- 3,528
- 15,954
- 159
Last edited:
वंश आगे कैसे बढ़ेगा...लेकिन 15 दिन भी नहीं गुजरे होंगे सब उनके पीछे पड़ गए की वो एक बच्चा और करे।
मेरे भाईबड़प्पन है आपका।
इस कहानी ने अनेकों बार मेरी ईगो को चुनौती दी है पर अंततः प्रेम और समर्पण का ही पाठ पढ़ाया है।
आशा करता हूं ये मुल्यवान सीखें जीवन भर साथ रहें।
बहुत बढ़िया, अंततः नीलू को पिता मिल ही गया, और साथ में अथाह प्रेम के सागर जैसा परिवार।
(नया लोगो जच रा है भैया।)
अमर और नीलू की डेट सुखद रही। लेकिन नीलू का पास्ट सुनकर बहुत बुरा भी लगा।
मै समझ नही पा रहा हूं कैसे नीलू की माॅम ने रोज रोज के प्रताड़ना के बावजूद भी अपने हसबैंड से सेक्सुअल सम्बन्ध बनाती रही।
उसका बाप वास्तव मे एक सनकी पागल और साइको था। एक लड़की और वह भी जवानी की ओर कदम रखती , को नंगी करके घर के बाहर खड़ा कर दिया। इतने निकृष्टतम कार्य के बाद भी नीलू की मां ने कैसे उसे अपना शरीर छुने दिया !
नीलू का बचपन बहुत सी कड़वाहट यादों से भरा होगा और यह उसकी बातों से जाहिर भी हो रहा है। अमर की जिम्मेदारी बनती है उसे कड़वी यादों से बाहर निकालने की।
वैसे पहली मुलाकात मे ही सेक्स से सम्बंधित बातें और घर के चारदीवारी के अंदर पुरी तरह से बेपर्दा रहने की बात अमर को नही कहनी चाहिए थी।
सच कहना अच्छी बात है लेकिन वो सच उचित समय और मौके पर कहनी चाहिए।
मुझे लगता है बेपर्द होने का आभास नीलू को प्रत्यक्ष हो ही जाता जब वो एक रात अमर के आवास मे गुजारती। और उस वक्त अमर इस चीज को अच्छी तरह से समझा सकता था।
बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग अपडेट।
चांसेज ना के बराबर ही है। आलरेडी काफी अच्छी अच्छी कहानी आ चुकी है। बीच मे रोड़ा क्यों अटकाऊ मैं !बिल्कुल ही सही बात है।
लेकिन अमर की एक दिक्कत है - उनका IQ तो बहुत है, लेकिन EQ में बहुत गुंजाइश है। यह बात सभी पाठकों के सामने है। असल जीवन में भी वो वैसे ही हैं। कभी कभी वो ऐसी बातें बोल देते हैं कि लगता है कि कैसा गधा आदमी है ये। लेकिन जो उनको जानते हैं, वो समझ जाते हैं उनके कहे का मंतव्य। और बुरा नहीं मानते।
वैसे अनेकों परिस्थितियों में अमर को जब इमोशनल बुद्धिमत्ता दिखानी थी, वो उन परिस्थितियों में मात खा गए। लेकिन जब बिजनेस जमाने और बढ़ाने की बात आई, तब उनके जैसा भी कम ही देखा। दूसरों की मदद करना उनके जैसा नहीं देखा।
जहां तक रचना का अपने पति के साथ रहने वाली बात है, जिस दिन उसने ये नीच करम किया, रचना नीलू को ले कर बाहर हो ली। आश्चर्य इस बात का है कि उस पर लीगल केस क्यों नहीं किया!
बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई। आप कोई कहानी नहीं लिख रहे USC पर?
वावअंतराल - समृद्धि - Update #17
नीलू से मिलने की मेरी इच्छा न केवल इस बात से प्रेरित थी कि मैं उसको जानूँ और समझूँ, बल्कि इस बात से भी कि पापा किस तरह से बच्चों से घुल मिल कर व्यवहार करते थे। उनसे बहुत प्रेरणा मिली। उन्ही के कारण मैंने समझा कि अपने दुःख और काम में व्यस्तता के कारण मैं क्या खो रहा था। उस समझ के कारण न केवल मेरा पुचुकी और मिष्टी से सम्बन्ध सुधरा, बल्कि जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण भी बहुत सकारात्मक हुआ। जब अच्छी प्रेरणा मिले, तो उसको पूरे दिल से स्वीकार लेना चाहिए।
अगले दिन मैं नीलू के साथ अपने फादर - डॉटर डेट के लिए उसको लेने फिर से उसके स्कूल पहुँच गया। रचना और नीलू दोनों स्कूल के गेट पर ही खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मैंने रचना से कुछ देर हल्की फुल्की बातें करी, फिर उसको होंठों पर चूम कर [इस हरकत पर नीलू की मुस्कान देखने योग्य थी] उससे विदा ली। मैंने यह भी कहा कि मैं नीलू को वापस घर छोड़ दूँगा , इसलिए रचना इस बात की चिंता न करे! जाहिर सी बात है, रचना को इस बात की कोई चिंता नहीं थी।
मेरा नीलू से मिलने का सबसे बड़ा कारण यह था कि अगर मेरी और रचना की शादी होनी ही है, तो बेहतर यही है कि मैं और नीलू और साथ ही साथ मिष्टी और पुचुकी भी उससे मिल लें और आपस में एक दूसरे को समझ लें। परिवार में करीबी होनी आवश्यक है - ख़ास तौर पर तब, जब घर के बच्चे बचपने से तरुणाई की ओर बढ़ रहे हों! यह बड़ी नाज़ुक सी उम्र होती है। बच्चों का व्यक्तित्व पूरी तरह से बन तो जाता है, लेकिन उसकी फिनिशिंग नहीं हुई रहती। इस कारण से अपने संबंधों के साथ उनका टकराव और घर्षण होता रहता है। दूसरी बात यह थी कि रचना ने बेहद खुले रूप से पुचुकी और मिष्टी को अपनाया था। बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी शिकायत के! तो मुझे भी वही करना चाहिए न? वैसे भी, अगर मुझे उसका डैडी बनना है, तो मुझे वाकई उसका डैडी बनना होगा। हमारे बीच में करीबी होनी आवश्यक थी। उसके लिए मुझे उसको समझना जानना ज़रूरी था।
गाड़ी चलाते समय मैंने उससे छोटी मोटी बातें करनी जारी रखी - पहले दिन के मुकाबले, आज नीलू मुझसे अधिक खुल कर बातें कर रही थी! शायद वो इस बात से खुश भी थी कि वो मेरे साथ बाहर आई हुई थी। मैंने उससे उसके पसंदीदा खाने की जगह के बारे में पूछा, तो उसने कहा कि जहाँ मैं ठीक समझूँ, वहीं ठीक है। तो हम एक सुंदर से, ओपन एयर फैमिली रेस्तरां गए - मेरी पसंद की जगह थी। यहाँ उनके पास बच्चों के पसंद की एक लम्बी फ़ेहरिस्त थी। जब उसके हाथ में मेन्यू आया, तो उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि किसी बच्चे को खिलौनों की दूकान में ले आया गया हो, और उससे कहा गया हो कि जो मन करे, ले लो! किशोरवय बच्चे खुद को बड़ा समझने तो लगते हैं, लेकिन रहते वो बच्चे ही हैं। खैर, कोई दस मिनट लगाने के बाद बेचारी ने कोला और पिज़्ज़ा लेने का फैसला किया! मैंने ही जबरदस्ती कर के छोटा पिज़्ज़ा, एक बर्गर, और कुछ फ़्राईस भी जुड़वा दिए। अपने लिए मैंने हल्का सा लंच मँगवाया - वेजिटेबल सैंडविच और चाय!
हम फिलहाल कुछ देर इधर उधर की बातें करते रहे; वो अपनी मम्मी के बचपन की बातें मेरे मुँह से सुनना चाहती थी। शायद जानना चाहती थी कि उसमें और उसकी मम्मी के कितनी समानताएँ थीं! कोई पंद्रह मिनट में हमारा आर्डर टेबल पर सजा दिया गया।
“आप... मम्मी से शादी करने वाले हैं क्या, अंकल?” कुछ देर बाद उसने पूछा!
उसका मुँह पिज़्ज़ा से भरा हुआ था, और पिघले हुए चीज़ की एक पतली सी लंबी रस्सी अभी भी उसके होंठों को पिज़्ज़ा की आधी कटी स्लाइस से जोड़ रही थी। और वो चूस चूस कर चीज़ को खा रही थी। पिज़्ज़ा गरम था और चीज़ भी - इसलिए मुँह जल भी रहा होगा। लेकिन फिर भी बिना पिज़्ज़ा खाए दिल मानता ही नहीं! देख कर अच्छा लगा कि वो मेरे सामने कम्फर्टेबल है।
“करना तो चाहता हूँ बेटा! आपके ख़याल से ये ठीक रहेगा? आई मीन... आपकी मम्मी और मैं... एस हस्बैंड एंड वाइफ? एंड यू एस आवर डॉटर?”
“आई थिंक सो अंकल! मम्मी आपको पसंद करती हैं... इट इस सो ऑब्वियस! ... मुझे भी आप पसंद हैं!” ये आखिरी वाला वाक्य कहते हुए उसके गाल थोड़े लाल से हो गए!
“दैट्स गुड! ... थैंक यू, हनी!”
“... मम्मी जब आपके साथ होती हैं... या आपकी बातें करती हैं... तो बहुत अच्छी लगती हैं… मुस्कुराती हैं। अपनी उम्र से कम लगती हैं। उनकी आवाज़ बदल जाती है। नहीं तो वो बहुत दिनों से... आई मीन... शी हैस बीन वैरी एंग्री वुमन!”
मैंने इंतजार किया कि नीलू अपनी बात पूरी करे! लेकिन उसने बात वहीं छोड़ दी।
नीलू ने आराम से अपना पिज़्ज़ा चबाया, और ऊपर से सोडा की एक बड़ी सी घूँट ली। फिर अचानक ही बोली,
“डैडी और मम्मी के बीच बहुत झगड़े हुआ करते थे। ... हर दिन… एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था, कि उनके बीच किसी न किसी बात पर बहस न हुई हो…”
यह बात तो रचना ने भी बता दी थी।
मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“लेकिन फिर न जाने क्या होता... रात में वो दोनों फिर से दोस्त बन जाते...”
मुझको अच्छी तरह मालूम था कि रात में क्या होता था।
“इंटरेस्टिंग!” लेकिन मैंने बस उतना ही कहा।
“हाँ न... दिन भर झगड़ा करने के बाद, रात में वो ऐसे बिहैव करते कि जैसे दोनों बेस्ट फ्रेंड हों!”
मैं मुस्कुराया।
“वो दोनों जुड़ जाते थे... और एक दूसरे को चूमते रहते थे!”
“जुड़ जाते थे? मतलब?”
“आई मीन,” उसने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा, “डैडी हर रात अपने पीनस को मम्मी के अंदर डाल कर स्लाइड करते थे!” कहते हुए नीलू के गाल लाल हो गए।
‘हे भगवान!’ मैंने सोचा, ‘ये तो अपनी माँ पर ही गई है! अपने मम्मी पापा को सेक्स करते हुए देखी है!’
फिर ये ऐसी आश्चर्यजनक बात भी नहीं थी। रचना का एक्स-हस्बैंड कहीं भी, खुले में शुरू हो जाता था। ऐसे में घर का कोई भी सदस्य उनको सेक्स करते हुए देख सकता था।
“इट इस ओके हनी... हस्बैंड एंड वाइफ के बीच में यह तो होता ही है!” मैंने उसको समझाया, “और इसको सेक्स करना कहते हैं!”
उसने सोडा का एक बड़ा सा घूँट पिया। उसको मालूम था कि पति पत्नी के बीच होने वाली अंतरंग क्रिया को क्या कहते हैं।
“क्या आप भी मम्मी के साथ वो सब करेंगे? आई मीन, सेक्स?”
मैं अचकचा गया; फिर सम्हलते हुए बोला,
“इनडीड आई विल... विल यू माइंड?”
उसने ‘न’ में सर हिलाते हुए दूसरा प्रश्न पूछा, “हर रात?”
“हर रात!” मैंने एक तरह से वादा किया।
“गुड! मम्मी सीम्स टू लाइक डूइंग इट!”
हम दोनों ही कुछ देर चुप रहे - वैसे भी बच्चों से क्या बातें करें, उसमें मेरा हाथ बहुत तंग था। सीख रहा था, लेकिन पापा जैसी कुशलता नहीं थी मेरे पास। और किसी बच्चे से सेक्स के विषय पर चर्चा कैसे करी जाय, मुझे नहीं मालूम था। कठिन था मेरे लिए बहुत। इसलिए मैंने बात को अलग दिशा दी,
“नीलू... हनी... क्या आप इस रिश्ते से खुश होगी? आपको अच्छा लगेगा कि मैं और आपकी मम्मी की शादी को जाए?”
“हाँ! आई विल बी वैरी हैप्पी! आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि मुझे अच्छा नहीं लगेगा? ... नाना नानी घर में अक्सर आपके और आपकी फॅमिली के बारे में बातें करते हैं। आई नो यू आर अ गुड मैन... एंड योर मॉम इस आल्सो वैरी गुड!”
“आई ऍम सो ग्लैड टू हिअर दिस नीलू!”
“प्लीज डोंट वरी अंकल! मम्मी स्वीट हैं... बहुत स्वीट हैं... लेकिन वो... डैडी के कारण वो बहुत बिटर हो गई हैं!”
मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
उसके चेहरे से अचानक ही ख़ुशियों वाले भाव गायब हो गए।
“ही यूस्ड टू स्कोल्ड मी एंड बीट मी फॉर नो रीज़न... मुझे लगता है कि वो मुझसे नफरत करते थे!”
“ओह, यू डू नॉट से!”
“बट इट इस ट्रू, अंकल!” नीलू ने उदास स्वर में कहा, “वो सच में मुझसे नफरत करते थे... आई थिंक... उनको लड़का चाहिए था... लड़की नहीं!”
अब तो उसकी आँखें भी उदास हो गईं थीं, “और तो और, वो मुझे स्कूल भी नहीं जाने देना चाहते थे... कहते थे कि पढ़ाई से अधिक घर का काम सीखूँ! अपनी माँ के जैसी न बनूँ! ... वही असली लाइफ स्किल है! ... इसलिए भी आए दिन मम्मी पापा का झगड़ा होता रहता!”
उसने सोडा का एक और सिप लिया, और बड़ी कठिनाई से उसको निगला। शायद उसका गला रूँध गया था।
“... वो तो मम्मी ने इस स्कूल में टीचर की जॉब ज्वाइन कर ली थी, नहीं तो मुझे किसी फालतू से स्कूल में एडमिट करवाया था उन्होंने! ... यहाँ पर फ़ीस भी आधी थी, इसलिए वो कुछ कर नहीं सके!”
सच में यस सब जान कर मुझे दुःख हुआ। अपने ही बच्चों की पढ़ाई लिखाई कोई कैसे रोकना चाह सकता है? और ऐसा व्यक्ति जिसमें आर्थिक सामर्थ्य है। मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ सहानुभूति और समर्थन दर्शाते हुए रख दिया। वो थोड़ा संयत हुई। लेकिन आँखें भर आई उसकी।
“हफ्ते में दो तीन बार मेरी पिटाई हो ही जाती थी... मम्मी की भी अक्सर हो जाती! ... लेकिन फिर रात में उनकी तो दोस्ती हो जाती थी, और मैं कन्फ्यूज्ड रहती कि किससे बात करूँ... किसके पास जाऊँ! दादी को भी मैं नापसंद थी। ...फिर एक दिन तो हद हो गई! संडे था... और रोज़ के जैसे ही किसी मामूली बात पर मुझको डाँट पड़ने लगी। मैंने भी शायद कुछ बोल दिया हो... ही स्टार्टेड टू बीट मी... बहुत मारा... और फिर मुझे नंगी कर के घर के बाहर खड़ा कर दिया।”
“व्हाट!?”
‘कैसा आदमी है वो?’ मुझे भरोसा ही नहीं हुआ जो मैंने सुना!
मेरे बच्चे भी नग्न रहते हैं, लेकिन घर के अंदर! सभी से सुरक्षित और स्वतंत्र! अपनी मर्ज़ी से! उनका तिरस्कार नहीं होता। उनको प्रेम ही मिलता है; उनको अपने तरीके से जीने का एक अवसर मिलता है। अपनी एकलौती लड़की को इस तरह से घर के बाहर खड़ा कर देना! ओफ़्फ़! कोई बदमाश उसके साथ कुछ कर देता, तो?
“हाँ... संडे था... और पूरा ब्रॉड डे लाइट! ... आई वास सो अफ्रेड एंड अशेम्ड...!” कहते कहते वो रुक गई।
मैंने उसे और कुछ बताने के लिए न तो दबाव डाला, और न ही उकसाया। यह कोई चटकारे ले कर सुनने कहने वाली बात नहीं थी। उस आदमी को जेल में होना चाहिए। साइकोपाथ पूरा!
“कभी आप मेरे घर आना नीलू... रुक जाना रात में! मेरी बच्चियों से मिलना। उनके साथ खेलना... आई होप कि आप सभी एक दूसरे को बहुत पसंद करोगे! एंड आई होप कि हम एक साथ, खुश रहेंगे!” मैंने मुस्कराते हुए कहा।
नीलू भी मुस्कुराई, और ‘हाँ’ में उसने सर हिलाया।
“आप सिगरेट पीते हैं?” कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने अचानक ही पूछ लिया।
उसके इस प्रश्न पर मुझे हँसी आ गई।
“नहीं बेटा!”
“ड्रिंक करते हैं?”
“हाँ!”
“ओह!”
“आपको नहीं ठीक लगता, तो नहीं करूँगा!”
“ओके...! लेकिन अगर आपको ठीक लगता है तो करिए... लेकिन कभी कभी... बहुत नहीं!”
“यस माम!” मैंने अंग्रेजी एक्सेंट में कहा।
वो हँसने लगी। अच्छा लगा कि माहौल थोड़ा हल्का और सामान्य हो गया।
“मम्मी एज में आपसे बड़ी हैं न?”
“हाँ, लेकिन अधिक नहीं! डेढ़ साल...”
“फिर भी... आपको अजीब नहीं लगता?” वो मुस्कुराते हुए बोली, “मेरी निचली क्लास वाले मुझको दीदी कह कर बुलाते हैं!”
क्यों लगेगा अजीब? मेरे जीवन में हर लड़की स्त्री जो आई, वो मुझसे उम्र में बड़ी ही रही हमेशा! और रचना तो मेरी उम्र के सबसे करीब थी।
“हा हा हा! ... अरे अजीब क्यों लगेगा? आई लव हर! शी इस ब्यूटीफुल! शी इस अ गुड पर्सन... लव्स मी! और क्या चाहिए?” मैंने रुक कर पूछा, “अजीब लगना चाहिए क्या बेटा?”
“यू आर अ गुड मैन, अंकल!” नीलू ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... मम्मी इस लकी!”
“व्ही ऑल आर...” मैंने गहरी साँस भरते हुए कहा, “अभी आप बहुत छोटे हो, इसलिए आपको इस बात की बहुत समझ नहीं होगी... लेकिन जब प्यार मिले, तो उसको ले लेना चाहिए! उसी में समझदारी है!”
“आई अंडरस्टैंड दैट अंकल!”
“गुड!”
“आपकी पहले वाली वाइव्स कैसी थीं?”
“कौन सी? आई मैरीड ट्वाइस बिफोर!”
“दोनों!”
“दोनों बहुत अच्छी थीं, बेटा! एक दूसरे से बहुत अलग, लेकिन बहुत अच्छी!” मैं गैबी और डेवी के साथ बिताए गए हसीन पलों को सोचते हुए बोला, “बहुत कुछ सिखाया उन्होंने मुझको - अच्छा आदमी कैसा हो, अच्छा हस्बैंड कैसा हो... यह सब मैंने उनसे सीखा! अपने से बड़ी बीवी हो, तो बहुत कुछ सीख सकते हैं!”
नीलू मेरी बात पर मुस्कुराने लगी।
“इसीलिए तो मैंने कहा कि यू आर अ गुड मैन!” नीलू बोली।
मैं हँसने लगा - नीलू से बात करना अच्छा था, लेकिन कभी कभी वो ऐसी रहस्य्मय बातें करती थी कि समझ नहीं आता था कि उन पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाए!
हम दोनों कुछ देर शांति से अपना खाना खाते रहे, फिर मैंने कुछ सोच कर कहा, “मैं एक सीक्रेट शेयर करूँ?”
“हाँ! आई लव सीक्रेट्स!” वो चहकती हुई बोली।
“हा हा हा! अरे, ये वैसा सीक्रेट नहीं है! दिस माइट एफेक्ट यू!”
“अरे, ऐसा क्या सीक्रेट है अंकल?”
“हमारे घर में बच्चे... यू नो... आई मीन... जब तुम हमारे साथ रहोगी न बेटा, तो तुम्हारा जैसा मन करे, वैसे रहना!”
“मतलब?” नीलू को कुछ समझ नहीं आया।
“मतलब... मेरे बच्चे... आई मीन, आभा एंड लतिका... दे लव टू स्टे नेकेड एट होम!”
“व्हाट? सच में?”
“हाँ! सच में! ... और ये आज से नहीं, तब से हो रहा है, जब मैं छोटा सा था! तभी से माँ या डैड ने कभी मुझको नेकेड रहने से नहीं रोका! ... और फिर, बाद में आदत हो गई जो कभी छूटी नहीं। अपने मम्मी पापा के सामने बच्चों को जैसा मन करे, वो रह सकते हैं! यही बात हमने अपने बच्चों को भी सिखाया! उनको कभी नहीं टोका!”
मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर के लिए चुप हो गई।
कहीं उसको अपने बाप की बुरी हरकतें न याद आ गई हों; कहीं वो मेरे बारे में उल्टी पुल्टी धारणाएँ न बनाए हो; हमारे परिवार के बारे में वो न जाने क्या सोचे - मैं यही सब सोच कर घबराने लगा। अपना बच्चा होता है, तो आप उसके बारे में सब जानते समझते हैं। यहाँ दूसरे के बच्चे, नहीं - बच्ची, को ले कर और भी सतर्क रहना पड़ेगा। ‘ठरकी बुड्ढे’ वाली इमेज बन गई, तो फिर मिलने से रही कोई इज़्ज़त या मोहब्बत!
“और अब?” कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने पूछा।
“अब?”
“हाँ! मतलब, आप... अब?”
समझा।
“हाँ! अभी भी! अभी भी मैं अपने मम्मी, पापा, और दादी के सामने नेकेड रह लेता हूँ!”
“वो कुछ कहते नहीं?”
“नहीं! उनको तो ठीक लगता है। कुछ भी अलग नहीं लगता।”
“और जब मम्मी आपसे शादी करेंगी, तब?”
“आपकी मम्मी पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं होगी, यह वायदा है। उसको जैसे रहना है वो वैसे रहे!”
थोड़ा सोच कर, “सो, डू यू वांट मी टू बी नेकेड ऐट होम?”
“इफ़ यू वांट! इट इस योर होम नाऊ! तो जैसा अच्छा लगे आपको, आप वैसा करने के लिए फ्री हैं... हमारी तरफ से!”
“बट अंकल, आई ऍम ग्रोइंग बिग नाऊ!”
“बेटा, जैसा मैंने कहा, आपको कोई फ़ोर्स नहीं कर रहा है! आप अगर कम्फर्टेबल हो, करो! नहीं तो नहीं! डू व्हाट यू लाइक! लिव द वे यू लाइक!”
“गुड! थैंक यू अंकल! आई थिंक आई कैन ट्राई!” वो मुस्कुराई।
अपने मन से रहना आखिर किसको अच्छा नहीं लगेगा?
यही मौका था अगले रहस्योद्घाटन का।
“एंड... ऑल चिल्ड्रन इन आवर होम ब्रेस्टफीड!”
“वाओ!” फिर कुछ सोच कर, “ओह... इस दैट व्हाई...”
नीलू ने बात बीच ही में छोड़ दी। लेकिन मुझे लगा कि इस बात का सूत्र छोड़ना नहीं चाहिए। मैं और नीलू कनेक्ट कर रहे थे और अगर वो भी अपने राज़ मुझको बताने वाली थी, तो उसका मतलब है कि मैं भी उसका विश्वासपात्र बन रहा था।
“इस दैट व्हाई... व्हाट?”
“आई मीन,” नीलू शरमाते हुए बोली, “शायद इसीलिए मम्मी कल मुझको...”
“कल रचना ने तुमको ब्रेस्टफीड कराया क्या?”
उसने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।
“गुड!” मैंने संतुष्ट हो कर पूछा, “तुमको अच्छा लगा?”
“शी हैड नो मिल्क!”
हाँ तो केवल यही निराशा वाली बात रही। कोई बात नहीं!
“शी विल हैव!” मैंने रहस्यमय तरीके से कहा, “सून!”
“गुड!” नीलू खुश होते हुए बोली, “हर ब्रेस्ट्स आर बिग... बट दे हैव नो मिल्क! अजीब लगता है न अंकल!”
“हर ब्रेस्ट्स आर ब्यूटीफुल!” रचना की सुंदरता की याद करते हुए मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया।
“हैं? आपने देखा है?”
“ओह, हा हा हा...” मैंने हँसते हुए कहा, “आई शुडन्ट हैव सेड दैट!”
“इट इस ओके! ... आप नहीं देखेंगे, तो और कौन देखेगा!” फिर कुछ सोच कर, “आपको पता है... मम्मी ने कहा है कि वो अब से रोज़ मुझे ब्रेस्टफ़ीड कराएँगी... इफ आई वांट!”
“डू यू वांट टू?”
“ऑफ़ कोर्स!” नीलू वाक़ई खुश थी, “शी वास सो हैप्पी... एंड सो वास आई!”
“गुड!”
“आप दोनों जल्दी से शादी कर लीजिए... सो दैट आई कैन प्रॉपर्ली ब्रेस्टफीड अगेन!”
“हा हा! वो तो तुम अभी भी कर सकती हो... आई मीन, व्हेन माय मदर कम्स हियर!”
“आपकी मम्मी?”
“हाँ - बहुत पहले वो मुझको और तुम्हारी मम्मी दोनों को ब्रेस्टफीड कराती थीं!” मैंने हँसते हुए बताया, “अभी भी पिलाती हैं मुझको!”
“रियली? आप अभी भी मम्मी का दूध पीते हैं?”
“हाँ! मम्मी का भी, और दादी का भी!” मैंने कहा।
“ओह वाओ! आपकी माँ और दादी माँ कितनी अच्छी हैं! ... आई हेट माय दादी!”
“कोई बात नहीं बेटा! वो सब पुरानी बातें हो गईं!”
“आई नो!” फिर चहकते हुए, “आप मुझे अपने घर ले चलेंगे?”
“तुमको आना है? आई विल आस्क योर मम्मी?”
“यस प्लीज!” उसने पूरे उत्साह से कहा, और फिर अचानक ही, “बट इट इस ओके! न जाने मम्मी क्या सोचें!”
“हम्म! एक दो दिन वेट कर लो। तुम्हारी मम्मी का बर्थडे है न!”
“हाँ! आपको मालूम है? नाइस!” नीलू मुस्कुराती हुई, और लगभग मुझको छेड़ती हुई बोली, “उस दिन क्या करेंगे?”
“आपकी मम्मी का बर्थडे मेरे घर पे मनाएँगे! हाऊ अबाउट दैट?”
“दैट विल बी सो गुड!” नीलू बहुत खुश हो गई, “कितने ही साल हो गए... मम्मी ने अपना बर्थडे नहीं मनाया... मेरा बर्थडे यहाँ नानाजी के यहाँ आने के बाद मनाने लगे हैं। ... डैडी को तो कोई परवाह ही नहीं थी!”
“तो आपका भी मनाएँगे! कब है आपका बर्थडे?”
“लास्ट मंथ था। कोई बात नहीं... नेक्स्ट ईयर मनाएँगे! मम्मी का तो कोई नहीं मनाता... आई विल हेल्प यू इन मेकिंग दैट एन ओकेशन टू रिमेम्बर फॉर हर!”
“दैट्स गुड बेटा!”
वो मुस्कुराई, “अंकल... आई थिंक... आई थिंक आई विल लव टू हैव यू एस माय डैडी!”
“थैंक यू सो मच बेटा!” मन से एक बोझ उतर गया।
“आप मुझको खूब प्यार करेंगे?”
“बहुत!”
“थैंक यू... डैडी! थैंक यू!” नीलू बोली।
अचानक ही सुखद भावनात्मक रूप से वो पल इतना भारी हो गया कि मैं नीलू को बिना अपने सीने से लगाए न रह सका।
**