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Erotica मोहे रंग दे

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग १० रीत -मस्ती, म्यूजिक, डांस

अपडेट पोस्टेड,

कृपया पढ़ें, आनंद ले, लाइक करें और अपने कमेंट जरूर बताएं
 
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komaalrani

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Not to worry about the comments, they automatically generated in the mind, while reading your marvelous writing.
Actually your writing skill is that, we imagine ourselves in the the story and forgot all.

That is the goal is i strive to achieve ...and let me confess ,,, when i conceive a scene it is a mix of memory , desires , fantasies , ... and i too almost see every thing , including , say the color of sky beyond my window , light and time of the day , perspiration on forehead ... all the tiny details ,... for may days i just cannot write but when i start , images run around me ...and i am in the center , ... that is why i can't write story in third person , ... i have to be in center of it .... and it is female dominated ... even in Phagun ke din chaar where i tried to give it a male perspective , three females , Guddi , ranjita and reet dominate the story ... and that is hwy stories are always based in the cities and areas i am comfortable
 

komaalrani

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Aapko padhne wale ab bhi yahan par hain par aapki old sari story nahi hain yahan par

Aap apni old story ko bhi yahan lekar aaiye aur jo incomplete thi i.e. JORU KA GHULAM usko complete kijiye.

Ye meri personal thinking hai aapke views and likes increase hi honge aur aapko wo post dalne ki jarurat hi nahi padegi

Aapka Purana Reader

i am posting Maja Loota Holi men with some additions ... and i did try to post Solahvan Saavan ....but response was very lukewarm, ... but yes may be some day after i am done with this story ...
 
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Reactions: Jaipara

komaalrani

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सलहज की बात



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मुझे इनकी सलहज की बात याद गयी ,

कितनी बार तो मुझे हड़काया था ,

पाहुन से पिछवाड़ा चटवाया था की नहीं ,


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गांड चटवायी


और आज एक बार नहीं दो बार , ...


पहले तो खड़े खड़े ,

और उन्होंने ही खुद ही , मैंने रबड़ी वहां भी तो लथेड़ भी दी थी ,


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और अभी उनके ऊपर चढ़ कर , बुर तो कितनी बार चटवायी थी ,



लेकिन आज सरक कर , ... और इस लड़के ने ,


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उसके बस का भी नहीं था ना नुकुर करना , मैं इस तरह ऊपर चढ़ी थी ,


लेकिन मजे ले लेकर उन्होंने चाटा


मैं कौन पीछे रहने वाली थी , अगर वो अपनी रीतू सलहज के नन्दोई थे ,


तो मैं अभी अपनी रीतू भाभी की ननद थी , ...

बस मेरी जीभ , ..एक पल के लिए सोच बोलूं , ...मैं हिचकिचाई , .. पर , अभी जो उन्होंने किया था ,

हलके हलके , गोल छेद पर नहीं उसके आस पास , ... जीभ वहां पहुँच भी नहीं पा रही थी ,


मैंने फिर उन्ही की ट्रिक अपनायी , ...


बिस्तर पर के जितने तकिये , कुशन थे सब उनके कमर के नीचे ,


एक दो उनके चूतड़ के भी , बस उसे उठा के , और अब जीभ वहां आराम से पहुँच रही थी ,


पर थोड़ी देर उस गोलकुंडा के दरवाजे के चारों ओर मेरी जीभ ने चक्कर काटे , जैसे नई जवान होती लौंडिया के घर के बाहर मोहल्ले के लौंडे चक्कर काटने लगते हैं ,

बस फिर हिम्मत कर के सीधे छेद पर , ...

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जिस तरह से वो गिनगिनाये , खूंटा उनका फनफनाया , ... मैं समझ गयी मुझे उनकी एक जादू की बटन मिल गयी , ... फिर तो , जीभ सीधे छेद पर

लपड़ लपड़ , सपड़ सपड़

मेरे मन ने खुद से कहा ,

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कोमल , प्यार में कुछ भी गन्दा , असहज , मना नहीं होता , जो मन को अच्छा लगे , वही अच्छा ,

और मेरे लिए तो सिर्फ एक कसौटी थी ,


मेरे आनंद को जो आनंद दे , ...

बस मैंने कस के दोनों हाथ से उनके नितम्ब फैलाये और


जीभ की टिप अंदर , ...

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गोल गोल , कभी अंदर बाहर

और मेरा एक हाथ अभी भी खड़े तन्नाए , खूंटे को सहला देता तो कभी उनके बॉल्स को हलके से छू देता , पकड़ के हौले से दबा देता ,

जीभ मैंने बाहर निकाली , जैसे बच्चे थूक से बबल गम बनाते हैं , उसी तरह मुंह में खूब ढेर सारा थूक भर के ,

और अबकी दोनों हाथों को लगा के दोनों हाथ के अंगूठे से कस के पकड़ के ,

पिछवाड़े वाले उनके छेद को पूरी तरह से चियारा ,

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वो जोर जोर से सिसक रहे थे , छटपटा रहे थे , मचल रहे थे , ...



पर वो कौन मुझे छोड़ते थे जो मैं उन्हें छोड़ दूँ

और पूरा थूक का गोला उनके पिछवाड़े वाले खुले , चियारे हुए छेद में , पूरा थूक उनकी गांड में , ...



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और एक बार नहीं , दो बार , तीन बार , ... और उसके बाद ,

फिर से मेरी जीभ , ... और अबकी सिर्फ टिप नहीं ,
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क्या कोई लड़की बौरायेगी ,


जिस तरह से वो चूतड़ पटक रहे थे ,

जैसे उनकी जीभ मेरी क्लिट से जब छू जाती थी , जब वो कस कस के मेरी क्लिट चूसते , और मैं मिनट भर में झड़ जाती , बस एकदम उसी तरह ,

और न वो छोड़ते थे , न मैंने छोड़ा , ... मेरी जीभ अंदर कस कस के , साथ में मेरे दोनों होंठ भी चिपक गए थे

ये सब ट्रिक मैंने उन्ही से सीखा था ,

मेरी गुलाबो के दोनों होंठों को अपने होंठो के बीच दबा के कस कस के चूसते हुए , वो अपनी जीभ मेरी बिल में पेल देते थे ,

और फिर , ... अंदर की दीवालों पर , उन्हें यहाँ तक की पता था की मेरा जी प्वाइंट कहाँ है , ...

उस लड़के ने पहली दो रात में मेरी देह के हर रहस्य खोल लिए थे




मैं चूस भी रही थी , चाट भी रही थी और अपनी जीभ से उनकी गांड ,


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.. यस ,... उनकी गांड मार भी रही थी ,


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थोड़ी देर उन्हें एकदम पागल करने के बाद मैं एक बार फिर उन्हें छोड़कर , ... रजाई में घुस गयी , ... और कहाँ उन से दुबक कर ,

हाँ लेकिन मेरी पीठ उन से चिपकी थी , ...





मैं सोच रही थी देखती हूँ अब जनाब ये क्या करते हैं ,

लेकिन ये लड़का सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं तेज था ,

उन्होंने कुछ नहीं किया

सिरफ पीछे से मुझे दबोच लिया




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komaalrani

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मैं साजन की , ...साजन मेरा

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लेकिन ये लड़का सिर्फ पढ़ाई में ही नहीं तेज था ,


उन्होंने कुछ नहीं किया

सिरफ पीछे से मुझे दबोच लिया


हम दोनों करवट लेटे , मैं उनकी ओर पीठ किये , वो मुझे पीछे से पकडे , दबोचे ,... मेरे उभार को जकड़े पकडे ,

हम दोनों सर से पैर तक रजाई ओढ़े थे , पर रजाई के अंदर ही ,

कुछ देर तक तो मेरा जोबन ही कस कस के रगड़ते मसलते रहे ,


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अपने पैर के जोर से ही उन्होंने मेरी जाँघे पीछे से खोल दी , मैंने भी टांग अपनी उठा दी।

बस इतना काफी था ,


उनका खूंटा तो वैसे ही मेरी गुलाबो को लगातार धक्का मार रहा था ,

बस जो उन्होंने कस के मेरे उभार को पकड़ के धक्का मारा तो बस ,

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दो तीन धक्कों में उनका मोटा सुपाड़ा मेरे अंदर था , फिर तो वो एक धक्का वो आगे की ओर मारते तो दूसरा धक्का , पीछे की ओर मैं मारती , ...

न उन्हें जल्दी थी , न मुझे , ...

कुछ ही देर में आधे से ज्यादा लंड मेरी चूत के अंदर ,

न मैं कुछ बोल रही थी , न वो ,

बस जब मैं पीछे की ओर धक्का मारती तो मेरी हजार घुँघरू वाली चांदी की पायल , रुनझुन रुनझुन कर के खिलखिला पड़ती ,

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तो कभी जो मेरी सास ने करधनी दी थी वो गाने लगती।

आधा से ज्यादा डाल के वो रुक गए , और मैं भी , क्योंकि फिर उनके होंठ , हाथ मैदान में आ गए।


पीछे से लेटे लेटे वो कभी कचकचा के मेरे गोरे गोरे गाल चूम लेते तो कभी कचकचा के काट लेते ,

एक हाथ जो जोबन पे था , अब मेरे निपल को कभी फ्लिक करता तो कभी गोल गोल घुमाता ,

और दसरा हाथ मेरी सहेली को सहला रहा था ,

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मैं मस्ता रही थी , सिसक रही थी ,



इसी का तो हफ्ते भर से मैं इन्तजार कर रही थी ,


और फिर आज ही मेरी वो पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी थी ,


उस दिन तो ऐसी आग लगती है , कोई नयी ब्याही दुल्हन ही ये आग समझ सकती है ,




उनका हर एक टच , हर चुम्बन , और मेरी गुलाबो घुसा उनका वो मोटा खूंटा , ... बस आग लग रही थी ,


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धक्के रुके नहीं थे , बस धीमे हो गए थे , ...अब सिर्फ मैं धक्का लगा रही थी , धीरे धीरे ,



अपनी कमर के जोर से , नितम्बो के जोर से , और वो मूसलचंद सूत सूत कर , सरक सरक कर , आगे बढ़ रहा था ,

था भी तो स्साला एक बीत्ते का , एकदम बांस , ... मोटा बांस ,...

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मम्मी ने जाने कहाँ से चुन कर दामाद अपना , ...

और मम्मी क्यों , पसंद तो मैंने ही किया था , ... पहल भले इन्होने की थी ,

लेकिन घंटी तो मेरे दिल में भी उन्हें देखते ही जोर जोर से बजने लगी थी ,

कोमल यही है जिसका तू इन्तजार कर रही थी ,

कोमल छोड़ना मत इस लड़के को चाहे जो हो जाय ,...
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उन्होंने मेरी जेठानी से बात करवाई थी ,

लेकिन मैंने भी तो रीतू भाभी से कह के , पीछे पड़ के , ...


भले ही उनके होंठ हाथ अपने काम में मस्त थे उन्होंने धक्के लगाने बंद कर दिए थे ,

पर मेरे धक्के का साथ देते अब वो सिर्फ पूरी ताकत से पुश कर रहे थे ,

दोनों हाथों ने उनके मुझे न सिर्फ जकड़ रखा था बल्कि उनकी ओर खींच रखा था , मेरी कोमल कोमल जाँघे पूरी तरह खुली ,

मेरे धक्के , उनका पुश , ... वो बहुत धीरे धीरे ही लेकिन अंदर घुस रहा था , और बस जब थोड़ा सा बचा तो , उन्होंने मेरी कमर कस के पकड़ ली ,

मैं समझ गयी क्या होने वाला है , मैंने आँखे बंद कर ली ,

उन्होंने आधे से भी ज्यादा बाहर खींचा फिर क्या धक्का मारा ,

रजाई के अंदर भी मुझे तारे दिख गए , मैं जोर से चीखी , और सुपाड़ा सीधे बच्चेदानी पर मैं गिनगीना गयी ,

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लेकिन फिर कुछ देर देर तो वो चुपचाप ,

इतने चुपचाप भी नहीं , ... उनके नाख़ून मेरे जुबना पे अपने निशान बना रहे थे और दांत गालों पे , ...

और मैं कौन इतनी सीधी थी , मैं भी तो उनकी सलहज की ननद , मेरी गुलाबो अब कस कस के उनके पूरे घुसे मूसल को भींच रही थी , दबोच रही थी , सिकोड़ रही थी ,

जाड़े की रात में सैंया के संग रजैया में ,

जितने जोर से उनके हाथ मेरी चूँची दबोच रहे थे ,


उतनी ही जोर से मेरी चूत उनका लंड दबोच रही थी , धक्के का तो सवाल ही नहीं था , वो मेरी बच्चेदानी तक घुसा हुआ था ,

मेरी गुलाबो की शरारतों का असर , या उनका अपना मन , ... धीरे धीरे कर के उन्होंने काफी बाहर निकाल लिया और अबकी फिर हौले हौले धक्के ,

एक उनका पीछे से , आगे की ओर

दूसरा मेरा आगे से , पीछे की ओर


जैसे मैं झूला झूल रही होंऊ , एक पेंग ये मार रहे , एक ओर से और दूसरी ओर से मैं पेंग मार रही हूँ ,

माघ पूस की रात में सावन का मजा आ रहा था ,

देर तक , एक नया मजा , ...


हाँ , अगर मैं कहीं किनारे पहुँचने को होती तो वो बस धक्के रोक देते , और साथ में अपने दांत कभी मेरे गुलाबी गालों पर गड़ा देते , तो कभी सीने के ऊपरी हिस्से पे , और कुछ देर रुक कर धक्के चालू हो जाते , पीछे से उनके , आगे से मेरे ,


बहुत देर बाद जब मैं झड़ी तो उन्होंने झड़ने दिया , लेकिन साथ साथ उन्होंने क्या कस के धक्का मारा सीधे मेरी बच्चेदानी पे , और साथ में वो भी झड़ रहे थे , ढेर सारी मलाई सीधे मेरी बच्चेदानी के मुंह पे ,

( शादी के महीने पर पहले से ही जो मेरी वो पांच दिन वाली छुट्टी ख़तम हुयी तो मम्मी और रीतू भाभी दोनों ने मिल के मुझे गोली खिलानी शुरू कर दी थी , इसिलए और कोई डर नहीं था , हाँ ये मुझे मालूम था , जिस दिन मैं चाहूंगी , गोली बंद , तो बच्चा अंदर , ... लेकिन हम दोनों ये बात पहले ही तय कर ली थी, ... नो केंहां केंहां ,... उसके बाद चार साल का गैप , फिर एक और ,.. फिर स्टाप बोर्ड )

वो एक बार में झड़ के कहाँ रुकते थे , कटोरी भर मलाई कस के , और थोड़ा सा रुक के फिर दुबारा , ...

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हम दोनों वैसे ही लिपटे रहे , न उन्होंने बाहर निकाला , न मैं सरकी , ...बैसे ऐसे ही हम दोनों करवट लेटे।

वो मेरे अंदर जड़ तक धंसे मेरे जोबन को पकडे , पीछे से चिपके आगे की ओर प्रेस करते , और मैं पीछे की ओर प्रेस करती ,

हाँ कुछ देर में रिस रिस कर कुछ मलाई की बुँदे सरक सरक के , मेरी चिकनी जाँघों पर , ... मैंने परवाह नहीं की उसी तरह लेटी रही रजाई सर से पैर तक ओढ़े ,...

हाँ कान में चार बजने के घंटे की आवाज सुनाई जरूर पड़ी , .. पास में एक बैंक था वहां का चौकीदार हर घंटे पर घण्टा बजाता था और रात के सन्नाटे में साफ़ सुनाई देता था ,

मुझे याद आया थोड़ी देर पहले जब वो झड़े थे और मैं उनके ऊपर चढ़ी रबड़ी मलाई खिला रही थी , दीवाल घडी पर मेरी नजर पड़ी थी

ढाई बजा था ,

फिर , पता नहीं हम सो गए या वैसे ही जगे रहे , लेकिन उनका मूसल उसी तरह मेरे अंदर जड़ तक धंसा रहा , ...

सुबह सुबह सारे मर्दों की आदत होती है , इनकी तो और ,...
शायद पांच बजा था इनका खूंटा एकदम तन्नाया पीछे से मेरे चूतड़ के बीच ठोकर मार रहा था ,

न इन्हे कुछ कहने की जरुरत पड़ी , न इशारा करने की , ... मैं खुद समझ गयी।

बस वही इनकी फेवरिट पोज़ ,
 
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komaalrani

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