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Romance मोहब्बत का सफ़र [Completed]

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avsji

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Supreme
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प्रकरण (Chapter)अनुभाग (Section)अद्यतन (Update)
1. नींव1.1. शुरुवाती दौरUpdate #1, Update #2
1.2. पहली लड़कीUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19
2. आत्मनिर्भर2.1. नए अनुभवUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3. पहला प्यार3.1. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह प्रस्तावUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9
3.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21
3.3. पल दो पल का साथUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
4. नया सफ़र 4.1. लकी इन लव Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15
4.2. विवाह Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
4.3. अनमोल तोहफ़ाUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6
5. अंतराल5.1. त्रिशूल Update #1
5.2. स्नेहलेपUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10
5.3. पहला प्यारUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24
5.4. विपर्ययUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18
5.5. समृद्धि Update #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20
6. अचिन्त्यUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5, Update #6, Update #7, Update #8, Update #9, Update #10, Update #11, Update #12, Update #13, Update #14, Update #15, Update #16, Update #17, Update #18, Update #19, Update #20, Update #21, Update #22, Update #23, Update #24, Update #25, Update #26, Update #27, Update #28
7. नव-जीवनUpdate #1, Update #2, Update #3, Update #4, Update #5
 
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Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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लेकिन 15 दिन भी नहीं गुजरे होंगे सब उनके पीछे पड़ गए की वो एक बच्चा और करे।
वंश आगे कैसे बढ़ेगा...

आज भी लोग लड़का लड़की के नाम पर इसे एक यक्ष प्रश्न बनाए बैठे हैं, अरे लड़का आगे चल कर क्रिमिनल बन गया तो? बच्चों के सही परवरिश देने पर ध्यान नही देना है।

बुरा लगा जान कर की ऐसे राक्षस मानसिकता वाले लोग हैं जो औरत को बस एक दैहिक जरूरत समझते है.
 
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avsji

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Supreme
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बड़प्पन है आपका। :love2:
इस कहानी ने अनेकों बार मेरी ईगो को चुनौती दी है पर अंततः प्रेम और समर्पण का ही पाठ पढ़ाया है।
आशा करता हूं ये मुल्यवान सीखें जीवन भर साथ रहें।
मेरे भाई ❤️
 

avsji

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Supreme
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अंतराल - समृद्धि - Update #17


नीलू से मिलने की मेरी इच्छा न केवल इस बात से प्रेरित थी कि मैं उसको जानूँ और समझूँ, बल्कि इस बात से भी कि पापा किस तरह से बच्चों से घुल मिल कर व्यवहार करते थे। उनसे बहुत प्रेरणा मिली। उन्ही के कारण मैंने समझा कि अपने दुःख और काम में व्यस्तता के कारण मैं क्या खो रहा था। उस समझ के कारण न केवल मेरा पुचुकी और मिष्टी से सम्बन्ध सुधरा, बल्कि जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण भी बहुत सकारात्मक हुआ। जब अच्छी प्रेरणा मिले, तो उसको पूरे दिल से स्वीकार लेना चाहिए।

अगले दिन मैं नीलू के साथ अपने फादर - डॉटर डेट के लिए उसको लेने फिर से उसके स्कूल पहुँच गया। रचना और नीलू दोनों स्कूल के गेट पर ही खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मैंने रचना से कुछ देर हल्की फुल्की बातें करी, फिर उसको होंठों पर चूम कर [इस हरकत पर नीलू की मुस्कान देखने योग्य थी] उससे विदा ली। मैंने यह भी कहा कि मैं नीलू को वापस घर छोड़ दूँगा , इसलिए रचना इस बात की चिंता न करे! जाहिर सी बात है, रचना को इस बात की कोई चिंता नहीं थी।

मेरा नीलू से मिलने का सबसे बड़ा कारण यह था कि अगर मेरी और रचना की शादी होनी ही है, तो बेहतर यही है कि मैं और नीलू और साथ ही साथ मिष्टी और पुचुकी भी उससे मिल लें और आपस में एक दूसरे को समझ लें। परिवार में करीबी होनी आवश्यक है - ख़ास तौर पर तब, जब घर के बच्चे बचपने से तरुणाई की ओर बढ़ रहे हों! यह बड़ी नाज़ुक सी उम्र होती है। बच्चों का व्यक्तित्व पूरी तरह से बन तो जाता है, लेकिन उसकी फिनिशिंग नहीं हुई रहती। इस कारण से अपने संबंधों के साथ उनका टकराव और घर्षण होता रहता है। दूसरी बात यह थी कि रचना ने बेहद खुले रूप से पुचुकी और मिष्टी को अपनाया था। बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी शिकायत के! तो मुझे भी वही करना चाहिए न? वैसे भी, अगर मुझे उसका डैडी बनना है, तो मुझे वाकई उसका डैडी बनना होगा। हमारे बीच में करीबी होनी आवश्यक थी। उसके लिए मुझे उसको समझना जानना ज़रूरी था।

गाड़ी चलाते समय मैंने उससे छोटी मोटी बातें करनी जारी रखी - पहले दिन के मुकाबले, आज नीलू मुझसे अधिक खुल कर बातें कर रही थी! शायद वो इस बात से खुश भी थी कि वो मेरे साथ बाहर आई हुई थी। मैंने उससे उसके पसंदीदा खाने की जगह के बारे में पूछा, तो उसने कहा कि जहाँ मैं ठीक समझूँ, वहीं ठीक है। तो हम एक सुंदर से, ओपन एयर फैमिली रेस्तरां गए - मेरी पसंद की जगह थी। यहाँ उनके पास बच्चों के पसंद की एक लम्बी फ़ेहरिस्त थी। जब उसके हाथ में मेन्यू आया, तो उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि किसी बच्चे को खिलौनों की दूकान में ले आया गया हो, और उससे कहा गया हो कि जो मन करे, ले लो! किशोरवय बच्चे खुद को बड़ा समझने तो लगते हैं, लेकिन रहते वो बच्चे ही हैं। खैर, कोई दस मिनट लगाने के बाद बेचारी ने कोला और पिज़्ज़ा लेने का फैसला किया! मैंने ही जबरदस्ती कर के छोटा पिज़्ज़ा, एक बर्गर, और कुछ फ़्राईस भी जुड़वा दिए। अपने लिए मैंने हल्का सा लंच मँगवाया - वेजिटेबल सैंडविच और चाय!

हम फिलहाल कुछ देर इधर उधर की बातें करते रहे; वो अपनी मम्मी के बचपन की बातें मेरे मुँह से सुनना चाहती थी। शायद जानना चाहती थी कि उसमें और उसकी मम्मी के कितनी समानताएँ थीं! कोई पंद्रह मिनट में हमारा आर्डर टेबल पर सजा दिया गया।

“आप... मम्मी से शादी करने वाले हैं क्या, अंकल?” कुछ देर बाद उसने पूछा!

उसका मुँह पिज़्ज़ा से भरा हुआ था, और पिघले हुए चीज़ की एक पतली सी लंबी रस्सी अभी भी उसके होंठों को पिज़्ज़ा की आधी कटी स्लाइस से जोड़ रही थी। और वो चूस चूस कर चीज़ को खा रही थी। पिज़्ज़ा गरम था और चीज़ भी - इसलिए मुँह जल भी रहा होगा। लेकिन फिर भी बिना पिज़्ज़ा खाए दिल मानता ही नहीं! देख कर अच्छा लगा कि वो मेरे सामने कम्फर्टेबल है।

“करना तो चाहता हूँ बेटा! आपके ख़याल से ये ठीक रहेगा? आई मीन... आपकी मम्मी और मैं... एस हस्बैंड एंड वाइफ? एंड यू एस आवर डॉटर?”

आई थिंक सो अंकल! मम्मी आपको पसंद करती हैं... इट इस सो ऑब्वियस! ... मुझे भी आप पसंद हैं!” ये आखिरी वाला वाक्य कहते हुए उसके गाल थोड़े लाल से हो गए!

दैट्स गुड! ... थैंक यू, हनी!”

“... मम्मी जब आपके साथ होती हैं... या आपकी बातें करती हैं... तो बहुत अच्छी लगती हैं… मुस्कुराती हैं। अपनी उम्र से कम लगती हैं। उनकी आवाज़ बदल जाती है। नहीं तो वो बहुत दिनों से... आई मीन... शी हैस बीन वैरी एंग्री वुमन!”

मैंने इंतजार किया कि नीलू अपनी बात पूरी करे! लेकिन उसने बात वहीं छोड़ दी।

नीलू ने आराम से अपना पिज़्ज़ा चबाया, और ऊपर से सोडा की एक बड़ी सी घूँट ली। फिर अचानक ही बोली,

“डैडी और मम्मी के बीच बहुत झगड़े हुआ करते थे। ... हर दिन… एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था, कि उनके बीच किसी न किसी बात पर बहस न हुई हो…”

यह बात तो रचना ने भी बता दी थी।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर न जाने क्या होता... रात में वो दोनों फिर से दोस्त बन जाते...”

मुझको अच्छी तरह मालूम था कि रात में क्या होता था।

इंटरेस्टिंग!” लेकिन मैंने बस उतना ही कहा।

“हाँ न... दिन भर झगड़ा करने के बाद, रात में वो ऐसे बिहैव करते कि जैसे दोनों बेस्ट फ्रेंड हों!”

मैं मुस्कुराया।

“वो दोनों जुड़ जाते थे... और एक दूसरे को चूमते रहते थे!”

“जुड़ जाते थे? मतलब?”

आई मीन,” उसने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा, “डैडी हर रात अपने पीनस को मम्मी के अंदर डाल कर स्लाइड करते थे!” कहते हुए नीलू के गाल लाल हो गए।

‘हे भगवान!’ मैंने सोचा, ‘ये तो अपनी माँ पर ही गई है! अपने मम्मी पापा को सेक्स करते हुए देखी है!’

फिर ये ऐसी आश्चर्यजनक बात भी नहीं थी। रचना का एक्स-हस्बैंड कहीं भी, खुले में शुरू हो जाता था। ऐसे में घर का कोई भी सदस्य उनको सेक्स करते हुए देख सकता था।

इट इस ओके हनी... हस्बैंड एंड वाइफ के बीच में यह तो होता ही है!” मैंने उसको समझाया, “और इसको सेक्स करना कहते हैं!”

उसने सोडा का एक बड़ा सा घूँट पिया। उसको मालूम था कि पति पत्नी के बीच होने वाली अंतरंग क्रिया को क्या कहते हैं।

“क्या आप भी मम्मी के साथ वो सब करेंगे? आई मीन, सेक्स?”

मैं अचकचा गया; फिर सम्हलते हुए बोला,

इनडीड आई विल... विल यू माइंड?”

उसने ‘न’ में सर हिलाते हुए दूसरा प्रश्न पूछा, “हर रात?”

“हर रात!” मैंने एक तरह से वादा किया।

“गुड! मम्मी सीम्स टू लाइक डूइंग इट!”

हम दोनों ही कुछ देर चुप रहे - वैसे भी बच्चों से क्या बातें करें, उसमें मेरा हाथ बहुत तंग था। सीख रहा था, लेकिन पापा जैसी कुशलता नहीं थी मेरे पास। और किसी बच्चे से सेक्स के विषय पर चर्चा कैसे करी जाय, मुझे नहीं मालूम था। कठिन था मेरे लिए बहुत। इसलिए मैंने बात को अलग दिशा दी,

“नीलू... हनी... क्या आप इस रिश्ते से खुश होगी? आपको अच्छा लगेगा कि मैं और आपकी मम्मी की शादी को जाए?”

“हाँ! आई विल बी वैरी हैप्पी! आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि मुझे अच्छा नहीं लगेगा? ... नाना नानी घर में अक्सर आपके और आपकी फॅमिली के बारे में बातें करते हैं। आई नो यू आर अ गुड मैन... एंड योर मॉम इस आल्सो वैरी गुड!”

आई ऍम सो ग्लैड टू हिअर दिस नीलू!”

प्लीज डोंट वरी अंकल! मम्मी स्वीट हैं... बहुत स्वीट हैं... लेकिन वो... डैडी के कारण वो बहुत बिटर हो गई हैं!”

मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके चेहरे से अचानक ही ख़ुशियों वाले भाव गायब हो गए।

ही यूस्ड टू स्कोल्ड मी एंड बीट मी फॉर नो रीज़न... मुझे लगता है कि वो मुझसे नफरत करते थे!”

ओह, यू डू नॉट से!”

बट इट इस ट्रू, अंकल!” नीलू ने उदास स्वर में कहा, “वो सच में मुझसे नफरत करते थे... आई थिंक... उनको लड़का चाहिए था... लड़की नहीं!”

अब तो उसकी आँखें भी उदास हो गईं थीं, “और तो और, वो मुझे स्कूल भी नहीं जाने देना चाहते थे... कहते थे कि पढ़ाई से अधिक घर का काम सीखूँ! अपनी माँ के जैसी न बनूँ! ... वही असली लाइफ स्किल है! ... इसलिए भी आए दिन मम्मी पापा का झगड़ा होता रहता!”

उसने सोडा का एक और सिप लिया, और बड़ी कठिनाई से उसको निगला। शायद उसका गला रूँध गया था।

“... वो तो मम्मी ने इस स्कूल में टीचर की जॉब ज्वाइन कर ली थी, नहीं तो मुझे किसी फालतू से स्कूल में एडमिट करवाया था उन्होंने! ... यहाँ पर फ़ीस भी आधी थी, इसलिए वो कुछ कर नहीं सके!”

सच में यस सब जान कर मुझे दुःख हुआ। अपने ही बच्चों की पढ़ाई लिखाई कोई कैसे रोकना चाह सकता है? और ऐसा व्यक्ति जिसमें आर्थिक सामर्थ्य है। मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ सहानुभूति और समर्थन दर्शाते हुए रख दिया। वो थोड़ा संयत हुई। लेकिन आँखें भर आई उसकी।

“हफ्ते में दो तीन बार मेरी पिटाई हो ही जाती थी... मम्मी की भी अक्सर हो जाती! ... लेकिन फिर रात में उनकी तो दोस्ती हो जाती थी, और मैं कन्फ्यूज्ड रहती कि किससे बात करूँ... किसके पास जाऊँ! दादी को भी मैं नापसंद थी। ...फिर एक दिन तो हद हो गई! संडे था... और रोज़ के जैसे ही किसी मामूली बात पर मुझको डाँट पड़ने लगी। मैंने भी शायद कुछ बोल दिया हो... ही स्टार्टेड टू बीट मी... बहुत मारा... और फिर मुझे नंगी कर के घर के बाहर खड़ा कर दिया।”

व्हाट!?”

‘कैसा आदमी है वो?’ मुझे भरोसा ही नहीं हुआ जो मैंने सुना!

मेरे बच्चे भी नग्न रहते हैं, लेकिन घर के अंदर! सभी से सुरक्षित और स्वतंत्र! अपनी मर्ज़ी से! उनका तिरस्कार नहीं होता। उनको प्रेम ही मिलता है; उनको अपने तरीके से जीने का एक अवसर मिलता है। अपनी एकलौती लड़की को इस तरह से घर के बाहर खड़ा कर देना! ओफ़्फ़! कोई बदमाश उसके साथ कुछ कर देता, तो?

“हाँ... संडे था... और पूरा ब्रॉड डे लाइट! ... आई वास सो अफ्रेड एंड अशेम्ड...!” कहते कहते वो रुक गई।

मैंने उसे और कुछ बताने के लिए न तो दबाव डाला, और न ही उकसाया। यह कोई चटकारे ले कर सुनने कहने वाली बात नहीं थी। उस आदमी को जेल में होना चाहिए। साइकोपाथ पूरा!

“कभी आप मेरे घर आना नीलू... रुक जाना रात में! मेरी बच्चियों से मिलना। उनके साथ खेलना... आई होप कि आप सभी एक दूसरे को बहुत पसंद करोगे! एंड आई होप कि हम एक साथ, खुश रहेंगे!” मैंने मुस्कराते हुए कहा।

नीलू भी मुस्कुराई, और ‘हाँ’ में उसने सर हिलाया।

“आप सिगरेट पीते हैं?” कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने अचानक ही पूछ लिया।

उसके इस प्रश्न पर मुझे हँसी आ गई।

“नहीं बेटा!”

“ड्रिंक करते हैं?”

“हाँ!”

“ओह!”

“आपको नहीं ठीक लगता, तो नहीं करूँगा!”

“ओके...! लेकिन अगर आपको ठीक लगता है तो करिए... लेकिन कभी कभी... बहुत नहीं!”

यस माम!” मैंने अंग्रेजी एक्सेंट में कहा।

वो हँसने लगी। अच्छा लगा कि माहौल थोड़ा हल्का और सामान्य हो गया।

“मम्मी एज में आपसे बड़ी हैं न?”

“हाँ, लेकिन अधिक नहीं! डेढ़ साल...”

“फिर भी... आपको अजीब नहीं लगता?” वो मुस्कुराते हुए बोली, “मेरी निचली क्लास वाले मुझको दीदी कह कर बुलाते हैं!”

क्यों लगेगा अजीब? मेरे जीवन में हर लड़की स्त्री जो आई, वो मुझसे उम्र में बड़ी ही रही हमेशा! और रचना तो मेरी उम्र के सबसे करीब थी।

“हा हा हा! ... अरे अजीब क्यों लगेगा? आई लव हर! शी इस ब्यूटीफुल! शी इस अ गुड पर्सन... लव्स मी! और क्या चाहिए?” मैंने रुक कर पूछा, “अजीब लगना चाहिए क्या बेटा?”

यू आर अ गुड मैन, अंकल!” नीलू ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... मम्मी इस लकी!”

व्ही ऑल आर...” मैंने गहरी साँस भरते हुए कहा, “अभी आप बहुत छोटे हो, इसलिए आपको इस बात की बहुत समझ नहीं होगी... लेकिन जब प्यार मिले, तो उसको ले लेना चाहिए! उसी में समझदारी है!”

आई अंडरस्टैंड दैट अंकल!”

“गुड!”

“आपकी पहले वाली वाइव्स कैसी थीं?”

“कौन सी? आई मैरीड ट्वाइस बिफोर!”

“दोनों!”

“दोनों बहुत अच्छी थीं, बेटा! एक दूसरे से बहुत अलग, लेकिन बहुत अच्छी!” मैं गैबी और डेवी के साथ बिताए गए हसीन पलों को सोचते हुए बोला, “बहुत कुछ सिखाया उन्होंने मुझको - अच्छा आदमी कैसा हो, अच्छा हस्बैंड कैसा हो... यह सब मैंने उनसे सीखा! अपने से बड़ी बीवी हो, तो बहुत कुछ सीख सकते हैं!”

नीलू मेरी बात पर मुस्कुराने लगी।

“इसीलिए तो मैंने कहा कि यू आर अ गुड मैन!” नीलू बोली।

मैं हँसने लगा - नीलू से बात करना अच्छा था, लेकिन कभी कभी वो ऐसी रहस्य्मय बातें करती थी कि समझ नहीं आता था कि उन पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाए!

हम दोनों कुछ देर शांति से अपना खाना खाते रहे, फिर मैंने कुछ सोच कर कहा, “मैं एक सीक्रेट शेयर करूँ?”

“हाँ! आई लव सीक्रेट्स!” वो चहकती हुई बोली।

“हा हा हा! अरे, ये वैसा सीक्रेट नहीं है! दिस माइट एफेक्ट यू!”

“अरे, ऐसा क्या सीक्रेट है अंकल?”

“हमारे घर में बच्चे... यू नो... आई मीन... जब तुम हमारे साथ रहोगी न बेटा, तो तुम्हारा जैसा मन करे, वैसे रहना!”

“मतलब?” नीलू को कुछ समझ नहीं आया।

“मतलब... मेरे बच्चे... आई मीन, आभा एंड लतिका... दे लव टू स्टे नेकेड एट होम!”

व्हाट? सच में?”

“हाँ! सच में! ... और ये आज से नहीं, तब से हो रहा है, जब मैं छोटा सा था! तभी से माँ या डैड ने कभी मुझको नेकेड रहने से नहीं रोका! ... और फिर, बाद में आदत हो गई जो कभी छूटी नहीं। अपने मम्मी पापा के सामने बच्चों को जैसा मन करे, वो रह सकते हैं! यही बात हमने अपने बच्चों को भी सिखाया! उनको कभी नहीं टोका!”

मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर के लिए चुप हो गई।

कहीं उसको अपने बाप की बुरी हरकतें न याद आ गई हों; कहीं वो मेरे बारे में उल्टी पुल्टी धारणाएँ न बनाए हो; हमारे परिवार के बारे में वो न जाने क्या सोचे - मैं यही सब सोच कर घबराने लगा। अपना बच्चा होता है, तो आप उसके बारे में सब जानते समझते हैं। यहाँ दूसरे के बच्चे, नहीं - बच्ची, को ले कर और भी सतर्क रहना पड़ेगा। ‘ठरकी बुड्ढे’ वाली इमेज बन गई, तो फिर मिलने से रही कोई इज़्ज़त या मोहब्बत!

“और अब?” कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने पूछा।

“अब?”

“हाँ! मतलब, आप... अब?”

समझा।

“हाँ! अभी भी! अभी भी मैं अपने मम्मी, पापा, और दादी के सामने नेकेड रह लेता हूँ!”

“वो कुछ कहते नहीं?”

“नहीं! उनको तो ठीक लगता है। कुछ भी अलग नहीं लगता।”

“और जब मम्मी आपसे शादी करेंगी, तब?”

“आपकी मम्मी पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं होगी, यह वायदा है। उसको जैसे रहना है वो वैसे रहे!”

थोड़ा सोच कर, “सो, डू यू वांट मी टू बी नेकेड ऐट होम?”

इफ़ यू वांट! इट इस योर होम नाऊ! तो जैसा अच्छा लगे आपको, आप वैसा करने के लिए फ्री हैं... हमारी तरफ से!”

बट अंकल, आई ऍम ग्रोइंग बिग नाऊ!”

“बेटा, जैसा मैंने कहा, आपको कोई फ़ोर्स नहीं कर रहा है! आप अगर कम्फर्टेबल हो, करो! नहीं तो नहीं! डू व्हाट यू लाइक! लिव द वे यू लाइक!”

“गुड! थैंक यू अंकल! आई थिंक आई कैन ट्राई!” वो मुस्कुराई।

अपने मन से रहना आखिर किसको अच्छा नहीं लगेगा?

यही मौका था अगले रहस्योद्घाटन का।

एंड... ऑल चिल्ड्रन इन आवर होम ब्रेस्टफीड!”

वाओ!” फिर कुछ सोच कर, “ओह... इस दैट व्हाई...”

नीलू ने बात बीच ही में छोड़ दी। लेकिन मुझे लगा कि इस बात का सूत्र छोड़ना नहीं चाहिए। मैं और नीलू कनेक्ट कर रहे थे और अगर वो भी अपने राज़ मुझको बताने वाली थी, तो उसका मतलब है कि मैं भी उसका विश्वासपात्र बन रहा था।

इस दैट व्हाई... व्हाट?”

आई मीन,” नीलू शरमाते हुए बोली, “शायद इसीलिए मम्मी कल मुझको...”

“कल रचना ने तुमको ब्रेस्टफीड कराया क्या?”

उसने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गुड!” मैंने संतुष्ट हो कर पूछा, “तुमको अच्छा लगा?”

शी हैड नो मिल्क!”

हाँ तो केवल यही निराशा वाली बात रही। कोई बात नहीं!

शी विल हैव!” मैंने रहस्यमय तरीके से कहा, “सून!”

“गुड!” नीलू खुश होते हुए बोली, “हर ब्रेस्ट्स आर बिग... बट दे हैव नो मिल्क! अजीब लगता है न अंकल!”

हर ब्रेस्ट्स आर ब्यूटीफुल!” रचना की सुंदरता की याद करते हुए मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया।

“हैं? आपने देखा है?”

“ओह, हा हा हा...” मैंने हँसते हुए कहा, “आई शुडन्ट हैव सेड दैट!”

इट इस ओके! ... आप नहीं देखेंगे, तो और कौन देखेगा!” फिर कुछ सोच कर, “आपको पता है... मम्मी ने कहा है कि वो अब से रोज़ मुझे ब्रेस्टफ़ीड कराएँगी... इफ आई वांट!”

डू यू वांट टू?”

ऑफ़ कोर्स!” नीलू वाक़ई खुश थी, “शी वास सो हैप्पी... एंड सो वास आई!”

“गुड!”

“आप दोनों जल्दी से शादी कर लीजिए... सो दैट आई कैन प्रॉपर्ली ब्रेस्टफीड अगेन!”

“हा हा! वो तो तुम अभी भी कर सकती हो... आई मीन, व्हेन माय मदर कम्स हियर!”

“आपकी मम्मी?”

“हाँ - बहुत पहले वो मुझको और तुम्हारी मम्मी दोनों को ब्रेस्टफीड कराती थीं!” मैंने हँसते हुए बताया, “अभी भी पिलाती हैं मुझको!”

“रियली? आप अभी भी मम्मी का दूध पीते हैं?”

“हाँ! मम्मी का भी, और दादी का भी!” मैंने कहा।

“ओह वाओ! आपकी माँ और दादी माँ कितनी अच्छी हैं! ... आई हेट माय दादी!”

“कोई बात नहीं बेटा! वो सब पुरानी बातें हो गईं!”

आई नो!” फिर चहकते हुए, “आप मुझे अपने घर ले चलेंगे?”

“तुमको आना है? आई विल आस्क योर मम्मी?”

यस प्लीज!” उसने पूरे उत्साह से कहा, और फिर अचानक ही, “बट इट इस ओके! न जाने मम्मी क्या सोचें!”

“हम्म! एक दो दिन वेट कर लो। तुम्हारी मम्मी का बर्थडे है न!”

“हाँ! आपको मालूम है? नाइस!” नीलू मुस्कुराती हुई, और लगभग मुझको छेड़ती हुई बोली, “उस दिन क्या करेंगे?”

“आपकी मम्मी का बर्थडे मेरे घर पे मनाएँगे! हाऊ अबाउट दैट?”

दैट विल बी सो गुड!” नीलू बहुत खुश हो गई, “कितने ही साल हो गए... मम्मी ने अपना बर्थडे नहीं मनाया... मेरा बर्थडे यहाँ नानाजी के यहाँ आने के बाद मनाने लगे हैं। ... डैडी को तो कोई परवाह ही नहीं थी!”

“तो आपका भी मनाएँगे! कब है आपका बर्थडे?”

लास्ट मंथ था। कोई बात नहीं... नेक्स्ट ईयर मनाएँगे! मम्मी का तो कोई नहीं मनाता... आई विल हेल्प यू इन मेकिंग दैट एन ओकेशन टू रिमेम्बर फॉर हर!”

“दैट्स गुड बेटा!”

वो मुस्कुराई, “अंकल... आई थिंक... आई थिंक आई विल लव टू हैव यू एस माय डैडी!”

थैंक यू सो मच बेटा!” मन से एक बोझ उतर गया।

“आप मुझको खूब प्यार करेंगे?”

“बहुत!”

“थैंक यू... डैडी! थैंक यू!” नीलू बोली।

अचानक ही सुखद भावनात्मक रूप से वो पल इतना भारी हो गया कि मैं नीलू को बिना अपने सीने से लगाए न रह सका।

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KinkyGeneral

Member
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बहुत बढ़िया, अंततः नीलू को पिता मिल ही गया, और साथ में अथाह प्रेम के सागर जैसा परिवार।

(नया लोगो जच रा है भैया।)
 

avsji

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Supreme
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159
बहुत बढ़िया, अंततः नीलू को पिता मिल ही गया, और साथ में अथाह प्रेम के सागर जैसा परिवार।

(नया लोगो जच रा है भैया।)

बहुत बहुत धन्यवाद मेरे भाई :)
लोगो : सोचा कि थोड़ा बदलाव किया जाए! पहली कहानी लिखने की शुरुवात फरवरी 2012 से करी थी मैंने।
अब ग्यारह साल हो गए। तो पुराने लोगो का औचित्य नहीं रह गया :) इसलिए।
 
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39,754
218
अमर और नीलू की डेट सुखद रही। लेकिन नीलू का पास्ट सुनकर बहुत बुरा भी लगा।
मै समझ नही पा रहा हूं कैसे नीलू की माॅम ने रोज रोज के प्रताड़ना के बावजूद भी अपने हसबैंड से सेक्सुअल सम्बन्ध बनाती रही।
उसका बाप वास्तव मे एक सनकी पागल और साइको था। एक लड़की और वह भी जवानी की ओर कदम रखती , को नंगी करके घर के बाहर खड़ा कर दिया। इतने निकृष्टतम कार्य के बाद भी नीलू की मां ने कैसे उसे अपना शरीर छुने दिया !
नीलू का बचपन बहुत सी कड़वाहट यादों से भरा होगा और यह उसकी बातों से जाहिर भी हो रहा है। अमर की जिम्मेदारी बनती है उसे कड़वी यादों से बाहर निकालने की।
वैसे पहली मुलाकात मे ही सेक्स से सम्बंधित बातें और घर के चारदीवारी के अंदर पुरी तरह से बेपर्दा रहने की बात अमर को नही कहनी चाहिए थी।
सच कहना अच्छी बात है लेकिन वो सच उचित समय और मौके पर कहनी चाहिए।
मुझे लगता है बेपर्द होने का आभास नीलू को प्रत्यक्ष हो ही जाता जब वो एक रात अमर के आवास मे गुजारती। और उस वक्त अमर इस चीज को अच्छी तरह से समझा सकता था।

बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग अपडेट।
 
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avsji

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अमर और नीलू की डेट सुखद रही। लेकिन नीलू का पास्ट सुनकर बहुत बुरा भी लगा।
मै समझ नही पा रहा हूं कैसे नीलू की माॅम ने रोज रोज के प्रताड़ना के बावजूद भी अपने हसबैंड से सेक्सुअल सम्बन्ध बनाती रही।
उसका बाप वास्तव मे एक सनकी पागल और साइको था। एक लड़की और वह भी जवानी की ओर कदम रखती , को नंगी करके घर के बाहर खड़ा कर दिया। इतने निकृष्टतम कार्य के बाद भी नीलू की मां ने कैसे उसे अपना शरीर छुने दिया !
नीलू का बचपन बहुत सी कड़वाहट यादों से भरा होगा और यह उसकी बातों से जाहिर भी हो रहा है। अमर की जिम्मेदारी बनती है उसे कड़वी यादों से बाहर निकालने की।
वैसे पहली मुलाकात मे ही सेक्स से सम्बंधित बातें और घर के चारदीवारी के अंदर पुरी तरह से बेपर्दा रहने की बात अमर को नही कहनी चाहिए थी।
सच कहना अच्छी बात है लेकिन वो सच उचित समय और मौके पर कहनी चाहिए।
मुझे लगता है बेपर्द होने का आभास नीलू को प्रत्यक्ष हो ही जाता जब वो एक रात अमर के आवास मे गुजारती। और उस वक्त अमर इस चीज को अच्छी तरह से समझा सकता था।

बहुत खुबसूरत अपडेट अमर भाई।
आउटस्टैंडिंग अपडेट।

बिल्कुल ही सही बात है।
लेकिन अमर की एक दिक्कत है - उनका IQ तो बहुत है, लेकिन EQ में बहुत गुंजाइश है। यह बात सभी पाठकों के सामने है। असल जीवन में भी वो वैसे ही हैं। कभी कभी वो ऐसी बातें बोल देते हैं कि लगता है कि कैसा गधा आदमी है ये। लेकिन जो उनको जानते हैं, वो समझ जाते हैं उनके कहे का मंतव्य। और बुरा नहीं मानते।
वैसे अनेकों परिस्थितियों में अमर को जब इमोशनल बुद्धिमत्ता दिखानी थी, वो उन परिस्थितियों में मात खा गए। लेकिन जब बिजनेस जमाने और बढ़ाने की बात आई, तब उनके जैसा भी कम ही देखा। दूसरों की मदद करना उनके जैसा नहीं देखा।
जहां तक रचना का अपने पति के साथ रहने वाली बात है, जिस दिन उसने ये नीच करम किया, रचना नीलू को ले कर बाहर हो ली। आश्चर्य इस बात का है कि उस पर लीगल केस क्यों नहीं किया!
बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई। आप कोई कहानी नहीं लिख रहे USC पर?
 
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बिल्कुल ही सही बात है।
लेकिन अमर की एक दिक्कत है - उनका IQ तो बहुत है, लेकिन EQ में बहुत गुंजाइश है। यह बात सभी पाठकों के सामने है। असल जीवन में भी वो वैसे ही हैं। कभी कभी वो ऐसी बातें बोल देते हैं कि लगता है कि कैसा गधा आदमी है ये। लेकिन जो उनको जानते हैं, वो समझ जाते हैं उनके कहे का मंतव्य। और बुरा नहीं मानते।
वैसे अनेकों परिस्थितियों में अमर को जब इमोशनल बुद्धिमत्ता दिखानी थी, वो उन परिस्थितियों में मात खा गए। लेकिन जब बिजनेस जमाने और बढ़ाने की बात आई, तब उनके जैसा भी कम ही देखा। दूसरों की मदद करना उनके जैसा नहीं देखा।
जहां तक रचना का अपने पति के साथ रहने वाली बात है, जिस दिन उसने ये नीच करम किया, रचना नीलू को ले कर बाहर हो ली। आश्चर्य इस बात का है कि उस पर लीगल केस क्यों नहीं किया!
बहुत बहुत धन्यवाद संजू भाई। आप कोई कहानी नहीं लिख रहे USC पर?
चांसेज ना के बराबर ही है। आलरेडी काफी अच्छी अच्छी कहानी आ चुकी है। बीच मे रोड़ा क्यों अटकाऊ मैं ! :D
 

Kala Nag

Mr. X
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अंतराल - समृद्धि - Update #17


नीलू से मिलने की मेरी इच्छा न केवल इस बात से प्रेरित थी कि मैं उसको जानूँ और समझूँ, बल्कि इस बात से भी कि पापा किस तरह से बच्चों से घुल मिल कर व्यवहार करते थे। उनसे बहुत प्रेरणा मिली। उन्ही के कारण मैंने समझा कि अपने दुःख और काम में व्यस्तता के कारण मैं क्या खो रहा था। उस समझ के कारण न केवल मेरा पुचुकी और मिष्टी से सम्बन्ध सुधरा, बल्कि जीवन के प्रति मेरा दृष्टिकोण भी बहुत सकारात्मक हुआ। जब अच्छी प्रेरणा मिले, तो उसको पूरे दिल से स्वीकार लेना चाहिए।

अगले दिन मैं नीलू के साथ अपने फादर - डॉटर डेट के लिए उसको लेने फिर से उसके स्कूल पहुँच गया। रचना और नीलू दोनों स्कूल के गेट पर ही खड़े मेरा इंतज़ार कर रहे थे। मैंने रचना से कुछ देर हल्की फुल्की बातें करी, फिर उसको होंठों पर चूम कर [इस हरकत पर नीलू की मुस्कान देखने योग्य थी] उससे विदा ली। मैंने यह भी कहा कि मैं नीलू को वापस घर छोड़ दूँगा , इसलिए रचना इस बात की चिंता न करे! जाहिर सी बात है, रचना को इस बात की कोई चिंता नहीं थी।

मेरा नीलू से मिलने का सबसे बड़ा कारण यह था कि अगर मेरी और रचना की शादी होनी ही है, तो बेहतर यही है कि मैं और नीलू और साथ ही साथ मिष्टी और पुचुकी भी उससे मिल लें और आपस में एक दूसरे को समझ लें। परिवार में करीबी होनी आवश्यक है - ख़ास तौर पर तब, जब घर के बच्चे बचपने से तरुणाई की ओर बढ़ रहे हों! यह बड़ी नाज़ुक सी उम्र होती है। बच्चों का व्यक्तित्व पूरी तरह से बन तो जाता है, लेकिन उसकी फिनिशिंग नहीं हुई रहती। इस कारण से अपने संबंधों के साथ उनका टकराव और घर्षण होता रहता है। दूसरी बात यह थी कि रचना ने बेहद खुले रूप से पुचुकी और मिष्टी को अपनाया था। बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी शिकायत के! तो मुझे भी वही करना चाहिए न? वैसे भी, अगर मुझे उसका डैडी बनना है, तो मुझे वाकई उसका डैडी बनना होगा। हमारे बीच में करीबी होनी आवश्यक थी। उसके लिए मुझे उसको समझना जानना ज़रूरी था।

गाड़ी चलाते समय मैंने उससे छोटी मोटी बातें करनी जारी रखी - पहले दिन के मुकाबले, आज नीलू मुझसे अधिक खुल कर बातें कर रही थी! शायद वो इस बात से खुश भी थी कि वो मेरे साथ बाहर आई हुई थी। मैंने उससे उसके पसंदीदा खाने की जगह के बारे में पूछा, तो उसने कहा कि जहाँ मैं ठीक समझूँ, वहीं ठीक है। तो हम एक सुंदर से, ओपन एयर फैमिली रेस्तरां गए - मेरी पसंद की जगह थी। यहाँ उनके पास बच्चों के पसंद की एक लम्बी फ़ेहरिस्त थी। जब उसके हाथ में मेन्यू आया, तो उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे कि किसी बच्चे को खिलौनों की दूकान में ले आया गया हो, और उससे कहा गया हो कि जो मन करे, ले लो! किशोरवय बच्चे खुद को बड़ा समझने तो लगते हैं, लेकिन रहते वो बच्चे ही हैं। खैर, कोई दस मिनट लगाने के बाद बेचारी ने कोला और पिज़्ज़ा लेने का फैसला किया! मैंने ही जबरदस्ती कर के छोटा पिज़्ज़ा, एक बर्गर, और कुछ फ़्राईस भी जुड़वा दिए। अपने लिए मैंने हल्का सा लंच मँगवाया - वेजिटेबल सैंडविच और चाय!

हम फिलहाल कुछ देर इधर उधर की बातें करते रहे; वो अपनी मम्मी के बचपन की बातें मेरे मुँह से सुनना चाहती थी। शायद जानना चाहती थी कि उसमें और उसकी मम्मी के कितनी समानताएँ थीं! कोई पंद्रह मिनट में हमारा आर्डर टेबल पर सजा दिया गया।

“आप... मम्मी से शादी करने वाले हैं क्या, अंकल?” कुछ देर बाद उसने पूछा!

उसका मुँह पिज़्ज़ा से भरा हुआ था, और पिघले हुए चीज़ की एक पतली सी लंबी रस्सी अभी भी उसके होंठों को पिज़्ज़ा की आधी कटी स्लाइस से जोड़ रही थी। और वो चूस चूस कर चीज़ को खा रही थी। पिज़्ज़ा गरम था और चीज़ भी - इसलिए मुँह जल भी रहा होगा। लेकिन फिर भी बिना पिज़्ज़ा खाए दिल मानता ही नहीं! देख कर अच्छा लगा कि वो मेरे सामने कम्फर्टेबल है।

“करना तो चाहता हूँ बेटा! आपके ख़याल से ये ठीक रहेगा? आई मीन... आपकी मम्मी और मैं... एस हस्बैंड एंड वाइफ? एंड यू एस आवर डॉटर?”

आई थिंक सो अंकल! मम्मी आपको पसंद करती हैं... इट इस सो ऑब्वियस! ... मुझे भी आप पसंद हैं!” ये आखिरी वाला वाक्य कहते हुए उसके गाल थोड़े लाल से हो गए!

दैट्स गुड! ... थैंक यू, हनी!”

“... मम्मी जब आपके साथ होती हैं... या आपकी बातें करती हैं... तो बहुत अच्छी लगती हैं… मुस्कुराती हैं। अपनी उम्र से कम लगती हैं। उनकी आवाज़ बदल जाती है। नहीं तो वो बहुत दिनों से... आई मीन... शी हैस बीन वैरी एंग्री वुमन!”

मैंने इंतजार किया कि नीलू अपनी बात पूरी करे! लेकिन उसने बात वहीं छोड़ दी।

नीलू ने आराम से अपना पिज़्ज़ा चबाया, और ऊपर से सोडा की एक बड़ी सी घूँट ली। फिर अचानक ही बोली,

“डैडी और मम्मी के बीच बहुत झगड़े हुआ करते थे। ... हर दिन… एक भी दिन ऐसा नहीं जाता था, कि उनके बीच किसी न किसी बात पर बहस न हुई हो…”

यह बात तो रचना ने भी बता दी थी।

मैंने ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“लेकिन फिर न जाने क्या होता... रात में वो दोनों फिर से दोस्त बन जाते...”

मुझको अच्छी तरह मालूम था कि रात में क्या होता था।

इंटरेस्टिंग!” लेकिन मैंने बस उतना ही कहा।

“हाँ न... दिन भर झगड़ा करने के बाद, रात में वो ऐसे बिहैव करते कि जैसे दोनों बेस्ट फ्रेंड हों!”

मैं मुस्कुराया।

“वो दोनों जुड़ जाते थे... और एक दूसरे को चूमते रहते थे!”

“जुड़ जाते थे? मतलब?”

आई मीन,” उसने रहस्योद्घाटन करते हुए कहा, “डैडी हर रात अपने पीनस को मम्मी के अंदर डाल कर स्लाइड करते थे!” कहते हुए नीलू के गाल लाल हो गए।

‘हे भगवान!’ मैंने सोचा, ‘ये तो अपनी माँ पर ही गई है! अपने मम्मी पापा को सेक्स करते हुए देखी है!’

फिर ये ऐसी आश्चर्यजनक बात भी नहीं थी। रचना का एक्स-हस्बैंड कहीं भी, खुले में शुरू हो जाता था। ऐसे में घर का कोई भी सदस्य उनको सेक्स करते हुए देख सकता था।

इट इस ओके हनी... हस्बैंड एंड वाइफ के बीच में यह तो होता ही है!” मैंने उसको समझाया, “और इसको सेक्स करना कहते हैं!”

उसने सोडा का एक बड़ा सा घूँट पिया। उसको मालूम था कि पति पत्नी के बीच होने वाली अंतरंग क्रिया को क्या कहते हैं।

“क्या आप भी मम्मी के साथ वो सब करेंगे? आई मीन, सेक्स?”

मैं अचकचा गया; फिर सम्हलते हुए बोला,

इनडीड आई विल... विल यू माइंड?”

उसने ‘न’ में सर हिलाते हुए दूसरा प्रश्न पूछा, “हर रात?”

“हर रात!” मैंने एक तरह से वादा किया।

“गुड! मम्मी सीम्स टू लाइक डूइंग इट!”

हम दोनों ही कुछ देर चुप रहे - वैसे भी बच्चों से क्या बातें करें, उसमें मेरा हाथ बहुत तंग था। सीख रहा था, लेकिन पापा जैसी कुशलता नहीं थी मेरे पास। और किसी बच्चे से सेक्स के विषय पर चर्चा कैसे करी जाय, मुझे नहीं मालूम था। कठिन था मेरे लिए बहुत। इसलिए मैंने बात को अलग दिशा दी,

“नीलू... हनी... क्या आप इस रिश्ते से खुश होगी? आपको अच्छा लगेगा कि मैं और आपकी मम्मी की शादी को जाए?”

“हाँ! आई विल बी वैरी हैप्पी! आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि मुझे अच्छा नहीं लगेगा? ... नाना नानी घर में अक्सर आपके और आपकी फॅमिली के बारे में बातें करते हैं। आई नो यू आर अ गुड मैन... एंड योर मॉम इस आल्सो वैरी गुड!”

आई ऍम सो ग्लैड टू हिअर दिस नीलू!”

प्लीज डोंट वरी अंकल! मम्मी स्वीट हैं... बहुत स्वीट हैं... लेकिन वो... डैडी के कारण वो बहुत बिटर हो गई हैं!”

मैंने समझते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

उसके चेहरे से अचानक ही ख़ुशियों वाले भाव गायब हो गए।

ही यूस्ड टू स्कोल्ड मी एंड बीट मी फॉर नो रीज़न... मुझे लगता है कि वो मुझसे नफरत करते थे!”

ओह, यू डू नॉट से!”

बट इट इस ट्रू, अंकल!” नीलू ने उदास स्वर में कहा, “वो सच में मुझसे नफरत करते थे... आई थिंक... उनको लड़का चाहिए था... लड़की नहीं!”

अब तो उसकी आँखें भी उदास हो गईं थीं, “और तो और, वो मुझे स्कूल भी नहीं जाने देना चाहते थे... कहते थे कि पढ़ाई से अधिक घर का काम सीखूँ! अपनी माँ के जैसी न बनूँ! ... वही असली लाइफ स्किल है! ... इसलिए भी आए दिन मम्मी पापा का झगड़ा होता रहता!”

उसने सोडा का एक और सिप लिया, और बड़ी कठिनाई से उसको निगला। शायद उसका गला रूँध गया था।

“... वो तो मम्मी ने इस स्कूल में टीचर की जॉब ज्वाइन कर ली थी, नहीं तो मुझे किसी फालतू से स्कूल में एडमिट करवाया था उन्होंने! ... यहाँ पर फ़ीस भी आधी थी, इसलिए वो कुछ कर नहीं सके!”

सच में यस सब जान कर मुझे दुःख हुआ। अपने ही बच्चों की पढ़ाई लिखाई कोई कैसे रोकना चाह सकता है? और ऐसा व्यक्ति जिसमें आर्थिक सामर्थ्य है। मैंने उसके हाथ पर अपना हाथ सहानुभूति और समर्थन दर्शाते हुए रख दिया। वो थोड़ा संयत हुई। लेकिन आँखें भर आई उसकी।

“हफ्ते में दो तीन बार मेरी पिटाई हो ही जाती थी... मम्मी की भी अक्सर हो जाती! ... लेकिन फिर रात में उनकी तो दोस्ती हो जाती थी, और मैं कन्फ्यूज्ड रहती कि किससे बात करूँ... किसके पास जाऊँ! दादी को भी मैं नापसंद थी। ...फिर एक दिन तो हद हो गई! संडे था... और रोज़ के जैसे ही किसी मामूली बात पर मुझको डाँट पड़ने लगी। मैंने भी शायद कुछ बोल दिया हो... ही स्टार्टेड टू बीट मी... बहुत मारा... और फिर मुझे नंगी कर के घर के बाहर खड़ा कर दिया।”

व्हाट!?”

‘कैसा आदमी है वो?’ मुझे भरोसा ही नहीं हुआ जो मैंने सुना!

मेरे बच्चे भी नग्न रहते हैं, लेकिन घर के अंदर! सभी से सुरक्षित और स्वतंत्र! अपनी मर्ज़ी से! उनका तिरस्कार नहीं होता। उनको प्रेम ही मिलता है; उनको अपने तरीके से जीने का एक अवसर मिलता है। अपनी एकलौती लड़की को इस तरह से घर के बाहर खड़ा कर देना! ओफ़्फ़! कोई बदमाश उसके साथ कुछ कर देता, तो?

“हाँ... संडे था... और पूरा ब्रॉड डे लाइट! ... आई वास सो अफ्रेड एंड अशेम्ड...!” कहते कहते वो रुक गई।

मैंने उसे और कुछ बताने के लिए न तो दबाव डाला, और न ही उकसाया। यह कोई चटकारे ले कर सुनने कहने वाली बात नहीं थी। उस आदमी को जेल में होना चाहिए। साइकोपाथ पूरा!

“कभी आप मेरे घर आना नीलू... रुक जाना रात में! मेरी बच्चियों से मिलना। उनके साथ खेलना... आई होप कि आप सभी एक दूसरे को बहुत पसंद करोगे! एंड आई होप कि हम एक साथ, खुश रहेंगे!” मैंने मुस्कराते हुए कहा।

नीलू भी मुस्कुराई, और ‘हाँ’ में उसने सर हिलाया।

“आप सिगरेट पीते हैं?” कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने अचानक ही पूछ लिया।

उसके इस प्रश्न पर मुझे हँसी आ गई।

“नहीं बेटा!”

“ड्रिंक करते हैं?”

“हाँ!”

“ओह!”

“आपको नहीं ठीक लगता, तो नहीं करूँगा!”

“ओके...! लेकिन अगर आपको ठीक लगता है तो करिए... लेकिन कभी कभी... बहुत नहीं!”

यस माम!” मैंने अंग्रेजी एक्सेंट में कहा।

वो हँसने लगी। अच्छा लगा कि माहौल थोड़ा हल्का और सामान्य हो गया।

“मम्मी एज में आपसे बड़ी हैं न?”

“हाँ, लेकिन अधिक नहीं! डेढ़ साल...”

“फिर भी... आपको अजीब नहीं लगता?” वो मुस्कुराते हुए बोली, “मेरी निचली क्लास वाले मुझको दीदी कह कर बुलाते हैं!”

क्यों लगेगा अजीब? मेरे जीवन में हर लड़की स्त्री जो आई, वो मुझसे उम्र में बड़ी ही रही हमेशा! और रचना तो मेरी उम्र के सबसे करीब थी।

“हा हा हा! ... अरे अजीब क्यों लगेगा? आई लव हर! शी इस ब्यूटीफुल! शी इस अ गुड पर्सन... लव्स मी! और क्या चाहिए?” मैंने रुक कर पूछा, “अजीब लगना चाहिए क्या बेटा?”

यू आर अ गुड मैन, अंकल!” नीलू ने ‘न’ में सर हिलाते हुए कहा, “... मम्मी इस लकी!”

व्ही ऑल आर...” मैंने गहरी साँस भरते हुए कहा, “अभी आप बहुत छोटे हो, इसलिए आपको इस बात की बहुत समझ नहीं होगी... लेकिन जब प्यार मिले, तो उसको ले लेना चाहिए! उसी में समझदारी है!”

आई अंडरस्टैंड दैट अंकल!”

“गुड!”

“आपकी पहले वाली वाइव्स कैसी थीं?”

“कौन सी? आई मैरीड ट्वाइस बिफोर!”

“दोनों!”

“दोनों बहुत अच्छी थीं, बेटा! एक दूसरे से बहुत अलग, लेकिन बहुत अच्छी!” मैं गैबी और डेवी के साथ बिताए गए हसीन पलों को सोचते हुए बोला, “बहुत कुछ सिखाया उन्होंने मुझको - अच्छा आदमी कैसा हो, अच्छा हस्बैंड कैसा हो... यह सब मैंने उनसे सीखा! अपने से बड़ी बीवी हो, तो बहुत कुछ सीख सकते हैं!”

नीलू मेरी बात पर मुस्कुराने लगी।

“इसीलिए तो मैंने कहा कि यू आर अ गुड मैन!” नीलू बोली।

मैं हँसने लगा - नीलू से बात करना अच्छा था, लेकिन कभी कभी वो ऐसी रहस्य्मय बातें करती थी कि समझ नहीं आता था कि उन पर कैसी प्रतिक्रिया दी जाए!

हम दोनों कुछ देर शांति से अपना खाना खाते रहे, फिर मैंने कुछ सोच कर कहा, “मैं एक सीक्रेट शेयर करूँ?”

“हाँ! आई लव सीक्रेट्स!” वो चहकती हुई बोली।

“हा हा हा! अरे, ये वैसा सीक्रेट नहीं है! दिस माइट एफेक्ट यू!”

“अरे, ऐसा क्या सीक्रेट है अंकल?”

“हमारे घर में बच्चे... यू नो... आई मीन... जब तुम हमारे साथ रहोगी न बेटा, तो तुम्हारा जैसा मन करे, वैसे रहना!”

“मतलब?” नीलू को कुछ समझ नहीं आया।

“मतलब... मेरे बच्चे... आई मीन, आभा एंड लतिका... दे लव टू स्टे नेकेड एट होम!”

व्हाट? सच में?”

“हाँ! सच में! ... और ये आज से नहीं, तब से हो रहा है, जब मैं छोटा सा था! तभी से माँ या डैड ने कभी मुझको नेकेड रहने से नहीं रोका! ... और फिर, बाद में आदत हो गई जो कभी छूटी नहीं। अपने मम्मी पापा के सामने बच्चों को जैसा मन करे, वो रह सकते हैं! यही बात हमने अपने बच्चों को भी सिखाया! उनको कभी नहीं टोका!”

मेरी बात सुन कर वो थोड़ी देर के लिए चुप हो गई।

कहीं उसको अपने बाप की बुरी हरकतें न याद आ गई हों; कहीं वो मेरे बारे में उल्टी पुल्टी धारणाएँ न बनाए हो; हमारे परिवार के बारे में वो न जाने क्या सोचे - मैं यही सब सोच कर घबराने लगा। अपना बच्चा होता है, तो आप उसके बारे में सब जानते समझते हैं। यहाँ दूसरे के बच्चे, नहीं - बच्ची, को ले कर और भी सतर्क रहना पड़ेगा। ‘ठरकी बुड्ढे’ वाली इमेज बन गई, तो फिर मिलने से रही कोई इज़्ज़त या मोहब्बत!

“और अब?” कुछ देर की चुप्पी के बाद उसने पूछा।

“अब?”

“हाँ! मतलब, आप... अब?”

समझा।

“हाँ! अभी भी! अभी भी मैं अपने मम्मी, पापा, और दादी के सामने नेकेड रह लेता हूँ!”

“वो कुछ कहते नहीं?”

“नहीं! उनको तो ठीक लगता है। कुछ भी अलग नहीं लगता।”

“और जब मम्मी आपसे शादी करेंगी, तब?”

“आपकी मम्मी पर कोई ज़ोर जबरदस्ती नहीं होगी, यह वायदा है। उसको जैसे रहना है वो वैसे रहे!”

थोड़ा सोच कर, “सो, डू यू वांट मी टू बी नेकेड ऐट होम?”

इफ़ यू वांट! इट इस योर होम नाऊ! तो जैसा अच्छा लगे आपको, आप वैसा करने के लिए फ्री हैं... हमारी तरफ से!”

बट अंकल, आई ऍम ग्रोइंग बिग नाऊ!”

“बेटा, जैसा मैंने कहा, आपको कोई फ़ोर्स नहीं कर रहा है! आप अगर कम्फर्टेबल हो, करो! नहीं तो नहीं! डू व्हाट यू लाइक! लिव द वे यू लाइक!”

“गुड! थैंक यू अंकल! आई थिंक आई कैन ट्राई!” वो मुस्कुराई।

अपने मन से रहना आखिर किसको अच्छा नहीं लगेगा?

यही मौका था अगले रहस्योद्घाटन का।

एंड... ऑल चिल्ड्रन इन आवर होम ब्रेस्टफीड!”

वाओ!” फिर कुछ सोच कर, “ओह... इस दैट व्हाई...”

नीलू ने बात बीच ही में छोड़ दी। लेकिन मुझे लगा कि इस बात का सूत्र छोड़ना नहीं चाहिए। मैं और नीलू कनेक्ट कर रहे थे और अगर वो भी अपने राज़ मुझको बताने वाली थी, तो उसका मतलब है कि मैं भी उसका विश्वासपात्र बन रहा था।

इस दैट व्हाई... व्हाट?”

आई मीन,” नीलू शरमाते हुए बोली, “शायद इसीलिए मम्मी कल मुझको...”

“कल रचना ने तुमको ब्रेस्टफीड कराया क्या?”

उसने शर्माते हुए ‘हाँ’ में सर हिलाया।

“गुड!” मैंने संतुष्ट हो कर पूछा, “तुमको अच्छा लगा?”

शी हैड नो मिल्क!”

हाँ तो केवल यही निराशा वाली बात रही। कोई बात नहीं!

शी विल हैव!” मैंने रहस्यमय तरीके से कहा, “सून!”

“गुड!” नीलू खुश होते हुए बोली, “हर ब्रेस्ट्स आर बिग... बट दे हैव नो मिल्क! अजीब लगता है न अंकल!”

हर ब्रेस्ट्स आर ब्यूटीफुल!” रचना की सुंदरता की याद करते हुए मेरे मुँह से बेसाख्ता निकल गया।

“हैं? आपने देखा है?”

“ओह, हा हा हा...” मैंने हँसते हुए कहा, “आई शुडन्ट हैव सेड दैट!”

इट इस ओके! ... आप नहीं देखेंगे, तो और कौन देखेगा!” फिर कुछ सोच कर, “आपको पता है... मम्मी ने कहा है कि वो अब से रोज़ मुझे ब्रेस्टफ़ीड कराएँगी... इफ आई वांट!”

डू यू वांट टू?”

ऑफ़ कोर्स!” नीलू वाक़ई खुश थी, “शी वास सो हैप्पी... एंड सो वास आई!”

“गुड!”

“आप दोनों जल्दी से शादी कर लीजिए... सो दैट आई कैन प्रॉपर्ली ब्रेस्टफीड अगेन!”

“हा हा! वो तो तुम अभी भी कर सकती हो... आई मीन, व्हेन माय मदर कम्स हियर!”

“आपकी मम्मी?”

“हाँ - बहुत पहले वो मुझको और तुम्हारी मम्मी दोनों को ब्रेस्टफीड कराती थीं!” मैंने हँसते हुए बताया, “अभी भी पिलाती हैं मुझको!”

“रियली? आप अभी भी मम्मी का दूध पीते हैं?”

“हाँ! मम्मी का भी, और दादी का भी!” मैंने कहा।

“ओह वाओ! आपकी माँ और दादी माँ कितनी अच्छी हैं! ... आई हेट माय दादी!”

“कोई बात नहीं बेटा! वो सब पुरानी बातें हो गईं!”

आई नो!” फिर चहकते हुए, “आप मुझे अपने घर ले चलेंगे?”

“तुमको आना है? आई विल आस्क योर मम्मी?”

यस प्लीज!” उसने पूरे उत्साह से कहा, और फिर अचानक ही, “बट इट इस ओके! न जाने मम्मी क्या सोचें!”

“हम्म! एक दो दिन वेट कर लो। तुम्हारी मम्मी का बर्थडे है न!”

“हाँ! आपको मालूम है? नाइस!” नीलू मुस्कुराती हुई, और लगभग मुझको छेड़ती हुई बोली, “उस दिन क्या करेंगे?”

“आपकी मम्मी का बर्थडे मेरे घर पे मनाएँगे! हाऊ अबाउट दैट?”

दैट विल बी सो गुड!” नीलू बहुत खुश हो गई, “कितने ही साल हो गए... मम्मी ने अपना बर्थडे नहीं मनाया... मेरा बर्थडे यहाँ नानाजी के यहाँ आने के बाद मनाने लगे हैं। ... डैडी को तो कोई परवाह ही नहीं थी!”

“तो आपका भी मनाएँगे! कब है आपका बर्थडे?”

लास्ट मंथ था। कोई बात नहीं... नेक्स्ट ईयर मनाएँगे! मम्मी का तो कोई नहीं मनाता... आई विल हेल्प यू इन मेकिंग दैट एन ओकेशन टू रिमेम्बर फॉर हर!”

“दैट्स गुड बेटा!”

वो मुस्कुराई, “अंकल... आई थिंक... आई थिंक आई विल लव टू हैव यू एस माय डैडी!”

थैंक यू सो मच बेटा!” मन से एक बोझ उतर गया।

“आप मुझको खूब प्यार करेंगे?”

“बहुत!”

“थैंक यू... डैडी! थैंक यू!” नीलू बोली।

अचानक ही सुखद भावनात्मक रूप से वो पल इतना भारी हो गया कि मैं नीलू को बिना अपने सीने से लगाए न रह सका।


**
वाव
बढ़िया
लाजवाब
फ़ादर और डॉटर की डेट
झिझक और उत्सुकता
कुछ दर्द और कुछ चकित भाव
क्या बात है avsji भाई बहुत ही खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने
नीलू की अपने सगे पिता और दादी के प्रति विद्वेष भाव
सेक्स के प्रति जानकारी अपने तरीके से अमर से शेयर करना
और स्थन पान के बारे में जान कर आग्रह प्रकाश करना
माँ के द्वारा दूध पिलाए जाने पर आश्चर्य प्रकट करना
और अंत में अमर को पिता के रुप में दिल से स्वीकर कर लेना

भाई बुरा ना मानना
शुरु शुरु में नीलू के व्यवहार से मुझे लगा था शायद वह बहुत चालाक लड़की होगी
पर है बहुत ही अच्छी

अंत में बहुत ही बढ़िया
 

avsji

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अंतराल - समृद्धि - Update #18


उस दिन मैंने माँ और पापा दोनों को नीलू और रचना से मिलने को ले कर, उनसे क्या क्या बातें हुईं इत्यादि सब बता दिया। साथ ही साथ यह भी बता दिया कि रचना को और नीलू को हमारे घर की हर बात के बारे में मालूम है। यह भी बताया कि रचना की प्रतिक्रिया, और उसकी बातें देख कर एक बार भी ऐसा नहीं लगा कि वो उनके बारे में सुन कर स्केंडलाइज़ हो गई हो! फिर मैंने मेरी नीलू से मुलाक़ात के बारे में भी सब कुछ बता दिया। कहने की आवश्यकता नहीं कि माँ और पापा दोनों बहुत खुश हुए यह सब सुन कर! माँ को तो रचना पहले भी बहुत प्रिय थी, और जाहिर सी बात है, कि उन्होंने पापा को भी सब कुछ बता ही दिया होगा। उसी दिन माँ ने मुझसे रचना का नंबर लिया और उसको कॉल लगाया। दोनों में बहुत देर तक बातचीत होती रही।

अगले दिन मुझको माँ और रचना दोनों से ही इस बातचीत का फीडबैक मिला।

मेरी माँ तो इसी बात से आह्लादित थीं, कि रचना ने उनसे उनके स्वास्थ्य के बारे में कई बार पूछा, और उनसे मिलने के लिए अपनी मंशा कई बार ज़ाहिर करी। उधर रचना के हिसाब से माँ ने उसको जल्दी से इस घर में आ जाने को कहा। माँ ने उसकी मम्मी पापा का कुशलक्षेम भी पूछा और शीघ्र की मिलने ही आशा जताई। रचना ने उनसे वायदा किया कि अगर माँ यहाँ दिल्ली नहीं आ सकतीं, तो वो ही उनसे मिलने मुंबई आ जाएगी।

अनावश्यक सी बातें - जो मुझे जाननी आवश्यक नहीं थीं, लेकिन फिर भी मुझको बताई गईं। मुझको अच्छा लगा कि माँ और रचना के बीच की प्रगाढ़ता में बदलाव नहीं हुआ।

दो दिनों बात रचना का जन्मदिन था। तो मेरे घर रचना के जन्मदिन की तैयारी बड़ी जोरों से की गई।

पैंतीस साल की होने वाली थी रचना, और अब तो उसका और मेरा संग भी होने वाला था। इसलिए मैं चाहता था कि खूब आनंद से, खूब हर्षोल्लास से उसका ख़ास दिन मनाया जाए! वैसे तो मई में पापा का भी जन्मदिन है, लेकिन रचना के दो सप्ताह बाद! और फिर बच्चों के आ जाने के बाद वो अपना जन्मदिन मनाने में कम ही रूचि रखते थे। दोनों बच्चों के माँ और पापा अपना अपना जन्मदिन ‘क्लब’ कर लेते थे। हमारे घर में बड़ों को अपना जन्मदिन मनाने का कोई चाव नहीं है। कभी कभी जब हम सभी का बाहर खाने पीने का मन होता, तो जन्मदिन के बहाने बाहर खाने जाते थे। लेकिन रचना के मामले में कोई बहाना नहीं करना चाहते थे हम। दादी माँ भी चाहती थीं कि रचना को यह घर अपना सा लगे, इसलिए उसका जन्मदिन अवश्य मनाना चाहिए!

बीच में हमारी मुलाकातें होती रहीं। रचना अब वास्तविक रूप से खुश दिखती - मैं भी! कैसी अनोखी किस्मत थी मेरी, और कैसा अद्भुत जीवन था मेरा! प्रेम की मेरे जीवन में शायद ही कभी कोई कमी रही हो। पहले तो माँ और डैड के प्यार से मैं सराबोर रहा, फिर काजल, फिर गैबी और फिर डेवी आई! और अब, रचना वापस मेरे जीवन में थी। शायद देवताओं को भी मालूम हो कि इस व्यक्ति के जीवन में प्यार की कमी नहीं रहनी चाहिए। यह सुख अर्जित करने के लिए मैंने क्या किया, या फिर यह कि मैं इस लायक था भी या नहीं, यह सब मुझको नहीं मालूम!

बहुत अधिक दार्शनिक बनने की कोशिश नहीं करूँगा। बस इतना बता देना ठीक है कि मैं भी खुश था। मैं तो रचना के साथ अपने - हमारे भविष्य की रूपरेखा भी सोचने लगा। हमारे एक एक औलादें थीं, तो साथ में शीघ्र ही दो और बच्चे करने का मन तो था। मुझको भी भरा पूरा परिवार अच्छा लगने लगा था। माँ और पापा ने सिद्ध कर दिया था कि बड़े परिवार में भी अपार आनंद मिल सकता है। रचना से जब मैंने यह बात कही तो वो बोली कि दो ही क्यों, अगर हो सके तो और बच्चे भी करेंगे! अगर माँ और दादी माँ अभी भी उर्वर हैं, तो उम्मीद है कि वो भी रहेगी! सुन कर बड़ा अच्छा लगा। जब एक अपार सौंदर्य की मल्लिका, आपके साथ संतान करने की इच्छा जाहिर करती है, तो आपको वो इच्छा किसी संगीत के समान ही कर्णप्रिय लगती है।

मैंने एक समय रचना से पूछा कि वो अपने जन्मदिन पर क्या तोहफा चाहती है।

वो हँसते हुए, बड़ी संजीदगी से बोली, “अमर मेरे! तुम इतना सब कर रहे हो, मैं तो इसी बात से खुश हूँ! और क्या चाहिए!”

“फिर भी रचना! तुमने इतने समय से बर्थडे नहीं मनाया! ... कुछ तो कहो - क्या पसंद है? क्या चाहिए?”

रचना ने दो पल कुछ सोचा, फिर बोली, “अ रिक्वेस्ट इस नॉट अ गिफ़्ट! ... गिफ़्ट कोई ऐसी वस्तु नहीं है जो मुझे चाहिए हो, या जिसको मैं तुमसे माँगू! गिफ़्ट तो वो है जो तुम मुझको देना चाहते हो। ... तुम मेरे जन्मदिन को अपने घर पर मनाना चाहते हो, वो गिफ़्ट है मेरे लिए! ... तुम सब मेरे साथ रहोगे, वो गिफ्ट है मेरे लिए! कुछ नहीं चाहिए और!”

रचना की इस बात से मैं निरुत्तर हो गया।

रचना अगर इसी सोच को बरकरार रखे, तो यह घर स्वर्ग बन जाएगा! -- मैंने सोचा।

*

रचना के जन्मदिन के लिए घर को बड़ी खूबसूरती से सजाया था हमने! हमारे साथ साथ माँ भी उसके जन्मदिन के कारण बड़े उत्साह में थीं। रचना का जन्मदिन सप्ताहांत में पड़ रहा था, इसलिए हमने सोचा कि पापा का जन्मदिन भी साथ ही में ‘क्लब’ कर लेंगे! मतलब माँ, पापा, आदित्य और आदर्श भी आ जाएँगे! क्या आनंद आएगा! पूरा का पूरा खानदान एक साथ! बस अचानक से ही, यूँ ही, अनायास ही, घर में त्यौहार जैसा माहौल बन गया।

रचना और नीलू शाम को छः बजे ही घर आ गए! बहुत साधारण सा मेकअप किया हुआ था उसने, लेकिन फिर भी कैसी अद्भुत सी सुंदरी लग रही थी। सच में, जब आप खुश रहते हैं, तो उसी से आपके सौंदर्य में रौनक आ जाती है। घर आते ही उसने सबसे पहले दादी के पैर छुए - वो सम्मान, जिसकी वो हक़दार थीं। भावविभोर होते हुए उन्होंने रचना को अपने सीने में भींच लिया।

“ओह मेरी पूता... ओह मेरी बेटी!”

कैसे सम्मान के छोटे छोटे संकेत से ही लोग आनंदित हो जाते हैं। सच में, प्रेम की अभिव्यक्ति छोटे छोटे संकेतों से ही होती है। बड़े संकेत तो सभी केवल दिखावा होते हैं।

“आयुष्मती भव! सौभाग्यवती भव!” दादी ने रचना पर अपने स्नेहमय आशीर्वाद बरसाने शुरू कर दिए, “सुखी भव! देवी माँ तुम्हारी कोख़ हमेशा आबाद रखें! ... तुम्हारा सौंदर्य, स्वास्थ्य और यौवन बनाए रखें! ... तुमको आनंदमय रखें!”

रचना भी यह सब सुन कर भाव विभोर हुई जा रही थी।

“आह, कैसी सुन्दर लग रही है मेरी बहू!” दादी ने अपनी आँख के कोने से काजल ले कर रचना के गाल के किनारे पर लगा दिया, “कहीं नज़र न लग जाए!”

“आपकी नज़र लगेगी, अम्मा?” रचना ने मुस्कुराते हुए अपने आँसू रोके, “आप तो इतना प्यार करती हैं सभी को!”

“हा हा! चल आजा... ऐसी बातें बोलेगी, तो रो दूँगी!” कह कर दादी ने रचना को और नीलू को हाथ से पकड़ कर अंदर लिवा लाया।

“अमर बेटा, बहू कब तक आएगी?” दादी ने अंदर आ कर रचना को आराम से बैठा कर मुझसे पूछा।

दरअसल माँ की फ्लाईट ऐसी निर्धारित थी कि उनको रचना के आने से पहले ही आ जाना चाहिए था। लेकिन वो सभी अभी तक नहीं पहुंचे थे।

“आ गई होगी अम्मा,” मैंने मोबाइल निकालते हुए कहा, “रास्ते में होंगे! एक मिनट...”

कह कर मैंने पापा को कॉल लगाया। थोड़ी देर तक बात हुई।

“ट्रैफिक में फँसे हुए हैं!” मैंने कहा, “आ जाते कोई आधे घंटे पहले ही, लेकिन अभी भी चार किलोमीटर दूर हैं!”

“अच्छा अच्छा!” दादी को सुन कर संतोष हुआ।

“माँ आ रही हैं?” रचना ने पूछा।

“हाँ,” मैंने हँसते हुए कहा, “तुमसे मिलने का मोह नहीं छूट पाया उनसे!”

“क्यों छूटेगा?” रचना ने बड़े अधिकार भाव से कहा, “माँ हैं मेरी! न तो मेरा, और न ही उनका मोह कभी छूट सकता है!”

“जीती रहो बेटा! सुखी रहो!” दादी प्रसन्नचित्त होती हुई बोलीं, “यही सद्भाव बनाए रखो!”

इतने में लतिका और आभा अपने हाथों में रचना के लिए जन्मदिन के गिफ़्ट (अपने हाथों से बनाए ग्रीटिंग कार्ड्स) लिए कमरे में आईं और उसको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएँ देते हुए एक तरह से उसकी गोदी में ही आ गईं। रचना ने भी बड़े आनंद से ग्रीटिंग्स को ग्रहण किया, और दोनों को चूमते हुए उनको धन्यवाद दिया। फिर हमने नीलू, लतिका, और आभा को एक दूसरे से मिलवाया। फिर जब शोर थोड़ा अधिक होने लगा, तब हमने उनको कहीं और जा कर खेलने और बात करने को कहा। वैसे भी आदित्य और आदर्श के आने के बाद उनके साथ बैठ कर बातचीत हो पाना लगभग असंभव था।

ऐसे ही कुछ देर बातें करने के बाद दरवाज़े की घण्टी बजी। माँ और पापा आ गए थे।

मैंने दरवाज़ा खोला, और पहले पापा और फिर माँ के पैर छुए! पापा ने मुझे माथे पर चूम कर अपने गले से लगाया, और माँ ने मुझे हर जगह चूम कर आशीर्वाद दिए। उसके बाद तो दोनों बच्चे फुदकते हुए मेरी गोद में चढ़ गए। माँ ने ढीला सा कुर्ता और शलवार पहना छुआ था। इसलिए उनके शरीर में होने वाले अंतर को देख या समझ पाना कठिन था। लेकिन उनके चेहरे पर पुनः माँ बनने की लालिमा और प्रसन्नता फैली हुई थी। मेरे पीछे दादी थीं; पापा और माँ ने उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिए। सबसे पीछे रचना थी। माँ ने उसको देखा और अपने चेहरे पर चमक भरी मुस्कान लाते हुए बोलीं,

“अब और कितनी देर मुझसे दूर रहोगी, रचना बेटा? तुम्हारे ही मोह में तो यहाँ आ गई इतना दूर!”

“माँ...” कहते हुए रचना माँ से लिपट गई।

बहुत देर के आलिंगन और आशीष के बाद रचना उनसे अलग हुई और उनके पैर छूने लगी।

“क्या आशीर्वाद दूँ मैं तुमको पुत्री! तुम तो खुद ही आशीर्वाद बन कर आई हो ईश्वर का!” माँ ने कहा, “बस सुख से रहो, आनंद से रहो!”

फिर रचना पापा की तरफ मुखातिब हुई, और बिना किसी संकोच के उसने उनके पैर छुए। मुझे अच्छा लगा कि बिना किसी पूर्वाग्रह के, और खुले दिल से रचना ने मेरे परिवार को अपना लिया है। यह खुद में ही उसकी दरियादिली दर्शाती है!

“गॉड ब्लेस यू बेटा,” पापा ने कहा, “सुमन की बात सही है! तुम्ही से मिलने के लालच में हम चले आए! अब तो बस तुम जल्दी से इस घर में आ जाओ... हमेशा हमेशा के लिए! यही तमन्ना है हमारी!”

पापा की बात सुन कर रचना शर्म से लाल हो गई।

उधर माँ और पापा की आवाज़ें सुन कर आभा और लतिका भी भागते हुए आ गए।

“दा... दी...” आभा ख़ुशी से चिल्लाती हुई, भागती हुई आई!

“अरे दादी की बच्ची,” लेकिन पापा ने रास्ते में ही उसकी फील्डिंग लगा दी, और उसको अपनी गोद में उठा कर चूमना शुरू कर दिया। आभा खिलखिला कर हँसने लगी, उसको मालूम था कि आगे क्या होने वाला है। पापा ने आभा की टी-शर्ट थोड़ा ऊपर उठाया, तब वो “नो दा... दू...” कह कर हँसने लगी। लेकिन खेल पूरा हुए बिना कैसे रहे? पापा ने उसकी स्कर्ट को थोड़ा नीचे सरका कर जब आभा का पेड़ू खोल दिया और अपने होंठों को उसके पेड़ू पर सटा कर ज़ोर से ‘फ़ुर्र’ की आवाज़ निकाली। गुदगुदी के कारण पहले से ही खिलखिला कर हंसती हुई आभा और ज़ोर से खिलखिला कर हँसने लगी।

“ये दादा पोती का खेल...” दादी ने हँसते हुए कहा।

सच में... इन दोनों का ये खेल पाँच साल पहले शुरू हुआ था, और आज तक जारी है!

उधर लतिका इस धरती पर अपनी सबसे फ़ेवरिट इंसान से बड़ी सौम्य, लेकिन बहुत ही भावुक तरीके से मिली। लतिका ने सबसे पहले माँ के पैर छुए, फिर उनके गले से लग गई - कस कर - और बहुत देर तक उनको पकड़े रही।

“क्या हो गया मेरा बच्चा,” माँ ने बड़े दुलार से उससे कहा, “क्या सोच रही हो बेटू?”

“कुछ नहीं बोऊ दी! ... आपको बहुत मिस किया!” लतिका ने रुँआसी आवाज़ में कहा।

“आ गई मैं बेटा! आ गई... तुमसे दूर नहीं हो सकती कभी... तुम तो जान हो मेरी!” माँ ने लतिका को चूमते सहलाते हुए कहा।

बहुत देर तक सभी का मेल मिलाप चलता रहा। रचना से सभी ऐसे बात कर रहे थे जैसे उससे सभी की बरसों की जान पहचान हो। एक तरह से सही भी था, और नहीं भी! माँ से उसकी नज़दीकियों और मेरे इंटरेस्ट के कारण सभी यही कोशिश कर रहे थे कि रचना को यहाँ अपने घर जैसा लगे; ऐसा न लगे कि जैसे वो बाहर से आई है! और इस कोशिश में सभी कामयाब भी हो रहे थे। रचना भी कोशिश कर रही थी कि घर के सभी लोगों से घुल मिल जाए; उनको समझ ले। इसलिए बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ, तो चलता ही रहा।

लेकिन, अब तक साढ़े सात बज गए थे।

“अरे भई चलो चलो! केक तो काटो!” माँ ने अधीर होते हुए कहा, “मुझको बड़ी ज़ोर की भूख लग रही है!”

हाँ, भूख लग तो रही होगी। एक तो लम्बा सफर, और ऊपर से उनकी प्रेग्नेंसी! तिस पर दो छोटे बच्चे! आसान थोड़े ही होता है! मुझे तो इस बात से आश्चर्य हो रहा था कि दोनों नन्हे शैतानों ने अभी तक उनको दूध पिलाने के लिए तंग नहीं किया था। शायद अपनी दीदियों से मिल कर वो बाकी सब भूल गए थे। अच्छी बात थी!

ख़ैर हमने केक काटा। दो केक आए थे - एक रचना के लिए और एक पापा के लिए। रचना वाला बड़ा था, और पापा वाला छोटा।

रचना के केक पर हमने एक अंक वाली मोमबत्ती लगाई थी, और पापा वाले केक पर लतिका ने शरारत कर के मोमबत्तियों के अंकों को 26 के बजाए 62 वाले क्रम में रख दिया था। मुझे इस बात पर हँसी भी आई, लेकिन मन में एक ख़याल भी आया कि अगर डैड जीवित होते, तो सत्तावन साल के होते! इस ख़याल पर मेरी नज़र माँ पर पड़ी - वो खिलखिला कर हँस रही थीं, तो मैंने उस विचार को वहीं पर छोड़ दिया। माँ खुश थीं, और उनकी हर ख़ुशी के मूल में पापा ही थे। यही एक महत्वपूर्ण बात थी। इसलिए बुरा मानने जैसा कुछ भी नहीं था। ऐसा नहीं है कि मुझको डैड की याद नहीं आती है - आती है, लेकिन कभी कभी! पापा की उपस्थिति से वो यादें, और डैड को खोने का ग़म और कड़वाहट बहुत कम हो गया। मेरे पापा तो खैर अलग ही तरह के इंसान हैं। मस्तमौला! अपने व्यवहार से सबको अपना मुरीद बना लेते हैं। उन्होंने हँसते हुए कहा कि उनका एक जवान बेटा है, पोती है, चार बच्चों के बाप (होने वाले) हैं, एक और पोती आने वाली है! तो यही उम्र उनके लिए सूट करती है। रचना भी उनकी बात पर हँसे बिना न रह सकी। उसको समझ आ रहा था कि हमारे परिवार का ताना-बाना कैसा है!

पापा का जन्मदिन तो खैर यूँ ही मना रहे थे, इसलिए पहले उनका केक काटा गया। केक पापा ने नहीं, बल्कि आभा, आदित्य और आदर्श ने मिल कर काटा - हमेशा बच्चे ही काटते थे उनका केक! रचना वाला केक काटने के लिए भी सभी बच्चे ही तत्पर थे। बच्चों का उत्साह देख कर रचना ने भी हँसते हुए उनको अपने मन का करने दिया। इस बार नीलू भी शामिल थी - केक बड़ा था, इसलिए कई सारे चाकू उसमें घुस सकते थे। हाँ, लेकिन बहुत सारे लोगों के काटने के कारण, केक का हुलिया अवश्य ही बिगड़ गया। खैर, स्वाद में अंतर थोड़े ही आता है! हम सभी ने आपस में बाँटा और खाया।

डिनर की तैयारी आज दिन में ही कर ली गई थी। कामवाली बाई दोपहर में ही आ गई थी, और उसने दादी की देख-रेख में सब कुछ तैयार कर दिया था। हाँ, पूरियाँ छानने का काम दादी ने अपने सर ले लिया था, लेकिन माँ उनके साथ हो लीं। उनकी देखा देखी रचना भी रसोई में आ गई और मदद की पेशकश करने लगी।

“नहीं बेटा,” दादी ने हँसते हुए कहा, “तुम मत करो! तुम्हारा जन्मदिन है! आज के दिन तो तुमसे काम करवाना पाप है!”

“ऐसे मत बोलिए अम्मा,” रचना ने कहा, “इतने दिनों बाद मुझे इस तरह की ख़ुशी मिली है... अपने परिवार की ख़ुशी!”

“हाँ, तो उस ख़ुशी का आनंद उठाओ! छान लेना पूरियाँ बाद में... पूरी उम्र पड़ी है!” माँ ने रचना से कहा, “तुम हमारी बेटी भी हो, और अब तो हमारी होने वाली बहू भी! तुमको ही सब करना है अब इस घर में!”

“पर माँ...”

“पर वर कुछ नहीं! इतने दिनों बाद मिली हो! कुछ कहो सुनो!”

“सब तो मालूम है आपको। क्या कहना सुनना?” रचना ने गहरी सांस ले कर कहा, “आप बताइए माँ! आपकी तबियत ठीक है?”

“सब ठीक है बेटा!”

“बच्चा कैसा है?”

“बच्चा भी खुश है! उसके पापा मुझको खुश रखते हैं, तो बच्चा भी खुश रहता है!” माँ ने बड़े आनंद से कहा।

दादी मुस्कुराईं; रचना भी।

आई ऍम सो हैप्पी फॉर यू माँ!”

“मैं भी बेटा!” माँ ने कहा, “मैंने... और शायद अम्मा ने भी... कभी नहीं सोचा था कि इस उम्र में हमको यह सब सुख मिलेंगे! लेकिन ईश्वर की ऐसी अनोखी कृपा है कि क्या कहें!”

“ईश्वर की कृपा तो है बेटा,” दादी ने कहा, “मैं तो एक मामूली कामवाली थी...”

“अम्मा...” माँ को इस बात पर बुरा लगा।

लेकिन दादी ने अनसुना कर दिया, “लेकिन मेरी किस्मत में इस बड़े से, सुन्दर से, संस्कारी परिवार की मुखिया बनने का सुख लिखा था!” वो मुस्कुराईं, “ये मेरी बहू... कभी मैं इसकी बेटी होती थी... लेकिन इसकी माँ बन कर मुझे वो सुख मिला है कि मैं शब्दों में बता नहीं सकती।”

माँ प्रसन्नता से मुस्कुराईं।

“अम्मा... क्या ये सच है कि... आप... माँ को...?” रचना ने कहा।

“जो कुछ भी सुना है न तुमने, वो सब सच है बेटे! ... पूरी दुनिया में मेरे लिए कोई सबसे प्यारा है, तो वो ये है... मेरी बहू!” दादी ने बड़े दुलार से माँ के गाल को चिकोटी में ले कर खींचा, “बहू भी है ये मेरी और मेरी सबसे छोटी बेटी भी... मेरा मतलब मेरी गार्गी के आने से पहले! हा हा... गार्गी से थोड़ा बड़ी है ये, लेकिन पुचुकी से छोटी!”

“क्या अम्मा!” माँ रचना के सामने इस लाड़ प्यार के प्रदर्शन से जाहिर तौर पर शर्मा गई थीं।

“ये लो! अब चलीं हैं ये शर्माने!” दादी ने माँ की खिंचाई करते हुए कहा, “रचना बेटे, अभी तुम न होती यहाँ, तो मेरे सीने से लगी रहती मेरी ये बहुरिया!”

माँ ने दोनों हथेलियों के पीछे अपना चेहरा छुपा लिया।

रचना मुस्कुराई, “माँ, यू आर सो क्यूट!”

“है न? और है भी बिलकुल बच्ची जैसी ही! ... और मैं भी तो चाहती हूँ कि इसका बचपना न जाए! ये खुश है, तो हम सब खुश हैं! और जहाँ तक ब्रेस्टफीडिंग की बात है... माँ हूँ सबकी... मेरा दूध मेरे बच्चों के लिए ही तो है!”

“तो मैं बाहर चली जाती हूँ,” रचना ने भी माँ की खिंचाई करी, “आप माँ को दूध पिला दीजिए!”

“पिटेगी तू अब,” माँ ने शर्म से हँसते हुए कहा, “अपनी माँ की खिंचाई करती है!”

“हा हा हा हा हा!”

“अब तो तुम भी मेरी बेटी हो! तुमको भी मिलेगा मेरा दूध!”

“हाँ अम्मा! आपका भी, और... माँ का भी!”

“हा हा! हाँ पता है... इसने तुझको बचपन में पिलाया है न!”

“तब दूध नहीं आता था अम्मा,” माँ ने कहा।

“कोई बात नहीं! अब तो आता है न! ... रचना बेटा, तुम आज रात यहीं रुको!” दादी माँ ने बड़े अधिकार से कहा।

रचना कुछ कहने वाली थी कि उन्होंने उसकी बात काट दी, “देखो... अब तुम हमारी हो... रस्मों से नहीं, तो क्या? मन से तो हो! ... तो हमारी बात सुनो! यहीं रुको! मैं तो कहती हूँ, पूरा वीकेंड यहीं रुको! थोड़ा मजा मस्ती करते हैं हम सब!”

“पर अम्मा...”

“अरे... इतने दिनों बाद तो पूरा परिवार साथ हुआ है। अब तो अगली बार तुम्हारी और अमर की एंगेजमेंट और शादी में ही पूरा परिवार एक साथ में आएगा! इसलिए रुक जाओ न! यही बहाना सही? क्यों बहू?”

“हाँ अम्मा... सही बात है!” माँ ने भी दादी की बात का अनुमोदन किया, “रचना बेटा, घर में जगह कुछ कम ज़रूर है, लेकिन क्या हुआ, दिल में जगह है बहुत! रुक जाओ न?”

दादी और माँ की बात पर रचना भावुक हुए बिना न रह सकी, “नहीं माँ - बहुत जगह है! बहुत जगह है, इस घर में भी, और आप सभी के दिल में भी!”

“तो रुक जाओ!” माँ ने बड़े प्यार से कहा, “ठीक है, पूरा वीकेंड नहीं तो कल तक रुक जाओ!”

“कुछ पहनने को नहीं लाए हैं माँ!”

“अरे कुछ न कुछ तो रहेगा ही घर में!”

“हाँ, और न रहे, तो ऐसी ही रह लो! नंगू नंगू! सभी देखें हमारी होने वाली बहू की सुंदरता!”

“हा हा! क्या अम्मा!” माँ ने कहा - उनको पुरानी बातें याद आ गईं।

*

भोजन बड़े आनंद से हुआ। डाइनिंग टेबल पर केवल छः लोग बैठ सकते थे, इसलिए हमको जहाँ स्थान मिला, वहीं बैठ गए। आदित्य, आदर्श और नीलू मेरे साथ बैठे, आभा अपने दादू के साथ, और रचना, माँ, दादी, और लतिका एक साथ। आनंद आ गया सच में - इतने दिनों बाद पूरा परिवार एक साथ हुआ था, और वो रचना के कारण! अच्छी लड़की थी रचना - बस यही ख़याल आ रहा था। सब साथ में हों तो क्या आनंद आए!

मुझे भविष्य की सुन्दर कल्पना होने लगी। कई सारे प्लान बनने बिगड़ने लगे दिमाग में। एक समय तो मैं यह भी सोचने लगा कि क्यों न मुंबई में एक ऑफिस खोल लिया जाए और वहीं रहा जाए! काम तो बढ़ ही रहा था, और मुंबई और दक्षिण भारत के कई सारे क्लाइंट्स आ रहे थे। फिर मन में ससुर जी का ख़याल आया कि वो अकेले से हो जाएँगे। वो बूढ़े थे, और ऐसा नहीं था कि उनकी हालत बहुत खराब थी, लेकिन फिर भी चिंता तो लगी रहती थी। जयंती दी के पास अपना काम और दोनों बच्चों की देखभाल का काम था ही! उनसे बहुत उम्मीद नहीं करनी चाहिए थी - वो जितना कर पा रही थीं, वही बहुत था!

*

भोजन के बाद कुछ और देर तक बातचीत हुई। फिर तीनों लड़कियाँ एक कमरे में, मैं और रचना मेरे कमरे में, माँ और पापा एक कमरे में, और दादी, गार्गी और दोनों लड़के एक कमरे में शिफ़्ट हो गए सोने। उस रात रचना और मैंने दो बार धमाचौकड़ी वाला सम्भोग किया। रचना और मेरी सेक्सुअल एनर्जी बढ़िया मैच करती थी। वो भी सेक्स को ले कर उतनी ही इच्छुक थी, जितना कि मैं खुद। इसलिए बढ़िया ताल मेल बैठता था। ऐसा नहीं है कि गैबी और डेवी सेक्स के लिए इच्छुक नहीं थीं - लेकिन रचना में एक अलग ही तरह की कामासक्ति थी, जो हमारे सम्भोग को मसालेदार बना देती थी। उसको सेक्स इनिशिएट करने से कोई परहेज़ नहीं था। उसको पता था कि वो सेक्सी है, और इस संज्ञान को इस्तेमाल करने में वो कोताही नहीं बरतती थी। उधर, उसके जन्मदिन पर सेक्स करने की मेरी इच्छा से हमारे सम्भोग में और भी आग बढ़ गई थी! लिहाज़ा दो बड़े ही लम्बे और संतुष्टिदायक सम्भोग का आनंद मिला हमको उस रात!

*

दादी और माँ की बात का मान रख कर रचना उस दिन घर पर ही रुक गई। देवयानी का एक निक्कर और मेरी शर्ट पहन कर वो और भी सेक्सी लग रही थी दिन भर। नीलू ने पुचुकी का एक ड्रेस पहन लिया था। कहीं बाहर (जैसे कि मॉल इत्यादि) जा कर समय बर्बाद करने के बजाय हमने घर में ही समय बिताया। आवश्यक था कि हम एक दूसरे के मिज़ाज़ को समझ लें, जान लें। मुझे यह देख कर बड़ा अच्छा लगा कि नीलू घर के बाकी बच्चों के साथ बहुत घुल मिल गई। जब हम वयस्क लोग बातें कर रहे थे, तो कोई भी बच्चा हमारे सामने नहीं दिख रहा था। यह अच्छे संकेत थे। मतलब हमारे बच्चे भी आपस में एक बढ़िया कम्फर्ट लेवल महसूस कर रहे थे।

इधर उधर की ढेरों बातें करने के बाद समय आया रचना और नीलू को उनके घर छोड़ने का। चलने से पहले माँ ने रचना को एक सोने की ज़ंजीर, जिसमें एक रत्नजड़ित पेन्डेन्ट था, पहनाई - उसके जन्मदिन का तोहफा! रचना शायद कुछ कहती, लेकिन कुछ सोच कर चुप रह गई। उसने फिर माँ के पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। दादी ने पहले वाले ही अंदाज़ में रचना की कलाई में एक सोने का ब्रेसलेट पहनाया। माँ की ही तरह रचना ने दादी के पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया। पापा ने रचना और नीलू दोनों को एक एक लिफ़ाफ़े दिए जिनमें क्रमशः पाँच हज़ार एक और एक हज़ार एक रुपए थे। रचना ने उनके भी पैर छू कर आशीर्वाद लिए। माँ ने नीलू को एक रिस्टवॉच पहनाई, और दादी ने उसको कर्णफूल दिए। नीलू उनके पैर छूने को हुई, तो दोनों ने उसको बीच में ही रोक लिया कि घर की लड़कियाँ लक्ष्मी का रूप होती हैं, इसलिए वो किसी के पैर नहीं छूतीं!

उधर हमारे बच्चे भी लालायित थे कि उनके लिए क्या क्या आया था मुंबई से - इसलिए वो भी रचना और नीलू के जाने का इंतज़ार कर रहे थे। लिहाज़ा, मैं उनको गाड़ी में बैठा कर उनके घर छोड़ आया।

वापस आने से पहले रचना ने मुझसे कहा कि कल से अच्छा जन्मदिन, और आज से अच्छा वीकेंड उसने शायद ही कभी मनाया हो! उसको सच में ऐसा लगा कि वही उसका संसार है। सुन कर मन शांत हो गया। अगर रचना को ऐसा महसूस हुआ है, तो समझिए हम सभी की ख़ुशी का द्वार खुल गया।

*

घर वापस आया तो सभी मुस्कुराते हुए मुझको ही देख रहे थे।

“क्या हो गया?” मैंने चकराते हुए पूछा, “आप लोग मुझको यूँ क्यों देख रहे हैं?”

मेरे प्रश्न पर पापा ने ठहाके मार कर हँसते हुए कहा, “अरे बेटा, हमने अभी अभी पंडित जी से बात करी! जून और जुलाई में कुछ शुभ मुहूर्त हैं, जब तुम्हारी और रचना बेटी की शादी कर सकते हैं।”

“अरे! इतना जल्दी क्यों?”

दादी माँ ने कहा, “बेटे, हम तो सोच रहे थे कि बहू की गोद भराई के साथ ही तुम दोनों की शादी कर दें! एक साथ दो शुभ काम संपन्न हो जाएँगे! ... और तुम दोनों भी क्यों इतना देर इंतज़ार करो? रचना तो हम सभी को पसंद है, और तुम भी उसको पसंद करते हो! फिर क्यों टाइम वेस्ट करें?”

“अरे अम्मा, लेकिन ये तो बहुत जल्दी है न?”

“बेटे, फिर नवम्बर दिसंबर में ही मिलेगी शुभ तिथि...” पापा ने कहा।

“जुलाई के लिए दो महीने हैं न बेटा...” माँ ने कहा, “सब इंतजाम हो जाएँगे!”

“हाँ न! इस बार सब कुछ अपने गाँव में करेंगे।” दादी ने कहा, “बहू की गोद भराई, और तुम्हारी शादी! दोनों!”

मैंने चौंक कर माँ को देखा।

माँ ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “अम्मा ने मुझको सब बता दिया है। बेटा... मैं जानती हूँ कि पिछली बार क्या क्या हुआ था। लेकिन वो पुरानी बातें हैं... मैं भूल गई! तुम भी भूल जाओ। माफ़ कर दो सभी को... मुझको मालूम है कि तुम्हारी बड़ी इज़्ज़त है गाँव में! कुछ गलत नहीं होगा... और ऐसे शुभ अवसरों पर तो सभी साथ हो लेते हैं!”

माँ मेरी हैं बड़ी कोमल हृदय की स्त्री! वो न तो किसी से गुस्सा हो पाती हैं, और न ही किसी से द्वेष रख पाती हैं। शायद ही कोई अपराध हो जिसके लिए वो किसी को क्षमा दान न दे सकें!

“माँ... अम्मा... पापा... आप सभी को यही ठीक लगता है, तो ठीक है!”

पापा मुस्कुराए, “बहुत बढ़िया! सब फाइनल कर के हम रचना बेटे के पिता जी से बात कर लेंगे, और सब तय कर लेंगे!”

“कब?”

“अरे! बड़ी जल्दी हो रही है अब तुमको!” माँ ने मेरी टाँग खींची।

“हा हा... नहीं माँ! वो बात नहीं है। मुझे विज़िबिलिटी रहे, तो मैं वो डेट्स खाली रखूँ।”

“जल्दी ही बेटे, जल्दी ही! ... शायद तीन चार दिनों में!”

“ठीक है पापा!”

अंततः मुझे भी अपने जीवन के अँधेरे गलियारे के अंत में रोशनी की चमक दिखाई देने लगी!

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