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Romance मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक .......

रागिनी की कहानी के बाद आप इनमें से कौन सा फ़्लैशबैक पहले पढ़ना चाहते हैं


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kamdev99008

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डॉ साहब द्वारा उठाए गए सवालों के जवाब आपको पेज 1 पर मेरी रिज़र्व्ड पोस्ट संख्या 1 से 9 तक में मिलेंगे.... उन्हें अपडेट कर दिया गया है.... आप सब से अनुरोध है की एक बार पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दें..... तब तक कहानी को आगे बढ़ाने के लिए नया अपडेट तयार जो रहा है
 
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firefox420

Well-Known Member
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Dr Sahab Dr sahab Dr sahab .... Maa ki shadi nhi... Behen ki shadi...:winkiss:

aap galat samajh gaye... bandhu...

shaadi(marriage)
sadi (indian traditonal female cloth)
....
.... main is-se jyaada aur kuch nahi kahunga nahi to fir Dr. saab kahenge ki 3 idiots ke RAju ki tarah Maa ki sadi ka jikrr kar diya... fir se... :wink:
 
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Niks96

A professional writer is amateur who didn't quit
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अपडेट-4

अभय ने फोन काटकर ऋतु को आवाज दी... ऋतु के आने पर उससे कहा

“ऋतु! ये चाबियाँ लो और पुरानी वाली लोहे की अलमारी से एक फ़ाइल निकालो.... बहुत पुरानी रखी हुई है.... उसके ऊपर विक्रमादित्य सिंह का नाम होगा”

“विक्रम भैया की है क्या” ऋतु ने उत्सुकता से कहा

“हाँ! करीब 5-6 साल पहले दी थी उसने तब से वो कभी आया ही नहीं”

“अब क्या आज भैया आ रहे हैं यहाँ?”

“विक्रम नहीं आ रहा ....उस फ़ाइल को क्यों निकलवा रहा हूँ में बाद मे बताऊंगा”

ऋतु चुपचाप चाबियाँ लेकर ऑफिस के दूसरे कोने मे रखी एक पुरानी लोहे की अलमारी की ओर बढ़ गयी.... उसे जाते हुये पीछे से देखकर अभय ने एक ठंडी सांस भरी... उसकी काली पेंट में कसे उभरे हुरे नितंब देखते हुये

“साली की घोड़ी बनाकर गांड मारने मे बड़ा मजा आयेगा.... लेकिन क्या करू ....विक्रम की बहन है.... साला दोस्त से प्यार दिखाने तो कभी आता नहीं.... लेकिन उसकी बहन चोद दी तो आकार मेरी ही गांड मार लेगा...” सोचते हुये अभय मुस्कुराया.... लेकिन तभी उसे कुछ याद आया और उसकी पलकें नम हो गईं.... शायद विक्रम की मौत की खबर.... और फिर मन ही मन बुदबुदाया “ऋतु को कैसे बताऊँ? लेकिन बताना तो पड़ेगा ही.... देखते हैं पहले रागिनी को वहाँ पहुँचकर फोन करने दो... या अनुराधा को आ जाने दो”

ऋतु के जाते ही अभय अपनी कुर्सी से पीठ टिका कर आँखें बंद करके सोच में डूब गया... लगभग 5 साल पहले वो अपने ऑफिस मे बैठ हुआ था... तब इतना शानदार और बड़ा ऑफिस नहीं था उसका... नया नया वकील था छोटा सा दफ्तर... उसके मुंशी ने दफ्तर के गेट से अंदर झाँकते हुये कहा

“वकील साहब! कोई विक्रमादित्य सिंह आए हैं आपसे मिलने”

“अंदर भेज दो” अभय ने नाम को दिमाग मे सोचते हुये कहा...उसे ये नाम काफी जाना पहचाना सा लगा।

तभी दरवाजा खुला और एक नौजवान आदमी और औरत ने अंदर आते हुये कहा

“कैसे हैं वकील साहब!”

“विक्रम तुम? और रागिनी तुम भी... वो भी विक्रम के साथ” अभय ने उन्हें देखकर चौंकते हुये कहा और अपनी कुर्सी से उठकर खड़ा हो गया

“क्यों क्या हम दोनों साथ नहीं आ सकते” रागिनी ने मुसकुराते हुये कहा

“क्यों नहीं... लगता है...कॉलेज में लड़ते लड़ते थक गए तो हमेशा लड़ते रहने के लिए शादी कर ली होगी... अब दोनों साथ मिलकर अपने दोस्तों से लड़ने निकले हो” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा

“नहीं हमने आपस मे शादी नहीं की... बल्कि रागिनी अब मेरी माँ हैं” विक्रम ने गंभीरता से जवाब दिया

“तुम्हारी माँ हैं....क्या मतलब?”

“ये मेरे पिताजी देवराज सिंह की पत्नी हैं.... तो मेरी माँ ही हुई न”

अभय ने दोनों को सामने पड़ी कुर्सियों पर बैठने का इशारा किया और अपनी कुर्सी पर बैठते हुये दोनों के लिए चाय मँगवाने को अपने मुंशी से कहा तो विक्रम ने मुसकुराते हुये मुंशी को मट्ठी भी लाने को कह दिया। मुंशी चाय लाने चला गया

“यार तू तो वकील बनकर स्टेटस मैंटेन करने लगा है.... लेकिन हम तो हमेशा टपरी पर चाय...मट्ठी के साथ ही पीते थे” विक्रम ने मुसकुराते हुये अभय से कहा

“तू हमेशा ऐसा ही रहा है.... वो करता है जो कोई सोच भी नहीं सकता.... मुझे तो दिखावा करना ही पड़ता है” अभय ने भी मुसकुराते हुये कहा “और सुना आज मेरी याद कैसे आ गयी”

“सर! ये रही फ़ाइल” ऋतु की आवाज सुनकर अभय अपनी सोच से बाहर आया

...............................................................................अभी इतना ही मित्रो

आज ही इसी अपडेट के कुछ और भाग पोस्ट करूंगा....टाइपिंग मे समय लग रहा है तो सोचा थोड़ा-थोड़ा करके ही पोस्ट कर दूँ
Shandar update kamdev bro...ab baat halaki-halki smaj aa rhi hai...eagerly waiting for next update...
 

Rahul

Kingkong
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wonderfull update vikram ka role jabardast hai zindgi bhar qurbani dega wo :verysad:
 

Chutiyadr

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मोक्ष
मोक्ष वास्तव में हमारी आत्मसंतुष्टि है... जब हमारी कामनाएं आनंद की अनुभूति करने लगती हैं इसको हम अपनी सुविधानुसार आनंद, सुख, संतुष्टि या समाधि भी कहते हैं. मोक्ष सम्पूर्ण तृष्णाओं के भोग अर्थात सम्पूर्ण भोग या सम्भोग से ही प्राप्य है.
त्याग

मोक्ष की एक नकारात्मक अवधारणा त्याग है अर्थात समस्त तृष्णाओं का त्याग कर देना इसे भी कुछ व्यक्ति मोक्ष ही मानते हैं किन्तु ऐसा सत्य नहीं है.... त्याग एक भ्रम है जो आपकी नियति को नकारात्मक निर्धारित करता है. आपने जिस वस्तु को पूर्णतः प्राप्त ही नहीं किया उसका त्याग कैसे कर पायेंगे. त्याग केवल उसी का हो सकता है जिसको अपने प्रपट कर लिया हो...जिस पर आपका अधिकार हो...जिस पर आपका स्वामित्व हो...
तृष्णा

अनादि काल से संसार के जीव विभिन्न प्रकार की तृष्णाओं में जीवन जीते हुए तुष्टि की कामना करते रहे हैं और करते रहेंगे. संसार में 5 रूप में तृष्णा को परिभाषित किया गया है :-

१- काम

२- क्रोध

३- मद

४- लोभ

५- मोह

यही पांचों तृष्णायें जीवन को जीने के लिए प्रोत्साहित करती हैं और सभी जीवों को परस्पर सामंजस्य से रहने को प्रोत्साहित करती हैं क्योंकि सभी को अपनी तृष्णा की पूर्ति के लिए अन्य के सहयोग की लालसा ही समाज का निर्माण करती है.
भय

इसके साथ ही एक अन्य शक्ति भी जो इन सब को नियंत्रित करती है :- भय

भय तृष्णा की पूर्ति की मानसिकता और प्रयासों को विकृत और निकृष्ट होने से रोकता है जिससे किसी एक या अधिक के हित साधने में सार्वजनिक अहित न हो.
धर्म

तृष्णा के भोग पर नियंत्रण करने वाला भय इसे कभी सम्पूर्ण रूप से भोगने नहीं देता इस बाधा को दूर करने के लिए चिंतन-मनन-अध्ययन के द्वारा ज्ञानी-विज्ञानियों जिन्हें ऋषि कहा गया, ने एक प्रकृति आधारित व्यवस्था का निर्माण किया जिसे हम धर्म कहते हैं. साधारणतः हम धर्म को पूजन पद्धति, पंथ, संप्रदाय, मजहब या रिलिजन समझते हैं लेकिन "धर्म" का अभिप्राय व्यवस्था या जीवन पद्धति धारण करने से है. अर्थात भय मुक्त व्यवस्था ही धर्म है.
भगवन या भगवान्

अब आप कहेंगे की भगवान क्या हैं........ में भी कहूँगा की भगवान् ही हैं जो समस्त सृष्टि को संचालित करते हैं, लेकिन क्या अप भगवान् को जानते हैं... ???

भगवान् = भ + ग + व् + अ + न अर्थात पंचवर्ण या पंचतत्वो का संयोजन

भ = भूमि

ग = गगन

व = वायु

अ = अग्नि

न = नीर

इन्ही पंचतत्वों से सम्पूर्ण सृष्टि का सञ्चालन होता है

kaamdev bhai ise padkar samjh aata hai ki aap kitane bade writer hai...aur kitane knowlage wale insan ..:)
ise padkar aisa laga jaise main kisi sant ka pravchan pad rha hu ,bahut khub ..:superb:
sabhi chije itane kam sabdo me aur arthpurn dang se vivarit kiya gaya ki dil khus ho gaya :yippi::adore::adore:
 

kamdev99008

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अध्याय 3

रागिनी और पूनम रागिनी की गाड़ी से श्रीगंगानगर जा रहे थे तो गाड़ी चलाते-चलाते अचानक रागिनी बोली

“पूनम! तुम मुझे कितना जानती हो?”

“कितना मतलब? में तुम्हें तब से जानती हूँ जब तुमने कॉलेज मे बी॰कॉम मे एड्मिशन लिया था... “

“मतलब ये कि मेरे घर-परिवार के बारे में .... क्या तुम कभी मेरे घर गयी थीं?”

“नहीं में असल में तुम्हारी सहेली नहीं.... में विक्रम को जानती थी”

“और विक्रम को कितना जानती थी”

“ज्यादा नहीं... बस विक्रम के साथ मजे लूटती थी.... प्यार-व्यार से तो विक्रम का दूर-दूर तक कोई रिश्ता ही नहीं था....उसे तो बस जिस्म कि भूख मिटानी होती थी..... और मेरा भी यही मकसद था.... क्योंकि मेरे घरवाले मेरी शादी एक ऐसे लड़के से तो हरगिज नहीं करते जिसके नाम के चर्चे शहर भर में हवस के पुजारी के रूप मे हों ..... हाँ इतना पता है कि उसने कॉलेज से बाहर कि किसी लड़की से शादी कर ली थी.... लेकिन उसके बाद वो मुझे कई साल तक मिला ही नहीं.... जब मिला तो तुम्हें लेकर.... लेकिन उससे कुछ पूंछने कि मेरी हिम्मत भी नहीं हुई... क्योंकि अगर मेरे और उसके रिश्ते कि भनक लग जाती तो मेरा घर, मेरा पति और बच्चे ....शायद सब कुछ बिखर जाता.... इसलिए वो जैसा कहता गया ...में मानती गयी.... कम से कम मेरे घर परिवार पर तो कोई आंच नहीं आयी अब तक उसकी वजह से” पूनम ने कहा तो रागिनी चुपचाप कुछ सोचती रही...फिर बोली

“लेकिन मेरे और विक्रम के रिश्ते के बारे में तुमने उससे कुछ पूंछा नहीं... क्योंकि तुमने बताया था कि कॉलेज में मुझे विक्रम से नफरत थी”

“पूंछा था... तो उसने कहा कि तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के बारे मे वो समय आने पर बताएगा..... वैसे ये प्रबल तो तुम्हारा बेटा हो भी सकता है लेकिन अनुराधा तुम्हारी बेटी हरगिज नहीं हो सकती”

“में भी जानती हूँ इस बात को.... दोनों ही बच्चे मेरे नहीं हो सकते” रागिनी ने गंभीरता से कहा

“तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?” पूनम ने सवाल किया

“क्योंकि अब से 6 महीने पहले मुझे कुछ दिन के लिए बीमारी कि वजह से कोटा हॉस्पिटल मे एड्मिट रहना पड़ा था... तुम और मोहन भी मुझे देखने आए थे.... तभी मेरे वहाँ मुझे कुछ परेशानी लगी थी” रागिनी ने अपनी टांगों के जोड़ की ओर इशारा करते हुये कहा “तो मेंने गाईनाकोलोजिस्ट को दिखाया था... उसने बताया कि मेंने तो अभी तक कभी सेक्स भी नहीं किया है... मेरी झिल्ली भी नहीं टूटी.... तो मेरे बच्चे कैसे हो सकते हैं?” रागिनी ने अजीब सी मुस्कुराहट के साथ कहा

“क्या? तो फिर तुमने विक्रम से नहीं पूंछा?”

“वही तो नहीं बताया विक्रम ने.... बल्कि कुछ नहीं बताया.... कभी कभी तो मुझे ऐसा लगता है जैसे मुझे एक तरह से मेरे दिमाग से कैद करके रखा हुआ है विक्रम ने... वो मेरे बारे मे सबकुछ जानता है.... लेकिन हर बात के लिए कह देता है कि समय आने पर बताऊंगा.......... अब तो विक्रम ही नहीं रहा.... मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा कि मेरी ज़िंदगी का क्या होगा?”

पूनम को भी कुछ समझ नहीं आया तो वो भी चुपचाप बैठी रही...
........................................................................................
अचानक ब्रेक लगने से प्रबल की आँख खुली तो उसने बाहर देखते हुये पूंछा...

“दीदी! कहाँ आ गए हम? और कितनी देर लगेगी?”

“जयपुर से आगे आ गए हैं हम... हरियाणा मे रेवाड़ी पाहुचने वाले हैं.... तू तो कोटा से ही सोता चला आ रहा है...” अनुराधा ने कहा

“आपने जगाया क्यों नहीं मुझे... आधे रास्ते में भी ड्राइव कर लेता.... अप अकेले ही चलाकर ला रही हो”

“रहने दे तू चला रहा होता तो अभी जयपुर भी नहीं पहुँचते” अनुराधा ने झिड़कते हुये कहा “कुछ खाएगा तो बता?”

“नहीं! रहने दो... अब दिल्ली पहुँच ही रहे हैं... वहीं देखेंगे”

“अच्छा दीदी माँ ये क्यों कह रहीं थीं कि विक्रम भैया ही नहीं हैं तो वो यहाँ रहकर क्या करेंगी.... कहाँ गए विक्रम भैया”

“मुझे नहीं पता...” अनुराधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुये कहा तो प्रबल ने मुसकुराते हुये पूंछा

“वैसे दीदी आप भैया से इतना चिढ़ती क्यों हैं... माना कि वो हुमसे सख्ती से पेश आते हैं... लेकिन हम उनके दुश्मन थोड़े ही हैं.... वो हमारे लिए कितना करते हैं...और उनके सिवा हमारा है ही कौन..... आज उनके बिना माँ हम दोनों को अकेली कैसे पाल पाती”

“तू जानना चाहता है... तो सुन.... मेंने बचपन से माँ को देखा है... में हमेशा उनही के पास रहती थी... पिताजी का तो मुझे याद भी नहीं...कि वो कैसे थे....हमारा घर भी कहीं और था..... फिर एक बार माँ कहीं चलीं गईं तो मुझे एक औरत जो उस घर मे रहती थी॥ उसने कहा कि वो मेरी असली माँ हैं... फिर कुछ दिन बाद एक दिन विक्रम हमारे घर आया.... में नहीं जानती थी कि ये कौन है.... लेकिन वो औरत इसे पहचानती थी..... विक्रम अपने साथ पुलिस को भी लेकर आया था, उस औरत को पुलिस पकड़ कर ले गई और मुझे विक्रम यहाँ ले आया.... फिर कुछ दिन बाद वो तुम्हें गोद में यहाँ लेकर आया और बाद मे माँ को....तब तुम बहुत छोटे से थे शायद 1-2 दिन के ही होते जब तुम्हें लाया गया था.... लेकिन मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि जब पिताजी थे ही नहीं तो तुम कैसे पैदा हुये...और माँ को विक्रम कहाँ से लेकर आया.... तुम भी अब बच्चे नहीं हो... मेरी बात को समझते होगे.... माना कि तुम मेरे भाई हो... लेकिन मेरे पिताजी को तो मेंने तुम्हारे जन्म के पहले से ही नहीं देखा.... और माँ के साथ तब से लेकर अब तक सिर्फ एक ही आदमी को देखा है.......विक्रम। और इन दोनों कि उम्र में भी मुझे कोई फर्क नहीं लगता.......... अगर इन दोनों का कोई ऐसा रिश्ता है तो खुलकर सामने क्यों नहीं आते......... माँ-बेटे क्यों बने हुये हैं..... इसीलिए मुझे इनसे नफरत है........ अब तो माँ से भी नफरत सी हो गई है.... क्योंकि वो भी विक्रम के इशारो पर ही चलती हैं”

प्रबल मुंह फाड़े अनुराधा कि बात सुनता है, शर्म से उसका चेहरा लाल हो जाता है और वो गुस्से से बोलता है “दीदी! आपके कहने का क्या मतलब है........ माँ पर इतना बड़ा इल्ज़ाम लगाते आपको शर्म नहीं आयी.... वो मुझ से पहले आपकी माँ हैं... मेंने बहुत बार देखा है कि वो आपको मुझसे ज्यादा प्यार करती हैं”

“में भी माँ से बहुत प्यार करती हूँ... बल्कि उनही से प्यार करती हूँ...जब से होश संभाला है....उनके सिवा मेरा इस दुनिया में है ही कौन.... लेकिन में तुझे वो बता रही हूँ.... जो मेरे सामने हुआ... जो मेंने देखा....” अनुराधा ने अपनी पलकों पर आयी नमी को पोंछते हुये आगे कहना जारी रखा “मेंने तुझे बचपन से पाला है... माँ से ज्यादा तू मेरे साथ रहा है......में तुझसे बहुत प्यार करती हूँ.... मेरा इरादा तेरे जन्म के बारे मे सवाल उठाकर तुझे नीचा दिखाना नहीं था.... पहले में खुद बच्ची थी... लेकिन अब में भी इस बारे मे सोचती हूँ तो मन मे ये सवाल उठने लगते हैं.... तू खुद बता... क्या तेरे मन मे ये सवाल नहीं उठा?”

प्रबल शांत होकर बैठ गया... उसके भी दिमाग मे सवालों का तूफान उठ खड़ा हुआ था....

शेष अगले अध्याय में
 
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kamdev99008

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kaamdev bhai ise padkar samjh aata hai ki aap kitane bade writer hai...aur kitane knowlage wale insan ..:)
ise padkar aisa laga jaise main kisi sant ka pravchan pad rha hu ,bahut khub ..:superb:
sabhi chije itane kam sabdo me aur arthpurn dang se vivarit kiya gaya ki dil khus ho gaya :yippi::adore::adore:
भाई.... इतनी प्रसंशा के लिए धन्यवाद..... लेकिन मेंने कुछ भी ऐसा नहीं लिखा जो हमारे आस-पास हमारे जीवन में घटित न होता हो.....
बस फर्क इतना है की 99% लोग इन जरूरी बातों को नजरंदाज करके दिखावा, भौतिकवाद, विकास, कैरियर और कमाई में ही घुसे रहते हैं ज़िंदगी भर... लेकिन जब इन्हीं वजहों से परेशानियाँ अति हैं तो दोष दूसरों को, घर-परिवार को, समाज को, सरकार को देकर ये समझते हैं की इससे उनके कष्ट खत्म हो जाएंगे.........
में फुर्सत में रेहता हूँ तो इन सब चीजों को गौर करता हूँ, अपने जीवन मे अपनाता हूँ और अपनी परेशानियों के समाधान भी इन्हीं में ढूँढता हु...
 

kamdev99008

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yar bahut hi ajeeb si story ban rahi hai ye poonam ke bacche nahi hain aur wo kunwari hai aur ye raaz ki ye chakkar kya hai sirf vikram janta tha
...कन्फ्युज मत हो.... पूनज़्म नहीं रागिनी कुँवारी है... अनुराधा और प्रबल उसके बच्चे नहीं हैं....

पूनम का भी बड़ा रोल है.... लेकिन लीड रोल रागिनी का है....पूनम विक्रम और रागिनी के साथ कॉलेज मे पढ़ती थी...
 
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