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"बस करो और कितना सजोगी" पिछले घण्टेभर में ये पाँचवी बार था जब मेरे पति राकेश ने मुझे टोका था।
"तो कैसी लग रही हूँ मैं?" ड्रेसिंग टेबल से पलटकर मैंने चहकते हुए पूछा। "आज मैंने बहुत तैयारी की है"
"तुम बहुत सुंदर लग रही हो माधवी, ये हरी साड़ी तुमपर खिल रही है" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, मुझे उनकी आंखें उत्साह से चमकती नज़र आती हैं।
"पर मेरा पेट बिल्कुल सही नही है, बेहद मरूड उठ रही है और बार-बार इच्छा हो रही है कि मैं फिर से फ्रेश होने चली जाऊँ" मैंने मायूसी से अपना पेट पकड़ते हुए कहा।
"टैबलेट खाई है ना दोपहर की?" उन्होंने पूछा।
"हाँ" मैंने दोबारा शीशे में खुद को निहारते हुए जवाब दिया और उसमें अपने अक्स को देख मुस्कुरा जाती हूँ।
"चलो अब निकलो वरना रिसेप्शन में देरी से पहुँचोगे" राकेश ने बेडरूम का दरवाजा खोलते हुये कहा और बाहर निकल गये।
"मोनू ने छाता, पानी की बोतलें कार में रख ली हैं, बारिश का मौसम है तो गाड़ी ध्यान से चलाना" मैं जब हॉल में आई तो राकेश ने मुझे समझाने लगे।
"इस शेरवानी में मोनू कितना अच्छा लग रहा है" कहकर मैं खुद को रोक नही पाती और अपनी दायीं आँख से काजल निकाल बेटे के माथे पर लगा देती हूँ।
"थैंक्स माँ" मोनू शेरवानी के दुपट्टे को बड़े स्टाइल से अपने कंधे पर चढ़ाते हुए चहका। "कुछ पिक्स ले लेते तो फेसबुक पर अपलोड करता"
"उसके लिये अभी टाइम नही बेटा, चार घण्टे का सफर तय करना है तुम्हें" राकेश ने कहा और हम तीनों पोर्च में चले आये। "बीच-बीच में फोन करते रहना और अपना ख्याल रखना"
"जी जरूर" मैं अपने पेट को दबाते हुये बोली, मुझे दोबारा जोरों की मरूड उठी थी पर मैंने उसकी कोई परवाह नही की क्योंकि मैं किसी भी हालत में मेरी प्यारी भतीजी रीमा का रिसेप्शन मिस नही करना चाहती थी।
"बाय पापा" मेरे कार में गियर डालते ही मोनू अपना हाथ हिलाते हुये चिल्लाया, मैंने भी मुस्कुराकर राकेश को देखा और कार मेन गेट से बाहर निकाल दी।
पिछले चार-पाँच दिनों से बहुत बारिश हो रही थी और मैं ऐसे खतरनाक मौसम में भी बेटे को साथ लेकर हाईवे पर कार चला रही थी, अगर मेरी बेटियों को आज सुबह ही उनकी एकेडमी के टूर पर नही निकलना होता तो मैं दो-एक दिन पहले रिसेप्शन में शामिल हो जाती।
"मोबाईल से खेलना छोड़ो मोनू और ये खिड़की ठीक से बंद करो" अभी मैंने बेटे से कहा ही था कि तभी बारिश की तेज बूंदे कार के शीशे को धुंधला करने लगती हैं, मैंने फौरन वाईपर चालू किया और कार की रफ्तार भी कम कर दी।
"वीरपुर वन नाइनटी सिक्स किलोमीटर" मोनू ने मुझे बताया। "चार घण्टे से ज्यादा लग जाएंगे माँ"
"बेटा अभी दो बज रहे हैं, हम रात आठ बजे तक भी वहाँ पहुंचे तो कोई बात नही" मैंने जवाब दिया जिसे सुनने के बाद मोनू फिर से मोबाईल चलाने में व्यस्त हो जाता है।
बेटियों को टूर पर विदा कर आज मैं जरा भी आराम नही कर पाई थी बल्कि ब्यूटी पार्लर और घरपर खुद को सजाने में मैंने दोपहर का एक बजा लिया था। मुझे पाँच दिनों से जमकर लूसमोशन हो रहे थे पर फिर भी मैंने बेवकूफी दिखाते हुए बहुत भारी और महँगी साड़ी पहनी थी। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था क्योंकि मुझे एकाएक गैस पास करने की जबरदस्त इच्छा होने लगी थी।
मैंने आँखों की किनोर से मोनू को देखा तो शरम से लाल पड़ गयी, बेटे की मौजूदगी में कैसे गैस पास करूँ मुझे कुछ समझ नही आ रहा था और ऊपर से कार की खिड़कियां भी बंद थीं, तुरंत मेरा मन किया कि गाड़ी वापस घर की तरफ घुमा लूँ।
मैंने कुछ गहरी सांसें लीं क्योंकि अब मैं खुद को रोक नही सकती थी, अपने-आप मेरा दायाँ चूतड़ ऊपर उठ गया। मुझे डर था कि गैस पास करने की आवाज़ से मुझे बेटे के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा और हुआ भी वही, यहाँ मैंने गैस पास करनी शुरू की और वहाँ मोनू चौंककर मेरे चेहरे को देखने लगा।
"छि: माँ" उसने अपनी नाक सिकोड़कर कहा पर मैं सामने सड़क को देखते हुए गैस पास करती रही। मेरी मजबूरी थी कि मुझे रुक-रुककर ऐसा करना पड़ रही थी क्योंकि मैं लूसमोशन्स से पीड़ित थी और अगर जल्दबाजी करती तो बेवजह मेरी पेंटी भी खराब हो सकती थी।
"मान जाओ" इस बार मोनू ने अपनी नाक को उंगलियों से दबाते हुए कहा।
"सॉरी ... सॉरी बेटा" मैं शरम से बस इतना ही कह सकी। मेरी परेशानी सिर्फ यहीं खत्म नही हुई थी, कार के अंदर बेहद बुरी बदबू फैल गयी थी।
"मैं खिड़की खोल रहा हूँ, उल्टी ... उल्टी हो जाएगी माँ" मोनू जोर से चिल्लाया और खिड़की का काँच नीचे करने लगता है।
"बेटा प ... पानी" मैंने हकलाते हुये कहा, पल में बारिश की बूंदे उसके बायें कंधे और जांघ को भिगोने लगी थी। "अब दोबारा ऐसा नही होगा, खिड़की बंद कर लो मोनू"
सच कहूँ तो अचानक मेरी आँखें नम होने लगी थीं, माना गैस पास करना एक स्वाभाविक क्रिया है और मेरी जगह अगर मेरे बेटे ने गैस पास की होती तो यकीनन मुझे इससे कोई दिक्कत महसूस नही होनी थी पर मैं उसकी माँ थी, मेरी शरम का तो जैसे कोई पार ही नही था।
"आई एम सॉरी" मैंने फिर से माफी मांगी क्योंकि खिड़की बंद करने के बाद अपनी नाक को भींचे बैठा मेरा बेटा मुझे घिनौनी नजरों से घूर रहा था।
"कोई बात नही" वो धीरे से बुदबुदाया।
"मुझे लूसमोशन हो रहे हैं" मैंने उसे बताया। "मेरी हालत अच्छी नही है"
"ओह!"
"हाँ बेटा, पाँच दिन हो गये"
"मुझे पता नही था माँ, डॉक्टर को दिखाया?"
"हम्म और दवाई भी चल रही है"
"चलो कोई बात नही माँ, तुम रिलेक्स रहो" मुस्कुराकर मोनू ने मेरी बायीं जांघ थपथपाई।
"मैं कोशिश करूँगी की ऐसा दोबारा ना हो" शरमाते हुये मैंने कह तो दिया था पर जानती थी कि कुछ ही देर में मेरी बात झूठ साबित हो जानी थी।
इतने में टोल प्लाज़ा आ गया, मैंने रसीद कटवाई और जब हम टोल से सात आठ किलोमीटर आगे आ गये तब मुझे याद आया कि मैं वहाँ आराम से फ्रेश हो सकती थी। खैर अब क्या किया जा सकता था, मैं ड्राइव करती रही।
हम घर से करीबन साठ किलोमीटर दूर पहुँच चुके थे और इसके आगे पहाड़ी इलाका शुरू होने वाला था, मैं तो बाहर के खूबसूरत नजारों को देख नही सकती थी पर मोनू खूब एन्जॉय कर रहा था। उसने कई झरनों की तस्वीरें लीं और बार-बार ज़िद करता कि मैं कुछ देर के लिये कार को रोक लूँ।
"ये जंगल है बेटा और इस बारिश में हम कार से बाहर भी नही निकल सकेंगे" मैंने उसे समझाया।
"छाता तो है ना माँ" उसने पिछली सीट से छाता उठाते हुए कहा। "आगे के किसी झरने पर, प्लीज माँ"
"सुनसान सड़क है मोनू, तुम्हारे पापा साथ होते तो हम पक्का रुकते" मैं उसे दोबारा समझाते हुये बोली और तभी फिर से मेरा हाथ गियर से हट मेरे पेट को दबाने लगता है।
लगभग दस किलोमीटर बाद मेरी इच्छा हुई कि अब मुझे किसी भी सूरत में फ्रेश होना ही पड़ेगा क्योंकि मैं दूसरी बार अपने बेटे के सामने शर्मिंदा नही होना चाहती थी पर दिक्कत ये थी कि उस घने जंगल मे फ्रेश होने के लिये मुझे कोई होटल या ढाबा कहाँ मिलता।
"मुझे घर से आना ही नही चाहिये था" मैं रोते हुये बोली, मेरी सहनशक्ति अब पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। "मुझे फ्रेश होना है बेटा"
"पर यहाँ कहाँ माँ?" मेरा रोना देख मोनू ने घबराते हुए पूछा और तुरंत मेरी ओर मुड़कर बैठ गया।
"बेटा ... बेटा अपनी नाक बंद ... सॉरी! उफ्फ" मैं अपने जबड़े भींचते फुसफुसाई और मजबूरी होकर दोबारा गैस पास करने लगी। इस बार आवाज पहले से ज्यादा तेज हुई, मैं तो शरम से पानी-पानी हो गयी थी।
"मुझे कोई दिक्कत नही, तुम कर लो आराम से" मोनू ने फिर से मेरी बायीं जांघ को थापथपाते हुये कहा और इसके बाद मेरे गालों पर आये आँसू पोंछने लगा।
"बेटा मैं कार रोकती हूँ, तुम मुझे पानी की बोतल देना" मैंने कार को साइड में लगाते हुए कहा और मेरी तरफ का गेट खोल दिया ताकि बदबू कार से बाहर निकल जाये।
"मैं भी साथ चलता हूँ माँ" मोनू ने पानी की बोतल और छाते को पकड़ते हुए कहा।
"नही, तुम यहीं बैठो" मैंने उसे समझाया। "लाओ बोतल दो मुझे"
"माँ तुम भीग जाओगी और वैसे भी मैं तुम्हें अकेले बाहर नही जाने दूँगा" मोनू ने अपनी तरफ के दरवाजे को खोलते हुए कहा।
"तुम ... तुम समझते क्यों नही, जगह कितनी सुनसान है कुछ अंदाजा भी है है तुम्हें" मैं गुस्से से चिल्लाई। "मैं अपनी वजह से तुम्हारी जान खतरे में नही डाल सकती मोनू"
"चाहे तुम्हारी जान मुसीबत में पड़ जाये" वो भी गुस्से से बोला और फिर एकाएक उसकी आवाज रुआँसी हो जाती है। "तुम्हें मेरी कसम माँ, अकेली मत जाओ"
"ठीक है चलो लेकिन फिर हम यहीं से वापस घर लौट जाएंगे" मैंने उसकी नम आंखों को देखते हुए कहा।
"कोई नही नही लौटेगा" कहकर मोनू ने छाता खोला और कार से बाहर निकल मेरी तरफ चला आया। "गाड़ी लॉक करो, हम किसी पेड़ या झाड़ी के पीछे चलेंगे"
कार से नीचे उतर मैंने उसे लॉक किया, मेरे बेटे ने मेरी कमर को थाम मुझे खुद से सटा लिया था ताकि मैं बारिश से भीग ना सकूँ। सड़क से नीचे उतर हमें सिर्फ छोटी-मोटी झाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं, पेड़ थे पर उनतक पहुँचना नामुमकिन था।
"तुम फ्रेश होना, मैं छाता पकड़े रहूँगा माँ"
"नही बेटा, तुम ... तुम दूर खड़े हो जाना"
"पागल मत बनो माँ, हम रिसेप्शन में जा रहे हैं"
"वो ठीक है बेटा पर मैं तुम्हारे सामने पोट्टी ..." कहते-कहते मैं रुक गयी, शरम के मारे मेरा बुरा हाल था।
"दूर कहाँ खड़ा रहूँगा माँ? तुम्हें लगता है कि यहाँ खुले में तुम्हें कोई प्राइवेसी मिलेगी?" मेरी शरम की परवाह किये बगैर मोनू में गंभीर लहजे में पूछा। "अगर मेरे साथ ऐसी दिक्कत होती तब भी क्या तुम ऐसे ही शरमाती?"
"मैं माँ हूँ तुम्हारी, शरमाऊँ नही तो क्या करूँ?" मैं दबी आवाज में बोली और अपनी गर्दन मोड़कर मोनू के चेहरे को ताकने लगी, मुझे आज पहली बार महसूस हुआ था कि मेरा बेटा अब समझदार होने लगा है।
"चुपचाप पोट्टी करो, हाथ धोओ और कार में वापस चलो" मोनू ने उसी गंभीर लहजे में कहा। "मेरे खयाल से ये जगह सेफ है माँ"
"बेटा मेरी बात मानो, मुझे सूसू करनी होती तो बात अलग थी बल्कि मुझे लूसमोशन्स हैं ... तुम्हें घिन आयेगी और मैं भी ठीक से नही कर पाऊँगी" मैं उसकी आंखों में झांकते हुए बोली, जाने क्यों मेरी शरम अचानक मुस्कुराहट में बदल गयी थी। शायद ये मेरे बेटे की गंभीर बातों और उसकी समझदारी का नतीजा था कि मेरा डर, घबराहट और झिझक काफी हद तक कम हो गयी थी।
"मुझे कोई दिक्कत नही होगई माँ, तुम बैठो फटाफट ... इस सुनसान जगह पर ज्यादा देर रुकना ठीक नही होगा" कहते हुए मोनू ने मेरी पीठ सहलाई। "मुझपर भरोसा है ना तुम्हें?"
"मोनूऽऽ" बेटे के सवाल को सुन मैंने फौरन उसे अपनी छाती से चिपका लिया और उसके गाल चूमने चाहे।
"ये प्यार बाद में कर लेना माँ, हम भीग जायेंगे" कहकर वो जोर से हँसा।
"हँस लो बेटा, तुम भी किसी दिन माँ के चंगुल में फँसोगे" बोलकर मैं खुद भी हँसने लगी, चाहे बनावटी ही सही पर मेरी शरम को कम करने के लिए मेरी ये हँसी बहुत जरूरी थी।
"लगता है मुझे खुद तुम्हारी साड़ी ऊपर उठानी पड़ेगी माँ क्योंकि तुम्हें तो ना जगह की कोई फिक्र है और ना हमारी" मोनू थोड़ा झुंझलाते हुए बोला और उसकी बात सही भी थी, हम जितनी देर करते हमें उतना ही खतरा होता।
"लो पकड़ो मेरी साड़ी" मैंने नीचे झुक अपनी साड़ी को पेटीकोट समेत जांघों तक ऊपर उठाते हुये कहा। "बेटा महँगी साड़ी है, मिट्टी वगैरा ना लगे"
"तुम भी माँ, ऐसी क्रिटिकल सिचुएशन में भी तुम्हें इस साड़ी की फिक्र है" नाराज़गी भरे लहजे में ऐसा कहकर उसने पानी की बोतल नीचे रखी और फिर मेरी साड़ी को सीधे मेरी कमर तक ऊपर उठा देता है। "अब उतारो पेंटी और धीरे से नीचे बैठ जाओ"
"हट बेशर्म, इधर-उधर देखो" बेटे की हरकत और बात पर चौंकाते हुये मैंने उसे डाँटा।
"तुम्हारी जगह अगर निधि या नम्रता होती ना माँ, तो वो भी इतना नही शरमातीं जितना तुम शरमा रही हो ... अरे हम परिवार हैं, कोई अजनबी नही" मोनू फिर गंभीरता से बोला और अपने-आप मेरे अंगूठे मेरी पेंटी की इलास्टिक में फंस गए।
"माँ को माफ करना बेटा" मैंने भारी गले से कहा और पेंटी घुटनों तक खींच नीचे बैठने लगी, मेरे जमीन पर उकडू बैठते ही मोनू साड़ी को अपनी कलाई पर लपेटने लगा ताकि उस पर गीली मिट्टी ना चिपक सके।
"उफ्फऽऽ" मैंने राहत की लंबी आह भरी, बिना किसी रुकावट के मेरी गैस पास जो होने लगी थी और इसके साथ ही मैंने मूतना भी शुरू कर दिया था। मेरा दिल मानों धड़कना छोड़ देता हैं जब एक बेहद घिनौनी और तेज आवाज के साथ बिल्कुल पानी सी पोट्टी मेरी गांड के छेद से जमीन पर फैलने लगती है। मैं फूट-फूटकर रोने रो पड़ी और पैर गंदे हो जाने के डर से उन्हें तुरंत चौड़ा करने लगी।
"कोई बात नही माँ, कोई बात नही" मोनू नीचे झुककर मेरे बायें कान में बोला। "थोड़ा उठो और जगह बदल लो"
"बस हो ... हो गया, पानी की बोतल ... बोतल ..." मैं धीरे से बुदबुदाई और पास रखी बोतल को कांपती उंगलियों से पकड़ने की कोशिश करने लगी, उस खुले वातावरण में चारों तरफ बदबू ही बदबू फैल गयी थी।
"माँ प्लीज" मोनू दोबारा मेरे कान में बोला पर इस बार उसकी खुद की आवाज रुआँसी थी। "मुझपर भरोसा है ना तुम्हें?"
"बेटा मैं शरम से मर जाऊँगी, मुझे माफ कर दो" कहते हुये अचानक मुझे चक्कर से आने लगे और मैंने उसके दायें पैर में अपनी कोहनी फंसा ली।
"माँऽऽ" मोनू जोर से चिल्लाया और छाते को फेंक अपना खाली हाथ मेरी छाती पर लपेट लिया। "तुम घबराओ नही मैंने पकड़ लिया है तुम्हें"
"मोनू ... मोनू बेटा, मुझे ... मुझे चक्कर आ रहे हैं" मैं हाँफते हुए बोली।
"तुम थोड़ा आगे सरकने की कोशिश करो माँ, मैं हूँ तुम्हारे पास" कहकर वो खुद मुझे आगे सरकाने में मदद करने लगा मगर तभी दोबारा मेरी गांड के छेद से तेज बौछार की तरह पानीदार पोट्टी जमीन पर फैलने लगी। "सॉरी बेटा ... सॉरी"
"ओके ओके, अब अपने पैर आगे बढ़ना माँ जैसे पोंछा लगाते हुए बढ़ाती हो" उसने मुझे समझाया और सिर्फ एक हाथ से मुझे हवा में टांग लिया। तेज़ बारिश से हमदोनों ही भीग रहे थे खासकर मेरा बेटा क्योंकि उसने मुझे अपने शरीर के नीचे समेटे सा लिया था।
"हो गया ... हो गया बेटा" मैंने छाती से चिपके उसके हाथ को थपथपाते हुए कहा, जोर की ताकत लगाने से मोनू भी हाँफने लगा था।
"बोतल का ढक्कन खोलो माँ और दो घूँट पानी पियो ... पानी की फिक्र मत करना, कार में और बोतलें रखी हैं" उसने मुझे समझाया और मैंने बोतल उठा ली। "हाँ पियो दो घूँट"
"सांस तो ले लूँ बेटा, मुझ में बिल्कुल जान नही बची" मैंने गहरी सांसें लेते हुये कहा और एक बार फिर मेरी गैस पास हुई, मेरी चूत से पेशाब बही और तीसरी बार मेरी गांड के छेद से पोट्टी बाहर निकलने लगी। "बस अब नही, अब हो गया मेरा"
"हो गया तो ठीक है पर अभी बैठो ऐसे ही, मैंने कार को देख लिया है ... हम सेफ हैं" उसने मेरे सिर को चूमकर कहा, हवा में फैली बेहद बुरी गंध से मानो उसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा था। "इतना तो मैंने पूरे बचपन मे तुम्हें नही सताया होगा, जितना तुमने एक बार में मुझे सता लिया माँ"
"तुम बहुत समझदार हो गये हो मोनू, मेरी सोच से भी कहीं ज्यादा समझदार" मैंने अपनी गर्दन पीछे मोड़कर मुस्कुराते हुए कहा, मेरी आँखों मे झाँक वो खुद भी मुस्कुरा जाता है।
"वैसे तुम्हारे पौंद बहुत गोरे हैं माँ" कहकर वो जोर से खिलखिलाया, उसकी शैतानी भरी बात सुन पहले तो मैं चौंकी फिर उसे आँखें दिखाकर डाँटने लगी।
"शरम नही आती मोनू, बहुत हुआ" मैंने बोतल का ढक्कन खोलते हुए नाराज़गी से कहा और जल्दी-जल्दी अपनी गांड के गंदे छेद को धोने लगी।
"एक सच बात कहूँ माँ?" मोनू ने पूछा, अपनी गांड का छेद साफ करते हुए बेटे से बात करना अचानक मुझे अजीब सा रोमांच महसूस करवाने लगा था।
"कहो" मैं धीमी आवाज़ में बोली।
"तुमने मुझे पैदा किया, पाल पोसकर इतना बड़ा किया ... मेरी बहुत सी अच्छी यादें जुड़ी हैं तुम्हारे साथ पर आज के ये पल मैं लाइफ में कभी नही भूल पाऊँगा माँ" मोनू बोलते-बोलते रुका। "तुम्हारी जगह अगर कोई और होता ना मेरे साथ, तो मेरी हिम्मत भी ना जाने कबकी टूट चुकी होती ... मुझपर ऐसे ही भरोसा बनाये रखना माँ, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ"
एक आखिर बार अपनी गांड के छेद को पानी से धोकर मैं बिल्कुल सीधी खड़ी हो गयी, अब तो मुझे सचमुच कोई परवाह नही थी कि मेरा बेटा मेरे नंगे चूतड़ों को देख रहा होगा और फिर मैं बिना अपनी पेंटी ऊपर चढ़ाये साड़ी को पेटीकोट के साथ दोनों हाथों से पकड़ने लगी। कुछ ठहराव के बाद मैं बिना किसी झिझक के अपने बेटे की तरफ मुड़ी और साड़ी अपने पेट तक ऊपर उठा दी।
"माँ" मेरी इस बेशर्म हरकत को देख मोनू फौरन पलट गया।
"तुम्हारी माँ के शरीर का ये अंग बचपन में तुम्हारे नाना-नानी ने देखा और जवानी के बाद सिर्फ तुम्हारे पापा ने, तुम चाहो तो आज तुम भी इसे देख सकते हो मोनू क्योंकि मुझे तुमपर खुद से ज्यादा भरोसा है" मैं बेहद गंभीरता से बोली, अपने बेटे को सिर्फ जांचने भर के लिये मैंने ये नीच कदम नही उठाया था अगर वो वापस मेरी तरफ पटलता भी तो भी मैं अपनी साड़ी नीचे नही करती।
"साबुन शायद कार में रखा है, अब चलो माँ" मोनू कांपते हुये बोला और बिना मेरी ओर देखे छाते को जमीन से उठने लगता है, मैंने भी अपनी पेंटी को कमर तक ऊपर चढ़ाया और साड़ी नीचे कर बेटे के पीछे चलने लगी। हम दोनों ही पूरी तरह से भीग चुके थे अब छाते के बचाव की हमें कोई जरूरत नही रही थी।
कार को अनलॉक कर मोनू ने साबुन खोजा पर उसकी जगह शैम्पू का पाउच उसे मिल गया, मेरे हाथ धुलाते हुये वो बिल्कुल शांत था मेरे चेहरे को देख तक नही रहा था। अब इस भीगी हालात में हमारा रिसेप्शन अटेंड करना नामुमकिन था तो मैंने राकेश को कॉल कर कार घर की तरफ मोड़ ली।
"अभी मेरा मन नही भरा, मुझे एक आद बार और पोट्टी जाना पड़ सकता है बेटा" मैं हमारे बीच पनपे तनाव तो तोड़ते हुए बोली और जोर से खिलखिलाई। "तुम्हें माँ के गोरे पोंद दोबारा देखने पड़ेंगे"
"माँ" मेरी बात सुन मोनू भी हँसने लगा।
"मेरी इजाजत के बावजूद तुम पीछे क्यों नही मुड़े थे बेटा?" मैंने उससे पूछा।
"मैं ... मैं तुम्हारे उस अंग को नही ... नही देख सकता माँ" जवाब देते हुए मोनू हकला जाता है, साथ हो वो शरमा भी गया था।
"पर क्यों, बात तो हमारे भरोसे की थी ना?" मैंने दूसरा सवाल पूछा।
"पर माँ, क्या इससे पापा का भरोसा नही टूटता?" मोनू ने उल्टा मुझसे सवाल किया और मैं एकाएक सोच में पड़ गयी।
"तुम्हें क्या लगता है, जो अभी तुमने मेरी मदद की उसे मैं तुम्हारे पापा से छुपाऊँगी?"
"नो वे, तुम ... तुम इस बारे में उनसे कुछ नही कहोगी, प्लीज माँ"
"बताना तो पड़ेगा बेटा, नही बताया तब क्या उनका भरोसा नही टूटेगा?"
"पर हमने ऐसा कोई गलत काम किया ही नही माँ, जिससे उनका भरोसा टूटे"
"अच्छा, तुमने अपनी माँ के पोंद नही देखे? फिर तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे पोंद गोरे हैं?" पूछते हुये मैं शरारत से मुस्कुराई, जाने क्यों अपने बेटे को सताने में मुझे अजीब सा सुख महसूस होने लगा था।
"सॉरी, मैंने कंट्रोल करने की कोशिश की थी पर ..." मोनू बोलते-बोलते रुक गया और अपनी तरफ की खिड़की से बाहर देखने लगता है।
"पर क्या? बताओ बेटा, मैं नाराज नही होऊँगी" मैंने उसकी दांयीं जांघ पर हाथ रखते हुए कहा।
"फर्स्ट टाइम किसी फीमेल को इतने करीब से देख रहा था, मैं जानता था कि वो फीमेल कोई अजनबी नही है बल्कि मेरी माँ है पर फिर भी मेरी क्युरीआसटी मुझपर हावी हो गयी और ... और मैं तुम्हारे उन्हें देखने लगा था" मोनू ने घबराते हुये कहा, बेचारा अपनी नई-नवेली उत्सुकता का जुर्म जो कुबूल कर रहा था।
"छुप-छुपकर मेरे चूतड़ तो देख चुके थे पर जब मैंने खुद तुम्हें अपनी चूत दिखानी चाही तब तुम्हें शरम आ गयी थी" मैंने नाराजगी का नाटक करते हुए कहा, पर ये नही जानती थी कि अचानक मेरी भाषा इतनी अश्लील हो जायेगी। मैं तो खुदपर चौंकी ही थी, मोनू तो अपनी सीट पर जैसे उछल पड़ा था।
"वो ... वो ... वो मैं ..." उसने अपने होंठ चबाये, थूक निगला लेकिन मुँह से कुछ बाहर नही निकल सका।
"पानी की कितनी बोतलें बची हैं?" मैंने मन ही मन हँसते हुए पूछा, मैं उसे इतना क्यों सता रही थी मुझे नही पता था पर एक बात तो तय थी कि इसी बहाने मुझे अपने जवान होते बेटे को करीब से जानने का मौका सकता था।
"चार बोतलें हैं माँ" वो धीरे से बुदबुदाया और चोर नजरों से मेरे चेहरे को देखने लगता है, शायद इंतज़ार कर रहा था कि मैं बाकी बची बोतलों के बारे में अब उससे क्या कहने वाली हूँ? उसकी चढ़ती साँसे और कांपती टाँगों को देख मेरे खुद के बदन में सिरहन दौड़ पड़ती है।
"चार ... चार बोतलें हैं माँ" अभी मैं अड़े-टेढ़े मुँह बनाकर हथेली से अपने पेट को बार-बार दबाने का नाटक कर ही रही थी कि मोनू ने अपनी बात को दूसरी बार दोहराया, बोतलों की संख्या पर भी उसने ज्यादा जोर दिया था।
"बस सोच रही थी कि फिर से ऐसी सुनसान जगह पर कार से नीचे उतरना सही नही, अब तो घर पहुँचकर ही कुछ हो सकेगा" मैंने सामने की सड़क पर नजर गड़ाये हुये ही कहा।
"घबराओ मत माँ, मैं हूँ तो तुम्हारे साथ" वो बिना समय गंवाये बोला।
"नहीं बेटा एक बार तुम्हें परेशान कर लिया अब दोबारा नही कर सकती" मैंने फिर से अपने पेट को दबाते हुए कहा, एकाएक मैंने महसूस किया कि मेरे निप्पल कठोर होने लगे हैं और मेरी बेचैनी भी तेजी से बढ़ रही है "फिर से ऐसा करना ठीक भी नही होगा"
"क्या माँ तुम भी" मोनू मेरे तरफ घूम मेरे बायें कंधे को छूकर बोला। "सूसू या पोट्टी को ज्यादा देर तक रोकना अच्छा नही होता"
"पहले तो मेरी मजबूरी थी बेटा पर अब दूसरी बार मैं कैसे?" पूछते हुये मेरी चूत के होंठ फड़फड़ाने लगते हैं, मैं हैरान रह गयी कि अपने सगे बेटे की वजह से मैं उत्तेजित कैसे होने लगी थी?
"सिर्फ एक या दो बार क्यों माँ, मैं तो हजारों बार तुम्हारी मदद करने को तैयार हूँ ... भूल गयी कि हम परिवार हैं, परेशानी में एकदूसरे के काम नही आयेंगे तो कौन आएगा?" उसने मुझे प्यार से समझाया, कार की रफ्तार को कम कर मैंने उसके मुस्कुराते चेहरे को ध्यान से देखा तो मुझे उसकी उत्तेजना का खास कुछ पता नही लग पाया। अपनी उत्सुकता के कारण इस बार मैंने गियर देखने के बहाने चोर नजरों से उसकी टाँगों की जड़ को देखा और शेरवानी के ऊपर तम्बू बनाता उसका खड़ा लण्ड मुझे साफ दिखाई पड़ जाता है।
मैं फौरन दो भागों में बंट गयी, एक पतिव्रता पत्नी जिसने आजतक अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द को कामुकता की नजरों से नही देखा था और एक पापी माँ जो अपने ही सगे जवान होते बेटे की वजह से उत्तेजित हो गयी थी। मेरा बेटा उम्र और रिश्ते दोनों में मुझसे काफी छोटा था, उसकी उत्तेजना उसकी नादानी मानकर भुलाई जा सकती थी पर मुझे तो मानो अब खुद की भी माफी कभी मिल सकती थी।
"कार रोको माँ, कार रोको" मैं अभी अपनी सोच में डूबी थी कि मोनू जोर से चिल्ला पड़ता है।
"क्या हुआ?" घबराकर मैंने कार को साइड में रोकते हुये पूछा और मोनू की खिड़की की तरफ से मैं भी उत्सुकता से बाहर देखने लगी।
"ये सामने की सड़क उस बड़े पेड़ तक गयी है और अगर उस ओर कोई गाड़ी आती है तो भी हम बड़ी आसानी से अपनी कार के अंदर वापस आ सकते हैं" उसने चहकते हुए बताया और चरण पीछे की सीट से पानी की बोतल उठाने लगता था। "चलो माँ वहाँ तुम बिना किसी डर के अच्छे से फ्रेश हो जाओगी"
"न ... नही बेटा, दोबारा कार से उतरने में खतरा हो सकता है" मैंने मन मसोसकर कहा जबकि जाने क्यों ऐसे एकांत में फिर से अपने बेटे के करीब आने की मेरी बहुत इच्छा हो रही थी। "और ... और अभी मुझे पोट्टी आ भी नही रही है"
"ओह!" वो मायूस होते हुये बुदबुदाया और किसी गहरी सोच में डूब गया, मैं चाहती तो कार को वापस हाइवे पर ले जा सकती थी पर मैंने इंतजार किया कि आखिर उसकी सोच कहाँ तक जाती है? और मेरा इंतजार करना सही रहा क्योंकि कुछ पलों बाद अचानक उसकी आँखें चमक उठी थी।
"पोट्टी नही आ रही तो कोई बात नही माँ, थोड़ी देरतक ऐसी ही बैठी रहना" उसने अपने शब्दों को जैसे चबाते हुए कहा। "फिक्र मत करो माँ, ऐसे खाली बैठने से भी कभी-कभी इच्छा हो जाती है"
"हम्म वो तो है" गंभीर होने का नाटक करते हुये बोली। "पर बेटा ऐसे खाली भी माँ से कबतक बैठा जायेगा?
"तुम ... तुम वहाँ चलो तो सही माँ, घर पहुँचने के लिये अभी हमारे पास बहुत समय है" उसने बड़ी उत्सुकता से कहा और फिर मेरे चेहरे को बेहद मासयूमियत से देखने लगता है।
"ठीक है पर मुझे पोट्टी नही आ रही, बाकी तुम चाहते हो कि ऐसे खाली वहाँ बैठी रहूँ तो तुम्हारे लिये बैठी रहूँगी" उसके बालों पर हाथ फेर मैं उसे शब्दों के जाल में फँसाते हुये बोली।
"ओके, मेरे लिये बैठी रहना" कहने के बावजूद उसे समझ नही आया कि वो क्या कह गया है, उसकी खुशी का तो जैसे कोई अंत नही था। वाकई मेरा बेटा मिट्टी का वो कच्चा घड़ा था जो जल्द से जल्द पकने के लिए बेहद उतावला था और मैं उस भट्टी समान जो उसे धीमी आंच पर बहुत ठोस तरीके से पकाना चाहती थी।
"हम्म" प्यार से अपनी गर्दन हिलाकर मैंने कार हाईवे से बायीं तरफ की सीमेंटेड सड़क पर मोड़ दी। मैं इसके लिये सिर्फ ये सोचकर राजी हो गयी थी कि अगर मेरे बेटे की क्युरीआसटी उसकी माँ की नग्नता से मिट सकती है तो इससे हमदोनों को कोई नुकसान नही होगा, बल्कि मुझसे अच्छी सीख उसे और किससे मिल सकती थी? पोर्न तो आजकल सभी नवयुवक देखते हैं पर कभी-कभी उसके परिणाम बहुत घातक और हिंसक भी हो जाते हैं, उन नवयुवकों की नई-नवेली उत्तेजना जब उनसे कंट्रोल नही होती तो आगे क्या रिजल्ट निकलता है हम अखबारों और समाचारों में रोज भारी मात्रा में पढ़ या देख पाते हैं। अपने बेटे के साथ खुद को शामिल करने का एक और मजबूत कारण ये भी था कि वो मुझपर कभी हावी नही हो सकता था और मुझे अपने-आप पर पूरा विश्वास था।
कार को पेड़ के पास रोक नीचे उतरकर पहले मैंने उस जगह का सही से निरीक्षण किया और फिर कार पेड़ की दाहिनी तरफ इस सावधानी से लगाई कि वो हाईवे से दिखाई ना दे सके, पेड़ के सामने और बायीं तरह ऊँची बाड़ लगे खेत थे और पीछे से हमें उस पेड़ का सहारा तो था ही, कुलमिलाकर वो जगह बहुत सुरक्षित और बारिश से हमारा बचाव करने में सक्षम थी।
"पानी की बोतल और टॉवल वगैरा निकाल लो मोनू, हमें यहाँ काफी देरतक भी रुकना पड़ सकता है" मैंने उस गोल घेरे का चक्कर लगाते हुये कहा, जिसके ये खेत थे शायद उसने अपने खर्चे से इस दो-ढाई सौ मीटर की सीमेंटेड रोड को बनवाया था क्योंकि पेड़ के मोटे तने के चारों तरफ की जमीन भी सीमेंटेड थी। मैंने देखा मोनू ने टॉवल पेड़ के नीचे बिछा दी थी और बगल में पानी की बोतल रख अब वो मेरे पास चला आ रहा था।
"अरे तुम यहाँ क्यों आ रहे हो?" मैंने उससे पूछा।
"तुम्हारी मदद नही करूँगा जैसे पहले की थी" उसने जवाब दिया। "याद नही तुम्हें चक्कर आ गए थे"
"हाँ पर अब मैं ठीक हूँ, तुम उस टॉवल पर बैठो और मैं यहाँ बैठूँगी" मैंने पेड़ से पाँच-छह कदम पहले रुकते हुए कहा, आगे का सोच मेरा दिल जोर से धड़कना शुरू हो गया था।
"आर यू श्योर माँ?" उसने दोबारा पूछा।
"हम्म बिल्कुल बेटा और वैसे भी मुझे बस अपनी साड़ी ऊपर उठाकर नीचे बैठना ही तो है, पोट्टी तो मुझे आ नही रही" मैंने हँसते हुये कहा। अचानक घण्टेभर में मैं अपने बेटे के साथ कितनी खुल गयी थी, मुझे खुद पर हैरत भी हो रही थी और अच्छा भी लग रहा था। "तुम बैठो टॉवल पर, मैं भी बैठती हूँ"
"ओ ... ओके!" बुदबुदाकर मोनू ने फौरन पेड़ की ओर छलांग सी मारी, मैं उसकी इस उत्सुकता पर सच में हँस पड़ी। फिर उसके टॉवल पर बैठते ही मैं पलटी और अपनी साड़ी को पेटीकोट समेत अपनी कमर तक ऊँचा उठा दिया, अपनी पेंटी को नीचे सरकाते हुये मेरे मन ने मुझे बुरी तरह कोसा था पर अब मैं हर ग्लानि भाव से आगे निकल चुकी थी।
"क ... क्या हुआ माँ?" मुझे उसी तरह साड़ी को पकड़े खड़े देख मोनू ने हकलाते हुये मुझसे पूछा।
"तुम्हारे बगल में बैठूँगी, मुझे पोट्टी नही करना" मैंने बेटे की तरफ मुड़ते हुए कहा और बिना किसी झिजक के उसके पास चली आयी, ना मैंने अपनी पेंटी ऊपर सरकाई थी और ना नही साड़ी को नीचे किया था। "जगह तो बनाओ बुद्धू, नीचे गीली जमीन पर बैठने से माँ के चूतड़ ठंडे नही पड़ जायेंगे"
"न ... ना बैठो माँ, टॉवल पर बैठो" कहकर मोनू ने आधी से ज्यादा टॉवल मेरे बैठने के लिये छोड़ दी और जिसपर मैं उसी अधनंगी हालत में बैठ भी गयी थी।
"कितना सुकून है ना यहाँ बेटा" कहते हुये मैंने पाया कि पिछली बार की तरह वो फिर से मुझसे आँखें चुरा रहा है, कुछ देर पहले उसने मेरे चूतड़ छुप-छुपाकर देखे थे और यकीनन दोबारा भी वो मुझसे नज़रें मिलाये बिना ही उन्हें देखना चाहता था लेकिन अब मैंने उसकी शरम को तोड़ने का फैसला कर लिया था और बिना संकोच के अपनी तुरंत अपनी साड़ी अपने पेट तक ऊपर उठा दी।
"माँऽऽ" मेरी इस बेशर्म हरकत पर मोनू बुरी तरह काँप जाता है।
"क्या माँ की चूत इतनी घिनौनी है जो तुम उसे देखना तक नही चाहते बेटा?" मैंने अश्लीलता और मायूसी के मिलेजुले लहजे में उससे पूछा। "अपनी माँ के शरीर की उस जगह से तुम्हें इतनी नफरत है जहाँ से बाहर निकलकर तुम इस दुनिया मे आये हो मोनू?"
"नही माँ, ऐसा मत कहो" वो भारी आवाज से मेरी आँखों में झाँकते हुए बोला। "मुझे ... मुझे बहुत शरम आ रही है और डर भी लगा रहा है कि कहीं मेरी बेशर्मी से तुम नाराज़ ना हो जाओ"
"मैं अपने बेटे से नाराज़ क्यों होऊंगी भला, तुम तो मेरे प्राण हो बेटा" भावुकता से ऐसा कह मैं उसे अपने सीने से चिपकाकर बोली। "आज जो तुमने मेरे लिये किया है मोनू, जिस समझदारी, प्यार और हिम्मत से अपनी बूढ़ी माँ को संभाला है ... मानो तुमने अपने बचपन का ऋण चुका दिया बेटा"
"नही माँ, मैं तुम्हारे ऋण को कभी नही चुका सकूँगा बल्कि कोई बेटा नही चुका सकता ... तुम्हारा बेटा होकर भी अगर मैं तुमसे मुँह मोड़ लेता तो मैं खुद को कभी माफ नही कर पाता" मेरे सीने में अपना मुँह छुपाये वो गहरी-गहरी सांसें लेते हुये बोला।
"बेटा मैं तुम्हारी क्युरीआसटी, तुम्हारी जिज्ञासा को दूर करना चाहती हूँ इसलिए तुम बिना शरमाये या डरे अपनी माँ की चूत को देख सकते हो" कहकर मैंने खुद उसका चेहरा अपने सीने से हटा दिया पर शर्मिंदगी से उसने अपनी आंखें भींच ली थी। "मोनू अपनी आंखें खोलो वरना माँ सचमुच नाराज हो जाएगी"
"ओके ... ओके पर तुम ... तुम अपना चेहरा उधर घुमाओ" उसने अपनी एक आँख को खोलते हुये कहा और फिर दोबारा उसके बंद कर लेता है।
"वाह रे फट्टू, क्या तुम मेरे वही बेटे हो जो कुछ समय पहले मुझे पोट्टी करवाते हुये भी बिल्कुल नही शरमा रहा थे?" मैंने हँसते हुये पूछा।
"माँ मैं फट्टू नही हूँ" अजीब से जोश से ऐसा कह मोनू ने अपना चेहरा नीचे झुका दिया और बड़े नजदीक से मेरी चूत को देखने लगता है, मेरी पेंटी मेरे घुटनों में फंसी थी और साड़ी को मैंने अपने पेट पर समेत रखा था। एकाएक जाने क्यों मेरी आँखें मुंद जाती हैं, मेरे बदन में अजीब सी सिरहन दौड़ पड़ती है और साथ ही मेरी थम चुकी उत्तेजना भी वापस लौट आती है।
"ये बहुत सुंदर है माँऽऽ" मोनू सिसकते हुये बोला। "बिल्कुल चिकिनी, उफ्फ! ये बहुत सुंदर है माँ ... बहुत प्यारी है"
"मैंने ... मैंने आज सुबह ही यहाँ के बाल साफ किये थे" अपने बेटे के मुँह से निकलती गर्म साँसों को अपनी चूत पर महसूस कर मैं खुद सिसक पड़ती हूँ। मैने तुरंत अपनी आंखें खोलीं, अपने-आप मेरी चिपकी टाँगें चौड़ी होने लगी थीं।
"तुम्हारी वेजाइना गोरी है माँ जबकि मैंने सुना था कि ये काली होती है" उसने सरल भाषा मे बताया।
"वेजाइना गोरी भी होती है, सांवली भी होती है लेकिन ज्यादातर इसका रंग काला होता है" मैंने उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा। "पता है मोनू वेजाइना के अलावा इंग्लिश में इसे पुसी या कन्ट भी कहते हैं, शुद्ध हिंदी में योनि और आम देशी शब्दों में इसे चूत, बुर या फुद्दी कहकर बुलाते हैं"
"एकेडमी के लड़के बताते हैं माँ" मोनू ने कहा फिर फौरन अपनी जीभ दाँतों के बीच दबाकर मुस्कुराने लगा।
"इसका मतलब तुम सब कुछ जानते हो और मेरे सामने सीधे बनने का नाटक कर रहे हो" मैंने नाराज़गी का नाटक करते हुए कहा ताकि उसे थोड़ा और टटोल सकूँ।
"रिप्रोडक्शन तो सबने पढ़ा है माँ, ये थ्योरेटिकल बातें तो बच्चा-बच्चा जानता है पर ये बिल्कुल सच है कि मैं पहली बार किसी फीमेल की रियल वेजाइना देख रहा हूँ" मोनू गंभीर होते हुये बोला। "क्लाइटोरिस, ऑर्गेज्म, वोल्वा वगैरा-वगैरा मुझे पूरा थ्योरिटिकल नॉलेज है"
"तो अब चलें वापस, थ्योरिटिकल नॉलेज तुम्हें है और अब रियल वेजाइना भी तुमने देख ली" मैंने उसका गाल चूमते हुये कहा।
"नही माँ, प्लीज थोड़ी देर और रुकते हैं ना" मेरी बात पर वो तुनकते हुये बोला और तभी मेरी आँखें दिन में दूसरी बार शेरवानी के ऊपर बने उसके खड़े लण्ड के तम्बू पर टिक जाती हैं।
"तुम्हारा पेनिस कैसा है बेटा?" मैंने बिना समय गंवाये उससे पूछा, मेरे इस सवाल पर वो बुरी तरह से चौंक पड़ा था और साथ ही तुरंत हथेलियों से अपने तम्बू को छुपाने लगता है।
"वो ... वो ... वो बस ठीक है, उतना ... उतना खास नही माँ" मोनू लड़खड़ाते हुये कहता है।
"पर मैं कैसे मानूँ, अगर मैं उसे देखूँगी नही तो कैसे यकीन करूँगी कि वो बस ठीक है या उतना खास नही" मैंने जोर से खिलखिलाते हुये कहा। कहीं ना कहीं मुझे साफ महसूस हो रहा था कि मेरा इतना आगे बढ़ना उचित नही क्योंकि मेरी सोच तो सिर्फ बेटे की जिज्ञासा दूर करने की थी लेकिन बजाये इसके अब जैसे मैं खुद की जिज्ञासा दूर करने को मचल उठी थी।
"वो माँ तुम समझो, तुम्हें यकीन करने या ना करने की कोई जरूरत नही" मोनू ने दोबारा मेरी बात को टालते हुये कहा तो मैंने उसे ज्यादा परेशान करना ठीक नही समझा।
"अच्छा दिखाओ मत पर ये तो बता दो कि क्या तुम्हारे पेनिस पर बाल उग चुके हैं?" मैंने शरारती मुस्कान छोड़ते हुये पूछा तो वो ना में अपना सिर हिलाकर शर्माने लगा।
"स्पर्म निकलता है?" मैंने दूसरा सवाल किया, अब मैं खुद की भाषा में भी सुधार कर चुकी थी।
"पता नही माँ" वो धीरे से फुसफुसाया जैसे बहुत बड़े राज को बता रहा हो।
"मैस्टर्बेशन के बारे में नही पता तुम्हें?" मेरे सवाल जारी थे।
"पता है पर मैंने कभी नही किया" उसने दोबारा धीरे से बताया।
"चलो कोई बात नही, समय के साथ सब नॉर्मल हो जायेगा, खैर अगर तुम्हारा कोई सवाल हो तो पूछ लो वरना हम वापस चलते हैं" कहकर मैंने उसके माथे को चूम लिया।
"चलो वापस चलें माँ" बदले वो मेरा दायाँ गाल चूमकर बोला।
"ठीक है मैं सूसू कर लूँ फिर चलते हैं, चाहो तो दूर जाकर तुम भी कर लो" मैंने टॉवल से उठकर कहा, अपने आप मेरी साड़ी नीचे गिर जाती है पर मोनू अब भी वहीं बैठा था और मुझे अपनी साड़ी झड़ाते हुये बड़े गौर से देख रहा था।
मैं उसके बिना बोले समझ गयी कि उसके उत्सुक मन मे क्या चल रहा है इसलिए मैंने दोबारा अपनी साड़ी ऊपर उठायी और जमीन पर बैठकर मूतने लगी, वो आंखें फाड़े कभी मेरी चूत से बहते पेशाब को देख रहा था तो कभी मेरे मुस्कुराते चेहरे को।
"अपनी माँ को मूतते देख तुम्हें शरम नही आती?" मैंने जानबूझकर उसे छेड़ा पर तुरंत खुश भी कर दिया। "घर पर अच्छे से देख लेना, अभी माँ को थोड़ा सा ही सूसू लगा था"
"पक्का माँ" मेरे पेंटी ऊपर चढ़ाते ही वो भी टॉवल से उठकर चहका।
"हम्म लेकिन ये हमारा सीक्रेट रहेगा, प्रोमिस ना" कहकर मैंने अपनी साड़ी नीचे छोड़ दी।
"प्रोमिस एंड लव यू" बोलकर वो मुझसे बुरी तरह लिपट जाता है, मैं खुद ना जाने कबतक उसे अपने सीने से चिपकाये वहीं खड़ी रही थी।
"तो कैसी लग रही हूँ मैं?" ड्रेसिंग टेबल से पलटकर मैंने चहकते हुए पूछा। "आज मैंने बहुत तैयारी की है"
"तुम बहुत सुंदर लग रही हो माधवी, ये हरी साड़ी तुमपर खिल रही है" उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, मुझे उनकी आंखें उत्साह से चमकती नज़र आती हैं।
"पर मेरा पेट बिल्कुल सही नही है, बेहद मरूड उठ रही है और बार-बार इच्छा हो रही है कि मैं फिर से फ्रेश होने चली जाऊँ" मैंने मायूसी से अपना पेट पकड़ते हुए कहा।
"टैबलेट खाई है ना दोपहर की?" उन्होंने पूछा।
"हाँ" मैंने दोबारा शीशे में खुद को निहारते हुए जवाब दिया और उसमें अपने अक्स को देख मुस्कुरा जाती हूँ।
"चलो अब निकलो वरना रिसेप्शन में देरी से पहुँचोगे" राकेश ने बेडरूम का दरवाजा खोलते हुये कहा और बाहर निकल गये।
"मोनू ने छाता, पानी की बोतलें कार में रख ली हैं, बारिश का मौसम है तो गाड़ी ध्यान से चलाना" मैं जब हॉल में आई तो राकेश ने मुझे समझाने लगे।
"इस शेरवानी में मोनू कितना अच्छा लग रहा है" कहकर मैं खुद को रोक नही पाती और अपनी दायीं आँख से काजल निकाल बेटे के माथे पर लगा देती हूँ।
"थैंक्स माँ" मोनू शेरवानी के दुपट्टे को बड़े स्टाइल से अपने कंधे पर चढ़ाते हुए चहका। "कुछ पिक्स ले लेते तो फेसबुक पर अपलोड करता"
"उसके लिये अभी टाइम नही बेटा, चार घण्टे का सफर तय करना है तुम्हें" राकेश ने कहा और हम तीनों पोर्च में चले आये। "बीच-बीच में फोन करते रहना और अपना ख्याल रखना"
"जी जरूर" मैं अपने पेट को दबाते हुये बोली, मुझे दोबारा जोरों की मरूड उठी थी पर मैंने उसकी कोई परवाह नही की क्योंकि मैं किसी भी हालत में मेरी प्यारी भतीजी रीमा का रिसेप्शन मिस नही करना चाहती थी।
"बाय पापा" मेरे कार में गियर डालते ही मोनू अपना हाथ हिलाते हुये चिल्लाया, मैंने भी मुस्कुराकर राकेश को देखा और कार मेन गेट से बाहर निकाल दी।
पिछले चार-पाँच दिनों से बहुत बारिश हो रही थी और मैं ऐसे खतरनाक मौसम में भी बेटे को साथ लेकर हाईवे पर कार चला रही थी, अगर मेरी बेटियों को आज सुबह ही उनकी एकेडमी के टूर पर नही निकलना होता तो मैं दो-एक दिन पहले रिसेप्शन में शामिल हो जाती।
"मोबाईल से खेलना छोड़ो मोनू और ये खिड़की ठीक से बंद करो" अभी मैंने बेटे से कहा ही था कि तभी बारिश की तेज बूंदे कार के शीशे को धुंधला करने लगती हैं, मैंने फौरन वाईपर चालू किया और कार की रफ्तार भी कम कर दी।
"वीरपुर वन नाइनटी सिक्स किलोमीटर" मोनू ने मुझे बताया। "चार घण्टे से ज्यादा लग जाएंगे माँ"
"बेटा अभी दो बज रहे हैं, हम रात आठ बजे तक भी वहाँ पहुंचे तो कोई बात नही" मैंने जवाब दिया जिसे सुनने के बाद मोनू फिर से मोबाईल चलाने में व्यस्त हो जाता है।
बेटियों को टूर पर विदा कर आज मैं जरा भी आराम नही कर पाई थी बल्कि ब्यूटी पार्लर और घरपर खुद को सजाने में मैंने दोपहर का एक बजा लिया था। मुझे पाँच दिनों से जमकर लूसमोशन हो रहे थे पर फिर भी मैंने बेवकूफी दिखाते हुए बहुत भारी और महँगी साड़ी पहनी थी। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था क्योंकि मुझे एकाएक गैस पास करने की जबरदस्त इच्छा होने लगी थी।
मैंने आँखों की किनोर से मोनू को देखा तो शरम से लाल पड़ गयी, बेटे की मौजूदगी में कैसे गैस पास करूँ मुझे कुछ समझ नही आ रहा था और ऊपर से कार की खिड़कियां भी बंद थीं, तुरंत मेरा मन किया कि गाड़ी वापस घर की तरफ घुमा लूँ।
मैंने कुछ गहरी सांसें लीं क्योंकि अब मैं खुद को रोक नही सकती थी, अपने-आप मेरा दायाँ चूतड़ ऊपर उठ गया। मुझे डर था कि गैस पास करने की आवाज़ से मुझे बेटे के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा और हुआ भी वही, यहाँ मैंने गैस पास करनी शुरू की और वहाँ मोनू चौंककर मेरे चेहरे को देखने लगा।
"छि: माँ" उसने अपनी नाक सिकोड़कर कहा पर मैं सामने सड़क को देखते हुए गैस पास करती रही। मेरी मजबूरी थी कि मुझे रुक-रुककर ऐसा करना पड़ रही थी क्योंकि मैं लूसमोशन्स से पीड़ित थी और अगर जल्दबाजी करती तो बेवजह मेरी पेंटी भी खराब हो सकती थी।
"मान जाओ" इस बार मोनू ने अपनी नाक को उंगलियों से दबाते हुए कहा।
"सॉरी ... सॉरी बेटा" मैं शरम से बस इतना ही कह सकी। मेरी परेशानी सिर्फ यहीं खत्म नही हुई थी, कार के अंदर बेहद बुरी बदबू फैल गयी थी।
"मैं खिड़की खोल रहा हूँ, उल्टी ... उल्टी हो जाएगी माँ" मोनू जोर से चिल्लाया और खिड़की का काँच नीचे करने लगता है।
"बेटा प ... पानी" मैंने हकलाते हुये कहा, पल में बारिश की बूंदे उसके बायें कंधे और जांघ को भिगोने लगी थी। "अब दोबारा ऐसा नही होगा, खिड़की बंद कर लो मोनू"
सच कहूँ तो अचानक मेरी आँखें नम होने लगी थीं, माना गैस पास करना एक स्वाभाविक क्रिया है और मेरी जगह अगर मेरे बेटे ने गैस पास की होती तो यकीनन मुझे इससे कोई दिक्कत महसूस नही होनी थी पर मैं उसकी माँ थी, मेरी शरम का तो जैसे कोई पार ही नही था।
"आई एम सॉरी" मैंने फिर से माफी मांगी क्योंकि खिड़की बंद करने के बाद अपनी नाक को भींचे बैठा मेरा बेटा मुझे घिनौनी नजरों से घूर रहा था।
"कोई बात नही" वो धीरे से बुदबुदाया।
"मुझे लूसमोशन हो रहे हैं" मैंने उसे बताया। "मेरी हालत अच्छी नही है"
"ओह!"
"हाँ बेटा, पाँच दिन हो गये"
"मुझे पता नही था माँ, डॉक्टर को दिखाया?"
"हम्म और दवाई भी चल रही है"
"चलो कोई बात नही माँ, तुम रिलेक्स रहो" मुस्कुराकर मोनू ने मेरी बायीं जांघ थपथपाई।
"मैं कोशिश करूँगी की ऐसा दोबारा ना हो" शरमाते हुये मैंने कह तो दिया था पर जानती थी कि कुछ ही देर में मेरी बात झूठ साबित हो जानी थी।
इतने में टोल प्लाज़ा आ गया, मैंने रसीद कटवाई और जब हम टोल से सात आठ किलोमीटर आगे आ गये तब मुझे याद आया कि मैं वहाँ आराम से फ्रेश हो सकती थी। खैर अब क्या किया जा सकता था, मैं ड्राइव करती रही।
हम घर से करीबन साठ किलोमीटर दूर पहुँच चुके थे और इसके आगे पहाड़ी इलाका शुरू होने वाला था, मैं तो बाहर के खूबसूरत नजारों को देख नही सकती थी पर मोनू खूब एन्जॉय कर रहा था। उसने कई झरनों की तस्वीरें लीं और बार-बार ज़िद करता कि मैं कुछ देर के लिये कार को रोक लूँ।
"ये जंगल है बेटा और इस बारिश में हम कार से बाहर भी नही निकल सकेंगे" मैंने उसे समझाया।
"छाता तो है ना माँ" उसने पिछली सीट से छाता उठाते हुए कहा। "आगे के किसी झरने पर, प्लीज माँ"
"सुनसान सड़क है मोनू, तुम्हारे पापा साथ होते तो हम पक्का रुकते" मैं उसे दोबारा समझाते हुये बोली और तभी फिर से मेरा हाथ गियर से हट मेरे पेट को दबाने लगता है।
लगभग दस किलोमीटर बाद मेरी इच्छा हुई कि अब मुझे किसी भी सूरत में फ्रेश होना ही पड़ेगा क्योंकि मैं दूसरी बार अपने बेटे के सामने शर्मिंदा नही होना चाहती थी पर दिक्कत ये थी कि उस घने जंगल मे फ्रेश होने के लिये मुझे कोई होटल या ढाबा कहाँ मिलता।
"मुझे घर से आना ही नही चाहिये था" मैं रोते हुये बोली, मेरी सहनशक्ति अब पूरी तरह खत्म हो चुकी थी। "मुझे फ्रेश होना है बेटा"
"पर यहाँ कहाँ माँ?" मेरा रोना देख मोनू ने घबराते हुए पूछा और तुरंत मेरी ओर मुड़कर बैठ गया।
"बेटा ... बेटा अपनी नाक बंद ... सॉरी! उफ्फ" मैं अपने जबड़े भींचते फुसफुसाई और मजबूरी होकर दोबारा गैस पास करने लगी। इस बार आवाज पहले से ज्यादा तेज हुई, मैं तो शरम से पानी-पानी हो गयी थी।
"मुझे कोई दिक्कत नही, तुम कर लो आराम से" मोनू ने फिर से मेरी बायीं जांघ को थापथपाते हुये कहा और इसके बाद मेरे गालों पर आये आँसू पोंछने लगा।
"बेटा मैं कार रोकती हूँ, तुम मुझे पानी की बोतल देना" मैंने कार को साइड में लगाते हुए कहा और मेरी तरफ का गेट खोल दिया ताकि बदबू कार से बाहर निकल जाये।
"मैं भी साथ चलता हूँ माँ" मोनू ने पानी की बोतल और छाते को पकड़ते हुए कहा।
"नही, तुम यहीं बैठो" मैंने उसे समझाया। "लाओ बोतल दो मुझे"
"माँ तुम भीग जाओगी और वैसे भी मैं तुम्हें अकेले बाहर नही जाने दूँगा" मोनू ने अपनी तरफ के दरवाजे को खोलते हुए कहा।
"तुम ... तुम समझते क्यों नही, जगह कितनी सुनसान है कुछ अंदाजा भी है है तुम्हें" मैं गुस्से से चिल्लाई। "मैं अपनी वजह से तुम्हारी जान खतरे में नही डाल सकती मोनू"
"चाहे तुम्हारी जान मुसीबत में पड़ जाये" वो भी गुस्से से बोला और फिर एकाएक उसकी आवाज रुआँसी हो जाती है। "तुम्हें मेरी कसम माँ, अकेली मत जाओ"
"ठीक है चलो लेकिन फिर हम यहीं से वापस घर लौट जाएंगे" मैंने उसकी नम आंखों को देखते हुए कहा।
"कोई नही नही लौटेगा" कहकर मोनू ने छाता खोला और कार से बाहर निकल मेरी तरफ चला आया। "गाड़ी लॉक करो, हम किसी पेड़ या झाड़ी के पीछे चलेंगे"
कार से नीचे उतर मैंने उसे लॉक किया, मेरे बेटे ने मेरी कमर को थाम मुझे खुद से सटा लिया था ताकि मैं बारिश से भीग ना सकूँ। सड़क से नीचे उतर हमें सिर्फ छोटी-मोटी झाड़ियाँ दिखाई दे रही थीं, पेड़ थे पर उनतक पहुँचना नामुमकिन था।
"तुम फ्रेश होना, मैं छाता पकड़े रहूँगा माँ"
"नही बेटा, तुम ... तुम दूर खड़े हो जाना"
"पागल मत बनो माँ, हम रिसेप्शन में जा रहे हैं"
"वो ठीक है बेटा पर मैं तुम्हारे सामने पोट्टी ..." कहते-कहते मैं रुक गयी, शरम के मारे मेरा बुरा हाल था।
"दूर कहाँ खड़ा रहूँगा माँ? तुम्हें लगता है कि यहाँ खुले में तुम्हें कोई प्राइवेसी मिलेगी?" मेरी शरम की परवाह किये बगैर मोनू में गंभीर लहजे में पूछा। "अगर मेरे साथ ऐसी दिक्कत होती तब भी क्या तुम ऐसे ही शरमाती?"
"मैं माँ हूँ तुम्हारी, शरमाऊँ नही तो क्या करूँ?" मैं दबी आवाज में बोली और अपनी गर्दन मोड़कर मोनू के चेहरे को ताकने लगी, मुझे आज पहली बार महसूस हुआ था कि मेरा बेटा अब समझदार होने लगा है।
"चुपचाप पोट्टी करो, हाथ धोओ और कार में वापस चलो" मोनू ने उसी गंभीर लहजे में कहा। "मेरे खयाल से ये जगह सेफ है माँ"
"बेटा मेरी बात मानो, मुझे सूसू करनी होती तो बात अलग थी बल्कि मुझे लूसमोशन्स हैं ... तुम्हें घिन आयेगी और मैं भी ठीक से नही कर पाऊँगी" मैं उसकी आंखों में झांकते हुए बोली, जाने क्यों मेरी शरम अचानक मुस्कुराहट में बदल गयी थी। शायद ये मेरे बेटे की गंभीर बातों और उसकी समझदारी का नतीजा था कि मेरा डर, घबराहट और झिझक काफी हद तक कम हो गयी थी।
"मुझे कोई दिक्कत नही होगई माँ, तुम बैठो फटाफट ... इस सुनसान जगह पर ज्यादा देर रुकना ठीक नही होगा" कहते हुए मोनू ने मेरी पीठ सहलाई। "मुझपर भरोसा है ना तुम्हें?"
"मोनूऽऽ" बेटे के सवाल को सुन मैंने फौरन उसे अपनी छाती से चिपका लिया और उसके गाल चूमने चाहे।
"ये प्यार बाद में कर लेना माँ, हम भीग जायेंगे" कहकर वो जोर से हँसा।
"हँस लो बेटा, तुम भी किसी दिन माँ के चंगुल में फँसोगे" बोलकर मैं खुद भी हँसने लगी, चाहे बनावटी ही सही पर मेरी शरम को कम करने के लिए मेरी ये हँसी बहुत जरूरी थी।
"लगता है मुझे खुद तुम्हारी साड़ी ऊपर उठानी पड़ेगी माँ क्योंकि तुम्हें तो ना जगह की कोई फिक्र है और ना हमारी" मोनू थोड़ा झुंझलाते हुए बोला और उसकी बात सही भी थी, हम जितनी देर करते हमें उतना ही खतरा होता।
"लो पकड़ो मेरी साड़ी" मैंने नीचे झुक अपनी साड़ी को पेटीकोट समेत जांघों तक ऊपर उठाते हुये कहा। "बेटा महँगी साड़ी है, मिट्टी वगैरा ना लगे"
"तुम भी माँ, ऐसी क्रिटिकल सिचुएशन में भी तुम्हें इस साड़ी की फिक्र है" नाराज़गी भरे लहजे में ऐसा कहकर उसने पानी की बोतल नीचे रखी और फिर मेरी साड़ी को सीधे मेरी कमर तक ऊपर उठा देता है। "अब उतारो पेंटी और धीरे से नीचे बैठ जाओ"
"हट बेशर्म, इधर-उधर देखो" बेटे की हरकत और बात पर चौंकाते हुये मैंने उसे डाँटा।
"तुम्हारी जगह अगर निधि या नम्रता होती ना माँ, तो वो भी इतना नही शरमातीं जितना तुम शरमा रही हो ... अरे हम परिवार हैं, कोई अजनबी नही" मोनू फिर गंभीरता से बोला और अपने-आप मेरे अंगूठे मेरी पेंटी की इलास्टिक में फंस गए।
"माँ को माफ करना बेटा" मैंने भारी गले से कहा और पेंटी घुटनों तक खींच नीचे बैठने लगी, मेरे जमीन पर उकडू बैठते ही मोनू साड़ी को अपनी कलाई पर लपेटने लगा ताकि उस पर गीली मिट्टी ना चिपक सके।
"उफ्फऽऽ" मैंने राहत की लंबी आह भरी, बिना किसी रुकावट के मेरी गैस पास जो होने लगी थी और इसके साथ ही मैंने मूतना भी शुरू कर दिया था। मेरा दिल मानों धड़कना छोड़ देता हैं जब एक बेहद घिनौनी और तेज आवाज के साथ बिल्कुल पानी सी पोट्टी मेरी गांड के छेद से जमीन पर फैलने लगती है। मैं फूट-फूटकर रोने रो पड़ी और पैर गंदे हो जाने के डर से उन्हें तुरंत चौड़ा करने लगी।
"कोई बात नही माँ, कोई बात नही" मोनू नीचे झुककर मेरे बायें कान में बोला। "थोड़ा उठो और जगह बदल लो"
"बस हो ... हो गया, पानी की बोतल ... बोतल ..." मैं धीरे से बुदबुदाई और पास रखी बोतल को कांपती उंगलियों से पकड़ने की कोशिश करने लगी, उस खुले वातावरण में चारों तरफ बदबू ही बदबू फैल गयी थी।
"माँ प्लीज" मोनू दोबारा मेरे कान में बोला पर इस बार उसकी खुद की आवाज रुआँसी थी। "मुझपर भरोसा है ना तुम्हें?"
"बेटा मैं शरम से मर जाऊँगी, मुझे माफ कर दो" कहते हुये अचानक मुझे चक्कर से आने लगे और मैंने उसके दायें पैर में अपनी कोहनी फंसा ली।
"माँऽऽ" मोनू जोर से चिल्लाया और छाते को फेंक अपना खाली हाथ मेरी छाती पर लपेट लिया। "तुम घबराओ नही मैंने पकड़ लिया है तुम्हें"
"मोनू ... मोनू बेटा, मुझे ... मुझे चक्कर आ रहे हैं" मैं हाँफते हुए बोली।
"तुम थोड़ा आगे सरकने की कोशिश करो माँ, मैं हूँ तुम्हारे पास" कहकर वो खुद मुझे आगे सरकाने में मदद करने लगा मगर तभी दोबारा मेरी गांड के छेद से तेज बौछार की तरह पानीदार पोट्टी जमीन पर फैलने लगी। "सॉरी बेटा ... सॉरी"
"ओके ओके, अब अपने पैर आगे बढ़ना माँ जैसे पोंछा लगाते हुए बढ़ाती हो" उसने मुझे समझाया और सिर्फ एक हाथ से मुझे हवा में टांग लिया। तेज़ बारिश से हमदोनों ही भीग रहे थे खासकर मेरा बेटा क्योंकि उसने मुझे अपने शरीर के नीचे समेटे सा लिया था।
"हो गया ... हो गया बेटा" मैंने छाती से चिपके उसके हाथ को थपथपाते हुए कहा, जोर की ताकत लगाने से मोनू भी हाँफने लगा था।
"बोतल का ढक्कन खोलो माँ और दो घूँट पानी पियो ... पानी की फिक्र मत करना, कार में और बोतलें रखी हैं" उसने मुझे समझाया और मैंने बोतल उठा ली। "हाँ पियो दो घूँट"
"सांस तो ले लूँ बेटा, मुझ में बिल्कुल जान नही बची" मैंने गहरी सांसें लेते हुये कहा और एक बार फिर मेरी गैस पास हुई, मेरी चूत से पेशाब बही और तीसरी बार मेरी गांड के छेद से पोट्टी बाहर निकलने लगी। "बस अब नही, अब हो गया मेरा"
"हो गया तो ठीक है पर अभी बैठो ऐसे ही, मैंने कार को देख लिया है ... हम सेफ हैं" उसने मेरे सिर को चूमकर कहा, हवा में फैली बेहद बुरी गंध से मानो उसे कोई फर्क ही नही पड़ रहा था। "इतना तो मैंने पूरे बचपन मे तुम्हें नही सताया होगा, जितना तुमने एक बार में मुझे सता लिया माँ"
"तुम बहुत समझदार हो गये हो मोनू, मेरी सोच से भी कहीं ज्यादा समझदार" मैंने अपनी गर्दन पीछे मोड़कर मुस्कुराते हुए कहा, मेरी आँखों मे झाँक वो खुद भी मुस्कुरा जाता है।
"वैसे तुम्हारे पौंद बहुत गोरे हैं माँ" कहकर वो जोर से खिलखिलाया, उसकी शैतानी भरी बात सुन पहले तो मैं चौंकी फिर उसे आँखें दिखाकर डाँटने लगी।
"शरम नही आती मोनू, बहुत हुआ" मैंने बोतल का ढक्कन खोलते हुए नाराज़गी से कहा और जल्दी-जल्दी अपनी गांड के गंदे छेद को धोने लगी।
"एक सच बात कहूँ माँ?" मोनू ने पूछा, अपनी गांड का छेद साफ करते हुए बेटे से बात करना अचानक मुझे अजीब सा रोमांच महसूस करवाने लगा था।
"कहो" मैं धीमी आवाज़ में बोली।
"तुमने मुझे पैदा किया, पाल पोसकर इतना बड़ा किया ... मेरी बहुत सी अच्छी यादें जुड़ी हैं तुम्हारे साथ पर आज के ये पल मैं लाइफ में कभी नही भूल पाऊँगा माँ" मोनू बोलते-बोलते रुका। "तुम्हारी जगह अगर कोई और होता ना मेरे साथ, तो मेरी हिम्मत भी ना जाने कबकी टूट चुकी होती ... मुझपर ऐसे ही भरोसा बनाये रखना माँ, मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ"
एक आखिर बार अपनी गांड के छेद को पानी से धोकर मैं बिल्कुल सीधी खड़ी हो गयी, अब तो मुझे सचमुच कोई परवाह नही थी कि मेरा बेटा मेरे नंगे चूतड़ों को देख रहा होगा और फिर मैं बिना अपनी पेंटी ऊपर चढ़ाये साड़ी को पेटीकोट के साथ दोनों हाथों से पकड़ने लगी। कुछ ठहराव के बाद मैं बिना किसी झिझक के अपने बेटे की तरफ मुड़ी और साड़ी अपने पेट तक ऊपर उठा दी।
"माँ" मेरी इस बेशर्म हरकत को देख मोनू फौरन पलट गया।
"तुम्हारी माँ के शरीर का ये अंग बचपन में तुम्हारे नाना-नानी ने देखा और जवानी के बाद सिर्फ तुम्हारे पापा ने, तुम चाहो तो आज तुम भी इसे देख सकते हो मोनू क्योंकि मुझे तुमपर खुद से ज्यादा भरोसा है" मैं बेहद गंभीरता से बोली, अपने बेटे को सिर्फ जांचने भर के लिये मैंने ये नीच कदम नही उठाया था अगर वो वापस मेरी तरफ पटलता भी तो भी मैं अपनी साड़ी नीचे नही करती।
"साबुन शायद कार में रखा है, अब चलो माँ" मोनू कांपते हुये बोला और बिना मेरी ओर देखे छाते को जमीन से उठने लगता है, मैंने भी अपनी पेंटी को कमर तक ऊपर चढ़ाया और साड़ी नीचे कर बेटे के पीछे चलने लगी। हम दोनों ही पूरी तरह से भीग चुके थे अब छाते के बचाव की हमें कोई जरूरत नही रही थी।
कार को अनलॉक कर मोनू ने साबुन खोजा पर उसकी जगह शैम्पू का पाउच उसे मिल गया, मेरे हाथ धुलाते हुये वो बिल्कुल शांत था मेरे चेहरे को देख तक नही रहा था। अब इस भीगी हालात में हमारा रिसेप्शन अटेंड करना नामुमकिन था तो मैंने राकेश को कॉल कर कार घर की तरफ मोड़ ली।
"अभी मेरा मन नही भरा, मुझे एक आद बार और पोट्टी जाना पड़ सकता है बेटा" मैं हमारे बीच पनपे तनाव तो तोड़ते हुए बोली और जोर से खिलखिलाई। "तुम्हें माँ के गोरे पोंद दोबारा देखने पड़ेंगे"
"माँ" मेरी बात सुन मोनू भी हँसने लगा।
"मेरी इजाजत के बावजूद तुम पीछे क्यों नही मुड़े थे बेटा?" मैंने उससे पूछा।
"मैं ... मैं तुम्हारे उस अंग को नही ... नही देख सकता माँ" जवाब देते हुए मोनू हकला जाता है, साथ हो वो शरमा भी गया था।
"पर क्यों, बात तो हमारे भरोसे की थी ना?" मैंने दूसरा सवाल पूछा।
"पर माँ, क्या इससे पापा का भरोसा नही टूटता?" मोनू ने उल्टा मुझसे सवाल किया और मैं एकाएक सोच में पड़ गयी।
"तुम्हें क्या लगता है, जो अभी तुमने मेरी मदद की उसे मैं तुम्हारे पापा से छुपाऊँगी?"
"नो वे, तुम ... तुम इस बारे में उनसे कुछ नही कहोगी, प्लीज माँ"
"बताना तो पड़ेगा बेटा, नही बताया तब क्या उनका भरोसा नही टूटेगा?"
"पर हमने ऐसा कोई गलत काम किया ही नही माँ, जिससे उनका भरोसा टूटे"
"अच्छा, तुमने अपनी माँ के पोंद नही देखे? फिर तुम्हें कैसे पता चला कि मेरे पोंद गोरे हैं?" पूछते हुये मैं शरारत से मुस्कुराई, जाने क्यों अपने बेटे को सताने में मुझे अजीब सा सुख महसूस होने लगा था।
"सॉरी, मैंने कंट्रोल करने की कोशिश की थी पर ..." मोनू बोलते-बोलते रुक गया और अपनी तरफ की खिड़की से बाहर देखने लगता है।
"पर क्या? बताओ बेटा, मैं नाराज नही होऊँगी" मैंने उसकी दांयीं जांघ पर हाथ रखते हुए कहा।
"फर्स्ट टाइम किसी फीमेल को इतने करीब से देख रहा था, मैं जानता था कि वो फीमेल कोई अजनबी नही है बल्कि मेरी माँ है पर फिर भी मेरी क्युरीआसटी मुझपर हावी हो गयी और ... और मैं तुम्हारे उन्हें देखने लगा था" मोनू ने घबराते हुये कहा, बेचारा अपनी नई-नवेली उत्सुकता का जुर्म जो कुबूल कर रहा था।
"छुप-छुपकर मेरे चूतड़ तो देख चुके थे पर जब मैंने खुद तुम्हें अपनी चूत दिखानी चाही तब तुम्हें शरम आ गयी थी" मैंने नाराजगी का नाटक करते हुए कहा, पर ये नही जानती थी कि अचानक मेरी भाषा इतनी अश्लील हो जायेगी। मैं तो खुदपर चौंकी ही थी, मोनू तो अपनी सीट पर जैसे उछल पड़ा था।
"वो ... वो ... वो मैं ..." उसने अपने होंठ चबाये, थूक निगला लेकिन मुँह से कुछ बाहर नही निकल सका।
"पानी की कितनी बोतलें बची हैं?" मैंने मन ही मन हँसते हुए पूछा, मैं उसे इतना क्यों सता रही थी मुझे नही पता था पर एक बात तो तय थी कि इसी बहाने मुझे अपने जवान होते बेटे को करीब से जानने का मौका सकता था।
"चार बोतलें हैं माँ" वो धीरे से बुदबुदाया और चोर नजरों से मेरे चेहरे को देखने लगता है, शायद इंतज़ार कर रहा था कि मैं बाकी बची बोतलों के बारे में अब उससे क्या कहने वाली हूँ? उसकी चढ़ती साँसे और कांपती टाँगों को देख मेरे खुद के बदन में सिरहन दौड़ पड़ती है।
"चार ... चार बोतलें हैं माँ" अभी मैं अड़े-टेढ़े मुँह बनाकर हथेली से अपने पेट को बार-बार दबाने का नाटक कर ही रही थी कि मोनू ने अपनी बात को दूसरी बार दोहराया, बोतलों की संख्या पर भी उसने ज्यादा जोर दिया था।
"बस सोच रही थी कि फिर से ऐसी सुनसान जगह पर कार से नीचे उतरना सही नही, अब तो घर पहुँचकर ही कुछ हो सकेगा" मैंने सामने की सड़क पर नजर गड़ाये हुये ही कहा।
"घबराओ मत माँ, मैं हूँ तो तुम्हारे साथ" वो बिना समय गंवाये बोला।
"नहीं बेटा एक बार तुम्हें परेशान कर लिया अब दोबारा नही कर सकती" मैंने फिर से अपने पेट को दबाते हुए कहा, एकाएक मैंने महसूस किया कि मेरे निप्पल कठोर होने लगे हैं और मेरी बेचैनी भी तेजी से बढ़ रही है "फिर से ऐसा करना ठीक भी नही होगा"
"क्या माँ तुम भी" मोनू मेरे तरफ घूम मेरे बायें कंधे को छूकर बोला। "सूसू या पोट्टी को ज्यादा देर तक रोकना अच्छा नही होता"
"पहले तो मेरी मजबूरी थी बेटा पर अब दूसरी बार मैं कैसे?" पूछते हुये मेरी चूत के होंठ फड़फड़ाने लगते हैं, मैं हैरान रह गयी कि अपने सगे बेटे की वजह से मैं उत्तेजित कैसे होने लगी थी?
"सिर्फ एक या दो बार क्यों माँ, मैं तो हजारों बार तुम्हारी मदद करने को तैयार हूँ ... भूल गयी कि हम परिवार हैं, परेशानी में एकदूसरे के काम नही आयेंगे तो कौन आएगा?" उसने मुझे प्यार से समझाया, कार की रफ्तार को कम कर मैंने उसके मुस्कुराते चेहरे को ध्यान से देखा तो मुझे उसकी उत्तेजना का खास कुछ पता नही लग पाया। अपनी उत्सुकता के कारण इस बार मैंने गियर देखने के बहाने चोर नजरों से उसकी टाँगों की जड़ को देखा और शेरवानी के ऊपर तम्बू बनाता उसका खड़ा लण्ड मुझे साफ दिखाई पड़ जाता है।
मैं फौरन दो भागों में बंट गयी, एक पतिव्रता पत्नी जिसने आजतक अपने पति के अलावा किसी दूसरे मर्द को कामुकता की नजरों से नही देखा था और एक पापी माँ जो अपने ही सगे जवान होते बेटे की वजह से उत्तेजित हो गयी थी। मेरा बेटा उम्र और रिश्ते दोनों में मुझसे काफी छोटा था, उसकी उत्तेजना उसकी नादानी मानकर भुलाई जा सकती थी पर मुझे तो मानो अब खुद की भी माफी कभी मिल सकती थी।
"कार रोको माँ, कार रोको" मैं अभी अपनी सोच में डूबी थी कि मोनू जोर से चिल्ला पड़ता है।
"क्या हुआ?" घबराकर मैंने कार को साइड में रोकते हुये पूछा और मोनू की खिड़की की तरफ से मैं भी उत्सुकता से बाहर देखने लगी।
"ये सामने की सड़क उस बड़े पेड़ तक गयी है और अगर उस ओर कोई गाड़ी आती है तो भी हम बड़ी आसानी से अपनी कार के अंदर वापस आ सकते हैं" उसने चहकते हुए बताया और चरण पीछे की सीट से पानी की बोतल उठाने लगता था। "चलो माँ वहाँ तुम बिना किसी डर के अच्छे से फ्रेश हो जाओगी"
"न ... नही बेटा, दोबारा कार से उतरने में खतरा हो सकता है" मैंने मन मसोसकर कहा जबकि जाने क्यों ऐसे एकांत में फिर से अपने बेटे के करीब आने की मेरी बहुत इच्छा हो रही थी। "और ... और अभी मुझे पोट्टी आ भी नही रही है"
"ओह!" वो मायूस होते हुये बुदबुदाया और किसी गहरी सोच में डूब गया, मैं चाहती तो कार को वापस हाइवे पर ले जा सकती थी पर मैंने इंतजार किया कि आखिर उसकी सोच कहाँ तक जाती है? और मेरा इंतजार करना सही रहा क्योंकि कुछ पलों बाद अचानक उसकी आँखें चमक उठी थी।
"पोट्टी नही आ रही तो कोई बात नही माँ, थोड़ी देरतक ऐसी ही बैठी रहना" उसने अपने शब्दों को जैसे चबाते हुए कहा। "फिक्र मत करो माँ, ऐसे खाली बैठने से भी कभी-कभी इच्छा हो जाती है"
"हम्म वो तो है" गंभीर होने का नाटक करते हुये बोली। "पर बेटा ऐसे खाली भी माँ से कबतक बैठा जायेगा?
"तुम ... तुम वहाँ चलो तो सही माँ, घर पहुँचने के लिये अभी हमारे पास बहुत समय है" उसने बड़ी उत्सुकता से कहा और फिर मेरे चेहरे को बेहद मासयूमियत से देखने लगता है।
"ठीक है पर मुझे पोट्टी नही आ रही, बाकी तुम चाहते हो कि ऐसे खाली वहाँ बैठी रहूँ तो तुम्हारे लिये बैठी रहूँगी" उसके बालों पर हाथ फेर मैं उसे शब्दों के जाल में फँसाते हुये बोली।
"ओके, मेरे लिये बैठी रहना" कहने के बावजूद उसे समझ नही आया कि वो क्या कह गया है, उसकी खुशी का तो जैसे कोई अंत नही था। वाकई मेरा बेटा मिट्टी का वो कच्चा घड़ा था जो जल्द से जल्द पकने के लिए बेहद उतावला था और मैं उस भट्टी समान जो उसे धीमी आंच पर बहुत ठोस तरीके से पकाना चाहती थी।
"हम्म" प्यार से अपनी गर्दन हिलाकर मैंने कार हाईवे से बायीं तरफ की सीमेंटेड सड़क पर मोड़ दी। मैं इसके लिये सिर्फ ये सोचकर राजी हो गयी थी कि अगर मेरे बेटे की क्युरीआसटी उसकी माँ की नग्नता से मिट सकती है तो इससे हमदोनों को कोई नुकसान नही होगा, बल्कि मुझसे अच्छी सीख उसे और किससे मिल सकती थी? पोर्न तो आजकल सभी नवयुवक देखते हैं पर कभी-कभी उसके परिणाम बहुत घातक और हिंसक भी हो जाते हैं, उन नवयुवकों की नई-नवेली उत्तेजना जब उनसे कंट्रोल नही होती तो आगे क्या रिजल्ट निकलता है हम अखबारों और समाचारों में रोज भारी मात्रा में पढ़ या देख पाते हैं। अपने बेटे के साथ खुद को शामिल करने का एक और मजबूत कारण ये भी था कि वो मुझपर कभी हावी नही हो सकता था और मुझे अपने-आप पर पूरा विश्वास था।
कार को पेड़ के पास रोक नीचे उतरकर पहले मैंने उस जगह का सही से निरीक्षण किया और फिर कार पेड़ की दाहिनी तरफ इस सावधानी से लगाई कि वो हाईवे से दिखाई ना दे सके, पेड़ के सामने और बायीं तरह ऊँची बाड़ लगे खेत थे और पीछे से हमें उस पेड़ का सहारा तो था ही, कुलमिलाकर वो जगह बहुत सुरक्षित और बारिश से हमारा बचाव करने में सक्षम थी।
"पानी की बोतल और टॉवल वगैरा निकाल लो मोनू, हमें यहाँ काफी देरतक भी रुकना पड़ सकता है" मैंने उस गोल घेरे का चक्कर लगाते हुये कहा, जिसके ये खेत थे शायद उसने अपने खर्चे से इस दो-ढाई सौ मीटर की सीमेंटेड रोड को बनवाया था क्योंकि पेड़ के मोटे तने के चारों तरफ की जमीन भी सीमेंटेड थी। मैंने देखा मोनू ने टॉवल पेड़ के नीचे बिछा दी थी और बगल में पानी की बोतल रख अब वो मेरे पास चला आ रहा था।
"अरे तुम यहाँ क्यों आ रहे हो?" मैंने उससे पूछा।
"तुम्हारी मदद नही करूँगा जैसे पहले की थी" उसने जवाब दिया। "याद नही तुम्हें चक्कर आ गए थे"
"हाँ पर अब मैं ठीक हूँ, तुम उस टॉवल पर बैठो और मैं यहाँ बैठूँगी" मैंने पेड़ से पाँच-छह कदम पहले रुकते हुए कहा, आगे का सोच मेरा दिल जोर से धड़कना शुरू हो गया था।
"आर यू श्योर माँ?" उसने दोबारा पूछा।
"हम्म बिल्कुल बेटा और वैसे भी मुझे बस अपनी साड़ी ऊपर उठाकर नीचे बैठना ही तो है, पोट्टी तो मुझे आ नही रही" मैंने हँसते हुये कहा। अचानक घण्टेभर में मैं अपने बेटे के साथ कितनी खुल गयी थी, मुझे खुद पर हैरत भी हो रही थी और अच्छा भी लग रहा था। "तुम बैठो टॉवल पर, मैं भी बैठती हूँ"
"ओ ... ओके!" बुदबुदाकर मोनू ने फौरन पेड़ की ओर छलांग सी मारी, मैं उसकी इस उत्सुकता पर सच में हँस पड़ी। फिर उसके टॉवल पर बैठते ही मैं पलटी और अपनी साड़ी को पेटीकोट समेत अपनी कमर तक ऊँचा उठा दिया, अपनी पेंटी को नीचे सरकाते हुये मेरे मन ने मुझे बुरी तरह कोसा था पर अब मैं हर ग्लानि भाव से आगे निकल चुकी थी।
"क ... क्या हुआ माँ?" मुझे उसी तरह साड़ी को पकड़े खड़े देख मोनू ने हकलाते हुये मुझसे पूछा।
"तुम्हारे बगल में बैठूँगी, मुझे पोट्टी नही करना" मैंने बेटे की तरफ मुड़ते हुए कहा और बिना किसी झिजक के उसके पास चली आयी, ना मैंने अपनी पेंटी ऊपर सरकाई थी और ना नही साड़ी को नीचे किया था। "जगह तो बनाओ बुद्धू, नीचे गीली जमीन पर बैठने से माँ के चूतड़ ठंडे नही पड़ जायेंगे"
"न ... ना बैठो माँ, टॉवल पर बैठो" कहकर मोनू ने आधी से ज्यादा टॉवल मेरे बैठने के लिये छोड़ दी और जिसपर मैं उसी अधनंगी हालत में बैठ भी गयी थी।
"कितना सुकून है ना यहाँ बेटा" कहते हुये मैंने पाया कि पिछली बार की तरह वो फिर से मुझसे आँखें चुरा रहा है, कुछ देर पहले उसने मेरे चूतड़ छुप-छुपाकर देखे थे और यकीनन दोबारा भी वो मुझसे नज़रें मिलाये बिना ही उन्हें देखना चाहता था लेकिन अब मैंने उसकी शरम को तोड़ने का फैसला कर लिया था और बिना संकोच के अपनी तुरंत अपनी साड़ी अपने पेट तक ऊपर उठा दी।
"माँऽऽ" मेरी इस बेशर्म हरकत पर मोनू बुरी तरह काँप जाता है।
"क्या माँ की चूत इतनी घिनौनी है जो तुम उसे देखना तक नही चाहते बेटा?" मैंने अश्लीलता और मायूसी के मिलेजुले लहजे में उससे पूछा। "अपनी माँ के शरीर की उस जगह से तुम्हें इतनी नफरत है जहाँ से बाहर निकलकर तुम इस दुनिया मे आये हो मोनू?"
"नही माँ, ऐसा मत कहो" वो भारी आवाज से मेरी आँखों में झाँकते हुए बोला। "मुझे ... मुझे बहुत शरम आ रही है और डर भी लगा रहा है कि कहीं मेरी बेशर्मी से तुम नाराज़ ना हो जाओ"
"मैं अपने बेटे से नाराज़ क्यों होऊंगी भला, तुम तो मेरे प्राण हो बेटा" भावुकता से ऐसा कह मैं उसे अपने सीने से चिपकाकर बोली। "आज जो तुमने मेरे लिये किया है मोनू, जिस समझदारी, प्यार और हिम्मत से अपनी बूढ़ी माँ को संभाला है ... मानो तुमने अपने बचपन का ऋण चुका दिया बेटा"
"नही माँ, मैं तुम्हारे ऋण को कभी नही चुका सकूँगा बल्कि कोई बेटा नही चुका सकता ... तुम्हारा बेटा होकर भी अगर मैं तुमसे मुँह मोड़ लेता तो मैं खुद को कभी माफ नही कर पाता" मेरे सीने में अपना मुँह छुपाये वो गहरी-गहरी सांसें लेते हुये बोला।
"बेटा मैं तुम्हारी क्युरीआसटी, तुम्हारी जिज्ञासा को दूर करना चाहती हूँ इसलिए तुम बिना शरमाये या डरे अपनी माँ की चूत को देख सकते हो" कहकर मैंने खुद उसका चेहरा अपने सीने से हटा दिया पर शर्मिंदगी से उसने अपनी आंखें भींच ली थी। "मोनू अपनी आंखें खोलो वरना माँ सचमुच नाराज हो जाएगी"
"ओके ... ओके पर तुम ... तुम अपना चेहरा उधर घुमाओ" उसने अपनी एक आँख को खोलते हुये कहा और फिर दोबारा उसके बंद कर लेता है।
"वाह रे फट्टू, क्या तुम मेरे वही बेटे हो जो कुछ समय पहले मुझे पोट्टी करवाते हुये भी बिल्कुल नही शरमा रहा थे?" मैंने हँसते हुये पूछा।
"माँ मैं फट्टू नही हूँ" अजीब से जोश से ऐसा कह मोनू ने अपना चेहरा नीचे झुका दिया और बड़े नजदीक से मेरी चूत को देखने लगता है, मेरी पेंटी मेरे घुटनों में फंसी थी और साड़ी को मैंने अपने पेट पर समेत रखा था। एकाएक जाने क्यों मेरी आँखें मुंद जाती हैं, मेरे बदन में अजीब सी सिरहन दौड़ पड़ती है और साथ ही मेरी थम चुकी उत्तेजना भी वापस लौट आती है।
"ये बहुत सुंदर है माँऽऽ" मोनू सिसकते हुये बोला। "बिल्कुल चिकिनी, उफ्फ! ये बहुत सुंदर है माँ ... बहुत प्यारी है"
"मैंने ... मैंने आज सुबह ही यहाँ के बाल साफ किये थे" अपने बेटे के मुँह से निकलती गर्म साँसों को अपनी चूत पर महसूस कर मैं खुद सिसक पड़ती हूँ। मैने तुरंत अपनी आंखें खोलीं, अपने-आप मेरी चिपकी टाँगें चौड़ी होने लगी थीं।
"तुम्हारी वेजाइना गोरी है माँ जबकि मैंने सुना था कि ये काली होती है" उसने सरल भाषा मे बताया।
"वेजाइना गोरी भी होती है, सांवली भी होती है लेकिन ज्यादातर इसका रंग काला होता है" मैंने उसका चेहरा ऊपर उठाते हुए कहा। "पता है मोनू वेजाइना के अलावा इंग्लिश में इसे पुसी या कन्ट भी कहते हैं, शुद्ध हिंदी में योनि और आम देशी शब्दों में इसे चूत, बुर या फुद्दी कहकर बुलाते हैं"
"एकेडमी के लड़के बताते हैं माँ" मोनू ने कहा फिर फौरन अपनी जीभ दाँतों के बीच दबाकर मुस्कुराने लगा।
"इसका मतलब तुम सब कुछ जानते हो और मेरे सामने सीधे बनने का नाटक कर रहे हो" मैंने नाराज़गी का नाटक करते हुए कहा ताकि उसे थोड़ा और टटोल सकूँ।
"रिप्रोडक्शन तो सबने पढ़ा है माँ, ये थ्योरेटिकल बातें तो बच्चा-बच्चा जानता है पर ये बिल्कुल सच है कि मैं पहली बार किसी फीमेल की रियल वेजाइना देख रहा हूँ" मोनू गंभीर होते हुये बोला। "क्लाइटोरिस, ऑर्गेज्म, वोल्वा वगैरा-वगैरा मुझे पूरा थ्योरिटिकल नॉलेज है"
"तो अब चलें वापस, थ्योरिटिकल नॉलेज तुम्हें है और अब रियल वेजाइना भी तुमने देख ली" मैंने उसका गाल चूमते हुये कहा।
"नही माँ, प्लीज थोड़ी देर और रुकते हैं ना" मेरी बात पर वो तुनकते हुये बोला और तभी मेरी आँखें दिन में दूसरी बार शेरवानी के ऊपर बने उसके खड़े लण्ड के तम्बू पर टिक जाती हैं।
"तुम्हारा पेनिस कैसा है बेटा?" मैंने बिना समय गंवाये उससे पूछा, मेरे इस सवाल पर वो बुरी तरह से चौंक पड़ा था और साथ ही तुरंत हथेलियों से अपने तम्बू को छुपाने लगता है।
"वो ... वो ... वो बस ठीक है, उतना ... उतना खास नही माँ" मोनू लड़खड़ाते हुये कहता है।
"पर मैं कैसे मानूँ, अगर मैं उसे देखूँगी नही तो कैसे यकीन करूँगी कि वो बस ठीक है या उतना खास नही" मैंने जोर से खिलखिलाते हुये कहा। कहीं ना कहीं मुझे साफ महसूस हो रहा था कि मेरा इतना आगे बढ़ना उचित नही क्योंकि मेरी सोच तो सिर्फ बेटे की जिज्ञासा दूर करने की थी लेकिन बजाये इसके अब जैसे मैं खुद की जिज्ञासा दूर करने को मचल उठी थी।
"वो माँ तुम समझो, तुम्हें यकीन करने या ना करने की कोई जरूरत नही" मोनू ने दोबारा मेरी बात को टालते हुये कहा तो मैंने उसे ज्यादा परेशान करना ठीक नही समझा।
"अच्छा दिखाओ मत पर ये तो बता दो कि क्या तुम्हारे पेनिस पर बाल उग चुके हैं?" मैंने शरारती मुस्कान छोड़ते हुये पूछा तो वो ना में अपना सिर हिलाकर शर्माने लगा।
"स्पर्म निकलता है?" मैंने दूसरा सवाल किया, अब मैं खुद की भाषा में भी सुधार कर चुकी थी।
"पता नही माँ" वो धीरे से फुसफुसाया जैसे बहुत बड़े राज को बता रहा हो।
"मैस्टर्बेशन के बारे में नही पता तुम्हें?" मेरे सवाल जारी थे।
"पता है पर मैंने कभी नही किया" उसने दोबारा धीरे से बताया।
"चलो कोई बात नही, समय के साथ सब नॉर्मल हो जायेगा, खैर अगर तुम्हारा कोई सवाल हो तो पूछ लो वरना हम वापस चलते हैं" कहकर मैंने उसके माथे को चूम लिया।
"चलो वापस चलें माँ" बदले वो मेरा दायाँ गाल चूमकर बोला।
"ठीक है मैं सूसू कर लूँ फिर चलते हैं, चाहो तो दूर जाकर तुम भी कर लो" मैंने टॉवल से उठकर कहा, अपने आप मेरी साड़ी नीचे गिर जाती है पर मोनू अब भी वहीं बैठा था और मुझे अपनी साड़ी झड़ाते हुये बड़े गौर से देख रहा था।
मैं उसके बिना बोले समझ गयी कि उसके उत्सुक मन मे क्या चल रहा है इसलिए मैंने दोबारा अपनी साड़ी ऊपर उठायी और जमीन पर बैठकर मूतने लगी, वो आंखें फाड़े कभी मेरी चूत से बहते पेशाब को देख रहा था तो कभी मेरे मुस्कुराते चेहरे को।
"अपनी माँ को मूतते देख तुम्हें शरम नही आती?" मैंने जानबूझकर उसे छेड़ा पर तुरंत खुश भी कर दिया। "घर पर अच्छे से देख लेना, अभी माँ को थोड़ा सा ही सूसू लगा था"
"पक्का माँ" मेरे पेंटी ऊपर चढ़ाते ही वो भी टॉवल से उठकर चहका।
"हम्म लेकिन ये हमारा सीक्रेट रहेगा, प्रोमिस ना" कहकर मैंने अपनी साड़ी नीचे छोड़ दी।
"प्रोमिस एंड लव यू" बोलकर वो मुझसे बुरी तरह लिपट जाता है, मैं खुद ना जाने कबतक उसे अपने सीने से चिपकाये वहीं खड़ी रही थी।