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Serious *महफिल-ए-ग़ज़ल*

क्या आपको ग़ज़लें पसंद हैं..???

  • हाॅ, बेहद पसंद हैं।

    Votes: 12 85.7%
  • हाॅ, लेकिन ज़्यादा नहीं।

    Votes: 2 14.3%

  • Total voters
    14

TheBlackBlood

αlѵíժα
Supreme
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*महफिल-ए-ग़ज़ल*
हैलो दोस्तो,,,,
इस थ्रीड में आप सभी का तहे-दिल से स्वागत है और सभी से ग़ुज़ारिश भी है कि आप सब भी अपनी तरफ से इस थ्रीड पर अपनी पसंदीदा ग़ज़लें पोस्ट करें।

शेरो-शायरी अथवा ग़ज़ल ये ऐसी चीज़ें होती हैं जिनका एक अलग ही प्रभाव है, जो हमारे दिलों के तारों को छू कर हमे एक अनोखे एहसास से रूबरू कराती हैं। तो दोस्तो, आइये और इसके अनोखे एहसास से रूबरू होते हैं।

हर आने जाने वाले का मुँह देखता रहा।
मैं रहगुज़र पे ज़ीस्त की तन्हा खड़ा रहा।।

इस ज़िंदगी ने ज़ख़्म दिए बारहा मगर,
जाने हर एक ज़ख़्म को क्यों चूमता रहा।।

छोड़ा है आंधियों ने न बाक़ी निशान-ए-राह,
फिर भी मैं तेरा नक़्श-ए-क़दम ढूँढता रहा।।

तन्हा नहीं रहा हूँ मैं तेरे फ़िराक़ में,
दिल पर तेरे ही दर्द का पहरा लगा रहा।।

दिन को तो सिलसिले थे ग़म-ए-रोज़गार के,
शब भर तिरे ख़याल का ताँता लगा रहा।।

याद-ए-'हबीब' थी कि धुंधलकों में खो गई,
दिल में सिवाए ख़ाक के बाक़ी भी क्या रहा।।
 

Romeo 22

Well-Known Member
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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ..
 
Last edited:

VIKRANT

Active Member
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*महफिल-ए-ग़ज़ल*
हैलो दोस्तो,,,,
इस थ्रीड में आप सभी का तहे-दिल से स्वागत है और सभी से ग़ुज़ारिश भी है कि आप सब भी अपनी तरफ से इस थ्रीड पर अपनी पसंदीदा ग़ज़लें पोस्ट करें।

शेरो-शायरी अथवा ग़ज़ल ये ऐसी चीज़ें होती हैं जिनका एक अलग ही प्रभाव है, जो हमारे दिलों के तारों को छू कर हमे एक अनोखे एहसास से रूबरू कराती हैं। तो दोस्तो, आइये और इसके अनोखे एहसास से रूबरू होते हैं।

हर आने जाने वाले का मुँह देखता रहा।
मैं रहगुज़र पे ज़ीस्त की तन्हा खड़ा रहा।।

इस ज़िंदगी ने ज़ख़्म दिए बारहा मगर,
जाने हर एक ज़ख़्म को क्यों चूमता रहा।।

छोड़ा है आंधियों ने न बाक़ी निशान-ए-राह,
फिर भी मैं तेरा नक़्श-ए-क़दम ढूँढता रहा।।

तन्हा नहीं रहा हूँ मैं तेरे फ़िराक़ में,
दिल पर तेरे ही दर्द का पहरा लगा रहा।।

दिन को तो सिलसिले थे ग़म-ए-रोज़गार के,
शब भर तिरे ख़याल का ताँता लगा रहा।।

याद-ए-'हबीब' थी कि धुंधलकों में खो गई,
दिल में सिवाए ख़ाक के बाक़ी भी क्या रहा।।

Greattt shubham bro. :applause::applause::applause:

And :congrats: for the next thread.
 

janu2016

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Yeh na maloom tha preet ho jayegi...
Har khushi pyat ka geet ho jayegi....

Geet mere sada gungunate raho....
Yeh lehar ek din meet ho jayegi....

Raah muskil sahi khauf hargiz na kar....
Haar khud ek din jeet ho jayegi.....

Dil laga kar sada aage bhadhte raho....
Apni raah ki khud manzil ho jayegi.....

Main khushi se roz gajal gata rahu....
Zindagi meri gajal-ae-sangit ho jayegi......
 
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TheBlackBlood

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Yeh na maloom tha preet ho jayegi...
Har khushi pyat ka geet ho jayegi....

Geet mere sada gungunate raho....
Yeh lehar ek din meet ho jayegi....

Raah muskil sahi khauf hargiz na kar....
Haar khud ek din jeet ho jayegi.....

Dil laga kar sada aage bhadhte raho....
Apni raah ki khud manzil ho jayegi.....

Main khushi se roz gajal gata rahu....
Zindagi meri gajal-ae-sangit ho jayegi......
वाह!जानू भाई, बहुत खूब।
 

TheBlackBlood

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रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ

कुछ तो मिरे पिंदार-ए-मोहब्बत का भरम रख
तू भी तो कभी मुझ को मनाने के लिए आ

पहले से मरासिम न सही फिर भी कभी तो
रस्म-ओ-रह-ए-दुनिया ही निभाने के लिए आ

किस किस को बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझ से ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ

इक उम्र से हूँ लज़्ज़त-ए-गिर्या से भी महरूम
ऐ राहत-ए-जाँ मुझ को रुलाने के लिए आ

अब तक दिल-ए-ख़ुश-फ़हम को तुझ से हैं उम्मीदें
ये आख़िरी शमएँ भी बुझाने के लिए आ..
वाह! रोमियो भाई मेहदी हसन की ग़ज़ल। मुझे बहुत पसंद है ये। इसका एक शेर मेरी तरफ से भी,,,,

माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत,
तू भी तो कभी मुझको जताने के लिए आ।।
 

TheBlackBlood

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ये कौन आ गई दिलरुबा महकी महकी।
फ़िज़ा महकी महकी हवा महकी महकी।।

वो आँखों में काजल वो बालों में गजरा,
हथेली पे उसके हिना महकी महकी।।

ख़ुदा जाने किस-किस की ये जान लेगी,
वो क़ातिल अदा वो सबा महकी महकी।।

सवेरे सवेरे मेरे घर पे आई,
ऐ “हसरत” वो बाद-ए-सबा महकी महकी।।

______'हसरत' जयपुरी
गायक: गुलाम अली
 

TheBlackBlood

αlѵíժα
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इस तरह मोहब्बत की शुरुवात कीजिए।
एक बार अकेले मे मुलाक़ात कीजिए।।

सुखी पड़ी है दिल की ज़मी मुद्दतों से यार,
बनके घटाए प्यार की बरसात कीजिए।।

हिलने ना पाए होठ औट कह जाए बहुत कुछ,
आँखो मे आँखे डाल के हर बात कीजिए।।


दिन मे ही मिले रोज़ हम देखे ना कोई और,
सूरज पे जुल्फ डाल के फिर रात कीजिए।।

इस तरह मोहब्बत की शुरुवात कीजिए,
एक बार अकेले मे मुलाक़ात कीजिए।।

शायर: अज़ीम मलिक
गायक: चंदन दास
 

Romeo 22

Well-Known Member
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वाह! रोमियो भाई मेहदी हसन की ग़ज़ल। मुझे बहुत पसंद है ये। इसका एक शेर मेरी तरफ से भी,,,,

माना के मोहब्बत का छुपाना है मोहब्बत,
तू भी तो कभी मुझको जताने के लिए आ।।
:superb:
 
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