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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 
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komaalrani

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“हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा लें तो…”




पीला गुलाब

उन दिनों टीवी पर अन्ताक्षरी का बड़ा जोर था। फिल्मी गानों का। वो लोग करन के घर पर ही थे। करन, गुड्डी, रीत, करन की एक रिश्ते की भाभी और एक कजिन। और करन की उस कजन ने अन्ताक्षरी की बात छेड़ दी। पर करन ने बहाना बनाया, पांच लोग हैं टीम कैसे बनेगी? तो रीत ने चट जवाब दिया- वाह।आप डरते हैं तो बात अलग है। मैं और भाभी एक साथ हो जाते हैं और आप तीनों एक ओर। उस दिन रीत कुछ और शोख लग भी रही थी। टाप के साथ पहली बार जीन्स पहनकर आई थी।

करन की कजिन करन से लिपट चिपट कर बोली- “हमारे भैया डरने वाले नहीं हैं…”


करन की भाभी रीत की ओर सरक आई और बोली- “किस अक्षर से करन ने पूछा…” बात वो भाभी से कर रहा था। और देख रीत को रहा था।


कुछ जोड़ जाड के भाभी ने बोला- “ह से…” और करन तुरंत चालू।

“हमने देखी है उन आँखों की महकती खुशबू। हाथ से से छूकर इसे रिश्तों का इल्जाम ना दो।


सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो। प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो…”



गा करन रहा था। नाच रीत की आँखें रही थी। बड़ी-बड़ी कारी कजरारी आँखें। करन के गाना खतम होते ही रीत शुरू हो गई द से,

“दीवाना मस्ताना हुआ दिल, जाने कहाँ होकर बाहर आई

प म ग म रे ग प म ग म, आआ आ। सा नी ध प म ग रे सा नी नी नी।
दीवाना…”


रीत जैसे सुध उध खो गई थी। वो तो भाभी ने चिकोटी काटी और कान में छेड़ा, “हे अब ऐसा लड़का है तो दीवाना तो हो ही जाएगा दिल…”


उधर करन भी उसे देखकर मुश्कुरा रहा था। फायदा करन की कजिन ने उठाया और इ से चालू हो गई

इन मीना डीका।

करन और रीत तो बस जैसे सुधबुध खो गए थे। और रीत की ओर से भी जवाब भाभी ने दिया जो ज पर पड़ा। करन तो बस रीत को देखे जा रहा था। रीत और भाभी ने छेड़ना शुरू किया।

ज एक ज दो ज तीन। तब जागा करन और रीत की बड़ी-बड़ी रतनारी आँखों को देखते हुए गाने लगा सुर में। छेड़ते हुए-



जरा नजरों से कह दो जी निशाना चूक ना जाए जरा नजरों से कह दो,



रीत थोड़ा शर्माई लेकिन, भाभी ने उकसाया। य से पड़ा है जवाब दो ना।

और रीत ने शुरू किया-

ये दिल दीवाना है दिल तो दीवाना है, दीवाना दिल है ये


दिलकश बहारों में, छुप के चनारो में



गा रीत रही थी लेकिन हल्के-हल्के करन भी साथ दे रहा था और जैसे उसने सोचकर रखा हो। जैसे रीत रुकी वो चालू हो गया।

“हम आपकी आँखों में इस दिल को बसा लें तो…”


और बेसाख्ता रीत के मुँह से अगली लाइन निकल गई।

“हम मूँद के पलकों को इस दिल को सजा दें तो…”

और अब करन का नंबर था।

“इन जुल्फों में हम गुथेगे ये फूल मुँहब्बत के…”

वो बड़ी शरारत से रीत के शोख चेहरे को देख रहा था। और रीत ने जरा सी जुम्बिश दी अपने चेहरे को और अदा से गाया

“जुल्फों को झटक के हम ये फूल गिरा दें तो…”

और फिर रीत और करन साथ-साथ ये दुयेट गाने लगे। करन की भाभी ने छेड़ा। करन को- क्या तुम्हें सिर्फ आँखों पे गाने आते हैं। तो बिना दुबारा बोले वो चालू हो गया

“फूलों के रंग से। दिल की कलम से। गुनगुना रहे हैं भंवरे खिल रही है कली कली…”

करन की रिश्ते की भाभी और उसकी कजिन उठकर बाहर चले गए थे।
रीत भी उठने लगी तो करन ने छेड़ा।

“हुजूर इस कदर न इतरा के चलिए…”

गुड्डी बोल रही थी की बस उस समय लग रहा जो ढेर सारी बातें वो एक दूसरे से कहना चाहते थे। और नहीं कह पा रहे थे। सारे सोते सपने जग गए हों। जैसे किसी ने हजारों साल से सोये तालाब में कंकड़ फेंका हो और हजारों कमल खिल उठे हों, लहरा उठें एक साथ।

रीत एक पल लिए दरवाजे पे ठहरी, अपनी लम्बी गर्दन को जुम्बिश दी, और अदा से एक हाथ से चोटी पकड़कर हिलाती हुई, गुनगुना उठी-



बड़े अरमानो से रखा है बलम तेरी कसम,

हो बलम तेरी कसम

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो

पहला कदम।

पीछे से करन ने आकर धीमे से रीत का हाथ पकड़ लिया और साथ में गाने लगा-



जुदा ना कर सकेंगे हमें जमाने के सितम,

हो जमाने के सितम।

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो

पहला कदम।

वो दोनों लान में थे और पीछे-पीछे गुड्डी। करन ने अपने लान में कुछ पीले गुलाब के पौधे खुद अपने हाथ से लगाये थे। जिसे वो किसी को छूने भी नहीं देता था। उसने एक टटका खिला पीला गुलाब रीत की चोटी में टांक दिया।
लेकिन करन के हाथ में, एक काँटा चुभ गया और खून की एक बूँद छलछला उठी। बिना देर किये रीत ने वो उंगली अपने मुँह में लेकर खून चूस लिया। और अपना रुमाल निकालकर बाँध दिया। करन ने रुमाल देखा, उसके कोने में ‘के’ काढ़ा हुआ था।

गुड्डी बोली, रीत घर आई लेकिन अपना बहुत कुछ छोड़ आई। घर पहुँचकर गुड्डी ने फिर रीत को छेड़ा। क्यों रीत दीदी, हो गया।

रीत की आँखें मुश्कुरायीं, लजाई। फिर उसने गुड्डी के पीठ पे जोर का धौल मारा और बोली- जब तेरा होगा ना तो बताऊँगी।

गुड्डी भी अपनी शरारती आँखें नचा कर बोली- “वाह चोरी किसी ने की आपके दिल की और मार मुझे पड़ रही है। रीत ने प्यार से गुड्डी को जोर से भींच लिया और बोली- “पिटेगी तो तू कसकर। अगर किसी को कुछ भी।

“क्या दीदी? मैंने तो ना कुछ देखा ना सुना…” और दौड़ती हुई अपने घर चली गई।

रीत बार-बार चोटी झुलाती हुई, उसमें लगे पीले गुलाब के देखती। उसकी एक पंखुड़ी में खून की एक बूँद लग गई थी। रीत ने उसे वहीं चूम लिया। और फिर बाहर खिले पीले चाँद को देखती रही और चाँद को देखकर फिर उसने चोटी में लगे पीले गुलाब को देखा। उसे लगा जैसे करन ने आसमान से पीला चाँद तोड़कर उसकी चोटी में लगा दिया हो। वो वैसे ही शीशे के सामने गई और चोटी नचा कर उसने अपने उभारों पर रख दिया। और अपने को निहारती रही।

अब उसे लगा वो में सच में बड़ी हो गई। फिर सम्हाल कर उसने गुलाब निकालकर वास में लगा दिया। अगले दिन रीत चोटी में वो गुलाब लगाकर स्कूल गई। बहुत छेड़ा सहेलियों ने उसे। और उसका नाम पीला गुलाब पड़ गया।

लौटते हुए गुड्डी ने पूछा- बात कुछ आगे बढ़ी। तो रीत ने जोर का धौल जमा दिया और बोली- “सबसे पहले तुझे मालूम पड़ेगा मेरी नानी। ये वो जमाना था जब अभी फेसबुक और चैटिंग बनारस ऐसे शहरों में नहीं पहुँची थी। लेकिन दिल थे और उनमें बातचीत भी होती थी।



तो जैसा गुलजार साहेब ने कहा है-

जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल

और महके हुए रुक्के

किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे।

रीत को अपनी जिंदगी का पहला प्रेमपत्र। तीन दिन बाद मिला।


 

komaalrani

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सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं।




रीत को अपनी जिंदगी का पहला प्रेमपत्र तीन दिन बाद मिला।

लाने वाली वही गुड्डी। गुड्डी ट्यूशन से लौट रही थी की करन अपने घर के बाहर मिला और गुड्डी को मैथ्स की किताब देकर बोला, ये लेजाकर अपनी दी को देना। लेकिन जब सिर्फ वही हों।

गुड्डी को रीत से कम खुशी नहीं हो रही थी वो धड़धड़ाते हुए ऊपर रीत के कमरे में पहुँच गई। रीत किसी टेस्ट की तैयारी कर रही थी। और आज गुड्डी ने उसे खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और बोली- “मेरी ट्रीट। रीत ने उसे और जोर से भींच लिया और बोली- “कुछ है क्या?

गुड्डी धम्म से कुर्सी पे बैठ गई और बोली- “नहीं क्यों कुछ आना था क्या। फिर अपने बैग से उसने जो किताब करन ने दी थी वो निकाली।

रीत ने छीनने की कोशिश की। तो गुड्डी ने हाथ ऊपर कर लिए। और बोली पहले ट्रीट।

“ओके मेरी नानी दूंगी ना पहले इधर ला…” और किताब खींच ली फिर गुड्डी से बोली- “अब तू चल…”

“क्यों? वाह। अरे ना चाय ना पानी। ना कुछ बात-चीत। और वो पालथी मारकर बैठ गई।

“प्लीज चलो ना, चलो ना अभी…” रीत बोली।

“अच्छा पहले बस एक बार दो। बस जरा सा…” गुड्डी बोली।

दिखा दूंगी। कल स्कूल जाते समय आना तो पूरा पढ़ा भी दूंगी। अब तो जा। और गुड्डी थम्स अप का साइन देते चली गई। रीत बहुत देर तक उस किताब को ताकती रही। मैथ्स की किताब कभी उसे इतनी अच्छी नहीं लगी। फिर उसने उसे होंठों से लगाकर सीने में भींच लिया, जैसे किताब ना हो करन हो।


सोचती रही हो खोले ना खोले। एक-दो सहेलियों के लव लेटर देखे थे। ये लड़के कैसे क्या-क्या लिखते है सोचकर शर्म आती है। करन ने कहीं ऐसा कुछ तो नहीं लिखा होगा। उसने पन्ने पलटे कोई लिफाफा नहीं था। तो क्या करन ने सिर्फ किताब भेजी थी। उसका दिल जोर-जोर से धक् धक् कर रहा था। उसने फिर एक-एक पन्ना पलटा। कम्पाउंड इंटरेस्ट वाले चैप्टर के बाद एक पेज आलमोस्ट चिपका। उसपे कुछ शेर प्रिंट थे। जल्दी से उसने वो पन्ना निकाला, इधर-उधर देखा, आँखों से लगाया, चूमा। लेकिन वो प्रिंटेड पेज। और जब उसने। पीछे देखा तो करन की राइटिंग में चंद अल्फाज।

“शेर फराज साहब के जरूर है लेकिन बातें मेरी है। तुम्हारे सामने आकर मेरी जुबान बंद हो जाती है इसलिए इन शेरों का सहारा ले रहा हूँ…”

रीत बस पागल नहीं हुई। कित्ती बार उसने चूमा होगा उन लफ्जों को जो करन ने लिखे थे और फिर रीत ने पन्ने को पलटा। और फिर पहला शेर पढ़ा, और मुश्कुराई दुष्ट-



सुना है लोग उसे आँख भरकर देखते हैं

सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं


और उसके बाद फिर दूसरा, तीसरा


सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं,

ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं,


सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है,

सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं,


सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं,

सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं।




एक-एक लफ्ज। कभी उसे लगता उस गुदगुदी कर रहे हैं, कभी लगता चिकोटियां काट रहे हैं। और जब उसने खिड़की से बाहर झांका तो उसे लगा सचमुच चाँद उसे निहार रहा है, एकटक। और वो अचानक चांदनी में नहा गई। और एक बार उसने अपने होंठों को छुआ तो लगा। सच में वो गुलाब की पंखुड़ियों को छू रही है। और फिर उसने आगे पढ़ा।



सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं,

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं,

सुना है रात से बढ़कर हैं काकुलें उसकी,

सुना है शाम को साये गुजर के देखते हैं।



उसकी पूरी देह दहक उठी, साँसें गरम हो रही थी। उसकी छत से करन का कमरा दिखता था। रीत ने झाँका। कमरे में अँधेरा था लेकिन उसे लगा पूरी कायनात करन हो गई है। सारी रात ना वो सो पायी ना जग पायी। अगले दिन पूरे दिन, उसे तितलियां सताती रही। उन शेरो ने उसके पूरे जिस्म में जेहन में सपने बो दिए थे।

एक-दो बार स्कूल में करन दिखा भी तो बस निगाहों से दुआ सलाम हुई लेकिन उसे लगा की पूरा जमाना उन दोनों को घूर रहा है। कोई उसकी सहेली उससे पेन्सिल भी मांगती तो लगता की करन के बारे में पूछ ना ले। अब उसे खत का जवाब भी देना था, समझ में उसके नहीं आ रहा था।



उसे कोई शायरी का इल्म भी नहीं था। करन ने तो बेईमानी की फराज साहब का सहारा लेकर। फिर उसने करन का ही सहारा लिया।

जो गुलाब उस दिन करन ने उसके बालों में लगाया था उस पीले गुलाब की दो सूखी पंखुड़ियां। और फिर मुश्कुराकर उसने एक कागज के टुकड़े को अपने लबों से लगाया और नीचे अपना नाम लिख कर किताब में रख दिया।

सुबह जब स्कूल में करन दिखा तो तुरंत उसने उसे इशारा किया और बोली- “वो आपकी किताब?”

और उसके कुछ बोलने के पहले उसने झट से बैग से किताब निकालकर उसे पकड़ा दी और वापस हो ली। उसकी उंगली करन के उंगली से छू गई थी और रीत के पूरे बदन में दावानल दहक उठे थे। वह सच में शोला बदन हो उठी थी।

उसके खत का जवाब उसी दिन मिल गया। वो दोपहर में कैंटीन में अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी। और एक मेज पर करन अकेला। तभी करन का कोई दोस्त आकर टेबल पे बैठ गया और करन ने अपने दोस्त से बिना बात कहा।

“आज शाम को छुट्टी के बाद सोचता हूँ लाइब्रेरी हो आऊं…”


जिससे ये बात की गई थी, वो छूट्टी के बाद भागती दौड़ती, कूदती फांदती, लाइब्रेरी पहुँची। करन वहां पहले से बैठा था। रीत भी वहीं बैठ गई। थोड़ी देर में एक किताब गिरने की आवाज हुई। और करन बोला शायद आपकी किताब गिर गई है।

किताब तो वो कोई लाई ही नहीं थी। फिर भी उसने झुक के किताब उठायी, कोई पोएट्री की थी, अपने बैग में रखी। और जब उसने उस ओर नजर घुमाई, जहाँ करन था वहाँ… अब सन्नाटा था। सिर्फ मेज पर पीले गुलाब की एक अधखिली कली।

उसने गुलाब अपने बाल में लगाया और तीर की तरह सीधे घर। मम्मी नीचे से आवाजें देती रही लेकिन वो सीधे। अपने कमरे में और सब कुछ छोड़कर उसने वो किताब निकाली उसे अपने सीने से लगाया। और धड़कते दिल से खोला,

अबकी फराज साहब के शेर के साथ कुछ सतरें ज्यादा थी। और सारी रात वो उन दहकते शेरों के बिछौने पे सुलगती रही। अध जागी आँखों से ख़्वाब देखती रही, करवटें बदलती रही। कितनी बार उन शेरों को नहीं पढ़ा होगा उसने। अब तो उसे याद भी हो गए थे। लेकिन फिर वो तकिये के नीचे से वो पुर्जा निकालती, हौले से खोलती, पढ़ती और फिर पेट के बल लेट कर तकिये को भींच लेती।




तू पास भी हो तो दिल बेकरार अपना है

के हमको तेरा नहीं इंतजार अपना है

जमाने भरकर दुखों को लगा लिया दिल से

इस आसरे पे के इक गमगुसार अपना है

‘फराज’ राहत-ए-जाँ भी वही है क्या कीजे

वो जिस के हाथ से सीनाफिगार अपना है।


लेकिन वो छुई मुई वाले दिन जल्दी ही गुजर गए। एक दिन किसी लड़की ने कहा की आज शाम को इंटर हाउस डिबेट है चलना है। दूसरी बोली जीतेगा तो अपने हाउस का करन ही। और उसका नाम सुनते ही रीत को सौ बिछुओं ने एक साथ डंक मार लिया।

“कब कित्ते बजे…” उचक कर उसने पूछा। और सब एक साथ हँस पडीं।

“तुझे डिबेट में कब से दिलचस्पी होने लगी। तू तो कहती थी बहुत बोरिंग होता है…”

रीत कुछ नहीं बोली, जान कर भी सब उसके पीछे। लेकिन शाम को वो डिबेट में थी। बाकी समय तो वो उंघती रही लेकिन जब करन का नम्बर आया उसके कानों ने एक-एक शब्द पी लिया। और फिर क्या तालियां बजाई। और जब जीत का ऐलान हुआ। उस समय तो उसने आसमान सिर पर उठा लिया और फिर तो सब लड़कियां रीत के पीछे पड़ गईं ट्रीट ट्रीट।

वो लाजवंती क्या बोलती तो उन नदीदी और शरीर लड़कियों ने, करन के ऊपर धावा बोल दिया और गुड्डी भी उसमें शुमार थी।

कैंटीन में रीत की किसी सहेली ने बोल दिया- “कल रीत का बैडमिंटन मैच है…”

रीत ने बात बनायीं- “अरे कौन सा फाइनल है। लीग मैच ही तो है…”

लेकिन अगले दिन करन वहां हाजिर था। और फिर कोई डिबेट क्विज इलोक्युशन। ऐसा हो नहीं सकता था की करन पार्टिसिपेट कर रहा हो और रीत वहां ना हो। और बैडमिंटन, स्वीमिंग पेंटिंग, डांस, म्यूजिक कम्पटीशन हो। जिसमें रीत हो और करन ना हो।


लोग कहते हैं इश्क चाँद की तरह होता है। या तो बढ़ता है या घटता है। और यहाँ तो शुक्ल पक्ष अभी लगा ही था।
 
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Shetan

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रीत की प्रीत


रीत करन


एक था गुल और एक थी बुलबुल, दोनों चमन में रहते थे

है ये कहानी बिलकुल सच्ची, मेरे नाना कहते थे,

याद सदा रखना ये कहानी, चाहे जीना चाहे मरना


तुम भी किसी से प्यार करो तो, प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना



ये कहानी बहुत पुरानी है, उन तकियों के गिलाफो के मानिंद, जिनपर कितने चुप चुप के रोये हुए आँसुओके निशान पुख्ता हो जाते हैं। उन किताबों में छुपे खोये भूले कागजों की माफिक, जिनके हर्फ उड़ गए हैं। पर जो कभी हँसते गाते, स्याही में लिखे ख़्वाब होते थे।

ये कहानी तब की है। जब रीत, रीत नहीं नवरीत थी।


वो दोनों पड़ोस में रहते थे, परिवारों में भी बहुत दोस्ती थी।
करन रीत से तकरीबन चार साल बड़ा था। लेकिन बच्चों में इतनी उम्र का फर्क कहाँ पता चलता है। जैसा फिल्मो में होता है। बच्चे खिलौने से खेल रहे हैं, झगड़ रहे हैं। और अगले शाट में झट से बड़े होकर हीरो हिरोइन बनकर गाना गा रहे हैं बिलकुल वैसे ही।


नवरीत (या रीत। हम सब तो उसे इसी नाम से जानते हैं ना), बचपन से ही बहुत खूबसूरत थी, गोल मटोल खूब गोरी सी, हँसती तो गालों में गड्ढे पड़ते। और किसी की बुरी नजर ना पड़े। इसलिए सुबह उठते ही उसे कोई ना कोई दिठोना जरूर लगा देता था और उसके गोरे गोर माथे पे। बस लगता था जैसे धुप में कोई अबाबील उड़ी जा रही है। लेकिन थी वो बहुत ही चुलबुली, नटखट।

और करन आम बच्चों से थोड़ा सा अलग, बला का जहीन। और जिस उम्र में बच्चे बैट बल्ले माँगते है। बस वो किताबों की फरमाइश करता था, जब देखो तब किताबो के ढेर में डूबा हाथ पैर मारता। और उसके अलावा उसे दूसरा शौक था गिटार का। बचपन में उसे एक गिटार नुमा कोई चीज ले दी गई थी और उसे वो बजाया करता था।

लेकिन रीत से दोस्ती उसकी गजब की थी। वह किसी और बच्चे को अपनी किताब छूने नहीं देता था। लेकिन रीत के लिए। पूरी अलमारी खुल जाती थी। उसे वो गिटार भी बजाकर सुनाता। एक बार रीत ने उसकी किसी किताब का पन्ना फाड़ दिया। कोई दूसरा बच्चा होता तो खून खराबा हो जाता। माँये, अपने बच्चो को पकड़कर अपने घरों में ले जाती और दरवाजे पे खड़े होकर उंगलियां तोड़ तोड़कर गालियां निकालती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

करन बस गम सुम हो गया। मोम की मूरत।

रीत थोड़ी देर तक बैठी रही की वो अब झगड़ा करेगा। लेकिन वो बस चुप। रीत बिना बोले उठी। अपने घर गई कोई चिपकाने वाली ट्यूब लायी। और बड़े ध्यान से उसने वो पन्ना चिपका दिया। करन उठा अपने कमरे में से कोई पजल लाया और दोनों खेलने लगे।

अगर शाम को करन ना मिले तो रीत के घर होगा। और अगर रीत घर पर न मिले तो करन के घर। और फिर जैसे बाकी बच्चे झट से बड़े हो जाते हैं। माँ बाप को पता भी नहीं चलता की और परिंदे पर तौलते। आसमान नापने लगते हैं। बस उसी तरह।



रीत और करन बड़े हो गए।

करन तो पहले से ही जहीन था किताबों को शौकीन, अब और, स्कूल में अव्वल। और भी बहुत सिफत। डिबेट में एस्से लिखने में, कोई क्रिएटिव राइटिंग का कम्म्प्टिशन हो सबमें फर्स्ट। और बारहवें में पहुँचते ही उसे कालेज का हेड ब्वाय भी बना दिया गया। कालेज में कोई फंक्शन उसके बिना पूरा नहीं होता था। सबमे कम्पीयर भी वही करता था। और कालेज वो को एड था। शहर का सबसे मानिंद अंग्रेजी स्कूल।

और रीत भी उसी स्कूल में पढ़ती थी। पढाई में वो भी कोई कमजोर नहीं थी, लेकिन अभी भी बहुत ही खिलंदड़ी, दौड़ हो स्वीमिंग हो बैडमिंटन हो सबमें वो स्कूल की टीम में थी। और साथ में उसे म्यूजिक डांस और पेंटिंग का भी शौक पैदा हो गया था।

बस रीत को दो बातों का अफसोस था। एक तो उसको लोग अभी भी बच्चा समझते थे, जबकि वो अच्छी खासी बड़ी हो गई थी। लेकिन घर के लोग तो,....और हम सब लोग। बच्चियां गुडिया खेलती हैं, उनकी शादियां रचाती है। और देखते देखते उनकी अपनी पालकियां दरवाजे के बाहर आकर खड़ी हो जाती हैं।

लेकिन उसको सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का था की करन भी उसे बच्ची समझता था। वो उसके यहाँ अभी भी उसी तरह बेधड़क आता था लेकिन बस उससे पढ़ाई लिखाई की बातें करने। या फिर उसे कोई नैन्सी ड्रु या हार्डी ब्वायज टाइप किताबे देने। जबकि अब वो मिल्स एंड बून पढ़ने लगी थी। (और मुँहल्ले के शोहदों ने कब का सीटियां मार मार कर, उसके उभरते उभारों को घूर घूर कर, कब का उसे बड़ा होने का अहसास दिला दिया था)

दूसरा अफसोस भी उसे करन को लेकर था। पहले तो बस वो करन के साथ, अब कितनी लड़कियों, तितलियों की तरह, और खास तौर से वो हेड गर्ल। मुई चिपकी रहती थी, गिरी पड़ती थी जैसे कोई उसे और लड़का ना मिला हो। और करन उसे स्कूल में देखता तो बस हाय हेलो या पढाई कैसे चल रही है। लेकिन रीत के दोनों अफसोस एक दिन एक साथ दूर हो गए।



ये बात मुझे गुड्डी ने बताई। उस दिन का एक-एक पल उसके जेहन में चस्पा है। कुछ यादें होती है जो हरदम आपके साथ चलती है। ये बात बस वैसे ही है लगता है बस कल की बात है।
Paheli bar ehsas huaa ki kavita lok geet ki bajay kathni laheje me koi kissa sunaya ho. Par maza aa gaya. Esa koi akshar na bana. Jise komalrani apne kalam se utar de or hamare dillo me raj na kar par. Amezing.

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Shetan

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सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं।




रीत को अपनी जिंदगी का पहला प्रेमपत्र तीन दिन बाद मिला।

लाने वाली वही गुड्डी। गुड्डी ट्यूशन से लौट रही थी की करन अपने घर के बाहर मिला और गुड्डी को मैथ्स की किताब देकर बोला, ये लेजाकर अपनी दी को देना। लेकिन जब सिर्फ वही हों।

गुड्डी को रीत से कम खुशी नहीं हो रही थी वो धड़धड़ाते हुए ऊपर रीत के कमरे में पहुँच गई। रीत किसी टेस्ट की तैयारी कर रही थी। और आज गुड्डी ने उसे खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और बोली- “मेरी ट्रीट। रीत ने उसे और जोर से भींच लिया और बोली- “कुछ है क्या?

गुड्डी धम्म से कुर्सी पे बैठ गई और बोली- “नहीं क्यों कुछ आना था क्या। फिर अपने बैग से उसने जो किताब करन ने दी थी वो निकाली।

रीत ने छीनने की कोशिश की। तो गुड्डी ने हाथ ऊपर कर लिए। और बोली पहले ट्रीट।

“ओके मेरी नानी दूंगी ना पहले इधर ला…” और किताब खींच ली फिर गुड्डी से बोली- “अब तू चल…”

“क्यों? वाह। अरे ना चाय ना पानी। ना कुछ बात-चीत। और वो पालथी मारकर बैठ गई।

“प्लीज चलो ना, चलो ना अभी…” रीत बोली।

“अच्छा पहले बस एक बार दो। बस जरा सा…” गुड्डी बोली।

दिखा दूंगी। कल स्कूल जाते समय आना तो पूरा पढ़ा भी दूंगी। अब तो जा। और गुड्डी थम्स अप का साइन देते चली गई। रीत बहुत देर तक उस किताब को ताकती रही। मैथ्स की किताब कभी उसे इतनी अच्छी नहीं लगी। फिर उसने उसे होंठों से लगाकर सीने में भींच लिया, जैसे किताब ना हो करन हो।


सोचती रही हो खोले ना खोले। एक-दो सहेलियों के लव लेटर देखे थे। ये लड़के कैसे क्या-क्या लिखते है सोचकर शर्म आती है। करन ने कहीं ऐसा कुछ तो नहीं लिखा होगा। उसने पन्ने पलटे कोई लिफाफा नहीं था। तो क्या करन ने सिर्फ किताब भेजी थी। उसका दिल जोर-जोर से धक् धक् कर रहा था। उसने फिर एक-एक पन्ना पलटा। कम्पाउंड इंटरेस्ट वाले चैप्टर के बाद एक पेज आलमोस्ट चिपका। उसपे कुछ शेर प्रिंट थे। जल्दी से उसने वो पन्ना निकाला, इधर-उधर देखा, आँखों से लगाया, चूमा। लेकिन वो प्रिंटेड पेज। और जब उसने। पीछे देखा तो करन की राइटिंग में चंद अल्फाज।

“शेर फराज साहब के जरूर है लेकिन बातें मेरी है। तुम्हारे सामने आकर मेरी जुबान बंद हो जाती है इसलिए इन शेरों का सहारा ले रहा हूँ…”

रीत बस पागल नहीं हुई। कित्ती बार उसने चूमा होगा उन लफ्जों को जो करन ने लिखे थे और फिर रीत ने पन्ने को पलटा। और फिर पहला शेर पढ़ा, और मुश्कुराई दुष्ट-



सुना है लोग उसे आँख भरकर देखते हैं

सो उसके शहर में कुछ दिन ठहर के देखते हैं


और उसके बाद फिर दूसरा, तीसरा


सुना है बोले तो बातों से फूल झड़ते हैं,

ये बात है तो चलो बात करके देखते हैं,


सुना है रात उसे चाँद तकता रहता है,

सितारे बाम-ए-फलक से उतर के देखते हैं,


सुना है उसके लबों से गुलाब जलते हैं,

सो हम बहार पर इल्ज़ाम धर के देखते हैं।




एक-एक लफ्ज। कभी उसे लगता उस गुदगुदी कर रहे हैं, कभी लगता चिकोटियां काट रहे हैं। और जब उसने खिड़की से बाहर झांका तो उसे लगा सचमुच चाँद उसे निहार रहा है, एकटक। और वो अचानक चांदनी में नहा गई। और एक बार उसने अपने होंठों को छुआ तो लगा। सच में वो गुलाब की पंखुड़ियों को छू रही है। और फिर उसने आगे पढ़ा।



सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं,

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं,

सुना है रात से बढ़कर हैं काकुलें उसकी,

सुना है शाम को साये गुजर के देखते हैं।



उसकी पूरी देह दहक उठी, साँसें गरम हो रही थी। उसकी छत से करन का कमरा दिखता था। रीत ने झाँका। कमरे में अँधेरा था लेकिन उसे लगा पूरी कायनात करन हो गई है। सारी रात ना वो सो पायी ना जग पायी। अगले दिन पूरे दिन, उसे तितलियां सताती रही। उन शेरो ने उसके पूरे जिस्म में जेहन में सपने बो दिए थे।

एक-दो बार स्कूल में करन दिखा भी तो बस निगाहों से दुआ सलाम हुई लेकिन उसे लगा की पूरा जमाना उन दोनों को घूर रहा है। कोई उसकी सहेली उससे पेन्सिल भी मांगती तो लगता की। करन के बारे में पूछ ना ले। अब उसे खत का जवाब भी देना था, समझ में उसके नहीं आ रहा था।



उसे कोई शायरी का इल्म भी नहीं था। करन ने तो बेईमानी की फराज साहब का सहारा लेकर। फिर उसने करन का ही सहारा लिया।

जो गुलाब उस दिन करन ने उसके बालों में लगाया था उस पीले गुलाब की दो सूखी पंखुड़ियां। और फिर मुश्कुराकर उसने एक कागज के टुकड़े को अपने लबों से लगाया और नीचे अपना नाम लिख कर किताब में रख दिया।

सुबह जब स्कूल में करन दिखा तो तुरंत उसने उसे इशारा किया और बोली- “वो आपकी किताब?”

और उसके कुछ बोलने के पहले उसने झट से बैग से किताब निकालकर उसे पकड़ा दी और वापस हो ली। उसकी उंगली करन के उंगली से छू गई थी और रीत के पूरे बदन में दावानल दहक उठे थे। वह सच में शोला बदन हो उठी थी।

उसके खत का जवाब उसी दिन मिल गया। वो दोपहर में कैंटीन में अपनी सहेलियों के साथ बैठी थी। और एक मेज पर करन अकेला। तभी करन का कोई दोस्त आकर टेबल पे बैठ गया और करन ने अपने दोस्त से बिना बात कहा।

“आज शाम को छुट्टी के बाद सोचता हूँ लाइब्रेरी हो आऊं…”


जिससे ये बात की गई थी, वो छूट्टी के बाद भागती दौड़ती, कूदती फांदती, लाइब्रेरी पहुँची। करन वहां पहले से बैठा था। रीत भी वहीं बैठ गई। थोड़ी देर में एक किताब गिरने की आवाज हुई। और करन बोला शायद आपकी किताब गिर गई है।

किताब तो वो कोई लाई ही नहीं थी। फिर भी उसने झुक के किताब उठायी, कोई पोएट्री की थी, अपने बैग में रखी। और जब उसने उस ओर नजर घुमाई, जहाँ करन था वहाँ… अब सन्नाटा था। सिर्फ मेज पर पीले गुलाब की एक अधखिली कली।

उसने गुलाब अपने बाल में लगाया और तीर की तरह सीधे घर। मम्मी नीचे से आवाजें देती रही लेकिन वो सीधे। अपने कमरे में और सब कुछ छोड़कर उसने वो किताब निकाली उसे अपने सीने से लगाया। और धड़कते दिल से खोला,

अबकी फराज साहब के शेर के साथ कुछ सतरें ज्यादा थी। और सारी रात वो उन दहकते शेरों के बिछौने पे सुलगती रही। अध जागी आँखों से ख़्वाब देखती रही, करवटें बदलती रही। कितनी बार उन शेरों को नहीं पढ़ा होगा उसने। अब तो उसे याद भी हो गए थे। लेकिन फिर वो तकिये के नीचे से वो पुर्जा निकालती, हौले से खोलती, पढ़ती और फिर पेट के बल लेट कर तकिये को भींच लेती।




तू पास भी हो तो दिल बेकरार अपना है

के हमको तेरा नहीं इंतजार अपना है

जमाने भरकर दुखों को लगा लिया दिल से

इस आसरे पे के इक गमगुसार अपना है

‘फराज’ राहत-ए-जाँ भी वही है क्या कीजे

वो जिस के हाथ से सीनाफिगार अपना है।


लेकिन वो छुई मुई वाले दिन जल्दी ही गुजर गए। एक दिन किसी लड़की ने कहा की आज शाम को इंटर हाउस डिबेट है चलना है। दूसरी बोली जीतेगा तो अपने हाउस का करन ही। और उसका नाम सुनते ही रीत को सौ बिछुओं ने एक साथ डंक मार लिया।

“कब कित्ते बजे…” उचक कर उसने पूछा। और सब एक साथ हँस पडीं।

“तुझे डिबेट में कब से दिलचस्पी होने लगी। तू तो कहती थी बहुत बोरिंग होता है…”

रीत कुछ नहीं बोली, जान कर भी सब उसके पीछे। लेकिन शाम को वो डिबेट में थी। बाकी समय तो वो उंघती रही लेकिन जब करन का नम्बर आया उसके कानों ने एक-एक शब्द पी लिया। और फिर क्या तालियां बजाई। और जब जीत का ऐलान हुआ। उस समय तो उसने आसमान सिर पर उठा लिया और फिर तो सब लड़कियां रीत के पीछे पड़ गईं ट्रीट ट्रीट।

वो लाजवंती क्या बोलती तो उन नदीदी और शरीर लड़कियों ने, करन के ऊपर धावा बोल दिया और गुड्डी भी उसमें शुमार थी।

कैंटीन में रीत की किसी सहेली ने बोल दिया- “कल रीत का बैडमिंटन मैच है…”

रीत ने बात बनायीं- “अरे कौन सा फाइनल है। लीग मैच ही तो है…”

लेकिन अगले दिन करन वहां हाजिर था। और फिर कोई डिबेट क्विज इलोक्युशन। ऐसा हो नहीं सकता था की करन पार्टिसिपेट कर रहा हो और रीत वहां ना हो। और बैडमिंटन, स्वीमिंग पेंटिंग, डांस, म्यूजिक कम्पटीशन हो। जिसमें रीत हो और करन ना हो।


लोग कहते हैं इश्क चाँद की तरह होता है। या तो बढ़ता है या घटता है। और यहाँ तो शुक्ल पक्ष अभी लगा ही था।
Ufff komalji. Pagal kar diya aapne to. Aap pagal kar dogi. Reet ki prit sachme anokhi he. Maza aa gaya. Love it
 

komaalrani

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बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम,

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो,




क्विज टाइम


लोग कहते हैं इश्क चाँद की तरह होता है। या तो बढ़ता है या घटता है। और यहाँ तो शुक्ल पक्ष अभी लगा ही था।


गुड्डी ने बताया की। वो परवान चढ़ा जब वो लोग लखनऊ गए एक इंटर कालेज कल्चरल फेस्ट में। एक तो अपने शहर से दूर, दूसरे लखनऊ वैसे भी मुँहब्बत और शायरी के लिए मशहूर। फेस्ट ल मार्टीनयर स्कूल में था। और रीत का स्कूल कभी तीसरे चौथे नंबर से ऊपर नहीं आ पाता था। पहले और दूसरे नंबर पे लखनऊ और नैनीताल के कान्वेंट स्कूल ही अक्सर रहते थे।

पहले तो हेड गर्ल ने बहुत नाक भौं सिकोड़ी की कोई नाइन्थ की लड़की जाय। लेकिन करन की जिद और आधी इवेंट्स में तो वही पार्टिसिपेट करने वाला था। लास्ट इवेंट के पहले तक उनका कालेज चौथे नंबर पर था। लेकिन सबसे ज्यादा बड़ी इवेंट अभी बाकी थी, म्यूजिकल क्विज की। रीत ने चार इवेंट में भाग लिया वो एक में फर्स्ट आई थी, वेस्टर्न डांस में, इन्डियन क्लासिकल और फिल्म में सेकंड और वेस्टर्न म्यूजिक में थर्ड। करन तीन इवेंट में फर्स्ट आया था और दो में सेकंड।

म्यूजिकल क्विज की इवेंट पचास नम्बर की थी और इसके तीन राउंड थे। फर्स्ट राउंड के तीस नम्बर थे। और इसमें फर्स्ट फोर टीम। सेकंड और थर्ड राउंड में भाग ले सकती थी। लेकिन वो राउंड आप्शनल थे और उसमें दस नम्बर मिलते जीतने वाली टीम को और लास्ट आने वाली दो टीम के पांच नम्बर कट जाते। थर्ड राउंड में सर्प्राइज पैकेट भी होता था।


म्यूजिकल क्विज शुरू हुई और उसमें रीत करन और वो हेड गर्ल तीनों ने भाग लिया। इस राउंड में तीन की टीम थी। और इसमें रीत का स्कूल फर्स्ट आ गया। अब ओवर आल रैंकिंग में वो लोग तीसरे पे आ गए थे। झगड़ा था नेक्स्ट राउंड में भाग लें की नहीं। दोनों राउंड इन्डियन फिल्म म्यूजिक पर थे।

हेड गर्ल बोली- “हमें नहीं पार्टिसिपेट करना चाहिए। अभी हमारी थर्ड पोजीशन तो सिक्योर है। अगर कहीं निएगेटिव नंबर मिल गए तो हम फोर्थ पे पहुँच जायेंगे।


लेकिन करन बोला यार नो रिस्क नो गेन। और रीत को लेकर पहुँच गया एंट्री देने। चार टीमें थी। लखनऊ के दो कालेज लोरेटो और ल मार्टिनियर, नैनीताल से शेरवूड स्कूल। ये राउंड रिटेन था। और तीन पार्ट में। स्क्रीन पे एक सब्जेक्ट आता और कुछ कंडीशन और सारी टीमों को कागज पे लिख के देना होता। सबकी निगाहें स्क्रीन पे गड़ी थी। और एक ट्रेन की फोटो आई।

सब लोग इंतेजार कर रहे थे ट्रेन के बारे में पिक्चर का नाम। लेकिन जब डिटेल्स आये तो फूँक सरक गई। ट्रेन बे बेस्ड हिंदी गाने। ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मो के, फिल्म और म्यूजिक डायरेक्टर के नाम के और पांच मिनट में जो टीम सबसे ज्यादा गानों के नाम लिखती वो फर्स्ट।

आडियेंस में बैठी लड़के लड़कियों ने जोर से बोऒ किया, ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मो के गाने। करन ने भी परेशान होकर रीत की ओर देखा। लेकिन रीत कागज कलम लेकर तैयार। और जैसे ही अनाउंस हुआ।

योर टाइम स्टार्टस नाउ।

उसने लिखना शुरू किया। एक-दो गाने करन ने भी बताये।

और पांच मिनट के बाद

पांच मिनट खतम होते ही लिस्ट ले ली गई।

पहली टीम ने सिर्फ पांच गाने लिखे थे। उसमें से एक क्विज मास्टर ने कैंसल कर दिया। छैयां छैयां। कलर्ड होने के कारण यानी सिर्फ चार

दूसरी टीम उसी स्कूल की थी ल मार्टिनियर और क्लैप भी उसे सबसे ज्यादा मिल रहे थे। उसकी लिस्ट में छ गाने थे सारे सही। खूब जोर से क्लैप हुआ। ब्लैक एंड व्हाईट। और वो भी एक सब्जेक्ट पे। अगला नम्बर लोरेटो का था। उसके आठ गाने थे। और अबकी वहां की लड़कियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। उनकी जो कान्टेसटेंटस थी वो दो बार बोर्न वीटा क्विज के फाइनल में पहुँच चुकी थी। और एक बार सेकंड भी आई थी।

अब तय हो गया की इन लड़कियों ने जीत लिया मैदान। वो हाथ हिलाकर लोगों को विश कर रही थी। अब क्विज मास्टर इन लोगों की लिस्ट चेक कर रहा था। और कुछ अनाउन्स नहीं कर रहा था। उधर आडियेंस शोर कर रही थी रिजल्ट रिजल्ट।



उन लोगों के बारह गाने थे।

चौथी आई टीम शेरवूड नैनीताल आउट हो गई थी। उसे निगेटिव प्वाइंट मिल गए।

लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं थे।

सिर्फ लोरेटो की दोनों लड़कियों ने रीत और करन से हाथ मिला कर विश किया। क्विज मास्टर ने रीत को इशारा किया की वो अपनी लिस्ट पढ़कर सुनाये। और रीत शुरू हो गई। फिल्म के नाम के साथ-



01॰ है अपना दिल तो आवारा- सोलवां साल

02॰ अपनी तो हर आह्ह… एक तूफान है- काला बाजार

03॰ देखोजी एक बाला जोगी- चाइना टाउन

04॰ दिल थाम चले हम आज किधर- लव इन शिमला

05॰ बदल जाये अगर माली- बहारें फिर भी आएंगी

06॰ औरतों के डिब्बे में मर्द आ गया- मुड़ मुड़कर ना देख

07॰ हमको समझ ना लीजिये- कल्पना

08॰ तूफान मेल दुनियां ये दुनियां- जवाब

09॰ आई बहार -आज आई बहार - डाक्टर



और जैसे ही आठ की संख्या पार हो गई। आडियेंस का शक भी खतम हो गया क्विज मास्टर को भी अगले राउंड की ओर बढ़ना था। रीत करन का स्कूल फर्स्ट डिक्लेयर हो गया। लेकिन अभी दो पार्ट और बाकी थे।

नेक्स्ट पार्ट वीडयो और बजर राउंड था। पांच क्लिप्स थी।

पहली क्लिप्स शुरू होते ही करन ने बजर दबा दिया। उसे क्विज का बहुत अनुभव था। जवाब भी सही था। दूसरी क्लिप्स पे लोरेटो वाली लड़कियां जीती एक अंग्रेजी फिल्म की क्लिप थी। एक्टर्स के नाम बताने थे।

और जैसी ही तीसरी क्लिप आई। रीत ने बजर दबा दिया। एक ट्रेन में कुछ लोग गा रहे थे। लेकिन गाना साइलेंट पे था।

क्विज मास्टर ने घूर के देखा और बोला मुझे क्वेश्चन तो पूछ लेने दो। और इस क्लिप पे एक स्पेशल अवार्ड भी है। सवाल ये नहीं है की गाना क्या है। सवाल है सिंगर और फिल्म दोनों।

रीत ने बिना रुके बोला। फिल्म डाक्टर और सिंगर पंकज मालिक।


ओके यू गाट इट राईट एंड स्पेशल क्वेश्चन। नो मार्क्स। बट इफ यु गेट इट राईट। वेरी स्पेशल अवार्ड। एंड स्पेशल क्वेश्चन इज। व्हाट इज स्पेशल इन दिस सांग। ट्वेंटी सेकेंड्स।

रीत ने एक पल सोचा, करन को देखा और जवाब दे दिया। फर्स्ट टाइम अ सोंग हिज बीन शाट इन अ मूविंग ट्रेन।

और जैसे ही क्विज मास्टर ने सही का इशारा दिया। पूरा हाल तालियों से गूँज उठा।

रीत ने बस करन का हाथ दबा दिया। चौथी क्लिप भी लोरेटो के लड़कियों ने जीती स्कोर 2-2

आखिरी क्लिप फिर एक इंग्लिश फिल्म की थी एक ट्रेन में मर्डर।

लेकिन अबकी उन लोगों ने इंतेजार किया क्विज मास्टर का। उसने बोला। इस पिक्चर का नाम। नहीं बताना है। नाम है मर्डर इन ओरिएंटल एक्सप्रेस। हम सबको मालूम है। ये ट्रेन कहाँ से कहाँ तक चलती थी ये बताना है। अबकी बजर किसी ने नहीं दबाया।

रीत ने करन से कुछ खुसफुस की और करन ने जवाब दे दिया। और वो लोग ये राउंड भी जीत गए। और अब जब नंबर जोड़े गए तो उनका स्कूल दूसरे नम्बर पर आ गया था। पहले नम्बर पर लोरेटो कान्वेंट। तीन नम्बर आगे ओवर आल नम्बर में।

इसके बाद म्यूजिकल क्विज का फाइनल राउंड था। उसमें सिर्फ दो टीमें भाग ले सकती थी। उनकी टीम और लोरेटो।

ये सबसे टफ राउंड भी था, और स्क्रीन पर कंडीशंस आई।



01॰ पचास के दशक का गाना

02॰ ब्लैक एंड व्हाईट

03॰ डुएट

04॰ तीन अलग-अलग संगीत कारों के। जिनकी चिट निकाली जायेगी।

रीत करन की चिट में रोशन, ओ पी नय्यर और शंकर जयकिशन निकले। एक बार करन को थोड़ी घबड़ाहट हुई लेकिन अबकी रीत ने उसका हाथ दबा दिया। सबसे पहले उन्होंने-



मांग के हाथ तुम्हारा, मांग लिया संसार।

ओ पी नय्यर का गाया और पूरा हाल तालियों से गूँज उठा।



याद किया दिल ने कहाँ हो तुम।

उसके बाद शंकर जयकिशन का,
सबसे अंत में रोशन का संगीत दिया मल्हार का रीत का फेवरिट और वैसे भी करन, मुकेश के गाने बहुत अच्छा गाता था। रीत ने लता- मुकेश का दुयेट शुरू किया-


बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम, हो बलम तेरी कसम

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

और फिर करन।



जुदा न कर सकेंगे हमको जमाने के सितम


हो जमाने के सितम, प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।
पूरा हाल तालियां बजा रहा था। लेकिन रीत और करन सुधबुध खोये, मुश्कुराते एक दूसरे को देखते गा रहे थे, जैसे बस वहीं दोनों हाल में हो। जब गाना आखीर में पहुँचा-

मेरी नैया को किनारे का इन्तजार नहीं

तेरा आँचल हो तो पतवार की भी दरकार नहीं

तेरे होते हुए क्यों हो मुझे तूफान का गम


प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

सारा हाल खड़ा हो गया। स्टैंडिंग ओवेशन। उन्हें दस में दस मिले। और इस गाने के लिए भी एक स्पेशल अवार्ड। उनका कालेज पहली बार इस फेस्ट में फर्स्ट आया था।

गुड्डी बोली की जब वो दोनों लौट कर आये तो बस कालेज में छा गए। घर लौटते हुए गुड्डी ने रीत से पूछा- “कुछ हुआ?”

और जवाब में जोर का घूंसा गुड्डी की पीठ पे पड़ा।
 
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Reet

अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है



गुड्डी बोली की जब वो दोनों लौट कर आये तो बस कालेज में छा गए। घर लौटते हुए गुड्डी ने रीत से पूछा- “कुछ हुआ?”

और जवाब में जोर का घूंसा गुड्डी की पीठ पे पड़ा।

गुड्डी जोर से चिल्लाई, फिर पूछा।

“कुछ बोला उसने?”

रीत मुश्कुराती रही।

“बोल ना आई लव यू बोला की नहीं…” गुड्डी पीछे पड़ी रही।

“ना…” रीत ने मुश्कुराकर जवाब दिया

“कुछ तो बोला होगा…” गुड्डी पीछे पड़ी थी।
“हाँ। रीत ने मुश्कुराकर जुर्म कबूल किया। वो बोला- “मुझे तुमसे एक चीज मांगनी है…”

अब गुड्डी उतावली हो गई- “बोल ना दिया तुमने की नहीं…”

रीत बिना सुने बोलती गई- “मैंने बोला मेरे पास तो जो था मैंने बहुत पहले तुम्हें दे दिया है। मेरा तो अब कुछ है नहीं। फिर हम दोनों बहुत देर तक चुपचाप, बिना बोले, हाथ पकड़कर बातें करते रहे…”

“बिना बोले बातें कैसे?” गुड्डी की कुछ समझ में नहीं आया।

“तू बड़ी हो जायेगी ना तो तेरे भी समझ में आ जायेंगी ये बातें…” हँसते हुए रीत बोली।

उसका घर आ गया था। बस एक बात उसे रोकते हुए गुड्डी बोली- “किस्सी ली उसने?”

एक जोर का और पड़ा गुड्डी की पीठ पे और रीत धड़धड़ाते हुए ऊपर चल दी। लेकिन दरवाजे से गुड्डी को देखते हुए मीठी निगाहों से, हल्के से हामी में सिर हिला दिया।

गुड्डी ने बोला की रीत ने बाद में बताया था। एक बहुत छोटी सी गाल पे। लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।

करन का आई॰एम॰ए॰ ( इंडियन मिलेट्री अकेडमी) देहरादून में एडमिशन हो गया। ये खबर भी उसने सबसे पहले रीत को दी और उसे स्टेशन छोड़ने उसके घर के के लोगों के साथ रीत भी गई और भी कालेज के बहुत से लोग, मुँहल्ले के भी।

गुड्डी ने हँसकर बोला- “जो काम पहले वो करती थी। डाक तार वालों ने सम्हाल लिया। और बाद में इंटर नेट वालों ने। मेसेज इधर-उधर पहुँचाने का। गुड्डी उसकी अकेली राजदां थी। लेकिन वो दिन कैसे गुजरते थे। वो या तो रीत जानती थी या दिन।

अहमद फराज साहब की शायरी का शौक तो करन ने लगा दिया और दुष्यंत कुमार उसने खुद पढ़ना शुरू कर दिया।


कविता समझने का सबसे आसन तरीका है इश्क करना, फिर कोई कुंजी टीका की जरूरत नहीं पड़ती।

जो वो गाती गुनगुनाती रहती थी। उसने करन को चिट्ठी में लिख दिया:




मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे

इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत

हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता


हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे।



जब वह करन को स्टेशन छोड़ने गई थी तो करन ने उसे धर्मवीर भारती की एक किताब लेकर दे दी थी और जब कोई विरह में हो तो संसार की सारी विरहणीयों का दुःख अपना लगने लगता है। वह बार-बार इन लाइनों को पढ़ती, कभी रोती, कभी मुश्कुराती-

कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था, तुम्हारे आश्लेष में


आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है, दुगुना सुनसान है

बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले सा मेरा यह जिस्म-

टूटे खँडहरों के उजाड़ अन्तःपुर में,

छूटा हुआ एक साबित मणिजटित दर्पण-सा-

आधी रात दंश भरा बाहुहीन

प्यासा सर्वीला कसाव एक, जिसे जकड़ लेता है

अपनी गुंजलक में

अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है

मन्त्र-पढ़े बाण-से छूट गये तुम तो कनु,

शेष रही मैं केवल, काँपती प्रत्यंचा-सी।



विरह के पल युग से बन जाते, वो एक चिट्ठी पोस्ट करके लौटती तो दूसरी लिखने बैठ जाती और उधर भी यही हालत थी करन की चिट्ठी रोज। जिस दिन नहीं आती। गुड्डी उसे खूब चिढ़ाती। देखकर आती हूँ, कहीं डाक तार वालों की हड़ताल तो नहीं हो गई। और जब करन आता। तो काले कोस ऐसे विरहकर पल, कपूर बनकर उड़ जाते। लगता ही नहीं करन कहीं गया था स्कूल और मुँहल्ले की खबरों से लेकर देश दुनियां का हाल। बस जो रीत उसे नहीं बताती। वो अपने दिल का हाल। लेकिन शायद इसलिए की ये बात तो उसने पहले ही कबूल कर ली थी की अब उसका दिल अपना नहीं है।



आई॰एम॰ए॰ से वो लौट कर आया। तो सबसे पहले रीत के पास, वो भी यूनिफार्म में, और उसने रीत को सैल्यूट किया। गुड्डी वहीं थी। रीत ने उसे बाहों में भींच लिया।


दोनों कभी हँसते कभी रोते।

रीत हाई स्कूल पास कर एलेव्न्थ में पहुँच गई।

करन की ट्रेनिंग करीब खतम थी।

उसे बस पासिंग आउट परेड में जाना था,

रीत की छुट्टियां चल रही थी, क्योंकि उसके कालेज में बोर्ड के इक्जाम का सेंटर था। फागुन का महीन था। फागुन वो भी बनारस का। अंदर और बाहर दोनों पलाश दहक रहे थे। कित्ते दिन बाद करन आया था। रीत उस बार करन को छोड़ने नहीं गई स्टेशन। उसे अपने पैरेंट्स के साथ मंदिर जाना था। मनौती उसने करन के लिए ही मानी थी।

उसे बेस्ट कैडेट का अवार्ड मिले, बस उसके घर के सामने उसने उसे छोड़ दिया और रीत के नैन दूर तक उसके साथ गए।
 
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komaalrani

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तो रीत की प्रीत के ये पल आपके हवाले,

कैसे लगे जरूर बताइयेगा,... फ़िल्मी अंत्याक्षरी, पुराने गाने और फिर थोड़ा और बड़े होने पर कवितायें

लेकिन कैशोर्य की बातें अक्सर बिन बोले या ऐसे ही शायद कही जाती हैं

ढाई आखर प्रेम का

और ये ढाई आखर बड़े मुश्किल पड़ते हैं जिसने पढ़ लिया उसको भी और जो नहीं पढ़ पाया उसको भी।
 
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Shetan

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बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम,

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो,




क्विज टाइम


लोग कहते हैं इश्क चाँद की तरह होता है। या तो बढ़ता है या घटता है। और यहाँ तो शुक्ल पक्ष अभी लगा ही था।


गुड्डी ने बताया की। वो परवान चढ़ा जब वो लोग लखनऊ गए एक इंटर कालेज कल्चरल फेस्ट में। एक तो अपने शहर से दूर, दूसरे लखनऊ वैसे भी मुँहब्बत। और शायरी के लिए मशहूर। फेस्ट ल मार्टीनयर स्कूल में था। और रीत का स्कूल कभी तीसरे चौथे नंबर से ऊपर नहीं आ पाता था। पहले और दूसरे नंबर पे लखनऊ और नैनीताल के कान्वेंट स्कूल ही अक्सर रहते थे।

पहले तो हेड गर्ल ने बहुत नाक भौं सिकोड़ी की कोई नाइन्थ की लड़की जाय। लेकिन करन की जिद और आधी इवेंट्स में तो वही पार्टिसिपेट करने वाला था। लास्ट इवेंट के पहले तक उनका कालेज चौथे नंबर पर था। लेकिन सबसे ज्यादा बड़ी इवेंट अभी बाकी थी, म्यूजिकल क्विज की। रीत ने चार इवेंट में भाग लिया वो एक में फर्स्ट आई थी, वेस्टर्न डांस में, इन्डियन क्लासिकल और फिल्म में सेकंड और वेस्टर्न म्यूजिक में थर्ड। करन तीन इवेंट में फर्स्ट आया था और दो में सेकंड।

म्यूजिकल क्विज की इवेंट पचास नम्बर की थी और इसके तीन राउंड थे। फर्स्ट राउंड के तीस नम्बर थे। और इसमें फर्स्ट फोर टीम। सेकंड और थर्ड राउंड में भाग ले सकती थी। लेकिन वो राउंड आप्शनल थे और उसमें दस नम्बर मिलते जीतने वाली टीम को और लास्ट आने वाली दो टीम के पांच नम्बर कट जाते। थर्ड राउंड में सर्प्राइज पैकेट भी होता था।


म्यूजिकल क्विज शुरू हुई और उसमें रीत करन और वो हेड गर्ल तीनों ने भाग लिया। इस राउंड में तीन की टीम थी। और इसमें रीत का स्कूल फर्स्ट आ गया। अब ओवर आल रैंकिंग में वो लोग तीसरे पे आ गए थे। झगड़ा था नेक्स्ट राउंड में भाग लें की नहीं। दोनों राउंड इन्डियन फिल्म म्यूजिक पर थे।

हेड गर्ल बोली- “हमें नहीं पार्टिसिपेट करना चाहिए। अभी हमारी थर्ड पोजीशन तो सिक्योर है। अगर कहीं निएगेटिव नंबर मिल गए तो हम फोर्थ पे पहुँच जायेंगे।


लेकिन करन बोला यार नो रिस्क नो गेन। और रीत को लेकर पहुँच गया एंट्री देने। चार टीमें थी। लखनऊ के दो कालेज लोरेटो और ल मार्टिनियर, नैनीताल से शेरवूड स्कूल। ये राउंड रिटेन था। और तीन पार्ट में। स्क्रीन पे एक सब्जेक्ट आता और कुछ कंडीशन और सारी टीमों को कागज पे लिख के देना होता। सबकी निगाहें स्क्रीन पे गड़ी थी। और एक ट्रेन की फोटो आई।

सब लोग इंतेजार कर रहे थे ट्रेन के बारे में पिक्चर का नाम। लेकिन जब डिटेल्स आये तो फूँक सरक गई। ट्रेन बे बेस्ड हिंदी गाने। ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मो के, फिल्म और म्यूजिक डायरेक्टर के नाम के और पांच मिनट में जो टीम सबसे ज्यादा गानों के नाम लिखती वो फर्स्ट।

आडियेंस में बैठी लड़के लड़कियों ने जोर से बोऒ किया, ब्लैक एंड व्हाईट फिल्मो के गाने। करन ने भी परेशान होकर रीत की ओर देखा। लेकिन रीत कागज कलम लेकर तैयार। और जैसे ही अनाउंस हुआ।

योर टाइम स्टार्टस नाउ।

उसने लिखना शुरू किया। एक-दो गाने करन ने भी बताये।

और पांच मिनट के बाद

पांच मिनट खतम होते ही लिस्ट ले ली गई।

पहली टीम ने सिर्फ पांच गाने लिखे थे। उसमें से एक क्विज मास्टर ने कैंसल कर दिया। छैयां छैयां। कलर्ड होने के कारण यानी सिर्फ चार

दूसरी टीम उसी स्कूल की थी ल मार्टिनियर और क्लैप भी उसे सबसे ज्यादा मिल रहे थे। उसकी लिस्ट में छ गाने थे सारे सही। खूब जोर से क्लैप हुआ। ब्लैक एंड व्हाईट। और वो भी एक सब्जेक्ट पे। अगला नम्बर लोरेटो का था। उसके आठ गाने थे। और अबकी वहां की लड़कियों ने आसमान सिर पर उठा लिया। उनकी जो कान्टेसटेंटस थी वो दो बार बोर्न वीटा क्विज के फाइनल में पहुँच चुकी थी। और एक बार सेकंड भी आई थी।

अब तय हो गया की इन लड़कियों ने जीत लिया मैदान। वो हाथ हिलाकर लोगों को विश कर रही थी। अब क्विज मास्टर इन लोगों की लिस्ट चेक कर रहा था। और कुछ अनाउन्स नहीं कर रहा था। उधर आडियेंस शोर कर रही थी रिजल्ट रिजल्ट।



उन लोगों के बारह गाने थे।

चौथी आई टीम शेरवूड नैनीताल आउट हो गई थी। उसे निगेटिव प्वाइंट मिल गए।

लेकिन लोग मानने को तैयार नहीं थे।

सिर्फ लोरेटो की दोनों लड़कियों ने रीत और करन से हाथ मिला कर विश किया। क्विज मास्टर ने रीत को इशारा किया की वो अपनी लिस्ट पढ़कर सुनाये। और रीत शुरू हो गई। फिल्म के नाम के साथ-



01॰ है अपना दिल तो आवारा- सोलवां साल

02॰ अपनी तो हर आह्ह… एक तूफान है- काला बाजार

03॰ देखोजी एक बाला जोगी- चाइना टाउन

04॰ दिल थाम चले हम आज किधर- लव इन शिमला

05॰ बदल जाये अगर माली- बहारें फिर भी आएंगी

06॰ औरतों के डिब्बे में मर्द आ गया- मुड़ मुड़कर ना देख

07॰ हमको समझ ना लीजिये- कल्पना

08॰ तूफान मेल दुनियां ये दुनियां- जवाब

09॰ आई बाहर आई बाहर।



और जैसे ही आठ की संख्या पार हो गई। आडियेंस का शक भी खतम हो गया क्विज मास्टर को भी अगले राउंड की ओर बढ़ना था। रीत करन का स्कूल फर्स्ट डिक्लेयर हो गया। लेकिन अभी दो पार्ट और बाकी थे।

नेक्स्ट पार्ट वीडयो और बजर राउंड था। पांच क्लिप्स थी।

पहली क्लिप्स शुरू होते ही करन ने बजर दबा दिया। उसे क्विज का बहुत अनुभव था। जवाब भी सही था। दूसरी क्लिप्स पे लोरेटो वाली लड़कियां जीती एक अंग्रेजी फिल्म की क्लिप थी। एक्टर्स के नाम बताने थे।

और जैसी ही तीसरी क्लिप आई। रीत ने बजर दबा दिया। एक ट्रेन में कुछ लोग गा रहे थे। लेकिन गाना साइलेंट पे था।

क्विज मास्टर ने घूर के देखा और बोला मुझे क्वेश्चन तो पूछ लेने दो। और इस क्लिप पे एक स्पेशल अवार्ड भी है। सवाल ये नहीं है की गाना क्या है। सवाल है सिंगर और फिल्म दोनों।

रीत ने बिना रुके बोला। फिल्म डाक्टर और सिंगर पंकज मालिक।


ओके यू गाट इट राईट एंड स्पेशल क्वेश्चन। नो मार्क्स। बट इफ यु गेट इट राईट। वेरी स्पेशल अवार्ड। एंड स्पेशल क्वेश्चन इज। व्हाट इज स्पेशल इन दिस सांग। ट्वेंटी सेकेंड्स।

रीत ने एक पल सोचा, करन को देखा और जवाब दे दिया। फर्स्ट टाइम अ सोंग हिज बीन शाट इन अ मूविंग ट्रेन।

और जैसे ही क्विज मास्टर ने सही का इशारा दिया। पूरा हाल तालियों से गूँज उठा।

रीत ने बस करन का हाथ दबा दिया। चौथी क्लिप भी लोरेटो के लड़कियों ने जीती स्कोर 2-2

आखिरी क्लिप फिर एक इंग्लिश फिल्म की थी एक ट्रेन में मर्डर।

लेकिन अबकी उन लोगों ने इंतेजार किया क्विज मास्टर का। उसने बोला। इस पिक्चर का नाम। नहीं बताना है। नाम है मर्डर इन ओरिएंटल एक्सप्रेस। हम सबको मालूम है। ये ट्रेन कहाँ से कहाँ तक चलती थी ये बताना है। अबकी बजर किसी ने नहीं दबाया।

रीत ने करन से कुछ खुसफुस की और करन ने जवाब दे दिया। और वो लोग ये राउंड भी जीत गए। और अब जब नंबर जोड़े गए तो उनका स्कूल दूसरे नम्बर पर आ गया था। पहले नम्बर पर लोरेटो कान्वेंट। तीन नम्बर आगे ओवर आल नम्बर में।

इसके बाद म्यूजिकल क्विज का फाइनल राउंड था। उसमें सिर्फ दो टीमें भाग ले सकती थी। उनकी टीम और लोरेटो।

ये सबसे टफ राउंड भी था, और स्क्रीन पर कंडीशंस आई।



01॰ पचास के दशक का गाना

02॰ ब्लैक एंड व्हाईट

03॰ डुएट

04॰ तीन अलग-अलग संगीत कारों के। जिनकी चिट निकाली जायेगी।

रीत करन की चिट में रोशन, ओ पी नय्यर और शंकर जयकिशन निकले। एक बार करन को थोड़ी घबड़ाहट हुई लेकिन अबकी रीत ने उसका हाथ दबा दिया। सबसे पहले उन्होंने-



मांग के हाथ तुम्हारा, मांग लिया संसार।

ओ पी नय्यर का गाया और पूरा हाल तालियों से गूँज उठा।



याद किया दिल ने कहाँ हो तुम।

उसके बाद शंकर जयकिशन का,
सबसे अंत में रोशन का संगीत दिया मल्हार का रीत का फेवरिट और वैसे भी करन, मुकेश के गाने बहुत अच्छा गाता था। रीत ने लता- मुकेश का दुयेट शुरू किया-


बड़े अरमानों से रखा है बलम तेरी कसम, हो बलम तेरी कसम

प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

और फिर करन।



जुदा न कर सकेंगे हमको जमाने के सितम


हो जमाने के सितम, प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।
पूरा हाल तालियां बजा रहा था। लेकिन रीत और करन सुधबुध खोये, मुश्कुराते एक दूसरे को देखते गा रहे थे, जैसे बस वहीं दोनों हाल में हो। जब गाना आखीर में पहुँचा-

मेरी नैया को किनारे का इन्तजार नहीं

तेरा आँचल हो तो पतवार की भी दरकार नहीं

तेरे होते हुए क्यों हो मुझे तूफान का गम


प्यार की दुनियां में ये पहला कदम हो, पहला कदम।

सारा हाल खड़ा हो गया। स्टैंडिंग ओवेशन। उन्हें दस में दस मिले। और इस गाने के लिए भी एक स्पेशल अवार्ड। उनका कालेज पहली बार इस फेस्ट में फर्स्ट आया था।

गुड्डी बोली की जब वो दोनों लौट कर आये तो बस कालेज में छा गए। घर लौटते हुए गुड्डी ने रीत से पूछा- “कुछ हुआ?”

और जवाब में जोर का घूंसा गुड्डी की पीठ पे पड़ा।
Vakai me aapne kuchh nayapan dala. Kisso me. Romance or tyoharo se kuchh alag hi harkat. Padhne me bahot alag hi anand aaya komalji. Love it
 

Shetan

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अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है



गुड्डी बोली की जब वो दोनों लौट कर आये तो बस कालेज में छा गए। घर लौटते हुए गुड्डी ने रीत से पूछा- “कुछ हुआ?”

और जवाब में जोर का घूंसा गुड्डी की पीठ पे पड़ा।

गुड्डी जोर से चिल्लाई, फिर पूछा।

“कुछ बोला उसने?”

रीत मुश्कुराती रही।

“बोल ना आई लव यू बोला की नहीं…” गुड्डी पीछे पड़ी रही।

“ना…” रीत ने मुश्कुराकर जवाब दिया

“कुछ तो बोला होगा…” गुड्डी पीछे पड़ी थी।
“हाँ। रीत ने मुश्कुराकर जुर्म कबूल किया। वो बोला- “मुझे तुमसे एक चीज मांगनी है…”

अब गुड्डी उतावली हो गई- “बोल ना दिया तुमने की नहीं…”

रीत बिना सुने बोलती गई- “मैंने बोला मेरे पास तो जो था मैंने बहुत पहले तुम्हें दे दिया है। मेरा तो अब कुछ है नहीं। फिर हम दोनों बहुत देर तक चुपचाप, बिना बोले, हाथ पकड़कर बातें करते रहे…”

“बिना बोले बातें कैसे?” गुड्डी की कुछ समझ में नहीं आया।

“तू बड़ी हो जायेगी ना तो तेरे भी समझ में आ जायेंगी ये बातें…” हँसते हुए रीत बोली।

उसका घर आ गया था। बस एक बात उसे रोकते हुए गुड्डी बोली- “किस्सी ली उसने?”

एक जोर का और पड़ा गुड्डी की पीठ पे और रीत धड़धड़ाते हुए ऊपर चल दी। लेकिन दरवाजे से गुड्डी को देखते हुए मीठी निगाहों से, हल्के से हामी में सिर हिला दिया।

गुड्डी ने बोला की रीत ने बाद में बताया था। एक बहुत छोटी सी गाल पे। लेकिन वो पागल हो गई थी, दहक उठी थी। दिन सोने के तार से खींचते गए।

करन का आई॰एम॰ए॰ ( इंडियन मिलेट्री अकेडमी) देहरादून में एडमिशन हो गया। ये खबर भी उसने सबसे पहले रीत को दी और उसे स्टेशन छोड़ने उसके घर के के लोगों के साथ रीत भी गई और भी कालेज के बहुत से लोग, मुँहल्ले के भी।

गुड्डी ने हँसकर बोला- “जो काम पहले वो करती थी। डाक तार वालों ने सम्हाल लिया। और बाद में इंटर नेट वालों ने। मेसेज इधर-उधर पहुँचाने का। गुड्डी उसकी अकेली राजदां थी। लेकिन वो दिन कैसे गुजरते थे। वो या तो रीत जानती थी या दिन।

अहमद फराज साहब की शायरी का शौक तो करन ने लगा दिया और दुष्यंत कुमार उसने खुद पढ़ना शुरू कर दिया।


कविता समझने का सबसे आसन तरीका है इश्क करना, फिर कोई कुंजी टीका की जरूरत नहीं पड़ती।

जो वो गाती गुनगुनाती रहती थी। उसने करन को चिट्ठी में लिख दिया:




मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आयेंगे

इस बूढे पीपल की छाया में सुस्ताने आयेंगे

हौले-हौले पाँव हिलाओ जल सोया है छेडो मत

हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आयेंगे

मेले में भटके होते तो कोई घर पहुँचा जाता


हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आयेंगे।



जब वह करन को स्टेशन छोड़ने गई थी तो करन ने उसे धर्मवीर भारती की एक किताब लेकर दे दी थी और जब कोई विरह में हो तो संसार की सारी विरहणीयों का दुःख अपना लगने लगता है। वह बार-बार इन लाइनों को पढ़ती, कभी रोती, कभी मुश्कुराती-

कल तक जो जादू था, सूरज था, वेग था, तुम्हारे आश्लेष में


आज वह जूड़े से गिरे जुए बेले-सा टूटा है, म्लान है, दुगुना सुनसान है

बीते हुए उत्सव-सा, उठे हुए मेले सा मेरा यह जिस्म-

टूटे खँडहरों के उजाड़ अन्तःपुर में,

छूटा हुआ एक साबित मणिजटित दर्पण-सा-

आधी रात दंश भरा बाहुहीन

प्यासा सर्वीला कसाव एक, जिसे जकड़ लेता है

अपनी गुंजलक में

अब सिर्फ मैं हूँ, यह तन है, और याद है

मन्त्र-पढ़े बाण-से छूट गये तुम तो कनु,

शेष रही मैं केवल, काँपती प्रत्यंचा-सी।
Guddi ki yaha bhavnae masti chulbulapan aapki vo chhutki jesa laga. Par rit ki prit dill me utar gai. Mohe rangde vali jesi par kuchh alag mahol ki vedana.

Aapne ye foji vala seen kese socha komalji. Ye judai or ye becheni. Me bayan hi nahi kar sakti.
 
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Shetan

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तो रीत की प्रीत के ये पल आपके हवाले,

कैसे लगे जरूर बताइयेगा,... फ़िल्मी अंत्याक्षरी, पुराने गाने और फिर थोड़ा और बड़े होने पर कवितायें

लेकिन कैशोर्य की बातें अक्सर बिन बोले या ऐसे ही शायद कही जाती हैं

ढाई आखर प्रेम का

और ये ढाई आखर बड़े मुश्किल पड़ते हैं जिसने पढ़ लिया उसको भी और जो नहीं पढ़ पाया उसको भी।
Reet ki prit ne to pagal hi kar diya.
 
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