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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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firefox420

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Chinoy seth..... Bola tha rajkumar ne....waqt me
Aur........
Moksh ki or pahunchne ka kaam chalu hai....
Abhi to meri kahani hi shuru nahi hui....mere 2 chachere bhai bahan hi 40 update kha gaye....vikram-ragini....
Abhi to ham 4 sage bhai bahan hain,
..... ritu, anubhuti, devraj chacha aur unke beta-beti.....
Inke alawa mujhse jude kuchh khas characters....
400-500 updates to ho hi jayeinge....

Isliye surakshit. Rahein aur intzar karein

bhaiya aap na bade chalu aur maha harami aadmi ho .. aap ka bas chale to baato - baato mein aadmi ko bech-khaao ...

asli mudde ki baat to karte nahi aur aage - aage ke pool baandh dete ho .. abhi to 40 addayatan tak pahuchne ke to laale ho rahe hai .. aur aap 400-500 update tak ke sapne dikha rahe ho .. jiss heesab se aapki light aur laptop kaam karte hai .. uske heesab se to moksh milne se raha .. muzhe to lagta hai aapke moksh ke chakkar mein meri jawani aive he kharch ho jaayegi .. karlo apni he karlo .. hamesha apni he chalte aaye ho .. bhai (vikram) bhi chata chataya mila hai .. jaise aap ho .. waisa he aapka bhai hai ...


abhi tak to neelima ki he ramkahani khatam hui hai .. uske baad gaon mein jaa kar Vikram / raagini ka kissa shuru hoga .. bechare prabal aur Ragini ki to le li hai ...

abhi tak to anuradha ke naak par gussa chadha rehta tha .. uska settle hua hai to Prabal ka mood kharab ho gaya hai ...

uski bhi galti nahi hai .. jisko wo abhi tak bada bhai manta aaya tha .. wo to uska baap nikla .. aur jisko maa manta aaya tha wo bua nikli .. aur janm dene wali Maa se usko abhi koi lagav hai nahi .. Ritu bhi bua thi .. wo to badi behen ban gayi .. pata nahi kaisa pariwaar hai .. ek rishte mein bandh kar rehta he nahi hai .. sab idhar se udhar gota lagate firr rahe hai ...

bas ab aap sheikh-chilli wale sapne dikhane band karo :D .. aur jaldi se aage ke update dene ki koshish karo ...

aur koi bahana nahi chalega .. kabhi kal ko kaho ki Indo-china tension chal rahi hai .. to laptop ke liye repairing ka samaan nahi mil paa raha hai .. ab ye baat pehle he bata di hai .. to iss bahane ko to advance mein he apni dairy se cut kar dena ...

isi chakkar mein (Chutiyadr) Dr. saab ne yaha aana jaana chhod diya hai .. aur (TheBlackBlood) masoom baccha to yaha se gayab he ho gaya hai ....
 
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mahadev31

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balraj ko kyu bataya sushila ne ki usko vikram aur hum sab dhundne nikle hai ? vikram ab ranvijay ban gaya hai na to uski sachchai phone pe balraj ko kyu batayi .... vikram to mar chuka hai to balraj ko jhatka nahi laga sunke ? ....
 

mahadev31

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400 ,, 500, update ki story matlab itne jaldi kahani ko samajhna namumkin hai , aur aapne kaha ki chachere bhai me hi chal rahi hai story aur aap ki aur aapke 4 bhai behen ki kahani abhi baaki hai , lagta hai unka bhi past bahut pechida hai ..... par aapka character kaunsa hai ( naam batana jarur ) .ragini ki to waat lag gayi hai dono bachche uske nahi hai ..... par prabal ko uske saath hi rahna chaahiye bachpan se jo paala hai use , .....waiting for next update.....
 

RAAZ

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Zindagi ke taane baane bhi ajeeb Hotey Hai ab dekhiye kaha Ragini sab ka pata lagane kee liye khoj been kar rahi thee aur kaha ek dum jab sab mil gaya to woh bheed me. Bhi akeli ho gayi.

अध्याय 38

सुशीला को रोते देखकर मोहिनी ने उसे अपने गले लगा लिया। शांति, रागिनी, नीलिमा भी सुशीला के पास आ गए...उसे चुप कराने लगे...लेकिन सब को अपने पास महसूस करके सुशीला और भी ज्यादा रोने लगी

“चुप होजा बेटी.... रवि हर हाल में आयेगा.... उसे आना ही होगा....” मोहिनी ने समझाते हुये कहा

“आपको क्या लगता है चाचीजी में सारे घर-परिवार और बच्चों के बीच हँसती मुसकुराती रहती हूँ तो में खुश हूँ.... या मुझे उनकी याद नहीं आती...वो तो घर में रहकर भी अकेले ही रहते थे....तब में भी उनसे ज्यादा घर को अपनाए हुयी थी... क्योंकि मुझे लगता था की वो तो मेरे हैं ही.......... लेकिन आज जब वो मेरे साथ नहीं हैं तो में उन से भी ज्यादा अकेली हो गयी हूँ..... जबकि वही सारा परिवार आज मेरे साथ है” कहती हुई सुशीला और भी ज़ोर से रोने लगी

“अच्छा अब चुप हो जाओ और हमें खुशी-खुशी भेजो.... में तुमसे ये नहीं कहूँगी कि तुम हमारे साथ चलो.... लेकिन यहाँ रहकर हमारी कामयाबी के लिए प्रार्थना तो कर सकती हो, हम हर हाल में रवि का पता लगाकर ही आएंगे” कहते हुये मोहिनी ने सबकी ओर देखा तो सब सुशीला के पास आए और उसकी पीठ पर हाथ रखकर सांत्वना देने लगे।

.................................

“दादा जय सिया राम” उधर से आवाज आयी तो विनायक ने आवाज पहचानने की कोशिश की

“अरे चाचा आप..... जय सिया राम चाचा! में विनायक बोल रहा हूँ...” विनायक ने पहचानते ही कहा

“सब कैसे हैं बेटा.... और दादा कहाँ हैं?” उधर से कहा गया

“चाचा आज तो कई साल बाद आपने घर फोन किया है.... पिताजी बाहर ही हैं... में अभी उनसे बात कराता हूँ” विनायक ने कहा

“ठीक है... दादा को बुला ला.... तब तक भाभी से बात करा मेरी” उधर से फिर कहा गया तो विनायक ने अपनी माँ को ले जाकर फोन दिया

“किसका फोन है...” मंजरी ने पूंछा तो विनायक ने हँसकर फोन उसके कान पर लगा दिया

“आप ही पता कर लो” और हँसते हुये बाहर चला गया

“कौन” मंजरी ने फोन अपने कण पर लगते हुये कहा

“भाभी नमस्ते! कैसी हैं आप?” उधर से आवाज आयी तो मंजरी भाभी शब्द सुनते ही चोंक गयी

“नमस्ते में ठीक हूँ.... आप कौन” मंजरी ने पूंछा

“आप अब भी नहीं समझीं.... सोचो कौन हो सकता है” उधर से बात करनेवाले ने मंजरी की बेचैनी का मजा लेते हुये कहा

“मुझे कभी कोई भाभी नहीं कहता.... सिवाय...”मंजरी ने बोला तो दूसरी ओर से हंसने की आवाज आयी

“सिवाय मेरे.......... आपकी ज़िंदगी में अकेला में ही हूँ.....या कोई और भी है” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा

“आज अपनी भाभी की कैसे याद आ गयी.... हमेशा तो अपनी भतीजे से ही संदेश भिजवाते हो” मंजरी ने गुस्सा होते हुये कहा

“भतीजा... अरे वो तो मेरा बेटा है....बड़ा बेटा और रहा मेरे बात न करने का सवाल... तो आप ही अपने इस बेटे को भूल गईं...आपने ही कहाँ कभी बात की” उसने उदास लहजे में कहा

“मेंने तो कितनी बार विनायक से तुम्हारा नंबर मांगा लेकिन वो बहाने बना देता है की तुम्हारा कोई नंबर उसके पास नहीं... हमेशा तुम ही उसे कॉल करते हो” मंजरी ने जवाब दिया

“मुझसे बात करने के लिए मेरा नंबर होना जरूरी है क्या? अगर आप सुशीला से भी मिल लेतीं, उससे बात कर लेतीं तो भी मुझे यही लगता की आपने मुझसे बात की है.... भाभी! पूरे परिवार में किसी ने ये जानने की कभी कोशिश ही नहीं की कि सुशीला और बच्चे कैसे हैं.... या उन्हें भी किसी कि जरूरत हो सकती है... चलिये छोड़िए.... आप कैसी हैं” उसने बात बदलते हुये कहा तो अपने मन में ग्लानि महसूस करती मंजरी के चेहरे पर फिर से मुस्कान आ गयी

“बूढ़ी हो गयी हूँ....और कैसी होऊंगी..... ये तो उम्र ही ऐसी है कि बिना पूंछे ही बीमारियाँ आती-जाती रहती हैं” मंजरी ने कहा

“कहाँ से बूढ़ी हो गईं आप.... दादा के काम की भी नहीं रहीं क्या.... तो दादा का भी कुछ इंतजाम कराना पड़ेगा....वो तो अभी बूढ़े नहीं हुये” उधर से कहा गया तो मंजरी हंस दी

“मुझे सुशीला मत समझ लेना ..... उसने तुम्हें आज़ादी दे दी... लेकिन में तुम्हारे दादा के पीछे-पीछे वहीं पहुँच जाऊँगी” मंजरी ने बोला

“में कहाँ जा रहा हूँ.... जो तुम्हें पीछा करना पड़े...” अचानक पीछे से आयी अपने पति की आवाज सुनकर मंजरी चोंक गयी

“क्या पता कहीं जाने की सोचने लगा...अपने भाई की तरह.... लो बात कर लो” कहते हुये मंजरी ने फोन अपने पति की ओर बढ़ा दिया

“दादा नमस्ते! कहाँ घूमते रहते हो.... दूसरे घर गए थे क्या?” उधर से बोलने वाले ने हँसते हुये कहा

“नमस्ते! एक ही चुड़ैल ने खून पी रखा है.... दूसरी आफत क्यों मोल लूँगा... ये तो तुम ही कर सकते हो.... कहाँ पर हो” उन्होने कहा

“दादा सब ठीक हूँ.... वक़्त आने पर सिर्फ बताऊंगा ही नहीं...बुलाऊंगा भी... अभी एक जरूरी बात बतानी थी आप लोगों को....” उधर से कहा गया

“हाँ बताओ... क्या बात है” उन्होने कहा

“बलराज चाचाजी दिल्ली से चुपचाप चले आए हैं घर पर बिना बताए, आप एक बार उनकी ननिहाल में पता करवाओ... मेरे ख्याल से वो वहीं पर हैं... उनका किसी भी तरह पता लगा के उन्हें अपने पास ले आओ... दिल्ली से कोई आकर उन्हें ले जाएगा” उधर से कहा गया

“कोई बात नहीं में देख लूँगा, और अब उन्हें दिल्ली जाने की भी जरूरत नहीं। वो हमारे साथ ही रह लेंगे, आखिरकार मेरे भी चाचा हैं” वीरेंद्र ने कहा

“ठीक है दादा, आप देख लेना जो आपको सही लगे” उधर से कहा गया

“और तुम कब आओगे? कितने साल हो गए तुम्हें देखे” वीरेंद्र ने कहा

“दादा देखो किस्मत कब मिलाये.... वैसे मुझे लगता है वो समय अब आ गया है... जल्दी ही हम सब फिर से मिलेंगे, अब में रखता हूँ” कहते हुये उधर से फोन रख दिया गया

वीरेंद्र ने फोन काटा और मंजरी की ओर देखा, वीरेंद्र की आँखों में हल्की सी नमी देख मंजरी उनके पास आयी, उनकी भी आँखों में नमी थी।

...............................................................................

“में बलराज बोल रहा हूँ” मोहिनी, ऋतु, रागिनी और नीलिमा अभी घर से बाहर निकलकर गाड़ी में बैठते ही जा रहे थे कि मोहिनी का फोन बजने लगा मोहिनी ने देखा किसी अंजान नंबर से कॉल थी तो उन्होने बाहर खड़े हुये ही फोन उठाया... फोन उठाते ही उधर से बलराज की आवाज सुनाई दी

“बलराज! कहाँ हो तुम? ऐसे बिना बताए कहाँ चले गए” मोहिनी ने बलराज की आवाज सुनते ही गुस्से से कहा तो बलराज का नाम सुनते ही ऋतु, रागिनी, नीलिमा और ड्राइविंग सीट पर से रणविजय भी उतरकर उनके पास आ गए... इधर घर के दरवाजे पर खड़ी शांति और सुशीला भी पास में आकर खड़ी हो गईं

“बिना बताए! अरे .... मेंने तुम्हें बताया तो था कि में 4-5 दिन के लिए जा रहा हूँ.... तुम लोग पता नहीं कितने बेचैन हो गए। और रवि को क्यों बताया कि में घर छोडकर चला गया हूँ” उधर से बलराज ने कहा

“रवि को.... रवि का तो हमें पता भी नहीं... तुमसे किसने कहा कि रवि को हमने बताया? और सबसे पहले तो ये बताओ कि तुम हो कहाँ” मोहिनी ने फिर से पूंछा... इधर रवि का नाम सुनते ही सभी कि उत्सुकता बढ़ गयी

“में वीरेंद्र के पास हूँ... रवि ने वीरेंद्र को कॉल करके बताया था... सुशीला से तो नहीं कहा था तुमने... कभी सुशीला ने ही रवि को बोलकर यहाँ फोन कराया हो” बलराज ने कहा तो सुशीला ने मोहिनी को इशारा कर फोन अपने हाथ में ले लिया...

“चाचाजी नमस्ते! में सुशीला बोल रही हूँ”

“हाँ बेटी कैसी हो तुम....”

“में तो ठीक हूँ .... आप कैसे हैं और कहाँ हैं...” सुशीला ने पूंछा

“में वीरेंद्र के पास हूँ.... गढ़ी आया था में... वीरेंद्र को रवि ने फोन करके मेरे बारे में बताया और अपने साथ लाने के लिए कहा। रवि से तुमने कहा था क्या? और तुम क्या दिल्ली आयी हुई हो?” बलराज ने पूंछा

“चाचाजी में चंडीगढ़ गयी थी विक्रम के पास वहाँ से विक्रम और हम सभी यहाँ आ गए हैं रागिनी दीदी के पास... चाचीजी, विक्रम और ये सब आप की तलाश में निकाल ही रहे थे तब तक आपका फोन आ गया... वैसे आपका फोन तो बंद आ रहा है... ये किसका नंबर है” सुशीला ने कहा

“ये वीरेंद्र का ही नंबर है.... मेंने अपना फोन तो ऑन ही नहीं किया... कुछ दिन अकेला रहना चाहता था.... चलो गढ़ी ना सही यहीं सही... और इन लोगों से भी कह देना कि में अब कुछ दिन यहीं रहूँगा” बलराज ने कहा

“ठीक है चाचाजी कोई बात नहीं... वैसे में भी गाँव ही आ रही हूँ... आपका जब मन हो गाँव आ जाना... में भी अकेली ही रहूँगी... आप आ जाएंगे तो अच्छा लगेगा..... मंजरी दीदी से बात करा दो मेरी” सुशीला ने कहा तो बलराज ने फोन मंजरी को दे दिया और उन दोनों कि आपस में बातें होने लगीं

..............................................

सुशीला कि बात खत्म होने के बाद ऋतु ने कहा कि वो बलराज को लेने वहाँ जाएगी लेकिन मोहिनी और सुशीला ने मना कर दिया कि घूमने-मिलने जाना चाहें तो चल सकते हैं लेकिन उनको लाने के लिए दवाब नहीं दिया जाएगा। रणविजय ने भी उनकी बात का समर्थन किया तो ऋतु चुप हो गयी लेकिन रागिनी कुछ सोच में डूबी हुई चुपचाप ही खड़ी रही...जब तक इन सबकी बातें चलती रहीं। इस बात पर किसी और का ध्यान नहीं गया लेकिन सुशीला की नज़र से छुप नहीं सकी

फिर सुशीला ने कहा कि बच्चों को भी आ जाने दो फिर देखते हैं 2-3 दिन के लिए जाने का कार्यक्रम बनाएँगे... जिससे बलराज से भी मिल लेंगे और वीरेंद्र के परिवार से भी सबका परिचय हो जाएगा। फिर विक्रम यानि रणविजय ने बताया कि वीरेंद्र के यहाँ पहले वो भी घूमकर आया था रविन्द्र भैया के साथ लेकिन अब तो बहुत साल हो गए हैं.... तो सुशीला ने कहा की वो तो 5-6 साल पहले ही गईं थी ....वीरेंद्र भैया की बड़ी बेटी की शादी में।

………………………………………………………………….

बच्चे स्कूल कॉलेज से वापस लौटकर घर आए तो प्रबल कुछ उदास सा था। थोड़ी देर बाद सबने हाथ-मुंह धोकर खाना खाया और अपने अपने कमरों की ओर चल दिये तो सुशीला ने सबको हॉल में बैठने को कहा, कुछ जरूरी बात करने के लिए। जब सभी हॉल में आकर बैठ गए तो सुशीला जाकर रागिनी के पास बैठ गयी और रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेकर सबकी ओर नज़र घुमाते हुये बोलना शुरू किया

“पहली बात तो ये है कि आज रात या कल सुबह हम सभी गाँव चलेंगे...और अपने घर परिवार के लोगों से मिलकर आएंगे.... अब हमें इस घर को दोबारा बनाना है तो हमें पता होना चाहिए कि हमारे घर-पअरिवार में कौन-कौन हैं.... वरना फिर से पहले जैसे हालात बन जाएंगे कि सगे भाई बहन को भी एक दूसरे के बारे में जानकारी ही नहीं”

“हाँ भाभी.... में भी यही चाहती हूँ.... कि ये बच्चे हमारी तरह अकेले ना भटकते फिरें.... आज रात को ही गाँव चलते हैं” ऋतु ने भी चहकते हुये कहा

“अब दूसरी बात .....आप सभी ने पता नहीं इस बात पर ध्यान दिया या नहीं लेकिन मुझे ना जाने क्यूँ ऐसा लग रहा है की जब से हम सब यहाँ आए हैं रागिनी दीदी कुछ उदास और उलझी-उलझी सी हैं, अब ये अभी से हैं या पहले से ही...ये नहीं कह सकती...इनके अलावा यहाँ कोई और भी इन्हीं की तरह उदास और उलझा हुआ है... लेकिन उसके बारे में दीदी का मामला सुलझने के बाद बताऊँगी”

“हाँ मुझे भी ऐसा ही लगता है... और शायद इसकी वजह है कि रागिनी दीदी को पिछला कुछ भी याद नहीं हमारे बारे में इसीलिए ये उलझी हुई रहती हैं” रणविजय ने कहा

“याद तो इन्हें पिछले 20 साल से नहीं था.... ये बात तुमसे अच्छा और कौन जानता है...आखिर पिछले 20 साल से तुम्हारे ही साथ तो रही थीं... ये वजह कुछ और है” कहते हुये सुशीला ने रागिनी की ओर देखा और फिर रणविजय की ओर गहरी सी नज़र डाली तो रणविजय ने कुछ असहज सा महसूस किया और रागिनी कि ओर देखा तो वो भ रणविजय कि ओर ही देख रही थी...कुछ देर एक दूसरे कि आँखों में देखने के बाद दोनों ने अपनी नज़रें सुशीला की ओर घुमाईं तो उसे अपनी ओर घूरते पाया

“दीदी अब तक यहाँ जो भी हुआ या हो रहा है... अपने ही सम्हाला और आपके अनुसार चल रहा था.... लेकिन... अब कुछ फैसले मेंने आपसे बिना सलाह किए या आपको बताए बिना भी ले लिए... अब तक घर मेंने अपने बड़े होने के अधिकार से सबकुछ सम्हाला, फैसले लिए... उसी धुन में यहाँ भी.... लेकिन अभी मुझे अहसास हुआ कि यहाँ आज जो हम सब इकट्ठे हुये हैं.... सब आपकी वजह से ही हैं... और आपके फैसलों से ही आज पूरा परिवार इकट्ठा हो पाया है...जुड़ पाया है॥ में आपसे अपनी भूल के लिए क्षमा चाहती हूँ.... अबसे हम सभी आपके अनुसार ही चलेंगे" कहते हुये सुशीला ने अपने हाथ में थामे हुये रागिनी के हाथों को अपने माथे से लगा लिया

"नहीं... तुम सब का अंदाजा गलत है...... मुझे अपना हुक्म चलाने या लोगों के बारे में जानने का कभी ना तो शौक रहा और ना ही आदत मेरी इस उलझन की वजह कुछ और है" रागिनी न कहा तो सभी उनके मुंह कि ओर देखने लगे

"फिर क्या बात है दीदी..." अबकी बार नीलिमा भी उठकर रागिनी के बराबर में दूसरी ओर बैठ गयी और अपने हाथ सुशीला व रागिनी के हाथों पर ही रख दिये

"आज तुम सब को परिवार मिल गया .... प्रबल को भी माँ-बाप मिल गए, अनुराधा की ज़िम्मेदारी भी तुम सब मिलकर पूरी कर लोगे... मुझे पूरा भरोसा है...अब मेरे लिए क्या बचा करने को.... मुझे समझ नहीं आ रहा कि अब मुझे क्या करना है और क्यूँ?"
 

kamdev99008

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Zindagi ke taane baane bhi ajeeb Hotey Hai ab dekhiye kaha Ragini sab ka pata lagane kee liye khoj been kar rahi thee aur kaha ek dum jab sab mil gaya to woh bheed me. Bhi akeli ho gayi.
Apno ko dhundhnw ke fer mein ragini unhein bhi kho baithi jo uske pas the.... Apne akelepan aur anishchit bhavishya ko ragini ne jaldi hi samajh liya....
Dekhte hain... Aage
Aj kam se kam 1 update jarur milega
Update lagbhag 80% taiyar hai
 

kamdev99008

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अध्याय 39

“माँ! आपको याद होगा... हमारे रिश्ते की सच्चाई खुलने के बाद हमारे बीच में एक वादा हुआ था........ कि.... चाहे जो हो.... लेकिन हम आपके ही बच्चे रहेंगे और आप हमारी माँ रहेंगी....... किसी के मिलने या बिछड़ने से हमारे आपसी रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा” अनुराधा ने अपनी जगह से उठते हुये कहा और रागिनी के पास आकर घुटनों के बल जमीन पर बैठकर अपना सिर रागिनी के घुटनों पर रख दिया, प्रबल भी अपनी जगह से उठा और अनुराधा के बराबर में आकर बैठ गया

“अब तुम दोनों ये बचपना मत करो, दीदी कि भी अपनी ज़िंदगी है... उन्हें भी आज न सही उम्र ढलने पर कभी अपने पति और परिवार कि कमी महसूस होगी। उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने दो...” विक्रम ने थोड़े गुस्से से अनुराधा और प्रबल कि ओर देखते हुये कहा

“दीदी! हम सब यही चाहते हैं कि अब तक जो भी हुआ और जिसकी भी वजह से हुआ.... लेकिन अब जब सब सही हो गया है तो आप को भी अपनी ज़िंदगी जीने, अपना परिवार बसने का अधिकार है... हम सभी चाहते हैं कि आप स्वयं अपना जीवन साथी चुनें... अपनी पसंद से.... आप हम सब से बड़ी हैं और बड़ी ही रहेंगी... पूरा परिवार आपके साथ है...लेकिन अब आप भी अपना जीवन अपनी पसंद से जिएँ” नीलिमा ने भी रागिनी से कहा

“अगर तुम लोगों ने अपनी बात कह ली हो तो में भी अपनी बात कहूँ?” रागिनी ने गंभीर स्वर में कहा

“जी दीदी.... आप बताइये... यहाँ वही होगा जो आप कहेंगी” सुशीला ने कहा

“सबसे पहली बात.... अनुराधा और प्रबल अगर मेरे साथ रहना चाहते हैं, तो ये मेरे साथ ही रहेंगे। कोई भी इन पर ज़ोर जबर्दस्ती नहीं करेगा....कोई भी ....समझे। और दूसरी बात...अब सभी एक दूसरे को जान गए हैं...। लेकिन मुझे आज भी हमारे परिवार में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा...यहाँ सब अपनी अपनी चलाने की कोशिश कर रहे हैं....क्या कोई इस परिवार का मुखिया है... जो सभी के लिए फैसले ले और सब उसके फैसले मानें” रागिनी ने कठोर शब्दों में कहा तो वहाँ एकदम सन्नाटा छा गया

“दीदी! हम सब भाई बहनों में आप ही सबसे बड़ी हैं.... तो आप ही इस परिवार की मुखिया हैं” सुशीला ने खामोशी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय और नीलिमा ने भी सहमति में सिर हिलाया

“नहीं! में तुम्हारे परिवार की मुखिया नहीं हूँ... मुझे अपनी ज़िंदगी... तुम सब और अपने से बड़ों की फैलाई गंदगी साफ करने में नहीं बर्बाद करनी। पहले ही मेरी आधी ज़िंदगी एक तो उस बाप ने खराब कर दी.... जिसे हवस के अलावा कुछ भी नहीं पता था, अपनी बेटी को भी हवस की भेंट चढ़ा देता...दूसरा भाई... वो भी मेरी याददास्त जाने का फाइदा उठाकर कभी अपने चाचा की बीवी बना देता, कभी अपनी माँ और कभी इश्क़ फरमाता....अब मुझे अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीनी है.... और मेरे पास अपने दो बच्चे हैं.... जिन्हें कोई भी मुझसे अलग नहीं कर सकता”

“दीदी! पापा के बारे में तो में कुछ नहीं कहता... लेकिन मेंने क्या किया... आपको अगर विमला बुआ के घर उस नर्क में रहना पड़ा तो पापा की वजह से, ममता और नाज़िया ने आपके खिलाफ साजिश की तो पापा की वजह से, मेंने आपकी सुरक्षा की वजह से आपकी पहचान बदलकर आपको कोटा रखा... वो मेरे दुश्मन नहीं थे पापा, नाज़िया आंटी के दुश्मन थे.... और ये बच्चे मुझे पालने थे इसलिए आपके पास छोड़े थे.... मेंने कभी आपसे ये नहीं कहा की में आपसे प्यार करता हूँ, ना ही मेंने कुछ गलत किया आपके साथ..... फिर भी आप मुझे दोष दे रही हैं” रणविजय ने भी गुस्से में जवाब दिया

“में कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन अब कहती हूँ.... जिससे तुम्हें अपनी गलतियाँ समझ आ सकें.... कम से कम जो मेरे साथ हुआ... वो तुम्हारे बच्चों के साथ ना हो............. पहली बात... जब और जो भी पापा ने किया... उस समय तुम भी बच्चे नहीं रह गए थे... बल्कि एक आम आदमी से ज्यादा समझदार और दबंग थे.... एक बहुत बड़े क्रिमिनल जिसके नाम से दिल्ली के आसपास 150-200 किलोमीटर तक लोग काँपते थे..... लेकिन तुमने क्या किया?..... कॉलेज में मेरे साथ पढ़ते थे... लेकिन बहन से ज्यादा ऐयाशी में लगे रहते.... बाप के कारनामों से वाकिफ थे.... फिर भी कभी ये नहीं सोचा कि बहन को अपने पास रखूँ .....बजाय उस बाप के.... और सोच भी कैसे सकते थे.... माहौल तो तुम्हारा भी उतना ही गंदा था..... मुझे इतने साल से कोटा में रखे हुये थे.... कभी ये सोचा कि बहन की शादी ही कर दूँ... मेरी याददास्त चली गयी थी, पागल नहीं थी में..... जब मेंने तुमसे प्यार का इजहार किया.... में तो नहीं जानती थी कि तुम मेरे भाई हो.... लेकिन तुम तो बता सकते थे कि में तुम्हारी बहन हूँ.... तो शायद में अपनी उस उम्र को नाकाम इश्क़ में तड़पते हुये गुजरने की बजाय.... एक नए विकल्प का सोचती.... मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने में जितना पापा का हाथ है...उतना ही तुम्हारा भी है............... आज मुझे पछतावा होता है कि जब माँ कि मृत्यु हुई थी तब ताऊजी, ताईजी के पास रहने के उनके प्रस्ताव को मेंने क्यों नहीं माना... उस समय तो मेरे आँखों पर मोह कि पट्टी बंधी थी.... अपने पापा, अपना भाई...इनके बारे में सोचती थी.... उस समय कोटा ले जाने की बजाय अगर तुमने मुझे रवीन्द्र के पास भी छोड़ दिया होता तो वो मेरी सुरक्षा भी कर लेता और शायद आज में अपने घर बसाये हुये होती” रागिनी ने भी अपने दिल का गुब्बार सामने निकाल कर रक्ख दिया तो रणविजय चुपचाप सिर झुकाकर बैठ गया... सुशीला और नीलिमा भी एक दूसरे कि ओर देखने लगीं.... मोहिनी, शांति, ऋतु और सभी बच्चे चुपचाप बैठे थे

अचानक वैदेही अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और उसने भानु को भी साथ आने का इशारा किया। रागिनी के पास पहुँचकर वैदेही ने अनुराधा और प्रबल को हाथ पकड़कर उठाया और रागिनी को भी साथ आने को कहा। रागिनी, अनुराधा, प्रबल और भानु, वैदेही के पीछे-पीछे अंदर की ओर चल दिये। सुशीला ने उठकर उन्हें रोक्न चाहा तो भानु ने हाथ के इशारे से उन्हें वहीं बैठने को कहा।

अंदर रागिनी के कमरे में सभी के अंदर जाने के बाद भानु ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। बाहर बैठे सभी बेचैनी से एक दूसरे को देखने लगे

“सुशीला! ये बच्चे रागिनी को अंदर क्यों ले गए... क्या बात है?” आखिरकार मोहिनी देवी ने सुशीला से कहा

“चाची जी! वैदेही उन्हें अंदर क्यों ले गयी.... ये तो मुझे अंदाजा है.... लेकिन अब बात क्या होगी.... वो तो में क्या... कोई भी.... नहीं जान सकता....... पता है क्यों?” सुशीला ने बड़े शांत भाव से कहते हुये रणविजय की ओर देखा तो वो चौंक गया

“मतलब....भाभी....इसका मतलब....भैया से बात होगी दीदी की...इन बच्चों के पास नंबर है भैया का.........और आप कहती हो, आपकी बात नहीं होती...आपको उनके बारे में कुछ पता नहीं” रणविजय ने सुशीला से कहा तो मोहिनी और ऋतु भी चौंक गईं और रणविजय की ओर देखने लगीं

“धुरंधर तो तुम भी बहुत बड़े हो... तुमसे ज्यादा तुम्हारे भैया को और कौन जानता है....बस ये है.... कि हम सब को वो बिना कोशिशों के हासिल हो गए तो हम उनपर ध्यान नहीं देते...........वरना अब तक तो आप उनसे मिल भी लिए होते.... मुझसे वो खुद मिलने आएंगे.... लेकिन ऐसे नहीं...जिस दिन में उनकी शर्त मान लूँगी.... और ऐसा मेरा अभी कोई इरादा नहीं है....बच्चों की उनसे बात होती रहती है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय आकर उनके सामने जमीन पर बैठ गया...और उनके पैर पकड़कर आँखों में आँसू लाकर सुशीला से बोला

“भाभी मुझे भी भैया से बात करा दो.... एक बार उनसे मिलना चाहता हूँ”

“पता है तुम्हारे भैया तुम्हें ऐसे देखकर क्या कहते.... वो कहते हैं कि सारा परिवार नौटंकीबाज है और उनमें भी सबसे बड़ा ड्रामेबाज़ वो तुम्हें मानते हैं.... तुम मुझसे सीधे-सीधे भी कह सकते थे कि तुम्हारी उनसे बात करा दूँ….ये मुझे रोकर दिखाने की जरूरत क्या है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा और रणविजय का हाथ पकड़कर उसे अपने बराबर में सोफ़े पर बैठने को कहा

रणविजय चुपचाप उठकर खड़ा हो गया... लेकिन सुशीला के बराबर में नहीं बैठा... तब सुशीला ने उसे फिर बैठने को कहा तो उसने बोला की वो आज तक कभी उनके बराबर में नहीं बैठा और आज भी उसी मर्यादा को बनाए रखेगा.... यहाँ ये बातें चल रही थी उधर अंदर रागिनी और बच्चों की क्या बातें हुई ये जानने की बेचैनी भी सभी में थी। क्योंकि पूरा परिवार जानता था हर बात को समझने और करने का नज़रिया रवीद्र का पूरे परिवार से अलग रहा था शुरू से.... अच्छा नहीं उचित निर्णय.... चाहे वो किसी को या सभी को बुरा लगे। सुशीला ने रणविजय और सभी से कहा कि वो रवीद्र से उनकी बात कराएगी लेकिन अभी पहले रागिनी और बच्चों कि बात हो जाने दो.... फिर सब आपस में रागिनी कि कही गयी बातों पर विचार-विमर्श करने लगे।

थोड़ी देर बाद रागिनी और बच्चे बाहर हॉल में आए तो सभी उनकी ओर देखने लगे। सबको ऐसे देखता पाकर रागिनी मुस्कुराई और जाकर सुशीला के बराबर में बैठ गयी।

“ऐसे क्या देख रहे हो सब.... अब मेरी बात सुनो... मेरी रवीद्र से बात हुई है... और रणविजय के बारे में अपना आखिरी फैसला मेंने उसे बता दिया.... रणविजय ने घर में कोई भी ज़िम्मेदारी आजतक ढंग से पूरी नहीं की... इसलिए अब से घर के मामलों में फैसले रवीद्र खुद लेगा या उसकी ओर से सुशीला भाभी.............. रणविजय आज से अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीने को स्वतंत्र है... अपना घर, अपने बच्चे.... लेकिन प्रबल के मामले में रवीन्द्र का कहना है... कि वो कोई छोटा बच्चा नहीं.... अपने बारे में वो स्वयं फैसला करेगा..... अब रही मेरी बात तो में यहाँ भी रह सकती हूँ... और कोटा वाली हवेली में भी..... शांति, अनुराधा और अनुभूति मेरे साथ ही रहेंगे...प्रबल अगर रहना चाहे तो वो भी ...... रणविजय को कंपनी दे दी गयी है... उसमें धीरेंद्र भी शामिल रहेगा....लेकिन इन दोनों का परिवार के और किसी मामले में दखल नहीं होगा” रागिनी ने कहा तो रणविजय फूट-फूट कर रोने लगा और वहीं रागिनी के पास जमीन पर बैठ गया

“मुझे भैया और आपने घर से बिलकुल अलग कर दिया” रणविजय ने रागिनी से कहा

“तुम्हें किसी ने अलग नहीं किया.... तुम्हें जो जिम्मेदारिया दी गईं वो तुम ढंग से निभा नहीं सके...और अपनी गलतियों के लिए रोकर सबको भावुक बनाकर बच निकालना चाहते हो.... इसलिए तुम्हें तुम्हारे परिवार की ही ज़िम्मेदारी दे दी गयी है.... वो निभा कर दिखाओ...और यही धीरेंद्र के साथ भी है.... ऐसा नहीं की उसने तुम दोनों के साथ कुछ बुरा कर दिया.... लेकिन तुम्हारी लापरवाही से परिवार में किसी और के साथ बुरा ना हो पाये इसलिए बाकी परिवार की ज़िम्मेदारी उसने खुद अपने ऊपर ले ली है” रागिनी ने कहा

“दीदी! अब तो आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए... में अपने बच्चों को लेकर गाँव में ही रहूँगी... अब अगर आप सब तैयार हों तो मेरा मन है कि इन सब बच्चों को लेकर गाँव और मंजरी दीदी के यहाँ चलते हैं....जिससे ये बच्चे भी परिवार के लोगों को जान-समझ सकें...और बलराज चाचाजी और मोहिनी चाचीजी का मामला भी निबटाएँ...फिर सब अपना-अपना देखते हैं.... कम से कम अब पहले की तरह हालात तो नहीं होंगे ...कि किसी को दूसरे के बारे में पता ही नहीं” सुशीला बोली

“ठीक है.... चलो सब तैयार हो जाओ... अभी निकलते हैं” रागिनी ने भी कहा

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amita

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अध्याय 39

“माँ! आपको याद होगा... हमारे रिश्ते की सच्चाई खुलने के बाद हमारे बीच में एक वादा हुआ था........ कि.... चाहे जो हो.... लेकिन हम आपके ही बच्चे रहेंगे और आप हमारी माँ रहेंगी....... किसी के मिलने या बिछड़ने से हमारे आपसी रिश्ते पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा” अनुराधा ने अपनी जगह से उठते हुये कहा और रागिनी के पास आकर घुटनों के बल जमीन पर बैठकर अपना सिर रागिनी के घुटनों पर रख दिया, प्रबल भी अपनी जगह से उठा और अनुराधा के बराबर में आकर बैठ गया

“अब तुम दोनों ये बचपना मत करो, दीदी कि भी अपनी ज़िंदगी है... उन्हें भी आज न सही उम्र ढलने पर कभी अपने पति और परिवार कि कमी महसूस होगी। उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने दो...” विक्रम ने थोड़े गुस्से से अनुराधा और प्रबल कि ओर देखते हुये कहा

“दीदी! हम सब यही चाहते हैं कि अब तक जो भी हुआ और जिसकी भी वजह से हुआ.... लेकिन अब जब सब सही हो गया है तो आप को भी अपनी ज़िंदगी जीने, अपना परिवार बसने का अधिकार है... हम सभी चाहते हैं कि आप स्वयं अपना जीवन साथी चुनें... अपनी पसंद से.... आप हम सब से बड़ी हैं और बड़ी ही रहेंगी... पूरा परिवार आपके साथ है...लेकिन अब आप भी अपना जीवन अपनी पसंद से जिएँ” नीलिमा ने भी रागिनी से कहा

“अगर तुम लोगों ने अपनी बात कह ली हो तो में भी अपनी बात कहूँ?” रागिनी ने गंभीर स्वर में कहा

“जी दीदी.... आप बताइये... यहाँ वही होगा जो आप कहेंगी” सुशीला ने कहा

“सबसे पहली बात.... अनुराधा और प्रबल अगर मेरे साथ रहना चाहते हैं, तो ये मेरे साथ ही रहेंगे। कोई भी इन पर ज़ोर जबर्दस्ती नहीं करेगा....कोई भी ....समझे। और दूसरी बात...अब सभी एक दूसरे को जान गए हैं...। लेकिन मुझे आज भी हमारे परिवार में कोई बदलाव नज़र नहीं आ रहा...यहाँ सब अपनी अपनी चलाने की कोशिश कर रहे हैं....क्या कोई इस परिवार का मुखिया है... जो सभी के लिए फैसले ले और सब उसके फैसले मानें” रागिनी ने कठोर शब्दों में कहा तो वहाँ एकदम सन्नाटा छा गया

“दीदी! हम सब भाई बहनों में आप ही सबसे बड़ी हैं.... तो आप ही इस परिवार की मुखिया हैं” सुशीला ने खामोशी तोड़ते हुये कहा तो रणविजय और नीलिमा ने भी सहमति में सिर हिलाया

“नहीं! में तुम्हारे परिवार की मुखिया नहीं हूँ... मुझे अपनी ज़िंदगी... तुम सब और अपने से बड़ों की फैलाई गंदगी साफ करने में नहीं बर्बाद करनी। पहले ही मेरी आधी ज़िंदगी एक तो उस बाप ने खराब कर दी.... जिसे हवस के अलावा कुछ भी नहीं पता था, अपनी बेटी को भी हवस की भेंट चढ़ा देता...दूसरा भाई... वो भी मेरी याददास्त जाने का फाइदा उठाकर कभी अपने चाचा की बीवी बना देता, कभी अपनी माँ और कभी इश्क़ फरमाता....अब मुझे अपनी ज़िंदगी अपने तरीके से जीनी है.... और मेरे पास अपने दो बच्चे हैं.... जिन्हें कोई भी मुझसे अलग नहीं कर सकता”

“दीदी! पापा के बारे में तो में कुछ नहीं कहता... लेकिन मेंने क्या किया... आपको अगर विमला बुआ के घर उस नर्क में रहना पड़ा तो पापा की वजह से, ममता और नाज़िया ने आपके खिलाफ साजिश की तो पापा की वजह से, मेंने आपकी सुरक्षा की वजह से आपकी पहचान बदलकर आपको कोटा रखा... वो मेरे दुश्मन नहीं थे पापा, नाज़िया आंटी के दुश्मन थे.... और ये बच्चे मुझे पालने थे इसलिए आपके पास छोड़े थे.... मेंने कभी आपसे ये नहीं कहा की में आपसे प्यार करता हूँ, ना ही मेंने कुछ गलत किया आपके साथ..... फिर भी आप मुझे दोष दे रही हैं” रणविजय ने भी गुस्से में जवाब दिया

“में कहना तो नहीं चाहती थी लेकिन अब कहती हूँ.... जिससे तुम्हें अपनी गलतियाँ समझ आ सकें.... कम से कम जो मेरे साथ हुआ... वो तुम्हारे बच्चों के साथ ना हो............. पहली बात... जब और जो भी पापा ने किया... उस समय तुम भी बच्चे नहीं रह गए थे... बल्कि एक आम आदमी से ज्यादा समझदार और दबंग थे.... एक बहुत बड़े क्रिमिनल जिसके नाम से दिल्ली के आसपास 150-200 किलोमीटर तक लोग काँपते थे..... लेकिन तुमने क्या किया?..... कॉलेज में मेरे साथ पढ़ते थे... लेकिन बहन से ज्यादा ऐयाशी में लगे रहते.... बाप के कारनामों से वाकिफ थे.... फिर भी कभी ये नहीं सोचा कि बहन को अपने पास रखूँ .....बजाय उस बाप के.... और सोच भी कैसे सकते थे.... माहौल तो तुम्हारा भी उतना ही गंदा था..... मुझे इतने साल से कोटा में रखे हुये थे.... कभी ये सोचा कि बहन की शादी ही कर दूँ... मेरी याददास्त चली गयी थी, पागल नहीं थी में..... जब मेंने तुमसे प्यार का इजहार किया.... में तो नहीं जानती थी कि तुम मेरे भाई हो.... लेकिन तुम तो बता सकते थे कि में तुम्हारी बहन हूँ.... तो शायद में अपनी उस उम्र को नाकाम इश्क़ में तड़पते हुये गुजरने की बजाय.... एक नए विकल्प का सोचती.... मेरी ज़िंदगी बर्बाद करने में जितना पापा का हाथ है...उतना ही तुम्हारा भी है............... आज मुझे पछतावा होता है कि जब माँ कि मृत्यु हुई थी तब ताऊजी, ताईजी के पास रहने के उनके प्रस्ताव को मेंने क्यों नहीं माना... उस समय तो मेरे आँखों पर मोह कि पट्टी बंधी थी.... अपने पापा, अपना भाई...इनके बारे में सोचती थी.... उस समय कोटा ले जाने की बजाय अगर तुमने मुझे रवीन्द्र के पास भी छोड़ दिया होता तो वो मेरी सुरक्षा भी कर लेता और शायद आज में अपने घर बसाये हुये होती” रागिनी ने भी अपने दिल का गुब्बार सामने निकाल कर रक्ख दिया तो रणविजय चुपचाप सिर झुकाकर बैठ गया... सुशीला और नीलिमा भी एक दूसरे कि ओर देखने लगीं.... मोहिनी, शांति, ऋतु और सभी बच्चे चुपचाप बैठे थे

अचानक वैदेही अपनी जगह से उठकर खड़ी हुई और उसने भानु को भी साथ आने का इशारा किया। रागिनी के पास पहुँचकर वैदेही ने अनुराधा और प्रबल को हाथ पकड़कर उठाया और रागिनी को भी साथ आने को कहा। रागिनी, अनुराधा, प्रबल और भानु, वैदेही के पीछे-पीछे अंदर की ओर चल दिये। सुशीला ने उठकर उन्हें रोक्न चाहा तो भानु ने हाथ के इशारे से उन्हें वहीं बैठने को कहा।

अंदर रागिनी के कमरे में सभी के अंदर जाने के बाद भानु ने कमरे का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। बाहर बैठे सभी बेचैनी से एक दूसरे को देखने लगे

“सुशीला! ये बच्चे रागिनी को अंदर क्यों ले गए... क्या बात है?” आखिरकार मोहिनी देवी ने सुशीला से कहा

“चाची जी! वैदेही उन्हें अंदर क्यों ले गयी.... ये तो मुझे अंदाजा है.... लेकिन अब बात क्या होगी.... वो तो में क्या... कोई भी.... नहीं जान सकता....... पता है क्यों?” सुशीला ने बड़े शांत भाव से कहते हुये रणविजय की ओर देखा तो वो चौंक गया

“मतलब....भाभी....इसका मतलब....भैया से बात होगी दीदी की...इन बच्चों के पास नंबर है भैया का.........और आप कहती हो, आपकी बात नहीं होती...आपको उनके बारे में कुछ पता नहीं” रणविजय ने सुशीला से कहा तो मोहिनी और ऋतु भी चौंक गईं और रणविजय की ओर देखने लगीं

“धुरंधर तो तुम भी बहुत बड़े हो... तुमसे ज्यादा तुम्हारे भैया को और कौन जानता है....बस ये है.... कि हम सब को वो बिना कोशिशों के हासिल हो गए तो हम उनपर ध्यान नहीं देते...........वरना अब तक तो आप उनसे मिल भी लिए होते.... मुझसे वो खुद मिलने आएंगे.... लेकिन ऐसे नहीं...जिस दिन में उनकी शर्त मान लूँगी.... और ऐसा मेरा अभी कोई इरादा नहीं है....बच्चों की उनसे बात होती रहती है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय आकर उनके सामने जमीन पर बैठ गया...और उनके पैर पकड़कर आँखों में आँसू लाकर सुशीला से बोला

“भाभी मुझे भी भैया से बात करा दो.... एक बार उनसे मिलना चाहता हूँ”

“पता है तुम्हारे भैया तुम्हें ऐसे देखकर क्या कहते.... वो कहते हैं कि सारा परिवार नौटंकीबाज है और उनमें भी सबसे बड़ा ड्रामेबाज़ वो तुम्हें मानते हैं.... तुम मुझसे सीधे-सीधे भी कह सकते थे कि तुम्हारी उनसे बात करा दूँ….ये मुझे रोकर दिखाने की जरूरत क्या है” सुशीला ने मुसकुराते हुये कहा और रणविजय का हाथ पकड़कर उसे अपने बराबर में सोफ़े पर बैठने को कहा

रणविजय चुपचाप उठकर खड़ा हो गया... लेकिन सुशीला के बराबर में नहीं बैठा... तब सुशीला ने उसे फिर बैठने को कहा तो उसने बोला की वो आज तक कभी उनके बराबर में नहीं बैठा और आज भी उसी मर्यादा को बनाए रखेगा.... यहाँ ये बातें चल रही थी उधर अंदर रागिनी और बच्चों की क्या बातें हुई ये जानने की बेचैनी भी सभी में थी। क्योंकि पूरा परिवार जानता था हर बात को समझने और करने का नज़रिया रवीद्र का पूरे परिवार से अलग रहा था शुरू से.... अच्छा नहीं उचित निर्णय.... चाहे वो किसी को या सभी को बुरा लगे। सुशीला ने रणविजय और सभी से कहा कि वो रवीद्र से उनकी बात कराएगी लेकिन अभी पहले रागिनी और बच्चों कि बात हो जाने दो.... फिर सब आपस में रागिनी कि कही गयी बातों पर विचार-विमर्श करने लगे।

थोड़ी देर बाद रागिनी और बच्चे बाहर हॉल में आए तो सभी उनकी ओर देखने लगे। सबको ऐसे देखता पाकर रागिनी मुस्कुराई और जाकर सुशीला के बराबर में बैठ गयी।

“ऐसे क्या देख रहे हो सब.... अब मेरी बात सुनो... मेरी रवीद्र से बात हुई है... और रणविजय के बारे में अपना आखिरी फैसला मेंने उसे बता दिया.... रणविजय ने घर में कोई भी ज़िम्मेदारी आजतक ढंग से पूरी नहीं की... इसलिए अब से घर के मामलों में फैसले रवीद्र खुद लेगा या उसकी ओर से सुशीला भाभी.............. रणविजय आज से अपनी ज़िंदगी अपनी तरह से जीने को स्वतंत्र है... अपना घर, अपने बच्चे.... लेकिन प्रबल के मामले में रवीन्द्र का कहना है... कि वो कोई छोटा बच्चा नहीं.... अपने बारे में वो स्वयं फैसला करेगा..... अब रही मेरी बात तो में यहाँ भी रह सकती हूँ... और कोटा वाली हवेली में भी..... शांति, अनुराधा और अनुभूति मेरे साथ ही रहेंगे...प्रबल अगर रहना चाहे तो वो भी ...... रणविजय को कंपनी दे दी गयी है... उसमें धीरेंद्र भी शामिल रहेगा....लेकिन इन दोनों का परिवार के और किसी मामले में दखल नहीं होगा” रागिनी ने कहा तो रणविजय फूट-फूट कर रोने लगा और वहीं रागिनी के पास जमीन पर बैठ गया

“मुझे भैया और आपने घर से बिलकुल अलग कर दिया” रणविजय ने रागिनी से कहा

“तुम्हें किसी ने अलग नहीं किया.... तुम्हें जो जिम्मेदारिया दी गईं वो तुम ढंग से निभा नहीं सके...और अपनी गलतियों के लिए रोकर सबको भावुक बनाकर बच निकालना चाहते हो.... इसलिए तुम्हें तुम्हारे परिवार की ही ज़िम्मेदारी दे दी गयी है.... वो निभा कर दिखाओ...और यही धीरेंद्र के साथ भी है.... ऐसा नहीं की उसने तुम दोनों के साथ कुछ बुरा कर दिया.... लेकिन तुम्हारी लापरवाही से परिवार में किसी और के साथ बुरा ना हो पाये इसलिए बाकी परिवार की ज़िम्मेदारी उसने खुद अपने ऊपर ले ली है” रागिनी ने कहा

“दीदी! अब तो आपको कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए... में अपने बच्चों को लेकर गाँव में ही रहूँगी... अब अगर आप सब तैयार हों तो मेरा मन है कि इन सब बच्चों को लेकर गाँव और मंजरी दीदी के यहाँ चलते हैं....जिससे ये बच्चे भी परिवार के लोगों को जान-समझ सकें...और बलराज चाचाजी और मोहिनी चाचीजी का मामला भी निबटाएँ...फिर सब अपना-अपना देखते हैं.... कम से कम अब पहले की तरह हालात तो नहीं होंगे ...कि किसी को दूसरे के बारे में पता ही नहीं” सुशीला बोली

“ठीक है.... चलो सब तैयार हो जाओ... अभी निकलते हैं” रागिनी ने भी कहा

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Shaandar aur mazedaar
 
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Bhai sahab yah kia hua ranvijay ke sath usne saari zindagi har ko safe karna bhi chaha lekin aakhir me. Saari ghalti ka theekra uske upar mand diya gaya aur jo rabindra apni zimmedari se Bhaag ker door betha hua thaa woh ab saare faisaley Lega.
 

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Bhai sahab yah kia hua ranvijay ke sath usne saari zindagi har ko safe karna bhi chaha lekin aakhir me. Saari ghalti ka theekra uske upar mand diya gaya aur jo rabindra apni zimmedari se Bhaag ker door betha hua thaa woh ab saare faisaley Lega.
आगे जब रवीद्र की कहानी सामने आएगी तब पता चलेगा आपको................. कि विक्रम/रणविजय ने क्या किया........... और रवीद्र ने क्या किया
कोई तो वजह होगी............. जो आदमी सबकुछ छोडकर भाग गया.....उसके खिलाफ कोई आवाज नहीं उठा रहा
और जिसने सबकुछ किया ...............उसके खिलाफ उसकी बहन-बेटा सब खड़े हैं

ज़िंदगी में सिर्फ करना ही काफी नहीं होता.............. सही-गलत और अच्छे-बुरे को समझकर.............. सही कदम उठाना ज्यादा अहमियत रखता है
चाहे वो एक कदम ही क्यों ना हो....................... ज्यादा दौड़ने वाले ज्यादा अच्छा तो कर सकते हैं.....लेकिन उसके परिणाम सही होंगे ऐसा जरूरी नहीं

ये में पहले भी बता चुका हूँ..............ये सत्या घटना पर आधारित है................और मेरी अपनी ही आत्मकथा है.......... राणा रवीद्र प्रताप सिंह यानि में (परिवर्तित नाम)
बहुत जगह मेंने वो कदम भी उठाए जिन्हें मेरे परिवार और दुनिया गलत मानती है................ लेकिन भविष्य में वो निर्णय सही साबित हुये
ये योग्यता मेंने उन स्कूल कॉलेज में नहीं सीखी जिनमें में पढ़ा.................... ये योग्यता उन ठोकरों ने सिखायी जो मेंने ज़िंदगी भर खाई हैं

मेरा असल दुनिया में भी परिचय मेरी जमीन-जायदाद या व्यवसाय से नहीं मेरी योग्यता............ समस्याओं के समाधान निकालने की मेरी योग्यता...से होता है
मेरा सिर्फ ब्लड ग्रुप ही बी पॉज़िटिव नहीं............ मेरी सोच भी बी पॉज़िटिव ही है...................... being positive is to vanish the negativity

में नेपोलियन की तरह ............. nothing is impossible.............नहीं मानता
मेरा विश्वास है .................... everythng is possible............ कोई नकारात्मक शब्द ही मन में नहीं आता ....nothing और impossible जैसा :)


पढ़ते रहिए जल्द ही मुझे समझने का मौका मिलेगा..................इसी कथा में
तब तक.......................पढ़ते रहिए
 
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