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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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firefox420

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kamdev bhiya muzhe koi itna jyaada bhi keeda nahi hai sex story mein compulsory sex ke hone ka .. muzhe suspense aur thriller story bhi pasand hai .. aur aapki story mein agar jarurat ho to hi sex dikhana .. nahi to story ki theme kharab ho jaati hai .. waise aapne mere thread par ek comment mein ye bhi kaha tha ki :sex: sex mein bhi thrill aur action hota hai .. so sex ki tension aap mat lo .. uske liye to main khud intezaam kar lunga ... ;)
 

kamdev99008

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bhai logo mahnat se update likhne me laga hu.........
aaj koshish hai ki 10-11 baje tak post kar doon

yaar typing karna bada mushkil kaam hai mere liye
 

firefox420

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yaar typing karna bada mushkil kaam hai mere liye

phir bhi itne khurafati comments aur jabardast reviews likh dete ho ... chalo koi baat nahi bade bhiyaaa !!

hum intezaar karenge .... tonight kaaaa ...... He he ..

shubh raatri ... kal milte hai Judge saab
 

firefox420

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Kal poora nahi ho paya... Aaj ratko post kar doonga

ha ha ha .. KD bhiya your tonight is getting ...... too .. much .. night

lagta hai aapki tonight seedhi tarah se nahi aayegi ....... :bat:
 
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kamdev99008

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Makar sankranti tak mohlat de do... Fir rojana update milega
Me yahan writer se jyada reader hoon... Is site ke do bahut bade writers ke 8-10 update daily padh raha hu... Champ aur pritam bhai... Inke alawa kareeb 100 aur bookmark hain
Makar sankranti tak pritam dada weekly 1-2 par a jayeinge tab apni kahani me jyada time de paunga....
Sorry to disappoint you all
Abhi weekly 2-3 se hi kam chalao
 

kamdev99008

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अध्याय 11

ऋतु की बात सुनकर बलराज सिंह कुछ देर सोचते रहे फिर ऋतु से बोले “बेटा! तुम्हें इन सब से दूर रखना चाहता था में... लेकिन जब तुम्हें कुछ पता चला है तो अब सबकुछ ही जान लो..... लेकिन किसी तरह का कोई सवाल नहीं पूंछोगी.....और ना ही किसी से कुछ जानने की कोशिश करोगी.....किसी की ज़िंदगी में तुम दखल भी नहीं दोगी”

“ऐसी क्या बात है पापा? ...ठीक है... अब आप जो भी मुझे बताना चाहें बता सकते हैं... में इस मामले में ना तो फिर कभी कुछ पूंछूंगी और न करूंगी..... अगर आप कुछ न भी बताना चाहें तो कोई बात नहीं” ऋतु ने गंभीरता से कहा

“बेटा! ये तो तुम्हें पता चल ही गया है कि रागिनी कि याददास्त जा चुकी है और वो तुम्हारे देवराज चाचा कि पत्नी नहीं है....... बल्कि रागिनी और दोनों बच्चे ही हमारे परिवार के नहीं हैं........ विक्रम ने उस समय पर उनकी मुसीबत-परेशानी में उनको सहारा दिया और उनकी पहचान भी बदली तो कुछ वजह होगी” बलराज सिंह ने कहना शुरू किया “अब जितना में जानता हूँ रागिनी के बारे में....वो तुम्हें बता देता हूँ..... रागिनी को मेंने गाँव में आते ही पहचान लिया था... और वो भी मुझे जानती थी अब से 20 साल पहले.... दिल्ली में जिस घर का तुमने जिक्र किया है.... वो घर रागिनी का ही है...शायद विक्रम ने ही उसके लिफाफे में उसे बताया होगा...और”

“लेकिन पापा जब वो घर रागिनी का है तो माँ विक्रम भैया के साथ हम लोगो को बताए बिना उस घर में क्यों गईं थीं... क्या माँ भी जानती हैं रागिनी जी को...क्या उन लोगों से हमारा कोई रिश्ता है? या किसी और तरीके से इतनी गहरी जान पहचान कि... विक्रम भैया ने उन्हें याददास्त चले जाने पर भी इतने दिन से अपने पास रखा और देखभाल भी की” ऋतु ने बलराज सिंह की बात बीच में ही काटते हुये कहा

“हाँ! मोहिनी भी जानती है रागिनी को.... और अनुराधा को भी....... वो रागिनी के भाई कि बेटी है...... उन लोगों से हमारा बहुत करीबी रिश्ता है... लेकिन विक्रम नहीं जानता था.... अब या तो उसे वो रिश्ता पता चल गया या फिर वो वैसे भी कॉलेज से रागिनी को जानता था इसलिए उसने रागिनी के बुरे वक़्त में पनाह दी” बलराज सिंह बोले

“क्या रिश्ता है? पापा आप भी बात को साफ-साफ नहीं बोल रहे.... नहीं बताना चाहते तो कोई बात नहीं” ऋतु से अब अपनी उत्सुकता नहीं छिपाई गयी

“रागिनी की माँ विमला... मेरी सगी बहन है.... हम पाँ... तीन भाइयों कि इकलौती बहन....तुम्हारी और विक्रम कि बुआ...... रागिनी तुम्हारी बड़ी बहन है”

“पापा आप पहले पाँच कहते कहते रूक गए.... क्या आप पाँच भाई थे...?”

“नहीं! हम 3 ही भाई थे... और एक बहन .... वो मुझसे गलती से निकाल गया था” बलराज सिंह ने हड़बड़ाते हुये कहा

“तो पापा हम उनसे मिल तो सकते हैं..... वैसे विमला बुआ और उनका बाकी परिवार भी तो होगा... उन्होने रागिनी दीदी के बारे में कभी विक्रम भैया से कुछ पूंछा क्यों नहीं... या विक्रम भैया ने ही उन्हें उनके घरवालों को क्यों नहीं सौंपा?” ऋतु ने फिर से सवाल कर दिया

“बस! अब कुछ मत पूंछों ऋतु... बस ये ही समझ लो कि विमला के भी परिवार में रागिनी और अनुराधा को छोडकर कोई नहीं बचा......” बलराज सिंह ने दर्द भरी आवाज में कहा “जैसे हम भाइयों के परिवार में... सिर्फ में, तुम्हारी माँ और तुम बचे हैं”

“ठीक है पापा...... अब में आपसे इस सिलसिले में कभी कोई बात नहीं करूंगी” कहते हुये ऋतु ने फोन काट दिया

बलराज सिंह कॉल काटने के बहुत देर बाद तक भी फोन कि ओर देखते रहे... फिर उन्होने कॉल मिलाया

“कैसे हैं आप? सब ठीक तो है” कॉल उठते ही दूसरी ओर से मोहिनी देवी कि आवाज आयी

“में ठीक हूँ... तुम्हें कुछ बताना था...”

“क्या? जल्दी बताओ... मेरा दिल बहुत घबरा रहा है...क्या विक्रम के बारे में कोई बात है”

“नहीं! ऋतु के बारे में और.... रागिनी के बारे में भी” बलराज सिंह बोले “परसों मेंने तुम्हें बताया था कि रागिनी अनुराधा, प्रबल और पूनम के साथ कोटा गयी है... लेकिन आज मुझे ऋतु का फोन आया था ...कल उसने प्रबल और पूनम को किशन गंज वाले घर में जाते देखा...रागिनी के घर”

“इसका मतलब...” मोहिनी आगे कुछ बोल नहीं पायी

“नहीं रागिनी कि याददास्त एकदम से नहीं आ गयी.... उस मकान के बारे में शायद विक्रम ने ही उन लिफाफों में कुछ बताया होगा.... इसीलिए वो वहाँ पहुँच गयी”

“हाँ! यही हुआ होगा...... अगर रागिनी कि याददास्त वापस आ गयी होती.... तो अब तक न जाने क्या हो जाता...लेकिन याद रखना.... अब वो किशनगंज पहुँच गयी है.... वहाँ उसे बहुत कुछ जाना पहचाना मिलेगा तो उसकी पूरी याददास्त न सही कुछ तो यादें बाहर आएंगी ही, कुछ बातें वहाँ के लोग बताएँगे... मेरा तो दिल दहल जाता है ये सोचकर कि जिस दिन वो आकर हमारे सामने खड़ी होगी... हमारे लिए इस दुनिया में कहीं मुंह छुपाने को भी जगह नहीं मिलेगी..... कैसे कर पाऊँगी उसकी नज़रों का सामना....... और अगर ऋतु के सामने ये सब आया तो........” मोहिनी ने रोते हुये कहा....एक डर कि थरथराहट उसकी आवाज में साफ झलक रही थी

“मोहिनी अब जो होना है...होगा ही...आज या कल.... हर इंसान को उसकी गलतियों की सज़ा मिलती ही है....... चाहे वो कितना भी छुपा ले या पश्चाताप भी कर ले......... कर्म का फल तो भुगतना ही होता है..... में तो चाहता हूँ कि अब सबकुछ जल्दी से जल्दी सबके सामने आ जाए... इतने सालों से जो डर दिमाग पर हावी रहा है वो भी खत्म हो जाए, इस डर की वजह से हमारी आँखों के सामने ही हमारा परिवार हमारे अपने हमसे दूर होते चले और हम कुछ न कर सके...में तो तभी रागिनी और अनुराधा को सब बताना चाहता था लेकिन तुमने ही रोक दिया... आज मेंने ऋतु को रागिनी और अनुराधा के बारे में सब बता दिया है” बलराज सिंह रुँधे हुये स्वर में बोले

“क्या? अब क्या करना है...जब ऋतु को आपने सब बता ही दिया है तो मेरे ख्याल से अब आप भी यहाँ आ जाओ और हम सब चलकर एक बार रागिनी से भी मिलते हैं और ये सारी दूरियाँ खत्म करके एक साथ मिलकर फिर से ज़िंदगी शुरू करते हैं जैसी पहले थी” मोहिनी ने आशा भरे स्वर में कहा “अब तक तो मेंने सब कुछ विक्रम के भरोसे छोड़ा हुआ था ...उसने कहा था कि सही वक़्त आने पर वो सबकुछ सही कर देगा.......... लेकिन वो वक़्त आने से पहले विक्रम ही नहीं रहा.......अब सारे परिवार में एक आप ही अकेले हो ........अब तो जो करना है आप को ही करना है...... सही या गलत..... अगर अपने यही जिम्मेदारियाँ पहले ले ली होती तो इतना सबकुछ नहीं बिगड़ता....... चलो जब जागो तभी सवेरा” कहते हुये रागिनी ने फोन काट दिया

बलराज सिंह अपनी सोचों में गुम होकर वहीं बैठक में लेट गए

..........................................

उधर हवेली में ~~

रागिनी ने सुबह उठकर चाय बनाई तब तक अनुराधा और प्रबल भी अपने कमरों से निकलकर बाहर ड्राइंग रूम मे आकर बैठ गए और तीनों ने साथ बैठकर चाय पी... चाय पीकर रागिनी ने उन दोनों को अपना अपना सामान पैक करने को कहा और खुद अपने कमरे में अपना समान पैक करने चली गयी लगभग घंटे भर बाद तीनों ने अपने अपने बैग लाकर हॉल में रख दिये... तभी रागिनी के दिमाग में कुछ आया तो वो नीचे मौजूद एक मात्र कमरे की ओर बढ़ी और उसका दरवाजा खोला.... ये कमरा विक्रम का था... रागिनी और दोनों बच्चों के कमरे ऊपर थे...इस कमरे में कभी भी किसी को भी घुसने कि इजाजत नहीं थी... विक्रम से अगर रागिनी या बच्चों को बात करनी होती थी तो बाहर से ही आवाज देते थे और विक्रम ड्राइंग रूम में ही बात करता था....शुरू शुरू में तो रागिनी को ये बड़ा अजीब लगता था... लेकिन धीरे धीरे इसकी आदत हो गयी, बच्चे भी जब बड़े होने लगे तो उन्होने भी बिना कहे ही अपने आप समझकर इसी नियम का पालन किया...... लेकिन आज जब विक्रम नहीं रहा तो रागिनी के मन में आया कि जब हम यहाँ से जा ही रहे हैं तो शायद विक्रम के सामान में कुछ ऐसा हो जिसे ले जाना चाहिए और साथ ही उसके मन में दबी उत्सुकता भी कि आखिर इस कमरे में ऐसा क्या है जो विक्रम किसी को भी कमरे में नहीं आने देता था.... यहाँ तक कि उस कमरे कि साफ सफाई भी वो खुद ही करता था।

रागिनी दरवाजा खोलकर कमरे में घुसी तो वहाँ एक बैड, एक स्टडी टेबल, कुछ बुकसेल्फ एफ़जेएनमें किताबें भरी हुई थी और एक कोने में बार बना हुआ था। तभी रागिनी को अपने पीछे किसी के होने का आभास हुआ... पलटकर देखा तो अनुराधा और प्रबल भी अंदर आकर कमरे में खड़े थे तो रागिनी ने कहा

“कपड़ों वगैरह का तो कुछ करना नहीं है..... यहाँ कोई कागजात या ऐसी कोई चीज जिसमें किसी तरह कि जानकारी हो...वो साथ ले चलना है... तुम लोग टेबल और इन बुकसेल्फ में देखो... में उधर देखती हूँ” बार कि ओर इशारा करते हुये

प्रबल बुकसेल्फ में रखी किताबों को पलटकर देखने लगा कि कोई खास चीज हो... इधर अनुराधा ने टेबल को देखना शुरू किया...रागिनी ने बार कि सेल्फ में बने दराजों को खोलकर चेक करना शुरू किया और तीनों को जो भी काम कि छेज दिखी इकट्ठी करते गए...कुछ डायरियाँ, कुछ मेमोरी डिस्क, लैपटाप, कुछ फाइलें और कुछ फोटो जो भी मिला सब इकट्ठा करके पैक कर लिया और उस कमरे को फिर से बंद करके बाहर आ गए। फिर रागिनी ने गेट पर कॉल करके चौकीदार को बुलाया और सारे बैग गाड़ी में रखवाए और पूनम को फोन करके बताया की वो लोग आ रहे हैं और दोपहर का खाना उन्हीं के साथ खाएँगे...साथ ही सुरेश को भी घर ही मिलने का बोला। इसके बाद रागिनी और अनुराधा ने मिलकर नाश्ता तयार किया और वे सब नाश्ता करके घर से निकल पड़े। जाने से पहले रागिनी ने चौकीदारों को बताया की वे लोग किसी काम की वजह से कुछ समय दिल्ली में रुकेंगे, इसलिए घर का ध्यान रखें और कोई भी विशेष बात हो तो उनसे फोन पर संपर्क कर लें।

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