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मोक्ष : तृष्णा से तुष्टि तक

Sangeeta Maurya

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मेरे नेता भैया जी..... मैं आपकी मंशा समझ गई.... आप जानबूझ कर किसी को दुःख या तकलीफ नहीं देते...जब कोई आपको आहात करता है तभी आप उसे सबक सिखाते हो..... चलिए अब चलते हैं आपके कहे कथनों को तोड़ कर आपसे सवाल पूछने की और..... मैं उसे सिर्फ दंड देता हूँ, और उस स्तर तक ......जब तक कि वो दोबारा उस गलती को मेरे या किसी के भी साथ ना कर सके...... आपको किसी को दंड देने का अधिकार किसने दिया???????? आप कोई कानून नहीं...कोई देवता नहीं...कोई भगवान नहीं.... न्यायाधीश नहीं.... धर्मराज नहीं....गलतियां आपने भी की हैं...दिल आपने भी किसी न किसी का दुखाया होगा.... (मेरा तो दुखाया ही है....मुझसे बात न कर के...मुझे याद न कर के....मुझे टैग न कर के.....) माना आपका दिल दुख है...आपका नुक्सान हुआ है.... लेकिन क्या आपने दूसरे व्यक्ति के पहलु को जानने या पहचानने की कोशिश की.... अगर उसकी कोई मजबूरी हुई होगी तो??? जब इंसान किसी को दंड देने की सोचता है तो वो खुद को भगवान मानने लगता है..... क्या आप भी ऐसा सोचते हैं की आप किसी को उसके किये अपराध के लिए दंड दे कर भगवान का कार्य कर रहे हैं.... अगर सब यही सोचने लगें तो कर्म और उसके फल मिलने का महत्व ही क्या रह गया.....किसी ने आपको गाली दी और आपने उसे न्यूट्रल करने के लिए उसे थप्पड़ मार दिया तो इसमें आप उस व्यक्ति के लेवल पर तो आ ही गए न.... आप बड़े तब बनोगे जब कोई आपको गाली दे और आप उस व्यक्ति को कोई जवाब न दो...बल्कि बड़प्पन दिखाते हुए उसे माफ़ कर दो और अपनी जिंदगी से साफ़ कर दो..... किसी और के साथ गलत होता हुआ , सिर्फ देखकर, जल्दबाज़ी में ये फैसला नहीं लिया जा सकता कि कौन सही है और कौन गलत....... हो सकता है किसी को उसकी गलतियों का दंड भुगतना पड रहा हो..... और जो गलत दिख रहा है वो वास्तव में पीड़ित हो
----- लेकिन अपने संज्ञान (cognition) के मामले में मुझे पता होता है कि किसका उद्देश्य गलत है .......... इसलिए वहाँ कोई दुविधा मेरे मन में नहीं होती
.... प्रिय भैया.... कृपया मुझे भी ये टेक्निक सीखा दीजिये जिससे पता चल जाए की दूसरे व्यक्ति का पहलु कैसे समझा जा सकता है.... क्या आप माइंड रीडिंग जानते हैं.... या कुंडली देख के बता देते हैं...या फिर शायद आप भूतकाल...भविष्य काल...और वर्तमान काल पहले ही देख लेते हैं..... मुझे भी ये टेक्नीक सीखनी है.... :rofl: ..... उम्र में आप से थोड़ी ही छोटी हूँगी ..... पर अपने जीवन काल में मैंने कभी इतना पेशेंट इंसान नहीं देखा जो इतना सब सोच कर बदला लेने का डिसिशन लेता हो..... सोच समझ कर...प्लानिंग कर के लिया गया बदला बड़ा घातक होता है.... अगर आप ऐसा करते हैं तो प्रणाम है आपको.... 🙏 ...... अब आते हैं दूसरे पॉइंट पर..... बदला (revenge) का एक और पालू होता है......... उसने जो नुकसान मेरा किया है..... उस नुकसान को उससे वसूल कर लूँ या उसके बदले में उसका भी उतना ही नुकसान कर दूँ..............मेरा उद्देश्य सिर्फ उसे ऐसा बना देना है कि वो दोबारा मेरा ही नहीं किसी का भी नुकसान ना कर सके...... वैसे तो आप सर्वज्ञानी हैं...फिर भी मैं आपको बदला शब्द का मतलब बताना चाहती हूँ........ [सं-पु.] - 1. प्रतिदान; विनिमय 2. प्रतिशोध 3. बदलने की क्रिया, भाव या व्यापार 4. किसी ने जैसा व्यवहार किया हो, उसके साथ किया जाने वाला वैसा ही व्यवहार; प्रतिकार; पलटा। [मु.] बदला लेना : जिसने जैसी हानि पहुँचाई हो उसे वैसी ही हानि पहुँचाना।........ आप जो उस व्यक्ति के साथ कर रहे हैं वो बदला लेना ही है...अब आप चाहे जितना इसे सही ठहराएं...मगर आप बदला ही ले रहे हैं..... अब आते हैं तीसरे पॉइंट पर....मेरा फेवरेट.... रही बात कर्मों का फल भुगतने की............... में रास्ते में पड़े हुये कांटे को सिर्फ इसलिए रास्ते में नहीं छोड़ सकता कि लोगों के पैरों में चुभ-चुभ कर एक दिन उसकी चुभने कि क्षमता खत्म हो जाएगी.....उसकी नोक टूट जाएगी............ में हल्की सी चुभन होते ही उसे मिट्टी में इतना गहरा गाड़ देना चाहता हूँ कि वो फिर कभी किसी के भी पैर में ना चुभे और मिट्टी में गलकर खत्म हो जाए........ मैंने एक सतसंग में एक साधू की कहानी सुनी थी..... एक साधू रोज सुबह नदी में नहाने जाते थे.... रास्ते में उन्हें एक बिच्छू मिलता था जो उन्हें रोज डंक मारता था....साधू उसके डंक मारने के बाद उसे पूँछ की तरफ से उठा कर एक तरफ रख देते थे...ऐसे ही रोज चलता रहता था...एक दिन किसी ने उनसे पुछा की ये बिच्छू आपको रोज डंक मारता है और आप इसे उठा के दूसरी तरफ रख देते हो.....आप इसे मार क्यों नहीं देते....तब वो साधू बोले..... की डंक मारना उस बिच्छू का कर्म है..... शायद मेरे इस जीवन में या पिछले जीवन में मैंने कोई पाप किया होगा जिसकी सजा मुझे इस तरह मिल रही है...मैं इस जीव को मार कर जीव हत्या नहीं करना चाहता....इसलिए मैं इसे उठा कर दूसरी तरफ रख देता हूँ...... वो अपना कर्म करता है...मैं अपना कर्म करता हूँ..... इस कहानी से जो सीख हमें मिली वो ये की मनुष्य को अपने कर्म करते जाना चाहिए...अच्छे या बुरे फल देने का काम भगवान का है..... जिस तरह आपने कांटें को मिटटी में गाड़ देने की बात कही...वो आपके अंदर मौजूद गुस्से और क्रोध को दर्शाता है..... जबकि अभी तक मैं आपको जितना जान पाई हूँ...जितना समझ पाई हूँ...उसके अनुसार मैंने आपको साधू की तरह माना है... साधू से मेरा मतलब पंडित से नहीं...अच्छे कर्म करने वाला.......अच्छा सोचने वाला व्यक्ति है...... आप में और मेरे लेखक महोदय में तुलना नहीं की जा सकती..... आप दोनों की पर्सनालिटी एकदम उलटी है.... वो दिल से सोचते हैं...आप दिमाग से..... उम्र का फर्क तो है ही.... और सबसे बड़ी बाद क्यूटनेस.... वो ज्यादा क्यूट लगते हैं........ आप तो बात ही नहीं करते मेरे से इसलिए आप क्यूट नहीं हो :girlmad: ..... रही जिम्मेदारियों की बात तो आपकी बात सही है.... फाइनली आपकी बात कहीं तो सही निकली..... आपका क्रॉस एग्जामिनेशन बंद करते हुए मेरा अंतिम स्टेटमेंट ये है की आप जिसे सबक सिखाना कहते हैं वो असल में बदला है.... आई रेस्ट माय केस योर हॉनर :lollypop: .... चलो अब खाना बना लूँ..... :ciao:
 

kamdev99008

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आपको किसी को दंड देने का अधिकार किसने दिया???????? आप कोई कानून नहीं...कोई देवता नहीं...कोई भगवान नहीं.... न्यायाधीश नहीं.... धर्मराज नहीं
Atmraksha...... Kanoon bhi maanta hai.. kisi dusre ke liye ap kanoon hath me nahin le sakte.......lekin atmraksha ke liye kisi ko jan se marne ki intention se hamla bhi kar sakte hain..... Lekin motive self-defense ka sabit hona chahiye
Intention aur motive ke isi fark par to nibandh likha hai
Apko sahi ya galat ....apke kaam ya soch nahin.......uska karan / wajah.. sahi galat sabit karti hai...... Ye bharat hi nahi duniya ke har desh ki adalat aur kanun manta hai...
पर अपने जीवन काल में मैंने कभी इतना पेशेंट इंसान नहीं देखा जो इतना सब सोच कर बदला लेने का डिसिशन लेता हो..... सोच समझ कर...प्लानिंग कर के लिया गया बदला बड़ा घातक होता है.
Bina soche samjhe kadam uthane wala bhi masoom nahi hota....bewkoof hota hai... To bewkoof banne ki bajay...ghatak ban jana mein jyada sahi manta hu

Rahi baat badle ki.... To me kabhi kuchh lena-dena nahi pasand karta. .......
Jab sari duniya vikas ki andhi daud me bhag rahi hai....... Mujh jaise kuchh vinash karnewale bhi jaruri hain.....santulan banaye rakhne ko

Me achchha ya bura kuchh bhi bana rahna pasand karta hu...... Lekin sirf sahi rahna chahta hu..... Galat ka vinash karne ke liye, samaj ya kanun ke samne bura bhi bana rah sakta hu.... lekin galat ke sath samanjasya nahi bitha sakta

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मेरे नेता भैया जी..... मैं आपकी मंशा समझ गई.... आप जानबूझ कर किसी को दुःख या तकलीफ नहीं देते...जब कोई आपको आहात करता है तभी आप उसे सबक सिखाते हो..... चलिए अब चलते हैं आपके कहे कथनों को तोड़ कर आपसे सवाल पूछने की और..... मैं उसे सिर्फ दंड देता हूँ, और उस स्तर तक ......जब तक कि वो दोबारा उस गलती को मेरे या किसी के भी साथ ना कर सके...... आपको किसी को दंड देने का अधिकार किसने दिया???????? आप कोई कानून नहीं...कोई देवता नहीं...कोई भगवान नहीं.... न्यायाधीश नहीं.... धर्मराज नहीं....गलतियां आपने भी की हैं...दिल आपने भी किसी न किसी का दुखाया होगा.... (मेरा तो दुखाया ही है....मुझसे बात न कर के...मुझे याद न कर के....मुझे टैग न कर के.....) माना आपका दिल दुख है...आपका नुक्सान हुआ है.... लेकिन क्या आपने दूसरे व्यक्ति के पहलु को जानने या पहचानने की कोशिश की.... अगर उसकी कोई मजबूरी हुई होगी तो??? जब इंसान किसी को दंड देने की सोचता है तो वो खुद को भगवान मानने लगता है..... क्या आप भी ऐसा सोचते हैं की आप किसी को उसके किये अपराध के लिए दंड दे कर भगवान का कार्य कर रहे हैं.... अगर सब यही सोचने लगें तो कर्म और उसके फल मिलने का महत्व ही क्या रह गया.....किसी ने आपको गाली दी और आपने उसे न्यूट्रल करने के लिए उसे थप्पड़ मार दिया तो इसमें आप उस व्यक्ति के लेवल पर तो आ ही गए न.... आप बड़े तब बनोगे जब कोई आपको गाली दे और आप उस व्यक्ति को कोई जवाब न दो...बल्कि बड़प्पन दिखाते हुए उसे माफ़ कर दो और अपनी जिंदगी से साफ़ कर दो..... किसी और के साथ गलत होता हुआ , सिर्फ देखकर, जल्दबाज़ी में ये फैसला नहीं लिया जा सकता कि कौन सही है और कौन गलत....... हो सकता है किसी को उसकी गलतियों का दंड भुगतना पड रहा हो..... और जो गलत दिख रहा है वो वास्तव में पीड़ित हो
----- लेकिन अपने संज्ञान (cognition) के मामले में मुझे पता होता है कि किसका उद्देश्य गलत है .......... इसलिए वहाँ कोई दुविधा मेरे मन में नहीं होती
.... प्रिय भैया.... कृपया मुझे भी ये टेक्निक सीखा दीजिये जिससे पता चल जाए की दूसरे व्यक्ति का पहलु कैसे समझा जा सकता है.... क्या आप माइंड रीडिंग जानते हैं.... या कुंडली देख के बता देते हैं...या फिर शायद आप भूतकाल...भविष्य काल...और वर्तमान काल पहले ही देख लेते हैं..... मुझे भी ये टेक्नीक सीखनी है.... :rofl: ..... उम्र में आप से थोड़ी ही छोटी हूँगी ..... पर अपने जीवन काल में मैंने कभी इतना पेशेंट इंसान नहीं देखा जो इतना सब सोच कर बदला लेने का डिसिशन लेता हो..... सोच समझ कर...प्लानिंग कर के लिया गया बदला बड़ा घातक होता है.... अगर आप ऐसा करते हैं तो प्रणाम है आपको.... 🙏 ...... अब आते हैं दूसरे पॉइंट पर..... बदला (revenge) का एक और पालू होता है......... उसने जो नुकसान मेरा किया है..... उस नुकसान को उससे वसूल कर लूँ या उसके बदले में उसका भी उतना ही नुकसान कर दूँ..............मेरा उद्देश्य सिर्फ उसे ऐसा बना देना है कि वो दोबारा मेरा ही नहीं किसी का भी नुकसान ना कर सके...... वैसे तो आप सर्वज्ञानी हैं...फिर भी मैं आपको बदला शब्द का मतलब बताना चाहती हूँ........ [सं-पु.] - 1. प्रतिदान; विनिमय 2. प्रतिशोध 3. बदलने की क्रिया, भाव या व्यापार 4. किसी ने जैसा व्यवहार किया हो, उसके साथ किया जाने वाला वैसा ही व्यवहार; प्रतिकार; पलटा। [मु.] बदला लेना : जिसने जैसी हानि पहुँचाई हो उसे वैसी ही हानि पहुँचाना।........ आप जो उस व्यक्ति के साथ कर रहे हैं वो बदला लेना ही है...अब आप चाहे जितना इसे सही ठहराएं...मगर आप बदला ही ले रहे हैं..... अब आते हैं तीसरे पॉइंट पर....मेरा फेवरेट.... रही बात कर्मों का फल भुगतने की............... में रास्ते में पड़े हुये कांटे को सिर्फ इसलिए रास्ते में नहीं छोड़ सकता कि लोगों के पैरों में चुभ-चुभ कर एक दिन उसकी चुभने कि क्षमता खत्म हो जाएगी.....उसकी नोक टूट जाएगी............ में हल्की सी चुभन होते ही उसे मिट्टी में इतना गहरा गाड़ देना चाहता हूँ कि वो फिर कभी किसी के भी पैर में ना चुभे और मिट्टी में गलकर खत्म हो जाए........ मैंने एक सतसंग में एक साधू की कहानी सुनी थी..... एक साधू रोज सुबह नदी में नहाने जाते थे.... रास्ते में उन्हें एक बिच्छू मिलता था जो उन्हें रोज डंक मारता था....साधू उसके डंक मारने के बाद उसे पूँछ की तरफ से उठा कर एक तरफ रख देते थे...ऐसे ही रोज चलता रहता था...एक दिन किसी ने उनसे पुछा की ये बिच्छू आपको रोज डंक मारता है और आप इसे उठा के दूसरी तरफ रख देते हो.....आप इसे मार क्यों नहीं देते....तब वो साधू बोले..... की डंक मारना उस बिच्छू का कर्म है..... शायद मेरे इस जीवन में या पिछले जीवन में मैंने कोई पाप किया होगा जिसकी सजा मुझे इस तरह मिल रही है...मैं इस जीव को मार कर जीव हत्या नहीं करना चाहता....इसलिए मैं इसे उठा कर दूसरी तरफ रख देता हूँ...... वो अपना कर्म करता है...मैं अपना कर्म करता हूँ..... इस कहानी से जो सीख हमें मिली वो ये की मनुष्य को अपने कर्म करते जाना चाहिए...अच्छे या बुरे फल देने का काम भगवान का है..... जिस तरह आपने कांटें को मिटटी में गाड़ देने की बात कही...वो आपके अंदर मौजूद गुस्से और क्रोध को दर्शाता है..... जबकि अभी तक मैं आपको जितना जान पाई हूँ...जितना समझ पाई हूँ...उसके अनुसार मैंने आपको साधू की तरह माना है... साधू से मेरा मतलब पंडित से नहीं...अच्छे कर्म करने वाला.......अच्छा सोचने वाला व्यक्ति है...... आप में और मेरे लेखक महोदय में तुलना नहीं की जा सकती..... आप दोनों की पर्सनालिटी एकदम उलटी है.... वो दिल से सोचते हैं...आप दिमाग से..... उम्र का फर्क तो है ही.... और सबसे बड़ी बाद क्यूटनेस.... वो ज्यादा क्यूट लगते हैं........ आप तो बात ही नहीं करते मेरे से इसलिए आप क्यूट नहीं हो :girlmad: ..... रही जिम्मेदारियों की बात तो आपकी बात सही है.... फाइनली आपकी बात कहीं तो सही निकली..... आपका क्रॉस एग्जामिनेशन बंद करते हुए मेरा अंतिम स्टेटमेंट ये है की आप जिसे सबक सिखाना कहते हैं वो असल में बदला है.... आई रेस्ट माय केस योर हॉनर :lollypop: .... चलो अब खाना बना लूँ..... :ciao:
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Atmraksha...... Kanoon bhi maanta hai.. kisi dusre ke liye ap kanoon hath me nahin le sakte.......lekin atmraksha ke liye kisi ko jan se marne ki intention se hamla bhi kar sakte hain..... Lekin motive self-defense ka sabit hona chahiye
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Apko sahi ya galat ....apke kaam ya soch nahin.......uska karan / wajah.. sahi galat sabit karti hai...... Ye bharat hi nahi duniya ke har desh ki adalat aur kanun manta hai...

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Rahi baat badle ki.... To me kabhi kuchh lena-dena nahi pasand karta. .......
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Me achchha ya bura kuchh bhi bana rahna pasand karta hu...... Lekin sirf sahi rahna chahta hu..... Galat ka vinash karne ke liye, samaj ya kanun ke samne bura bhi bana rah sakta hu.... lekin galat ke sath samanjasya nahi bitha sakta

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TheBlackBlood

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मेरी बहन आप मेरी नियत (intention) को समझी .......... गलत तरीके अपनाने वाले को प्रत्युत्तर अवश्य देने की मानसिकता या नियत

लेकिन इसका उद्देश्य (motive) आप गलत समझ रही हैं
.......... मैं कभी किसी से बदला नहीं लेता....... क्योंकि बदला बराबरी का होता है...... बदला लेने के लिए मुझे भी उसके जैसा ही बनना पड़ेगा............... मैं उसे सिर्फ दंड देता हूँ, और उस स्तर तक ......जब तक कि वो दोबारा उस गलती को मेरे या किसी के भी साथ ना कर सके...... मतलब उसे तटस्थ (neutral) कर दिया जाए....... और ये भी ध्यान रखता हूँ कि कहीं मैं भी उसके जैसा ना बन जाऊँ, किसी निर्दोष के साथ गलत कर दूँ।

बदला (revenge) का एक और पालू होता है......... उसने जो नुकसान मेरा किया है..... उस नुकसान को उससे वसूल कर लूँ या उसके बदले में उसका भी उतना ही नुकसान कर दूँ...................... मैं इन दोनों ही को पसंद नहीं करता ....... अगर मेरा नुकसान हुआ तो ये मेरी गलती है...... मेंने एक गलत व्यक्ति को मौका दिया......... और उस नुकसान कि भरपाई मैं खुद अपने आप से करूंगा............................ मेरा उद्देश्य सिर्फ उसे ऐसा बना देना है कि वो दोबारा मेरा ही नहीं किसी का भी नुकसान ना कर सके

आपको ये बदला इसलिए लग सकता है........ क्योंकि में केवल अपने साथ गलत करनेवाले के खिलाफ ही ये कदम उठाता हूँ......... लेकिन उसकी भी एक वजह है
----- किसी और के साथ गलत होता हुआ , सिर्फ देखकर, जल्दबाज़ी में ये फैसला नहीं लिया जा सकता कि कौन सही है और कौन गलत....... हो सकता है किसी को उसकी गलतियों का दंड भुगतना पड रहा हो..... और जो गलत दिख रहा है वो वास्तव में पीड़ित हो
----- लेकिन अपने संज्ञान (cognition) के मामले में मुझे पता होता है कि किसका उद्देश्य गलत है .......... इसलिए वहाँ कोई दुविधा मेरे मन में नहीं होती

रही बात कर्मों का फल भुगतने की............... में रास्ते में पड़े हुये कांटे को सिर्फ इसलिए रास्ते में नहीं छोड़ सकता कि लोगों के पैरों में चुभ-चुभ कर एक दिन उसकी चुभने कि क्षमता खत्म हो जाएगी.....उसकी नोक टूट जाएगी............ में हल्की सी चुभन होते ही उसे मिट्टी में इतना गहरा गाड़ देना चाहता हूँ कि वो फिर कभी किसी के भी पैर में ना चुभे और मिट्टी में गलकर खत्म हो जाए
...........................................................................
अब ..........................
इस मानसिकता का फर्क तो हम दोनों में हमेशा रहेगा............ मेरे ऊपर जिम्मेदारियाँ डालने वाले बहुत से लोग रहे हैं...... अब भी हैं......... लेकिन संरक्षण देने वाला कोई भी कभी भी नहीं रहा.............. अधिकार देने वाला भी कोई नहीं था लेकिन अधिकार मेंने स्वयं ही ले लिए........... अब अधिकार और जिम्मेदारियाँ दोनों निभा रहा हूँ........पर संरक्षण सिर्फ अपना स्वयं का ही है (i am the only guardian of me, myself............ since my childhood) ............
इसलिए कुछ भी गलत रोकने या सही को करने के लिए दूसरे के भरोसे नहीं रहता........... जो करना है, मुझे ही करना है, ईश्वर की दी हुई शक्ति और संसार में सीखे ज्ञान का प्रयोग करके....
जबकि मानु भाई के हर क्रियाकलाप को सही दिशा और असफल रहने पर सांत्वना देकर संरक्षण देने वाले माता-पिता हैं..........
बस उनको एक ही कठिनाई है जो मुझे नहीं........ बिना किसी रोक-टोक के फैसले लेने और उन पर अमल भी कर लेने की.............. बिना किसी डर के
लेकिन रोक-टोक करने वाले ज़िम्मेदारी भी लेते हैं कुछ गलत होने पर .....

हर चीज के नुकसान और फायदे दोनों होते हैं

बहुत बड़ा निबंध लिख दिया मेंने.............. बदले पर :hehe:
मानु भाई भी कहेंगे............. कहानी के लिए 2 शब्द नहीं लिखे और अपनी सफाई में इतनी बड़ी कहानी :banghead:
:bow:
 
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Sangeeta Maurya

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Intention aur motive ke isi fark par to nibandh likha hai
Apko sahi ya galat ....apke kaam ya soch nahin.......uska karan / wajah.. sahi galat sabit karti hai...... Ye bharat hi nahi duniya ke har desh ki adalat aur kanun manta hai...

Bina soche samjhe kadam uthane wala bhi masoom nahi hota....bewkoof hota hai... To bewkoof banne ki bajay...ghatak ban jana mein jyada sahi manta hu

Rahi baat badle ki.... To me kabhi kuchh lena-dena nahi pasand karta. .......
Jab sari duniya vikas ki andhi daud me bhag rahi hai....... Mujh jaise kuchh vinash karnewale bhi jaruri hain.....santulan banaye rakhne ko

Me achchha ya bura kuchh bhi bana rahna pasand karta hu...... Lekin sirf sahi rahna chahta hu..... Galat ka vinash karne ke liye, samaj ya kanun ke samne bura bhi bana rah sakta hu.... lekin galat ke sath samanjasya nahi bitha sakta

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हे राम...... :facepalm आप भी न...खिन की बात खिन ले जाते हो...... कहाँ बदले का टॉपिक चल रहा था कहाँ आप आत्मरक्षा का टॉपिक उठा लाये...... सही कहा था मैंने...आप पक्का मंत्री बनने लायक हो.... उम्र भी ज्यादा नहीं है..... खड़े हो जाओ अगले चुनाव में..... :lol: ...... अब आपने आत्मरक्षा का टॉपिक छेड़ा है तो ये बताइये की अगर किसी ने आपका दिल तोडा तो उससे बदला लेना कैसी आत्मरक्षा है??????????????????????????????....... और यहाँ सवाल आपके सही या गलत होने का नहीं है भैया.... मैं तो बस आपके बदले को जस्टिफाई करने को गलत ठहरा रही हूँ.....
 
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Kingfisher

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kamdev99008

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Ise bhi party thread me post kar do aap...

Time se pahle ye khul bhi nahi payi

Gaon me 4g bhi poor network aur midnight low speed ki wajah se download bhi nahi kar pata... Upload to dur ki bat hai
 

Sasha!

The Siren with her Lion
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Divine
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Ye story thread hai na? :hmm2:
 
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Lucky..

“ɪ ᴋɴᴏᴡ ᴡʜᴏ ɪ ᴀᴍ, ᴀɴᴅ ɪ ᴀᴍ ᴅᴀᴍɴ ᴘʀᴏᴜᴅ ᴏꜰ ɪᴛ.”
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