• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


  • Total voters
    42

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,511
34,400
219
अध्याय 40

“ये हमारा घर है?” घर को देखते ही ऋतु ने आश्चर्य से पूंछा, रागिनी, अनुराधा और प्रबल भी उस घर को देखकर चौंक गए थे

“हाँ ये ही हमारा पुराना घर है...जो पुश्तैनी मकान के बँटवारे में हमें मिला था” मोहिनी ने कहा तो सब उनकी तरफ देखने लगे

“तो फिर माँ पहले हम जिस मकान में रहे थे वो किसका घर था... वो भी तो अपना ही घर बताया था आपने?” ऋतु ने मोहिनी से पूंछा

“मुझे नहीं मालूम। में यहाँ बहू बनकर रही हूँ...इसी घर में, दूसरा घर हमारा है या किसी और का, मुझे क्या मालूम.... सुशीला से पूंछो, हम सब तो पहले ही यहाँ से जा चुके थे सबसे बाद में रवि और सुशीला ही यहाँ रहे थे... बल्कि सुशीला अब भी यहीं रहती हैं.... घर देखकर ही मुझे लग रहा है.... उस घर में तो मुझे कुछ ऐसा लगा नहीं कि कोई वहाँ रहता भी होगा” मोहिनी ने अपनी बात साफ की

हुया ये था कि दिल्ली से निकलकर वो सभी गाँव पहुंचे तो मंदिर पर गाडियाँ रुकते ही गाँव के कुछ लड़के उनके पास आए और सबके पैर छूकर उनका उनका समान साथ लेकर वो लोग गाँव में अंदर घुसे और शुरू की ही एक छोटी सी गली जिसमें मुश्किल से 3-4 घर थे उसमें मुड़कर बिलकुल सामने वाले घर में घुस गए... गाँव के सभी लड़के सामान घर पर छोडकर चले गए। वो घर पहले वाले घर से काफी छोटा था, तो विक्रम की लाश (?) के साथ आए मोहिनी, रागिनी, ऋतु, अनुराधा और प्रबल चौंक गए और ऋतु ने अपनी माँ मोहिनी देवी से घर को लेकर सवाल कर दिया

उन लोगों कि ये हालत देखकर और भानु, वैदेही भी मुस्कुरा दिये लेकिन फिर सुशीला ने उन सबको बताया कि उस समय इतने सारे लोगों के लिए गाँव में परिवार के ही दूसरे खाली पड़े घर में उन लोगों के रहने की व्यवस्था की गयी थी। लेकिन ऋतु ने जब ये पूंछा की उस समय उन लोगों को इस घर के बारे मे क्यूँ नहीं बताया गया, यहाँ क्यूँ नहीं लाया गया और सुशीला व बच्चों से क्यों नहीं मिलवाया गया... बल्कि जब सारा परिवार इकट्ठा था तब सुशीला और भानु-वैदेही ना तो सामने आए और ना ही किसी से मिले। सुशीला ऋतु के पास आकर बोली

“वो इसलिए क्योंकि उस समय हम चंडीगढ़ में इन दोनों के साथ थे” सुशीला ने मुसकुराते हुये रणविजय और नीलिमा की ओर इशारा किया

“लेकिन आप तो पाकिस्तान में रहती थीं ना” ऋतु ने फिर भी संतुष्ट ना होते हुये कहा तो नीलिमा की हंसी छूट गयी

“ननद रानी......अपने भाई की बहादुरी के किस्से सुनकर ये मत समझो की सिर्फ ये ही तीसमारखाँ हैं.... में वहाँ की इंटेलिजेंस के लिए काम करती थी.... पिछले 18 साल में से कम से कम 12 साल दिल्ली चंडीगढ़ में ही बिताए हैं .... वो तो इन बच्चों का राज खुलने का डर था वरना वहीं कोटा की हवेली में इन सबसे मिलकर आती” नीलिमा न्रे कहा तभी सुशीला ने उनसे शांत रहने का इशारा किया तो देखा की गाँव की कुछ औरतें घर में आ रही थीं... सुशीला ने भानु से सभी लड़कों और रणविजय को बाहर चौपाल पर ले जाने को कहा...

...............................................

“भैया अनुराधा दीदी को कुछ काम है बाज़ार में ये अकेले जाने को थीं लेकिन मेंने कहा की आपके साथ चली जाएँ....... इनके लिए अंजान जगह है....” वैदेही ने आकर भानु से कहा तो भानु ने अनुराधा की ओर देखा और साथ चलने ka इशारा करते हुये बाहर की ओर चल दिया... अनुराधा भी बाहर आयी और गाड़ी के पास आकर खड़े भानु को चाबी देने लगी

“आप चलाये.... में कभी किसी की गाड़ी नहीं चलाता” भानु ने सपाट लहजे में कहा तो अनुराधा को थोड़ा अजीब लगा लेकिन वो चाबी से दरवाजा खोलकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी और दूसरी ओर से भानु के बैठते ही गाड़ी आगे बढ़ा दी

“आप इस तरह से क्यों बोलते हैं.... ये गाड़ी भी तो आपकी ही है.... आपके विक्रम चाचा, रागिनी बुआ, ऋतु बुआ या बलराज बाबा किसी की भी हो आपकी ही तो है.... हाँ में ऐसा सोचूँ तो ठीक भी है.... मेरी दादी और आपके बाबा भाई बहन थे... 3 पीढ़ी पुराना हो गया ये रिश्ता.... और आपका ये सब परिवार है” अनुराधा ने नज़रें सामने रखकर गाड़ी चलते हुये भानु से कहा

“आपका कहना गलत नहीं है.... लेकिन आप मेरे पिताजी से कभी मिली नहीं.... ये मेंने उनसे सीखा है... किसी के लिए जो कर सकते हो वो करो... लेकिन उससे कोई अपेक्षा मत रखो... और ज़िंदगी में जो कुछ भी चाहिए... खुद हासिल करो.... वरना उसके बिना जीना सीख लो” भानु ने गंभीर स्वर में कहा

“ह्म्म! राणा जी मतलब रवीद्र ताऊजी के बारे में जितना सुनने को मिलता है...उनसे मिलने की इच्छा उतनी ही तेज होती जाती है” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा

“इसी बात का तो मुझे डर लगता है... जब सुनके आप इतनी उतावली हैं मिलने के लिए.... तो फिर मिलने पर क्या करेंगी” भानु ने मुसकुराते हुये कहा

“मतलब??? मिलने पर क्या होगा? आपने ऐसा क्यों कहा कि आपको इस बात का डर लगता है.... ऐसी क्या बात है” अनुराधा ने कनखियों से भानु की ओर उत्सुकता से देखते हुये पूंछा

“आपको एक बात बताऊँ... लेकिन आप किसी से नहीं कहना... माँ और वैदेही से भी नहीं” भानु ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा

“नहीं कहूँगी.... लेकिन ऐसी क्या बात है............ कहीं मुझसे प्यार तो नहीं हो गया आपको” अनुराधा ने मुसकुराते हुये कहा

“आप भी मेरे पिताजी की तरह ही बात करती हैं....बात पिताजी के बारे में ही है.... घर में बड़े-बड़े सबको पता है.... लेकिन मुझे पता चले...ये कोई नहीं चाहता... इसलिए में भी नहीं चाहता किसी को पता चले...कि में इस बात को जानता हूँ” भानु ने मुसकुराते हुये बात शुरू की ओर गंभीर स्वर में पूरी करके अनुराधा की ओर देखने लगा और मन में सोचने लगा.........प्यार हो भी सकता है.... है तो इतनी प्यारी कि प्यार हो जाए.... घुँघराली लटें, तीखी नाक अपनी ओर खींचते होठ, लंबी गर्दन.... और चूचियाँ........ जान ले लेंगी......

“अब बात तो बताओ.... में सच में किसी से भी नहीं कहूँगी” अनुराधा ने फिर से पूंछा तो भानु अपनी सोच से बाहर निकला और अनुराधा के शरीर से नज़र हटाके उसकी आँखों में देखता हुआ बोला

“मेरे पिताजी की एक पत्नी... मुझसे सिर्फ 5 साल बड़ी हैं.... और पिताजी से 20 साल छोटी....पता नहीं उन्होने क्या देखा जो अपने से इतने बड़े, अपने बाप की उम्र के आदमी की नाजायज पत्नी बनने को भी तैयार हो गईं” भानु ने कहा

“तो तुम्हें डर लगता है... में अगर उनसे मिलूँगी तो उन पर फिदा हो जाऊँगी....” अनुराधा ने भोंहें चढ़ते हुये कहा लेकिन मन ही मन हँसते हुये सोचने लगी.... बाप का तो पता नहीं लेकिन बेटा जरूर मुझे जँचने लगा है......

“ये तो वक़्त ही बताएगा” मुसकुराते हुये भानु ने कहा और सामने देखने लगा

“वैसे तुम यहाँ गाँव में ही रहते हो.... या सिर्फ ताईजी ही यहाँ रहती हैं.... मुझे लगता है तुम और वैदेही बाहर रहकर पढ़ते हो....शायद दिल्ली” अनुराधा ने पूंछा

“नहीं में और वैदेही बचपन से यहीं रहकर पढे हैं... और गाँव में ही रहते हैं.... और जैसा लोग सोचते हैं पढ़कर नौकरी या बिज़नस करने के लिए शहर जाकर रहने की.... वो में बिलकुल नहीं सोचता...मेरे पिताजी इसलिए तो हमें गाँव लेकर आए थे ...” भानु ने गंभीर स्वर में कहा

तब तक वो कस्बे के बाज़ार में पहुँच चुके थे तो भानु ने अनुराधा को गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह बताई और दोनों उतरकर बाज़ार में घुस गए। अनुराधा ने बाज़ार का एक चक्कर लगाया और पूरे बाज़ार बाज़ार को घूमकर वापस गाड़ी पर ही आ गयी और कुछ उलझन सी में सोच-विचार में गुम हो गयी तो भानु ने उससे पूंछा की वो क्या लेने आयी थी यहाँ। कोई और रास्ता ना देख उसने भानु को बताया कि उसकी महवारी शुरू होने वाली थी और उसे पैड चाहिए थे... भानु को भी सुनकर अजीब लगा...

“तो तुमने घर पर ही किसी से पूंछ लिया होता... पहले भी तो इस्तेमाल करती होगी.... और यहाँ आ ही गयी तो लिए क्यों नहीं” भानु को उससे इस बारे में बात करने में कुछ झिझक सी लग रही थी

“पहले तो सबकुछ माँ मतलब रागिनी बुआ देखती थीं...मेंने कभी कुछ बाज़ार से खरीदा ही नहीं” अनुराधा ने भी कुछ झिझकते हुये जवाब दिया

“तो अब क्यों नहीं कहा उनसे?”

“अब आपसे क्या बताऊँ, आप नहीं समझेंगे जो आज मेरे हालात हैं... आज जब पता चल गया है कि वो मेरी माँ नहीं बल्कि मेरे पापा के मामा की बेटी हैं तो बड़ा अजीब लगता है उनसे हर बात करना... इसीलिए यहाँ बाज़ार चली आयी....” अनुराधा ने उदास लहजे में कहा

“अच्छा चलो छोड़ो इस बात को... अभी आप का काम कर देता हूँ... आप मुझे पहले बता देती तो में सीधा वहीं लेकर चलता आपको... वैसे तो ये चीजें यहाँ मेडिकल स्टोर पर भी मिल जाती हैं .... फिर भी देहात का कस्बा है गाँव कि औरतें ख़रीदारी करने अति हैं, जिन्हें थोड़ी झिझक होती है तो औरतों के सब सामान के लिए एक अलग ही बाज़ार है.... उसे चूड़ी वाली गली कहते हैं... चूड़ियों से साज-सिंगार और औरतों के अंदर के कपड़े सब वहाँ एक ही जगह मिल जाते हैं....वो पूरा औरतों का ही बाज़ार है.... में आपको वहाँ लिए चलता हूँ... दुकान से आप खुद ले लेना... वहाँ दुकानों पर आदमी नहीं जा सकते” कहते हुये भानु बाज़ार की ओर चल दिया... अनुराधा भी उसके पीछे-पीछे चल पड़े बाज़ार के एक कोने में जाकर भानु ने एक गली में मुड़ने का इशारा किया... जो बाहर दिखती नहीं थी... उस गली में दोनों ओर सुनार और औरतों के समान कि दुकानें थीं। भानु एक दुकान के सामने खड़ा हो गया और अनुराधा को भेज दिया। अनुराधा जाकर अपना सामान ले आयी और दोनों जाकर गाड़ी में बैठ गए....

“आपने वैदेही से भी नहीं कहा होगा वर्ण वो आपके साथ ही आती और आपको आपका समान दिलवा ले जाती” भानु ने अपनी सीट पर बैठते हुये गाड़ी वापस गाँव कि ओर मोड़ने का इशारा करते हुये कहा

“बस कुछ दिमाग में ही नहीं आया... आपसे भी मजबूरी में ही कहना पड़ा” अनुराधा ने गाड़ी आगे बढाते हुये सड़क पर नज़रें जमाये हुये कहा

“पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी कि जो बात आप रागिनी बुआ और वैदेही से भी नहीं कह सकीं, मुझसे क्यूँ कह दी.... कहीं आप मुझे अपना प्रेमी तो नहीं समझने लगीं” भानु ने बात को ज्यादा गंभीर होते और अनुराधा को तनाव में देखकर मज़ाक में कहा...जिससे अनुराधा का मन भी हलका हो जाए

“मुझे भी ऐसा ही लगता है” अनुराधा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी

“कैसा” अनुराधा के जवाब को सुनकर भानु ने छोंकते हुये कहा

“कि मुझे आपसे प्यार हो गया है” अनुराधा के मुंह से ये सुनते ही भानु चुप होकर बैठ गया और दोनों गाँव तक चुपचाप ही बैठे रहे...बल्कि यूं कहा जाए की भानु चुपचाप बैठा रहा...... अनुराधा ने तो एक दो बार रास्ते में बात करने की कोशिश भी की लेकिन भानु चुप ही रहा और बाहर देखते हुये कुछ सोचता रहा

गाँव पहुँचकर भानु चुपचाप घर के पीछे की तरफ चल दिया और अनुराधा घर में घास गयी। घर में आते ही अनुराधा का सामना रणविजय से हुआ तो रणविजय ने अनुराधा से पूंछा की वो कहाँ गयी थी...इस पर अनुराधा ने बताया की वो कुछ सामान लेने बाज़ार गई थी भानु के साथ, रणविजय ने उससे कहा की उसे कुछ बात करनी है...अकेले में। अनुराधा ने कहा की वो अभी कुछ जरूरी कम है उसे निबटाकर आएगी 10 मिनट में। अनुराधा ने अंदर पहुँचकर वैदेही को साथ लिया और उसके कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। थोड़ी देर बाद बाहर निकालकर वो रणविजय के पास पहुंची तो रणविजय उसे अपने साथ घर के पीछे की ओर ले गया जिधर अनुराधा ने भानु को जाते देखा था

..............................................

“अनुराधा बेटा कहाँ चली गईं थीं तुम” रागिनी ने अनुराधा को घर के पीछे से निकालकर आते देखा तो पूंछा

“कहीं नहीं माँ! पहले तो बाज़ार गयी थी भानु के साथ फिर यहाँ पीछे बगीचे में थी” अनुराधा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया

“बेटा वहाँ अकेली मत जया करो साँप वगैरह भी होते हैं, और तुम्हें किसने बताया की यहाँ पीछे बग़ीचा भी है अपना” रागिनी ने अपनी बात रखी

“माँ वो विक्रम भैया मतलब रणविजय चाचाजी के साथ गयी थी” अनुराधा ने जैसे ही कहा... रागिनी की आँखों में गुस्सा उभर आया

“अच्छा तो अब बच्चों को भी मेरे खिलाफ भड़का रहा है, क्या कह रहा था तुमसे” रागिनी गुस्से से बोली

“माँ उन्होने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो तुम्हारे खिलाफ हो.... उनसे क्या बात हुई में आपको और प्रबल को सामने बैठकर सब बताऊँगी... आप ऐसा क्यों समझती हैंकी वो आपके खिलाफ हैं...... उन्होने आपके साथ कुछ गलत तो नहीं किया...आपका कुछ बुरा तो नहीं किया....आपके खिलाफ बोलना तो छोड़ो, आपकी किसी बात उल्टे आप ही उनके खिलाफ बोल रही हैं आजकल” अनुराधा ने भी थोड़ा गुस्से के साथ जवाब दिया तो रागिनी का मुंह आश्चर्य से खुला ही रह गया

..........................................

रात के खाने के लिए गाँव में घर-परिवार के लोगों ने कहा लेकिन सुशीला ने कहा की यहाँ कोई भी रिश्तेदार नहीं हैं... सब घर के ही हैं तो मिलकर खाना बनाएँगे। रात को सुशीला, नीलिमा और शांति ने खाना बनाया, ऋतु, वैदेही, अनुराधा और अनुभूति ने सबको खाना खिलाया। सबके खाना खाने के बाद रणविजय ने कहा की एक तो घर छोटा है और दूसरे गाँव के प्रकृतिक वातावरण में बाहर खुले में सोने का मौका मिला है तो क्यों गंवाया जाए। इसलिए वो स्वयं और भानु, प्रबल, समर सब बाहर सामने की ओर सोयेंगे और महिलाएं-लड़कियां घर के आँगन में।

अनुराधा और वैदेही ने कहा की वो दोनों छत पर सोयेंगी, और उन्होने अनुभूति को भी अपने साथ छत पर ले जाने की बात काही तो अनुभूति ने कहा की वो अपनी माँ शांति के पास सो जाएगी, लेकिन रागिनी और सुशीला ने कहा की वो अपनी माँ से बाहर भी और लड़कियों के साथ रहना सीखे... आखिरकार अनुभूति को भी जाना ही पड़ा। अब मोहिनी, रागिनी, सुशीला, शांति और ऋतु नीचे आँगन में लेटी हुईं थीं।

वैदेही ने अनुराधा और अनुभूति को गाँव के बारे में और परिवार के बारे में बताया...और उन लोगों से शहर की उनकी ज़िंदगी के बारे में पूंछा तो दोनों ने ही कहा की वो दिल्ली और कोटा में बेशक शहर में रहीं लेकिन कभी घर से बाहर ही निकालना नहीं हुआ.... तो उन्हें शहर में रह कर भी अपने शहर के बारे में जानकारी ही नहीं। ऐसे ही बातों बातों में अनुराधा ने वैदेही से भानु के बारे में जानकारी लेनी शुरू की, तो पता चला की भानु ने पढ़ाई के अलावा खेती-बागवानी और सूचना प्रोद्योगिकी (इन्फॉर्मेशन टेक्नालजी – IT) के क्षेत्र में भी काफी कुछ सीखा है... बिज़नस मैनेजमेंट अपने पिता राणा जी से सीखा.... यहाँ पर राणा जी ने कुछ कृषि आधारित व्यवसाय शुरू किए थे जिन्हें भानु-वैदेही दोनों भाई-बहन मिलकर देखते हैं और ये सबकुछ सुशीला, भानु और वैदेही के ही नाम पर हैं.... पारिवारिक संपत्ति से अलग.... राणा जी का अपना बनाया हुआ। अनुराधा ने चालाकी से वैदेही के मोबाइल नंबर के साथ-साथ भानु का नंबर भी ले लिया।

प्रबल भी अपने मोबाइल पर लगा हुआ था। अनुपमा से चैट चल रही थी। इधर मोहिनी और सुशीला पुरानी यादें ताजा करने में लगी हुई थीं, रागिनी, ऋतु और शांति चुपचाप उनकी बातें सुन रही थीं.... कभी कभी ऋतु कुछ सवाल पूंछने भी लगती और सुशीला या मोहिनी उसका जवाब देतीं। बाहर प्रबल ने अपनी चैटिंग बंद करके वहाँ रणविजय और भानु में घर-परिवार और गाँव-रिशतेदारों के बारे में बातें चल रही थीं, उन्हें सुनने लगा, समर चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। ये सब कुछ प्रबल और समर के लिए बिलकुल नया था।

समर और प्रबल ने कभी रणविजय को इतनी बातें करते ही नहीं देखा था और यहाँ वो भानु से लगातार बातें किए ही जा रहा था, इसके अलावा इन दोनों ने अपने घर में रहने वाले गिने चुने लोगों के अलावा ना किसी को देखा था, न किसी के बारे में सुना था। रिश्ते और रिशतेदारों के बारे में तो उन्होने अपने आस-पड़ोस, मिलने-जुलने वालों, यार-दोस्तों और किताबों में ही पढ़ा था... वो भी ज़्यादातर नजदीकी रिश्ते जैसे चाचा-ताऊ, बुआ-फूफा, मामा-नाना.... लेकिन यहाँ तो रणविजय और भानु के बीच तो पता नहीं कितनी पीढ़ी पुराने रिश्ते, गाँव में रह रहे परिवार के अन्य लोगों की रिश्तेदारियों, ननिहाल, ससुराल की रिश्तेदारियों और पता नहीं किस-किस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी।

“एक बात बताओ भानु? भाभी से तो मेंने पूंछा ही नहीं... पता नहीं भाभी क्या कहतीं, ताईजी कहाँ हैं” रणविजय ने कहा

“अम्मा धीरेंद्र चाचा के पास हैं.... 5-6 साल से उन्हीं के साथ रह रही हैं....” भानु ने जवाब दिया

“वो तो मुझे भी मालूम है... तब तो धीरेंद्र चंडीगढ़ रहकर ही उस काम को सम्हाल रहा था...और ताईजी हमारे साथ ही थीं.... अभी 2 साल पहले धीरेंद्र की शादी में में और नीलों ही तो ताईजी और धीरेंद्र को साथ लेकर आए थे चंडीगढ़ से” रणविजय ने कहा

“पापा ये ताईजी कौन हैं... में तो उनसे कभी मिला ही नहीं, और ये धीरेंद्र चाचा” अचानक समर ने सवाल किया रणविजय से

“बेटा वो तुम तीनों की दादी हैं....मेरी ताईजी और रवीद्र भैया की माँ, और धीरेंद्र तुम्हारे चाचा हैं, रवीद्र भैया के छोटे भाई, उनका नाम तो तुमने चंडीगढ़ में ऑफिस में सुना ही होगा, ये सारा बिज़नस रवीद्र भैया ने प्लान किया था और धीरेंद्र ने चलाया हैं पिछले 5 सालों से ...... तुम्हें पता है तुम्हारी 5 दादी थीं, जिनमें से सिर्फ मेरी माँ की मृत्यु 35 साल पहले हो गयी थी...बाकी सभी मौजूद हैं....समय आ चुका है...सबसे जल्दी ही मुलाक़ात होगी .........चलो अभी सब सोने की तैयारी करो सुबह कुछ और नयी खुशखबरी सुनने को मिलेगी” रणविजय ने सबको सोने का इशारा करते हुये कहा
 
9,380
39,527
218
अध्याय-1

रागिनी अपने बेडरूम में लेटी बहुत देर से छत को घूरे जा रही थी... पता नहीं किस सोच में डूबी थी। आज सुबह से ही वो अपने बिस्तर से नहीं उठी थी। तभी उसके मोबाइल की घंटी बजने से उसका ध्यान भंग होता है और वो अपना मोबाइल उठाकर देखती है... किसी नए या अनजाने नंबर से कॉल था।

कुछ देर ऐसे ही देखते रहने के बाद वो कॉल उठाती है.... “हॅलो”

“हॅलो! क्या आप रागिनी सिंह बोल रही हैं” दूसरी ओर से एक आदमी की आवाज आई

“जी हाँ! हम रागिनी सिंह ही बोल रहे हैं। आप कौन”

“रागिनी जी में सब इंस्पेक्टर राम नरेश यादव बोल रहा हूँ। थाना xxxxx श्रीगंगानगर से”

“जी दारोगा जी बताएं... किसलिए फोन किया”

“मैडम! हमारे क्षेत्र मे एक लाश मिली है जो पहचाने जाने के काबिल नहीं है, शायद 8-10 दिन पुरानी है... सडी-गली हालत में… लाश के कपड़ों में कुछ कागजात पहचान पत्र, ड्राइविंग लाइसेंस आदि मिले हैं विक्रमादित्य सिंह के नाम के और एक मोबाइल फोन…. जिसे ऑन करने पर लास्ट काल्स आपके नाम से थीं... मिस्सड कॉल...”

“क्या???” रागिनी की आँखों से आंसुओं की धार बह निकली

“आपको इस लाश की शिनाख्त के लिए श्रीगंगानगर आना होगा... वैसे आपका क्या संबंध है विक्रमादित्य सिंह से...?”

“हम उनकी माँ हैं” रागिनी ने अपने आँसू पोंछते हुये कहा “ हम अभी कोटा से निकाल रहे हैं 4-5 घंटे मे वहाँ पहुँच जाएंगे.... अप उन्हें सूरक्षित रखें”

रागिनी ने फोन काटा और बेजान सी बिस्तर पर गिर पड़ी

फिर उसने अपनेफोने मे व्हाट्सएप्प खोला और उसमें आए हुये विक्रमादित्य के मैसेज को पढ़ने लगी ....

“रागिनी! आज वक़्त ने फिर करवट ली है...... कभी में तुम्हें पाना चाहता था लेकिन तुम्हें मुझसे नफरत थी..... फिर हम पास आए... साथ हुये तो नदी के दो किनारों की तरह.... जो आमने सामने होते हुये भी मिल नहीं सकते..... मेरी हवस और तुम्हारी नफरत... दोनों ही प्यार मे बादल गए लेकिन बीच में जो रिश्ते की नदी थी उसे पार नहीं कर सके..... मिल नहीं सके..... अब शायद हमारा साथ यहीं तक था.... वक़्त ने हालात कुछ ऐसे बना दिये हैं की हुमें जुड़ा होना ही होगा....... शायद इस जन्म के लिए........ जन्म भर के लिए.........

एक आखिरी विनती है........ बच्चों का ख्याल रखना...... और दिल्ली मे अभय से मिलकर वसीयत इनके हवाले कर देना......... में कोई अमानत किसी की भी अपने साथ नहीं ले जाऊंगा....... तुम्हें भी तुम्हारा घर और बच्चे सौंप रहा हूँ.....

तुम्हारा.......................

विक्रमादित्य”

रागिनी फोन छोडकर ज़ोर ज़ोर से रोने लगी....विक्रमादित्य का नाम लेकर

तभी एक 21-22 साल की लड़की भागती हुई कमरे मे घुसी

“क्या हुआ माँ”

लेकिन रागिनी ने जब कोई जवाब नहीं दिया तो उसने बेड पर से रागिनी का मोबाइल उठाकर देखा और उस मैसेज को पढ़ने लगी....

“दीदी! माँ को क्या हुआ.... ये ऐसे क्यों रो रही हैं... किसका फोन आया” 18-19 साल के एक लड़के ने कमरे मे घुसते हुये पूंछा

उधर मैसेज पढ़ते ही लड़की का चेहरा गुस्से से लाल हो गया और उसने उस लड़के को मोबाइल देते हुये कहा

“प्रबल! इस मैसेज को पढ़ और इनसे पूंछ की क्या रिश्ता है इनके और विक्रमादित्य के बीच........... माँ बेटे के अलावा” कहते हुये उसने रागिनी की ओर नफरत से देखा

चट्टाक………….

“अनु तेरी हिम्मत कैसे हुयी अपने बड़े भाई का नाम लेने की........” अनु यानि अनुराधा के गाल पर रागिनी की पांचों उँगलियाँ छपता हुआ थप्पड़ पड़ा और वो गरजकर बोली “इस इलाके मे बच्चे से बूढ़े तक उनका नाम नहीं लेते... हुकुम या बन्ना सा बुलाते हैं.... और तू मेरे ही सामने उनका नाम इतनी बद्तमीजी से ले रही है”

अनुराधा और प्रबल को जैसे साँप सूंघ गया... रागिनी ने अनुराधा के हाथ से अपना मोबाइल छीना और कमरे से बाहर जाती हुई बोली

“में अभी और इसी वक़्त ... इस घर को छोडकर जा रही हूँ.... जब मुझे इस घर मे लाने वाला ही चला गया तो मेरा यहाँ क्या है..... अब तुम दोनों ही इस हवेली, जमीन-जायदाद के मालिक हो.... कोई तुम्हें रोकटोक करनेवाला नहीं होगा........ तुम्हें एक वकील का एड्रैस मैसेज कर रही हूँ.... दिल्ली जाकर उससे मिल लेना”

बाहर से कार स्टार्ट होने की आवाज सुनकर सकते से मे खड़े प्रबल और अनुराधा चौंक कर बाहर की ओर भागे, लेकिन तब तक रागिनी की कार हवेली के फाटक से बाहर निकाल चुकी थी।

अनुराधा ने फाटक पर पहुँच कर दरबान से पूंछा “माँ कहाँ गईं हैं”

“जी मालकिन ने कुछ नहीं बताया”

“बेवकूफ़! वो किधर गईं हैं” अनुराधा ने गुस्से से कहा

“जी! कोटा की तरफ” दरबान ने इशारा करते हुये कहा

“ठीक है” कहकर अनुराधा ने प्रबल को अंदर चलने का इशारा किया

अनुराधा और प्रबल हवेली के अंदर आकर रागिनी के कमरे मे गए और बेड पर बैठकर एक दूसरे की ओर देखने लगे।

“दीदी! आपको माँ से भैया के बारे में ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी” प्रबल ने खामोशी तोड़ते हुये कहा

“में उस आदमी का नाम भी नहीं सुनना चाहती जिसने हमारी ज़िंदगी का चैन, सुकून, खुशियाँ सब छीन लिया और यहाँ तक की हमारी माँ भी हमारी नहीं रही, सिर्फ उसकी वजह से.... देखा कैसे बिना कोई जवाब दिये माँ हमें छोडकर उसकी तलाश में कहाँ गईं हैं... पता नहीं उसे कब मौत आएगी?” अनुराधा गुस्से से बोली

प्रबल चुपचाप उठकर कमरे से बाहर चला गया, अपने कमरे मे पहुँचकर अपना फोन उठाकर व्हाट्सएप्प पर विक्रम का कई दिन पुराना मैसेज खोला... जिसे उसने आजतक पढ़कर भी नहीं देखा था.....

“प्रबल बेटा! मे तुम्हें और अनुराधा को अपने भाई बहन नहीं अपने बच्चों की तरह मानता हूँ शायद इसीलिए तुम लोगों के साथ कुछ ज्यादा ही सख्ती से पेश आया। लेकिन अब तुम दोनों ही बच्चे नहीं रहें समझदार हो गए हो... अपना भला बुरा खुद सोच-समझ सकते हो, इसलिए आज से ये सब हवेली जमीन जायदाद जो तुम्हारी ही थी तुम्हें सौंपकर... अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त होकर जा रहा हूँ... अपनी माँ का ख्याल रखना.... और मुझे हो सके तो माफ कर देना... मेरी ज़्यादतियों के लिए—तुम्हारा भाई विक्रमादित्य सिंह”

मैसेज पढ़ते ही प्रबल अपना फोन पकड़े भागता हुआ रागिनी के कमरे में पहुंचा “ दीदी! ये पढ़ो”

लेकिन जब उसने सामने देखा तो अनुराधा रागिनी के कमरे के सब समान को फैलाये ... एक डायरी हाथ में पकड़े खड़ी थी

प्रबल को देखकर अनुराधा पहले तो डर सी गयी... फिर बोली “क्या है...किसका मैसेज है”

“विक्रम भैया का मैसेज है... कई दिन पहले आया था... अभी पढ़ा है मेंने” प्रबल ने कमरे में चारों ओर देखते हुये कहा “ये क्या कर रही हो आप... माँ को पता चला तो...”

अनुराधा ने उसे कोई जवाब दिये बिना आगे बढ़कर उसके हाथ से मोबाइल लिया और उस मैसेज को पढ़ने लगी। तभी अनुराधा को कुछ ध्यान आया और वो डायरी और प्रबल का मोबाइल हाथ में लिए हुये ही अपने कमरे की ओर तेज कदमो से जाने लगी

“दीदी! दीदी!” कहता हुया प्रबल भी उसके पीछे भागा। कमरे में पहुँचकर अनुराधा ने अपना मोबाइल उठाया और मैसेज चेक करने लगी... उसके मोबाइल में भी वही मैसेज उसी दिन आया हुआ था, साथ ही एक मैसेज अभी अभी का रागिनी के नंबर से भी था जिसमे एडवोकेट अभय प्रताप सिंह का नाम और नंबर दिया हुआ था।

अनुराधा ने तुरंत अभय प्रताप सिंह को कॉल मिलाया

............................................
क्रमश: आगामी अध्याय में
कामदेव जी , शायद इस कहानी को मैंने पिछले फोरम पर देखा था । नाम याद नहीं आ रहा है कि किस नाम से पोस्ट हुआ था ।

खैर , आज से पढ़ना शुरू किया है । और शायद इसी हफ्ते में पुरी पढ़ भी लूं ।

आप एक अच्छे राइटर ही नहीं बल्कि एक जबरदस्त समीक्षक भी है तो आप की लेखनी भी असामान्य और बाकी राइटरों से हट कर ही होगी ।

इस कहानी के लिए आप को हार्दिक अभिनन्दन ।
 

amita

Well-Known Member
6,870
16,653
144
अध्याय 40

“ये हमारा घर है?” घर को देखते ही ऋतु ने आश्चर्य से पूंछा, रागिनी, अनुराधा और प्रबल भी उस घर को देखकर चौंक गए थे

“हाँ ये ही हमारा पुराना घर है...जो पुश्तैनी मकान के बँटवारे में हमें मिला था” मोहिनी ने कहा तो सब उनकी तरफ देखने लगे

“तो फिर माँ पहले हम जिस मकान में रहे थे वो किसका घर था... वो भी तो अपना ही घर बताया था आपने?” ऋतु ने मोहिनी से पूंछा

“मुझे नहीं मालूम। में यहाँ बहू बनकर रही हूँ...इसी घर में, दूसरा घर हमारा है या किसी और का, मुझे क्या मालूम.... सुशीला से पूंछो, हम सब तो पहले ही यहाँ से जा चुके थे सबसे बाद में रवि और सुशीला ही यहाँ रहे थे... बल्कि सुशीला अब भी यहीं रहती हैं.... घर देखकर ही मुझे लग रहा है.... उस घर में तो मुझे कुछ ऐसा लगा नहीं कि कोई वहाँ रहता भी होगा” मोहिनी ने अपनी बात साफ की

हुया ये था कि दिल्ली से निकलकर वो सभी गाँव पहुंचे तो मंदिर पर गाडियाँ रुकते ही गाँव के कुछ लड़के उनके पास आए और सबके पैर छूकर उनका उनका समान साथ लेकर वो लोग गाँव में अंदर घुसे और शुरू की ही एक छोटी सी गली जिसमें मुश्किल से 3-4 घर थे उसमें मुड़कर बिलकुल सामने वाले घर में घुस गए... गाँव के सभी लड़के सामान घर पर छोडकर चले गए। वो घर पहले वाले घर से काफी छोटा था, तो विक्रम की लाश (?) के साथ आए मोहिनी, रागिनी, ऋतु, अनुराधा और प्रबल चौंक गए और ऋतु ने अपनी माँ मोहिनी देवी से घर को लेकर सवाल कर दिया

उन लोगों कि ये हालत देखकर और भानु, वैदेही भी मुस्कुरा दिये लेकिन फिर सुशीला ने उन सबको बताया कि उस समय इतने सारे लोगों के लिए गाँव में परिवार के ही दूसरे खाली पड़े घर में उन लोगों के रहने की व्यवस्था की गयी थी। लेकिन ऋतु ने जब ये पूंछा की उस समय उन लोगों को इस घर के बारे मे क्यूँ नहीं बताया गया, यहाँ क्यूँ नहीं लाया गया और सुशीला व बच्चों से क्यों नहीं मिलवाया गया... बल्कि जब सारा परिवार इकट्ठा था तब सुशीला और भानु-वैदेही ना तो सामने आए और ना ही किसी से मिले। सुशीला ऋतु के पास आकर बोली

“वो इसलिए क्योंकि उस समय हम चंडीगढ़ में इन दोनों के साथ थे” सुशीला ने मुसकुराते हुये रणविजय और नीलिमा की ओर इशारा किया

“लेकिन आप तो पाकिस्तान में रहती थीं ना” ऋतु ने फिर भी संतुष्ट ना होते हुये कहा तो नीलिमा की हंसी छूट गयी

“ननद रानी......अपने भाई की बहादुरी के किस्से सुनकर ये मत समझो की सिर्फ ये ही तीसमारखाँ हैं.... में वहाँ की इंटेलिजेंस के लिए काम करती थी.... पिछले 18 साल में से कम से कम 12 साल दिल्ली चंडीगढ़ में ही बिताए हैं .... वो तो इन बच्चों का राज खुलने का डर था वरना वहीं कोटा की हवेली में इन सबसे मिलकर आती” नीलिमा न्रे कहा तभी सुशीला ने उनसे शांत रहने का इशारा किया तो देखा की गाँव की कुछ औरतें घर में आ रही थीं... सुशीला ने भानु से सभी लड़कों और रणविजय को बाहर चौपाल पर ले जाने को कहा...

...............................................

“भैया अनुराधा दीदी को कुछ काम है बाज़ार में ये अकेले जाने को थीं लेकिन मेंने कहा की आपके साथ चली जाएँ....... इनके लिए अंजान जगह है....” वैदेही ने आकर भानु से कहा तो भानु ने अनुराधा की ओर देखा और साथ चलने ka इशारा करते हुये बाहर की ओर चल दिया... अनुराधा भी बाहर आयी और गाड़ी के पास आकर खड़े भानु को चाबी देने लगी

“आप चलाये.... में कभी किसी की गाड़ी नहीं चलाता” भानु ने सपाट लहजे में कहा तो अनुराधा को थोड़ा अजीब लगा लेकिन वो चाबी से दरवाजा खोलकर गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर बैठ गयी और दूसरी ओर से भानु के बैठते ही गाड़ी आगे बढ़ा दी

“आप इस तरह से क्यों बोलते हैं.... ये गाड़ी भी तो आपकी ही है.... आपके विक्रम चाचा, रागिनी बुआ, ऋतु बुआ या बलराज बाबा किसी की भी हो आपकी ही तो है.... हाँ में ऐसा सोचूँ तो ठीक भी है.... मेरी दादी और आपके बाबा भाई बहन थे... 3 पीढ़ी पुराना हो गया ये रिश्ता.... और आपका ये सब परिवार है” अनुराधा ने नज़रें सामने रखकर गाड़ी चलते हुये भानु से कहा

“आपका कहना गलत नहीं है.... लेकिन आप मेरे पिताजी से कभी मिली नहीं.... ये मेंने उनसे सीखा है... किसी के लिए जो कर सकते हो वो करो... लेकिन उससे कोई अपेक्षा मत रखो... और ज़िंदगी में जो कुछ भी चाहिए... खुद हासिल करो.... वरना उसके बिना जीना सीख लो” भानु ने गंभीर स्वर में कहा

“ह्म्म! राणा जी मतलब रवीद्र ताऊजी के बारे में जितना सुनने को मिलता है...उनसे मिलने की इच्छा उतनी ही तेज होती जाती है” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा

“इसी बात का तो मुझे डर लगता है... जब सुनके आप इतनी उतावली हैं मिलने के लिए.... तो फिर मिलने पर क्या करेंगी” भानु ने मुसकुराते हुये कहा

“मतलब??? मिलने पर क्या होगा? आपने ऐसा क्यों कहा कि आपको इस बात का डर लगता है.... ऐसी क्या बात है” अनुराधा ने कनखियों से भानु की ओर उत्सुकता से देखते हुये पूंछा

“आपको एक बात बताऊँ... लेकिन आप किसी से नहीं कहना... माँ और वैदेही से भी नहीं” भानु ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा

“नहीं कहूँगी.... लेकिन ऐसी क्या बात है............ कहीं मुझसे प्यार तो नहीं हो गया आपको” अनुराधा ने मुसकुराते हुये कहा

“आप भी मेरे पिताजी की तरह ही बात करती हैं....बात पिताजी के बारे में ही है.... घर में बड़े-बड़े सबको पता है.... लेकिन मुझे पता चले...ये कोई नहीं चाहता... इसलिए में भी नहीं चाहता किसी को पता चले...कि में इस बात को जानता हूँ” भानु ने मुसकुराते हुये बात शुरू की ओर गंभीर स्वर में पूरी करके अनुराधा की ओर देखने लगा और मन में सोचने लगा.........प्यार हो भी सकता है.... है तो इतनी प्यारी कि प्यार हो जाए.... घुँघराली लटें, तीखी नाक अपनी ओर खींचते होठ, लंबी गर्दन.... और चूचियाँ........ जान ले लेंगी......

“अब बात तो बताओ.... में सच में किसी से भी नहीं कहूँगी” अनुराधा ने फिर से पूंछा तो भानु अपनी सोच से बाहर निकला और अनुराधा के शरीर से नज़र हटाके उसकी आँखों में देखता हुआ बोला

“मेरे पिताजी की एक पत्नी... मुझसे सिर्फ 5 साल बड़ी हैं.... और पिताजी से 20 साल छोटी....पता नहीं उन्होने क्या देखा जो अपने से इतने बड़े, अपने बाप की उम्र के आदमी की नाजायज पत्नी बनने को भी तैयार हो गईं” भानु ने कहा

“तो तुम्हें डर लगता है... में अगर उनसे मिलूँगी तो उन पर फिदा हो जाऊँगी....” अनुराधा ने भोंहें चढ़ते हुये कहा लेकिन मन ही मन हँसते हुये सोचने लगी.... बाप का तो पता नहीं लेकिन बेटा जरूर मुझे जँचने लगा है......

“ये तो वक़्त ही बताएगा” मुसकुराते हुये भानु ने कहा और सामने देखने लगा

“वैसे तुम यहाँ गाँव में ही रहते हो.... या सिर्फ ताईजी ही यहाँ रहती हैं.... मुझे लगता है तुम और वैदेही बाहर रहकर पढ़ते हो....शायद दिल्ली” अनुराधा ने पूंछा

“नहीं में और वैदेही बचपन से यहीं रहकर पढे हैं... और गाँव में ही रहते हैं.... और जैसा लोग सोचते हैं पढ़कर नौकरी या बिज़नस करने के लिए शहर जाकर रहने की.... वो में बिलकुल नहीं सोचता...मेरे पिताजी इसलिए तो हमें गाँव लेकर आए थे ...” भानु ने गंभीर स्वर में कहा

तब तक वो कस्बे के बाज़ार में पहुँच चुके थे तो भानु ने अनुराधा को गाड़ी खड़ी करने के लिए जगह बताई और दोनों उतरकर बाज़ार में घुस गए। अनुराधा ने बाज़ार का एक चक्कर लगाया और पूरे बाज़ार बाज़ार को घूमकर वापस गाड़ी पर ही आ गयी और कुछ उलझन सी में सोच-विचार में गुम हो गयी तो भानु ने उससे पूंछा की वो क्या लेने आयी थी यहाँ। कोई और रास्ता ना देख उसने भानु को बताया कि उसकी महवारी शुरू होने वाली थी और उसे पैड चाहिए थे... भानु को भी सुनकर अजीब लगा...

“तो तुमने घर पर ही किसी से पूंछ लिया होता... पहले भी तो इस्तेमाल करती होगी.... और यहाँ आ ही गयी तो लिए क्यों नहीं” भानु को उससे इस बारे में बात करने में कुछ झिझक सी लग रही थी

“पहले तो सबकुछ माँ मतलब रागिनी बुआ देखती थीं...मेंने कभी कुछ बाज़ार से खरीदा ही नहीं” अनुराधा ने भी कुछ झिझकते हुये जवाब दिया

“तो अब क्यों नहीं कहा उनसे?”

“अब आपसे क्या बताऊँ, आप नहीं समझेंगे जो आज मेरे हालात हैं... आज जब पता चल गया है कि वो मेरी माँ नहीं बल्कि मेरे पापा के मामा की बेटी हैं तो बड़ा अजीब लगता है उनसे हर बात करना... इसीलिए यहाँ बाज़ार चली आयी....” अनुराधा ने उदास लहजे में कहा

“अच्छा चलो छोड़ो इस बात को... अभी आप का काम कर देता हूँ... आप मुझे पहले बता देती तो में सीधा वहीं लेकर चलता आपको... वैसे तो ये चीजें यहाँ मेडिकल स्टोर पर भी मिल जाती हैं .... फिर भी देहात का कस्बा है गाँव कि औरतें ख़रीदारी करने अति हैं, जिन्हें थोड़ी झिझक होती है तो औरतों के सब सामान के लिए एक अलग ही बाज़ार है.... उसे चूड़ी वाली गली कहते हैं... चूड़ियों से साज-सिंगार और औरतों के अंदर के कपड़े सब वहाँ एक ही जगह मिल जाते हैं....वो पूरा औरतों का ही बाज़ार है.... में आपको वहाँ लिए चलता हूँ... दुकान से आप खुद ले लेना... वहाँ दुकानों पर आदमी नहीं जा सकते” कहते हुये भानु बाज़ार की ओर चल दिया... अनुराधा भी उसके पीछे-पीछे चल पड़े बाज़ार के एक कोने में जाकर भानु ने एक गली में मुड़ने का इशारा किया... जो बाहर दिखती नहीं थी... उस गली में दोनों ओर सुनार और औरतों के समान कि दुकानें थीं। भानु एक दुकान के सामने खड़ा हो गया और अनुराधा को भेज दिया। अनुराधा जाकर अपना सामान ले आयी और दोनों जाकर गाड़ी में बैठ गए....

“आपने वैदेही से भी नहीं कहा होगा वर्ण वो आपके साथ ही आती और आपको आपका समान दिलवा ले जाती” भानु ने अपनी सीट पर बैठते हुये गाड़ी वापस गाँव कि ओर मोड़ने का इशारा करते हुये कहा

“बस कुछ दिमाग में ही नहीं आया... आपसे भी मजबूरी में ही कहना पड़ा” अनुराधा ने गाड़ी आगे बढाते हुये सड़क पर नज़रें जमाये हुये कहा

“पर एक बात मेरी समझ में नहीं आयी कि जो बात आप रागिनी बुआ और वैदेही से भी नहीं कह सकीं, मुझसे क्यूँ कह दी.... कहीं आप मुझे अपना प्रेमी तो नहीं समझने लगीं” भानु ने बात को ज्यादा गंभीर होते और अनुराधा को तनाव में देखकर मज़ाक में कहा...जिससे अनुराधा का मन भी हलका हो जाए

“मुझे भी ऐसा ही लगता है” अनुराधा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी

“कैसा” अनुराधा के जवाब को सुनकर भानु ने छोंकते हुये कहा

“कि मुझे आपसे प्यार हो गया है” अनुराधा के मुंह से ये सुनते ही भानु चुप होकर बैठ गया और दोनों गाँव तक चुपचाप ही बैठे रहे...बल्कि यूं कहा जाए की भानु चुपचाप बैठा रहा...... अनुराधा ने तो एक दो बार रास्ते में बात करने की कोशिश भी की लेकिन भानु चुप ही रहा और बाहर देखते हुये कुछ सोचता रहा

गाँव पहुँचकर भानु चुपचाप घर के पीछे की तरफ चल दिया और अनुराधा घर में घास गयी। घर में आते ही अनुराधा का सामना रणविजय से हुआ तो रणविजय ने अनुराधा से पूंछा की वो कहाँ गयी थी...इस पर अनुराधा ने बताया की वो कुछ सामान लेने बाज़ार गई थी भानु के साथ, रणविजय ने उससे कहा की उसे कुछ बात करनी है...अकेले में। अनुराधा ने कहा की वो अभी कुछ जरूरी कम है उसे निबटाकर आएगी 10 मिनट में। अनुराधा ने अंदर पहुँचकर वैदेही को साथ लिया और उसके कमरे में जाकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया। थोड़ी देर बाद बाहर निकालकर वो रणविजय के पास पहुंची तो रणविजय उसे अपने साथ घर के पीछे की ओर ले गया जिधर अनुराधा ने भानु को जाते देखा था

..............................................

“अनुराधा बेटा कहाँ चली गईं थीं तुम” रागिनी ने अनुराधा को घर के पीछे से निकालकर आते देखा तो पूंछा

“कहीं नहीं माँ! पहले तो बाज़ार गयी थी भानु के साथ फिर यहाँ पीछे बगीचे में थी” अनुराधा ने संक्षिप्त सा जवाब दिया

“बेटा वहाँ अकेली मत जया करो साँप वगैरह भी होते हैं, और तुम्हें किसने बताया की यहाँ पीछे बग़ीचा भी है अपना” रागिनी ने अपनी बात रखी

“माँ वो विक्रम भैया मतलब रणविजय चाचाजी के साथ गयी थी” अनुराधा ने जैसे ही कहा... रागिनी की आँखों में गुस्सा उभर आया

“अच्छा तो अब बच्चों को भी मेरे खिलाफ भड़का रहा है, क्या कह रहा था तुमसे” रागिनी गुस्से से बोली

“माँ उन्होने ऐसा कुछ भी नहीं कहा जो तुम्हारे खिलाफ हो.... उनसे क्या बात हुई में आपको और प्रबल को सामने बैठकर सब बताऊँगी... आप ऐसा क्यों समझती हैंकी वो आपके खिलाफ हैं...... उन्होने आपके साथ कुछ गलत तो नहीं किया...आपका कुछ बुरा तो नहीं किया....आपके खिलाफ बोलना तो छोड़ो, आपकी किसी बात उल्टे आप ही उनके खिलाफ बोल रही हैं आजकल” अनुराधा ने भी थोड़ा गुस्से के साथ जवाब दिया तो रागिनी का मुंह आश्चर्य से खुला ही रह गया

..........................................

रात के खाने के लिए गाँव में घर-परिवार के लोगों ने कहा लेकिन सुशीला ने कहा की यहाँ कोई भी रिश्तेदार नहीं हैं... सब घर के ही हैं तो मिलकर खाना बनाएँगे। रात को सुशीला, नीलिमा और शांति ने खाना बनाया, ऋतु, वैदेही, अनुराधा और अनुभूति ने सबको खाना खिलाया। सबके खाना खाने के बाद रणविजय ने कहा की एक तो घर छोटा है और दूसरे गाँव के प्रकृतिक वातावरण में बाहर खुले में सोने का मौका मिला है तो क्यों गंवाया जाए। इसलिए वो स्वयं और भानु, प्रबल, समर सब बाहर सामने की ओर सोयेंगे और महिलाएं-लड़कियां घर के आँगन में।

अनुराधा और वैदेही ने कहा की वो दोनों छत पर सोयेंगी, और उन्होने अनुभूति को भी अपने साथ छत पर ले जाने की बात काही तो अनुभूति ने कहा की वो अपनी माँ शांति के पास सो जाएगी, लेकिन रागिनी और सुशीला ने कहा की वो अपनी माँ से बाहर भी और लड़कियों के साथ रहना सीखे... आखिरकार अनुभूति को भी जाना ही पड़ा। अब मोहिनी, रागिनी, सुशीला, शांति और ऋतु नीचे आँगन में लेटी हुईं थीं।

वैदेही ने अनुराधा और अनुभूति को गाँव के बारे में और परिवार के बारे में बताया...और उन लोगों से शहर की उनकी ज़िंदगी के बारे में पूंछा तो दोनों ने ही कहा की वो दिल्ली और कोटा में बेशक शहर में रहीं लेकिन कभी घर से बाहर ही निकालना नहीं हुआ.... तो उन्हें शहर में रह कर भी अपने शहर के बारे में जानकारी ही नहीं। ऐसे ही बातों बातों में अनुराधा ने वैदेही से भानु के बारे में जानकारी लेनी शुरू की, तो पता चला की भानु ने पढ़ाई के अलावा खेती-बागवानी और सूचना प्रोद्योगिकी (इन्फॉर्मेशन टेक्नालजी – IT) के क्षेत्र में भी काफी कुछ सीखा है... बिज़नस मैनेजमेंट अपने पिता राणा जी से सीखा.... यहाँ पर राणा जी ने कुछ कृषि आधारित व्यवसाय शुरू किए थे जिन्हें भानु-वैदेही दोनों भाई-बहन मिलकर देखते हैं और ये सबकुछ सुशीला, भानु और वैदेही के ही नाम पर हैं.... पारिवारिक संपत्ति से अलग.... राणा जी का अपना बनाया हुआ। अनुराधा ने चालाकी से वैदेही के मोबाइल नंबर के साथ-साथ भानु का नंबर भी ले लिया।

प्रबल भी अपने मोबाइल पर लगा हुआ था। अनुपमा से चैट चल रही थी। इधर मोहिनी और सुशीला पुरानी यादें ताजा करने में लगी हुई थीं, रागिनी, ऋतु और शांति चुपचाप उनकी बातें सुन रही थीं.... कभी कभी ऋतु कुछ सवाल पूंछने भी लगती और सुशीला या मोहिनी उसका जवाब देतीं। बाहर प्रबल ने अपनी चैटिंग बंद करके वहाँ रणविजय और भानु में घर-परिवार और गाँव-रिशतेदारों के बारे में बातें चल रही थीं, उन्हें सुनने लगा, समर चुपचाप उनकी बातें सुन रहा था। ये सब कुछ प्रबल और समर के लिए बिलकुल नया था।

समर और प्रबल ने कभी रणविजय को इतनी बातें करते ही नहीं देखा था और यहाँ वो भानु से लगातार बातें किए ही जा रहा था, इसके अलावा इन दोनों ने अपने घर में रहने वाले गिने चुने लोगों के अलावा ना किसी को देखा था, न किसी के बारे में सुना था। रिश्ते और रिशतेदारों के बारे में तो उन्होने अपने आस-पड़ोस, मिलने-जुलने वालों, यार-दोस्तों और किताबों में ही पढ़ा था... वो भी ज़्यादातर नजदीकी रिश्ते जैसे चाचा-ताऊ, बुआ-फूफा, मामा-नाना.... लेकिन यहाँ तो रणविजय और भानु के बीच तो पता नहीं कितनी पीढ़ी पुराने रिश्ते, गाँव में रह रहे परिवार के अन्य लोगों की रिश्तेदारियों, ननिहाल, ससुराल की रिश्तेदारियों और पता नहीं किस-किस मुद्दे पर चर्चा हो रही थी।

“एक बात बताओ भानु? भाभी से तो मेंने पूंछा ही नहीं... पता नहीं भाभी क्या कहतीं, ताईजी कहाँ हैं” रणविजय ने कहा

“अम्मा धीरेंद्र चाचा के पास हैं.... 5-6 साल से उन्हीं के साथ रह रही हैं....” भानु ने जवाब दिया

“वो तो मुझे भी मालूम है... तब तो धीरेंद्र चंडीगढ़ रहकर ही उस काम को सम्हाल रहा था...और ताईजी हमारे साथ ही थीं.... अभी 2 साल पहले धीरेंद्र की शादी में में और नीलों ही तो ताईजी और धीरेंद्र को साथ लेकर आए थे चंडीगढ़ से” रणविजय ने कहा

“पापा ये ताईजी कौन हैं... में तो उनसे कभी मिला ही नहीं, और ये धीरेंद्र चाचा” अचानक समर ने सवाल किया रणविजय से

“बेटा वो तुम तीनों की दादी हैं....मेरी ताईजी और रवीद्र भैया की माँ, और धीरेंद्र तुम्हारे चाचा हैं, रवीद्र भैया के छोटे भाई, उनका नाम तो तुमने चंडीगढ़ में ऑफिस में सुना ही होगा, ये सारा बिज़नस रवीद्र भैया ने प्लान किया था और धीरेंद्र ने चलाया हैं पिछले 5 सालों से ...... तुम्हें पता है तुम्हारी 5 दादी थीं, जिनमें से सिर्फ मेरी माँ की मृत्यु 35 साल पहले हो गयी थी...बाकी सभी मौजूद हैं....समय आ चुका है...सबसे जल्दी ही मुलाक़ात होगी .........चलो अभी सब सोने की तैयारी करो सुबह कुछ और नयी खुशखबरी सुनने को मिलेगी” रणविजय ने सबको सोने का इशारा करते हुये कहा
superb, kya mod diya hai
 
  • Like
Reactions: kamdev99008

kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
8,511
34,400
219
एक और प्रेम कहानी शुरू हो रही है.... चाहे अंजाम जो भी हो
 
Top