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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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अध्याय 13

रात को रागिनी, अनुराधा और प्रबल दिल्ली पहुंचे तो उन्होने मोहिनी देवी के यहाँ सुबह जाने का निर्णय लिया और किशनगंज वाले घर पर पहुँच गए...खाना उन लोगो ने रास्ते मे ही खा लिया था... घर पहुँचकर वो लोग फ्रेश होकर सोने की तयारी करने लगे की तभी बाहर दरवाजे पर आवाज हुई तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला, बाहर रेशमा खड़ी हुई थी और उनके साथ चाय नाश्ता लिए अनुपमा भी थी.... प्रबल ने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया और सोफ़े पर बैठने का कहकर रागिनी को बुलाने चला गया.... रागिनी को जैसे ही रेशमा और अनुपमा के आने का पता चला तो उन्होने प्रबल से अनुराधा को भी बुलाने का कहा और खुद बाहर ड्राइंग रूम मे आकर रेशमा के पास बैठ गईं

“भाभी नमस्ते! आप इतनी रात को क्यों परेशान हुई, हम लोग तो रास्ते में ही खाना खाकर आए थे... सुबह आपसे आकार मिलते... रात हो गयी थी तो सोचा की अभी सो जाते हैं.... सफर की भी थकान थी” रागिनी ने रेशमा से कहा तो रेशमा ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बड़े प्यार से कहा

“मुझे मालूम था की तुम अभी हमें परेशान करना नहीं चाहोगी ...इसीलिए तुम्हारी गाड़ी की आवाज सुनते ही मेंने चाय बनाने को कह दिया और लेकर यहाँ आ गयी... बेशक तुम लोग रास्ते में ही खाना खाकर आए हो.... लेकिन सफर के बाद अब कुछ चाय नाश्ता करके आराम करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और थकान भी कम हो जाएगी.... बाकी बात तो हम कभी भी दिन में बैठकर करते रहेंगे...”

तभी प्रबल और अनुराधा भी वहाँ आ चुके थे.... और अनुराधा अनुपमा के पास जाकर बैठ गयी तो रागिनी ने प्रबल को अपने पास बैठा लिया.... फिर चाय नाश्ते के दौरान हल्की-फुलकी बातचीत होने लगी। रेशमा ने बताया की आज दिन में विक्रम की चाची मोहिनी जी अपनी बेटी के साथ यहाँ आयीं थीं तो रागिनी ने कहा की उन्होने उसे फोन किया था और उनकी बात हो गयी है... साथ ही रेशमा ने बताया की बाहर चौक पर एक दुकान है.... वहाँ जो लड़का बैठता है वो भी रागिनी के बारे में पुंछने आया था कल... तो उन्होने उसे बता दिया था की वो 1-2 दिन में वापस आ रही हैं और अब यहीं रहेंगी... ये सुनकर रागिनी सोच में पड़ गईं तो अनुराधा ने कहा कि ये शायद वही है जिससे पहले दिन हमने इस घर का पता पूंछा था.... वो उस दिन भी रागिनी को बहुत ध्यान से देख रहा था.... जैसे बहुत अच्छी तरह जानता हो। तो रागिनी ने कहा की अब तो यहीं रहना है तो फिर किसी दिन उसको भी मिल लेंगे की वो क्यों मिलना चाहता है। इस सब के बाद रेशमा और अनुपमा वापस अपने घर चली गईं और वो सब अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

...............................

इधर मोहिनी क घर ... शाम को लगभग 5 बजे एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से बलराज सिंह उतरे और घर में आ गए। मोहिनी ने उन्हें चाय नाश्ता दिया उसके बाद उन्हें आराम करने को कहा तो वो अपने बेडरूम में जाकर लेट गए और सो गए... 7 बजे ऋतु घर आयी तो मोहिनी ने उसे चाय दी और बताया की उसके पापा आ गए हैं और सो रहे हैं तो ऋतु ने उन्हें अभी सोने देने के लिए कहा और मोहिनी देवी के साथ रात के खाने की तयारी में लग गयी। 9 बजे खाना तयार होने पर मोहिनी देवी ने बलराज सिंह को जगाया और खाने के लिए कहा तो वो फ्रेश होने चले गए, फ्रेश होकर बाहर आए तो डाइनिंग टेबल पर ऋतु और मोहिनी बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे, वो भी आकर वहाँ बैठ गए और सबने खाना खाया।

खाना खाकर बलराज सिंह ने मोहिनी देवी की ओर देखा तो उन्होने सहमति मे सिर हिला दिया तो बलराज सिंह ने कहना शुरू किया

“ऋतु बेटा! अब तक तुम परिवार में सिर्फ मुझे और अपनी माँ को या फिर विक्रम को जानती थी... लेकिन अब तुम्हारी माँ ने तुम्हें रागिनी और अनुराधा के बारे में भी बता दिया होगा... विमला मेरी सगी बहन थी.... मुझसे बड़ी और गजराज भैया से छोटी.... किसी वजह से उससे हमारे संबंध खत्म हो गए और उसके या उसके परिवार से हमने कोई नाता नहीं रखा.... पूरे परिवार ने ही..... फिर आज से 20 साल पहले कुछ ऐसी परिस्थिर्तियाँ बनी कि हुमें विक्रम कि वजह से विमला से दोबारा मिलना पड़ा और उसके बाद परिस्थितियाँ बिगड़ती चली गईं.... जिसमें कुछ विमला का दोष था तो कुछ मेरा...... तुम्हारी माँ का कोई दोष तो नहीं था लेकिन उसने सिर्फ एक गलती की कि वो सबकुछ देखते हुये भी चुप रही...और उसकी चुप्पी ने वो कर दिया जो कि आज तुम्हारे सामने है.... विक्रम अब इस दुनिया मे ही नहीं रहा और रागिनी कि याददास्त चली गयी... तुम और अनुराधा कुछ जानते नहीं...अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें या यूं कहो कि मेरे और तुम्हारी माँ के अलावा जानने वाला कोई नहीं रहा घर मे। ये सब धीरे-धीरे वक़्त के साथ तुम सबको बताऊंगा लेकिन शायद तुम सुन न सको... या सह न सको... इसलिए अभी उन बातों को छोडकर हमें कल सुबह रागिनी के पास चलना है.... उस बेचारी का तो कोई दोष ही नहीं... जिसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भोगी....और दुख कि बात ये है कि वो अब ये भी भूल चुकी है कि दोषी कौन था.... और शायद इसी वजह से में आज उसका सामना करने कि हिम्मत कर सकता हूँ।

अब तो सिर्फ यही कहूँगा कि जैसे रागिनी सबकुछ भूल गयी याददास्त जाने की वजह से .... तुम भी कुछ जानने या समझने को भूलकर... मिलकर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करो....कल चलकर रागिनी और अनुराधा को भी ले आते हैं और सब साथ मिलकर रहेंगे”

ऋतु एकटक उनके चेहरे कि ओर देखती रही... उनके चुप हो जाने के बाद भी कुछ देर तक ऋतु कि नजरें बलराज सिंह के चेहरे से नहीं हट पायीं। फिर ऋतु ने एक गहरी सांस लेते हुये उनसे कहा

“पापा में भी कुछ जानना नहीं चाहती कि पहले हमारे परिवार में ऐसा क्या हुआ कि हम सब बिछड़ गए और परिवार ही बिखर गया.... में भी चाहती हूँ कि हम सब मिलकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करें। में सुबह रागिनी दीदी को फोन कर दूँगी... वो भी शायद दिल्ली पहुँच रही होंगी या पहुच चुकी होंगी”

इसके बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए। मोहिनी और बलराज बहुत रात तक धीमे-धीमे एक दूसरे से बातें करते रहे, हँसते, मुसकुराते और रोते रहे... शायद बीती ज़िंदगी की बातें याद करके, इधर ऋतु भी अपनी सोचों मे खोयी हुई थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले को लेकर। वो जानती थी की विक्रम उसकी हर जिद पूरी करता था... और विक्रम का हर फैसला उसके माँ-बाप को मंजूर होता था.... इसीलिए वो सही वक़्त के इंतज़ार में थी... जब वो विक्रम को इस बारे में बताती और उसका मनचाहा हो जाता.... लेकिन विक्रम की मौत ने तो उसे अनिश्चितता के दोराहे पर खड़ा कर दिया.... अब इन बदलते हालत में तो वो इस बारे मे कोई बात भी करने का मौका नहीं बना प रही थी... विक्रम की मौत, फिर रागिनी और उसके बच्चों का सामने आना, फिर उन सबका राज खुलना वसीयत से और अब इस नए राज का खुलासा...की रागिनी कौन है? अभी तो इस घर में न जाने और क्या क्या बदलाव आएंगे.... तब तक उसे चुप रहना ही बेहतर लगा...साथ ही एक और भी उम्मीद उसे लगी, रागिनी। हाँ! रागिनी ही अब उसके लिए विक्रम की जगह लेगी... क्योंकि रागिनी के लिए उसने अपने माँ-बाप के दिल में एक लगाव और एक पछतावा भी देखा... साथ ही रागिनी के साथ इतने दिन रहकर उसे रागिनी बहुत सुलझी हुई भी लगी....

यही सब सोचते-सोचते ऋतु भी नींद के आगोश मे चली गयी..........एक नए सवेरे की उम्मीद में

.......................................

सुबह दरवाजा खटखटाये जाने पर रागिनी की आँख खुली तो उसने बाहर आकर दरवाजा खोला तो सामने अनुपमा चाय के साथ मौजूद थी... रागिनी ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकालकर बाहर आ चुके थे...फिर सभी ने चाय पी और रागिनी अनुपमा के साथ ही रेशमा के घर जाकर उनसे बोलकर आयी कि अब वो उनके लिए खाना वगैरह न बनाएँ... आज से रागिनी अपने घर मे सबकुछ व्यवस्था कर लेगी... क्योंकि अब इन लोगों को यहीं रहना है...रेशमा के परिवार वालों के बहुत ज़ोर देने पर भी उसने नाश्ते को ये बताकर माना कर दिया कि उन्हें अभी विक्रम कि चाची के घर जाना है...वहीं नाश्ता कर लेंगे....

घर आने पर रागिनी को पता चला कि ऋतु का फोन आया था कि वो लोग आ रहे हैं तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल से घर का समान लेने के लिए बाज़ार चलने को कहा। अभी उनकी गाड़ी गली से बाहर निकलकर चौक पर पहुंची ही थी की रागिनी को रेशमा की बात याद आयी और उसने अनुराधा को गाड़ी उसी दुकान के सामने रोकने को कहा। दुकान पर वही आदमी मौजूद था जो उस दिन रास्ता बता रहा था। गाड़ी रुकते ही वो अपनी दुकान से निकलकर गाड़ी के पास आके खड़ा हो गया।

गाड़ी रुकने पर रागिनी अपनी ओर का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और उसके सामने खड़ी हो गयी। रागिनी को देखते ही वो एकदम उसके पैरों मे झुका और पैर छूकर बोला “रागिनी दीदी...पहचाना आपने...में प्रवीण....आप कहाँ चली गईं थीं, इतने साल बाद आपको देखा है?”

रागिनी ने गंभीरता से उसे देखते हुये कहा “अब में यहीं रहूँगी... में राजस्थान में रहती थी.... मुझे रेशमा भाभी ने बताया था कि तुम मुझसे मिलने आए थे?”

“हाँ दीदी, उस दिन जब आप आयीं थीं तो मुझे कुछ पहचानी हुयी लगीं... और जब आपने अपने घर का पता पूंछा तो मुझे याद आ गया कि ये आप हैं... आइए आपको माँ से मिलवाता हूँ... माँ और सुधा दीदी आपको बहुत याद करतीं हैं...” उस आदमी ने रागिनी से कहा तो रागिनी असमंजस में पड गयी, तब तक उसे रागिनी के पैर छूते और बात करते देखकर प्रबल और अनुराधा भी गाड़ी से उतरकर रागिनी के पास ही खड़े हो गए

“नहीं भैया! फिर आऊँगी अभी तो बाज़ार जा रहे थे घर का समान लाना है... यहाँ रहना है तो सब व्यवस्था भी करनी होगी” रागिनी को असमंजस में देखकर अनुराधा ने उससे कहा

“आप चिंता मत करो दीदी, मुझे बताओ क्या समान लेना है... में सारा समान अभी घर भिजवा दूँगा... और ये दोनों कौन हैं” उसने रागिनी से कहा

“ये अनुराधा है... इसे तो जानते होगे.... मेरी भतीजी” रागिनी ने कहा

“हाँ! इसे तो में बहुत खिलाया करता था जब आप और सुधा दीदी इसे यहाँ दुकान पर लेकर आती थीं.... ये भी आपके साथ ही रहती होगी”

“हाँ! ये मेरे साथ ही रहती है...” रागिनी ने अनमने से होकर कहा तो उसे ध्यान आया कि वो बहुत देर से वहीं खड़े खड़े बात कर रहे हैं

“दीदी आप समान कि लिस्ट दो मुझे ये में पैक करा के गाड़ी में रखवाता हूँ, तब तक चलो माँ से मिल लो... उनकी तबीयत खराब रहती है... इसलिए चल फिर नहीं सकती” उसके कहने पर रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो अनुराधा ने समान कि लिस्ट प्रवीण को दे दी और तीनों प्रवीण के पीछे-पीछे उसके घर में अंदर चले गए

अंदर एक कमरे में बैड पर एक 55-60 साल की औरत अधलेटी बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी...प्रवीण के साथ इन लोगों को आते देखकर उसने ध्यान से सबको देखा और रागिनी को पहचानकर अपने पास आने का इशारा किया। पास जाते ही उसने रागिनी को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी तो प्रवीण ने अनुराधा और प्रबल को बैठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया

“रागिनी बेटा तुम्हें कभी हमारी याद नहीं आयी.... सुधा तो आजतक खुद को तुम्हारा दोषी मानती है.... ना वो उस कमीनी ममता के चक्कर में पड़ती और न ही तुम्हारे साथ ऐसा होता.... हमें तो ये लगता था कि पता नहीं तुम्हारे साथ क्या किया उन लोगों ने, पता नहीं तुम इस दुनिया में हो भी या नहीं या हो भी तो न जाने कैसी ज़िंदगी जी रही होगी” उस औरत ने कहा तो ममता का नाम सुनकर रागिनी और अनुराधा दोनों ही चोंक गईं। रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही अनुराधा ने पुंछ लिया

“कौन ममता?”

“वही रागिनी की भाभी.... उसने सुधा के तो छोड़ो... रागिनी के भी विश्वास और प्यार को धोखा दे दिया... रागिनी तो उसे अपनी माँ से भी ज्यादा चाहती और मानती थी” उस औरत ने कहा तो अनुराधा मुंह फाड़े देखती रह गयी...रागिनी भी अवाक होकर देखने लगी... लेकिन वो अपनी धुन में आगे कहती गयी “रागिनी बेटा तुमने तो उसकी बेटी को भी अपनी बेटी की तरह पाला...बल्कि वो माँ होकर भी न पल सकी और न पाल सकती थी.... वैसे उसकी बेटी अनुराधा का कुछ पता है?”

“जी! ये अनुराधा ही है” रागिनी ने उलझे से अंदाज में अनुराधा की ओर इशारा करते हुये कहा तो एक पल के लिए प्रवीण कि माँ भी सकते से मे आ गयी और कमरे में मौजूद सभी एक दूसरे कि ओर देखने लगे लेकिन किसी के भी मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

“अनुराधा बेटी... तुम्हें बुरा लगा होगा कि मेंने तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा कहा... शायद रागिनी ने भी तुम्हें इस बारे में कभी बताया नहीं होगा... ये ऐसी ही थी... कभी किसी का न बुरा सोचती थी न बुरा कहती थी.... लेकिन जो मेंने कहा है... सिर्फ सुना है... सुधा के मुंह से... ममता के सामने... इसलिए जानती हूँ.... लेकिन रागिनी ने तो खुद भोगा है...इसीसे पूंछ लो?” कहते हुये उन्होने रागिनी कि ओर देखा तो रागिनी ने एक बार अनुराधा और प्रबल कि ओर देखा और प्रवीण की माँ कि आँखों में देखते हुये कहा

“मुझे कुछ भी याद नहीं... 20 साल से मेरी याददास्त गयी हुई है.... में पिछले 20 साल से राजस्थान मे रह रही थी... एक विक्रमादित्य सिंह थे उनके पास... उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत से मुझे यहाँ का पता मिला तब यहाँ पहुंची हूँ... और मुझे कुछ भी नहीं पता.... मुझे तो मेरा नाम भी विक्रमादित्य ने बताया था। ये दोनों बच्चे भी विक्रमादित्य ने मुझे सौंपे थे”

“ये तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ.... लेकिन बस तुम सही सलामत हो...मुझे इसी की खुशी है..... एक मिनट में सुधा को भी बता दूँ तुम्हारे बारे में” कहते हुये उन्होने मोबाइल से कॉल मिलाया... थोड़ी देर बाद उधर से आवाज आयी

“माँ कैसी हो तुम? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?”

“सुन बेटा... तुझे एक खुशखबरी देनी है.... जो तू सोच भी नहीं सकती”

“क्या माँ? भैया के यहाँ कोई खुशखबरी है... नेहा के कुछ होनेवाला है क्या?”

“नहीं! उससे भी बड़ी खुशखबरी.......... अपनी रागिनी आयी है.... और अब वो यहीं रहेगी...अपने मकान में....ले बात कर” कहते हुये उन्होने फोन रागिनी को दे दिया फोन कान पर लगते ही रागिनी को उधर से भर्राई सी आवाज सुनाई दी

“रागिनी... तू सच में आ गयी... मेरा दिल कहता था तेरे साथ कभी बुरा नहीं हो सकता.... मुझे विक्रम पर पूरा भरोसा था कि वो तुझे बचा लेगा....” सुधा ने कहा तो रागिनी ने सिर्फ इतना कहा

“हाँ! में विक्रम के पास ही थी”

“चल ठीक है फोन पर नहीं अब तुझसे मिलकर ही बात करूंगी.... बच्चों को स्कूल से आ जाने दे... फिर में आती हूँ शाम तक... ‘उनको’ बोलकर.... रात को तेरे पास ही रुकूँगी” कहते हुये सुधा ने फोन काट दिया

तभी प्रवीण ने कमरे में आकर बताया कि उसने सारा समान पैक करा दिया है...चलकर गाड़ी में समान रखवा लें.... अनुराधा प्रबल का हाथ पकड़कर प्रवीण के साथ बाहर चली गयी... कुछ देर तक रागिनी भी कुछ नहीं बोली... फिर उसने कहा

“में फिर आऊँगी आपसे मिलने.... और सुधा भी शाम को आने का कह रही है...तब तक में भी कुछ जरूरी काम निपटा लेती हूँ” ये कहते हुये रागिनी भी बाहर निकाल आयी और गाड़ी में बैठ गयी... अनुराधा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुयी थी, प्रबल ने गाड़ी में समान रखवाकर प्रवीण से समान के पैसे पूंछे तो प्रवीण ने माना कर दिया... इस पर रागिनी ने प्रवीण को पास बुलाकर समझाकर पैसे लेने को राजी किया और पैसे दे दिये। प्रबल भी जाकर आगे अनुराधा के बराबर में बैठ गया और गाड़ी चौक मे घुमाकर तीनों वापस घर आ गए।
 

ruby mittal

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रात को रागिनी, अनुराधा और प्रबल दिल्ली पहुंचे तो उन्होने मोहिनी देवी के यहाँ सुबह जाने का निर्णय लिया और किशनगंज वाले घर पर पहुँच गए...खाना उन लोगो ने रास्ते मे ही खा लिया था... घर पहुँचकर वो लोग फ्रेश होकर सोने की तयारी करने लगे की तभी बाहर दरवाजे पर आवाज हुई तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला, बाहर रेशमा खड़ी हुई थी और उनके साथ चाय नाश्ता लिए अनुपमा भी थी.... प्रबल ने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया और सोफ़े पर बैठने का कहकर रागिनी को बुलाने चला गया.... रागिनी को जैसे ही रेशमा और अनुपमा के आने का पता चला तो उन्होने प्रबल से अनुराधा को भी बुलाने का कहा और खुद बाहर ड्राइंग रूम मे आकर रेशमा के पास बैठ गईं

“भाभी नमस्ते! आप इतनी रात को क्यों परेशान हुई, हम लोग तो रास्ते में ही खाना खाकर आए थे... सुबह आपसे आकार मिलते... रात हो गयी थी तो सोचा की अभी सो जाते हैं.... सफर की भी थकान थी” रागिनी ने रेशमा से कहा तो रेशमा ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बड़े प्यार से कहा

“मुझे मालूम था की तुम अभी हमें परेशान करना नहीं चाहोगी ...इसीलिए तुम्हारी गाड़ी की आवाज सुनते ही मेंने चाय बनाने को कह दिया और लेकर यहाँ आ गयी... बेशक तुम लोग रास्ते में ही खाना खाकर आए हो.... लेकिन सफर के बाद अब कुछ चाय नाश्ता करके आराम करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और थकान भी कम हो जाएगी.... बाकी बात तो हम कभी भी दिन में बैठकर करते रहेंगे...”

तभी प्रबल और अनुराधा भी वहाँ आ चुके थे.... और अनुराधा अनुपमा के पास जाकर बैठ गयी तो रागिनी ने प्रबल को अपने पास बैठा लिया.... फिर चाय नाश्ते के दौरान हल्की-फुलकी बातचीत होने लगी। रेशमा ने बताया की आज दिन में विक्रम की चाची मोहिनी जी अपनी बेटी के साथ यहाँ आयीं थीं तो रागिनी ने कहा की उन्होने उसे फोन किया था और उनकी बात हो गयी है... साथ ही रेशमा ने बताया की बाहर चौक पर एक दुकान है.... वहाँ जो लड़का बैठता है वो भी रागिनी के बारे में पुंछने आया था कल... तो उन्होने उसे बता दिया था की वो 1-2 दिन में वापस आ रही हैं और अब यहीं रहेंगी... ये सुनकर रागिनी सोच में पड़ गईं तो अनुराधा ने कहा कि ये शायद वही है जिससे पहले दिन हमने इस घर का पता पूंछा था.... वो उस दिन भी रागिनी को बहुत ध्यान से देख रहा था.... जैसे बहुत अच्छी तरह जानता हो। तो रागिनी ने कहा की अब तो यहीं रहना है तो फिर किसी दिन उसको भी मिल लेंगे की वो क्यों मिलना चाहता है। इस सब के बाद रेशमा और अनुपमा वापस अपने घर चली गईं और वो सब अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

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इधर मोहिनी क घर ... शाम को लगभग 5 बजे एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से बलराज सिंह उतरे और घर में आ गए। मोहिनी ने उन्हें चाय नाश्ता दिया उसके बाद उन्हें आराम करने को कहा तो वो अपने बेडरूम में जाकर लेट गए और सो गए... 7 बजे ऋतु घर आयी तो मोहिनी ने उसे चाय दी और बताया की उसके पापा आ गए हैं और सो रहे हैं तो ऋतु ने उन्हें अभी सोने देने के लिए कहा और मोहिनी देवी के साथ रात के खाने की तयारी में लग गयी। 9 बजे खाना तयार होने पर मोहिनी देवी ने बलराज सिंह को जगाया और खाने के लिए कहा तो वो फ्रेश होने चले गए, फ्रेश होकर बाहर आए तो डाइनिंग टेबल पर ऋतु और मोहिनी बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे, वो भी आकर वहाँ बैठ गए और सबने खाना खाया।

खाना खाकर बलराज सिंह ने मोहिनी देवी की ओर देखा तो उन्होने सहमति मे सिर हिला दिया तो बलराज सिंह ने कहना शुरू किया

“ऋतु बेटा! अब तक तुम परिवार में सिर्फ मुझे और अपनी माँ को या फिर विक्रम को जानती थी... लेकिन अब तुम्हारी माँ ने तुम्हें रागिनी और अनुराधा के बारे में भी बता दिया होगा... विमला मेरी सगी बहन थी.... मुझसे बड़ी और गजराज भैया से छोटी.... किसी वजह से उससे हमारे संबंध खत्म हो गए और उसके या उसके परिवार से हमने कोई नाता नहीं रखा.... पूरे परिवार ने ही..... फिर आज से 20 साल पहले कुछ ऐसी परिस्थिर्तियाँ बनी कि हुमें विक्रम कि वजह से विमला से दोबारा मिलना पड़ा और उसके बाद परिस्थितियाँ बिगड़ती चली गईं.... जिसमें कुछ विमला का दोष था तो कुछ मेरा...... तुम्हारी माँ का कोई दोष तो नहीं था लेकिन उसने सिर्फ एक गलती की कि वो सबकुछ देखते हुये भी चुप रही...और उसकी चुप्पी ने वो कर दिया जो कि आज तुम्हारे सामने है.... विक्रम अब इस दुनिया मे ही नहीं रहा और रागिनी कि याददास्त चली गयी... तुम और अनुराधा कुछ जानते नहीं...अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें या यूं कहो कि मेरे और तुम्हारी माँ के अलावा जानने वाला कोई नहीं रहा घर मे। ये सब धीरे-धीरे वक़्त के साथ तुम सबको बताऊंगा लेकिन शायद तुम सुन न सको... या सह न सको... इसलिए अभी उन बातों को छोडकर हमें कल सुबह रागिनी के पास चलना है.... उस बेचारी का तो कोई दोष ही नहीं... जिसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भोगी....और दुख कि बात ये है कि वो अब ये भी भूल चुकी है कि दोषी कौन था.... और शायद इसी वजह से में आज उसका सामना करने कि हिम्मत कर सकता हूँ।

अब तो सिर्फ यही कहूँगा कि जैसे रागिनी सबकुछ भूल गयी याददास्त जाने की वजह से .... तुम भी कुछ जानने या समझने को भूलकर... मिलकर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करो....कल चलकर रागिनी और अनुराधा को भी ले आते हैं और सब साथ मिलकर रहेंगे”

ऋतु एकटक उनके चेहरे कि ओर देखती रही... उनके चुप हो जाने के बाद भी कुछ देर तक ऋतु कि नजरें बलराज सिंह के चेहरे से नहीं हट पायीं। फिर ऋतु ने एक गहरी सांस लेते हुये उनसे कहा

“पापा में भी कुछ जानना नहीं चाहती कि पहले हमारे परिवार में ऐसा क्या हुआ कि हम सब बिछड़ गए और परिवार ही बिखर गया.... में भी चाहती हूँ कि हम सब मिलकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करें। में सुबह रागिनी दीदी को फोन कर दूँगी... वो भी शायद दिल्ली पहुँच रही होंगी या पहुच चुकी होंगी”

इसके बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए। मोहिनी और बलराज बहुत रात तक धीमे-धीमे एक दूसरे से बातें करते रहे, हँसते, मुसकुराते और रोते रहे... शायद बीती ज़िंदगी की बातें याद करके, इधर ऋतु भी अपनी सोचों मे खोयी हुई थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले को लेकर। वो जानती थी की विक्रम उसकी हर जिद पूरी करता था... और विक्रम का हर फैसला उसके माँ-बाप को मंजूर होता था.... इसीलिए वो सही वक़्त के इंतज़ार में थी... जब वो विक्रम को इस बारे में बताती और उसका मनचाहा हो जाता.... लेकिन विक्रम की मौत ने तो उसे अनिश्चितता के दोराहे पर खड़ा कर दिया.... अब इन बदलते हालत में तो वो इस बारे मे कोई बात भी करने का मौका नहीं बना प रही थी... विक्रम की मौत, फिर रागिनी और उसके बच्चों का सामने आना, फिर उन सबका राज खुलना वसीयत से और अब इस नए राज का खुलासा...की रागिनी कौन है? अभी तो इस घर में न जाने और क्या क्या बदलाव आएंगे.... तब तक उसे चुप रहना ही बेहतर लगा...साथ ही एक और भी उम्मीद उसे लगी, रागिनी। हाँ! रागिनी ही अब उसके लिए विक्रम की जगह लेगी... क्योंकि रागिनी के लिए उसने अपने माँ-बाप के दिल में एक लगाव और एक पछतावा भी देखा... साथ ही रागिनी के साथ इतने दिन रहकर उसे रागिनी बहुत सुलझी हुई भी लगी....

यही सब सोचते-सोचते ऋतु भी नींद के आगोश मे चली गयी..........एक नए सवेरे की उम्मीद में

.......................................

सुबह दरवाजा खटखटाये जाने पर रागिनी की आँख खुली तो उसने बाहर आकर दरवाजा खोला तो सामने अनुपमा चाय के साथ मौजूद थी... रागिनी ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकालकर बाहर आ चुके थे...फिर सभी ने चाय पी और रागिनी अनुपमा के साथ ही रेशमा के घर जाकर उनसे बोलकर आयी कि अब वो उनके लिए खाना वगैरह न बनाएँ... आज से रागिनी अपने घर मे सबकुछ व्यवस्था कर लेगी... क्योंकि अब इन लोगों को यहीं रहना है...रेशमा के परिवार वालों के बहुत ज़ोर देने पर भी उसने नाश्ते को ये बताकर माना कर दिया कि उन्हें अभी विक्रम कि चाची के घर जाना है...वहीं नाश्ता कर लेंगे....

घर आने पर रागिनी को पता चला कि ऋतु का फोन आया था कि वो लोग आ रहे हैं तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल से घर का समान लेने के लिए बाज़ार चलने को कहा। अभी उनकी गाड़ी गली से बाहर निकलकर चौक पर पहुंची ही थी की रागिनी को रेशमा की बात याद आयी और उसने अनुराधा को गाड़ी उसी दुकान के सामने रोकने को कहा। दुकान पर वही आदमी मौजूद था जो उस दिन रास्ता बता रहा था। गाड़ी रुकते ही वो अपनी दुकान से निकलकर गाड़ी के पास आके खड़ा हो गया।

गाड़ी रुकने पर रागिनी अपनी ओर का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और उसके सामने खड़ी हो गयी। रागिनी को देखते ही वो एकदम उसके पैरों मे झुका और पैर छूकर बोला “रागिनी दीदी...पहचाना आपने...में प्रवीण....आप कहाँ चली गईं थीं, इतने साल बाद आपको देखा है?”

रागिनी ने गंभीरता से उसे देखते हुये कहा “अब में यहीं रहूँगी... में राजस्थान में रहती थी.... मुझे रेशमा भाभी ने बताया था कि तुम मुझसे मिलने आए थे?”

“हाँ दीदी, उस दिन जब आप आयीं थीं तो मुझे कुछ पहचानी हुयी लगीं... और जब आपने अपने घर का पता पूंछा तो मुझे याद आ गया कि ये आप हैं... आइए आपको माँ से मिलवाता हूँ... माँ और सुधा दीदी आपको बहुत याद करतीं हैं...” उस आदमी ने रागिनी से कहा तो रागिनी असमंजस में पड गयी, तब तक उसे रागिनी के पैर छूते और बात करते देखकर प्रबल और अनुराधा भी गाड़ी से उतरकर रागिनी के पास ही खड़े हो गए

“नहीं भैया! फिर आऊँगी अभी तो बाज़ार जा रहे थे घर का समान लाना है... यहाँ रहना है तो सब व्यवस्था भी करनी होगी” रागिनी को असमंजस में देखकर अनुराधा ने उससे कहा

“आप चिंता मत करो दीदी, मुझे बताओ क्या समान लेना है... में सारा समान अभी घर भिजवा दूँगा... और ये दोनों कौन हैं” उसने रागिनी से कहा

“ये अनुराधा है... इसे तो जानते होगे.... मेरी भतीजी” रागिनी ने कहा

“हाँ! इसे तो में बहुत खिलाया करता था जब आप और सुधा दीदी इसे यहाँ दुकान पर लेकर आती थीं.... ये भी आपके साथ ही रहती होगी”

“हाँ! ये मेरे साथ ही रहती है...” रागिनी ने अनमने से होकर कहा तो उसे ध्यान आया कि वो बहुत देर से वहीं खड़े खड़े बात कर रहे हैं

“दीदी आप समान कि लिस्ट दो मुझे ये में पैक करा के गाड़ी में रखवाता हूँ, तब तक चलो माँ से मिल लो... उनकी तबीयत खराब रहती है... इसलिए चल फिर नहीं सकती” उसके कहने पर रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो अनुराधा ने समान कि लिस्ट प्रवीण को दे दी और तीनों प्रवीण के पीछे-पीछे उसके घर में अंदर चले गए

अंदर एक कमरे में बैड पर एक 55-60 साल की औरत अधलेटी बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी...प्रवीण के साथ इन लोगों को आते देखकर उसने ध्यान से सबको देखा और रागिनी को पहचानकर अपने पास आने का इशारा किया। पास जाते ही उसने रागिनी को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी तो प्रवीण ने अनुराधा और प्रबल को बैठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया

“रागिनी बेटा तुम्हें कभी हमारी याद नहीं आयी.... सुधा तो आजतक खुद को तुम्हारा दोषी मानती है.... ना वो उस कमीनी ममता के चक्कर में पड़ती और न ही तुम्हारे साथ ऐसा होता.... हमें तो ये लगता था कि पता नहीं तुम्हारे साथ क्या किया उन लोगों ने, पता नहीं तुम इस दुनिया में हो भी या नहीं या हो भी तो न जाने कैसी ज़िंदगी जी रही होगी” उस औरत ने कहा तो ममता का नाम सुनकर रागिनी और अनुराधा दोनों ही चोंक गईं। रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही अनुराधा ने पुंछ लिया

“कौन ममता?”

“वही रागिनी की भाभी.... उसने सुधा के तो छोड़ो... रागिनी के भी विश्वास और प्यार को धोखा दे दिया... रागिनी तो उसे अपनी माँ से भी ज्यादा चाहती और मानती थी” उस औरत ने कहा तो अनुराधा मुंह फाड़े देखती रह गयी...रागिनी भी अवाक होकर देखने लगी... लेकिन वो अपनी धुन में आगे कहती गयी “रागिनी बेटा तुमने तो उसकी बेटी को भी अपनी बेटी की तरह पाला...बल्कि वो माँ होकर भी न पल सकी और न पाल सकती थी.... वैसे उसकी बेटी अनुराधा का कुछ पता है?”

“जी! ये अनुराधा ही है” रागिनी ने उलझे से अंदाज में अनुराधा की ओर इशारा करते हुये कहा तो एक पल के लिए प्रवीण कि माँ भी सकते से मे आ गयी और कमरे में मौजूद सभी एक दूसरे कि ओर देखने लगे लेकिन किसी के भी मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

“अनुराधा बेटी... तुम्हें बुरा लगा होगा कि मेंने तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा कहा... शायद रागिनी ने भी तुम्हें इस बारे में कभी बताया नहीं होगा... ये ऐसी ही थी... कभी किसी का न बुरा सोचती थी न बुरा कहती थी.... लेकिन जो मेंने कहा है... सिर्फ सुना है... सुधा के मुंह से... ममता के सामने... इसलिए जानती हूँ.... लेकिन रागिनी ने तो खुद भोगा है...इसीसे पूंछ लो?” कहते हुये उन्होने रागिनी कि ओर देखा तो रागिनी ने एक बार अनुराधा और प्रबल कि ओर देखा और प्रवीण की माँ कि आँखों में देखते हुये कहा

“मुझे कुछ भी याद नहीं... 20 साल से मेरी याददास्त गयी हुई है.... में पिछले 20 साल से राजस्थान मे रह रही थी... एक विक्रमादित्य सिंह थे उनके पास... उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत से मुझे यहाँ का पता मिला तब यहाँ पहुंची हूँ... और मुझे कुछ भी नहीं पता.... मुझे तो मेरा नाम भी विक्रमादित्य ने बताया था। ये दोनों बच्चे भी विक्रमादित्य ने मुझे सौंपे थे”

“ये तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ.... लेकिन बस तुम सही सलामत हो...मुझे इसी की खुशी है..... एक मिनट में सुधा को भी बता दूँ तुम्हारे बारे में” कहते हुये उन्होने मोबाइल से कॉल मिलाया... थोड़ी देर बाद उधर से आवाज आयी

“माँ कैसी हो तुम? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?”

“सुन बेटा... तुझे एक खुशखबरी देनी है.... जो तू सोच भी नहीं सकती”

“क्या माँ? भैया के यहाँ कोई खुशखबरी है... नेहा के कुछ होनेवाला है क्या?”

“नहीं! उससे भी बड़ी खुशखबरी.......... अपनी रागिनी आयी है.... और अब वो यहीं रहेगी...अपने मकान में....ले बात कर” कहते हुये उन्होने फोन रागिनी को दे दिया फोन कान पर लगते ही रागिनी को उधर से भर्राई सी आवाज सुनाई दी

“रागिनी... तू सच में आ गयी... मेरा दिल कहता था तेरे साथ कभी बुरा नहीं हो सकता.... मुझे विक्रम पर पूरा भरोसा था कि वो तुझे बचा लेगा....” सुधा ने कहा तो रागिनी ने सिर्फ इतना कहा

“हाँ! में विक्रम के पास ही थी”

“चल ठीक है फोन पर नहीं अब तुझसे मिलकर ही बात करूंगी.... बच्चों को स्कूल से आ जाने दे... फिर में आती हूँ शाम तक... ‘उनको’ बोलकर.... रात को तेरे पास ही रुकूँगी” कहते हुये सुधा ने फोन काट दिया

तभी प्रवीण ने कमरे में आकर बताया कि उसने सारा समान पैक करा दिया है...चलकर गाड़ी में समान रखवा लें.... अनुराधा प्रबल का हाथ पकड़कर प्रवीण के साथ बाहर चली गयी... कुछ देर तक रागिनी भी कुछ नहीं बोली... फिर उसने कहा

“में फिर आऊँगी आपसे मिलने.... और सुधा भी शाम को आने का कह रही है...तब तक में भी कुछ जरूरी काम निपटा लेती हूँ” ये कहते हुये रागिनी भी बाहर निकाल आयी और गाड़ी में बैठ गयी... अनुराधा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुयी थी, प्रबल ने गाड़ी में समान रखवाकर प्रवीण से समान के पैसे पूंछे तो प्रवीण ने माना कर दिया... इस पर रागिनी ने प्रवीण को पास बुलाकर समझाकर पैसे लेने को राजी किया और पैसे दे दिये। प्रबल भी जाकर आगे अनुराधा के बराबर में बैठ गया और गाड़ी चौक मे घुमाकर तीनों वापस घर आ गए।
Purane log mil rahe h
Lagta h dheere dheere suspense khulega
 

kamdev99008

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kamdev99008

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Awesome update

batao kya din aa gaye hai .. khaane ka nyota dene ke baad ghar par aaye rishtedaaro ko bina chaaye aur khana khilaye hi wapas jaane diya .. aur ye Saroj bhabi kaun hai .. kya Ragani ke do bhai the ...

Mohini chachi ko ekdum se kaise Ragani ke liye pyaar jaag gaya .. aur kyon Mohini ji ko apne baad Ritu ke bahvishya ki chinta jaag gayi .. baat to kuch aur bhi hai .. Ritu bhi puri kadak mirchi hai .. apni maa par hi baato ka kataksh kiya .. he he

ek ek karke sabhi rishton ka khulasa ho raha hain.... ab ek aur emotional kadi.... waise raginee to balraj aur ritu se bhi milegi.... par mohini- raginee.... wow..
Brilliant update kamdev ji..... Great going... :applause::applause::applause:

Ab story Mai kafi kuch Khul gya hai.
Writer mahoday pahle to dimag ka dahi Bana diye the.
Lekin ab sare tar jurte ja Rajesh hai.
Fabulous update.
Keep rocking KD.

Woooooowww....
Jaal hai sab......
A trap......
Rishton ka jaal.....
OR vimla or baldev ka koi relation hai.....
Shaayad.....nazayaz....may be.....

I think prabal ki family....ka relation us raaz se hai jis kaaran puri family alag ho gayi......ho sakta hai us ghatna ka kaaran directly ya indirectly prabal ki family ho....
ways.....
OR isiliye prabal ki jankari sabse kam ho or sabse Baad me aaye....

Aage dekhte hai kya hota hai....

Anyways.....
Very Fantastic and suspicious act....
Thanks....

Awesome update bhai,
ritu ko bhi ragini ke baare mein pata chal gaya hai,
ab dekhte hain ki aage kya hota hai,
Waiting for next update

Story ke 12 update aa gaye. Mujhe to laga tha ki ye aapki kisi contest ki short story hai. Shayad aisa maine aapke siggy me dekha tha. Lekin aaj dekha to ye ek running story nikli. Story ka naam to adhyatm ki taraf ishara kar raha hai. Lekin update 12 ki jhalak dekh kar aisa lag raha hai ki aisa kuch nahi hai. Khair raat ko dekhta hu ki aapne kya teer chalaya hai aur apne us teer se nayak ya nayika me se kise ghayal kiya hai. :blush1:

Ish baat ka jawab naa diye aapne :D

Hmm.. sayad kaafi interesting hogi... :D

Woh toh busy hain( clinic)...... Aap update dijiye...... waiting....

Judge saab naa batane wale .. ki wo ladka kyon itne dhyaan se dekh raha tha .. Naina ji

magar mere khayal se .. wo ladka Reshma bhabi ka beta hoga .. kyon ki jab Raagni ne uss particular ghar ka address pucha to .. wo ladka curious ho gaya hoga .. kyonki usne kabhi Raagni ya Anuradha ko nahi dekha .. sirf Vikram aur Mohini chachi ko hi dekha tha ...

ye baat to 100 टके ki kahi .. aapne ...

aap hume kahani likh kar do .. hum aapko reviews denge ...

ab muzhe pata hai .. aap shokhi jhaadte hue kahoge ki story to main aise bhi likhunga .. muzhe itni choti baato se farak nahi padta ...

but humare andar kaam, trishna bahut jyaada hai .. isiliye story ko padhne ka moh badha hua hai .. :D .. to aap apni thriller cum suspense se bharpoor love story ko aage badhate raho .. aur hum bina kisi lobh ke :o review dete rahenge ...

magar hum log to Dr. saab (Chutiyadr) ko bina story ke hi review de rahe the .. ve to fir bhi gayab hai .. mere khayal se kisi ki hasti khelti jindagi mein aag lagane mein lage pade honge .. voyeurism ka jyaada shok rakhte hai .. apne khurafaati Dr. saab ... :wink:

aapka jeevan .. ek jeevan na ho kar balke ek :o Mahabharat ki katha ho gayi ... :lol:

abhi aap taau - baba nahi bane ho .. phele aapke bhai ki 26 january wali shaadi aur uske baalak to ho jaane do .. tabhi to tau banoge .. aapko badi jaldi padi hai seniority lene ki .. kam se kam un buddhe babao ko sardiyo ke bhiyao(shaadiyo) ke rasgulle to kha lene do ... :D

Maybe... love at first sight ka mamla bhi ho sakta hain.. :dazed:

Kaafi raaz h is kahani me
Thanks for entertaining us

Bhai....
Itni jyada shhudh hindi use mat karo....please
Mai normal hindi hee samajh or bol sakta hu...
Jyada hard hindi words k liye.....English translation use karna parta hai.....

अभी व्यस्त हूँ... और दो अपडेट्स बाद से आप की कहानी को पढ़ना शुरू करूँगा ...

धन्यवाद.. :)

Baat to aapki sahi hai. Aapke kahe anusar meri bhi ruchi aadhyatm ki taraf nahi hai. Lekin mai kuch bhi naya janne se parhej nahi karta hu. Isliye meri pratikriya aapko barabar milti rahegi. Isi bahane aapko tang karne ka mauka bhi milta rahega. :blush1:

Chaliye ye dekh kar khushi huyi ki humare na rahne par bhi hum aapko yaad the. :blush1:

Pahle hi update me ek ko swargwasi bana diya. Sath hi incest ka put bhi de diya. Lekin pahle update se hi story rochak lag rahi hai. Shayad aage chal kar ragini aur vikram ke rishte ki asliyat vistar se dekhne ko mile. :blush1:

Kamdev bhai, is abahy ki soch dekh kar to meri ritu ke sath sahanubhuti jud gayi hai. Abhi ritu ke baare me jyada to janne ko nahi mila hai. Lekin mujhe koi bholi bhali si ladki lag rahi hai. Ab ye to aage chal kar pata chalega ki, ritu kis tarah ki ladki hai. Kair is update me ragini aur vikram ke rishte ka ek pahlu aur samne aa gaya. Shayad unke college ke dino ki dosti hi, unke bich aapsi rishte ki vajah bani hogi. Khair ye sab baten to aage chal kar pata chalna hi hai. Abhi to kahani me rochakta bani huyi hai. :blush1:

Kamdev bhai, mai majak kar raha tha. Mai tang karne wala reader nahi hu aur na hi mujhe kabhi aisa mehsus hua ki, aapne mujhe tang kiya hai. Haan mai thoda aalsi reader jarur hu. Bahut der se reply karta hu. :blush1:

kamdev99008

aaj hi aap ki story ke sabhi updates padh liye .....

good going....keep it up.....

:rock::rock::rock::rock::rock::rock::rock:

What a start bro
Keep up the aweso work. I know how stressful it is to write a polished story but then you started well
Keep up the tempo and flow

Lagta hai mausam ki tarah writer ji bhi thande ho gaye hai - kuch mamla aage badh hi nahi raha hai .

Koi inki adrak , dalchini aur tulsi daal kar chaay pilao jis se ye thoda garam ho kar aage ka kissa likhen.

Ruby ji apne kamdev bhiya bahut manjhe hue khiladi hai .. real life mein bhi aur Xforum par to sab ne inke jalwe dekhe hi hue hai .. aur aap inhe upar se adrak, dalchini aur tulsi wali chai pilane ko bol rahi hai .. isko peekar to ye apne sampark mein aane wale sabhi logo ki din ka chain aur raat ki neend uda denge .. ye aise hi theek hai .. inki story se jyaada inki comments ko enjoy kiya kare ...

story thodi slow chal rahi hai .. magar kuch time ke baad wo pace pakad jaayegi .. apne pyaare Bharat varsh ki arthvyvasta ki tarah (in decending order) .. he he :)

to bhai aapka bhi apni paathshaala mein admission kara dete hai .. jaha par sab padhe likhe unpadh maharathiyo ko kamdev ji practical words ki class mein knowledge dete hai .. interested ho to bata dena .. magar ek hi shart (condition) hai ki aap koi bhi sawal nahi pochoge ... :lol:

kamdev99008 bhai ji,

Kuch der pehle hi iss story ke sabhi updates padh dala .....

bas itna hi kahunga ki,

Keep it up. :applause:

Kamdev ji update dijiye........ :waiting:

Ye to full family drama hai , sale kaise log hai apne bua ke bachcho ko bhi nahi pahchante :huh:
Ye bhi nahi pata ki kitne chacha tau aur bua hai..
Aisa to tab hi ho sakta hai jab family me koi bahut hi bada bawander hua ho...

'sahi pakde hai' ...

jabardast story hai bidu :applause: :goteam:

ham intjaar karenge ham intjaar karenge ...:approve:
khuda kare ki ham sign in ho aur update aaye :laugh:

Acche content k chahne wale jarur wait karenge
मित्रो !
अध्याय 13 आपके सामने प्रस्तुत है.....
पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया दें....
अनुक्रमणिका को भी अद्यतन कर दिया गया है
 

Vikram singh rana

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अध्याय 13

रात को रागिनी, अनुराधा और प्रबल दिल्ली पहुंचे तो उन्होने मोहिनी देवी के यहाँ सुबह जाने का निर्णय लिया और किशनगंज वाले घर पर पहुँच गए...खाना उन लोगो ने रास्ते मे ही खा लिया था... घर पहुँचकर वो लोग फ्रेश होकर सोने की तयारी करने लगे की तभी बाहर दरवाजे पर आवाज हुई तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला, बाहर रेशमा खड़ी हुई थी और उनके साथ चाय नाश्ता लिए अनुपमा भी थी.... प्रबल ने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया और सोफ़े पर बैठने का कहकर रागिनी को बुलाने चला गया.... रागिनी को जैसे ही रेशमा और अनुपमा के आने का पता चला तो उन्होने प्रबल से अनुराधा को भी बुलाने का कहा और खुद बाहर ड्राइंग रूम मे आकर रेशमा के पास बैठ गईं

“भाभी नमस्ते! आप इतनी रात को क्यों परेशान हुई, हम लोग तो रास्ते में ही खाना खाकर आए थे... सुबह आपसे आकार मिलते... रात हो गयी थी तो सोचा की अभी सो जाते हैं.... सफर की भी थकान थी” रागिनी ने रेशमा से कहा तो रेशमा ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बड़े प्यार से कहा

“मुझे मालूम था की तुम अभी हमें परेशान करना नहीं चाहोगी ...इसीलिए तुम्हारी गाड़ी की आवाज सुनते ही मेंने चाय बनाने को कह दिया और लेकर यहाँ आ गयी... बेशक तुम लोग रास्ते में ही खाना खाकर आए हो.... लेकिन सफर के बाद अब कुछ चाय नाश्ता करके आराम करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और थकान भी कम हो जाएगी.... बाकी बात तो हम कभी भी दिन में बैठकर करते रहेंगे...”

तभी प्रबल और अनुराधा भी वहाँ आ चुके थे.... और अनुराधा अनुपमा के पास जाकर बैठ गयी तो रागिनी ने प्रबल को अपने पास बैठा लिया.... फिर चाय नाश्ते के दौरान हल्की-फुलकी बातचीत होने लगी। रेशमा ने बताया की आज दिन में विक्रम की चाची मोहिनी जी अपनी बेटी के साथ यहाँ आयीं थीं तो रागिनी ने कहा की उन्होने उसे फोन किया था और उनकी बात हो गयी है... साथ ही रेशमा ने बताया की बाहर चौक पर एक दुकान है.... वहाँ जो लड़का बैठता है वो भी रागिनी के बारे में पुंछने आया था कल... तो उन्होने उसे बता दिया था की वो 1-2 दिन में वापस आ रही हैं और अब यहीं रहेंगी... ये सुनकर रागिनी सोच में पड़ गईं तो अनुराधा ने कहा कि ये शायद वही है जिससे पहले दिन हमने इस घर का पता पूंछा था.... वो उस दिन भी रागिनी को बहुत ध्यान से देख रहा था.... जैसे बहुत अच्छी तरह जानता हो। तो रागिनी ने कहा की अब तो यहीं रहना है तो फिर किसी दिन उसको भी मिल लेंगे की वो क्यों मिलना चाहता है। इस सब के बाद रेशमा और अनुपमा वापस अपने घर चली गईं और वो सब अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

...............................

इधर मोहिनी क घर ... शाम को लगभग 5 बजे एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से बलराज सिंह उतरे और घर में आ गए। मोहिनी ने उन्हें चाय नाश्ता दिया उसके बाद उन्हें आराम करने को कहा तो वो अपने बेडरूम में जाकर लेट गए और सो गए... 7 बजे ऋतु घर आयी तो मोहिनी ने उसे चाय दी और बताया की उसके पापा आ गए हैं और सो रहे हैं तो ऋतु ने उन्हें अभी सोने देने के लिए कहा और मोहिनी देवी के साथ रात के खाने की तयारी में लग गयी। 9 बजे खाना तयार होने पर मोहिनी देवी ने बलराज सिंह को जगाया और खाने के लिए कहा तो वो फ्रेश होने चले गए, फ्रेश होकर बाहर आए तो डाइनिंग टेबल पर ऋतु और मोहिनी बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे, वो भी आकर वहाँ बैठ गए और सबने खाना खाया।

खाना खाकर बलराज सिंह ने मोहिनी देवी की ओर देखा तो उन्होने सहमति मे सिर हिला दिया तो बलराज सिंह ने कहना शुरू किया

“ऋतु बेटा! अब तक तुम परिवार में सिर्फ मुझे और अपनी माँ को या फिर विक्रम को जानती थी... लेकिन अब तुम्हारी माँ ने तुम्हें रागिनी और अनुराधा के बारे में भी बता दिया होगा... विमला मेरी सगी बहन थी.... मुझसे बड़ी और गजराज भैया से छोटी.... किसी वजह से उससे हमारे संबंध खत्म हो गए और उसके या उसके परिवार से हमने कोई नाता नहीं रखा.... पूरे परिवार ने ही..... फिर आज से 20 साल पहले कुछ ऐसी परिस्थिर्तियाँ बनी कि हुमें विक्रम कि वजह से विमला से दोबारा मिलना पड़ा और उसके बाद परिस्थितियाँ बिगड़ती चली गईं.... जिसमें कुछ विमला का दोष था तो कुछ मेरा...... तुम्हारी माँ का कोई दोष तो नहीं था लेकिन उसने सिर्फ एक गलती की कि वो सबकुछ देखते हुये भी चुप रही...और उसकी चुप्पी ने वो कर दिया जो कि आज तुम्हारे सामने है.... विक्रम अब इस दुनिया मे ही नहीं रहा और रागिनी कि याददास्त चली गयी... तुम और अनुराधा कुछ जानते नहीं...अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें या यूं कहो कि मेरे और तुम्हारी माँ के अलावा जानने वाला कोई नहीं रहा घर मे। ये सब धीरे-धीरे वक़्त के साथ तुम सबको बताऊंगा लेकिन शायद तुम सुन न सको... या सह न सको... इसलिए अभी उन बातों को छोडकर हमें कल सुबह रागिनी के पास चलना है.... उस बेचारी का तो कोई दोष ही नहीं... जिसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भोगी....और दुख कि बात ये है कि वो अब ये भी भूल चुकी है कि दोषी कौन था.... और शायद इसी वजह से में आज उसका सामना करने कि हिम्मत कर सकता हूँ।

अब तो सिर्फ यही कहूँगा कि जैसे रागिनी सबकुछ भूल गयी याददास्त जाने की वजह से .... तुम भी कुछ जानने या समझने को भूलकर... मिलकर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करो....कल चलकर रागिनी और अनुराधा को भी ले आते हैं और सब साथ मिलकर रहेंगे”

ऋतु एकटक उनके चेहरे कि ओर देखती रही... उनके चुप हो जाने के बाद भी कुछ देर तक ऋतु कि नजरें बलराज सिंह के चेहरे से नहीं हट पायीं। फिर ऋतु ने एक गहरी सांस लेते हुये उनसे कहा

“पापा में भी कुछ जानना नहीं चाहती कि पहले हमारे परिवार में ऐसा क्या हुआ कि हम सब बिछड़ गए और परिवार ही बिखर गया.... में भी चाहती हूँ कि हम सब मिलकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करें। में सुबह रागिनी दीदी को फोन कर दूँगी... वो भी शायद दिल्ली पहुँच रही होंगी या पहुच चुकी होंगी”

इसके बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए। मोहिनी और बलराज बहुत रात तक धीमे-धीमे एक दूसरे से बातें करते रहे, हँसते, मुसकुराते और रोते रहे... शायद बीती ज़िंदगी की बातें याद करके, इधर ऋतु भी अपनी सोचों मे खोयी हुई थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले को लेकर। वो जानती थी की विक्रम उसकी हर जिद पूरी करता था... और विक्रम का हर फैसला उसके माँ-बाप को मंजूर होता था.... इसीलिए वो सही वक़्त के इंतज़ार में थी... जब वो विक्रम को इस बारे में बताती और उसका मनचाहा हो जाता.... लेकिन विक्रम की मौत ने तो उसे अनिश्चितता के दोराहे पर खड़ा कर दिया.... अब इन बदलते हालत में तो वो इस बारे मे कोई बात भी करने का मौका नहीं बना प रही थी... विक्रम की मौत, फिर रागिनी और उसके बच्चों का सामने आना, फिर उन सबका राज खुलना वसीयत से और अब इस नए राज का खुलासा...की रागिनी कौन है? अभी तो इस घर में न जाने और क्या क्या बदलाव आएंगे.... तब तक उसे चुप रहना ही बेहतर लगा...साथ ही एक और भी उम्मीद उसे लगी, रागिनी। हाँ! रागिनी ही अब उसके लिए विक्रम की जगह लेगी... क्योंकि रागिनी के लिए उसने अपने माँ-बाप के दिल में एक लगाव और एक पछतावा भी देखा... साथ ही रागिनी के साथ इतने दिन रहकर उसे रागिनी बहुत सुलझी हुई भी लगी....

यही सब सोचते-सोचते ऋतु भी नींद के आगोश मे चली गयी..........एक नए सवेरे की उम्मीद में

.......................................

सुबह दरवाजा खटखटाये जाने पर रागिनी की आँख खुली तो उसने बाहर आकर दरवाजा खोला तो सामने अनुपमा चाय के साथ मौजूद थी... रागिनी ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकालकर बाहर आ चुके थे...फिर सभी ने चाय पी और रागिनी अनुपमा के साथ ही रेशमा के घर जाकर उनसे बोलकर आयी कि अब वो उनके लिए खाना वगैरह न बनाएँ... आज से रागिनी अपने घर मे सबकुछ व्यवस्था कर लेगी... क्योंकि अब इन लोगों को यहीं रहना है...रेशमा के परिवार वालों के बहुत ज़ोर देने पर भी उसने नाश्ते को ये बताकर माना कर दिया कि उन्हें अभी विक्रम कि चाची के घर जाना है...वहीं नाश्ता कर लेंगे....

घर आने पर रागिनी को पता चला कि ऋतु का फोन आया था कि वो लोग आ रहे हैं तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल से घर का समान लेने के लिए बाज़ार चलने को कहा। अभी उनकी गाड़ी गली से बाहर निकलकर चौक पर पहुंची ही थी की रागिनी को रेशमा की बात याद आयी और उसने अनुराधा को गाड़ी उसी दुकान के सामने रोकने को कहा। दुकान पर वही आदमी मौजूद था जो उस दिन रास्ता बता रहा था। गाड़ी रुकते ही वो अपनी दुकान से निकलकर गाड़ी के पास आके खड़ा हो गया।

गाड़ी रुकने पर रागिनी अपनी ओर का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और उसके सामने खड़ी हो गयी। रागिनी को देखते ही वो एकदम उसके पैरों मे झुका और पैर छूकर बोला “रागिनी दीदी...पहचाना आपने...में प्रवीण....आप कहाँ चली गईं थीं, इतने साल बाद आपको देखा है?”

रागिनी ने गंभीरता से उसे देखते हुये कहा “अब में यहीं रहूँगी... में राजस्थान में रहती थी.... मुझे रेशमा भाभी ने बताया था कि तुम मुझसे मिलने आए थे?”

“हाँ दीदी, उस दिन जब आप आयीं थीं तो मुझे कुछ पहचानी हुयी लगीं... और जब आपने अपने घर का पता पूंछा तो मुझे याद आ गया कि ये आप हैं... आइए आपको माँ से मिलवाता हूँ... माँ और सुधा दीदी आपको बहुत याद करतीं हैं...” उस आदमी ने रागिनी से कहा तो रागिनी असमंजस में पड गयी, तब तक उसे रागिनी के पैर छूते और बात करते देखकर प्रबल और अनुराधा भी गाड़ी से उतरकर रागिनी के पास ही खड़े हो गए

“नहीं भैया! फिर आऊँगी अभी तो बाज़ार जा रहे थे घर का समान लाना है... यहाँ रहना है तो सब व्यवस्था भी करनी होगी” रागिनी को असमंजस में देखकर अनुराधा ने उससे कहा

“आप चिंता मत करो दीदी, मुझे बताओ क्या समान लेना है... में सारा समान अभी घर भिजवा दूँगा... और ये दोनों कौन हैं” उसने रागिनी से कहा

“ये अनुराधा है... इसे तो जानते होगे.... मेरी भतीजी” रागिनी ने कहा

“हाँ! इसे तो में बहुत खिलाया करता था जब आप और सुधा दीदी इसे यहाँ दुकान पर लेकर आती थीं.... ये भी आपके साथ ही रहती होगी”

“हाँ! ये मेरे साथ ही रहती है...” रागिनी ने अनमने से होकर कहा तो उसे ध्यान आया कि वो बहुत देर से वहीं खड़े खड़े बात कर रहे हैं

“दीदी आप समान कि लिस्ट दो मुझे ये में पैक करा के गाड़ी में रखवाता हूँ, तब तक चलो माँ से मिल लो... उनकी तबीयत खराब रहती है... इसलिए चल फिर नहीं सकती” उसके कहने पर रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो अनुराधा ने समान कि लिस्ट प्रवीण को दे दी और तीनों प्रवीण के पीछे-पीछे उसके घर में अंदर चले गए

अंदर एक कमरे में बैड पर एक 55-60 साल की औरत अधलेटी बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी...प्रवीण के साथ इन लोगों को आते देखकर उसने ध्यान से सबको देखा और रागिनी को पहचानकर अपने पास आने का इशारा किया। पास जाते ही उसने रागिनी को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी तो प्रवीण ने अनुराधा और प्रबल को बैठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया

“रागिनी बेटा तुम्हें कभी हमारी याद नहीं आयी.... सुधा तो आजतक खुद को तुम्हारा दोषी मानती है.... ना वो उस कमीनी ममता के चक्कर में पड़ती और न ही तुम्हारे साथ ऐसा होता.... हमें तो ये लगता था कि पता नहीं तुम्हारे साथ क्या किया उन लोगों ने, पता नहीं तुम इस दुनिया में हो भी या नहीं या हो भी तो न जाने कैसी ज़िंदगी जी रही होगी” उस औरत ने कहा तो ममता का नाम सुनकर रागिनी और अनुराधा दोनों ही चोंक गईं। रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही अनुराधा ने पुंछ लिया

“कौन ममता?”

“वही रागिनी की भाभी.... उसने सुधा के तो छोड़ो... रागिनी के भी विश्वास और प्यार को धोखा दे दिया... रागिनी तो उसे अपनी माँ से भी ज्यादा चाहती और मानती थी” उस औरत ने कहा तो अनुराधा मुंह फाड़े देखती रह गयी...रागिनी भी अवाक होकर देखने लगी... लेकिन वो अपनी धुन में आगे कहती गयी “रागिनी बेटा तुमने तो उसकी बेटी को भी अपनी बेटी की तरह पाला...बल्कि वो माँ होकर भी न पल सकी और न पाल सकती थी.... वैसे उसकी बेटी अनुराधा का कुछ पता है?”

“जी! ये अनुराधा ही है” रागिनी ने उलझे से अंदाज में अनुराधा की ओर इशारा करते हुये कहा तो एक पल के लिए प्रवीण कि माँ भी सकते से मे आ गयी और कमरे में मौजूद सभी एक दूसरे कि ओर देखने लगे लेकिन किसी के भी मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

“अनुराधा बेटी... तुम्हें बुरा लगा होगा कि मेंने तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा कहा... शायद रागिनी ने भी तुम्हें इस बारे में कभी बताया नहीं होगा... ये ऐसी ही थी... कभी किसी का न बुरा सोचती थी न बुरा कहती थी.... लेकिन जो मेंने कहा है... सिर्फ सुना है... सुधा के मुंह से... ममता के सामने... इसलिए जानती हूँ.... लेकिन रागिनी ने तो खुद भोगा है...इसीसे पूंछ लो?” कहते हुये उन्होने रागिनी कि ओर देखा तो रागिनी ने एक बार अनुराधा और प्रबल कि ओर देखा और प्रवीण की माँ कि आँखों में देखते हुये कहा

“मुझे कुछ भी याद नहीं... 20 साल से मेरी याददास्त गयी हुई है.... में पिछले 20 साल से राजस्थान मे रह रही थी... एक विक्रमादित्य सिंह थे उनके पास... उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत से मुझे यहाँ का पता मिला तब यहाँ पहुंची हूँ... और मुझे कुछ भी नहीं पता.... मुझे तो मेरा नाम भी विक्रमादित्य ने बताया था। ये दोनों बच्चे भी विक्रमादित्य ने मुझे सौंपे थे”

“ये तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ.... लेकिन बस तुम सही सलामत हो...मुझे इसी की खुशी है..... एक मिनट में सुधा को भी बता दूँ तुम्हारे बारे में” कहते हुये उन्होने मोबाइल से कॉल मिलाया... थोड़ी देर बाद उधर से आवाज आयी

“माँ कैसी हो तुम? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?”

“सुन बेटा... तुझे एक खुशखबरी देनी है.... जो तू सोच भी नहीं सकती”

“क्या माँ? भैया के यहाँ कोई खुशखबरी है... नेहा के कुछ होनेवाला है क्या?”

“नहीं! उससे भी बड़ी खुशखबरी.......... अपनी रागिनी आयी है.... और अब वो यहीं रहेगी...अपने मकान में....ले बात कर” कहते हुये उन्होने फोन रागिनी को दे दिया फोन कान पर लगते ही रागिनी को उधर से भर्राई सी आवाज सुनाई दी

“रागिनी... तू सच में आ गयी... मेरा दिल कहता था तेरे साथ कभी बुरा नहीं हो सकता.... मुझे विक्रम पर पूरा भरोसा था कि वो तुझे बचा लेगा....” सुधा ने कहा तो रागिनी ने सिर्फ इतना कहा

“हाँ! में विक्रम के पास ही थी”

“चल ठीक है फोन पर नहीं अब तुझसे मिलकर ही बात करूंगी.... बच्चों को स्कूल से आ जाने दे... फिर में आती हूँ शाम तक... ‘उनको’ बोलकर.... रात को तेरे पास ही रुकूँगी” कहते हुये सुधा ने फोन काट दिया

तभी प्रवीण ने कमरे में आकर बताया कि उसने सारा समान पैक करा दिया है...चलकर गाड़ी में समान रखवा लें.... अनुराधा प्रबल का हाथ पकड़कर प्रवीण के साथ बाहर चली गयी... कुछ देर तक रागिनी भी कुछ नहीं बोली... फिर उसने कहा

“में फिर आऊँगी आपसे मिलने.... और सुधा भी शाम को आने का कह रही है...तब तक में भी कुछ जरूरी काम निपटा लेती हूँ” ये कहते हुये रागिनी भी बाहर निकाल आयी और गाड़ी में बैठ गयी... अनुराधा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुयी थी, प्रबल ने गाड़ी में समान रखवाकर प्रवीण से समान के पैसे पूंछे तो प्रवीण ने माना कर दिया... इस पर रागिनी ने प्रवीण को पास बुलाकर समझाकर पैसे लेने को राजी किया और पैसे दे दिये। प्रबल भी जाकर आगे अनुराधा के बराबर में बैठ गया और गाड़ी चौक मे घुमाकर तीनों वापस घर आ गए।
Woooooowww very good update.....
As always..


And as I said.....sab jaal hai rishton ka jaal....
OR balraj ka koi purana kaand hai..

OR vimla agar balraj ki bahan he to devraj or gazraj ke alawa fifth kon hai.....

Kanhi wo hee in sab chijo ko creat karne wala to nahi....

Ya phir us 5 ke link prabal se jude hue ho.....hosakta hai.....

Anyways dekhte hai aage kya Hota hai.....

As always very well written
and executed.....
Thanks
 
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kamdev99008

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OR vimla agar balraj ki bahan he to devraj or gazraj ke alawa fifth kon hai.....
update 12 ki is pankti par dhyan dein.......................abhi sab kuchh na sahi bahut kuchh baaki hai :)
मेंने उन्हें देखा तो नहीं लेकिन सुना था कि... बलराज चाचा 5 भाई और 2 बहन थे....
 
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!..Kar Vida.......Alvida..!
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अध्याय 3

“में भी जानती हूँ इस बात को.... दोनों ही बच्चे मेरे नहीं हो सकते” रागिनी ने गंभीरता से कहा

“तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?” पूनम ने सवाल किया

“क्योंकि अब से 6 महीने पहले मुझे कुछ दिन के लिए बीमारी कि वजह से कोटा हॉस्पिटल मे एड्मिट रहना पड़ा था... तुम और मोहन भी मुझे देखने आए थे.... तभी मेरे वहाँ मुझे कुछ परेशानी लगी थी” रागिनी ने अपनी टांगों के जोड़ की ओर इशारा करते हुये कहा “तो मेंने गाईनाकोलोजिस्ट को दिखाया था... उसने बताया कि मेंने तो अभी तक कभी सेक्स भी नहीं किया है... मेरी झिल्ली भी नहीं टूटी.... तो मेरे बच्चे कैसे हो सकते हैं?” रागिनी ने अजीब सी मुस्कुराहट के साथ कहा

“तू जानना चाहता है... तो सुन.... मेंने बचपन से माँ को देखा है... में हमेशा उनही के पास रहती थी... पिताजी का तो मुझे याद भी नहीं...कि वो कैसे थे....हमारा घर भी कहीं और था..... फिर एक बार माँ कहीं चलीं गईं तो मुझे एक औरत जो उस घर मे रहती थी॥ उसने कहा कि वो मेरी असली माँ हैं... फिर कुछ दिन बाद एक दिन विक्रम हमारे घर आया.... में नहीं जानती थी कि ये कौन है.... लेकिन वो औरत इसे पहचानती थी..... विक्रम अपने साथ पुलिस को भी लेकर आया था, उस औरत को पुलिस पकड़ कर ले गई और मुझे विक्रम यहाँ ले आया.... फिर कुछ दिन बाद वो तुम्हें गोद में यहाँ लेकर आया और बाद मे माँ को....तब तुम बहुत छोटे से थे शायद 1-2 दिन के ही होते जब तुम्हें लाया गया था.... लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि जब पिताजी थे ही नहीं तो तुम कैसे पैदा हुये...और माँ को विक्रम कहाँ से लेकर आया.... अगर इन दोनों का कोई ऐसा रिश्ता है तो खुलकर सामने क्यों नहीं आते......... माँ-बेटे क्यों बने हुये हैं..... इसीलिए मुझे इनसे नफरत है.......
Kamdev bhai, kahani ko bahut pechida bana rahe ho. Suspense badta hi ja raha hai. Yadi anuradha aur prabal ragini ke bachche nahi hai to fir ye kaun hai aur vikram se inka kya rishta hai. Vikram ne ragini ko is tarah se andhere me kyo rakha hai. Sawal bahut se hai aur jabab jiske pas hai use hi maar diya. Lagta vakil ke pas jo file hai usme se kuch raz khule. Dekhte hai ki aage kya hota hai. :blush1:
 

Chutiyadr

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अध्याय 13

रात को रागिनी, अनुराधा और प्रबल दिल्ली पहुंचे तो उन्होने मोहिनी देवी के यहाँ सुबह जाने का निर्णय लिया और किशनगंज वाले घर पर पहुँच गए...खाना उन लोगो ने रास्ते मे ही खा लिया था... घर पहुँचकर वो लोग फ्रेश होकर सोने की तयारी करने लगे की तभी बाहर दरवाजे पर आवाज हुई तो प्रबल ने जाकर दरवाजा खोला, बाहर रेशमा खड़ी हुई थी और उनके साथ चाय नाश्ता लिए अनुपमा भी थी.... प्रबल ने उन्हें अंदर आने का रास्ता दिया और सोफ़े पर बैठने का कहकर रागिनी को बुलाने चला गया.... रागिनी को जैसे ही रेशमा और अनुपमा के आने का पता चला तो उन्होने प्रबल से अनुराधा को भी बुलाने का कहा और खुद बाहर ड्राइंग रूम मे आकर रेशमा के पास बैठ गईं

“भाभी नमस्ते! आप इतनी रात को क्यों परेशान हुई, हम लोग तो रास्ते में ही खाना खाकर आए थे... सुबह आपसे आकार मिलते... रात हो गयी थी तो सोचा की अभी सो जाते हैं.... सफर की भी थकान थी” रागिनी ने रेशमा से कहा तो रेशमा ने रागिनी का हाथ अपने हाथों में लेते हुये बड़े प्यार से कहा

“मुझे मालूम था की तुम अभी हमें परेशान करना नहीं चाहोगी ...इसीलिए तुम्हारी गाड़ी की आवाज सुनते ही मेंने चाय बनाने को कह दिया और लेकर यहाँ आ गयी... बेशक तुम लोग रास्ते में ही खाना खाकर आए हो.... लेकिन सफर के बाद अब कुछ चाय नाश्ता करके आराम करोगे तो नींद भी अच्छी आएगी और थकान भी कम हो जाएगी.... बाकी बात तो हम कभी भी दिन में बैठकर करते रहेंगे...”

तभी प्रबल और अनुराधा भी वहाँ आ चुके थे.... और अनुराधा अनुपमा के पास जाकर बैठ गयी तो रागिनी ने प्रबल को अपने पास बैठा लिया.... फिर चाय नाश्ते के दौरान हल्की-फुलकी बातचीत होने लगी। रेशमा ने बताया की आज दिन में विक्रम की चाची मोहिनी जी अपनी बेटी के साथ यहाँ आयीं थीं तो रागिनी ने कहा की उन्होने उसे फोन किया था और उनकी बात हो गयी है... साथ ही रेशमा ने बताया की बाहर चौक पर एक दुकान है.... वहाँ जो लड़का बैठता है वो भी रागिनी के बारे में पुंछने आया था कल... तो उन्होने उसे बता दिया था की वो 1-2 दिन में वापस आ रही हैं और अब यहीं रहेंगी... ये सुनकर रागिनी सोच में पड़ गईं तो अनुराधा ने कहा कि ये शायद वही है जिससे पहले दिन हमने इस घर का पता पूंछा था.... वो उस दिन भी रागिनी को बहुत ध्यान से देख रहा था.... जैसे बहुत अच्छी तरह जानता हो। तो रागिनी ने कहा की अब तो यहीं रहना है तो फिर किसी दिन उसको भी मिल लेंगे की वो क्यों मिलना चाहता है। इस सब के बाद रेशमा और अनुपमा वापस अपने घर चली गईं और वो सब अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए।

...............................

इधर मोहिनी क घर ... शाम को लगभग 5 बजे एक टैक्सी आकर रुकी और उसमें से बलराज सिंह उतरे और घर में आ गए। मोहिनी ने उन्हें चाय नाश्ता दिया उसके बाद उन्हें आराम करने को कहा तो वो अपने बेडरूम में जाकर लेट गए और सो गए... 7 बजे ऋतु घर आयी तो मोहिनी ने उसे चाय दी और बताया की उसके पापा आ गए हैं और सो रहे हैं तो ऋतु ने उन्हें अभी सोने देने के लिए कहा और मोहिनी देवी के साथ रात के खाने की तयारी में लग गयी। 9 बजे खाना तयार होने पर मोहिनी देवी ने बलराज सिंह को जगाया और खाने के लिए कहा तो वो फ्रेश होने चले गए, फ्रेश होकर बाहर आए तो डाइनिंग टेबल पर ऋतु और मोहिनी बैठे उनका इंतज़ार कर रहे थे, वो भी आकर वहाँ बैठ गए और सबने खाना खाया।

खाना खाकर बलराज सिंह ने मोहिनी देवी की ओर देखा तो उन्होने सहमति मे सिर हिला दिया तो बलराज सिंह ने कहना शुरू किया

“ऋतु बेटा! अब तक तुम परिवार में सिर्फ मुझे और अपनी माँ को या फिर विक्रम को जानती थी... लेकिन अब तुम्हारी माँ ने तुम्हें रागिनी और अनुराधा के बारे में भी बता दिया होगा... विमला मेरी सगी बहन थी.... मुझसे बड़ी और गजराज भैया से छोटी.... किसी वजह से उससे हमारे संबंध खत्म हो गए और उसके या उसके परिवार से हमने कोई नाता नहीं रखा.... पूरे परिवार ने ही..... फिर आज से 20 साल पहले कुछ ऐसी परिस्थिर्तियाँ बनी कि हुमें विक्रम कि वजह से विमला से दोबारा मिलना पड़ा और उसके बाद परिस्थितियाँ बिगड़ती चली गईं.... जिसमें कुछ विमला का दोष था तो कुछ मेरा...... तुम्हारी माँ का कोई दोष तो नहीं था लेकिन उसने सिर्फ एक गलती की कि वो सबकुछ देखते हुये भी चुप रही...और उसकी चुप्पी ने वो कर दिया जो कि आज तुम्हारे सामने है.... विक्रम अब इस दुनिया मे ही नहीं रहा और रागिनी कि याददास्त चली गयी... तुम और अनुराधा कुछ जानते नहीं...अभी बहुत सी बातें हैं जो तुम्हें या यूं कहो कि मेरे और तुम्हारी माँ के अलावा जानने वाला कोई नहीं रहा घर मे। ये सब धीरे-धीरे वक़्त के साथ तुम सबको बताऊंगा लेकिन शायद तुम सुन न सको... या सह न सको... इसलिए अभी उन बातों को छोडकर हमें कल सुबह रागिनी के पास चलना है.... उस बेचारी का तो कोई दोष ही नहीं... जिसकी सज़ा उसने ज़िंदगी भर भोगी....और दुख कि बात ये है कि वो अब ये भी भूल चुकी है कि दोषी कौन था.... और शायद इसी वजह से में आज उसका सामना करने कि हिम्मत कर सकता हूँ।

अब तो सिर्फ यही कहूँगा कि जैसे रागिनी सबकुछ भूल गयी याददास्त जाने की वजह से .... तुम भी कुछ जानने या समझने को भूलकर... मिलकर ज़िंदगी नए सिरे से शुरू करो....कल चलकर रागिनी और अनुराधा को भी ले आते हैं और सब साथ मिलकर रहेंगे”

ऋतु एकटक उनके चेहरे कि ओर देखती रही... उनके चुप हो जाने के बाद भी कुछ देर तक ऋतु कि नजरें बलराज सिंह के चेहरे से नहीं हट पायीं। फिर ऋतु ने एक गहरी सांस लेते हुये उनसे कहा

“पापा में भी कुछ जानना नहीं चाहती कि पहले हमारे परिवार में ऐसा क्या हुआ कि हम सब बिछड़ गए और परिवार ही बिखर गया.... में भी चाहती हूँ कि हम सब मिलकर नए सिरे से अपनी ज़िंदगी शुरू करें। में सुबह रागिनी दीदी को फोन कर दूँगी... वो भी शायद दिल्ली पहुँच रही होंगी या पहुच चुकी होंगी”

इसके बाद सब अपने-अपने कमरे में चले गए। मोहिनी और बलराज बहुत रात तक धीमे-धीमे एक दूसरे से बातें करते रहे, हँसते, मुसकुराते और रोते रहे... शायद बीती ज़िंदगी की बातें याद करके, इधर ऋतु भी अपनी सोचों मे खोयी हुई थी...अपनी ज़िंदगी के सबसे महत्वपूर्ण फैसले को लेकर। वो जानती थी की विक्रम उसकी हर जिद पूरी करता था... और विक्रम का हर फैसला उसके माँ-बाप को मंजूर होता था.... इसीलिए वो सही वक़्त के इंतज़ार में थी... जब वो विक्रम को इस बारे में बताती और उसका मनचाहा हो जाता.... लेकिन विक्रम की मौत ने तो उसे अनिश्चितता के दोराहे पर खड़ा कर दिया.... अब इन बदलते हालत में तो वो इस बारे मे कोई बात भी करने का मौका नहीं बना प रही थी... विक्रम की मौत, फिर रागिनी और उसके बच्चों का सामने आना, फिर उन सबका राज खुलना वसीयत से और अब इस नए राज का खुलासा...की रागिनी कौन है? अभी तो इस घर में न जाने और क्या क्या बदलाव आएंगे.... तब तक उसे चुप रहना ही बेहतर लगा...साथ ही एक और भी उम्मीद उसे लगी, रागिनी। हाँ! रागिनी ही अब उसके लिए विक्रम की जगह लेगी... क्योंकि रागिनी के लिए उसने अपने माँ-बाप के दिल में एक लगाव और एक पछतावा भी देखा... साथ ही रागिनी के साथ इतने दिन रहकर उसे रागिनी बहुत सुलझी हुई भी लगी....

यही सब सोचते-सोचते ऋतु भी नींद के आगोश मे चली गयी..........एक नए सवेरे की उम्मीद में

.......................................

सुबह दरवाजा खटखटाये जाने पर रागिनी की आँख खुली तो उसने बाहर आकर दरवाजा खोला तो सामने अनुपमा चाय के साथ मौजूद थी... रागिनी ने उसे अंदर आने का रास्ता दिया तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकालकर बाहर आ चुके थे...फिर सभी ने चाय पी और रागिनी अनुपमा के साथ ही रेशमा के घर जाकर उनसे बोलकर आयी कि अब वो उनके लिए खाना वगैरह न बनाएँ... आज से रागिनी अपने घर मे सबकुछ व्यवस्था कर लेगी... क्योंकि अब इन लोगों को यहीं रहना है...रेशमा के परिवार वालों के बहुत ज़ोर देने पर भी उसने नाश्ते को ये बताकर माना कर दिया कि उन्हें अभी विक्रम कि चाची के घर जाना है...वहीं नाश्ता कर लेंगे....

घर आने पर रागिनी को पता चला कि ऋतु का फोन आया था कि वो लोग आ रहे हैं तो रागिनी ने अनुराधा और प्रबल से घर का समान लेने के लिए बाज़ार चलने को कहा। अभी उनकी गाड़ी गली से बाहर निकलकर चौक पर पहुंची ही थी की रागिनी को रेशमा की बात याद आयी और उसने अनुराधा को गाड़ी उसी दुकान के सामने रोकने को कहा। दुकान पर वही आदमी मौजूद था जो उस दिन रास्ता बता रहा था। गाड़ी रुकते ही वो अपनी दुकान से निकलकर गाड़ी के पास आके खड़ा हो गया।

गाड़ी रुकने पर रागिनी अपनी ओर का दरवाजा खोलकर बाहर निकली और उसके सामने खड़ी हो गयी। रागिनी को देखते ही वो एकदम उसके पैरों मे झुका और पैर छूकर बोला “रागिनी दीदी...पहचाना आपने...में प्रवीण....आप कहाँ चली गईं थीं, इतने साल बाद आपको देखा है?”

रागिनी ने गंभीरता से उसे देखते हुये कहा “अब में यहीं रहूँगी... में राजस्थान में रहती थी.... मुझे रेशमा भाभी ने बताया था कि तुम मुझसे मिलने आए थे?”

“हाँ दीदी, उस दिन जब आप आयीं थीं तो मुझे कुछ पहचानी हुयी लगीं... और जब आपने अपने घर का पता पूंछा तो मुझे याद आ गया कि ये आप हैं... आइए आपको माँ से मिलवाता हूँ... माँ और सुधा दीदी आपको बहुत याद करतीं हैं...” उस आदमी ने रागिनी से कहा तो रागिनी असमंजस में पड गयी, तब तक उसे रागिनी के पैर छूते और बात करते देखकर प्रबल और अनुराधा भी गाड़ी से उतरकर रागिनी के पास ही खड़े हो गए

“नहीं भैया! फिर आऊँगी अभी तो बाज़ार जा रहे थे घर का समान लाना है... यहाँ रहना है तो सब व्यवस्था भी करनी होगी” रागिनी को असमंजस में देखकर अनुराधा ने उससे कहा

“आप चिंता मत करो दीदी, मुझे बताओ क्या समान लेना है... में सारा समान अभी घर भिजवा दूँगा... और ये दोनों कौन हैं” उसने रागिनी से कहा

“ये अनुराधा है... इसे तो जानते होगे.... मेरी भतीजी” रागिनी ने कहा

“हाँ! इसे तो में बहुत खिलाया करता था जब आप और सुधा दीदी इसे यहाँ दुकान पर लेकर आती थीं.... ये भी आपके साथ ही रहती होगी”

“हाँ! ये मेरे साथ ही रहती है...” रागिनी ने अनमने से होकर कहा तो उसे ध्यान आया कि वो बहुत देर से वहीं खड़े खड़े बात कर रहे हैं

“दीदी आप समान कि लिस्ट दो मुझे ये में पैक करा के गाड़ी में रखवाता हूँ, तब तक चलो माँ से मिल लो... उनकी तबीयत खराब रहती है... इसलिए चल फिर नहीं सकती” उसके कहने पर रागिनी ने अनुराधा को इशारा किया तो अनुराधा ने समान कि लिस्ट प्रवीण को दे दी और तीनों प्रवीण के पीछे-पीछे उसके घर में अंदर चले गए

अंदर एक कमरे में बैड पर एक 55-60 साल की औरत अधलेटी बैठी हुई कुछ पढ़ रही थी...प्रवीण के साथ इन लोगों को आते देखकर उसने ध्यान से सबको देखा और रागिनी को पहचानकर अपने पास आने का इशारा किया। पास जाते ही उसने रागिनी को खींचकर अपने सीने से लगा लिया और रोने लगी तो प्रवीण ने अनुराधा और प्रबल को बैठने का इशारा किया और कमरे से बाहर निकल गया

“रागिनी बेटा तुम्हें कभी हमारी याद नहीं आयी.... सुधा तो आजतक खुद को तुम्हारा दोषी मानती है.... ना वो उस कमीनी ममता के चक्कर में पड़ती और न ही तुम्हारे साथ ऐसा होता.... हमें तो ये लगता था कि पता नहीं तुम्हारे साथ क्या किया उन लोगों ने, पता नहीं तुम इस दुनिया में हो भी या नहीं या हो भी तो न जाने कैसी ज़िंदगी जी रही होगी” उस औरत ने कहा तो ममता का नाम सुनकर रागिनी और अनुराधा दोनों ही चोंक गईं। रागिनी के कुछ बोलने से पहले ही अनुराधा ने पुंछ लिया

“कौन ममता?”

“वही रागिनी की भाभी.... उसने सुधा के तो छोड़ो... रागिनी के भी विश्वास और प्यार को धोखा दे दिया... रागिनी तो उसे अपनी माँ से भी ज्यादा चाहती और मानती थी” उस औरत ने कहा तो अनुराधा मुंह फाड़े देखती रह गयी...रागिनी भी अवाक होकर देखने लगी... लेकिन वो अपनी धुन में आगे कहती गयी “रागिनी बेटा तुमने तो उसकी बेटी को भी अपनी बेटी की तरह पाला...बल्कि वो माँ होकर भी न पल सकी और न पाल सकती थी.... वैसे उसकी बेटी अनुराधा का कुछ पता है?”

“जी! ये अनुराधा ही है” रागिनी ने उलझे से अंदाज में अनुराधा की ओर इशारा करते हुये कहा तो एक पल के लिए प्रवीण कि माँ भी सकते से मे आ गयी और कमरे में मौजूद सभी एक दूसरे कि ओर देखने लगे लेकिन किसी के भी मुंह से कोई आवाज नहीं निकली

“अनुराधा बेटी... तुम्हें बुरा लगा होगा कि मेंने तुम्हारी माँ के बारे में ऐसा कहा... शायद रागिनी ने भी तुम्हें इस बारे में कभी बताया नहीं होगा... ये ऐसी ही थी... कभी किसी का न बुरा सोचती थी न बुरा कहती थी.... लेकिन जो मेंने कहा है... सिर्फ सुना है... सुधा के मुंह से... ममता के सामने... इसलिए जानती हूँ.... लेकिन रागिनी ने तो खुद भोगा है...इसीसे पूंछ लो?” कहते हुये उन्होने रागिनी कि ओर देखा तो रागिनी ने एक बार अनुराधा और प्रबल कि ओर देखा और प्रवीण की माँ कि आँखों में देखते हुये कहा

“मुझे कुछ भी याद नहीं... 20 साल से मेरी याददास्त गयी हुई है.... में पिछले 20 साल से राजस्थान मे रह रही थी... एक विक्रमादित्य सिंह थे उनके पास... उनकी मृत्यु के बाद उनकी वसीयत से मुझे यहाँ का पता मिला तब यहाँ पहुंची हूँ... और मुझे कुछ भी नहीं पता.... मुझे तो मेरा नाम भी विक्रमादित्य ने बताया था। ये दोनों बच्चे भी विक्रमादित्य ने मुझे सौंपे थे”

“ये तो तुम्हारे साथ बहुत बुरा हुआ.... लेकिन बस तुम सही सलामत हो...मुझे इसी की खुशी है..... एक मिनट में सुधा को भी बता दूँ तुम्हारे बारे में” कहते हुये उन्होने मोबाइल से कॉल मिलाया... थोड़ी देर बाद उधर से आवाज आयी

“माँ कैसी हो तुम? तबीयत तो ठीक है तुम्हारी?”

“सुन बेटा... तुझे एक खुशखबरी देनी है.... जो तू सोच भी नहीं सकती”

“क्या माँ? भैया के यहाँ कोई खुशखबरी है... नेहा के कुछ होनेवाला है क्या?”

“नहीं! उससे भी बड़ी खुशखबरी.......... अपनी रागिनी आयी है.... और अब वो यहीं रहेगी...अपने मकान में....ले बात कर” कहते हुये उन्होने फोन रागिनी को दे दिया फोन कान पर लगते ही रागिनी को उधर से भर्राई सी आवाज सुनाई दी

“रागिनी... तू सच में आ गयी... मेरा दिल कहता था तेरे साथ कभी बुरा नहीं हो सकता.... मुझे विक्रम पर पूरा भरोसा था कि वो तुझे बचा लेगा....” सुधा ने कहा तो रागिनी ने सिर्फ इतना कहा

“हाँ! में विक्रम के पास ही थी”

“चल ठीक है फोन पर नहीं अब तुझसे मिलकर ही बात करूंगी.... बच्चों को स्कूल से आ जाने दे... फिर में आती हूँ शाम तक... ‘उनको’ बोलकर.... रात को तेरे पास ही रुकूँगी” कहते हुये सुधा ने फोन काट दिया

तभी प्रवीण ने कमरे में आकर बताया कि उसने सारा समान पैक करा दिया है...चलकर गाड़ी में समान रखवा लें.... अनुराधा प्रबल का हाथ पकड़कर प्रवीण के साथ बाहर चली गयी... कुछ देर तक रागिनी भी कुछ नहीं बोली... फिर उसने कहा

“में फिर आऊँगी आपसे मिलने.... और सुधा भी शाम को आने का कह रही है...तब तक में भी कुछ जरूरी काम निपटा लेती हूँ” ये कहते हुये रागिनी भी बाहर निकाल आयी और गाड़ी में बैठ गयी... अनुराधा ड्राइविंग सीट पर बैठी हुयी थी, प्रबल ने गाड़ी में समान रखवाकर प्रवीण से समान के पैसे पूंछे तो प्रवीण ने माना कर दिया... इस पर रागिनी ने प्रवीण को पास बुलाकर समझाकर पैसे लेने को राजी किया और पैसे दे दिये। प्रबल भी जाकर आगे अनुराधा के बराबर में बैठ गया और गाड़ी चौक मे घुमाकर तीनों वापस घर आ गए।
:?::?::?:
ee ka ho raha hai bhai ...?:?:?:
kadiya jud rahi hai aur raj khul rahe hai ye to thik hai lekin jitana raj khul raha hai utana hi aur bad raha hai....
kamdev99008 bhai story itani kasi hui hai ki lag raha hai ki apne isko likhane se pahle bahut mehnat ki hogi ek ek chijo ko soch soch kar krambaddh karne me , lekin ye readers ko bhi utana hi mehnat karwa rahi hai ..
mujhe to lag raha hai ki mujhe ek notes banana padega is story ke liye ya fir koi flowchart jaisa khud likhne ke liye banata hu , taki sabhi cherecters ko achche se samjjh saku , roj ek naya cherecter paida ho raha hai ...:haha:
chaliye koi nahi yad rakh lenge jaise taise bas pichhla bhool jaye usse pahle naya update de diya karo ....:approve:
 
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