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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

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Aakash.

ᴇᴍʙʀᴀᴄᴇ ᴛʜᴇ ꜰᴇᴀʀ
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Divine
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तू जाहिर है लफ्जो में मेरे और मैं गुमनाम हु खामोशियों में तेरी...
 

Mr. Perfect

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Fantastic______

तू जाहिर है लफ्जो में मेरे और मैं गुमनाम हु खामोशियों में तेरी...
 

Naughtyrishabh

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कौन सी बात कहाँ कैसे कही जाती है,
ये सलीका हो तो हर बात सुनी जाती है!

एक बिगड़ी हुई औलाद भला क्या जाने,
कैसे माँ बाप के होंठों से हंसी जाती है!

कतरा अब एह्तिजाज़ करे भी तो क्या मिले,
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले!

हर शख्स दौड़ता है यहाँ भीड़ की तरफ,
फिर ये भी चाहता है उसे रास्ता मिले!

इस दौर-ए-मुन्साफी में जरुरी नहीं वसीम,
जिस शख्स की खता हो उसी को सजा मिले!
जबरदस्त बन्धुजबरदस्त
 
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Naughtyrishabh

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कभी ख़ुशी से ख़ुशी की तरफ़ नहीं देखा,
तुम्हारे बाद किसी की तरफ़ नहीं देखा!

ये सोच कर कि तेरा इंतज़ार लाज़िम है,
तमाम उम्र घड़ी की तरफ़ नहीं देखा!

यहाँ तो जो भी है आबे-रवाँ का आशिक़ है,
किसी ने ख़ुश्क नदी की तरफ़ नहीं देखा!

वो जिस के वास्ते परदेस जा रहा हूँ मैं,
बिछड़ते वक़्त उसी की तरफ़ नहीं देखा!

न रोक ले हमें रोता हुआ कोई चेहरा,
चले तो मुड़ के गली की तरफ़ नहीं देखा!

बिछड़ते वक़्त बहुत मुतमुइन थे हम दोनों,
किसी ने मुड़ के किसी की तरफ़ नहीं देखा!

रविश बुज़ुर्गों की शामिल है मेरी घुट्टी में,
ज़रूरतन भी सख़ी की तरफ़ नहीं देखा!

लाज़िम – आवश्यक
आबे-रवाँ – बहते हुए पानी का
मुतमुइन – संतुष्ट
रविश – आचरण
सख़ी – दानदाता
लाजवाब
 
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Naughtyrishabh

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सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा,
हम बुलबुलें हैं इसकी यह गुलसिताँ हमारा!

ग़ुर्बत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में,
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा!

परबत वह सबसे ऊँचा, हम्साया आसमाँ का,
वह संतरी हमारा, वह पासबाँ हमारा!

गोदी में खेलती हैं इसकी हज़ारों नदियाँ,
गुल्शन है जिनके दम से रश्क-ए-जनाँ हमारा!

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वह दिन हैं याद तुझको?
उतरा तिरे किनारे जब कारवाँ हमारा!

मज़्हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना,
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोसिताँ हमारा!

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रूमा सब मिट गए जहाँ से,
अब तक मगर है बाक़ी नाम-व-निशाँ हमारा!

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी,
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा!

इक़्बाल! कोई महरम अपना नहीं जहाँ में,
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-निहाँ हमारा!

________Allama Iqbal
इकबाल की ये ग़ज़ल जबरदस्त है , ये अलग बात है कि भारत के विभाजन में इनका भी अहम किरदार रहा है
 
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Naughtyrishabh

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हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है?
तुम ही कहो कि ये अंदाज़-ए-ग़ुफ़्तगू क्या है?

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है?

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी जेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है?

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है?

रही ना ताक़त-ए-गुफ़्तार और हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिए कि आरज़ू क्या है?
ग़ालिब ज़िंदाबाद
 
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