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Erotica रंग -प्रसंग,कोमल के संग

komaalrani

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भाग ६ -

चंदा भाभी, ---अनाड़ी बना खिलाड़ी

Phagun ke din chaar update posted

please read, like, enjoy and comment






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तेल मलते हुए भाभी बोली- “देवरजी ये असली सांडे का तेल है। अफ्रीकन। मुश्किल से मिलता है। इसका असर मैं देख चुकी हूँ। ये दुबई से लाये थे दो बोतल। केंचुए पे लगाओ तो सांप हो जाता है और तुम्हारा तो पहले से ही कड़ियल नाग है…”

मैं समझ गया की भाभी के ‘उनके’ की क्या हालत है?

चन्दा भाभी ने पूरी बोतल उठाई, और एक साथ पांच-छ बूँद सीधे मेरे लिंग के बेस पे डाल दिया और अपनी दो लम्बी उंगलियों से मालिश करने लगी।

जोश के मारे मेरी हालत खराब हो रही थी। मैंने कहा-

“भाभी करने दीजिये न। बहुत मन कर रहा है। और। कब तक असर रहेगा इस तेल का…”

भाभी बोली-

“अरे लाला थोड़ा तड़पो, वैसे भी मैंने बोला ना की अनाड़ी के साथ मैं खतरा नहीं लूंगी। बस थोड़ा देर रुको। हाँ इसका असर कम से कम पांच-छ: घंटे तो पूरा रहता है और रोज लगाओ तो परमानेंट असर भी होता है। मोटाई भी बढ़ती है और कड़ापन भी
 
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Shetan

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इंतजार



वो फिर मुद्दे पे आ गई- “तो इसका मतलब। छुट्टी का ऐसा कुछ नहीं है 14-15 दिन की मिल जायेगी ना…”

“हाँ कर लूंगा जुगाड़…” मैंने सिर हिलाया।

“और उसके बाद भी तो तुम बनारस में ही रहोगे ना। फिर क्या? तो तुम गाँव से डर गए या आम के बाग से…” हँसकर वो सारंग नयनी बोली।

फिर बिना मेरे जवाब के इंतजार के वो बोली- “तुम भी ना जाड़े की रात के इन्तजार में। नवम्बर में लगन आती है जाड़े में। पूरे 6 महीने का घाटा हो जाता तुमको। तुम भी ना। सच में बुद्धू राम हो…”

बात उसकी सही थी मैं क्या बोलता।

फिर वही बोली- “तुम जानते हो बिचारी तुम्हारी भाभी। कुछ सोचकर उन्होंने बोला होगा। कित्ता तुम्हारा ख्याल रखती हैं। वो…” बात तो गुड्डी की सोलहो आना सही थी। लेकिन अब तो तीर छूट चुका था। बिगड़ी बात बनाना अगर किसी को आता था तो वो गुड्डी को आता था। वो मेरे कंधे पे हाथ रखकर मुश्कुराकर बोली-

“अब हम जैसे ही लौटेंगे ना। मेरे साथ। तुम बोल देना की तुम्हारी छूट्टी की बात हो गई है। मिल जायेगी जून में आराम से छुट्टी और तुमको कोई ऐतराज नहीं है जून में। शादी से…”

गुड्डी से मैंने कहा- “लेकिन तुम भी चलना मेरे साथ जब भाभी से मैं ये कहूंगा। कुछ बात होगी तो तुम सम्हाल लेना। अकेले मैं मैं फिर कुछ गड़बड़ ना कर दूँ…”

“और क्या?” मुश्कुराते हुए वो सुमंगली बोली- “तुम्हारे भरोसे मैं इतनी इम्पार्टेंट चीज नहीं छोड़ने वाली। करा लिया ना था तुमने अपना 6 महीने का घाटा और गरमी के बाद सावन भी तो आता है। सावन सूना चला जाता ना…”

तब तक शीला भाभी आती दिख गईं और मैंने उन्हें छेड़ा- “क्यों भाभी कहीं पंडित जी से कुछ स्पेशल प्रसाद तो नहीं लेने लग गईं थी आप…”

“तुम्हारा ही काम करवा रही थी। कुंडली दी थी भाभी ने तुम्हारी मिलवाने के लिए। और सगुन…”

उनकी बात काटते मैं बोला- “मेरी कुंडली तो भाभी के पास थी लेकिन वो लड़की की…”

“तुम्हें आम खाने से मतलब है या…” अबकी गुड्डी ने बात काटी।

“आम और ये…” अब शीला भाभी चौंकी।

“अरे गरमी का सीजन आने दीजिये। कैसे नहीं खायेंगे। खायेंगे ये और खिलाऊँगी मैं। लेकिन कुंडली का क्या हुआ। मिली की नहीं…” गुड्डी उतावली हो रही थी।

“मिल गई बहुत अच्छी मिली। पंडित जी तो कह रहे थे की ये जोड़ी ऊपर से बनकर आई है। दुनियां में कोई ताकत नहीं जो रोक सके इन दोनों का मिलन। सोलह के सोलह गुण मिल गए हैं…”

शीला भाभी बहुत खुश हो रही थी। लेकिन जब तक हम दोनों कुछ बोलते एक खतरनाक बात बोल दी-

“लेकिन, लड़की के लिए एक मुसीबत है…” वो बड़ी सीरियसली बोली- “और पंडित जी ने बताया है की इसका कोई उपाय भी नहीं है…”

“मतलब?” मैं और गुड्डी साथ-साथ बोले।

“अरे इसका शुक्र बहुत ही उच्च स्थान का है। पंडित जी बोले की इतना ऊँचा शुक्र उन्होंने आज तक नहीं देखा…” वो बोली।

“मतलब?” हम दोनों फिर साथ-साथ बोले।

अब वो मुश्कुराई और मेरी और मुँह करके बोली- “मतलब ये की। तुम दुलहिन के ऊपर चढ़े रहोगे हरदम। ना दिन देखोगे ना रात। बिना नागा…”

मैं और शीला भाभी दोनों गुड्डी की और देखकर मुश्कुराए।

और गुड्डी बीर बहूटी हो गई। अब शीला भाभी फिर मेरी ओर मुखातिब हुई और बोली-

“लेकिन असली अच्छी खबर तुम्हारे लिए है। पंडित जी ने कहा है। लड़की रूप में अप्सरा है, भाग्य में लक्ष्मी है। जिस घर में उसका प्रवेश होगा उस घर की भाग्य लक्ष्मी उदित हो जायेगी। वहां किसी चीज की कमी नहीं रहेगी और सबसे बड़ी बात। भाग्य तो तुम्हारा वैसे ही बली है लेकिन जिस दिन से उसका साथ होगा। वह महाबली हो जाएगा, तुम्हारी सारी मन की बातें बिना मांगे पूरी होंगी, नौकरी, पोस्टिंग…”

गुड्डी ये सब बातें सुनके कभी खुश होती तो कभी ब्लश करती। फिर बात बदलते हुए मुझसे बोली- “इत्ती देर से तुम्हरा दो-दो मोबाइल लादे फिर रही हूँ लो…” और उसने अपना पर्स खोलकर मेरे मोबाइल मुझे पकड़ा दिये। पूजाकर समय, उसने मेरे मोबाइल लेकर साइलेंट पे करके अपने पर्स में रख लिए थे।

लेकिन शीला भाभी चालू थी- “एक बात और तोहार भाभी कहें थी की पंडित जी से पूछे की- “लेकिन ओहमें कुछ गड़बड़ निकल गया…”

अब मैं परेशान, गुड्डी के चेहरे पे भी हवाइयां। हम दोनों शीला भाभी की ओर देख रहे थे। और वो चुप। आखीरकार, मैंने पूछा- “क्या बात है भाभी बताइए ना…”

“अरे लगन की तारीख। एह साल 25 मई से 15 जून तक जबर्दस्त लगन है। लेकिन जाड़ा में शुक्र डूबे हैं। एह लिए अब ओकरे बाद अगले साल अप्रैल के बाद लगन शुर होई। और जून त तू मना कै दिहे हया। त लम्बा इन्तजार कराय के पड़े दुलहिन के लिए…”




इतना इंतजार तो खैर मुझसे नहीं होने वाला था। मैं और गुड्डी एक दूसरे की ओर देखकर मुश्कुराए। गुड्डी ने आँखों में मुझे बरज दिया की मैं अभी कुछ ना बोलूं। वो सीधे मुझे भाभी के पास ले जाती और मैं उन्हें बताता की मुझे छुट्टी गरमी में मिल जायेगी। मैं सिर्फ शीला भाभी की ओर देखकर मुश्कुरा दिया
Is kahani ko me guddi ki najariye se bahot jyada mahesus kar rahi hu. Guddi ki mashumiyat bhare pyare qute face ko. Or shadi jese vo gath bandhne se ho gai ho. Ek dusre ko laddu khilate wakt shararat ankho me dekhna. Fir pandit ji se ashirvad. Or is vale update me to jese vaivahik jivan shuru hi kar diya ho. Budhu kahika. Muje bahot maza aa raha he. Love it.

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Shetan

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दिन तारीख पक्की




अभी एक परेशानी बाकी थी भाभी से तो मैंने साफ़ मना कर दिया था की गर्मी में छुट्टी नहीं मिलेगी, ट्रेनिंग होती है और ट्रेनिंग में एक दिन की भी छुट्टी मिलनी मुश्किल , अब कैसे बात बदलूंगा की छुट्टी मिल गयी लेकिन और कौन हल करता परेशानी वही गुड्डी

उसी के साथ मैं भाभी के पास गया पर हिम्मत नहीं पड़ी तो वापस जा रहा था पर गुड्डी थी न साथ में
“क्या बात है?” भाभी ने मुझसे पूछा।

मैं हिचक रहा था की गुड्डी ही बोली- “इन्हें कुछ कहना है इसलिए…”

“तू बड़ी वकील बन गई है इसकी…” हँसकर आँख तरेरते, भाभी गुड्डी से बोली और मुझसे बोली- “हाँ बोलो ना, क्या कहना है?”



मैंने पहले थूक गटका, फिर सोचा कैसे शुरू करूँ और हिम्मत करके बोलने ही वाला था की भाभी ने ही रोक दिया और गुड्डी से पूछा- “शापिंग हो गई, मिल गई सब चीजें?”


“हाँ एकदम और इनकी पसंद की, जिससे बाद में ये नखड़ा ना करें…” गुड्डी मुझे देखते हुए मंद-मंद मुश्कुराकर बोली।


जब तक मैं सन्दर्भ प्रसंग समझता, भाभी मेरी ओर मुड़ी और बोली- “हाँ अब बोलो क्या कह रहे थे?”


“भाभी बस मेरी समझ में नहीं आ रहा है। कैसे बोलूं मुझसे बड़ी गलती हो गई…” हिचकिचाते हुए मैं बोला- “भाभी वो खाने के समय मैंने। आपने पूछा था ना की गर्मी में गाँव में। तो वही मैंने बोल दिया था ना। की की। छुट्टी नहीं मिल पाएगी तो…”


“अरे तो इसमें इतना परेशान होने की कौन सी बात है। छुट्टी नहीं मिलेगी गरमी में। तो जाड़े में कर लेंगे। और लड़की वालों से बात कर लेंगे की तुम्हें गाँव की शादी नहीं पसंद है। तो उन्हें दिक्कत तो बहुत होगी लेकिन करेंगे कुछ वो जुगाड़ शहर से शादी करने का। तुम मत परेशान हो…” और भाभी मुड़ गईं।

गुड्डी मुझे घूरे जा रही थी। और मेरे समझ में कुछ नहीं आ रहा था की क्या करूँ। फिर मैंने डी॰बी॰ का छुट्टी सैंक्शन वाला मेसेज खोलकर मोबाइल भाभी की ओर बढ़ा दिया।

उन्होंने उसको देखा, पढ़ा और फिर। मुझे लौटा दिया। “मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा है। तुम खुद साफ-साफ क्यों नहीं बता देते…” वो बोली।

“वो छुट्टी मेरी…” मैंने बोला फिर रुक गया।

“क्या हुआ छुट्टी नहीं मिली। तो कोई बात नहीं जाड़े में। तुमने मुझसे पहले भी कहा था की नवम्बर दिसम्बर…” भाभी आराम से बोली।

गुड्डी दांत पीस रही थी।

“नहीं नहीं वही मैं कह रहा था की जब अभी हम लोग गए थे तो मैंने अपने बास से बात की सब बात समझाई। तो वो गरमी में छुट्टी के लिए मान गए हैं…” मैं जल्दी-जल्दी बोला।

अब भाभी रुक के ध्यान से सुनते हुए बोली-

“ऐसे थोड़े ही। ये तो लगन पे होगा ना। और फिर दो-वार दिन की छुट्टी से काम नहीं चलेगा मैंने तुम्हें बता दिया था। तीन दिन की बरात, 4 दिन रसम रिवाज। कब से छुट्टी मिलेगी…”

'


“20 मई से…” मैंने बताया।

उन्हह कुछ सोचा उन्होंने, फिर बोली- “और कब तक?”

“28 दिन की पूरी। 18 जून तक की। असल में मेरी ट्रेनिंग बनारस में लग गई है। करीब छ सात महीने की। सत्रह मई से है उसे मैं बनारस में जवाइन कर लूँगा। बीस से छुट्टी ही है अगर आप कहेंगी, कोई बात होगी तो। सतरह को शुक्रवार है। तो अगले दो दिन तो वैसे भी। अगर आप कहेंगी तो मैं 20 से एक-दो दिन पहले भी आ जाऊँगा। तो इसलिए छुट्टी वाली परेशानी अब नहीं हैं…” अबकी मैं पूरी बात बोल-कर ही रुका।

भाभी ने कुछ सोचा फिर बोलीं मैंने शीला भाभी से कहा था की पंडित जी से पूछ लें की लगन कब है? कुछ पता लगाया उन्होने ? कुंडली भी दी थी की कुंडली देख के अच्छी लगन विचरवा लें।


“पचीस मई से पन्दरह जून तक उनको पंडित जी ने बताया था। और ये भी कहा था की पच्चीस की लगन बहुत अच्छी है। और फिर गाँव की बरात। जित्ता देर होगा कहीं बारिश वारिश। तो लड़की वालों को भी…”अबकी बिना देर किये जैसे जैसे शीला भाभी ने बताया था लगन के बारे में वैसे ही बता दिया और मिर्च मसाला अपनी ओर से जिससे पहली लगन को ही

मेरी बात काटकर भाभी मुश्कुराकर बोली-

“अच्छा अभी से लड़की वालों की तरफदारी चालू हो गई। वैसे बात तुम्हारी सही है। लेकिन एक बार मुझे उनसे बात करनी पड़ेगी ना। पर। फिर कुछ उन्हें याद आया। खुलकर मुश्कुराकर वो बोली-

“छुट्टी के साथ ये बात भी तो थी, गाँव में तीन दिन की बरात, वो भी आम के बाग में। तो उसमें तो कोई परेशानी नहीं है…”

गुड्डी मुझे देखकर खिस्स-खिस्स मुश्कुरा रही थी।


“नहीं नहीं भाभी ऐसा कुछ नहीं है। मुझे क्यों परेशानी होगी गाँव में बारात से। गाँव की शादी में तो और…” मैंने बात बनाने की कोशिश की।



“यही तो…” खिलखिलाते हुए मेरी नाक पकड़कर जोर से हिलाते हुए भाभी बोली-

“जबर्दस्त रगड़ाई होगी तुम्हारी। तुम्हारे भैया के साथ तो कुछ मुर्रुवत हो गई थी। लेकिन तेरे साथ नहीं होने वाली। डेढ़ दिन का कोहबर होता है हमारे गाँव में। और गालियां वालियां तो छोटी बात हैं। वहां तुमसे गालियां गवाई जायेगीं तुम्हारे मायके वालों के लिए। चलो खैर उसकी कोई चिंता नहीं। मुझे एक से एक आती है। तुम्हें सब सिखा दूंगी…” (सुना तो मैंने भी था इस कोहबर की शर्त के बारे में। शादी के बाद लड़के को लड़की वाले के घर में ही रोक लिया जाता है। और ससुराल की सभी औरतें सालियां। सास, सलहज, उसके पास रहती है और दुलहन भी। जब दुल्हन की विदाई होती है तब लड़का उसके साथ ही निकलता है। माना ये जाता है की इससे दुल्हा ससुराल में घुल मिल जाता है। आखीरकार, दुलहन तो जिंदगी भरकर लिए जाती है अपनी ससुराल। लेकिन मैंने ये भी सुना था की ये सब रस्म अब पुराने जमाने की बातें हो गई।)




मेरी नाक अभी भी भाभी के हाथ में थी और गुड्डी खिलखिला के हँस रही थी।

भाभी चिढ़ाते हुए बोली- “डर तो नहीं गए भैया। वरना अभी मैंने बात नहीं की है। फिर वही जाड़े वाली बात शहर की शादी की…”


उनकी बात काटकरके मैं तुरंत बोला-

“नहीं नहीं भाभी प्लीज। ऐसा कुछ नहीं है। आपकोई चेंज वेंज की बात मत करिएगा। मुझे कोई दिक्कत नहीं है गरमी की शादी और गाँव में। आखीरकार, हर जगह की अपनी रस्म रिवाज है। मैं रैगिंग समझ लूँगा। एक-दो दिन की क्या बात है?”

“जी नहीं…” भाभी ने तुरंत समझाया।

“उसकोहबर की रगड़ाई के सामने, बड़ी से बड़ी रैगिंग बच्चों का खेल है। और तुम्हारे साथ तुम्हारे मायके से कोई कजिन वजिन जो कुँवारी हो बस वही रह सकती है। और उसकी खूब रगड़ाई होगी खुलकर। बस यही है की मैं नहीं देख पाऊँगी…”

गुड्डी बड़ी देर से चुप थी, बोली- “अरे ऐसा कुछ नहीं है। वीडियो रिकार्डिंग करा लेंगे ना। कोई इनकी साली वाली ही कर देगी। फिर आप ही क्यों इनके सारे मायके वाले देखेंगे बड़ी स्क्रीन पर…”



भाभी ने खुशी से गुड्डी की पीठ थपथपाई और बोली ये हुई ना बात आज जब मैं लड़की वालों से बात करूँगी ना। तो ये भी बोल दूंगी। फिर मेरी और मुड़कर बोली-

“इसलिए मैं तुमसे कह रही थी ना की शादी के 6-7 दिन पहले आ जाओ। तो अपने घर की तो रसम जो होगी सो होगी। मैं तुम्हें तुम्हारे ससुराल के लिए भी ट्रेन कर दूंगी…”

मेरी सांस वापस आई। मुझे मालूम था की जाड़े में कोई लगन वगन है नहीं। अगली लगन अप्रैल यानी साल भर से ज्यादा का इन्तजार और अगर 25 मई वाली बात बन गई तो बस सवा दो महीने के बाद। एकदम। मैंने तुरंत भाभी की बात में हामी भरी।

“आप एकदम सही सोच रही थी। मैंने कहा ना मैं ही बेवकूफ हूँ। अगर 25 की बात पक्की होती है ना तो मैं 18 को ही आपके हवाले हो जाऊंगा। पूरे सात दिन। जो भी रसम हो ट्रेनिंग हो सब आँख कान मूंद कर…”


“एकदम…” अबकी भाभी ने मेरा कान पकड़ा। और 27 की रात को मैं तुम्हें अपनी देवरानी के हवाले कर दूंगी। उसके बाद पूरा कब्ज़ा उसका…”


मैंने सब कुछ मना डाला। चलिए मेरी बात रह गई।

लेकिन भाभी ने फिर एक सवाल दाग दिया- “हाँ और वो आम के बाग वाली बात। गाँव में बारात तो वही रुकती है और वैसे भी बहुत बड़ी बाग है वो डेढ़ दो सौ पेड़ होंगे कम से कम। खूब घने दशहरी, कलमी सब तरहकर। और उस समय तो लदा लद भरे होंगे। और तुम्हें तो इतना परहेज है और अगर कहीं तुम्हारी साली सलहज को मालूम पड़ गया तो। फिर तो…”

मैंने उनकी बात काटकर कहा- “भाभी चलेगा बल्की दौड़ेगा। अरे नेचुरल और आर्गेनिक का जमाना है। तो मुझे आम के बाग से भी ऐसा कुछ नहीं। फिर ससुराल में साली सलहज टांग तो खिचेंगी ही यही तो ससुराल का मजा है…”



भाभी और गुड्डी मेरे इस धाराप्रवाह बात को सुनकर, एक दूसरे को देखकर आँखों ही आँखों में मुश्कुरायीं और फिर बोली- “तूने इतनी सब बातें बोल दी मैं कन्फुज हो गई। एक बार में सब साफ-साफ समझा दो तो मैं अभी लड़की वालों से बात करके डेट फाइनल कर दूँ…”



मैं समझ गया था की भाभी मुझे रगड़ रही है वो मेरे से सब सुनना चाहती हैं। मुझे मंजूर था। मैंने सब बातें एक बार फिर से दिमाग में बिठाई और उन्हें पकड़कर बोल दिया- “भाभी मेरी अच्छी भाभी, मुझे गरमी की गाँव में शादी, और आम के बाग में बारात सब मंजूर है। सौ बार मंजूर है। मुझे मई जून में पूरे अट्ठाईस दिन की छुट्टी मिल गई है, बीस मई से और अगर आप पच्चीस मई की शादी तय करती हैं तो मैं अट्ठारह को ही आपके पास आ जाऊँगा। तो बस अब आप इसी गरमी में फाइनल कर दीजिये ना। और बेस्ट होगा पच्चीस मई को…”

भाभी मुश्कुरायीं और गुड्डी से बोली।


“देखा ये आदमी अभी दो घंटे पहले क्या बोल रहा था, ये नहीं वो नहीं छुट्टी नहीं। और अभी। दुल्हन पाने के लिए आदमी कुछ भी करने को तैयार रहता है…”

गुड्डी ने खिलखिला कर जवाब दिया।


भाभी ने खुशी से मुझे बांहों में भर लिया। और बोली- “

मैं आज ही सब पक्का कर दूंगी और तुम मेरी सारी बातें मान गए तो चलो एक बात तुम्हारे लिए…” फिर गुड्डी की ओर मुड़कर बोली-

“हे तुम मत सुनना। उधर मुँह करो। कुछ सुना क्या?”

“नहीं आप कुछ बोल रही थी क्या? मुझे तो कुछ भी नहीं सुनाई दे रहा…” गुड्डी भी उसी अंदाज में बोली।


भाभी ने मेरे कान में कहा, लेकिन पूरे जोर से- “चल तेरा फायदा करवा देती हूँ। रोज रात में ठीक नौ बजे मेरी देवरानी तुम्हारे हवाले, पूरे बारह घंटे के लिए। बाहर से ताला बंद करके चाभी मैं अपने पास रखूंगी जिससे मेरी कोई छिनाल ननद आकर तंग ना करे। और अगर तुमने मेरी सब बातें अच्छी तरह मानी। और उसे ज्यादा तंग नहीं किया ना…”

“ज्यादा तंग मतलब भाभी…” मैंने पूछा और गुड्डी की ओर देखा।


वो मुश्कुरा रही थी और कान फाड़े सुन रही थी।

“अरे ज्यादा मतलब। तीन-चार बार से ज्यादा। अब नई दुलहन है और वो भी इत्ती प्यारी तो, तीन-चार बार तो बनता है।

“हाँ और जैसा मैं कह रही थी की तुम मेरी बात मानोगे तो। दिन में भी दो-तीन घंटे के लिए छोड़ दूंगी अपनी देवरानी को, बाकी समय दूर-दूर से ललचाना…”

फिर भाभी ने मुश्कुराकर गुड्डी से पूछा- “हे तूने तो कुछ नहीं सुना…” और बड़े भोलेपन से गुड्डी ने अपनी बड़ी-बड़ी आँखें नचाते हुए कहा- “आपने कुछ कहा था क्या? मैंने तो कुछ नहीं सुना…”


“ठीक किया। "

और फिर वो मुझसे बोली- “तुम भी चलो। तुमने मेरे लिए बहुत काम बढ़ा दिया है। आज ही मुझे सब फाइनल करना है। पहले पंडित जी से बात करके। तुम कौन सी डेट बोल रहे थे। पच्चीस मई ना। हाँ तो पहले पंडित जी से तय करके फिर लड़की वालों से बात करनी होगी। और एक बार उन्होंने हाँ कर दी तो बाकी इंतजाम…” और भाभी ने अपनी फोन नम्बर की डायरी उठायी। ये हम दोनों के लिए इंडिकेशन था की अब हम चलें। बाहर निकलते ही मैंने और गुड्डी ने जोर से “हाई फाईव” किया। एक बार नहीं तीन बार। और उसके बाद मैंने कसकर गुड्डी को बाहों में भींच लिया।

मेरा एक हाथ कसकर उसके नितम्ब को दबोचे था और दूसरा, पीठ पर। और पुच पुच पुच। पांच बार मैंने उसकी किस्सी ले ली खूब जोर-जोर से। और हम लोग सीढ़ी से नीचे उतरने लगे। लेकिन रास्ते में ही उसे मैंने फिर रोक लिया। और बाहों में दबोच कर। बोला- “हे तुझसे एक बात कहनी है…”

“बोल ना…” मुझे अपनी बांहों में भींचती वो बोली।

और अबकी जो मैंने चूमना शुरू किया तो गिना नहीं। और साथ में बोलता गया- “तुम बहुत अच्छी हो सबसे अच्छी। तुम बहुत अच्छी हो। आई लव यू। आई लव यू…”

कुछ देर बाद मुश्कुराकर वो बोली- “चलो चालीस बार हो गया। बाकी रात में और हम लोगों ने आलिंगन छोड़ दिया लेकिन फिर मैं बोला- “तुम ना होती न तो मैं इत्ता कन्फुज हो रहा था झिझक भी लग रही थी की भाभी से कैसे बोलूं?”

“तभी तो मैं थी वहां मेरे प्यारे बुद्धू…” गुड्डी ने नाक पकड़ कर कहा और बोली- “मुझे लग रहा था। और आज तुम गड़बड़ कर देते न तो सम्हालना बहुत मुश्किल होता…”

“और अब तो तुम हरदम मेरे पास जाड़ा, गर्मी बरसात, रहोगी एकदम पास…” और ये कहकर मैंने उसे फिर से बाहों में पकड़ने की कोशिश की।




लेकिन वो मछली की तरह फिसल कर अगली सीढ़ी पर चली गई और अपनी कजरारी आँखें नचाते, हाथों में परांदा घुमाते बोली- “हिम्मत है तुम्हारी दूर होने की। लेकिन अभी ज्यादा इमोशनल मत होओं।
Dill me esi ajib si tarange peda karne vala seen ab to bas jogan ban jau lajate sharamate. Amezing preet. Maza aa raha he.

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Shetan

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होलिका दहन और शीला भाभी



ये फागुन सच में मेरे लिए खास था और उससे भी ख़ास था आज का दिन. आज दोपहर में मैंने हिम्मत कर के गुड्डी के बारे में अपने मन की बात खाने के पहले शीला भाभी से कही, उन्होंने भाभी से बात की और खाने के बाद भाभी ने गुड्डी की मम्मी से बात कर के फैसला भी कर लिया, मुझे बता भी दिया , और फिर मंदिर कुंडली, छुट्टी और दिन तारीख पक्की,... थोड़ी देर में ही होलिका दहन होने वाला था।

तक भाभी की आवाज आई। अरे एक घंटे के बाद होलिका जलने का समय हो जाएगा सबको उबटन लगाया की नहीं?

(हमारे यहाँ परंपरा है की होलिका दहन में उबटन या बुकवा लगाकर, जो निकलता है शरीर से, वो होलिका में जलाने वाली बाकी सामग्री के साथ जाता है, इसमें परिवार के सभी लोगों का और मान्यता ये है की इसके साथ जो भी पिछले वर्ष का मैल है, मलिन है तन का मन का सब होलिका के साथ जल जाता है। ज्यादातर लोग अब उबटन लगवाना नहीं चाहते। इसलिए बस पैर की उंगलियों में लगाकर इति श्री कर ली जाती है)

शीला भाभी ने भाभी से बोला की बस मैं बचा हूँ। क्योंकि मैं कुछ काम कर रहा था। कंप्यूटर पे। भाभी ने शीला भाभी को ललकारा। अरे वो अपना काम करता, आप अपना काम करती। इतना काफी था। भाभी एक बड़े से कटोरे में उबटन लेकर आ धमकी और जमीन पे एक चटाई बिछा दी- “बोली आ जाओ…”

भाभी अभी भी बाहर से पलीता लगा रही थी, " सभी पैरों में लगाइयेगा।"



जब तक मैं कहूँ। भाभी सिर्फ उंगली पे ही लगाइयेगा। उन्होंने पूरा हथेली भर लेकर सीधे घुटने पर और वहां से नीचे तक लगाना शुरू कर दिया।

“अरे भाभी आपने तो पूरा ही…”

जब मेरी बात काटकर खिलखिलाते, हुए उन्होंने बोला तो मैं उन्हें सुनता और देखता दोनों रह गया। शीला भाभी ने अपना आँचल कमर में लपेट लिया था, इसलिए अब बिना किसी रोक टोक के, उनके 36डीडी साइज के गुदाज, गदराये जोबन, चोली कट ब्लाउज़ से बाहर झाँक रहे थे, बल्की निकलने को उतावले हो रहे थे। दोनों उभारों के बीच का क्लीवेज तो पूरा दिख ही रहा था। आलमोस्ट निप्स तक उभार भी दिख रहे थे और यही नहीं उबटन लगाने के लिए वो जिस तरह मेरे पैरों पे झुकी, थी दोनों जोबन और छलक कर बाहर आ रहे थे। साथ ही उन्होंने अपनी साड़ी भी उबटन लगने से खराब ना हो, इसलिए अपने घुटनों के ऊपर कर ली थी। उनकी गोरी, सख्त, कसी-कसी मांसल पिंडलियां भी साफ दिख रही थी और कभी वो ज्यादा झुकती तो, चिकनी रसीली। गुदाज जांघें भी उपर तक।

और ये देखकर वही हुआ जो होना था। मैंने तो किसी तरह अपने ऊपर कंट्रोल रखा। लेकिन जंगबहादुर बौरा गए। पूरे 90 डिग्री और ऊपर से शीला भाभी की बातें और उंगलियों का जादू। खिलखिलाते हुए वो बोली-


“लाला एतने दिन से तोहैं, समझा रही हूँ की आधा तीहा में ना तो लड़की को मजा आता है और ना तुमको आयेगा। एह्लिये। तुम चाहे जो बोलो मैं तो पूरै लगाऊँगी…”

फिर मुझे याद आया की शीला भाभी ने मेरा इतना बड़ा काम किया और मैंने इनसे एक बार भी थैंक्स नहीं किया। अगर वो भाभी से गुड्डी के बारे में नहीं बोलती। मेरी तो जुबान खुलती नहीं और भाभी कहीं इधर-उधर रिश्ता तय कर देती तो कितनी मुश्किल होती। फिर उन्होंने सिर्फ भाभी से सिफारिश ही नहीं की। बल्की भाभी का इशारा मिलते ही हम दोनों लोगों को मंदिर ले गईं। कुंडली मिलवा दी और लगन भी निकलवा दी। मैंने जैसे ही उनसे रिक्वेस्ट की दो घंटे के अन्दर सब कुछ पक्का।

मैंने भी भाभी के अंदाज में बोला- “भाभी, आप बोलें और गलत। इ कैसे हो सकता है। फिर एह टाइम तो आप ऊपर हैं और हम नीचे। आप लगा रही हैं और हम लगवा रहे हैं। ता आधे जाएगा की पूरा इ तो आप ही तय करियेगा…”

शीला भाभी अबकी पूरा खुलकर हँसी और मुझे छेड़ कर बोली- “लाला, तुम समझते ता हो लेकिन इतनी देर से। लेकिन मैं तो पूरा ही लगाऊँगी और जहाँ मर्जी वहां लगाऊँगी। आगे भी और पीछे भी अब चाहे तुम सीधे से लगवा लो, चाहे जबरदस्ती…”

मैं फिर बोला- “भाभी, आज आप हमारा बहुत बड़ा काम करा दी। आप नहीं मदद करती तो बहुत मुश्किल था, गुड्डी से। अब हम ता मारे लिहाज के भाभी से बोलते नहीं और उ कहीं और अगर रिश्ते की बात कर लेती त केतना मुश्किल हो जाता। लेकिन इ सब आप का कमाल है…”


शीला भाभी तो खुशी से फूलकर बोली- “अरे लाला, देवर के काम अगर भौजाई नहीं आएगी तो कौन आएगा। और खासकर एह तरहकर काम में और हम तो बोले उनसे की आप देवरानी, देवरानी करती हैं, गोद में छोरा नगर ढिंढोरा। अरे देवर के आपके पसंद है, घर गाँव की लड़की है। देखी सुनी। सुन्दर, हर चीज में निपुण। बस पक्का कर लीजिये। मैं खुद जाकर मंदिर से कुंडली, लगन की साइत सब पूछ के आऊँगी। फिर आप लड़की के माँ बाप से बात कर लीजिये। अउर असली कमाल ता देवरजी तू कहीं की बिना हिचके सब बात पहलवें मान गए। गरमी क बियाह, उहो गाँव में। तीन दिन क बरात, उहो आम के बाग में…”



फिर दूसरे पैर पे उबटन लगाने लगी।

मैंने हँसकर कहा- “भाभी। उ छोरी के लिए मैं गाँव क्या पताल में जाने को तैयार था। नाक रगड़ने को तैयार था।

शीला भाभी बोली- “अरे कोहबर में देखना नाक क्या, बहुत चीज तुमसे रगड़वाऊँगी। लेकिन छोरी तुम बहुत अच्छी चुने है और साथ में बोनस…”

“बोनस मतलब भाभी…”
शीला भाभी की उंगलियां। अब गुरिल्ला सिपाहियों की तरह मेरे शार्ट के अन्दर भी उबटन लगाते घुस जा रही थी। और मेरे बाल्स को अबकी उसने स्क्रैच कर दिया और वो हँसकर बोली-

“अरे लाला दो दो सालियां भी तो हैं तुम्हारी…”

“अरे भाभी, मैंने बहुत बुरा सा मुँह बनाया- “कहाँ। अभी बहुत छोटी हैं इससे तीन साल छोटी…”

“यहीं तो तुम गड़बड़ा जाते हो। अरे साल्ली साल्ली होती है। चाहे छोटी हो चाहे बड़ी। एक बात गाँठ बांध लो लड़कियां, लड़कों से जल्दी जवान होती हैं। फिर छोटी हो तब भी। रिश्ते के नाते खुलकर मजाक वजाक शुरू कर देना। अपने हाथ से दबा दबाकर नीम्बू से नारंगी तो बना सकते हो। फिर कभी पकड़ा देना। लेकिन तुम शर्माते बहुत हो। देखना। जिसको तुम छोटी कह रहे हो ना, उससे तुम्हारी क्या दुर्गत करवाती हूँ कोहबर में। साली है। उसी से गाली दिल्वाऊँगी। भूल गए उस दिन खाने पे गुड्डी की गाली और गाँव में जो तुम्हारी सालियां सुनाएंगी ना। चौगुनी मिर्च होगी उसमें…”


शीला भाभी बुकवा लगाते बोलीं

भाभी की बात में तो दम था लेकिन- “लेकिन भाभी…” मैंने बोला। “अरे लेकन वेकिन कुछ नहीं…” भाभी ने समझाया।

“अरे छुटकियों के सामने। जो बड़ी वाली हैं। तुम्हारी चचेरी, ममेरी, मौसेरी सालियां। उनके साथ खुलके खेलो, मजे लो, गोद में बैठा के दबाओ, चुम्मा लो मजे लो। बस देख देखकर छुटकियों के भी मिर्ची लगेगी और तुम उन सबों को बख्स भी दो। वो तुम्हें नहीं छोड़ने वाली…”




ये बात तो भाभी की सोलहो आना सही थी। गुड्डी ने खुद मुझे कसम दिला दी थी की जो उसकी ममेरी, मौसेरी बहनें हैं, सबके साथ और कभी उन सबने मजाक में शर्त लगा ली थी। वो सब हम उमर थी, एक-दो साल छोटी बड़ी बहनें कम सहेलिया ज्यादा। शर्त ये थी की जिसकी शादी पहले होगी। उसके हसबैंड के साथ वो सब। अब चांस की बात ये थी की गुड्डी की शादी सबसे पहले हो रही थी और जैसे ही मेरी उन होने वाली सालियों को पता चलेगा। गुड्डी के लिए मुसीबत।

“अच्छा ये बताओ। गुड्डी का पेट कब फुलाओगे। पुराना जमाना होता तो जेठ में बियाह होता, तो फागुन लगते लगते। घर में केंहाँ-केंहाँ। शादी के दो महीने के अन्दर अगर दुलहिन को उल्टी न शुरू हो तो रोज दस बात सास सुनाएगी। लेकिन कितना दिन दो साल- तीन साल?”


भाभी ने पूछ लिया।

बात तो भाभी की सही थी। मैंने गुड्डी से पूछा भी नहीं था। लेकिन जो मैं सोचता था तो मैंने बोल दिया- “भाभी। कम से कम तीन साल बाद…”

अब भाभी ने अपना गणित दिखाया जो एकदम सही था- “तीन साल ना। ता एक बात सुन लो। आखिरी तीन-चार महीने कौन काम देखेगा घर का और उसके बाद भी एक-दो महीने तो कौन काम देखेगा। तुम्हारी कोई छोटी बहन तो है नहीं। तुम्हारी सास अपने घर और बच्चों को छोड़कर तो आ नहीं सकती इतने दिन के लिए। तो कौन आएगा?” शीला भाभी ने फिर पूछा।

अब इतना दूर तक तो मैंने सोचा नहीं कभी। फिर भी दिमाग लगाकर बोला- “और कौन आएगा। उसकी छोटी बहन को ही बुलायेगे। मौसी बनेगी तो कुछ मेहनत तो करनी होगी और जहाँ तक उसकी पढ़ायी का सवाल है। तो उसका एडमिशन तो मैं करा ही सकता हूँ…” मैंने बोला।

“सही सोचा तुमने, छोटी बहन साथ रहेगी तो गुड्डी का भी मन बहला रहेगा और तुम उसके उपर सब जिम्मेदारी भी सौंप सकते हो और अगर उसका एडमिशन करा दोगे, फिर तो उसे लौटने की भी कोई चिंता नहीं रहेगी। लेकिन एक बात तुम्हें मैं साफ-साफ बता दूँ। केतनो पढाई किये हो इ ना मालूम होगा तुमको की आखिरी चार महीना। डाक्टर, मिड वाइफ तुमको पास फटकने भी नहीं देगी और बच्चा होवे के भी दो महीने के बाद तक यानी छ: महीना…”

और अब भाभी की उंगलियां जाँघों पे उबटन लगाते-लगाते सीधे शार्ट में घुस गईं और उन्होंने मुट्ठी में जंगबहादुर को पकड़ लिया और ऊपर-नीचे करते पूछने लगी-

“तो लाला। छ: महीना इसका क्या करोगे। और एक बार इसको रोज हलवा पूड़ी की आदत लग जाय ता इतना लम्बा व्रत, फिर क्या करोगे। साधू सन्यासी तो बन नहीं सकते, और अगर कहीं बाहर इधर-उधर मुँह मारा। तो पकड़े गए तो बदनामी और उसके अलावा भी तरह-तरह की मुसीबत। अच्छा छोड़ो। तुम का कह रहे थे की तुम्हरी साली, गुड्डी से केतना छोट है?”



“तीन साल…” मैंने जवाब दिया।

“अभी हम लोग केतना दिन आगे की बात कर रहे हैं। जब गुड्डी पेट से। और डिलीवरी के पहले तोहें आपन साली के बुलावे के प्लान हौ…”

भाभी किसी वकील की तरह सवाल कर रही थी थी। और मुझे जवाब देना ही था- “तीन साल के आसपास, भाभी…” अब मैं पकड़ा गया।


“हूँ। वो बोली। त मतलब ओह्ह… समय का उमर होगा उसका। उहै ना जो आज गुड्डी का है। त अब दो महीने में तुम्हारा जब लगन हो जाएगा। तो दिन रात कब्बडी होगी, बिना नागा, और होनी भी चाहिए। इस उमर में मजा ना लोगे तो कब लोगे। ता अब सोच लो की आधा साल का उपवास करना है की साली के साथ मजा लेना है…” एक बार फिर कसकर जंगबहादुर को दबाते हुए उन्होंने पूछा।

जंगबहादुर, पूरी तरह तने, जोश में थे और मैंने बिना हिचकिचाए जवाब दे दिया- “भाभी साली के साथ मजा लेना है…”



“यही बात तो मैं भी कह रही थी…” वो बोली।

“और इसके लिए अबहीं से जरा उससे खुलकर मजाक करना, गोदी में बैठाना, गाल पे हाथ फेरना थोड़ा बहुत मींजना। अरे मर्द का हाथ पड़ने से जुबना पे उभार बहुत जल्द आता है। यही तो बोनस का फायदा है…” और ये ज्ञान देने के साथ ही भाभी ने दोनों हाथों से पकड़ कर मेरी शार्ट नीचे खींच दी। और जंगबहादुर आजाद होकर कुतुबमीनार की तरह बाहर हो गए। और साथ ही शीला भाभी ने कटोरे का सारा बचा खुचा उबटन अपनी दोनों हथेलियों में लेकर। मेरे खड़े लिंग पे लगाना शुरू कर दिया।

“अरे भाभी इ का। इहाँ थोड़ी। अरे छोडिये ना…” मैंने जोर लगाया लेकिन शीला भाभी की पकड़ से छूटना आसान है क्या?

ऊपर से वो बोली- “एतना तो गौने का दुलहिन ना शर्मात। लौंडियों को भी मात कर दिए हो लाला, लजाने में। तोहार तो कोहबर में रगड़ाई बहुत जरूरी है। अरे इ जब होलिका में जाई ता होलिका माई आशीर्वाद दिहें की नए संवत में खूब नई-नई, कसी-कसी कच्ची चूत मिलेगी…”


“अरे भाभी। जो आप की मदद से एक मिल रही है मई में वो बहुत है…” मुश्कुराते हुए मैंने कहा।

दोनों से हाथों से लिंग पे उबटन, मथानी की तरह रगड़ते हुए वो बोली- “अरे उ त परमानेंट है और साथ में साली, सलहज, सावन में आओगे न ससुरारी, गावं में…” वो बोली

“हाँ गुड्डी कह रही थी उनके यहाँ कोई रसम होती है। लड़की शादी के बाद अपना पहला सावन गाँव में, मायके में मनाती है। फिर लड़का आकर लेता है। कोई पूजा होती है वो दूल्हा-दुलहन साथ-साथ करते हैं। इसलिए मुझे भी एक हफ्ते के लिए आना होगा…” मैंने कबूल किया।

“तब दिलाऊँगी मैं तुम्हें गाँव का मजा। आखीरकार, गाँव के दामाद हो। गन्ने के खेत और अमराई का मजा। डबलबेड भूल जाओगे। सारी लड़कियां तो तुम्हारी सालियां लगेंगी और उनकी भौजाई सलहज। कली का भी मजा लेना। और खेली खायी का भी…” वो बोली।

और तब तक उबटन का काम हो गया और मैंने शार्ट ठीक किया। जो लगाने के बाद गिरा था वो उन्होंने एक कागज में इकठ्ठा किया और निकल गईं। (यही होलिका में ड़ाला जाता था, बाकी और सामान के साथ।)

तब तक बाहर से गुड्डी की आवाज सुनाई पड़ी।
In sabdo ko aap se koi chura nahi sakta. Ye andaz abhi tak aap ke siva kisi aur ke pas nahi. Me bhi bas aap ke pero ke nishan par chal rahi hu. Me kabhi Komal rani to nahi ban sakti is lie request he ki ye skript romance muje apni kahani me utarne ki ijajat de. Me guddi ke najariye se apni kahani me apne andaz me likhungi.
 

komaalrani

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Bahot sundar. Ye kahani mere dill ko mohe rang de ki tarah hi chhu rahi he. Me use guddi ke najariye se jyada mahesus kar rahi hu.

Meri request he ki is skript me apni agli aa chuki kahani To me ritsa pakka samzu ke andar istmal karna chahti hu. Guddi ke najriye se. Mandir vala seen.

mene bhi aap ke tang me rang kar ye kahani romantic roop me likhi. Jise me aage badha rahi hu. Par is seen ko aap se mangna chahti hu?????
Ekdam ye to mere liye izzat ki baat hogi aur fir dosto men kuch baanta hota hai, mujhe laga rha tha ye aapko acccha lagega isliye maine yahan post kiya,.... aapko accha laga i am so happy🙏🙏🙏🙏🙏🙏
 

Shetan

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Ekdam ye to mere liye izzat ki baat hogi aur fir dosto men kuch baanta hota hai, mujhe laga rha tha ye aapko acccha lagega isliye maine yahan post kiya,.... aapko accha laga i am so happy🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Me ye pura kissa padhkar ekdam gad gad ho gai. Khas kar vo Mandir vala seen to ekdam jabardast tha. Love it.
 

komaalrani

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Will try to share one more romantic episode of Phagun ke din chaar soon,

Karan Reet


वो दोनों लान में थे और पीछे-पीछे गुड्डी। करन ने अपने लान में कुछ पीले गुलाब के पौधे खुद अपने हाथ से लगाये थे। जिसे वो किसी को छूने भी नहीं देता था। उसने एक टटका खिला पीला गुलाब रीत की चोटी में टांक दिया। लेकिन करन के हाथ में, एक काँटा चुभ गया और खून की एक बूँद छलछला उठी। बिना देर किये रीत ने वो उंगली अपने मुँह में लेकर खून चूस लिया। और अपना रुमाल निकालकर बाँध दिया। करन ने रुमाल देखा, उसके कोने में ‘के’ काढ़ा हुआ था।

गुड्डी बोली, रीत घर आई लेकिन अपना बहुत कुछ छोड़ आई। घर पहुँचकर गुड्डी ने फिर रीत को छेड़ा। क्यों रीत दीदी, हो गया।


रीत की आँखें मुश्कुरायीं, लजाई। फिर उसने गुड्डी के पीठ पे जोर का धौल मारा और बोली- जब तेरा होगा ना तो बताऊँगी।

गुड्डी भी अपनी शरारती आँखें नचा कर बोली- “वाह चोरी किसी ने की आपके दिल की और मार मुझे पड़ रही है। रीत ने प्यार से गुड्डी को जोर से भींच लिया और बोली- “पिटेगी तो तू कसकर। अगर किसी को कुछ भी।


“क्या दीदी? मैंने तो ना कुछ देखा ना सुना…” और दौड़ती हुई अपने घर चली गई।



रीत बार-बार चोटी झुलाती हुई, उसमें लगे पीले गुलाब के देखती। उसकी एक पंखुड़ी में खून की एक बूँद लग गई थी। रीत ने उसे वहीं चूम लिया। और फिर बाहर खिले पीले चाँद को देखती रही और चाँद को देखकर फिर उसने चोटी में लगे पीले गुलाब को देखा। उसे लगा जैसे करन ने आसमान से पीला चाँद तोड़कर उसकी चोटी में लगा दिया हो। वो वैसे ही शीशे के सामने गई और चोटी नचा कर उसने अपने उभारों पर रख दिया। और अपने को निहारती रही।


अब उसे लगा वो में सच में बड़ी हो गई। फिर सम्हाल कर उसने गुलाब निकालकर वास में लगा दिया। अगले दिन रीत चोटी में वो गुलाब लगाकर स्कूल गई। बहुत छेड़ा सहेलियों ने उसे। और उसका नाम पीला गुलाब पड़ गया।

लौटते हुए गुड्डी ने पूछा- बात कुछ आगे बढ़ी। तो रीत ने जोर का धौल जमा दिया और बोली- “सबसे पहले तुझे मालूम पड़ेगा मेरी नानी। ये वो जमाना था जब अभी फेसबुक और चैटिंग बनारस ऐसे शहरों में नहीं पहुँची थी। लेकिन दिल थे और उनमें बातचीत भी होती थी।

तो जैसा गुलजार साहेब ने कहा है-

जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल

और महके हुए रुक्के

किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे।

रीत को अपनी जिंदगी का पहला प्रेमपत्र। तीन दिन बाद मिला।

सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं।


लाने वाली वही गुड्डी। गुड्डी ट्यूशन से लौट रही थी की करन अपने घर के बाहर मिला और गुड्डी को मैथ्स की किताब देकर बोला, ये लेजाकर अपनी दी को देना। लेकिन जब सिर्फ वही हों।

गुड्डी को रीत से कम खुशी नहीं हो रही थी वो धड़धड़ाते हुए ऊपर रीत के कमरे में पहुँच गई। रीत किसी टेस्ट की तैयारी कर रही थी। और आज गुड्डी ने उसे खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और बोली- “मेरी ट्रीट। रीत ने उसे और जोर से भींच लिया और बोली- “कुछ है क्या?

गुड्डी धम्म से कुर्सी पे बैठ गई और बोली- “नहीं क्यों कुछ आना था क्या। फिर अपने बैग से उसने जो किताब करन ने दी थी वो निकाली। रीत ने छीनने की कोशिश की। तो गुड्डी ने हाथ ऊपर कर लिए। और बोली पहले ट्रीट।
.....


मुझे लगता है की रोमांस लिखना इतना आसान नहीं है कम से कम मेरे लिए,

वो कैशोर्य की अनभूति लाना, उस शिद्द्त से दिल की धड़कन को महसूस करना,... और फिर शब्दों में ढालकर पढ़नेवालों तक पहुंचाना

और सबसे बढ़कर पढ़ने वाले भी उसी भावना से,... ये न हो की वो एडल्ट फोरम में हैं तो उनकी अपेक्षा भी वही हो, शायद किसी और जगह वो कहानी उन्हें अलग ढंग से प्रभावित करती


लेकिन सबसे कठिन होता है शब्दों का और भावों का अनुशासन,

लेकिन करन और रीत का यह किस्सा, कम से कम मुझे बहुत भाता है जैसे मोहे रंग दे के शुरू के प्रंसग या लला फिर अइयो खेलन होरी का अंतिम हिस्सा,...


 

Shetan

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Karan Reet



वो दोनों लान में थे और पीछे-पीछे गुड्डी। करन ने अपने लान में कुछ पीले गुलाब के पौधे खुद अपने हाथ से लगाये थे। जिसे वो किसी को छूने भी नहीं देता था। उसने एक टटका खिला पीला गुलाब रीत की चोटी में टांक दिया। लेकिन करन के हाथ में, एक काँटा चुभ गया और खून की एक बूँद छलछला उठी। बिना देर किये रीत ने वो उंगली अपने मुँह में लेकर खून चूस लिया। और अपना रुमाल निकालकर बाँध दिया। करन ने रुमाल देखा, उसके कोने में ‘के’ काढ़ा हुआ था।

गुड्डी बोली, रीत घर आई लेकिन अपना बहुत कुछ छोड़ आई। घर पहुँचकर गुड्डी ने फिर रीत को छेड़ा। क्यों रीत दीदी, हो गया।


रीत की आँखें मुश्कुरायीं, लजाई। फिर उसने गुड्डी के पीठ पे जोर का धौल मारा और बोली- जब तेरा होगा ना तो बताऊँगी।

गुड्डी भी अपनी शरारती आँखें नचा कर बोली- “वाह चोरी किसी ने की आपके दिल की और मार मुझे पड़ रही है। रीत ने प्यार से गुड्डी को जोर से भींच लिया और बोली- “पिटेगी तो तू कसकर। अगर किसी को कुछ भी।


“क्या दीदी? मैंने तो ना कुछ देखा ना सुना…” और दौड़ती हुई अपने घर चली गई।



रीत बार-बार चोटी झुलाती हुई, उसमें लगे पीले गुलाब के देखती। उसकी एक पंखुड़ी में खून की एक बूँद लग गई थी। रीत ने उसे वहीं चूम लिया। और फिर बाहर खिले पीले चाँद को देखती रही और चाँद को देखकर फिर उसने चोटी में लगे पीले गुलाब को देखा। उसे लगा जैसे करन ने आसमान से पीला चाँद तोड़कर उसकी चोटी में लगा दिया हो। वो वैसे ही शीशे के सामने गई और चोटी नचा कर उसने अपने उभारों पर रख दिया। और अपने को निहारती रही।


अब उसे लगा वो में सच में बड़ी हो गई। फिर सम्हाल कर उसने गुलाब निकालकर वास में लगा दिया। अगले दिन रीत चोटी में वो गुलाब लगाकर स्कूल गई। बहुत छेड़ा सहेलियों ने उसे। और उसका नाम पीला गुलाब पड़ गया।

लौटते हुए गुड्डी ने पूछा- बात कुछ आगे बढ़ी। तो रीत ने जोर का धौल जमा दिया और बोली- “सबसे पहले तुझे मालूम पड़ेगा मेरी नानी। ये वो जमाना था जब अभी फेसबुक और चैटिंग बनारस ऐसे शहरों में नहीं पहुँची थी। लेकिन दिल थे और उनमें बातचीत भी होती थी।

तो जैसा गुलजार साहेब ने कहा है-

जो किताबों में मिला करते थे सूखे फूल

और महके हुए रुक्के

किताबें मँगाने, गिरने उठाने के बहाने रिश्ते बनते थे।

रीत को अपनी जिंदगी का पहला प्रेमपत्र। तीन दिन बाद मिला।

सुना है दिन को उसे तितलियां सताती हैं

सुना है रात को जुगनू ठहर के देखते हैं।


लाने वाली वही गुड्डी। गुड्डी ट्यूशन से लौट रही थी की करन अपने घर के बाहर मिला और गुड्डी को मैथ्स की किताब देकर बोला, ये लेजाकर अपनी दी को देना। लेकिन जब सिर्फ वही हों।

गुड्डी को रीत से कम खुशी नहीं हो रही थी वो धड़धड़ाते हुए ऊपर रीत के कमरे में पहुँच गई। रीत किसी टेस्ट की तैयारी कर रही थी। और आज गुड्डी ने उसे खींचकर अपनी बांहों में भर लिया और बोली- “मेरी ट्रीट। रीत ने उसे और जोर से भींच लिया और बोली- “कुछ है क्या?

गुड्डी धम्म से कुर्सी पे बैठ गई और बोली- “नहीं क्यों कुछ आना था क्या। फिर अपने बैग से उसने जो किताब करन ने दी थी वो निकाली। रीत ने छीनने की कोशिश की। तो गुड्डी ने हाथ ऊपर कर लिए। और बोली पहले ट्रीट।
.....



मुझे लगता है की रोमांस लिखना इतना आसान नहीं है कम से कम मेरे लिए,

वो कैशोर्य की अनभूति लाना, उस शिद्द्त से दिल की धड़कन को महसूस करना,... और फिर शब्दों में ढालकर पढ़नेवालों तक पहुंचाना

और सबसे बढ़कर पढ़ने वाले भी उसी भावना से,... ये न हो की वो एडल्ट फोरम में हैं तो उनकी अपेक्षा भी वही हो, शायद किसी और जगह वो कहानी उन्हें अलग ढंग से प्रभावित करती


लेकिन सबसे कठिन होता है शब्दों का और भावों का अनुशासन,


लेकिन करन और रीत का यह किस्सा, कम से कम मुझे बहुत भाता है जैसे मोहे रंग दे के शुरू के प्रंसग या लला फिर अइयो खेलन होरी का अंतिम हिस्सा,...
Kesi prit ki lat lagai he komalji aapne. Mera preto se nata tute ja raha he. Or prito se judte ja raha he.
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komaalrani

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Kesi prit ki lat lagai he komalji aapne. Mera preto se nata tute ja raha he. Or prito se judte ja raha he.
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इश्क वो आतिश है ग़ालिब

लगाए न लगे और बुझाये न बुझे
 

komaalrani

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रीत की रीत तो रीत भी नहीं जानती

और रीत का दिमाग चाचा चौधरी से भी तेज चलता है ये सब जानते हैं

और रीत के मुष्टि प्रहार की शक्ति देश के दुश्मन जानते हैं


पर रीत की प्रीत

और रीत के मनमीत को

अक्सर लोग बिसरा बैठते हैं, पर रीत वो तो कहीं पर भी , मोहे रंग दे में आखिर में वो घुस गयी थी और सात समुन्दर पार से बनारस वाली को क्या क्या सिखा रही थी तो नए पढ़ने वालों को भी रीत का थोड़ा सा अहसास तो होगा ही, इसलिए अब मैं फागुन के दिन चार का पुलिंदा खोल के बैठी हूँ और रोमान्स के कुछ मीठे प्रसंग भी जैसे लास्ट पोस्ट में था तो फिर रीत की प्रीत भी
 

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रीत की प्रीत


रीत करन


एक था गुल और एक थी बुलबुल, दोनों चमन में रहते थे

है ये कहानी बिलकुल सच्ची, मेरे नाना कहते थे,

याद सदा रखना ये कहानी, चाहे जीना चाहे मरना


तुम भी किसी से प्यार करो तो, प्यार गुल-ओ-बुलबुल सा करना



ये कहानी बहुत पुरानी है, उन तकियों के गिलाफो के मानिंद, जिनपर कितने चुप चुप के रोये हुए आँसुओके निशान पुख्ता हो जाते हैं। उन किताबों में छुपे खोये भूले कागजों की माफिक, जिनके हर्फ उड़ गए हैं। पर जो कभी हँसते गाते, स्याही में लिखे ख़्वाब होते थे।

ये कहानी तब की है। जब रीत, रीत नहीं नवरीत थी।


वो दोनों पड़ोस में रहते थे, परिवारों में भी बहुत दोस्ती थी।
करन रीत से तकरीबन चार साल बड़ा था। लेकिन बच्चों में इतनी उम्र का फर्क कहाँ पता चलता है। जैसा फिल्मो में होता है। बच्चे खिलौने से खेल रहे हैं, झगड़ रहे हैं। और अगले शाट में झट से बड़े होकर हीरो हिरोइन बनकर गाना गा रहे हैं बिलकुल वैसे ही।


नवरीत (या रीत। हम सब तो उसे इसी नाम से जानते हैं ना), बचपन से ही बहुत खूबसूरत थी, गोल मटोल खूब गोरी सी, हँसती तो गालों में गड्ढे पड़ते। और किसी की बुरी नजर ना पड़े। इसलिए सुबह उठते ही उसे कोई ना कोई दिठोना जरूर लगा देता था और उसके गोरे गोर माथे पे। बस लगता था जैसे धुप में कोई अबाबील उड़ी जा रही है। लेकिन थी वो बहुत ही चुलबुली, नटखट।

और करन आम बच्चों से थोड़ा सा अलग, बला का जहीन। और जिस उम्र में बच्चे बैट बल्ले माँगते है। बस वो किताबों की फरमाइश करता था, जब देखो तब किताबो के ढेर में डूबा हाथ पैर मारता। और उसके अलावा उसे दूसरा शौक था गिटार का। बचपन में उसे एक गिटार नुमा कोई चीज ले दी गई थी और उसे वो बजाया करता था।

लेकिन रीत से दोस्ती उसकी गजब की थी। वह किसी और बच्चे को अपनी किताब छूने नहीं देता था। लेकिन रीत के लिए। पूरी अलमारी खुल जाती थी। उसे वो गिटार भी बजाकर सुनाता। एक बार रीत ने उसकी किसी किताब का पन्ना फाड़ दिया। कोई दूसरा बच्चा होता तो खून खराबा हो जाता। माँये, अपने बच्चो को पकड़कर अपने घरों में ले जाती और दरवाजे पे खड़े होकर उंगलियां तोड़ तोड़कर गालियां निकालती, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

करन बस गम सुम हो गया। मोम की मूरत।

रीत थोड़ी देर तक बैठी रही की वो अब झगड़ा करेगा। लेकिन वो बस चुप। रीत बिना बोले उठी। अपने घर गई कोई चिपकाने वाली ट्यूब लायी। और बड़े ध्यान से उसने वो पन्ना चिपका दिया। करन उठा अपने कमरे में से कोई पजल लाया और दोनों खेलने लगे।

अगर शाम को करन ना मिले तो रीत के घर होगा। और अगर रीत घर पर न मिले तो करन के घर। और फिर जैसे बाकी बच्चे झट से बड़े हो जाते हैं। माँ बाप को पता भी नहीं चलता की और परिंदे पर तौलते। आसमान नापने लगते हैं। बस उसी तरह।



रीत और करन बड़े हो गए।

करन तो पहले से ही जहीन था किताबों को शौकीन, अब और, स्कूल में अव्वल। और भी बहुत सिफत। डिबेट में एस्से लिखने में, कोई क्रिएटिव राइटिंग का कम्म्प्टिशन हो सबमें फर्स्ट। और बारहवें में पहुँचते ही उसे कालेज का हेड ब्वाय भी बना दिया गया। कालेज में कोई फंक्शन उसके बिना पूरा नहीं होता था। सबमे कम्पीयर भी वही करता था। और कालेज वो को एड था। शहर का सबसे मानिंद अंग्रेजी स्कूल।

और रीत भी उसी स्कूल में पढ़ती थी। पढाई में वो भी कोई कमजोर नहीं थी, लेकिन अभी भी बहुत ही खिलंदड़ी, दौड़ हो स्वीमिंग हो बैडमिंटन हो सबमें वो स्कूल की टीम में थी। और साथ में उसे म्यूजिक डांस और पेंटिंग का भी शौक पैदा हो गया था।

बस रीत को दो बातों का अफसोस था। एक तो उसको लोग अभी भी बच्चा समझते थे, जबकि वो अच्छी खासी बड़ी हो गई थी। लेकिन घर के लोग तो,....और हम सब लोग, बच्चियां गुडिया खेलती हैं, उनकी शादियां रचाती है और देखते देखते उनकी अपनी पालकियां दरवाजे के बाहर आकर खड़ी हो जाती हैं।

लेकिन उसको सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का था की करन भी उसे बच्ची समझता था। वो उसके यहाँ अभी भी उसी तरह बेधड़क आता था लेकिन बस उससे पढ़ाई लिखाई की बातें करने। या फिर उसे कोई नैन्सी ड्रु या हार्डी ब्वायज टाइप किताबे देने। जबकि अब वो मिल्स एंड बून पढ़ने लगी थी। (और मुँहल्ले के शोहदों ने कब का सीटियां मार मार कर, उसके उभरते उभारों को घूर घूर कर, कब का उसे बड़ा होने का अहसास दिला दिया था)

दूसरा अफसोस भी उसे करन को लेकर था। पहले तो बस वो करन के साथ, अब कितनी लड़कियों, तितलियों की तरह, और खास तौर से वो हेड गर्ल,.... मुई चिपकी रहती थी, गिरी पड़ती थी जैसे कोई उसे और लड़का ना मिला हो। और करन उसे स्कूल में देखता तो बस हाय हेलो या पढाई कैसे चल रही है। लेकिन रीत के दोनों अफसोस एक दिन एक साथ दूर हो गए।



ये बात मुझे गुड्डी ने बताई। उस दिन का एक-एक पल उसके जेहन में चस्पा है। कुछ यादें होती है जो हरदम आपके साथ चलती है। ये बात बस वैसे ही है लगता है बस कल की बात है।
 
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