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Incest रंगीन दुलहन

Deeply

सवित्रा
250
922
94
गाँव का नाम भौसड़ाचोद जैसा नाम वैसा ही काम, यहाँ लड़कियाँ गौने तक एक दो बच्चे जन चुकी होती है, यहाँ पतियो से जादा जीजा देवर ससुर का जादा हक होता है यह अधिकांश एक अलग जाति के है जो एक अलग रिवाजो का जाने जाना वाला क्षेत्र है जहाँ सेक्स ही पुजा का एक अंग माना जाता है यहाँ विधवा कभी विधवा नही होती उसके मांग और बुर हमेशा भरी रहती है, और दुल्हन एक की नही होती, यहाँ एक कहावत बुर मारे जीजा देवर मारे गांड एक रिवाज की तरह होता है यहाँ अक्सर पहली बार बुर जीजा ही मारता है और गांड पर देवर का हक होता है चलते है इस रंगीले गाँव की ओर
दोपहर का समय था। बनवारी अपने खेत पर बने झोपड़े में लेटा था। तभी दरवाज़ा खुला और झोपड़े के अंदर उसकी लूगाई हांथ में खाना लीये अंदर आयी।



लल्ली—‟दीन भर खेतो पर ही पड़े रहते हो, खाने की चीतां भी करते हो की नाही?”



ये कहते हुए, लल्ली ने खाने की थाली एक तरफ रखते हुए, बनवारी के बगल में खाट पर बैठ जाती है।



बनवारी का लंड तो सुबह से ही तनतनाया था। उसने अपना पैज़ाम तो पहले से ही नीकाल कर रख दीया था और सीर्फ एक लूंगी पहने हुए था। उसने झट से लल्ली का हांथ पकड़ते हुए खींच कर अपने सीने से चीपका लेता है...



लल्ली—‟आह...कर रहे हो? छोड़ो! सोहन बाहर खेतो में काम कर रहा है देख लीया तो...?”



ये सुनकर बनवारी ने जोर का थप्पड़ लल्ली के गांड पर ज़ड़ देता है। थप्पड़ इतना जोरदार था की...लल्ली के मुह से चींख नीकल पड़ती है। थप्पड़ की आवाज और लल्ली के मुह से चींख दोनो एक साथ बाहर काम कर लल्ली के बेटे सोहन के कानो में पड़ी...



सोहन कुछ समझ नही पाया, उसने सोचा की जाके देखे, कहीं उसकी माँ को कुछ लगा तो नही...?



सोहन धीरे-धीरे अपने कदम झोपड़ी की तरफ़ बढ़ाते हुए, जैसे ही नज़दीक पहुचां, उसके कानो में एक और जोरदार थप्पड़ की आवाज़ और उसके मां की चींख गूजी।



सोहन को कुछ समझ में नही आ रहा था की, आख़िर झोपड़े के अंदर क्या हो रहा है? उसने छुप कर अंदर देखने का सोचा....और झोपड़े के दीवाल में बने मुक्के से अंदर झांक कर देखा तो उसकी हवाईयाँ उड़ गयी।



उसकी माँ लल्ली, उसके बापू के उपर लेटी थी। उसकी माँ की साड़ी को उसका बापू नीचे से कमर तक उठा दीया था, जीससे उसकी माँ की चौंड़ी ३८ इंच की मोटी गांड उसे प्रदर्शीत हो रही थी। उसके माँ की गांड के दोनो पलझे, उसके बापू के हाथ में था जीसे वो मसल रहा था और रह-रह कर थप्पड़ बरसा रहा था।



ऐसा नज़ारा देख कर तो, सोहन के पैरों तले ज़मीन ही खीसक गयी, वो तो बस अपनी मां की मोटी गांड ही देखता रह गया। तभी अचानक! लल्ली की नज़र भी दीवाल के मुक्के की तरफ़ पड़ जाती है। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे देख रहा है। वो तुरतं समझ जाती है की, कोई और नही ये सोहन ही है, उसका बेटा!!



लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। वो उठते हुए अपनी साड़ी नीकाल कर पूरी नंगी हो जाती है।



सोहन के तो पसीने छूटने लगते है। उसने आज तक कभी कीसी औरत को मादरजात नंगी नही देखा था। अभी जल्द ही अपनी औरत का गौना लाया है सोहन, नाम है रोशनी, दूध सी बदन वाली कमसीन छोटी उम्र मे गौना हो गया, पतली इतनी की एक हाथ की हथेली मे उसकी कमर आ जाये, कम उम्र के चलते अभी गांड भी बहुत छोटी सी गोल मटोल लौंड़ा मार्क है, सोहन का लंड 5 इंच से बडा ना होगा तो मोटाई एक अंगूठे जितनी, अभी हफ्ता बीता होगा उसे रोशनी को लाये, अपनी नई-नई लूगाई को भी शरम के मारे अंधेरे में ही चोदता था। और आज अपनी माँ की हथिनी जैसी शरीर को नंगी अवस्था में देखकर, उसके लंड ने झटके पे झटके जड़ना शुरु कर दीया...



लल्ली की बुर ये सोचकर बहुत ज्यादा फुदकने लगी की, उसे उसका बेटा नंगी हालत में देख रहा है। लल्ली ने सोचा की क्यूँ ना सोहन को, वो अपनी पूरी गांड दीखाये खोल कर! इसलीये लल्ली ने अपनी गांड को सोहन की तरफ़ करते हुए, खाट की पाटी पकड़ कर झुक जाती है...



झुकते ही लल्ली के चुतड़ो के पलझे फैलने लगते है। और देखते ही देखते...सोहन के आँखों के सामने उसकी माँ का वीशाल गांड साफ तौर पर प्रदर्शीत होने लगा...! ऐसा नज़ारा देख कर, सोहन से रहा नही गया और झट से अपने छोटे से मुरझाये लंड को हाथ की उंगलीयों में फंसा कर आगे-पीछे करने लगा।



लल्ली अब झुकी थी, उसने एक बार अपना गांड हीलाया और फीर खड़ी हो गयी! और इस बार बनवारी की तरफ़ गांड करके झुक जाती है। बनवारी खाट पर लेटा था। और उसके सामने लल्ली की बड़ी गांड पड़ी थी।



लल्ली का मुह सोहन की तरफ़ था। और लल्ली अभी मुक्के की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली-



लल्ली—‟हाय रे...दईया! मेरी गांड मत मारना रंजू के बापू। बहुत दुखता है, कीसी जानवर की तरह मारते हो! तुमको याद है...ऐसे ही जब तूम हर रात मेरे घर पर आकर मेरी इज्जत लूटते थे, मेरी गांड मारते थे तो, सोहन का बापू घर के मुक्के में से चोरी छीपे देखता था।



जब तूम मेरी गांड मार-मार कर, अपने लंड का गाढ़ा रस मेरी गांड में छोड़ कर चले जाते थे तो, मैं तुम्हारा रस सोहन के बापू से चटवा कर साफ करवाती थी।



अपनी माँ की बात सुनते ही, सोहन के उपर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वो ये तो जानता था की, उसका बाप बनवारी नही है, क्यूकीं जब वो ६ साल का था, तब उसकी माँ ने उसके बाप बीरज़ू को छोड़ दीया था। मगर वो ये नही जानता था की, बनवारी उसकी माँ को उसके बाप के सामने उसके ही घर में चोदता था।



एक थप्पड़ की आवाज़ ने, उसे उसकी सोंच की दुनीया से बाहर नीकालता है...



बनवारी ने एक और जोर का थप्पड़ लल्ली की गांड पर ज़ड़ते हुए बोला-



बनवारी—‟वो साला तो नामर्द था। तेरी बुर जब मैने चोदी थी तो, बड़ी कसी थी...



लल्ली—‟हां...क्यूकीं वो नामर्द का लंड नही लूल्ली था। जब तूम मेरे उपर चढ़े! तब एहसास हुआ की...कोई मर्द चढ़ा है। इतना गहरा घुसा कर पेल रहे थे मुझे की। एक बख़त को लगा मेरी जान ही ले लोगे। कीतना रो रही थी मै, कीतना चील्ला रही थी। हांथ भी जोड़ रही थी की छोड़ दो मुझे॥ लेकीन तूम तो ज़ालीम की बन गये थे। कीसी सांड की तरह हुमच-हुमच कर चोद रहे थे। खाट भी टूट गयी थी...मगर फीर भी तूम मुझे रौंदे जा रहे थें। वो तो सुबह मेरे पड़ोस की औरते कहने लगी की, मेरी वज़स से वो लोग सो नही पायी थी। इतना जोर-जोर से चील्ला रही थी मैं। आज फीर से वैसी ही चुदाई करो मेरी...रंजू के बापू! और देखने वाले नामर्दो को दीखा दो की, एक मर्द कैसे चोदता है?”



और ये कहते हुए...लल्ली एक बार फीर मुक्के की तरफ़ देखते हुए मुस्कुरा देती है..
 

Deeply

सवित्रा
250
922
94
सोहन के लीये पहला अवसर था। जब वो कीसी औरत को इस तरह से मादर-जात संपूर्ण रुप से नंगी देख रहा था। और वो भी अपनी माँ को। उसके ५ इंच के लंड में उत्तेज़ना की लहर दौड़ने लगी। उसकी सासों की गति में वृद्धी होने लगी थी...

और इधर बनवारी के लंड में वृद्धी होने लगी थी। वैसे तो बनवारी हर रोज़ ही अपनी लुगाई को हुमच-हुमच कर चोदता था। लेकिन आज, लल्ली की बातें उसके अंदर कुछ ज्यादा ही चींगारी भड़का रही थी...

जोश में बौलाया...! बनवारी ने अपनी हथेली की मध्य उंगली को, लल्ली की गांड में पूरा पेल दीया...

इस अचानक से घुसे उंगली का अहेसास अपनी गांड के अंदर महसुस कर...., लल्ली मस्ती में मचलने लगी। और मुक्के की दीशा की तरफ़ देखते हुई, वैसे ही झुकी अवस्था में अपनी गांड को आगे-पीछे करते हुए बड़बड़बाने लगी...

लल्ली↠‟आउउउह...मा..आईईई..रे, रंजू के बापूउ.उउउउ...ई उंगली से हमरी गांड की खांई नही भरेगी, आह...इसको तो तूम्हरा मोटा लंड चाहिए,,)

बनवारी ने फाट...फाट करके दो थप्पड़ लल्ली के चूतड़ो पर ज़ड़ते हुए खड़ा हो गया। और बोला....

बनवारी↠‟लंडखोरीनी....बुरचोदी, चल तैयार कर अपने घोड़े को जल्दी।”

लल्ली ने बीना देरी के, बनवारी की तरफ़ घुमते हुए, अपने घुटनो पर बैठ जाती है। वो थोड़ा बगल होकर बैठी थी...ताकी दीवाल में बने मुक्के से देख रहे उसके बेटे को। बनवारी का मोटा-तगड़ा लंड साफ-साफ दीखाई दे। और यही चीज तो वो अपने बेटे को दीखाना चाहती थी।

लल्ली ने एक झटके में ही, लूंगी को पकड़ कर खींचते हुए बनवारी के शरीर से अलग कर दीया,, फनफनाता हुआ बनवारी का वीशाल और भयानकर लंड जैसे दृष्टीगोचर हुआ, सोहन की आँखे हैरत से चौंड़ी हो गयी...और मन में बुदबुदाया...↠बाप रे...बाप↠...

लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गयी, पास में रखे तेल की शीशी उठाते हुए, अपनी हथेलीयों पर तेल नीकाल कर बनवारी के लंड पर चपोड़ने लगती है। सोहन का लंड बेकाबू होते जा रहा था। वासना पूरे उफ़ान पर था और वो अपना लंड जोर-जोर से हीला रहा था। तभी अचानक से उसके कंधे पर कीसी का हाथ महसूस होते ही, उसके होश ही उड़ गये...
इस बार बनवारी ने एक जोरदार हुमच कर झटका मारा और जोर देते हुए लल्ली की गांड पर बैठ गया।

लल्ली दर्द से चील्लाने लगी....‟नही...आईईउउईउउउउ...नीईईइकालोओओओ...म...र जांउगीईईईई, माईईईईईईरे, बहु...ते गहरा चला गया है...नीकालो मर जाऊगीं...)

मगर बनवारी तो जैसे कोई ख़ुंखार जनवार बन गया था। वो अपना पूरा लंड घुसाये वैसे ही बोला-

बनवारी↠‟भोंसड़ाचोदी...तूझे कीतनी बार बोला हूँ, की उस मादरचोद का बाप मुझे मत कहा कर, मगर तू बाज़ नही आती, कौनो तरीके से उ भोंसड़ी वाला हमरा पूत नही लगता, और तू छीनाल की जनी रंडीख़ोर ये बात जानते हुए भी हमरा मज़ाक बनाती है....

बनवारी का गुस्से में आगबबूला देख, सोहन की तो गांड बैठ कर रह जाती है। लल्ली की छटपटाहट और बादलों की गरज़ जैसी गला फाड़ कर चील्लाहट देख कर उनके जोश को लकवा मारने लगा था...

लल्ली↠‟माई रे माई...आईईईरेऐऐऐऐ माइईई...गलती हो गईईईईई, रंजू के बा...पूउउऊ! सो...सोहन बाहर ही है...देख लेगा। नीकाल लो अपना ई मुसल गांड फ़ाड़..र...हा है हमरी...)

बनवारी↠‟देखने दे मादरचोद को, उसे भी पता चले की, उसकी अम्मा की गांड कौन मार रहा है? बताया नही का की मैने तूझको अपनी लूगाई कैसे बनाया? आ...छीनाल..?बोल...?

और ये कहते हुए...बनवारी एक बार अपनी गांड उठाते हुए, लंड को बाहर गांड के मुहाने तक खींचता है...और एक जोरदार झटका देकर फीर से लल्ली की गांड पर बैठ जाता है। लल्ली का पूरा शरीर झनझना गया, वो छटपटाने लगती है...और इधर बनवारी से भी रहा नही जा रहा था तो। जोर-जोर से लल्ली की गांड में लंड के झटके मारने लगा।

वो तो अच्छा हुआ की लल्ली हर रोज बनवारी का लंड गांड में लेती थी तो, कुछ धक्को में संभल गयी और बनवारी के धक्को का साथ देने लगती है। इधर मुक्के से भयानक गांड चुदाई का नज़ारा देखते हुए सोहन के लंड ने ३ बार पानी छोड़ दीया था। तो वहीं बनवारी अभी तक लल्ली की गांड की सुराख को खुराक खीला रहा था...

आधे घंटे तक जोर-जोर से गांड की ठुकाई करके बनवारी ने अपना अमृत जल लल्ली की गांड की गहराईयो में भर देता है। और हाँफते हुए खाट पर लेट जाता है....

लल्ली अभी भी ज़मीन पर वैसे ही घोंड़ीयों की तरह गांड उठाये पड़ी थी। पप्पू और सोहन की नज़र लल्ली की गांड की सुराख पर पड़ी तो मुह खुले के खुले रह गये...
होश ठीकाने आते ही, सोहन बीना एक लफ़्ज बोले, अपना फावड़ा उठाता है और वहां से चला जाता है...


थोड़ी देर के बाद खाट पर लेटा बनवारी उठते हुए खड़ा होता है...और पैज़ाम पहनते हुए बोला-

बनवारी↠‟अब उठेगी भी, या ऐसे ही गांड उठाये घोड़ी बनी रहेगी? उठ नही तो फीर से पेल दूँगा लंड तोहरी गांड मे।)

लल्ली↠‟नही रे दईया...!अब दुबारा तुम्हरा लंड गांड पेलवाने की ताकत, हमरी गांड में नही बची है।)

और ये कहते हुए लल्ली एक हल्की कराह के साथ उठती हुई अपना पेटीकोट उठा कर पहनने लगती है। बनवारी पैज़ामा पहनते हुए वहां से चला जाता है। लल्ली भी अपनी साड़ी पहन कर जैसे ही झोपड़े से बाहर आती है, तो उसे उसका बेटा सोहन कहीं नही दीखाई पड़ता। ये देखकर वो मुस्कुराते हुए खुद से बोल बैठी....‟लगता है माँ की गांड बेरहमी से चुदते देख शरमा गया हमरा बेटवा)

लल्ली झोपड़े के सामने वाली हरी सब्जीयों की क्यारी में घुस जाती है...और काम करने लगती है। लल्ली अभी बैठी ही थी की....
 

Mr. X.

Loan Wolf
1,237
1,246
143
गाँव का नाम भौसड़ाचोद जैसा नाम वैसा ही काम, यहाँ लड़कियाँ गौने तक एक दो बच्चे जन चुकी होती है, यहाँ पतियो से जादा जीजा देवर ससुर का जादा हक होता है यह अधिकांश एक अलग जाति के है जो एक अलग रिवाजो का जाने जाना वाला क्षेत्र है जहाँ सेक्स ही पुजा का एक अंग माना जाता है यहाँ विधवा कभी विधवा नही होती उसके मांग और बुर हमेशा भरी रहती है, और दुल्हन एक की नही होती, यहाँ एक कहावत बुर मारे जीजा देवर मारे गांड एक रिवाज की तरह होता है यहाँ अक्सर पहली बार बुर जीजा ही मारता है और गांड पर देवर का हक होता है चलते है इस रंगीले गाँव की ओर
दोपहर का समय था। बनवारी अपने खेत पर बने झोपड़े में लेटा था। तभी दरवाज़ा खुला और झोपड़े के अंदर उसकी लूगाई हांथ में खाना लीये अंदर आयी।



लल्ली—‟दीन भर खेतो पर ही पड़े रहते हो, खाने की चीतां भी करते हो की नाही?”



ये कहते हुए, लल्ली ने खाने की थाली एक तरफ रखते हुए, बनवारी के बगल में खाट पर बैठ जाती है।



बनवारी का लंड तो सुबह से ही तनतनाया था। उसने अपना पैज़ाम तो पहले से ही नीकाल कर रख दीया था और सीर्फ एक लूंगी पहने हुए था। उसने झट से लल्ली का हांथ पकड़ते हुए खींच कर अपने सीने से चीपका लेता है...



लल्ली—‟आह...कर रहे हो? छोड़ो! सोहन बाहर खेतो में काम कर रहा है देख लीया तो...?”



ये सुनकर बनवारी ने जोर का थप्पड़ लल्ली के गांड पर ज़ड़ देता है। थप्पड़ इतना जोरदार था की...लल्ली के मुह से चींख नीकल पड़ती है। थप्पड़ की आवाज और लल्ली के मुह से चींख दोनो एक साथ बाहर काम कर लल्ली के बेटे सोहन के कानो में पड़ी...



सोहन कुछ समझ नही पाया, उसने सोचा की जाके देखे, कहीं उसकी माँ को कुछ लगा तो नही...?



सोहन धीरे-धीरे अपने कदम झोपड़ी की तरफ़ बढ़ाते हुए, जैसे ही नज़दीक पहुचां, उसके कानो में एक और जोरदार थप्पड़ की आवाज़ और उसके मां की चींख गूजी।



सोहन को कुछ समझ में नही आ रहा था की, आख़िर झोपड़े के अंदर क्या हो रहा है? उसने छुप कर अंदर देखने का सोचा....और झोपड़े के दीवाल में बने मुक्के से अंदर झांक कर देखा तो उसकी हवाईयाँ उड़ गयी।



उसकी माँ लल्ली, उसके बापू के उपर लेटी थी। उसकी माँ की साड़ी को उसका बापू नीचे से कमर तक उठा दीया था, जीससे उसकी माँ की चौंड़ी ३८ इंच की मोटी गांड उसे प्रदर्शीत हो रही थी। उसके माँ की गांड के दोनो पलझे, उसके बापू के हाथ में था जीसे वो मसल रहा था और रह-रह कर थप्पड़ बरसा रहा था।



ऐसा नज़ारा देख कर तो, सोहन के पैरों तले ज़मीन ही खीसक गयी, वो तो बस अपनी मां की मोटी गांड ही देखता रह गया। तभी अचानक! लल्ली की नज़र भी दीवाल के मुक्के की तरफ़ पड़ जाती है। उसे ऐसा लगा जैसे कोई उसे देख रहा है। वो तुरतं समझ जाती है की, कोई और नही ये सोहन ही है, उसका बेटा!!



लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल जाती है। वो उठते हुए अपनी साड़ी नीकाल कर पूरी नंगी हो जाती है।



सोहन के तो पसीने छूटने लगते है। उसने आज तक कभी कीसी औरत को मादरजात नंगी नही देखा था। अभी जल्द ही अपनी औरत का गौना लाया है सोहन, नाम है रोशनी, दूध सी बदन वाली कमसीन छोटी उम्र मे गौना हो गया, पतली इतनी की एक हाथ की हथेली मे उसकी कमर आ जाये, कम उम्र के चलते अभी गांड भी बहुत छोटी सी गोल मटोल लौंड़ा मार्क है, सोहन का लंड 5 इंच से बडा ना होगा तो मोटाई एक अंगूठे जितनी, अभी हफ्ता बीता होगा उसे रोशनी को लाये, अपनी नई-नई लूगाई को भी शरम के मारे अंधेरे में ही चोदता था। और आज अपनी माँ की हथिनी जैसी शरीर को नंगी अवस्था में देखकर, उसके लंड ने झटके पे झटके जड़ना शुरु कर दीया...



लल्ली की बुर ये सोचकर बहुत ज्यादा फुदकने लगी की, उसे उसका बेटा नंगी हालत में देख रहा है। लल्ली ने सोचा की क्यूँ ना सोहन को, वो अपनी पूरी गांड दीखाये खोल कर! इसलीये लल्ली ने अपनी गांड को सोहन की तरफ़ करते हुए, खाट की पाटी पकड़ कर झुक जाती है...



झुकते ही लल्ली के चुतड़ो के पलझे फैलने लगते है। और देखते ही देखते...सोहन के आँखों के सामने उसकी माँ का वीशाल गांड साफ तौर पर प्रदर्शीत होने लगा...! ऐसा नज़ारा देख कर, सोहन से रहा नही गया और झट से अपने छोटे से मुरझाये लंड को हाथ की उंगलीयों में फंसा कर आगे-पीछे करने लगा।



लल्ली अब झुकी थी, उसने एक बार अपना गांड हीलाया और फीर खड़ी हो गयी! और इस बार बनवारी की तरफ़ गांड करके झुक जाती है। बनवारी खाट पर लेटा था। और उसके सामने लल्ली की बड़ी गांड पड़ी थी।



लल्ली का मुह सोहन की तरफ़ था। और लल्ली अभी मुक्के की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए बोली-



लल्ली—‟हाय रे...दईया! मेरी गांड मत मारना रंजू के बापू। बहुत दुखता है, कीसी जानवर की तरह मारते हो! तुमको याद है...ऐसे ही जब तूम हर रात मेरे घर पर आकर मेरी इज्जत लूटते थे, मेरी गांड मारते थे तो, सोहन का बापू घर के मुक्के में से चोरी छीपे देखता था।



जब तूम मेरी गांड मार-मार कर, अपने लंड का गाढ़ा रस मेरी गांड में छोड़ कर चले जाते थे तो, मैं तुम्हारा रस सोहन के बापू से चटवा कर साफ करवाती थी।



अपनी माँ की बात सुनते ही, सोहन के उपर मानो पहाड़ टूट पड़ा हो। वो ये तो जानता था की, उसका बाप बनवारी नही है, क्यूकीं जब वो ६ साल का था, तब उसकी माँ ने उसके बाप बीरज़ू को छोड़ दीया था। मगर वो ये नही जानता था की, बनवारी उसकी माँ को उसके बाप के सामने उसके ही घर में चोदता था।



एक थप्पड़ की आवाज़ ने, उसे उसकी सोंच की दुनीया से बाहर नीकालता है...



बनवारी ने एक और जोर का थप्पड़ लल्ली की गांड पर ज़ड़ते हुए बोला-



बनवारी—‟वो साला तो नामर्द था। तेरी बुर जब मैने चोदी थी तो, बड़ी कसी थी...



लल्ली—‟हां...क्यूकीं वो नामर्द का लंड नही लूल्ली था। जब तूम मेरे उपर चढ़े! तब एहसास हुआ की...कोई मर्द चढ़ा है। इतना गहरा घुसा कर पेल रहे थे मुझे की। एक बख़त को लगा मेरी जान ही ले लोगे। कीतना रो रही थी मै, कीतना चील्ला रही थी। हांथ भी जोड़ रही थी की छोड़ दो मुझे॥ लेकीन तूम तो ज़ालीम की बन गये थे। कीसी सांड की तरह हुमच-हुमच कर चोद रहे थे। खाट भी टूट गयी थी...मगर फीर भी तूम मुझे रौंदे जा रहे थें। वो तो सुबह मेरे पड़ोस की औरते कहने लगी की, मेरी वज़स से वो लोग सो नही पायी थी। इतना जोर-जोर से चील्ला रही थी मैं। आज फीर से वैसी ही चुदाई करो मेरी...रंजू के बापू! और देखने वाले नामर्दो को दीखा दो की, एक मर्द कैसे चोदता है?”



और ये कहते हुए...लल्ली एक बार फीर मुक्के की तरफ़ देखते हुए मुस्कुरा देती है..
बहुत अच्छी शुरुआत लेकिन पिछली स्टोरी कि तरह अधूरी मत छोड़ना
 

malikarman

Well-Known Member
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सोहन के लीये पहला अवसर था। जब वो कीसी औरत को इस तरह से मादर-जात संपूर्ण रुप से नंगी देख रहा था। और वो भी अपनी माँ को। उसके ५ इंच के लंड में उत्तेज़ना की लहर दौड़ने लगी। उसकी सासों की गति में वृद्धी होने लगी थी...

और इधर बनवारी के लंड में वृद्धी होने लगी थी। वैसे तो बनवारी हर रोज़ ही अपनी लुगाई को हुमच-हुमच कर चोदता था। लेकिन आज, लल्ली की बातें उसके अंदर कुछ ज्यादा ही चींगारी भड़का रही थी...

जोश में बौलाया...! बनवारी ने अपनी हथेली की मध्य उंगली को, लल्ली की गांड में पूरा पेल दीया...

इस अचानक से घुसे उंगली का अहेसास अपनी गांड के अंदर महसुस कर...., लल्ली मस्ती में मचलने लगी। और मुक्के की दीशा की तरफ़ देखते हुई, वैसे ही झुकी अवस्था में अपनी गांड को आगे-पीछे करते हुए बड़बड़बाने लगी...

लल्ली↠‟आउउउह...मा..आईईई..रे, रंजू के बापूउ.उउउउ...ई उंगली से हमरी गांड की खांई नही भरेगी, आह...इसको तो तूम्हरा मोटा लंड चाहिए,,)

बनवारी ने फाट...फाट करके दो थप्पड़ लल्ली के चूतड़ो पर ज़ड़ते हुए खड़ा हो गया। और बोला....

बनवारी↠‟लंडखोरीनी....बुरचोदी, चल तैयार कर अपने घोड़े को जल्दी।”

लल्ली ने बीना देरी के, बनवारी की तरफ़ घुमते हुए, अपने घुटनो पर बैठ जाती है। वो थोड़ा बगल होकर बैठी थी...ताकी दीवाल में बने मुक्के से देख रहे उसके बेटे को। बनवारी का मोटा-तगड़ा लंड साफ-साफ दीखाई दे। और यही चीज तो वो अपने बेटे को दीखाना चाहती थी।

लल्ली ने एक झटके में ही, लूंगी को पकड़ कर खींचते हुए बनवारी के शरीर से अलग कर दीया,, फनफनाता हुआ बनवारी का वीशाल और भयानकर लंड जैसे दृष्टीगोचर हुआ, सोहन की आँखे हैरत से चौंड़ी हो गयी...और मन में बुदबुदाया...↠बाप रे...बाप↠...

लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गयी, पास में रखे तेल की शीशी उठाते हुए, अपनी हथेलीयों पर तेल नीकाल कर बनवारी के लंड पर चपोड़ने लगती है। सोहन का लंड बेकाबू होते जा रहा था। वासना पूरे उफ़ान पर था और वो अपना लंड जोर-जोर से हीला रहा था। तभी अचानक से उसके कंधे पर कीसी का हाथ महसूस होते ही, उसके होश ही उड़ गये...
इस बार बनवारी ने एक जोरदार हुमच कर झटका मारा और जोर देते हुए लल्ली की गांड पर बैठ गया।

लल्ली दर्द से चील्लाने लगी....‟नही...आईईउउईउउउउ...नीईईइकालोओओओ...म...र जांउगीईईईई, माईईईईईईरे, बहु...ते गहरा चला गया है...नीकालो मर जाऊगीं...)

मगर बनवारी तो जैसे कोई ख़ुंखार जनवार बन गया था। वो अपना पूरा लंड घुसाये वैसे ही बोला-

बनवारी↠‟भोंसड़ाचोदी...तूझे कीतनी बार बोला हूँ, की उस मादरचोद का बाप मुझे मत कहा कर, मगर तू बाज़ नही आती, कौनो तरीके से उ भोंसड़ी वाला हमरा पूत नही लगता, और तू छीनाल की जनी रंडीख़ोर ये बात जानते हुए भी हमरा मज़ाक बनाती है....

बनवारी का गुस्से में आगबबूला देख, सोहन की तो गांड बैठ कर रह जाती है। लल्ली की छटपटाहट और बादलों की गरज़ जैसी गला फाड़ कर चील्लाहट देख कर उनके जोश को लकवा मारने लगा था...

लल्ली↠‟माई रे माई...आईईईरेऐऐऐऐ माइईई...गलती हो गईईईईई, रंजू के बा...पूउउऊ! सो...सोहन बाहर ही है...देख लेगा। नीकाल लो अपना ई मुसल गांड फ़ाड़..र...हा है हमरी...)

बनवारी↠‟देखने दे मादरचोद को, उसे भी पता चले की, उसकी अम्मा की गांड कौन मार रहा है? बताया नही का की मैने तूझको अपनी लूगाई कैसे बनाया? आ...छीनाल..?बोल...?

और ये कहते हुए...बनवारी एक बार अपनी गांड उठाते हुए, लंड को बाहर गांड के मुहाने तक खींचता है...और एक जोरदार झटका देकर फीर से लल्ली की गांड पर बैठ जाता है। लल्ली का पूरा शरीर झनझना गया, वो छटपटाने लगती है...और इधर बनवारी से भी रहा नही जा रहा था तो। जोर-जोर से लल्ली की गांड में लंड के झटके मारने लगा।

वो तो अच्छा हुआ की लल्ली हर रोज बनवारी का लंड गांड में लेती थी तो, कुछ धक्को में संभल गयी और बनवारी के धक्को का साथ देने लगती है। इधर मुक्के से भयानक गांड चुदाई का नज़ारा देखते हुए सोहन के लंड ने ३ बार पानी छोड़ दीया था। तो वहीं बनवारी अभी तक लल्ली की गांड की सुराख को खुराक खीला रहा था...

आधे घंटे तक जोर-जोर से गांड की ठुकाई करके बनवारी ने अपना अमृत जल लल्ली की गांड की गहराईयो में भर देता है। और हाँफते हुए खाट पर लेट जाता है....

लल्ली अभी भी ज़मीन पर वैसे ही घोंड़ीयों की तरह गांड उठाये पड़ी थी। पप्पू और सोहन की नज़र लल्ली की गांड की सुराख पर पड़ी तो मुह खुले के खुले रह गये...
होश ठीकाने आते ही, सोहन बीना एक लफ़्ज बोले, अपना फावड़ा उठाता है और वहां से चला जाता है...


थोड़ी देर के बाद खाट पर लेटा बनवारी उठते हुए खड़ा होता है...और पैज़ाम पहनते हुए बोला-

बनवारी↠‟अब उठेगी भी, या ऐसे ही गांड उठाये घोड़ी बनी रहेगी? उठ नही तो फीर से पेल दूँगा लंड तोहरी गांड मे।)

लल्ली↠‟नही रे दईया...!अब दुबारा तुम्हरा लंड गांड पेलवाने की ताकत, हमरी गांड में नही बची है।)

और ये कहते हुए लल्ली एक हल्की कराह के साथ उठती हुई अपना पेटीकोट उठा कर पहनने लगती है। बनवारी पैज़ामा पहनते हुए वहां से चला जाता है। लल्ली भी अपनी साड़ी पहन कर जैसे ही झोपड़े से बाहर आती है, तो उसे उसका बेटा सोहन कहीं नही दीखाई पड़ता। ये देखकर वो मुस्कुराते हुए खुद से बोल बैठी....‟लगता है माँ की गांड बेरहमी से चुदते देख शरमा गया हमरा बेटवा)

लल्ली झोपड़े के सामने वाली हरी सब्जीयों की क्यारी में घुस जाती है...और काम करने लगती है। लल्ली अभी बैठी ही थी की....
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Ajju Landwalia

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सोहन के लीये पहला अवसर था। जब वो कीसी औरत को इस तरह से मादर-जात संपूर्ण रुप से नंगी देख रहा था। और वो भी अपनी माँ को। उसके ५ इंच के लंड में उत्तेज़ना की लहर दौड़ने लगी। उसकी सासों की गति में वृद्धी होने लगी थी...

और इधर बनवारी के लंड में वृद्धी होने लगी थी। वैसे तो बनवारी हर रोज़ ही अपनी लुगाई को हुमच-हुमच कर चोदता था। लेकिन आज, लल्ली की बातें उसके अंदर कुछ ज्यादा ही चींगारी भड़का रही थी...

जोश में बौलाया...! बनवारी ने अपनी हथेली की मध्य उंगली को, लल्ली की गांड में पूरा पेल दीया...

इस अचानक से घुसे उंगली का अहेसास अपनी गांड के अंदर महसुस कर...., लल्ली मस्ती में मचलने लगी। और मुक्के की दीशा की तरफ़ देखते हुई, वैसे ही झुकी अवस्था में अपनी गांड को आगे-पीछे करते हुए बड़बड़बाने लगी...

लल्ली↠‟आउउउह...मा..आईईई..रे, रंजू के बापूउ.उउउउ...ई उंगली से हमरी गांड की खांई नही भरेगी, आह...इसको तो तूम्हरा मोटा लंड चाहिए,,)

बनवारी ने फाट...फाट करके दो थप्पड़ लल्ली के चूतड़ो पर ज़ड़ते हुए खड़ा हो गया। और बोला....

बनवारी↠‟लंडखोरीनी....बुरचोदी, चल तैयार कर अपने घोड़े को जल्दी।”

लल्ली ने बीना देरी के, बनवारी की तरफ़ घुमते हुए, अपने घुटनो पर बैठ जाती है। वो थोड़ा बगल होकर बैठी थी...ताकी दीवाल में बने मुक्के से देख रहे उसके बेटे को। बनवारी का मोटा-तगड़ा लंड साफ-साफ दीखाई दे। और यही चीज तो वो अपने बेटे को दीखाना चाहती थी।

लल्ली ने एक झटके में ही, लूंगी को पकड़ कर खींचते हुए बनवारी के शरीर से अलग कर दीया,, फनफनाता हुआ बनवारी का वीशाल और भयानकर लंड जैसे दृष्टीगोचर हुआ, सोहन की आँखे हैरत से चौंड़ी हो गयी...और मन में बुदबुदाया...↠बाप रे...बाप↠...

लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गयी, पास में रखे तेल की शीशी उठाते हुए, अपनी हथेलीयों पर तेल नीकाल कर बनवारी के लंड पर चपोड़ने लगती है। सोहन का लंड बेकाबू होते जा रहा था। वासना पूरे उफ़ान पर था और वो अपना लंड जोर-जोर से हीला रहा था। तभी अचानक से उसके कंधे पर कीसी का हाथ महसूस होते ही, उसके होश ही उड़ गये...
इस बार बनवारी ने एक जोरदार हुमच कर झटका मारा और जोर देते हुए लल्ली की गांड पर बैठ गया।

लल्ली दर्द से चील्लाने लगी....‟नही...आईईउउईउउउउ...नीईईइकालोओओओ...म...र जांउगीईईईई, माईईईईईईरे, बहु...ते गहरा चला गया है...नीकालो मर जाऊगीं...)

मगर बनवारी तो जैसे कोई ख़ुंखार जनवार बन गया था। वो अपना पूरा लंड घुसाये वैसे ही बोला-

बनवारी↠‟भोंसड़ाचोदी...तूझे कीतनी बार बोला हूँ, की उस मादरचोद का बाप मुझे मत कहा कर, मगर तू बाज़ नही आती, कौनो तरीके से उ भोंसड़ी वाला हमरा पूत नही लगता, और तू छीनाल की जनी रंडीख़ोर ये बात जानते हुए भी हमरा मज़ाक बनाती है....

बनवारी का गुस्से में आगबबूला देख, सोहन की तो गांड बैठ कर रह जाती है। लल्ली की छटपटाहट और बादलों की गरज़ जैसी गला फाड़ कर चील्लाहट देख कर उनके जोश को लकवा मारने लगा था...

लल्ली↠‟माई रे माई...आईईईरेऐऐऐऐ माइईई...गलती हो गईईईईई, रंजू के बा...पूउउऊ! सो...सोहन बाहर ही है...देख लेगा। नीकाल लो अपना ई मुसल गांड फ़ाड़..र...हा है हमरी...)

बनवारी↠‟देखने दे मादरचोद को, उसे भी पता चले की, उसकी अम्मा की गांड कौन मार रहा है? बताया नही का की मैने तूझको अपनी लूगाई कैसे बनाया? आ...छीनाल..?बोल...?

और ये कहते हुए...बनवारी एक बार अपनी गांड उठाते हुए, लंड को बाहर गांड के मुहाने तक खींचता है...और एक जोरदार झटका देकर फीर से लल्ली की गांड पर बैठ जाता है। लल्ली का पूरा शरीर झनझना गया, वो छटपटाने लगती है...और इधर बनवारी से भी रहा नही जा रहा था तो। जोर-जोर से लल्ली की गांड में लंड के झटके मारने लगा।

वो तो अच्छा हुआ की लल्ली हर रोज बनवारी का लंड गांड में लेती थी तो, कुछ धक्को में संभल गयी और बनवारी के धक्को का साथ देने लगती है। इधर मुक्के से भयानक गांड चुदाई का नज़ारा देखते हुए सोहन के लंड ने ३ बार पानी छोड़ दीया था। तो वहीं बनवारी अभी तक लल्ली की गांड की सुराख को खुराक खीला रहा था...

आधे घंटे तक जोर-जोर से गांड की ठुकाई करके बनवारी ने अपना अमृत जल लल्ली की गांड की गहराईयो में भर देता है। और हाँफते हुए खाट पर लेट जाता है....

लल्ली अभी भी ज़मीन पर वैसे ही घोंड़ीयों की तरह गांड उठाये पड़ी थी। पप्पू और सोहन की नज़र लल्ली की गांड की सुराख पर पड़ी तो मुह खुले के खुले रह गये...
होश ठीकाने आते ही, सोहन बीना एक लफ़्ज बोले, अपना फावड़ा उठाता है और वहां से चला जाता है...


थोड़ी देर के बाद खाट पर लेटा बनवारी उठते हुए खड़ा होता है...और पैज़ाम पहनते हुए बोला-

बनवारी↠‟अब उठेगी भी, या ऐसे ही गांड उठाये घोड़ी बनी रहेगी? उठ नही तो फीर से पेल दूँगा लंड तोहरी गांड मे।)

लल्ली↠‟नही रे दईया...!अब दुबारा तुम्हरा लंड गांड पेलवाने की ताकत, हमरी गांड में नही बची है।)

और ये कहते हुए लल्ली एक हल्की कराह के साथ उठती हुई अपना पेटीकोट उठा कर पहनने लगती है। बनवारी पैज़ामा पहनते हुए वहां से चला जाता है। लल्ली भी अपनी साड़ी पहन कर जैसे ही झोपड़े से बाहर आती है, तो उसे उसका बेटा सोहन कहीं नही दीखाई पड़ता। ये देखकर वो मुस्कुराते हुए खुद से बोल बैठी....‟लगता है माँ की गांड बेरहमी से चुदते देख शरमा गया हमरा बेटवा)

लल्ली झोपड़े के सामने वाली हरी सब्जीयों की क्यारी में घुस जाती है...और काम करने लगती है। लल्ली अभी बैठी ही थी की....


Badhiya shuruaat he..........

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सोहन के लीये पहला अवसर था। जब वो कीसी औरत को इस तरह से मादर-जात संपूर्ण रुप से नंगी देख रहा था। और वो भी अपनी माँ को। उसके ५ इंच के लंड में उत्तेज़ना की लहर दौड़ने लगी। उसकी सासों की गति में वृद्धी होने लगी थी...

और इधर बनवारी के लंड में वृद्धी होने लगी थी। वैसे तो बनवारी हर रोज़ ही अपनी लुगाई को हुमच-हुमच कर चोदता था। लेकिन आज, लल्ली की बातें उसके अंदर कुछ ज्यादा ही चींगारी भड़का रही थी...

जोश में बौलाया...! बनवारी ने अपनी हथेली की मध्य उंगली को, लल्ली की गांड में पूरा पेल दीया...

इस अचानक से घुसे उंगली का अहेसास अपनी गांड के अंदर महसुस कर...., लल्ली मस्ती में मचलने लगी। और मुक्के की दीशा की तरफ़ देखते हुई, वैसे ही झुकी अवस्था में अपनी गांड को आगे-पीछे करते हुए बड़बड़बाने लगी...

लल्ली↠‟आउउउह...मा..आईईई..रे, रंजू के बापूउ.उउउउ...ई उंगली से हमरी गांड की खांई नही भरेगी, आह...इसको तो तूम्हरा मोटा लंड चाहिए,,)

बनवारी ने फाट...फाट करके दो थप्पड़ लल्ली के चूतड़ो पर ज़ड़ते हुए खड़ा हो गया। और बोला....

बनवारी↠‟लंडखोरीनी....बुरचोदी, चल तैयार कर अपने घोड़े को जल्दी।”

लल्ली ने बीना देरी के, बनवारी की तरफ़ घुमते हुए, अपने घुटनो पर बैठ जाती है। वो थोड़ा बगल होकर बैठी थी...ताकी दीवाल में बने मुक्के से देख रहे उसके बेटे को। बनवारी का मोटा-तगड़ा लंड साफ-साफ दीखाई दे। और यही चीज तो वो अपने बेटे को दीखाना चाहती थी।

लल्ली ने एक झटके में ही, लूंगी को पकड़ कर खींचते हुए बनवारी के शरीर से अलग कर दीया,, फनफनाता हुआ बनवारी का वीशाल और भयानकर लंड जैसे दृष्टीगोचर हुआ, सोहन की आँखे हैरत से चौंड़ी हो गयी...और मन में बुदबुदाया...↠बाप रे...बाप↠...

लल्ली के चेहरे पर एक मुस्कान फैल गयी, पास में रखे तेल की शीशी उठाते हुए, अपनी हथेलीयों पर तेल नीकाल कर बनवारी के लंड पर चपोड़ने लगती है। सोहन का लंड बेकाबू होते जा रहा था। वासना पूरे उफ़ान पर था और वो अपना लंड जोर-जोर से हीला रहा था। तभी अचानक से उसके कंधे पर कीसी का हाथ महसूस होते ही, उसके होश ही उड़ गये...
इस बार बनवारी ने एक जोरदार हुमच कर झटका मारा और जोर देते हुए लल्ली की गांड पर बैठ गया।

लल्ली दर्द से चील्लाने लगी....‟नही...आईईउउईउउउउ...नीईईइकालोओओओ...म...र जांउगीईईईई, माईईईईईईरे, बहु...ते गहरा चला गया है...नीकालो मर जाऊगीं...)

मगर बनवारी तो जैसे कोई ख़ुंखार जनवार बन गया था। वो अपना पूरा लंड घुसाये वैसे ही बोला-

बनवारी↠‟भोंसड़ाचोदी...तूझे कीतनी बार बोला हूँ, की उस मादरचोद का बाप मुझे मत कहा कर, मगर तू बाज़ नही आती, कौनो तरीके से उ भोंसड़ी वाला हमरा पूत नही लगता, और तू छीनाल की जनी रंडीख़ोर ये बात जानते हुए भी हमरा मज़ाक बनाती है....

बनवारी का गुस्से में आगबबूला देख, सोहन की तो गांड बैठ कर रह जाती है। लल्ली की छटपटाहट और बादलों की गरज़ जैसी गला फाड़ कर चील्लाहट देख कर उनके जोश को लकवा मारने लगा था...

लल्ली↠‟माई रे माई...आईईईरेऐऐऐऐ माइईई...गलती हो गईईईईई, रंजू के बा...पूउउऊ! सो...सोहन बाहर ही है...देख लेगा। नीकाल लो अपना ई मुसल गांड फ़ाड़..र...हा है हमरी...)

बनवारी↠‟देखने दे मादरचोद को, उसे भी पता चले की, उसकी अम्मा की गांड कौन मार रहा है? बताया नही का की मैने तूझको अपनी लूगाई कैसे बनाया? आ...छीनाल..?बोल...?

और ये कहते हुए...बनवारी एक बार अपनी गांड उठाते हुए, लंड को बाहर गांड के मुहाने तक खींचता है...और एक जोरदार झटका देकर फीर से लल्ली की गांड पर बैठ जाता है। लल्ली का पूरा शरीर झनझना गया, वो छटपटाने लगती है...और इधर बनवारी से भी रहा नही जा रहा था तो। जोर-जोर से लल्ली की गांड में लंड के झटके मारने लगा।

वो तो अच्छा हुआ की लल्ली हर रोज बनवारी का लंड गांड में लेती थी तो, कुछ धक्को में संभल गयी और बनवारी के धक्को का साथ देने लगती है। इधर मुक्के से भयानक गांड चुदाई का नज़ारा देखते हुए सोहन के लंड ने ३ बार पानी छोड़ दीया था। तो वहीं बनवारी अभी तक लल्ली की गांड की सुराख को खुराक खीला रहा था...

आधे घंटे तक जोर-जोर से गांड की ठुकाई करके बनवारी ने अपना अमृत जल लल्ली की गांड की गहराईयो में भर देता है। और हाँफते हुए खाट पर लेट जाता है....

लल्ली अभी भी ज़मीन पर वैसे ही घोंड़ीयों की तरह गांड उठाये पड़ी थी। पप्पू और सोहन की नज़र लल्ली की गांड की सुराख पर पड़ी तो मुह खुले के खुले रह गये...
होश ठीकाने आते ही, सोहन बीना एक लफ़्ज बोले, अपना फावड़ा उठाता है और वहां से चला जाता है...


थोड़ी देर के बाद खाट पर लेटा बनवारी उठते हुए खड़ा होता है...और पैज़ाम पहनते हुए बोला-

बनवारी↠‟अब उठेगी भी, या ऐसे ही गांड उठाये घोड़ी बनी रहेगी? उठ नही तो फीर से पेल दूँगा लंड तोहरी गांड मे।)

लल्ली↠‟नही रे दईया...!अब दुबारा तुम्हरा लंड गांड पेलवाने की ताकत, हमरी गांड में नही बची है।)

और ये कहते हुए लल्ली एक हल्की कराह के साथ उठती हुई अपना पेटीकोट उठा कर पहनने लगती है। बनवारी पैज़ामा पहनते हुए वहां से चला जाता है। लल्ली भी अपनी साड़ी पहन कर जैसे ही झोपड़े से बाहर आती है, तो उसे उसका बेटा सोहन कहीं नही दीखाई पड़ता। ये देखकर वो मुस्कुराते हुए खुद से बोल बैठी....‟लगता है माँ की गांड बेरहमी से चुदते देख शरमा गया हमरा बेटवा)

लल्ली झोपड़े के सामने वाली हरी सब्जीयों की क्यारी में घुस जाती है...और काम करने लगती है। लल्ली अभी बैठी ही थी की....
Hot 🔥🔥🔥 mast start hai
 
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