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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

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Bhai rat complete nahi kar paya... Humare gaon aur aspas ke kuchh gaon v tahsil/sub-distt town... Ke kuchh advocates gujrat tour par gaye huye the kal wapas aye to police ne unko aur unki families sath hi wapas akar jisse bhi mile unhein bhi with family ghar se uthakar medical checkup ke liye le gaye hain.... Kyonki govt instructions ke mutabik ghar jane ta kisi se milne se pahle un logon ne corona virus ke liye checkup nahi karaya....
Nearabout 350 log uthaye to... Rat kai ghante isi chakkar me ghira raha... Fir so gaya....
It's an emergency... Isliye awareness ke liye priority thi wahan active rahne ki

Aj din me complete karunga
 

Chutiyadr

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अध्याय 22
इधर इन दोनों के घर से निकलने के बाद अनुराधा और अनुपमा आपस में बात करने लगीं तो प्रबल उठकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
“तुम्हें क्या डॉक्टर ने मना किया है....बात करने को?” अनुपमा ने प्रबल को जाते देखकर उससे कहा तो प्रबल पलटकर उसकी ओर देखने लगा
“दीदी आपने मुझसे कुछ कहा क्या?” प्रबल ने अनुपमा से कहा
“मेंने सुबह कॉलेज में भी कहा था ना..... दीदी कहा कर अपनी दीदी को..... मेरा नाम अनुपमा है” अनुपमा ने उसे गुस्से से घूरते हुये उंगली दिखाकर कहा और फिर शर्मीली सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुये बोली “प्यार से तुम मुझे अनु भी कह सकते हो”
“ओए कल्लो...मेरे भाई पर डोरे डालना बंद कर.... प्रबल तू जा आराम कर... यहाँ रहा तो ये तेरा दिमाग खा जाएगी” अनुराधा ने अनुपमा को हड़काते हुये प्रबल से कहा लेकिन प्रबल अनुराधा की बात को अनसुना करते हुये जाकर अनुपमा के पास बैठ गया
“देखो अनु मुझे तो कोई अनुभव है नहीं प्यार के बारे में...इसलिए अगर तुम मुझे सीखा सको कि कैसे प्यार से कहा जाता है... अब से तुम मुझे प्यार से कहना-सुनना सब सिखाओ....जिससे कि में किसी से प्यार से बात कर सकूँ या प्यार की बात कर सकूँ” प्रबल ने मुस्कराते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ही नहीं अनुराधा का भी मुंह खुला का खुला रह गया...दोनों को समझ नहीं आया कि क्या कहा जाए
“चल अब चुप हो जा... तू तो बहुत तेज निकला .... इस कल्लो की बोलती बंद कर दी.... में तो सोचती थी मेरा छोटा भाई कुछ जानता ही नहीं” अनुराधा ने खुद को समहलते हुये कहा... “अच्छा अनु ये बता ये ऊपर वाले फ्लोर पर जो आंटी रहती हैं...उनकी बेटी का नाम भी अनु ही लिया था उन्होने... इनके घर में कौन-कौन हैं?”
“देख राधा यहाँ अनु तो सिर्फ में ही हूँ.... तेरा नाम भी सिर्फ राधा ही लिया जाएगा.... उस लड़की का नाम अनुभूति है लेकिन उसे यहाँ लाली के नाम से बुलाते हैं....आंटी ने तुम लोगों के सामने लाली कहने में संकोच किया होगा इसलिए अनु बोला होगा.... वो दोनों माँ-बेटी को ही मेंने यहाँ देखा है.... बाकी उनके घर में और तो ना किसी को रहते और ना ही किसी को कभी आते-जाते देखा है मेंने... और कमाल कि बात तो ये है कि लाली तो पढ़ती है...हमारे वाले ही स्कूल में... तुम्हारे विक्रम भैया ने ही एड्मिशन कराया था लेकिन वो आंटी हमेशा घर पर ही रहती हैं... ना तो आस-पड़ोस में किसी के पास उठती-बैठती हैं और ना ही कोई काम करती हैं.... पता नहीं इन लोगों कि आमदनी का जरिया क्या है?” अनुपमा ने अपनी बात पूरी कि ही थी कि बाहर के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज हुई।
प्रबल उठकर दरवाजे पर पहुंचा और खोलकर देखा तो दरवाजे पर शांति देवी और उनकी बेटी लाली खड़े हुये थे... प्रबल ने एक ओर हटकर उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया उनको देखकर अनुराधा और अनुपमा भी चुप होकर खड़े हुये और उन्हें दूसरे सोफ़े पर बैठने का इशारा किया.... लाली तो सोफ़े पर जाकर बैठ गयी लेकिन शांति देवी उन दोनों के पास चलकर आयीं और अनुराधा को गले लगा लिया... अनुराधा को अजीब सा लगा...उनका शरीर हलके हलके झटके लेता हुआ लगा तो अनुराधा ने अपना सिर उनकी गार्डन से पीछे खींचते हुये उनके चेहरे की ओर देखा तो उनकी आँखों से आँसू बहते देखकर चौंक गयी और उन्हें साथ लिए हुये सोफ़े पर उनके बराबर बैठ गई
“आंटी आप रो क्यों रही हैं... क्या बात है...प्लीज चुप होकर बताइये” अनुराधा ने कहा
“राधा बेटा में तुम्हारी मौसी हूँ.... ममता दीदी की छोटी बहन... मेंने उस दिन रागिनी दीदी के परिचय देते ही तुमसे मिलने का सोचा.... लेकिन ममता दीदी ने उनके साथ जो किया था...मुझे डर था कहीं वो हमारे बारे में जानते ही इस घर से ना निकाल दें.... में अपनी इस मासूम बच्ची को लेकर कहाँ जाती...” शांति देवी ने रोते हुये ही कहा
“आप मेरी मौसी हो.... मतलब मेरी मम्मी कि छोटी बहन... लेकिन विक्रम भैया ने आपको यहाँ कैसे रखा हुआ था....ओह .... अब समझ में आया... विक्रम भैया को आपके बारे में पता था इसीलिए उन्होने आपको यहाँ रखा हुआ था ..... लेकिन अब आप क्यों बता रही हैं?” अनुराधा ने शांति देवी से कहा
“में विक्रम तक कैसे पहुंची इस बारे में तो में रागिनी दीदी के सामने ही बताऊँगी.... पूरी बात.... अभी में इसलिए आयी हूँ क्योंकि में उनसे पहले तुमसे मिलना चाहती थी.... पहले तुम फैसला करना कि तुम मुझे अपना सकती हो या नहीं...उसके बाद ही में रागिनी दीदी से कोई बात करूंगी.... आज जब उनको तुम दोनों के बिना यहाँ से जाते देखा तो में तुमसे अकेले में बात करने आ गयी...बात बहुत ज्यादा गंभीर है....क्या हम कहीं अकेले में बात कर सकते हैं?”शांति देवी ने अनुराधा से कहा
“ठीक है... मेरे कमरे में चलिये...” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा तो शांति देवी ने लाली यानि अनुभूति को वहीं बैठने का इशारा किया और अनुराधा के पीछे पीछे उसके कमरे में चली गयी
अंदर पहुँचकर शांति देवी ने अपने पीछे दरवाजा बंद करके कुंडी लगाई और बैड पर आकर बैठ गयी...अनुराधा सामने ही खड़ी थी तो उसका भी हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और बात करनी शुरू की.... अनुराधा बार-बार उनकी बातों को सुनकर चौंक जाती और कभी खुश तो कभी दुखी होती....करीब आधे घंटे बात करने के बाद दोनों मुसकुराती हुई कमरे से बाहर निकली और आते ही अनुराधा ने लाली को सोफ़े से हाथ पकड़कर उठाया और गले से लगा लिया।
“तू बिलकुल चिंता मत कर... माँ को आने दे...वो सब सही कर देंगी... वो बाहर से जितनी कडक हैं... अंदर से उतनी ही नरम.... और मौसी जी....मौसी जी ही कहूँ आपको...” अनुराधा ने शांति देवी कि ओर देखकर मुसकुराते हुये कहा तो वो शर्मा सी गईं “आप भी बिलकुल चिंता छोड़ दो.... माँ को आ जाने दो...आप उनके सामने सब सच-सच बता देना ....”
“अच्छा एक बात बताओ अभी कुछ दिन से एक लड़की जो तुम लोगों के साथ रह रही है...वो कौन है? कोई रिश्तेदार है क्या? आज भी रागिनी दीदी के साथ गयी है वो” शांति देवी ने पूंछा
“वो ऋतु बुआ हैं.... विक्रम भैया की चचेरी बहन...” अनुराधा ने बताया
“मोहिनी चाची की बेटी....लेकिन वो तुम्हारे साथ क्यों रह रही है?” शांति देवी ने पूंछा
“आप जानती हैं मोहिनी चाची को?” अनुराधा ने आश्चर्य से पूंछा
“हाँ ...वो विक्रम के साथ अक्सर यहाँ आती रहती थीं ...मुझसे मिलने.... विक्रम तो शुरू में बहुत गुस्से में थे...लेकिन मोहिनी चाची ने ही उन्हें अपनी कसम देकर हम दोनों को यहाँ रहने देने के लिए मनाया था....” शांति देवी ने कहा
“लेकिन आप लोगों का खर्चा कैसे चलता है... अभी हम लोग आपके बारे में ही बात कर रहे थे तो अनुपमा ने बताया कि आप हमेशा घर पर ही रहती हो और लाली अभी पढ़ रही है” अनुराधा ने पूंछा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा... लेकिन अनुराधा ने उसकी ओर बिना ध्यान दिये शांति देवी कि ओर जवाब के इंतज़ार में देखा
“वो... मोहिनी चाची ने वैसे तो हमारा सारा इंतजाम किया था शुरू मे लेकिन फिर एक कंपनी से हर महीने कुछ पैसे मेरे और लाली के अकाउंट में आने लगे.... मोहिनी चाची ने बताया था कि ये कंपनी हमारी ही है और हमारे परिवार के सभी सदस्यों को इसी कंपनी से हर महीने पैसे मिलते हैं खर्चे के लिए.... इस कंपनी की पूंजी में परिवार के हर सदस्य का हिस्सा है.... लेकिन इसका प्रबंधन केवल विक्रम ही करते थे.... बाकी कोई भी परिवार का सदस्य इस कंपनी में दखल नहीं देता...” शांति देवी ने बताया
“कौन सी कंपनी है... मतलब उसका नाम वगैरह” अनुराधा ने पूंछा
“दीदी हमें ज्यादा जानकारी नहीं... लेकिन हमारे खाते में कंपनी का नाम सिंडिकेट लिख कर आता है.... राणा आरपी सिंह सिंडिकेट (ranarpsingh syndicate)” लाली ने बताया
“चलो ठीक है...अभी माँ से पूंछती हूँ कि वो कितनी देर में आ रही हैं” कहते हुये अनुराधा ने रागिनी को कॉल किया
“हाँ बेटा क्या बात है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा
“माँ आप कब तक आ जाओगी?” अनुराधा ने कहा
“बस अभी निकले हैं बाहर 1 घंटे में घर पहुँच जाएंगे” रागिनी ने कहा “कोई खास बात है क्या?”
“नहीं माँ चिंता कि कोई बात नहीं.... लेकिन बात खास ही है....आप घर आ जाओ फिर बताती हूँ... और ऋतु बुआ को भी साथ ले आना”
“ऋतु भी मेरे साथ ही आ रही है....घंटे भर में पहुँच जाएंगे” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया
“माँ एक घंटे में आ रही हैं” अनुराधा ने फोन रखते हुये बताया
“ठीक है... अभी हम ऊपर वाले घर में जा रहे हैं... रागिनी दीदी आ जाएँ तो फिर आते हैं” कहते हुये शांति देवी उठने को हुई
“आंटी अप लोग बैठकर राधा से बात करो.... अभी मुझे अपने लिए कॉलेज की किताबें लानी थीं बाज़ार से लेकिन अब इन दोनों ने भी एड्मिशन ले लिया है तो में और प्रबल बाज़ार होकर आते हैं... तब तक रागिनी बुआ भी आ जाएंगी” अनुपमा ने अनुराधा और प्रबल कि ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा और उठ खड़ी हुई
अब शांति देवी के सामने अनुराधा या प्रबल ने कुछ कहना सही नहीं समझा इसलिए अनुराधा ने प्रबल को इशारा किया तो वो भी उठकर खड़ा हुआ और कपड़े बदलने के लिए कमरे में जाने लगा...
“तुम कहाँ जा रहे हो?” अनुपमा ने प्रबल से कहा
“कपड़े तो बादल लूँ” प्रबल ने जवाब दिया
“कहीं बाहर घूमने नहीं जा रहे हैं.... यहीं करोल बाग से किताबें लेनी हैं... तो कपड़े बदलने कि जरूरत नहीं... ऐसे ही ठीक लग रहे हो” अनुपमा ने कहा
“अरे मेरी माँ.... उसे पैसे तो ले लेने दे...और तू क्या ऐसे ही जाएगी...” अनुराधा ने कहा
“हाँ! में तो ऐसे ही चली जाती हूँ.... और पैसे हैं मेरे पास.... वापस आकर तुमसे हिसाब करके पैसे ले लूँगी” कहते हुये अनुपमा ने प्रबल का हाथ पकड़ा और खींचती हुई सी बाहर चली गयी
“कैसे चलना है... गाड़ी तो माँ ले गयी हैं... उनके वापस आने के बाद चलते हैं” बाहर निकलकर प्रबल ने कहा
“कोई जरूरत नहीं गाड़ी की...... ये राजस्थान नहीं है... जहां सबकुछ बहुत दूर-दूर होता हो.... यहाँ गाड़ी लेकर चलोगे तो पहले तो पूरा चक्कर लगाकर आनंद पर्वत होकर करोल बाग पाहुचेंगे.... उसमें भी जाम में फंस गए तो घंटों का समय लगेगा... हम यहाँ से पैदल फाटक पर करेंगे और गौशाला से रिक्शा लेकर 15 मिनट में करोल बाग पहुँच जाएंगे...1 घंटे में तो वापस भी आ जाएंगे” अनुराधा ने प्रबल को अपने साथ आगे खींचते हुये कहा तो प्रबल चुपचाप उसके साथ चल दिया... लेकिन उसने अनुपमा के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया... क्योंकि वहाँ आसपास के लोगों के सामने अनुपमा का हाथ पकड़े उसे अजीब सा लग रहा था
वहाँ से दोनों आगे बढ़े और किशनगंज रेलवे स्टेशन के पल को पार करके दूसरी तरफ उतरते ही वहाँ खड़े एक रिक्शे पर बैठ गए और उसे गुप्ता मार्केट चलने के लिए बोला। रिक्शे पर बैठते ही अनुपमा ने फिर से प्रबल का हाथ अपने हाथ में ले लिया प्रबल ने हाथ छुड़ना चाहा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा
“ओए अब तो बड़ा हो जा...या अपनी दीदी की उंगली पकड़कर ही चलता रहेगा... तेरी दीदी से दोस्ती है मेरी...बचपन की दोस्ती... समझा ...इसीलिए तुझे बिना पटाये मेरे जैसी हॉट लड़की के साथ करोल बाग में घूमने का मौका मिल रहा है.... वरना यहाँ कॉलेज में नखरे उठाते उठाते कंगले हो जाते हैं लड़के और किसी के साथ अकेले बैठकर कॉफी भी नहीं पीती...कॉलेज की कैंटीन में भी”
“जबसे में यहाँ आया हूँ ...तुम मेरे पीछे ही पड़ गयी हो... दीदी की तो कोई बात नहीं लेकिन अगर माँ को कुछ पता चल गया तो तुम्हारा तो मुझे पता नहीं... लेकिन मेरा क्या हाल करेंगी? इसलिए मुझे इन सब चक्कर से दूर रखो” प्रबल ने झुँझलाते हुये कहा तो अनुपमा ने अनसुना करते हुये अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल करने लगी
“कहाँ मरवा रही है कमीनी...फोन उठाने की भी फुर्सत नहीं” बहुत देर तक घंटी जाने पर फोन उठते ही अनुपमा ने चिल्लाकर कहा तो प्रबल ने चौंककर उसकी तरफ देखा फिर रिक्शेवाले और आसपास चलते लोगों की ओर... लेकिन किसी का भी ध्यान न पाकर फिर से अनुपमा की ओर देखने लगा जो दूसरी ओर से कही जा रही बात को सुन रही थी
“चल ठीक है... जल्दी से तैयार होकर आजा में गुप्ता मार्केट पहुँच रही हूँ... और उन सबको भी फोन करके बुला ले” अनुपमा ने फोन काटते हुये कहा
“तुम लड़की होकर इतने गंदे तरीके से ऐसे बात करती हो...और हम तो किताबें लेने जा रहे हैं ना... फिर किस-किसको बुला रही हो वहाँ.... हमें जल्दी लौटकर जाना है... माँ आनेवाली होंगी”
“बच्चे...अब दिल्ली में आ गए हो... देखते जाओ...यहाँ लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं.....” अनुपमा ने प्रबल का गाल खींचते हुये कहा
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anu delhi ki tej tarrar ladki lag rahi hai , aur prabal ke sath jodi jamne wali bhi lag rahi hai ... dekhte hai aage kya hota hai
 

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anu delhi ki tej tarrar ladki lag rahi hai , aur prabal ke sath jodi jamne wali bhi lag rahi hai ... dekhte hai aage kya hota hai
दिल्ली में रहकर तो इंसान क्या पशु-पक्षी भी तेज तर्रार हो जाते हैं............एकमात्र शहर जहां जानवर भी लेन में चलते हैं ट्रेफिक के बीच .............. :lol1:

अगला अपडेट टाइप कर रहा हूँ...........आज रात में ही छाप दूँगा
 

Chutiyadr

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अध्याय 23

अनुराधा और शांति देवी अभी बैठकर बात कर ही रही थीं की तभी शांति देवी को कुछ याद आया तो उन्होने अनुराधा से प्रबल के बारे में पूंछा

“बेटा! तुम्हारा तो नाम सुनते ही में समझ गयी थी की तुम रागिनी दीदी की बेटी नहीं हो...बल्कि ममता दीदी की बेटी हो... क्योंकि मेंने तुम्हें बचपन में देखा था ममता दीदी जब घर आती थीं... कभी कभी...क्योंकि उनकी और माँ की आपस में बनती नहीं थी... इसलिए हम कभी भी यहाँ नहीं आते थे... .... लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि रागिनी की शादी विक्रम के चाचा से कैसे हो गयी और प्रबल क्या वास्तव में रागिनी का ही बेटा है....” शांति ने पूंछा

“नहीं मौसी जी... ना तो माँ मतलब रागिनी बुआ की शादी हुई है किसी से और ना ही प्रबल उनका बेटा है... प्रबल शायद विक्रम भैया का बेटा है... बाकी आप माँ को आ जाने दो तब उनसे ही सबकुछ पता चलेगा... और आप उनको सबकुछ सच-सच ही बताना.... कुछ भी छुपाना मत...” अनुराधा ने जवाब दिया फिर बोली “मौसी! में कुछ खाने को बना लेती हूँ तब तक माँ भी आ जाएंगी... और प्रबल भी … अब शाम भी होने वाली है और इन सब बातों में पता नहीं कितना समय लग जाए...इसलिए अभी कुछ चाय नाश्ता करके बात करेंगे”

“अरे बेटा तुम मेरे पास बैठो लाली सब कर लेगी ....” शांति ने कहा

“फिर ऐसा करते हैं मौसी सब चलते हैं रसोई में... इससे कोई बोर भी नहीं होगा और मिलजुलकर बनाते हैं” ये कहते हुये अनुराधा रसोई कि तरफ बढ़ गयी और वो दोनों भी उसके पीछे पीछे चली गईं

लगभग आधे घंटे बाद बाहर गाड़ी रुकी और रागिनी ने ऋतु के साथ घर में प्रवेश किया तो अनुभूति ने आकार दरवाजा खोला... दोनों उसे यहाँ देखकर चौंक गईं

“अनुराधा और प्रबल कहाँ हैं” रागिनी ने पूंछा

“माँ में रसोई में थी...और प्रबल अनुपमा के साथ बाज़ार में किताबें लेने गया है... अब कल से कॉलेज भी तो जाना है...” अनुराधा ने शांति के साथ रसोई से आते हुये कहा तो रागिनी ने आकर सोफ़े पर बैठते हुये शांति को भी बैठने को कहा

“आइए बहन जी ...बैठिए.... यहाँ आए हैं तब से आपसे तो बात क्या मुलाक़ात भी नहीं हो पायी...बस भागदौड़ में ही लगे रहे”

ऋतु भी रागिनी के बराबर में बैठ गयी, शांति देवी दूसरे सोफ़े पर बैठ गईं तो अनुराधा रागिनी के बराबर में दूसरी ओर आकर बैठी और शांति देवी को बोलने का इशारा किया

“रागिनी दीदी! में अनुराधा की माँ ममता की छोटी बहन हूँ... आपकी याददास्त जा चुकी है इसलिए उस दिन भी मेंने आपको और अनुराधा को पहचानकर भी कुछ नहीं बताया.... लेकिन अब में आपको सबकुछ बता देना चाहती हूँ” शांति देवी ने कहा

“माँ अभी अप और बुआ बाहर से आए हैं... प्रबल भी थोड़ी बहुत देर में आता होगा तो क्यूँ न आप दोनों फ्रेश हो जाएँ में चाय नाश्ता लगती हूँ... फिर उसके बाद बात करेंगे.... क्योंकि मौसी से कुछ मुझे भी बताया है...और वो छोटी मोटी बात नहीं बहुत बड़ी कहानी है............में प्रबल से पूंछती हूँ कि कितनी देर में आ रहा है” कहते हुये अनुराधा ने प्रबल को फोन लगा दिया। इधर रागिनी और ऋतु भी उठकर अंदर चले गए... अनुभूति उठकर रसोई में चली गयी

“हाँ बोल! घबरा मत तेरे भाई को लेकर भाग नहीं जाऊँगी... अभी चल दिये हैं यहाँ से 15 मिनट में पहुँच जाएंगे” प्रबल का फोन अनुपमा ने उठाया और अनुराधा से बोली तो अनुराधा भी फोन काट कर रसोई की ओर ही चल दी...

थोड़ी देर में ही रागिनी और ऋतु आकर वहीं हॉल में शांति के साथ बैठ गईं इधर प्रबल भी आ गया... अनुराधा और अनुभूति (लाली) ने चाय नाश्ता वहीं सेंटर तबले पर लगा दिया .... अनुपमा दोपहर से कॉलेज से आने के बाद से उनके ही साथ थी इसलिए वो अपने घर चली गयी

नाश्ते के बाद अनुराधा ने सभी को रागिनी के कमरे में चलने को कहा कि वहीं बेड पर बैठकर बात करते हैं... यहाँ सोफ़े पर बैठे-बैठे सभी थक जाएंगे

“हाँ तो शांति भाभी... भाभी इसलिए कह रही हूँ आपको... क्योंकि अप ममता भाभी कि बहन हैं..... बताइये ....और सबसे पहले तो ये कि आप विक्रम के संपर्क में कैसे आयीं जो उन्होने आपको यहाँ इस मकान में बसाया हुआ था” रागिनी ने प्रश्न किया

“में अनुराधा कि मौसी और आपकी ममता भाभी कि बहन के अलावा भी...आपकी कुछ और बन चुकी हूँ... अगर आपकी याददास्त न भी जाती तब भी आपको उस रिश्ते का पता नहीं चलता...बिना हमारे संपर्क में आए” शांति ने अजीब से अंदाज में कहा तो सबकी निगाहें शांति पर जाम गईं

“आपके गायब होने और नाज़िया के फरार होने के बाद ममता दीदी को विक्रम ने गिरफ्तार करा दिया था आपके पिता विजय सिंह भी चुपचाप हमारे घर पहुंचे और हम माँ बेटी को लेकर दिल्ली गुड़गाँव बार्डर पर नयी बन रही द्वारिका टाउनशिप के मधु विहार में रहने लगे.... कुछ समय बाद माँ एक दिन सुबह को बिस्तर पर ही मृत मिलीं... विजय जी ने बताया कि रात में उन्हें कुछ बेचैनी सी महसूस हुई थी लेकिन फिर वो नींद कि दवा लेकर सो गईं और सुबह जगाने पर जब नहीं उठीं तो उन्होने उनकी सान और धड़कन चेक कि....अब जो भी रहा हो... लेकिन मेरा तो इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं बचा जिसे में अपना कह सकती.... पिताजी तो पहले ही नहीं रहे थे.... भाई खुद नशे और अपराध की दुनिया में गुम हो चुका था, बहन जाईल में थी...और अब माँ भी नहीं रही.... माँ के अंतिम संस्कार के बाद विजय जी मुझे लेकर रोहिणी सैक्टर 23 बुध विहार आ गए.... हम दोनों के ही घर-परिवार जन-पहचान के सब लोग किशनगंज से ही छूट गए थे... यहाँ कोई नहीं जनता था कि हम कौन हैं...

एक दिन विजय जी ने मुझसे कहा कि अब हम दोनों के अलावा हमारा और कोई तो है नहीं.... और हमारे बीच कोई ऐसा रिश्ता भी नहीं जो हमारे लिए कोई मुश्किल पैदा करे तो क्यों न हम दोनों शादी कर लें और पति पत्नी के रूप में नया परिवार शुरू करें... आगे चलकर कम से कम हमारा ख्याल रखने को हमारे बच्चे तो होंगे.... मेरी भी उम्र उस समय कुछ ज्यादा नहीं थी... लेकिन इतनी कम भी नहीं थी कि दुनियादारी को समझ ना सकूँ ..... मुझे भी लगा कि मेरा अकेला रहना हर किसी को एक मौके कि तरह दिखेगा.... घर-परिवार के बिना कोई शादी नहीं करनेवाला .... जिस्म के लिए सब तैयार हो जाएंगे लेकिन घर बसाने वाला शायद ही कोई मिले.... अभी ये मेरे साथ हैं तो कहीं भी रह पा रही हूँ... अकेले तो शायद सिर छुपाने को भी जगह ना मिले...और पता नहीं ज़िंदगी में क्या-क्या देखना पड़े.... इससे तो अच्छा है कि इनसे शादी करके इनकी पत्नी बनकर एक घर भी मिल जाएगा और आगे चलकर अगर बच्चे भी हो गए तो ज़िंदगी उन्हीं के सहारे कट जाएगी.... अभी तो ये मेरा और बच्चों का पालन-पोषण कहीं से भी कुछ भी करके कमा के करेंगे... अकेले तो कहीं कमाने भी जाऊँगी तो जिस्म के भूखे भेड़िये झपटने को तैयार मिलेंगे... यहाँ इनके साथ भी रहकर अगर ये मुझसे शारीरिक संबंध बनाने पर उतारू हो जाएँ तो मजबूरी के चलते क्या में इन्हें रोक पाऊँगी? इससे तो अच्छा है कि इनकी पत्नी बनकर रहूँ

यही सब सोचकर मेंने उनसे शादी के लिए हाँ कर दी और हमने बुध विहार के ही एक मंदिर में रीति रिवाज के साथ शादी कर ली... शादी के लगभग 10-11 महीने बाद ही अनुभूति का जन्म हुआ... विजय जी ने बुध विहार में ही एक दुकान शुरू कर ली थी जिससे हमारा खर्चा सही चलने लगा था... लाली भी धीरे धीरे बड़ी होने लगी... और उम्र के अंतर के बावजूद मेरे और विजय जी के बीच प्यार और अपनापन, लगाव पैदा हो गया था....

एक दिन ये दुकान से 2 घंटे बाद ही वापस आ गए इनके साथ एक और आदमी भी था... इनहोने बताया कि ये आदमी इंका बहुत पुराना परिचित है नोएडा से... जहां पहले इंका और हमारा परिवार रहा करता था.... ये उसके साथ नोएडा में ही काम शुरू करना चाहते हैं... जिससे हम सभी नोएडा में रहें वहाँ अपनी जान पहचान के लोग भी हैं तो धीरे धीरे हमें एक परिवार जैसा सुरक्शित माहौल भी मिल जाएगा... और कभी कोई परेशानी हुई तो साथ देनेवाले भी होंगे... मेंने भी उनकी बात को सही समझकर अपनी सहमति दे दी...

लगभग 2-3 महीने वो वहाँ कि दुकान को छोडकर नोएडा आते जाते रहे उसके बाद उन्होने एक दिन कहा कि एक सप्ताह बाद हमें नोएडा चलकर रहना है...काम वहाँ पर शुरू हो चुका है.... जान-पहचान कि वजह से काम भी अच्छा चल रहा है... नोएडा-गाज़ियाबाद-दिल्ली के बीचोबीच एक कच्ची आबादी खोड़ा कॉलोनी के नाम से है... वहीं काम भी है और रहने का इंतजाम भी.... ऐसे ही एक सप्ताह में इनहोने दिल्ली में अपनी दुकान और घर का सब लें दें और जो समान नोएडा भेजना था... भेजकर...सब कम निबटाया और हम नोएडा आ गए... वहाँ आकार मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि वहाँ आसपास बहुत सारे परिवार इनको जानते थे... बल्कि इनके पूरे परिवार को जानते थे.... इनके और भी भाई नोएडा में रहते थे... लेकिन इनसे उनके संबंध टूट चुके थे पता नहीं इनकी ओर से या उनकी ओर से.... लेकिन इनके बारे में मुझे बचपन से पता था तो में समझती थी कि शायद इनके उल्टे-सीधे कामों कि वजह से ही पूरा परिवार इनसे दूर हो गया...

2005 में अनुभूति डेढ़ दो साल की होती एक दिन ये कहीं बाहर गए... ये बाहर आते-जाते ही रहते थे इसलिए कोई खास बात नहीं थी... लेकिन 2-3 दिन बाद भी जब ये वापस नहीं आए तो मेंने अपनी मकान मालकिन से बोला कि इनके साथियों से पता करें कि कहाँ पर है और कब आएंगे .... उन्होने पता किया तो पता चला कि ये 15 दिन के लिए हरिद्वार गए हुये हैं.... मेंने भी ज्यादा कोई गंभीरता से नहीं लिया... हो सकता है कोई काम हो... ऐसे ही 15 दिन बीत गए लेकिन ये नहीं आए... 20 दिन, फिर एक महीने से ज्यादा हो गया तो मेंने इनके साथियों से खुद जाकर कहा तो उन्होने कहा कि पिछले 10 दिन से उनकी खुद कि भी इनसे कोई बात नहीं हो प रही है.... 10 दिन पहले इनहोने बताया था कि काम के सिलसिले में वो ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ों में रानी पोखरी नाम कि जगह है उसके पास किसी गाँव में जा रहे हैं... वहाँ फोन सुविधा ना होने की वजह से बात नहीं हो पाएगी... घर खर्च में भी परेशानी बताई मेंने तो उन लोगों ने कुछ पैसे भी दिये.... वैसे इन 4 सालों में उनके साथ रहकर मेंने अपने पास भी अच्छा खासा पैसा इकट्ठा कर लिया था... ये सोचती थी कि कुछ समय बाद लाली को भी स्कूल भेजना है.... बिना बाप के बच्चों कि ज़िंदगी हम भाई बहनों ने जी थी... लेकिन मेरी बेटी को एक भरपूर प्यार भरी ज़िंदगी मिलेगी माँ-बाप के साथ...........

लेकिन वक़्त ऐसे ही बीतता गया और उनकी कोई खबर नहीं मिली .... वहाँ के लोगों का भी नज़रिया बदलने लगा .... इनके परिवार के बारे में भी कोई बताने को तैयार नहीं था कि वो लोग कहाँ रहते हैं.... मेरे मकान मालिक भी इनके पूरे परिवार को जानते थे... एक दिन वो और उनकी पत्नी दोनों मेरे पास आए और बोले कि विजय के बड़े भाई जय कि तो मृत्यु वर्ष 2000 में ही कैंसर से हो चुकी थी... उनकी पत्नी और बच्चे 2003 में नोएडा से गाज़ियाबाद चले गए.... लेकिन कहाँ रहते हैं...कोई पता नहीं उनके छोटे भाई गजराज नोएडा से बहुत पहले ही गुड़गाँव रहने चले गए थे उनका भी पता किसी को मालूम नहीं.... एक भाई बलराज दिल्ली में कहीं रहते हैं लेकिन उनका भी किसी को पता नहीं............

अब वो मेरी एक ही सहता कर सकते हैं कि हमारा जो व्यवसाय था यहाँ पर उसका जो भी हिसाब किताब करके मिल सकता है... मुझे दिला देंगे...लेकिन उसके बाद मुझे कहीं और जाकर ही रहना होगा.... क्योंकि जो और साथी हैं विजय जी के व्यवसाय में वो आसानी से अब पैसा नहीं देना चाहेंगे.... तो जबर्दस्ती वसूलने पर वो दुश्मनी में कोई गलत कदम उठाते हैं तो हमारी ज़िम्मेदारी हमेशा के लिए कौन ले सकता है..... मेंने उनका कहा मन लिया.... साथ ही उन्होने मुझे थाने ले जाकर विजय जी के लापता होने कि रिपोर्ट भी दर्ज करा दी... और साथ ही मुझे उनके बिज़नस से मिल सक्ने वाला पैसा भी दिलवा दिया....

में एक बार फिर अकेली खड़ी थी... पहले विजय जी के साथ थी तो उन्होने ज़िम्मेदारी ली हुई थी मेरी ..... लेकिन अब मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी थी मेरी बेटी की। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ जाऊँ, क्या करूँ... तभी मेरे दिमाग में ममता दीदी का ख्याल आया... कि उनसे एक बार जाईल में मुलाक़ात करूँ... शायद वही कोई रास्ता बताएं.... वैसे भी ममता दीदी को विजय जी के पूरे परिवार कि जानकारी थी.... बल्कि वो भी सबको जानती थी और सभी उन्हें भी जानते थे....

में जब ममता दीदी से तिहाड़ जेल में जाकर मिली तो उन्होने बताया कि में उनके किशनगंज वाले घर जाकर विक्रम से मिलूँ और उसे सब बताऊँ तो वो मेरी और लाली की व्यवस्था करा देगा....मेंने वैसा ही किया लेकिन यहाँ आकार पता चला कि विक्रम तो कोटा रहता है...और यहाँ कभी-कभी ही आता है... मेंने यहाँ किराए पर रह रहे परिवार से विक्रम का मोबाइल नंबर लिया और कॉल करके बात की तो विक्रम ने मुझे कोटा आने के लिए बोला... और एक नंबर दिया कोई सुरेश नाम के आदमी का... कि में उनसे कोटा में मिलूँ .... वो मेरी सारी व्यवस्था करा देंगे... विक्रम खुद कहीं बाहर था..... मेंने वैसा ही किया... वहाँ सुरेश ने मेरे रहने और लाली के पढ़ने कि सब व्यवस्था करा दी... और साथ में हमारे रहने खाने के सब खर्चे भी.... जब इसके लिए मेंने मना किया और कहीं कोई काम देखने को कहा तो उसने मुझसे कहा कि ये सब व्यवस्था विक्रम ने ही की है...और वो विजय जी के परिवार का ही है... तो मेंने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया ..... 4-6 महीने में विक्रम भी कभी कभार आता था तो बस थोड़ी देर बैठकर मेरा और लाली का हालचाल लेकर चला जाता था.... हमारी ज़िंदगी ऐसे ही कट रही थी.... 10 साल बाद एक दिन विक्रम आया और मुझसे कहा कि अब हमें दिल्ली इसी मकान में रहना है हमेशा के लिए और अपने साथ ही दिल्ली लेकर आ गया यहाँ आकर उसने हमसे मोहिनी जी को भी मिलवाया और बताया कि वो उनकी चाची जी हैं.... बस तभी से हम यहीं रह रहे हैं”

शांति की बात सुनकर रागिनी ने एक गहरी सांस ली...और बोली

“आपको मेरे बारे में भी ममता भाभी ने बता ही दिया होगा...में विजय सिंह उर्फ विजय राज सिंह की बेटी हूँ.... यानि इस रिश्ते से आप मेरी माँ और लाली मेरी छोटी बहन हुई............. मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे पिता यानि आपके पति विजयराज सिंह ने अपने जीवन में क्या-क्या गुल खिलाये... अब भी उनकी मृत्यु का निश्चित नहीं........तो शायद कहीं कोई और नया परिवार बसाये बैठे होंगे.......

आपको पता है... विमला मेरी माँ नहीं थी...और दीपक कुलदीप भी मेरे सगे भाई नहीं थे..... विमला मेरी बुआ थी और दीपक कुलदीप उनके बेटे थे”

“हाँ! ये तो मुझे पता है.... लेकिन ममता दीदी ने एक और बात बताई थी मुझे” शांति ने कहा

“क्या?” रागिनी बोली

“विजय जी का एक बेटा भी है... आपका भाई...सगा भाई.... जो उनके किसी भाई के पास रहने लगा था...उनके इन्हीं कारनामों की वजह से... और वो शायद विक्रम ही था”

“हाँ .... अब तक मुझे जितना पता चला है... उसके हिसाब से विक्रम मेरा भाई हो सकता है”

“दीदी एक बात और बतानी थी आपको” अचानक अनुभूति ने कहा तो रागिनी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा

“हमारे खर्चे के लिए जब से हम दिल्ली आए हैं... एक कंपनी से पैसे ट्रान्सफर होते हैं... उस कंपनी का नाम राणाआरपीसिंह सिंडीकेट लिखा आता है हमारे खाते में... विक्रम भैया ने बताया था कि ये कंपनी अपने परिवार कि है और पूरे परिवार को इसी कंपनी से पैसा मिलता है... हिस्से के रूप में” लाली (अनुभूति) ने बताया

“राणाआरपीसिंह सिंडीकेट..... कुछ सुना हुआ सा लगता है.....” रागिनी ने कहा तभी उसकी बात काटते हुये ऋतु ने कहा

“दीदी ये जो हमने वसीयत का रेकॉर्ड निकलवाया था नोएडा से उसमें परिवार के मुखिया जयराज ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह का नाम था उनके नाम को राणा आर पी सिंह भी तो लिखा जा सकता है”

................................
gajab ka family drama hai bhai , ye sala kaisa pariwar hai :lol1:
kon kiska kya hai abhi tak yahi bat chal rahi hai ....dheere dheere story me thoda aur bhi drama milne ki ummid bhi jagte ja rahi hai lekin sab flashback me hi hone wala hai ya fir kuch vartman me bhi hoga ye dekhne wali bat hogi ;approve:
 

kamdev99008

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Itna thandha reaction. Kya doc, mai to socha tha jab aap yaha aaoge to surprised ho jaoge ki apne bhai ne 4-4 update diye hai.
Koi mamuli baat thode hai ki kamdev bhai 4 update de de.
Bhai update complete nahi ho paya rat ab free hokar complete karunga
 
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kamdev99008

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अध्याय 24

ऋतु की बात सुनते ही सब एक दूसरे की ओर देखने लगे....फिर रागिनी उठी और कहा की अब काफी समय हो गया है तो खाना बना लिया जाए... क्योंकि फिर खाना खाने के लिए ज्यादा देर हो जाएगी.... इस पर शांति भी उसके साथ रसोईघर की ओर चल दी।

तभी दरवाजे पर घंटी बजी तो प्रबल निकलकर बाहर मेन गेट पर पहुंचा.... वहाँ एक 25-26 साल का लड़का खड़ा हुआ था... प्रबल ने दरवाजा खोला और उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा....

“यहाँ एडवोकेट ऋतु सिंह रहती हैं” उसने प्रबल से पूंछा

“जी हाँ! आप?” प्रबल ने अंदर आने का रास्ता देते हुये कहा

“जी में उनके ऑफिस से एडवोकेट पवन कुमार सिंह” उस लड़के यानि पवन ने अंदर आते हुये कहा

“आप यहाँ बैठिए, में उन्हें बुलाता हूँ” कहते हुये प्रबल ने पवन को सोफ़े पर बैठने का इशारा किया और अंदर जाकर रागिनी के कमरे में बैठी ऋतु से पवन के आने के बारे में बताया

“ओह! में तो भूल ही गयी थी कि पवन को भी बुलाया था मेंने... रात के खाने पर” कहते हुये ऋतु उठ खड़ी हुई तो साथ ही अनुराधा और अनुभूति भी उसके पीछे पीछे चल दीं

“नमस्ते मैडम!” ऋतु को हॉल में आते देखकर पवन सोफ़े से खड़ा होता हुआ बोला

“अरे बैठो-बैठो। और मैडम में ऑफिस में हूँ यहाँ तुम मेरा नाम ले सकते हो” कहते हुये ऋतु दूसरे सोफ़े पर बैठ गयी

“जी मैडम.... ओह... मतलब ऋतु जी” पवन ने शर्माते हुये सा कहा

“ऋतु जी............ यार ऋतु ही बोल लिया करो..... अब गाँव से दिल्ली आ गए हो...अब तो शर्माना छोड़ दो........और जी तो दिल्ली कि जुबान में ही नहीं लगता” ऋतु ने उसके शर्माने पर हँसते हुये कहा

“नहीं... अब इतना भी नहीं........आप मुझसे सीनियर हैं में आपको ऋतु जी ही कहूँगा। अब बताइये क्या आदेश है मेरे लिए? क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि आपने मुझे सिर्फ खाने के लिए तो नहीं बुलाया। जरूर कोई और बात भी है” प्रबल ने थोड़े संजीदा होते हुये कहा

“हाँ! बात ये हैं कि ये घर मेरी बड़ी बहन रागिनी सिंह का है... और अब में उनही के साथ रहूँगी... यहाँ मेरे परिवार के काफी सदस्य बल्कि लगभग सभी सदस्य रहते हैं..... ये मेरे बड़े भाई विक्रमादित्य सिंह का बेटा प्रबल प्रताप सिंह है...यानि मेरा भतीजा” ऋतु ने भी गंभीरता से कहा, फिर प्रबल से बोली “प्रबल! बेटा रागिनी दीदी को यहाँ बुला लो और शांति माँ को भी.... अनुराधा और अनुभूति को बोल दो वो रसोईघर में खाने कि व्यवस्था देख लेंगी”

“जी बुआ जी” कहते हुये प्रबल अंदर चला गया

“ऋतु जी! ये विक्रमादित्य सिंह तो वही थे न जिनकी मृत्यु श्रीगंगानगर में हुई थी...और उनकी वसीयत हमारे ही ऑफिस में है... अभय सर के मित्र” प्रबल के जाने के बाद पवन ने ऋतु से पूंछा

“हाँ! वो असल में अभय सर के दोस्त नहीं सीनियर थे कॉलेज में... मेरे ताऊजी के बेटे हैं... रागिनी दीदी उनकी बहन हैं... और शांति माँ उनकी माँ हैं...” ऋतु ने बताया और आगे बोली “अब मेंने तुम्हें इसलिए बुलाया है कि ये सब यहाँ अभी आए हैं...राजस्थान से...... तो अभी हमारा कोई भी काम-धंधा नहीं है यहाँ... अब हम चाहते हैं कि हम यहाँ कुछ ऐसा शुरू करें जिसे हम सब मिलकर सम्हाल सकें...और हमारे पैसे भी फँसने का खतरा न हो”

तभी रसोई से चाय और नाश्ता लेकर अनुराधा और अनुभूति आयीं और उनके पीछे-पीछे रागिनी और शांति भी आ गईं। पवन ने उन्हें देखकर उठ खड़े होकर नमस्ते किया तो उन्होने ने भी जवाब में नमस्ते करके उसे बैठने को कहा और ऋतु के बराबर में ही सोफ़े पर बैठ गईं

“पवन ये मेरी दीदी रागिनी सिंह हैं और ये मेरी ताईजी शांति माँ हैं” ऋतु ने पवन से परिचय कराया तो पवन उलझ सा गया

“पवन जी! ये मेरे पिताजी कि दूसरी पत्नी हैं... उम्र में बेशक मुझसे छोटी हैं लेकिन हैं तो माँ ही” पवन कि उलझन को देखते हुये रागिनी ने मुस्कुराकर कहा

“ऐसी कोई बात नहीं दीदी... अब ये बताइये कि इस काम को कौन-कौन चलाएगा...और उनको कितनी जानकारी व अनुभव है.... किस काम का...” पवन ने कहा

“देखो पवन तुम्हें स्पष्ट बता दूँ .... यहाँ किसी भी काम कि जानकारी होने से ज्यादा अनुभव जरूरी है... अनुभव स्वयं में ज्ञान है.... ऋतु को तो जानते ही हो... वो कानूनी मामलों कि जानकार है... लेकिन उसके अलावा उसे कोई विशेष अनुभव नहीं.... और हम में से भी किसी ने भी कभी कोई कम नहीं किया... तो अनुभव भी नहीं.... हम सभी स्त्रियाँ हैं.... अकेला प्रबल ही हमारे परिवार का पुरुष सदस्य है, लेकिन वो भी साथ में अपनी पढ़ाई करेगा.... तो अब बताओ कि तुम्हारी समझ से क्या किया जा सकता है”

“देखिये छोटा व्यवसाय तो आपको इतनी आमदनी नहीं देगा जो आप सभी के खर्चे निकाल सके.... इससे आप धीरे-धीरे करके अपनी जमा पूंजी खर्च कर लेंगे... और बड़े व्यवसाय में अनुभव मुख्य है, बिना अनुभव के आपके प्रतिद्वंदी आपको नुकसान पहुंचा सकते हैं....... तो आपको किसी भी व्यवसाय में मौजूद बड़ी कंपनी के स्थानीय प्रतिनिधि के रूप में काम करना चाहिए जिससे... आपको धीरे-धीरे अनुभव भी होता जाएगा और संकट कि स्थिति में वो कंपनी आपको सहयोग ही नहीं आपका पूर्ण संरक्षण भी करेगी” पवन ने कहा

“हाँ! ये तो तुम सही कह रहे हो........ क्योंकि अगर हमारे ऊपर संकट आयेगा तो उसका असर कंपनी के स्थानीय व्यवसाय पर भी पड़ेगा...... और वो कंपनी हमारे बारे में ना सही अपने व्यवसाय के बारे में तो सोचकर कुछ ना कुछ करेगी ही... हमें उस संकट से निकालने के लिए” रागिनी ने कहा

“जी हाँ! आप सही समझीं” पवन ने आगे कहा “ अब आते हैं कि व्यवसाय किस चीज का हो... यहाँ दिल्ली एनसीआर में सबसे बड़ा व्यवसाय भू-संपत्ति का है... मकान खरीदना बेचना.... लेकिन उसमें निवेश भी ज्यादा होगा और धैर्य के साथ प्रतीक्षा भी करनी होगी.... अपना निवेश और लाभ वापस पाने के लिए”

“मेरा विचार है कि हमें खाने-पहनने के व्यवसाय पर गौर करना चाहिए ..... क्योंकि इनकी बिक्री प्रतिदिन होती है और हर व्यक्ति को इनकी आवश्यकता हमेशा रहती है... तो वो बार-बार खरीदता भी है” रागिनी ने सुझाव दिया

“मानना पड़ेगा... आपने पूरी तैयारी की हुई है.... आप सही कह रही हैं.... में इसी क्षेत्र में काम कर रही कम्पनियों से संपर्क करके आपको बताता हूँ?” पवन ने उत्तर दिया

“सिर्फ बताना ही नहीं .......आपको भी हमारे साथ जुड़ना होगा, साझेदार के रूप मेँ” रागिनी ने कहा

“मेँ अभी पूरी तरह से नहीं जुड़ सकता क्योंकि बार काउंसिल मेँ पंजीकरण के लिए मुझे अभी लगभग 8-9 महीने अभय सर के साथ ही काम करना होगा... दूसरे मेँ पूंजी भी नहीं लगा सकता.... हालांकि अपने गाँव मेँ हमारी बहुत जमीन है... लेकिन वो मेरे दादाजी के नाम हैं.... और दादाजी उस जमीन को ना तो बेचेंगे और ना ही कोई ऋण लेंगे...उस जमीन के आधार पर” पवन ने अपनी समस्या बताई

“तुम्हें कोई पैसा लगाने कि जरूरत नहीं है....... वैसे मेंने तुम्हारे बारे मेँ तो पूंछा ही नहीं.... कहाँ के रहनेवाले हो और कौन कौन है तुम्हारे घर मेँ, शादी हो गयी या नहीं” रागिनी ने मुसकुराते हुये ऋतु की ओर देखा तो उसने नज़रें दूसरी और घूमा लीं

“दीदी मेरा गाँव उत्तर प्रदेश मेँ कासगंज के पास है... मेरे घर मेँ दादाजी-दादीजी, माँ-पिताजी और 2 बहनें व 1 छोटा भाई है.... बड़ी बहन कि शादी हो चुकी है....छोटे भाई बहन पढ़ रहे हैं.... रही बात मेरी शादी की ... तो अभी पहले कुछ कमाने तो लगूँ.... बेरोजगार से कौन अपनी लड़की की शादी करेगा” पवन ने साधारण भाव से मुसकुराते हुये रागिनी को बताया

“कोई बात नहीं... कमाने तो लगोगे ही... तो घर वाले सभी गाँव मेँ ही रहते हैं?” रागिनी ने पुनः पूंछा

“हाँ अब तो गाँव मेँ ही रहते हैं.... पहले यहीं रहा करते थे दिल्ली मेँ.... फिर कुछ दिन नोएडा भी रहे... वहीं मेरी मुलाक़ात एक व्यक्ति से हुई.... उन्होने मेरी और मेरे पिताजी कि सोच को बिलकुल बदल दिया....इसी वजह से आज मेँ कोई छोटी मोती नौकरी करने कि बजाय वकील बनने जा रहा हूँ और मेरे पिताजी भी नौकरी करने कि बजाय अपने गाँव मेँ एक सम्पन्न और सम्मानित तरीके से परिवार चला रहे हैं.......... मेँ उन भैया का हमेशा अहसानमंद रहूँगा” पवन ने कृतज्ञता का भाव लाते हुये कहा

“ज़िंदगी मेँ हर किसी को कोई न कोई ऐसा जरूर मिलता है... जो उसकी ज़िंदगी कि दशा और दिशा दोनों बादल देता है” रागिनी ने कहा

तब तक अनुराधा ने आकार सबको खाना खाने को कहा तो सभी डाइनिंग टेबल पर पहुँचकर खाना खाने लगे। खाना खाकर पवन अपने घर को चला गया और शांति व अनुभूति भी ऊपरी मंजिल पर अपने घर चली गईं। हालांकि रागिनी ने उनसे आज अपने साथ ही सोने को कहा लेकिन शांति देवी ने कहा की ऊपर भी इसी घर में हैं इसलिए परेशानी उठाने की जरूरत ही नहीं है.... ऊपर खाली रहेगा और यहाँ कम जगह में व्यवस्था बनानी पड़ेगी... उल्टे उन्होने उन लोगो को भी ऊपर चलने को कहा .... क्योंकि ऊपर दूसरी मंजिल पर एक कमरा और तीसरी मंजिल पर 2 कमरे खाली पड़े हुये थे.... लेकिन रागिनी ने कहा की नीचे फिर बच्चे अकेले रह जाएंगे इसलिए वो नीचे ही सोएगी... तब अनुभूति ने अनुराधा से कहा की वो ऊपर उसके पास सोये। अनुराधा जाने को तयार नहीं थी लेकिन शांति देवी ने बहुत कहा तो रागिनी ने भी कह दिया की वो आज ऊपर ही सो जाए। और कल से अपना समान लेकर चाहे तो ऊपर शिफ्ट कर सकती है....क्योंकि ये पूरा मकान भी अपना ही है और अब तो सभी रहने वाले भी अपने ही हैं तो ...सब अपने-अपने अलग कमरे में रह सकते हैं.... अनुराधा ने अनुभूति को थोड़ी देर में आने को कहकर प्रबल के कमरे में चली गयी। इधर ऋतु ने भी कहा की में भी सोचती हु की सबसे ऊपर की मंजिल पर जो 2 कमरे हैं उनमें से 1 कमरा वो ले लेगी.... इससे सभी को सुविधाजनक भी रहेगा।

अनुराधा प्रबल के कमरे में पहुंची तो प्रबल बेड पर लेता हुआ था, दरवाजे पर अनुराधा को देखते ही वो उठकर सिरहाने से पीठ टिकाकार बैठ गया। अनुराधा ने कमरे में आकर दरवाजा अंदर से बंद किया और प्रबल के पास ही बेड के सिरहाने से पीठ टिकाकर बैठ गयी और प्रबल का हाथ अपने हाथ में लेते हुये उसकी ओर प्रश्नवाचक दृष्टि से देखने लगी।

“आज से में ऊपर वाले कमरे में रहूँगी... अनुभूति के पास...मुझे मालूम है तुझे अच्छा नहीं लग रहा.... लेकिन बुरा भी नहीं लगना चाहिए, याद है हवेली में जब विक्रम भैया ने हमें अलग-अलग कमरे में रहने के लिए बोला था... तब कितना रोया था तू...और मुझे भी बुरा लगा था। लेकिन आज इस उम्र में आकर मुझे समझ में आया की उन्होने सही फैसला लिया था... हम नासमझ थे और माँ अपनी याददास्त जाने के बाद कभी परिवार के बीच रही नहीं... तो उन्होने भी इस बात पर ध्यान नहीं दिया... लेकिन बहुत बार मेंने इस बात पर गौर किया की एक उम्र के बाद हमें एक दूसरे से ही नहीं माँ से भी अलग कुछ निजी ज़िंदगी जीनी होती है, कुछ निजी काम करने होते हैं.... तो ये फैसला विक्रम भैया का बिलकुल सही था... बल्कि उनका हर फैसला सही था.... में ही नासमझ थी जो उन्हें अपना दुश्मन समझने लगी...उनसे नफरत करने लगी”

“हम्म! आप मुझसे ज्यादा जानती हैं... आपको जो सही लगे... मेरे लिए हमेशा सही ही होता है” प्रबल ने उदास सी मुस्कुराहट के साथ कहा

“पागल! अब तू छोटा बच्चा नहीं रह गया... अब बड़ा हो गया है...... आज मेरी बात मानता है... कल को जब बीवी आएगी तो वो मुझसे जलने लगेगी की मेंने अपने भाई को दबा के रखा हुआ है.... या फिर वो भी तुझे दबाने लगेगी..... आदमी बन अब... तू इस घर का मुखिया है... हम सब को बता की क्या सही है क्या गलत... अब कब तक माँ या मेरे पीछे दुबका रहेगा” अनुराधा ने कहा तो प्रबल को अनुपमा की बातें याद करके हंसी आ गयी। उसे मुसकुराते देखकर अनुराधा ने कहा

“क्या हुआ ऐसे हंस क्यों रहा है.... में कोई मज़ाक थोड़े ही कर रही हूँ... सच्चाई बता रही हूँ”

“अरे आपकी बात नहीं दीदी... वो अनुपमा की बात याद करके हंस रहा था ... वो भी आज ऐसे ही कह रही थी” प्रबल ने शर्माते हुये कहा

“अनुपमा! वाओ... एक घंटे में ही बदल दिया उसने.... दीदी से अनुपमा बन गयी... क्या क्या सीखा दिया मेरे भाई को उस कमीनी ने” अनुराधा ने प्रबल को छेडते हुये कहा

“अरे नहीं दीदी... अब जब में उनको दीदी बोलता हूँ तो वो नाराज हो जाती हैं, गुस्सा करने लगती हैं तो अब में उन्हें नाम से ही बुलाऊंगा... और क्या-क्या सिखाया मुझे पूंछों ही मत.... और उनकी सहेलियों का गैंग.... वो तो जल्दी घर आना था इसलिए सिर्फ जान पहचान ही कराई है अभी” प्रबल छोटे बच्चे की तरह खुश होते हुये अनुराधा को बताने लगा

“चल ठीक है... अब बड़ा हो रहा है तू... वो अच्छी लड़की है और सबसे बड़ी बात, घर की सदस्य की तरह है... घर की ही मान लो.... उसके साथ रहकर घर से बाहर निकालना और इस दुनिया को समझना सीख जाएगा.... लेकिन थोड़ा सम्हालकर...और अपनी मर्यादा का ध्यान रखना...” अनुराधा ने कहा और उठकर खड़ी हो गयी

“ठीक है दीदी...आप निश्चिंत रहें” प्रबल ने जवाब दिया

अब प्रबल भी अपने बिस्तर पर लेट कर आज दिन में अनुपमा के साथ हुयी बातों को याद करने लगा

........................

रास्ते भर अनुपमा प्रबल को अपनी बातों से पकाती रही... फिर गुप्ता मार्केट पहुँचकर जब वो रिक्शे से उतरे तो वहाँ पहले से ही खड़ी 3 लड़कियों ने रिक्शे वाले को 10 रुपए दिये और अनुपमा को हाथ पकड़कर खींच लिया ...अनुपमा को उतरते देख प्रबल भी रिक्शे से उतरा और उसके साथ खड़ा हो गया

“अरे कमीनीयों इसे 10 रुपये और दे दो.... तुम्हारे लिए बकरा लाई हूँ...उसका किराया कौन देगा... तेरी मम्मी से दिलवा दूँ...उन्हें बकरा भी पसंद आ जाएगा” अनुपमा ने उन लड़कियों से कहा

“वो तो बुड्ढी हो गईं.... इसे हम में से जो पसंद हो बता दे वही किराया दे देगी इसका...” जिस लड़की ने अनुपमा का हाथ पकड़ा हुआ था वो बोली

“अरे मेडम मुझे तो पैसे दे दो...” रिक्शे वाले ने कहा तो अनुपमा ने अपनी जेब से निकालकर उसे 10 रुपये दे दिये

“ओहो... तो अनु मेडम को पसंद कर लिया……. वैसे ये गूंगा है क्या.... तो किसी को बता भी नहीं पाएगा की इसके साथ क्या हुआ और किसने किया” उस लड़की ने दाँत फाड़ते हुये कहा

“चल पहले मुलाक़ात करा दूँ... ये हैं प्रबल, मेरी बचपन की सहेली अनुराधा के छोटे भाई.... और ये हैं निशा, रिचा और स्वाति मेरी सबसे खास दोस्त... और हमारे ही कॉलेज में पढ़ती हैं... तुम्हारी सीनियर हैं...”

“जी में प्रबल प्रताप सिंह...आप सभी से मिलकर बड़ी खुशी हुई” प्रबल ने प्रभावशाली तरीके से कहा तो वो सभी लड़कियां हंसने लगीं

“सच यार... ये तो बकरा ही है.... कल इसकी रैगिंग लेती हूँ... ‘जी में प्रबल प्रताप सिंह’ हा हा हा .... जैसे किसी बिजनेस मीटिंग में आया हो......” स्वाति ने हँसते हुये प्रबल की नकल उतारते हुये कहा “और ये तुम्हारा मुंह सूजा-सूजा क्यों है... कड़ी हंस भी लिया करो”

“चल यार अब तो रोज ही कॉलेज में मिलना होता रहेगा... अभी तो चलकर वो कम कर लें जिसके लिए आए हैं” अनुपमा ने स्वाति से कहा

“हाँ दी... चलो किताबें ले लेते हैं...फिर माँ भी आने वाली हैं तो जल्दी वापस लौटना है” प्रबल ने अनुपमा को दीदी कहते कहते उसकी आँखों में गुस्सा देखा तो जल्दी से बोला

“स्वाति, रिचा तुम दोनों ने सुना? ये तो अनु को दी कह रहा है...और इसको माँ की भी याद आ रही है.... बकरा नहीं ये तो मेमना लग रहा है... बच्चे को जल्दी किताबें दिलाकर घर लेकर जा... नहीं तो रोने लगेगा” निशा ने कहा

“ओए ज्यादा नहीं... वो दी नहीं जल्दी कह रहा था... और वो अपनी माँ से डरता नहीं है...असल में बुआ ने मुझे आज अपने साथ खाने की डावात दी है... तो हमें जल्दी से घर जाना है...वो ही याद दिला रहा था” अनुपमा ने जल्दी से कहा “अब चलो जल्दी”

“कोई बात नहीं अभी तू जितनी मर्जी सफाई दे ले...कल कॉलेज में देखती हूँ इसे कौन बचाएगा.... और पता है ना... जब कोई भी बकरा हमारे साथ मार्केट में होता है तो उसे वो सबकुछ खाना पड़ता है जो हम खाते हैं... अब ये मत कहने लगना की ये कुछ नहीं खाता” रिचा ने कहा

“देख अभी तो हम दोनों घर जाकर बुआ के साथ खाना खाएँगे.......... तो...कुछ नहीं... चल दुकान आ गयी किताबें ले ले” अनुपमा ने कहा

चारों लड़कियों ने अपनी किताबें लीन और प्रबल की भी …. अपने और प्रबल के पैसे अनुपमा ने दिये तो उन तीनों ने अनुपमा की ओर घूरकर देखा

“अरे यार पहले में अकेली आ रही थी... इसलिए बुआ ने मुझे पैसे दे दिये थे... फिर मेंने सोचा इसे भी साथ ले आऊँ तुमसे मिलवा दूँ... वरना कल कहीं तुम इसकी रैगिंग लेने लग जातीं... अच्छा ओके बाइ” अनुपमा ने कहा

“पहले खाते हैं गोलगप्पे... देखते हैं इसके सूजे-सूजे गाल गोलगप्पा खाकर कैसे लगेंगे” स्वाति ने कहा और वो सब वहीं दुकान के सामने ठेले पर गोलगप्पे खाने पहुँच गए, प्रबल ने एक बार तो माना करने का सोचा लेकिन फिर चुप हो गया और उनके साथ गोलगप्पे खाने लगा...

वहाँ से चलते समय स्वाति ने अनुपमा को एक ओर पकड़कर अलग खीचा और बोली

“देख .... मेरा कोई चक्कर चलवा दे इससे... और ये मत कहियो की तेरा चक्कर चल रहा है... मुझे अच्छी तरह पता है... तुझसे दीदी कह रहा था”

स्वाति की बात सुनकर अनुपमा ने कुछ नहीं कहा लेकिन प्रबल को गुस्से से घूर के देखा....और वहाँ से रास्ते भर मुंह फुलाए रही... प्रबल ने एक बार पूंछा भी की क्या बात है...क्यों गुस्सा है लेकिन वो कुछ नहीं बोली घर तक

................................

प्रबल यही सोचते सोचते सो गया कि ऐसी क्या बात कह दी स्वाति ने जो अनुपमा इतनी नाराज हो गयी.... वो स्वाति के चुचे घूर रहा था चोरी छुपे... वो तो नहीं देख लिया स्वाति ने और अनुपमा को बता दिया हो..........

“हुंह... अब इस उम्र में इतने बड़े-बड़े होंगे तो नजर वहीं रुकेगी ना” सोचते हुये प्रबल नींद में डूबता चला गया

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