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हेलो दोस्तों ये कहानी है एक लड़के राहुल कि जिसकी जिंदगी मे कुछ अजब गजब किस्से घटते रहे है.
राहुल कि ज़बानी.
मेरी माँ सपना मेरी जिंदगी है, घर मे सिर्फ हम तीन ही लोग है मै मेरी मम्मी और मेरे पापा.
मेरे पापा का नाम स्वप्निल ठाकुर है,
जैसा नाम वैसा ही चेहरा मोहरा,,वैसा ही रोब रखते है समाज मे हमेशा मुछे तनी हुई.
आबकारी विभाग मे बड़े अधिकारी है.
कहने को मेरे पिताजी बहुत सख्त मिजाज है, समाज मे बहुत इज़्ज़त है भी है.
समाज मे एक मर्द कि हैसियत रखते है,लेकिन बिस्तर पे उतने ही बड़े नामर्द है.
खेर ये बात मुझे कैसे पता ये तो आगे बताऊंगा.फिलहाल आते है मेरी माँ पे.
क्या कहने मेरी माँ के, इतनी सुन्दर इतनी कामुक कि क्या बताऊ?
आज उसकी उम्र 42साल है लेकिन कोई कह दे कि है.
ऐसा कसा हुआ बदन ऐसा मादक जिस्म कि पूरा मोहल्ला एक झलक पाने को तरसता है.
लेकिण मेरी माँ ठहरी एकदम संस्कारी पतीव्रता नारी, हमेशा मेरे बाप के गुस्से का शिकार रही,कभी पति के सामने सर ही नहीं उठाया,कभी अपनी इच्छा बता ही नहीं पाई.
मुझे अपनी माँ पे खूब दया अति लेकिन मै कर क्या सकता था उसके लिए.
कुछ भी नहीं......हाँ कुछ भी तो नहीं.
खेर माँ जितनी संस्कारी है,दबी हुई है उसका जिस्म उतने ही उफान पे रहता है, स्तन तो जैसे किसी पहाड़ कि तरह तन चुके है ना जाने कैसे? मैंने बचपन से ही देखा जैसे जैसे माँ कि उम्र बढ़ती गई माँ का जिस्म और भी ज्यादा कसता चला गया.
स्तन दिन पर दिन उभर लेते गए,गांड पीछे को निकलती चली गई.
मै अभी मात्र 18साल का ही था लड़कियों के मामले मे जानकारी ना के बराबर ही थी.
फिर भी मै अपनी माँ के बदन को निहारता तो लगता कि भगवान ने ये कैसी रचना बनाई है? क्यों है ऐसा? मुझे अच्छा क्यों लगता है?
मेरी एक अलगव ही कल्पना से भरी दुनिया थी.
आप लोग भी मेरी माँ के दीदार कीजिये.
आप भी उसके जिस्म को देख के तड़पे.
40+साइज के स्तन वो भी बिल्कुल घमंड मे अकडे हुए,30 कि पतली नाजुक कमर, और गांड के तो क्या कहने 36 कि गद्देदार कमाल कि गांड कि मालकिन मेरी माँ.
मै आज तक अपनी माँ के बारे मे कुछ भी नहीं जनता था,मेरी माँ आप लोगो कि माँ जैसे ही सामान्य थी, आज्ञाकारी थी,पतीव्रता थी ऐसा मुझे अब तक लगता था.
लेकिन मेरी जिंदगी ने एक दिन अचानक गजब का मौड़ लिया जिसने मेरा नजरिया ही बदल दिया.
एक दिन संडे कि सुबह.
ट्रिन....ट्रिन.....ट्रिन.......
घर मे फ़ोन कि घंटी बज रही थी
"हाँ हेलो...हाँ बोल रही हूँ हाँ ठाकुर साहेब कि पत्नी ही बोल रही हूँ " मेरी माँ ने फ़ोन उठाया था.
"क्या हुआ माँ " किसका फ़ोन है?
मैंने माँ के चेहरे पे उठते हुए भाव को देखते हुए पूछा.
"ठाकुर साहब को रिश्वत के इल्जाम मे गिरफ्तार कर लिया गया है " दूसरी तरफ से आवाज़ आई जो कि पांडुरंग कि थी मेरे पापा का जोड़ीदार.
"क्या....क्या....ये नहीं हो सकता " माँ ने फ़ोन रख दिया फुट फुट के रोने लगी
"मै पहले ही कहती थी ऐसे पैसे कमाने का क्या फायदा कि मान सम्मान सब चला जाये '
उस दिन मै सिर्फ माँ को देखता ही रह गया,
हालांकि मै जानता था कि मेरा बाप भ्रष्ट है एक नंबर का अय्याश है.
मुझे कोई खास लगाव भी नहीं था अपने बाप से क्यूंकि उसने मुझे आजतक पैसे के अलावा कुछ दिया ही नहीं.
फिर भी मै दुखी था अपनी माँ के लिए " अब क्या करेंगे मम्मी हम लोग " मैंने बेचैन मन से पूछा.
"करेंगे बेटा.....कुछ तो करेंगे " माँ ने आँसू पोछे और उठ खड़ी हुई.
किसी ने सही कहाँ है कि औरत के पति पे बात आ जाये तो वो कुछ भी कर देती है.
अगले दिन ही माँ तैयार को के थाने चल पड़ी..
माँ का ये सिलसिला एक महीने तक लगातार जारी रहा,वो रोज़ सुबह खूब तैयार हो के घर से निकाल जाती,फिर शाम को ही अति या फिर कई बात अगले दिन ही आ पाती.
"माँ आप क्या कर रही है पापा कब आएंगे " एक दिन मैंने पूछ ही लिया
"आएंगे बेटा इसी सिलसिले मे तो भागदौड़ कर रही हूँ " माँ ने मुँह फेर लिया शायद अपने आँसू छुपा रही हो
मै कई बार देखता जिसदिन माँ घर पर होती,उनके कमरे कि लाइट देर रात तक जलती रहती,ना जाने क्या करती थी मेरी माँ?
आखिर एक दिन माँ कि मेहनत रंग लाइ..पुरे एक महीने बाद पापा बाइज़्ज़त बारी हो गए साथ हूँ उन्हें नौकरी पे फिर से बहाल कर दिया गया.
लेकिन बस एक समस्या थी पापा का ट्रांसफर..ओड़िसा राज्य के एक सुदूर जिले मे कर दिया गया था
मुझे अपने बाप के आने कि ख़ुशी नहीं थी लेकिन अपने दोस्तों का साथ छूट जाने का ज्यादा दुख था.
अगले ही दिन भरी मान से हम लोग अपने शहर भोपाल को अलविदा कह गए.....
मेरी माँ खुश थी...उनका पति आज बाहर था, नौकरी थी और शायद उम्मीद थी कि सुधर भी गया हो.
हमारी ट्रैन ओड़िशा के लिए भागी चली जा रही थी.
मै खिड़की पे बाहर मुँह लटकाये बैठा था.
दोस्तों अब बाकि कहानी विस्तार से अगले भाग मे....
राहुल कि ज़बानी.
मेरी माँ सपना मेरी जिंदगी है, घर मे सिर्फ हम तीन ही लोग है मै मेरी मम्मी और मेरे पापा.
मेरे पापा का नाम स्वप्निल ठाकुर है,
जैसा नाम वैसा ही चेहरा मोहरा,,वैसा ही रोब रखते है समाज मे हमेशा मुछे तनी हुई.
आबकारी विभाग मे बड़े अधिकारी है.
कहने को मेरे पिताजी बहुत सख्त मिजाज है, समाज मे बहुत इज़्ज़त है भी है.
समाज मे एक मर्द कि हैसियत रखते है,लेकिन बिस्तर पे उतने ही बड़े नामर्द है.
खेर ये बात मुझे कैसे पता ये तो आगे बताऊंगा.फिलहाल आते है मेरी माँ पे.
क्या कहने मेरी माँ के, इतनी सुन्दर इतनी कामुक कि क्या बताऊ?
आज उसकी उम्र 42साल है लेकिन कोई कह दे कि है.
ऐसा कसा हुआ बदन ऐसा मादक जिस्म कि पूरा मोहल्ला एक झलक पाने को तरसता है.
लेकिण मेरी माँ ठहरी एकदम संस्कारी पतीव्रता नारी, हमेशा मेरे बाप के गुस्से का शिकार रही,कभी पति के सामने सर ही नहीं उठाया,कभी अपनी इच्छा बता ही नहीं पाई.
मुझे अपनी माँ पे खूब दया अति लेकिन मै कर क्या सकता था उसके लिए.
कुछ भी नहीं......हाँ कुछ भी तो नहीं.
खेर माँ जितनी संस्कारी है,दबी हुई है उसका जिस्म उतने ही उफान पे रहता है, स्तन तो जैसे किसी पहाड़ कि तरह तन चुके है ना जाने कैसे? मैंने बचपन से ही देखा जैसे जैसे माँ कि उम्र बढ़ती गई माँ का जिस्म और भी ज्यादा कसता चला गया.
स्तन दिन पर दिन उभर लेते गए,गांड पीछे को निकलती चली गई.
मै अभी मात्र 18साल का ही था लड़कियों के मामले मे जानकारी ना के बराबर ही थी.
फिर भी मै अपनी माँ के बदन को निहारता तो लगता कि भगवान ने ये कैसी रचना बनाई है? क्यों है ऐसा? मुझे अच्छा क्यों लगता है?
मेरी एक अलगव ही कल्पना से भरी दुनिया थी.
आप लोग भी मेरी माँ के दीदार कीजिये.
आप भी उसके जिस्म को देख के तड़पे.
40+साइज के स्तन वो भी बिल्कुल घमंड मे अकडे हुए,30 कि पतली नाजुक कमर, और गांड के तो क्या कहने 36 कि गद्देदार कमाल कि गांड कि मालकिन मेरी माँ.
मै आज तक अपनी माँ के बारे मे कुछ भी नहीं जनता था,मेरी माँ आप लोगो कि माँ जैसे ही सामान्य थी, आज्ञाकारी थी,पतीव्रता थी ऐसा मुझे अब तक लगता था.
लेकिन मेरी जिंदगी ने एक दिन अचानक गजब का मौड़ लिया जिसने मेरा नजरिया ही बदल दिया.
एक दिन संडे कि सुबह.
ट्रिन....ट्रिन.....ट्रिन.......
घर मे फ़ोन कि घंटी बज रही थी
"हाँ हेलो...हाँ बोल रही हूँ हाँ ठाकुर साहेब कि पत्नी ही बोल रही हूँ " मेरी माँ ने फ़ोन उठाया था.
"क्या हुआ माँ " किसका फ़ोन है?
मैंने माँ के चेहरे पे उठते हुए भाव को देखते हुए पूछा.
"ठाकुर साहब को रिश्वत के इल्जाम मे गिरफ्तार कर लिया गया है " दूसरी तरफ से आवाज़ आई जो कि पांडुरंग कि थी मेरे पापा का जोड़ीदार.
"क्या....क्या....ये नहीं हो सकता " माँ ने फ़ोन रख दिया फुट फुट के रोने लगी
"मै पहले ही कहती थी ऐसे पैसे कमाने का क्या फायदा कि मान सम्मान सब चला जाये '
उस दिन मै सिर्फ माँ को देखता ही रह गया,
हालांकि मै जानता था कि मेरा बाप भ्रष्ट है एक नंबर का अय्याश है.
मुझे कोई खास लगाव भी नहीं था अपने बाप से क्यूंकि उसने मुझे आजतक पैसे के अलावा कुछ दिया ही नहीं.
फिर भी मै दुखी था अपनी माँ के लिए " अब क्या करेंगे मम्मी हम लोग " मैंने बेचैन मन से पूछा.
"करेंगे बेटा.....कुछ तो करेंगे " माँ ने आँसू पोछे और उठ खड़ी हुई.
किसी ने सही कहाँ है कि औरत के पति पे बात आ जाये तो वो कुछ भी कर देती है.
अगले दिन ही माँ तैयार को के थाने चल पड़ी..
माँ का ये सिलसिला एक महीने तक लगातार जारी रहा,वो रोज़ सुबह खूब तैयार हो के घर से निकाल जाती,फिर शाम को ही अति या फिर कई बात अगले दिन ही आ पाती.
"माँ आप क्या कर रही है पापा कब आएंगे " एक दिन मैंने पूछ ही लिया
"आएंगे बेटा इसी सिलसिले मे तो भागदौड़ कर रही हूँ " माँ ने मुँह फेर लिया शायद अपने आँसू छुपा रही हो
मै कई बार देखता जिसदिन माँ घर पर होती,उनके कमरे कि लाइट देर रात तक जलती रहती,ना जाने क्या करती थी मेरी माँ?
आखिर एक दिन माँ कि मेहनत रंग लाइ..पुरे एक महीने बाद पापा बाइज़्ज़त बारी हो गए साथ हूँ उन्हें नौकरी पे फिर से बहाल कर दिया गया.
लेकिन बस एक समस्या थी पापा का ट्रांसफर..ओड़िसा राज्य के एक सुदूर जिले मे कर दिया गया था
मुझे अपने बाप के आने कि ख़ुशी नहीं थी लेकिन अपने दोस्तों का साथ छूट जाने का ज्यादा दुख था.
अगले ही दिन भरी मान से हम लोग अपने शहर भोपाल को अलविदा कह गए.....
मेरी माँ खुश थी...उनका पति आज बाहर था, नौकरी थी और शायद उम्मीद थी कि सुधर भी गया हो.
हमारी ट्रैन ओड़िशा के लिए भागी चली जा रही थी.
मै खिड़की पे बाहर मुँह लटकाये बैठा था.
दोस्तों अब बाकि कहानी विस्तार से अगले भाग मे....