मेरी बहन आप मेरी नियत (intention) को समझी .......... गलत तरीके अपनाने वाले को प्रत्युत्तर अवश्य देने की मानसिकता या नियत
लेकिन इसका उद्देश्य (motive) आप गलत समझ रही हैं.......... मैं कभी किसी से बदला नहीं लेता....... क्योंकि बदला बराबरी का होता है...... बदला लेने के लिए मुझे भी उसके जैसा ही बनना पड़ेगा...............
मैं उसे सिर्फ दंड देता हूँ, और उस स्तर तक ......जब तक कि वो दोबारा उस गलती को मेरे या किसी के भी साथ ना कर सके...... मतलब उसे तटस्थ (neutral) कर दिया जाए....... और ये भी ध्यान रखता हूँ कि कहीं मैं भी उसके जैसा ना बन जाऊँ, किसी निर्दोष के साथ गलत कर दूँ।
बदला (revenge) का एक और पालू होता है......... उसने जो नुकसान मेरा किया है..... उस नुकसान को उससे वसूल कर लूँ या उसके बदले में उसका भी उतना ही नुकसान कर दूँ...................... मैं इन दोनों ही को पसंद नहीं करता ....... अगर मेरा नुकसान हुआ तो ये मेरी गलती है...... मेंने एक गलत व्यक्ति को मौका दिया......... और उस नुकसान कि भरपाई मैं खुद अपने आप से करूंगा............................
मेरा उद्देश्य सिर्फ उसे ऐसा बना देना है कि वो दोबारा मेरा ही नहीं किसी का भी नुकसान ना कर सके
आपको ये बदला इसलिए लग सकता है........ क्योंकि में केवल अपने साथ गलत करनेवाले के खिलाफ ही ये कदम उठाता हूँ......... लेकिन उसकी भी एक वजह है
----- किसी और के साथ गलत होता हुआ , सिर्फ देखकर, जल्दबाज़ी में ये फैसला नहीं लिया जा सकता कि कौन सही है और कौन गलत....... हो सकता है किसी को उसकी गलतियों का दंड भुगतना पड रहा हो..... और जो गलत दिख रहा है वो वास्तव में पीड़ित हो
----- लेकिन अपने संज्ञान (cognition) के मामले में मुझे पता होता है कि किसका उद्देश्य गलत है .......... इसलिए वहाँ कोई दुविधा मेरे मन में नहीं होती
रही बात कर्मों का फल भुगतने की............... में रास्ते में पड़े हुये कांटे को सिर्फ इसलिए रास्ते में नहीं छोड़ सकता कि लोगों के पैरों में चुभ-चुभ कर एक दिन उसकी चुभने कि क्षमता खत्म हो जाएगी.....उसकी नोक टूट जाएगी............ में हल्की सी चुभन होते ही उसे मिट्टी में इतना गहरा गाड़ देना चाहता हूँ कि वो फिर कभी किसी के भी पैर में ना चुभे और मिट्टी में गलकर खत्म हो जाए
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अब ..........................
इस मानसिकता का फर्क तो हम दोनों में हमेशा रहेगा............ मेरे ऊपर जिम्मेदारियाँ डालने वाले बहुत से लोग रहे हैं...... अब भी हैं......... लेकिन संरक्षण देने वाला कोई भी कभी भी नहीं रहा.............. अधिकार देने वाला भी कोई नहीं था लेकिन अधिकार मेंने स्वयं ही ले लिए........... अब अधिकार और जिम्मेदारियाँ दोनों निभा रहा हूँ........पर संरक्षण सिर्फ अपना स्वयं का ही है (i am the only guardian of me, myself............ since my childhood) ............
इसलिए कुछ भी गलत रोकने या सही को करने के लिए दूसरे के भरोसे नहीं रहता........... जो करना है, मुझे ही करना है, ईश्वर की दी हुई शक्ति और संसार में सीखे ज्ञान का प्रयोग करके....
जबकि मानु भाई के हर क्रियाकलाप को सही दिशा और असफल रहने पर सांत्वना देकर संरक्षण देने वाले माता-पिता हैं..........
बस उनको एक ही कठिनाई है जो मुझे नहीं........ बिना किसी रोक-टोक के फैसले लेने और उन पर अमल भी कर लेने की.............. बिना किसी डर के
लेकिन रोक-टोक करने वाले ज़िम्मेदारी भी लेते हैं कुछ गलत होने पर .....
हर चीज के नुकसान और फायदे दोनों होते हैं
बहुत बड़ा निबंध लिख दिया मेंने.............. बदले पर
मानु भाई भी कहेंगे............. कहानी के लिए 2 शब्द नहीं लिखे और अपनी सफाई में इतनी बड़ी कहानी