भाग २
विलासकुमार अपने भांजे सूरजकुमार के साथ खेतो में दिन भर मेहनत कर के वापस घर की ओर निकल पड़ता है। रास्ते में उसे गांव का एक आदमी मिलता है फिर उसके साथ बाते करने लगता है।
मामा - ऐसा करो सूरज तुम घर चले जाओ मुझे थोड़ी देर होगी।
सूरज - ठीक ही मामाजी और में घर की और निकल पड़ा।
में घर पहुंच कर साइकिल को दीवार से लगाकर घर के अंदर जाने लगा
तबी सूरज के कानों में सिटी की मधुर आवाज गूंजी ,,, वह आवाज की तरफ चलाया गया। जैसे उसने देखा वहा का नजारा देखकर एकदम दंग रह गया,,,, इस समय जिस नजारे से उसकी आंखें चार हुई थी उसे देखते ही उसके धोती में उसका सोया हुआ लंड़ मचलने लगा,,,,,,, बस तीन चार कदम की ही दूरी पर मामी अपनी साड़ी को कमर तक उठाकर बैठकर मुत रही थी,,, और उसकी बुर में से आ रही मादकता भरी सिटी की मधुर ध्वनि साफ-साफ सूरज के कानों में पड रही थी,,,,
मामी की नंगी गांड को देखकर सूरज के तन बदन में आग लग गई,, उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,, पहली बार वह अपनी मामी की मदमस्त गोलाकार गांड के भरपूर घेराव को देख रहा था,,, सूरज ने अभी तक अपनी मामी के बदन को वस्त्र के ऊपर से ही देखा था। लेकिन आज गलती से अपनी मामी के नंगे बदन का दीदार हो गया। रघु प्यासी आंखों से अपनी मामी की नंगी खूबसूरत गांड को देख रहा था,,,
सूरज वहा से मुड़ना चाहता था पर उसकी आंखों के सामने बेहद कामोत्तेजना से भरपूर द्श्य नजर आते ही वह सब कुछ भूल कर अपनी मामी की बड़ी-बड़ी नंगी गोलाकार गांड को देख रहा था उसे साफ नजर आ रहा था,,, कि उसकी मामी घर के पीछे बैठकर मुतने का आनंद ले रही है,,, मामी की बड़ी बड़ी गांड के बीच की दरार सूरज को साफ नजर आ रही थी,,, सूरज इस समय अपनी मामी की बड़ी बड़ी गांड देख कर उसकी गहरी पतली लकीर के अंदर अपने आप को पूरी तरह से डूबा देना चाहता था,,, सूरज का दिल जोरों से धड़क रहा था।
ऐसा लगता था जैसे की मामी को बहुत देर से और बहुत जोरों की पेशाब लगी हुई थी क्योंकि अभी तक उसकी बुर में से मधुर सिटी की ध्वनि सुनाई दे रही थी।,,, सूरज को चुदाई का अनुभव बिल्कुल भी नहीं था लेकिन फिर भी इस तरह का कामुकता भरा दृश्य देखकर उसका मन हो रहा था कि पीछे जाकर अपनी मामी की बुर में पूरा लंड डालकर चुदाई कर दे,,, सूरज के धोती में काफी हलचल मची हुई थी। लंड बार-बार अपना मुंह उठाकर धोती से बाहर आने की कोशिश कर रहा था और सूरज बार-बार उसकी इस कोशिश को नाकाम करते हुए उसे धोती के ऊपर से पकड़कर नीचे की तरफ दबा दे रहा था,,,,
इस तरह से पेशाब करके मामी को बेहद राहत का अनुभव रहा था दिन भर घर में जादा काम करके के कारण उसकी बुर में पानी का जमाव हो गया। घर में उसके सिवा दूसरा कोई भी ना था। इसी लिए बड़े आराम से घर के पीछे बैठकर पेशाब कर रही थी,,,, लेकिन अब उसकी टंकी पूरी तरह से खाली हो चुकी थी वह उठने ही वाली थी कि तभी उसे अपने पीछे हलचल सी महसूस हुई और वह पलट कर पीछे देखा। पीछे नजर पड़ते ही वह एकदम सकपका गई,,, सूरज को ठीक अपने पीछे खड़ा हुआ देखकर....
और वह भी इस तरह से आंखें फाड़े अपनी तरफ ही देखता हुआ पाकर वह एकदम सन्न रह गई,,,, और झट से खड़ी होकर अपनी साड़ी को तुरंत कमर से नीचे छोड़ दी।
सूरज भी एकदम से घबरा गया,,, वह सोच रहा था कि अपनी मामी को पेशाब करने से पहले ही वह इस बेहतरीन दृश्य को नजर भर के देख लेने के बाद वहां से दबे पांव चला जाएगा,,,, लेकिन ऐसा हो नहीं पाया था। मामी के इस तरह से अपनी साड़ी कमर तक उठाकर अपनी बड़ी बड़ी गांड दिखाकर मुतने में जो आकर्षण था उसमें उसका भांजा पूरी तरह से बंध चुका था,,, और वहां से अपनी नजरें हटा नहीं पा रहा था और ना तो अपने कदम ही पीछे ले पा रहा था लेकिन एकाएक अपनी मामी को इस तरह से पीछे मुड़कर देखने की वजह से उसकी चोरी पकड़ी गई थी।
मामी अपनी साड़ी को दुरुस्त करके अपनी जगह पर खड़ी हो चुकी थी,,, अपने भांजे की ईस हरकत पर वह काफी क्रोधित नजर आ रही थी,,, पर वह गुस्से में बोली।
यह क्या हो रहा था सूरज,,,? तुम्हें शर्म नहीं आती चोरी छुपे इस तरह से मुझ को पेशाब करते हुए देख रहे हो,,,
नहीं नहीं मैं ऐसी कोई बात नहीं मुझे कुछ आवाज आइ तो में उस आवाज के पीछे आ गया।
और,,,,, और क्या मुझे इस तरह से पेशाब करता हुआ देखकर तु चोरी छुपे मुझे देखने लगा,,,, यही ना,,,
नहीं नहीं यह गलत है,,,, ये सब अनजाने में हुआ,,,,
मैं सब अच्छी तरह से समझती हूं अगर अनजाने में होता तो तू यहां से चला जाता युं आंखें फाड़े,,, मेरी,,,,( मामी के मुंह से गांड शब्द निकल नहीं पाया,,) देखाता नहीं,,,,
नहीं नहीं ऐसा क्यों कह रही हो मामी,,,
मुझे तेरी कोई सफाई नहीं सुनना,,,,, तू चला जा यहां से,,, मुझे यकीन नहीं होता कि तु इस तरह की हरकत करेगा,,
लेकिन मामी मेरी एक बार,,,,,बा,,,,,,(अपने भांजे की बात सुने बिना ही पर उसकी बात को बीच में ही काटते हुए गुस्से में बोली)
तुझे बचपन से हमने पाल पोस बड़ा किया इसका यह सिलाह दिया। बस तू यहां से चला जा,,,,
(सूरज समझ गया कि उसकी मां समान मामी ज्यादा गुस्से में है आखिरकार उसने गलती भी तो इतनी बड़ी की थी... वह मुंह लटका कर उदास होकर वहां से चला गया,,, मामी अभी भी पूरी तरह से गुस्से में थी,,, वह शायद अपने भांजे सूरज के द्वारा दी गई सफाई पर विश्वास भी कर लेती अगर उसकी नजर उसके धोती में बने तंबू पर ना गई होती तो,,, अपने भांजे के धोती में बने तंबू को देखकर वह समझ गई कि वह काफी देर से उसे पेशाब करता हुआ देख रहा था,, और उसे देखकर काफी उत्तेजित भी हो चुका था,,,,इस बारे में सोच कर मामी को काफी शर्म महसूस हो रही थी,,,, उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसका बेटे समान भांजा इस तरह की हरकत कर सकता है,,, यह सोचते सोचते घर के अंदर चली गई।
शाम ढलने लगी तो विलास बाते खतम कर के अपने घर कि तरफ जाने लगी,,
घर पहुंच कर देखा सूरज बाहर खाट पर बैठा हे। विलास सूरज के पास जाके बैठ जाता है।
मामा - मंगल ओ मंगल जरा पानी तो ला प्यास लगी हे।
मामी - बाहर आ के मामा को पानी देती हे।
में मामी से नजर नहीं मिला पा रहा था। मुझे बाहोंत शर्म महसूस हो रही थी।
मामा पानी पीते पीते
मामा - मंगल इस बार धान की ओर गन्ने की फसल अच्छी आयी हे। इस साल अच्छा मुनाफा होगा। तो हम गौरी बिटिया की शादी धूम धाम से करेंगे।
मामी - हा बिटिया की भी शादी की उमर हो गई है।
इस साल शादी करनी ही होंगी।
मामा - तुम चिंता मत करो में संभाल लूंगा।
बिटिया कहा है।
मामी - वह अपने सहेली के पास गयी हे। आप को भूख लगी होगी आप थोड़ा इन्तजार किजिए में थोड़ी देर में खाना बनाती हू।