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Adultery मेरी माँ के किस्से

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हेलो दोस्तों ये कहानी है एक लड़के राहुल कि जिसकी जिंदगी मे कुछ अजब गजब किस्से घटते रहे है.
राहुल कि ज़बानी.

मेरी माँ सपना मेरी जिंदगी है, घर मे सिर्फ हम तीन ही लोग है मै मेरी मम्मी और मेरे पापा.
मेरे पापा का नाम स्वप्निल ठाकुर है,
जैसा नाम वैसा ही चेहरा मोहरा,,वैसा ही रोब रखते है समाज मे हमेशा मुछे तनी हुई.
आबकारी विभाग मे बड़े अधिकारी है.
कहने को मेरे पिताजी बहुत सख्त मिजाज है, समाज मे बहुत इज़्ज़त है भी है.
समाज मे एक मर्द कि हैसियत रखते है,लेकिन बिस्तर पे उतने ही बड़े नामर्द है.
खेर ये बात मुझे कैसे पता ये तो आगे बताऊंगा.फिलहाल आते है मेरी माँ पे.
क्या कहने मेरी माँ के, इतनी सुन्दर इतनी कामुक कि क्या बताऊ?
आज उसकी उम्र 42साल है लेकिन कोई कह दे कि है.
ऐसा कसा हुआ बदन ऐसा मादक जिस्म कि पूरा मोहल्ला एक झलक पाने को तरसता है.
लेकिण मेरी माँ ठहरी एकदम संस्कारी पतीव्रता नारी, हमेशा मेरे बाप के गुस्से का शिकार रही,कभी पति के सामने सर ही नहीं उठाया,कभी अपनी इच्छा बता ही नहीं पाई.
मुझे अपनी माँ पे खूब दया अति लेकिन मै कर क्या सकता था उसके लिए.
कुछ भी नहीं......हाँ कुछ भी तो नहीं.
खेर माँ जितनी संस्कारी है,दबी हुई है उसका जिस्म उतने ही उफान पे रहता है, स्तन तो जैसे किसी पहाड़ कि तरह तन चुके है ना जाने कैसे? मैंने बचपन से ही देखा जैसे जैसे माँ कि उम्र बढ़ती गई माँ का जिस्म और भी ज्यादा कसता चला गया.
स्तन दिन पर दिन उभर लेते गए,गांड पीछे को निकलती चली गई.
मै अभी मात्र 18साल का ही था लड़कियों के मामले मे जानकारी ना के बराबर ही थी.
फिर भी मै अपनी माँ के बदन को निहारता तो लगता कि भगवान ने ये कैसी रचना बनाई है? क्यों है ऐसा? मुझे अच्छा क्यों लगता है?

मेरी एक अलगव ही कल्पना से भरी दुनिया थी.
आप लोग भी मेरी माँ के दीदार कीजिये.
आप भी उसके जिस्म को देख के तड़पे.
40+साइज के स्तन वो भी बिल्कुल घमंड मे अकडे हुए,30 कि पतली नाजुक कमर, और गांड के तो क्या कहने 36 कि गद्देदार कमाल कि गांड कि मालकिन मेरी माँ.
Picsart-22-07-26-16-08-17-614.jpg


मै आज तक अपनी माँ के बारे मे कुछ भी नहीं जनता था,मेरी माँ आप लोगो कि माँ जैसे ही सामान्य थी, आज्ञाकारी थी,पतीव्रता थी ऐसा मुझे अब तक लगता था.

लेकिन मेरी जिंदगी ने एक दिन अचानक गजब का मौड़ लिया जिसने मेरा नजरिया ही बदल दिया.
एक दिन संडे कि सुबह.
ट्रिन....ट्रिन.....ट्रिन.......
घर मे फ़ोन कि घंटी बज रही थी

"हाँ हेलो...हाँ बोल रही हूँ हाँ ठाकुर साहेब कि पत्नी ही बोल रही हूँ " मेरी माँ ने फ़ोन उठाया था.
"क्या हुआ माँ " किसका फ़ोन है?
मैंने माँ के चेहरे पे उठते हुए भाव को देखते हुए पूछा.
"ठाकुर साहब को रिश्वत के इल्जाम मे गिरफ्तार कर लिया गया है " दूसरी तरफ से आवाज़ आई जो कि पांडुरंग कि थी मेरे पापा का जोड़ीदार.
"क्या....क्या....ये नहीं हो सकता " माँ ने फ़ोन रख दिया फुट फुट के रोने लगी
"मै पहले ही कहती थी ऐसे पैसे कमाने का क्या फायदा कि मान सम्मान सब चला जाये '
उस दिन मै सिर्फ माँ को देखता ही रह गया,
हालांकि मै जानता था कि मेरा बाप भ्रष्ट है एक नंबर का अय्याश है.
मुझे कोई खास लगाव भी नहीं था अपने बाप से क्यूंकि उसने मुझे आजतक पैसे के अलावा कुछ दिया ही नहीं.
फिर भी मै दुखी था अपनी माँ के लिए " अब क्या करेंगे मम्मी हम लोग " मैंने बेचैन मन से पूछा.

"करेंगे बेटा.....कुछ तो करेंगे " माँ ने आँसू पोछे और उठ खड़ी हुई.
किसी ने सही कहाँ है कि औरत के पति पे बात आ जाये तो वो कुछ भी कर देती है.
अगले दिन ही माँ तैयार को के थाने चल पड़ी..

माँ का ये सिलसिला एक महीने तक लगातार जारी रहा,वो रोज़ सुबह खूब तैयार हो के घर से निकाल जाती,फिर शाम को ही अति या फिर कई बात अगले दिन ही आ पाती.
"माँ आप क्या कर रही है पापा कब आएंगे " एक दिन मैंने पूछ ही लिया

"आएंगे बेटा इसी सिलसिले मे तो भागदौड़ कर रही हूँ " माँ ने मुँह फेर लिया शायद अपने आँसू छुपा रही हो

मै कई बार देखता जिसदिन माँ घर पर होती,उनके कमरे कि लाइट देर रात तक जलती रहती,ना जाने क्या करती थी मेरी माँ?

आखिर एक दिन माँ कि मेहनत रंग लाइ..पुरे एक महीने बाद पापा बाइज़्ज़त बारी हो गए साथ हूँ उन्हें नौकरी पे फिर से बहाल कर दिया गया.
लेकिन बस एक समस्या थी पापा का ट्रांसफर..ओड़िसा राज्य के एक सुदूर जिले मे कर दिया गया था

मुझे अपने बाप के आने कि ख़ुशी नहीं थी लेकिन अपने दोस्तों का साथ छूट जाने का ज्यादा दुख था.
अगले ही दिन भरी मान से हम लोग अपने शहर भोपाल को अलविदा कह गए.....
मेरी माँ खुश थी...उनका पति आज बाहर था, नौकरी थी और शायद उम्मीद थी कि सुधर भी गया हो.
हमारी ट्रैन ओड़िशा के लिए भागी चली जा रही थी.
मै खिड़की पे बाहर मुँह लटकाये बैठा था.


दोस्तों अब बाकि कहानी विस्तार से अगले भाग मे....
 

A.A.G.

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bhai maa ko dusre logo ke sath chudate dekhna bahot galat hai..beta apni maa ko har situation me protect kare aur usse galat kadam na uthane de toh achha hoga..!!
 
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Praveen84

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हेलो दोस्तों ये कहानी है एक लड़के राहुल कि जिसकी जिंदगी मे कुछ अजब गजब किस्से घटते रहे है.
राहुल कि ज़बानी.

मेरी माँ सपना मेरी जिंदगी है, घर मे सिर्फ हम तीन ही लोग है मै मेरी मम्मी और मेरे पापा.
मेरे पापा का नाम स्वप्निल ठाकुर है,
जैसा नाम वैसा ही चेहरा मोहरा,,वैसा ही रोब रखते है समाज मे हमेशा मुछे तनी हुई.
आबकारी विभाग मे बड़े अधिकारी है.
कहने को मेरे पिताजी बहुत सख्त मिजाज है, समाज मे बहुत इज़्ज़त है भी है.
समाज मे एक मर्द कि हैसियत रखते है,लेकिन बिस्तर पे उतने ही बड़े नामर्द है.
खेर ये बात मुझे कैसे पता ये तो आगे बताऊंगा.फिलहाल आते है मेरी माँ पे.
क्या कहने मेरी माँ के, इतनी सुन्दर इतनी कामुक कि क्या बताऊ?
आज उसकी उम्र 42साल है लेकिन कोई कह दे कि है.
ऐसा कसा हुआ बदन ऐसा मादक जिस्म कि पूरा मोहल्ला एक झलक पाने को तरसता है.
लेकिण मेरी माँ ठहरी एकदम संस्कारी पतीव्रता नारी, हमेशा मेरे बाप के गुस्से का शिकार रही,कभी पति के सामने सर ही नहीं उठाया,कभी अपनी इच्छा बता ही नहीं पाई.
मुझे अपनी माँ पे खूब दया अति लेकिन मै कर क्या सकता था उसके लिए.
कुछ भी नहीं......हाँ कुछ भी तो नहीं.
खेर माँ जितनी संस्कारी है,दबी हुई है उसका जिस्म उतने ही उफान पे रहता है, स्तन तो जैसे किसी पहाड़ कि तरह तन चुके है ना जाने कैसे? मैंने बचपन से ही देखा जैसे जैसे माँ कि उम्र बढ़ती गई माँ का जिस्म और भी ज्यादा कसता चला गया.
स्तन दिन पर दिन उभर लेते गए,गांड पीछे को निकलती चली गई.
मै अभी मात्र 18साल का ही था लड़कियों के मामले मे जानकारी ना के बराबर ही थी.
फिर भी मै अपनी माँ के बदन को निहारता तो लगता कि भगवान ने ये कैसी रचना बनाई है? क्यों है ऐसा? मुझे अच्छा क्यों लगता है?

मेरी एक अलगव ही कल्पना से भरी दुनिया थी.
आप लोग भी मेरी माँ के दीदार कीजिये.
आप भी उसके जिस्म को देख के तड़पे.
40+साइज के स्तन वो भी बिल्कुल घमंड मे अकडे हुए,30 कि पतली नाजुक कमर, और गांड के तो क्या कहने 36 कि गद्देदार कमाल कि गांड कि मालकिन मेरी माँ.
Picsart-22-07-26-16-08-17-614.jpg


मै आज तक अपनी माँ के बारे मे कुछ भी नहीं जनता था,मेरी माँ आप लोगो कि माँ जैसे ही सामान्य थी, आज्ञाकारी थी,पतीव्रता थी ऐसा मुझे अब तक लगता था.

लेकिन मेरी जिंदगी ने एक दिन अचानक गजब का मौड़ लिया जिसने मेरा नजरिया ही बदल दिया.
एक दिन संडे कि सुबह.
ट्रिन....ट्रिन.....ट्रिन.......
घर मे फ़ोन कि घंटी बज रही थी

"हाँ हेलो...हाँ बोल रही हूँ हाँ ठाकुर साहेब कि पत्नी ही बोल रही हूँ " मेरी माँ ने फ़ोन उठाया था.
"क्या हुआ माँ " किसका फ़ोन है?
मैंने माँ के चेहरे पे उठते हुए भाव को देखते हुए पूछा.
"ठाकुर साहब को रिश्वत के इल्जाम मे गिरफ्तार कर लिया गया है " दूसरी तरफ से आवाज़ आई जो कि पांडुरंग कि थी मेरे पापा का जोड़ीदार.
"क्या....क्या....ये नहीं हो सकता " माँ ने फ़ोन रख दिया फुट फुट के रोने लगी
"मै पहले ही कहती थी ऐसे पैसे कमाने का क्या फायदा कि मान सम्मान सब चला जाये '
उस दिन मै सिर्फ माँ को देखता ही रह गया,
हालांकि मै जानता था कि मेरा बाप भ्रष्ट है एक नंबर का अय्याश है.
मुझे कोई खास लगाव भी नहीं था अपने बाप से क्यूंकि उसने मुझे आजतक पैसे के अलावा कुछ दिया ही नहीं.
फिर भी मै दुखी था अपनी माँ के लिए " अब क्या करेंगे मम्मी हम लोग " मैंने बेचैन मन से पूछा.

"करेंगे बेटा.....कुछ तो करेंगे " माँ ने आँसू पोछे और उठ खड़ी हुई.
किसी ने सही कहाँ है कि औरत के पति पे बात आ जाये तो वो कुछ भी कर देती है.
अगले दिन ही माँ तैयार को के थाने चल पड़ी..

माँ का ये सिलसिला एक महीने तक लगातार जारी रहा,वो रोज़ सुबह खूब तैयार हो के घर से निकाल जाती,फिर शाम को ही अति या फिर कई बात अगले दिन ही आ पाती.
"माँ आप क्या कर रही है पापा कब आएंगे " एक दिन मैंने पूछ ही लिया

"आएंगे बेटा इसी सिलसिले मे तो भागदौड़ कर रही हूँ " माँ ने मुँह फेर लिया शायद अपने आँसू छुपा रही हो

मै कई बार देखता जिसदिन माँ घर पर होती,उनके कमरे कि लाइट देर रात तक जलती रहती,ना जाने क्या करती थी मेरी माँ?

आखिर एक दिन माँ कि मेहनत रंग लाइ..पुरे एक महीने बाद पापा बाइज़्ज़त बारी हो गए साथ हूँ उन्हें नौकरी पे फिर से बहाल कर दिया गया.
लेकिन बस एक समस्या थी पापा का ट्रांसफर..ओड़िसा राज्य के एक सुदूर जिले मे कर दिया गया था

मुझे अपने बाप के आने कि ख़ुशी नहीं थी लेकिन अपने दोस्तों का साथ छूट जाने का ज्यादा दुख था.
अगले ही दिन भरी मान से हम लोग अपने शहर भोपाल को अलविदा कह गए.....
मेरी माँ खुश थी...उनका पति आज बाहर था, नौकरी थी और शायद उम्मीद थी कि सुधर भी गया हो.
हमारी ट्रैन ओड़िशा के लिए भागी चली जा रही थी.
मै खिड़की पे बाहर मुँह लटकाये बैठा था.


दोस्तों अब बाकि कहानी विस्तार से अगले भाग मे....
Bhai achhi story h
Apne hishab se likhna story tumari ichha pade wese chudawo
 
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अपडेट -1


IMG-20220726-194654.jpg
जैसा कि आप लोग जानते ही है,मेरी माँ कि उम्र साल है.दिखने मे निहायती खूबसूरत,लम्बा कद,सुडोल काठी, सधा हुआ जिस्म.
माँ घर मे अकेली ही रहती थी आम तौर पे,सिर्फ मै ही उसका बेटा दोस्त दुनिया सब मै ही हूँ.
मेरे पिताजी काफ़ी सख्त मिजाज के व्यक्ति है,सरकारी अधिकारी होने का घमंड उनके सर चढ़ा हुआ था.
माँ कई बार छत पे जाती तो क्या बूढ़ा क्या जवान सभी कि निगाहेँ माँ को ही देखती.
लेकिन मेरे बाप के डर कि वजह से किसी कि कभी हिम्मत ना हुई कि माँ को कुछ बोल सकता..यहीं कारण था कि माँ का कोई दोस्त नहीं था,ना कोई सहेली,ना कोई मोहल्ले कि ऑन्टी लोग घर अति.
कुलमिला के एक मरघाट सा सन्नाटा पसरा रहता था घर मे.
इसी महिला मे मै पला बढ़ा, अपनी माँ को हमेशा अकेला ही देखा, मै उसकी दुनिया था और वो मेरी.
मैंने कभी भी माँ को गलत नजर से नहीं देखा,बस प्यार ही था और माँ कि आँखों मे भी ममता ही होती.
मै धीरे धीरे बड़ा हो रहा था मै हमेशा एक बात नोटिस करता कि माँ कोई भी साड़ी पहन ले कितनी ही पिन लगा ले लेकिन उसके स्तन बाहर आ ही जाते थे,लगता था कि दुनिया मे कोई ऐसा कपड़ा ही नहीं बना है जो मेरी माँ के तन को ढक सके.
मै 18 साल का हो चूका था स्कूल मे दोस्तों से सम्भोग का ज्ञान अर्जित कर लिया था, छुप छुप के ब्लू फ़िल्म भी देखने लगा था.
कई बार रात मे माँ के कमरे से आह भरने कि आवाज़ भी अति पहले तो कई बार मै डर जाता....लेकिन जब समझने लगा कि ये क्या चीज है तो मन मे एक कोतुहाल सा मचने लगा.
माँ को सम्भोग करता हुआ देखने कि प्रबल इच्छा होने लगी.
क्यूंकि मैने माँ को हमेशा संस्कार और साड़ी मे ही देखा था.
माँ बिस्तर मे कैसी औरत है ये मेरे लिए रोचक विषय था.
शुरू मे जिज्ञासा लिए जब भी आवाज़ आती मै दबे पाँव माँ के कमरे के पास पहुंच जाता और आवाज़ सुनने कि कोशिश करता.
"आआहहहहह.......नहीं.....और नहीं....बस कीजिये ना....आउच...चट...चटक....चटाक......आअह्ह्ह....." ऐसी आवाज़ से मेरा कलेजा दहल जाता.
लगता मेरे माँ बाप जम के सम्भोग का आनद उठाते है.
अगले दिन जब भी देखता माँ के चेहरे पे मुस्कान होती,चेहरा खिला होता.
मुझे आज तक लगता था कि मेरा बाप बहुत खड़ूस है लेकिन अब मालूम पड़ा माँ को खूब संभोग सुख देता है.
मैंने अपने दोस्तों से जाना था कि " कोई औरत सम्भोग के वक़्त जीतना ज्यादा चिल्लाये समझी वो उतना ही मजा कर रही है "
मेरा एक्सपीरियंस भी यहीं कहता था माँ खूब चिल्लाती थी खूब आह भारती थी,पापा को मना करती ही रहती लेकिन शाद पापा जबरजस्त जम के चोदते थे माँ को.
आखिर माँ का बदन था ही इसी लायक ऐसे बड़े जिस्म कि औरत आराम से किये गए सम्भोग से भला कैसे संतुष्ट हो सकती है.
मै भी ख़ुश था क्यूंकि माँ ख़ुश थी.

परन्तु धीरे धीरे इन अवज़ो से मेरा पेट भरने लगा, मुझे अब देखना था माँ कैसे चुदती होंगी,उसका बदन कैसा होगा,हालांकि मेरे मन मै माँ को चोदने जैसी कोई इच्छा नहीं थी,बस मै देखना चाहता था कि दिन भर साड़ी पहनी हुई औरत जब साड़ी उतरती है तो कैसी लगती होंगी.
माँ का बदन तो वैसे भी कहाँ समाता था उस अदनी सी साड़ी मे.
तो एक दिन मौका देख म मैंने घर के पिछली खिड़की मे पेचकास कि मदद से एक सुराख़ बना दिया और उसे कागज़ ठूस के ढक भी दिया ताकि दिन मे बाहर से आती रौशनी मे वो छेद दिखे ना.

एक रात पापा हमेशा कि तरह लड़खड़ा के आये.
"सपना खाना लगा,भूख लगी है " पापा ने आते ही आदेश दे दिया.
माँ ने चुप चाप खाना लगाया,मै भी वही बैठा था.
खाना पीना होते रात के 10बज गए थे.
पापा उठ के चल दिये "जल्दी अंदर आना " पापा ने जैसे ऑर्डर दिया हो.
मैंने एक छुपी नजर से माँ कि तर देखा माँ के चेहरे कि रंगत बदल गई थी चेहरा सफ़ेद पड़ गया था

मुझे हैरानी हुई कि माँ कि हालत ऐसी क्यों? क्या उसे सम्भोग पसंद नहीं,मैंने तो दोस्तों से सुनता जिस औरत को कोई जबरजस्त चोदते वाला आदमो मिले तो उसकी जिंदगी बन जाती है.
माँ वही टेबल पे खड़ी थी "क्या हुआ माँ क्या बात है?" मैंने एकाएक पूछ लिया.
"कककक.....कुछ भी तो नहीं तू खाना खा के सो जा मै बर्तन धूल लेटी हूँ "
माँ सकपाकई तुरंत वहाँ से भाग छुती जैसे नेरे प्रश्न का सामना ही नहीं कर पा रही हो.

अब मेरे मन मे शंका के बीज पनप चुके थे,लगने लगा था कुछ तो गड़बड है लेकिन क्या वो मुझे आज रात देखना ही था.
मै खाना खा के अपने कमरे मे चला गया और रात होने का इंतज़ार करने लगा.
करीबन 11 बजे माँ के पायल के आवाज़ आई,मैंने हल्का सा दसरवाजा खोल के देखा माँ अपने कमरे मे जा रही थी.
माँ के कमरे मे जाते ही मै भी तुरंत घर के बाहर निकल गया और पूरा चक्कर काट के माँ पापा के कमरे कि खिड़की के पास जा पंहुचा जहाँ मैंने माँ को नंगी देखने का जुगाड़ बनाया था.
उस एक कागज को हटाने ने मेरी सारी ताकत लग गई,सारा वजूद काँप गया.
माँ जो मेरी संस्कारी थी वो बिस्तर पे कैसी थी बस यहीं मेरी इच्छा थी यहीं तो देखना था.
मैंने धड़कते दिल से खिड़की के छेद मे ड.फसा कागज़ हटा दिया और वहाँ अपनी आंख लगा दि.
माँ अंदर पहुंची ही थी अपनी साड़ी सँभालते हुए.
पापा बिस्तर के एक कोने पे बैठे दारू पी रहे थे.
मै सकते मे आ गया पापा अभी बाहर से दारू पी के आये थे फिर पीने लगे.
"आ गई रंडी...कहाँ गांड मरवा रही थी अपनी? अपने बेटे को दिखा रही थी क्या अपनी सीलपैक गांड मादरचोदो "
पापा के मुँह से ये शब्द सुनते ही मेरे पैरो के नीचे से जमीन खिसक गई.
"पापा ये कैसे बात कर रहे है मम्मी से,उन्हें गाली क्यों दे रहे है?" मेरे आश्चर्य कि सीमा ही नहीं थी.

मेरी खूबसूरत माँ,संस्कारी माँ को मेरा बाप रंडी बोल रहा था,मेरा खुल खोलने लगा लेकिन क्या करता मेरे बाप के सामने तो जा नहीं सकता था ना.
"कितनी बार कहा है आपसे इतनी मत पिया कीजिये" मेरी माँ वैसे ही सुलभ लहजे मे बोली जैसे उसे गाली का खुद को रंडी बोलने का कोई बुरा ही ना लगा हो, या फिर विरोध ही नहीं कर सकती थी.
"चल इधर आ जल्दी......पापा ने ऊँगली से माँ को पास बुलानें का इशारा किया और अपनी पैंट खोलने लगे "
मै सांस रोके अगले पल कि प्रतीक्षा करने लगा वो पल आ ही गया था जब माँ मेरी संस्कारी कामुक माँ एक वहशी लंड को छुवेगी.
पापा ने पूरी पैंट उतर दि....लेकिन.....लेकिन...ये क्या पापा कि जांघो के बीच मुरझाया हुआ सा एक 2इंच का लंड झूल रहा था बिल्कुल पतला सा..पापा का डील डोल देख के तो कोई भी ये नहीं कह पाता कि ये पापा का लंड है..कहाँ मेरे पापा 6फ़ीट से ऊँचे,चौड़ी छाती घनी रोबदार मुंछे और लंड मात्र 2इंच का.
"चल अब देख क्या रही है खड़ा कर इसे चूस िसर आज तेरी गांड ना मारी तो ठाकुर नहीं मै " पापा ने एक दावा भात दिया.
"आज रहने दीजिये ना, आपने बहुत पी ली है " माँ ने एक मिन्नत कि.
"साली रंडी मुझे बताएगी कि कितनी पी है मैंने ठाकुर खानदान से हूँ तेरी जैसे 10 को चोद दू तो भी लंड से पानी ना निकले चूस इसे खड़ा कर" मेरे पापा गरज उठे ठाकुर होने का घमंड उनमे कूट कूट के भरा था.
माँ मेरी बेचारी क्या करती धीरे कदमो से बढ़ती हुई,पापा कि जांघो के बीच आ बैठी,..माँ वाकई कामुक औरत थी रौशनी मे उसका जिस्म वाकई जगमगा रहा था,लम्बी चौड़ी औरत मेरी माँ पापा के जांघो के बीच बैठी थी.
माँ ने हाथ आगे बढ़ा पापा का लंड अपनी हथेली मे थाम.लिया जो कि हथेली मे कहाँ गायब हो गया आता पता ही नही था.

"आआहहहह.....चल चूस इसे आज तेरी गांड मरूंगा " पापा नशे मे बड़बड़ये जा रहे थे.
और मेरी माँ किसी आज्ञाकारी नौकर कि तरह उनका छोटा सा नाजुक लंड कभी हिलती तो कभी मुँह मे लेती..
पापा का लंड माँ के थूक से सन गया था,कमरे मे खन खन खन....चूड़ी कि आवाज़ गूंज रही थी.
लेकिन जो ना हो सका वो हुआ ही नहीं पापा का लंड खड़ा ही नहीं हुआ.
"साली क्या औरत है तू अपने पति का लंड भी खड़ा नहीं कर सकती "
पापा ने गुस्से मे एक लात माँ के सीने पे जमा दि.
"आआहहहहह.......आउच.....नहीं....."
माँ कि चीख निकल गई.
"साली मोहल्ले के लोग तेरे नाम का लंड हिलाते है और तू अपने पति का लंड भी खड़ा नहीं कर पाती कितनी ठंडी औरत है तू " चाटककककक......चट.....कि एक आवाज़ गूंज गई पापा ने एक थप्पड़ गुस्से मे माँ के गाल पे रसीद कर दिया.
पापा का चेहरा नशे और गुस्से मे लाल तामत्मा रहा था.
मेरी माँ पापा के धक्के से दूर हा गिर,और पीछे टेबल से जा टकराई.....टकराने से माँ कि साड़ी उठ के जांघो तक चढ़ आई थी.
आह मैंने पहली बार वो मनमोहक नजारा देखा था जहाँ से मै पैदा हुआ था
क्या नजारा था,माँ अपने बड़े बड़े स्तन को सहारा दिये हुए टेबल से टिके हुए जमीन पे बैठी थी, हमेशा कि तरह उसके चेहरे पे मुस्कान ही थी, ना जाने किस मिट्टी कि थी मेरी माँ? सिर्फ मेरे बाप कि बेलगाम हरकत को देखे जा रही थी.
आँखों मे सुनापन विधमान था.
Picsart-22-07-27-16-11-14-234.jpg

मेरी माँ कि चुत एक दम कोमल,बंद किसी लकीर के सामान सपाट चुत.थी ...एक दम गोरी.
मै मन्त्रमुग्ध सा हो गया था अपनी जन्म स्थली को देख के.
कि तभी चटक.....चाटक.....कककम...

मदरचोद रंडी " कि आवाज़ से मेरा ध्यान भंग हुआ.
"नहीं.....नहीं...मत कीजिये मै करती हूँ खड़ा आउच....आआहहहह.....नहीं....आअह्ह्ह....." पापा कि चमड़े कि बेल्ट निकल चुकी थी.
जो कि माँ कि चुत पे बरस रही थी.
साली यहीं चुत है ना तेरी जिसपे घमंड है तुझे चट....चाटकककक......"
"आआह.....नहीं....आउच.....उफ्फफ्फ्फ़......नहीं...रुक जाइये....."
माँ कि सिसकारिया गूंज रही थी और पापा कि बेल्ट माँ कि कोमल चुत पे लाल निशान छोड़ती जा रही थी.
आज मै समझ गया था जिसे मै सम्भोग समझता था वो क्या था,माँ कि दर्द भरी सिसकारी बाकई दर्द कि थी.
मेरी माँ का जीवन वाकई नर्क था....भरी कदमो से मै वहाँ से हट गया,क्या करता इतनी तो हिम्मत नहीं थी ना कि अपने बाप का हाथ पकड़ लेता.
भारी मन और भारी कदमो से मै अपने कमरे मे जा पंहुचा और बिस्तर पे जा गिरा.
आज मै बहुत दुखी था दोस्तों......
 
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Dusre se maa ko chudwayega toh nhi chalegi story
चिंता ना करे ये एक बेहतरीन राइटर कि कहानी है, कुछ अलग होंगी,
माँ बेटे का वो प्यार दिखेगा जो आजतक नहीं देखा होगा.
अब बेटा सम्भोग करेगा या कोई बाहर का ये देखने लायक है.
 
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bhai maa ko dusre logo ke sath chudate dekhna bahot galat hai..beta apni maa ko har situation me protect kare aur usse galat kadam na uthane de toh achha hoga..!!
राहुल प्रोटेक्ट ही करेगा बस देखते जाओ कि कैसे और कब.
लिख मै रही हूँ शब्द किसी और के है.
तो ये स्टोरी तो शानदार होनी ही है.
 
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दोस्तों इस कहानी कि ओरिजनल राइटर नहीं हूँ.
बस जो है मजा लीजिये......
यूँ समझिये कि मेरा प्यार है जो ये लिखवा रहा है किसी से.
आप लोग मौज कीजिये बस 👍
 

A.A.G.

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राहुल प्रोटेक्ट ही करेगा बस देखते जाओ कि कैसे और कब.
लिख मै रही हूँ शब्द किसी और के है.
तो ये स्टोरी तो शानदार होनी ही है.
bahar wale ko na hi laao toh achha hai kyunki maa beta dono hai ek dusre ke liye pyaar karne ke liye..rahul apni maa ke dukh dur kar sakta hai..!!
 
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