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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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firefox420

Well-Known Member
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judge sahab .. kal bhi naya update post kiya tha kya aapne .. agar nahi to .. aaj to naya update post kar do ...
 

kamdev99008

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judge sahab .. kal bhi naya update post kiya tha kya aapne .. agar nahi to .. aaj to naya update post kar do ...
update tayyar kar liya tha.... lekin last me kuchh final karna tha...........site band hui to fir uski tension ho gayi....
aj rat ko complete karke post karta hu
 

Rahul

Kingkong
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waiting new update
 

kamdev99008

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अध्याय 29

इधर किशनगंज में मोहिनी देवी सुबह से बार-बार फोन मिलाये जा रही थीं लेकिन बलराज सिंह का फोन आउट ऑफ कवरेज आ रहा था... वो बहुत ज्यादा तनाव में आ गईं थीं। रागिनी बहुत देर से उन्हें देखे जा रही थी

“चाची जी! आप भी आ जाओ खाना खा लेते हैं.... बच्चे तो नाश्ता करके अपने स्कूल-कॉलेज चले गए अब हम 3 ही लोग बचे हैं” रागिनी ने कहा

“मेरा मन कुछ ठीक नहीं है.... तुम लोग खा लो” मोहिनी ने अनमने से स्वर में कहा तो रागिनी उसके बराबर में सोफ़े पर बैठ गयी

“क्या बात है.... बलराज चाचा जी से बात नहीं हो पा रही.... कहाँ गए हैं वो” रागिनी ने उनसे पूंछा

“यही तो समझ नहीं आ रहा.... बलराज हमेशा बताकर जाते थे कि कहाँ जा रहे हैं और कब वापस आएंगे.... अबकी बार सिर्फ ये बोले कि किसी जरूरी कम से जाना है और अब सुबह से कोशिश कर रही हूँ बात करने की... लेकिन उनका फोन ही नहीं मिल रहा” मोहिनी ने रुँधे स्वर में कहा

“आप चिंता ना करें में पता लगाने की कोशिश करती हूँ, पहले आप खाना खाइये फिर एक बार घर चलकर देखते हैं....... शायद चाचा जी वहाँ ही मिल जाएँ” रागिनी ने समझते हुये कहा

“अगर घर पर होते तो या तो फोन मिलता या स्विच ऑफ आता... वो कहीं ऐसी जगह हैं जहां पर नेटवर्क नहीं मिल रहा” मोहिनी ने रोते हुये कहा

“दीदी आप चलिये पहले खाना खा लीजिये फिर रागिनी दीदी के साथ जाकर देख लीजिये एक बार... शायद घर से पता चल जाए की वो कहाँ गए हैं” शांति ने भी समझाया और हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ डाइनिंग टेबल पर ले आयी और तीनों ने बैठकर खाना खाया। हालांकि मोहिनी देवी का बिलकुल मन नहीं था लेकिन रागिनी ने ज़ोर दिया तो बेमन से थोड़ा बहुत खा लिया।

खाना खाने के बाद तीनों को रागिनी अपने कमरे में ले गयी की पहले एक बार फिर से बलराज को फोन मिलकर देखा जाए। रागिनी और मोहिने ने कई बार अपने अपने मोबाइल मोहिनी देवी ने कहा की ऋतु को भी बता दिया जाए अब चाहे सबकुछ सामने आ गया है... लेकिन ऋतु को बचपन से बलराज ने ही पाला बाप बनकर और ऋतु ने भी उन्हें ही अपना पिता जाना-माना... वैसे भी वो पिता न सही पिता के भाई तो हैं ही।

“हैलो ऋतु! बेटा कहाँ पर हो तुम?” फोन मिलते ही मोहिनी देवी ने पूंछा

“माँ! में चंडीगढ़ में हूँ...............” ऋतु ने उधर से कहा

“सुन! कल रात तेरे पापा कहीं गए थे... बताया था ना मेंने...” मोहनी ने कहा

“हाँ! बताया तो था आपने... क्या हुआ” ऋतु ने चिंता भरे स्वर में कहा

“सुबह से उनका फोन ही नहीं लग रहा... और वो बता कर भी नहीं गए कि कहाँ गए हैं” मोहिनी ने चिंता भरे स्वर में कहा

“माँ अप चिंता मत करो.... में रात तक वापस पहुँच रही हूँ... और कुछ लोग साथ आ रहे हैं मेरे.... वहाँ पहुँचकर बात करते हैं... फिर पापा के बारे में भी पता करेंगे...... आप चिंता मत करना” ऋतु ने कहा

“कौन लोग आ रहे हैं तेरे साथ?” मोहिनी ने पूंछा

“आप देखते ही पहचान लोगी.... बस ये बात अपने घर में ही रहे... अनुपमा या उसके घर तक भी ना पहुंचे कि कोई हमारे घर आ रहा है....शांति ताई जी, रागिनी दीदी और बच्चों से भी बोल देना...और हाँ! पापा की चिंता मत करना... हम वहाँ पहुँचकर उनका पता लगाते हैं” ऋतु ने मोहिनी को फिर से समझाते हुये कहा

“ठीक है ... बस जल्दी से आजा तू” मोहिनी ने चिंता भरे स्वर में कहा

मोहिनी ने फोन रख दिया और रागिनी को बताया ऋतु के बारे में

“अब ऐसा कौन है चंडीगढ़ में...जिसके पास ये अचानक बिना बताए गयी और अब किसको साथ लेकर आ रही है” रागिनी ने उलझन भरी आवाज में कहा

“रागिनी दीदी जब विक्रम और नीलोफर दिल्ली से गायब हुये थे तो काफी दिन चंडीगढ़ और उसके आसपास ही रहे थे... शायद कई साल रहे थे...वहाँ नीलोफर के कोई रिश्तेदार रहते थे.....नाज़िया आंटी माँ को बताया करती थीं कि वो लोग पटियाला के रहनेवाले थे... बँटवारे में लाहौर चले गए और फिर उनकी शादी हैदराबाद में हो गयी.... मुझे ऐसा लगता है.... नीलोफर चंडीगढ़ ही रहती है... और ऋतु उसी के पास गयी है... और नीलफर को लेकर ही आ रही है.........”

“तुम्हें कैसे पता...ये सब” मोहिनी ने पूंछा

“नीलोफर की माँ नाज़िया, मेरी माँ और रागिनी दीदी के पिताजी तीनों साथ मिलकर बहुत से उल्टे सीधे काम-धंधे करते थे... इसलिए हम सब बच्चे भी एक दूसरे के संपर्क में बने रहे...आपकी याददास्त चली गयी इसलिए आपको पता नहीं... जब रागिनी दीदी के पिताजी और में नोएडा में रहने लगे थे तभी एक दिन उन्होने बताया था कि विक्रम चंडीगढ़ में रह रहा है नीलोफर के साथ और उसके कोई बच्चा भी था शायद.... वो कितने भी बुरे सही... लेकिन अपने बच्चों का मोह सबको होता है... इसीलिए वो विक्रम और रागिनी दीदी का पता लगाने में लगे रहे सालों साल तक.... फिर खुद ही गायब हो गए”

“माँ! आप मुझे दीदी मत कहा करो, आपकी शादी मेरे पिताजी से हुई है... इस रिश्ते से में आपकी बेटी हुई” रागिनी ने शांति से कहा

“आपको मेंने बचपन से दीदी कहा... और पता है... अगर मेरी शादी आपके पिताजी से हालात कि वजह से मजबूरी में हुआ समझौता था... उनके अलावा मेरा कोई और सहारा भी तो नहीं था.... अगर नीलोफर बीच में ना आती और हालात सही रहते तो मेरी शादी आपके छोटे भाई ...विक्रम.... विक्रमादित्य सिंह से होती... हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे... शायद प्यार भी कह सकते हैं” शांति ने कहा तो रागिनी तो चोंकी ही मोहिनी भी अपनी परेशानी को भूलकर उसकी ओर देखने लगी

“चाची जी मुझे तो ये ही समझ नहीं आता की हमारे परिवार में ये क्या होता रहा... हमसे पहले वाली पीढ़ी के हमारे बुजुर्ग कैसे-कैसे झमेले करते रहे....इनमें से किसी ने भी ढंग से घर बसाया या चलाया कभी” रागिनी ने चिढ़े हुये से स्वर में कहा

“बड़े जीजाजी यानि तुम्हारे ताऊ जी...ने सिर्फ एक गलती की... बेला दीदी से तलाक लेने की.... वो भी अपनी माँ के दवाब में.... उसके अलावा उन्होने ज़िंदगी में कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके लिए कोई उन पर उंगली उठा सके.... बल्कि इस परिवार... पूरे परिवार के लिए ही उन्होने ज़िंदगी भर किया... ऋतु को आ जाने दो...और बलराज को भी... फिर एक कोशिश करके देखते हैं वसुंधरा दीदी का पता लगाने की... बेला दीदी अपने गाँव में ही रहती हैं...उनका बेटा ..... वीरू या वीरेंद्र.... वो भी वहीं अपनी ननिहाल में रहता है... नाना की जायदाद मिली थी उसे ...शायद उनसे पता चल जाए रवि के बारे में” मोहिनी ने कहा

“चलो देखते हैं शाम को ऋतु को आ जाने दो... तब तक चाचा जी से बात करने की कोशिश करते हैं... वरना फिर ऋतु को लेकर निकलते हैं उनकी तलाश में”

............................................

“भैया........आप?” सामने बैठे व्यक्ति को देखते ही ऋतु के मुंह से निकला और वो अपनी जगह पर अवाक सी खड़ी रह गयी... तभी विक्रम के बराबर से बेड से उतरकर अपने पास आते व्यक्ति को देखकर तो उसकी आँखें फटी कि फटी रह गईं

“प्रबल तु.... तुम प्रबल तो नहीं” ऋतु ने उस लड़के को देखकर कहा तब तक आकर उसने ऋतु के पैर छूए और हाथ पकड़कर अंदर को ले चला

“अरे ऋतु बुआ अंदर तो आ जाओ... सबका रास्ता रोका हुआ है आपने” उसने हँसते हुये कहा तो ऋतु बिना कुछ सोचे समझे उसके साथ जाकर सामने बेड पर बैठे विक्रम के पास जाकर बैठ गयी बाकी सब भी उसके पीछे कमरे में आ गए। नीलम, निशा, धीरेंद्र तो वहीं बेड के बराबर में जमीन पर बिछे गद्दों पर बैठ गए पवन ने आगे बढ़कर विक्रम के पैर छूए तो विक्रम ने उसे अपने पास ही बैठा लिया, प्रबल-2, भानु और वैदेही तो बेड पर चढ़कर ऋतु के पास बैठ ही गए, सुशीला भी नीलम के पास नीचे बैठने लगीं तो विक्रम ने उन्हें अपने पास बेड पर ही बैठने को बोला

“भाभी आपसे कितनी बार कहा है आप मेरे सामने नीचे मत बैठा करो.... जगह कम हो तो में नीचे बैठ जाता हूँ... आप बड़ी हैं...मुझे अच्छा नहीं लगता” विक्रम ने कहा तो सुशीला भी जाकर ऋतु के पास ही बैठ गयी

“हाँ तो ऋतु... कुछ समझ आया” जब सुशीला ने कहा तो ऋतु जैसे होश में आयी

“भैया आप ठीक हैं....पिछले महीने....और ये प्रबल...ये कौन है” ऋतु के मन में हजारों सवाल उठ रहे थे जो वो विक्रम से करना चाहती थी... लेकिन कोई भी बात पूरी नहीं कह सकी, उसकी ये हालत देखकर विक्रम और सुशीला ने एक दूसरे की ओर देखा और मुस्कुरा दिये

“शांत हो जाओ बेटा.... अब भाभी तुम्हें सब बताएँगी कि ये कौन हैं और क्या हुआ मेरे साथ” विक्रम ने मुसकुराते हुये बात सुशीला के ऊपर डाल दी

“ऋतु बेटा! विक्रम को तो तुम जानती ही हो, और विक्रम कि मौत या लवारीश लाश मिलने का जो मामला था, वो विक्रम का ही करा-धरा था... अपनी पहचान खत्म करने के लिए..... अब विक्रम मर चुका है.... विक्रम का पुराना कोई रेकॉर्ड नहीं.... इसने अपना आधार कार्ड तो बनवाया ही नहीं था जिससे उँगलियों के निशान या आँखों कि पुतलियों से पहचान हो सके ............ अब इनका नाम ‘रणविजय सिंह’ है सरकारी आंकड़ों में और ये हैं इनकी पत्नी ‘नीलिमा सिंह’ जिनके बारे में तुमने नीलोफर नाम से सुना होगा, और ये प्रबल नहीं, प्रबल का जुड़वाँ भाई है जो रेकॉर्ड में इन दोनों का इकलौता बेटा है इसका नाम समीर था .... लेकिन अब ‘समर प्रताप सिंह’ के नाम से है”

“तो प्रबल भी आपका बेटा है भैया...अब वो भी आपके साथ ही रहेगा” ऋतु ने विक्रम यानि रणविजय सिंह से कहा

“देखो बेटा.... एक तो ये भूल जाओ पूरी तरह कि विक्रम या नीलोफर कोई थे... वो दोनों मर चुके हैं... में विक्रम का बड़ा भाई रणविजय सिंह हूँ जो अपने ताऊ जी के पास रहा बचपन से........ दिल्ली में भी घर पर सभी को ये ही समझा देना है। दूसरे रहा प्रबल का सवाल .... वो मेरा नहीं रागिनी दीदी का बेटा है... उन्होने ही उसे जन्म से पाला है... हाँ अगर वो उसे अपने पास न रखना चाहें तो फिर तो मेरे पास रहेगा ही... वरना वो उनके पास ही उनका बेटा होने के नाते... हमेशा बना रहेगा।“ विक्रम ने गंभीर आवाज में कहा

फिर उन सबकी आपस में बातें होने लगीं .......आज ऋतु को लग रहा था जैसे वो किसी और ही दुनिया में पहुँच गयी हो... बचपन से उसने अपने घर में अपने माता-पिता को ही देखा... जो सिर्फ जरूरी होने पर ही आपस में या ऋतु से बात करते थे.... हाँ कभी-कभी विक्रम के आने पर विक्रम और मोहिनी आपस में बात करते थे लेकिन उसमें न तो वो ऋतु को शामिल करते और न ही बलराज सिंह को...घर में कोई दूसरा बच्चा तो था नहीं और जिस क्षेत्र में वो लोग रहते थे वो पॉश कॉलोनी थी तो पड़ोसियों से भी कोई खास मतलब नहीं था... फिर बलराज और मोहिनी भी जब किसी से मतलब नहीं रखते थे तो ऋतु का भी कोई संबंध नहीं रहा किसी से..... कॉलेज में जरूर कुछ सहेलियाँ बनी लेकिन उनसे भी सिर्फ कॉलेज तक ही सीमित रही।

फिर जब वो रागिनी के साथ रहने आयी तब से कुछ न कुछ नयी परेशानियों में उलझी रही लेकिन फिर भी रागिनी, अनुराधा, प्रबल सब आपस में हर छोटी बड़ी बात करते और उनमें ऋतु को भी शामिल कर लेते, साथ ही अनुपमा भी अक्सर इनके साथ ही होती... तो ऋतु को एक नया अहसास होने लगा था.... परिवार होने का अहसास... कभी-कभी वो सोचती थी कि इतने साल उसने क्या खोया... एक भरा पूरा परिवार, जिसमें हर उम्र के और हर मिजाज के लोग होते हैं..........

लेकिन आज तो वो परिवार और भी बड़ा दिख रहा था... जिसमें हर उम्र के कई-कई लोग और उनका आपस में इतना हिलमिलकर रहना.... कोई फ़ार्मैलिटी नहीं...फिर उसकी नज़र पावन पर गयी जो उसे ही बार-बार देख रहा था... ऋतु से नजर मिलते ही पवन मुस्कुरा दिया

“ऋतु मेम! आप किस सोच विचार में हो... बहुत देर से हम ही कांव-कांव किए जा रहे हैं... आप तो पता नहीं कहाँ हो” पवन ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय ने हँसते हुये पूंछा

“बेटा पवन तो तू ऋतु को मेम कहता है”

“भैया अब ये मेरी सीनियर हैं... मेम तो कहना ही पड़ेगा” पवन ने झेंपते हुये कहा

“सीनियर तो ऑफिस में है ना, यहाँ तो घर है... दीदी कहा कर” रणविजय ने कहा तो ऋतु ने जल्दी से कहा

“भैया! मेंने पहले भी कहा है इससे, मेरा नाम लिया करे, ऑफिस के अलावा कहीं भी मेम ना कहे” और पवन की ओर घूरकर देखा

“ओहो! ननद रानी .... क्या बात है... दीदी नहीं कहलवाना” नीलिमा ने ऋतु को छेड़ते हुये कहा “और बेटा पवन... तुझे भी दीदी नहीं कहना?”

“न...नहीं...भाभी ऐसी कोई बात नहीं... ऋतु जी ने मुझे पहले भी बोला था कि उनका नाम लिया करूँ” पवन ने नीलिमा कि बात का मतलब समझते हुये झेंपकर कहा और इन बातों को सुनकर ऋतु भी झेंप गयी और दोनों चुपचाप नीचे नजर करके बैठे रहे.... अभी नीलिमा और कुछ कहनेवली थी कि तभी ऋतु का फोन बजा तो उसने देखा मोहिनी देवी का कॉल था...उसने सबकी ओर देखकर चुप रहने का इशारा किया

“माँ का कॉल आ रहा है.... अभी में आप लोगों के बारे में नहीं बता रही... आज अप सब वहीं चलो सभी से एक बार मिल लो” ऋतु ने बोला

“तुम फोन उठाओ...हम लोग अभी खाना खाकर चलते हैं शाम तक पहुँच जाएंगे...” रणविजय ने कहा और कॉल उठाने का इशारा किया

“माँ! में चंडीगढ़ में हूँ...............” उधर से कुछ कहा गया तो जवाब में ऋतु ने कहा फिर उनकी वही बातें हुई जो मोहिनी देवी के द्वारा मेंने पहले बताई हैं...बात करने के बाद ऋतु ने फोन काटा और रणविजय की ओर देखा जो उसी की ओर देख रहा था

“तुमने हमारी बात भी करा दी होती चाची जी से” रणविजय ने कहा

“अरे भैया आप ठहरे पुराने जमाने के... अब हमारे जमाने में एक चीज होती है सर्प्राइज़..... में माँ को और वहाँ सभी को सर्प्राइज़ दूँगी...अप सबको साथ लेजाकर” ऋतु ने चहकते हुये कहा

“बेटा हम इतने पुराने जमाने के भी नहीं हैं.... हम सब उसी कॉलेज के पढे हुये हैं जहां तुम हमसे जूनियर हो..........और हमारे सर्प्राइज़ कितने जबर्दस्त होते हैं तुमने आज देख ही लिया होगा” नीलिमा ने भी चहकते हुये कहा तो सभी मुस्कुरा दिये और ऋतु ने मुसकुराते हुये पवन को आँखें दिखाई तो वो दूसरी ओर देखने लगा

“अब आप लोग अपने बारे में बताओ की बड़े भैया कहाँ हैं और आप सब ने अपने नाम क्यों बदल लिए” ऋतु ने रणविजय से कहा

“अभी पहले खाना खाते हैं उसके बाद दिल्ली निकलते हैं... असल में जब पवन ने बाते की सभी किशनगंज वाले मकान में हैं... तुम, रागिनी दीदी और बच्चे ........ शांति और लाली तो वहाँ पहले से रह ही रहे थे... तो हम सब वहीं आ रहे थे... लेकिन फिर नीलम ने पहले तुम्हें सर्प्राइज़ देने का सोचा... बाद में उन सबको संभालने में तुम हमारा साथ तो दोगी अब.... इसीलिए रुके हुये थे हम, इसीलिए भाभी को भी हमने यहीं बुला लिया था.... अब बस चलना ही है... फिर वहाँ चलकर ही सबके सामने बात करते हैं... क्योंकि ये सवाल वो सब भी पूंछेंगे .....वैसे एक बात नहीं बताई तुमने.... मोहिनी चाची क्या बोल रही थी... जिसके लिए तुमने कहा कि वहाँ आकर देखती हूँ... कोई परेशानी है क्या” रणविजय ने कहा

“ओ...हाँ भैया! पापा कल शाम के कहीं गए हुये हैं.... ये भी नहीं बताया कि कहाँ जा रहे हैं और माँ बता रही थी कि उनका फोन भी नहीं लग रहा” ऋतु ने कहा

“हूँ.... चलो पहले वहाँ पहुँचकर फिर देखते हैं कि बलराज चाचा जी आखिर गए कहाँ हैं” विक्रम ने सोचते हुये कहा

“पापा! ऋतु तुम्हारे पापा तो....और बलराज चाचाजी….” सुशीला ने उलझन भरे स्वर में कहा

“अरे भाभी वो बलराज चाचाजी मोहिनी चाचीजी के साथ रहने लगे थे तो ऋतु उन्हें पापा ही कहती है बचपन से....भैया को तो पता है... आपको शायद बताया नहीं होगा उन्होने” रणविजय ने बात संभालते हुये कहा

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Rahul

Kingkong
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badhiya update hai dimag ghanchakar ho gawa mera ye to jinda hai bhaiya ji bahut golmaal hai
 

kamdev99008

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badhiya update hai dimag ghanchakar ho gawa mera ye to jinda hai bhaiya ji bahut golmaal hai
bhai sab to bata diya.... ab agle update meinaur bata dunga.................... dhire-dhire sab pata chal jayega
 

firefox420

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bahut he chupa rustam nikla ye Vikaram .. sab ka ch***ya banaya hua hai .. waise ye Neelam ur Nilofer aur apne baccho ko alag karna aur un sab ke naam badaal kar rakhna aur saath mein ye khud ki he maut ki mangadhant saajish dikhlana to kuch hadd tak theek lagta hai .. magar ye khud ko apne he pariwaar mein 2 alag - alag shakshiyat ke taur par dikhana aur .... ye bahut he asmanjas se bhari aur dimaag ke tote udaane wali pat-khatha najar aa rahi hai .. aur agar Vikram khud ko apne tauji ke bete ki jagah darsha raha tha to fir saval ye uthta hai .. ki asli Ravi Pratap singh kaha hai .. abhi tak .. kehne ko to kaafi kuch saamne aa chuka hai .. magar fir bhi bahut saari paheliya bani hui hai ...

ek to itne saare paatr hai kahani mein ki kaun kya hai .. ye abhi sahi se yaad nahi hua hai .. aur upar ye in sabke role aur placement story mein badalte rehte hai .. kyon ki khud Vikram aur Raagini dono he shuruaat se sautele maa - beta fir college mein ek dusre ke kind of opponent bane hue the .. jo ki shayad ek dusre ko secretly admire aur like bhi karte the .. aur fir dono cousion bhai behan ban kar saamne prastut hue aur fir baad mein inke maa baap bhi badle aur abb ye dono sage bhai - behan ke roop mein saamne aa chuke hai .. ab muzhe tazoob na hoga ki kal ko fir agle update mein kuch aur kahani jaan-ne ko mile .. :?:

waise iss wale update se Ritu ka hum paathako ke saamne kaafi saari baate khul chuki hai .. magar fir bhi bahut confusion bana hua hai .. aur muzhe to lagta hai ki ye jaldi se khatam bhi nahi hoga .. kyonki yaha par main he nahi TheBlackBlood bhai aur apne dear Chutiyadr Dr. Saab aur Naina "the gynecologist" bhi heavly confused nazar aa rahe hai .. vo aur baat hai ki apne Dr. saab ki gaadi to vikram ki family ki sabhi ladkiyon par aa kar ruk gayi hai .. magar fir bhi story mein bhaari locha hai kamdev99008 bhiya ji ...

aur ab to muzhe ye soch - soch kar maza aa raha hai .. ke jab ye sab log Delhi mein patparganj ke Mohini aur Vikram ki maa ke pushtaini makaan par pahuchenge to waha par to sab inko dekhar chakkar kha kar gir jaayenge .. aur bechari Raagini ke payro ke neeche se to jameen he khisak jaayegi ye sacchai jaan kar .. aur Prabal ka kya reaction hone wala hai apni maa aur judwa bhai se mil kar .. aur wo kya sochega jab usko pata lagega ki jisko ki abhi tak apna cousin bhai ke roop mein dekhta aaya tha wo asal mein uske pita hai .. The GREAT Vikramaditya ji .. he he ....

waise kahani ya aapki life se judi ye patkatha to bahut rochak hai aur har pal romanch se bhari hui hai .. ab aage ka intezaar rahgega ki in bichede hue pariwaar ke sadasyo ka aapas mein milan hona kaisa rahega ...

aur main ye bhi ankit karna bhool gaya ki jab Neelam urf nilofer apne dusre bete prabal se milegi ya vice - versa kitna bhaavnatmak hoga aur jab us maa ne apne dil par patthar rakh kar apne kaleje ke tukde ko apne se alag kardiya tha to ye kitna hridya - vidarak raha hoga hoga ...

kamdev99008 bhiya aapnse request hai .. ki ye moment ful emotional banana ...

and one more thing that i would like to mention here that this story is so full of twists, emotions, forgery, and what not ... but still it's not getting the same accolade that a story of such calibre should receive .. it's a bit dissappointing to see ...
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
31,619
92,259
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bahut he chupa rustam nikla ye Vikaram .. sab ka ch***ya banaya hua hai .. waise ye Neelam ur Nilofer aur apne baccho ko alag karna aur un sab ke naam badaal kar rakhna aur saath mein ye khud ki he maut ki mangadhant saajish dikhlana to kuch hadd tak theek lagta hai .. magar ye khud ko apne he pariwaar mein 2 alag - alag shakshiyat ke taur par dikhana aur .... ye bahut he asmanjas se bhari aur dimaag ke tote udaane wali pat-khatha najar aa rahi hai .. aur agar Vikram khud ko apne tauji ke bete ki jagah darsha raha tha to fir saval ye uthta hai .. ki asli Ravi Pratap singh kaha hai .. abhi tak .. kehne ko to kaafi kuch saamne aa chuka hai .. magar fir bhi bahut saari paheliya bani hui hai ...

ek to itne saare paatr hai kahani mein ki kaun kya hai .. ye abhi sahi se yaad nahi hua hai .. aur upar ye in sabke role aur placement story mein badalte rehte hai .. kyon ki khud Vikram aur Raagini dono he shuruaat se sautele maa - beta fir college mein ek dusre ke kind of opponent bane hue the .. jo ki shayad ek dusre ko secretly admire aur like bhi karte the .. aur fir dono cousion bhai behan ban kar saamne prastut hue aur fir baad mein inke maa baap bhi badle aur abb ye dono sage bhai - behan ke roop mein saamne aa chuke hai .. ab muzhe tazoob na hoga ki kal ko fir agle update mein kuch aur kahani jaan-ne ko mile .. :?:

waise iss wale update se Ritu ka hum paathako ke saamne kaafi saari baate khul chuki hai .. magar fir bhi bahut confusion bana hua hai .. aur muzhe to lagta hai ki ye jaldi se khatam bhi nahi hoga .. kyonki yaha par main he nahi TheBlackBlood bhai aur apne dear Chutiyadr Dr. Saab aur Naina "the gynecologist" bhi heavly confused nazar aa rahe hai .. vo aur baat hai ki apne Dr. saab ki gaadi to vikram ki family ki sabhi ladkiyon par aa kar ruk gayi hai .. magar fir bhi story mein bhaari locha hai kamdev99008 bhiya ji ...

aur ab to muzhe ye soch - soch kar maza aa raha hai .. ke jab ye sab log Delhi mein patparganj ke Mohini aur Vikram ki maa ke pushtaini makaan par pahuchenge to waha par to sab inko dekhar chakkar kha kar gir jaayenge .. aur bechari Raagini ke payro ke neeche se to jameen he khisak jaayegi ye sacchai jaan kar .. aur Prabal ka kya reaction hone wala hai apni maa aur judwa bhai se mil kar .. aur wo kya sochega jab usko pata lagega ki jisko ki abhi tak apna cousin bhai ke roop mein dekhta aaya tha wo asal mein uske pita hai .. The GREAT Vikramaditya ji .. he he ....

waise kahani ya aapki life se judi ye patkatha to bahut rochak hai aur har pal romanch se bhari hui hai .. ab aage ka intezaar rahgega ki in bichede hue pariwaar ke sadasyo ka aapas mein milan hona kaisa rahega ...

aur main ye bhi ankit karna bhool gaya ki jab Neelam urf nilofer apne dusre bete prabal se milegi ya vice - versa kitna bhaavnatmak hoga aur jab us maa ne apne dil par patthar rakh kar apne kaleje ke tukde ko apne se alag kardiya tha to ye kitna hridya - vidarak raha hoga hoga ...

kamdev99008 bhiya aapnse request hai .. ki ye moment ful emotional banana ...

and one more thing that i would like to mention here that this story is so full of twists, emotions, forgery, and what not ... but still it's not getting the same accolade that a story of such calibre should receive .. it's a bit dissappointing to see ...
are yaal kitne rishte hain..... iske woh... uske woh... thodi bahut confusion toh hogi hi na...
 
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Naina

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अध्याय 29

इधर किशनगंज में मोहिनी देवी सुबह से बार-बार फोन मिलाये जा रही थीं लेकिन बलराज सिंह का फोन आउट ऑफ कवरेज आ रहा था... वो बहुत ज्यादा तनाव में आ गईं थीं। रागिनी बहुत देर से उन्हें देखे जा रही थी

“चाची जी! आप भी आ जाओ खाना खा लेते हैं.... बच्चे तो नाश्ता करके अपने स्कूल-कॉलेज चले गए अब हम 3 ही लोग बचे हैं” रागिनी ने कहा

“मेरा मन कुछ ठीक नहीं है.... तुम लोग खा लो” मोहिनी ने अनमने से स्वर में कहा तो रागिनी उसके बराबर में सोफ़े पर बैठ गयी

“क्या बात है.... बलराज चाचा जी से बात नहीं हो पा रही.... कहाँ गए हैं वो” रागिनी ने उनसे पूंछा

“यही तो समझ नहीं आ रहा.... बलराज हमेशा बताकर जाते थे कि कहाँ जा रहे हैं और कब वापस आएंगे.... अबकी बार सिर्फ ये बोले कि किसी जरूरी कम से जाना है और अब सुबह से कोशिश कर रही हूँ बात करने की... लेकिन उनका फोन ही नहीं मिल रहा” मोहिनी ने रुँधे स्वर में कहा

“आप चिंता ना करें में पता लगाने की कोशिश करती हूँ, पहले आप खाना खाइये फिर एक बार घर चलकर देखते हैं....... शायद चाचा जी वहाँ ही मिल जाएँ” रागिनी ने समझते हुये कहा

“अगर घर पर होते तो या तो फोन मिलता या स्विच ऑफ आता... वो कहीं ऐसी जगह हैं जहां पर नेटवर्क नहीं मिल रहा” मोहिनी ने रोते हुये कहा

“दीदी आप चलिये पहले खाना खा लीजिये फिर रागिनी दीदी के साथ जाकर देख लीजिये एक बार... शायद घर से पता चल जाए की वो कहाँ गए हैं” शांति ने भी समझाया और हाथ पकड़कर उन्हें अपने साथ डाइनिंग टेबल पर ले आयी और तीनों ने बैठकर खाना खाया। हालांकि मोहिनी देवी का बिलकुल मन नहीं था लेकिन रागिनी ने ज़ोर दिया तो बेमन से थोड़ा बहुत खा लिया।

खाना खाने के बाद तीनों को रागिनी अपने कमरे में ले गयी की पहले एक बार फिर से बलराज को फोन मिलकर देखा जाए। रागिनी और मोहिने ने कई बार अपने अपने मोबाइल मोहिनी देवी ने कहा की ऋतु को भी बता दिया जाए अब चाहे सबकुछ सामने आ गया है... लेकिन ऋतु को बचपन से बलराज ने ही पाला बाप बनकर और ऋतु ने भी उन्हें ही अपना पिता जाना-माना... वैसे भी वो पिता न सही पिता के भाई तो हैं ही।

“हैलो ऋतु! बेटा कहाँ पर हो तुम?” फोन मिलते ही मोहिनी देवी ने पूंछा

“माँ! में चंडीगढ़ में हूँ...............” ऋतु ने उधर से कहा

“सुन! कल रात तेरे पापा कहीं गए थे... बताया था ना मेंने...” मोहनी ने कहा

“हाँ! बताया तो था आपने... क्या हुआ” ऋतु ने चिंता भरे स्वर में कहा

“सुबह से उनका फोन ही नहीं लग रहा... और वो बता कर भी नहीं गए कि कहाँ गए हैं” मोहिनी ने चिंता भरे स्वर में कहा

“माँ अप चिंता मत करो.... में रात तक वापस पहुँच रही हूँ... और कुछ लोग साथ आ रहे हैं मेरे.... वहाँ पहुँचकर बात करते हैं... फिर पापा के बारे में भी पता करेंगे...... आप चिंता मत करना” ऋतु ने कहा

“कौन लोग आ रहे हैं तेरे साथ?” मोहिनी ने पूंछा

“आप देखते ही पहचान लोगी.... बस ये बात अपने घर में ही रहे... अनुपमा या उसके घर तक भी ना पहुंचे कि कोई हमारे घर आ रहा है....शांति ताई जी, रागिनी दीदी और बच्चों से भी बोल देना...और हाँ! पापा की चिंता मत करना... हम वहाँ पहुँचकर उनका पता लगाते हैं” ऋतु ने मोहिनी को फिर से समझाते हुये कहा

“ठीक है ... बस जल्दी से आजा तू” मोहिनी ने चिंता भरे स्वर में कहा

मोहिनी ने फोन रख दिया और रागिनी को बताया ऋतु के बारे में

“अब ऐसा कौन है चंडीगढ़ में...जिसके पास ये अचानक बिना बताए गयी और अब किसको साथ लेकर आ रही है” रागिनी ने उलझन भरी आवाज में कहा

“रागिनी दीदी जब विक्रम और नीलोफर दिल्ली से गायब हुये थे तो काफी दिन चंडीगढ़ और उसके आसपास ही रहे थे... शायद कई साल रहे थे...वहाँ नीलोफर के कोई रिश्तेदार रहते थे.....नाज़िया आंटी माँ को बताया करती थीं कि वो लोग पटियाला के रहनेवाले थे... बँटवारे में लाहौर चले गए और फिर उनकी शादी हैदराबाद में हो गयी.... मुझे ऐसा लगता है.... नीलोफर चंडीगढ़ ही रहती है... और ऋतु उसी के पास गयी है... और नीलफर को लेकर ही आ रही है.........”

“तुम्हें कैसे पता...ये सब” मोहिनी ने पूंछा

“नीलोफर की माँ नाज़िया, मेरी माँ और रागिनी दीदी के पिताजी तीनों साथ मिलकर बहुत से उल्टे सीधे काम-धंधे करते थे... इसलिए हम सब बच्चे भी एक दूसरे के संपर्क में बने रहे...आपकी याददास्त चली गयी इसलिए आपको पता नहीं... जब रागिनी दीदी के पिताजी और में नोएडा में रहने लगे थे तभी एक दिन उन्होने बताया था कि विक्रम चंडीगढ़ में रह रहा है नीलोफर के साथ और उसके कोई बच्चा भी था शायद.... वो कितने भी बुरे सही... लेकिन अपने बच्चों का मोह सबको होता है... इसीलिए वो विक्रम और रागिनी दीदी का पता लगाने में लगे रहे सालों साल तक.... फिर खुद ही गायब हो गए”

“माँ! आप मुझे दीदी मत कहा करो, आपकी शादी मेरे पिताजी से हुई है... इस रिश्ते से में आपकी बेटी हुई” रागिनी ने शांति से कहा

“आपको मेंने बचपन से दीदी कहा... और पता है... अगर मेरी शादी आपके पिताजी से हालात कि वजह से मजबूरी में हुआ समझौता था... उनके अलावा मेरा कोई और सहारा भी तो नहीं था.... अगर नीलोफर बीच में ना आती और हालात सही रहते तो मेरी शादी आपके छोटे भाई ...विक्रम.... विक्रमादित्य सिंह से होती... हम दोनों एक दूसरे को पसंद करते थे... शायद प्यार भी कह सकते हैं” शांति ने कहा तो रागिनी तो चोंकी ही मोहिनी भी अपनी परेशानी को भूलकर उसकी ओर देखने लगी

“चाची जी मुझे तो ये ही समझ नहीं आता की हमारे परिवार में ये क्या होता रहा... हमसे पहले वाली पीढ़ी के हमारे बुजुर्ग कैसे-कैसे झमेले करते रहे....इनमें से किसी ने भी ढंग से घर बसाया या चलाया कभी” रागिनी ने चिढ़े हुये से स्वर में कहा

“बड़े जीजाजी यानि तुम्हारे ताऊ जी...ने सिर्फ एक गलती की... बेला दीदी से तलाक लेने की.... वो भी अपनी माँ के दवाब में.... उसके अलावा उन्होने ज़िंदगी में कुछ भी ऐसा नहीं किया जिसके लिए कोई उन पर उंगली उठा सके.... बल्कि इस परिवार... पूरे परिवार के लिए ही उन्होने ज़िंदगी भर किया... ऋतु को आ जाने दो...और बलराज को भी... फिर एक कोशिश करके देखते हैं वसुंधरा दीदी का पता लगाने की... बेला दीदी अपने गाँव में ही रहती हैं...उनका बेटा ..... वीरू या वीरेंद्र.... वो भी वहीं अपनी ननिहाल में रहता है... नाना की जायदाद मिली थी उसे ...शायद उनसे पता चल जाए रवि के बारे में” मोहिनी ने कहा

“चलो देखते हैं शाम को ऋतु को आ जाने दो... तब तक चाचा जी से बात करने की कोशिश करते हैं... वरना फिर ऋतु को लेकर निकलते हैं उनकी तलाश में”

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“भैया........आप?” सामने बैठे व्यक्ति को देखते ही ऋतु के मुंह से निकला और वो अपनी जगह पर अवाक सी खड़ी रह गयी... तभी विक्रम के बराबर से बेड से उतरकर अपने पास आते व्यक्ति को देखकर तो उसकी आँखें फटी कि फटी रह गईं

“प्रबल तु.... तुम प्रबल तो नहीं” ऋतु ने उस लड़के को देखकर कहा तब तक आकर उसने ऋतु के पैर छूए और हाथ पकड़कर अंदर को ले चला

“अरे ऋतु बुआ अंदर तो आ जाओ... सबका रास्ता रोका हुआ है आपने” उसने हँसते हुये कहा तो ऋतु बिना कुछ सोचे समझे उसके साथ जाकर सामने बेड पर बैठे विक्रम के पास जाकर बैठ गयी बाकी सब भी उसके पीछे कमरे में आ गए। नीलम, निशा, धीरेंद्र तो वहीं बेड के बराबर में जमीन पर बिछे गद्दों पर बैठ गए पवन ने आगे बढ़कर विक्रम के पैर छूए तो विक्रम ने उसे अपने पास ही बैठा लिया, प्रबल-2, भानु और वैदेही तो बेड पर चढ़कर ऋतु के पास बैठ ही गए, सुशीला भी नीलम के पास नीचे बैठने लगीं तो विक्रम ने उन्हें अपने पास बेड पर ही बैठने को बोला

“भाभी आपसे कितनी बार कहा है आप मेरे सामने नीचे मत बैठा करो.... जगह कम हो तो में नीचे बैठ जाता हूँ... आप बड़ी हैं...मुझे अच्छा नहीं लगता” विक्रम ने कहा तो सुशीला भी जाकर ऋतु के पास ही बैठ गयी

“हाँ तो ऋतु... कुछ समझ आया” जब सुशीला ने कहा तो ऋतु जैसे होश में आयी

“भैया आप ठीक हैं....पिछले महीने....और ये प्रबल...ये कौन है” ऋतु के मन में हजारों सवाल उठ रहे थे जो वो विक्रम से करना चाहती थी... लेकिन कोई भी बात पूरी नहीं कह सकी, उसकी ये हालत देखकर विक्रम और सुशीला ने एक दूसरे की ओर देखा और मुस्कुरा दिये

“शांत हो जाओ बेटा.... अब भाभी तुम्हें सब बताएँगी कि ये कौन हैं और क्या हुआ मेरे साथ” विक्रम ने मुसकुराते हुये बात सुशीला के ऊपर डाल दी

“ऋतु बेटा! विक्रम को तो तुम जानती ही हो, और विक्रम कि मौत या लवारीश लाश मिलने का जो मामला था, वो विक्रम का ही करा-धरा था... अपनी पहचान खत्म करने के लिए..... अब विक्रम मर चुका है.... विक्रम का पुराना कोई रेकॉर्ड नहीं.... इसने अपना आधार कार्ड तो बनवाया ही नहीं था जिससे उँगलियों के निशान या आँखों कि पुतलियों से पहचान हो सके ............ अब इनका नाम ‘रणविजय सिंह’ है सरकारी आंकड़ों में और ये हैं इनकी पत्नी ‘नीलिमा सिंह’ जिनके बारे में तुमने नीलोफर नाम से सुना होगा, और ये प्रबल नहीं, प्रबल का जुड़वाँ भाई है जो रेकॉर्ड में इन दोनों का इकलौता बेटा है इसका नाम समीर था .... लेकिन अब ‘समर प्रताप सिंह’ के नाम से है”

“तो प्रबल भी आपका बेटा है भैया...अब वो भी आपके साथ ही रहेगा” ऋतु ने विक्रम यानि रणविजय सिंह से कहा

“देखो बेटा.... एक तो ये भूल जाओ पूरी तरह कि विक्रम या नीलोफर कोई थे... वो दोनों मर चुके हैं... में विक्रम का बड़ा भाई रणविजय सिंह हूँ जो अपने ताऊ जी के पास रहा बचपन से........ दिल्ली में भी घर पर सभी को ये ही समझा देना है। दूसरे रहा प्रबल का सवाल .... वो मेरा नहीं रागिनी दीदी का बेटा है... उन्होने ही उसे जन्म से पाला है... हाँ अगर वो उसे अपने पास न रखना चाहें तो फिर तो मेरे पास रहेगा ही... वरना वो उनके पास ही उनका बेटा होने के नाते... हमेशा बना रहेगा।“ विक्रम ने गंभीर आवाज में कहा

फिर उन सबकी आपस में बातें होने लगीं .......आज ऋतु को लग रहा था जैसे वो किसी और ही दुनिया में पहुँच गयी हो... बचपन से उसने अपने घर में अपने माता-पिता को ही देखा... जो सिर्फ जरूरी होने पर ही आपस में या ऋतु से बात करते थे.... हाँ कभी-कभी विक्रम के आने पर विक्रम और मोहिनी आपस में बात करते थे लेकिन उसमें न तो वो ऋतु को शामिल करते और न ही बलराज सिंह को...घर में कोई दूसरा बच्चा तो था नहीं और जिस क्षेत्र में वो लोग रहते थे वो पॉश कॉलोनी थी तो पड़ोसियों से भी कोई खास मतलब नहीं था... फिर बलराज और मोहिनी भी जब किसी से मतलब नहीं रखते थे तो ऋतु का भी कोई संबंध नहीं रहा किसी से..... कॉलेज में जरूर कुछ सहेलियाँ बनी लेकिन उनसे भी सिर्फ कॉलेज तक ही सीमित रही।

फिर जब वो रागिनी के साथ रहने आयी तब से कुछ न कुछ नयी परेशानियों में उलझी रही लेकिन फिर भी रागिनी, अनुराधा, प्रबल सब आपस में हर छोटी बड़ी बात करते और उनमें ऋतु को भी शामिल कर लेते, साथ ही अनुपमा भी अक्सर इनके साथ ही होती... तो ऋतु को एक नया अहसास होने लगा था.... परिवार होने का अहसास... कभी-कभी वो सोचती थी कि इतने साल उसने क्या खोया... एक भरा पूरा परिवार, जिसमें हर उम्र के और हर मिजाज के लोग होते हैं..........

लेकिन आज तो वो परिवार और भी बड़ा दिख रहा था... जिसमें हर उम्र के कई-कई लोग और उनका आपस में इतना हिलमिलकर रहना.... कोई फ़ार्मैलिटी नहीं...फिर उसकी नज़र पावन पर गयी जो उसे ही बार-बार देख रहा था... ऋतु से नजर मिलते ही पवन मुस्कुरा दिया

“ऋतु मेम! आप किस सोच विचार में हो... बहुत देर से हम ही कांव-कांव किए जा रहे हैं... आप तो पता नहीं कहाँ हो” पवन ने मुसकुराते हुये कहा तो रणविजय ने हँसते हुये पूंछा

“बेटा पवन तो तू ऋतु को मेम कहता है”

“भैया अब ये मेरी सीनियर हैं... मेम तो कहना ही पड़ेगा” पवन ने झेंपते हुये कहा

“सीनियर तो ऑफिस में है ना, यहाँ तो घर है... दीदी कहा कर” रणविजय ने कहा तो ऋतु ने जल्दी से कहा

“भैया! मेंने पहले भी कहा है इससे, मेरा नाम लिया करे, ऑफिस के अलावा कहीं भी मेम ना कहे” और पवन की ओर घूरकर देखा

“ओहो! ननद रानी .... क्या बात है... दीदी नहीं कहलवाना” नीलिमा ने ऋतु को छेड़ते हुये कहा “और बेटा पवन... तुझे भी दीदी नहीं कहना?”

“न...नहीं...भाभी ऐसी कोई बात नहीं... ऋतु जी ने मुझे पहले भी बोला था कि उनका नाम लिया करूँ” पवन ने नीलिमा कि बात का मतलब समझते हुये झेंपकर कहा और इन बातों को सुनकर ऋतु भी झेंप गयी और दोनों चुपचाप नीचे नजर करके बैठे रहे.... अभी नीलिमा और कुछ कहनेवली थी कि तभी ऋतु का फोन बजा तो उसने देखा मोहिनी देवी का कॉल था...उसने सबकी ओर देखकर चुप रहने का इशारा किया

“माँ का कॉल आ रहा है.... अभी में आप लोगों के बारे में नहीं बता रही... आज अप सब वहीं चलो सभी से एक बार मिल लो” ऋतु ने बोला

“तुम फोन उठाओ...हम लोग अभी खाना खाकर चलते हैं शाम तक पहुँच जाएंगे...” रणविजय ने कहा और कॉल उठाने का इशारा किया

“माँ! में चंडीगढ़ में हूँ...............” उधर से कुछ कहा गया तो जवाब में ऋतु ने कहा फिर उनकी वही बातें हुई जो मोहिनी देवी के द्वारा मेंने पहले बताई हैं...बात करने के बाद ऋतु ने फोन काटा और रणविजय की ओर देखा जो उसी की ओर देख रहा था

“तुमने हमारी बात भी करा दी होती चाची जी से” रणविजय ने कहा

“अरे भैया आप ठहरे पुराने जमाने के... अब हमारे जमाने में एक चीज होती है सर्प्राइज़..... में माँ को और वहाँ सभी को सर्प्राइज़ दूँगी...अप सबको साथ लेजाकर” ऋतु ने चहकते हुये कहा

“बेटा हम इतने पुराने जमाने के भी नहीं हैं.... हम सब उसी कॉलेज के पढे हुये हैं जहां तुम हमसे जूनियर हो..........और हमारे सर्प्राइज़ कितने जबर्दस्त होते हैं तुमने आज देख ही लिया होगा” नीलिमा ने भी चहकते हुये कहा तो सभी मुस्कुरा दिये और ऋतु ने मुसकुराते हुये पवन को आँखें दिखाई तो वो दूसरी ओर देखने लगा

“अब आप लोग अपने बारे में बताओ की बड़े भैया कहाँ हैं और आप सब ने अपने नाम क्यों बदल लिए” ऋतु ने रणविजय से कहा

“अभी पहले खाना खाते हैं उसके बाद दिल्ली निकलते हैं... असल में जब पवन ने बाते की सभी किशनगंज वाले मकान में हैं... तुम, रागिनी दीदी और बच्चे ........ शांति और लाली तो वहाँ पहले से रह ही रहे थे... तो हम सब वहीं आ रहे थे... लेकिन फिर नीलम ने पहले तुम्हें सर्प्राइज़ देने का सोचा... बाद में उन सबको संभालने में तुम हमारा साथ तो दोगी अब.... इसीलिए रुके हुये थे हम, इसीलिए भाभी को भी हमने यहीं बुला लिया था.... अब बस चलना ही है... फिर वहाँ चलकर ही सबके सामने बात करते हैं... क्योंकि ये सवाल वो सब भी पूंछेंगे .....वैसे एक बात नहीं बताई तुमने.... मोहिनी चाची क्या बोल रही थी... जिसके लिए तुमने कहा कि वहाँ आकर देखती हूँ... कोई परेशानी है क्या” रणविजय ने कहा

“ओ...हाँ भैया! पापा कल शाम के कहीं गए हुये हैं.... ये भी नहीं बताया कि कहाँ जा रहे हैं और माँ बता रही थी कि उनका फोन भी नहीं लग रहा” ऋतु ने कहा

“हूँ.... चलो पहले वहाँ पहुँचकर फिर देखते हैं कि बलराज चाचा जी आखिर गए कहाँ हैं” विक्रम ने सोचते हुये कहा

“पापा! ऋतु तुम्हारे पापा तो....और बलराज चाचाजी….” सुशीला ने उलझन भरे स्वर में कहा

“अरे भाभी वो बलराज चाचाजी मोहिनी चाचीजी के साथ रहने लगे थे तो ऋतु उन्हें पापा ही कहती है बचपन से....भैया को तो पता है... आपको शायद बताया नहीं होगा उन्होने” रणविजय ने बात संभालते हुये कहा

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:superb: update kamdev ji..... Great going... :rose:
 
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