारे में अपनी राय जरुर दीजिये...........।
कहानी का प्रथम अध्याय बडा ही शानदार और जानदार हैं
स्तनापुर नाम से ही लगता हैं कहानी रोचक होगी
खैर देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 
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कहानी का प्रथम अध्याय बडा ही शानदार और जानदार हैं
स्तनापुर नाम से ही लगता हैं कहानी रोचक होगी
खैर देखते हैं आगे
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
Shukriya dost

Vaise yah kahani me "Param-Sundari" jaisa ashlil nahi hoga. Par dekhte hai yah ek alag swad hoga, kitna pasand ata hai.
Aapke sath aur sahkar hoga to yah kahani bhi majedar banegi.

Ji bilkul sahi napa aapne stanapur janbuj kar naam vhuna hai maine taki kuchh alag dikhe aur vastavikta se bhi dur rahe.

Bane rahiye
 
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