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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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Pritam.bs

!..Kar Vida.......Alvida..!
Supreme
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abhi koi dhaarna mat banaiye.......................
sirf 1 hint................ya yu kahiye ki ek raj pahle se apke samne kholne ka ishara kar raha hu..................
vikram ko haalaton aur waqt ne hero banaya hua hai ab tak..........................
lekin kahani ka asli hero...................wo hai jo
kismat, waqt, haalaat ya logon ka mohtaj nahin raha kabhi.................
usne sabko peechhe chhodkar.........apni kshamta aur yogyata ke bal par khud ko in sabke kad se upar uthaya
.............................uske sath kabhi koi nahin raha................ lekin uske sath ki jarurat in sabko rahi
1 sanskrit ka shlok hai :-
"नाभिषेकों ना संस्कार:, सिंहस्य करियाते मृगै:! विकर्मार्जित राजयस्य स्वयमेव मृगेंद्रता:!!:
अर्थात --- शेर को कोई तिलक लगाकर या मुकुट पहनाकर राजा नहीं बनाता ..... वो अपनी योग्यता और कर्म से स्वयं राज स्थापित करता है.....


is hero ke jivan ka ek chhota saar ap log meri laghukatha moksh mein bhi padh chuke hain............... lekin yahan bahut kuchh samne ayega jo apne nahin padha ya nahin jana..................

aj rat ko update likh raha hu.... kal subah tak post kar dunga

sath bane rahiye

  • सभी मित्रों का आभार ...........
  • आप सभी के सहयोग और प्रेरणा से ये कथानक
  • 100 पृष्ठ
  • पूरे कर सका
Kamdev bhai, meri dharna jara bhi galat nahi hai. Apni isi dharna ki vajah se to maine aapse update ki sankhya ke vishay me puchha tha aur aapke is jabab ne to meri utsukta ko or bhi jyada bada diya hai. Asal me aapki is story me bahut kuch aisa hai, jo aam taur par kisi dusri story me dekhne ko nahi milta hai. Mai fijul ki tarif nahi karuga. Bas itna kahuga ki, aapki kahani sabse alag hai aur aapme story likhne ki adbhut kshmta hai. Jisse mujhe naya kuch sikhne ko mil raha hai. :blush1:
 

kamdev99008

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mitro aaj update tayyar karne mein hi laga hua hoon.... koshish hai ki abhi 1-2 ghante mein post kar du

sath bane rahne ke liye aapka aabhari hu
 

kamdev99008

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अध्याय 22
इधर इन दोनों के घर से निकलने के बाद अनुराधा और अनुपमा आपस में बात करने लगीं तो प्रबल उठकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
“तुम्हें क्या डॉक्टर ने मना किया है....बात करने को?” अनुपमा ने प्रबल को जाते देखकर उससे कहा तो प्रबल पलटकर उसकी ओर देखने लगा
“दीदी आपने मुझसे कुछ कहा क्या?” प्रबल ने अनुपमा से कहा
“मेंने सुबह कॉलेज में भी कहा था ना..... दीदी कहा कर अपनी दीदी को..... मेरा नाम अनुपमा है” अनुपमा ने उसे गुस्से से घूरते हुये उंगली दिखाकर कहा और फिर शर्मीली सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुये बोली “प्यार से तुम मुझे अनु भी कह सकते हो”
“ओए कल्लो...मेरे भाई पर डोरे डालना बंद कर.... प्रबल तू जा आराम कर... यहाँ रहा तो ये तेरा दिमाग खा जाएगी” अनुराधा ने अनुपमा को हड़काते हुये प्रबल से कहा लेकिन प्रबल अनुराधा की बात को अनसुना करते हुये जाकर अनुपमा के पास बैठ गया
“देखो अनु मुझे तो कोई अनुभव है नहीं प्यार के बारे में...इसलिए अगर तुम मुझे सीखा सको कि कैसे प्यार से कहा जाता है... अब से तुम मुझे प्यार से कहना-सुनना सब सिखाओ....जिससे कि में किसी से प्यार से बात कर सकूँ या प्यार की बात कर सकूँ” प्रबल ने मुस्कराते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ही नहीं अनुराधा का भी मुंह खुला का खुला रह गया...दोनों को समझ नहीं आया कि क्या कहा जाए
“चल अब चुप हो जा... तू तो बहुत तेज निकला .... इस कल्लो की बोलती बंद कर दी.... में तो सोचती थी मेरा छोटा भाई कुछ जानता ही नहीं” अनुराधा ने खुद को समहलते हुये कहा... “अच्छा अनु ये बता ये ऊपर वाले फ्लोर पर जो आंटी रहती हैं...उनकी बेटी का नाम भी अनु ही लिया था उन्होने... इनके घर में कौन-कौन हैं?”
“देख राधा यहाँ अनु तो सिर्फ में ही हूँ.... तेरा नाम भी सिर्फ राधा ही लिया जाएगा.... उस लड़की का नाम अनुभूति है लेकिन उसे यहाँ लाली के नाम से बुलाते हैं....आंटी ने तुम लोगों के सामने लाली कहने में संकोच किया होगा इसलिए अनु बोला होगा.... वो दोनों माँ-बेटी को ही मेंने यहाँ देखा है.... बाकी उनके घर में और तो ना किसी को रहते और ना ही किसी को कभी आते-जाते देखा है मेंने... और कमाल कि बात तो ये है कि लाली तो पढ़ती है...हमारे वाले ही स्कूल में... तुम्हारे विक्रम भैया ने ही एड्मिशन कराया था लेकिन वो आंटी हमेशा घर पर ही रहती हैं... ना तो आस-पड़ोस में किसी के पास उठती-बैठती हैं और ना ही कोई काम करती हैं.... पता नहीं इन लोगों कि आमदनी का जरिया क्या है?” अनुपमा ने अपनी बात पूरी कि ही थी कि बाहर के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज हुई।
प्रबल उठकर दरवाजे पर पहुंचा और खोलकर देखा तो दरवाजे पर शांति देवी और उनकी बेटी लाली खड़े हुये थे... प्रबल ने एक ओर हटकर उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया उनको देखकर अनुराधा और अनुपमा भी चुप होकर खड़े हुये और उन्हें दूसरे सोफ़े पर बैठने का इशारा किया.... लाली तो सोफ़े पर जाकर बैठ गयी लेकिन शांति देवी उन दोनों के पास चलकर आयीं और अनुराधा को गले लगा लिया... अनुराधा को अजीब सा लगा...उनका शरीर हलके हलके झटके लेता हुआ लगा तो अनुराधा ने अपना सिर उनकी गार्डन से पीछे खींचते हुये उनके चेहरे की ओर देखा तो उनकी आँखों से आँसू बहते देखकर चौंक गयी और उन्हें साथ लिए हुये सोफ़े पर उनके बराबर बैठ गई
“आंटी आप रो क्यों रही हैं... क्या बात है...प्लीज चुप होकर बताइये” अनुराधा ने कहा
“राधा बेटा में तुम्हारी मौसी हूँ.... ममता दीदी की छोटी बहन... मेंने उस दिन रागिनी दीदी के परिचय देते ही तुमसे मिलने का सोचा.... लेकिन ममता दीदी ने उनके साथ जो किया था...मुझे डर था कहीं वो हमारे बारे में जानते ही इस घर से ना निकाल दें.... में अपनी इस मासूम बच्ची को लेकर कहाँ जाती...” शांति देवी ने रोते हुये ही कहा
“आप मेरी मौसी हो.... मतलब मेरी मम्मी कि छोटी बहन... लेकिन विक्रम भैया ने आपको यहाँ कैसे रखा हुआ था....ओह .... अब समझ में आया... विक्रम भैया को आपके बारे में पता था इसीलिए उन्होने आपको यहाँ रखा हुआ था ..... लेकिन अब आप क्यों बता रही हैं?” अनुराधा ने शांति देवी से कहा
“में विक्रम तक कैसे पहुंची इस बारे में तो में रागिनी दीदी के सामने ही बताऊँगी.... पूरी बात.... अभी में इसलिए आयी हूँ क्योंकि में उनसे पहले तुमसे मिलना चाहती थी.... पहले तुम फैसला करना कि तुम मुझे अपना सकती हो या नहीं...उसके बाद ही में रागिनी दीदी से कोई बात करूंगी.... आज जब उनको तुम दोनों के बिना यहाँ से जाते देखा तो में तुमसे अकेले में बात करने आ गयी...बात बहुत ज्यादा गंभीर है....क्या हम कहीं अकेले में बात कर सकते हैं?”शांति देवी ने अनुराधा से कहा
“ठीक है... मेरे कमरे में चलिये...” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा तो शांति देवी ने लाली यानि अनुभूति को वहीं बैठने का इशारा किया और अनुराधा के पीछे पीछे उसके कमरे में चली गयी
अंदर पहुँचकर शांति देवी ने अपने पीछे दरवाजा बंद करके कुंडी लगाई और बैड पर आकर बैठ गयी...अनुराधा सामने ही खड़ी थी तो उसका भी हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और बात करनी शुरू की.... अनुराधा बार-बार उनकी बातों को सुनकर चौंक जाती और कभी खुश तो कभी दुखी होती....करीब आधे घंटे बात करने के बाद दोनों मुसकुराती हुई कमरे से बाहर निकली और आते ही अनुराधा ने लाली को सोफ़े से हाथ पकड़कर उठाया और गले से लगा लिया।
“तू बिलकुल चिंता मत कर... माँ को आने दे...वो सब सही कर देंगी... वो बाहर से जितनी कडक हैं... अंदर से उतनी ही नरम.... और मौसी जी....मौसी जी ही कहूँ आपको...” अनुराधा ने शांति देवी कि ओर देखकर मुसकुराते हुये कहा तो वो शर्मा सी गईं “आप भी बिलकुल चिंता छोड़ दो.... माँ को आ जाने दो...आप उनके सामने सब सच-सच बता देना ....”
“अच्छा एक बात बताओ अभी कुछ दिन से एक लड़की जो तुम लोगों के साथ रह रही है...वो कौन है? कोई रिश्तेदार है क्या? आज भी रागिनी दीदी के साथ गयी है वो” शांति देवी ने पूंछा
“वो ऋतु बुआ हैं.... विक्रम भैया की चचेरी बहन...” अनुराधा ने बताया
“मोहिनी चाची की बेटी....लेकिन वो तुम्हारे साथ क्यों रह रही है?” शांति देवी ने पूंछा
“आप जानती हैं मोहिनी चाची को?” अनुराधा ने आश्चर्य से पूंछा
“हाँ ...वो विक्रम के साथ अक्सर यहाँ आती रहती थीं ...मुझसे मिलने.... विक्रम तो शुरू में बहुत गुस्से में थे...लेकिन मोहिनी चाची ने ही उन्हें अपनी कसम देकर हम दोनों को यहाँ रहने देने के लिए मनाया था....” शांति देवी ने कहा
“लेकिन आप लोगों का खर्चा कैसे चलता है... अभी हम लोग आपके बारे में ही बात कर रहे थे तो अनुपमा ने बताया कि आप हमेशा घर पर ही रहती हो और लाली अभी पढ़ रही है” अनुराधा ने पूंछा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा... लेकिन अनुराधा ने उसकी ओर बिना ध्यान दिये शांति देवी कि ओर जवाब के इंतज़ार में देखा
“वो... मोहिनी चाची ने वैसे तो हमारा सारा इंतजाम किया था शुरू मे लेकिन फिर एक कंपनी से हर महीने कुछ पैसे मेरे और लाली के अकाउंट में आने लगे.... मोहिनी चाची ने बताया था कि ये कंपनी हमारी ही है और हमारे परिवार के सभी सदस्यों को इसी कंपनी से हर महीने पैसे मिलते हैं खर्चे के लिए.... इस कंपनी की पूंजी में परिवार के हर सदस्य का हिस्सा है.... लेकिन इसका प्रबंधन केवल विक्रम ही करते थे.... बाकी कोई भी परिवार का सदस्य इस कंपनी में दखल नहीं देता...” शांति देवी ने बताया
“कौन सी कंपनी है... मतलब उसका नाम वगैरह” अनुराधा ने पूंछा
“दीदी हमें ज्यादा जानकारी नहीं... लेकिन हमारे खाते में कंपनी का नाम सिंडिकेट लिख कर आता है.... राणा आरपी सिंह सिंडिकेट (ranarpsingh syndicate)” लाली ने बताया
“चलो ठीक है...अभी माँ से पूंछती हूँ कि वो कितनी देर में आ रही हैं” कहते हुये अनुराधा ने रागिनी को कॉल किया
“हाँ बेटा क्या बात है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा
“माँ आप कब तक आ जाओगी?” अनुराधा ने कहा
“बस अभी निकले हैं बाहर 1 घंटे में घर पहुँच जाएंगे” रागिनी ने कहा “कोई खास बात है क्या?”
“नहीं माँ चिंता कि कोई बात नहीं.... लेकिन बात खास ही है....आप घर आ जाओ फिर बताती हूँ... और ऋतु बुआ को भी साथ ले आना”
“ऋतु भी मेरे साथ ही आ रही है....घंटे भर में पहुँच जाएंगे” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया
“माँ एक घंटे में आ रही हैं” अनुराधा ने फोन रखते हुये बताया
“ठीक है... अभी हम ऊपर वाले घर में जा रहे हैं... रागिनी दीदी आ जाएँ तो फिर आते हैं” कहते हुये शांति देवी उठने को हुई
“आंटी अप लोग बैठकर राधा से बात करो.... अभी मुझे अपने लिए कॉलेज की किताबें लानी थीं बाज़ार से लेकिन अब इन दोनों ने भी एड्मिशन ले लिया है तो में और प्रबल बाज़ार होकर आते हैं... तब तक रागिनी बुआ भी आ जाएंगी” अनुपमा ने अनुराधा और प्रबल कि ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा और उठ खड़ी हुई
अब शांति देवी के सामने अनुराधा या प्रबल ने कुछ कहना सही नहीं समझा इसलिए अनुराधा ने प्रबल को इशारा किया तो वो भी उठकर खड़ा हुआ और कपड़े बदलने के लिए कमरे में जाने लगा...
“तुम कहाँ जा रहे हो?” अनुपमा ने प्रबल से कहा
“कपड़े तो बादल लूँ” प्रबल ने जवाब दिया
“कहीं बाहर घूमने नहीं जा रहे हैं.... यहीं करोल बाग से किताबें लेनी हैं... तो कपड़े बदलने कि जरूरत नहीं... ऐसे ही ठीक लग रहे हो” अनुपमा ने कहा
“अरे मेरी माँ.... उसे पैसे तो ले लेने दे...और तू क्या ऐसे ही जाएगी...” अनुराधा ने कहा
“हाँ! में तो ऐसे ही चली जाती हूँ.... और पैसे हैं मेरे पास.... वापस आकर तुमसे हिसाब करके पैसे ले लूँगी” कहते हुये अनुपमा ने प्रबल का हाथ पकड़ा और खींचती हुई सी बाहर चली गयी
“कैसे चलना है... गाड़ी तो माँ ले गयी हैं... उनके वापस आने के बाद चलते हैं” बाहर निकलकर प्रबल ने कहा
“कोई जरूरत नहीं गाड़ी की...... ये राजस्थान नहीं है... जहां सबकुछ बहुत दूर-दूर होता हो.... यहाँ गाड़ी लेकर चलोगे तो पहले तो पूरा चक्कर लगाकर आनंद पर्वत होकर करोल बाग पाहुचेंगे.... उसमें भी जाम में फंस गए तो घंटों का समय लगेगा... हम यहाँ से पैदल फाटक पर करेंगे और गौशाला से रिक्शा लेकर 15 मिनट में करोल बाग पहुँच जाएंगे...1 घंटे में तो वापस भी आ जाएंगे” अनुराधा ने प्रबल को अपने साथ आगे खींचते हुये कहा तो प्रबल चुपचाप उसके साथ चल दिया... लेकिन उसने अनुपमा के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया... क्योंकि वहाँ आसपास के लोगों के सामने अनुपमा का हाथ पकड़े उसे अजीब सा लग रहा था
वहाँ से दोनों आगे बढ़े और किशनगंज रेलवे स्टेशन के पल को पार करके दूसरी तरफ उतरते ही वहाँ खड़े एक रिक्शे पर बैठ गए और उसे गुप्ता मार्केट चलने के लिए बोला। रिक्शे पर बैठते ही अनुपमा ने फिर से प्रबल का हाथ अपने हाथ में ले लिया प्रबल ने हाथ छुड़ना चाहा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा
“ओए अब तो बड़ा हो जा...या अपनी दीदी की उंगली पकड़कर ही चलता रहेगा... तेरी दीदी से दोस्ती है मेरी...बचपन की दोस्ती... समझा ...इसीलिए तुझे बिना पटाये मेरे जैसी हॉट लड़की के साथ करोल बाग में घूमने का मौका मिल रहा है.... वरना यहाँ कॉलेज में नखरे उठाते उठाते कंगले हो जाते हैं लड़के और किसी के साथ अकेले बैठकर कॉफी भी नहीं पीती...कॉलेज की कैंटीन में भी”
“जबसे में यहाँ आया हूँ ...तुम मेरे पीछे ही पड़ गयी हो... दीदी की तो कोई बात नहीं लेकिन अगर माँ को कुछ पता चल गया तो तुम्हारा तो मुझे पता नहीं... लेकिन मेरा क्या हाल करेंगी? इसलिए मुझे इन सब चक्कर से दूर रखो” प्रबल ने झुँझलाते हुये कहा तो अनुपमा ने अनसुना करते हुये अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल करने लगी
“कहाँ मरवा रही है कमीनी...फोन उठाने की भी फुर्सत नहीं” बहुत देर तक घंटी जाने पर फोन उठते ही अनुपमा ने चिल्लाकर कहा तो प्रबल ने चौंककर उसकी तरफ देखा फिर रिक्शेवाले और आसपास चलते लोगों की ओर... लेकिन किसी का भी ध्यान न पाकर फिर से अनुपमा की ओर देखने लगा जो दूसरी ओर से कही जा रही बात को सुन रही थी
“चल ठीक है... जल्दी से तैयार होकर आजा में गुप्ता मार्केट पहुँच रही हूँ... और उन सबको भी फोन करके बुला ले” अनुपमा ने फोन काटते हुये कहा
“तुम लड़की होकर इतने गंदे तरीके से ऐसे बात करती हो...और हम तो किताबें लेने जा रहे हैं ना... फिर किस-किसको बुला रही हो वहाँ.... हमें जल्दी लौटकर जाना है... माँ आनेवाली होंगी”
“बच्चे...अब दिल्ली में आ गए हो... देखते जाओ...यहाँ लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं.....” अनुपमा ने प्रबल का गाल खींचते हुये कहा
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kamdev99008

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कामदेव भईया .. ये 22 साल की घोड़ी अब स्नातक प्रथम वर्ष की पढ़ाई करेगी .. और एक बात विक्रम तो तीसरे भाई का बेटा था और रागीणी दुसरे नम्बर के भाई की बेटी है .. क्यों बार - बार इन बेवकूफ लड़कियों की बातों से हमें भ्रमित करते रहते हो ... :hmm:
Haan ye to jaanna zaruri hi hai ki itni khatarnak mahabharat aur itna rahasymayi locha kaise hua tha,,,,, :dazed:

Is liye is sabke liye flashback ka intzaar rahega kamdev bhai,,,,,, :approve:
Waise ek sawal mera bhi hai. Yadi aap jabab dena sahi samjhe to, kya aap bata sakte hai ki, is story ke lagbhag kitne update abhi aana baki hai. :blush1:
Awesome update
Lets start reading this story now as the writer says asli story abhi aani baki hai ..

:)
Gajab update bhai ji
Kya baat h bhai,,,,, extraordinary writing skills apke update ko smj ne ke liye to double mind ki jarurat padti hai,,,,,,
:hinthint:
Ab bhai ye pawan kon h,,,,,,, jaha ritu kam karti thi us vakil ka naam to shayad abhay tha
Acha to pawan ye tha:lol1:
Lekin ye to junior h,,,, aur ritu ne kaha ki vo pawan ke paas practice karti thi
Lo bhai,, Sare update pad liye finally,,,,, kahani to umeed se jyada khatarnaak, dilchasp,suspense se bhari padi hai,,,, gurujii apne to kisi serial ki tarah script likhi h,,, adbhut, mja agya,,,,,

Ikkathe update padne ka bhi alag hi mja h,,, lekin ab to regular par pahunch hi gye h to,,, dekhte h kitna intezaar karna padega update ke liye:lol1:
Fantastic review
Sahi baat hai
Very sorry to know that
Badhiya update
:congrats: For completing 100 pages on your thread.
:applause: :celebconf:

____________________
kehne ka matlab abhi 20 updates ko milne mein 6 mahine lage hai .. to 200 updates milne ka matlab

200 updates / 20 updates == 10 ...
6 mahine * 10 == 60 mahine ...
60 mahine / 12 == 5 years ...
Waiting for next update sir ji
:congrats: Kamdev bhai, Aapki kahani ke 100pages complete ho gaye,,,,, :flowers2:

Is khushi me ek update to milna hi chahiye,,,,,,, :vhappy:
Bhagwan aapko shakti de ki aap in sabhi jimmewariyon ko bakhubi nibha sake.
Mere layak koi jarurat ho to kripya batayen.
Dhanyawad
:congrats: Kamdev bhai, story ke 100 pages pure hone ki bahut bahut badhai. :blush1:
Congratulations for completing 100 pages
Baat ye hai ki, story ka hero vikram to suru me hi mar chuka hai aur uske bina story mujhe 100 update bhi mushkil se aage badte lag rahi thi. Isliye maine apni shanka ke samadhan ke liye wo sawal kiya tha. Lekin ab 200 update ki baat sunkar, mujhe lag raha hai ki, abhi story me aur bhi jyada pechidgi dekhne ko milne wali hai. :blush1:
Waiting for update sir ji
Will wait
Kamdev bhai, meri dharna jara bhi galat nahi hai. Apni isi dharna ki vajah se to maine aapse update ki sankhya ke vishay me puchha tha aur aapke is jabab ne to meri utsukta ko or bhi jyada bada diya hai. Asal me aapki is story me bahut kuch aisa hai, jo aam taur par kisi dusri story me dekhne ko nahi milta hai. Mai fijul ki tarif nahi karuga. Bas itna kahuga ki, aapki kahani sabse alag hai aur aapme story likhne ki adbhut kshmta hai. Jisse mujhe naya kuch sikhne ko mil raha hai. :blush1:
मित्रो!
22 वां अध्याय आपके सामने प्रस्तुत है
पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दें

इस अपडेट को देने में हुई देरी के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ....

लेकिन सामाजिक जीवन में समय देना भी जरूरी है
अगला अपडेट जल्दी ही देने का प्रयास करूंगा....

अभी ही लिख रहा हूँ...शायद 1-2 दिन में ही दे सकूँगा
 

TheBlackBlood

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अध्याय 22
इधर इन दोनों के घर से निकलने के बाद अनुराधा और अनुपमा आपस में बात करने लगीं तो प्रबल उठकर अपने कमरे की ओर चल दिया।
“तुम्हें क्या डॉक्टर ने मना किया है....बात करने को?” अनुपमा ने प्रबल को जाते देखकर उससे कहा तो प्रबल पलटकर उसकी ओर देखने लगा
“दीदी आपने मुझसे कुछ कहा क्या?” प्रबल ने अनुपमा से कहा
“मेंने सुबह कॉलेज में भी कहा था ना..... दीदी कहा कर अपनी दीदी को..... मेरा नाम अनुपमा है” अनुपमा ने उसे गुस्से से घूरते हुये उंगली दिखाकर कहा और फिर शर्मीली सी मुस्कान चेहरे पर लाते हुये बोली “प्यार से तुम मुझे अनु भी कह सकते हो”
“ओए कल्लो...मेरे भाई पर डोरे डालना बंद कर.... प्रबल तू जा आराम कर... यहाँ रहा तो ये तेरा दिमाग खा जाएगी” अनुराधा ने अनुपमा को हड़काते हुये प्रबल से कहा लेकिन प्रबल अनुराधा की बात को अनसुना करते हुये जाकर अनुपमा के पास बैठ गया
“देखो अनु मुझे तो कोई अनुभव है नहीं प्यार के बारे में...इसलिए अगर तुम मुझे सीखा सको कि कैसे प्यार से कहा जाता है... अब से तुम मुझे प्यार से कहना-सुनना सब सिखाओ....जिससे कि में किसी से प्यार से बात कर सकूँ या प्यार की बात कर सकूँ” प्रबल ने मुस्कराते हुये अनुपमा से कहा तो अनुपमा ही नहीं अनुराधा का भी मुंह खुला का खुला रह गया...दोनों को समझ नहीं आया कि क्या कहा जाए
“चल अब चुप हो जा... तू तो बहुत तेज निकला .... इस कल्लो की बोलती बंद कर दी.... में तो सोचती थी मेरा छोटा भाई कुछ जानता ही नहीं” अनुराधा ने खुद को समहलते हुये कहा... “अच्छा अनु ये बता ये ऊपर वाले फ्लोर पर जो आंटी रहती हैं...उनकी बेटी का नाम भी अनु ही लिया था उन्होने... इनके घर में कौन-कौन हैं?”
“देख राधा यहाँ अनु तो सिर्फ में ही हूँ.... तेरा नाम भी सिर्फ राधा ही लिया जाएगा.... उस लड़की का नाम अनुभूति है लेकिन उसे यहाँ लाली के नाम से बुलाते हैं....आंटी ने तुम लोगों के सामने लाली कहने में संकोच किया होगा इसलिए अनु बोला होगा.... वो दोनों माँ-बेटी को ही मेंने यहाँ देखा है.... बाकी उनके घर में और तो ना किसी को रहते और ना ही किसी को कभी आते-जाते देखा है मेंने... और कमाल कि बात तो ये है कि लाली तो पढ़ती है...हमारे वाले ही स्कूल में... तुम्हारे विक्रम भैया ने ही एड्मिशन कराया था लेकिन वो आंटी हमेशा घर पर ही रहती हैं... ना तो आस-पड़ोस में किसी के पास उठती-बैठती हैं और ना ही कोई काम करती हैं.... पता नहीं इन लोगों कि आमदनी का जरिया क्या है?” अनुपमा ने अपनी बात पूरी कि ही थी कि बाहर के दरवाजे पर खटखटाने की आवाज हुई।
प्रबल उठकर दरवाजे पर पहुंचा और खोलकर देखा तो दरवाजे पर शांति देवी और उनकी बेटी लाली खड़े हुये थे... प्रबल ने एक ओर हटकर उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया उनको देखकर अनुराधा और अनुपमा भी चुप होकर खड़े हुये और उन्हें दूसरे सोफ़े पर बैठने का इशारा किया.... लाली तो सोफ़े पर जाकर बैठ गयी लेकिन शांति देवी उन दोनों के पास चलकर आयीं और अनुराधा को गले लगा लिया... अनुराधा को अजीब सा लगा...उनका शरीर हलके हलके झटके लेता हुआ लगा तो अनुराधा ने अपना सिर उनकी गार्डन से पीछे खींचते हुये उनके चेहरे की ओर देखा तो उनकी आँखों से आँसू बहते देखकर चौंक गयी और उन्हें साथ लिए हुये सोफ़े पर उनके बराबर बैठ गई
“आंटी आप रो क्यों रही हैं... क्या बात है...प्लीज चुप होकर बताइये” अनुराधा ने कहा
“राधा बेटा में तुम्हारी मौसी हूँ.... ममता दीदी की छोटी बहन... मेंने उस दिन रागिनी दीदी के परिचय देते ही तुमसे मिलने का सोचा.... लेकिन ममता दीदी ने उनके साथ जो किया था...मुझे डर था कहीं वो हमारे बारे में जानते ही इस घर से ना निकाल दें.... में अपनी इस मासूम बच्ची को लेकर कहाँ जाती...” शांति देवी ने रोते हुये ही कहा
“आप मेरी मौसी हो.... मतलब मेरी मम्मी कि छोटी बहन... लेकिन विक्रम भैया ने आपको यहाँ कैसे रखा हुआ था....ओह .... अब समझ में आया... विक्रम भैया को आपके बारे में पता था इसीलिए उन्होने आपको यहाँ रखा हुआ था ..... लेकिन अब आप क्यों बता रही हैं?” अनुराधा ने शांति देवी से कहा
“में विक्रम तक कैसे पहुंची इस बारे में तो में रागिनी दीदी के सामने ही बताऊँगी.... पूरी बात.... अभी में इसलिए आयी हूँ क्योंकि में उनसे पहले तुमसे मिलना चाहती थी.... पहले तुम फैसला करना कि तुम मुझे अपना सकती हो या नहीं...उसके बाद ही में रागिनी दीदी से कोई बात करूंगी.... आज जब उनको तुम दोनों के बिना यहाँ से जाते देखा तो में तुमसे अकेले में बात करने आ गयी...बात बहुत ज्यादा गंभीर है....क्या हम कहीं अकेले में बात कर सकते हैं?”शांति देवी ने अनुराधा से कहा
“ठीक है... मेरे कमरे में चलिये...” अनुराधा ने कुछ सोचते हुये कहा तो शांति देवी ने लाली यानि अनुभूति को वहीं बैठने का इशारा किया और अनुराधा के पीछे पीछे उसके कमरे में चली गयी
अंदर पहुँचकर शांति देवी ने अपने पीछे दरवाजा बंद करके कुंडी लगाई और बैड पर आकर बैठ गयी...अनुराधा सामने ही खड़ी थी तो उसका भी हाथ पकड़कर अपने पास बैठा लिया और बात करनी शुरू की.... अनुराधा बार-बार उनकी बातों को सुनकर चौंक जाती और कभी खुश तो कभी दुखी होती....करीब आधे घंटे बात करने के बाद दोनों मुसकुराती हुई कमरे से बाहर निकली और आते ही अनुराधा ने लाली को सोफ़े से हाथ पकड़कर उठाया और गले से लगा लिया।
“तू बिलकुल चिंता मत कर... माँ को आने दे...वो सब सही कर देंगी... वो बाहर से जितनी कडक हैं... अंदर से उतनी ही नरम.... और मौसी जी....मौसी जी ही कहूँ आपको...” अनुराधा ने शांति देवी कि ओर देखकर मुसकुराते हुये कहा तो वो शर्मा सी गईं “आप भी बिलकुल चिंता छोड़ दो.... माँ को आ जाने दो...आप उनके सामने सब सच-सच बता देना ....”
“अच्छा एक बात बताओ अभी कुछ दिन से एक लड़की जो तुम लोगों के साथ रह रही है...वो कौन है? कोई रिश्तेदार है क्या? आज भी रागिनी दीदी के साथ गयी है वो” शांति देवी ने पूंछा
“वो ऋतु बुआ हैं.... विक्रम भैया की चचेरी बहन...” अनुराधा ने बताया
“मोहिनी चाची की बेटी....लेकिन वो तुम्हारे साथ क्यों रह रही है?” शांति देवी ने पूंछा
“आप जानती हैं मोहिनी चाची को?” अनुराधा ने आश्चर्य से पूंछा
“हाँ ...वो विक्रम के साथ अक्सर यहाँ आती रहती थीं ...मुझसे मिलने.... विक्रम तो शुरू में बहुत गुस्से में थे...लेकिन मोहिनी चाची ने ही उन्हें अपनी कसम देकर हम दोनों को यहाँ रहने देने के लिए मनाया था....” शांति देवी ने कहा
“लेकिन आप लोगों का खर्चा कैसे चलता है... अभी हम लोग आपके बारे में ही बात कर रहे थे तो अनुपमा ने बताया कि आप हमेशा घर पर ही रहती हो और लाली अभी पढ़ रही है” अनुराधा ने पूंछा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा... लेकिन अनुराधा ने उसकी ओर बिना ध्यान दिये शांति देवी कि ओर जवाब के इंतज़ार में देखा
“वो... मोहिनी चाची ने वैसे तो हमारा सारा इंतजाम किया था शुरू मे लेकिन फिर एक कंपनी से हर महीने कुछ पैसे मेरे और लाली के अकाउंट में आने लगे.... मोहिनी चाची ने बताया था कि ये कंपनी हमारी ही है और हमारे परिवार के सभी सदस्यों को इसी कंपनी से हर महीने पैसे मिलते हैं खर्चे के लिए.... इस कंपनी की पूंजी में परिवार के हर सदस्य का हिस्सा है.... लेकिन इसका प्रबंधन केवल विक्रम ही करते थे.... बाकी कोई भी परिवार का सदस्य इस कंपनी में दखल नहीं देता...” शांति देवी ने बताया
“कौन सी कंपनी है... मतलब उसका नाम वगैरह” अनुराधा ने पूंछा
“दीदी हमें ज्यादा जानकारी नहीं... लेकिन हमारे खाते में कंपनी का नाम सिंडिकेट लिख कर आता है.... राणा आरपी सिंह सिंडिकेट (ranarpsingh syndicate)” लाली ने बताया
“चलो ठीक है...अभी माँ से पूंछती हूँ कि वो कितनी देर में आ रही हैं” कहते हुये अनुराधा ने रागिनी को कॉल किया
“हाँ बेटा क्या बात है?” रागिनी ने फोन उठाते ही पूंछा
“माँ आप कब तक आ जाओगी?” अनुराधा ने कहा
“बस अभी निकले हैं बाहर 1 घंटे में घर पहुँच जाएंगे” रागिनी ने कहा “कोई खास बात है क्या?”
“नहीं माँ चिंता कि कोई बात नहीं.... लेकिन बात खास ही है....आप घर आ जाओ फिर बताती हूँ... और ऋतु बुआ को भी साथ ले आना”
“ऋतु भी मेरे साथ ही आ रही है....घंटे भर में पहुँच जाएंगे” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया
“माँ एक घंटे में आ रही हैं” अनुराधा ने फोन रखते हुये बताया
“ठीक है... अभी हम ऊपर वाले घर में जा रहे हैं... रागिनी दीदी आ जाएँ तो फिर आते हैं” कहते हुये शांति देवी उठने को हुई
“आंटी अप लोग बैठकर राधा से बात करो.... अभी मुझे अपने लिए कॉलेज की किताबें लानी थीं बाज़ार से लेकिन अब इन दोनों ने भी एड्मिशन ले लिया है तो में और प्रबल बाज़ार होकर आते हैं... तब तक रागिनी बुआ भी आ जाएंगी” अनुपमा ने अनुराधा और प्रबल कि ओर मुसकुराते हुये देखकर कहा और उठ खड़ी हुई
अब शांति देवी के सामने अनुराधा या प्रबल ने कुछ कहना सही नहीं समझा इसलिए अनुराधा ने प्रबल को इशारा किया तो वो भी उठकर खड़ा हुआ और कपड़े बदलने के लिए कमरे में जाने लगा...
“तुम कहाँ जा रहे हो?” अनुपमा ने प्रबल से कहा
“कपड़े तो बादल लूँ” प्रबल ने जवाब दिया
“कहीं बाहर घूमने नहीं जा रहे हैं.... यहीं करोल बाग से किताबें लेनी हैं... तो कपड़े बदलने कि जरूरत नहीं... ऐसे ही ठीक लग रहे हो” अनुपमा ने कहा
“अरे मेरी माँ.... उसे पैसे तो ले लेने दे...और तू क्या ऐसे ही जाएगी...” अनुराधा ने कहा
“हाँ! में तो ऐसे ही चली जाती हूँ.... और पैसे हैं मेरे पास.... वापस आकर तुमसे हिसाब करके पैसे ले लूँगी” कहते हुये अनुपमा ने प्रबल का हाथ पकड़ा और खींचती हुई सी बाहर चली गयी
“कैसे चलना है... गाड़ी तो माँ ले गयी हैं... उनके वापस आने के बाद चलते हैं” बाहर निकलकर प्रबल ने कहा
“कोई जरूरत नहीं गाड़ी की...... ये राजस्थान नहीं है... जहां सबकुछ बहुत दूर-दूर होता हो.... यहाँ गाड़ी लेकर चलोगे तो पहले तो पूरा चक्कर लगाकर आनंद पर्वत होकर करोल बाग पाहुचेंगे.... उसमें भी जाम में फंस गए तो घंटों का समय लगेगा... हम यहाँ से पैदल फाटक पर करेंगे और गौशाला से रिक्शा लेकर 15 मिनट में करोल बाग पहुँच जाएंगे...1 घंटे में तो वापस भी आ जाएंगे” अनुराधा ने प्रबल को अपने साथ आगे खींचते हुये कहा तो प्रबल चुपचाप उसके साथ चल दिया... लेकिन उसने अनुपमा के हाथ से अपना हाथ छुड़ा लिया... क्योंकि वहाँ आसपास के लोगों के सामने अनुपमा का हाथ पकड़े उसे अजीब सा लग रहा था
वहाँ से दोनों आगे बढ़े और किशनगंज रेलवे स्टेशन के पल को पार करके दूसरी तरफ उतरते ही वहाँ खड़े एक रिक्शे पर बैठ गए और उसे गुप्ता मार्केट चलने के लिए बोला। रिक्शे पर बैठते ही अनुपमा ने फिर से प्रबल का हाथ अपने हाथ में ले लिया प्रबल ने हाथ छुड़ना चाहा तो अनुपमा ने उसे घूरकर देखा
“ओए अब तो बड़ा हो जा...या अपनी दीदी की उंगली पकड़कर ही चलता रहेगा... तेरी दीदी से दोस्ती है मेरी...बचपन की दोस्ती... समझा ...इसीलिए तुझे बिना पटाये मेरे जैसी हॉट लड़की के साथ करोल बाग में घूमने का मौका मिल रहा है.... वरना यहाँ कॉलेज में नखरे उठाते उठाते कंगले हो जाते हैं लड़के और किसी के साथ अकेले बैठकर कॉफी भी नहीं पीती...कॉलेज की कैंटीन में भी”
“जबसे में यहाँ आया हूँ ...तुम मेरे पीछे ही पड़ गयी हो... दीदी की तो कोई बात नहीं लेकिन अगर माँ को कुछ पता चल गया तो तुम्हारा तो मुझे पता नहीं... लेकिन मेरा क्या हाल करेंगी? इसलिए मुझे इन सब चक्कर से दूर रखो” प्रबल ने झुँझलाते हुये कहा तो अनुपमा ने अनसुना करते हुये अपना मोबाइल निकाला और किसी को कॉल करने लगी
“कहाँ मरवा रही है कमीनी...फोन उठाने की भी फुर्सत नहीं” बहुत देर तक घंटी जाने पर फोन उठते ही अनुपमा ने चिल्लाकर कहा तो प्रबल ने चौंककर उसकी तरफ देखा फिर रिक्शेवाले और आसपास चलते लोगों की ओर... लेकिन किसी का भी ध्यान न पाकर फिर से अनुपमा की ओर देखने लगा जो दूसरी ओर से कही जा रही बात को सुन रही थी
“चल ठीक है... जल्दी से तैयार होकर आजा में गुप्ता मार्केट पहुँच रही हूँ... और उन सबको भी फोन करके बुला ले” अनुपमा ने फोन काटते हुये कहा
“तुम लड़की होकर इतने गंदे तरीके से ऐसे बात करती हो...और हम तो किताबें लेने जा रहे हैं ना... फिर किस-किसको बुला रही हो वहाँ.... हमें जल्दी लौटकर जाना है... माँ आनेवाली होंगी”
“बच्चे...अब दिल्ली में आ गए हो... देखते जाओ...यहाँ लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं.....” अनुपमा ने प्रबल का गाल खींचते हुये कहा
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Waaah kamdev bhai bahut hi khubsurat raha ye update. Abhi bhi bahut kuch aisa hai jo parde me hain. Khair dekhte hain aur kya kya parde se nikal kar baagar aata hai,,,,,, :dazed:

Ye anupama to badi chaalu aur pahuchi huyi ladki lag rahi hai aur sath hi iske irade bhi nek nahi lag rahe. Prabal jaise innocent ladke ko bigaadne wala kaam karne ka man banaya hua hai isne. Khair dekhte hain kya hota hai aage,,,,,, :)

Ye baat to aapne solah aane sach kahi bhai ki delhi ki ladkiya ladko se kisi bhi maamle me kam nahi hain. Ab to bhagwan hi bachaye prabal ko is anupama se aur delhi ki ladkiyo se,,,,,, :hehe:
 

Akki ❸❸❸

ᴾʀᴏᴜᴅ ᵀᴏ ᴮᴇ ᴴᴀʀʏᴀɴᴠɪ
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Haha,, bdiya update tha bhai,,,, prabal ka bhi syani anupama se pala pada h, dekhte h age kya hota h
 

SKYESH

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अध्याय 22
इधर इन दोनों के घर से रहे हैं ना... फिर किस-किसको बुला रही हो वहाँ.... हमें जल्दी लौटकर जाना है... माँ आनेवाली होंगी”
“बच्चे...अब दिल्ली में आ गए हो... देखते जाओ...यहाँ लड़कियां लड़कों से कम नहीं हैं.....” अनुपमा ने प्रबल का गाल खींचते हुये कहा
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pura story fir se padh ne padega .....
 
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