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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

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पात्र परिचय ---- संदर्भ वर्ष 2019

कथा नायक : राणा रविन्द्र प्रताप सिंह उम्र 44 वर्ष

दादा जी का परिवार

रुद्र प्रताप सिंह - बाबा (दादा जी) 40 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

निर्मला देवी - दादी जी 7 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

जयराज सिंह - पिता 19 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

विजयराज सिंह - बड़े चाचा 2 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

गजराज सिंह - दूसरे चाचा 11 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

विमला देवी - बड़ी बुआ 19 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

कमला देवी - छोटी बुआ 37 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

बलराज सिंह - तीसरे चाचा उम्र 61 वर्ष

देवराज सिंह - छोटे चाचा उम्र 52 वर्ष

जयराज सिंह का परिवार :

बेला देवी - पहली पत्नी उम्र 70 वर्ष

वीरेंद्र सिंह - बेला देवी के इकलौते बेटे उम्र 47 वर्ष

वसुंधरा सिंह - दूसरी पत्नी उम्र लगभग 70 वर्ष

राणा रविन्द्र प्रताप सिंह - वसुंधरा सिंह का बड़ा बेटा

रुक्मिणी सिंह - वसुंधरा सिंह की बेटी

धीरेंद्र प्रताप सिंह - वसुंधरा सिंह का छोटा बेटा

विजयराज सिंह का परिवार :

कामिनी सिंह - पहली पत्नी 35 वर्ष पहले मृत्यु

रागिनी सिंह - कामिनी की पुत्री उम्र लगभग 50 वर्ष

विक्रमादित्य सिंह - कामिनी का पुत्र उम्र लगभग 43 वर्ष

शांति देवी - दूसरी पत्नी उम्र लगभग 40 वर्ष

अनुभूति सिंह - शांति देवी की पुत्री उम्र लगभग 18 वर्ष

गजराज सिंह के परिवार का विवरण :

मोहिनी सिंह - पत्नी उम्र लगभग 48 वर्ष

ऋतु सिंह - इकलौती बेटी उम्र 27 वर्ष

बलराज सिंह - अविवाहित

देवराज सिंह के परिवार का विवरण :

स्नेहलता - पत्नी

सहदेव - पुत्र

कामना - पुत्री

विमला देवी के परिवार का विवरण :

विजय सिंह - पति उम्र लगभग 80 वर्ष

वंदना - सौतेली बेटी उम्र लगभग 47 वर्ष

हेमा - बेटी-1 उम्र 41 वर्ष

जया - बेटी-2 उम्र 39 वर्ष

ज्योति - बेटी-3 मृत्यु 18 वर्ष पहले

दीपक - बेटा उम्र 37 वर्ष

कुलदीप - बेटा-2 उम्र 36 वर्ष

प्रदीप - बेटा-3 मृत्यु 18 वर्ष पहले

कमला देवी के परिवार का विवरण :

रणवीर सिंह - पति

दादी जी के मायके का परिवार

शम्भूनाथ सिंह - निर्मला देवी के पिता मृत्यु लगभग 50 वर्ष पहले

जयदेवी - निर्मला देवी की माँ मृत्यु लगभग 45 वर्ष पहले

सुमित्रा देवी - निर्मला की छोटी बहन मृत्यु 3 वर्ष पहले

माया देवी - निर्मला की दूसरी छोटी बहन मृत्यु लगभग 50 वर्ष पहले

शम्भूनाथ सिंह की जायदाद के एकमात्र वारिस

जयराज सिंह व विजयराज सिंह - पुत्र निर्मला देवी एवं रूद्र प्रताप सिंह

वर्तमान में कहानी में मौजूद पात्रों के परिवार का परिचय साथ-साथ आता रहेगा
जैसे :-
राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का परिवार
विक्रमादित्य सिंह का परिवार
एवं अन्य इनके समकालीन

फिर भी यदि किसी को कोई परेशानी हो समझने में तो............. बेझिझक प्रश्न करें
 

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गजराज सिंह के परिवार का विवरण :

मोहिनी सिंह - पत्नी उम्र लगभग 48 वर्ष

ऋतु सिंह - इकलौती बेटी उम्र 27 वर्ष

बलराज सिंह - अविवाहित

ऋतु तो बलराज व मोहिनी की बेटी है ...

और ये क्या अब कहानी का नायक बदल दिया .. आपने बड़े भईया ...

और मुझे तो लगा था की विक्रम और रागिनी तो हमउम्र है ..क्योकिं दोंनो विश्वविद्यालय में सहपाठी थे .. पर यहाँ तो आपने दोंनो में 7 साल का अन्तर बताया ...
 
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kamdev99008

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ऋतु तो बलराज व मोहिनी की बेटी है ...

और ये क्या अब कहानी का नायक बदल दिया .. आपने बड़े भईया ...

और मुझे तो लगा था की विक्रम और रागिनी तो हमउम्र है ..क्योकिं दोंनो विश्वविद्यालय में सहपाठी थे .. पर यहाँ तो आपने दोंनो में 7 साल का अन्तर बताया ...
saare raaj khuleinge...........lekin dhire dhire

ar kahani ka nayak to meine kabhi vikram ko bataya hi nahin...................

kahani ka nayak kaun hai............. meri short story jo isi nam ki hai usmein hi diya hai...............
har update ishara karti hai..............ki vikram sirf jitna wo janta tha usko nibha raha tha.................
koi aur hi tha jise is pariwar ka har sadasya chhipa raha hai..........uska jikr na aye isiliye to balraj ne 3 bhai bataye the

ritu kiski beti hai ye agle update mein apko pata chal jana tha............. mohini isiliye ayi hai.................
lekin in sab baton ke liye ap log bhi agle 4-5 update intzar karne ko tayyar nahin the.....................
aur meine bhi wada kiya tha.............. ki 25th update tak sab kuchh apke samne aa jayega

isiliye sabkuchh apke samne hai.................... kaun kya tha..... aur kaun kya hai

lekin ek bada sawal hai ki............... kya tha se kya hai ke beech itna fark, itna badlav kyon aur kaise aya

wo apko flashback mein milega....................

abhi 5 update aur honge jinmein apko pata chalega ki

--------------- in sabke bare mein ragini ki team ko kaise pata chala aur ..............wo kahani ke nayak tak kaise pahunche
 

amita

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अध्याय 5

घर की घंटी बजने पर मोहिनी देवी ने दरवाजा खोला तो बाहर अभय और ऋतु एक अंजान लड़की और लड़के के साथ खड़े दिखे... उन्होने किनारे हटते हुये रास्ता दिया और सबके अंदर आने के बाद दरवाजा बंद करके उन सभी को सोफ़े पर बैठने का इशारा करते हुये खुद भी बैठ गईं... ऋतु की हालत उनको कुछ ठीक नहीं लगी तो उन्होने पूंछा

“क्या हुआ ऋतु... तेरी तबीयत ठीक नहीं है क्या?”

“नहीं माँ! में ठीक हूँ...” ऋतु ने धीरे से कहा और नौकर को आवाज देकर सबके लिए चाय लाने को कहा, फिर अपनी माँ से पूंछा “पापा अभी नहीं आए क्या?”

“आने ही वाले हैं...मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है कोई बात है जो तू मुझसे कहना चाहती है”

“माँ! विक्रम भैया नहीं रहे....”अपने रुके हुये आंसुओं को बाहर आने का रास्ता देते हुये ऋतु ने मोहिनी के गले लगकर रोते हुये कहा... तो एक बार को मोहिनी देवी उसका मुंह देखती ही रह गईं... फिर जब समझ में आया की ऋतु ने क्या कहा है तो उनकी भी आँखों से आँसू बहने लगे... तभी फिर से दरवाजे की घंटी बजी तो अभय ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर बलराज सिंह थे ...अभय को अपने घर का दरवाजा खोलते देखकर उनको अजीब सा लग और बिना कुछ बोले चुप खड़े रह गए।

“अंकल नमस्ते!” अभय ने चुप्पी को तोड़ते हुये कहा और उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया

अंदर आते ही बलराज सिंह ने देखा की एक सोफ़े पर मोहिनी बैठी हुई है, उसकी आँखों से आँसू निकाल रहे हैं, ऋतु उसे सम्हाले हुये है लेकिन खुद भी रो रही है... दूसरे सोफ़े पर एक लड़का और एक लड़की बैठे हुये हैं... सबकी नज़र दरवाजे की ओर बलराज सिंह पर है... तो वो जाकर मोहिनी के पास खड़ा होता है

“क्या हुआ मोहिनी? क्यों रो रही हो तुम दोनों? और ये दोनों कौन हैं”

“अंकल अप बैठिए में बताता हूँ” पीछे से अभय ने कहा तो बलराज सिंह ने सवालिया नजरों से उसकी ओर देखा और जाकर मोहिनी के बराबर मे सोफ़े पर बैठ गए

अभय भी आकार सिंगल सीट सोफ़े पर बैठ गया और बोला

“अंकल जैसा की आपको पता ही है की में विक्रम का दोस्त हूँ, हम कॉलेज मे साथ पढे थे”

“हाँ!” बलराज ने फिर प्रश्नवाचक दृष्टि से अभय को देखा

“आज सुबह मेरे पास कोटा से रागिनी का फोन आया था की श्रीगंगानगर मे पुलिस को एक लाश मिली है उन्होने रागिनी को फोन किया था ... तो रागिनी वहाँ पहुंची और लाश के पास मिले कागजातों, फोन तथा लाश के कद काठी से उसने विक्रम की लाश होने की शिनाख्त की है” अभय ने सधे हुये शब्दों मे बलराज सिंह को विक्रम की मौत की सूचना दी... एक बार को तो बलराज सिंह भावुक होते लगे लेकिन तुरंत ही संभलकर उन्होने अभय से पूंछा

“तो अब श्रीगंगानगर जाना है, विक्रम की लाश लेने?”

“नहीं अंकल रागिनी ने लाश ले ली है और वो सीधा यहीं दिल्ली आ रही है... में आपका एड्रैस उसे मैसेज कर देता हूँ...” अभय ने बताया

“ये रागिनी कौन है? ....ये सब बाद मे देखते हैं.... पहले तो उसे एक एड्रैस मैसेज करो पाहुचने के लिए.... क्योंकि विक्रम का दाह संस्कार दिल्ली मे नहीं.... उसी गाँव मे होगा जहाँ उसने और हम भाइयों ने, हमारे पुरखों ने जन्म लिया और राख़ हुये... एड्रैस नोट करो.... गाँव ...... ....... कस्बे के पास जिला..... उत्तर प्रदेश राजस्थान बार्डर से 100 किलोमीटर है .....”

अभय ने एड्रैस टाइप किया और रागिनी को मैसेज कर दिया साथ ही मैप पर लोकेशन सर्च करके भी भेज दी... फिर रागिनी को फोन किया

“हाँ अभय ये एड्रैस किसका है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा

“रागिनी...तुम्हें विक्रम की लाश लेकर इस एड्रैस पर पाहुचना है, ये विक्रम के गाँव का पता है... में अभी विक्रम के चाचाजी बलराज सिंह जी के साथ हूँ उनका कहना है की विक्रम का दाह संस्कार उनके गाँव में ही किया जाएगा.... हम भी वहीं पहुँच रहे हैं” अभय ने उसे बताया

“ठीक है! अनुराधा और प्रबल तुम्हारे पास पहुंचे?” रागिनी ने पूंछा

“हाँ! वो दोनों अभी मेरे साथ ही यहीं पर हैं...वो हमारे साथ ही वहीं पहुंचेंगे” अभय ने अनुराधा की ओर देखते हुये कहा। अनुराधा अभय की ओर ही देख रही थी लेकिन उसने अभय की बात पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और वैसे ही चुपचाप बैठी रही

“ठीक है...” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया

फोन कटते ही बलराज सिंह ने अनुराधा और प्रबल की ओर इशारा करते हुये पूंछा “ये दोनों कौन हैं?”

“ये आपके भाई देवराज सिंह और रागिनी के बच्चे हैं” अभय ने बताया

“देवराज के बच्चे... लेकिन उसने तो शादी ही नहीं की” बलराज ने उलझे हुये स्वर मे कहा फिर गहरी सांस छोडते हुये अभय के जवाब देने से पहले ही बोले “अभी ये सब छोड़ो.... तुम हमारे साथ गाँव चल रहे हो ना?”

“जी हाँ! में और ये दोनों भी”

“ठीक है! ऋतु तुम अपनी माँ को सम्हालो... इन्हें और तुम्हें जो कुछ लेना हो ले लो.... हम सब अभी निकाल रहे हैं 200 किलोमीटर का सफर है...रास्ता भी खराब है.... हमें उन लोगों से पहले गाँव में पहुँचना होगा...” कहते हुये बलराज सिंह ने फोन उठाकर कोई नंबर डायल किया

........................................................



उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा गाँव.... सड़क के दोनों ओर घर बने हुये... लेकिन ज्यादा नहीं एक ओर 5-6 घर दूसरी ओर 10-12 घर गाँव के हिसाब से अच्छे बने हुये, देखने से ही लगता है की गाँव सम्पन्न लोगो का है,,,,,,,,, लेकिन ये क्या? ज़्यादातर घरों पर ताले लगे हुये जैसे उनमे किसी को आए अरसा बीत गया हो....धूल और सूखी पत्तियों के ढेर सड़क पर से नज़र आते हैं..... हर घर का मुख्य दरवाजा सड़क पर ही है....कोई गली नहीं....गाँव के शुरू में बाहर सड़क किनारे एक मंदिर है...उसकी साफ सफाई देखकर लगता है की गाँव मे कोई रहता भी है....मंदिर के सामने 2-3 बुजुर्ग सुबह के 5 बजे खड़े हुये हाइवे की तरफ सड़क पर नजरें गड़ाए हैं.... शायद किसी का इंतज़ार कर रहे हैं... लेकिन इतनी सुबह वहाँ कोई हलचल ही नज़र नहीं आ रही थी....

तभी उन्हें दूर से कुछ गाडियाँ इस ओर आती दिखाई देती हैं तो वो चोकन्ने होकर खड़े हो जाते हैं और एक बुजुर्ग गाँव मे आवाज देकर किसी को बुलाता है उसकी आवाज सुनकर 5-6 युवा लड़के गाँव की ओर से आकार मंदिर पर खड़े हो जाते हैं...

तब तक गाडियाँ भी आ जाती है... सबसे पहली गाड़ी का दरवाजा खुलता है और बलराज सिंह बाहर निकलते हैं... उन्हें देखते ही वो सब बुजुर्ग आकर उनसे गले मिलते हैं.... सभी लड़के शव लेकर आयी गाड़ी के पास पाहुचते हैं और उसमें से विक्रम का शव निकालकर मंदिर के बराबर ही खाली मैदान मे जामुन के पेड़ के नीचे जमीन पर रख देते हैं...... उस मैदान मे गाँव के अन्य आदमी औरतें शव के पास बैठने लगते हैं..... बलराज सिंह सभी को गाड़ियों से उतारने को बोलते हैं और खुद भी उन बुजुर्गों के साथ जाकर वहीं बैठ जाते हैं..... उनको देखकर ऋतु भी मोहिनी देवी को लेकर वही बढ्ने लगती है तो रागिनी आगे बढ़कर मोहिनी देवी को दूसरी ओर से सहर देकर चलने लगती है..... पीछे-पीछे अभय, पूनम, अनुराधा और प्रबल भी वहीं जाकर बैठ जाते हैं..... गाँव के युवा दाह संस्कार की प्रक्रिया शुरू करने के लिए बलराज सिंह व अन्य बुजुर्गो से पूंछते हैं तो सभी बुजुर्ग कहते हैं की विक्रम का विवाह तो शायद हुआ नहीं तो उसकी कोई संतान भी नहीं.... और कोई बेटा इनके घर मे है नहीं इसलिए बलराज सिंह को ही ये सब करना पड़ेगा... क्योंकि वो विक्रम के पिता समान ही हैं....

तभी अभय बलराज सिंह से इशारे में कुछ बात करने को कहता है.... बलराज सिंह और अभय उठकर एक ओर जाकर कुछ बातें करते हैं और लौटकर बलराज सिंह सभी से कहते हैं

“मुझे अभी अभय प्रताप सिंह वकील साहब ने बताया है की विक्रम की वसीयत इनके पास है.... उसमें विक्रम ने इच्छा जाहीर की हुई है की विक्रम की मृत्यु होने पर उसका दाह संस्कार प्रबल प्रताप सिंह करेंगे... जो हमारे साथ आए हुये हैं....”

गाँव वालों को इसमें कोई आपत्ति नहीं हुई क्योंकि ये विक्रम और उसके परिवार का निजी फैसला है की दाह संस्कार कौन करे..... लेकिन ये सुनकर मोहिनी देवी, ऋतु, रागिनी और प्रबल-अनुराधा सभी चौंक गए.....

लेकिन ऐसे समय पर किसी ने कुछ कहना या पूंछना सही नहीं समझा.... गाँव के युवाओं ने प्रबल को साथ लेकर शव को नहलाना धुलना शुरू किया.... कुछ काम जो स्त्रियॉं के करने के थे वो गाँव की स्त्रियॉं ने मोहिनी देवी को साथ लेकर शुरू किए.... कुछ युवा श्मशान मे चिता की तयारी करने चले गए....

अंततः सभी पुरुष शव को लेकर श्मशान पहुंचे और प्रबल के द्वारा दाह संस्कार करके वापस गाँव मे आए तो गाँव की स्त्रियाँ मोहिनी देवी, रागिनी व अन्य सभी को लेकर एक घर मे अंदर पहुंची और पुरुष बलराज सिंह, प्रबल आदि को लेकर उसी घर के बाहर बैठक पर पहुंचे......

…………………………………………..



“अंकल! आप सभी को रात 10 बजे एक जगह इकट्ठा होने को बोल दीजिये ... तब तक गाँव वाले और आपके जान पहचान रिश्तेदार सभी जा चुके होंगे.... मे वो वसीयत आप सभी के सामने रखना चाहता हूँ जो मुझे विक्रम ने दी थी.....उसमें कुछ दस्तावेज़ मेंने पढे हैं और कुछ लोगों ...बल्कि अप सभी के नाम अलग अलग लिफाफे हैं जो में नहीं खोल सकता... वो लिफाफे जिस जिस के हैं उन्हें सौंप दूंगा.... फिर उनकी मर्जी है की वो सबको या किसी को उसमें लिखा हुआ बताएं या न बताएं.......... जितना सबके लिए है... वो में सबके सामने रखूँगा” अभय ने बलराज सिंह को एकांत मे बुलाकर उनसे कहा

“ठीक है में घर मे बोल देता हूँ” बलराज सिंह ने बोला और अंदर जाकर मोहिनी देवी के को देखा तो वो औरतों के बीच खोयी हुई सी बैठी थीं तो उन्होने ऋतु को अपने पास बुलाकर उससे बोल दिया।

...................................

रात 10 बजे सभी लोग बैठक में इकट्ठे हुये क्योंकि घर गाँव के पुराने मकानों की तरह बना हुआ था तो केवल कमरे, बरामदा और आँगन थे.... आँगन मे सभी को इकट्ठा करने की बजाय बैठक का कमरा जो एक हाल की तरह था....वहाँ सभी इकट्ठे हुये........

अभय ने अपना बैग खोलकर उसमें से एक बड़ा सा फोंल्डर निकाला जो लिफाफे की तरह बंद था और उसमें से कागजात निकालकर पढ़ना शुरू किया

“में विक्रमादित्य सिंह अपनी वसीयत पूरे होशो हवास मे लिख रहा हु जो मेरी मृत्यु के बाद मेरी सम्पत्तियों के वारिसों का निर्धारण करेगी और परिवार के सदस्यों के अधिकार व दायित्व को भी निश्चित करेगी......

मेरी संपत्ति मे पहला विवरण मेरे दादाजी श्री रुद्र प्रताप सिंह जी की संपत्ति है जिसका विवरण अनुसूची 1 में संलग्न है.....मेरे दादा की संपत्ति संयुक्त हिन्दू पारिवारिक संपत्ति है.... जिसमें परिवार का प्रत्येक सदस्य हिस्सेदार है लेकिन वो संपत्ति परिवार के मुखिया के नाम ही है...और उसका बंटवारा नहीं होगा.... उस संपत्ति को परिवार का मुखिया ही पूरी तरह से देखभाल और व्यवस्था करेगा.... यदि परिवार का कोई सदस्य अपना हिस्सा लेना चाहे तो उसे उसके हिस्से की संपत्ति की कीमत देकर परिवार से अलग कर दिया जाएगा....... मेरे दादाजी के बाद इस संपत्ति के मुखिया मेरे पिता श्री गजराज सिंह थे लेकिन उनकी मृत्यु हो जाने के पश्चात और उनके मँझले भाई श्री बलराज सिंह के परिवार से निकाल दिये जाने तथा उनके छोटे भाई श्री देवराज सिंह के परिवार से अलग हो जाने के कारण में इस संयुक्त परिवार का मुखिया हूँ.... मेरे बाद इस संपत्ति का मुखिया प्रबल प्रताप सिंह को माना जएगा....और संपत्ति में मोहिनी देवी, रागिनी सिंह, ऋतु सिंह व प्रबल प्रताप सिंह बराबर के हिस्सेदार होंगे..... लेकिन प्रबल प्रताप सिंह का विवाह होने तक उनके हर निर्णय पर मोहिनी देवी की लिखित स्वीकृति आवश्यक है.... वो मोहिनी देवी की सहमति के बिना कोई फैसला नहीं ले सकते

मेरी दूसरी संपत्ति मेरे नाना श्री भानु प्रताप सिंह की है जिनकी एकमात्र वारिस मेरी माँ कामिनी देवी थीं लेकिन उनके कई वर्षों से लापता होने के कारण में उस संपत्ति का एकमात्र वारिस हूँ..... ये संपत्ति में मेरी मृत्यु के बाद रागिनी सिंह, ऋतु सिंह और अनुराधा सिंह तीनों बराबर की हिस्सेदार होंगी लेकिन ये संपत्ति ऋतु और अनुराधा की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार में रहेगी

मेरी तीसरी संपत्ति मेरे छोटे चाचाजी देवराज सिंह की है जिनको अपनी ननिहाल की संपत्ति विरासत मे मिली और उनके द्वारा गोद लिए जाने के कारण मुझे विरासत मे मिली.... ये संपत्ति अनुराधा और प्रबल को आधी-आधी मिलेगी लेकिन इन दोनों की शादी होने तक रागिनी सिंह के अधिकार मे रहेगी.....

और अंतिम महत्वपूर्ण बात................

रागिनी सिंह देवराज सिंह की पत्नी नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल देवराज सिंह या रागिनी के बच्चे नहीं हैं

अनुराधा और प्रबल आपस मे भाई बहन भी नहीं हैं

लेकिन रागिनी की याददस्त चले जाने और अनुराधा व प्रबल दोनों को बचपन से इस रूप मे पालने की वजह से इन तीनों को ये जानकारी नहीं है.... लेकिन में इस दुनिया से जाते हुये इनको उस भ्रम मे छोडकर नहीं जा सकता, जो इनकी सुरक्षा के लिए मेंने इनके दिमाग मे बैठकर एक परिवार जैसा बना दिया था..... इन तीनों के लिए अलग अलग लिफाफे दे रहा हूँ.... जिनमें इनके बारे में जितना मुझे पता है... उतनी जानकारी मिल जाएगी.... ये चाहें तो इन लिफाफों मे लिखी जानकारियाँ किसी को दें या न दें.... अगर ये किसी तरह अपने असली परिवार को ढूंढ लेते हैं तो भी इनके अधिकार और शर्तों मे कोई बदलाव नहीं आयेगा”

ये कहते हुये अभय ने रागिनी, अनुराधा और प्रबल को उनके नाम लिखे हुये लिफाफे फोंल्डर में से निकालकर दिये...........

लेकिन इस वसीयत के इस आखिरी भाग ने सभी को हैरान कर दिया और उसमें सबसे ज्यादा उलझन रागिनी, अनुराधा और प्रबल को थी..... क्योंकि उन तीनों की तो पहचान ही खो गयी..... लेकिन अचानक रागिनी को कुछ याद आया तो उसने अभय से कहा

“तुम तो मेरे और विक्रम के साथ कॉलेज मे पढ़ते थे... तो तुम्हें तो मेरे बारे में पता होगा?” और उम्मीद भरी नज़रों से अभय को देखने लगी......

शेष अगले भाग में
Fantastic update
 

amita

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अध्याय 7

बैठक में अभय तो चुपचाप आँख बंद किए लेटा कुछ सोच रहा था या सो रहा हो.... प्रबल अपने हाथ मे लिफाफा लिए उसे यूं ही देखे जा रहा यहा...उदास आँखों से..... बलराज सिंह कहीं खोये से छत की ओर देख रहे थे.... आज के घटनाक्रम और इस वसीयत से खुले राज आज किसी को भी नींद नहीं आने दे रहे थे

तभी अनुराधा ने अंदर को खुलने वाले दरवाजे से बैठक में झाँकते हुये प्रबल को आवाज दी तो सभी पलटकर अनुराधा की ओर देखा

“प्रबल! चल माँ अंदर बुला रही हैं...और ये लिफाफा भी लेता हुआ आ” कहकर अनुराधा अंदर की ओर चल दी । प्रबल ने एक बार अभय और बलराज सिंह पर नज़र डाली और उठकर अनुराधा के पीछे चल दिया दोनों चुपचाप रागिनी के कमरे मे अंदर घुसे और पीछे से अनुराधा ने दरवाजा बंद कर लिया ....अनुराधा जाकर रागिनी के पास बैठ गयी, रागिनी ने प्रबल को अपने पास आने का इशारा किया... प्रबल जैसे ही रागिनी के पास पहुंचा रागिनी ने उसे अपनी बाहों में भर लिया...और माँ बेटे दोनों की ही आँखों से आँसू निकालने लगे....अनुराधा भी उनदोनों को रोते देखकर खुद को रोक नहीं पायी और रागिनी के गले लगकर प्रबल और रागिनी को बाहों में भरकर रोने लगी।

रागिनी ने संभलते हुये दोनों को अपने से अलग किया और एक एक हाथ से उनके आँसू पोंछते हुये उन्हें चुप कराया और बोली “मुझे भी मालूम है की मेंने तुम दोनों को जन्म नहीं दिया लेकिन में ही तुम्हारी माँ थी, हूँ और रहूँगी... मुझे तुमसे कोई अलग नहीं कर सकता बस! एक वादा करो...तुम दोनों कभी मुझे छोडकर नहीं जाओगे।“

“ माँ! आपके अलावा हमारा है ही कौन? और अगर कोई हुआ भी... तब भी में ज़िंदगी भर आपके साथ ही रहूँगा” प्रबल ने रोते हुये कहा

“माँ! मेंने जब से होश सम्हाला है, तब से आपको ही माँ के रूप में जानती हूँ.... हाँ! उस घर में ऊपर की मंजिल पर जो औरत रहती थी वो आपके जाने के बाद मुझे अपने साथ ले गयी थी...उसने कहा था की वो ही मेरी असली माँ है.... लेकिन में उसे नहीं जानती और न ही उसे कभी माँ माना.... फिर जब उसे पुलिस पकड़ कर ले गयी तो विक्रम भैया मुझे हवेली ले आए और कुछ दिन बाद आपको भी ले आए” अनुराधा ने भी कहा “लेकिन अगर वो औरत मेरी माँ है और अब भी वो मुझे मिल जाएगी तो भी में आपके साथ ही रहूँगी”

रागिनी ने फिर प्रबल के हाथ से लिफाफा लेकर उसे खोला और उसमें मौजूद समान बाहर निकाला। एक बेहद खूबसूरत लड़की का फोटो था जिसमे एक आदमी का हाथ उसके कंधे पर रखा हुआ था लेकिन वो फोटो आधा फाड़कर उस आदमी का फोटो हटा दिया गया था। यानि वो फोटो उन दोनों ने पति पत्नी या प्रेमी-प्रेमिका की तरह साथ में खिंचवाया हुआ था.... लेकिन आधा ही फोटो था.... उसे पलटने पर उस पर एक पंक्ति में Unique Ph और दूसरी पंक्ति मे Lal Qi की आधी फटी हुई मोहर लगी हुई थी। इसके अलावा उसमें एक जन्म प्रमाण पत्र था जो दिल्ली के ही एक अस्पताल का था दिनांक 15 जुलाई 2000 का जिसमें बच्चे का लिंग पुरुष था, माँ का नाम नीलोफर जहाँ, पिता का नाम राणा शमशेर अली तथा उमरकोट, सिंध, पाकिस्तान का पता लिखा हुआ था।

इसे पढ़कर तो रागिनी ही नहीं तीनों का ही दिमाग सुन्न हो गया... मतलब ये जन्म प्रमाण पत्र अगर प्रबल का है जो की यहाँ इस लिफाफे मे होने से जाहीर है की प्रबल का ही है.... तो वो तो एक पाकिस्तानी मुस्लिम है... इसके साथ जो फोटो है उसे रागिनी ने गौर से देखा तो उस औरत या लड़की की मांग मे सिंदूर का आभास नहीं हुआ लेकिन सर पर दुपट्टा एक पारिवारिक शादीशुदा औरत की तरह ही लिया हुआ था.... यानि ये औरत प्रबल की माँ हो सकती है.... नीलोफर जहाँ।

कुछ देर तक किसी के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली फिर रागिनी ने ही प्रबल और अनुराधा से कहा “देखो अब हम तीनों के ही लिफाफों में कुछ न कुछ हमारी पिछली ज़िंदगी, हमारे परिवार और हमारी पहचान तक पहुंचाने का रास्ता बताता है... और ये भी लग रहा है इन सब से कि....” रागिनी ने अपनी बात रोक कर दोनों कि ओर देखा और गंभीर स्वर मे बोली “हम सब का अपना-अपना घर-परिवार था या शायद अभी भी है,,,,अब हम उन्हें तलाश करते हैं तो शायद वो हमें दोबारा अपने से अलग न होने दें... तो हम सब को अपनी पिछली ज़िंदगी भूलकर...एक दूसरे को भूलकर अपने अपने घर-परिवार मे रम जाना है........... या....... हम इन सब बातों को भूलकर जैसे जी रहे थे वैसे ही जीते रहें.... पहले हम में से किसी का कुछ भी नहीं था यहाँ... सबकुछ विक्रम का था और उसी के सहारे हम थे.... हालांकि हमें ये बात पता नहीं थी.... लेकिन सच यही था........फिर भी हमें सबकुछ अपना सा लगता था........ आज विक्रम को छोडकर, हमारे पास सबकुछ है.... घर-मकान, जमीन-जायदाद लेकिन फिर भी हमें कुछ भी अपना नहीं लग रहा.............. अब फैसला तुम दोनों के ऊपर है कि क्या करना है?”

रागिनी के चुप होने के बाद प्रबल ने कहा “माँ! हम कभी एक दूसरे से अलग होकर नहीं रह सकते.... इन लिफाफों मे जो कुछ भी है... एक बार उसका भी पता करेंगे लेकिन अपनी पहचान छुपाकर....लेकिन अभी विक्रम भैया की तेरहवीं तक इस बारे में हमें कुछ नहीं करना और उनकी आत्मा कि शांति के लिए 15 दिन यहीं रहना है....उसके बाद सोचेंगे”

“और माँ! इस बारे में हमें किसी से कोई बात नहीं करनी.... न कोई भी जानकारी देनी, कि इन लिफाफों मे क्या था या हम अब क्या करेंगे या कहाँ रहेंगे.......” अनुराधा ने भी कहा “अब हमें सोना चाहिए ....ज्यादा देर ऐसे इकट्ठे रहने से भी इन सबकी नज़र में हमारी स्थिति संदेहजनक हो जाएगी.... क्योंकि विक्रम भैया ने ये बताकर कि हमारा इस परिवार से कोई संबंध नहीं...फिर भी बहुत कुछ हमारे नाम कर दिया है...लगभग अपना सबकुछ”

रागिनी ने भी दोनों को जाने को कहा और स्वयं भी बिस्तर पर लेट गई

.....................................................

इधर प्रबल के जाते ही बलराज सिंह ने अभय की ओर देखा, उसकी आँखें बंद थी...पता नहीं सो रहा था या जाग रहा था.... कुछ देर उसको देखते रहने के बाद बलराज सिंह ने कुछ सोचा और उठकर अंदर रागिनी के कमरे के बाहर पहुंचे...उन्होने प्रबल और अनुराधा को बैठक के दरवाजे से ही रागिनी के कमरे मे जाते हुये और कमरे का दरवाजा बंद होते देख लिया था।

वो दरवाजे के बाहर जाकर खड़े ही हुये थे की मोहिनी अपने कमरे के दरवाजे पर नज़र आयी और उसने उनको इशारे से बुलाया। बलराज सिंह चुपचाप उसके पीछे पीछे उसके कमरे मे चले गए....

“आपको उनकी बातें सुनने की क्या जरूरत थी...???” अंदर आते ही मोहिनी देवी ने दरवाजा बंद करते हुये कहा

“मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था की ये लोग कौन हैं और विक्रम इनके लिए इतना कुछ क्यों कर रहा था....अब भी कर गया?” बलराज सिंह ने कहा

“क्या आप इनको नहीं जानते?” मोहिनी देवी ने उन्हें घूरते हुये कहा

“में कैसे जानूँगा?” बलराज सिंह ने असमंजस में उल्टा सवाल किया

“रागिनी को भी नहीं?” मोहिनी देवी ने भी सवाल का जवाब सवाल से ही दिया और गौर से उनके चेहरे की ओर देखने लगी। ये सवाल सुनते ही बलराज सिंह का चेहरा सफ़ेद पड गया और उनके मुंह से कोई आवाज नहीं निकली तो मोहिनी देवी ने आगे कहा “रागिनी को जब में देखते ही पहचान गयी तो आपने कैसे नहीं पहचाना होगा...... आखिर आप तो विमला के पास बहुत आते जाते रहे हैं.... मेंने तो सिर्फ अखबार में ही पढ़ा और फोटो देखा था.... फिर भी रागिनी को देखते ही में रागिनी और अनुराधा दोनों को पहचान गयी”

बलराज सिंह बिना कुछ कहे दरवाजा खोलकर वापस बैठक में लौटे और अपने बिस्तर पर लेट गए।

...........................................................

इधर ऋतु भी अपने कमरे में जाकर लेती ही थी की उसे दरवाजा खुलने और बंद होने की आवाज आयी... उसने अपने दरवाजे से झाँककर देखा तो रागिनी के कमरे का दरवाजा बंद होता दिखा.... वो वापस आकर बिस्तर पर लेट गयी.... थोड़ी देर बाद फिर से वैसी आवाज आयी और बैठक की ओर जाते और वापस आते कदमो की आहट सुनी तो वो फिर अपने दरवाजे के करीब आयी.... रागिनी का दरवाजा बंद होते ही वो वापस लौटने को हुयी कि उसे बलराज सिंह रागिनी के कमरे कि ओर आते दिखे फिर मोहिनी देवी अपने दरवाजे पर....बलराज सिंह के बैठक मे जाते ही फिर से रागिनी का दरवाजा खुला तो वो निकल कर बाहर आ गयी और प्रबल को बैठक कि ओर जाते तथा अनुराधा को अपने कमरे मे जाते देखने लगी.... उसने उनसे कुछ नहीं कहा और न ही वो दोनों कुछ बोले उधर मोहिनी देवी भी चुपचाप अपने दरवाजे पर खड़ी हुई सभी को देखती रही

“ऋतु अब बहुत रात हो गयी है ....सो जाओ” इतना कहकर मोहिनी देवी ने अपना दरवाजा बंद कर लिया

....................................................

सुबह उठकर अभय दिल्ली वापस चला गया और बाकी सब गाँव में ही रुके रहे... शाम को सुरेश भी गाँव में अपने घर पहुंचा और सुरेश सुरेश के माता-पिता और पूनम बलराज सिंह के घर पहुंचे....

पूनम मोहिनी देवी से मिलने के बाद रागिनी से कुछ अलग होकर मिली तो रागिनी ने उसे अपने कमरे में चलने को कहा। कमरे में पहुँचकर रागिनी ने पूनम से अपने अतीत के बारे में पूंछा तो पूनम ने बताया कि वो विक्रम के साथ ही कॉलेज में पढ़ती थी और उसकी शादी भी विक्रम ने ही अपने परिवार के चचेरे भाई सुरेश से करा दी थी...सुरेश भी उसी कॉलेज में विक्रम के साथ ही पढ़ता था...लेकिन रागिनी से उन दोनों कि ही कोई पहचान नहीं थी.... वो रागिनी को विक्रम के द्वारा ही जानते थे.... रागिनी को कोई विशेष जानकारी नहीं मिली।

धीरे-धीरे विक्रम कि तेरहवीं का दिन भी आ गया तब दिल्ली से अभय के साथ श्रीगंगानगर पुलिस से इंस्पेक्टर राम नरेश यादव भी साथ आए... चूंकि मामला एक व्यक्ति की अज्ञात कारणों से मौत का था तो उन्होने परिवार के सभी सदस्यों से विक्रम के बारे में पूंछताछ की.... लेकिन कोई खास जानकारी नहीं मिल सकी.... फिर भी उन्होने वसीयत कि एक कॉपी पुलिस रेकॉर्ड के लिए ले ली और वापस लत गए। अगले दिन अभय ने ऋतु को भी साथ जाने के लिए कहा तो बलराज सिंह ने मोहिनी को भी साथ भेज दिया,,, इधर पूनम को रागिनी ने रुकने के लिए बोला तो उसने सुरेश को कोटा वापस भेज दिया। अब रागिनी ही नहीं अनुराधा और प्रबल भी आगे क्या करना है और कहाँ जाना है.... इस उलझन का समाधान खोजने में लगे हुये थे...रागिनी ने रात को पूनम को अपने घर रुकने को बोला तो उसने अपने सास ससुर से बात करके रुकने कि सहमति दे दी....

मित्रो आज इतना ही............. अब देखते हैं रात को इनका क्या निर्णय होता है और क्या मोड आएंगे इनकी ज़िंदगी में उस निर्णय से...........
Shaandar update.
 

Naina

Nain11ster creation... a monter in me
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पात्र परिचय ---- संदर्भ वर्ष 2019

कथा नायक : राणा रविन्द्र प्रताप सिंह उम्र 44 वर्ष

दादा जी का परिवार

रुद्र प्रताप सिंह - बाबा (दादा जी) 40 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

निर्मला देवी - दादी जी 7 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

जयराज सिंह - पिता 19 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

विजयराज सिंह - बड़े चाचा 2 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

गजराज सिंह - दूसरे चाचा 11 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

विमला देवी - बड़ी बुआ 19 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

कमला देवी - छोटी बुआ 37 वर्ष पहले मृत्यु हो गयी

बलराज सिंह - तीसरे चाचा उम्र 61 वर्ष

देवराज सिंह - छोटे चाचा उम्र 52 वर्ष

जयराज सिंह का परिवार :

बेला देवी - पहली पत्नी उम्र 70 वर्ष

वीरेंद्र सिंह - बेला देवी के इकलौते बेटे उम्र 47 वर्ष

वसुंधरा सिंह - दूसरी पत्नी उम्र लगभग 70 वर्ष

राणा रविन्द्र प्रताप सिंह - वसुंधरा सिंह का बड़ा बेटा

रुक्मिणी सिंह - वसुंधरा सिंह की बेटी

धीरेंद्र प्रताप सिंह - वसुंधरा सिंह का छोटा बेटा

विजयराज सिंह का परिवार :

कामिनी सिंह - पहली पत्नी 35 वर्ष पहले मृत्यु

रागिनी सिंह - कामिनी की पुत्री उम्र लगभग 50 वर्ष

विक्रमादित्य सिंह - कामिनी का पुत्र उम्र लगभग 43 वर्ष

शांति देवी - दूसरी पत्नी उम्र लगभग 40 वर्ष

अनुभूति सिंह - शांति देवी की पुत्री उम्र लगभग 18 वर्ष

गजराज सिंह के परिवार का विवरण :

मोहिनी सिंह - पत्नी उम्र लगभग 48 वर्ष

ऋतु सिंह - इकलौती बेटी उम्र 27 वर्ष

बलराज सिंह - अविवाहित

देवराज सिंह के परिवार का विवरण :

स्नेहलता - पत्नी

सहदेव - पुत्र

कामना - पुत्री

विमला देवी के परिवार का विवरण :

विजय सिंह - पति उम्र लगभग 80 वर्ष

वंदना - सौतेली बेटी उम्र लगभग 47 वर्ष

हेमा - बेटी-1 उम्र 41 वर्ष

जया - बेटी-2 उम्र 39 वर्ष

ज्योति - बेटी-3 मृत्यु 18 वर्ष पहले

दीपक - बेटा उम्र 37 वर्ष

कुलदीप - बेटा-2 उम्र 36 वर्ष

प्रदीप - बेटा-3 मृत्यु 18 वर्ष पहले

कमला देवी के परिवार का विवरण :

रणवीर सिंह - पति

दादी जी के मायके का परिवार

शम्भूनाथ सिंह - निर्मला देवी के पिता मृत्यु लगभग 50 वर्ष पहले

जयदेवी - निर्मला देवी की माँ मृत्यु लगभग 45 वर्ष पहले

सुमित्रा देवी - निर्मला की छोटी बहन मृत्यु 3 वर्ष पहले

माया देवी - निर्मला की दूसरी छोटी बहन मृत्यु लगभग 50 वर्ष पहले

शम्भूनाथ सिंह की जायदाद के एकमात्र वारिस

जयराज सिंह व विजयराज सिंह - पुत्र निर्मला देवी एवं रूद्र प्रताप सिंह

वर्तमान में कहानी में मौजूद पात्रों के परिवार का परिचय साथ-साथ आता रहेगा
जैसे :-
राणा रविन्द्र प्रताप सिंह का परिवार
विक्रमादित्य सिंह का परिवार
एवं अन्य इनके समकालीन

फिर भी यदि किसी को कोई परेशानी हो समझने में तो............. बेझिझक प्रश्न करें
:eek: Nahhiiiiiii........ arre ye kamdev ji... raginee ji ko raginee aunty bana diya :eek:

:cry: :cry:
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
78,222
113,743
354
अध्याय 25

इधर अनुराधा के ऊपर जाने के बाद रागिनी ने ऋतु को साथ लिया और अपने कमरे में आकर पलंग पर बैठ गयी।

“क्या सोचा है ऋतु... उस समय में सबके सामने इस कंपनी को लेकर कोई बात नहीं करना चाहती थी.... अगर कोई ऐसी कंपनी है जिसमें हमारे पूरे परिवार की हिस्सेदारी है... तो उसे चला कौन रहा है... ये तुम्हें पता लगाना होगा.......और सबसे बड़ा सवाल ये है की अब तक पूरे घर में अकेला विक्रम ही ऐसा था जो सबसे जुड़ा हुआ था... तो उसकी मौत पर बाकी कोई क्यों नहीं आया.... यहाँ तक की न तो कंपनी से कोई आया और न ही शांति को किसी ने खबर दी... जबकि होना तो ये चाहिए कि जब राणा जी कि सारी संपत्तियाँ और अधिकार विक्रम के पास हैं तो कंपनी भी विक्रम ही चला रहा होगा... और कंपनी के पास पूरी डिटेल्स भी होंगी कि कौन कौन हैं परिवार में हैं और कहाँ हैं.... क्योंकि उन सबको कंपनी पैसा भेजती होगी...................और ये बड़े ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह जिंदा भी हैं या नहीं, हैं तो कहाँ हैं, इनका परिवार कहाँ है, इनके और भाई बहन भी होंगे.............. लेकिन कमाल है.......... जो परिवार का मुखिया है...........उसी का कोई अता-पता नहीं... यहाँ तक कि बड़े ताऊजी से जुड़ी किसी भी बात का कहीं कोई जिक्र ही नहीं.................. मोहिनी चाची भी बहुत कुछ जानती हैं...... लेकिन उन्होने हमें तो छोड़ो कभी तुम्हें भी किसी बात कि भनक नहीं लगने दी।”

“दीदी...दीदी...दीदी... इतना भी मत सोचो.... अभी कल ही तो अप कह रहीं थीं की सबकुछ भूलकर हम सब को नए सिरे से शुरुआत करनी है.............और अब फिर से आप इन्हीं उलझनों में डूबती जा रही हो” ऋतु ने भी रागिनी के दूसरे हाथ को अपने हाथ में पकड़ा और प्यार से उसके माथे को चूमते हुये कहा

“एक उलझन खत्म होती है तो दूसरी शुरू हो जाती है.......अब देख लो तुम्हारे ताऊजी यानि मेरे पिताजी का एक और नया कारनामा शुरू हो गया... मुझे तो ये समझ नहीं आता कि हमारे घर में हमसे बड़े-बड़े सभी ऐसे ही थे क्या.... बलराज चाचाजी के कारनामे सुधा ने सुनाये ही.... गजराज चचाजी का कुछ पता नहीं... और अब ये जयराज ताऊजी .... इंका कोई कारनामा तो सामने नहीं आया है... लेकिन इनके बेटे राणाजी का वजूद तो विक्रम से भी ज्यादा जबर्दस्त था घर में.... लेकिन घर के मुखिया होते हुये भी उनका कोई अता-पता नामो-निशान ही नहीं कि वो आखिर कहाँ गायब हो गए.... उनके कोई और भाई-बहन थे या नहीं, उनकी शादी भी हुई या नहीं... अगर हुई तो उनकी पत्नी बाल-बच्चे सब कहाँ हैं........” रागिनी ने कहा

“दीदी एक बात आप भूल रही हैं?” ऋतु ने मुसकुराते हुये कहा

“क्या?” रागिनी ने आश्चर्य से पूंछा

“बड़े ताऊजी का भी एक कारनामा सामने आ चुका है, .... उनका अपनी पहली पत्नी से संबंध विच्छेद हो गया था और उन्होने दूसरी शादी भी कि थी... और उनकी दूसरी पत्नी के एक बेटी भी हुई थी 14 अगस्त 1979 को.... अब ये नहीं पता कि उनकी पहली पत्नी के कोई संतान थी या नहीं... और ये राणाजी भाई साहब पहली ताईजी के बेटे हैं या दूसरी के....

दीदी सवाल बहुत से हैं लेकिन जवाब हमें खुद ही ढूँढने होंगे........हर सवाल के.... इसलिए आप अभी निश्चिंत होकर सो जाओ.... में भी सो रही हूँ और कल सुबह से इन सबके बारे में पता लगाने के बारे में सोचते हैं” ऋतु ने कहा तो रागिनी भी अनमने मन से बिस्तर पर लेट गयी और ऋतु भी उसके बराबर में ही लेटकर सोने कि तैयारी करने लगी

...........................................

सुबह उठकर सभी ने सामान्य तरीके से अपनी दिनचर्या में लग गए। अनुराधा और प्रबल को कॉलेज जाना था तो वो दोनों तैयार होने लगे, इधर अनुभूति भी ऊपर अपने कमरे में तयार हो रही थी...उसे भी स्कूल जाना था। शांति को रागिनी ने सुबह ही नीचे बुला लिया था और अब वो दोनों मिलकर रसोईघर में बच्चों के लिए नाश्ता तैयार करने लगीं... थोड़ी देर बाद ऊपर से अनुभूति अपना बैग लेकर स्कूल ड्रेस में तैयार होकर आ गयी... उसने देखा की हॉल में कोई नहीं है तो वो अपना बैग वहीं रखकर रसोईघर में पहुंची और रागिनी को नमस्ते किया

“आंटी नमस्ते” उसकी आवाज सुनते ही रागिनी ने पलटकर देखा तो अनुभूति दरवाजे में खड़ी रागिनी को ही देख रही थी

“आंटी! माँ आप देख रही हैं... सबकुछ जानकर भी ये मुझे आंटी ही कह रही है” रागिनी ने शांति से कहा

“अब आपने जैसे मुझे जो कहा वो मानना ही पड़ा... ऐसे ही उसे भी आप समझा ही लेंगी” शांति ने मुसकुराते हुये रागिनी और अनुभूति की ओर देखकर कहा

“देखो माँ... मेंने आपसे कुछ गलत तो नहीं कहा.... जब आपने मेरे पिताजी से बकायदा शादी की है तो फिर आप मेरी माँ ही हुई ना.... लेकिन अब भी आप मेरी पूरी बात नहीं मान रहीं.... आप मुझे आप नहीं तुम कहकर बुलाया करो” रागिनी ने शांति से कहा और फिर अनुभूति की ओर देखकर बोली “सुन छोटी तेरे और मेरे पिताजी एक हैं.... तेरी माँ को में माँ कहती हूँ... तो में तेरी क्या हुई...क्या कहेगी तू मुझसे”

“जी... जी आप मेरी दीदी हैं...और में आपको दीदी कहूँगी” अनुभूति ने हड्बड़ाते हुए कहा तो रागिनी मुस्कुरा गयी तभी किसी ने पीछे से आकार अनुभूति को अपनी बाहों में भर लिया तो वो चौंक गयी

“अरे बुआ जी आप डर क्यों रही हैं... में हूँ ना...आपके साथ...हमेशा” अनुराधा ने अनुभूति को अपनी ओर घुमाते हुये कहा

“माँ! जल्दी से नाश्ता लगा दो... में और प्रबल छोटी बुआजी को स्कूल छोडते हुये कॉलेज निकल जाएंगे” अनुराधा ने अनुभूति की ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा

“नाश्ता तो लगा रही हूँ में........ ऋतु कहाँ है........सुबह से वो कमरे से ही नहीं निकली उसे भी बुला लो.........वो भी नाश्ता कर लेगी” रागिनी ने अनुराधा से कहा तो वो पलटकर रागिनी के कमरे की ओर चली गयी, अनुभूति भी बाहर हॉल में पहुंची तो वहाँ प्रबल पहले ही बैठा हुआ था... अनुभूति दूसरे सोफ़े पर प्रबल के सामने जाकर बैठ गयी....दोनों एक दूसरे को चोरी-चोरी नजरें झुकाये तिरछी नजरों से देख तो रहे थे लेकिन एक दूसरे से बात करने की हिम्मत नहीं कर प रहे थे

“लाली! तू यहाँ कैसे? और देख ये मेरा बॉयफ्रेंड है..... इस पर नजर मत डाल, वरना मुझे जानती है” उन दोनों की आँख मिचोली चल ही रही थी की वहाँ एक नई आवाज गूंजी तो दोनों जैसे होश में आए और हड्बड़ाकर दरवाजे की ओर देखा तो वहाँ से अनुपमा अंदर आती दिखाई दी...अंदर आकर वो सोफ़े पर अनुभूति के पास ही बैठ गयी

“नन...नहीं दीदी ऐसी कोई बात नहीं...” अनुभूति सिर्फ इतना ही बोल पायी डरे हुये चेहरे से

“अनु ये फालतू की बातें मत किया कर... हर समय तेरे दिमाग में यही भरा रहता है........ ये मेरी बुआ जी हैं....... विक्रम भैया की बहन....” प्रबल ने अनुपमा से कहा तो वो ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी

“विक्रम भैया.......... हा हा हा और अब उनकी ये बहन बुआ जी.... हा हा हा हा” अनुपमा ने कहा तो

“अरे पागल वो तो हम बचपन से कहते आए थे इसलिए ये विक्रम कह रहा है...... तुझे तो मालूम ही है... विक्रम चाचाजी या ताऊजी जो भी हों मेरे....... ये उनका बेटा है... और रागिनी बुआ... उनकी बहन हैं..... उनके पिताजी की 2 शादियाँ हुई थी... शांति आंटी की बेटी मेरी और विक्रम की बुआ हुई या नहीं” अनुराधा ने भी अंदर आकर प्रबल के पास बैठते हुये कहा

“मुझे नहीं समझ में आता तेरी फॅमिली का... ये इतने साल से यहाँ रह रहीं थीं तब तो ऐसा कुछ सुनने में नहीं आया....अब रागिनी बुआ के आते ही नए नए राज खुल रहे हैं............ चलो कॉलेज चलते हैं” अनुपमा ने कहा

“अभी बस नाश्ता करके चलेंगे... जाते हुये ही रास्ते में छोटी बुआ जी को भी स्कूल छोडते जाएंगे”

तभी ऋतु, रागिनी और शांति भी नाश्ता लेकर आ गईं तो सबने वहीं हॉल में बैठकर नाश्ता किया और अनुराधा सबको गाड़ी में बैठकर निकाल गयी

...................................

अनुराधा, अनुपमा, अनुभूति और प्रबल के जाने के बाद रागिनी ने ऋतु से पूंछा की वो अब क्या और कैसे करेगी तो ऋतु ने बताया कि वो सुबह सॉकर उठने के बाद से ही बिस्तर पर पड़ी इंटरनेट पर इन सब चीजों को ढूंढ रही थी और उसने पवन से भी बात की है....

“दीदी ये राणाआरपीसिंह सिंडीकेट बहुत सारी कंपनियों का समूह है...होल्डिंग कंपनी..... इस कंपनी के सीईओ का नाम रणविजय सत्यम है जो वास्तव में कंपनी चला रहे हैं... कंपनी के एमडी विक्रमादित्य सिंह हैं आज भी और चेयरमैन राणाआरपीसिंह हैं, कंपनी के पंजीकृत कार्यालय का पता सुनकर आप चौंक जाएंगी” ऋतु ने बताया

“कहाँ पर है... कोटा हवेली का या गाँव का” रागिनी ने बिना किसी उत्सुकता के शांत भाव से पूंछा

“गाँव का, और मुख्य कार्यालय या संचालन कार्यालय यहीं दिल्ली का है.... गुरुग्राम-महरौली मार्ग पर दिल्ली-हरियाणा सीमा पर आया नगर में....... में यही तो कहती हूँ... मेंने बेशक वकालत पढ़ी है और वकालत कर रही हूँ... लेकिन किसी भी मामले में आप मुझसे जल्दी समझ लेती हैं कि क्या हो सकता है” ऋतु ने मुसकुराते हुये कहा

“और पवन से क्या बात हुई?” रागिनी ने पूंछा

“पवन अभी कुछ देर में आ रहा है में उसके साथ जाऊँगी.... जो, काम के लिए उसे बोला था उसी सिलसिले में कहीं बात करने जाना है... पहले तो घर जाकर अपनी गाड़ी लेकर आती हूँ... क्योंकि एक गाड़ी तो बच्चों को स्कूल-कॉलेज जाने के लिए ही चाहिए, एक आपके और शांति ताईजी के लिए और एक मुझे” ऋतु ने अपना दिन का कार्यक्रम बताया

“ठीक है... लेकिन वहाँ चाचाजी-चाचीजी से कुछ कहना-सुनना मत... वैसे चाहे रहने ही दो उनसे गाड़ी मत लाओ... जरूरत होगी तो एक गाड़ी कोटा से ही और मंगा लेंगे, वहाँ अभी 3 गाडियाँ खड़ी हैं... सुरेश पूनम तो 1-2 गाड़ी ही इस्तेमाल करते होंगे” रागिनी ने जवाब दिया

“नहीं दीदी... ऐसी कोई बात नहीं... गाड़ी के लिए वो कुछ नहीं कहेंगे...” ऋतु ने कहा और तैयार होने चली गयी

...............................................

“पवन! ये तो काफी बड़ी रिटेल चेन है दिल्ली एनसीआर की इसकी फ्रेंचाइजी लेकर हमें पब्लिसिटी या मार्केटिंग करने की जरूरत भी नहीं... इसके तो नाम से ग्राहक खुद चलकर आयेगा और ऑनलाइन भी ऑर्डर आते हैं” ऋतु ने रिटेल स्वराज का बोर्ड देखकर कहा

पवन और ऋतु पहले तो घर से बलराज सिंह के घर गए पवन की बुलेट से फिर वहाँ से ऋतु की कार लेकर ग्रेटर नोएडा में रिटेल स्वराज नाम की कंपनी के ऑफिस गए उनका स्टोर अपने इलाके में शुरू करने की बात करने

घर पहुँचने पर बलराज सिंह और मोहिनी दोनों ने सामान्य तरीके से बात की, मोहिनी चाय बनाने रसोई में गईं तो ऋतु भी रसोई में चली गयी उनके साथ वहाँ मोहिनी ने ऋतु को अपने गले से लगाया और उसके ही नहीं रागिनी, अनुराधा और प्रबल सबके हालचाल लिए। फिर चाय पीकर ऋतु अपनी कार लेकर पवन के साथ ग्रेटर नोएडा चली आयी। पवन की बुलेट वहीं बलराज सिंह के घर छोड़ दी। जब ऋतु मोहिनी के साथ रसोई में थी तो बलराज सिंह ने पवन के साथ बात की और उसके बारे में जानकारी ली।

“मेम! आप अपना बैंक खाता संख्या दे दीजिये और यहाँ हस्ताक्षर कर दें” ऋतु और पवन वहाँ सारी बात करने के बाद जमानत राशि का बैंक हस्तांतरण करके उनके द्वारा अथॉरिटी लेटर मिलने की प्रतीक्षा कर रहे थे तभी एक लड़की ने आकर उनसे कहा

“मेंने सारी जानकारी आपके आवेदन पत्र पर दे दी है... वैसे मेरे बैंक खाते की जानकारी आप क्यों मांग रही हैं...” ऋतु ने कहा

“मेम इस बारे में बात करने के लिए आपको हमारी रिलेशनशिप मैनेजर जिनसे आपकी बात हुई है...उन्होने बुलाया है” उस लड़की ने ऋतु से कहा तो ऋतु भी उठकर उसके साथ चल दी, पीछे-पीछे पवन भी

केबिन में ऋतु के अंदर आते ही वहाँ मौजूद रिलेशनशिप मैनेजर उठकर खड़ी हुई और उसने ऋतु को बैठने को कहा, ऋतु और पवन को थोड़ा अजीब लगा... लेकिन वो सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए... उनके पास गयी लड़की ने भी अपने हाथ में मौजूद कागजातों को टेबल पर रख दिया और अपनी मैनेजर के इशारे पर बाहर चली गयी। मैनेजर ने अपनी कुर्सी पर बैठकर उनकी ओर देखा

“सॉरी मेम अपने पहले क्यों नहीं बताया कि आप हमारी पेरेंट कंपनी कि अंशधारक हैं आप कहीं भी और कितने भी स्टोर शुरू करा सकती हैं... आपको कोई जमानत राशि जमा नहीं करनी होगी...आज ही आपके पास कंपनी की फील्ड टीम पहुँच जाएगी उन्हें जगह दिख दें एक सप्ताह के अंदर आपका स्टोर शुरू हो जाएगा...” कहते हुये उसने ऋतु के खाते में जमानत राशि वापस भेजने के लिए एक फॉर्म पर उसके हस्ताक्षर कराये और खाता संख्या लिखकर सिस्टम में अपडेट कर दिया

“आपको किसने बताया की में शेयरहोल्डर हूँ.... मुझे अपनी पेरेंट कंपनी का नाम बताइये?”

“जी ये राणाआरपीसिंह सिंडीकेट की सहायक कंपनी है और आप सिंडीकेट की अंशधारक हैं...आपका आधार नंबर डालते ही हमारे सिस्टम में दिखने लगा....” रिलेशनशिप मैनेजर ने बताया “और आपका मोबाइल नंबर भी अब हमारे सिस्टम में आ चुका है तो किसी भी सहायता के लिए सिर्फ कॉल कर दें”

“ठीक है” बोलकर ऋतु उठकर खड़ी हुई तो वो रिलेशनशिप मैनेजर भी खड़ी हुई और ऋतु से हाथ मिलाया। ऋतु को उसका पहले का व्यवहार और अब का व्यवहार कुछ अलग लगा लेकिन उसने कुछ कहा नहीं और पवन के साथ वहाँ से चली आयी

...........................................................

इधर ऋतु के जाने के बाद रागिनी और शांति ने घर के काम निबटाये और बैठकर आपस में बात करने लगीं... दोनों ने बात करके ये निर्णय लिया कि अब घर में रहने कि व्यवस्था इस तरीके से कि जाए जिससे पूरा परिवार एक दूसरे के संपर्क में रह सके...इसलिए रागिनी और शांति नीचे कि मंजिल पर रहेंगी.... ऋतु को भी नीचे की मंजिल पर ही साथ रखने का सोचा गया.... लेकिन ये फैसला ऋतु को खुद करना था..... दूसरी मंजिल पर 3 कमरे थे जो तीनों बच्चों अनुराधा, प्रबल और अनुभूति को दिये जाएंगे.... और तीसरी मंजिल के 2 कमरे मेहमानों के लिए...

अभी इन दोनों में बातें चल ही रही थीं कि बाहर एक गाड़ी रुकने कि आवाज आयी दोनों ने दरवाजे पर कोई आहात होने का इंतज़ार किया लेकिन कुछ देर में गाड़ी के दरवाजे खुलने और बंद होने, फिर गाड़ी के वापस जाने की आवाज आयी तो उन्होने सोचा कि शायद कोई आस-पड़ोस में आया होगा इसलिए ज्यादा गौर नहीं किया लेकिन जब उनके गेट पर से घंटी बजाई गयी तो शांति और रागिनी दोनों उठकर खड़ी हुईं और पर पहुँचीं। वहाँ मोहिनी खड़ी हुई थीं... शांति ने गेट खोला और मोहिनी को अंदर आने का रास्ता दिया, मोहिनी के अंदर आने के बाद गेट बंद करके तीनों हॉल में आ गईं। अब तक न मोहिनी ने कुछ कहा और न ही इन दोनों ने ही उनसे कुछ कहा।

“में शांति जी और तुमसे कुछ बात करना चाहती हूँ इसीलिए यहाँ आयी हूँ” मोहिनी ने रागिनी से कहा

“वैसे तो में ये चाहती हूँ कि जो भी बात आप कहना चाहती हैं वो सबके सामने हो... ऋतु, अनुराधा और प्रबल अब बच्चे नहीं रहे और अनुभूति भी इतनी छोटी नहीं कि वो हमारी बातों को समझ न सके वो भी मौजूद रहेगी.... लेकिन अभी इन सभी के आने में समय है तो तब तक हम आपस में बात कर लेते हैं” रागिनी ने कहा

“कोई जल्दबाज़ी नहीं है.... में आज तुम सब के साथ ही रहूँगी जब तक बात पूरी नहीं हो जाती.... चाहे रात तक ही क्यों ना रुकना पड़े...लेकिन एक बात में बच्चों के आने से पहले ही अप दोनों को बताना चाहती हूँ जिसको सुनकर शायद आप दोनों के ही मन में कुछ अलग सा महसूस होगा” मोहिनी ने दोनों को देखते हुये कहा

“कोई बात नहीं... अभी में कुछ खाने-पीने को लाती हूँ....आप क्या लेंगी चाय या कॉफी?” रागिनी ने सोफ़े से उठते हुये कहा

“में दिल्ली में बेशक रहती हूँ... लेकिन मेरा जन्म भी गाँव में हुआ और गाँव में रही भी हूँ... तो कॉफी पीने कि आदत नहीं... चाय ही पीती हूँ” कहते हुये मोहिनी मुस्कुरा दीं तो रागिनी रसोईघर कि ओर चली गयी और थोड़ी देर बाद चाय लेकर आ गयी

“हाँ! अब बताइये चाचीजी क्या कह रहीं थीं आप” रागिनी ने मोहिनी से पूंछा

“पहल बात तो तुम जयराज भाई साहब की बेटी नहीं हो बल्कि उनसे छोटे विजयराज भाई साहब की बेटी हो” रागिनी की ओर देखते हुये मोहिनी ने कहा

“मुझे पता है” मोहिनी के अंदाजे के बिलकुल विपरीत रागिनी ने शांत भाव से मुसकुराते हुये कहा

“दूसरी बात.... शांति जी... विजयराज भाई साहब कि दूसरी पत्नी हैं.... यानि तुम्हारी सौतेली माँ और अनुभूति तुम्हारी सौतेली बहन है” मोहिनी ने रागिनी कि प्रतिक्रिया पर अपनी उत्सुकता दबाते हुये दूसरा धमाका किया हालांकि पहले सवाल पर ही रागिनी कि प्रतिक्रिया से उनके मन में बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुये थे जिंका जवाब पाने के लिए वो बेचैन थीं

“ये भी मुझे पता है...और माँ को भी सब पता है.... अब आप अगर तीसरी बात भी वो बताना चाहती हैं जो में सोच रही हूँ तो मुझे ये भी पता है कि .......... विक्रम मेरा सगा भाई था” रागिनी ने मोहिनी कि मनोदशा को देखते हुये अपनी ओर से और एक वार किया

“चलो अच्छा हुआ तुम दोनों को एक दूसरे के बारे में सबकुछ पता चल गया.... लेकिन ऐसा हुआ कैसे” अब मोहिनी से अपनी उत्सुकता छिपाई नहीं गयी तो उन्होने आखिरकार सवाल कर ही दिया

“आपने तो सबकुछ जानते हुये भी छुपाने और हमें गुमराह करने की पूरी कोशिश कि लेकिन फिर भी सच्चाई किसी न किसी तरह सामने आ ही गयी” कहते हुये रागिनी ने इन सारी बातों के सामने आने का बताया कि कैसे उन सब को ये पता चला

“लेकिन आपने अभी तक ये तो बाते ही नहीं कि राणा रविन्द्र प्रताप सिंह कौन हैं और कहाँ हैं?” ये तीनों अभी आपस में बात कर ही रहीं थीं कि पीछे से आयी आवाज ने उन्हें चोंका दिया

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Waaah kya baat hai kamdev bhai, Ek ke baad ek khulaase ho rahe hain magar majaal hai ki RAAZ ka the end ho sake. Khair ab ye mohini kis maksad se yaha aayi hai.?? Khud to kuch bataya nahi tha aur ab jab usne ye jana ki ragini ko bahut kuch pata chal gaya hai to uski utsukta ye janne ke liye badh gayi ki use ye sab kaise pata.??? :hehe:

Har din har pal rishte badal rahe hain, jaise ye rishte nahi hain balki pahanne wale kapde hain. Kal jo aunty bani hoti hai wo aaj maa ya bua ban jati hai aur na jane aane wale kal me wo aur kya ban jaye. Kamdev bhai sach kahu to bada hi zabardast raayta fail gaya hai ab. Mujhe to ye nahi samajh aata ki ab bhi ye log ek dusre ki baato ka yakeen kaise kar rahe hain.???? :dazed:

satya kalpana se bahut aage aur bahut vilakshan hota hai.....
kyonki fantassy wo hoti hai jise ham chahe kar na sakein .... lekin soch sakte hain

lekin sachchai to wo ho sakti hai jise ham soch hi nahi pate, fir bhi ho jati hai ya ham kar lete hain

aap is pariwar ke tane bane ko padhkar hi bhramit ho rahe hain....................
mein ise jee raha hoon.... aur pata nahin shayad mere bachchon ko bhi jeena pade....
filhaal to jee hi rahe hain.....................

ye kahani pyar ki hai..............

lekin ye tana baana..............
ise buna hai 2 logon ki hawas aur 2 logon ki bewkoofiyon ne..............
jisne pichhli 2 peedhiyan khatm kar di....
aur meine apni lagbhag saari umr laga di.... ise badalne mein.......... ek musafir ki tarah manjil dar manjil thokrein khata raha
fir bhi mere bachche ............... isi khanabdosh jindgi ko jhel rahe hain

aap khud sochiye ki aaj mere bachchon ko ye nahin malum ki pariwar mein aur kaun-kaun hain, kaise dikhte hain aur kahan rahte hain............. aur yahi haal sabka hai....................koi kisi ko nahin jaanta... na jaanna chahta

ye kahani nahin....................atmkatha likh raha hoon.............. bas pahchan chhupane ke liye .........
jagah, nam aur ghatnaon mein kuchh ferbadal kar diye hain............


meet chubhe shool se, swapn jhare phool se,
lut gayi bahar sab, baag ke babool se............


abhi sabhi paatron ka prichay ek bar fir se de raha hoon jisse ab tak ki kahani ke mukhya patro ka sahi parichay ap sabhi ko samajh aa sake
Yakeenan bahut hi dilchashp hai kamdev bhai, Duniya bahut hi badi hai aur usse bhi badi hain wo cheeze jinki ham kalpana bhi nahi kar sakte. Kadachid ye kahani ya yu kahe ki aapki aatmkatha usi akalpneey cheez ka ek mamuli sa hissa hai,,,,,,,, :dazed:
 

kamdev99008

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Waaah kya baat hai kamdev bhai, Ek ke baad ek khulaase ho rahe hain magar majaal hai ki RAAZ ka the end ho sake. Khair ab ye mohini kis maksad se yaha aayi hai.?? Khud to kuch bataya nahi tha aur ab jab usne ye jana ki ragini ko bahut kuch pata chal gaya hai to uski utsukta ye janne ke liye badh gayi ki use ye sab kaise pata.??? :hehe:

Har din har pal rishte badal rahe hain, jaise ye rishte nahi hain balki pahanne wale kapde hain. Kal jo aunty bani hoti hai wo aaj maa ya bua ban jati hai aur na jane aane wale kal me wo aur kya ban jaye. Kamdev bhai sach kahu to bada hi zabardast raayta fail gaya hai ab. Mujhe to ye nahi samajh aata ki ab bhi ye log ek dusre ki baato ka yakeen kaise kar rahe hain.???? :dazed:


Yakeenan bahut hi dilchashp hai kamdev bhai, Duniya bahut hi badi hai aur usse bhi badi hain wo cheeze jinki ham kalpana bhi nahi kar sakte. Kadachid ye kahani ya yu kahe ki aapki aatmkatha usi akalpneey cheez ka ek mamuli sa hissa hai,,,,,,,, :dazed:
एक कोशिश है..... मन के अंदर दबी हुई आग, धुआँ और राख़ बाहर निकालने की..............
इन्हीं परिस्थितियों ने मुझे एक बेहतरीन पाठक बना दिया
आपको जानकार आश्चर्य होगा कि में स्कूल में 5 साल की उम्र में पढ़ने गया था कक्षा 1 में
और 3 साल कि उम्र से पत्रिकाएँ, उपन्यास पढ़ता आ रहा हूँ..........5 साल की उम्र से हिन्दी अखबार और 8 साल कि उम्र से अङ्ग्रेज़ी अखबार पढ़ रहा हूँ............. हिन्दी, अङ्ग्रेज़ी, उर्दू, संस्कृत, पंजाबी और गुजराती की बहुत सी किताबें पढ़ी....अध्यात्म से लेकर इंजीन्यरिंग तक की..... बस जब मन बहुत बेचैन हो जाता....पढ़ने लगता...जो भी किताब या कागज सामने पड जाए
 

kamdev99008

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:eek: Nahhiiiiiii........ arre ye kamdev ji... raginee ji ko raginee aunty bana diya :eek:

:cry: :cry:
अब जवान बच्चों की माँ.....आंटी ही होंगी ना
:D :D
 
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