मलाई- एक रखैल-2
हमारे यहां दुकानों में सबसे ज्यादा बिक्री दशहरा के मौके पर ही होती है| कमला मौसी का कहना था कि मेरे आने से शायद दुकान में लक्ष्मी आ गई है और इसीलिए शायद पिछले साल दुकान की आमदनी में काफी इजाफा हुआ है|
दशहरा के दिनों हो कमला मौसी न जाने क्यों मुझसे कहा करती थी कि मैं सिर्फ साड़ी और ब्लाउज पहना करूँ और अपने बालों को खुला रखा करूँ|
साड़ी और ब्लाउज का पहनना तो मुझे समझ में आ गया कि यह पारंपरिक कपड़े हैं और दशहरा के दिन हो पारंपरिक कपड़े पहनने का रिवाज है इसमें कोई हर्ज नहीं है| लेकिन यह बात मुझे समझ में नहीं आई कि वह मेरे बालों को खुला क्यों रखवाला चाहती थी|
मैंने उनसे इसके बारे में पूछा भी था, लेकिन उन्होंने मुस्कुरा कर मेरे गालों को प्यार से सहला कर बोली, “एक टोने-टोटके की तरह है बस तू देखती जा... अब हमारी दुकान की बिक्री कितनी बढ़ जाएगी...”
और बड़े ही आश्चर्य की बात है उस दिन दुकान पर इतनी भीड़ हुई कितनी दूर है कितना अच्छा बिक्री बट्टा हुआ कि मैं पूरे दिन बहुत ही व्यस्त थी और दिन खत्म होते होते मैं थक कर चूर हो गई थी और पूरा बदन मानो ऐंठ रहा था|
कमला मौसी मेरे पास आए और और बोली, "देखा ना आज हमारी दुकान पर कितने ग्राहक आए हुए थे... सब ने कितना कुछ खरीद लिया..."
मैंने ताज्जुब भरी निगाहों से उनकी तरफ देखा और पूछी, "पर मौसी ऐसा कैसे हुआ?"
“मैं जैसा कहती हूं अगर तू वैसा ही करेगी... मेरी अगर बात मानकर चलेगी तो यकीन मान तेरा भला ही होगा तू ऐश करेगी… मैं हूं ना तेरी कमला मौसी”, यह कहकर कमला मौसी ने मुझे प्यार से चूमा|
और फिर फ्रिज में से एक बियर का कहना और एक टेबलेट निकाल कर उन्होंने मुझे दी|
“मैंने पूछा यह क्या है, मौसी?”
तो उन्होंने जवाब दिया, “बीयर… बीयर, तेरी थकान दूर कर देगा नींद अच्छी आएगी और यह टेबलेट बदन में जो ऐठन पैदा हो रही है; उसको दूर करेगा| आज तू ने काफी मेहनत की है अगले कई दिनों तक दुकान पर इसी तरह की भीड़ लगी रहेगी इसलिए तुझे और मुझे दोनों को काफी काम करना पड़ेगा यह देखना मैं भी यह टेबलेट ले रही हूं और बीयर भी पी रही हूं....”
“लेकिन अगर अनिमेष को पता चला तो?”
“उसे हर बातों बताने की क्या जरूरत है? वह तो वैसे भी हैदराबाद क्या हुआ है| दशहरे का त्यौहार खत्म होने के हफ्ते भर बाद ही लौटेगा... मैं जैसा कहती हूं अगर तू वैसा ही करेगी... मेरी अगर बात मानकर चलेगी, तो यकीन मान तेरा भला ही होगा… तू ऐश करेगी मैं हूं ना तेरी मौसी, इधर? तेरा ख्याल तो मुझे ही रखना है ना?”
दशहरा खत्म होने के बाद यह रिवाज है कि बड़े छोटों को तोहफे दिया करते हैं| न जाने क्यों मेरे मन में भी इस बार उत्सुकता थी कि मैंने तो कमला मौसी की इतनी मदद की है; क्या वह मुझे कोई तोहफा नहीं देंगी? और इसी तोहफे ने मुझे और ज्यादा अचरज में डाल दिया...
विजयदशमी के एक दिन बाद कमला मौसी मेरे कमरे में आई| उनके हाथ में एक बड़ा सतवेला था और चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान खिली हुई थी|
रीति रिवाज के अनुसार मैंने उनके पैर छुए, उन्होंने भी मुझे गले से लगाया| लेकिन इस बार एक अजीब सी बात हुई, वैसे तो वह मुझ सिर्फ गानों को चूमा करती थी, लेकिन इस बार उन्होंने मेरे माथे और होठों को भी चूमा|
फिर वह अपने बड़े से पहले से ही एक-एक करके मेरे लिए कई सारे पैकेट निकलती गई|
उनमें से एक पैकेट को देख कर के मेरी आंखें फटी की फटी रह गई| क्योंकि उस पैकेट पर लिखा हुआ था टोपनदास एंड कंपनी... यानी कि शहर के सबसे बड़े गहनों के व्यापारी की कंपनी का नाम|
मेरा दिल जोर-जोर से धड़कने लगा था.... और जल्दी ही धड़कने का कारण भी साफ हो गया, क्योंकि उस थैले में से एक गहनों का बक्सा निकला, जिसमें गहनों का सेट था|
एक सुंदर सा नेकलेस, एक जोड़ी मोटे-मोटे कंगन और दो बड़े-बड़े झुमके|
फिर उन्होंने दूसरा पैकेट निकाला| उस पैकेट पर लिखा हुआ था निर्मला गिफ्ट शॉप| उसमें से भी उन्होंने गहने ही निकाले... लेकिन वह इमिटेशन वाले गाने के नकली गहने थे... छोटे-छोटे ढेर सारे कानों के टॉप्स, 5-6 कई तरह के नेकलेस और तीन-चार फैंसी चूड़ियों का सेट|
उसके बाद उन्होंने एक और पैकेट निकाला, और वह पैकेट था सिमरन टेलर्स का उनका अगला पैकेट एक साड़ियों की दुकान का था और फिर उन्होंने एक और पैकेट निकाला जिस पर लिखा हुआ था अनादि दास...
अनादि दास वाले पैकेट में न जाने क्यों कमला मौसी ने मेरे लिए दो बहुत ही महंगी टी शर्ट और जींस लाई थी|
सिमरन टेलर्स के पैकेट में मेरे लिए कई तरह के ब्लाउज थे, और साड़ियों की कंपनी वाले पैकेट में मेरे लिए रंग बिरंगी साड़ियां रखी हुई थी|
मैं इतने सारे तो फिर देख कर फूली न समाई लेकिन मेरे को पसीना छूट रहा था| क्योंकि टोपनदास की दुकान से ली हुए गहने काफी महंगे थे और वजनी थे| यह कम से कम दो लाख से के कम नहीं होंगे...
इतने सारे तोहफे देखकर मेरी आंखों में आंसू आ गए... खुशी के आंसू और मैं रो पड़ी है और फिर मैंने सिसकते हुए कमला मौसी से पूछा, "मौसी जी इतने महंगे तोहफों की क्या जरूरत थी?"
कमला मौसी ने, मुझे सांत्वना देने के लिए अपनी बाहों में भर लिया और मैं उनसे लिपट कर सिसकने ने लगी और फिर उन्होंने अपना तकिया कलाम दोहराया, " जरूरत थी मेरी बच्ची जरूरत थी, तूने साल भर मेरी दुकान में काम किया पर मैंने तुझको कोई तनख्वाह नहीं दी...."
“लेकिन मौसी? मैंने आपका हाथ पैसों के लिए थोड़ी ना बंटाया?”
“मैं जानती हूं, तू मेरी दुकान में इसलिए बैठा करती है क्योंकि तुझे बहुत अकेलापन महसूस होता है... मुझे इस बात का इल्म है... तू सिर्फ अपना ध्यान बांटना चाहती है और बुरा ना मानना तू जैसी फूल सी बच्ची को एक अच्छे पति की जरूरत है जो कि तेरी कामवासना को भी पूरी कर सके और मैं यह अच्छी तरह जानती हूं कि तेरा पति चाहते हुए भी ऐसा नहीं कर सकता...”
अब मुझसे रहा नहीं गया| उन्होंने अब तक जो भी कहा था बिल्कुल सच था| मैं कमला मौसी से लिपटकर फूट-फूट कर रोने लगी|
कमला मौसी ने मुझे प्यार तो चलाते हुए कहा, " तू मेरी बच्ची है, तू मेरी जिम्मेदारी है, ऐसा मैं मानती हूं इसलिए तू चिंता मत कर... आजकल तो तेरा पति 15-15 या फिर 20-20 दिनों के लिए घर के बाहर ही रहता है... यह तो तेरे खेलने कूदने के दिन है तू क्या अपनी जवानी को ऐसे ही पड़े पड़े सूखने देगी.... यह मुझे मंजूर नहीं तू चिंता मत कर मैं हूं ना तेरी मौसी बस एक बात का ध्यान रखना, मैं जैसा कहती हूं अगर तू वैसा ही करेगी... मेरी अगर बात मानकर चलेगी, तो यकीन मान तेरा भला ही होगा… तू ऐश करेगी मैं हूं ना तेरी कमला मौसी"
क्रमशः