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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

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Waaah kya baat hai kamdev bhai ne kripa kar di aur update aa gaya, chaliye tasalli se padhenge ab to,,,, :yippi:

Waise update size kafi chhota nazar aa raha hai bhai, khair koi baat nahi,,,,,, :dazed:
Bhai update size to pahle jitna hi hai.... Lines ke beech gap kam hai.... Naye xf me formatting majedar nahi ho rahi.... Size bhi word ke font ki tarah hai to confuse ho gaya ki kya size rakhu
Ab line space aur paragraph me gap ke bina... Ajeeb sa bahut ghana ho gaya hai... Mujhe khud padhne me comfortable nahi laga.... Ankho par jor jyada dena padta hai
Waaah kamdev bhai bahut hi khubsurat raha ye update. Abhi bhi bahut kuch aisa hai jo parde me hain. Khair dekhte hain aur kya kya parde se nikal kar baagar aata hai,,,,,, :dazed:

Ye anupama to badi chaalu aur pahuchi huyi ladki lag rahi hai aur sath hi iske irade bhi nek nahi lag rahe. Prabal jaise innocent ladke ko bigaadne wala kaam karne ka man banaya hua hai isne. Khair dekhte hain kya hota hai aage,,,,,, :)

Ye baat to aapne solah aane sach kahi bhai ki delhi ki ladkiya ladko se kisi bhi maamle me kam nahi hain. Ab to bhagwan hi bachaye prabal ko is anupama se aur delhi ki ladkiyo se,,,,,, :hehe:
Raj to bhai sabhi khulte hi ja rahe hain.... Is week me jaldi jaldi update dekar kahani ka flashback start karunga.... Jo ki real kahani hai..... 3rd person dwara narrated hogi to.... Mein-tum-wo wala confusion bhi nahi hoga...
Meri jindgi ka lagbhag 80-90% waqt delhi me beeta hai.... Aur kahani meri life se jude logo ke real incidents se judi hai to delhi aur north ke states se hi chalegi... Up, mp, haryana, punjab aur Rajasthan
Prabal ko to kabhi na kabhi jawan hona hi tha... Kab tak maa ka beta aur didi ka bhai bana rahega....
Ladka ho ya ladki.... Inhein sexlife se kabhi bhi humumr parichit nahi kara pate sahi se.... Hamesha badi umr ke opposite sex ke vyakti hi sahi se guidance aur experience de pate hain..... Isliye
Ab prabal ki jimmedari... Anupma ne samhal li hai.... Bada karne ki..... :D dono tarah se :lol1:
 

kamdev99008

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अध्याय 23

अनुराधा और शांति देवी अभी बैठकर बात कर ही रही थीं की तभी शांति देवी को कुछ याद आया तो उन्होने अनुराधा से प्रबल के बारे में पूंछा

“बेटा! तुम्हारा तो नाम सुनते ही में समझ गयी थी की तुम रागिनी दीदी की बेटी नहीं हो...बल्कि ममता दीदी की बेटी हो... क्योंकि मेंने तुम्हें बचपन में देखा था ममता दीदी जब घर आती थीं... कभी कभी...क्योंकि उनकी और माँ की आपस में बनती नहीं थी... इसलिए हम कभी भी यहाँ नहीं आते थे... .... लेकिन मुझे ये समझ में नहीं आया कि रागिनी की शादी विक्रम के चाचा से कैसे हो गयी और प्रबल क्या वास्तव में रागिनी का ही बेटा है....” शांति ने पूंछा

“नहीं मौसी जी... ना तो माँ मतलब रागिनी बुआ की शादी हुई है किसी से और ना ही प्रबल उनका बेटा है... प्रबल शायद विक्रम भैया का बेटा है... बाकी आप माँ को आ जाने दो तब उनसे ही सबकुछ पता चलेगा... और आप उनको सबकुछ सच-सच ही बताना.... कुछ भी छुपाना मत...” अनुराधा ने जवाब दिया फिर बोली “मौसी! में कुछ खाने को बना लेती हूँ तब तक माँ भी आ जाएंगी... और प्रबल भी … अब शाम भी होने वाली है और इन सब बातों में पता नहीं कितना समय लग जाए...इसलिए अभी कुछ चाय नाश्ता करके बात करेंगे”

“अरे बेटा तुम मेरे पास बैठो लाली सब कर लेगी ....” शांति ने कहा

“फिर ऐसा करते हैं मौसी सब चलते हैं रसोई में... इससे कोई बोर भी नहीं होगा और मिलजुलकर बनाते हैं” ये कहते हुये अनुराधा रसोई कि तरफ बढ़ गयी और वो दोनों भी उसके पीछे पीछे चली गईं

लगभग आधे घंटे बाद बाहर गाड़ी रुकी और रागिनी ने ऋतु के साथ घर में प्रवेश किया तो अनुभूति ने आकार दरवाजा खोला... दोनों उसे यहाँ देखकर चौंक गईं

“अनुराधा और प्रबल कहाँ हैं” रागिनी ने पूंछा

“माँ में रसोई में थी...और प्रबल अनुपमा के साथ बाज़ार में किताबें लेने गया है... अब कल से कॉलेज भी तो जाना है...” अनुराधा ने शांति के साथ रसोई से आते हुये कहा तो रागिनी ने आकर सोफ़े पर बैठते हुये शांति को भी बैठने को कहा

“आइए बहन जी ...बैठिए.... यहाँ आए हैं तब से आपसे तो बात क्या मुलाक़ात भी नहीं हो पायी...बस भागदौड़ में ही लगे रहे”

ऋतु भी रागिनी के बराबर में बैठ गयी, शांति देवी दूसरे सोफ़े पर बैठ गईं तो अनुराधा रागिनी के बराबर में दूसरी ओर आकर बैठी और शांति देवी को बोलने का इशारा किया

“रागिनी दीदी! में अनुराधा की माँ ममता की छोटी बहन हूँ... आपकी याददास्त जा चुकी है इसलिए उस दिन भी मेंने आपको और अनुराधा को पहचानकर भी कुछ नहीं बताया.... लेकिन अब में आपको सबकुछ बता देना चाहती हूँ” शांति देवी ने कहा

“माँ अभी अप और बुआ बाहर से आए हैं... प्रबल भी थोड़ी बहुत देर में आता होगा तो क्यूँ न आप दोनों फ्रेश हो जाएँ में चाय नाश्ता लगती हूँ... फिर उसके बाद बात करेंगे.... क्योंकि मौसी से कुछ मुझे भी बताया है...और वो छोटी मोटी बात नहीं बहुत बड़ी कहानी है............में प्रबल से पूंछती हूँ कि कितनी देर में आ रहा है” कहते हुये अनुराधा ने प्रबल को फोन लगा दिया। इधर रागिनी और ऋतु भी उठकर अंदर चले गए... अनुभूति उठकर रसोई में चली गयी

“हाँ बोल! घबरा मत तेरे भाई को लेकर भाग नहीं जाऊँगी... अभी चल दिये हैं यहाँ से 15 मिनट में पहुँच जाएंगे” प्रबल का फोन अनुपमा ने उठाया और अनुराधा से बोली तो अनुराधा भी फोन काट कर रसोई की ओर ही चल दी...

थोड़ी देर में ही रागिनी और ऋतु आकर वहीं हॉल में शांति के साथ बैठ गईं इधर प्रबल भी आ गया... अनुराधा और अनुभूति (लाली) ने चाय नाश्ता वहीं सेंटर तबले पर लगा दिया .... अनुपमा दोपहर से कॉलेज से आने के बाद से उनके ही साथ थी इसलिए वो अपने घर चली गयी

नाश्ते के बाद अनुराधा ने सभी को रागिनी के कमरे में चलने को कहा कि वहीं बेड पर बैठकर बात करते हैं... यहाँ सोफ़े पर बैठे-बैठे सभी थक जाएंगे

“हाँ तो शांति भाभी... भाभी इसलिए कह रही हूँ आपको... क्योंकि अप ममता भाभी कि बहन हैं..... बताइये ....और सबसे पहले तो ये कि आप विक्रम के संपर्क में कैसे आयीं जो उन्होने आपको यहाँ इस मकान में बसाया हुआ था” रागिनी ने प्रश्न किया

“में अनुराधा कि मौसी और आपकी ममता भाभी कि बहन के अलावा भी...आपकी कुछ और बन चुकी हूँ... अगर आपकी याददास्त न भी जाती तब भी आपको उस रिश्ते का पता नहीं चलता...बिना हमारे संपर्क में आए” शांति ने अजीब से अंदाज में कहा तो सबकी निगाहें शांति पर जाम गईं

“आपके गायब होने और नाज़िया के फरार होने के बाद ममता दीदी को विक्रम ने गिरफ्तार करा दिया था आपके पिता विजय सिंह भी चुपचाप हमारे घर पहुंचे और हम माँ बेटी को लेकर दिल्ली गुड़गाँव बार्डर पर नयी बन रही द्वारिका टाउनशिप के मधु विहार में रहने लगे.... कुछ समय बाद माँ एक दिन सुबह को बिस्तर पर ही मृत मिलीं... विजय जी ने बताया कि रात में उन्हें कुछ बेचैनी सी महसूस हुई थी लेकिन फिर वो नींद कि दवा लेकर सो गईं और सुबह जगाने पर जब नहीं उठीं तो उन्होने उनकी सान और धड़कन चेक कि....अब जो भी रहा हो... लेकिन मेरा तो इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं बचा जिसे में अपना कह सकती.... पिताजी तो पहले ही नहीं रहे थे.... भाई खुद नशे और अपराध की दुनिया में गुम हो चुका था, बहन जाईल में थी...और अब माँ भी नहीं रही.... माँ के अंतिम संस्कार के बाद विजय जी मुझे लेकर रोहिणी सैक्टर 23 बुध विहार आ गए.... हम दोनों के ही घर-परिवार जन-पहचान के सब लोग किशनगंज से ही छूट गए थे... यहाँ कोई नहीं जनता था कि हम कौन हैं...

एक दिन विजय जी ने मुझसे कहा कि अब हम दोनों के अलावा हमारा और कोई तो है नहीं.... और हमारे बीच कोई ऐसा रिश्ता भी नहीं जो हमारे लिए कोई मुश्किल पैदा करे तो क्यों न हम दोनों शादी कर लें और पति पत्नी के रूप में नया परिवार शुरू करें... आगे चलकर कम से कम हमारा ख्याल रखने को हमारे बच्चे तो होंगे.... मेरी भी उम्र उस समय कुछ ज्यादा नहीं थी... लेकिन इतनी कम भी नहीं थी कि दुनियादारी को समझ ना सकूँ ..... मुझे भी लगा कि मेरा अकेला रहना हर किसी को एक मौके कि तरह दिखेगा.... घर-परिवार के बिना कोई शादी नहीं करनेवाला .... जिस्म के लिए सब तैयार हो जाएंगे लेकिन घर बसाने वाला शायद ही कोई मिले.... अभी ये मेरे साथ हैं तो कहीं भी रह पा रही हूँ... अकेले तो शायद सिर छुपाने को भी जगह ना मिले...और पता नहीं ज़िंदगी में क्या-क्या देखना पड़े.... इससे तो अच्छा है कि इनसे शादी करके इनकी पत्नी बनकर एक घर भी मिल जाएगा और आगे चलकर अगर बच्चे भी हो गए तो ज़िंदगी उन्हीं के सहारे कट जाएगी.... अभी तो ये मेरा और बच्चों का पालन-पोषण कहीं से भी कुछ भी करके कमा के करेंगे... अकेले तो कहीं कमाने भी जाऊँगी तो जिस्म के भूखे भेड़िये झपटने को तैयार मिलेंगे... यहाँ इनके साथ भी रहकर अगर ये मुझसे शारीरिक संबंध बनाने पर उतारू हो जाएँ तो मजबूरी के चलते क्या में इन्हें रोक पाऊँगी? इससे तो अच्छा है कि इनकी पत्नी बनकर रहूँ

यही सब सोचकर मेंने उनसे शादी के लिए हाँ कर दी और हमने बुध विहार के ही एक मंदिर में रीति रिवाज के साथ शादी कर ली... शादी के लगभग 10-11 महीने बाद ही अनुभूति का जन्म हुआ... विजय जी ने बुध विहार में ही एक दुकान शुरू कर ली थी जिससे हमारा खर्चा सही चलने लगा था... लाली भी धीरे धीरे बड़ी होने लगी... और उम्र के अंतर के बावजूद मेरे और विजय जी के बीच प्यार और अपनापन, लगाव पैदा हो गया था....

एक दिन ये दुकान से 2 घंटे बाद ही वापस आ गए इनके साथ एक और आदमी भी था... इनहोने बताया कि ये आदमी इंका बहुत पुराना परिचित है नोएडा से... जहां पहले इंका और हमारा परिवार रहा करता था.... ये उसके साथ नोएडा में ही काम शुरू करना चाहते हैं... जिससे हम सभी नोएडा में रहें वहाँ अपनी जान पहचान के लोग भी हैं तो धीरे धीरे हमें एक परिवार जैसा सुरक्शित माहौल भी मिल जाएगा... और कभी कोई परेशानी हुई तो साथ देनेवाले भी होंगे... मेंने भी उनकी बात को सही समझकर अपनी सहमति दे दी...

लगभग 2-3 महीने वो वहाँ कि दुकान को छोडकर नोएडा आते जाते रहे उसके बाद उन्होने एक दिन कहा कि एक सप्ताह बाद हमें नोएडा चलकर रहना है...काम वहाँ पर शुरू हो चुका है.... जान-पहचान कि वजह से काम भी अच्छा चल रहा है... नोएडा-गाज़ियाबाद-दिल्ली के बीचोबीच एक कच्ची आबादी खोड़ा कॉलोनी के नाम से है... वहीं काम भी है और रहने का इंतजाम भी.... ऐसे ही एक सप्ताह में इनहोने दिल्ली में अपनी दुकान और घर का सब लें दें और जो समान नोएडा भेजना था... भेजकर...सब कम निबटाया और हम नोएडा आ गए... वहाँ आकार मुझे भी अच्छा लगा क्योंकि वहाँ आसपास बहुत सारे परिवार इनको जानते थे... बल्कि इनके पूरे परिवार को जानते थे.... इनके और भी भाई नोएडा में रहते थे... लेकिन इनसे उनके संबंध टूट चुके थे पता नहीं इनकी ओर से या उनकी ओर से.... लेकिन इनके बारे में मुझे बचपन से पता था तो में समझती थी कि शायद इनके उल्टे-सीधे कामों कि वजह से ही पूरा परिवार इनसे दूर हो गया...

2005 में अनुभूति डेढ़ दो साल की होती एक दिन ये कहीं बाहर गए... ये बाहर आते-जाते ही रहते थे इसलिए कोई खास बात नहीं थी... लेकिन 2-3 दिन बाद भी जब ये वापस नहीं आए तो मेंने अपनी मकान मालकिन से बोला कि इनके साथियों से पता करें कि कहाँ पर है और कब आएंगे .... उन्होने पता किया तो पता चला कि ये 15 दिन के लिए हरिद्वार गए हुये हैं.... मेंने भी ज्यादा कोई गंभीरता से नहीं लिया... हो सकता है कोई काम हो... ऐसे ही 15 दिन बीत गए लेकिन ये नहीं आए... 20 दिन, फिर एक महीने से ज्यादा हो गया तो मेंने इनके साथियों से खुद जाकर कहा तो उन्होने कहा कि पिछले 10 दिन से उनकी खुद कि भी इनसे कोई बात नहीं हो प रही है.... 10 दिन पहले इनहोने बताया था कि काम के सिलसिले में वो ऋषिकेश से ऊपर पहाड़ों में रानी पोखरी नाम कि जगह है उसके पास किसी गाँव में जा रहे हैं... वहाँ फोन सुविधा ना होने की वजह से बात नहीं हो पाएगी... घर खर्च में भी परेशानी बताई मेंने तो उन लोगों ने कुछ पैसे भी दिये.... वैसे इन 4 सालों में उनके साथ रहकर मेंने अपने पास भी अच्छा खासा पैसा इकट्ठा कर लिया था... ये सोचती थी कि कुछ समय बाद लाली को भी स्कूल भेजना है.... बिना बाप के बच्चों कि ज़िंदगी हम भाई बहनों ने जी थी... लेकिन मेरी बेटी को एक भरपूर प्यार भरी ज़िंदगी मिलेगी माँ-बाप के साथ...........

लेकिन वक़्त ऐसे ही बीतता गया और उनकी कोई खबर नहीं मिली .... वहाँ के लोगों का भी नज़रिया बदलने लगा .... इनके परिवार के बारे में भी कोई बताने को तैयार नहीं था कि वो लोग कहाँ रहते हैं.... मेरे मकान मालिक भी इनके पूरे परिवार को जानते थे... एक दिन वो और उनकी पत्नी दोनों मेरे पास आए और बोले कि विजय के बड़े भाई जय कि तो मृत्यु वर्ष 2000 में ही कैंसर से हो चुकी थी... उनकी पत्नी और बच्चे 2003 में नोएडा से गाज़ियाबाद चले गए.... लेकिन कहाँ रहते हैं...कोई पता नहीं उनके छोटे भाई गजराज नोएडा से बहुत पहले ही गुड़गाँव रहने चले गए थे उनका भी पता किसी को मालूम नहीं.... एक भाई बलराज दिल्ली में कहीं रहते हैं लेकिन उनका भी किसी को पता नहीं............

अब वो मेरी एक ही सहता कर सकते हैं कि हमारा जो व्यवसाय था यहाँ पर उसका जो भी हिसाब किताब करके मिल सकता है... मुझे दिला देंगे...लेकिन उसके बाद मुझे कहीं और जाकर ही रहना होगा.... क्योंकि जो और साथी हैं विजय जी के व्यवसाय में वो आसानी से अब पैसा नहीं देना चाहेंगे.... तो जबर्दस्ती वसूलने पर वो दुश्मनी में कोई गलत कदम उठाते हैं तो हमारी ज़िम्मेदारी हमेशा के लिए कौन ले सकता है..... मेंने उनका कहा मन लिया.... साथ ही उन्होने मुझे थाने ले जाकर विजय जी के लापता होने कि रिपोर्ट भी दर्ज करा दी... और साथ ही मुझे उनके बिज़नस से मिल सक्ने वाला पैसा भी दिलवा दिया....

में एक बार फिर अकेली खड़ी थी... पहले विजय जी के साथ थी तो उन्होने ज़िम्मेदारी ली हुई थी मेरी ..... लेकिन अब मेरे ऊपर ज़िम्मेदारी थी मेरी बेटी की। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि कहाँ जाऊँ, क्या करूँ... तभी मेरे दिमाग में ममता दीदी का ख्याल आया... कि उनसे एक बार जाईल में मुलाक़ात करूँ... शायद वही कोई रास्ता बताएं.... वैसे भी ममता दीदी को विजय जी के पूरे परिवार कि जानकारी थी.... बल्कि वो भी सबको जानती थी और सभी उन्हें भी जानते थे....

में जब ममता दीदी से तिहाड़ जेल में जाकर मिली तो उन्होने बताया कि में उनके किशनगंज वाले घर जाकर विक्रम से मिलूँ और उसे सब बताऊँ तो वो मेरी और लाली की व्यवस्था करा देगा....मेंने वैसा ही किया लेकिन यहाँ आकार पता चला कि विक्रम तो कोटा रहता है...और यहाँ कभी-कभी ही आता है... मेंने यहाँ किराए पर रह रहे परिवार से विक्रम का मोबाइल नंबर लिया और कॉल करके बात की तो विक्रम ने मुझे कोटा आने के लिए बोला... और एक नंबर दिया कोई सुरेश नाम के आदमी का... कि में उनसे कोटा में मिलूँ .... वो मेरी सारी व्यवस्था करा देंगे... विक्रम खुद कहीं बाहर था..... मेंने वैसा ही किया... वहाँ सुरेश ने मेरे रहने और लाली के पढ़ने कि सब व्यवस्था करा दी... और साथ में हमारे रहने खाने के सब खर्चे भी.... जब इसके लिए मेंने मना किया और कहीं कोई काम देखने को कहा तो उसने मुझसे कहा कि ये सब व्यवस्था विक्रम ने ही की है...और वो विजय जी के परिवार का ही है... तो मेंने भी ज्यादा ज़ोर नहीं दिया ..... 4-6 महीने में विक्रम भी कभी कभार आता था तो बस थोड़ी देर बैठकर मेरा और लाली का हालचाल लेकर चला जाता था.... हमारी ज़िंदगी ऐसे ही कट रही थी.... 10 साल बाद एक दिन विक्रम आया और मुझसे कहा कि अब हमें दिल्ली इसी मकान में रहना है हमेशा के लिए और अपने साथ ही दिल्ली लेकर आ गया यहाँ आकर उसने हमसे मोहिनी जी को भी मिलवाया और बताया कि वो उनकी चाची जी हैं.... बस तभी से हम यहीं रह रहे हैं”

शांति की बात सुनकर रागिनी ने एक गहरी सांस ली...और बोली

“आपको मेरे बारे में भी ममता भाभी ने बता ही दिया होगा...में विजय सिंह उर्फ विजय राज सिंह की बेटी हूँ.... यानि इस रिश्ते से आप मेरी माँ और लाली मेरी छोटी बहन हुई............. मुझे आश्चर्य होता है कि मेरे पिता यानि आपके पति विजयराज सिंह ने अपने जीवन में क्या-क्या गुल खिलाये... अब भी उनकी मृत्यु का निश्चित नहीं........तो शायद कहीं कोई और नया परिवार बसाये बैठे होंगे.......

आपको पता है... विमला मेरी माँ नहीं थी...और दीपक कुलदीप भी मेरे सगे भाई नहीं थे..... विमला मेरी बुआ थी और दीपक कुलदीप उनके बेटे थे”

“हाँ! ये तो मुझे पता है.... लेकिन ममता दीदी ने एक और बात बताई थी मुझे” शांति ने कहा

“क्या?” रागिनी बोली

“विजय जी का एक बेटा भी है... आपका भाई...सगा भाई.... जो उनके किसी भाई के पास रहने लगा था...उनके इन्हीं कारनामों की वजह से... और वो शायद विक्रम ही था”

“हाँ .... अब तक मुझे जितना पता चला है... उसके हिसाब से विक्रम मेरा भाई हो सकता है”

“दीदी एक बात और बतानी थी आपको” अचानक अनुभूति ने कहा तो रागिनी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा

“हमारे खर्चे के लिए जब से हम दिल्ली आए हैं... एक कंपनी से पैसे ट्रान्सफर होते हैं... उस कंपनी का नाम राणाआरपीसिंह सिंडीकेट लिखा आता है हमारे खाते में... विक्रम भैया ने बताया था कि ये कंपनी अपने परिवार कि है और पूरे परिवार को इसी कंपनी से पैसा मिलता है... हिस्से के रूप में” लाली (अनुभूति) ने बताया

“राणाआरपीसिंह सिंडीकेट..... कुछ सुना हुआ सा लगता है.....” रागिनी ने कहा तभी उसकी बात काटते हुये ऋतु ने कहा

“दीदी ये जो हमने वसीयत का रेकॉर्ड निकलवाया था नोएडा से उसमें परिवार के मुखिया जयराज ताऊजी के बेटे राणा रवीद्र प्रताप सिंह का नाम था उनके नाम को राणा आर पी सिंह भी तो लिखा जा सकता है”

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kamdev99008

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219
Awesome update
Waaah kya baat hai kamdev bhai ne kripa kar di aur update aa gaya, chaliye tasalli se padhenge ab to,,,, :yippi:

Waise update size kafi chhota nazar aa raha hai bhai, khair koi baat nahi,,,,,, :dazed:
Waaah kamdev bhai bahut hi khubsurat raha ye update. Abhi bhi bahut kuch aisa hai jo parde me hain. Khair dekhte hain aur kya kya parde se nikal kar baagar aata hai,,,,,, :dazed:

Ye anupama to badi chaalu aur pahuchi huyi ladki lag rahi hai aur sath hi iske irade bhi nek nahi lag rahe. Prabal jaise innocent ladke ko bigaadne wala kaam karne ka man banaya hua hai isne. Khair dekhte hain kya hota hai aage,,,,,, :)

Ye baat to aapne solah aane sach kahi bhai ki delhi ki ladkiya ladko se kisi bhi maamle me kam nahi hain. Ab to bhagwan hi bachaye prabal ko is anupama se aur delhi ki ladkiyo se,,,,,, :hehe:
Haha,, bdiya update tha bhai,,,, prabal ka bhi syani anupama se pala pada h, dekhte h age kya hota h
pura story fir se padh ne padega .....
मित्रो!
23 वां अध्याय आपके सामने प्रस्तुत है
पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दें
 
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firefox420

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वाह .. अब जाकर कहानी ने गति अख़तियार करी है .. आशा है की आगे भी ऐसे ही चलेगी ...
यहाँ कहानी में तो महीलाओं की मण्ड़ली इकट्ठा हो गयी है ...
 
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amita

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मेरा फेवरेट करैक्टर तो रागिनीं है... अब तक जितना पढ़ा है उससे जो अंदाजा लगा रहा हूँ वो ये है की रागिनी ने अपने बच्चों के लिए एक बहुत बड़ी कुर्बानी दी है पर उसकी बेटी को उस क़ुरबानी की कतई कदर नहीं है! उसने अपने प्यार को बच्चों के लिए कुर्बान किया और वो प्यार ही अब उससे जुदा हो चूका है.... वो दर्द बर्दाश्त करने लायक नहीं होता, पता नहीं कैसे वो खुद को संभालेगी जब वो विक्रम के मृत शरीर को अपने सामने देखेगी|
वैसे आपने ऋतू नाम मेरी वाली कहानी से लिया है क्या? :lol1: आशा करता हूँ की आपकी ऋतू और मेरी ऋतू में अंतर् होगा!
कृपया अपडेट छोटी ही सही पर रेगुलर रखियेगा, आपकी कहानी से दिल लगाने जा रहा हूँ! बाकियों की तरह तोड़ ना दीजियेगा!
Badhiya review
 

amita

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खुद को इतना कम कर के मत आंकिए..

आपकी एक अलग शैली है.

लिखते रहिए.. हम आपके साथ हैं और रहेंगें...


आपके अपडेट का इंतज़ार है बेसब्री से, जल्दी दीजिए |
Good review
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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Bdiya update tha bhai,,,, mai soch raha tha ki bajaar me prabal aur anupma ke beech thodi aur baatcheet sunne ko milegi, ,,,, lekin vaha ka koi jikar nahi, vo skip hi kar diya,,,,,,, baaki update bhot bdiya tha bhai
 

kamdev99008

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Bdiya update tha bhai,,,, mai soch raha tha ki bajaar me prabal aur anupma ke beech thodi aur baatcheet sunne ko milegi, ,,,, lekin vaha ka koi jikar nahi, vo skip hi kar diya,,,,,,, baaki update bhot bdiya tha bhai
Prabal aur anupma ka ye kissa to milega hi... Lekin agle update mein... Abhi to jaruri raj kholna tha... Unka kissa to abhi kitne rang badlega
 

kamdev99008

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वाह .. अब जाकर कहानी ने गति अख़तियार करी है .. आशा है की आगे भी ऐसे ही चलेगी ...
यहाँ कहानी में तो महीलाओं की मण्ड़ली इकट्ठा हो गयी है ...
Kahani ko ab poori gati dene ka prayas hai
 
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