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Thriller मिस्टर चैलेंज by वेद प्रकाश शर्मा

Rakesh1999

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" हमारे ध्यान में न वह कुदी थी , न ही धकेली गयी थी । बंसल ने कहा ---- " जिस वक्त वह चीख रही थी , तब विपरीत दिशा में यानी टैरेस की तरफ देख रही थी । शायद उस तरफ हमलावर था । उससे बचने के लिए पीछे हटी और रेलिंग तोड़ती हुई यहाँ आ गिग । " " इंस्पैक्टर , में टेरेस का निरीक्षण करना चाहता हूँ " मैंने जैकी से कहा।

जहां से सत्य गिरी थी , वह लेडीज हॉस्टल की इमारत का टेरिस था । वहां पहुंचने से पहले मैंने सैकिंड फलोर पर स्थित सत्या के कमरे का निरीक्षण किया । परन्तु ऐसी कोई चीज नहीं मिली जो घटना के अंधेरे पहलुओं पर रोशनी डाल सकती । टैरेस पर एक जगह ढेर सारा खून पड़ा था । खुन सूख चुका था । रंग काला पड़ चुका था । उस पर मक्खियां मिनभिना रही थीं । खून की टेढ़ी - मेढ़ी लकीर टूटे हुए रेलिंग तक चली गयी थी । एक स्थान पर चौक से बना दायरा देखकर मैंने पूछा ---- " ये निशान कैसा है ? " " वहा सत्या की सैंडिल पड़ी थी । जैकी ने बताया । " और दूसरी सैंडिल " " काफी तलाश करने के बावजूद नहीं मिली । ' ' " सत्या के कमरे में भी नहीं ? " " नहीं।


यही सोच रहा था मैं ! " मैं टूटे हुए रेलिंग की तरफ बढ़ता हुआ बोला ...- " जिस वक्त सत्या को प्रांगण में होना चाहिए था , उस वक्त टेरेस पर क्यों थी ? मगर नहीं ---- वह टेरेस पर नहीं थी ! हमला यहां हुआ जरूर लेकिन असल में हमलावर से बचने की कोशिश में कही और से भागकर यहां पहुंची । हमलावर उसका पीछा कर रहा था । वार करने का मौका यहां आकर मिला । दूसरा सैंडिल वहां गिरा जहां से सत्या और हत्यारे के बीच भागदौड़ शुरू हुई । "

" क्या जरूरी है ? " जैकी ने कहा ---- " रास्ते में भी तो कहीं गिरा हो सकता है ? " "

रास्ते में गिरा होता तो हमलावर को उसे गायब करने की जरूरत नहीं थी । "
मैं जैकी की तरफ पलटता हुआ बोला-- .. " गायब करने की जरुरत इसलिए पड़ी क्योंकि जहां वह गिरा वहां से उसकी बरामदगी हत्यारे को फसा सकती थी अर्थात् भागदौड हत्यारे के अपने परिसर में शुरू हुई ।

" जैकी कह उटा -... " तर्क में दम है । " " मैं लेटीज हॉस्टल की वार्डन से मिलना चाहता हूं । " " नगेन्द्र । " प्रिंसिपल ने अपने नजदीक खड़े चपरासी को हुक्म दिया --- " ललिता को बुलाओ।
चपरासी साड़ियों की तरफ बढ़ गया । मैंने टूटे हुए रेलिंग के नजदीक से नीचे झांका । वहाँ जहाँ सत्या गिरी थी । जैकी मेरे नजदीक आता हुआ बोला- " यदि सत्या को धकेला गया होता या वह खुद कुदती तो शायद कुछ और दूर जाकर गिरती । लगता है यह हत्यारे से बचने की कोशिश में ही गिरी । " मै जैकी से सहमत था इसलिए कोई तर्क - वितर्क नहीं किया ।
 

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दरअसल मेरे दिमाग में दूसरी बातें घुमड़ रही थी । उन्हीं को उगलने के लिए कहा ---- " जितने उपन्यास मैंने लिखे हैं , उनके अनुभव के बेस पर कह सकता हूं यदि हत्या का उद्देश्य समझ में आ जाये , तो ऐसे केस खुलने में टाइम नहीं लगता । "
" उद्देश्य पता लगना आसान नहीं होता । "

सवा आठ बजे ! या ज्यादा से ज्यादा साढे आठ बजे सत्या को प्रांगण में होना चाहिए था । " मैंने अपने दिमाग में भरा मलूदा निकालना शुरू किया ---- " यकीनन सत्या सवा आठ और साढ़े आठ के बीच तैयार होकर अपने कमरे से निकला होगी । पत्ता ये लगाना है कि साढ़े आठ से नौ बजे तक वह कहां रही ? क्या करती रहीं ? ऐसा उसने क्या देखा या सुना जिसकी वजह से मरना पड़ा ? "

"वह रही इसी बिल्डिंग में थी , बाहर किसी ने नहीं देखा मेरे कुछ कहने से पहले ललिता आ गयी । वह तीस साल के आस - पास की साधारण कद - काठी वाली महिला थी । सूती साड़ी और उसी से मैच करता ब्लाऊज पहने हुए थी । दस - बारह साल की एक लड़की भी थी उसके साथ । रंग - बिरंगे फ्रॉक पहने हुए थी वह । वह ललिता की बेटी थी और हॉस्टल में साथ ही रहती थी । बातचीत में उसने उसका नाम चिन्नी बताया ! यह भी बताया कि उसका पति गांव में रहता है । मैंने उससे कई सवाल किये मगर उल्लेख करना इसलिए जरूरी नहीं है क्योंकि उनसे वर्तमान केस पर कोई खास रोशनी पड़ने वाली नहीं है ।



उससे ध्यान हटाकर मैंने जैकी से कहा ---- " एक बात तय है । सत्या के मरने की वजह साढ़े आठ से नौ बजे के बीच पैदा हुई । इस बीच उसे कोई ऐसा राज पता लगा जिसे हत्यारा नहीं चाहता था कि किसी को पता लगे ।

" जैकी भेदभरी मुस्कान के साथ बोला ---- " इतनी देर से आप बेकार दिमागी कसरत कर रहे हैं । " " मतलब ? " मै चौंका । " जो कसरत मैंने सुबह की थी , उसी का फायदा उठा लेते । "

" मैं अब भी नहीं समझा । " मैं भी इसी नतीजे पर पहुंचा था जीस पर आप पहुंचे हैं । " और फिर .... हम दोनों एक - दूसरे की तरफ देखकर ठहाका लगा उठे ।
 

Rakesh1999

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अब मुझे इस बात की तह में जाना था कि सत्या की हत्या का शक सब चन्द्रमोहन पर क्यों कर रहे थे ? अतः जैकी से कहा ---- " तुम जाना चाहो तो जा सकते हो , मै अभी यहीं रहूंगा । " जैकी ने जैसी आपकी मर्जी ' वाले अंदाज में कंचे उचका दिये । स्टुडेन्ट्स के दूसरे ग्रुप का लीडर यह स्मार्ट लड़का था जो चन्द्रमोहन को परिसर में देखकर सबसे पहले तमतमाता हुआ जैकी के नजदीक आया था । उसका नाम राजेश था ।
राजेश तोमर ।
मैं उन केन्टीन में ले गया साथ में उसके नजदीकी दोस्त अल्लारखा , एकता और दीपा भी थे । थोड़े ही समय में मैंने महसूस किया कि दीपा और राजेश दोस्त से ज्यादा कुछ थे ।

कालिज की तरह कैंटीन भी शोक में बंद थी । फिर भी हम एक मेज के चारों तरफ कुर्सियों पर बैठ गये । मैंने मतलब की बात पर आते हुए कहा ---- " राजेश , तुम लोगों की चन्द्रमोहन से क्या दुश्मनी है ?

" नहीं " दुश्मनी जैसी तो कोई बात नहीं है । " राजेश ने कहा ---- " हमारा मिजाज उससे और उसके ग्रुप के सड़के - लड़कियों से नही मिलता । "
" वह बदतमीज है । " दीपा ने कहा ---- " लड़कियों तक से तमीज से पेश नहीं आता । " मैंने सीधा सवाल किया ---- " क्या तुमसे भी कोई बद्तमीजी की ? " दीपा ने जवाब देने की जगह राजेश की तरफ देखा । भाव ऐसा था जैसे पुछ रही हो , जवाब दे या न दे ?

मैंने वातावरण को हल्का बनाये रखने के लिए कहा . - .- " दीपा , हिचको नहीं । मेरे किसी भी सवाल का मतलव सत्या के हत्यारे तक पहुंचने की कोशीश से ज्यादा कुछ नहीं है । शायद यह कातिल कॉलेज की पिछली किसी छोटी - मोटी घटना के पीछे छुपा हो।
 

Rakesh1999

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कहानी जारी रहेगी।अगला अपडेट जल्दी ही दूँगा।कहानी के बारे में अपने विचार अवश्य दें।थैंक्स
 

Rakesh1999

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दीपा से उसने इस बात से पहले ही दिन बहुत बदतमीजी की थी । " राजेश से कहना शुरू किया --... "मै और वो एक ही क्लास में है । दीपा हमसे जूनियर है । उस वक्त रैगिंग चल रही थी जब दीपा वहां आई । चन्द्रमोहन ने इससे कहा ---- ' तुम्हें मेरे होठो का किस लेना होगा । ' दीपा ताव खा गई । झगड़ा बढ़ा । मैं बीच में पड़ा ! चन्द्रशेखर से कहा रैगिंग और बद्तमीजी में फर्क होता है । किसी लड़की से किस लेने के लिए कहना रेगिंग नहीं है । चन्द्रमोहन मुझसे भिड़ गया । शायद उसी वक्त मारपीट शुरू हो जाता , लेकिन दूर से आती सत्या मैडम नजर आई । हम सब उनकी इज्जत करते थे । रैगिंग के वे सख्त खिलाफ थी , अतः पलक झपकते ही तितर - बितर हो गये । " " उसके बाद ? " " एक दिन यही , यानी कैंटीन में मेरे और चन्द्रमोहन के बीच फाइटिंग भी हुई । " मैंने शरारत की ---- " और उसके बाद तुम दोनों में ईलू - ईलू शुरू हो गया ? " दीपा झेंप गई । एक बार राजेश की तरफ देखकर पलकें झुका ली उसने । मैंने हौले - हौले मुस्कुरा रहे राजेश से कहा ---- " कालिज लाइफ में ईलु - ईलू कुछ इसी तरह शुरू होते है .... सत्या मैडम चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन क्यों कराना चाहती थी ?

" राजेश ने कहा --- " क्योंकि चन्द्रमोहन और उसके साथी स्मैक लेते हैं ।
" मेरे दिमाग में धमाका सा हुआ ! संभलकर बैठ गया । लगा ---- मैं सत्या की हत्या के कारण के आसपास पहुंचने वाला हूँ । बौला ---- " जरा खोसकर बताओ इस बात को ! "

" एक दिन चन्द्रमोहन और उसके साथी लेडीज टायलेट में छुपे स्मैक ले रहे थे । सत्या मैडम ने रंगे हाथों पकड़ लिया । प्रिंसिपल साहब के पास ले गयीं लेकिन प्रिंसिपल साहब ने कोई खास पनिशमेन्ट नहीं दिया । थोड़ा समझा - बुझाकर और यह वादा लेकर छोड दिया कि अब वे स्मैक नही लेंगे । "
ये क्या बात हुई।
" सत्या मैडम और प्रिंसिपल साहब के बीच ऐसी ही बातों को लेकर विवाद था । "
" कालिज में स्मैक आई कहां से ? "
“ यही सवाल सात्या मेडम का था । उन्होंने प्रिंसिपल साहब से कहा ---- इस घटना को हल्के ढंग से लेकर आप गलती कर रहे हैं । आज चार - पांच स्टूडेन्ट स्मैक पीते पकड़े गये है , कल ये जहर सारे कॉलिज में फैल जायेगा ।
कम से कम यह तो पूछा ही जाना चाहिए कि कालिज में स्मैक लाया कौन ? "
" बंसल साहब का रुख क्या रहा ? "
" एक कान से सुनना , दूसरे से निकाल देना । " " और वो चाकू वाला घटना क्या थी ? " मैंने पूछा ---- " सुना है , चन्द्रमोहन ने सत्या मैडम पर चाकू खोल लिया था । नौबत इतना आगे कैसे पहुंची ? "
' यह कल सुबह की बात है । सारे कालिज में हंगामा मच गया । वजह थी ---- कालिज की दीवारों पर लगे नंगे फोटो ! ये फोटो दीपा के थे । " मैं चौंक पड़ा । मुंह से निकला -- " दीपा के नंगे फोटो ?
" दीपा चेहरा झुकाये बैठी थी।
 

Rakesh1999

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राजेश कहता चला गया ---- " ये पोस्टर एक सेक्सी मैग्जीन में छपे नंगी लड़कियों के फोटुओं के चेहरों पर दीपा का चेहरा चिपकाकर तैयार किये गये थे । तैयार करके चिपकाने वाला चन्द्रमोहन था । लेकिन यह भेद खुलने से पहले सबने दीपा के ही समझा । दीपा तो इतनी एक्साइटिड हो गयी कि अगर सही वक्त पर मैं रोक न लेता तो टेरेस से कूदकर सुसाइड कर ली होती । वह तो भला हो सत्या मैडम का जिन्होंने चन्द्रमोहन के कमरे से वह मैग्जीन बरामद कर ली जिसमें से नंगे फोटो काटे गये थे । हकीकत जानने के बाद तो सत्या मैडम जैसे पागल हो गयीं । कालिज प्रांगण में सबके सामने चन्द्रमोहन के गालों पर चाटे पर चाटे बरसाती चली गई वे ! प्रिसीपल साहब ही नहीं , कालिज का हर शख्स दायरे की शक्ल में उनके चारों तरफ खड़ा था । कुछ देर तक चन्द्रमोहन पिटता रहा लेकिन फिर जेब से लम्बा सा चाकू निकालकर खोल लिया और गरजा .... ' बस मैडम ---- ! बहुत हो चुका ! अब अगर एक भी चांटा मारा तो अंतड़ियां निकालकर बाहर फेंक दूंगा । "

" ओह ! " " सत्या मैडम का हाथ जहां का तहां रुक गया । स्तब्ध रह गई वे ! और वे ही क्यों , हर शख्स स्तब्ध रह गया था । मैं और दीपा टेरेस पर थे । मै नीचे होता तो शायद जान से मार देता चन्द्रमोहन को लेकिन , प्रिसिपल महोदय ने सिर्फ इतना किया कि लपककर आगे बढ़े । चन्द्रमोहन की चाकू वाली कलाई पकड़ी । हाथ से चाकु छिना और गुर्राए--- तुम्हारी बदतमिजियों की हद हो चुका है . चन्द्रमोहन !
मैडम पर चाकु खोलने की तुम्हारी हिम्मत कैसे पड़ी ?
चन्द्रमोहन चुपचाप खड़ा मैडम को घूरता रहा । भाव तब भी ऐसे थे जैसे कच्चा चबा जाने का इरादा रखता है । प्रिसिंपल महोदय ने हुक्म दिया ---- ' चलो ! माफी मांगो सत्या मैडम से ! सॉरी बोलो ।

' चन्द्रमोहन तब भी चुप खड़ा रहा । प्रिसिपल महोदय ने डपटकर कहा ---- ' माफी मांगो । ' और चन्द्रमोहन लट्टमार भाषा में ' सॉरी ' कहकर वहां से चला गया । "
" उसके बाद ? " " उत्तेजना तो फैल ही चुकी थी । " अल्लारखा ने कहा ---- " चन्द्रमोहन के चंद स्मैकिये दोस्तों को छोड़कर सारा कालिज उसके खिलाफ था । उसी वक्त चन्द्रमोहन को कलिज से निकालने के लिए नारे लगने लगे ।

राजेश और दीपा भी प्रांगण में आ चुके थे । दीपा तो बेचारी हिचकियां ले - लेकर रोये जा रही थी । राजेश बहुत ज्यादा उत्तेजित था । प्रिंसिपल महोदय अपने ऑफिस में जा चुके थे । उतेजना को शान्त करने वाली भी सत्या मेडम ही थीं । राजेश को खास तौर पर शान्त किया उन्होंने । बोली ---- राजेश , अब हद हो चुका है । मै प्रिंसिपल साहब से मिलती हूँ । उन्हें इस कालिज रूपी स्वच्छ तालाब से चन्द्रमोहन नाम की गंदी मछली को निकालकर फेकना ही पड़ेगा । "
" स्टेन्ट्स को शान्त करके सत्या मैडम , हिमानी मैडम , ऐरिक सर और लविन्द्र सर प्रिंसिपल के रूम में गये थे । " अल्लारखा के चुप होते ही एकता ने बोलना शुरू कर दिया था ---- " वाकी सभी लोग आफिस के बाहर खड़े रहे । वे चारों करीब तीस मिनट ऑफिस में रहे । इस बीच सत्या मैडम के चीखने - चिल्लाने की आवाज बाहर तक आई थी और फिर सबसे पहल वे ही बाहर निकलीं । ऐरिक सर , हिमानी मैडम और लबिन्द्र सर उनके पीछे थे ! गुस्सा तो सभी के चेहरे पर झलक रहा था । मगर सत्या मैडम बहुत ज्यादा उत्तेजित थीं । ऑफिस के बाहर इकट्टी भीड से उन्होंने चीख - चीखकर कहा ---- " पता नहीं क्यों , प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन को इस कॉलिज के भविष्य से भी ज्यादा चाहते हैं । वे उसका रेस्ट्रोकीशन करने के लिए तैयार नहीं हैं । मगर , हमने भी सोच लिया है ---- अब इससे कम पर कोई फैसला नहीं होगा ! सोचने के लिए मैं उन्हें पूरी रात देकर आई हूँ । कल सुबह साढ़े आठ बजे प्रांगण में एक मीटिंग होगी । या तो उस वक्त तक प्रिंसिपल महोदय चन्द्रमोहन का रेस्ट्रीकेशन - कर चुके होंगे या उस मीटिंग में तय करना होगा कि हमें क्या करना है ? " " बस !

" दीपा ने कहा ---- " इसके बाद वे अपने कमरे की तरफ चली गयीं " प्रिंसिपल के आफिस में क्या बात हुई थी ? "
" पूरी बातें पता नहीं लग सकी । हां , उड़ती - उड़ती यह सूचना जरुर मिली की तत्काल आदेश के जरिए प्रिंसिपल महोदय ने चन्द्रमोहन को एक हफ्ते के लिए कालिज से निकाल दिया था । यह एक हफ्ता आज सुबह से शुरू होने वाला था ।
 

Rakesh1999

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मैंने महसूस किया ---- उपरोक्त बाते बताते वक्त राजेश कुछ ज्यादा ही उद्वेलित नजर आ रहा था ।

वारदात सत्या के मर्डर तक सीमित रहती तो शायद कॉलेज में आपको वह कथानक पढ़ने को न मिलता । यदि यहां पर इस बात को भुला दिया जाये कि मरने से पूर्व सत्या ने CHALLENGE लिखा था तो यह घटना , आम हत्याओं सी घटना ही दी और मैं एक आम घटना को अपना कथानक बनाने के मूड में नहीं था ।
लेकिन आई.ए.एस. कालिज में एक के बाद एक घटी घटना ने मुझे झकझोर कर रख दिया । जो कुछ हुआ , यह सनसनीखेज और पेचीदा था । शायद मेरी कल्पनाएं वहाँ तक नहीं पहुंच सकती थी ।

उन पेचीदगियों की शुरूआत हुई रात के दो बजे से । मधु सोई हुई थी । कमरे में नाइट बल्ब का मद्धिम प्रकाश था । मैं जाग रहा था । दिमाग में सत्या की हत्या से सम्बन्धित सवाल सरसरा रहे थे । टेलीफोन की घंटी बजी । मैंने लपककर साइड ड्राज के ऊपर रखे फोन का रिसीवर उटाया । माऊथपास से मुंह सटाकर धीरे से कहा ---- " हैलो ! " " इंस्पैक्टर जैकी बोल रहा हूँ वेद जी ! " दूसरी तरफ से हड़बड़ाहटयुक्त स्वर में कहा गया ---- " मैंने कहा था , इस केस में आपको भरपूर मसाला मिलेगा । शायद वो बात सच होने जा रही है । अगर बाकई कुछ लिखना चाहते हो तो फौरन यहां आ जाइए । "

मैंने चौंककर पूछा ---- " क्या हुआ ? " "

चन्द्रमोहन का मर्डर । "

" क - क्या ? " मेरे हलक से चीख निकल गई ।

मधु हड़बड़ाकर उठ बैठी मगर अब भला मेरा ध्यान उस तरफ कहां था ? मैं फोन पर चीख पड़ा था ---- " कब ? किसने मार हाला उसे ? " " इन सवालों जवाब यही आकर लें तो बेहतर होगा ! "
" ओ.के. ! मैं आता हूं । " कहने के तुरंत बाद मैंने रिसीवर डिल पर पटक दिया । " किसी ने चन्द्रमोहन को मार डाला । " मैंने एक स्विच ऑन करते हुए कहा । कमरा तेज प्रकाश से भर गया।


मधु के चेहरे पर हैरत का सागर उमड़ा पड़ रहा था । मैं उसे अपनी दिन भर की गतिविधियों के बारे में बता चुका था । इस नई वारदात की कल्पना शायद उसने भी नहीं की थी । उसे इसी हालत में छोड़कर मैंने नाइट गाऊन उतारा और बाहर जाने की लिए कपड़े पहनने लगा ।
 

Rakesh1999

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क्या आप सोच सकते हैं एक आदमी मरने के बावजूद कैसे खड़ा रह सकता है ? कम से कम मैं चन्द्रमोहन की लाश को देखने से पहले ऐसी कल्पना नहीं कर सकता था ।
जी हाँ लाश ठीक मेरे सामने खड़ी थी ।
आंखें फाड़े घुर रही थी मुझे ।
दृश्य स्टाफ रूम का था । एक मेज पर रखे फोन का रिसीवर नीचे झूल रहा था । उसके नजदीक दीवार के सहारे खड़ी थी ----

चन्द्रमोहन की लाश ! एक बल्लम उसके सीने के आर - पार होकर पीछे मौजूद प्लाई की दीवार में धंस गया था । उसमे फंसी चन्द्रमोहन की लाश दीवार सहारे खडी की खड़ी रह गयी थी । उसकी देखकर में जैसे बोलना तक भूल गया "
चन्द्रमोहन अभी तक दरवाजे की तरफ देख रहा है । " जैकी की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी ---- “ वल्लम की पोजीशन बता रही है , इसे टीक वहां से फेंका गया जहां इस वक्त आप खड़े हैं ।
" मेरी तंद्रा भंग हुई । मै स्टाफ रूम के दरवाजे के बीचो - बीच से हटा ।
हवलदार की आवाज गूंजी --.- " लेकिन सर , रात के इस वक्त ये स्टाफ रूम में क्या कर रहा था ? "
" फोन पर बात कर रहा था किसी से ! " मैंने जासूसी झाड़ी । " किसी से नहीं , मुझसे बात कर रहा था । " जैकी ने बताया ।
मैं चौका -- " तुमसे ? "
" इस पर जैकी अपनी बेल्ट में लगे मोबाइल की तरफ इशारा किया ---- " आप जानते ही हैं मैंने इससे क्या कहा था ? शायद उसी को फालो कर रहा था बेचारा । "
" तो क्या इसे हत्यारे का कोई क्लू मिला था ? " ऐसा ही लगता है । " जैकी ने कहना शुरू किया ---- " फोन पर अपना नाम बताने के बाद यह केवल इतना ही कह पाया था कि मैंने हत्यारे का पता लगा लिया है इस्पैक्टर साहब ! वो कारण भी पता कर लिया है जिस वजह सत्या मैडम की हत्या की गई । मेरे पास सुबुत भी ...। और बस इतना कहकर चुप हो गया । फिर फोन पर इसकी ऐसी आवाज उभरी जैसे अपने सामने किसी को देखकर चौका हो ---- ' तुम ! तुम यहां ? ' दूसरी तरफ से मैं फोन पर चीखा ---- हैलो ! हैलो ! क्या हुआ चन्द्रमोहन ?
लेकिन जबाव में इसकी जोरदार चीख के अलावा कुछ सुनाई नहीं दिया । मैं काफी देर तक ' हेलो .... हेलो ... ! ' चिल्लाता रहा ।

अनिष्ट की आशंका उसी क्षण हो गयी थी । जीप लेकर भागा । यहां आया तो ... " इसके चीखने की आवाज ने कालिज परिसर को झकझोर कर रख दिया था ।

" प्रिंसिपल कह उठा---- " अपने बंगले में सोये पड़े हम और हॉस्टल में सोये ज्यादातर स्टूडेन्ट्स और प्रोफेसर हड़बड़ाकर उठे । हंगामा सा मच गया । सभी एक - दूसरे से पूछ रहे थे . यह चीख कैसी और किसकी थी । तभी वातावरण में गुल्लू के चीखने की आवाज गूंजी --- " पकड़ो ! पकड़ो । हत्यारा भाग रहा है।
 

Rakesh1999

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गुल्लू कौन ? " मैने पूछा ।
चौकीदार।
" ओह हां "
" उसकी आवाजें सुनकर हम सब चारों तरफ से आवाज की दिशा में दौड़े । "
" सबसे पहले मैं गुल्लू के नजदीक पहुंचा । " आई साइट का चश्मा लगाये करीब तीस वर्षीय व्यक्ति ने कहा ---- " उस वक्त वह कालिज की दाहिनी बाउन्ट्री वाल के नजदीक एक पेड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा था । मैंने उसे पकड़ा । पहले तो शायद मुझे ही हत्यारा समझकर हड़बड़ा गया , लेकिन पहचानते ही चीखने लगा --- ' उसे ' पकड़ो सर !

वह पेड़ पर चढ़कर चारदीवारी के उधर कूदा है । मैं पेड़ पर चढ़ा भी , मगर बाहर कोई नजर नहीं आया । तब तक काफी स्टूडेन्ट्स और प्रिंसिपल साहब भी वहां पहुंच चुके थे ।

मैंने पूछा ---- " आपकी तारीफ ? "
" लविन्द्र भूषण ! कालिज में प्रोफेसर हूं । " कहने के साथ उसने अपने हाथ में मौजूद सुलगी हुई सिगरेट में कश लगाया ।
" गुल्लू ने हत्यारे के बारे में और क्या बताया ? " जैकी ने कहा ---- " वह सब गुल्लू के मुंह से ही सुनें तो बेहतर होगा । " मुझे जैकी की राय जंची । अतः चुप रहा । स्टॉफ रूम ज्यादा बड़ा नहीं था । चन्द्रमोहन की लाश के अलावा वहां केवल मैं , जैकी , हवलदार , प्रिंसिपल और लवीन्द्र ही थे । बाकी सब स्टाफ रूम के बाहर खड़े थे । लाश की तरफ बढ़ते हुए जैकी ने कहा- मेरे पहुंचने तक ये सब लोग गुल्लू की निशानदेही पर यहां पहुंच चुके थे । मैंने फौरन आपको फोन किया । आगे की कार्यवाही आपके सामने करना मुनासिब समझा ।

" थैंक्यू इंस्पेक्टर ! " मैंने उसका आभार व्यक्त किया ।
" प्लीज ! " उसने कहा ---- " किसी चीज को हाथ मत लगाइएगा ।

" मै थोड़ा खीझ उठा । बोला ---- " ऐसी बातें रोज लिखता हूं । " मेंरी खीझ पर जैकी मुस्कराया । लाशें देखना उसका रोज का काम था । कम से कम मै एक लाश की मौजूदगी में नहीं मुस्करा सकता था । लाश भी ऐसी जो लगातार मुझे धूरती महसूस हो रही थी । जहां बल्लम गड़ा था , यानी सीने से अभी तक खून की बूदें टपक रही थी । उसके कपड़ों को गंदा करता खून फर्श पर गिर रहा था । मैंने कहा ---- " क्या हत्यारे का पता इसने जरूरत से कुछ ज्यादा जल्दी नहीं लगा लिया था ? " लटके हुए रिसावर का निरीक्षण करता जैकी बोला ---- " मेरे ख्याल से जल्दबाजी के चक्कर में इसने कोई बेवकूफी की ! उसी वजह से हत्यारे की नजर में आ गया । "
" क्यों न तलाशी । जाये ?
मुमकिन है सुबुत इसकी जेब में हो । "
" हुआ भी होगा तो हत्यारे ने निकाल लिया होगा।
 

Rakesh1999

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ये बात इस पर डिपेन्ड है कि गुल्लु यहाँ चीख के कितनी देर बाद पहुंचा ?
" मैंने कहा ---- " यदि फौरन पहुंच गया होगा तो हत्यारे को इसकी तलाशी लेने का मौका नहीं मिला होगा । "
" बात में दम है । " कहने के साथ जैकी अपना हाथ धीमे से चन्द्रमोहन की पेंट को बाई जेब में डाला । हाथ बाहर आया । उसमें सौ - सौ के बिल्कुल नये करेंसी नोटों के साथ एक कागज भी था ।

कागज पर खून लगा था । सूखा हुआ खून ! अर्थात् चन्द्रमोहन का खून नहीं था वह । कागज इस तरह गोला - सा बना हुआ था जैसे कसकर मुट्टी में भींचा गया हो ।

मेरा दिल धक्क - धक्क करने लगा । क्या यही वह सुबुत था जिसका जिक्र चन्द्रमोहन ने किया था ? क्या है कागज मे ?

जैकी ने कागज खोला । यह सब प्रिंसिपल , हवलदार और लविन्द्र भी देख रहे थे । उत्सुकता से बंधे वे हमारे नजदीक आ चुके थे ।
कागज पर नजर पड़ते ही प्रिंसिपल कह उठा-- " अरे ये तो पेपर है । "
" कैसा पेपर ? " जैकी ने पुछा।
" आगामी एग्जाम में आने वाला इंग्लिश का पेपर ।
" मैंने पेपर को ध्यान से देखते हुए कहा ---- " पेपर ऑरिजनल नहीं , उसकी फोटो कॉपी है । "
" लेकिन वे यहां आई कैसे ? " प्रिंसिपल की आवाज में रोष था । पेपर किसी कम्प्यूटराइज कागज की फोटो कापी थी ।
जैकी ने सवाल किया .... " इसे फिसने तैयार किया था ? "
" हिमानी मैडम ने । "
" चन्द्रमोहन की जेब में कैसे पहुंच गया ? " प्रिंसिपल झुंझला उठा ---- " यही तो हम पूछ रहे है ! "
" मैं बताता हूं । " यह कहते वक्त जैकी के जबड़े भिंच गये ---- " वेद जी ,आपने कहा था ---- हत्यारे का उद्देश्य पता लग जाये तो आधा केस हल हो जाता है । हत्या का उद्देश्य आपके सामने हैं ! ये पेपर ! मुझे पूरा यकीन है ---- इस पर लगा खून सत्या का है ।
आपका सवाल था ---- साढ़े आठ से नौ बजे के बीच सत्या क्या करती रही ? जवाब ये पेपर दे रहा है ---- वह उसके पास थी जिसके पास यह था और वो ... वो है जिसने सत्या और चन्द्रमोहन की हत्या की ! आप तो कल्पनाएं करने में माहिर है ! जरा सोचिए ----- सत्या का जो करेक्टर हमारे सामने आया है , उसके मुताबिक यदि उसने यह पेपर किसी के पास देखा होगा तो क्या प्रतिक्रिया हुई होगी उसकी ?

" सिद्धान्तों की पक्की सत्या भड़क उठी होगी । " यह सब कहने के लिए मुझे जरा भी सोचना नहीं पड़ा ---- " जो रैगिंग बरदास्त नहीं करती थी वह भला पेपर आऊट होना कैसे बरदाश्त कर सकती थी ? "
" और वो जो भी या , मुमकिन है सत्या के सामने पहले गिड़गिड़ाया हो । रिक्वेस्ट की हो कि इस बारे में किसी से न कहे ! मगर मत्या भला इतनी बड़ी गलती माफ करने वाली कहां थीं ?
" जैकी कहता चला गया ---- " यकीनन उसके बाद सत्या उसके हाथ में पेपर छीनकर भागी ! चाकु खोले हमलावर उसके पीछे दौडा ।

यह वारदात साढ़े आठ और नौ बजे के बीच का है । हमला करने का मौका हत्यारे को टैरेस पर मिला । तब तक पेपर सत्या की मुट्ठी में ही था । कम से कम पहले हमले के बाद ये उससे छीना गया । "
" अगर पेपर पर लगा खुन सत्या का है तो यही कहानी कह रहा है ।
" मैं जैकी से सहमत होता बोला -..- " लेकिन चन्द्रमोहन के हाथ कहा से लगा ? "
" वह पता लग जाये तो हत्यारा बेनकाब हो जायेगा । "
"मतलब"
“ सीधी सी बात है । यही वह सुबुत है जिसके बारे में चन्द्रमोहन मुझे फोन पर बताना चाहता था । सुबूत अपने आप में हत्या का कारण है और चन्द्रमोहन जानता था कि ये उसे कहां से मिला ? इस बीच चन्द्रमोहन से कोई गलती हो गया । उसी का खामियाजा भुगतना पड़ा इसे । "
" काश ! चन्द्रमोहन फोन पर एकाध लफ़्ज और बोल पाता ।
" प्रिंसिपल ने कहा ---- " हद है । पेपर आउट हो रहे थे । हिमानी मैडम से पुछा जाना चाहिए कि उसके द्वारा तैयार किया गया पेपर किसी और के हाथ में कैसे पहुंचा ? "
" उससे पहले मुझे तलाशी की कार्यवाही पूरी करनी होगी । " कहने के साथ जैकी ने लाश की बाई जेब में हाथ डाला । वापस आया तो इस बार भी उसके हाथ में एक कागज था ।

सबके दिल बकायदा धक - धक की आवाज करके बजने लगे । जैकी ने कागज खोला , और ये सच है , उस क्षण मेरा दिल तक धड़कना भूलकर कागज को देखने लगा ।

टेढ़े - मेढ़े अक्षरों में लिखा था ---- CHALLENGE
 
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